इसी 30 मार्च की बात है. नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण अपने औफिस में बैठे थे. वह एसपी (देहात) विनीत जायसवाल के साथ अपराधों की रोकथाम के सिलसिले में बैठक कर रहे थे. उन के दफ्तर के बाहर अर्दली और कुछ पुलिस अफसर बैठे थे. वे सभी पुलिस अफसर एसएसपी साहब से मिलने आए थे.

इसी दौरान अर्दली ने देखा कि पुलिस एस्कार्ट के साथ एक मर्सिडीज वहां आई. मर्सिडीज पर लालबत्ती लगी हुई थी. मर्सिडीज से आगे चालक के पास वाली सीट से एक खूबसूरत नौजवान फुरती से उतरा. उस नौजवान के हाथ में लैपटौप बैग था. उस नौजवान ने मर्सिडीज के पीछे का गेट खोला. कार से एक महिला तेजी से बाहर निकली. महिला की उम्र करीब 32-33 साल थी. उस ने जींस और पूरी आस्तीन की टीशर्ट पहन रखी थी.

पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी और मर्सिडीज पर लगी लालबत्ती देख कर अर्दली समझ गया कि आगंतुक महिला कोई बड़ी अफसर हैं. अर्दली अपने साहब को महिला के बारे में बताने जाता, उस से पहले ही वह महिला तेज कदमों से चलती हुई आई और उस से बोली कि एसएसपी बैठे हैं क्या. अर्दली ने कहा, ‘‘यस मैम, साहब चैंबर में मीटिंग कर रहे हैं.’’

आगंतुक महिला अर्दली से बिना कुछ कहे सीधे चैंबर का गेट खोल कर अंदर जाने लगी, तो अर्दली ने आगे बढ़ कर गेट खोल दिया. महिला ने चैंबर में घुस कर सामने सीट पर बैठे एसएसपी की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हैलो वैभव, आई एम जोया खान, औफिसर औफ  इंडियन फौरेन सर्विस.’’

‘‘जोया मैम, आप से मिल कर खुशी हुई.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी सीट से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा.

एसएसपी ने जोया का किया स्वागत

एसएसपी ने जोया को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मैम, अभी तक तो आप के ईमेल ही मिले थे या एकदो बार फोन पर बात हुई थी. मुलाकात आज पहली बार हो रही है.’’

‘‘वैभव, यार तुम को तो पता है कि इंडियन फौरेन सर्विस में कितनी मारामारी रहती है. हमें आधा समय तो विदेशों में और आधा समय भारत में रहना पड़ता है.’’

जोया ने एसएसपी पर अपनी रुतबे वाली नौकरी के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं विदेश मंत्रालय में जौइंट सेक्रेटरी लेवल की औफिसर हूं. आजकल मेरी पोस्टिंग यूनाइटेड नेशंस में है.’’

‘‘मैडम, बाई द वे, आप कौन से बैच की आईएफएस औफिसर हैं?’’ पास ही दूसरी कुरसी पर बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने जोया से पूछा.

जोया ने एसपी (देहात) की ओर नजर उठा कर देखा. फिर उन की वरदी पर लगा आईपीएस का बैज देख कर संक्षिप्त सा जवाब दिया, ‘‘2007 बैच.’’

‘‘विनीत, आप भी यार हर जगह पुलिस की अपनी इनक्वायरी शुरू कर देते हो.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपने साथी एसपी (देहात) से कहा. फिर जोया खान की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘मैडम, क्या लेंगी? चायकौफी या ठंडा?’

‘‘वैभव, ऐसी कोई औपचारिकता नहीं है. फिर भी पहली बार मुलाकात हुई है, इसलिए आप के साथ कौफी पीने में कोई हर्ज नहीं है.’’ जोया ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.

एसएसपी ने घंटी बजा कर अर्दली से पहले पानी और इस के बाद कौफी लाने को कहा. अर्दली पानी के गिलास रख गया. इस बीच जोया और एसएसपी वैभव कृष्ण कई मुद्दों पर बातें करते रहे. बीचबीच में वहां बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल भी अपनी बात कह देते थे.

कुछ ही देर में अर्दली कौफी ले आया. एसएसपी, एसपी (देहात) और जोया खान बातें करते हुए कौफी सिप करने लगे. कौफी पीते हुए जोया ने एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, मेरी गाड़ी में तोड़फोड़ हो गई थी. इस की रिपोर्ट भी मैं ने बिसरख थाने में दर्ज करा दी थी, लेकिन आप की पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. आप जरा एक बार अपने स्तर पर इस केस को दिखवाना.’’

