झारखंड में आदिवासी बहुल जिला साहिबगंज के बोरियो थाना क्षेत्र  में एक बेला टोला है. देश की राजधानी से 1,384 किलोमीटर दूर यहां के अदिवासी समुदाय के लोग बेहद खुश थे कि उन के समाज की एक महिला अब भारत की राष्ट्रपति हैं. स्कूलकालेज जाने वाली छात्राओं में उत्साह और उमंग का माहौल बना हुआ था. आए दिन वे अपने बेहतर भविष्य की चर्चा करती थीं.

उन्हीं में एक 22 साल की युवती रूबिका पहाड़न थी. वह ईसाई थी, लेकिन बोरियो थाना क्षेत्र के ही फाजिल मोमिन टोला में अपनी मरजी से मुसलिम समाज के दिलदार अंसारी से निकाह कर अपनी दुनिया में खोई हुई थी. खुश थी. रूबिका एक संयुक्त परिवार की बहू थी. उस के गरीब मातापिता और भाईबहन भी खुश थे कि उस का एक बड़े परिवार से नाता जुड़ गया है.

वे बेहद कमजोर जनजातीय समूह पार्टिक्युलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप यानी पीवीटीजी से आते हैं. हालांकि रूबिका मोहब्बत के जाल में फंस कर जिस परिवार की बहू बनी थी, वह भी एक साधारण मुसलिम परिवार ही था, जिन का पुश्तैनी काम कपड़ा बुनने का था, जो सदियों से होता आया है.

किंतु अचानक उन की खुशियों को तब ग्रहण लग गया, जब 17 दिसंबर 2022 की शाम को रूबिका पहाड़न का टुकड़ों में कटा हुआ शव मोमिन टोला स्थित एक पुराने और बंद पड़े मकान में मिला. उस की लाश को दरजनों टुकड़ों में काटा गया था. लाश के टुकड़ों को देख कर कोई भी हत्यारों की हैवानियत का अंदाजा सहज ही लगा सकता था.

रूबिका की बोटीबोटी करने वालों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं. उस के शव की पहचान न हो सके, इस के लिए आरोपियों ने उस की खाल तक उतार दी थी.

शव के बरामद हुए 50 टुकड़ों में दाएं पैर के अंगूठे, कपड़े आदि से ही उस की पहचान हुई. शव के टुकड़े इलैक्ट्रिक कटर जैसे किसी औजार से किए गए जान पड़ते थे. रूबिका का सिर 2 हफ्ते बाद मोमिन टोला के निकट तालाब के पास से बरामद हुआ था. पुलिस ने सभी टुकड़ों की डीएनए जांच के लिए रूबिका की मां और पिता के सैंपल ले लिए थे.

रूबिका की बोटियों में बंटी लाश जब ताबूत में भर कर उस के मातापिता के घर लाई गई थी, तब हर कोई फफकफफक कर रो पड़ा था. मां विलाप करती हुई बोले जा रही थी कि आखिरी विदाई के पहले कोई बेटी का चेहरा तो दिखा दो. पर दरिंदों ने उस का चेहरा तो क्या, शरीर का कोई भी अंग साबूत नहीं छोड़ा था.

रूबिका की लाश के अवशेष को पैतृक गांव के पास गोंडा पहाड़ में गम और गुस्से के बीच दफना दिया गया था. अंतिम संस्कार के वक्त साहिबगंज के उपायुक्त रामनिवास यादव, एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, प्रखंड विकास पदाधिकारी टूटू दिलीप सहित कई अफसर मौजूद थे.

उसकी हत्या का आरोप पति दिलदार अंसारी और उस के परिवार के लोगों पर लगाया गया. पुलिस ने दिलदार अंसारी, उस के पिता मोहम्मद मुस्तकीम अंसारी, मां मरियम खातून, पहली पत्नी गुलेरा अंसारी, भाई अमीर अंसारी, महताब अंसारी, बहन सरेजा खातून सहित 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस वारदात का मास्टरमाइंड दिलदार का मामा मोइनुल अंसारी बताया गया, जो पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

बोरिया पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 201 (किसी अपराध के सबूतों को गायब करना), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 34 सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए आपराधिक कृत्य) के तहत गिरफ्तारियां की थीं.

