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रमेश ने झगड़ालू और दबंग पत्नी से आपसी कलह के चलते दुखी जिंदगी देने वाला तलाक रूपी जहर पी लिया था. अगर चंद्रमणि उस की मां की सेवा करने की आदत बना लेती, तो वह उस का हर सितम हंसतेहंसते सह लेता, मगर अब उस से अपनी मां की बेइज्जती सहन नहीं होती थी.

ऐसी पत्नी का क्या करना, जो अपना ज्यादातर समय टैलीविजन देखने या मोबाइल फोन पर अपने घर वालों या सखीसहेलियों के साथ गुजारे और घर के सारे काम रमेश की बूढ़ी मां को करने पड़ें? बारबार समझाने पर भी चंद्रमणि नहीं मानी, उलटे रमेश पर गुर्राते हुए मां का ही कुसूर निकालने लगती, तो उस ने यह कठोर फैसला ले लिया.

चंद्रमणि तलाक पाने के लिए अदालत में तो खड़ी हो गई, मगर उस ने अपनी गलतियों पर गौर करना भी मुनासिब नहीं समझा. इस तरह रमेश ने तकरीबन 6 लाख रुपए गंवा कर अकेलापन भोगने के लिए तलाक रूपी शाप झेल लिया.

ऐसा नहीं था कि चंद्रमणि से तलाक ले कर रमेश सुखी था. खूबसूरत सांचे में ढली गदराए बदन वाली चंद्रमणि उसे अब भी तनहा रातों में बहुत याद आती थी, लेकिन मां के सामने वह अपना दर्द कभी जाहिर नहीं करता था. लिहाजा, उस ने अपना मन अपनी दुकानदारी में पूरी तरह लगा लिया.

रमेश मन लगा कर अपने जनरल स्टोर में 16-16 घंटे काम करने लगा… काम खूब चलने लगा. रुपया बरस रहा था. अब वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान खोलना चाहता था.

रविवार का दिन था. रमेश अपने कमरे में बैठा कुछ हिसाबकिताब लगा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा.

फोन उठाते ही किसी अजनबी औरत की बेहद मीठी आवाज सुनाई दी. रमेश का मन रोमांटिक सा हो गया. उस ने पूछा, तो दूसरी तरफ से घबराईझिझकती आवाज में बताया गया कि उस औरत की 5 साला बेटी से गलती हो गई. माफी मांगी गई.

‘‘अरेअरे, इस में गलती की कोई बात नहीं. बच्चे तो शरारती होते ही हैं. बड़ी प्यारी बच्ची है आप की. इस के पापा घर में ही हैं क्या?’’ रमेश ने पूछा, तो दूसरी तरफ खामोशी छा गई.

रमेश ने फिर पूछा, तो उस औरत ने बताया कि उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया है.

‘‘ऐसा क्यों किया? यह तो आप ने गलत कदम उठाया. घर उजाड़ने में समय नहीं लगता, पर बसाने में जमाने लग जाते हैं. आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

‘‘आप को अपनी गलती सुधारनी चाहिए और अपने पति के घर लौट जाना चाहिए,’’ रमेश ने बिना मांगे ही उस औरत को उपदेश दे दिया.

औरत ने दुखी मन से बताया, ‘ऐसा करना बहुत जरूरी हो गया था. अगर मैं ऐसा न करती, तो वह जालिम हम मांबेटी को मार ही डालता.’

‘‘देखो, घर में छोटेमोटे मनमुटाव होते रहते हैं. मिलबैठ कर समझौता कर लेना चाहिए. एक बार घर की गाड़ी पटरी से उतर गई, तो बहुत मुश्किल हो जाता है.

‘‘तुम्हारा अपने घर लौट जाना बेहद जरूरी है. लौट आओ वापस. बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा,’’ रमेश ने रास्ते से भटकी हुई उस औरत को समझाने की भरपूर कोशिश की, पर उस का यह उपदेश सुन कर वह औरत मानो गरज उठी, ‘जो आदमी अपराध कर के बारबार जेल जाता रहता है. जब वह जेल से बाहर आता है, तो मेहनतमजदूरी के कमाए रुपए छीन कर फिर नशे में अपराध कर के जेल चला जाता है, तो हम उस राक्षस के पास मरने के लिए रहतीं?

‘अगर तुम अब यही उपदेश देते हो, तो तुम ही हम मांबेटी को उस जालिम के पास छोड़ आओ. हम तैयार हैं,’ उस परेशान औरत ने अपना दर्द बता कर रमेश को लाजवाब कर दिया.