एसएसपी ने जोया को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैडम, मैं इस केस को दिखवा लूंगा.’’

जोया ने कौफी की आखिरी सिप लेते हुए कप खाली किया और कुरसी से उठते हुए एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, आप से पहली मुलाकात अच्छी रही.’’

एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी कुरसी से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘नाइस टू मीट यू.’’

जोया एसएसपी से मिल कर तेजी से उन के चैंबर से बाहर निकली और फुरती से अपनी गाड़ी के पास पहुंची. वहां पहले से ही लैपटौप बैग लिए खड़े नौजवान ने तेजी से आगे बढ़ कर गाड़ी का पीछे का गेट खोल दिया. जोया बैठ गई, तो उस की गाड़ी सायरन बजाती चल रही पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी के पीछेपीछे चली गई.

जोया के जाने पर एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने एसएसपी साहब से कहा, ‘‘सर, आप बुरा नहीं मानें, तो एक बात कहना चाहता हूं.’’

एसपी (देहात) को जोया लगी संदिग्ध

एसएसपी वैभव ने एसपी (देहात) विनीत की ओर सवालिया नजरों से देखकर कहा, ‘‘हां, बताओ क्या कहना चाहते हो.’’

‘‘सर, मुझे जोया मोहतरमा पर शक है.’’ एसपी (देहात) ने संदेह जताते हुए कहा, ‘‘जोया मैडम खुद को 2007 बैच की इंडियन फौरेन सर्विस की औफिसर बता रही हैं और उन की उम्र करीब 32-33 साल लगती है. इस का मतलब क्या वे 20-21 साल की उम्र में ही आईएफएस औफिसर बन गईं.’’

‘‘विनीत, मुझे भी जोया के हावभाव और बात करने का अंदाज देख कर संदेह हो रहा है. तुम्हारी बात में भी दम नजर आता है.’’ एसएसपी ने कहा, ‘‘मैं जोया खान की असलियत का पता लगवा लेता हूं. सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.’’

एसएसपी वैभव कृष्ण ने उसी दिन अपने कुछ मातहतों को जोया खान की असलियत का पता लगाने का जिम्मा सौंप दिया. साथ ही उन्होंने साइबर एक्सपर्ट टीम को जोया खान के भेजे एक ईमेल की जांच करने को कहा.

यह ईमेल जोया ने एसएसपी से मुलाकात से कुछ दिन पहले पुलिस एस्कार्ट उपलब्ध कराने के लिए भेजा था.

साइबर एक्सपर्ट टीम ने जोया खान की ओर से भेजे ईमेल के संबंध में जांच की, तो पता चला कि यूनाइटेड नेशंस की असली वेबसाइट सिर्फ  222.ह्वठ्ठ.शह्म्द्द है. इसी से मिलतेजुलते नामों से भी कई ईमेल आईडी मिलीं.

असलियत जानने के लिए डोमेन नेम की जांच कराई गई. इस में पता चला कि जोया ने खुद अपने लैपटौप से बैंक अकाउंट के माध्यम से शह्म्द्द नामक वेबसाइट खरीद कर उस से ईमेल बनाया था.

इस के अलावा दूसरी पुलिस टीम को जोया खान के बारे में कई ऐसी बातें पता चलीं, जिन से यह बात पुख्ता हो रही थी कि जोया खान फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है.

फरजी होने के मिले सबूत

सभी तरफ  से जोया खान के बारे में फरजी अफसर होने की पुष्टि होने पर नोएडा पुलिस ने जोया खान को हिरासत में ले कर पूछताछ की, तो उस की जालसाजी की सारी पोल खुल गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद जोया खान और उस के पति हर्षप्रताप सिंह को 4 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने जोया के पास से यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट का फरजी डिप्लोमैटिक आईडी कार्ड, 2 लैपटौप, पिस्टलनुमा लाइटर गन, वाकीटाकी वायरलैस सेट, 4 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, पैन कार्ड, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस सहित यूएन का लोगो लगी मर्सिडीज कार और नीली बत्ती लगी एसयूवी महिंद्रा कार सहित कई अन्य सामान भी बरामद किए.

फरजी आईएफएस औफिसर जोया खान और उस के पति से पुलिस की पूछताछ के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

जोया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली है. मेरठ के कैंट इलाके में सदर बाजार स्थित तिवारी कंपाउंड में उस के पिता का आलीशान बंगला है. उस के पिता ए. खान एमबीबीएस डाक्टर हैं. उन का मेरठ के लालकुर्ती बड़ा बाजार में क्लीनिक है. जोया के पिता डा. ए. खान की इस इलाके में अच्छी शोहरत है. डाक्टरी के पेशे से उन्होंने अच्छीखासी कमाई भी की है.

