जिस धार्मिक तालीबानी खतरे का डर था वह अपने घिनौने रूप में सामने है. पिछले कुछ सालों से फैलाया जा रहा नफरत का बीज अब फल बन कर गिरने लगा है. इस के नतीजे में वह घिनौना चेहरा सामने खड़ा है जिस को देख पाना किसी भी इनसान के लिए मुश्किल है.

21वीं सदी के भारत में 69 सालों के लोकतंत्र का अगर यही हासिल है तो उस का पूरा बनने पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. राजस्थान के राजसमंद से सामने आई  एक वारदात और उस की आग की लपटों में कोई एक बेबस इनसान नहीं, बल्कि देश का पूरा संविधान व लोकतंत्र जल रहा है.

यह इनसानियत को शर्मसार करने वाली वह तसवीर है, जो बताती है कि अब कुछ बचा नहीं है. अगर बचे हैं तो सिर्फ अपराधी गिरोह और उन का नंगा नाच जो धर्म का वेश धर कर पूरी इनसानियत को लील जाने के लिए तैयार हैं.

राजसमंद की एक वारदात की तसवीरें और वीडियो वायरल हुए. जिहाद का बदला लेने के लिए एक मुसलमान मजदूर की वहशी तरीके से हत्या कर उस की लाश को जला दिया गया.

खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मालदा का एक मजदूर राजसमंद में अपने परिवार के साथ मजदूरी करता था. हत्या करने वाले शख्स ने उसे काम देने के बहाने अपने पास बुलाया. हत्यारे का नाम शंभुलाल रैगर है. उस ने 50 साल के एक अधेड़ आदमी, जिस का नाम मोहम्मद अफराजुल बता रहे हैं, की पहले कुल्हाड़ी और तलवार से बेरहमी से हत्या की, फिर उस की लाश को जला दिया गया.

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इस पूरी वारदात का शंभुलाल ने अपने एक दोस्त की मदद से न केवल वीडियो बनाया, बल्कि उस ने हत्या और लाश को जलाने की बात को भी माना.

इस वीडियो में दिखा कि अफराजुल आगे चल रहे थे और उन के पीछे शंभुलाल था. मौका पाते ही शंभुलाल ने पीछे से अफराजुल पर हमला कर दिया. इस हमले में उन पर 1-2 नहीं बल्कि कई बार वार किया गया. उस के बाद शंभुलाल ने अपनी मोटरसाइकिल से तलवार निकाल ली और अफराजुल का गला काट दिया.

इस के पहले अफराजुल लगातार उस से अपनी जान की भीख मांग रहे थे, लेकिन शंभुलाल पर इस का कोई असर नहीं पड़ता दिखा. फिर शंभुलाल ने अफराजुल को आग के हवाले कर दिया.

वीडियो में शंभुलाल ने हत्या की बात कबूल की है. उस ने कहा कि यह तुम्हारी हालत होगी. ये हमारे देश में लव जिहाद करते हैं. अगर ऐसा करोगे तो हर जिहादी की हालत ऐसी ही होगी. जिहाद खत्म कर दो.

इस के अलावा एक दूसरे वायरल वीडियो में एक शख्स ने कहा कि यह हत्या हिंदुत्व को बचाने के लिए की गई है. उस शख्स ने कहा कि मेवाड़ को बचाना है. मेवाड़ को एक हो कर इसलामिक जिहाद को यहां से निकालना है, इसलिए मेवाड़ के सभी भाईबहनो, मैं ने जो किया है चाहे अच्छा है या गलत है, लेकिन मुझे जो लगा मैं ने किया.

बोया बीज बबूल का…

तमाम तरह के धर्म अब इनसानियत के दुश्मन बन चुके हैं. इसलाम के आदेश के मुताबिक मुसलमानों ने तलवारें उठाईं. आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान में रोज चरमपंथियों द्वारा इनसानियत का कत्ल किया जा रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी यों ही नहीं बताया है. यरुशलम को ले कर जो लड़ाइयां हुई थीं उन को दोबारा जिंदा किया जा रहा है. धर्म के नाम पर इनसानियत की हत्या करने की साजिश रची जा रही है और यह भूख सिर्फ और सिर्फ सब से ताकतवर दिखने व पूंजी लूटने की है. जो खुद अपनेआप को नहीं बचा पाया, उस के मानने वाले दावा तो दुनिया को बचाने का काम कर रहे हैं लेकिन बहुत खूनखराबा सदियों तक यीशु के इन्हीं मानने वालों ने किया है.

