Hindi Stories : करीब 100 साल पहले सनकी नवाब महताब खान ने अपनी शाही कुतिया रोशनआरा की विदेशी नस्ल के कुत्ते से शादी की थी, जिस में उस वक्त खरचा आया था 20 लाख रुपए. गुजरात का जूनागढ़ जंगल के राजा सिंह के लिए प्रसिद्ध है. अगर यहां के राजा या नवाब को सिंह पालने का शौक होता तो यह बात समझ में आती भी, लेकिन करीब लगभग 100 साल पहले 31 मार्च, 1920 को यहां की सत्ता पर काबिज होने वाले नवाब महताब खान को सिंहों की अपेक्षा कुत्तों से अधिक प्रेम था. उन्होंने एकदो नहीं, पूरे 800 कुत्तेकुतिया पाल रखी थीं.

कभी अगर वह मौज में आ जाते, तो कुत्ते और कुतिया की शादी भी कराते. मेंढकमेंढकी की शादी के बारे में तो सुना गया है. दक्षिण गुजरात में अगर बरसात नहीं होती तो वहां के आदिवासी मेढक और मेढकी की शादी कराते हैं. यह एक परंपरा है, एक रिवाज है. पर जूनागढ़ के नवाब ने एक कुतिया की शादी इस तरह जोश में कराई थी जैसे बेटी की शादी हो. नवाब महताब खान को अपने 800 कुत्तों में एक कुतिया बहुत प्यारी थी. उस का नाम भी उन्होंने प्यार से रोशनआरा रखा था. वह उन की खास प्रिय यानी कि उसे वह बेटी की तरह प्रेम करते थे. इसलिए उन्होंने उसे प्रिंसेस का दरजा दे रखा था.

प्रिंसेस रोशनआरा का रौब कैसा था, इस की हम आप कल्पना भी नहीं कर सकते. वह नवाब की इतनी प्रिय थी कि अगर कोई नौकर उस कुतिया यानी प्रिंसेस रोशनआरा को अंगुली भी दिखा देता तो उस की अंगुली काट दी जाती थी. प्रिंसेस रोशनआरा को भले ही अपने दरजे का ख्याल न रहा हो, पर नवाब के नौकरों को जरूर उस के दरजे का ख्याल था. इसलिए सारे नौकर रोशनआरा की तमाम सुविधाओं का पूरा ख्याल रखते थे. रोशनआरा बड़ी हुई तो स्वाभाविक है उस की शादी के बारे में सोचना जरूरी था. महताब खान को उस की शादी की चिंता होने लगी. बस, जगहजगह वर की तलाश शुरू हो गई. आखिर रोशनआरा की शादी मांगरोण के शेख के गोल्डन रिट्रीवर नस्ल के बौबी नाम के कुत्ते के साथ तय हो गई. शादी तय होते ही शाही शादी की तैयारियां शुरू हो गईं.

नवाब की प्यारी प्रिंसेस की शादी में कोई कसर थोड़े ही रखी जा सकती थी. नवाब के शाही खानदान की शानोशौकत झलकनी जरूरी थी, ठाठबाट से शादी होनी जरूरी थी. इस में नवाब को खुश करने का मौका भला कौन गंवाता? नवाब की जीहुजूरी करने वालों की चांदी हो गई. शाही ठाठ से शादी की तैयारियां चलने लगीं. महताब खान ने इस के लिए निमंत्रण कार्ड भी छपवाए. राजघराने में शादी हो तो निमंत्रण कार्ड भी वैसा ही होना चाहिए था. राजमुद्रा की मुहर के साथ निमंत्रण कार्ड राजामहाराजा तो ठीक, उस समय के वायसराय लौर्ड इरविन तथा लेडी इरविन को भेजा गया था.

वायसराय तो शादी में नहीं पहुंचे, पर अनेक राजामहाराजा जरूर इस शादी में आए थे. अपने समाज के रीतिरिवाज के अनुसार शादी से पहले हल्दी लगाने की रस्म होती है. महताब खान की सेविकाओं ने शादी के दिन सुबह रोशनआरा को पहले इत्र मिले पानी से नहलाया. दुलहन को हल्दी लगाने के बाद भाभी या मामी स्नान करा कर तैयार करती हैं. उस दिन वह सुंदर लगे इस के लिए आज की भाषा में कहें तो मेकअप कर के सजाया जाता है. गहने भी पहनाए जाते हैं. रोशनआरा को भी सजाया गया. शाही खानदान की होने की वजह से असली मोतियों का हार रोशनआरा के गले की शोभा बढ़ा रहा था. चारों पैरों में हीरे के ब्रेसलेट पहनाए गए थे. दुलहन तैयार हो गई तो दूसरी ओर बारात भी आ गई थी.

बेटी का बाप बारात का स्वागत करने के लिए जाता है. महताब खान भी सुंदर वस्त्रों में सज हाथी पर सवार हो कर दूल्हा बौबी और बारातियों का स्वागत करने पहुंचे. उस समय वह अकेले नहीं थे, उन के साथ उन के परिजन तो थे ही, साथ में रोशनआरा के संबंधी भी थे. उन के यहां पल रहे 800 कुत्तों में से 200 कुत्ते सुंदर कपड़ों और आभूषणों में सज कर बारात के स्वागत में जूनागढ़ के रेलवे स्टेशन पर पहुंचे. दूल्हे के स्वागत के लिए वहीं लाल जाजम बिछाई गई थी. गोल्डन रिट्रीवर नस्ल का कुत्ता बौबी भी कोई सामान्य कुत्ता नहीं था. वह नवाब महताब खान का जमाई था. किसी दूसरे गांव का कुत्ता होता तो दरबान मार कर भगा देते, पर यहां तो दूसरे गांव का कुत्ता दूल्हा बन कर आया था, इसलिए उस का स्वागत करना था.

सिपाहियों की टुकड़ी ने दूल्हे कुत्ते को सलामी दी. उस के बाद सोने से मढ़ी पालकी मे बैठा कर उसे विवाहस्थल यानी दरबार हाल में लाया गया. उस समय बारातें बैलगाडि़यों से जाती थीं, जिस से बारात 2-3 दिन रुकती थी. रोशनआरा की शादी में भी बाराती 3 दिन तक रुक कर मालपुआ काटते रहे. राजघराने में शादी हो और संगीत नृत्य न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था, साथ ही शाही भोजन भी. राजामहाराजा और अंग्रेज हाकिम 3 दिनों तक इस शादी में मेहमान बने रहे. शादी में 700 मेहमान आए थे. राज्य में इस शादी के लिए 3 दिन की छुट्टी रखी गई थी. पूरे रजवाड़े के लोगों को 3 दिनों तक नवाब की ओर से भोजन कराया गया.

इस शाही शादी का 3 दिन का समारोह खत्म हुआ और आखिर में जो बिल आया वह 1-2 नहीं, पूरे 20 लाख का था. यह वही महताब खान हैं, जो आजादी के बाद रजवाड़े की तमाम संपत्ति ले कर पाकिस्तान भाग गया था. अपने इस काम के लिए वह जीवन भर पछताता रहा, क्योंकि पाकिस्तान में उसे जरा भी सम्मान नहीं मिला था.

 

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