राजधानी दिल्ली के राजघाट पर अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्थान गांधी दर्शन में 8 मई, 2023 को उत्तरी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) सागर कलसी को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था. आयोजन उत्तरी दिल्ली पुलिस के लिए अहिंसक आचरण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का था.

इस कार्यक्रम में दिल्ली के उत्तरी जिले के करीब 120 पुलिसकर्मियों ने हिस्सा लिया था. इस मौके पर श्री कलसी ने पुलिस की कार्यक्षमता, कार्यशैली और समाज के प्रति उस की जिम्मेदारी पर चर्चा करते हुए महात्मा गांधी के आदर्श को अपनाने पर जोर दिया.

कलसी ने अपने संबोधन में महात्मा गांधी के सिद्धांतों और शिक्षा के अनुरूप सामाजिक परिवर्तन के शक्तिशाली उपकरण के रूप में अहिंसा और शांतिपूर्ण संवाद की वकालत की. कलसी ने यह भी कहा कि आज हमारे पास महात्मा गांधी से बड़ा कोई खजाना नहीं है और उन के सिद्धांत समाज में बदलाव लाने में कारगर हो सकते हैं.

इस मौके पर ही मनोहर कहानियां ने श्री कलसी से पुलिस की जिम्मेदारियों के साथसाथ चुनौतियों, प्रशासनिक समस्याओं, आपराधिक मामलों के निपटारे में उन की भूमिका, क्राइम की रोकथाम, आम नागरिकों की सुरक्षा आदि के संबंध में लंबी बातचीत की.

अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए श्री कलसी ने बताया कि वह पंजाब राज्य के कपूरथला जिले के नडाला गांव से आते हैं. पिता सुरेंद्र सिंह कलसी ट्रांसपोर्ट के कारोबार में थे, लेकिन उन्हें पुलिस की नौकरी पसंद थी. दादा भारतीय सेना में थे. मां श्रीमती इकबाल कौर पंजाब सरकार के नडाला स्कूल से रिटायर्ड लेक्चरर हैं. 2 बहनें अमेरिका में डाक्टर हैं और पत्नी भी एमबीबीएस हैं. पत्नी की नियुक्ति केंद्र सरकार में है.

वैसे तो उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई अपने गांव नडाला में की है, लेकिन जालंधर से हाईस्कूल की पढ़ाई कर वहीं एनआईटी से उन्होंने कैमिकल इंजीनियरिंग में ग्रैजुएशन किया. बाद में एमटेक आईआईटी, दिल्ली से किया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा को क्यों चुना? इस संबंध में उन्होंने बताया कि यूपीएससी की परीक्षा साल 2010 में पास की.

मातापिता का सपना एक अच्छी सरकारी नौकरी का था, वह तो मिल गई, लेकिन यूपीएससी परीक्षा में अच्छा रैंक आने के कारण आईपीएस में चयन हुआ. पहला एजीएमयूटी काडर के तहत जम्मू- कश्मीर, लद्ïदाख में नियुक्ति मिली. समाज सेवा का संकल्प लिए हुए पुलिस की नौकरी सहर्ष स्वीकार ली.

अपराध की वजह सैक्स भी

जब श्री कलसी से राजधानी में बढ़ते अपराध और उस पर अंकुश लगाने को ले कर सवाल पूछे गए, तब उन्होंने बताया कि समाज में जैसेजैसे विकास होता है, नई टैक्नोलौजी आती है. जैसेजैसे गांव से शहर की ओर पलायन होता है, वैसेवैसे अलगअलग चुनौतियां सामने आने लगती हैं. काम, क्रोध, अहंकार लोभ, मोह इंसान के नेचर में है. किसी में अधिक होता है और वह चाहता है कि साम, दाम, दंड, भेद से और अधिक मिल जाए.

लोग जल्दी अमीर होना चाहते हैं. तेजी से आगे बढऩा चाहते हैं. प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. बढ़ते अपराधों का यह भी कारण है.  वैसे अपराध अलगअलग श्रेणियों के हैं. एक्सीडेंट के केस होते हैं.गलती से भी अपराध हो जाते हैं. जैसे सिर फटना इत्यादि. कई योजनाबद्ध केस भी होते हैं. बढ़ती जनसंख्या भी इस का एक कारण है.

