सुहागरात के बाद खुल कर नाची मौत

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 2

नागदा पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि इंदौर से धर्मपुरी, उज्जैन और नीमच हो कर नागदा जंक्शन तक कई टोल नाके पड़ते थे. इन नाकों पर सतीश की वैगनआर का नंबर तो दर्ज था, पर फुटेज साफ नहीं थी. इस इलाके में काफी अफीम पैदा होती है, इसलिए यहां स्मग्लर सक्रिय रहते हैं. ये लोग टोल नाके से बचने के लिए जंगल के रास्तों से निकल जाते हैं. अगर सतीश की कार ऐसे किसी रास्ते से गई होती तो टोल नाके पर उस का नंबर दर्ज नहीं होता.

पुलिस की सब से बड़ी परेशानी यह थी कि उसे सतीश की वैगनआर नहीं मिल रही थी. जबकि इस बात की पूरी संभावना थी कि हत्या के बाद हत्यारों ने उसे कहीं न कहीं जरूर छोड़ा होगा. दूसरे सतीश की हत्या का कारण भी पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था.

29 अगस्त को गणेश चतुर्थी थी. त्योहार की वजह से उस दिन इंदौर के बाजारों में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. त्योहार की ही वजह से पुलिस ने जगहजगह चैकिंग नाके लगा रखे थे. एक नाके से एक वैगनआर गुजरी तो पुलिस ने उसे चैकिंग के लिए रोक लिया. कार में 30 साल के आसपास का एक युवक और 24-25 साल की एक युवती बैठी थी. पुलिस देख कर दोनों सकपका गए. जांच में पता चला कि चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. ऊपर से कार की आगे और पीछे की दोनों नबर प्लेटें भी गायब थीं.

पूछताछ में जब दोनों ठीक से जवाब नहीं दे सके तो उन्हें थाने ले आया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो युवक ने अपना नाम नंदकिशोर और युवती ने अपना नाम मिली उर्फ एंजल राय बताया. वैगनआर कार के गायब होने की जानकारी सभी थानों की पुलिस को थी, इसलिए बिना नंबर की वैगनआर पर सवार नंदकिशोर और मिली से थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने जब उस कार के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के बता दिया कि यह कार सतीश ततवादी की है, जिस की हत्या हो चुकी है.

इस के बाद कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने सतीश ततवादी की वैगनआर मिलने की सूचना थाना नागदा पुलिस को दी तो थाना नागदा की एक पुलिस टीम थाना लसूडि़या पहुंची और नंदकिशोर तथा मिली उर्फ एंजल राय को हिरासत में ले कर थाना नागदा ले गई.

थाना नागदा में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में नंदकिशोर और मिली से सतीश ततवादी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो नंदकिशोर ने तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन मिली ने मुसकराते हुए अपना अपराध स्वीकार कर के सतीश की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. मिली द्वारा सुनाई गई सतीश ततवादी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के बैतूल की रहने वाली मिली के 11 साल की होते होते उस के मातापिता एकएक कर के गुजर गए थे. मातापिता की मौत के बाद उस का ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो उसे सहारा देता. इसलिए उसे किसी ने अनाथाश्रम पहुंचा दिया, वहां से वह भोपाल के चाइल्ड केयर सेंटर आ गई.

वहीं से मिली ने पढ़ाई की और डांस सीखा. डांस में उस ने अच्छी तरह महारत हासिल कर ली तो उस ने इसे ही रोजीरोटी का जरिया बनाना चाहा. वह टीवी देखती ही रहती थी. उन दिनों सोनी चैनल पर डांस का रियलटी शो बूगीवूगी आता था. डांस सीखने वालों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था. इस के अलावा अन्य लोग भी इस कार्यक्रम में काफी रुचि लेते थे. खास कर बच्चे इसे बहुत पसंद करते थे. मिली भी डांस सीख रही थी. इसलिए वह भी इस कार्यक्रम को देखती थी.

मिली खूबसूरत और आकर्षक तो थी ही, चंचल और तेजतर्रार भी थी. उस की भी इच्छा बूगीवूगी में भाग लेने की होती थी. यही वजह थी कि उस ने अपने नृत्य के कुछ चित्रों के साथ फार्म भर कर बूगीवूगी में भेज दिया. वह सुंदर भी थी और डांस में पारंगत भी, बूगीबूगी में उस का चयन हो गया. अब तक मिली 18 साल की हो चुकी थी.

वह मुंबई पहुंच गई. बूगीवूगी में उस ने अपना ऐसा जौहर दिखाया कि उस साल की वह ‘विनर’ घोषित की गई.

मिली मुंबई में ही रह कर काम तलाश करने लगी. लेकिन उसे कहीं चांस नहीं मिला. धीरेधीरे पैसे खत्म हो गए और कहीं काम नहीं मिला तो वह इंदौर वापस आ गई. बूगीबूगी का विनर होने पर उसे जो पैसे इनाम में मिले थे, वह मुंबई में ही काम की तलाश में खर्च हो गए थे. अब वह बच्ची भी नहीं रही थी कि चाइल्ड केयर सेंटर में रह लेती. इसलिए इंदौर आ कर सब से पहले उस ने ग्वालटोली मोहल्ले में किराए पर मकान ले कर रहने की व्यवस्था की. इस के बाद गुजरबसर के लिए वह बच्चों तथा लड़कियों को डांस सिखाने लगी. इस काम से उस की ठीकठाक कमाई होने लगी, जिस से वह ठाठ से रहने लगी.

मिली अब तक जवान हो चुकी थी. लेकिन उस का कोई ऐसा अपना नहीं था, जिस से वह अपना सुखदुख बांट सकती. अकेली होने की वजह से कभीकभी उसे घुटन सी होने लगती थी. अब उसे एक ऐसे साथी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो उस की भावनाओं को समझे और उस की हर तरह से मदद भी करे. उस की यह तलाश जल्दी ही पूरी हुई. उसे साथी के रूप में बलवंत सिंह तोमर मिल गया. बलवंत अच्छा आदमी था. इसलिए मिली ने उस से प्यार ही नहीं किया, बल्कि उसे जीवनसाथी भी बना लिया.

लेकिन ज्यादा दिनों तक बलवंत सिंह तोमर की मिली से निभ नहीं पाई. इस की वजह यह थी कि मिली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. डांस कार्यक्रम में भाग लेने की वजह से उस की सोच तो बदल ही गई थी, रहनसहन भी बदल गया था. इसलिए उस के खर्च भी अनापशनाप हो गए थे, जो अब डांस सिखाने से पूरे नहीं हो रहे थे. ऐसे में पैसे कमाने के उस ने अन्य रास्ते खोज लिए. निश्चित था, वे रास्ते ठीक नहीं रहे होंगे, इसलिए बलवंत ने उस से किनारा कर लिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 1

इंदौर के निपानिया स्थित ‘सैटिसफैक्शन फर्नीचर’ बहुत बड़ा फर्नीचर शोरूम है. इंदौर के ही लोटस विला, सुपर सिटी निवासी सतीश ततवादी इसी फर्नीचर शोरूम में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तैनात थे, मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव का होने की वजह से उन के साथ के कर्मचारी उन की बड़ी इज्जत करते थे. उन के परिवार में मातापिता और 2 भाइयों के अलावा पत्नी श्रेया और 14 साल की बेटी ईशा को मिलाकर 7 सदस्य थे. उन का पूरा परिवार एक साथ रहता था.

20 अगस्त को सतीश ततवादी घर पर लंच कर के अपनी कार से शोरूम पर जाने के लिए निकले. जातेजाते उन्होंने पत्नी श्रेया से कहा, ‘‘आज फैक्ट्री में एक मीटिंग है, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. हो सकता है 10, साढ़े 10 बज जाएं.’’

