Social Story in Hindi : भारत में छिपकर जी रहा था फांसी की सजा काटने वाला अपराधी

Social Story in Hindi : बंगलादेश में फांसी की सजा पाया मासूम भारत आ गया था. वह अपने दोस्त सरवर और उस के परिवार के साथ रहने लगा. इसी दौरान अचानक सरवर गायब हो गया तो मासूम उस की पत्नी का शौहर बन कर फरजी दस्तावेजों में सरवर बन कर रहने लगा. लेकिन दिल्ली पुलिस…

‘‘ख बर एकदम पक्की  है न.’’ एएसआई अशोक ने फोन डिसकनेक्ट करने से पहले अपनी तसल्ली के लिए उस शख्स से एक बार फिर सवाल किया, जिस से वह फोन पर करीब पौने घंटे से बात कर रहे थे.

‘‘जनाब एकदम सोलह आने पक्की खबर है… आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या कि मेरी कोई खबर झूठी निकली हो.’’ दूसरी तरह से सवाल के बदले मिले इस जवाब के बाद अशोक ने ‘‘चल ठीक है… जरूरत पड़ी तो तुझ से फिर बात करूंगा.’’ कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एसटीएफ दस्ते में तैनात सहायक सबइंसपेक्टर अशोक कुमार की अपने सब से खास मुखबिर से एक खास खबर मिली थी. वह कुरसी से खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गए. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पैशल टास्क  फोर्स यूनिट में तैनात एएसआई अशोक कुमार दिल्ली पुलिस में अकेले ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन का बंगलादेशी अपराधियों को पकड़ने का अनोखा रिकौर्ड है. बंगलादेशी अपराधियों के खिलाफ अशोक कुमार का मुखबिर व सूचना तंत्र देश में ही नहीं, बल्कि बंगलादेश तक में फैला है.

बंगलादेश तक फैले मुखबिरों का नेटवर्क अशोक को फोन या वाट्सऐप से जानकारी दे कर बताता है कि किस बंगलादेशी अपराधी ने किस वारदात को अंजाम दिया है. अशोक कुमार को जो सूचना मिली थी, वह बंगलादेश में उन के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली थी. सूचना यह थी कि बंगलादेश का एक अपराधी, जिस का नाम मासूम है, को हत्या के एक मामले में बंगलादेश की अदालत से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह भारत भाग आया था. भारत में वह सरवर नाम से पहचान बना कर रहता है. मुखबिर से यह भी पता चला कि सरवर तभी से लापता है, जब से मासूम ने अपनी पहचान सरवर के रूप में बनाई है.

मासूम ने जब से खुद को सरवर की पहचान दी है, तब से वह सरवर नाम के व्यक्ति की पत्नी के साथ रहता है. यह भी पता चला कि सरवर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन वह अकसर दिल्ली  आता रहता है.  दिल्ली में उस के कई रिश्तेदार व दोस्त हैं. एएसआई अशोक ने अपने एसीपी पंकज सिंह को मुखबिर की सूचना से अवगत करा दिया. पंकज सिंह को अशोक के सूचना तंत्र पर पूरा भरोसा था. इसलिए उन्होंने एएसआई अशोक कुमार की मदद के लिए इंसपेक्टर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एसआई राजीव बामल,  विजय हुड्डा, विजय कुमार, वीर सिंह, कांस्टेबल पयार सिंह सोनू और अजीत की टीम गठित कर दी.

चूंकि मामला विदेश से भागे एक अपराधी को पकड़ने से जुड़ा था, इसलिए एसीपी पंकज सिंह ने अपने डीसीपी भीष्म सिंह के अलावा दूसरे उच्चाधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी. क्योंकि वे बखूबी जानते थे कि मामले की जांच आगे बढ़ाने पर उच्चाधिकारियों की मदद के बिना सफलता नहीं मिलेगी. जिस तरह अशोक का मुखबिर नेटवर्क अलग किस्म का है, उसी तरह उन सूचनाओं को वैरीफाई करने का भी उन के पास अपना नेटवर्क है. मासूम उर्फ सरवर के बारे में अशोक को पहली सूचना अक्तूबर, 2020 में मिली थी. मासूम के बारे में मिली सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए पूरे 2 महीने का समय लगा. जिस से साबित हो गया कि वह सरवर नहीं, बंगलादेशी अपराधी मासूम है.

अशोक कुमार की टीम को बेंगलुरु के अलावा पश्चिम बंगाल व दिल्ली में कई बंगलादेशी बस्तियों के धक्के खाने पड़े. संयोग से पुलिस टीम ने सरवर का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया गया तो 4 दिसंबर, 2020 को पता चला कि सरवर उर्फ मासूम 5 दिसंबर को खानपुर टी पौइंट पर आने वाला है. एएसआई अशोक कुमार ने सरवर की तलाश के लिए गठित की गई टीम के साथ इलाके की घेराबंदी कर ली. पुलिस टीम के साथ एक ऐसा बंगलादेशी युवक भी था, जो मासूम उर्फ सरवर को पहचानता था. सरवर जैसे ही बताए गए स्थान पर पहुंचा, पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में उस के कब्जे से एक देसी कट्टा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.

पुलिस टीम मासूम उर्फ सरवर को क्राइम ब्रांच के दफ्तर ले आई. पूछताछ में पहले तो सरवर यही बताता रहा कि पुलिस को गलतफहमी हो गई है वह मासूम नहीं बल्कि सरवर है. लेकिन एएसआई अशोक पहले ही इतने साक्ष्य एकत्र कर चुके थे कि सरवर झुठला नहीं सका कि वह सरवर नहीं मासूम है. पुलिस ने थोड़ी सख्ती इस्तेमाल की तो वह टेपरिकौर्डर की तरह बजता चला गया कि उस ने कैसे एक दूसरे आदमी की पहचान हासिल कर खुद को मासूम से सरवर बना लिया था. यह बात चौंकाने वाली थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंसं की धारा 25 आर्म्स ऐक्ट और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

सरवर उर्फ मासूम से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

मूलरूप से बंगलादेश के जिला बगीरहाट, तहसील खुलना, गांव बहल का रहने वाला मासूम (40) बंगलादेश के उन लाखों लोगों में से एक है, जिन के भरणपोषण का असली सहारा या तो कूड़ा कबाड़ बीन कर उस से मिलने वाली मामूली रकम होती है. ऐसे लोग चोरी, छीनाझपटी और उठाईगिरी कर के अपना पेट पालते हैं. मेहनतमजूदरी करने वाले मातापिता के अलावा परिवार में 3 बड़े भाई व एक बहन में सब से छोटा मासूम गुरबत भरी जिंदगी के कारण पढ़लिख नहीं सका. बचपन से ही बुरी संगत और आवारा लड़कों की सोहबत के कारण वह उठाईगिरी करने लगा.

धीरेधीरे छीनाझपटी के साथ अपराध करने की उस की प्रवृत्ति संगीन होती गई. जेल जाना और जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध करना उस की फितरत बन चुकी थी. मासूम ने किया अपहरण और कत्ल

साल 2005 में मासूम ने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया, जिस ने उस की जिंदगी पर मौत की लकीर खींच दी. उस ने अपने साथी बच्चू, मोनीर, गफ्फार व जाकिर के साथ मिल कर बांग्लादेश के मध्य नलबुनिया बाजार में मोबाइल विक्रेता जहीदुल इसलाम का अपहरण कर लिया. लूटपाट के लिए अपहरण करने के बाद उस ने साथियों के साथ जहीदुल इसलाम की गला रेत कर हत्या कर दी. शृंखला थाने की पुलिस ने घटना के अगले दिन नलबुनिया इलाके के खाली मैदान से जहीदुल का शव बरामद किया. चश्मदीदों से पूछताछ व सर्विलांस के आधार पर पुलिस ने 2 दिन के भीतर ही मासूम समेत सभी पांचों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया. सब पर मुकदमा चला.

चूंकि पुलिस को मासूम के कब्जे से मृतक जहीदुल का मोबाइल फोन मिला था, इसलिए  2013 में बंगलादेश की संबंधित कोर्ट ने मासूम को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुना दी, जबकि बाकी 4 आरोपितों को कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. लेकिन इस से पहले ही केस के ट्रायल के दौरान सन 2010 में मासूम को अदालत से जमानत मिल गई थी और वह देश छोड़ कर फरार हो गया था. अदालत से सजा मिलने के बाद जब मासूम अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर उस की गिरफ्तारी पर एक लाख का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर जमानत पर बाहर आने के बाद मासूम सरवर नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आया. मासूम जानता था कि उस के गुनाहों की फेहरिस्त काफी बड़ी हो चुकी है और जहीदुल इस्लाम केस में पुलिस को उस के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. लिहाजा उस ने कानून से बचने के लिए देश को अलविदा कह कर दूसरे देश भाग जाने की योजना बना ली. अपनी इसी मंशा को अंजाम देने के लिए मासूम ने सरवर से मुलाकात की. सरवर से उस की मुलाकात कुछ साल पहले बशीरहाट जेल में हुई थी, जहां वह किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर गया था.

सरवर मूलरूप से रहने वाला तो बंगलादेश का ही था, लेकिन वह ज्यादातर भारत में रहता था. जहां उस ने अवैध रूप से रहते हुए न सिर्फ वहां की नागरिकता के सारे दस्तावेज तैयार करा लिए थे, बल्कि वहां अपना परिवार भी बना लिया था. सरवर नाम के लिए तो भारत और बंगलादेश के बीच कारोबार के बहाने आनेजाने का काम करता था, लेकिन असल में सरवर का असली काम था नकली दस्तावेज तैयार कर के बंगलादेशी लोगों का अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कराना. मासूम ने जमानत मिलने के बाद सरवर से संपर्क साधा और उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर भारत में घुसपैठ करवा कर वहां शरण देने के लिए मदद मांगी. सरवर दोस्ती की खातिर इनकार नहीं कर सका.

सरवर ने 50 हजार रुपए में मासूम से सौदा तय किया कि वह इस के बदले न सिर्फ उसे बंगलादेश से भारत पहुंचा देगा. बल्कि उसे वहां रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी उपलब्ध करा देगा. सरवर के लिए बंगलादेशी लोगों को सीमा पार करवा कर भारत लाना मामूली सा काम था. 2011 के शुरुआत में सरवर मासूम के साथ सीमा पार कर के भारत आ गया. सरवर उन दिनों बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता था, जहां उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था. इसी गोदाम में उस की पत्नी नजमा व 2 बेटियां साथ रहती थीं.

सरवर ने मासूम को इसी गोदाम पर अपने परिवार के साथ रखवा लिया और उसे कबाड़ का गोदाम संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी. कुछ समय भारत में रहने के बाद सरवर फिर से वापस बंगलादेश गया था. बताते हैं कि वह बंगलादेश से भारत तो लौट आया था, लेकिन उस के बाद आज तक अपने परिवार से नहीं मिल पाया. कई महीने बीत गए लेकिन सरवर अपने परिवार के पास वापस नहीं लौटा तो परिवार को चिंता होने लगी. सरवर की पत्नी नजमा ने बंगलादेश में फोन कर के सरवर के मातापिता से बात की. उन्होंने बताया कि सरवर तो भारत चला गया. जब उन्हें नजमा से यह पता चला कि सरवर भारत में अपनी पत्नी और बच्चों के पास नहीं पहुंचा है तो उन्होंने मई 2011 में बंगलादेश में सरवर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.

सरवर का परिवार बना मासूम का इधर, बेंगलुरु में सरवर की पत्नी नजमा और दोनों बेटियां कायनात (22) और सिमरन (16) पूरी तरह मासूम पर निर्भर हो गईं. हालांकि सरवर ने 2 साल पहले ही बेटी कायनात की शादी बेंगलुरु में कबाड़ का काम करने वाले एक युवक यूनुस से कर दी थी. मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा और छोटी बेटी सिमरन के गुजारे और खाने के खर्चे तो उठाने शुरू कर दिए, लेकिन अब उस के दिमाग में कुछ दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी. वह सरवर के परिवार को पालने की कीमत वसूलना चाहता था.

मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा को धीरेधीरे विश्वास में ले कर उस से आंतरिक संबंध बना लिए. कुछ ही दिन में मासूम का नजमा से पत्नी जैसा रिश्ता कायम हो गया. वैसे नजमा के लिए सरवर हो या मासूम, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उसे लगता था कि मर्दों का उस की जिंदगी में आनाजाना उस की नियति बन चुकी है. असल में सरवर से भी उस की दूसरी शादी थी. नजमा के पहले पति असलम की मौत हो चुकी थी. कायनात उस के पहले पति असलम से पैदा हुई बेटी थी. असलम की मौत के बाद जब नजमा बेटी को गोद में लिए आश्रय और पेट पालने के लिए इधरउधर भटक रही थी, तभी वह सरवर के संपर्क में आई थी. सरवर ने उसे आसरा भी दिया और नजमा को उस की बेटी के साथ अपना कर अपनी छत्रछाया भी दी.

सरवर अकसर हिंदुस्तान और बंगलादेश के बीच आवागमन करता रहता था. बेंगलुरु में उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था, इसी में उस ने अपने रहने का ठिकाना भी बना लिया था. सरवर के अचानक लापता हो जाने के बाद मासूम ने कबाड़ के इस गोदाम को संभालने और सरवर की बीवी और बेटी को पालने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था. इधर सरवर की छोटी बेटी भी धीरेधीरे जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. शराब के नशे का आदी मासूम जब सिमरन को देखता तो उस का मन सिमरन का गदराता हुआ जिस्म पाने के लिए मचल उठता.

एक दिन उसे मौका मिल गया. नजमा लोगों के घरों में काम करती थी. एक रात वह अपने किसी मालिक के घर पर होने वाले शादी समारोह के लिए घर से बाहर थी कि उसी रात मासूम ने शराब के नशे में सिमरन को अपने बिस्तर पर खींच कर हवस का शिकार बना डाला. अगली सुबह सिमरन ने अपनी मां को जब यह बात बताई तो उस ने मासूम के साथ खूब झगड़ा किया. 1-2 दिन दोनों के बीच बातचीत भी नहीं हुई. लेकिन उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया. यह बात सिमरन भी जानती थी और नजमा भी कि मासूम ही अब उन का सहारा है. इसीलिए उस के हौसले बुलंद हो गए. इस घटना के बाद वह जब भी उस का मन करता और मौका मिलता, सिमरन को अपनी हवस का शिकार बना लेता.

इधर मासूम को अब लगने लगा था कि अगर बंगलादेश में पुलिस को उस के भारत में होने या भारत की पुलिस को उस के बंगलादेश का सजायाफ्ता अपराधी होने की बात पता चल गई तो उस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. इसलिए सितंबर, 2013 के बाद मासूम ने अपनी पहचान मिटा कर सरवर के रूप में अपनी नई पहचान बनाने का फैसला कर लिया. अपने इरादों को पूरा करने के लिए मासूम नजमा व सिमरन को ले कर दिल्ली आ गया और यहां ई ब्लौक सीमापुरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. दरअसल, नजमा से उसे पता चला था कि कुछ समय सरवर भी यहां रहा था. इसी इलाके में सरवर ने अपनी आईडी बनवाई हुई थी. उस का आधार कार्ड भी यहीं बना था.

कुछ समय यहां रहने के बाद मासूम ने दलालों से संपर्क साध कर ऐसी सेटिंग बनाई कि उस ने रिकौर्ड में सरवर की आईडी पर अपना फोटो चढ़वा लिया. अब वह कानून की नजर में पूरी तरह से सरवर बन गया था. बाद में इसी आईडी के आधार पर उस ने बैंक में खाता भी खुलवा लिया और ड्राइविंग लाइसैंस भी हासिल कर लिया. मासूम बन गया सरवर मासूम ने धीरेधीरे सरवर की पहचान से जुड़े हर दस्तावेज को खत्म कर उन सभी में खुद को सरवर के रूप में अंकित करा दिया. अब वह पूरी तरह बेखौफ हो गया.

6 माह के भीतर ये सब करने के बाद पूरी तरह सरवर बन चुका मासूम नजमा व सिमरन को ले कर फिर से बेंगलुरु लौट गया. इस बार उस ने बेंगलुरु के हिंबकुडी को अपना नया ठिकाना बनाया. अब उस ने दिल्ली से बनवाए गए अपने ड्राइविंग लाइसैंस के आधार पर टैक्सी चलाने का नया काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने यहां भी अपनी पहचान सरवर के रूप में स्थापित कर ली. मासूम था तो असल में अपराधी प्रवृत्ति का ही. लिहाजा उस के दिमाग में फिर से अपराध करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने बंगलादेशी लोगों के बीच अपनी अच्छीखासी पैठ बना ली थी. टैक्सी चलाने के नाम पर वह कुछ अपराधियों के साथ मिल कर छीनाझपटी और ठगी करने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने एक शानदार रास्ता भी बना लिया था. वह बेंगलुरु में क्राइम ब्रांच के साथसाथ शहर के चर्चित पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी भी करने लगा. जिस वजह से पुलिस महकमे में उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई. एक तरह से मासूम ने सरवर बन कर अपना पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपराध की दुनिया से होने वाली काली कमाई से उस ने कई गाडि़यां खरीद लीं, जिन्हें वह दूसरे लोगों को किराए पर दे कर टैक्सी के रूप में चलवाता था. इतना ही नहीं, उसी इलाके में उस ने अब फिर से कबाड़ का काम भी शुरू कर दिया. इस के लिए जमीन खरीद कर गोदाम बना लिया था. पुलिस से बने संबंधों के चलते वह लूट व चोरी का माल भी खरीदने लगा.

बड़े स्तर पर पुलिस के लिए मुखबिरी करने के कारण सरवर उर्फ मासूम के कुछ दुश्मन भी बन गए थे. ज्यादातर दुश्मन वे बंगलादेशी थे, जो भारत में अवैध रूप से रह कर अपराध करते थे और उन का बंगलादेश में लगातार आनाजाना होता था. ऐसे ही कुछ लोगों ने कथित सरवर से दुश्मनी के कारण जब उस की जन्मकुंडली निकाली तो उन्हेें पता चला कि असली सरवर तो सालों से लापता है, उस की जगह मासूम ने ले ली है. बात जब फूटी तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एएसआई अशोक कुमार तक जा पहुंची. एक मुखबिर ने इस सूचना को और पुख्ता करने के बाद वाट्सऐप कर के एएसआई अशोक को बताया.

इस के बाद एएसआई अशोक ने जाल बिछाना शुरू किया और दिसंबर महीने में कथित सरवर उर्फ मासूम दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के हत्थे चढ़ गया. एएसआई अशोक ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय से संपर्क कर वे दस्तावेज भी हासिल कर लिए, जिन में सरवर के रूप में असली सरवर तथा नए सरवर दोनों की फोटो लगी थी. नए सरवर के ड्राइविंग लाइसैंस का रिकौर्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करने के बाद  अशोक ने दिल्ली से ले कर बेंगलुरु व कोलकाता में उन तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिन के नंबरों पर कथित सरवर की अकसर बातचीत होती थी. ऐसे ही लोगों से पूछताछ करतेकरते अशोक इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो शख्स सरवर बन कर भारत में रह रहा है, वह असल में बंगलादेश में फांसी की सजा मिलने के बाद फरार हुआ अपराधी मासूम है.

इस के बाद अशोक ने बंगलादेश में अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर यह भी पता कर लिया कि मासूम के परिवार वालों को भी यह बात पता थी कि वह भारत में छिप कर रह रहा है. वह अपने परिवार वालों से अलगअलग फोन से संपर्क कर बातचीत करता था. इतना ही नहीं अशोक ने बंगलादेश के बगीरहाट जिले में शृंखला थाने का नंबर हासिल कर वहां के थानाप्रभारी से वाट्सऐप के जरिए अपना परिचय दे कर बात की और उन से मासूम की पूरी क्रिमिनल हिस्ट्री का रिकौर्ड वाट्सऐप के जरिए मंगवा लिया. साथ ही वे दस्तारवेज भी जिन में उस घटना का जिक्र था, जिस में मासूम को फांसी की सजा मिली थी. फरार होने के बाद उस पर पुलिस के ईनाम का नोटिस भी अशोक के पास आ गया, तब जा कर उन्होंने मासूम को दबोचने की रणनीति पर काम किया.

कसने लगा शिकंजा सरवर उर्फ मासूम के इर्दगिर्द घेरा कसते हुए एएसआई अशोक को पता चला था कि सरवर की पत्नी नजमा की एक बहन खातून दिल्ली के खानपुर इलाके में रहती है. अशोक ने खातून को विश्वास में ले कर सरवर के राज उगलवाए. पता चला कि बेंगलुरु का रहने वाला सरवर उर्फ मासूम का दोस्त अल्लासमीन है जो इन दिनों दिल्ली के खानपुर में रहता है. मासूम उर्फ सरवर उस से अकसर मिलने आता रहता है. बस इसी माध्यम से अशोक ने सरवर को दबोचने का प्लान बनाया और 5 दिसंबर, 2020 को जब वह अल्लासमीन से मिलने आया तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

हालांकि पुलिस ने मासूम को गिरफ्तार करने के बाद उस से सरवर को ले कर कड़ी पूडताछ की. लेकिन मासूम ने सरवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. शक है कि मासूम ने सरवर की हत्या कर दी होगी. उस के बाद वह सरवर की पत्नी के साथ रहने लगा और अपना नाम उसी के नाम पर सरवर भी रख लिया. इस बात की आशंका इसलिए भी है कि उसे शायद पता था कि सरवर कभी लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए उस ने अपनी पहचान सरवर के रूप में गढ़ ली थी. पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि सरवर उर्फ मासूम से नजमा ने एक और बेटी को जन्म दिया, जिस की उम्र इस वक्त 8 साल है.

दूसरी तरफ नजमा की मंझली बेटी सिमरन मासूम के लगातार शारीरिक शोषण से तंग आ कर अपनी बड़ी बहन के पति यूनुस की तरफ आकर्षित हो गई थी और एक साल पहले अपने बहनोई के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने मासूम उर्फ सरवर को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया और उस की गिरफ्तारी की सूचना बंगलादेश दूतावास के माध्यम से बंगलादेश की पुलिस को दे दी. Social Story in Hindi

—कथा आरोपी के बयान और पुलिस की जांच पर आधारित

 

Crime Story : फिल्म इंडस्ट्री की आड़ में चल रहा था पोर्न फिल्मों का धंधा

Crime Story : बौलीवुड हो या साउथ की फिल्म इंडस्ट्री, फिल्मों में जाने के लिए तमाम युवक युवतियां प्रयास करते हैं. जो असफल रहते हैं, उन में से कई अभिनय के नाम पर पोर्न फिल्म बनाने वालों के चंगुल में फंस जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री की आड़ में पोर्न फिल्में अब भी बन रही हैं. यह भांडा तब फूटा जब..

