खूबसूरत आतिया साबरी एक अजीब सजा से रूबरू हो रही थी. शौहरबीवी के रिश्तों के उस के जज्बातों पर वक्त के साथ बंदिश लग चुकी थी. यह रिश्ता अब ऐतबार के काबिल भी नहीं रह गया था. रिश्तों की डोर पूरी तरह टूट चुकी थी और जिंदगी गमजदा हो गई थी. लेकिन वह अपनी 2 मासूम बेटियों की मुसकराहटों व शरारतों से खुश हो कर गम को हलका करने की कोशिश करती थी.

21 अगस्त, 2017 की शाम को आतिया के चेहरे पर भले ही चिंता की लकीरें थीं, लेकिन आंखों में उम्मीदों के चिराग रोशन थे. उसे देख कर पिता मजहर हसन ने बेटी के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘क्यों परेशान है आतिया? तेरे इरादे नेक हैं और तू इंसाफ के लिए लड़ रही है. देखना तुम लोगों की मुहिम जरूर रंग लाएगी.’’

‘‘सोचती तो मैं भी यही हूं. आप तो जानते हैं, यह लड़ाई मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन बहनों के लिए भी लड़ रही हूं, जो 3 तलाक के बाद जिल्लत की जिंदगी जी रही हैं. मैं सोचती हूं कि किसी को भी तलाक का ऐसा दर्द न झेलना पड़े.’’

‘‘जो होगा, ठीक ही होगा. बस, उम्मीद का दामन थामे रहो.’’ मजहर ने बेटी को समझाया तो आतिया की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मुझे पूरी उम्मीद है अब्बू, अदालत औरतों के हक में फैसला दे कर इस 3 तलाक से निजात दिला देगी. कल का दिन शायद मेरे लिए खुशियां ले कर आए.’’ आतिया ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा.

अब्बू से थोड़ी देर बात कर के आतिया सोने के लिए अपने कमरे में चली गई. उस की 2 मासूम बेटियां सादिया व सना तब तक सो चुकी थीं.

आतिया उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर के नई मंडी कोतवाली के मोहल्ला आली की रहने वाली थी. वह तलाक पीडि़ता थी और उस ने इंसाफ के लिए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी. वह देश की उन 5 मुसलिम महिलाओं में से एक थी, जो 3 तलाक के खिलाफ जंग लड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थीं.

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उन के मामलों पर लंबी सुनवाई हुई थी और फैसले के लिए 22 अगस्त की तारीख तय की गई थी. 5 जजों की संविधान पीठ को मुसलिम धर्म में शरीयत कानून के तहत दिए जाने वाले 3 तलाक पर फैसला सुनाना था. इस तरह के तलाक के खिलाफ देशभर में मुसलिम महिलाओं की लगातार आवाजें उठ रही थीं.

अगले दिन अदालत ने अपना फैसला सुनाया तो आतिया और उस के परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 3 तलाक की 14 सौ साल पुरानी प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया था. जजों की संविधान पीठ ने इस प्रथा को कुरान-ए-पाक के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ और शरीयत कानून का उल्लंघन बताया.

आतिया को इसलिए और भी खुशी हुई थी, क्योंकि वह भी इस लड़ाई का एक हिस्सा थी. दरअसल, उस की जिंदगी दुख के पहाड़ से टकराई थी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस शख्स को ताउम्र उस का साथ देना था, वह एक दिन उसे अकेला छोड़ देगा. आतिया अपनी मां मुन्नी व 3 बड़े भाइयों की लाडली थी.

आतिया विवाह के लायक हुई तो उस के घर वालों को उस के विवाह की चिंता हुई. वे चाहते थे कि उस का विवाह किसी अच्छे घर में हो, ताकि उस की जिंदगी खुशियों से आबाद रहे. उस के पिता मजहर मूलरूप से हरिद्वार जिले के सुलतानपुर गांव के रहने वाले थे. करीब 25 साल पहले वह सहारनपुर आ कर बस गए थे. उन के नातेरिश्तेदार वहीं आसपास रहते थे.

मजहर मियां ने रिश्ते की तलाश भी वहीं शुरू कर दी. खोजबीन के बाद उन्होंने बेटी का रिश्ता हरिद्वार के खानपुर थाना क्षेत्र के गांव जसोदरपुर निवासी सईद अहमद के बेटे वाजिद अली के साथ तय कर दिया. सारी बातें तय होने के बाद 25 मार्च, 2012 को उन्होंने आतिया का निकाह वाजिद के साथ कर दिया.

