जब भी जांबाज महिला आईपीएस अफसरों का नाम आता है तो शिमला में 1947 से 2017 तक 53वीं एसपी रह चुकीं सौम्या सांबशिवन को नहीं भूला जा सकता. वह स्वभाव से सौम्य हैं, लेकिन दिल से दबंग.

केरल की रहने वाली सौम्या बनना चाहती थीं लेखिका, लेकिन बन गईं एसपी. जाहिर है, ऐसे में मन गलत के प्रति विद्रोह तो करेगा ही, विद्रोह होगा तो दबंगई भी होगी. गनीमत यह है कि उन्हें पढ़ने का शौक है और यह शौक विद्रोह को रोकता है. फिर भी वह अपराधियों के लिए खौफनाक तो हैं ही.

इंजीनियर पिता की एकलौती बेटी सौम्या ने बायोस्ट्रीम से ग्रेजुएशन करने के बाद एमबीए में दाखिला लिया था. एमबीए हो गया तो उन्होंने 2 साल तक एक मल्टीनेशनल बैंक में नौकरी की. इस बीच वह यूपीएससी की तैयारी करती रहीं. 2010 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस बन कर 11 महीने की ट्रेनिंग में चली गईं. उन्हें हिमाचल कैडर मिला था. विभागीय ट्रेनिंग के लिए उन्हें शिमला भेजा गया, जहां वह डिप्टी एसपी की पोस्ट पर रहीं. फिर उन्हें एडिशनल एसपी बनाया गया.

एसपी के तौर पर उन की पहली पोस्टिंग सिरमौर में हुई. सिरमौर में ड्रग का बोलबाला था. ड्रग्स की तसकरी और बिक्री भी होती थी और लोग ड्रग्स लेते भी थे. झाडि़यों में ड्रग की खाली रेपर पुडि़या पड़ी मिलती थीं. सब से पहले सौम्या ने नशेडि़यों की धरपकड़ कर के ड्रग लेने वालों पर लगाम लगाई.

इस के लिए उन्होंने पकड़े गए नशेडि़यों की वीडियोग्राफी कराई और बताया इस की डौक्यूमेंट्री बना कर देश भर में दिखाई जाएगी. इस से होने वाली बदनामी से लोग डरे. उन्होंने नशेडि़यों के ठिकानों को भी जेसीबी से हटवा दिया और उस का भी वीडियो बनवाया.

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