कोरोना काल में मुसीबतों में फंसा रहा भारतीय फिल्म उद्योग अभी तक नहीं उभर पाया है. कुछ समय पहले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में ड्रग्स एंगल का खुलासा होने के बाद बौलीवुड हिल गया था. नामी अभिनेत्रियों सहित सहित कई दूसरे लोगों की गिरफ्तारी से बौलीवुड में नशीले पदार्थों का काला कारोबार छाया रहा. इसी दौरान सैंडलवुड कहे जाने वाले कन्नड़ फिल्म उद्योग में भी ड्रग्स का जाल फैला होने का मामला सामने आया. कन्नड़ फिल्म उद्योग में ड्रग्स के मामले में कई नामी अभिनेत्रियों सहित दूसरे लोगों की गिरफ्तारियां हुईं.

फिल्म उद्योग में ड्रग्स के मामले अभी ठंडे भी नहीं पड़े थे कि अब बौलीवुड में पोर्न फिल्मों का मामला सामने आ गया है. पोर्न फिल्मों के मामले ने फिल्म उद्योग में फैले काले धंधों को उजागर करने के साथ वेब सीरीज के नाम पर ऐक्टिंग के लिए संघर्षरत युवाओं के शोषण की भी पोल खोल दी है. इसी साल 4 फरवरी की बात है. मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के प्रौपर्टी सेल के प्रभारी सीनियर इंसपेक्टर केदारी पवार को पोर्न फिल्में बनाने के बारे में सूचनाएं मिलीं, तो वह चौंके. उन्होंने कोई भी काररवाई करने से पहले अपने उच्चाधिकारियों सहायक पुलिस आयुक्त मिलिंद भारंबे, अपर पुलिस आयुक्त विरेश प्रभु और पुलिस उपायुक्त शशांक सांडभोर को इस बारे में बताना मुनासिब समझा.

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर केदारी पवार ने इंसपेक्टर धीरज कोली, एपीआई लक्ष्मीकांत सांलुखे, सुनील माने, अमित भोसले, योगेश खानुरे, महिला अधिकारी अर्चना पाटील और सोनाली भारते आदि के अलावा मातहत पुलिस वालों की टीम बनाई. इस पुलिस टीम ने 4 फरवरी की आधी रात मुंबई के मालवणी इलाके में मड आइलैंड स्थित ओल्ड फेरी मार्ग पर बने ग्रीन पार्क बंगले पर छापा मारा. पुलिस अधिकारी अपने वाहनों को बंगले से कुछ दूर खड़ा कर जब पैदल ही बंगले के बाहर पहुंचे, तो वहां न तो कोई सुरक्षा के इंतजाम नजर आए और न ही कोई चहलपहल दिखी. बंगले के कुछ कमरों में रोशनी जरूर थी. कुछ आवाजें भी आ रही थीं.

पुलिस अधिकारी बंगले के एक कमरे में पहुंचे, तो वहां का दृश्य देख कर सन्न रह गए. कमरे में कुल 5 लोग थे. 2 महिला और 3 पुरुष. बिस्तर पर एक महिला और एक पुरुष अर्धनग्न अवस्था में अश्लील हरकतें कर रहे थे. एक महिला उन का वीडियो बना रही थी. मौके के हालात देख कर साफ था कि वहां पोर्न फिल्म की शूटिंग हो रही थी. पुलिस ने मौके से दोनों महिलाओं और तीनों पुरुषों को हिरासत में लिया. इन महिलाओं में 40 साल की फोटोग्राफर यास्मीन खान और 33 साल की ग्राफिक डिजाइनर प्रतिभा नलावडे थी. पकड़े गए पुरुषों में भानु ठाकुर और मोहम्मद नासिर ऐसी फिल्मों में ऐक्टिंग करते थे. वहीं मोनू जोशी कैमरामैन और लाइटमैन का काम करता था.

मौके से पुलिस ने 6 मोबाइल हैंडसेट, एक लैपटौप, कैनन कंपनी का कैमरा, 2 मैमोरी कार्ड, कैमरे का लैंस, एलईडी हैलोजन, स्पौट लाइट स्टैंड, ट्रायपोड स्टैंड सहित करीब 5 लाख 68 हजार रुपए का सामान जब्त किया. इन के अलावा शूटिंग के लिए लिखे गए डायलौग्स और स्क्रिप्ट सहित कुछ इकरारनामे भी बरामद किए. कई केस हुए दर्ज पूछताछ के लिए पांचों लोगों को पुलिस मालवणी पुलिस थाने ले आई. एपीआई लक्ष्मीकांत सांलुखे ने इस मामले में पुलिस थाने में केस दर्ज कराया. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420 और 34 के अलावा स्त्री असभ्य प्रतिरूपण प्रतिषेध अधिनियम की विभिन्न धाराओं आदि में 5 फरवरी को मुकदमा दर्ज कर पांचों लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने पांचों लोगों से पूछताछ की, तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि मुंबई में पोर्न फिल्में बनाने वाला रैकेट चल रहा है. इस में कुछ नामी अभिनेता और अभिनेत्री भी शामिल हैं. ये अभिनेता, अभिनेत्री बी और सी ग्रेड की बौलीवुड फिल्मों में काम कर चुके हैं. ऐसी फिल्म प्रोडक्शन कंपनियां ऐक्टिंग के लिए स्ट्रगल कर रही युवतियों को हीरोइन बनाने का ख्वाब दिखातीं और उन से शौर्ट फिल्म में काम करने का एग्रीमेंट करती थी. एग्रीमेंट के बाद शूटिंग के दौरान ये लोग न्यूड सीन देने का दबाव डालते थे. मना करने पर एग्रीमेंट के आधार पर केस करने की धमकी देते थे. पांचों लोगों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने पोर्न फिल्में बनाने और उन्हें ओटीटी प्लेटफार्म पर अपलोड करने के मामले में अभिनेत्री गहना वशिष्ठ को भी 6 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया.

गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी से बौलीवुड भी सकते में आ गया. पुलिस का कहना था कि गहना वशिष्ठ के प्रोडक्शन हाउस में पोर्न फिल्मों की शूटिंग होती थी. गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी पर उस की लीगल टीम ने एक बयान में कहा कि वह निर्दोष हैं. बोल्ड फिल्मों और हार्डकोर पोर्न फिल्मों में अंतर होता है. मुंबई पुलिस ने इन दोनों को एक समझ लिया. हमें उम्मीद है कि अदालत दोनों फिल्मों में अंतर समझ कर गहना को न्याय देगी. गहना वशिष्ठ, यास्मीन खान, प्रतिभा नलावडे और बाकी तीनों गिरफ्तार पुरुष आरोपियों मोनू जोशी, भानु ठाकुर व मोहम्मद नासिर से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने पोर्न फिल्मों से कमाई गई 36 लाख 60 हजार रुपए की रकम भी बरामद की.

इन सभी से पूछताछ में पता चला कि पोर्न फिल्मों की शूटिंग भारत में मुंबई और दूसरी जगहों पर होती थी, लेकिन कानून की गिरफ्त से बचने के लिए इन फिल्मों के वीडियो विदेश के आईपी एड्रेस और सर्वर से अपलोड किए जाते थे. गहना वशिष्ठ की प्रोडक्शन कंपनी की ओर से ये वीडियो उमेश कामत को वी ट्रांसफर के जरिए भेजे जाते थे. उमेश उस लिंक को लंदन भेजता था. वहां से इन फिल्मों के वीडियो ओटीटी प्लेटफार्म पर अपलोड होते थे. वी ट्रांसफर दुनियाभर में ई फाइल भेजने का सब से सरल तरीका है. इस के जरिए 2 जीबी तक की बड़ी फाइलें भी मुफ्त में भेजी या मंगाई जा सकती हैं. पुलिस जांच में सामने आया कि उमेश कामत इस काम का कोआर्डिनेटर है और उस के जरिए ही पेमेंट मिलता था.

क्राइम ब्रांच को करीब 3 दरजन ऐसी फिल्मों के सबूत मिले, जो उमेश के जरिए लंदन भेजी गईं और वहां से अपलोड की गईं. उमेश कामत बौलीवुड की एक टौप अभिनेत्री के पति की कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर है. अभिनेत्री का पति इस कंपनी में चेयरमैन और नान एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जरूरी सबूत जुटाने के बाद पुलिस ने इस मामले में 8 फरवरी को उमेश कामत को भी गिरफ्तार कर लिया. उमेश और दूसरे आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि प्रत्येक ऐसे वीडियो के एवज में विदेशी अपलोडर्स से उन्हें 2 से ढाई लाख रुपए मिलते थे. इन में से करीब एक लाख रुपए कलाकारों, कैमरामैन और फिल्म एडिटर आदि को दिए जाते थे और बाकी एक से डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा होता था.

विवादों की रानी गहना गहना वशिष्ठ से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि ऐसी फिल्मों के लिए उस ने ओटीटी के दरजनों ऐप बनाए थे. पुलिस ने जांच की, तो इन में से एक ऐप पर ही उस के 67 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर निकले. कोरोना काल में उस ने 85 से ज्यादा ऐसी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म पर चलाई थीं. फरवरी में ही उस का 5-6 ऐसी फिल्में रिलीज करने का विचार था. पुलिस जांच में सामने आया कि फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ने हौटहिट मूवीज नाम का एक ऐप भी बना रखा है. इस पर वे अपनी पोर्न फिल्म को अपलोड करते थे. इस ऐप के लिए बाकायदा 2 हजार रुपए तक सब्सक्रिप्शन फीस ली जाती थी.

8 फरवरी की रात पुलिस ने इस मामले में एक फोटोग्राफर श्याम बनर्जी उर्फ दिवांकर खासनवीस को गिरफ्तार किया. पोर्न फिल्म केस में यह 8वीं गिरफ्तारी थी. पुलिस का कहना है कि हौटहिट ऐप का संचालन 5 फरवरी को ग्रीन पार्क बंगला से गिरफ्तार महिला फोटोग्राफर यास्मीन खान और बाद में पकड़ा गया उस का पति फोटोग्राफर श्याम बनर्जी मिल कर करते थे. पुलिस की जांचपड़ताल में पोर्न फिल्म रैकेट के तार मुंबई से गुजरात के सूरत तक पहुंच गए. बाद में 10 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में बी और सी ग्रेड बौलीवुड फिल्मों के अभिनेता तनवीर हाशमी को सूरत से गिरफ्तार किया.

पोर्न फिल्मों के मामले में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह पैसे कमाने की अंधी दौड़ में युवा पीढ़ी को पतन के रास्ते पर ले जाने की कहानी है. कोरोना काल में जब मार्च 2020 के चौथे सप्ताह में पूरे देश में लौकडाउन हो गया, तब देश की दोतिहाई आबादी अपने घरों में कैद हो कर रह गई.  इस दौरान लोगों के पास मनोरंजन के नाम पर केवल मोबाइल रह गए. मोबाइल पर इस दौरान पोर्न फिल्में देखने वालों की तादाद बढ़ गई. इस का फायदा उठा कर मुंबई के कुछ सी ग्रेड फिल्मकारों ने पोर्न फिल्में बनाने की योजना बनाई.

मई 2020 में जैसे ही अनलौक का पहला चरण शुरू हुआ, तो इन लोगों ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए देसी पोर्न फिल्में बनाने का काम शुरू कर दिया. इन में अभिनेत्री गहना वशिष्ठ, अभिनेता तनवीर हाशमी और फोटोग्राफर यास्मीन खान आदि ने मुंबई में मलाड इलाके में मड आइलैंड के बंगलों को किराए पर लिया. उस समय फिल्मों व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद थी, तब इन बंद बंगलों में ऐसी फिल्मों की शूटिंग होने लगी. उस समय पुलिस और प्रशासन कोरोना से बचाव की जद्दोजहद में जुटा हुआ था. इसलिए पुलिस को इस सब की जानकारी नहीं मिली.

गहना वशिष्ठ पर 85 से ज्यादा पोर्न फिल्में पोर्न वेबसाइट या ऐप्स पर अपलोड करने का आरोप है. इन में कुछ नामी मौडल्स को भी शूट किया गया था. मौडल्स और खूबसूरत चेहरेमोहरे वाली युवतियों को शौर्ट फिल्मों के लिए बुला कर एग्रीमेंट किया जाता था. एग्रीमेंट कुछ सचाई कुछ कुछ मिनट की शूटिंग के बाद एक्टर्स को पोर्न सीन करने के लिए मजबूर किया जाता था. ऐसे सीन नहीं करने पर उन्हें कानूनी नोटिस भेजने की धमकी दी जाती थी. इस का कारण यह था कि 30-40 हजार रुपए मेहनताना का एग्रीमेंट करने वाली मौडल और युवतियां उस एग्रीमेंट को पढ़ती नहीं थी. उन से केवल एकदो दिन की शूटिंग होने के नाम पर जल्दी में दस्तख्त करा लिए जाते थे.

पेशे से फोटोग्राफर यास्मीन उर्फ रोवा खान ने भी 50 से ज्यादा पोर्न फिल्में बनाई हैं. ऐसी फिल्मों की शूटिंग आमतौर पर एक ही दिन में पूरी कर ली जाती थी. एडिटिंग में 2 से 3 दिन का समय लगता था. इस तरह करीब 20 से 30 मिनट की फिल्म तैयार हो जाती थी. इस के बाद ऐसी फिल्मों को विदेश के आईपी एड्रेस और सर्वर के जरिए ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज कर दिया जाता था. पोर्न फिल्मों के इस मामले में कथा लिखे जाने तक पुलिस में 4 केस दर्ज हुए थे. इन में 2 युवतियों ने मालवणी पुलिस थाने में केस दर्ज कराया. एक ने वसई के अर्नाला पुलिस स्टेशन में शिकायत दी. यह शिकायत लोनावाला पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर की गई है. एक केस महाराष्ट्र साइबर सेल में दर्ज हुआ है.

इन में एक मौडल ने शिकायत में कहा कि गहना के प्रोडक्शन हाउस की ओर से शूट किए वीडियो में उसे न्यूड पोज देने के लिए फोर्स किया गया. एक मौडल ने गहना के खिलाफ 3 पुरुषों के साथ सैक्स करने को मजबूर करने का आरोप लगाया है. झारखंड की एक युवती ने मालवणी पुलिस थाने में दी शिकायत में पोर्न फिल्म न करने पर 10 लाख रुपए का हर्जाना देने की धमकी देने का आरोप लगाया है. अभिनेत्री गहना वशिष्ठ को पैसों का लालच ही इस गंदे काम की तरफ खींच लाया. छत्तीसगढ़ के चिरमिरी की रहने वाली गहना का असली नाम वंदना तिवारी है.

16 जून, 1988 को जन्मी वंदना तिवारी ने भोपाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया था. सन 2012 में जब उस ने मिस एशिया बिकनी कांटेस्ट जीता, तब वह लोगों की नजर में आई थी. उस ने इस प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सब से ज्यादा अंक हासिल किए थे.  बाद में उस ने मौडलिंग करते हुए करीब 80 विज्ञापनों में अपने जलवे दिखाए. इन में मोंटे कार्लो, फिलिप्स एरेना, शेवरले क्रूज कार, ड्रीम स्टोन ज्वैलरी, पलक साड़ीज आदि मुख्य थे. बाद में वह स्टार प्लस के सीरियल ‘बहनें’ में लीड रोल में नजर आई. क्रिकेट वर्ल्ड कप 2015 के लिए उस ने योगराज सिंह और अतुल वासन के साथ एक न्यूज चैनल पर ऐंकरिंग भी की.

गहना वशिष्ठ ने अपना फिल्मी कैरियर ‘फिल्मी दुनिया’ नामक हिंदी फिल्म से शुरू किया. बौलीवुड फिल्म इंडियन नेवर अगेन निर्भया, दाल में कुछ काला है, लखनवी इश्क, सविता बार्बी, निर्भया, उन्माद और द प्रौमिस में उस ने अभिनय किया. इस के अलावा गहना ने करीब एक दरजन तेलुगू फिल्मों में भी महत्त्वपूर्ण रोल किए. एक स्पैनिश फिल्म में भी उस ने काम किया. वह साउथ के एक नामी अभिनेता की गर्लफ्रैंड भी रही है. वह अल्ट बालाजी की वेब सीरीज ‘गंदी बात’, उल्लू ऐप के ‘मी टू’, अमेजन प्राइम के ‘मिरर द बिटर’, प्राइम फ्लिक्स के भाभीजी घर पर हैं आदि के अलावा ओटीटी प्लेटफार्म न्यूफ्लिक्स आदि पर भी नजर आई. उस ने कई म्यूजिक वीडियो में भी काम किया.

तिरंगा लपेट कर फोटो शूट कराने और मैरीकाम के ओलिंपिक मैडल जीतने पर न्यूड फोटो खिंचवाने के कारण गहना वशिष्ठ विवादों में रह चुकी है. सन 2018 में वह तब भी चर्चा में आई थी, जब उन्होंने बिग बौस की प्रतिभागी अर्शी खान को ले कर दावा किया था कि वे अपनी उम्र कम बताती हैं. गहना ने दावा किया था कि अर्शी ने 50 साल के आदमी से शादी की है और उन के खिलाफ भारत व पाकिस्तान के झंडों के अपमान सहित 10 आपराधिक मामले दर्ज हैं. गहना की कंपनी जीवी स्टूडियों का खेल गहना वशिष्ठ ने जीवी स्टूडियोज के नाम से अपनी प्रोडक्शन कंपनी बना रखी है.

मुंबई पुलिस गहना वशिष्ठ की कंपनी के सामने आए वीडियो को पोर्न बता रही है. वहीं, गहना की कंपनी का कहना है कि जीवी स्टूडियोज की ओर से निर्मित और निर्देशित वीडियो को इरोटिका के रूप में क्लासीफाइड किया जा सकता है. कंपनी का कहना है कि उन्होंने केवल ऐसी फिल्में बनाई हैं, जो कानूनन बनाई जा सकती हैं. पुलिस ने भारत में हार्ड पोर्न और उन के मेकर्स की बनाई फिल्मों के साथ गहना की इरोटिका फिल्मों को मिक्स कर दिया है जबकि इरोटिका, कामुक या बोल्ड फिल्मों के बीच एक कानूनी अंतर है. बी और सी ग्रेड बौलीवुड फिल्मों का अभिनेता तनवीर हाशमी अब तक 40 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुका है.

गुजरात के सूरत के रहने वाले 40 वर्षीय तनवीर ने 20 साल के अपने फिल्मी कैरियर में ‘रात की बात’, ‘जख्मी नागिन’, ‘द रीयल ड्रीम गर्ल’, ‘भीगा बदन’, ‘बेस्ट पार्टनर’, ‘परदा’, ‘गरम’, ‘नाइट लवर’, ‘रेडलाइट’, ‘कामवाली’, ‘रिक्शावाली’, ‘कुंआरा पेइंग गेस्ट’, ‘दूधवाली’ और  ‘की क्लब’ जैसी सैक्सी फिल्मों में काम किया है. तनवीर सूरत के बारदोली इलाके में बंगला किराए पर ले कर पोर्न फिल्में बनाता था. पिछले 20 साल से फिल्मी परदे पर नजर आने के कारण उस की एक खास दर्शक वर्ग में पहचान थी. अपनी इसी पहचान के दम पर वह वेब सीरीज बनाने के बहाने ऐक्टिंग के शौकीन युवकयुवतियों को अपने जाल में फांस कर पोर्न फिल्में बनाता था.

पहले उस ने मुंबई में ही ऐसी कुछ फिल्में बनाई, लेकिन मुंबई में शूटिंग के लिए बंगलों का किराया ज्यादा था. इसलिए वह सूरत और आसपास के इलाकों में कम किराए के बंगले ले कर ऐसी फिल्में बनाने लगा. इस के लिए वह मुंबई से मौडल और युवतियों को सूरत बुलाता था. तनवीर और गहना न्यूफ्लिक्स ओटीटी के लिए भी ऐसी फिल्में बनाते थे. इस के चार लाख से ज्यादा कस्टमर हैं. ओरल सैक्स का मामला तनवीर हाशमी सन 2015 में मुंबई के साकीनाका में हुए ओरल सैक्स कांड से भी जुड़ा हुआ रहा है. उस समय एक मौडल ने आरोप लगाया था कि उस के साथ साकीनाका पुलिस स्टेशन में एक पुलिस इंसपेक्टर ने ओरल सैक्स किया था.

उस समय इस मामले में तनवीर हाशमी सहित एक नामी टीवी सीरियल का प्रोड्यूसर भी पकड़ा गया था. तनवीर उस समय साकीनाका पुलिस स्टेशन के कुछ अधिकारियों का खबरी हुआ करता था. उस समय तनवीर के क्रेडिट कार्ड से ही अंधेरी के एक पांच सितारा होटल में कमरा बुक कराया गया था. होटल के इसी कमरे में पीडि़त मौडल को 2 लाख रुपए के साइनिंग अमाउंट के लिए बुलाया गया था. ऐन वक्त पर मौडल ने उस कमरे में जाने से इनकार कर दिया और अपने बौयफ्रैंड को फोन कर दिया. आरोप लगा कि मौडल को उस का बौयफ्रैंड जब होटल से बाइक पर ले जा रहा था, तो साकीनाका थाना पुलिस ने उन दोनों को अगवा कर लिया.

बाद में एक पुलिस इंसपेक्टर ने एक पुलिस चौकी में मौडल को ले जा कर ओरल सैक्स किया था. इस मामले में आरोपी पुलिस वालों की भी गिरफ्तारी हुई थी. पोर्न फिल्मों का मामला नया नहीं है. मुंबई पुलिस ने कुछ दिन पहले संदीप इंगले नामक एक कास्टिंग डायरेक्टर को गिरफ्तार किया था. वह खुद को फिल्म प्रोड्यूसर भी बताता था और प्रेम के नाम से सैक्स रैकेट भी चलाता था. उस ने सैक्स रैकेट चलाने के लिए कई वेबसाइट बनाई थीं. इन वेबसाइटों को सर्च करने पर लोग आरोपियों से संपर्क करते थे. इस मामले में मुंबई के पांच सितारा होटल से 8 युवतियां मुक्त कराई गई थीं. इन में कुछ युवतियां नामी मौडल थीं.

मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में भी पिछले साल जुलाई में पोर्न फिल्में बनाने का मामला सामने आया था. इंदौर पुलिस ने मौडल युवतियों की शिकायत पर मिलिंद डावर, अंकित सिंह चावड़ा, रैकेट के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर, गजेंद्र उर्फ गज्जू उर्फ गोवर्धन चंद्रावत आदि को गिरफ्तार किया था. ये लोग भी बंगलों और फार्महाउसों में पोर्न फिल्में बनाते और युवतियों का देह शोषण करते थे. मुंबई पोर्न फिल्म मामले में गिरफ्तार अभिनेत्री गहना वशिष्ठ के मकान और प्रोडक्शन हाउस की तलाशी में 3 मोबाइल फोन, 2 लैपटौप, 2 हार्ड डिस्क, 5 मैमोरी कार्ड, एक एडाप्टर, एक पेनड्राइव, प्रोडक्शन हाउस की रबर स्टैंप और एक कंपनी व कुछ कलाकारों के साथ एग्रीमेंट से जुड़े 10 करार पत्र सहित कई दस्तावेज मिले हैं.

गहना के एक बैंक खाते में एक आरोपी की ओर से रकम भेजे जाने के सबूत भी मिले हैं. पुलिस की ओर से इस मामले में गिरफ्तार और फरार आरोपियों के 2019 के बाद के बैंक खातों के लेनदेन के अलावा ईमेल, मोबाइल काल, वाट्सऐप चैट आदि की पड़ताल की जा रही है. गहना वशिष्ठ के कारोबारी पति सहित कई मौडल भी पुलिस जांच के दायरे में हैं. इस मामले में कुछ और गिरफ्तारियां होने के साथ बौलीवुड के चौंकाने वाले नए खुलासे होने की संभावना है. crime story

 

 

 

 

Short Kahani in Hindi : बीटेक छात्र ने रचा बैंक डकैती का प्लान

Short Kahani in Hindi : आदमी सोचता कुछ और है और हो कुछ और जाता है. इकबाल ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक अकबर को बैंक डकैती की योजना में शामिल तो इसलिए किया था कि काम का बंदा है, बाद में उस का हिस्सा हड़प कर निपटा देंगे. लेकिन ऐसा हो…

अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई. अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे.

ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले. इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था. 12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था. अकबर के बदन पर जहां मामूली कपड़े थे, वहीं इकबाल ने बढि़या सूट पहन रखा था. उस के रंगढंग बदल गए थे. दोनों एक होटल में बैठ कर बातें करने लगे, एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताने लगे. अकबर ने कहा, ‘‘बीटेक करने के बाद मैं एक औफिस से दूसरे औफिस में धक्के खा रहा हूं. यही नहीं, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है, उन्हें शुगर की बीमारी है. मां ने एक कंपनी में 2 लाख रुपए फिक्स करा दिए थे और 4 साल बाद 4 लाख रुपए मिलने थे.

‘‘लेकिन वह कंपनी साल भर बाद ही लोगों से करोड़ों रुपए ले कर चंपत हो गई. इस घटना ने मुझे बड़ा विद्रोही बना दिया है. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’’

‘‘मैं ने भी तेरी तरह बहुत धक्के खाए हैं. कुछ नहीं मिलता इन नौकरियों में. बस, घर की दालरोटी चल सकती है.’’ इकबाल के स्वर में कठोरता शामिल हो गई थी, ‘‘अगर तुम शान से जिंदगी बिताना चाहते हो तो कल शाम को मुझ से मिलो.’’

फिर उस ने अखबार के एक टुकड़े पर कोई पता लिख कर दे दिया. अकबर ने वह पर्ची ले कर अपनी जेब में रख ली. इकबाल आगे बोला, ‘‘मेरे पास एक औफर है. अगर मंजूर हो तो वहीं बता देना और अगर न हो तो तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते.’’ उस के बाद अकबर और इकबाल अपनेअपने घरों की ओर चल पड़े. अगले दिन इतवार था. अकबर को कहीं इंटरव्यू नहीं देना था इसलिए उस ने इकबाल को आजमाने का फैसला किया और उस के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान का गेट इकबाल ने ही खोला और उसे अंदर ले गया. चाय तैयार थी. चाय का कप अकबर को देने के बाद इकबाल ने अपनी बात शुरू की, ‘‘देखो अकबर, मैं जानता हूं कि तुम एक शरीफ आदमी हो मगर अब शराफत का जमाना नहीं रहा. मैं ने भी बहुत धक्के खाए हैं तुम्हारी तरह.

‘‘शायद जिंदगी भर धक्के ही खाता रहता, अगर मुझे नासिर भाई न मिलते. क्या शानदार दिमाग है उन के पास. यकीन करो, मैं उन के साथ रह कर हर महीने एक लाख रुपए कमाता हूं और कभीकभी उस से भी ज्यादा.’’

इकबाल की बात सुन कर अकबर हैरान रह गया, ‘‘एक लाख…वह कैसे?’’

‘‘हम बड़े काम में हाथ डालते हैं. गाडि़यां, बाइक्स छीनते हैं. बड़ीबड़ी दुकानों में डकैती डालते हैं. बंगलों के अंदर घुस जाते हैं. एक महीने में 2-3 वारदातें भी कर लीं तो एक लाख आसानी से बन जाता है,’’ इकबाल बोला.

अकबर सन्न रह गया. वह जानता था कि बेरोजगारी के इस दौर में अपना हक छीनना ही पड़ता है, मगर इकबाल तो उस से भी ऊपर की चीज था. वह बोला, ‘‘मगर यार, इस में तो बहुत खतरा है. पकड़े जाने का और जान जाने का भी.’’

‘‘मेरी जान, खतरे के बगैर कोई खेल नहीं खेला जाता. वैसे हमारी तरह के लोग इसलिए पकड़े जाते हैं कि पुलिस को मुखबिरी हो जाती है या कोई साथी गद्दारी कर जाता है. लेकिन यहां अपने साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. क्योंकि नासिर भाई पुलिस में हैं. वे सब संभाल लेते हैं.

‘‘पहले हम सिर्फ 2 लोग थे मगर अब हर वारदात में एक ऐसा बंदा जरूर रखते हैं जो अपने काम में पारंगत हो. जैसे पिछली बार हमारे साथ तिजोरियों का लौक तोड़ने वाला एक माहिर आदमी था,’’ इकबाल ने कहा.

‘‘तो ऐसा एक बंदा स्थायी रूप से क्यों नहीं रख लेते,’’ अकबर ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, हम ऐसा नहीं करते. हमारे ग्रुप की परंपरा है कि एक बंदा सिर्फ एक वारदात में साथ देता है. इस बार खेल बड़ा है, इसलिए भरोसे के आदमी की जरूरत है. हमें कंप्ूयटर का एक माहिर आदमी चाहिए.

‘‘तुम ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. अगर तुम हमारे साथ मिल जाओ तो हमारा काम बड़ी आसानी से हो सकता है. 3-4 करोड़ का खेल है. अगर कामयाब रहे तो 50 लाख तेरे, 50 लाख मेरे और बाकी नासिर भाई के. अगर मंजूर है तो बताओ.’’ इकबाल बोला. 50 लाख की बात सुन कर अकबर की आंखें फैल गईं. अगर उसे कोई छोटीमोटी नौकरी मिल भी गई तो गुजारा भर ही हो पाएगा. और कहां 50 लाख, वह कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘मुझे कुछ वक्त दो.’’

‘‘हां, अभी काफी वक्त है. यह काम एक महीने बाद करना है और ये पैसे रख लो.’’ इकबाल ने 10-15 हजार रुपए निकाल कर अकबर की जेब में ठूंस दिए. फिर वह अकबर से बोला, ‘‘पैसों की परेशानी से दूर रह और अपना पहनावा ठीक कर. लेकिन बात बाहर न जाने पाए.’’

अकबर उस के स्वर में छिपी धमकी को समझ गया था. उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. कुछ देर बाद वह ढेरों सोचों को दिमाग में समेटे अपने घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया. मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.

अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था. नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.

रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है. असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’

थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया. जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’

अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.

‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’

तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’

‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.

‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.

‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.

‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.

यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते. इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.

सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.

ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े. बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था. अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया.

कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी. इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी. बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.

मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर 2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले. गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.

बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता. वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका. ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम  को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था. दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.

उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’ इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं. 25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’

तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’

नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.

‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.

‘‘अभी हाल में हम ने सरकारी खजाना लूटा था, जिस के लिए राइफल के एक निशानेबाज की जरूरत थी. बाद में हम ने उसे भी यहीं दफना दिया. यहां ऐसे ही कई हुनरमंद लोग दफन हैं. लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारी लाश का क्या किया जाए.

खैर, हम आपस में सलाह कर लेंगे. शीजा तो हमें 2-4 रात जन्नत की सैर कराएगी, फिर उस के बारे में सोचेंगे कि क्या करना है.’’

नासिर की बात सुन कर अकबर के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बारीबारी से नासिर और इकबाल से दया की भीख मांगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अकबर शीजा के बारे में सोच रहा था. उस ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर धांय की आवाज के साथ गोली चली. लेकिन अकबर को दर्द का अहसास नहीं हुआ. मगर इकबाल की चीख कमरे में गूंज उठी. उस के दाएं हाथ में गोली लगी थी और पिस्टल उस के हाथ से छूट कर दूर जा गिरी थी. नासिर ने चौंक कर पीछे देखा. वहां रिवौल्वर हाथ में लिए शीजा खड़ी मुसकरा रही थी.

‘‘अकबर सौरी, मुझे कुछ देर हो गई. तुम ठीक तो हो न?’’ वह रिवौल्वर से इकबाल और नासिर को कवर करती हुई बोली.

शीजा को इस रूप में देख कर नासिर बौखला उठा था, जबकि इकबाल अपने जख्मी हाथ का खून रोकने की कोशिश कर रहा था. अकबर बोला, ‘‘हांहां, मैं ठीक हूं.’’

फिर वह आगे बढ़ कर शीजा के गले लग गया. तभी नासिर गुर्रा कर बोला, ‘‘ठीक है, खूब गले मिलो. लेकिन यहां से बच कर नहीं जा पाओगे.’’

‘‘यह बात तुम ने गलत कही, अभी देख लेना. खैर, तुम ने अपनी परंपरा बता दी, अब मेरी भी परंपरा सुन लो. मैं जिन पर शक कर लेता हूं, उन्हें उन की गलती की सजा जरूर मिलती है.’’ अकबर ने कुटिल स्वर में कहा.

नासिर बोला, ‘‘कौन सजा देगा मुझे… तुम?’’

फिर उस ने ठहाका लगाते हुए अपनी जेब की ओर हाथ बढ़ाया, तभी पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी तथा कई पुलिस वाले कमरे में घुस आए.

‘‘हैंड्सअप! मैं तुम्हें दूंगा सजा नासिर. कानून तुझे सजा देगा नमकहराम. तूने पुलिस विभाग को बदनाम कर दिया.’’ पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी ने गुस्से से कहा.

पुलिस वाले नासिर और इकबाल को गिरफ्तार कर चुके थे. इकबाल और नासिर की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया. दरअसल, अकबर और शीजा एक ही कालेज में 12वीं तक साथसाथ पढ़े थे तथा एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन शीजा के पिता की अचानक मौत हो जाने पर उसे अपने गांव जाना पड़ा और वह वहीं रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगी थी जबकि अकबर ने बीटेक कंप्यूटर साइंस में दाखिला ले लिया था. इसी कारण दोनों बिछुड़ गए थे. जब नासिर ने शीजा का अकबर से परिचय कराया तो वे एकदूसरे से अपरिचित बने रहे ताकि इकबाल और नासिर को कोई गलतफहमी न होने पाए. लेकिन वे उस के बाद एकदूसरे से बराबर मिलते रहे. दोनों को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे नासिर और इकबाल का साथ देने को तैयार हो गए.

लेकिन बैंक डकैती के कुछ दिनों बाद जब बैंक के दोनों गार्ड्स की अचानक हत्या हो गई तो शीजा और अकबर को अपने बारे में सोचना पड़ा. नासिर और इकबाल ने अभी पैसों का बंटवारा नहीं किया था और कुछ दिनों बाद उन्हें उसी मकान में बुलाया था लेकिन अकबर को शक हो गया था कि वे लोग उसे और शीजा को नुकसान पहुंचाएंगे. इसलिए अकबर और शीजा पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी से मिले जो शीजा के दूर के मामा लगते थे. उन्होंने सारी बात जफर जीलानी को बता दी. फिर शीजा और अकबर ने वैसा ही किया, जैसा जफर जीलानी ने उन से कहा था. इस घटना के बाद कई डकैतियों और लूटपाटों का परदाफाश हो गया तथा काफी मात्रा में रुपए और जेवरात बरामद हुए.

कई लोगों के गायब होने की गुत्थी भी सुलझ गई, जिन्हें नासिर और इकबाल ने मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी शीजा और अकबर के व्यवहार तथा हिम्मत से बहुत खुश हुए. उन्होंने दोनों को वादामाफ गवाह बना दिया. जल्दी ही इकबाल और नासिर को सजा सुना दी गई. जबकि शीजा और अकबर को पुलिस के साइबर विभाग में नौकरी मिल गई. Short Kahani in Hindi

Short Story : खुद से शादी करने वाली मेग की अनोखी कहानी

Short Story  : सन 2013 में कंगना रनौत की एक सुपरहिट फिल्म आई थी ‘क्वीन’, जिसे नैशनल अवार्ड भी मिला था. इस फिल्म में कंगना का एक डायलौग था, ‘मैं इंडिया से आई हूं, राजौरी. राजौरी सुना है? अपने हनीमून पर अकेली आई हूं.’ उस समय यह डायलौग कुछ लोगों को अच्छा लगा था, कुछ को अटपटा. फिर भी पसंद किया गया, फिल्म तो पसंद थी ही.

अब इस से भी आगे बढ़ कर एक मामला सामने आया है. अमेरिका के अटलांटा की एक लड़की मेग ने खुद से ही प्यार किया और खुद से ही शादी का फैसला कर लिया. यहां तक की खुद की वेडिंग सेरेमेनी भी अरेंज की. यह फिल्मी नहीं, हकीकत की जिंदगी की कहानी है. दरअसल, मेग 2020 में अपने बौफ्रैंड से हैलोवीन में शादी करने वाली थी, लेकिन अचानक उस का इरादा बदल गया और 35 साल की मेग ने खुद से ही शादी कर ली. उस ने अपनी मैरिज सेनेमनी पर 1000 यूरो (1.02 लाख रुपए) भी खर्च किया.

अपनी शादी में मेग ने अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को भी बुलाया. शादी में मेग ने रिंग भी पहनीऔर केक भी काटा. इस के लिए मेग ने सामने एक बड़ा शीशा रखा और खुद को रिंग पहनाई. फिर शीशे में ही खुद को किस किया. मेग का कहना था, ‘खुद से शादी करना लोगों से बहुत आगे बढ़ जाना है. साथ ही यह भी बताना है कि चीजों को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. मैं सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोच रही हूं.’ वाकई मेग का फैसला और यह कदम चौंकाने वाला है. Short Story

Short Stories : पिता ने शादी की शर्त रखी – बेटी से शादी करनी है तो सैनिक पठान से लड़ना होगा

Short Stories : जैसलमेर रियासत के मंत्री महबूब खान की बेटी रेशमा ठाकुर विजय सिंह से इतनी प्रभावित हुई कि उस ने उन से शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन महबूब खान ने रेशमा से शादी के लिए सैनिक पठान खान और ठाकुर विजय सिंह के बीच युद्ध कराने की ऐसी शर्त रखी कि…

उन दिनों रेगिस्तान में पानी कुंओं से निकाल कर पीया जाता था. उसी पानी से पशुधन के साथ गांव, कस्बों एवं नगरों के लोगों की भी प्यास बुझती थी. युवतियां एवं बहुएं कुएं से पानी भर कर घर ले जाती थीं. दिनरात लोग पानी के जुगाड़ में रहते थे. शाहगढ़ के कुंए के पनघट पर बारात रुकी थी. बारात दीनगढ़ के जागीरदार ठाकुर मोहन सिंह की थी. मोहन सिंह 500 बारातियों के साथ शाहगढ़ के ठाकुर खेतसिंह की बेटी दरियाकंवर से ब्याह रचाने आए थे. जानी डेरा (बारात के रुकने का स्थान) कुंए के पनघट के पास था. पनघट पर गांव की महिलाएं सिर पर मटके रख कर पानी ले जा रही थीं.

बारात में तमाम गांवों के ठाकुर, जागीरदार आए हुए थे. इस बारात में जैसलमेर रियासत के तमाम गांवों के ठाकुर शामिल हुए थे. ठाकुर मोहन सिंह ने अपनी शादी में तिजौरियों के मुंह खोल दिए थे. दीनगढ़ में 7 दिन तक लगातार खुला रसोड़ा चला. गलीगली में खातिरदारी हुई. सारा दीनगढ़ नाचगाना, रागरंग में डूब गया था. प्रभावशाली और अत्यधिक धनी व्यक्ति ऐसे अवसर पर धन बहाने में अपनी शानोशौकत समझता है. मोहनसिंह ने भी यही किया था. दीनगढ़ दुर्ग से बारात शाहगढ़ के लिए रवाना हुई. सोने की मोहरे उछाली गईं. मार्ग के दोनों ओर भीड उमड़ पड़ी. सब से आगे रियासत के नामीगिरामी मांग ठाहार शहनाई नौबत बाजे बजाते निकले. फिर मंगल कलश ले कर बालिकाएं.

पीछे मंगल गीत गाती महिलाएं. उन के बाद सजेधजे घोड़ों पर राज्य के हाकिम, ठाकुर, अमीर उमराव चल रहे थे. उन के पीछे तमाम बाराती ऊंटों पर सवार थे. बारात के पड़ावों की जगह पहले से तय थीं. वहीं खानेपीने और रागरंग का पूरा इंतजाम था. सारे रास्ते बाराती हो या कोई और सब के लिए रसोड़ा खुला था. रास्ते के गांवों में जबरदस्त हलचल थी. दूरदूर से लोग बारात देखने आ रहे थे. दोपहर बाद बारात शाहगढ़ पहुंची तो उस का भव्य स्वागत हुआ. बारातियों, घोड़ों और ऊंटों को पानी की परेशानी न हो इसलिए उसे पनघट के पास ठहराया गया. खानेपीने की अच्छी व्यवस्था थी. ऊंटघोड़ों के लिए कोठाखेली भर दी गई थीं. जितना पानी कम पड़ता उतना ही कुएं से खींच कर भर दिया जाता था.

दिन अस्त होने को था. बारात में हमीरगढ़ के ठाकुर विजय सिंह भी पधारे थे. विजय सिंह की उम्र यही कोई 22-23 बरस थी. विजय सिंह के पिता सुल्तान सिंह का थोड़े समय पूर्व निधन हो चुका था. पिता के निधन के बाद विजय सिंह को हमीरगढ़ का ठाकुर घोषित किया गया था. गौर वर्ण विजय सिंह का बलिष्ठ सुंदर साहसी युवक था. वह अस्त्रशस्त्र चलाने के साथ मल्लयुद्ध में भी निपुण था. हमीरगढ़ के आसपास बीस कोस में विजय सिंह जैसा कोई योद्धा नहीं था. ऐसा योद्धा बारात में हो और उस की चर्चा न हो यह संभव नहीं था. विजय सिंह की वीरता और ताकत की जो बातें शाहगढ़ के जानी डेरे में हो रही थीं. वह शाहगढ़ के लोगों ने भी सुनी.

उन्होंने यह बातें अपने घर जा कर भी सुनाई. तब बलिष्ठ ठाकुर विजय सिंह की शाहगढ़ में भी चर्चा होने लगी. यह चर्चा रेशमा ने भी सुनी. रेशमा शाहगढ़ के ठाकुर खेतसिंह की पुत्री दरियाकंवर की सहेली थी. रेशमा के पिता महबूब खान जैसलमेर रियासत में मंत्री थे. महबूब खान भी दिलेर व ताकतवर व्यक्ति थे. वह शाहगढ़ के रहने वाले थे और रियासत के उन गिनेचुने व्यक्तियों में थे, जो राजा के करीबी थे. रेशमा और दरियाकंवर हमउम्र थीं, साथ ही खास सहेलियां भी. दोनों अलगअलग जातिधर्म की जरूर थीं मगर दोनों धर्म से ऊपर इंसान को महत्त्व देती थीं. रेशमा मानती थी कि जब जीव जन्म लेता है, उस समय वह किसी धर्म का नहीं होता.

जीव का जन्म जिस घर में होता है उसे उसी धर्म से जोड़ दिया जाता है. राजपूत के घर पैदा हुआ तो राजपूत कहलाता है, मुसलमान के घर पैदा हुआ तो मुसलिम कहलाएगा. रेशमा ने ठाकुर विजय सिंह की बहादुरी के चर्चे सुने तो उस का मन उन्हें देखने को व्याकुल हो उठा. रेशमा का घर ‘जानी डेरे’ के पास ही था. उस के दिलोदिमाग पर विजय सिंह से मिलने का भूत सवार हो गया. वह अपनी 2-3 सहेलियों के साथ दरियाकंवर के घर से अपने घर आ गई. वहां रेशमा और उस की सखियों के अलावा कोई नहीं था. रेशमा ने अपने छोटे भाई के हाथ एक पत्र विजय सिंह के पास भेजा. विजय सिंह ने पत्र पढ़ा और जानी डेरे से बाहर आ कर पास वाले घर की ओर देखा, तो उन्हें झरोखे में एक खूबसूरत नवयौवना बैठी दिखाई दी.

वह बला की खूबसूरत थी. गोरी अप्सरा सी सुंदरी, पीली चुनर ओढे़ केशर की बेटी जैसी. अस्त होते सूरज की किरणों ने उस पर अपनी आभा बिखेर कर पीला रंग चढ़ा दिया था. ठाकुरसा ने आंखें मलीं. फिर देखा. सच! एकदम सच! ठाकुर विजय सिंह की आंखों से रेशमा की आंखें चार हुईं, तो दोनों का निगाहें हटाने का मन नहीं हो रहा था. विजय सिंह के रूपयौवन एवं बलिष्ठ शरीर पर रेशमा पहली नजर में ही मर मिटी. रेशमा ने मन ही मन तय कर लिया कि यही उस के सपनों का राजकुमार है. शादी करूंगी तो इसी से वरना ताउम्र कुंवारी रह लूंगी. किसी और से ब्याह नहीं करूंगी.

रेशमा ने हाथ से इशारा किया तो ठाकुरसा उस के आकर्षण में बंधे उस के पास चले आए. रेशमा की सखियां दूसरे कक्ष में छिप गई थीं. रेशमा ने विजय सिंह को बिठाया. दोनों आमनेसामने बैठे थे. मगर बोल किसी के मुंह से फूट नहीं रहे थे. काफी देर तक दोनों अपलक एकदूसरे को निहारते रहे. फिर हिम्मत कर के रेशमा के मुंह से कोयल सी मीठी वाणी निकली, ‘‘आप का स्वागत है, हुकुम.’’