रात को साढ़े 10 बजे तक सतीश घर नहीं लौटे तो श्रेया ने फोन किया, लेकिन फोन पति के बजाय किसी और ने रिसीव किया. श्रेया की आवाज सुन कर उस ने कहा, ‘‘मैं साहब का पीए मुकाती बोल रहा हूं. साहब अभी बिजी हैं. हम लोग इस वक्त उज्जैन में हैं, बाद में बात करना.’’

श्रेया की बात सुने बिना ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह बात श्रेया को इसलिए अजीब लगी, क्योंकि सतीश का कोई पीए नहीं था. उन्होंने दोबारा फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद घर वालों ने दर्जनों बार सतीश का नंबर मिलाया, पर वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

इस से परिवार के सभी लोगों के मन में तरहतरह की शंकाए सिर उठाने लगीं. वजह यह कि न तो सतीश ने उज्जैन जाने के बारे में कुछ बताया था और न कभी वह अपना मोबाइल बंद रखते थे.

रात भर फोन मिलाते रहने के बावजूद सतीश से किसी की बात नहीं हुई. ततवादी परिवार की वह रात आंखोंआंखों में कटी. जैसेतैसे रात गुजरी. सुबह होते ही सतीश के पिता रामकृष्ण ततवादी अपने दोनों बेटों संतोष और संजय को साथ ले कर अपने क्षेत्र के थाना लसूडि़या जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार को सारी बात बता कर सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सतीश फैक्ट्री में होने वाली किसी मीटिंग में शामिल होने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी श्री गहरवार ने उन लोगों को यह आश्वासन दे कर घर लौटा दिया कि वह इस मामले की जांच पूरी तत्परता से करेंगे. श्री गहरवार छानबीन के लिए अपनी टीम के साथ फर्नीचर की उस फैक्ट्री में गए. वहां के कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि वहां ऐसी कोई मीटिंग थी ही नहीं, साथ ही यह भी कि उस दिन सतीश वहां आए ही नहीं थे. इस का मतलब सतीश झूठ बोल कर घर से निकले थे और उन के साथ कोई घटना घट गई थी.

थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने थाने लौट कर सतीश ततवादी के हुलिए सहित यह सूचना जिले के सभी थानों को भेज दी.

21 अगस्त, 2014 की सुबह थाना बिरलाग्राम के गांव डाबरी का एक आदमी जंगल की ओर गया तो उस ने पुलिया के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश कंबल में लिपटी हुई थी. वह व्यक्ति दौड़ादौड़ा थाना बिरलाग्राम गया और यह बात थानाप्रभारी नरेंद्र यादव को बताई.

नरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ जिस समय घटनास्थल पर पहुंचे, उस समय साढ़े 11 बजे थे. सूचना सही थी. मृतक 40-41 साल का हट्टाकट्टा व्यक्ति था. पुलिस ने लाश के आसपास का सारा इलाका छान मारा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मृतक के शव से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. अलबत्ता पहचान के लिए पुलिस ने लाश के फोटो जरूर करा लिए थे. इस के बाद थानाप्रभारी नरेंद्र यादव ने अन्य थानों में पहचान के लिए लाश के फोटो वाट्सएप पर भिजवा दिए.

थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने वाट्सएप पर आया लाश का फोटो देखा तो सतीश के भाई संजय और संतोष को थाने बुला लिया. दोनों भाइयों ने थानाप्रभारी के मोबाइल पर आया लाश का फोटो देखा तो चीखचीख कर रोने लगे. वह उन के भाई सतीश की लाश का फोटो था. थानाप्रभारी ने उन्हें बताया कि वह फोटो जिला नागदा जंक्शन के थाना बिरलाग्राम से आया है. अत: लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें वहीं जाना होगा.

सतीश के पिता रामकृष्ण अपने दोनों बेटों संजय और संतोष को साथ ले कर किराए की कार से थाना बिरलाग्राम जा पहुंचे. वहां से वह पुलिस के साथ नागदा जंक्शन गए. तब तक लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. बापबेटों ने शव को पहचान लिया. लाश सतीश की ही थी. लिखापढ़ी के बाद लाश रामकृष्ण ततवादी को सौंप दी गई. इस के बाद सतीश की हत्या का केस थाना बिरलाग्राम में दर्ज हो गया था.

सतीश के शव को इंदौर लाया गया तो उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. पूरे सेक्टर में सन्नाटा छाया था. सतीश की पत्नी श्रेया और बेटी ईशा अर्द्धबेहोशी के आलम में थीं. बहरहाल, उसी दिन सतीश का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सतीश की हत्या की खबर मिलने के बाद थाना बिरलाग्राम और थाना लसूडि़या की पुलिस मिल कर जांचपड़ताल में लग गई. इस के लिए पुलिस ने सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. सतीश ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन इंदौर जिले के गांव छोटा धर्मपुरी, उज्जैन, नीमच और नागदा की आ रही थी. यानी घटना के दिन वह नंबर कई जगहों पर रहा था.

चूंकि सतीश अपनी वैगनआर कार से गए थे, इसलिए पुलिस ने टोल नाकों से फुटेज निकलवा कर चेक की. लेकिन रात के अंधेरे की वजह से फुटेज में कुछ भी साफ नजर नहीं आया.

सतीश की काल डिटेल्स में 2 आखिरी नंबर संदिग्ध थे. नागदा पुलिस ने साइबर क्राइम सेल उज्जैन से उन नंबरों की जांच कराई तो उन में एक नंबर छोटी ग्वालटोली इंदौर में रहने वाली मिली उर्फ एंजल राय का निकला. थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने मिली उर्फ एंजल राय के पते पर छानबीन की तो वह लापता मिली. मतलब उस ने अपना ठिकाना बदल लिया था. नरेंद्र सिंह ने यह सूचना नागदा पुलिस को दे दी.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज

हीरा कारोबारी हत्याकांड में फंसी ‘गोपी बहू’- भाग 3

28 वर्षीय देवोलीना भट्टाचार्य असम के गुवाहाटी के शिवसागर की रहने वाली थी. खूबसूरत देवोलीना जितनी पढ़ाई लिखाई में होशियार थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने गुवाहाटी से हाईस्कूल तक शिक्षा लेने के बाद दिल्ली से बीकौम की डिग्री हासिल की थी. नृत्य, गायन, चित्रकला और खाना पकाना उस का शौक था.

देवोलीना बौलीवुड की सितारा बन कर चमकना चाहती थी. उस के पिता बंगाली और मां असमिया थीं. पिता की मृत्यु के बाद मां उस के इस सपने को मरने नहीं देना चाहती थी. वह बेटी को कदम कदम पर प्रोत्साहित किया करती थी. देवोलीना अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई आ गई थी, जहां उस की मुलाकात सचिन पवार से हुई. सचिन पवार ने देवोलीना की काफी मदद की.

सचिन पवार की सहायता और देवोलीना के कड़े परिश्रम से 2010 में उसे जी टीवी के प्रोग्राम डांस इंडिया डांस सीजन-2 के लिए चुन लिया गया. इस के बाद 2011 में उसे टीवी सीरियल ‘सावरे सब के सपने’ और पंजाबी सीरियल ‘प्रीतो’ में गुलाबी ढिल्लो उर्फ वानी की भूमिका मिली थी. छोटा मोटा काम मिलने से उस का उत्साह और बढ़ गया. वह और मेहनत करने लगी.

इस सब के अलावा देवोलीना भट्टाचार्य ने मुंबई की एक नामी कंपनी गिली इंडिया लिमिटेड में आभूषण डिजाइनर के रूप में अपना जलवा दिखाया था. लेकिन उस का सितारा स्टार टीवी के सीरियल ‘साथ निभाना साथिया’ से चमका. देखते ही देखते वह गोपी बहू के किरदार में घरघर की एक संस्कारी बहू बन गई. मगर घरघर की यह संस्कारी बहू एक ऐसे मर्डर के मामले में फंस गई कि उस के चाहने वाले भी आश्चर्यचकित रह गए.