निकाह के बाद आतिया की जिंदगी खुशियों से भर गई. उस ने अपने भविष्य को ले कर तमाम ख्वाब देखे थे. एक साल बाद उस ने बेटी को जन्म दिया. यह उस का पहला बच्चा था. इस से सभी को खुश होना चाहिए था, लेकिन आतिया को पहली बार अहसास हुआ कि बेटी के जन्म से न सिर्फ उस का पति, बल्कि ससुराल के अन्य लोग भी खुश नहीं थे. वे लोग बेटे के ख्वाहिशमंद थे.

आतिया ससुराल वालों के रवैये पर हैरान तो थी, लेकिन उस ने सोचा कि यह सब वक्ती बातें हैं, जो वक्त के साथ खत्म हो जाएंगी. एक साल कब बीत गया, पता ही नहीं चला. आतिया दोबारा गर्भवती हुई. इस बार उस के ससुराल वालों को भरोसा था कि बेटा ही होगा. एक दिन वाजिद ने कहा भी, ‘‘मुझे उम्मीद है कि इस बार तुम बेटे को ही जन्म दोगी?’’

उस की बात सुन कर आतिया को हैरानी हुई. उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम जानते हो वाजिद, यह सब इंसान के हाथ में नहीं होता. लड़का हो या लड़की मैं दोनों में कोई फर्क महसूस नहीं करती. बच्चे गृहस्थी के आंगन के फूल होते हैं.’’

उस की बात पर वाजिद ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी सोच चाहे जो भी हो, लेकिन मैं बेटे की ख्वाहिश रखता हूं.’’

आतिया बहस नहीं करना चाहती थी. लिहाजा वह खामोश हो गई. लेकिन वह मन ही मन परेशान थी कि यह किस तरह की सोच है, जो बेटियों से परहेज किया जाता है. अपने शौहर की सोच उसे अच्छी नहीं लगी.

सन 2015 में आतिया ने एक और बेटी को जन्म दिया. इस पर उस की ससुराल में जैसे तूफान आ गया. कोई भी इस बात से खुश नहीं था. न उस का शौहर और न उस के घर वाले. आतिया ने सोचा कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह उस की भूल थी. सभी लोग उसे ताना मारने लगे. उन के तेवर भी बदल चुके थे.

इस के बाद ससुराल वाले दहेज को ले कर भी आतिया को ताना देने लगे थे. आतिया को सब से बड़ा झटका उस दिन लगा, जब वाजिद ने उस से तल्ख लहजे में कहा, ‘‘बेटी को जन्म दे कर तूने मेरे कंधे झुका दिए हैं.’’

उस की बात पर आतिया को गुस्सा आ गया. उस ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप? कहीं अपने बच्चों के जन्म से भी किसी के कंधे झुकते हैं? आप को खुश होना चाहिए कि 2 बेटियों के पिता हैं. हम इन्हें पढ़ालिखा कर काबिल बनाएंगे.’’

‘‘यह सब ख्याली बातें हैं आतिया, तुम मेरी बात नहीं समझोगी.’’

‘‘मैं आप की सारी बातें समझती हूं.’’ आतिया ने भी तल्खी से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें जो सोचना है, सोचती रहो. लेकिन सच यह है कि सिर बेटों से ही ऊंचा होता है.’’

आतिया की सोच और भावनाओं का किसी पर कोई असर नहीं हुआ. फलस्वरूप वक्त के साथ घर में कलह बढ़ती गई. पति की तानेबाजियों ने तल्खियों को और भी बढ़ा दिया. छोटीछोटी बातों पर कई बार विवाद बढ़ता तो आतिया के साथ मारपीट भी हो जाती. पानी सिर से ऊपर जाने लगा था.

आतिया ने ये बातें अपने मायके वालों को बताईं तो उन्होंने उसे सब्र से काम लेने की सलाह दी. लेकिन जब यह आए दिन की बात हो गई तो आतिया के मातापिता ने जा कर वाजिद व उस के घर वालों को समझाने की कोशिश की. इस से कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जल्दी ही जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर आ गई.

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धीरेधीरे आतिया की परेशानियों का सिलसिला बढ़ता गया. 12 नवंबर, 2015 को आतिया के साथ हद दर्जे तक मारपीट की गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे उस के हाल पर छोड़ दिया गया. उसे यहां तक कह दिया गया कि वह चाहे तो ससुराल छोड़ कर जा सकती है.

अब आतिया को अपनी जान का खतरा महसूस होने लगा था. उसे जहर दे कर मारने की साजिश की जा रही थी. इसलिए अगले दिन वह दोनों बेटियों के साथ मायके चली आई. उस की हालत देख कर घर में सभी को धक्का लगा. आतिया ने आपबीती सुनाई तो उन्हें लगा कि बेटी जिंदा बच गई, यही बड़ी बात है.