‘‘जी, धन्यवाद.’’ विजय सिंह ने कहा.

‘‘आज शाहगढ़ में तो आप के ही चर्चे हैं. दोपहर में जब से बारात आई है, तब से सब के मुंह पर आप की वीरता के ही किस्से हैं. ऐसे में मैं भी आप से मिलने को व्याकुल हो गई. तभी छोटे भाई के साथ संदेश भिजवाया था मिलने को?’’ रेशमा बोली.

‘‘आप ने बुलाया और हम चले आए. अब बताएं क्या कुछ कहना है?’’ ठाकुर सा ने कहा.

‘‘मेरी बचपन से एक ही तमन्ना है कि मैं अपना जीवनसाथी स्वयं चुनूं. मैं आप से ब्याह करना चाहती हूं…’’ एक ही सांस में कह गई रेशमा. विजय सिंह उसे देखते रह गए. उन से कुछ कहते नहीं बन रहा था. तभी रेशमा बोली, ‘‘आप राजपूत हैं और मैं मुसलमान. मगर प्यार करने वाले जातिधर्म नहीं देखते. मैं ने मन से आप को पति मान लिया है. अब आप को जो फैसला लेना हो लीजिए. मगर इतना जरूर ध्यान रखना कि मैं शादी करूंगी तो सिर्फ आप से. वरना जीवनभर कुंवारी रहना पसंद करूंगी. दुनिया के बाकी सब मर्द आज से मेरे भाई बंधु?’’ रेशमा ने लरजते होठों से कहा.

रेशमा की बात सुन कर विजय सिंह अजमंजस में पड़ गए. वह तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या जवाब दें रेशमा को. वह तो मन से उन्हें पति मान चुकी है. मृगनयनी रेशमा की सुंदरता पर वह भी मर मिटे थे. ऐसी सुंदरी उन्होंने अब तक नहीं देखी थी. ठाकुर सा चकित थे, इस छोटे से गांव शाहगढ़ में इतनी सुंदर लड़की. वह भी सब से अलग. इस में कुछ तो है. यह मुसलमान और मैं राजपूत ठाकुर. धर्म की दीवार आड़े आ रही थी. इस कारण ठाकुर सा ने अगली सुबह तक जवाब देने को कहा और विदा ले कर जानी डेरे पर आ गए. विजय सिंह के जानी डेरे लौटते ही रेशमा की सहेलियां रेशमा के पास आ गईं. वह उदास सी थी. सोच रही थी कि अगर विजय सिंह ने उस का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो वह कैसे जिएगी उन के बिना.

रेशमा की यह हालत उस की सहेलियों ने देखी तो धापू बोली, ‘‘रेशमा तुम्हारा हंसता चेहरा ही अच्छा लगता है. तुम्हारे चेहरे पर यह उदासी अच्छी नहीं लगती. भरोसा रखो. सब ठीक ही होगा.’’

‘‘धापू, तुम्हें बता नहीं सकती दिल खोल कर कि मैं आज एक पहर में ही कैसे ठाकुरसा के प्यार में पगला गई. अगर ठाकुर सा ने प्यार स्वीकार न किया तो कल इस समय तक मैं शायद जिंदा नहीं रहूंगी. मैं उन से इतनी मोहब्बत करने लगी हूं कि शायद किसी ने कभी किसी से नहीं की होगी?’’

रेशमा ने दिल की बात कही. तब धापू और अगर सहेलियों ने रेशमा को दिलासा दी कि सब ठीक होगा. उसे उस का सच्चा प्यार जरूर मिलेगा. इस के बाद सहेलियां रेशमा को दिलासा देती हुई शादी वाले घर ले गईं. दूल्हे मोहनसिंह की शादी दरियाकंवर से हो गई. चंवरी में खूब चांदी के सिक्के और सोने की मोहरें उछाली गईं. शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. दरियाकंवर को प्रियतम के रूप में मोहन मिल गया. वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी. वहीं रेशमा बीतती हर घड़ी के साथ उदास होती जा रही थी. उसे यह सवाल परेशान कर रहा था कि ठाकुर सा विजय सिंह उसे क्या जवाब देंगे. अगर ठाकुर सा ने उस का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो… रेशमा सारी रात इसी उधेड़बुन में रही.

सुबह का सूरज निकला. रेशमा नहाधो कर तैयार हुई. नहाने के बाद रेशमा का रूप सौंदर्य निखर उठा. वह ताजे गुलाब सा खिल रही थी. सब लोग बारात की विदाई में जुट गए. उधर विजय सिंह ने अपने कुछ खास ठाकुरों से रेशमा के प्रेम प्रस्ताव के बारे में बात की. विजय सिंह ने उन्हें बताया कि वह बहुत सुंदर हैं. उस की सुंदरता पर मैं भी मर मिटा हूं. मगर दोनों के मिलन में बांधा है दोनों का धर्म. वह मुसलिम है. विजय सिंह को ठाकुरों ने कहा कि प्यार करने वाले जातिधर्म की दीवार तोड़ देते हैं. इतिहास गवाह है कि कई राजामहाराजाओं और ठाकुरों ने ऐसे विवाह किए हैं. अगर वह भी रेशमा से प्यार करने लगे हैं तो उस से बेझिझक ब्याह कर सकते हैं. रेशमा शादी के बाद ठकुरानी सा बन जाएगी.

इस के बाद विजय सिंह ने प्रण कर लिया कि वह शादी करेंगे तो सिर्फ रेशमा से वरना किसी से नहीं. बारात के लिए नाश्ता लाया गया. मगर विजय सिंह ने नाश्ता नहीं किया. उन की भूखप्यास मिट गई थी. वह जानी डेरे से निकल कर उसी झरोखे की तरफ देखने लगे. जिस झरोखे से कल उन्हें रेशमा का दीदार हुआ था और फिर उस के इशारे पर उसे मिलने गए थे. विजय सिंह उसी झरोखे की तरफ अपलक देख रहे थे कि झरोखे में रेशमा प्रकट हुई. वह अपने प्रियतम की ‘हां’ या ‘न’ का इंतजार कर रही थी. विजय सिंह को देखते ही रेशमा के दिल को सुकून सा मिला. उस ने इशारा किया कि चले आओ. विजय सिंह मस्तानी चाल से चल कर रेशमा से जा मिले.

दोनों आमनेसामने बैठ गए. रेशमा के सब्र का बांध टूट रहा था. वह बोली, ‘‘क्या सोचा हुकुम?’’

ठाकुरसा रेशमा के चेहरे को पढ़ कर बोले, ‘‘आप जैसी सुंदरी को अपना जीवनसाथी कौन अभागा नहीं बनाएगा. मैं ने बहुत सोचा और अपने समाज के लोगों से रायमशविरा भी किया. अंतिम निर्णय यह है कि मैं तुम्हारा प्रेम निमंत्रण स्वीकार करता हूं.’’

सुन कर रेशमा का दिल बागबाग हो गया. वह अपनी जगह से लगभग उछलते हुए विजय सिंह के सीने से जा लगी. विजय सिंह ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया. काफी देर तक दो दिल एकदूजे से मिल कर धड़कते रहे. ठाकुर सा ने रेशमा का माथा चूम लिया. दोनों बहुत खुश थे. जब दोनों अलग हुए तो विजय सिंह बोले, ‘‘रेशमा तुम्हारे घर वाले यह रिश्ता मंजूर कर तो लेंगे न?’’

‘‘मैं जो करूंगी वही होगा, मेरे अब्बा और अम्मी मेरी खुशी में ही खुश रहने वाले हैं. आज तक मैं ने उन से जो मांगा वह दिया है. वे मेरी पंसद पर नाज करेंगे और खुशीखुशी आप के साथ ब्याह कर विदा कर देंगे.’’ वह बोली.

‘‘तो ठीक है. हम आप से विवाह जरूर करेंगे. हमें चाहे अपने समाज के लोगों का समर्थन मिले न मिले. इस की कीमत हमें भले ही अपनी जान दे कर चुकानी पड़े.’’ विजय सिंह ने कहा.

‘‘ऐसा न कहिए, हुकुम.’’ रेशमा ने अपना कोमल हाथ विजय सिंह के होंठों पर रख दिया. विजय सिंह और रेशमा ने काफी समय साथ गुजारा और फिर अगली बार मिलने के वादे के साथ जुदा हो गए. बारात वापस चली गई. विजय सिंह भी बारात के साथ रवाना हो गए, मगर वह अपना दिल रेशमा के पास छोड़ गए थे.

विजय सिंह आधे रास्ते से ही अपने घर हमीरगढ़ लौट गए. मगर उन का मन हमीरगढ़ में नहीं लग रहा था. उन के मन में तो सिर्फ रेशमा बसी थी. उधर रेशमा का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की सहेलियां उसे दिलासा देती थीं कि राजपूत वचन के पक्के होते हैं. ठाकुरसा उसे ब्याहने जरूर आएंगे. ऐसे ही समय का पहिया घूमने लगा. रेशमा से बिछुड़े विजय को एक पखवाड़े से ज्यादा हो चुका था. दोनों एकदूसरे को दिन में हजारों बार याद करते थे. मगर कर नहीं सकते थे. एक रोज रेशमा गुमसुम सी बैठी थी कि उस की अम्मी ने उसे पुकारा.

‘‘रेशमा ओ रेशमा…’’ मगर रेशमा को तो जैसे होश ही नहीं था. वह विजय सिंह के खयालों में इस कदर खोई हुई थी कि उसे अम्मी की आवाज सुनाई नहीं पड़ी. अम्मी ने रेशमा को लगभग झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं आवाज पर आवाज दे रही हूं. मगर तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा. किस खयाल में खोई हुई हो. बता तो सही बेटी?’’

रेशमा जैसे नींद से जागी. ‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही अम्मी जान किसी की याद में खोई थी.’’ रेशमा ने कहा. उस की अम्मी ने पूछा, ‘‘किस की याद में इतना खोई थी कि मां की आवाज तक सुनाई नहीं दी. कुछ दिनों से देख रही हूं कि तुम गुमशुम सी हो. क्या बात है बेटी बताओ तो सही.’’

तब रेशमा ने अपनी मां को सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैं विजय सिंह को मन से अपना पति मान चुकी हूं. इस जन्म में तो वो ही मेरे सब कुछ हैं. अम्मी, मेरा प्यार सच्चा है. तुम मुझ से प्यार करती हो तो मेरा ब्याह विजय सिंह से करा दो. इस के बाद मैं तुम से कभी कुछ नहीं मांगूगी?’’ रेशमा ने रोते हुए कहा. मां ने बेटी से यह सब सुना तो वह स्तब्ध रह गईं. बेटी को पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, यह क्या कह रह हो तुम. जो संभव नहीं, वह कैसे मिलेगा. मैं नहीं जानती. मगर सोचने का वक्त दो. देखती हूं, क्या कुछ हो सकता है.’’

इस के बाद रेशमा की मां ने जैसलमेर से शाहगढ़ लौटे अपने पति महबूब खान से एकांत में इस विषय पर चर्चा की. महबूब बहुत खान समझदार थे. वह जैसलमेर रियासत में मंत्री थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वे जानते थे कि प्यार करने वाले जान तक कुरबान कर सकते हैं. ऐसे में उन्होंने ठंडे दिमाग से काम लेते हुए अपनी बेगम से कहा. ‘‘सुबह इस बारे में हम रेशमा से बात करेंगे.’’

रात भर महबूब खान सोचते रहे. क्योंकि महबूब खान ने पठान को वचन दिया था कि वे अपनी बेटी रेशमा से उस का विवाह करेंगे. पठान ने कई बार अपनी जान पर खेल कर मंत्री महबूब खान की जान बचाई थी. पठान सैनिक था. उस ने महबूब खान की सुरक्षा में कभी कोरकसर नहीं रखी थी. पठान सुंदर बांका जवान था. वह अस्त्रशस्त्र चलाने में माहिर था. साथ ही मल्लयुद्ध में भी निपुण था. महबूब खान करें तो क्या करें वाली पशोपेश में फंसे थे. एक तरफ बेटी का प्यार. वहीं दूसरी तरफ उन का स्वयं का दिया पठान को वचन. वह रात भर सोच कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके.

सुबह उन्होंने अपनी बेगम और बेटी रेशमा को एकांत कक्ष में बुला कर बात की. महबूब खान ने रेशमा से कहा, ‘‘बेटी, मेरे कई बार प्राण जातेजाते बचे थे. जानती हो, प्राण मेरे अंगरक्षक सैनिक पठान ने अपनी जान पर खेल कर बचाए.

‘‘मैं ने उस के इन वीरता भरे कदमों से खुश हो कर उसे वचन दिया है कि रेशमा से उस का विवाह करूंगा. अब मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ में है. तुम चाहो तो मेरा वचन कायम रह सकता है. अगर मैं वचन नहीं निभा सका तो मैं प्राण दे दूंगा?’’ कहतेकहते महबूब खान की आंखें भर आईं. रेशमा कहे भी तो क्या. वह तो मन से विजय सिंह को अपना सर्वस्व मान चुकी थी. ऐसे में वह अपने पिता के वचन का मान कैसे रखती. अगर पिता के वचन का मान रखती तो उस का प्यार विजय सिंह उसे धोखेबाज ही कहता. रेशमा ने विजय सिंह के सामने उन की प्रशंसा सुन कर प्रेम प्रस्ताव रखा था. उस के प्रेम प्रस्ताव को विजय सिंह ने स्वीकार भी कर लिया था और उस से शादी का वादा किया था.

अब यदि वह पिता के वचन को निभाते हुए पठान से ब्याह करती है तो विजय सिंह के दिल पर क्या गुजरेगी. वह गुमसुम बैठी सोचती रही. वह कुछ नहीं बोली. तब महबूब खान ने कहा, ‘‘कुछ तो बोल बेटी. इस धर्मसंकट से निकलना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं विजय सिंह को अपने मन से पति मान चुकी हूं. वह भी मुझ से प्रेम करते हैं और मुझ से विवाह करना चाहते हैं. विजय सिंह के अलावा इस धरती पर जितने मनुष्य हैं वह सब मेरे भाईबंधु हैं. अब आप ही फैसला करें कि बेटी की विजय से शादी करेंगे या उस का मरा मुंह देखेंगे?’’ रोते हुए रेशमा एक ही सांस में कह गई. महबूब खान अपनी पुत्री रेशमा की जिद से भलीभांति वाकिफ थे. वह समझ गए कि रेशमा ने जो मन में ठान लिया, वही करेगी. वह किसी की नहीं सुनेगी. ऐसे में महबूब खान ने बेटी से कहा, ‘‘बेटी, विजय सिंह और पठान में मल्लयुद्ध और अस्त्रशस्त्र से लड़ाई होगी. इस में जो जीतेगा उस से तुझे विवाह करना पड़ेगा.’’

‘‘अब्बू, मैं आप से कह चुकी हूं कि मैं ने अपना प्रियतम चुन लिया है. ऐसे में अब आप क्यों शर्त रख रहे हैं कि मल्लयुद्ध और तलवार से लड़ाई में जो जीतेगा उस से विवाह करना होगा. मैं मन से ठाकुर सा को पति मान चुकी हूं. इस जन्म में तो वहीं मेरे पति होंगे.’’

बेटी की बात सुन कर महबूब खान के तनबदन में आग लग गई. वह गुस्से से आंखें निकालते हुए बोले, ‘‘तेरी बकवास बहुत सुन चुका. तू जानती नहीं कि तू एक खान की बेटी है और अपने इसलाम धर्म में ही शादी कर सकती है. मेरे लाड़प्यार ने तुझे बिगाड़ दिया है. इसलिए तू एक राजपूत से शादी करने पर अड़ी है. अगर तेरा प्रियतम ठाकुर मेरे सैनिक पठान से जीतेगा तभी उस से शादी करूंगा. वरना कभी नहीं…समझी.’’

रेशमा ने अपने अब्बा का गुस्सा आज पहली बार देखा था. वह समझ गई कि अब तो अपनी सच्ची चाहत के बूते ही वह अपने प्रियतम को पा सकती है. महबूब खान ने ऊंट सवार हमीरगढ़ भेज कर ठाकुर विजय सिंह को समाचार भिजवाया कि अगर रेशमा को चाहते हो और शादी करनी है तो अस्त्रशस्त्र ले कर कजली तीज के रोज शाहगढ़ पहुंच जाना. खुले मैदान में पठान खान से मल्लयुद्ध व तलवारबाजी का युद्ध करना होगा.  इस युद्ध में अगर तुम जीते तो रेशमा तुम्हारी और अगर पठान जीता तो रेशमा उस की होगी. समय पर शाहगढ़ पहुंच जाना. अगर नहीं आए तो रेशमा का पठान से विवाह कर दिया जाएगा.

विजय सिंह समाचार मिलते ही अस्त्रशस्त्र से लैस हो कर अपने 2 राजपूत साथियों के साथ शाहगढ़ के लिए रवाना हो गए. कजली तीज में 4 दिन का समय बाकी था. ठाकुर सा घोड़े पर सवार हो कर अपने साथियों के साथ शाहगढ़ की राह चल पड़े. कजली तीज से एक रोज पहले ही वह शाहगढ़ पहुंच गए. महबूब खान ने उन्हें एक तंबू में रोका. पठान भी शाहगढ़ आ गया था. महबूब खान ने विजय सिंह और पठान को मिलाया. दोनों एकदूसरे से इक्कीस थे. रेशमा को जैसे ही पता चला कि ठाकुर सा विजय सिंह आ गए हैं, तो उस ने अम्मी से कहा कि वह एक बार ठाकुर सा से मिलना चाहती है. रेशमा को उस की अम्मी ने ठाकुरसा से एकांत में मिलवाया.

विजय सिंह को देखते ही रेशमा उन के सीने से जा लिपटी और कस कर बांहों में भर कर सुबकते हुए बोली, ‘‘अब्बा हमारे प्यार की यह कैसी परीक्षा ले रहे हैं. अब क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो रेशमा. अगर हमारा प्यार सच्चा है तो जीत हमारी ही होगी. प्रेमियों को हमेशा से ऐसी परीक्षा से गुजरना पड़ा है?’’ विजय सिंह ने रेशमा को दिलासा दी.

रेशमा बोली, ‘‘आप नहीं मिले तो मैं मर जाऊंगी?’’

‘‘रेशमा, ऐसा न कहो. सब ठीक होगा. मुझ पर विश्वास रखो.’’ ठाकुरसा ने कहा. इस के बाद थोड़ी देर तक दोनों प्रेमालाप करते रहे, फिर अलग हो गए.

रेशमा की आंखें आंसुओं से तर थीं. उस की हिचकियां बंधी थीं. अम्मी ने उसे संभाला और कक्ष में ले गईं. विजय सिंह को पता चल गया था कि पठान ने महबूब खान की कई बार जान बचाई थी. इस कारण उन्होंने पठान को बचन दिया था कि वे उस से अपनी बेटी रेशमा का विवाह कर के एहसानों का बदला चुकाएंगे. रात में जब रेशमा और विजय सिंह के बीच बातें हो रही थी, तब पास के तंबू में सो रहे पठान ने सारी बातें सुन ली थीं. पठान को नींद नहीं आई. खड़का होने पर पठान ने देखा कि रेशमा अपनी अम्मा के साथ विजय सिंह से मिलने आई और उन के बीच का वार्तालाप भी सुन लिया था.

पठान की सब समझ में आ गया. वह जान गया कि रेशमा उस से नहीं ठाकुर सा विजय सिंह से प्रेम करती है. बस, पठान ने मन ही मन एक निर्णय कर लिया कि उसे रेशमा का दिल जीतने के लिए क्या करना है. अगले दिन कजली तीज का त्यौहार था. गांव की सुहागिनें एवं युवतियां सोलह शृंगार कर के झूले पर जाने से पहले उस मैदान में पहुंच गईं. जहां रेशमा को पाने के लिए 2 वीरों के बीच युद्ध होना था. तय समय पर शाहगढ़ के तमाम नरनारी उस मैदान में आ जमे थे. विजय सिंह ने केसरिया वस्त्र धारण किए और कुलदेवी को प्रणाम करने के बाद युद्ध मैदान में कूद गए.

पठान खान भी मैदान में आ गए. नगाड़े पर डंका बजते ही दोनों योद्धा आपस में भिड़ गए. मल्ल युद्ध में दोनों एकदूजे को परास्त करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाने लगे. मगर ताकत में दोनों बराबर थे. तय समय तक दोनों बराबरी पर छूटे. तब महबूब खान ने कहा कि अब फैसला तलवार करेगी कि कौन रेशमा के लायक है, दोनों ने तलवारें और ढाल उठा लीं. रेशमा दिल थाम कर देख रही थी. तलवारबाजी शुरू होने से पहले दोनों वीरों ने रेशमा की तरफ देखा. रेशमा एकटक ठाकुरसा की तरफ ही देख रही थी. यह पठान से छिप न सका. तलवारबाजी शुरू हुए थोड़ा समय ही गुजरा था कि पठान पस्त होने लगा. महबूब खान की समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है. तभी ठाकुर विजय सिंह की तलवार ने पठान का सीना चीर दिया. पठान गिर पड़ा.

महबूब खान के आदेश पर युद्ध रोक दिया गया. महबूब खान भाग कर रेशमा वगैरह के साथ युद्धस्थल पर रक्त रंजित पड़े पठान खान के पास पहुंचे. पठान ने कहा कि रेशमा के लायक विजय सिंह है. महबूब खान ने पूछा, ‘‘ऐसा तुम क्यों कह रहे हो?’’

तब खून से लथपथ पड़े पठान ने कहा, ‘‘रेशमा और विजय सिंह एकदूसरे से प्रेम करते हैं. यह मैं ने कल रात में जाना. जब यह दोनों थोड़ी देर के लिए मिले. मैं ने इन की बातें सुनीं तो मुझे अहसास हुआ कि रेशमा मेरे साथ कभी खुश नहीं रह सकेगी. क्योंकि वह तो सिर्फ विजय सिंह से प्यार करती है. अगर इस युद्ध में विजय सिंह की हार होती तो रेशमा जी नहीं पाती. मैं ने कल रात इन की बातें सुनने के बाद प्रण कर लिया था कि मुझे युद्ध में क्या करना है. मल्लयुद्ध में आप ने देखा कि हम दोनों ताकत में बराबर हैं, तो तलवारबाजी में भी हम बराबर ही रहते. मगर मुझे रेशमा की खुशी के लिए ठाकुरसा से यह युद्ध हारना जरूरी लगा.

