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भगवानदास सोनी के पड़ोस में ही ईश्वरनाथ गोस्वामी परिवार के साथ रहते थे. उन्हीं का बेटा था सुमेरनाथ गोस्वामी. ईश्वरनाथ गोस्वामी के एक भाई पुलिस की नौकरी से रिटायर हो कर जयपुर में रहते थे. उन के बच्चे नहीं थे, इसलिए सुमेरनाथ को उन्होंने गोद ले रखा था. पढ़ाई पूरी कर के सुमेरनाथ एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा था.

सुमेरनाथ नौकरी करने लगा तो घर वालों ने अपनी जाति की लड़की से उस की शादी कर दी थी. चली आ रही परंपरा के अनुसार सुमेरनाथ शादी के पहले पत्नी को देख नहीं सका था. इसलिए शादी के पहले वह उस के बारे में कुछ भी नहीं जान सका. शादी के बाद पत्नी घर आई तो दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. सुमेरनाथ जितना सीधा और सरल था, उस की पत्नी उतनी ही गरममिजाज थी. परिणामस्वरूप दोनों में निभ नहीं पाई.

सुमेरनाथ ने पत्नी को ले कर जो सपने देखे थे, कुछ ही दिनों में सब बिखर गए. पत्नी की वजह से घर में हर समय क्लेश बना रहता था. उस ने पत्नी को बहुत समझाया, लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. वह किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं थी. पत्नी की वजह से सुमेर परेशान रहने लगा था.

पत्नी के दुर्व्यवहार से तंग सुमेरनाथ का झुकाव पड़ोस में रहने वाली सुनीता सोनी की ओर हो गया था. पड़ोस में रहने की वजह से वह सुनीता को बचपन से देखता आया था. लेकिन उस ने कभी उस से प्यार या शादी के बारे में नहीं सोचा था.

सुनीता सुंदर तो थी ही, इसलिए वह उसे अच्छी भी लगती थी. लेकिन एक तो दोनों की जाति अलग थी, दूसरे मोहल्ले की बात थी, इसलिए सुमेरनाथ ने उस के बारे में कभी इस तरह की बात नहीं सोची थी.

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