डा. ए. खान की 2 बेटियां हैं. बड़ी बेटी जोया ने मेरठ के प्रतिष्ठित स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली से ग्रैजुएशन किया. दिल्ली यूनिवर्सिटी से जोया ने पौलिटिकल साइंस में एमए किया. सन 2007 में वह दिल्ली में रह कर सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करने लगी. इस के लिए उस ने कोचिंग वगैरह भी की. बाद में उस ने यूपीएससी की ओर से आयोजित सिविल सर्विसेज परीक्षा भी दी, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी.

करीब 6-7 साल पहले जोया ने एक बार मेरठ जाने पर अपनी मां को बताया था कि वह हर्षप्रताप सिंह से शादी करेगी. इस पर पिता डा. खान व मां ने बेटी को हर्ष और उस के परिवार से मुलाकात कराने को कहा था, लेकिन जोया ने कभी उन से मुलाकात नहीं कराई.

जोया ने हर्ष से की थी कोर्टमैरिज

जोया ने नवंबर 2013 में हर्षप्रताप सिंह से कोर्टमैरिज की थी. हर्षप्रताप सिंह उस समय स्टेट बैंक औफ  इंडिया में प्रोबेशनरी अफसर की नौकरी छोड़ कर सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा था. शादी के बाद हर्ष प्रताप सिंह ने सिविल सर्विस परीक्षा भी दी, लेकिन वह सफल नहीं हो सका. हर्ष प्रताप के पिता उत्तर प्रदेश में एक सरकारी विभाग में जौइंट कमिश्नर हैं.

जोया खान ने अच्छीखासी पढ़ाई की थी. उस की तमन्ना प्रशासनिक अफसर बनने की थी. लेकिन वह परीक्षा में सफल नहीं हो सकी, तो उसे अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया. पति हर्ष प्रताप भी सिविल सर्विस परीक्षा में पास नहीं हो सका था.

करीब 2 साल पहले जोया ने अपने सपनों को पूरा करने और अफसरों जैसा रुतबा हासिल करने के लिए फरजीवाड़ा करने की योजना बनाई. उस ने इंटरनेट पर यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी से संबंधित सारी जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उस ने ‘गो डैडी’ डोमेन से फरजी ईमेल आईडी सिक्युरिटी चीफ  यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी काउंसिल डौट ओआरजी के नाम से बनवाई और इसे रजिस्टर्ड करवाया.

इस के लिए जोया ने यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन के लोगो व अन्य सूचनाएं फरजीवाड़े से हासिल कर उपलब्ध करवाईं. इस के बाद जोया ने खुद का यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल का आईडी कार्ड और विजिटिंग कार्ड बनवाए.

जोया ने खुद का एक डिप्लोमेटिक आईडी कार्ड भी बनवाया. इस में खुद को न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताया गया. वाशिंगटन से जारी इस आईडी कार्ड में जोया की तैनाती अफगानिस्तान में बताई गई थी.

इस के बाद जोया ने उत्तर प्रदेश के एक जिले के एसपी को यूनाइटेड नेशंस और्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल के नाम से ईमेल भेज कर पुलिस एस्कार्ट मांगी.

जोया को इस ईमेल पर पुलिस एस्कार्ट सुविधा मिल गई. पुलिस की सुरक्षा में इधरउधर आनाजाना, हर चौराहे पर पुलिसकर्मियों की ओर से सैल्यूट देने का रुतबा जोया खान को पसंद आ गया.

फरजी अधिकारी बन कर दिखाती थी रुतबा

जोया ने खुद को भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया. मेरठ में भी वह खुद को आईएफएस अफसर बताने लगी. वह किसी को भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव बताती, किसी को वह यूनाइटेड नेशंस की सिक्युरिटी काउंसिल की न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताती. जोया ने अपनी मर्सिडीज गाड़ी पर यूनाइटेड नेशंस का लोगो भी लगवा लिया था. एसयूवी कार पर नीली बत्ती लगवा ली थी.

भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में जोया खान मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव, अलीगढ़, मथुरा, मुरादाबाद आदि जिलों के एसपी या एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी काउंसिल के सिक्युरिटी चीफ की ओर से ईमेल भेज कर पुलिस सुरक्षा की मांग करती थी.

जोया खान ने अपने मोबाइल में वाइस कनवर्टर ऐप डाउनलोड कर रखा था. वह इस ऐप के जरिए अधिकारियों से कभी पुरुष और कभी महिला की आवाज में बात करती थी. किसी जिले के एसपी या एसएसपी को ईमेल भेजने के बाद जोया खान उस अधिकारी को फोन करती और ऐप के जरिए आवाज बदल कर पुरुष की आवाज में कहती कि मैं विदेश मंत्रालय की जौइंट सेक्रेटरी जोया खान का पीए बोल रहा हूं, मैडम आप से बात करना चाहती हैं.

