दिलीप को पता था कि उस के गुरू पं. भगवती प्रसाद चौबे सवेरेसवेरे मोहल्ले के नाई से मालिश करवाते थे. उस वक्त वह फुरसत में होते थे, इसलिए उन से बातचीत की जा सकती थी. वह चोटी के वकील थे. उन की बैठक में पहुंच कर दिलीप ने नमस्ते किया तो वह मुसकुराए. उन्होंने दिलीप को देखते ही पूछा, “आओ दिलीप बेटा, सुबहसुबह कैसे?”

“बाबूजी, मैं ने वकालत तो शुरू कर दी है, पर मेरी मां कहती हैं कि इस पेशे में झूठ बहुत बोलना पड़ता है, जिस से चरित्रहीनता आ जाती है.”

“बेटे, हर झूठ, झूठ नहीं होता. हमें देखना होता है कि क्या, किस से, कहां और क्यों बोला जा रहा है और कितना बोला जा रहा है.”

“यानी झूठ कई तरह के होते हैं?”

“यही तो समझने की बात है. मिसाल के तौर पर एक फौजदारी अदालत में पुलिस ने एक नाजायज तमंचा रखने पर अभियुक्त को न्यायालय में पेश कर दिया. पुलिस ने 4 चश्मदीद गवाह पेश किए, जिन्होंने अभियुक्त के पास से पिस्तौल की बरामदगी की पक्की गवाही दी. जबकि अभियुक्त ने अपने वकील को बताया है कि रंजिश की वजह से उस पर झूठा मुकदमा बनाया गया है और गवाह पुलिस के दबाव से झूठी गवाही दे रहे है. वकील साहब जिरह करते करते थक गए, पर कोई गवाह सच नहीं बोला.”

“इस का मतलब बेगुनाह गया जेल.” दिलीप ने कहा.

“अब या तो वकील यह नाइंसाफी देखता रहे या फिर इस की कुछ काट कर के अभियुक्त को बचा ले.”

“बाबूजी, ऐसी स्थिति में भला क्या हो सकता है?”

“हो क्यों नहीं सकता.” भगवतीप्रसाद चौबे बोले, “वकील को जैसे का तैसा जवाब देना चाहिए, मतलब उसे भी 4 झूठे गवाह पेश करने चाहिए. यह झूठ चूंकि सच उगलवाने के लिए बोला जाएगा, इसलिए झूठ नहीं कहलाएगा. क्योंकि इस से किसी निर्दोष की जान बचेगी.”

“ऐसा भी होता है क्या?” दिलीप ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.

“ज्यादातर मामलों में ऐसा ही करना पड़ता है, वरना हमारी तो वकालत ही बंद हो जाएगी.”

चौबे साहब से बात कर के दिलीप जब वापस अपने औफिस पहुंचा तो वहां करीब 60 साल की उम्र वाला एक व्यक्ति बैठा था. अभिवादन करने के बाद उस ने कहा, “वकील साहब, मेरा एक औरत भगाने का मुकदमा है. आप उस की पैरवी कर दीजिए. फीस जो आप कहेंगे, मिल जाएगी.”

“यह तो बहुत गंभीर केस है, इस के लिए किसी सीनियर वकील की सेवाएं लो. मैं तो अभी बहुत जूनियर हूं.”

“उन लोगों के पास हो कर यहां आया हूं. सब ने इनकार कर दिया है. मेरा यह केस अब आप को ही लडऩा होगा. वकील साहब मैं आप को दोगुनी फीस दूंगा.”

दिलीप ने उस के कागजात, गवाहों के बयान, एफआईआर तथा डाक्टरी रिपोर्ट देख कर उस के बारे में पूरी जानकारी ली. उस व्यक्ति ने इस मुकदमे के बारे जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

रायबरेली जिले में एक कस्बा है बछरावां. वहां से 4 किलोमीटर दूर ठाकुरों का एक गांव था, जिस के प्रधान थे रंजीत सिंह. उन का एक बेटा था बिच्छू सिंह, जो 22 साल का दबंग व रंगीला नौजवान था. वह खूब शराब पीता था और अपने साथियों के साथ जुआ खेलने के अलावा मेलेठेले में अपनी पसंद का शिकार करता था.

