अच्छाई की हमेशा जीत होती है, नूर इस की जीतीजागती मिसाल थी. लेकिन उस का मानना था कि गुनहगार चाहे जो भी, जैसा भी हो, उसे सुधरने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए. इसलिए उस ने राहिल को कुछ नहीं कहा.  

माल खान के पिता स्क्रैप कारोबारी थे. कमाल अपने मांबाप की एकलौती संतान था इसलिए लाड़प्यार में वह पढ़ नहीं सका तो पिता ने उसे अपने धंधे में ही लगा लिया. कमाल ने जल्द ही अपने पिता के धंधे को संभाल लिया. अपनी मेहनत और होशियारी से उस ने अपने पिता से ज्यादा तरक्की की. जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. उस ने अपनी काफी बड़ी फैक्ट्री भी खड़ी कर ली. यह देख पिता ने उस की जल्द ही शादी भी कर दी. कमाल जिस तरह पैसा कमाता था, उसी तरह अय्याशी और अपने दूसरे शौकों पर लुटाता भी था. पिता ने उसे बहुत समझाया पर उस ने उन की बातों पर ध्यान नहीं दिया. इसी वजह से पत्नी से भी उस की नहीं बनती थी, जिस से वह बहुत तनाव में रहने लगी थी

इस का नतीजा यह हुआ कि 10-12 साल बाद ही बीवी दुनिया ही छोड़ गई. कमाल के पिता दिल के मरीज थे, पर उस ने साधनसंपन्न होने के बावजूद तो उन का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराया और ही उन की देखभाल की, जिस से उन की भी मौत हो गई. पिता के मर जाने के बाद कमाल पूरी तरह से आजाद हो गया था. अब वह अपनी जिंदगी मनमाने तरीके से गुजारने लगा. एक बार कमाल खान को ईमान ट्रस्ट के स्कूल में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था. वहां उस की नजर नूर पर पड़ी जो सिर्फ 15 साल की थी और वहां 11वीं कक्षा में पढ़ती थी.

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