इस के तुरंत बाद जोया खान महिला की आवाज में उस अधिकारी से बात करती. वह धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते हुए कई बार फोन पर अधिकारियों को फटकार भी देती थी.

पत्नी जोया के रुतबे के इस खेल में पति हर्ष को भी मजा आने लगा था. जोया इस खेल में पति को साथ रखना चाहती थी. इसलिए दोनों ने मिल कर एक रास्ता निकाला. इस के मुताबिक जोया आईएफएस अधिकारी बन कर कार में पीछे की सीट पर बैठती थी और हर्ष उस क ा कमांडो बन कर कार चलाता था. हर्ष अपने पास लाइटर पिस्टल और वाकीटाकी रखता था.

कार से उतर कर जोया जब किसी अधिकारी से मिलने जाती थी, तो हर्ष उस का लैपटौप और डायरी उठा कर चलता था. पुलिस की एस्कार्ट के सामने जोया और हर्ष किसी को यह जाहिर नहीं होने देते कि वे पतिपत्नी हैं. इस दौरान हर्ष जोया को मैडम कह कर कहता था.

अपनी पोल न खुल सके, इस के लिए जोया अपनी कार चलाने के लिए किसी ड्राइवर को नहीं रखती थी. ड्राइवर को रखने से जोया का फरजीवाड़ा उजागर हो सकता था. इसलिए जोया जब भी आईएफएस अफसर बन कर जाती, तो हर्ष ही कार चलाता था. जोया अपने घर में भी किसी पुलिसकर्मी को नहीं आने देती थी.

इस बीच, जोया अपने पति हर्ष के साथ ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में फ्लैट ले कर रहने लगे. यह फ्लैट जोया ने 6500 रुपए महीने किराए पर ले रखा था. इस सोसायटी में भी जोया ने खुद को आईएफएस अफसर ही बता रखा था.

जोया हर महीने मेरठ भी आतीजाती रहती थी. मेरठ में भी जोया पुलिस एस्कार्ट लेती थी. इस के लिए वह पहले ही एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस का ईमेल भेज देती थी. इसी 26 मार्च को भी जोया मेरठ गई थी और पुलिस सुरक्षा ली थी. इसी दिन वह मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी से भी मिली थी. वह विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों को फोन कर अपने निजी काम, किसी मुकदमे की पैरवी आदि के लिए कहती थी.

सुरक्षा एजेंसियों ने की पूछताछ

इसी साल जनवरी में ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में रात के समय जोया की कार के शीशे किसी ने तोड़ दिए थे. इस पर जोया ने नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण से शिकायत की थी. इस संबंध में जोया ने मुकदमा भी दर्ज कराया था. पुलिस की ओर से कोई काररवाई नहीं करने पर वह 30 मार्च को इसी सिलसिले में एसएसपी वैभव कृष्ण से मिलने उन के औफिस में गई थी.

जोया का फरजीवाड़ा उजागर होने के बाद पुलिस अब दूसरी सुरक्षा एजेंसियां जांचपड़ताल में जुटी हुई हैं. जोया खान से बरामद लैपटौप और मोबाइल के डेटा की जांच नोएडा एटीएस टीम कर रही है.

पुलिस यह भी जांच कर रही है कि जोया का संबंध अफगानिस्तान या अन्य किसी देश से तो नहीं है. यह बात भी सामने आई थी कि गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले जोया ने मेरठ में हुई प्रधानमंत्री की रैली के लिए पुलिस से एस्कार्ट मांगी थी. हालांकि पुलिस इस बात से इनकार कर रही है. नोएडा में गिरफ्तारी के बाद जोया के खिलाफ  मेरठ में भी मुकदमा दर्ज किया गया है. इस के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश के उन जिलों में भी जोया के खिलाफ  मुकदमा दर्ज करने की तैयारी चल रही है, जहां जोया ने फरजीवाड़े से पुलिस सुरक्षा हासिल की थी.

कहा जाता है कि जोया के मातापिता और हर्षप्रताप के पिता को पता चल गया था कि जोया फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है. हर्ष के पिता ने बेटे को समझाया भी था, लेकिन सरकारी अफसर का रुतबा और पुलिस वालों के सैल्यूट के आगे उन की समझाइश का कोई मतलब नहीं निकला. कथा लिखे जाने तक दोनों पतिपत्नी जेल में थे.

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