इसी गांव का एक पुरवा था राधेग्राम, जहां गरीब खेतिहर मजदूर रहते थे. इसी पुरवा में आसरे नाम का एक 20 साल का लडक़ा रहता था. इस के पास थोड़ी खेती की जमीन थी, बाकी वह मेहनतमजदूरी कर के अपना काम चला लेता था. राधा से उस की नईनई शादी हुई थी. राधा एक सुंदर सुशील लडक़ी थी. उसने एक गाय पाला रखी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ आमदनी हो जाती थी.

बिच्छू सिंह के गुर्गों ने जब उसे राधा की सुंदरता के बारे में बताया तो बिच्छू सिंह उसे पाने के लिए अपने अवारा साथियों से सलाह करने लगा. उस ने आसरे को अपने खेतों पर डबल मजदूरी पर काम दे दिया और उस के साथ देसी शराब के ठेके पर भी जाने लगा. वहां वह एक बोतल शराब और एक प्लेट मछली ले कर उस के साथ खातापीता.

कुछ दिनों बाद बिच्छू सिंह ने आसरे से कहा, “का रे आसरे, ताश खेलना जानता है? हमारे सब साथी तो रात में ताश खेलते है.”

“छोटे ठाकुर, हम तो ताश कभी देखे भी नहीं, भला खेलेंगे क्या?”

“लो कर लो बात, इतना बड़ा हो गया और ताश खेलना भी नहीं जानता. चल मैं तुझे सिखाता हूं. पहले तू ताश के पत्ते पहचान ले, बाकी खेल देख कर खुद ही सीख जाएगा.”

इस तरह छोटे ठाकुर ने आसरे को न केवल शराब का आदी बना दिया, बल्कि जुआ खेलना भी सिखा दिया. वह आसरे के साथ ऐसी तिकड़म से जुआ खेलता कि आसरे हर बार 100-200 रुपए जीत कर नशे की हालत में घर जाता और पत्नी से छोटे ठाकुर की बहुत तारीफ करता.

एक दिन राधा ने उसे समझाया, “देखो जी, शराब व जुआ बहुत बुरी चीज है. इस से घर बरबाद हो जाते हैं. महाभारत का युद्ध इसी जुए के कारण हुआ था.”

“मैं क्या तुम्हें बेवकूफ लगता हूं? मुझे जिस काम में फायदा नजर आएगा, वही करूंगा न, तुझे तो पूरा पैसा देता हूं.” आसरे ने गुस्से में जवाब दिया.

“मुझे हराम का पैसा नहीं चाहिए. बरकत ईमानदारी के पैसे से होती है. वैसे भी शराब से तुम्हारा शरीर खराब हो रहा है.”

“तू बड़े आदमियों को नहीं जानती. वे मुझे अपना दोस्त कहते हैं. चल खाना दे, बड़े जोर की भूख लगी है.”

एक दिन छोटे ठाकुर ने आसरे से कहा, “आज हम तुम्हारे घर ताश खेलने चलेंगे. वहीं शराब भी चलेगी.”

आसरे तैयार हो गया और सब को साथ ले कर अपने घर आ गया. सब ने बाहरी कोठरी में अड्डा जमाया. छोटे ठाकुर ने बोतल खोली और आसरे की पत्नी से कुछ नमकीन मांगी. जब वह चना ले कर आई तो बिच्छू सिंह ने कहा, “तेरी पत्नी तो हीरोइन है आसरे. बहुत किस्मत वाला है. बोल मेरी पत्नी से बदलेगा.”

इस फूहड़ मजाक पर सब जोरजोर से हंसने लगे. राधा जल्दी से अंदर चली गई. जुआ शुरू हुआ. उस दिन आसरे हारने लगा. जब उस के सारे पैसे खत्म हो गए तो छोटे ठाकुर ने खेलने के लिए उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. जब आसरे उन्हें भी हार गया तो उस ने कहा,”छोटे ठाकुर, अब हमारे पल्ले कुछ नहीं बचा. खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.”

“तू घबरा मत, मैं हूं ना. अभी भी तू हारी हुई अपनी सारी रकम जीत सकता है.”

“वह कैसे?”

“एक तगड़ा दाव खेल जा, सब कुछ तेरा.”

“कैसे खेलूं ठाकुर, मेरे पल्ले तो अब कुछ है नहीं.”