इस के लिए कलसी मीडिया व सोशल मीडिया को भी जिम्मेदार ठहराते हैं. उन्होंने दार्शनिक अंदाज में बताया जनसंख्या के कारण भीड़ एक वजह है. यूरोप के वैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड के मुताबिक, व्यवहार सैक्स एवं एग्रेसन से हावी होता है. असंतुलन भी कई बार महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ाता है. समाज में गरमाहट बढ़ गई है. भीड़ के कारण अपराध होता है.

जब सवाल बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाए जाने में देरी या कमी पर उठता है, तब पुलिस कठघरे में आ जाती है? इस पर कलसी ने सधे हुए अंदाज में कहा—

“मेरी राय में प्रिवेंशन और डिटेक्शन से बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है. प्रिवेंशन यानी रोकना है. इस के लिए जागरुकता की जरूरत है. उदाहरण के लिए मार्केट और रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के साथ मीटिंग कर इस में पहल की जा सकती है. सलाहमशविरा कर पुलिस का सहयोग लिया जा सकता है. सीसीटीवी कैमरे की टैक्नोलौजी का प्रयोग करते हुए लोगों में शांति और न्याय की भावना को बढ़ा कर अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है.

इसी तरह से डिटेक्शन यानी पता लगाने की प्रक्रिया है. खतरनाक से खतरनाक अपराधी को मानवीयता के साथ वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग कर सलाखों के पीछे भेजना या फिर कम्युनल किस्म के अपराधी को तुरंत पकड़ कर जेल में डालने की सक्रियता से अपराध रोकने में मदद मिल सकती है.”

जब पुलिस द्वारा दिखाई जाने वाली इस तत्परता के दरम्यान पुलिस पर डाले जाने वाले राजनीतिक दबाव के बारे में सवाल किया गया, तब उन्होंने संविधान की बात करते हुए अपने बारे में कहा कि उन्हें कभी कोई राजनीतिक दबाव नहीं मिला. उन्होंने मार्क वेबर का उदाहरण दिया, जिन्होंने ब्यूरोक्रेसी के संकल्प में नन कमिटेड एवं एनोनीमिटी की बात की है. उन का कहना था कि संविधान के प्रमुख सेवा भाव के साथ नौकरी की जा सकती है. हमारा धर्म, संविधान के प्रति सब से पहले है. हमें निडर हो कर काम करना चाहिए.

नए अपराधी बढ़ाते हैं दिक्कतें

श्री कलसी ने अपराधी और पुलिस के बीच खींचतान एवं नए अपराधी से निपटने को ले कर भी कई बातें बताईं. उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस में बीट सिस्टम है. बीट स्टाफ यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि लोग अपराध में शामिल न हों. यह एक प्राथमिकता के रूप में लिया जाता है कि इलाके के लोग अपराध की दुनिया से दूर रहें. इस के लिए लगातार चौकसी की जाती है.

दिल्ली पुलिस के पास आंख और कान योजना है. इलाके में अमन कमेटियां और रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के द्वारा अपराध को रोकने का प्रयास करती है. बीट द्वारा स्थापित गुंडों और उन के गुर्गों का डाटाबेस तैयार किया जाता है. उन पर दबिश दी जाती है.

समाज में पुलिस की छवि को ले कर भी उसे कठघरे में रखा जाता रहा है. उस के द्वारा गलत अपराधी को धर दबोचने से ले कर उस से जबरन बयान उगलवाने और फंसाने के लिए गलत धाराएं लगाने तक की शिकायतें आती रहती हैं. उस पर अंगुली उठती रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि समाज में अपनी छवि सुधारने के लिए पुलिस को क्या करना चाहिए?

इस के जवाब में श्री कलसी ने बताया कि आज धारणा प्रबंधन का दौर है. अच्छे हो, सही हो, काबिल हो, ईमानदार हो, बहुत जरूरी है. यह दिखना भी चाहिए. पुलिस दिनरात बहुत काम करती है. निस्संदेह मीडिया में, आम जनता में यह महसूस भी होता है कि होली, दिवाली व महत्त्वपूर्ण त्यौहार पुलिस की नौकरी में बीतते हैं, लेकिन कुछ गलत मामलों के कारण पुलिस अधिकारी का ही नहीं, बल्कि डिपार्टमेंट का भी नाम खराब हो जाता है.

