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‘‘तुम क्या क्या काम कर लेती हो?’’ केदारनाथ की बड़ी बेटी सुषमा ने उस काम वाली लड़की से पूछा. सुषमा ऊधमपुर से अपने बाबूजी का हालचाल जानने के लिए यहां आई थी.

दोनों बेटियों की शादी हो जाने के बाद केदारनाथ अकेले रह गए थे. बीवी सालभर पहले ही गुजर गई थी. बड़ा बेटा जौनपुर में सरकारी अफसर था. बाबूजी की देखभाल के लिए एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो दिनभर घर पर रह सके और घर के सारे काम निबटा सके.

‘‘जी दीदी, सब काम कर लेती हूं. झाड़ूपोंछा से ले कर खाना पकाने तक का काम कर लेती हूं,’’ लड़की ने आंखें मटकाते हुए कहा. ‘‘किस से बातें कर रही हो सुषमा?’’ केदारनाथ अपनी थुलथुल तोंद पर लटके गीले जनेऊ को हाथों से घुमाते हुए बोले. वे अभीअभी नहा कर निकले थे. उन के अधगंजे सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘एक लड़की है बाबूजी. घर के कामकाज के लिए आई है, कहो तो काम पर रख लें?’’ सुषमा ने बाबूजी की तरफ देखते हुए पूछा. केदारनाथ ने उस लड़की की तरफ देखा और सोचने लगे, ‘भले घर की लग रही है. जरूर किसी मजबूरी में काम मांगने चली आई है. फिर भी आजकल घरों में जिस तरह चोरियां हो रही हैं, उसे देखते हुए पूरी जांचपड़ताल कर के ही काम पर रखना चाहिए.’

‘‘बेटी, इस से पूछ कि यह किस जाति की है?’’ केदारनाथ ने थोड़ी देर बाद कहा. ‘‘अरी, किस जाति की है तू?’’ सुषमा ने बाबूजी के सवाल को दोहराया.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मां से पूछ कर बता दूंगी. वैसे, मां ने मेरा नाम बेला रखा है,’’ वह लड़की हर सवाल का जवाब फुरती से दे रही थी. ‘‘ठीक है, कल अपनी मां को ले आना,’’ सुषमा ने कहा.

‘‘जी दीदी, मैं कल सुबह ही मां को ले कर आ जाऊंगी,’’ बेला ने कहा और तेजी से वहां से चल पड़ी. ‘‘मां, मुझे काम मिल गया,’’ खुशी से चीखते हुए बेला अपनी मां राधिका से लिपट गई और बोली, ‘‘बहुत अच्छी हैं सुषमा दीदी.’’

बेला को जन्म देने के बाद राधिका अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ गई थी. बेला को पालनेपोसने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी. उसे दूसरों के घरों की सफाई से ले कर कपड़े धोने तक का काम करना पड़ा था, तब कहीं जा कर वह अपना और बेला का पेट पाल सकी थी.

जब राधिका पेट से थी, तब से अपने गांव में उसे खूब ताने सुनने पड़े थे पर उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने पेट में खिले फूल को जन्म देने का इरादा कर बैठी थी. ‘अरे, यह किस का बीज अपने पेट में डाल लाई है? बोलती क्यों नहीं करमजली? कम से कम बाप का नाम ही बता दे ताकि हम बच्चे के हक के लिए लड़ सकें,’ राधिका की मां ने उसे बुरी तरह पीटते हुए पूछा था.

मार खाने के बाद भी राधिका ने अपनी मां को कुछ नहीं बताया क्योंकि वह आदमी पैसे वाला था. समाज में उस की बहुत इज्जत थी और फिर राधिका के पास कोई सुबूत भी तो नहीं था. वह किस मुंह से कहेगी कि वह शादीशुदा है, किसी के बच्चे का बाप है. ‘एक तो हम गरीब, ऊपर से बिनब्याही मां का कलंक… हम किसकिस को जवाब देंगे, किसकिस का मुंह बंद करेंगे,’ राधिका की मां ने खीजते हुए कहा था.

‘क्या सोचा है तू ने, चलेगी सफाई कराने को?’ मां ने उस की चोटी मरोड़ते हुए पूछा था. ‘नहीं मां, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी. चाहो तो तुम लोग मुझे जान से मार दो, पर जीतेजी मैं इस बेकुसूर की हत्या नहीं होने दूंगी,’ राधिका ने रोते हुए अपनी मां से कहा था.

मां की बातों से तंग आ कर राधिका उसे बिना बताए अपने नानानानी के पास चली गई और उन्हें सबकुछ बता दिया. राधिका की बातें सुन कर नानी पिघल गईं और गांव वालों के तानों को अनसुना कर उस का साथ देने को तैयार हो गईं.

राधिका की मां व नानी यह नहीं जान पाईं कि आखिर वह चाहती क्या है? बच्चे को जन्म देने के पीछे उस का इरादा क्या था? ‘‘मां, चलना नहीं है क्या? सुबह हो गई है,’’ बेला ने सुबहसुबह मां को नींद से जगाते हुए कहा.

