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29 अप्रैल, 2016 की सुबह 9 बजे लीना शर्मा सोहागपुर से आटोरिक्शा ले कर अपने ननिहाल डूडादेह गांव में प्रताप कुशवाहा, उस के कर्मचारी गंगाराम और तुलाराम के साथ मौके पर पहुंच गई. मामा प्रदीप शर्मा ने उन्हें तारबंदी कराने से रोकते हुए कहा, ‘‘लीना, मैं भी अपनी जमीन की तारबंदी कराने वाला हूं, तुम परेशान मत हो, मैं दोनों की एक साथ ही करा दूंगा.’’

जब लीना ने मामा की बात नहीं मानी तो प्रदीप शर्मा लीना के साथ आए कर्मचारियों को भलाबुरा कहने लगा. प्रताप कुशवाहा, गंगाराम और तुलाराम प्रदीप शर्मा के तेवर देख कर तारबंदी का सामान वहीं खेत के पास रहने वाले डेनियल प्रकाश के घर पर छोड़ कर वहां से भाग खड़े हुए.

मामा ने कराई गुमशुदगी…

5 मई, 2016 को सोहागपुर पुलिस स्टेशन में प्रदीप शर्मा ने गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई. प्रदीप ने तत्कालीन टीआई राजेंद्र वर्मन को बताया, ‘‘38 वर्ष की मेरी भांजी लीना शर्मा दिल्ली में अमेरिकन एंबेसी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर काम करती है. लीना 28 अप्रैल, 2016 को गांव डूडादेह मुझ से मिलने आई थी. उसी दिन मुझ से मिल कर वह जबलपुर जाने को कह कर निकली थी. जब 29 अप्रैल को मैं ने उसे काल किया तो उस का मोबाइल बंद आता रहा. मैं लगातार लीना से संपर्क करता रहा, लेकिन अब तक उस की कोई खोजखबर नहीं मिली.’’

मामला चूंकि अमेरिकी दूतावास की कर्मचारी से जुड़ा था, लिहाजा टीआई राजेंद्र वर्मा ने लीना की गुमशुदगी के मामले को गंभीरता से लेते हुए गुमशुदगी दर्ज होने के बाद लीना के मोबाइल नंबर को ट्रेस कराने की कोशिश की तो उस की लोकेशन पिपरिया की मिली. सोहागपुर पुलिस टीम ने पिपरिया जा कर लोकेशन ट्रेस कर एक युवक अमन वर्मा (परिवर्तित नाम) के पास से लीना का मोबाइल जब्त कर लिया. अमन ने पूछताछ में पुलिस को बताया, ‘‘मुझे यह मोबाइल भोपाल इटारसी बीना विंध्याचल एक्सप्रेस ट्रेन में मिला था, मैं ने इसे चुराया नहीं है.’’

पुलिस ने पिपरिया से मिले लीना के मोबाइल की जब काल डिटेल्स निकाली तो पहली बार पुलिस को कुछ अहम सुराग मिले. काल डिटेल्स में मिले आखिरी नंबर पर पुलिस ने फोन किया तो यह नंबर किसी आटोरिक्शा चालक का नंबर निकला. आटो वाले ने पुलिस को बताया कि उस ने खुद अपने आटो से 29 अप्रैल की सुबह लीना शर्मा को डूडादेह गांव में खेत के पास छोड़ा था.

सोहागपुर पुलिस ने इस विरोधाभास को नोट किया कि 5 मई, 2016 को उस के मामा प्रदीप शर्मा ने सोहागपुर थाने में लीना के गायब होने की जो गुमशुदगी दर्ज कराई, उस में 28 अप्रैल की सुबह 9 बजे से उस के लापता होने की बात कही थी. जबकि आटो चालक 29 अप्रैल को सुबह लीना को गांव छोड़ कर आने की बात कह रहा था. ऐसे में पुलिस को शक हुआ कि आखिर लीना के मामा ने उस के गांव में आने को ले कर झूठ क्यों बोला?

प्रदीप शर्मा की तरह ही उस के 2 नौकर गोरेलाल मसकोले और राजेंद्र कुमरे के बयान में भी विरोधाभास था. यहीं से पुलिस का शक मामा पर गहराने लगा, लेकिन पुलिस के पास कोई पुख्ता सबूत हाथ नहीं लगा था. प्रदीप शर्मा कांग्रेस का ताकतवर नेता था, इसलिए पुलिस उस पर बिना सबूत हाथ डालने से कतरा रही थी.

