कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

साल 2018 के अक्तूबर महीने की बात है. 2 महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. विधानसभा चुनाव में सुरक्षा के मद्देनजर अपराधियों की धरपकड़ में उज्जैन पुलिस लगी हुई थी. उस समय महाकाल की नगरी उज्जैन शहर में कम उम्र के लड़कों के एक गैंग का तहलका मचा हुआ था. यह गैंग आए दिन शहर में बलवा कर शहर की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा था.

इस गैंग का सरगना एक नाबालिग उम्र का मासूम सी सूरत वाला लड़का दुर्लभ कश्यप था, जिसे पुलिस ने शांति भंग करने के अपराध में गिरफ्तार किया था. उज्जैन के तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहे थे. दुर्लभ कश्यप और उस के 23 साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई.  सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया
जाए.

उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था और मीडिया वाले उस के चेहरे से भी अनजान थे. प्रैस कौन्फ्रैंस चल ही रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल किया, “इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?”

“आप देखिए, वो खुद ही हाथ उठा कर बताएगा,” एसपी ने जबाव दिया.

फिर पुलिस अधिकारियों के पीछे खड़े लड़कों की टोली में से एक फटी शर्ट वाले लड़के ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. दुर्लभ के इस अनोखे अंदाज में उठाए हाथ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था, जिस के साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया. दुर्लभ कश्यप ने अपने आप को गैंगस्टर साबित करने के लिए सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बाकायदा इश्तहार दे रखा था.

दुर्लभ कश्यप का जन्म 8 नवंबर, 2000 को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा में हुआ था. वह पिता मनोज कश्यप तथा माता पद्मा का इकलौता बेटा था. दुर्लभ की मां पद्मा कश्यप उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थीं. दुर्लभ के पिता मुंबई में नौकरी करने के बाद इंदौर शिफ्ट हो गए.

दुर्लभ का कुछ समय इंदौर में भी बीता. एक संभ्रांत व संपन्न परिवार के मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया. तब से ही इन का परिवार उज्जैन में रहने लगा था. मनोज कश्यप व पद्मा ने अपने बेटे का नाम ‘दुर्लभ’ भी इसलिए रखा था कि वह बड़ा हो कर कुछ अलग और अच्छा करेगा.

उन की उम्मीद थी कि वह सब से हट कर कुछ बड़ा काम करेगा, जिस से उन का नाम रोशन हो. दुर्लभ पढ़लिख कर डाक्टर या इंजीनियर बने, इस के लिए दुर्लभ की मां पद्मा ने उसे शहर के नामी स्कूल में दाखिला कराया था.

एक दिन दुर्लभ को स्कूल भेजते वक्त मां ने दुर्लभ से कहा, “बेटा, अच्छे से पढ़ाई करना और एक दिन हमारा नाम रोशन करना.”

“मां तुम ने मेरा नाम दुर्लभ रखा है, देखना एक दिन मेरा नाम इस शहर की गलीगली में गूंजेगा.” दुर्लभ ने मां को जबाब देते हुए कहा. दुर्लभ का नाम रोशन हुआ भी, पर अपराध की दुनिया में.

दुर्लभ के मातापिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एकदूसरे से अलग रहने लगे थे. दुर्लभ भी कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था. मातापिता दोनों ही उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे. घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. दुर्लभ की हर ख्वाहिश मांबाप पूरी करते थे, जिस का नतीजा यह हुआ कि लाड़प्यार में वह बिगड़ गया.

दुर्लभ सिगरेट पीने का आदी हो गया. काली शर्ट पहने हुए लड़के , आंखों में काजल, माथे पर अलग तरह का खड़ा लाल टीका, कंधे पर काला पंछा या कहें गमछा और एक नाम दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. युवाओं में दुर्लभ खासा प्रचलित था.

वह अपने गैंग में अकसर कम उम्र के लड़कों को शामिल किया करता था. दुर्लभ वैसे तो बहुत ही शांत स्वभाव का था, लेकिन बचपन में ही बुरी संगत में पड़ गया था. वह कुछ गैंगस्टरों की दबंगई और
ठाठबाट से बहुत प्रभावित हुआ, इसलिए उस ने कच्ची उम्र में ही बड़ा गैंगस्टर बनने का ख्वाब देख लिया और उसी राह पर निकल पड़ा.

आवारा किस्म के लड़के स्कूल में पढ़ते वक्त ही दुर्लभ के फैन बन चुके थे. वे उसे कोहिनूर के नाम से बुलाते थे. महज 15 साल की उम्र में उस ने फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए और अपनी बदमाशी का प्रचार करना शुरू कर दिया. दुर्लभ का मकसद था कि वह अपना खुद का एक गैंग बनाए, जिस में वह कामयाब भी हुआ. कई नाबालिग लड़के उस के साथ जुड़ते चले गए.

दुर्लभ कश्यप कैसे बना गैंगस्टर

दुर्लभ कश्यप ने 15 साल की उम्र में 10वीं क्लास का इम्तिहान दिया, लेकिन 10वीं में फेल होते ही उस की संगति आवारा किस्म के लड़कों के साथ बढऩे लगी. जिस तरह पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह दुर्लभ के तौरतरीकों ने स्कूल में पढ़ते समय ही यह साबित कर दिया था कि वह एक दिन अपराधी ही बनेगा.

देखते ही देखते वह उज्जैन का मशहूर हिस्ट्रीशीटर बन गया था. दुर्लभ कश्यप जब 16 साल का हुआ तो पढ़ाई छोड़ उसे गैंगस्टर बनने की धुन सवार हो गई. वह निकल पड़ा ऐसे रास्ते पर जहां जाना तो बड़ा आसान था, लेकिन वहां से वापसी करना बहुत ही मुश्किल था.

उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाले पार्किंग के ठेके से दुर्लभ के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू होती है. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कौन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. यहीं से दुर्लभ और उस के साथियों को पनाह दी जाने लगी.

राहुल किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्महाउस को दुर्लभ और उस के साथियों के लिए खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराबगांजे के नशे में डूब कर खूब मौजमस्ती करते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

दुर्लभ कश्यप पर जनवरी, 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. 11-12 जनवरी, 2018 की दरमियानी रात दुर्लभ और उस के साथियों का सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. इस गैंगवार में कई लड़के घायल हुए. दोनों गुट अपनेअपने साथियों को ले कर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए.

दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी, 2018 को उस की मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उस के साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उस का साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे, जिस की वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 4 महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलगअलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...