हीरा व्यापारी राजेश्वर उदानी मुंबई और नवी मुंबई स्थित डांस बारों के चक्कर लगाते रहते थे. वह लड़कियों के शौकीन थे. उन की सचिन पवार से भी दोस्ती थी.

जब उन्हें पता चला कि सचिन के साथ टीवी एक्ट्रैस देवोलीना भट्टाचार्य लिवइन रिलेशन में रहती है तो उन्होंने सचिन के यहां ज्यादा चक्कर लगाने शुरू कर दिए. उन का मकसद देवोलीना पर लाइन मारना था.

सचिन पवार का दोस्त होने के कारण देवोलीना भट्टाचार्य भी राजेश्वर उदानी को हायहैलो करने लगी थी, लेकिन राजेश्वर उदानी ने इस का गलत मतलब लगा लिया. देवोलीना को भी वह उन्हीं बारबालाओं की तरह समझने लगे, जिन के पास वह अकसर जाया करते थे.

इस के बाद राजेश्वर ने देवोलीना को फोन भी करने शुरू कर दिए. मकसद एक ही था कि किसी तरह उस के साथ उन के संबंध बन जाएं, पर देवोलीना उन्हें कोई भाव नहीं देती थी.

पिछले करीब 7-8 महीनों से राजेश्वर उदानी देवोलीना को लगातार फोन करते और अश्लील मैसेज भेजते थे, जो देवोलीना भट्टाचार्य को अच्छा नहीं लगता था. पहले तो देवोलीना ने उन के फोन और मैसेजों को इग्नोर किया. लेकिन राजेश्वर की बढ़ती हिम्मत को देख देवोलीना को गुस्सा आ गया. तब एक दिन उस ने राजेश्वर उदानी की शिकायत अपने प्रेमी सचिन पवार से कर दी और सारे मैसेज उसे दिखा दिए.

मैसेज देख कर सचिन पवार के तनबदन में आग सी लग गई. उस ने राजेश्वर उदानी को समझाने की कोशिश की तो दोनों में काफी गरमागरमी हो गई. जिस के चलते सचिन पवार ने राजेश्वर उदानी से उस के कंस्ट्रक्शन के काम में लगाई गई मोटी रकम वापस मांगी और दोस्ती खत्म करने के लिए कहा.

राजेश्वर उदानी ने कंस्ट्रक्शन में घाटा होने का बहाना बना कर उस के पैसे वापस करने से मना कर दिया. इस से सचिन पवार उदानी से और खफा हो गया. उसे लगा कि उदानी के दिल में खोट आ गया है, इसलिए वह कारोबार में घाटे का बहाना बना रहा है.

सचिन पवार को इस में उदानी की कोई साजिश नजर आ रही थी. राजेश्वर उदानी से अपने पैसे निकालने के लिए सचिन ने एक साजिश रची. इस बारे में सचिन ने अपने दोस्त दिनेश दिलीप पवार से बात की, क्योंकि राजेश्वर उदानी एक मामले में दिनेश पवार को भी धोखा दे चुके थे.

सचिन और दिनेश की दोस्ती एक जिम में हुई थी. दोनों ही घाटकोपर के एक जिम में जाया करते थे. सचिन और दिनेश दोनों को ही राजेश्वर उदानी की कमजोरी का पता था. वह जानते थे कि उदानी अय्याश किस्म का है, इसलिए उन्होंने उसे हनीट्रैप में फंसा कर करोड़ों रुपए वसूलने की योजना बनाई.

फिरौती और ब्लैकमेल के इस काम में सचिन ने अपनी जानपहचान की एक महिला शाइस्ता सरबर खान उर्फ डौली की मदद ली. उसी के माध्यम से मौडल निकहत उर्फ जारा मोहम्मद खान को 5 लाख रुपए में राजेश्वर उदानी के साथ एक पोर्न वीडियो बनाने के लिए राजी कर लिया. महेश भास्कर भोईर प्रणीत भोईर को भी इस के लिए तैयार किया गया.

पोर्न वीडियो की कहानी खुद सचिन पवार ने तैयार की थी, लेकिन 18 नवंबर, 2018 की एक पार्टी में जब राजेश्वर उदानी ने उस से बदतमीजी और उस की प्रेमिका देवोलीना के विषय में अश्लील टिप्पणी की तो उस का खून खौल उठा.

उस ने उसी समय पोर्न वीडियो की कहानी बदल दी. किरदार वही थे, लेकिन प्लान पोर्न वीडियो का नहीं राजेश्वर उदानी की मौत का बन गया.

सचिन के प्लान को साकार करने के लिए दिनेश पवार ने फेसबुक पर दोस्त बनी कांदीवली चारकोप की एक महिला से यह कह कर उस की कार ली कि उसे एक पार्टी में जाना है. उस महिला से कार लेने के बाद उस ने कार की नंबर प्लेट बदल दी.

घटना के दिन सचिन पवार ने अपने वाट्सऐप पर देवोलीना से राजेश्वर उदानी से एक पोर्न वीडियो के संबंध में बात कराई. योजना के हिसाब से उदानी को विक्रोली हाइवे पर पंतनगर मार्केट के पास खड़ी एक कार में बैठ कर नवी मुंबई के पनवेल इलाके में आने के लिए कहा गया. राजेश्वर उदानी अपने ड्राइवर के साथ पंतनगर मार्केट के पास पहुंच गए.

वह वहां से कुछ दूर खड़ी उस कार में जा कर बैठ गए, जिस में मौडल जारा खान पहले से ही मौजूद थी. जारा खान को देखते ही राजेश्वर उदानी उस पर मोहित हो गए. उस समय कार दिनेश पवार चला रहा और उस के बराबर में सचिन पवार बैठा था.

ऐरौली का टोल नाका क्रौस करने के बाद कार उस जगह जा कर रुकी, जहां महेश भोईर और प्रणीत भोईर खड़े थे. योजना के अनुसार सब से पहले मौडल जारा ने राजेश्वर उदानी का गला दबाने की कोशिश की. अपने बचाव में उदानी ने जारा को झटका तो कार में बैठे अन्य लोगों ने राजेश्वर उदानी का गला घोंट कर उन्हें मार डाला.

राजेश्वर उदानी की हत्या करने के बाद उस के शव को कार की डिक्की में रख कर पनवेल के पास नेरे गांव के जंगलों में ले जाया गया और सुनसान जगह देख कर उन की लाश फेंक दी गई. फिर सब अपने घर चले गए.

घर पहुंचने के बाद सचिन पवार ने राजेश्वर उदानी की मौत का वीडियो देवोलीना भट्टाचार्य के वाट्सऐप पर भेज दिया. दूसरे दिन सचिन देवोलीना के साथ गुवाहाटी निकल गया ताकि पुलिस उन तक न पहुंच सके.

सचिन पवार ने इस हत्याकांड से खुद को दूर रखने की काफी कोशिश की. उस ने जब एक महीने पहले इस हत्याकांड की योजना बनाने की शुरुआत की थी, उस समय से उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. वह अपने नौकर के मोबाइल से काम चलाता था. लेकिन पुलिस की जांच में वह बच नहीं सका.

सचिन पवार, दिनेश पवार, देवोलीना भट्टाचार्य, महेश भास्कर भोईर, शाइस्ता सरबर खान उर्फ डौली और निकहत उर्फ मौडल जारा खान से विस्तृत पूछताछ के बाद पलिस ने उन्हें अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. आगे की जांच पीआई लता सुतार कर रही थीं.