इसीलिए मैं ने ठाकुर सा पर प्राणघातक वार नहीं किया और उन्होंने मुझे कमजोर मान कर तलवार का वार सीने पर कर के मुझे घायल कर दिया. मुझे खुशी है कि ठाकुरसा को रेशमा जैसी प्यार करने वाली जीवनसाथी मिलेगी, जो मेरे नसीब में नहीं है. यदि मैं युद्ध में जीत भी जाता तो रेशमा का दिल कभी नहीं जीत पाता. इसलिए मैं युद्ध में हार गया.’’

इतना सुन कर ठाकुर विजय सिंह, रेशमा और महबूब खान व अन्य लोग एकदूसरे की तरफ देखते रह गए. महबूब खान ने वैद्य को बुला कर पठान का ईलाज करने को कहा. वैद्य ने ईलाज शुरू किया, मगर तलवार ने सीने पर गहरा जख्म किया था. पठान ने मरतेमरते रेशमा के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘तुम मेरी बहन हो. इस भाई को भी इतना प्यार करना जितना विजय सिंह से करती हो. मेरा मरना सार्थक हो जाएगा?’’

कह कर पठान ने जोर की हिचकी ली और प्राण त्याग दिए. रेशमा ही नहीं विजय सिंह और वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं. रेशमा के प्यार के लिए पठान ने कुरबानी दे कर साबित कर दिया कि वह ठाकुर सा विजय सिंह से किसी भी तरह कम नहीं थे. पठान खान को वहीं पर कब्र बना कर दफना दिया गया. बाद में दोनों पठान की कब्र पर गए और फूल चढ़ा कर नवजीवन के लिए हमीरगढ़ प्रस्थान कर गए. रेशमा जब भी शाहगढ़ आती थी, पठान की कब्र पर जरूर जाती थी. फिर एक वक्त वह भी आया जब रेशमा और ठाकुर सा भी अनंत सफर पर चले गए – Short Stories

 

Best Hindi Story : दुनिया की सबसे बेहतरीन जेलों की कहानियां

Best Hindi Story : जेलें दंड देने के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन असल मकसद कैदी को सुधारना होता है. सुधार सख्ती से भी हो सकता है और सुविधाओं से भी. इसीलिए दुनिया में कुछ जेलें अलग तरह का सुधारवादी तरीका अपनाने के लिए 5 स्टार होटलों की सुविधाओं जैसी बनाई गई हैं. जानें कुछ ऐसी ही जेलों के बारे में…

हमारे यहां जेलों और सजा काटने वाले कैदियों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, लोग डरते हैं जेल जाने से. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि न तो जेलों में खाना अच्छा मिलता है और न रहने को जगह. ऊपर से गुंडागर्दी, मारपीट. एक तरह से यह ठीक भी है, क्योंकि जेलें किए गए अपराध का दंड देने के लिए होती हैं. वैसे जेलों को सुधार गृह कहा जाता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ये बिगाड़ गृह ज्यादा साबित होती हैं. इस के अलावा हमारे यहां जेलों का एक पहलू और भी है.

दरअसल, पैसे वालों, पावरफुल लोगों या माफियाओं के लिए ये जेल नहीं आरामगाह होती हैं, जहां पैसे और जेल प्रशासन की घूसखोरी की वजह से उन्हें हर चीज उपलब्ध होती है. लड़कियां औरतें तक. वैसे तो ज्यादातर देशों में जेलों का यही हाल है, लेकिन दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां की जेलें 5 स्टार होटलों से कम नहीं हैं. इन जेलों में कैदियों को जो सुविधाएं मिलती हैं, उन्हें जान कर आप दंग रह जाएंगे. फिर भी जेल तो जेल ही होती है. आइए सब से पहले बात करते हैं नार्वे की बस्तोय जेल की. इस जेल को दुनिया की सबसे बेहतरीन जेल माना जाता है. इस में करीब 100 कैदी रहते हैं. यहां रहने वाले कैदियों को हौर्स राइडिंग, फिशिंग, टेनिस, सन बाथिंग और प्रिजन कौंप्लैक्स जैसी सुविधाएं मिलती हैं.

केवल इतना ही नहीं, कैदियों को खेती करने और रहने के लिए कौटेज जैसी सुविधाएं भी दी जाती हैं. इस जेल में रहने वाले कैदियों को लगता ही नहीं कि वे जेल में हैं. ओसलोफजौर्ड में बैस्टौय द्वीप पर स्थित इस जेल के कैदी खुली और मनभावन जगह पर धूप ही नहीं सेंक सकते बल्कि गरमी में देवदार के जंगल की छाया में दूरदूर तक सैर भी कर सकते हैं. द्वीप की नौका का भी आनंद ले सकते हैं. यहां आने के लिए कैदियों को आवेदन करना पड़ता है, साथ ही परंपरागत जेलों में सेवा करते हुए बदलने की इच्छा का भी प्रदर्शन करना होता है.

बस्तोय जेल काफी बड़ी है, लेकिन यहां सुरक्षा बहुत कम है. हालांकि यहां हिंसक अपराध करने वाले कैदियों को रखा जाता है. कुछ के तो बहुत गंभीर अपराध होते हैं, लेकिन किसी का यहां से जाने का मन नहीं होता क्योंकि ये कैदी नहीं, एक समुदाय के रूप में रहते हैं. हर चीज साझा करते हैं, बैडरूम तक. खुद लजीज खाना बना सकते हैं. अकेले भी और सामूहिक रूप से भी. एकदूसरे के कपड़े पहन सकते हैं. जेल की दुकान, पुस्तकालय या चर्च में जा सकते हैं. सप्ताह में यहां म्यूजिकल प्रोग्राम और व्याख्यान होते हैं. पाठ्यक्रम चलते हैं जिन में इच्छानुसार बदलाव किया जा सकता है. यानी हर तरह की आजादी. यहां ऐसा लगता है जैसे छुट्टी में पिकनिक मनाने आए हों.

यहां दौरा करने आए नार्वेजियन अधिकारियों के अनुसार, कैदियों के लिए यह नर्म दृष्टिकोण ज्यादा प्रभावी है. जेल के कैदियों और यहां के कर्मियों के बीच सम्मानजनक संबंध हैं. अधिकांश जेल अधिकारी रात में द्वीप छोड़ कर चले जाते हैं. कैदियों से अपेक्षा की जाती है कि वहां की जिम्मेदारी वे खुद उठाएं. नार्वे इस जेल को पारिस्थितिक जेल कहता है. यहां के कैदी आराम के अलावा रोजाना काम करते हैं. भेड़ों और घोड़ों को चराते हैं, खेतों में काम करते हैं. पेड़ों से लकडि़यां काटते हैं. तरहतरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. नार्वे मिनिस्ट्री औफ जस्टिस का कहना है, ‘जेल के अंदर के जीवन को बाहर की जिंदगी की जरूरत होती है. कैदियों को भी अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता है. अतीत, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता होती है.

हमारा मानना है कि यह किसी व्यक्ति के लिए अपराध से दूर रहने के लिए अधिक प्रभावी है, ताकि सिस्टम उसे डराने की कोशिश न कर सके. वह इन्हें जुड़ना सिखाता है कि उन के पड़ोसी के रूप में कौन और कैसा व्यक्ति होगा और उस के साथ किस तरह व्यवहारिक बना जाएगा. नार्वे में उम्रकैद जैसी कोई सजा नहीं है. सब से लंबी सजा 21 साल है. जबकि नरसंहार जैसे अपराधों के लिए 30 साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है. क्योंकि इसे मानवता के प्रति युद्ध माना जाता है. औसत सजा 8 महीने है. बिना शर्त जेल की 60 प्रतिशत से अधिक सजा महज 3 महीने होती है और 90 प्रतिशत एक साल से कम. बड़े मामलों में सजा पूरी होने से पहले 18 महीने नौकरी करनी होती है, जिस में कैदी स्वतंत्र भी होता है और नहीं भी.

गुआंतानमों बे जेल इस के बाद बात करते हैं गुआंतानमो बे जेल की, जो क्यूबा में है. जेल का यह नाम इसलिए है क्योंकि ये गुआंतानमो घाटी के तट पर स्थित है. इस जेल में कुल 40 कैदी हैं और हर कैदी पर सालाना 93 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. गुआंतानमो बे जेल में करीब 1800 सैनिक हैं यानी एक कैदी पर 45 सैनिक. सोचने वाली बात यह है कि कैदियों को इतनी सुरक्षा क्यों दी जाती है. दरअसल, यहां कई ऐसे अपराधी कैद हैं जो बेहद खतरनाक हैं. इन में एक 9/11 को अमेरिका के ट्विन टावर पर हुए हमले का मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद भी है. यह हमला अल कायदा ने किया था, जिस में 2971 लोगों की जानें गई थीं और 25 हजार लोग घायल हुए थे.

गुआंतानमो बे जेल में 3 इमारतें, 2 खुफिया विभाग के मुख्यालय और 3 अस्पताल हैं. वकीलों के लिए अलगअलग कंपाउंड बनाए गए हैं, जहां कैदी उन से बात कर सकते हैं. इस जेल में कैदियों और जेल के स्टाफ को होटल जैसी सुविधाएं मिलती हैं. कैदियों के लिए जेल में चर्च, जिम, प्ले स्टेशन और सिनेमाहाल हैं. इस जेल में पहले अमेरिका का नेवी बेस था, लेकिन बाद में इसे डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) बना दिया गया. अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जौर्ज डब्ल्यू बुश ने यहां एक कंपाउंड बनवाया था, जहां आतंकियों को रखा जाता था. इसे कैंप एक्सरे नाम दिया गया था.

सोलन टूना जेल, स्वीडन स्वीडन की सोलन टूना जेल किसी फाइवस्टार होटल से कम नहीं है. इस जेल से छूट कर आए अपराधियों का कहना है कि इस जेल में उन्हें पूरी आजादी दी जाती है. अपना खाना खुद बनाना होता है, वह भी मनमर्जी से. शानदार सोफे पर बैठ कर किताबें पढ़ सकते हैं. कैदियों के सेल्स में किचन, टीवी, फ्रिज और बाथरूम की सुविधाएं भी दी गई हैं, जो किसी उत्कृष्ट एयरलाइंस की फ्लाइट जैसी हैं. जस्टिस फौर लियोबेन आस्ट्रिया की इस खूबसूरत जेल में कैदियों को उचित सम्मान के साथ रखा जाता है. इस फाइवस्टार जेल में करीब 250 कैदी हैं. यहां सभी कैदियों के लिए इनडोर गेम से ले कर जिम तक की सभी सुविधाएं हैं. यहां रहना शाही जिंदगी जीने जैसा है.

यहां कैदियों को जेल के कपड़े नहीं, बल्कि अपने खुद के कपड़े पहनने की आजादी है. कैदियों के लिए अलगअलग प्राइवेट बाथरूम और किचन है. इस जेल को दुनिया की खूबसूरत जेलों में गिना जाता है. अरेंजबेज जेल ज्यादातर जेलों में बच्चों के पैदा होने के तुरंत बाद उन के परिवार के हवाले कर दिया जाता है और अगर कोई परिवार बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेता तो उसे किसी एनजीओ को सौंप दिया जाता है. लेकिन स्पेन की यह जेल दुनिया की एकलौती जेल है, जहां कैदियों के परिवारों के लिए कमरे मौजूद हैं. यहां 3 साल का होने तक उन के बच्चे उन के साथ रह सकते हैं. बच्चों के लिए खूबसूरत कमरे ही नहीं, हर तरह के खिलौने भी मौजूद हैं, और कमरे की दीवारों पर उन की रुचि की क्रिब्स और डिज्नी के पात्रों की पेंटिंग बनी हैं.

जेवीए फुलस्वटल जेल जर्मनी के हैंबर्ग शहर स्थित यह जेल भी दुनिया की खूबसूरत जेलों में गिनी जाती है. किले की तरह नजर आने वाली इस जेल में कैदियों को काफी बड़े और आरामदायक कमरे दिए जाते हैं, जिन में लिविंग रूम, डेस्क, टीवी और शौवर लगे हुए हैं. प्राइवेट बाथरूम भी हैं. कपड़े धोने की सुविधा के लिए सामूहिक वाशिंग मशीनें हैं. जेल में कौन्फ्रैंस रूम और मनोरंजन कक्ष भी हैं. पोडोंक बंबू जेल, इंडोनेशिया महिलाओं के लिए बनाई गई यह जेल पुनर्वास के उद्देश्य से बनाई गई है, जो पूरी तरह एयरकंडीशंड है.

खूबसूरत बगीचों और मूर्तियों से भरे इस परिसर में ब्यूटीशियन और सौंदर्य उपचार के कोर्स कराए जाते हैं. मनोरंजन के साधनों के साथसाथ यहां जीवन को सुखमय बनाने के सभी साधन हैं.

 

Noida News : प्यार में फंसाया फिर किया अपहरण और मांगी 70 लाख की फिरौती

Noida News : गौरव हलधर डाक्टरी की पढ़ाई करतेकरते प्रीति मेहरा के जाल में ऐसा फंसा कि जान के लाले पड़ गए. डा. प्रीति को गौरव को रंगीन सपने दिखाने की जिम्मेदारी उस के ही साथी डा. अभिषेक ने सौंपी थी. भला हो नोएडा एसटीएफ का जिस ने समय रहते…

एसटीएफ औफिस नोएडा में एसपी कुलदीप नारायण सिंह डीएसपी विनोद सिंह सिरोही के साथ बैठे किसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. तभी अचानक दरवाजा खुला और सामने वर्दी पर 3 स्टार लगाए एक इंसपेक्टर प्रकट हुए. उन्होंने अंदर आने की इजाजत लेते हुए पूछा, ‘‘मे आई कम इन सर.’’

‘‘इंसपेक्टर सुधीर…’’ कुलदीप सिंह ने सवालिया नजरों से आगंतुक की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘यस सर.’’

‘‘आओ सुधीर, हम लोग आप का ही इंतजार कर रहे थे.’’ एसपी कुलदीप सिंह ने सामने बैठे विनोद सिरोही का परिचय कराते हुए कहा,  ‘‘ये हैं हमारे डीएसपी विनोद सिरोही. आप के केस को यही लीड करेंगे. जो भी इनपुट है आप इन से शेयर करो फिर देखते हैं क्या करना है.’’

कुछ देर तक उन सब के बीच बातें होती रहीं. उस के बाद कुलदीप सिंह अपनी कुरसी से खड़े होते हुए बोले, ‘‘विनोद, मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए मेरठ जा रहा हूं. आप दोनों केस के बारे में डिस्कस करो. हम लोग लेट नाइट मिलते हैं.’’

इस बीच उन्होंने एसटीएफ के एएसपी राजकुमार मिश्रा को भी बुलवा लिया था. कुलदीप सिंह ने उन्हें निर्देश दिया कि गौरव अपहरण कांड में अपहर्त्ताओं को पकड़ने में वह इस टीम का मार्गदर्शन करें. एसपी के जाते ही वे एक बार फिर बातों में मशगूल हो गए. सुधीर कुमार सिंह डीएसपी विनोद सिरोही और एएसपी मिश्रा को उस केस के बारे में हर छोटीबड़ी बात बताने लगे, जिस के कारण उन्हें पिछले 24 घंटे में यूपी के गोंडा से ले कर दिल्ली के बाद नोएडा में स्पैशल टास्क फोर्स के औफिस का रुख करना पड़ा था. इस से 2 दिन पहले 19 जनवरी, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एसपी शैलेश पांडे के औफिस में सन्नाटा पसरा हुआ था. क्योंकि मामला बेहद गंभीर था और पेचीदा भी.

पड़ोसी जिले बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत की सत्संग नगर कालोनी के रहने वाले डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव हलधर गोंडा के हारीपुर स्थित एससीपीएम कालेज में बीएएमएस प्रथम वर्ष का छात्र था. वह कालेज के हौस्टल में रहता था. गौरव 18 जनवरी की शाम तकरीबन 4 बजे से गायब था. इस के बाद गौरव को न तो हौस्टल में देखा गया न ही कालेज में. 18 जनवरी की रात को गौरव के पिता डा. निखिल हलधर के मोबाइल फोन पर रात करीब 10 बजे एक काल आई. काल उन्हीं के बेटे के फोन से थी, लेकिन फोन पर उन का बेटा गौरव नहीं था.

फोन करने वाले ने बताया कि उस ने गौरव का अपहरण कर लिया है. गौरव की रिहाई के लिए आप को 70 लाख रुपए की फिरौती देनी होगी. जल्द पैसों का इंतजाम कर लें, वह उन्हें बाद में फोन करेगा. डा. निखिल हलधर ने कालबैक किया तो फोन गौरव ने नहीं, बल्कि उसी शख्स ने उठाया, जिस ने थोड़ी देर पहले बात की थी. डा. निखिल ने बेटे से बात कराने के लिए कहा तो उस ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘डाक्टर, लगता है सीधी तरह से कही गई बात तेरी समझ में नहीं आती. तू क्या समझ रहा है कि हम तुझ से मजाक कर रहे हैं? अभी तेरे बेटे की लेटेस्ट फोटो वाट्सऐप कर रहा हूं देख लेना उस की क्या हालत है.

और हां, एक बात कान खोल कर सुन ले, यकीन करना है या नहीं ये तुझे देखना है. यह समझ लेना कि पैसे का इंतजाम जल्द नहीं किया तो बेटा गया तेरे हाथ से. ज्यादा टाइम नहीं है अपने पास.’’

अभी तक इस बात को मजाक समझ रहे निखिल हलधर समझ गए कि उस ने जो कुछ कहा, सच है. कुछ देर बाद उन के वाट्सऐप पर गौरव की फोटो आ गई, जिस में वह बेहोशी की हालत में था. जैसे ही परिवार को इस बात का पता चला कि गौरव का अपहरण हो गया है तो सब हतप्रभ रह गए. निखिल हलधर संयुक्त परिवार में रहते थे. उन के पूरे घर में चिंता का माहौल बन गया. बात फैली तो डा. निखिल के घर उन के रिश्तेदारों और परिचितों का हुजूम लगना शुरू हो गया. डा. निखिल हलधर शहर के जानेमाने फिजिशियन थे, शहर के तमाम प्रभावशाली लोग उन्हें जानते थे. उन्होंने शहर के एसपी डा. विपिन कुमार मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि गौरव गोंडा में पढ़ता था और घटना वहीं घटी है, इसलिए वह तुरंत गोंडा जा कर वहां के एसपी से मिलें. डा. निखिल हलधर रात को ही अपने कुछ परिचितों के साथ गोंडा रवाना हो गए. 19 जनवरी की सुबह वह गोंडा के एसपी शैलेश पांडे से मिले. शैलेश पांडे को पहले ही डा. निखिल हलधर के बेटे गौरव के अपहरण की जानकारी एसपी बहराइच से मिल चुकी थी. डा. निखिल हलधर ने शैलेश पांडे को शुरू से अब तक की पूरी बात बता दी. एसपी पांडे ने परसपुर थाने के इंचार्ज सुधीर कुमार सिंह को अपने औफिस में बुलवा लिया था. क्योंकि गौरव जिस एससीपीएम मैडिकल कालेज में पढ़ता था, वह परसपुर थाना क्षेत्र में था.

सारी बात जानने के बाद एसपी शैलेश पांडे ने कोतवाली प्रभारी आलोक राव, सर्विलांस टीम के इंचार्ज हृदय दीक्षित तथा स्वाट टीम के प्रभारी अतुल चतुर्वेदी के साथ हैडकांस्टेबल श्रीनाथ शुक्ल, अजीत सिंह, राजेंद्र , कांस्टेबल अमित, राजेंद्र, अरविंद व राजू सिंह की एक टीम गठित कर के उन्हें जल्द से गौरव हलधर को बरामद करने के काम पर लगा दिया. एसपी पांडे ने टीम का नेतृत्व एएसपी को सौंप दिया. पुलिस टीम तत्काल सुरागरसी में लग गई. पुलिस टीमें सब से पहले गौरव के कालेज पहुंची, जहां उस के सहपाठियों तथा हौस्टल में छात्रों के अलावा कर्मचारियों से जानकारी हासिल की गई. नहीं मिली कोई जानकारी मगर गौरव के बारे में पुलिस को कालेज से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह डा. निखिल हलधर के साथ परसपुर थाने पहुंचे और उन्होंने निखिल हलधर की शिकायत के आधार पर 19 जनवरी, 2021 की सुबह भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसपी शैलेश पांडे के निर्देश पर इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने खुद ही जांच की जिम्मेदारी संभाली. साथ ही उन की मदद के लिए बनी 6 पुलिस टीमों ने भी अपने स्तर से काम शुरू कर दिया. चूंकि मामला एक छात्र के अपहरण का था, वह भी फिरौती की मोटी रकम वसूलने के लिए. इसलिए सर्विलांस टीम को गौरव हलधर के मोबाइल की काल डिटेल निकालने के काम पर लगा दिया गया.

मोबाइल की सर्विलांस में उस की पिछले कुछ घंटों की लोकेशन निकाली गई तो पता चला कि इस वक्त उस की लोकेशन दिल्ली में है. पुलिस टीमें यह पता करने की कोशिश में जुट गईं कि गौरव का किसी से विवाद या दुश्मनी तो नहीं थी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली. गौरव और उस से जुड़े लोगों के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर ले लिया गया था. पुलिस की टीमें लगातार एकएक नंबर की डिटेल्स खंगाल रही थीं. गौरव के फोन की लोकेशन संतकबीर नगर के खलीलाबाद में भी मिली थी. पुलिस की एक टीम बहराइच तो 2 टीमें खलीलाबाद व गोरखपुर रवाना कर दी गईं. खुद इंसपेक्टर सुधीर सिंह एक पुलिस टीम ले कर दिल्ली रवाना हो गए.

20 जनवरी की सुबह दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने सर्विलांस टीम की मदद से उस इलाके में छानबीन शुरू कर दी, जहां गौरव के फोन की लोकेशन थी. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था इसलिए इंसपेक्टर सुधीर सिंह को सही जगह तक पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली. इस दौरान गोंडा में मौजूद गौरव के पिता डा. निखिल हलधर को अपहर्त्ता ने एक और फोन कर दिया था. उस ने अब फिरौती की रकम बढ़ा कर 80 लाख कर दी थी और चेतावनी दी थी कि अगर 22 जनवरी तक रकम का इंतजाम नहीं किया गया तो गौरव की हत्या कर दी जाएगी.

दूसरी तरफ जब गोंडा एसपी शैलेश पांडे को पता चला कि दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है तो उन की चिंता बढ़ गई. अंतत: उन्होंने एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश को लखनऊ फोन कर के गौरव अपहरण कांड की सारी जानकारी दी और इस काम में एसटीएफ की मदद मांगी. अमिताभ यश ने एसपी शैलेश पांडे से कहा कि वे अपनी टीम को नोएडा में एसटीएफ के औफिस भेज दें. एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण गोंडा पुलिस की पूरी मदद करेंगे.