‘सेव लीना’ कैंपेन से पुलिस पर बढ़ा दबाव…

लीना शर्मा की हत्या एक राज ही बन कर रह जाती, अगर उस के दोस्त उसे नहीं ढूंढ़ते. जब लीना शर्मा तयशुदा वक्त पर नहीं लौटी और उस का मोबाइल फोन बंद रहने लगा तो भोपाल में रह रही उस की सहेली रितु शुक्ला ने उस की गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम में दी. लीना की गुमशुदगी की रिपोर्ट न तो उन की बहन हेमा मिश्रा ने दर्ज कराई और न ही अन्य परिजनों ने. उन की सहेली रितु शुक्ला, क्लासमेट शादबिल औसादी आदि ने पुलिस और मीडिया तक गुम होने की खबर वाट्सऐप और फेसबुक के माध्यम से पहुंचाई थी.

लीना के लापता होने से उस के दोस्तों ने सोशल साइट फेसबुक पर ‘सेव लीना’ नाम से एक कैंपेन भी चलाया, जिसे अच्छाखासा समर्थन मिल रहा था. लीना के दोस्त इस अभियान के जरिए पुलिस पर लीना की तलाश के लिए दबाव बना रहे थे. पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था.

स्टेट ही नहीं, नैशनल मीडिया में भी लीना के लापता होने या फिर उस की हत्या की खबर छाई हुई थी, लेकिन आरोपी प्रदीप शर्मा के राजनीतिक प्रभाव की वजह से कोई भी उस के खिलाफ बयान देने को तैयार नहीं था. एक तरफ पुलिस लीना की तलाश में जुटी थी, वहीं भोपाल और दिल्ली से लीना के दोस्त पुलिस को लगातार फोन कर रहे थे. लीना के कुछ दोस्तों ने ही पुलिस को बताया कि लीना का अपने मामा के साथ जमीन का विवाद चल रहा है.  हो सकता है कि उस के गायब होने में उन का हाथ हो, लेकिन पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं थे, इसलिए गिरफ्तारी नहीं हो पा रही थी.

उस समय होशंगाबाद के तत्कालीन एसपी आशुतोष सिंह ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सोहागपुर पुलिस को लीना की खोज करने के निर्देश दिए थे. सोहागपुर पुलिस ने जब प्रदीप शर्मा से संपर्क किया तो वह घबरा गया और पुलिस को गुमराह करने के इरादे से उस ने भांजी के गुम होने की रिपोर्ट लिखाई थी. देर से रिपोर्ट लिखाए जाने से प्रदीप शर्मा शक के दायरे में आया और जमीन के झगड़े की बात सामने आई तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

एक झूठ ने पुलिस को हत्यारों तक पहुंचाया

पुलिस को जब यह जानकारी मिली कि लीना शर्मा और उस के मामा प्रदीप के बीच तारबंदी को ले कर विवाद हुआ था और इस के बाद तारबंदी नहीं हुई तो पुलिस ने लीना के साथ गए तारबंदी करने वालों से सख्ती से पूछताछ की तब उस की हत्या का खुलासा हो गया. पुलिस ने प्रदीप शर्मा के 2 नौकरों गोरेलाल और राजेंद्र को 13 मई, 2016 की शाम को पूछताछ के लिए पुलिस ने उठाया तो उन से अलगअलग पूछताछ शुरू की. पहले तो वह भी पूरी घटना से अनजान होने का नाटक करते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के सामने दोनों जल्दी ही टूट गए. उन्होंने 2 घंटे में राज उगल दिया.

पुलिस को दोनों ने बताया कि मामा प्रदीप शर्मा ने ही लीना की हत्या को अंजाम दिया है. हम दोनों तो बस उन का सहयोग कर रहे थे. जिस के बाद सोहागपुर ब्लौक कांग्रेस प्रमुख प्रदीप शर्मा भोपाल भाग गया. भोपाल पुलिस की मदद से प्रदीप को सोहागपुर लौटने के लिए मजबूर किया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया. इस के बाद पुलिस ने प्रदीप शर्मा को हिरासत में लिया तो उस ने लीना के डूडादेह गांव पहुंचने से ले कर उस की हत्या करने और शव को ठिकाने लगाने की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. इस कहानी को जिस ने भी सुना, उस ने कलियुगी कंस मामा प्रदीप को जी भर कर कोसा.

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