—कथा समाचारों, पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 3

पुलिस ने 18 नवंबर, 2010 को जोलाइल मंगेनी को केपटाउन की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने 20 नवंबर को मजिवामाडोडा क्वेब और जोला टोंगो को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में इन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

21 नवंबर को एनी देवानी का शव लंदन पहुंचा, जहां उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

22 नवंबर को जोला टोंगो और मजिवामाडोडा को अदालत में पेश किया गया तो अदालत में टोंगो ने जो बयान दिया, वह चौंकाने वाला था. उस ने बताया कि एनी की हत्या की साजिश किसी और ने नहीं, उस के पति श्रीन देवानी ने रची थी. उसी ने पैसे दे कर एनी की हत्या कराई थी. इस हत्या के लिए उस ने 15 हजार रेंड दिए थे. जोला टोंगो ने ही पैसे दे कर मजिवामाडोडा क्वेब और जोलाइल मंगेनी से एनी की हत्या कराई थी.

जोलाइल मंगेनी ने गोली मार कर एनी की हत्या की थी तो मजिवामाडोडा क्वेब ने एनी के शरीर से सारे गहने उतारे थे, जिन में व्हाइट गोल्ड की चेन, डायमंड ब्रेसलेट और एक जियार्जियो अरमानी की घड़ी थी.

एनी की हत्या उस के पति श्रीन देवानी ने कराई थी, यह खुलासा होने पर उस के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रीन लंदन में था, इसलिए इस बात की जानकारी वहां की पुलिस को देने के साथ जरूरी दस्तावेज भी भिजवा दिए गए थे.

लंदन पुलिस ने श्रीन देवानी को गिरफ्तार कर लिया. जबकि उस का कहना था कि उसी की नवविवाहिता पत्नी की हत्या हुई है और उसे ही दोषी ठहराया जा रहा है. वह उसे दिल से प्यार करता था. उसी के कहने पर वह उसे साउथ अफ्रीका ले गया था.

श्रीन के घर वाले साउथ अफ्रीकी पुलिस पर सवाल उठा रहे थे कि वहां सुरक्षा के ठीक इंतजाम नहीं हैं. वहां के लोगों का ध्यान हटाने के लिए पुलिस ने ऐसा किया है, ताकि कोई वहां के सुरक्षा इंतजामों पर सवाल न खड़ा कर सके.

एनी की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार होने के बाद श्रीन स्टे्रस और्डर की बीमारी से ग्रस्त हो गया. उस की मानसिक स्थिति बिगड़ गई थी.

4 मई, 2011 को अदालत में श्रीन देवानी के मामले की एक्स्ट्रा एडीशन सुनवाई हुई. 5 मई, 2011 को बेलमार्श के मजिस्ट्रेटों ने उसे सिस्सी क्राइम कह कर पुकारा और 18 जुलाई, 2011 तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी.

18 जुलाई को श्रीन देवानी को जज रिडल की अदालत में पेश किया गया. साइकियाट्रिक एक्सपर्ट ने अदालत को बताया कि अगर श्रीन देवानी को लगता है कि उसे परेशान किया जा रहा है तो वह स्वयं को खत्म कर सकता है. इसलिए उसे जेल न भेजा जाए. बहरहाल अदालत ने जमानत की सुनवाई के लिए अगली तारीख दे दी.

अगली तारीख यानी 10 अगस्त, 2011 को प्राप्त दस्तावेजों से अदालत ने मान लिया कि श्रीन देवानी ने ही अपनी पत्नी एनी देवानी की सुपारी दे कर हत्या कराई थी.

21 सितंबर, 2011 को श्रीन देवानी की जमानत की अरजी पर सुनवाई थी. इस सुनवाई पर साउथ अफ्रीका पुलिस ने बताया कि पकड़े गए तीनों आरोपियों ने स्वीकार किया है कि श्रीन देवानी ने ही जोला टोंगो के साथ साजिश रच कर एनी की हत्या की सुपारी दी थी. इसलिए उसे जमानत पर छोड़ना ठीक नहीं है.

दूसरी ओर 26 सितंबर 2011 को साउथ अफ्रीका के होम सेके्रटरी येरेसा ने श्रीन देवानी की अफ्रीका में एक्स्ट्राडिशन सुनवाई के और्डर पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिस से श्रीन देवानी के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया था.

लेकिन 30 सितंबर को श्रीन देवानी के वकीलों ने उस के मानसिक रूप से बीमार होने का हवाला दे कर एक अपील दायर कर दी थी. 13 दिसंबर, 2011 को इस पर बहस के दौरान श्रीन देवानी के वकीलों ने कहा कि वह अपने बचाव के लिए मानसिक बीमारी का बहाना नहीं बना रहा है. वह वाकई में बीमार है. ऐसी स्थिति में उस के एक्स्ट्राडिशन और्डर रद्द कर दिए जाने चाहिए.

14 दिसंबर, 2011 को अदालत ने साउथ अफ्रीका पुलिस से पूछा कि श्रीन देवानी की सुनवाई साउथ अफ्रीका में ठीक से हो सकती है या नहीं? 16 दिसंबर को अदालत ने आगे की कार्यवाही के लिए 31 जुलाई, 2012 की तारीख तय कर दी. इस तारीख को अदालत ने प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर श्रीन देवानी के प्रत्यर्पण पर अस्थाई रोक लगा दी. दूसरी ओर साउथ अफ्रीका की अदालत ने 8 अगस्त, 2012 को अभियुक्त मजिवामाडोडा क्वेब को एनी देवानी की हत्या के मामले में दोषी मानते हुए 25 साल के कैद की सजा सुनाई.

श्रीन देवानी ने अदालत से प्रार्थना की थी कि उस के मानसिक रूप से बीमार रहने तक उस के साथ नरमी बरती जाए. डाक्टरों के अनुसार 32 वर्षीय श्रीन देवानी पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसौर्डर और डिप्रेशन का शिकार था. उस के साइकियाट्रिस्ट डा. पौल केट्रेल ने अदालत में कहा था कि उसे जमानत दे कर दिमागी तौर पर राहत दी जानी चाहिए. उसे जिस पुनर्वास वार्ड में रखा गया है, वहां उस का फ्लाइट रिस्न बढ़ सकता है.

जोलाइल मंगेनी ने कोर्ट में स्वीकार कर लिया था कि उसी ने एनी देवानी की गोली मार कर हत्या की थी, इसलिए उसे हत्या का दोषी करार देते हुए 5 दिसंबर, 2012 को उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. उसी के साथ टैक्सी ड्राइवर जोला टोंगो को साजिश रचने के आरोप में 18 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

जुलाई, 2013 को अदालत ने कहा था कि अगर श्रीन देवानी की दिमागी बीमारी ठीक हो गई है तो अदालत में पेश किया जाए. लेकिन श्रीन देवानी का मेंटल हेल्थ अस्पताल में इलाज चल रहा था, इसलिए उसे अदालत में पेशी से छूट मिल गई. फिर भी मुख्य मजिस्ट्रेट हावर्ड रिडल ने कहा कि उसे इसी महीने कोर्ट में पेश होना होगा.

तमाम सुनवाई के बाद आखिर 24 जुलाई, 2013 को अदालत ने आदेश दिया कि श्रीन देवानी को अपनी पत्नी एनी की हत्या के मामले में साउथ अफ्रीका की अदालत में सुनवाई के लिए पेश होना होगा. अदालत का कहना था कि श्रीन देवानी काफी समय से अपना इलाज करा रहा है. अब तक वह ठीक हो गया होगा, इसलिए अब इस मामले में देर करना ठीक नहीं होगा.

श्रीन देवानी बीमारी की वजह से भले ही  साउथ अफ्रीका की अदालत में पेश नहीं हुआ था, लेकिन अदालत ने प्राप्त सुबूतों के आधार पर उसे एनी देवानी की हत्या की सुपारी देने और साजिश रचने का दोषी करार दे दिया था. अदालत का मानना था कि अब वह स्वस्थ हो चुका है, इसलिए यहां ला कर सजा सुनाने की कार्यवाही की जानी चाहिए.