“जैसे महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया था, उसी तरह तू भी लगा दे पत्नी को दांव पर, पत्नी का तो कुछ नहीं होगा. ढेर सारा पैसा जरूर आ जाएगा.”

एक तो आसरे पहले ही नशे में था, ऊपर से ठाकुर ने उसे चढ़ा दिया. कुछ सोचने के बाद वह उस दांव को खेलने के लिए राजी हो गया. इस बार खेल बड़ा था. वही हुआ, जो ठाकुर चाहता था. आसरे अपनी पत्नी हार गया.

उस के हारते ही ठाकुर के तेवर बदल गए. उस ने गुर्रा कर कहा, “अब राधा मेरी हो गई. तेरा उस पर कोई अधिकार नहीं रहा. रात को इसे खेतों वाले मकान पर पहुंचा देना, नहीं तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.”

इस के बाद वे भी चले गए, आसरे मुंह लटकाए बाहर बैठा सोचता रहा कि पत्नी को कैसे बचाए. काफी देर बाद जब वह घर के अंदर आया तो राधा गायब थी. उस ने चारों ओर ढूंढा, ठाकुर से पूछा, पर राधा का कुछ पता नहीं चला.

राधा के बारे में जैसे ही ठाकुर को पता चला, उस ने साइकिलों से अपने आदमी थाने चौकी व रेलवे स्टेशन की ओर दौड़ाए और खुद बसअड्डे जा पहुंचा. वहीं उस ने राधा को एक तैयार बस में बैठे देख लिया.

वह भी उस बस में चढ़ गया और राधा से बहुत प्यार एवं इज्जत से बोला, “राधा, तुम ख्वाहमख्वाह नाराज हो कर चली आईं. अरे हम तो रामलीला की तरह महाभारत लीला खेल रहे थे. भला आजकल के जमाने में कोई पत्नी को संपत्ति समझ कर जुआ खेल सकता है? पुलिस हमारी हड्डी पसली तोड़ देगी. चलो घर चलो, मजाक को मजाक ही समझा करो.”

लेकिन राधा इन चिकनीचुपड़ी बातों में नहीं आई. उस ने साफसाफ कहा, “ठाकुर, तुम नीचे उतरो, वरना हम शोर मचा कर सामने खड़ी पुलिस को बुला लेंगे.”

ठाकुर बाजी हार कर बस से नीचे उतर आया, बस चली गई. रास्ते में एक शरीफ आदमी मिला तो उस ने राधा के सिर पर हाथ रख कर उस की मदद की जिम्मेदारी ली. राधा के पिता के उम्र का वह आदमी अगले स्टाप पर उसे फुसला कर अपने घर ले गया.

“बेटी, तुम आराम करो. खानापानी कर लो. अभी रात हो गई. सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा. और हां, दरवाजा अंदर से बंद कर लेना.”

राधा ने ऐसा ही किया. परंतु राधा के कान तब खड़े हुए, जब वह व्यक्ति अपनी पत्नी से कहने लगा, “तुम्हारे भाई की शादी कहीं नहीं हो रही है. उस के लिए एक दुलहन ले कर आया हूं. सुबह को इसे तेरे गांव ले जा कर साले से इस की शादी करा दूंगा. लडक़ी अच्छी है, लगता है घर से भागी है.”

सुन कर राधा सन्न रह गई. जिस पर विश्वास किया, वही दामन चाक करने को तैयार था. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी, उस में सलाखें भी नहीं लगी थीं. राधा धीरे से उस खिडक़ी से बाहर आई और रात भर सडक़ पकड़ कर चलती रही. उसे कुछ पता नहीं था कि वह कहां है और किधर जा रही है.

भोर होतेहोते वह एक गांव में पहुंची, जहां लोगों ने उस अजनबी महिला को देख कर चोर समझ लिया, वे उसे ले कर प्रधान के पास पहुंचे, “वीरजी, यह महिला गांव की नहीं है. चुपकेचुपके गांव में घुस रही थी. हम इसे पकड़ लाए. कोई चोर लगती है. घरों का भेद जान कर यह अपने साथियों को इशारे से बुला लेगी.”

वीरजी को लडक़ी परेशान व थकी हुई लगी. उस ने पूछा “भूखी हो?”

