25 सितंबर, 2019 तक मध्यप्रदेश में उजागर हुए सैक्स स्कैंडल जिसे मीडिया ने हनीट्रैप नाम दिया था, का मुकम्मल बवाल मच चुका था. हर दिन इस स्कैंडल से जुड़ी कोई खबर सनसनी पैदा कर रही थी. राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों में काम कम इस देशव्यापी स्कैंडल और उस से जुड़े अधिकारियों और नेताओं की चर्चा ज्यादा हो रही थी कि इस में कौनकौन फंस सकते हैं.

लेकिन जब सरकार ने इस स्कैंडल की जांच के बाबत विशेष जांच दल का गठन कर दिया तो चर्चाएं और खबरें धीरेधीरे कम होने लगीं और दीवाली आतेआते लोगों की जिज्ञासा भी खत्म होने लगी.

जो लोग यह जानने को उत्सुक थे, उन नेताओं और अधिकारियों के असल चेहरे और नाम उजागर होंगे, जिन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था, उन की उत्सुकता भी ठंडी पड़ गई थी.

लोगों ने मान लिया कि इस कांड का हाल भी व्यापमं घोटाले जैसा होना तय है, जिस में कोई नहीं फंसा था और जो फंसे थे वे सीबीआई जांच के बाद दोषमुक्त हो गए थे.

अगर यही होना था तो इतना बवंडर क्यों मचा, इस सवाल का सीधा सा जवाब यही निकलता है कि मकसद चूंकि इस में फंसे शौकीन रंगीनमिजाज राजनेताओं और अधिकारियों को और ज्यादा ब्लैकमेलिंग से बचाना था, इसलिए इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर हरभजन सिंह को बलि का बकरा बनाया गया और आरोपियों को जेल भेज कर बाकियों को कुछ इस तरह बचा लिया गया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

इस सैक्स स्कैंडल की सनसनी का इकलौता फायदा यह हुआ कि जो दूसरे मर्द इस तरह की ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रहे थे, उन में से कुछ को हिम्मत बंधी कि अगर पुलिस में रिपोर्ट लिखाई जाए तो ब्लैकमेलिंग से छुटकारा मिल सकता है. क्योंकि इंदौर भोपाल के सैक्स स्कैंडल में काररवाई ब्लैकमेल करने वाली बालाओं के खिलाफ हुई थी और पीडि़त पुरुष साफ बच गए थे.

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