बेला टोला गांव से करीब 12 किलोमीटर दूर गोदा पहाड़ी के एक छोटे से गांव में रूबिका का परिवार रहता है. वहां के कम से कम 30 अन्य परिवार उस के लिए इंसाफ और मुआवजे की मांग कर रहे थे. वे आक्रोश में थे, क्योंकि इस से पहले अगस्त 2022 में भी दुमका जिले के एक मुसलिम युवक द्वारा प्यार के प्रस्ताव को हिंदू छात्रा द्वारा ठुकराने पर कथित तौर पर उसे आग के हवाले कर दिया गया था.

बेला टोला से गोदा पहाड़ी पर स्थित रूबिका को घर तक जाने में 3 किलोमीटर तक चट्टानी पहाड़ी इलाके की चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी. यह सामान्य रास्ता नहीं है. उस पहाड़ी से नीचे 12 किलोमीटर दूर बोरिया बाजार है. यह इलाका गुलजार रहता है. यहां लोग जरूरत का सामान खरीदने आते हैं. यह नई उम्र के लड़के और लड़कियों के लिए यह मिलनेजुलने का एक अड्डा भी है.

इस जगह पर ज्यादातर लड़कियां दूसरे लड़कों से मिलती हैं और फिर उन को दिल दे बैठती हैं. नईनई प्रेम कहानियां यहीं पनपती हैं. उन में कुछ सफल हो जाती हैं तो कुछ मामलों में प्रेमी युगल को असफलता भी मिलती है.

बीते साल एक दिन रूबिका अपने लिए कुछ जरूरी सामान खरीदने के लिए उसी बाजार में गई थी. वह जब कपड़े की दुकान पर थी, तब वहां उसके अलावा और कोई नहीं था. अपने लिए एक समीजसलवार का कपड़ा पसंद कर रही थी. दुकानदार कई सेट दिखा चुका था. उस के रंगों को ले कर रूबिका दुविधा में थी.

‘‘भैया, इस में कुछ समझ नहीं आ रहा, पन्नी में है न.’’ रूबिका असमंजस से बोली.

‘‘तो मैं तुम्हें पन्नी खोल कर दिखाऊं? …और नहीं पसंद आया तो उसे दोबारा कौन पैक करेगा? दिखता नहीं ऊपर दीपिका का फोटो लगा है,’’ दुकानदार झिड़कते हुए बोला.

‘‘अरे भैया, फोटो से क्या होता है? कपड़ा भी देखना है न,’’ रूबिका ने जिरह की.

‘‘नहींनहीं, इस का पैक नहीं खोलूंगा… लेना है तो सामने टंगा है उस में से चुन लो.’’

‘‘वो पसंद नहीं आ रहा है, इसी को खोल कर दिखा दो न.’’ रूबिका दुकानदार से मिन्नत करने लगी, लेकिन दुकानदार उस के सामने रखे सभी पैकेट को समेटने लगा. तभी एक युवक वहां आया और उन में से एक पैकेट खोलने लगा.

‘‘अरे, यह क्या करता है भाई, तू कौन है? इसे बगैर पूछे क्यों खोल रहा है?’’ दुकानदार उस से पैकेट झपटता हुआ बोला.

‘‘मैं भी इसी की तरह ग्राहक हूं. बगैर पन्नी से कपड़ा बाहर निकाले कैसे खरीदूंगा, भीतर खराब निकला तो?’’ बोलते हुए युवक ने दुकानदार से पैकट ले कर फटाफट खोल लिया और कपड़े को झट फैला दिया. पैकेट खोलने का तरीका देखती हुई पास ही सकुचाई हुई रूबिका भी अपनी पसंद के कपड़े का पैकेट खोलने लगी.

रूबिका को पैकेट खोलने से दुकानदार रोक नहीं पाया, कारण उस में युवक ने उस की मदद कर दी. दोनों अपनीअपनी पसंद के सलवारसूट पसंद करने लगे. उन्होंने बारीबारी से 3 पैकेट खोल दिए. रूबिका जब कपड़े को अपने कंधे पर रख कर देखने लगी, तब युवक सामने टंगे अंडरगारमेंट्स की ओर इशारा करता हुआ बोला, ‘‘अरे भाई, वह हरे रंग वाला दिखाना. उस में पूरा सेट है क्या?’’

‘‘अब देख उसे मत खोल देना. यहां लेडीज ग्राहक हैं.’’

‘‘अच्छा, चलो ठीक है.’’ युवक बोला.

‘‘तुम्हें अभी तक कोई कपड़ा पसंद नहीं आया?’’ दुकानदार ने रूबिका को टोका.

‘‘अरे यह नीले रंग वाला तुम ले लो, कपड़ा अच्छा है. रंग भी पक्का है.’’ युवक बोला.

