सुधा अमित को इस कदर चाहने लगी कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगी. अमित भी इस के लिए तैयार था. लेकिन यह भी सच है कि यह खेल कितना भी छिपा कर खेला जाए, इस की भनक लग ही जाती है.
रमेशचंद्र की गैरमौजूदगी में अमित का रोजरोज उन के घर जाने से लोगों को शक होने लगा. सुधा और अमित को ले कर एयरफोर्स कालोनी में तरहतरह की चरचा होने लगी. जब इस बारे में रमेशचंद्र को पता चला तो उन्होंने सुधा को समझाया कि वह अमित को अपने घर न आने दे, क्योंकि उसे ले कर लोग उस पर शक कर रहे हैं.
‘‘लोग जो कहते हैं, तुम ने उस पर विश्वास कर लिया.’’ सुधा तुनक कर बोली, ‘‘अगर वह मेरे पास पढ़ने आता है तो लोगों को न जाने क्यों तकलीफ होती है? लोगों से अपना घर तो संभलता नहीं, दूसरों के घरों में ताकझांक करते हैं. मेरे सामने कोई कहे तो मैं बताऊं.’’
‘‘मेरे खयाल से तुम अमित को पढ़ाना बंद कर दो, वैसे भी तुम्हें पैसों की क्या जरूरत है? हमारी एक ही तो बेटी है. जो मैं कमाता हूं, वह हमारे परिवार के लिए काफी है.’’ रमेशचंद्र ने कहा.
‘‘तुम चुप रहो,’’ सुधा गुस्से में बोली, ‘‘मैं किसी के कह देने से शांत हो कर घर में नहीं बैठ जाऊंगी. मैं ने पढ़ाई घर में बैठने के लिए नहीं की है. लोग कुछ भी कहें, मैं अमित को पढ़ाना बंद नहीं करूंगी.’’
सुधा को नाराज होते देख रमेशचंद्र चुप हो गए. क्योंकि उन्हें लगा कि बात बढ़ाने से बेकार ही झंझट होगा. बात जहां से शुरू हुई थी, वहीं की वहीं रह गई. पति के समझाने का सुधा पर कोई असर नहीं हुआ. वह अमित से पहले की ही तरह मिलतीजुलती रही.