किसी भी अच्छे काम का अनुमान या कहिए प्रोजेक्शन, अच्छी पब्लिक डीलिंग और कर्मचारी के अच्छे व्यवहार पर निर्भर करता है. इसे दर्शाते हुए नौकरी करनी चाहिए. सब से अच्छा ‘सर्विस डेलीवरी सिस्टम’ किसी भी डिपार्टमेंट की छवि सुधार सकती है. सही तरीका भी यही है. पुलिस में भी हमारा लक्ष्य यही रहता है कि जनता से जो मेल हो, उस में संवेदनशीलता हो, सरलता हो, सहजता हो… अनुकूल हो.

पुलिस का लोगों के प्रति व्यवहार कैसा होना चाहिए, इस बारे में श्री कलसी का कहना है इस में कोई संदेह नहीं है कि पुलिस डिपार्टमेंट गरीबों और वैसे बेसहारा लोगों का है, जिन का कोई नहीं है, उन के काम आता है. यह बात जरूर बताने वाली है.

याद कीजिए कोरोना काल को, उस दौरान पुलिस वालों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए शांति, कानून व्यवस्था एवं अमनचैन कायम रखने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी. अपनी कुरबानी दी. लोगों की मदद की. इस से जनता में पुलिस की छवि में सुधार हुआ.

डिजिटल क्रांति के बाद साइबर क्राइम में भी इजाफा हुआ है. यह एक बड़ी समस्या बन कर सामने आई है. इस पर अंकुश लगाने में पुलिस के हाथपांव फूल जाते हैं. इस के अपराधी पहुंच से काफी दूर होते हैं. पुलिस महकमे को इस से निपटने में किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? इस पर अंकुश कैसे लगे? लोगों को कैसे जागरूक किया जाए? पुलिस

तकनीकी जानकारियों से कितनी लैस है? इत्यादि कई सवालों का जवाब देते हुए श्री कलसी ने आधुनिक समाज में डिजिटल युग के प्रभाव का एक खाका ही खींच डाला. उन्होंने बताया कि आज का युग डिजिटल युग है. 30 साल पहले अमेरिका, कनाडा से एक चिट्ïठी आती थी और उस का जवाब महीनों बाद पहुंचता था. आज भारत के किसी भी कोने से दुनिया के किसी भी कोने में जन्मे पोतेपोती को परिवार वाले लाइव आशीर्वाद देते हैं.

गांव, शहर और देशविदेश का फासला डिजिटल क्रांति ने खत्म कर दिया है. जहां किसी चीज के फायदे होते हैं तो निस्संदेह कुछ नुकसान भी होते हैं. शरारती तत्त्व इस का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. वे दुनिया के किसी भी कोने से घर में बैठे आदमी से फोन पर बात कर, मैसेज भेज कर उन के संपर्क में आए बगैर उन के साथ ठगी कर लेते हैं.

इस पर अंकुश लगाने के लिए पहल करने और पुलिस द्वारा प्राथमिकता के साथ काम करने के संबंध में उन्होंने बताया कि स्कूलों में, कालेजों में, झुग्गीझोपड़ी बस्तियों में, टीवी, रिसाले (मैगजीन), अखबार के माध्यम से, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों आदि पर नुक्कड़ नाटक के द्वारा जागरुकता अभियान चलाया जाता है. लोगों को नएनए तरीकों के अपराध के बारे में अवगत करवाया जाता है, आगाह किया जाता है, होशियार किया जाता है.

लेटेस्ट टैक्नोलौजी का प्रयोग कर के अपराधियों को पकड़ा जा रहा है. बहुत अच्छी इनवैस्टीगेशन कर के अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है. इस में कोआर्डिनेशन यानी सामंजस्य बिठाने और सूचना के आदानप्रदान (इनर्फोमेशन शेयरिंग) का बहुत योगदान है.

दुनिया भर में पुलिस फोर्स आपस में मिलती रहती है. इस से अपराधियों के बारे में तथा नएनए अपराध की सूचना के बारे में सूचना का आदानप्रदान होता रहता है. कहते हैं न कि ‘इलाज से बेहतर रोकथाम है.’ इसी फारमूले का इस्तेमाल प्रिवेंटिव पोलिसिंग में होता है.

