रखने को तो घर वालों ने उस का नाम किरण रख दिया था, लेकिन मिडिल स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही उस की समझ में आ गया था कि उस की जिंदगी में उम्मीद की कोई किरण नहीं है. इस की वजह यह थी कि प्रकृति ने उस के साथ घोर अन्याय किया, जो उसे एक आंख से दिव्यांग बनाया था.

किरण न बहुत ज्यादा खूबसूरत थी और न ही किसी रईस घराने से ताल्लुक रखती थी. एक मामूली खातेपीते परिवार की यह साधारण सी युवती न तो अपनी उम्र की लड़कियों की तरह रोमांटिक सपने बुनती थी और न ही ज्यादा सजनेसंवरने की कोशिश करती थी. घर में पसरे अभाव भी उसे दिखाई देते थे तो खुद को ले कर पिता का चिंतित चेहरा भी उस की परेशानी का सबब बना रहता था.

उस के पिता डालचंद कौरव अब से कई साल पहले नरसिंहपुर जिले की तहसील गाडरवारा के गांव सूरजा से भोपाल आ कर बस गए थे. उन का मकसद बच्चों की बेहतर परवरिश और शहर में मेहनत कर के ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था, जिस से घरपरिवार का जीवनस्तर सुधरे और धीरेधीरे ही सही, बच्चों का भविष्य बन सके. इस के लिए वह खूब मेहनत करते थे. लेकिन आमदनी अगर चवन्नी होती थी तो पता चलता था कि महंगाई की वजह से खर्चा एक रुपए का है.

वह भोपाल में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, जहां से मिलने वाले वेतन से खींचतान कर किसी तरह खर्च चल जाता था. 3 बेटियों के पिता डालचंद बड़ी बेटी की शादी ठीकठाक और खातेपीते परिवार में कर चुके थे. उस के बाद किरण को ले कर उन की चिंता स्वाभाविक थी, क्योंकि आजकल हर कोई उस लड़की से शादी करने से कतराता है, जिस के शरीर में कोई कमी हो.

सयानी होती किरण की भी समझ में यह बात आ गई थी कि एक आंख कमजोर होने की वजह से सपनों का कोई राजकुमार उसे ब्याहने नहीं आएगा. शादी होगी भी तो वह बेमेल ही होगी, इसलिए उस ने काफी सोचविचार के बाद तय कर लिया कि जो भी होगा, देखा जाएगा. हालफिलहाल तो पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान दिया जाए. अपने एकलौते भाई राजू को वह बहुत चाहती थी, जो बाहर की भागादौड़ी के सारे काम तेजी और संयम से निपटाता था. यही नहीं, वह पढ़ाई में भी ठीकठाक था.

छोटी बहन आरती भोपाल के प्रतिष्ठित सैम कालेज में पढ़ रही थी. किरण भी वहीं से बीकौम की पढ़ाई कर रही थी. वह स्वाभिमानी भी थी और समझदार भी, लिहाजा उस ने मीनाल रेजीडेंसी स्थित एजिस नाम के कालसैंटर में पार्टटाइम नौकरी कर ली थी. वहां से मिलने वाली तनख्वाह से वह अपनी पढ़ाई का और अन्य खर्च उठा लेती थी.

21 अक्तूबर, 2016 को किरण अपने घर ई-34 सिद्धार्थ लेकसिटी, आनंदनगर से रोज की तरह कालेज जाने को तैयार हुई तो घर का माहौल रोज की तरह ही था. चायनाश्ते का दौर खत्म हो चुका था और सभी अपनेअपने औफिस, स्कूल और कालेज जाने के लिए तैयार हो रहे थे.

किरण भी तैयार थी. वह कालेज के लिए घर से निकलने लगी तो चाचा संबल कौरव से खर्चे के लिए कुछ पैसे मांगे. उन्होंने उसे 20 रुपए दे दिए. किरण का भाई राजू भी तैयार था, इसलिए किरण उस के साथ चली गई. ऐसा लगभग रोज ही होता था कि जब किरण जाने लगती थी तो राजू उस के साथ हो लेता था और उसे सैम कालेज के गेट पर छोड़ देता था. उस दिन भी उस ने किरण को कालेज के गेट पर छोड़ा तो वह चुपचाप अंदर दाखिल हो गई. उन दिनों सैम कालेज में निर्माण कार्य चल रहा था.