“हां, लेकिन मैं चोर नहीं, बल्कि एक दुखयारी औरत हूं. मेरे पीछे बदमाश पड़े हैं और मेरी इज्जत खतरे में है. आप मेरी मदद कर के मुझे मेरे पिता के घर पहुंचा दीजिए.”

वीरजी ने उस से उस के पिता का पता पूछा. फिर कहा कि वह थोड़ा आराम कर ले, कुछ खापी ले. उसे उस के घर पहुंचा दिया जाएगा. अब उसे डरने की जरूरत नहीं है. वीरजी ने राधा की कदकाठी और उम्र देखी तो उस के मुंह में पानी आ गया. उस ने सोचा कि क्यों न इसे पुत्तनबाई के हाथ बेच दिया जाए. वहां से अच्छे पैसे मिल जाएंगे, साथ ही वहां उस का आनाजाना भी होता रहेगा.

राधा थकी थी. नाश्ता कर के लेटी तो उसे नींद आ गई. उस की आंख खुली तो देखा वीरजी पास खड़ा उसे ललचाई नजरों से देख रहा है. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी तो वीरजी बोले, “बेटी, बस का समय हो गया है. मैं तुम्हें जगाने आया था. चलो, पास ही बस स्टाप है, वहीं से बस पकड़ लेंगे.”

राधा अपनी साड़ी ठीक कर के तैयार हो गई. दोनों बसस्टाप पर आ गए. बस आई तो वह वीरजी के साथ बस में बैठ गई. अब वह बहुत चौकन्नी थी. उसे वीरजी अच्छा आदमी नहीं लग रहा था. बस जब फर्रुखाबाद बस अड्डे पर पहुंची तो वीरजी ने राधा को बस से उतारा और बाहर की ओर ले कर चल दिया. वहीं फाटक पर एक सिपाही ड्यूटी पर था.

राधा जोर से चिल्लाई तो सिपाही ने पास आ कर पूछा, “क्या बात है, क्यों शोर मचा रही है?”

“यह आदमी मुझे घर से भगा कर कहीं खतरे की जगह ले जा रहा है. आप मेरी मदद कीजिए.”

वीरजी ने पासा पलटते देखा तो धीरे से वहां से खिसक गया. राधा के इशारे पर सिपाही ने उसे रोक लिया और दोनों को सीधे पुलिस थाने ले गया. राधा ने वहां अपना पूरा हाल बताया तो थानेदार ने रिपोर्ट लिख कर वीरजी को लौकअप में डाल दिया और राधा को डाक्टरी मुआएने के लिए भेज दिया.

बाद में राधा तो अपने पिता के घर पहुंच गई, परंतु वीरजी को मजिस्ट्रेट ने जेल भेज दिया. वीरजी ने अपने घर वालों को बुला कर जमानत कराई और सीधे रायबरेली पहुंच कर दिलीप के पास पहुंचा. चूंकि मुकदमा इसी जिले का था, इसलिए फर्रुखाबाद थाने ने बछरावां थाने को तफतीश के लिए कागजात भेज दिए. मुकदमा यहीं चलना था.

बछरावां के थानेदार ने बिच्छू सिंह से ले कर वीरजी तक सभी को इस मुकदमे में मुलजिम बनाया और न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दी. चूंकि मुकदमा भादंवि की धारा 365, 366 के अंतर्गत था, इसलिए निचली अदालत ने इसे सेशन कोर्ट के सुपुर्द कर दिया. जब इस न्यायालय में काररवाई शुरु हुई तो सब से पहले सरकारी वकील ने अभियुक्तों को न्यायालय में हाजिर किया.

उस के बाद अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोग पढ़ा और बताया कि इसे सिद्ध करने के लिए वकील साहब क्या साक्ष्य पेश करेंगे. न्यायालय ने कागजात और अभियोग को देखते हुए दिलीप से इस पर बहस करने को कहा, पर दिलीप ने इनकार कर दिया.

इस के बाद जज ने अभियुक्तों पर धारा 365, 366, 368 का अभियोग लगाया तो अभियुक्तों ने यह आरोप मानने से इनकार करते हुए मुकदमा लडऩे की प्रार्थना की. इस पर जज साहब ने अगली तारीख पर अभियोजन पक्ष को साक्ष्य पेश करने को कहा. साथ ही उन के गवाहों को सम्मान जारी कर के बुलाया गया.