पांडे ने दिल्ली में मौजूद इंसपेक्टर सुधीर सिंह को एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण से बात कर के उन के पास पहुंचने की हिदायत दी तो दूसरी तरफ एडीजी अमिताभ यश ने नोएडा फोन कर के एसपी कुलदीप नारायण सिंह को गौरव हलधर अपहरण केस की जानकारी दे कर गोंडा पुलिस की मदद करने के निर्देश दिए. यह बात 20 जनवरी की दोपहर की थी. गोंडा कोतवाली के इंसपेक्टर सुधीर सिंह नोएडा में एसटीएफ औफिस पहुंच कर एसपी एसटीएफ कुलदीप नारायण सिंह तथा डीएसपी विनोद सिरोही से मिले.

विनोद सिरोही बेहद सुलझे हुए अधिकारी हैं. उन्होंने अपनी सूझबूझ से कितने ही अपहरण करने वालों और गैंगस्टरों को पकड़ा है. उन्होंने उसी समय अपहर्त्ताओं को दबोचने के लिए इंसपेक्टर सौरभ विक्रम सिंह, एसआई राकेश कुमार सिंह तथा ब्रह्म प्रकाश के साथ एक टीम का गठन कर दिया. काल डिटेल्स से मिले सुराग अपराधियों तक पहुंचने का सब से बड़ा हथियार इन दिनों इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस है. एसटीएफ की टीम ने उसी समय गौरव के फोन की सर्विलांस के साथ उस की सीडीआर खंगालने का काम शुरू कर दिया. गौरव के फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक ऐसा नंबर मिला, जिस में उस के फोन पर कुछ दिनों से एक नए नंबर से न सिर्फ काल की जा रही थी, बल्कि यह नंबर गौरव की कौन्टैक्ट लिस्ट में ‘माई लव’ के नाम से सेव था.

दोनों नंबरों पर 5 से 18 जनवरी तक 40 बार बात हुई थी और हर काल का औसत समय 10 से 40 मिनट था. इस नंबर से गौरव के वाट्सऐप पर अनेकों काल, फोटो, वीडियो का भी आदानप्रदान हुआ था. इस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो यह नंबर दिल्ली के एक पते पर पंजीकृत पाया गया. लेकिन जब पुलिस की टीम उस पते पर पहुंची तो पता फरजी निकला. जब इस नंबर की लोकेशन खंगाली गई तो पुलिस टीम यह जान कर हैरान रह गई कि 18 जनवरी की दोपहर से शाम तक इस नंबर की लोकेशन गोंडा में हर उस जगह थी, जहां गौरव के मोबाइल की लोकेशन थी.

पुलिस टीम समझ गई कि जिस के पास भी यह नंबर है, उसी ने गौरव का अपहरण किया है. पुलिस टीमों ने इसी नंबर की सीडीआर खंगालनी शुरू कर दी. पता चला कि यह नंबर करीब एक महीना पहले ही एक्टिव हुआ था और इस से बमुश्किल 4 या 5 नंबरों पर ही फोन काल्स की गई थीं या वाट्सऐप मैसेज आएगए थे.   एसटीएफ के पास ऐसे तमाम संसाधन और नेटवर्क होते हैं, जिन से वह इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के माध्यम से अपराधियों की सटीक जानकारी एकत्र करने के साथ उन की लोकेशन का भी सुराग लगा लेती है. एसटीएफ ने रात भर मेहनत की. जो भी फोन नंबर इस फोन के संपर्क में थे, उन सभी की कडि़यां जोड़ कर उन की मूवमेंट पर नजर रखी जाने लगी.

रात होतेहोते यह बात साफ हो गई कि अपहर्त्ता नोएडा इलाके में मूवमेंट करने वाले हैं. वे अपहृत गौरव को छिपाने के लिए दिल्ली से किसी दूसरे ठिकाने पर शिफ्ट करना चाहते हैं. बस इस के बाद सर्विलांस टीमों ने अपराधियों की सटीक लोकेशन तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया और गोंडा पुलिस के साथ एसटीएफ की टीम ने औपरेशन की तैयारी शुरू कर दी. 21 जनवरी की देर रात गोंडा पुलिस व एसटीएफ की टीमों ने ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे जीरो पौइंट के पास अपना जाल बिछा दिया. पुलिस टीमें आनेजाने वाले हर वाहन पर कड़ी नजर रख रही थीं. किसी वाहन पर जरा भी संदेह होता तो उसे रोक कर तलाशी ली जाती. इसी बीच एक सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार पुलिस की चैकिंग देख कर दूर ही रुक गई.

उस गाड़ी ने जैसे ही रुकने के बाद बैक गियर डाल कर पीछे हटना और यूटर्न लेना शुरू किया तो पुलिस टीम को शक हो गया. एसटीएफ की टीम एक गाड़ी में पहले से तैयार थी. पुलिस की गाड़ी उस कार का पीछा करने लगी जो यूटर्न ले कर तेजी से वापस दौड़ने लगी थी. देखते ही पहचान लिया गौरव को मुश्किल से एक किलोमीटर तक दौड़भाग होती रही. आखिरकार नालेज पार्क थाना क्षेत्र में एसटीएफ की टीम ने डिजायर कार को ओवरटेक कर के रुकने पर मजबूर कर दिया. खुद को फंसा देख कार में सवार 3 लोग तेजी से उतरे और अलगअलग दिशाओं में भागने लगे. एसटीएफ को ऐसे अपराधियों को पकड़ने का तजुर्बा होता है. पीछा करते हुए एसटीएफ तथा गोंडा पुलिस की दूसरी टीम भी वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीमों ने जैसे ही हवाई फायर किए, कार से उतर कर भागे तीनों लोगों के कदम वहीं ठिठक गए. पुलिस टीमों ने तीनों को दबोच लिया. उन्हें दबोचने के बाद जब पुलिस टीमों ने स्विफ्ट डिजायर कार की तलाशी ली तो एक युवक कार की पिछली सीट पर बेहोशी की हालत में पड़ा था. इंसपेक्टर सुधीर सिंह युवक की फोटो को इतनी बार देख चुके थे कि बेहोश होने के बावजूद उन्होेंने उसे पहचान लिया. वह गौरव ही था. पुलिस टीमों की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि अभियान सफल हो गया था. पुलिस टीमें तीनों युवकों के साथ गौरव व कार को ले कर एसटीएफ औफिस आ गईं.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह ने गौरव के पिता डा. निखिल व एसपी गोंडा शैलेश पांडे को गौरव की रिहाई की सूचना दे दी. वे भी तत्काल नोएडा के लिए रवाना हो गए. गौरव के अपहरण में पुलिस ने जिन 3 लोगों को गिरफ्तार किया था, उन में से एक की पहचान डा. अभिषेक सिंह निवासी अचलपुर वजीरगंज, जिला गोंडा के रूप में हुई. वही इस गिरोह का सरगना था और फिलहाल बाहरी दिल्ली के बक्करवाला में डीडीए के ग्लोरिया अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 310 में किराए पर रहता था. डा. अभिषेक सिंह पेशे से चिकित्सक था और नांगलोई-नजफगढ़ रोड पर स्थित राठी अस्पताल में काम करता था.

उस के साथ पुलिस ने जिन 2 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, उन में नीतेश निवासी थाना निहारगंज, धौलपुर, राजस्थान तथा मोहित निवासी परौली, थाना करनलगंज गोंडा शामिल थे. जब उन तीनों से पूछताछ की गई, तो अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.  डा. अभिषेक सिंह ने गौरव का अपहरण करने के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल किया था. यानी गौरव को पहले एक खूबसूरत लड़की के जाल में फंसाया गया था. जब गौरव खूबसूरती के जाल में फंस गया तो उस का फिरौती वसूलने के लिए अपहरण कर लिया गया.

मूलरूप से गोंडा के अचलपुर का रहने वाला डा. अभिषेक सिंह 2013-2014 में बेंगलुरु के राजीव गांधी यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस से बीएएमएस की पढ़ाई करने के बाद जब अपने शहर लौटा तो उस के दिल में बड़े अरमान थे. डाक्टरी के पेशे से बहुत सारी कमाई करने और बड़ा सा बंगला बनाने के सपने देखे थे. लेकिन कुछ समय बाद ही ये सपने चकनाचूर होने लगे. अच्छी नौकरी नहीं मिली तो बन गया अपराधीउसे गोंडा के किसी भी अस्पताल में ऐसी नौकरी नहीं मिली, जिस से अच्छे से गुजरबसर हो सके. छोटेछोटे अस्पतालों में नौकरी करने के बाद तंग आ कर डा. अभिषेक 2018 में दिल्ली आ गया. यहां कई अस्पतालों में नौकरी करने के बाद वह सन 2019 में नजफगढ़ के राठी अस्पताल में नौकरी करने लगा.

हालांकि इस अस्पताल में उसे पहले के मुकाबले तो अच्छी तनख्वाह मिलती थी, लेकिन इस के बावजूद वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं था. इसी दौरान डा. अभिषेक की दोस्ती उसी अस्पताल में काम करने वाली एक लेडी डाक्टर प्रीति मेहरा से हो गई. प्रीति भी बीएएमएस डाक्टर थी. खूबसूरत और जवान प्रीति प्रतिभाशाली थी. उस के दिल में भी अपना अस्पताल बनाने की महत्त्वाकांक्षा पल रही थी. लेकिन इस सपने को पूरा करने में समर्थ नहीं होने के कारण अक्सर मानसिक परेशानी से घिरी रहती थी. जब अभिषेक से उस की दोस्ती हुई तो लगा कि वे दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई.

दोनों के सपने भी एक जैसे थे, लाचारी भी एक जैसी थी. लेकिन सपनों को पूरा करने की धुन दोनों पर सवार थी. पिछली दीपावली पर नवंबर, 2019 में जब अभिषेक अपने घर गोंडा गया तो उस की मुलाकात अपनी बुआ के बेटे रोहित से हुई. बुआ की शादी बहराइच के पयागपुर इलाके में हुई थी. रोहित भी पयागपुर में ही रहता था. रोहित की जानपहचान मोहित सिंह से भी थी. मोहित सिंह गोंडा में रहने वाले अभिषेक के दोस्त राकेश सिंह का साला था. मोहित दिल्ली के करोलबाग की एक दुकान में काम करता है. रोहित भी मोहित को जानता है. रोहित व मोहित दोनों की जानपहचान एससीपीएम कालेज गोंडा से आयुर्वेदिक चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे गौरव हलधर से थी.

दोनों ही गौरव के अलावा उस के परिवार के बारे में भी अच्छी तरह से जानते थे. अभिषेक जब दीपावली पर अपने घर गया तो पयागपुर से बुआ का बेटा रोहित उस के घर आया हुआ था. रोहित के सामने अभिषेक का दर्द छलक गया. शराब पीने के बाद उस ने रोहित से यहां तक कह दिया कि अगर उसे चोरी, डाका या किसी का अपहरण भी करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा. अभिषेक की बात सुनते ही रोहित का माथा ठनक गया. पहले तो उस ने अभिषेक को समझाना चाहा. लेकिन अभिषेक नहीं माना और बोला भाई बस तू एक बार किसी ऐसे शिकार के बारे में बता दे, जिस से मेरा सपना पूरा करने के लिए रकम मिल सकती हो.

अभिषेक नहीं माना तो रोहित ने उसे गौरव हलधर के बारे में बताया और उस के पूरे परिवार की जानकारी भी दे दी. रोहित ने अभिषेक को बताया कि डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव गोंडा में ही फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा है. अगर किसी तरीके से उस का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती के रूप में बड़ी रकम मिल सकती है. डा. अभिषेक ने जब डा. प्रीति मेहरा को गौरव का अपहरण करने की अपनी योजना के बारे में बताया तो उस ने नाराजगी नहीं जताई बल्कि खुश हुई और उस ने ही अपनी तरफ से सुझाव दिया कि गौरव का अपहरण करने में वह खुद उस की मदद करेगी.

प्रीति ने अभिषेक को बताया कि एक जवान लड़के का अगर अपहरण करना हो तो किसी जवान लड़की को उस के सामने चारा बना कर डाल दो, वह खुदबखुद उस जाल में फंस जाएगा. अभिषेक से उस ने गौरव का नंबर देने के लिए कहा तो अभिषेक ने उसे रोहित से गौरव का नंबर ले कर दे दिया. इस के बाद डा. प्रीति मेहरा ने एक रौंग नंबर के बहाने गौरव को काल कर बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया. पहली ही बार में बात करने के बाद गौरव उस के जाल में फंस गया और दोनों का एकदूसरे से परिचय कुछ ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद वे दोनों एकदूसरे से बात करने लगे.

प्रीति मेहरा वीडियो काल के जरिए जब गौरव से बात करती तो कई बार गौरव को अपने नाजुक अंग दिखा कर अपने लिए उसे बेचैन कर देती. दरअसल, साजिश के इस मुकाम तक पहुंचने से पहले डा. अभिषेक ने इसे अंजाम देने के लिए कुछ लोगों को भी अपने साथ जोड़ लिया था. करोलबाग में कपड़े की दुकान पर काम करने वाले मोहित को जब अभिषेक ने गौरव का अपहरण करने की योजना बताई और उस से मदद मांगी तो मोहित ने अभिषेक को अपने एक दोस्त  नितेश से मिलवाया. दरअसल, नितेश व मोहित एक ही जिम में व्यायाम करने के लिए जाते थे. इसीलिए दोनों के बीच दोस्ती थी. नितेश इंश्योरेंस कराने का काम करता था.

इंश्योरेंस के साथ वह लोगों के बैंक में खाते खुलवाने से ले कर उन्हें लोन दिलाने का काम करता था. इसीलिए फरजी आईडी से ले कर जाली आधार कार्ड व पैन कार्ड बनाने में उसे महारथ हासिल थी. मोहित ने उसे मोटी रकम मिलने का सब्जबाग दिखा कर अपहरण की इस वारदात में अपने साथ मिला लिया. इस के बाद नितेश ने 3 आईडी तैयार कीं और उन्हीं आईडी के आधार पर उस ने 3 सिमकार्ड खरीदे. फरजी आईडी से खरीदे गए तीनों सिम कार्ड डा. प्रीति मेहरा, डा. अभिषेक व मोहित ने अपने पास रख लिए. डा. प्रीति ने तो अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल गौरव हलधर से दोस्ती करने के लिए शुरू कर दिया. लेकिन अभिषेक व मोहित ने अपहरण करने से चंद रोज पहले ही अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था.

प्रीति मेहरा ने गौरव को अपने प्रेमजाल में इस तरह फंसा लिया कि वह उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार था. जब सब ने यह देख लिया कि शिकार जाल में फंसने का तैयार है तो प्रीति ने गौरव को वाट्सऐप मैसेज दिया कि वह 18 जनवरी को उस से मिलने गोंडा आ रही है. रोहित भी उस समय दिल्ली आया हुआ था. दिल्ली से स्विफ्ट डिजायर कार ले कर डा. अभिषेक, डा. प्रीति मेहरा, मोहित, रोहित व नितेश गोंडा पहुंच गए. गोंडा पहुंचने से पहले रोहित बहराइच में ही उतर गया. इधर गोंडा पहुंच कर डा. प्रीति ने एक राहगीर से किसी बहाने फोन ले कर गौरव को मिलने के लिए फोन किया और उस के कालेज से एक किलोमीटर दूर एक जगह पर बुलाया.

प्रीति मेहरा का रंगीन वार प्रीति के मोहपाश में फंसा गौरव वहां चला आया. गौरव को प्रीति ने अपने साथ कार में बैठा लिया, जहां बैठे बाकी अन्य लोगों ने उसे दबोच कर नशे का इंजेक्शन दे दिया. इस के बाद वे गोंडा से चल दिए. उन की योजना गौरव को संतकबीर नगर के खलीलाबाद में रहने वाले सतीश के घर पर छिपाने की थी. वे वहां पहुंच भी गए, लेकिन बाद में इरादा बदल दिया और कुछ ही देर में कार से दिल्ली के लिए रवाना हो गए. 18 जनवरी की रात को ही दिल्ली पहुंच गए. रास्ते में गाजियाबाद के पास उन्होंने गौरव के फोन से गौरव के पिता निखिल को फिरौती के लिए पहला फोन कर 70 लाख की फिरौती की मांग की.

इसके बाद उन्होंने गौरव को अभिषेक के बक्करवाला स्थित डीडीए फ्लैट में छिपा दिया. नितेश या मोहित उसे खाना देने जाते थे और डा. अभिषेक व प्रीति उसे लगातार नशे के इंजेक्शन देते थे ताकि वह होश में आ कर शोर न मचा दे. उन लोगों ने कई बार गौरव के साथ मारपीट भी की. इधर रोहित ने जब गोंडा व बहराइच में गौरव के अपहरण कांड को ले कर छप रही खबरों के बारे में अभिषेक को बताया कि पुलिस की एक टीम दिल्ली में गौरव की तलाश कर रही है तो अभिषेक ने गौरव को अपने फ्लैट से कहीं दूसरी जगह रखने की योजना बनाई.

इसीलिए डा. अभिषेक मोहित व नितेश के साथ 21 जनवरी की रात को गौरव को बेहोशी का इंजेक्शन दे कर उसे कार से ले कर ग्रेटर नोएडा जा रहा था, तभी पुलिस ने सर्विलांस के जरिए उन की लोकेशन का पता लगा कर उन्हें दबोच लिया. नितेश के पिता व गोंडा पुलिस के नोएडा पहुंचने के बाद एसटीएफ ने उन्हें  गोंडा पुलिस के हवाले कर दिया. इधर पुलिस को जब इस में रोहित व सतीश नाम के 2 और लोगों के शामिल होने की खबर लगी तो गोंडा पुलिस की टीम ने दबिश दे कर उसी रात रोहित व सतीश को भी गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की खबर पा कर डा. प्रीति फरार हो चुकी थी. उस की तलाश में एसटीएफ और गोंडा पुलिस ने कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आई. गोंडा पुलिस ने प्रीति की गिरफ्तारी पर 25 हजार के इनाम की घोषणा की थी. जिस के बाद गोंडा पुलिस ने 1 फरवरी को प्रीति को उस के गांव धौर जिला झज्जर, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. मूलरूप से हरियाणा की प्रीति मेहरा वर्तमान में दिल्ली के प्रेमनगर में रहती थी. फिलहाल सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं. कैसी विडंबना है कि सालों की मेहनत के बाद डाक्टर बनने वाले अभिषेक व प्रीति अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए.

डीजीपी ने फिरौती के लिए हुए अपहरण कांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली गोंडा पुलिस की टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त व अभियुक्तों के बयान पर आधारित

 

Crime News : जंगल में ले जाकर किया कत्ल फिर पहचान मिटाने को शव जलाया

Crime News : किसी भी महिला के जब पैर बहक जाते हैं तो वह बेहया हो जाती है. केशरबाई तो जवानी की दहलीज पर चढ़ते ही बहक गई थी. मांबाप ने उस की शादी भी कर दी, लेकिन शादी के बाद केशरबाई ने जो गुल खिलाए, उन का यह नतीजा निकला कि…

26 नवंबर, 2020 की दोपहर का समय था. धार क्राइम ब्रांच एवं साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय कुछ पुराने मामलों के आरोपियों तक पहुंचने के लिए धूल चढ़ी फाइलों से जूझ रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक खास मुखबिर के नंबर से घंटी बज उठी. इस मुखबिर को उन्होंने बेहद खास जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए उस मुखबिर की फोन काल को उन्होंने तुरंत रिसीव किया. मुखबिर ने उन्हें एक खास सूचना दी थी. सूचना पाते ही संतोष पांडेय के चेहरे पर मुसकान तैर गई, उस के बाद उन्होंने मुखबिर से मिली खबर के बारे में पूरी जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह और दूसरे अधिकारियों को दी. फिर उन से मिले निर्देश के बाद कुछ ही देर में अपनी टीम ले कर मागौद चौराहे पर जा कर डट गए.

दरअसल, धार पुलिस को लंबे समय से गंधवानी थाना इलाके में हुई एक हत्या के आरोपी गोविंद की तलाश थी. एसपी ने गोविंद की गिरफ्तारी पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था. गोविंद को पकड़ने की जिम्मेदारी जिस टीम को सौंपी गई थी, उस में धार साइबर सेल के प्रमुख संतोष पांडेय और उन का स्टाफ भी शामिल था. इसलिए उस रोज जब मुखबिर ने गोविंद के मोटरसाइकिल से मागौद आने की जानकारी पांडेयजी को दी तो उन्होंने इस ईनामी आरोपी को पकड़ने मागौद चौराहे पर अपना जाल बिछा दिया. मुखबिर की सूचना गलत नहीं थी. कुछ ही घंटों के बाद पांडेय ने एक बिना नंबर की मोटरसाइकिल पर सवार युवक को तेजी से मागौद की तरफ आते देखा तो उन्होंने उसे घेरने के लिए अपनी टीम को इशारा किया, लेकिन संयोग से मोटरसाइकिल सवार की नजर पुलिस पर पड़ गई.

इसलिए खतरा भांप कर उस ने तेजी से मोटरसाइकिल राजगढ़ की तरफ मोड़ दी. संतोष पांडेय इस स्थिति के लिए पहले से ही तैयार थे सो गोविंद के वापस मुड़ कर भागते ही वे अपनी टीम के साथ उस के पीछे लग गए. दूसरी तरफ इस स्थिति की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को दी गई तो उन के निर्देश पर एसडीपीओ (सरदारपुर) ऐश्वर्य शास्त्री और राजगढ़ टीआई मगन सिंह वास्केल ने रोड पर आगे की तरफ से घेराबंदी कर दी थी. इसलिए दोनों तरफ से पुलिस से घिर जाने पर गोविंद ने मोटरसाइकिल खेतों की तरफ मोड़ कर भागने की कोशिश की, मगर साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय और उन की टीम उसे दबोचने में कामयाब हो ही गई. पुलिस ने उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से एक कट्टा, जिंदा कारतूस और चोरी की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

चूंकि केशरबाई भील नाम की जिस महिला की हत्या के आरोप में गोविंद को गिरफ्तार किया गया था, उस में केशरबाई की हत्या में शामिल गोविंद का साथी सोहन वास्केल निवासी उदियापुर को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. इसलिए पूछताछ के दौरान गोविंद ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपनी प्रेमिका और रखैल केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार निकली—

कुक्षी थाना इलाके के एक गांव की रहने वाली केशरबाई को सिगरेट, शराब और सैक्स की लत किशोर उम्र में ही लग गई थी. संयोग से उस का रूप भी कुछ ऐसा दिया था कि उसे नजर भर कर देखने वाले घायल हो ही जाते थे. इसलिए शौक पूरा करने के लिए उसे अपने रूप का उपयोग करने में भी कोई गुरेज नहीं थी. केशरबाई की हरकतों से चिंतित उस के मातापिता ने छोटी उम्र में ही उस की शादी कर दी, लेकिन एक पुरुष से केशरबाई का मन भरने वाला नहीं था. इसलिए शादी के बाद भी उस ने अपने शौक पर लगाम लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी. जिस के चलते पति से होने वाले विवादों से तंग आ कर उस ने पति का घर छोड़ कर बच्चों के साथ अलग दुनिया बसा ली.

