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वह बड़ा और भव्य महलनुमा आलीशान भवन था. भवन के बीचोबीच कई कीमती सोफे बिछे हुए थे और हाल की चारों दीवारों से सटे खूबसूरत गमले रखे हुए थे. उस में आर्टिफिशियल फूल के सुंदरसुंदर पौधे लगे हुए हाल ही खूबसूरती की शोभा बढ़ाए जा रहे थे. यही नहीं, आधुनिक साजसज्जा युक्त ये आलीशान भवन किसी रजवाड़े से कम नहीं था.

दिन के साढ़े 10 बज रहे थे. हाल में बिछे सोफे पर 27 वर्षीय अर्चना नाग चांद बैठी हुई थी तो दाहिनी ओर बिछे सोफे पर बेहद खूबसूरत और कमसिन युवती महिमा बैठी थी. उस की उम्र 20 साल के करीब रही होगी. अर्चना का पति जगबंधु चांद महिमा के ही बगल में सोफे पर बैठा था और उसे ही खा जाने वाली नजरों से देखे जा रहा था.

‘‘तो क्या सोचा महिमा?’’ अर्चना नाग ने सवाल किया.

‘‘फिलहाल इस बारे में मुझे कुछ सोचना भी नहीं है,’’ नफरत भरे स्वर में महिमा ने उत्तर दिया था.

‘‘अभी वक्त भी है और किस्मत भी तुम्हारे हाथों में. खूब ठंडे दिमाग से फैसला लेना ताकि आगे चल कर तुम्हें पछताना न पड़े.’’

‘‘मैडम, आप मुझे मजबूर नहीं कर सकतीं.’’ वह बोली.

‘‘कहां मजबूर कर रही हूं मैं तुम्हें. मैं तो बस अपना जान कर समझा रही हूं. तुम हो कि मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं हो. लेकिन अगर बात समझने के लिए तैयार नहीं होगी तो मुझे अंगुली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘धमकी दे रही हो आप मुझे?’’ अचानक गुस्से से महिमा तमतमा उठी, ‘‘मैम! आप मुझे धमकी मत देना, कहे देती हूं. जिस दिन मैं अपनी पर उतर आई न...’’

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