राजू को कतई अहसास नहीं था कि बहन के दिलोदिमाग में एक ऐसा तूफान उमड़ रहा है, जो उस की जिंदगी लील लेगा. वह दीदी को बाय कह कर वापस चला गया तो किरण सीधे कालेज की निर्माणाधीन बिल्डिंग ब्लौक की छत पर जा पहुंची और चौथी मंजिल पर जा कर खड़ी हो गई. उस के दिल में उमड़ता तूफान अब शबाब पर था, जिस का मुकाबला करने की हिम्मत अब उस में नहीं रह गई थी. लिहाजा वह चौथी मंजिल से सीधे नीचे कूद गई.

इस के बाद सैम कालेज में हल्ला मच गया. इतनी ऊंचाई से नीचे कूदने के बाद किरण के जिंदा बचने का कोई सवाल ही नहीं था. जरा सी देर में छात्रों की भीड़ इकट्ठा हो गई. इस बात की खबर कालेज प्रबंधन तक भी पहुंच गई. फलस्वरूप उसे तुरंत नजदीकी नर्मदा अस्पताल पहुंचाया गया. अस्पताल से पुलिस को खबर कर दी गई. किरण को देखने के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

कालेज प्रबंधन ने किरण की बहन आरती को इस हादसे की सूचना दी तो उस ने घर वालों को बताया. घर वाले भागेभागे नर्मदा अस्पताल पहुंचे, लेकिन तब तक किरण दुनिया को अलविदा कह चुकी थी. उस के पास से कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था, जबकि आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि कोई पढ़ीलिखी समझदार युवती खुदकुशी करे और सुसाइड नोट न छोड़े. पर इस मामले में ऐसा ही हुआ था. कौरव परिवार में रोनाधोना मच गया था. किरण के सहपाठी भी दुखी थे कि आखिर जिंदादिल किरण ने ऐसा आत्मघाती कदम क्यों उठाया.

पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाते हुए छानबीन और पूछताछ शुरू की. जिस खुदकुशी को गुत्थी समझा जा रहा था, वह चंद घंटों में सुलझ गई, जो प्यार में धोखा खाई हीनभावना से ग्रस्त एक लड़की की दर्दभरी छोटी सी कहानी निकली.

किरण ने सुसाइड नोट छोड़ने की जरूरत शायद इसलिए नहीं समझी थी, क्योंकि उसे जो कहना था, उसे वह अपने फेसबुक एकाउंट में लिख चुकी थी. किरण के घर और कालेज वाले यह जान कर हैरान हो उठे थे कि किरण किसी से प्यार करती थी और वह भी इतना अधिक कि अपने प्रेमी की बेरुखी से घबरा गई थी और उसे कई दिनों से मनाने की कोशिश कर रही थी.

सैम कालेज से बीई कर रहा रोहित किरण का बौयफ्रैंड था, जो बीते कुछ दिनों से उसे भाव नहीं दे रहा था. रोहित की दोस्ती और प्यार ने किरण के मन में जीने की उम्मीद जगा दी थी, उस की नींद में कई रोमांटिक ख्वाब पिरो दिए थे. इस से उसे लगने लगा था कि अभी भी दुनिया में ऐसे तमाम लड़के हैं, जो प्यार के सही मतलब समझते हैं. जातिपांत, ऊंचनीच और शारीरिक कमियों पर ध्यान नहीं देते. उन के लिए सूरत से ज्यादा सीरत अहम होती है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, पर कुछ दिनों से रोहित का मूड उखड़ाउखड़ा रहता था. वह किरण से बात भी नहीं कर रहा था. उस का यह रवैया किरण की समझ में नहीं आ रहा था. अगर रोहित उसे वजह बताता तो तय था कि वह किसी न किसी तरह उसे मना लेती, कोई गलतफहमी होती तो वह उसे दूर कर देती. लेकिन रोहित की इस बेरुखी से किरण को अपने ख्वाब उजड़ते नजर आए और वह खुद को ठगा सा महसूस करने लगी.

