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मेरी नजरें पंखे की ओर थीं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैं पंखे से झूल रहा हूं और कमरे के अंदर मेरी पत्नी चीख रही है. धीरेधीरे उस की चीख दूर होती जा रही थी. सालों के बाद आज मुझे उस झुग्गी बस्ती की बहुत याद आ रही थी जहां मैं ने 20-22 साल अपने बच्चों के साथ गुजारे थे.

मेरे पड़ोसी साथी चमनलाल की धुंधली तसवीर आंखों के सामने घूम रही थी. वह मेरी खोली के ठीक सामने आ कर रहने लगा था. उसी दिन से वह मेरा सच्चा यार बन गया था. उस के छोटेबड़े कई बच्चे थे.

समय का पंछी तेजी से पंख फैलाए उड़ता जा रहा था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. चमनलाल का बड़ा बेटा जो 20-22 साल का था, बुरी संगत में पड़ कर आवारागर्दी करने लगा. घर में हुड़दंग मचाता. छोटे भाईबहनों को हर समय मारतापीटता.

चमनलाल उसे समझाबुझा कर थक चुका था. मैं ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. जब भी चमनलाल से इस बारे में बात होती तो मैं उसे ही कुसूरवार मान कर लंबाचौड़ा भाषण झाड़ता. शायद उस के जख्म पर मरहम लगाने के बजाय और हरा कर देता.

सुहानी शाम थी. सभी अपनेअपने कामों में मसरूफ थे. तभी पता चला कि चमनलाल की बेटी अपने महल्ले के एक लड़के के साथ भाग गई.

चमनलाल हांफताकांपता सा मेरे पास आया और यह खबर सुनाई तो उस के जख्म पर नमक छिड़कते हुए मैं बोला, ‘‘कैसे बाप हो? अपने बच्चों की जरा भी फिक्र नहीं करते. कुछ खोजखबर ली या नहीं? चलो साथ चल कर ढूंढ़ें. कम से कम थाने में तो गुमशुदगी की रिपोर्ट करा ही दें.’’

चमनलाल चुपचाप खड़ा मेरी ओर देखता रहा. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ.

मैं ने अपनी पत्नी से जब यह कहा तो वह रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘गरीब अपनी बेटी के हाथों में मेहंदी लगाए या उस के अरमानों की अर्थी उठाए…’’

मैं अपनी पत्नी का मुंह देखता रह गया, कुछ बोल नहीं पाया. जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई. लोग तरहतरह के लांछन लगाने लगे. जिस के मुंह में दांत भी नहीं थे, वह भी अफवाहें उड़ाने और चमनलाल को बदनाम कर के मजा लूट रहा था. किसी ने भी एक गरीब लाचार बाप के दर्द को समझने की कोशिश नहीं की. किसी ने आ कर हमदर्दी के दो शब्द नहीं बोले.

चमनलाल अंदर ही अंदर टूट गया था. उस ने चिंताओं के समंदर से निकलने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. गम कम होने के बजाय और बढ़ता गया. घर की सुखशांति छिन गई.

रोज शाम को वह नशे की हालत में घर आता और घर से चीखपुकार, गालीगलौज, लड़ाईझगड़ा शुरू हो जाता. चमनलाल जैसा हंसमुख आदमी अब पत्नी को पीटने भी लगा था. वह गंदीगंदी गालियां बकता था.

इधर, मिल में हड़ताल हो गई थी. दूसरे मजदूरों के साथसाथ चमनलाल की गृहस्थी का पत्ता धीरेधीरे पीला होने लगा था. आधी रात को चमनलाल ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मेरे बच्चे सो रहे थे.

मैं ने दरवाजा खोला और चमनलाल को बदहवास देखा तो घबरा गया.

‘‘क्या बात है चमनलाल?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

चमनलाल उस वक्त बिलकुल भी नशे में नहीं था. वह रोनी सूरत बना कर बोला, ‘‘मेरा बड़ा बेटा दूसरी जात की लड़की को ब्याह लाया है और उसे इसी घर में रखना चाहता है लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं रहने दे सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘उसे कहा नहीं कि दूसरी जगह ले कर रखे?’’

‘‘नहीं, वह इसी घर में रहना चाहता है. मेरी उस से बहुत देर तक तूतू मैंमैं हो चुकी है,’’ चमनलाल बोला.

मैं ने कहा, ‘‘रात में हंगामा खड़ा मत करो. अभी सो जाओ. सुबह देखेंगे.’’

अगली सुबह मैं जरा देर से उठा. बाहर भीड़ जमा थी. मैं हड़बड़ा कर उठा. बाहर का सीन बड़ा भयावह था. चमनलाल की पंखे से लटकी हुई लाश देख कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस के बाद से पुलिस का आनाजाना शुरू हो गया. कभी भी, किसी भी समय आती और लोगों से पूछताछ कर के लौट जाती. चमनलाल की मौत से लोग दुखी थे वहीं पुलिस से तंग आ गए थे.

मेरे मन में कई बुरे विचार करवट लेते रहे. क्या चमनलाल ने खुदकुशी की थी या किसी ने उस की… फिर… किस ने…? कई सवाल थे जिन्होंने मेरी नींद चुरा ली थी.

मेरी पत्नी और बच्चे डरेसहमे थे. पुलिस बारबार आती और एक ही सवाल दोहराती. हम लोग इस हरकत से परेशान हो गए थे.

इस बेजारी के चलते और बच्चों की जिद पर मैं उस महल्ले को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया और उस कड़वी यादों को भुलाने की कोशिश करने लगा.

लेकिन सालों बाद चमनलाल की याद और उस की रोनी सूरत आंखों के सामने घूमने लगी. उस का दर्द आज मुझे महसूस होने लगा, क्योंकि आज मेरी बड़ी बेटी पड़ोसी के अवारा लड़के के साथ… वह मेरी… नाक कटा गई थी. मैं खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा था. आज मैं चमनलाल की जगह खुद को पंखे से लटका हुआ देख रहा था.

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