आम आदमी और पुलिस में एक फर्क यह है कि किसी पर गोली चलाने के लिए एक की मजबूरी होती है, दूसरे की खुन्नस या लालच. गोली चला कर एक बहादुर बन जाता है, दूसरा हत्यारा. ऐसे हत्यारों से निपटने के लिए पुलिस होती है. और अगर पुलिस वाला दया नायक जैसा हो तो कहने की क्या?

मुंबई की पुलिस दया नायक, जिन पर नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म ‘अब तक छप्पन’ बनी थी और पसंद भी की गई थी. वह व्यक्ति हैं जिन्होंने मुंबई के अंडरवर्ल्ड को हिला दिया था. उन्होंने 86 एनकाउंटर किए.

मारे गए सभी ऐसे दुर्दांत अपराधी और अंडरवर्ल्ड के लोग थे, जिन्होंने मुंबई की नींद हराम कर रखी थी. फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं और बड़े बिजनैसमैन से दाऊद और छोटा शकील के नाम पर रंगदारी वसूलने वाले और न देने पर उन्हें मौत के घाट उतार देने वाले. ऐसे में इंसपेक्टर दया नायक उन की मौत बन कर मैदान में उतरे.

लेकिन आगे बढ़ने से पहले बता दें, दया नायक यूं ही इतने बड़े एनकाउंटर स्पैशलिस्ट नहीं बन गए थे. वह बेहद गरीबी से उबर कर आए थे. कर्नाटक के उडुपी जिले के एनहोले गांव निवासी बड्डा और राधा की इस तीसरी संतान ने गरीबी को बहुत करीब से देखा और जिया.

इसी के चलते उन्होंने 11 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया और मुंबई आ गए. कितनी ही रातें रेलवे स्टेशनों पर सो कर गुजारीं. जैतैसे काम भी मिला तो ढाबे पर, वह भी वेटर का. थोड़े पैसे अलग से मिल जाएं, इस के लिए दया ने लोगों के घरों की टोंटियां तक ठीक करने का काम किया.

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