‘‘हांहां, यही ले लो. 10 रुपए कम लगा दूंगा.’’ दुकानदार बोला.

‘‘ठीक है दे दो.’’ रूबिका बोली और पर्स में से पैसे गिनने लगी और पूरे छुट्टे पैसे मिला कर उसे दे दिए. लेकिन दुकानदार ने उस के एक रुपए के छोटे सिक्के लेने से मना कर दिया. कहा, ‘‘अरे ये छोटे वाले मैं नहीं लूंगा, चलते नहीं हैं.’’

इस बात पर युवक दुकानदार से बहस करने लगा, ‘‘क्यों नहीं चलते, यह भी तो सरकार के हैं.’’

खैर, किसी तरह से सिक्के का मामला निपटा. उस युवक ने भी कुछ कपड़े खरीदे.

रूबिका जब कपड़े ले कर जाने लगी, तब युवक ने उस से उस के गांव का नाम पूछा. रूबिका द्वारा गांव का नाम बताते ही वह चहक उठा, ‘‘अरे मैं भी तो वहीं पास के बेल टोला में रहता हूं. मुझे कभी नहीं देखा?’’

‘‘कैसे देखती, तुम्हारे आनेजाने का रास्ता अलग है. हमें पहाड़ी चढ़नी होती है.’’

‘‘अच्छा चलो, मेरे पास बाइक है. तुम्हें छोड़ता हुआ अपने घर चला जाऊंगा.’’ युवक बोला, ‘‘वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘रूबिका.’’

‘‘ईसाई हो?’’

‘‘नहीं आदिवासी. चर्च जाती हूं. वहीं पढ़ती हूं.’’ रूबिका बोली.

‘‘तुम तो हाजिरजवाब हो. मेरा नाम दिलदार है और दिलदार हूं भी. किसी की समस्या में टांग अड़ा देता हूं. मदद करना मेरे खून में है. जैसे आज मैं ने की तुम्हारे साथ कपड़े खरीदने में.’’ युवक बोला.

इस तरह से दिलदार और रूबिका की पहली जानपहचान जल्द ही दोस्ती में बदल गई. वे अकसर मिलने लगे. दिलदार उस पर पैसे भी खर्च भी करने लगा. उन के बीच कब प्यार हो गया, उन्हें भी पता नहीं चला.

लेकिन दिलदार और रूबिका के बीच का रिश्ता बदकिस्मती भरा था. कारण, वह न केवल शादीशुदा था, बल्कि एक बेटे का बाप भी था. उन के बीच 15 साल की उम्र का भी अंतर था. वैसे रूबिका की भी 5 साल पहले शादी हो चुकी थी और उस की भी एक बेटी थी.

जब रूबिका ने अपने मातापिता और बड़ी बहन शीला से दिलदार से शादी करने का जिक्र किया, तब घर में हंगामा खड़ा हो गया. ऐसा ही हाल दिलदार के घर में हुआ. उस की मां बिफरती हुई बोली, ‘‘अपनी जात में लड़की मर गई है, जो आदिवासी से शादी करेगा. और पहली बीवी में क्या कमी है?’’

दोनों के घर वालों को किसी भी सूरत में उन का रिश्ता पसंद नहीं था. वे उन के घोर विरोधी बन गए थे. जब रूबिका ने अपने परिवार का विरोध जताते हुए अपना फैसला किया कि वह अपने गांव का घर छोड़ कर बेल टोला में रहने चली जाएगी, तब परिवार वाले उस की बात मानने को तैयार हो गया.

उधर दिलदार ने भी अपने परिवार को धमकी दी कि उस की रूबिका से शादी नहीं हुई तो वह बीवीबच्चों को छोड़ कर दूसरे किसी बड़े शहर में चला जाएगा.

और फिर उन की जिद के आगे दोनों के घर वालों को झुकना पड़ा. दिलदार के साथ रूबिका का नया रिश्ता बन गया. वह अपनी ससुराल चली गई, लेकिन परिवार में उसे चाहने वाला दिलदार के अलावा और कोई नहीं था. जब कभी ससुराल में कोई कुछ कहता, तब वह वही कपड़े पहन लेती, जो दिलदार ने पहली मुलाकात में पसंद किए थे.

दिलदार भी उसे नीली कुरती में देख कर समझ जाता था कि घर के किसी सदस्य ने जरूर उस के दिल को ठेस पहुंचाई है.

