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फोन की घंटी बजी तो सुमन ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर मुंहबोली मौसी बबिता का  था, जो उस के घर से कुछ दूरी पर रहती थीं. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो, मौसी नमस्ते, आप कैसी हैं, फोन कैसे किया?’’

‘‘नमस्ते बेटा, मैं तो ठीक हूं. तू बता कैसी है?’’ बबिता ने अपने बारे में बता कर सुमन का हालचाल पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं भी ठीक हूं मौसी. बताइए, फोन क्यों किया?’’

‘‘मैं ने फोन इसलिए किया है कि तू ने जिस काम के लिए मुझ से कहा था, वह हो गया है. तू जब भी उस से मिलना चाहे, मिल सकती है.’’

‘‘अगर मैं आज ही उस से मिलना चाहूं तो..?’’ सुमन ने चहक कर पूछा.

‘‘हां...हां, आज ही मिल ले. लेकिन रुक, मैं उसे एक बार और फोन कर के पूछ लेती हूं. उस के बाद तुझे फोन करती हूं.’’ कह कर बबिता ने फोन काट दिया.

कुछ देर बाद बबिता ने फोन कर के कहा, ‘‘ठीक है, आज शाम को राजनगर के प्रियदर्शिनी पार्क में तू उस से मिल सकती है. उस का नाम राजीव है. मैं तुझे उस का मोबाइल नंबर दिए देती हूं. जाने से पहले तू उसे एक बार फोन कर लेना.’’

इस के बाद बबिता ने राजीव का मोबाइल नंबर सुमन को लिखा दिया. दरअसल सुमन ने अपनी मुंहबोली मौसी बबिता से कहा था कि नौकरी छूट जाने की वजह से वह काफी तंगी में आ गई है. इसलिए वह उस की दोस्ती किसी ऐसे आदमी से करा दे, जो उस की हर तरह मदद कर सके और वक्त जरूरत काम आ सके. उसी के लिए बबिता ने उसे फोन किया था. उस ने कहा था कि राजीव अच्छा लड़का है और उसे भी उसी की तरह एक बढि़या दोस्त की तलाश है.

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