यह सुन कर रमेश को सदमा सा लगा. वह सोच रहा था कि जवान औरत अपनी मासूम बेटी के साथ अकेले बेरोजगारी की हालत में अपनी जिंदगी कैसे बिताएगी? यकीनन, ऐसे मजबूर इनसान की जरूर मदद करनी चाहिए.

वैसे भी रमेश को औरतों के सामान वाले जनरल स्टोर पर किसी औरत को रखना था, तभी तो वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान कर पाएगा. अगर यह मीठा बोलने वाली औरत ऐसे ही दुकान पर ग्राहकों से मीठीमीठी बातें करेगी, तो दुकान जरूर चल सकती है.

रमेश ने उस से पूछा, ‘‘क्या आप पढ़ीलिखी हैं?’’

‘क्या मतलब?’ उस औरत ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मुझे अपने जनरल स्टोर पर, जिस में लेडीज सामान ही बेचा जाता है, सेल्स गर्ल की जरूरत है. अगर आप चाहें, तो मैं आप को नौकरी दे सकता हूं. इस तरह आप के खर्चेपानी की समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘क्या आप मुझे 10 हजार रुपए महीना तनख्वाह दे सकते हैं?’ उस औरत ने चहकते हुए पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अगर आप मेरी दुकान पर 12 घंटे काम करेंगी, तो मैं आप को 10 हजार रुपए से ज्यादा भी दे सकता हूं. यह तो तुम्हारे काम पर निर्भर करता है कि तुम आने वाले ग्राहकों को कितना प्रभावित करती हो.’’

‘काम तो मैं आप के कहे मुताबिक ही करूंगी. बस, मुझे मेरी बेटी की परेशानी रहेगी. अगर मेरी बेटी के रहने की समस्या का हल हो जाए, तो मैं आप की दुकान पर 15 घंटे भी काम कर सकती हूं. बेटी को संभालने वाला कोई तो हो,’ वह औरत बोली.

‘‘मैं आप की बेटी को सुबह स्कूल छोड़ आऊंगा. छुट्टी के बाद उसे मैं अपनी मां के पास छोड़ आया करूंगा. इस तरह आप की समस्या का हल भी निकल आएगा और घर में मेरी मां का दिल भी लगा रहेगा. आप की बेटी भी महफूज रहेगी,’’ रमेश ने बताया.

वह औरत खुशी के मारे चहक उठी, ‘फिर बताओ, मैं तुम्हारे पास कब आऊं? अपनी दुकान का पता बताओ. मैं अभी आ कर तुम से मिलती हूं. तुम मुझे नौकरी दे रहे हो, मैं तनमन से तुम्हारे काम आऊंगी. गुलाम बन कर रहूंगी, तुम्हारी हर बात मानूंगी.’

रमेश के मन में विचार आया कि अगर वह औरत अपने काम के प्रति ईमानदार रहेगी, तो वह उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होने देगा. उस की मासूम बेटी को वह अपने खर्चे पर ही पढ़ाएगा.

तभी रमेश के मन में यह भी खयाल आया कि वह पहले उस के घर जा कर उसे देख तो ले. उस की आवाज ही सुनी है, उसे कभी देखा नहीं. उस के बारे में जानना जरूरी है. लाखों रुपए का माल है दुकान में. उस के हवाले करना कहां तक ठीक है?

रमेश ने उस औरत को फोन किया और बोला, ‘‘पहले आप अपने घर का पता बताएं? आप का घर देख कर ही मैं कोई उचित फैसला कर पाऊंगा.’’

वह औरत कुछ कह पाती, इस से पहले हीरमेश को उस के घर से मर्दों की आवाजें सुनाई दीं.

वह औरत लहजा बदल कर बोली, ‘अभी तो मेरे 2 भाई घर पर आए हुए हैं. तुम कल शाम को आ जाओ.

‘मैं तनमन से आप की दुकान में मेहनत करूंगी और आप की सेवा भी करूंगी. आप की उम्र कितनी है?’ उस औरत ने पूछा.

‘‘मेरी उम्र तो यही बस 40 साल के करीब होगी. अभी मैं भी अकेला ही हूं. पत्नी से आपसी मनमुटाव के चलते मेरा तलाक हो गया है,’’ रमेश ने भी अपना दुख जाहिर कर दिया.

यह सुन कर तो वह औरत खुशी के मारे चहक उठी थी, ‘अरे वाह, तब तो मजा आ जाएगा, साथसाथ काम करने में. मेरी उम्र भी 30 साल है. मैं भी अकेली, तुम भी अकेले. हम एकदूसरे की परेशानियों को दिल से समझ सकेंगे,’ इतना कह कर उस औरत ने शहद घुली आवाज में अपने घर का पता बताया.