अदालत श्रीन देवानी को क्या सजा देती है, यह तो उस के अदालत में पेश होने के बाद ही पता चलेगा. मजे की बात यह है कि हत्या के इस मामले में दोषियों को तो सजा मिल गई, लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला है कि जिस पत्नी को श्रीन जान से ज्यादा प्यार करता था, उसी की जान लेने के लिए इतनी बड़ी साजिश क्यों रची?

श्रीन देवानी के कुछ दोस्तों का कहना है कि शादी के कुछ दिनों बाद ही वह एनी को ले कर अपसेट रहने लगा था. उस ने एनी के मोबाइल पर उस के किसी पुरुष मित्र का मैसेज पढ़ लिया था. शायद इसी वजह से वह परेशान था. चरित्र पर संदेह होने की वजह से ही वहां ले जा कर उस ने उस की हत्या करा दी थी.

बात कुछ भी हो,  यह साबित ही हो चुका है कि एनी की हत्या उसी ने कराई थी. इसलिए अब वह ज्यादा दिनों तक सजा से बच नहीं पाएगा.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 3

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह पुलिस वालों के साथ वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल हो गए. पुलिस वाले भले ही बाराती बने थे, लेकिन वे वहां आए अन्य लोगों से अलग लग रहे थे. शायद इसीलिए एक आदमी ने अपनी स्थानीय भाषा में पूछा, ‘या कुण (तुम कौन हो)?’

थानाप्रभारी साथी पुलिस वालों को ले कर एक किनारे आ गए, जहां उन पर कोई ध्यान न दे सके. वह वहीं से हरि सिंह पर नजर रखे हुए थे. हरि सिंह लघुशंका के लिए बाहर आया तो शिवपाल सिंह ने उसे दबोच लिया. इस तरह पकड़े जाने से वह घबरा गया.

हरि सिंह शोर मचाता, उस के पहले ही थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने रिवाल्वर सटा कर कहा, ‘‘हम पुलिस वाले हैं. अगर तुम ने शोर मचाया तो तुरंत गोली चल जाएगी. उस के बाद क्या होगा, तुम जानते ही हो.’’

हरि सिंह सन्न रह गया. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो अनिता का मोबाइल उस के पास से मिल गया. पुलिस उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बिठा कर थाना ठीकरी ले आई.

रात होने की वजह से पुलिस का यह काम आसानी से हो गया था. इंदौर ला कर हरि सिंह को अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ और लूटा गया सामान तथा हथियार बरामद कराने के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

थाने में की गई पूछताछ में हरि सिंह ने दोनों बहनों की हत्या और लूटपाट का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने उस सामान के बारे में भी बता दिया, जो वह शकुंतला के घर से लूट कर लाया था. इस के बाद थाना पलासिया पुलिस थाना ठीकरी पुलिस के साथ हरि सिंह के घर पहुंची, जहां उस के बेटे की शादी हो रही थी.

पुलिस ने जब उस के घर वालों और गांव वालों को उस के कारनामे बारे में बताया तो सब ने नफरत से उस की ओर से मुंह मोड़ लिया.

हरि सिंह ने दरवाजे के पीछे से एक झोला ला कर दिया, जिस में उस ने शकुंतला और अनिता के घर से चोरी किया गया सामान रख कर छिपा रखा था. सामान बरामद कराते समय हरि सिंह रो पड़ा. क्योंकि अनिता की जिस सोने की चेन को उस ने बेटे को पहनाने के लिए चुराई थी, वह उसे पहना नहीं सका. जिस शौक के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, वह पूरा नहीं हो सका.

पुलिस ने जब उस से उस हथियार के बारे में पूछा, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी तो उस ने बताया कि वह तो इंदौर में है.

इस तरह 6 दिन की मशक्कत के बाद पुलिस ने शकुंतला और अनिता के हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया. हरि सिंह को इंदौर लाया गया तो उस ने बाणगंगा के एक मकान से वह रौड बरामद करा दी, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी. वहां हरि सिंह का एक और राज खुला. जिस मकान से उस ने रौड बरामद कराई थी, उस में एक महिला भी थी. हरि सिंह ने उसे अपनी दूसरी पत्नी बताया था.

हरि सिंह के बताए अनुसार, लगभग 15 साल पहले जब वह अपना गांव छोड़ कर रोजी रोजगार के लिए इंदौर आया था तो वहां वह एक कारखाने में काम करने लगा था. उसी कारखाने में वह औरत भी काम करती थी.

दोनों में जानपहचान हुई और फिर प्यार, उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद उस ने कारखाने की वह नौकरी छोड़ दी और वेल्डिंग की मशीन खरीद कर साइकिल से घूम घूम कर वेल्डिंग का काम करने लगा. इस काम से वह ठीक ठाक कमा लेता था.

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      हरि सिंह

किसी परिचित के माध्यम से पिछले साल हरि सिंह ने शकुंतला के यहां एक टीन शेड में वेल्डिंग का काम किया था. इसलिए दोनों बहनें उसे पहचानने लगी थीं. उस दिन यानी 1 मई को वह आवाज लगाते हुए बख्तावरनगर में घूम रहा था तो शकुंतला ने उसे कूलर के स्टैंड में वेल्डिंग के लिए बुला लिया था.

कूलर पहली मंजिल पर था. हरि सिंह वहां पहुंचा तो अनिता के गले में मोटी सी सोने की चैन देख कर उस की नीयत खराब हो गई. इस से उसे लगा कि इन के घर में काफी गहने होंगे. उसे यह तो पता ही था कि इस घर में मात्र 2 महिलाएं ही रहती हैं, इसलिए उसे लगा कि यहां वह आसानी से लूटपाट कर सकता है.

अपना रास्ता साफ करने के लिए उस ने पहले वेल्डिंग के दौरान करंट लगने की बात कह कर वहां खेल रही तीनों लड़कियों को हटा दिया. बच्चे चले गए तो अनिता के गहने छीनने के इरादे से उस ने उसे पकड़ना चाहा.

अनिता जवान थी और तेजतर्रार भी. हरि सिंह का इरादा भांप कर उस ने उस का मुंह नोच लिया. तब तक हरि सिंह ने उसे पकड़ लिया था. अनिता शोर न मचा सके, इस के लिए उस ने उस का मुंह दबा दिया. उसी बीच अनिता ने उस के बाल पकड़ कर खींचे तो वह तिलमिला उठा.

हरि सिंह को लगा कि अब मामला बिगड़ने वाला है तो उस ने साथ लाए लोहे के रौड से अनिता के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में अनिता गिर कर बेहोश हो गई. इस के बाद हरि सिंह ने लगातार कई वार कर के अनिता को खत्म कर दिया.

उस समय शकुंतला भूतल पर कोई काम कर रही थी. खटरपटर होते सुन वह ऊपर पहुंची तो हरि सिंह दरवाजे की ओट में छिप गया. जैसे ही वह कमरे में घुसीं, उस ने उसी रौड से उन के ऊपर भी हमला कर दिया.

शकुंतला का भी खेल खत्म हो गया तो उस ने दोनों लाशों को घसीट कर बाथरूम में नीचे ऊपर रख दिया. इस के बाद उस ने जल्दी जल्दी अलमारियां बक्से वगैरह तोड़ कर जो हाथ लगा, उसे कब्जे में किया और अनिता का कीमती मोबाइल ले कर भाग निकला. फिर वही मोबाइल उस की गिरफ्तारी की वजह बना.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

साजिश का तोहफा – भाग 5

इस का मतलब साफ था कि रमेश और शशांक पहले ही उन्हें अपने हिसाब से सब कुछ बता चुके थे. ऐसे में उन से कुछ अच्छी उम्मीद नहीं की जा सकती थी. दूसरी ओर से फोन कट चुका था. नवीन ने भी मायूसी से रिसीवर रख दिया.