केशरबाई जानती थी की उस की सुंदरता उसे कभी भूखा नहीं मरने देगी. ऐसा हुआ भी, केशरबाई पति को छोड़ कर भी अपने सभी शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी बसर करने लगी. पति से अलग रहते हुए केशरबाई को इस बात का अनुभव हो चुका था कि मर्द की पहली जरूरत एक जवान औरत ही होती है. इसलिए उस ने ऐसे लोगों की तलाश कर उन्हें बड़ी रकम के बदले शादी के नाम पर दुलहन उपलब्ध करवाने का काम शुरू कर दिया, जिन की किसी कारण से शादी नहीं हो पा रही थी. उस ने आसपास के गांव में रहने वाली गरीब परिवार की जरूरतमंद युवतियों के अलावा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं से दोस्ती कर ली थी जो केशरबाई के कहने पर कुछ पैसों के बदले में चंद दिनों के लिए किसी भी युवक की नकली दुलहन बनने को तैयार हो जाती थीं.

केशरबाई जरूरतमंद लोगों से बड़ी रकम ले कर उस में से कुछ पैसे संबंधित युवती को दे कर उस की शादी युवक से करवा देती, जिस के बाद युवती कुछ रातों तक युवक को दुलहन का सुख देने के बाद किसी बहाने से मायके वापस आ कर गायब हो जाती थी. इस पर लोग यदि केशरबाई से शिकायत करते या अपना पैसा वापस मांगते तो वह उन्हें बलात्कार के आरोप में फंसाने की धमकी दे कर चुप करा देती. कहना नहीं होगा कि इन्हीं सब के चलते केशरबाई ने इस काम में खूब नाम और दाम कमाया. गांव उदियापुर निवासी सोहन वास्केल की केशरबाई से अच्छी पटती थी. उस का केशरबाई के यहां अकसर आनाजाना था जिस से वह केशरबाई के सभी कामों से परिचित भी था. सोहन की दोस्ती गांव सनावदा के रहने वाले गोविंद बागरी से थी.

गोविंद आपराधिक और अय्याशी प्रवृत्ति का था. उस ने भी इलाके में रहने वाली केशरबाई के चर्चे सुन रखे थे, इसलिए जब उसे पता चला कि सोहन की केशरबाई के संग अच्छी दोस्ती है तो उस ने सोहन से अपनी दोस्ती भी केशरबाई से करवा देने के लिए कहा. सोहन को भला क्या ऐतराज हो सकता था, इसलिए उस ने एक रोज गोविंद की मुलाकात केशरबाई से करवा दी. गोविंद केशरबाई की खूबसूरती देखते ही उस का दीवाना हो गया. इस पर जब उसे पता चला कि केशरबाई शराब पीने की भी शौकीन है तो वह 2 दिन बाद ही शराब की दरजन भर बोतलें ले कर केशरबाई के पास पहुंच गया. मर्द की नजर भांपने में केशरबाई कभी गलती नहीं करती थी. वह समझ गई कि गोविंद उस से क्या चाहता है, इसलिए उस ने उस रात गोविंद को शराब के साथ अपने रूप के नशे में भी गले तक डुबो दिया.

वास्तव में केशरबाई ने यह सब एक योजना के तहत किया था. केशरबाई को इस बात की जानकारी लग गई थी कि गोविंद न केवल पैसे वाला आदमी है बल्कि हेकड़ भी है. उस के खिलाफ कई थानों में अनेक मामले भी दर्ज हैं. इसलिए केशरबाई गोविंद से दोस्ती कर उस का उपयोग अपनी नकली दुलहन के कारोबार में करना चाहती थी. ताकि गोविंद ऐसे लोगों से उसे बचा सके जो शादी के नाम पर ठगे जाने के बाद केशरबाई से विवाद करने उस के दरवाजे पर भीड़ लगाए रहते थे. केशरबाई के रूप का दीवाना हो कर गोविंद उस के इस काम में मदद करने लगा तो इस का एक कारण यह भी था कि इस काम में केशरबाई के हाथ बड़ी रकम आती थी और गोविंद का सोचना था कि वह केशरबाई की मदद कर के उस की नजदीकी तो हासिल करता ही रहेगा.

साथ ही साथ इस रकम में से भी वह अपनी हिस्सेदारी तय कर लेगा. इसलिए उस ने केशरबाई के सामने दीवाना होने का नाटक किया और अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़ कर केशरबाई के संग जा कर सेंधवा में रहने लगा. लेकिन केशरबाई के पैसों पर ऐश करने का गोविंद का सपना चकनाचूर हो गया. केशरबाई फरजी शादी में ठगे पैसों में गोविंद को हाथ भी लगाने नहीं देती थी, उलटे घर का खर्च भी गोविंद से मांगती थी. गोविंद फंस गया था. केशरबाई के रूप का नशा उस के दिमाग से उतर गया. वह समझ गया कि केशरबाई बड़ी शातिर है. इतना नहीं, केशरबाई परिवार का खर्च तो गोविंद से मांगती थी, ऊपर से अपनी अय्याशी के लिए दूसरे युवकों को खुलेआम घर बुलाती थी.

गोविंद इस पर ऐतराज करता तो वह साफ बोल देती कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं, जो अकेले तुम्हारे बिस्तर पर सोऊं. मेरा अपना बिस्तर है और मैं जिसे चाहूं उसे अपने साथ सुला सकती हूं. गोविंद ने उसे अपनी ताकत से दबाना चाहा तो केशरबाई ने जल्द ही उसे इस बात का अहसास भी करवा दिया कि केशरबाई को वह अपनी ताकत से नहीं दबा सकता. कहना नहीं होगा कि सब मिला कर गोविंद केशरबाई नाम की इस खूबसूरत बला के कांटों में उलझ कर रह गया था. इसी बीच एक और घटना घटी. हुआ यह कि गंधवानी थाना सीमा के बोरडाबरा गांव में सोहन के एक परिचित दिनेश भिलाला को शादी के लिए एक लड़की की जरूरत थी.

चूंकि बोरडाबरा गांव अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए पूरे इलाके में कुख्यात है, इसलिए कोई भी भला आदमी अपनी बेटी को बोरडाबरा में रहने वाले युवक से ब्याहना पसंद नहीं करता. दिनेश भिलाला भी यहां रहने वाले खूंखार आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में से एक था, इसलिए उम्र गुजर जाने के बाद भी उसे शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही थी. उस ने अपनी यह समस्या सोहन के सामने रखी तो सोहन ने केशरबाई के माध्यम से उस की शादी करवा देने का भरोसा दिलाया. सोहन जानता था कि केशरबाई शादी के नाम पर ठगी का खेल करती है. उस की लड़कियां शादी के कुछ दिन बाद पति के घर से मालपैसा समेट कर फरार हो जाती हैं.

लेकिन उसे भरोसा था कि चूंकि केशरबाई उस की परिचित है, इसलिए वह उस के कहने पर ईमानदारी से दिनेश के लिए किसी अच्छी लड़की का इंतजाम करवा देगी. केशरबाई ने ऐसा किया भी. सोहन के कहने पर उस ने 80 हजार रुपए के बदले में दिनेश भिलाला की शादी एक बेहद खूबसूरत युवती से करवा दी. लेकिन सोहन का यह सोचना कि केशरबाई उसे धोखा नहीं देगी, गलत साबित हुआ. शादी के बाद वह युवती 15 दिन तक तो दिनेश भिलाला के साथ उस की पत्नी बन कर रही, उस के बाद केशरबाई  के इशारे पर वह दिनेश के बिस्तर से उतर कर वापस आने के बाद कहीं गायब हो गई. पत्नी के भाग जाने की बात दिनेश को पता चली तो उस ने सीधे जा कर सोहन का गला पकड़ लिया. उस का कहना था कि या तो पत्नी को उस के पास भेजो या फिर शादी के नाम पर उस से लिया गया पैसा 80 हजार मय खर्च के वापस करो.

सोहन ने इस बारे में केशरबाई से बात की तो उस ने साफ  मना कर दिया. उस का कहना था कि मेरी जिम्मेदारी शादी करवाने की थी, लड़की को दिनेश के गले बांध कर रखने की नहीं. लड़की कहां गई, इस का उसे पता नहीं और न ही वह दिनेश को उस का पैसा वापस करेगी. लेकिन दिनेश इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था. उस ने सोहन के साथसाथ केशरबाई और उस के आशिक गोविंद को भी धमकी दी कि अगर 10 दिन में उस की पत्नी वापस नहीं आई तो 11वें दिन उस का पैसा वापस कर देना. और अगर यह भी नहीं कर सकते तो फिर तीनों मरने के लिए तैयार रहना. बोरडाबरा का आदमी खालीपीली धमकी नहीं देता. वह सचमुच ऐसा कर सकता है, यह सोच कर सोहन और गोविंद दोनों के प्राण गले में अटक गए.

केशरबाई के संग अय्याशी के चक्कर में जान पर बन आई तो सोहन और गोविंद दोनों उस से बचने का रास्ता सोचने लगे. पहली अक्तूबर, 2020 को गंधवानी थाना इलाके के अवल्दमान गांव निवासी एक आदमी ने थाने आ कर गांव में प्राथमिक स्कूल के पास किसी महिला की अधजली लाश पड़ी होने की खबर दी. अवल्दामान गांव अपराध के लिए कुख्यात बोरडाबरा गांव के नजदीक है, इसलिए गंधवानी टीआई को लगा कि यह बोरडाबरा के बदमाशों का ही काम होगा. लगभग 30 वर्षीय महिला के शरीर पर धारदार हथियार के घाव भी थे, इसलिए मामला सीधेसीधे हत्या का प्रतीक होने पर टीआई गंधवानी ने इस बात की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को देने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए इंदौर भेज दिया.

मामला गंभीर था क्योंकि आमतौर पर लोग पहचान छिपाने के लिए शव को जलाते हैं, ताकि उस की पहचान न हो सके. लेकिन इस मामले में अजीब बात यह थी कि हत्यारों ने युवती का धड़ तो जला दिया था लेकिन चेहरा पूरी तरह से सुरक्षित था. ऐसा प्रतीक होता था मानो हत्यारे खुद यह चाहते हों कि  शव की शिनाख्त आसानी से हो जाए. ऐसा हुआ भी. मृतका के चेहरे और हाथ पर बने एक निशान ने उस की पहचान केशरबाई भील के रूप में हो गई जो पति को छोड़ कर अपने प्रेमी गोविंद के साथ रह रही थी. मामला रहस्यमयी था, इसलिए एसपी (धार) ने एडीशनल एसपी देवेंद्र पाटीदार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

जिस में पता चला कि मृतका को घटना से 1-2 दिन पहले सोहन के साथ मोटरसाइकिल पर घूमते देखा गया था. सोहन अपने घर से गायब था, इसलिए उस पर शक गहराने के बाद पुलिस ने उस की घेराबंदी कर लाश मिलने के 3 दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस में पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन बाद में गोविंद के साथ मिल कर केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. सोहन को पुलिस उठा कर ले गई है, इस बात की जानकारी लगते ही गोविंद भी गांव से गायब हो गया था. इसलिए जब काफी प्रयास के बाद उसे पकड़ने में सफलता नहीं मिली, तब टीम में साइबर सेल को शामिल किया गया.

कहना नहीं होगा कि जिम्मेदारी मिलते ही प्रभारी संतोष पांडेय की टीम सक्रिय हो गई और हत्या के 2 महीने बाद आखिर साइबर सेल टीम ने फरार आरोपी गोविंद को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने केशरबाई की हत्या खेरवा के जगंल में ले जा कर की थी. जहां से उन्होंने लाश को अवल्दामान गांव में ला कर इस तरह जलाया था कि उस की पहचान हो जाए. अवल्दामान गांव बोरडाबरा के नजदीक है. बोरडाबरा में रहने वाले दिनेश ने केशरबाई को जान से मारने की धमकी दी है यह बात कई लोगों को मालूम थी. इसलिए आरोपियों का सोचना था कि अवल्दामान में लाश मिलने से पुलिस दिनेश भिलाला को हत्यारा मान कर उसे जेल भेज देगी, जिस से सोहन और गोविंद आराम से रह सकेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और असली गुनहगार पकड़े गए.

 

Gujarat News : एक ही घर में तीन कत्ल करने वाले कातिल की स्टोरी

Gujarat News : हत्या के जुर्म में सुनाई गई सजा काटते वक्त पैरोल जंप कर गुजरात से आ कर रतलाम में बसा हत्यारा गैंगस्टर दिलीप देवले इसलिए हत्या कर देता था ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. देव दिवाली की रात भी उस ने 3 लोगों को इसीलिए मौत की नींद सुला दिया था  कि…

25 नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और माता तुलसीजी का विवाह उत्सव मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी को खत्म करने के जतन में लगे हुए थे. चारों तरफ भक्ति के साथ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में 4 युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे. यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था.

उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास पुश्तैनी संपत्ति रही है इसलिए पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेहद खूबसूरत बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी 5 मंजिल पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थी, जिस की शादी हो चुकी थी. इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थे, उस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को काफी खुले विचारों के तौर पर जाना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी.

उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने अपनी आंखों से देखी और सुनी थी. फिर हाथ कंगन को आरसी क्या, पिता के सैलून चले जाने के बाद दिन भर ही तो घर में अकेली रह जाती. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने के लिए आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद ‘हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते रहते थे. इसलिए 25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ 7 बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरते हुए सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए तो सामने के मकान से देख रहे युवक ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया.

जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा 9 बजे गोविंद दूध की थैली लिए हुए थकाहारा सा घर की ओर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंचे, जिस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए. जिस पड़ोसी ने इन को ऊपर जाते देखा था, संयोग से इन तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर इन युवकों को अपने घर में पहले से मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश की, लेकिन संभवत: वे गलत चाबी लाए थे.

इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आया, जिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए. 26 नवंबर की सुबह के 8 बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ बढ़ गई. गोविंद के मकान में किराए पर रहने वाली दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती है. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद पड़ी थीं, इसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा का उपयोग करती थीं. जब जिस को जरूरत होती, वही एक्टिवा ले जाती थी. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुई, चीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार बाहर आ गए और उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंद, उस की पत्नी और बेटी की लाश पड़ी है. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी. जिस से कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दे दी.

चंद मिनट बाद ही एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदार, एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गई, जिस से मौके पर जमा भारी भीड़ के बीच मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा था, जिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी.

जांच में स्पष्ट हुआ कि दरवाजे के पास पड़ी गोविंद की लाश की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैर में जूते थे और हाथ में दूध की थैली. जिस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे 2 हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगे, लेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आए, जिस से उन की भी हत्या कर दी होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को 9 बजे घर आते देखा था. उस के बाद 3 लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि हत्या 9 बजे के पहले की गई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आई, उस से पुलिस को शक था कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले गांव की अपनी जमीन 30 लाख रुपए में बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थी, जो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगे, परिवार के परिचित रहे होंगे एवं उन्हें गाड़ी की चाबी आदि रखने की जगह भी मालूम थी. हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने भी मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी. वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगाल दिए, इस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की. दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम ‘मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था.

इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थी, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की गई. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू कर दी. जिस में दोनों जगहों के फुटेज से 2 संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गई. जिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक गोविंद की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है कि हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएं, वे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं, यह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था. दरअसल, जब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी कि देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने गोविंद की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा था, जिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी का शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता है, जो आसपास ही रहता होगा. बात सही थी, वह अनुराग परमार उर्फ बौबी था, जो विनोबा नगर में रहता था. इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के 4 दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और यहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले है, जो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है. यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगर, रतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवरादेनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के एक मकान में रह रहा है और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाई, जिस के चलते 2 दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार से असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज 5 दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और 2 एसआई सहित 5 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

 

सिस्टर अभया हत्याकांड : 28 साल पुराने मामले के लिए दोषियों को कैसी सजा मिली

Kerala Crime News : 28 साल का समय बहुत होता है. इस बीच इस केस को खत्म कराने, बंद कराने, अदालत को गुमराह करने के हरसंभव प्रयास हुए. पुलिस, क्राइम ब्रांच यहां तक कि सीबीआई ने भी कातिलों का साथ दिया. लेकिन आखिरकार सिस्टर अभया को…

केरल के तिरुवनंतपुरम की सीबीआई कोर्ट में चल रहे सिस्टर अभया की हत्या के मुकदमे में पूरे 28 साल बाद सीबीआई के स्पैशल न्यायाधीश के. सनिल कुमार ने बुधवार 23 दिसंबर, 2020 को अपना फैसला सुनाया. इतनी देर से फैसला आने की वजह यह थी कि इस मामले की जांच बहुत लंबी चली. मामले की जांच पहले स्थानीय थाना पुलिस ने की. उस के बाद क्राइम ब्रांच ने की और जब मामला नहीं सुलझा तो जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. सीबीआई की भी 4 अलगअलग टीमों ने जांच की. इस तरह कुल मिला कर 6 जांच एजेंसियों ने इस केस की जांच की. इस बीच कई सीबीआई अफसर भी बदले गए.

सीबीआई ने 3 बार क्लोजर रिपोर्ट लगाने की कोशिश की, पर कोर्ट ने उसे स्वीकर नहीं किया. सीबीआई की चौथी टीम ने इस मामले में एक चोर की गवाही पर जो चार्जशीट दाखिल की, उसी चोर की गवाही पर कोर्ट इस मामले में अंतिम नतीजे पर पहुंचा और हत्यारों को सजा सुनाई. इतनी लंबी जांच होने की वजह से ही हत्या के इस मामले को केरल की हत्या की सब से लंबी जांच का मामला कहा जा सकता है. सिस्टर अभया हत्याकांड में क्या फैसला आया, यह जानने से पहले आइए यह जान लें कि सिस्टर अभया कौन थी, उन की हत्या क्यों हुई और हत्या के इस मामले में इतनी लंबी जांच क्यों करनी पड़ी. 19 साल की सिस्टर अभया कोट्टायम के पायस टेन कौन्वेंट में प्री कोर्स की पढ़ाई कर रही थीं.

पिता थौमस और मां लीला ने उन का नाम बीना थौमस रखा था. पढ़ाई के लिए जब वह नन बनीं तो उन का नाम बदल कर अभया रख दिया गया. वह सेंट जोसेफ कौन्ग्रीगेशन औफ रिलीजियस सिस्टर्स की सदस्य थीं. 27 मार्च, 1992 की सुबह 4 बजे सिस्टर अभया पढ़ने के लिए उठीं. क्योंकि उस दिन उन की परीक्षा थी, जिस की तैयारी करनी थी. उन्होंने 4 बजे का अलार्म लगा रखा था. उन्हें प्यास लगी थी. वह पानी लेने के लिए किचन में गईं. लेकिन वापस अपने कमरे में नहीं आईं. किचन में गईं सिस्टर अभया कमरे में नहीं लौटीं. उन के साथ रहने वाली अन्य ननें भी पढ़ने के लिए उठीं तो सिस्टर अभया कमरे में नहीं थीं. जबकि उस समय उन्हें कमरे में ही होना चाहिए था.

उन लोगों को अभया की चिंता हुई. उन्होंने उन की तलाश शुरू की. सिस्टर अभया को ढूंढते हुए वे किचन में पहुंची तो देखा फ्रिज का दरवाजा खुला हुआ था. उसी के पास पानी की एक बोतल खुली पड़ी थी और बोतल का पानी फर्श पर फैला था. उसी के पास अभया की एक चप्पल पड़ी थी. सिस्टर अभया की काफी तलाश की गई, पर उन का कुछ पता नहीं चला. जल्दी ही यह बात पूरे कंपाउंड में फैल गई कि सिस्टर अभया गायब हैं. सवेरा हो चुका था. उजाला होने पर किसी की नजर कौन्वेंट के ही कंपाउंड में बने कुएं के पास पड़ी अभया की दूसरी चप्पल पर पड़ी. कुएं के पास चप्पल पड़ी होने से अंदाजा लगाया गया कि कहीं सिस्टर अभया कुएं में तो नहीं गिर गईं.

इस के बाद स्कूल प्रशासन ने पुलिस और फायर ब्रिगेड को सूचना दी. पुलिस और फायर ब्रिगेड ने कुएं को खंगाला तो सिस्टर अभया की लाश मिली. अब तक सुबह के लगभग 10 बज चुके थे. पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. जांच में सिस्टर अभया की एक चप्पल फ्रिज के पास पड़ी मिली. फ्रिज का दरवाजा खुला था. पानी की खुली बोतल फर्श पर पड़ी थी और उस के पास पानी फैला था, जो यह बताता था कि फ्रिज से पानी की बोतल निकाली गई थी. सिस्टर अभया की दूसरी चप्पल कुएं के पास पड़ी मिली थी. सोचने की बात यह थी कि सिस्टर अभया कुएं के पास कैसे पहुंचीं? पुलिस ने कुछ लोगोें से पूछताछ भी की, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

अंत में सब ने यही सोचा कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या की होगी. क्योंकि वहां हत्या करने वाला कोई नहीं आ सकता था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में स्पष्ट लिखा था कि सिस्टर अभया की मौत पानी में डूबने से हुई है. उन के शरीर पर जो चोट लगी थी, उस के बारे में कहा गया कि वह चोट उन के कुएं में गिरने पर लगी है. स्थानीय पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सबूत मान कर अपनी फाइनल रिपोर्ट लगा दी कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या की है. पुलिस और स्कूल प्रशासन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सच मान कर बात खत्म कर दी. पर स्कूल के हौस्टल में रहने वाली अन्य ननों को न तो पुलिस जांच पर भरोसा था और न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर.