अगली तारीख पर सरकारी वकील ने 3 गवाह व अन्य सबूत न्यायालय में पेश किए, जिन से दिलीप ने एक ही प्रश्न पूछा, “क्या आप ने देखा था कि राधा अपने घर से बिच्छू सिंह के साथ जबरदस्ती ले जाई जा रही थी?”

“जी नहीं, मुझे गांव में पता चला था.” गवाह ने जवाब दिया.

“आप राधा को पहचानते हैं?” दिलीप का अगला सवाल था.

“जी हां, उसे गांव में देखा था.”

“बताइए, न्यायालय में हाजिर 4 महिलाओं में राधा कौन है?” दिलीप ने पूछा.

गवाहों ने राधा को नहीं पहचाना.

“आप बिच्छू सिंह और वीरजी को इस अदालत में 10 आदमियों के बीच में पहचान सकते हैं?”

“जी हां.”

लेकिन उन्होंने 3 गलतियां करने के बाद भी उन्हें नहीं पहचाना.

सरकारी गवाह जब पूरे उतर गए तो दिलीप ने बचाव में कोई गवाह पेश नहीं किया. इस के बाद मुकदमा बहस में पहुंच गया. बहस में सरकारी वकील ने कहा, “सर, औरत चूंकि 18 साल से अधिक उम्र की है, इसलिए यह अपहरण का मुकदमा बनता है.”

वकील एक पल रुक कर बोला, “पहली बात तो यह कि बिच्छू सिंह ने बुरी नीयत से आसरे से राधा को जुए के दांव पर लगवाया और उसे चालाकी से जीत कर अपने खेतों वाले घर पर जबरन बुलाया. यह बात गवाही से साबित हो चुकी है.

दूसरे शेष 2 अभियुक्तों, जिन में वीरजी भी शामिल हैं, ने राधा को बुरी नीयत से अपनेअपने घरों में बंद कर के रखा, जो कानूनन उतना ही बड़ा जुर्म है, जितना अपहरण. इतना ही नहीं, राधा को शादी के लिए मजबूर करना भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है.”

सरकारी वकील ने आखिर में कहा कि गवाहों और राधा द्वारा यह आरोप पूरी तरह सिद्ध कर दिए गए हैं कि इन लोगों ने कानूनी अपराध तो किया ही है, एक महिला के साथ दुर्व्यवहार भी किया है, जो एक सामाजिक अपराध है. इसलिए इन्हें सख्त सजा दी जाए.”

इस के बाद दिलीप ने अपना बचाव पक्ष रखा, “सर, मैं सच्चाई से पूरा खुलासा करना चाहता हूं ताकि न्यायालय को न्याय करने में आसानी रहे.”

आरोपियों की ओर देख कर दिलीप ने कहना शुरू किया, “पहली बात तो यह कि अपहरण का आरोप साबित नहीं हो सका कि बिच्छू सिंह ने राधा को उस के घर से भगाया था. वह उसे बसअड्डे पर मिली थी, वहां भी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई. वीरजी राधा को उस के पिता के घर ले जा रहा था. वह पुलिस को देख कर डर कर भागा, जो अपराध नहीं है.

“वीरजी के मन की बात सरकारी वकील नहीं साबित कर सके. लिहाजा वही माना जाए, जो उस ने राधा से चलते समय कहा. दूसरे न तो गवाहों ने यह नहीं कहा और न ही राधा ने दुर्व्यवहार की शिकायत की. यह सरकारी वकील का अनुमान ही हो सकता है. तीसरे आसरे को धोखा दे कर जुआ खिलाया गया और शराब पिला कर राधा को दांव पर लगवाया गया. अत: उस की भी गलती सिद्ध नहीं हुई.”

अंत में दिलीप ने कहा, “सर, निवेदन है कि अभियुक्तों को बेगुनाह मानते हुए इज्जत के साथ दोषमुक्त कर दिया जाए.”

अगली तारीख पर जज साहब ने सभी अभियुक्तों को मुक्त कर दिया, पर बिच्छू सिंह को धोखाधड़ी के इलजाम में 6 महीने की सजा बामशक्कत सुनाई गई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...