‘‘गवाही देने सोमनाथ सोलकर अदालत आ रहे हैं, यह मीडिया वालों के लिए बे्रकिंग न्यूज थी. वह बर्फ की तरह सफेद बालों वाले लंबे कद के प्रभावशाली व्यक्तित्त्व के थे. मनोज सोलकर भी अदालत में मौजूद था. उस ने अदालत के सामने सच्चाई रख कर मुकदमा जारी रखने की दरख्वास्त की. सोमनाथ सोलकर ने काफी दिलचस्पी से उस का बयान सुना. रमेश के वकील ने उस के बयान को मनगढ़ंत कहानी बताया.’’

नवीन ने सोमनाथ सोलकर को जिरह के लिए कटघरे में बुलाया. गीता पर हाथ रख कर शपथ लेते समय वह बड़ी नागवारी से नवीन को देख रहे थे. नवीन ने बड़े सधे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने समाचार पत्रों की सहायता से आप के बारे में कुछ जानकारियां जुटाई हैं. इस के अलावा कुछ सावित्री सोलकर ने बताया है. आप की उम्र 90 साल के करीब है.’’

‘‘मैं 90 का अंक पार कर चुका हूं,’’ सोमनाथ ने कहा, ‘‘तुम मेरी उम्र को छोड़ो और जो पूछना है, वह पूछो.’’

‘‘मैं पूछने चल रहा हूं,’’ नवीन ने संयम से कहा, ‘‘आप ने 1980 में अपनी कंपनी से रिटायरमेंट लिया और अपने नाम पर इस्टीटयूट स्थापित किया. क्या यह सही है?’’

‘‘सही है.’’ सोमनाथ ने कहा.

‘‘जहां तक आप के निजी जीवन का संबंध है, आप की पत्नी को मरे काफी अरसा गुजर चुका है और आप ने उस के बाद शादी नहीं की. आप का एकलौता बेटा अनिल 1981 में हवाई जहाज की दुर्घटना में मारा गया. उस के संबंध में सुनने में आया है कि वह जालसाज था. मैं इस तकलीफ भरे विषय पर बहस नहीं करना चाहता था. लेकिन मि. रमेश ने मुझे इस बारे में जानने के लिए विवश किया है. क्या मैं पूछ सकता हूं कि उन्होंने ऐसा क्या किया था, जिस से उन्हें जालसाज बताया जा रहा है?’’

‘‘मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता.’’ सोमनाथ ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

‘‘आप का पोता आप के लिए अजनबी है, लेकिन आप ने दुनिया देखी है. आप उस की ओर देखें, वह आप को चोर और बेइमान नजर आता है,’’ नवीन ने पैंतरा बदला, ‘‘क्या आप को लगता है, वह झूठ बोल रहा है?’’

‘‘वकील अपने मुवक्किलों को तरह तरह की कहानियां रटा देते हैं.’’ सोमनाथ ने कहा. उन की बात से यही लगा कि वह किसी भी स्थिति में नरम होने को तैयार नहीं हैं.

‘‘क्या आप को यह बात विचित्र नहीं लगती कि मि. रमेश ने आप को बगैर बताए आप के पोते को इंस्टीटयूट में नौकरी पर रख लिया था?’’

रमेश और शशांक उन्हें हर बात के लिए पहले से ही तैयार कर के लाए थे सोमनाथ ने कहा, ‘‘इस की नौबत ही नहीं आई. उस के पहले ही लड़के ने खुद को चोर साबित कर दिया. अच्छा हुआ कि रमेश ने मुझे हालात से आगाह कर दिया. अब इंस्टीटयूट में गड़बड़ी सिद्ध करने की कोशिशें की जा रही हैं, ताकि एक चालाक वकील कुछ रकम कमा सके.

‘‘मैं चाहता तो अदालत में आने से मना कर सकता था, लेकिन मैं इसलिए आया हूं कि इंस्टीटयूट के बारे में किसी तरह का स्कैंडल न खड़ा हो. इंसटीटयूट में इस तरह की व्यवस्था की गई है कि किसी भी तरह से गड़बड़ी संभव नहीं है. रमेश और शशांक मेरे पुराने, विश्वसनीय और ईमानदार साथी ही नहीं हैं, बल्कि रमेश तो हमारे दूर के रिश्तेदार भी हैं.’’

सोमनाथ सोलकर ने इंस्टीटयूट के संबंध में शुरुआती इन्वेस्टमेंट, उस के गठन और अन्य आर्थिक मामलों की जानकारी देने से मना कर दिया था. नवीन को मालूम था कि इंस्टीटयूट एक ट्रस्ट की देखरेख में काम कर रहा था. शहर में वकीलों की 4 ही ऐसी फर्में थीं, जो ट्रस्टों के गठन के लिए नियमावली आदि तैयार करती थीं. ऐसे में यह मालूम करना मुश्किल नहीं था कि किस फर्म ने इंस्टीटयूट के गठन की रूपरेखा तैयार की थी. इस के बाद उस फर्म से उस के कागजातों की कापी अदालत में पेश कराई जा सकती थी.

नवीन ने 2 घंटे के लिए जज से अदालती कार्यवाही स्थगित करा ली. रमेश ने बहुत शोर मचाया कि विपक्षी वकील विभिन्न बहानों से मुकदमे की कार्यवाही लंबी खींच रहा है. लेकिन जज ने मुकदमे के महत्त्व को देखते हुए नवीन की मांग मान ली थी.

दोबारा मुकदमे की कार्यवाही लंच के बाद शुरू हुई. अदालत में मौजूद लोगों के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी कि पता नहीं क्या होने वाला है. नवीन ने ठाकुर ट्रस्ट कंपनी के अधिकारी को पेश कर के कहा, ‘‘इन्हीं की फर्म की देखरेख में इंस्टीटयूट चल रहा है. इन्हीं के पास इंस्टीटयूट में निवेश से संबंधित सारे कागजात हैं, जिन्हें अदालत में पेश करने या किसी वकील को निरीक्षण के लिए देने में मुझे कोई हर्ज नहीं लगता, क्योंकि यह कोई चोरी का काम नहीं है. ट्रस्ट एक तरह से जनता की संपत्ति होती है.’’

इस के बाद नवीन ने उस आदमी की फाइल से एक पेपर ले कर सोमनाथ सोलकर को दूर से दिखाते हुए कहा, ‘‘इस पेपर के अनुसार आप ने शुरू में निवेश के तौर पर ठाकुर ट्रस्ट कंपनी को 100 करोड़ रुपए दिए थे, ताकि इंस्टीटयूट को स्थापित किया जा सके.’’

नवीन ने देखा, वकील शशांक का चेहरा कुछ बदला बदला सा लग रहा था, जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रहा था. अब उस का प्रतिरोध भी कुछ कम हो रहा था. वह चिल्लाया, ‘‘मुझे आपत्ति है यो रऔनर, मौजूदा केस से इस ट्रस्ट का कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अदालत इस बारे में बहस करने का आदेश दे चुकी है.’’ जज ने कहा.

नवीन ने उस कागज को पढ़ते हुए कहा, ‘‘इस में लिखा है कि निश्चित समय पर ट्रस्ट की आमदनी की रिपोर्ट मि. सोमनाथ सोलकर को दी जाती रहेगी. इस के अलावा इस से भी महत्त्वपूर्ण यह है कि सोमनाथ सोलकर जब भी चाहेंगे, किसी भरोसेमंद व्यक्ति के माध्यम से ट्रस्ट की शर्तों, प्रबंधन या इंस्टीटयूट को चलाने के तरीके के बारे में कोई भी बदलाव कर सकेंगे.’’