इस की एक वजह यह थी कि एक नन ने उसी सुबह किचन के पास हौस्टल की प्रभारी सिस्टर सेफी, फादर थौमस कोट्टूर और एक अन्य फादर जोस पुथुरुक्कयिल को देखा था. वह ननों का हौस्टल था, इसलिए वहां फादर का जाना वर्जित था. इस के अलावा सिस्टर अभया की एक चप्पल किचन में मिली थी तो दूसरी कुएं के पास. फ्रिज खोल कर उन्होंने पीने के लिए पानी की बोतल निकाल कर खोली तो थी, पर शायद पानी पी नहीं पाई थीं. क्योंकि अगर वह पानी पीतीं तो बोतल का ढक्कन लगा कर उसे साथ ले जातीं या फिर फ्रिज में रख देतीं. फ्रिज का दरवाजा भी खुला पड़ा था. अगर उन्हें कुएं में कूद कर आत्महत्या ही करनी थी तो वह फ्रिज का दरवाजा बंद कर के जा सकती थीं.

एक चप्पल किचन में और दूसरी कुएं के पास क्यों छोड़तीं. चप्पल पहन कर भी तो कुएं में कूद सकती थीं. इस के अलावा किचन का कुछ सामान भी अस्तव्यस्त था. उसे देख कर लग रहा था कि जैसे वहां हाथापाई हुई थी. इन्हीं वजहों से हौस्टल में रहने वाली अन्य ननों को पुलिस जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा नहीं हुआ. घटनास्थल की स्थिति देख कर उन्हें लगता था कि उस रात वहां कुछ तो गड़बड़ हुई थी, जिस ने सिस्टर अभया के साथ कुछ उल्टासीधा किया था. परिणामस्वरूप हौस्टल की 67 ननोें ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरन को एक पत्र लिख कर अपील की कि उन्हें पुलिस जांच पर भरोसा नहीं है, इसलिए सिस्टर अभया की मौत के मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए.

ननों की इस अपील के बावजूद केरल सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को देने के बजाय केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी. क्राइम ब्रांच ने पूछताछ शुरू की तो उस नन ने बताया कि उस रात उस रात उस ने हौस्टल के किचन में सिस्टर सेफी के अलावा 2 फादर, थौमस कोट्टूर और जोस पुथुरुक्कयिल को देखा था. इस के अलावा क्राइम ब्रांच को एक गवाह भी मिल गया था. वह गवाह था एक चोर, जिस का नाम था अदक्का राजा. उस रात वह कौन्वेंट में चोरी करने आया था. दरअसल वह चोर आकाशीय बिजली को रोकने के लिए छत पर लगे तांबे के तार को चुराने आया था. चोर अदक्का राजा छत पर चढ़ कर जब तार चोरी करने जा रहा था, उसी समय उस ने सिस्टर सेफी, फादर थौमस कोट्टूर और फादर जोस पुथुरुक्कयिल को टार्च लिए किचन के दरवाजे पर देखा था.

जब उस ने सिस्टर अभया की पूरी कहानी अखबारों में पढ़ी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उस रात सिस्टर अभया ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि इन्हीं तीनों ने उस की हत्या की थी. उस ने खुद क्राइम ब्रांच के औफिस जा कर यह बात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों से बताई. लेकिन पुलिस ने उस की गवाही मानने के बजाय उसे चोरी के आरोप में जेल भेज दिया और क्राइम ब्रांच पुलिस ने भी वही रिपोर्ट दी, जो स्थानीय थाना पुलिस ने दी थी. क्राइम ब्रांच का कहना था कि सिस्टर अभया की मौत कुएं में डूबने से हुई थी यानी उन्होंने आत्महत्या की थी. पर कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं था. यही वजह थी कि जेमोन पुथेनपुरक्कल जैसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस जांच के खिलाफ न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस मामले को ले कर विधानसभा में भी काफी हंगामा हुआ.

अंतत: जब यह मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. यह सन 1993 की बात है. जांच का आदेश मिलते ही सीबीआई की टीम सिस्टर अभया की मौत के रहस्य का पता लगाने में लग गई. सीबीआई ने भी अपनी जांच के बाद वही कहा, जो पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अपनी रिपोर्ट में कहा था. उस का कहना था कि उसे इस तरह का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला कि वह इसे हत्या का मामला माने. सीबीआई की इस टीम का ध्यान न तो उस नन की बात पर गया था, न चोर अदक्का राजा की बात पर. सीबीआई ने यह रिपोर्ट सन 1996 में दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को खारिज कर फिर से जांच के आदेश दिए. इस के बाद सीबीआई की दूसरी टीम इस मामले की जांच में लगाई गई.

दूसरी टीम ने भी जांच कर के सन 1999 में रिपोर्ट दी कि उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा है कि सिस्टर अभया की हत्या हुई या उन्होंने आत्महत्या की है. पर इस टीम ने इस मामले को संदिग्ध जरूर माना था. इस टीम का कहना था कि मामला है तो संदिग्ध, पर सबूत के अभाव में वह निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकती. हाईकोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगा कर फिर से ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए. इस के बाद सीबीआई की तीसरी टीम जांच में लगाई गई. इस तीसरी टीम ने जांच करने के बाद कोर्ट को बताया कि जांच में यह तो पता चल गया है कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है. लेकिन उन के पास ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि वह किसी को दोषी मान कर जांच आगे बढ़ाए. उस का कहना था कि इस मामले में अब तक सारे सबूत मिटाए जा चुके हैं.

कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया और एक बार फिर से डांट कर ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए. इस बार सीबीआई ने किसी भी तरह का सबूत या सुराग देने वाले को 3 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा भी की थी. फिर भी सीबीआई के हाथ ऐसा कोई सबूत या सुराग नहीं लगा कि वह कोर्ट में यह साबित कर सके कि यह हत्या का मामला है. इसी बीच सीबीआई के एक अफसर वर्गीज पी. थौमस, जो इस मामले की जांच कर रहे थे और काफी तेजतर्रार अफसर माने जाते थे, ने एक दिन अचानक उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस बुलाई. 19 जनवरी, 1994 को जब यह रिपोर्ट आई थी, तब उन्होंने कहा था कि वह समय से पहले अपनी नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस मामले में ईमानदारी से जांच करने की इजाजत नहीं दी जा रही है.

केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के सुपरिटेंडेंट वी. त्यागराजन उन पर दबाव डाल रहे हैं कि वह सिस्टर अभया के मामले में अपनी जांच रिपोर्ट को सुसाइड में तब्दील कर के कोर्ट में सुसाइड ही दिखाएं. यह खुलासा होने के बाद तो हंगामा मच गया. सीबीआई पर काफी दबाव पड़ा तो वी. त्यागराजन को कोच्चि से हटा दिया गया. इस के बाद कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की चौथी टीम को जांच पर लगाया गया. यह टीम केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के अफसरों की थी. सीबीआई की टीम ने इस केस में फादर कोट्टूर, फादर जोस पुथुरुक्कयिल और नन सिस्टर सेफी को संदिग्ध माना. साथ ही उन लोगों का नारको टेस्ट कराने का फैसला किया.

जब इस बात की जानकारी कौन्वेंट को हुई तो उस ने हौस्टल की रसोइया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करा कर नारको टेस्ट रोकवाने का भी प्रयास किया. पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोक लगाने से मना कर दिया. इस के बाद बेंगलुरु में इन तीनों का नारको टेस्ट कराया गया. तीनों का नारको टेस्ट डा. मालिनी ने किया. नारको टेस्ट के दौरान इन तीनों का जो इकबालिया बयान था, वह एक सीडी के तौर पर सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसे सीबीआई ने कोर्ट में पेश किया. लेकिन बाद में पता चला कि सीबीआई ने तीनों के नारको टेस्ट की जो सीडी अदालत में पेश की थी, उस के साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस का मतलब यह था कि फादर और नन सेफी ने नारको टेस्ट के दौरान जो कुछ भी कहा था, छेड़छाड़ कर के उसे बदल दिया गया था.

इस के बाद कोर्ट ने सीधे डा. मालिनी से संपर्क कर उन से कहा कि इस मामले की जो ओरिजनल रिकौर्डिंग है, वह उन्हें भेजें. पर डा. मालिनी ने अपने बर्थ सार्टिफिकेट को ले कर कुछ गलत काम किया था, इसलिए उसी समय उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. इस के बाद यह मामला यहीं लटक गया. अब वह सीडी सही है या गलत, कोई जानकारी देने वाला नहीं था. लेकिन एक दिन अचानक वही सीडी केरल के एक लोकल चैनल पर चल गई. वह सीडी चैनल को कहां से और कैसे मिली, यह तो पता नहीं चल सका. जबकि कोर्ट ने कहा कि यह सीडी सीलबंद लिफाफे में हमें दो. उस सीडी में दोनों फादर और नन अपनी पूरी कहानी सुना रहे थे, जो नारको टेस्ट के दौरान उन्होंने बताई थी. इस के बाद सीबीआई की इस चौथी टीम का ध्यान चोर अदक्का राजा पर गया.

पहली बार सन 2008 में सीबीआई ने उसी अदक्का राजा की गवाही के आधार पर चार्जशीट दाखिल की. जिस के बाद पहली बार सन 2008 में सिस्टर अभया की हत्या के आरोप में दोनों फादर थौमस कोट्टूर, जोस पुथुरुक्कयिल और नन सेफी को गिरफ्तार किया गया. हालांकि गिरफ्तारी के बाद ये तीनों साल भर भी जेल में नहीं रहे और 2009 में हाईकोर्ट ने इन्हें जमानत पर छोड़ दिया था. इस के बाद यह मामला फिर रुक गया. सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी और सीडी में तीनों ने जो कहानी सुनाई थी, वह कुल मिला कर कुछ इस तरह थी. उस रात सुबह 4 बजे सिस्टर अभया पानी पीने के लिए किचन में गईं और पानी पीने के लिए फ्रिज से बोतल निकाल कर जैसे ही बोतल का ढक्कन खोल कर पानी पीना चाहा, तभी उन्हें किसी की आवाज सुनाई दी.

उन्होंने पलट कर देखा तो दोनों फादर थौमस कोट्टूर, जोस पुथरुक्कयिल, जिन्हें कोर्ट ने 2 साल पहले सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था और सिस्टर सेफी आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दिए. उन लोगों को उस स्थिति में देख कर सिस्टर अभया सन्न रह गईं. इसी के साथ दोनों फादर और सिस्टर सेफी ने भी सिस्टर अभया को देख लिया था. अभया को देख कर तीनों घबरा गए. क्योंकि उन की चोरी पकड़ी गई थी. चोरी भी ऐसी कि अगर बात खुल जाती तो तीनों की बदनामी तो होती ही, उन्हें वहां से निकाल भी दिया जाता. इस के बाद वे कहीं के न रहते. इसलिए उन्होंने तुरंत निर्णय लिया कि क्यों न सिस्टर अभया की हत्या कर उन का मुंह हमेशाहमेशा के लिए बंद कर दिया जाए.

यह निर्णय लेते ही फादर थौमस कोट्टूर ने आगे बढ़ कर हैरानपरेशान खड़ी सिस्टर अभया का एक हाथ से गला और दूसरे हाथ से उन का मुंह दबोच लिया तो सिस्टर सेफी ने किचन में रखी कुल्हाड़ी उठा कर पूरी ताकत से सिस्टर अभया के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में सिस्टर अभया बेहोश हो कर गिर पड़ीं तो उन्हें लगा कि वह मर चुकी हैं. और यही सोच कर फादर थौमस और सिस्टर सेफी ने बेहोश पड़ी अभया को घसीट कर कौन्वेंट के कंपाउंड में बने कुएं में ले जा कर डाल दिया. उस समय यह किसी को पता नहीं था कि सिस्टर अभया जिंदा थीं या मर चुकी थीं. इस के बाद किचन में आ कर वहां फैले खून को साफ कर दिया. लेकिन सिस्टर अभया की चप्पल, फ्रिज के दरवाजे, फर्श पर पड़ी बोतल और वहां अस्तव्यस्त हुए सामान की ओर उन का ध्यान नहीं गया.

बाद में इन्हीं चीजों से लोगों कोे अभया के साथ कोई हादसा होने का शक हुआ. उसी समय चोर अदक्का राजा चोरी करने के इरादे से छत पर चढ़ा था. तभी उस ने इन तीनों को वहां देख लिया था. उस समय उस ने फादर थौमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को पहचान भी लिया था. बाद में उस ने दोनों की शिनाख्त भी कर दी थी. फादर जोस अंधेरे में थे, इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं पाया था. यह पूरी बातें नारको टेस्ट में सामने आई थीं. कोर्ट नारको टेस्ट को सबूत नहीं मानता, क्योंकि इस में आदमी जो भी बताता है, वह नशे की हालत में यानी अर्द्धबेहोशी की हालत में बताता है, इसलिए कोर्ट इसे पुख्ता सबूत नहीं मानता. ऐसा ही इस मामले में भी हुआ.

कोर्ट ने नारको टेस्ट में दिए गए बयान को सही नहीं माना और तीनों को सन 2009 में जमानत पर रिहा कर दिया था. इस मामले की जिस पुलिस अधिकारी ने जांच की थी, उस पर भी संदेह था. बाद में पता चला कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी छेड़छाड़ की गई थी. उस रात सिस्टर अभया ने जो कपड़े पहने थे, वे भी गायब कर दिए गए थे. उन के  शरीर पर जो चोट के निशान थे, वे भी छिपाए गए थे. इस तरह इस मामले में हर कदम पर साक्ष्य और सबूत छिपाए और नष्ट किए गए. शायद इसीलिए सीबीआई ने इस मामले में एक पुलिस अधिकारी को भी साक्ष्य मिटाने के आरोप में आरोपी बनाया था, लेकिन बाद में वह हाईकोर्ट से बरी हो गए थे.

सन 2018 में फादर जोस पुथुरुक्कयिल इस केस में सबूतों के अभाव में बरी कर दिए गए. इस के बाद सन 2019 में हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण की बेंच ने इस मामले में हो रही देरी की ओर ध्यान दिया. उन्होंने निर्देश दिया कि इस केस को जल्द से जल्द निपटाया जाए. इस के बाद सीबीआई कोर्ट में इस केस मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई, जिस की वजह से घटना के 28 साल बाद कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंच सका और न्यायाधीश के. सनिल कुमार के फैसले के साथ इस मामले का पटाक्षेप हुआ. श्री सनिल कुमार ने अपने फैसले में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर को उद्धृत करते हुए अपना जो फैसला सुनाया वह इस प्रकार था.

उन का कहना था कि सिस्टर अभया की मौत का मामला निश्चय ही ऐसा था, जिस पर मलयाली भाषी केरल की पूरी एक पीढ़ी ने अपने जीवनकाल के दौरान घरघर खूब चर्चा सुनी. झूठ, फरेब, अपराध को छिपाना, राजनीतिक प्रभाव, अदालती काररवाई और बीचबीच में मामला बंद करने की रिपोर्ट सहित सब कुछ देखासुना था. न्यायाधीश जाते रहे, पर मुकदमा जस का तस रहा. रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इतने अधिक हैं कि परिस्थितियों की तारतम्यता की कड़ी कुल मिला कर आरोपियों के अपराध की ओर इशारा करती है और इस नतीजे पर पहुंचाती है कि आरोपियोें ने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया है.

गवाहोें और प्राप्त सबूतों से साबित होता है कि सिस्टर अभया की मौत सिर में लगी चोट और पानी में डूबने से हुई. अभया के शव परीक्षण से पता चला कि उस की गरदन के दोनों ओर नाखूनों की खरोंच के निशान थे, उन की गरदन पर जख्म भी था और सिर के पिछले हिस्से में भी जख्म था, मैडिकल विशेषज्ञों के अनुसार ये जख्म मौत से पहले के थे. गवाहों के बयानों और प्राप्त सबूतों के आधार पता चला कि अभया ने फादर थौमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और संभवत: एक दूसरे आरोपी को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. अपने बचाव के लिए उन्होंने उस के सिर पर कुल्हाड़ी से हमला किया और उस की हत्या कर अपनी करतूतों पर परदा डालने के इरादे से उसे कुएं में फेंक दिया.

अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अपना जीवन खत्म करने पर तुला व्यक्ति जो अपना जीवन तत्काल खत्म कर रहा हो, वह अपने साथी छात्रों के साथ मिल कर पढ़ाई करने की बात तो दूर वह अपने भविष्य को ले कर क्यों चिंता करेगा? अपनी परीक्षा को अच्छी तरह देने के बारे में सोच कर अच्छी नींद भी नहीं लेगा और न मन लगा कर पढ़ाई करेगा. ये सारी बातें आत्महत्या करने की बात को झुठलाती हैं. अदालत का कहना था कि अभया एक बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ, ईमानदार, सादगी पसंद, दृढ़निश्चयी और अति शिष्टाचारी लड़की थी, जो हर तरह से कुशल थी और परोपकारी जीवन व्यतीत कर रही थी. उस के लिए खुद ही अपने जीवन का अंत कर लेना पूरी तरह से असंभव था, जैसी दलीलें बचाव पक्ष पेश कर रहा है.

इस मामले में गवाही देने वाला अदक्का राजू या अंडासू राजू जिसे ज्यादातर लोग इसी नाम से बुलाते थे, एक मामूली चोर था, वह आकाशीय बिजली रोकने के लिए कौन्वेंट की छत में लगी तांबे की छड़ की चोरी किया करता था. न्यायाधीश ने इस तथ्य का भी जिक्र किया है कि वह अपने बयान पर अडिग रहा कि उस ने फादर थौमस कोट्टूर और एक अन्य व्यक्ति को टौर्च के साथ किचन के पास खड़े देखा था. जबकि बचाव पक्ष ने राजू की पृष्ठभूमि के आधार पर उस की गवाही पर ही सवाल खड़े किए. लेकिन 2 वकीलों द्वारा जिरह करने के बावजूद वह अपनी बात पर कायम रहा. फैसले में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि किस तरह से गवाह राजू को अपने बयान से मुकरने और सिस्टर अभया की हत्या कबूल करने के लिए धमकियां मिलीं, यातना दी गई और मोटी रकम देने का प्रलोभन दिया गया, पर वह अपने बयान से टस से मस नहीं हुआ.

अदालत ने इस तथ्य को रिकौर्ड किया कि सिस्टर अभया की मौत वाली रात सिस्टर सेफी अकेली थीं. क्योंकि उन की साथिन रिट्रीट सेंटर गई थीं. उस रात और सवेरे रसोई घर में सामान्य स्थिति नहीं थी, जिस के बारे में अदालत को कौन्वेंट में रहने वाले अन्य लोगों ने, जो बाद में मुकर गए थे, की गवाही से पता चला था. एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी मिली थी कि सिस्टर सेफी ने अपने यौनाचार में लिप्त रहने के तथ्य को छिपाने के लिए स्त्रीरोग विशेषज्ञ से अपनी हाईमेनोप्लास्टी कराई थी. अदालत ने पाया कि सेफी ने यह प्रक्रिया सीबीआई द्वारा गिरफ्तार करने के बाद कराई थी. अदालत ने इस मामले के गवाहों में से एक गवाह कलारकोडे वेणुगोपाल को दिए गए फादर थौमस कोट्टूर के बयान का संज्ञान लिया. इस मामले में वेणुगोपाल ने कोट्टूर का नारको टेस्ट कराए जाने की संभावना के बारे में जानकारी मिलने पर थौमस कोट्टूर से संपर्क किया था.

तब उन्होंने भावावेश में वेणुगोपाल से कहा था कि वह लोहे या पत्थर से नहीं बने, वह भी मनुष्य हैं, जो एक समय पर सिस्टर सेफी के साथ पतिपत्नी की तरह रहे थे, अब उन्हें क्यों सूली पर चढ़ाया जा रहा है. बचाव पक्ष ने अदालत से वेणुगोपाल के बयान को भरोसेमंद न मानने का आग्रह किया था. पर अदालत ने कहा कि आरोपी का बर्ताव, उस की गवाही के दौरान उस की भावभंगिमाएं औैर अपनी गवाही के बुनियादी तथ्यों से टस से मस नहीं होने का तथ्य गवाह की विश्वसनीयता बता रहा था. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अचानक बगैर किसी वजह से पूरा कौन्वेंट सामूहिक रूप से मुकर गया, सबूत भी गायब हो गए और कौन्वेंट की रसोइया अचम्मा ने नारको टेस्ट को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दी.

अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि उस ने स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय में देश के महानतम वकीलों में शामिल वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे उस की ओर से पेश हुए थे. अदालत ने फैसले में कहा कि उस ने यह भी स्वीकार किया कि उस के मुकदमे का खर्च कौन्वेंट ने उठाया था. जबकि उसे मुकदमे के बारे में बिलकुल जानकारी नहीं थी. अदालत ने कहा कि इस से यह साबित होता है कि इस मुकदमे को किस अंतिम नतीजे पर पहुंचने से रोकने तथा अभियोजन के मामले की सुनवाई को पटरी से उतारने के लिए प्रभावशाली लोगों ने व्यवस्थित और संगठित तरीके से प्रयास किए.

न्यायाधीश श्री के. सनिल कुमार ने इस मामले के जांच अधिकारियों, डीएसपी के. सैमुअल और तत्कालीन एसपी केटी माइकल की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इन की इस मामले में दिलचस्पी की वजह से साक्ष्य नष्ट हुए, मनगढ़ंत सबूत तैयार किए गए. यहां तक कि मुख्य गवाह अदक्का राजू को सिखायापढ़ाया गया और अन्य गवाहों पर दबाव डाले गए. अदालत ने भविष्य में इस तरह से हस्तक्षेप के खिलाफ सख्त चेतावनी देते हुए इस फैसले की प्रति राज्य पुलिस के मुखिया को भी देने का आदेश दिया. अंत में न्यायाधीश सनिल कुमार ने फादर थौमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या, अपराध छिपाने और सबूत मिटाने का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास यानी जीवित रहने तक जेल में रहने की सजा सुनाई. साथ ही 5-5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया.

थौमस कोट्टूर पर घर में बिना अनुमति घुस जाने का भी आरोप लगा. सिस्टर सेफी अब नन वाले कपड़े नहीं पहन सकेंगी. सिस्टर अभया को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे लोगों में अकेले जीवित बचे मानवाधिकार कार्यकर्ता जोमोन पुथेनपुराकल ने कहा कि आखिर सिस्टर अभया को न्याय मिल ही गया. यह इस बात का उदाहरण है कि किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि उस के पास पैसा और बाहुबल है तो वह न्याय से खिलवाड़ कर लेगा. जिस चोर अदक्का राजा की गवाही पर दोनों को सजा हुई, फैसला आने के बाद उस ने कहा कि उसे मुकरने के लिए बहुत प्रताडि़त किया गया. उस पर दबाव डाला गया, 3 करोड़ रुपए का लालच दिया गया. पर वह अपनी बात पर अडिग रहा. आखिर उस की भी तो बेटियां हैं. इस मामले में कुल 167 गवाह थे, जिन में से लगभग सब मुकर गए थे.