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नित्या ने दिल में बसा लिया विशाल को

एक दिन महाविद्यालय में आयोजित एक संयुक्त प्रोग्राम में विशाल और नित्या ने गीतों में अपनीअपनी प्रस्तुतियां दीं तो महाविद्यालय के सभी छात्रछात्राओं ने जम कर तालियां बजा कर दोनों का उत्साहवर्धन किया. उसी शाम दोनों की नजरें एकदूसरे से मिलीं, वे दोनों एकटक एकदूसरे की ओर काफी देर तक अपनी नजरें चाह कर भी हटा न सके. एक अजीब कशिश और एक अनोखा सा आकर्षण सा उन दोनों के बीच स्थापित हो चुका था.

दोनों को अपने दिल में यह महसूस सा होने लगा था, मानो वे दोनों केवल एकदूसरे के लिए बने हैं. अब तक न तो विशाल को किसी युवती से न ही नित्या को किसी युवक से प्यार हुआ हुआ था. दोनों के दिल में बस एक यही बात थी कि कब हमें एकदूसरे से बात करने का अवसर मिल पाएगा.

अब तक नित्या यह बात अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि विशाल की ओर से तो पहल होने से रही, उसे ही अपनी ओर से पहल करनी पड़ेगी, तभी बात कुछ आगे बढ़ सकती है. दोनों एकदूसरे से मिलते भी थे, पर बातें चाह कर भी नहीं कर पा रहे थे.

एक दिन हिम्मत कर के जब दोनों का आमनासामना हुआ तो नित्या ने विशाल से कहा, आप से एक बात करनी है, क्या आप के पास समय है?

'जी जरूर. आप के लिए तो मेरे पास हर वक्त समय ही समय है." विशाल ने मुसकराते हुए कहा.

"ठीक है, कल को शाम 4 बजे यहीं पर आप से मिलती हूं" यह कहते हुए नित्या मुसकरा कर वहां से चली गई थी.

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