इस के बाद नवीन ने सोमनाथ सोलकर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या आप के वकील मि. शशांक ने इस बारे में कभी आप को कुछ बताया था?’’

‘‘यह मेरा आपस का मामला था’’ सोमनाथ सोलकर ने सख्ती से कहा.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 3

रवि ठाकुर ममता की मजबूरी का फायदा उठाते हुए आए दिन उसे अपनी हवस का शिकार बनाने लगा था. जब ममता उस की हरकतों से परेशान हो गई तो उस ने यह बात एक दिन अपने पति को यह बात बता दी.

यह बात सुनते ही नितिन बौखला उठा. इस जानकारी के बाद नितिन और ममता के बीच काफी मनमुटाव भी पैदा हो गया था. जिस के कारण कई दिनों तक दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा भी हुआ था.

ममता ने पति को यह भी बता दिया कि इस सब की जिम्मेदार सरिता ठाकुर ही है. उसी ने उस के साथ संबंध बनाने के लिए उसे मजबूर किया था. इस के बाद नितिन और ममता उस से पीछा छुड़ाने के लिए किसी रास्ते की तलाश में लग गए. रास्ता भी ऐसा कि जिस से उन्हें रवि का पैसा भी न देना पड़े और उस से हमेशा हमेशा के लिए पीछा भी छूट जाए.

सलाह मशविरा के बाद दोनों ने सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर को मौत के घाट उतारने का फैसला कर लिया. प्लानिंग के लिए उन्होंने करीब एक महीने तक क्राइम सीरियल देखे. तब पतिपत्नी दोनों ने मिल कर दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई. फिर वह उसी योजना के तहत रवि ठाकुर के फोन आने का इंतजार करने लगे.

सरिता के घर पहुंच कर ममता और उस के पति ने क्या किया

9 दिसंबर, 2023 को रवि ठाकुर ने ममता को फोन कर होटल आने के लिए कहा. इस पर ममता ने कह दिया, ”मैं आज आप के होटल पर नहीं आ सकती. अगर आप को आना है तो आप सरिता ठाकुर के घर आ जाना.’’

सरिता ठाकुर के घर जाने में रवि को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. उस के बाद रवि ठाकुर ने ममता से कह दिया कि ठीक है, वह सरिता के घर पर ही पहुंच जाएगा.

उसी वक्त ममता ने सरिता को फोन कर बता दिया कि रवि ठाकुर और मैं आप के घर आने वाले हैं. यह बात सुनते ही सरिता ठाकुर ममता और रवि ठाकुर के आने का इंतजार करने लगी. उस वक्त सरिता का पति ऋषि भी किसी काम से बाहर गया हुआ था.

दोनों की हत्या की योजना बनाने के बाद ममता अपने पति नितिन को साथ ले कर सरिता के घर पहुंची, लेकिन ममता के साथ उस के पति नितिन को देख कर उसे कुछ हैरानी भी हुई.

सरिता ने ममता को एक तरफ बुला कर उस के पति के आने का कारण पूछा तो उस ने बताया कि वह किसी काम से बाहर जा रहे थे. फिर बोले कि मुझे भी उधर ही जाना है. वह मुझे छोडऩे के लिए ही आए हैं.

यह जानकारी मिलते ही सरिता ठाकुर दोनों के लिए चाय बनाने के लिए किचन में चली गई. सरिता ठाकुर के किचन में जाते ही नितिन ने उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया. उस के बाद उस ने उस के घर में ही रखी तलवार से सरिता ठाकुर की हत्या कर दी.

सरिता की हत्या करने के बाद ममता ने दरवाजे पर लगा कुंदा खोल दिया. उस के बाद नितिन सरिता के अंदर वाले कमरे में छिप गया. उस के बाद जैसे ही रवि ठाकुर सरिता के घर पर पहुंचा तो ममता ने फिर से सरिता के घर का बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

उस के बाद उस ने रवि ठाकुर को बाहर वाले कमरे में ही रोक लिया. रवि ठाकुर ने उस वक्त सरिता के बारे में पूछा तो ममता ने कहा कि सरिता दीदी बहुत ही चालाक हैं, वह बाजार का बहाना बना कर इसलिए चली गई, ताकि हम दोनों खुल कर मौजमस्ती कर सकें.

इतना कहते ही ममता ने रवि बाबू पर अपना प्यार दिखाते हुए उस के होंठों पर एक जोरदार किस कर दी. आप चिंता न करें, वह इतनी जल्दी घर वापस आने वाली नहीं.

इतना कहने के बाद ही ममता ने रवि ठाकुर को अपनी आगोश में ले लिया. फिर वह रवि ठाकुर के साथ अश्लील हरकतें करने लगी. जिस के बाद ममता को अकेला पा कर रवि ठाकुर भी उस के साथ संबंध बनाने के लिए बैचेन हो उठा था.

हत्या करने के बाद ममता ने सरिता की बेटी को क्या मैसेज भेजा

रवि ठाकुर के कामुक होते ही ममता ने उस के कपड़े उतार दिए. उस के बाद रवि ठाकुर ने भी उस से कपड़े उतारने को कहा तो उस ने कहा कि उसे आप के सामने कपड़े उतारते हुए शर्म आती है. यह कहते ही ममता ने रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांध दी.

रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांधते ही नितिन तलवार ले कर आया और सामने खड़े रवि पर ताबड़तोड़ बार कर दिए. जिस के तुरंत बाद उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

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हत्यारे ममता और नितिन 

सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर की हत्या करने के बाद ममता और नितिन ने दोनों को एक ही कमरे में ले जा कर डाल दिया. उन्होंने सरिता के भी कपड़े उतार कर नग्न कर दिया था. उस के बाद ममता ने ही सरिता के मोबाइल से उस की बेटी को मारने का मैसेज भेज दिया था. ताकि उस की बेटी को उन पर किसी तरह का कोई शक न हो.

दोनों को बेरहमी से खत्म करने के बाद पतिपत्नी ने वहां पर फैले खून को साफ करने की कोशिश की. उस के बाद दोनों उस के कमरे से निकल कर बाहर से दरवाजा बंद करने के बाद आटो से फरार हो गए.

ममता ने रवि ठाकुर और सरिता का मोबाइल भी अपने पास रख लिए थे. अपने घर पहुंचते ही दोनों ने अपने पहने कपड़े जला दिए.

इस हत्याकांड के खुलासे के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर आरोपियों के जले कपड़े और दोनों मृतकों के कपड़े के साथसाथ हत्या में प्रयुक्त तलवार भी बरामद कर ली.

—कथा लिखने तक पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही थी.

साजिश का तोहफा – भाग 6

अदलत में मौजूद हर आदमी उत्सुक था, जबकि नवीन को अपनी मेहनत बेकार जाती महसूस हो रही थी. उन्होंने महसूस किया कि सोमनाथ सोलकर पर उन के सवालों का कोई असर नहीं हो रहा है.

उन्होंने वह कागज हवा में लहराते हुए भावनात्मक लहजे में कहा, ‘‘मि. सोमनाथ, इंस्टीटयूट की स्थापना का निर्णय आप का एक महान कार्य था, इस के पीछे आप की नेक भावना थी. यही वजह थी, उस समय आप ने 100 करोड़ रुपए का निवेश किया. लेकिन जो लाइन मैं ने पढ़ी है, उस के शब्दों के महत्त्व का आप अंदाजा नहीं लगा सके. उस लाइन को स्वीकार कर के वास्तव में आप ने 2 साजिश करने वालों को अपनी नेक भावना से खेलने की इजाजत दे दी. आप को लगता नहीं कि आप से भी गलती हो सकती है, आप को भी तो कोई मूर्ख बना सकता है?’’