‘‘हां बेटी, चलना तो है. पहले तू तैयार हो जा, फिर मैं भी तैयार हो जाती हूं,’’ यह कह कर राधिका झटपट तैयार होने लगी. सुषमा ने दरवाजा खोल कर उन दोनों को भीतर बुला लिया. केदारनाथ अभी तक सो रहे थे.

‘‘तो तुम बेला की मां हो?’’ सुषमा ने राधिका की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘जी मालकिन, हम ही हैं,’’ राधिका ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी बेटी समझदार तो लगती है. वैसे, घर का सारा काम कर लेती है न?’’ राधिका ने फौरन जवाब दिया, ‘‘बिलकुल मालकिन, मैं ने इसे सारा काम सिखा रखा है.’’

‘‘तो ठीक है, रख लेते हैं. सारा दिन यहीं रहा करेगी. रात को भले ही अपने घर चली जाए.’’ सुषमा ने बेला को हर महीने 500 रुपए देने की बात तय कर ली.

‘‘कौन आया है बेटी? सुबहसुबह किस से बात कर रही हो?’’ केदारनाथ जम्हाई ले कर उठते हुए बोले. ‘‘कोई नहीं बाबूजी, काम वाली लड़की आई है, उसी से बात कर रही थी,’’ सुषमा ने जवाब दिया.

केदारनाथ बाहर निकले तो राधिका के लंबा सा घूंघट निकालने पर सुषमा को अजीब सा लगा. ‘‘अच्छा तो अब हम चलते हैं,’’ राधिका उठते हुए बोली.

‘‘तो ठीक है, कल से भेज देना बेटी को,’’ सुषमा ने बात पक्की कर के बेला को आने के लिए कह दिया. राधिका ने राहत की सांस ली. उसे लगा कि वह कीड़ा जो इतने सालों से उस के जेहन में कुलबुला रहा था, उस से छुटकारा पाने का समय आ गया है.

सुषमा को भी राहत मिली कि बाबूजी की देखभाल के लिए अच्छी लड़की मिल गई है. वह दूसरे दिन ही ससुराल लौट गई. ‘‘ऐ छोकरी, जरा मेरे बदन की मालिश कर दे. सारा बदन दुख रहा है,’’ केदारनाथ ने बादाम के तेल की शीशी बेला के हाथों में पकड़ाते हुए कहा.

बेला ने उन के उघड़े बदन पर तेल से मालिश करनी शुरू कर दी. ‘‘तेरे गाल बहुत फूलेफूले हैं. क्या खिलाती है तेरी मां?’’ केदारनाथ ने अकेलेपन का फायदा उठाते हुए पूछा.

‘‘मां,’’ बेला ने चीख कर अपनी मां को आवाज दी. राधिका वहीं थी. ‘‘शर्म करो केदार,’’ राधिका ने जोर से दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अपनी ही बेटी के साथ कुकर्म. बेटी, हट वहां से…’’

राधिका बोलती रही, ‘‘हां केदारनाथ, बरसों पहले जो कुकर्म तुम ने मेरे साथ किया था, उसी का नतीजा है यह बेला. तुम ने सोचा होगा कि राधिका चुप बैठ गई होगी, पर मैं चुप नहीं बैठी थी. मैं ने इसे जन्म दे कर तुम तक पहुंचाया है. ‘‘यह मेरी सोचीसमझी चाल थी ताकि तुम्हारी बेटी भी तुम्हारी करतूत को अपनी आंखों से देख सके.’’

केदारनाथ एक मुजरिम की तरह सिर झुकाए सबकुछ सुनता रहा. राधिका ने बोलना बंद नहीं किया, ‘‘हां केदार, अब भी तुम्हारे सिर से वासना का भूत नहीं उतरा है, तो ले तेरी बेटी तेरे सामने खड़ी है. उतार दे इस की भी इज्जत और पूरी कर ले अपनी हवस.

‘‘मैं भी बरसों पहले तुम्हारी हवस का शिकार हुई थी. तब मैं इज्जत की खातिर कितना गिड़गिड़ाई थी, पर तुम ने मुझे नहीं छोड़ा था. मैं तभी जवाब देती, पर मालकिन ने मेरे पैर पकड़ लिए थे, इसीलिए मैं चुप रह गई थी. ‘‘यह तो अच्छा हुआ कि बेला ने तुम्हारी नीयत के बारे में मुझे पहले ही सबकुछ बता दिया. इस बार बाजी मेरे हाथ में है.

‘‘क्या कहते हो केदार? शोर मचा कर भीड़ में तुम्हारा तमाशा बनाऊं,’’ राधिका सुधबुध खो बैठी थी और लगातार बोले जा रही थी. केदारनाथ की अक्ल मानो जवाब दे गई थी. अपनी इज्जत की धज्जियां उड़ती देख वे छत की तरफ भागे और वहां से कूद कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

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