भारत की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं रही है. वर्ण भेद के आधार पर ब्राह्मण धर्म की सोच भी इनसानियत को कमजोर करने वाली रही है. ब्राह्मण धर्म के जोरजुल्म की मारी जनता ने बगावत कर बौद्ध परंपरा अपना ली तो पुष्यमित्र शुंग द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बौद्धों पर जुल्म करने का सिलसिला चल पड़ा था.

जब भी ब्राह्मण धर्म कमजोर हुआ तो इस देश में शांति रही और जब भी ब्राह्मण धर्म मजबूत हुआ, बहुसंख्यक जनता पर जुल्म ढहाए गए. इतिहास इन के जुल्मों की कथाओं से भरा पड़ा है. तेल की कड़ाहियों में बौद्धों को जिंदा डाल कर मारा गया था. दलितों को कभी इनसान ही नहीं माना गया था. आज इन के 33 करोड़ देवीदेवता धर्म बचाने में नाकाम हो गए हैं, लेकिन अनोखी बात देखो कि एक अंबेडकर का लिखा ग्रंथ इस देश को चला रहा है. यह इन लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता है.

आजादी के आंदोलन के समय भी धर्मांधता के कीचड़ में पूरा का पूरा आंदोलन फंसा हुआ था. दलितों को अंगरेजी राज में खुली हवा में सांस लेने की छूट मिली थी. वे किसी भी हालत में इसे खोना नहीं चाहते थे और उन की लड़ाई की अगुआई अंबेडकर कर रहे थे.

अंगरेजों की विदाई के बाद ब्राह्मणवादी पूरी तरह सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे इसलिए तमाम हिंदू संगठन इस के जुगाड़ में लग गए थे. मुसलिमों की अगुआई जिन्ना जैसे लोग कर रहे थे. हक की आड़ में ब्राह्मणों व मुसलमानों ने अपनेअपने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करा दिया था. बेचारे दलित, किसान और आदिवासी कहां जाते?

दलितों के लिए तो अंबेडकर ने संविधान में पुख्ता इंतजाम किए लेकिन तालीम की कमी में वे ज्यादा समझ नहीं पाए. किसान तो बेचारे सदियों से अनाथ ही थे और आजादी के बाद भी अनाथ से ही हो कर रह गए.

अब राजसमंद कांड में सीधेतौर पर तो कोई हिंदूवादी संगठन जिम्मेदार नहीं है लेकिन इन हिंदूवादी संगठनों द्वारा 90 साल से की जा रही मेहनत का नतीजा इसे जरूर माना जा सकता है.

बाबरी मसजिद ढहाने के बाद इस में एकाएक तेजी आई थी जिस में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने भी खूब सहयोग दिया.

जब धर्म के नाम पर नफरत के बीज बोए जाएंगे तो उन्हीं के नतीजे दरिंदों की इस तरह की दरिंदगी के रूप में ही सामने आएंगे. इस वारदात के समर्थक दूसरी वारदातों के उदाहरण दे कर कट्टर सोच को ढो रहे हैं.

धर्म के नाम पर जो हत्या, मारपीट व भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं उन के कुसूरवारों को अदालत जाना भी नहीं पड़ रहा. पर जो उन की पोलपट्टी खोलते हैं उन पर मुकदमे दर्ज हो जाते हैं. धर्म इनसानियत का हत्यारा है, पर इस पर लगाम लगाने की कभी किसी में हिम्मत नहीं है.

गहरी साजिश की बूराजसमंद में अफराजुल के परिवार ने हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग की है. उन्होंने कहा है कि जिन लोगों ने उन की जानवरों की तरह हत्या की है और फिर उन की वीडियो को पूरी दुनिया में दिखाया है उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.

अफराजुल की बीवी गुलबहार ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के लिए फांसी की सजा चाहती हूं जिन्होंने मेरे पति की इतने घिनौने तरीके से हत्या की है. मैं इंसाफ चाहती हूं. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे मुसलिम थे.’’

3 बेटियों के पिता अफराजुल को अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए घर लौटना था. परिवार के सदस्यों के मुताबिक, अफराजुल पिछले 12 सालों से राजस्थान में मजदूरी कर रहे थे. हर 2 महीने के बाद वे घर चले आते थे.

उन के पास जमीन का एक टुकड़ा था लेकिन उस से परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था.

अफराजुल की भतीजी जीनत खान ने कहा, ‘‘इस में गहरी साजिश की बू आ रही है और कई बड़े लोग शामिल हैं. एक मजदूर भला क्या कर सकता है? जिस तरह से सोशल मीडिया पर इसे फैलाया गया है, उस से लगता है कि इस के पीछे एक गहरी साजिश है.’’