पुलिस बैंकों, मोबाइल कंपनियों, कंप्यूटिंग और आईटी फील्ड की सौफ्टवेयर कंपनियों से लगातार संपर्क में रहती है, ताकि इन के सिस्टम को और भी सुरक्षित बनाया जा सके. ओटीपी, डबल पासवर्ड, फेस रीकग्नीशन इस तरह के सिक्योरिटी फीचर्स आ रहे हैं, जिस से अपराधियों को चुनौती दी जाती है.

दिल्ली में यूथ नशा के जाल में जकड़ते जा रहे हैं, आए दिन ड्रग की बरामदगी होती है, लेकिन उस से जुड़े माफियाओं पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाता है. इस बारे में श्री कलसी से जब दिल्ली पुलिस की योजना के बारे में पूछा गया, तब उन्होंने इसे ले कर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि नशाखोरी चिंता का विषय है. डिमांड और सप्लाई, दोनों लेवल को चैक करना जरूरी है. इस का कानून बहुत सख्त है. जो ड्रग की तस्करी करते हैं, उन को पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजना जरूरी है.

इसे तैयार किए जाने और इस की खेती की जगह तक जाने की आवश्यकता है. आज की युवा पीढ़ी को काउंसलिंग के जरिए रीहेबिलिटेशन (पुनर्वास) के जरिए रोजगार मुहैया करवाना जरूरी है. ऐसे युवाओं को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करना, समाज कल्याण, देश निर्माण आदि के कार्यों में लगाना चाहिए. इस तरह से ड्रग्स की डिमांड चैक की जा सकती है. इस से काफी फर्क पड़ेगा.

श्री कलसी ने इस बारे में पुलिस द्वारा की जाने वाली पहल के बारे में भी बताया कि दिल्ली पुलिस एनजीओ के साथ मिल कर काम करती है और उस के द्वारा कई स्तर की योजनाएं चलती हैं. पुलिस द्वारा स्पैशल ड्राइव चलता रहता है. उन्होंने इस का एक उदाहरण मजनूं के टीले का दिया.

वहां के स्थानीय लोग, एनजीओ और पुलिस मिल कर खेलकूद के प्रोग्राम का आयोजन करते हैं. काउंसलिंग करने के साथसाथ सामाजिक जागरुकता के प्रोग्राम चलाए जाते हैं. इस से नशा कम होने और अपराध में कमी आने का असर दिखता है.

नशे के साथसाथ युवाओं का गैंगस्टर्स के रुतबे से प्रभावित होना भी बड़ी समस्या है. युवा इसे अपना आदर्श तक मान कर अपराध के क्षेत्र में आ रहे हैं. उन्हें कैसे रोका जाए? वे किस तरह से गैंगस्टर के जाल में फंस जाते हैं और फिर चाह कर भी नहीं निकल पाते हैं. इन से जुड़ी कई समस्याएं हैं, जो परिवार और समाज को बुरी तरह से प्रभावित करती है. इस बारे में भी श्री कलसी से पूछा गया और उन से जानकारी ली गई कि पुलिस क्या कर रही है? एक जिम्मेदार पद पर रहते हुए वह इस बारे में क्या नजरिया रखते हैं? इसे उन्होंने मनोवैज्ञानिक स्तर पर समझाया.

उन्होंने कहा कि वैसे युवाओं को समझने और उन्हें परखने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीका आजमाया जाना चाहिए. किशोरावस्था में 12-13 साल से 18 साल की उम्र में बच्चे अपना रोल माडल या कहिए एक प्रेरणास्रोत ढूंढने की रुचि रखते हैं. इसे देखते हुए उन्हें अगर अच्छी प्रेरणा, अच्छा गुरु, अच्छे संस्कार मिलें तो इंसान ऊंचाइयां छू सकता है.

डर में जीते हैं अपराधी

इस के विपरीत मोहल्ले में जो नया रंगरूट बाइक पर बैठा कुछ साल बड़ा हुल्लड़बाजी करता है. मुस्टंडा बना सिगरेट के छल्ले हवा में उड़ाता है, बाइक पर बैठ कर किसी को गाली दे कर एक नकली रुतबा दिखाता है, वह अगर रोल माडल बन जाए तो बच्चा बिगड़ जाता है.