नवीन ने कागज सोमनाथ के सामने रख कर कहा, ‘‘एक बार फिर आप इसे ध्यान से पढि़ए और उस के अर्थ व उद्देश्य की तह तक पहुंचने की कोशिश कीजिए.’’

तभी शशांक ने उन के पास आ कर कहा, ‘‘विश्वास कीजिए मि. सोमनाथ, इस में चिंता की ऐसी कोई बात नहीं है, ये सभी बातें हम ने आपस में सलाह कर के तय की थीं.’’

सोमनाथ सोलकर के चेहरे के भाव बदल गया. उन्होंने अपने वकील को घूरते हुए कहा, ‘‘शायद तुम मुझे इसे पढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हो?’’

उन्होंने बड़े ही ध्यान से उस लाइन को पढ़ा. इस के बाद नवीन की ओर देखते हुए थोड़ी नरमी से कहा, ‘‘मुझे तो बताया गया था कि ट्रस्ट को सही ढंग से चलाने के लिए यह लाइन बहुत जरूरी है. बहरहाल मैं ने कभी ऐसे किसी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिस से ट्रस्ट की शर्तों और नियमों या दूसरे मामलों में कोई भी परिवर्तन लाया जा सके.’’

‘‘हो सकता है, आप ने अनजाने में ऐसे किसी कागज पर हस्ताक्षर कर दिए हों.’’ नवीन ने कहा. उन का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. उन्हें विश्वास था कि रमेश ओर शशांक के पास ऐसा कोई कागज जरूर मौजूद था, जिस का फायदा वे सोमनाथ सोलकर के जीवन में भले नहीं उठा सकते थे, लेकिन उन की मौत के बाद उन्हें फायदा हो सकता था. शायद इसीलिए वे उन की मौत का इंतजार कर रहे थे. अब वह कौन सा कागज हो सकता था.

‘‘क्या आप ने मि. शशांक से अपना कोई वसीयतनामा तैयार कराया है?’’ नवीन ने अचानक पूछा.

‘‘हां, मैं अपना मकान और कुछ रकम रमेश के नाम छोड़ना चाहता था. मेरे विचार से वह इस का अधिकारी भी है. वसीयतनामा शशांक ही तैयार कर के लाया था और वह उसी के पास रखा भी है. उस में वही कुछ लिखा है, जो मैं चाहता था.’’

‘‘आप को याद होगा कि वह वसीयत औपचारिक अंदाज में शुरू हुई होगी कि अगर कोई कर्ज हो तो उसे अदा कर दिया जाए, फलां नौकर को यह दे दिया जाए. इस तरह की छोटी छोटी और कम महत्त्व की बातें शुरू में लिखी गई होंगी?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘हां, शायद कुछ इसी तरह लिखा था.’’ सोमनाथ सोलकर अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बोले, ‘‘और मकान आदि रमेश के नाम करने का जिक्र अंत में था. लेकिन यह सब भी उसी पहले पेज पर था.’’

‘‘योर औनर, अदालत को उस वसीयत को एक नजर जरूर देखना चाहिए.’’ नवीन ने कहा, ‘‘संभव है, वसीसयतनामे का पहला पेज बदल दिया गया हो. क्योंकि वसीयत करने वाले और गवाहों के हस्ताक्षर आमतौर पर अंतिम पेज पर होते हैं.’’

‘‘मुझे आपत्ति है, योरऔनर.’’ शशांक ने बैठी बैठी सी आवाज में कहा. उस का चेहरा सफेद पड़ चुका था. वह सोमनाथ सोलकर की ओर देख कर दयनीय स्वर में बोला, ‘‘मैं आप को विश्वास दिलाता हूं मि. सोमनाथ…’’

लेकिन सोमनाथ ने उस की बात को बीच में ही काट कर कहा, ‘‘मैं वह वसीयतनामा देखना चाहता हूं.’’

नवीन ने जल्दी से कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि वसीयतनामा का पहला पेज बदला जा चुका है. इसीलिए रमेश और शशांक मनोज सोलकर के इंस्टीटयूट में आने जाने से डर गए थे, क्योंकि मि. सोमनाथ इंस्टीटयूट के मुआयने पर आते रहते थे.

इन दोनों महानुभावों को लगा कि अगर कहीं दादा पोते की मुलाकात हो गई और उन के संबंध सुधर गए तो मि. सोमनाथ सोलकर उसे अपनी वसीयत में शामिल करने के लिए वसीयत निकलवा सकते हैं. उस के बाद वह वसीयतनामा बेकार हो जाता और जिस जालसाजी के सहारे रमेश और शशांक जीवन गुजार रहे थे, वह किसी काम की न रहती. अब मैं मि. रमेश से कहूंगा कि वह उठ कर अदालत को असलियत बताएं.’’

रमेश अपने स्थान से उठा तो उस का चेहरा सफेद पड़ चुका था, जो बिना कहे ही सारी सच्चाई कह रहा था. वह मरियल सी आवाज में बोला, ‘‘मैं सम्मानित जज महोदय से अकेले में कुछ बात करना चाहता हूं, क्योंकि सब के सामने कहने लायक मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है.’’

‘‘मुझ से कहने सुनने से कुछ नहीं होगा. तुम लोगों ने जो साजिश रची है, उस से अब तुम्हें मि. सोमनाथ और मनोज ही बचा सकते हैं. इसलिए जो कुछ कहना है, उन्हीं से कहो.’’ जज ने कहा.

‘‘काम तो इन लोगों ने जेल भिजवाने वाला किया है, लेकिन रमेश ने मेरी बहुत सेवा की है. भले ही लालच में की है, लेकिन की तो है ही, इस के अलावा वह मेरा रिश्तेदार भी है. इसलिए इस के गुनाहों की सिर्फ यही सजा है कि यह अपने पद से इस्तीफा दे कर चुपचाप इंस्टीट्यूट छोड़ दे. उसी के साथ यह ठाकरे भी अपना इस्तीफा सौंप दे.’’ सोमनाथ सोलकर ने कहा.

अब कहने सुनने को कुछ रह ही नहीं गया था, इसलिए इस के बाद अदालत उठ गई.

शाम को नवीन के घर पर एक प्रेस कांफे्रंस आयोजित की गई, जिस में सोमनाथ सोलकर बहू और पोते के साथ सोमनाथ सोलकर भी मौजूद थे. बहू और पोते के साथ वह काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे. संवाददाताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मुझे आज पता चला है कि अपने बेटे की मौत के बाद मैं ने उस की विधवा और अपने पोते के साथ कितना अत्याचार किया है. लेकिन रमेश ने मेरी आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी थी कि मैं असलियत देख ही नहीं पाया.

वह मेरी इलेक्ट्रिक कंपनी में कैशियर था. कुछ जाली चैक दिखा कर वह यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि वह जालसाजी अनिल द्वारा की गई थी. तब तक अनिल मर चुका था, इसलिए असलियत सामने नहीं आ सकी थी.

‘‘उस का सोचना था कि बेटे से विमुख होने के बाद मैं उसे अपना वारिस बना लूंगा. लेकिन जब उस ने देखा कि मैं ने अपनी ज्यादातर संपत्ति से इंस्टीटयूट स्थापित कर दिया है और उसे ट्रस्ट के अंतर्गत कर दिया है तो उस ने शशांक के साथ मिल कर इंस्टीटयूट को ही नहीं, मेरी मौत के बाद सारी चलअचल संपत्ति ही हड़प लेने की योजना बना डाली.

‘‘लेकिन संयोग से नवीन करमाकर, जिन्होंने अपनी इज्जत दांव पर लगा कर वीच आए तो न केवल इस साजिश का पर्दाफाश किया, बल्कि मुझे मेरी बहू और पोते से भी मिलवा दिया. अब मैं शायद उन ज्यादतियों की कुछ भरपाई कर सकूंगा, जो मैं ने इन के साथ की हैं.’’