बहुत से लोगों ने शंभुलाल की तसवीर ‘माई हीरो शंभु भवानी’ के साथ अपने ट्विटर या फेसबुक के लिए प्रोफाइल फोटो डाला है. इन समर्थकों के नाम के साथ लगी जाति की पहचान करने पर चौंकाने वाला सच सामने आता है.

इस हत्याकांड का समर्थन कर रहे लोगों में से 95 फीसदी ऊंची जाति के हिंदू हैं जो शंभुलाल रैगर नामक एक दलित की हरकत को जायज ठहरा रहे हैं.

लोगों के बीच यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकी हमले का शिकार हुए बंगाली मजदूर अफराजुल ने हत्यारे शंभुलाल की बहन से शादी कर रखी थी और उसे भगा कर पश्चिम बंगाल ले गया था, जबकि सच तो यह है कि कातिल की बहन तो छोडि़ए उस की किसी रिश्तेदार से भी पीडि़त का कोई संबंध नहीं था. वे तो हत्यारे शंभुलाल को ठीक से जानते तक नहीं थे. उन्हें कातिल ने महज मुसलमान होने की वजह से हमले का शिकार बनाया और बड़ी बेरहमी से पहले तो काटा और फिर जला डाला.

इस वारदात को सिर्फ सनकी आदमी की सनक में किया गया आम अपराध बता देना नफरत के उन कारोबारी संगठनों की तरफदारी करना है जो अपनी जहरीली सोच से कमजोर दिमाग के नौजवानों को फंसा कर आत्मघाती दस्ते तैयार कर रहे हैं.

राजसमंद हत्याकांड यह भी साबित करता है कि दलित नौजवानों का तालिबानीकरण किया जा रहा है. उन के जरीए मौत के सौदागर अपना आतंकी खेल खेलने में कामयाब हो रहे हैं. इस से ऊंची जाति के सांप्रदायिक लोग एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं.

वे दलितों और मुसलमानों को आमनेसामने की एक न खत्म होने वाली लड़ाई में झोंक कर खुद महफूज होने की कोशिश में हैं. इसी के साथ वे दलित नौजवानों को अपराधी बनाने का काम भी कर रहे हैं ताकि वे हत्या, दंगे, लूट, हमले जैसी वारदातें करते रहें और जेलों में बरसों सड़ते रहें. इस तरह एक शख्स ही नहीं बल्कि उस का पूरा परिवार ही बरबाद हो जाए.

दलितों और मुसलिमों को आपसी लड़ाई में धकेल कर भारत के कट्टर लोग सारे साधनों व संसाधनों पर काबिज हो कर अमीरी भोगते रहना चाहते हैं. यह एक घिनौनी साजिश है. इस के शिकार दलित हो चुके हैं.

दलित नौजवानों को बड़े पैमाने पर उन उग्र संगठनों से जोड़ा जा रहा है जिन के जरीए हिंसक वारदातें कराई जा सकें. हुड़दंग करने, दंगे फैलाने, त्रिशूल बांटने, शस्त्र पूजा कराने, चाकूबाजी और मुकदमे कराने, हत्याएं कराने व जेल भेजने के लिए ये नए बने कट्टर बहुत काम आते हैं.

हालांकि ये तभी तक हिंदू माने जाते हैं जब तक सामने मुसलमान हो या चुनाव होने हों. बाकी समय में इन को नीच हिंदू के तौर पर ही माना जाता है. धर्म की प्रयोगशाला में आज दलितों की औकात लैबोरेटरी में चीरफाड़ किए जाने वाले मेढ़कों जैसी हो गई है.

एक फर्जी किस्म की ऊपरीऊपरी कुछ मिनटों की इज्जत मिल जाने और थोड़ेबहुत पैसे पा कर आज के भटके दलित नौजवान अपनी जान पर खेल कर हमलावर तक बनने को तैयार हैं. वे कुछ भी सोचविचार नहीं कर पा रहे हैं. उन पर हिंदुत्व इतना हावी हो गया है कि वे खुद को धर्मयोद्धा समझ कर मरनेमारने पर उतारू हैं.

आज देश का दलित किशोर और नौजवान जिंदा बम बन कर खुदकुशी की राह पर चल पड़ा है. उन्हें धर्म से इतना भर दिया गया है कि भस्मासुर बन कर खुद का ही नुकसान कर रहे हैं. वे अब मनु के गीत गा रहे हैं. आरक्षण हटाने की मांग भी वे अब कर रहे हैं.

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