आतिया को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वह मानसिक व शारीरिक कमजोरी से उबर आई तो उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. आतिया के साथ ज्यादती हुई थी, इसलिए उस ने पुलिस में जाने का मन बना लिया. ऐसा ही उस ने किया भी. उस ने स्थानीय थाने में अपनी ससुराल वालों के खिलाफ मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दे दी.

चंद रोज ही बीते थे कि आतिया की जिंदगी में भूचाल आ गया. वाजिद ने 10 रुपए के स्टांप पेपर पर लिख कर तलाकनामा भिजवा दिया. तलाक की तारीख 2 नवंबर लिखी गई थी. दरअसल, ससुराल पक्ष के लोगों को पता चल चुका था कि आतिया पुलिस में शिकायत दर्ज करा रही है, इसलिए उन्होंने चालाकी बरतते हुए तारीख पहले की लिखी थी.

आतिया को उम्मीद नहीं थी कि नौबत यहां तक आ जाएगी. वह महिलाओं को तलाक देने की मुसलिम धर्म की इस परंपरा के खिलाफ थी. वाजिद ने बेटियां पैदा होने और दहेज के लिए उसे सताया और फिर छुटकारा पाने के लिए एकतरफा तलाक भी भेज दिया.

धार्मिक कानून ऐसे तलाक को मान्यता देता था, इसलिए आतिया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी. जबकि वह इस तरह की तलाक प्रक्रिया के खिलाफ थी. मामूली बातों पर दिए जाने वाले तलाक के किस्से वह सुनती आई थी. सारे हक मर्द के पास थे. वह जब चाहे, बीवी को अपनी जिंदगी से निकाल सकता था.

आतिया ने सोच लिया था कि वह खामोश नहीं बैठेगी, बल्कि अपने उत्पीड़न और तलाक के खिलाफ आवाज उठाएगी. उधर पुलिस ने उस की तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया. दिसंबर महीने में पुलिस ने आतिया के पति व ससुर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. आतिया ने दोनों मासूम बेटियों में खुशियां ढूंढीं और तलाक को चुनौती देने की ठान ली.

आतिया का एक भाई रिजवान सामाजिक कार्यकर्ता था और फरीदी विकास समिति नामक संस्था चलाता था. उस ने भी इस लड़ाई में आतिया का साथ दिया. आतिया तलाक के खिलाफ थी, यह बात नातेरिश्तेदारों और समाज के लोगों को पता चली तो उन्होंने उसे मजहब का वास्ता दे कर समझाया. लेकिन आतिया उन की बात मानने को तैयार नहीं थी.

आतिया के मातापिता व घर वालों को भी लोगों ने समझाने की कोशिश की. लेकिन उन की नजर में आतिया कुछ गलत नहीं कर रही थी. उस की जिंदगी जिस तरह दोराहे पर आ गई थी, उस से वह भी आहत थे और इंसाफ चाहते थे.

आतिया ने ऐसी महिलाओं से मिलना शुरू किया, जो तलाक पीडि़ता थीं. उन की कहानियां उसे विचलित कर जाती थीं. उस ने मुसलिमों के बड़े धार्मिक केंद्र दारुल उलूम देवबंद में पति के तलाक के खिलाफ अर्जी लगाई. लेकिन उन्होंने तलाक को जायज ठहराया और धार्मिक कानून का हवाला भी दिया.

दरअसल, वाजिद वहां से अपने दिए तलाक के बारे में पहले ही फतवा ले चुका था. इस के बावजूद आतिया यह सब मानने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उसे धोखे से तलाक दिया गया था. सारे हक एकतरफा थे यानी उस की रजामंदी के कोई मायने नहीं थे.

खास बात यह थी कि वाजिद इस बीच दूसरा निकाह भी कर चुका था. जब दारुल उलूम देवबंद से भी उसे निराशा मिली तो उस ने समाज से टकराते हुए 3 तलाक की परंपरा को बदलने के लिए न्यायालय की दहलीज तक पहुंचाने का मंसूबा बना लिया. 3 तलाक का मुद्दा देश के कई हिस्सों में बहस को जन्म दे रहा था और मुसलिम महिलाएं इस परंपरा के खिलाफ खड़ी हो रही थीं.