ऐसे किशोर उम्र के बच्चे ही अकसर निजी चेले, गुर्गे, पट्ठे, चमचे बनना पसंद करते हैं और मांबाप, शिक्षक, पुलिस व बड़ों का उन पर ध्यान नहीं होने पर वे नकली हवाबाजी और बनावटी शोहरत के चक्कर में पड़ कर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं. युवाओं को यह बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि अपराधियों की लाइफ एक बुलबुले की तरह होती है.

हाल ही में युवाओं का इंस्टाग्राम, फेसबुक वगैरह पर गैंग जैसे ग्रुप बना कर, असली, नकली पिस्तौल, बाइक फ्लैश करने का कल्चर शुरू हो गया है. जिसे कच्ची उम्र के युवक कौपी करने की कोशिश करते हैं और पढ़ाईलिखाई, खेलकूद से दूर हो कर गलत संगत में पड़ जाते हैं. इस के साथ जल्दी अमीर बनने, जिंदगी में लुत्फ लेने का लालच दे कर युवाओं को गैंगस्टर्स अपनी तरफ खींचने की कोशिश करते हैं. इस में उन्हें बहुत हद तक सफलता मिल जाती है.

इस में मांबाप, बड़ेबुजुर्ग, सम्मानित व्यक्तियों, पुलिस, शिक्षक इन सब का यह पहला दायित्व/कत्र्तव्य है कि वैसे युवाओं को गलत हीरोगिरी करने से रोकें. हालांकि ओछी और घिनौनी हरकत करने वालों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस काम करती रहती है. इस के साथ ही फिल्म के जरिए भी समाज में अच्छे जीवन के प्रदर्शन और बुरे व्यक्ति का बुरा होना की फिल्म बनानी चाहिए.

पुलिस के लिए वैसे लोग भी कई बार समस्या पैदा कर देते हैं, जो समाज की धारा से भटके होते हैं. उन के प्रति पुलिस कितनी जिम्मेदार है और वह किस तरह से अपने दायित्व का निर्वाह करती है? इस सवाल ने श्री कलसी को कुछ सेकेंड को सोचने पर मजबूर कर दिया था. थोड़ा ठहरते हुए उन्होंने बताया कि समाज में शांति, कानूनव्यवस्था को कायम रखने में पुलिस का अहम रोल है.

जबकि समाज को मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए दूसरे विभागों की भी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण के लिए सुधार, सिविक विभाग, कारपोरेशन आदि भी अहम रोल निभा सकते हैं. ताकि समाज में लोगों को अच्छी सडक़ें मिलें, साफसफाई, परिवहन व्यवस्था और नागरिक सुविधाएं मिलें जिस से लोग खुश रहें, न कि असामाजिक बनें. जिस हद तक पुलिस कर सकती है, करती ही है.

मसलन, कोई परीक्षा में फेल हो कर भटक गया, प्यार में असफल होने पर क्राइम कर लिया, कारोबार में दिवालिया होने पर आवारा हो गया, वगैरहवगैरह… उन का सही मार्गदर्शन, सही दिशानिर्देश आदि का काम पुलिस करती है.

इस बारे में श्री कलसी ने जेल में कैदियों के लिए समाज सुधार कार्यक्रम के बारे में बताया. उन्हें योगा करने एवं खाना पकाने, रोजगार से संबंधित कार्य, कपड़े सिलना, साबुन, मोमबत्ती बनाना, खादी उद्योग का कारोबार आदि सिखाया जाता है. ताकि वे जेल से छूटने के बाद समाज में इज्जत से आत्मनिर्भर हो कर रह सकें. पुलिस और लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने के क्रम में श्री कलसी ने कुछ अपने अनुभव भी बताए. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें 25 साल पहले हुए एक मर्डर के केस को सुलझाने में सफलता मिली.

इसी के साथ उन्होंने अपनी कई पोस्टिंग के बारे में भी बताया, जिन में एसीपी कोतवाली, चांदनी चौक से ले कर एडीशनल डीसीपी सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट, वेस्ट डिस्ट्रिक्ट, एसपी ईटानगर और एसपी तवांग व कश्मीर में भी पोस्टिंग के दरम्यान अपनी पहचान छोड़ी. इस दौरान कुछ केस जो यादगार कहे जा सकते हैं, उन में अपहरण के साथ फिरौती के मामले में कई रातों की छापेमारी थी. जिस में उन्हें बड़ी मुश्किल से बच्चे को बचाने में सफलता मिली थी.

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