जब प्रेमी बात ही नहीं कर रहा था तो वह क्या करती  लिहाजा किरण ने फेसबुक पर कशिश कौरव नाम से बनाए अपने एकाउंट पर मन की व्यथा साझा करनी शुरू कर दी. अपने पोस्टों में उस ने बौयफ्रैंड के छोड़े जाने यानी ब्रेकअप की बात कही और भावुकता में अपने सुसाइड की बात भी कह डाली थी. शायद ही नहीं, निश्चित रूप से वह अपने प्रेमी को अपने दिल का दर्द बताना चाह रही थी, जो उस की सांसों में बस चुका था.

एक जगह उस ने शायराना अंदाज में लिखा था, ‘ऐ इश्क तुझे खुदा की कसम या तो मुझे मेरा प्यार दे या फिर मुझे मार दे.’

प्यार नहीं मिला तो किरण ने खुद के लिए मौत चुनने की नादानी कर डाली, वह भी इस तरह कि कोई रोहित पर सीधे अंगुली न उठा सके. लेकिन फेसबुक एकाउंट में अपने प्यार और प्रेमी की बेरुखी की चर्चा कर के उस ने उसे शक के दायरे में तो ला ही दिया था. दूसरे दिन पुलिस ने साईंखेड़ा स्थित रोहित के घर में दबिश दी, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जाहिर है, किरण की खुदकुशी के बाद वह गिरफ्तारी के डर से फरार हो गया था.

पुलिस ने कालेज में पूछताछ की तो एक बात यह भी सामने आई कि रोहित और किरण में दोस्ती तो थी, पर प्यार जैसी कोई बात उन के बीच नहीं थी. किरण की कुछ सहेलियों ने दबी जुबान से स्वीकार किया था कि वह रोहित से एकतरफा प्यार करती थी. इस का मतलब तो यही हुआ कि किरण दोस्ती को प्यार मानते हुए जबरदस्ती रोहित के गले पड़ना चाहती थी. इस बात का खुलासा अब रोहित ही कर सकता है, जो कथा लिखे जाने तक पुलिस की पकड़ में नहीं आया था.

किरण भावुक थी और रोहित को ले कर शायद वह जरूरत से ज्यादा जज्बाती हो गई थी. इस की एक वजह उस की आंख की विकृति से उपजी हीनभावना भी हो सकती है. रोहित से दोस्ती के बाद निस्संदेह उस की यह सोच और भी गहरा गई होगी. फेसबुक पर उस ने तरहतरह से रोहित को मनाने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही थी.

जब उसे लगा कि यार और प्यार नहीं तो जिंदगी क्यों, जो अब किसी के काम की नहीं. यही सोच कर उस ने यह खतरनाक फैसला ले डाला होगा.

कौरव परिवार ने इस गम में दिवाली नहीं मनाई. उन्हें अपनी लाडली किरण की मौत के बारे में यकीन ही नहीं हो रहा है. उन्हें लगता ही नहीं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है. डालचंद के चेहरे पर विषाद है, पर इसलिए नहीं कि किरण ने उन की चिंता हमेशा के लिए दूर कर दी है, बल्कि इसलिए कि उन की बेटी ने जल्दबाजी में आत्मघाती फैसला ले लिया और खुद ही हमेशा के लिए उन से दूर चली गई.

रोहित का कुछ खास बिगड़ेगा, ऐसा नहीं लग रहा. क्योंकि उस ने अगर किरण से कुछ वादे किए भी होंगे तो उन के प्रमाण नहीं हैं और न ही किरण ने उसे सीधे तौर पर अपनी खुदकुशी का जिम्मेदार ठहराया है.

संभव है कि वह दोस्ती को प्यार समझते हुए मन ही मन रोहित को चाहने लगी हो और ठुकराए जाने पर व्यथित हो कर टूट गई हो. लेकिन वह हौसला और सब्र रख कर जिंदा रहती तो शायद बात बन जाती.

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