आतिया ने दिसंबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी, जिसे स्वीकार कर लिया गया. 3 तलाक एक बड़ा मुद्दा बना ही हुआ था और कुछ याचिकाएं पहले से ही अदालत में थीं. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब मुसलिम महिलाओं ने 3 तलाक के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

सुनवाई पर आतिया अदालत जाती रही. 3 तलाक का मामला चूंकि संवेदनशील और धार्मिक था, इसलिए सुनवाई के लिए अलगअलग धर्म के 5 जजों का समूह बना कर उन्हें 3 तलाक की सुनवाई और फैसले का जिम्मा दिया गया. इस के बाद ही अदालत ने सभी मामलों को जोड़ कर एक साथ सुनवाई कर के 22 अगस्त को फैसला सुना दिया.

आतिया कहती है कि अदालत के फैसले के बाद मुसलिम महिलाओं के लिए आजादी के दरवाजे खुल गए हैं. मामूली बातों पर भी तलाक को हथियार बना कर औरत से छुटकारा पाने की मनमानी वाली मानसिकता से उन्हें निजात मिलेगी और उत्पीड़न बंद होगा.

आतिया अपने पिता के घर रह रही है. वह अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आगे बढ़ाना चाहती हैं. उस के पिता कहते हैं, ‘मैं ने बेटी के दर्द को करीब से महसूस किया है. समाज में किसी और बेटी के साथ नाइंसाफी न हो, इस लड़ाई का यही मकसद था.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही तलाक

झारखंड के हजारीबाग में एक गांव है चितरपुर. 8 जून, 2012 को इस गांव की फातिमा सुरैया का निकाह बादमगांव के कैफी आलम से हुआ था.

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फातिमा का कहना है कि निकाह के समय 2 लाख रुपए नकद, 6 लाख रुपए के जेवरात और 2 लाख रुपए का अन्य सामान दहेज में दिया गया था. शादी के एक साल बाद फातिमा एक बेटी की मां बनी. उस के जन्म के 6 माह बाद फातिमा से कहा गया कि वह अपने मायके से 5 लाख रुपए लाए, उसे जमीन खरीदनी है.

वह पैसा लाई भी, लेकिन कैफी आलम ने जमीन अपने नाम खरीद ली. इस के कुछ दिनों बाद वह फातिमा के मायके वालों से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. पैसे नहीं मिले तो ससुराल वाले सुरैया को प्रताडि़त करने लगे. सुरैया फिर भी सहती रही.

23 अगस्त को सब कुछ ठीक था. सुबह को सुरैया ने पति के साथ नाश्ता भी किया. लेकिन शाम को वह घर आया तो अचानक तीन बार तलाक कह कर उसे बेटे के साथ घर से निकाल दिया, साथ ही कहा भी, ‘थाना कोर्टकचहरी जहां भी जाना हो, जाओ.’

सुरैया अपने मायके चली गई. मायके वालों ने कैफी और उस के घर वालों को समझाने की काफी कोशिश की. लेकिन बात नहीं बनी. वे लोग रांची के अंजुमन कमेटी में गए, लेकिन कमेटी ने 20 दिनों बाद निर्णय लेने की बात कही.

आखिर सुरैया ने थाना कड़कागांव में अपने ससुर फकरे आलम, सास रोशन परवीन, ननद सुबैया आलम और ननदोई परवेज मलिक के खिलाफ दहेज के लिए प्रताडि़त करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. फैसला तो एक दिन पहले ही आ गया था. अब शायद सुरैया को राहत मिले.

3 तलाक के चक्कर में जान तक लगा दी दांव पर

जिला बरेली के आंवला क्षेत्र के गांव कुड्डा की रहने वाली 3 तलाक पीडि़ता अजरुन्निसा जिल्लत की जिंदगी से इतनी तंग आ गई थी कि 12 मई, 2017 को उस ने जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर आत्मदाह की कोशिश की. उस ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लिया था, गनीमत यह रही कि आग लगाने से पहले वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे बचा लिया.

घटना से 4 महीने पहले ही अजरुन्निसा का निकाह बरेली के सीबीगंज निवासी तौफीक से हुआ था. शादी के बाद से तौफीक उस पर गलत काम के लिए दबाव डाल रहा था. वह नहीं मानी तो तौफीक उस के साथ मारपीट करने लगा. इस से भी उस का मन नहीं भरा तो शादी के 2 महीने बाद उस ने 3 बार तलाक कह कर अजरुन्निसा को घर से निकाल दिया.

इस के बाद अजरुन्निसा ने न्याय के लिए थाने से ले कर अधिकारियों तक के यहां गुहार लगाई. धर्म के ठेकेदारों के पास भी गई, पर हर जगह निराशा ही मिली. अंतत: उस ने आत्मदाह करने का फैसला किया. बहरहाल, वह बच तो गई, पर उसे न्याय कहीं से नहीं मिला. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी वह न्याय की मुंतजिर है.

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