उस औरत ने अपने घर का जो पता बताया था, वह कालोनी तो रमेश के घर से आधा किलोमीटर दूर थी. उस ने अपनी मां से औरत के साथ हुई सारी बातें बताईं.

मां ने सलाह दी कि अगर वह औरत ईमानदार और मेहनती है, तो उसे अभी उस के घर जा कर उस के भाइयों के सामने बात पक्की करनी चाहिए. रमेश को अपनी मां की बात सही लगी. उस ने फोन किया, तो उस औरत का फोन बंद मिला.

रमेश ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और चल दिया उस के घर की तरफ. मगर घर का गेट बंद था. गली भी आगे से बंद थी. वहां खास चहलपहल भी नहीं थी. मकान भी मामूली सा था.

गली में एक बूढ़ा आदमी नजर आया, तो रमेश ने अदब से उस औरत का नाम ले कर उस के घर का पता पूछा. बूढ़े ने नफरत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए सामने मामूली से मकान की तरफ इशारा किया.

रमेश को उस बूढ़े के बरताव पर गुस्सा आया, मगर उस की तरफ ध्यान न देते हुए बंद गेट तो नहीं खटखटाया, मगर गली की तरफ बना कमरा, जिस का दरवाजा गली की तरफ नजर आ रहा था, उसी को थपथपा कर कड़कती आवाज में उस औरत को आवाज लगाई.

थोड़ी देर में दरवाजा खुला, तो एक हट्टीकट्टी बदमाश सी नजर आने वाली औरत रमेश को देखते ही गरज उठी, ‘‘क्यों रे, हल्ला क्यों मचा रहा है? ज्यादा सुलग रहा है… फोन कर के आता. देख नहीं रहा कि हम आराम कर रहे हैं.

‘‘अगर हमारे चौधरीजी को गुस्सा आ गया, तो तेरा रामराम सत्य हो जाएगा. अब तू निकल ले यहां से, वरना अपने पैरों पर चल कर जा नहीं सकेगा. अगली बार फोन कर के आना. चल भाग यहां से,’’ उस औरत ने अपने पास खड़े 2 बदमाशों की तरफ देखते हुए रमेश को ऐसे धमकाया, जैसे वह वहां की नामचीन हस्ती हो.

‘‘अपनी आकौत में रह, गंदगी में मुंह मारने वाली औरत. मैं यहां बिना बुलाए नहीं आया हूं. मेरा नाम रमेश है.

‘‘अगर मैं कल शाम को यहां आता, तो तुम्हारी इस दुकानदारी का मुझे कैसे पता चलता. कहो तो अभी पुलिस को फोन कर के बताऊं कि यहां क्या गोरखधंधा चल रहा है,’’ रमेश ने धमकी दी.

रमेश समझ गया था कि उस औरत ने अपनी सैक्स की दुकान खूब चला रखी है. वह तो उस की दुकान का बेड़ा गर्क कर के रख देगी. उस ने मन ही मन अपनी मां का एहसान माना, जिन की सलाह मान कर वह आज ही यहां आ गया था.

उस औरत के पास खड़े उन बदमाशों में से एक ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘अबे, तू हमें पुलिस के हवाले करेगा? हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’

पर रमेश दिलेर था. उस ने लड़खड़ाते उस शराबी पर 3-4 थप्पड़ जमा दिए. वह धड़ाम से जमीन चाटता हुआ नजर आया.

यह देख कर वह औरत, जिस का नाम चंपाबाई था, ने जूतेचप्पलों से पिटाई करते हुए कमरे से उन दोनों आशिकों को भगा दिया.

चंपाबाई हाथ जोड़ कर रमेश के सामने गिड़गिड़ा उठी, ‘‘रमेशजी, मैं अकेली औरत समाज के इन बदमाशों का मुकाबला करने में लाचार हूं. मैं आप की शरण में आना चाहती हूं. मुझ दुखियारी को तुम अभी अपने साथ ले चलो. मैं जिंदगीभर तुम्हारी हर बात मानूंगी.’’

चंपाबाई बड़ी खतरनाक किस्म की नौटंकीबाज औरत नजर आ रही थी. अगर आज रमेश आंखों देखी मक्खी निगल लेता, तो यह उस की गलती होती. वह बिना कोई जवाब दिए अपनी राह पकड़ घर की तरफ चल दिया.

हर दिन नया मर्द देखने वाली चंपाबाई अपना दुखड़ा रोते हुए बारबार उसे बुला रही थी, पर रमेश समझ गया था कि ऐसी औरतों की जिस्म की दुकान हो या जनरल स्टोर, वे हर जगह बेड़ा गर्क ही करती हैं.

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