जल्द ही दिलदार के भरेपूरे परिवार में रूबिका एकदम अकेली पड़ गई थी. यहां तक कि उसे ले कर अंसारी समुदाय के लोग भी उस पर दबेछिपे फब्तियां कस देते थे कि वह उस के समाज की नहीं है…हिंदू भी नहीं है, ईसाई है. दिलदार को छोड़ कर सभी ने उन के रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया था.

नतीजा यह हुआ कि दिलदार ने रूबिका को मातापिता और पत्नी के साथ अपने घर में नहीं रहने दिया. इस के बजाय, उस ने उसे उसी गांव में एक कमरे की एक छोटी सी झोपड़ी में रख लिया.

इसे ले कर रूबिका के घर वाले नाखुश थे कि दिलदार उन की बेटी की इज्जत नहीं कर रहा. दिसंबर, 2022 की शुरुआत में उन्होंने बोरिया पुलिस से संपर्क करते हुए हस्तक्षेप की मांग की थी.

पुलिस ने दिलदार और उस के घर वालों पर दबाव बनाया और उन के बीच समझौता करवा दिया.

उसके बाद दिलदार रूबिका को अपने घर ले गया. इस के कुछ ही दिन बाद पुलिस ने उस के शरीर के टुकड़े बरामद किए.

रूबिका के घर वालों को सब से पहले दिलदार ने ही इस बारे में सूचना दी थी कि वह गायब है. उस की इस सूचना के आधार पर ही पुलिस ने तलाशी अभियान शुरू किया था. आखिरकार 17 दिसंबर, 2022 को एक गुप्त सूचना मिली. फिर उस ने एक आंगनबाड़ी के पीछे से एक अंग बरामद किया. इस की पहचान दिलदार ने ही की.

रूबिका की आखिरी बार अपनी बहन से 16 दिसंबर, 2022 की सुबह बात हुई थी. उन्होंने अपनी मां की तबीयत के बारे में विस्तार से बातें की थीं. रूबिका की लाश का पहला टुकड़ा मिलने के बाद 48 घंटे से अधिक समय तक पहाड़ी इलाकों में तलाशी का अभियान चलाया गया. करीब 100 मीटर दूर स्थित उस मकान में ज्यादातर टुकड़े मिले, जो पिछले 2-3 साल से खाली पड़ा था.

लाश की शिनाख्त की जाने लगी. उसी रोज सिर को छोड़ कर शरीर के सभी हिस्सों को बरामद कर लिया गया. रूबिका की बहन शीला पहाड़न ने तुरंत पहचान लिया कि जबड़े के हिस्से, अंग और बड़े करीने से नेल पौलिश लगे हाथ के नाखून उस के ही थे. यहां तक कि वही नीली कुरती देख कर शीला ने रूबिका की लाश होने की बात स्वीकार कर ली.

पहचान से बचने के लिए रूबिका के शरीर को बुरी तरह क्षतविक्षत कर दिया गया था. एक पुलिस अधिकारी के अनुसार बाद में सिर मिला जरूर, लेकिन उस का चेहरा कुचला हुआ था. केवल जबड़ा और बालों का एक गुच्छा पाया गया.

लगभग 4 दरजन टुकड़ों में मिली रूबिका की लाश देख कर प्रदेश के लोगों में गुस्से का उफान आ गया. लोग विरोध प्रदर्शन कर आरोपी को फांसी की सजा दिए जाने की मांग कर रहे थे. लोगों का आक्रोश देख कर पुलिसप्रशासन के भी हाथपांव फूल गए थे.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने दिलदार समेत उस के परिवार के 10 सदस्यों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन इस हत्या में उन की भूमिका पर कोई विशेष बात पता नहीं चल पाई थी.

दिलदार ने रूबिका के परिवार को उस के लापता होने की सूचना दी थी. उस ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि जिस दिन रूबिका की हत्या हुई, उस दिन वह काम के सिलसिले में पश्चिम बंगाल में था.

इस वारदात की तहकीकात में पुलिस ने दिलदार की मां पर रूबिका की हत्या की साजिश रचने और उस के मामा मोइनुल अंसारी द्वारा उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े करने का संदेह जताया है.

मामले में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार, दिलदार की मां मरियम, रूबिका को बोरिया पुलिस थाने से 500 मीटर दूर स्थित फाजिल बस्ती में अपने भाई मोइनुल अंसारी के घर ले गई थी. फिर वहीं पर उस की हत्या की गई थी. मरियम ने कथित तौर पर लाश को ठिकाने लगाने के लिए मोइनुल को 20 हजार रुपए दिए थे.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया.     द्य

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