Murder Stories : मैरिड वुमन के इश्‍क में एक दोस्‍त ने दूसरे की ली जान

Murder Stories : राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों…

रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.

घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी. इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.

शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था. उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई. इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.

इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया. घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.

राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी. एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.

अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था. 22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था. कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.

राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया. एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’

‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’

यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’

राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा. वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया. राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई. स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने. कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे. राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे. 20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे. एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी. कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.

प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं. अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था. इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं. सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था. जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.

राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी. कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा. इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे. कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए. पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.

24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए. वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.

पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए. पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Aligarh News : पत्नी के समलैंगिक संबंधों के कारण में मारा गया पति

Aligarh News : 4 बच्चों की मां रूबी ने रजनी से बने समलैंगिक संबंधों के लिए अपने पति भूरी सिंह को रजनी के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया. बच्चों की तो छोडि़ए, अगर वह अपने और रजनी के भविष्य के बारे में सोचती तो…

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया. जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे. जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था. थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’ परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया. सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया. पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया. 12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया. भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी. भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं. भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी. दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे. डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके. एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा. उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं. होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी. पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा. दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Superstition Story : पत्‍नी के साथ गलत हरकतें करने वाला तांत्रिक को पति ने मार डाला

Superstition Story : विकास की दौड़ में पिछड़े हुए गांवों का शैक्षिक स्तर भी पिछड़ा हुआ है, जिस की वजह से ऐसे गांवों के लोग अभी भी अंधविश्वासों की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. कुडरिया गांव के सुघर सिंह के घर इसी अंधविश्वास ने ऐसा…

कुडरिया जिला इटावा का छोटा सा गांव है, जो थाना बकेवर के क्षेत्र में आता है. कुडरिया का सुघर सिंह दोहरे मामूली सा किसान है. 21 फरवरी, 2020 को गांव के कुछ लोग सुघर सिंह दोहरे के घर के सामने वाले रास्ते से निकले तो उन की नजर दरवाजे के पास मरे पड़े भैंस के पड्डे पर गई, जिस की गरदन काटी गई थी. कुछ लोग अनहोनी की आशंका के मद्देनजर सुघर सिंह के घर के अंदर गए तो हैरत में रह गए. आंगन में एक व्यक्ति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जरूर कोई गंभीर बात है, सोच कर लोग घर के बाहर आ गए. इस खबर से गांव में सनसनी फैल गई. गांव वाले सुघर के मकान के सामने एकत्र होने लगे. इसी दौरान किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में बकेवर के थानाप्रभारी बचन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां सूने पड़े मकान में एक शव पड़ा हुआ था. वहां के दृश्य को देख लग रहा था कि वहां तांत्रिक क्रियाएं की गई थीं. वहां केवल भैंस के पड्डे की ही नहीं, बल्कि बकरे और मुर्गे की भी बलि दी गई थी. एक थाली में अलगअलग कटोरियों में तीनों का खून रखा था. थानाप्रभारी ने आसपास के रहने वाले लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की तो पता चला घर में भूतप्रेत का कोई चक्कर था. इसी वजह से सुघर सिंह दोहरे ने तंत्रमंत्र क्रिया कराई थी. इसी को ले कर किसी व्यक्ति की बलि दी गई होगी.

इसी बीच संतोष नाम का एक युवक घटनास्थल पर पहुंचा. वह घबराया हुआ था. लाश को देख कर उस ने मृतक की शिनाख्त अपने चाचा हरिगोविंद के रूप में की. गांव मलेपुरा का हरिगोविंद पेशे से तांत्रिक था. तब तक मृतक का बड़ा भाई वीर सिंह, सुघर सिंह के दामाद विपिन के साथ वहां पहुंच गया. कुछ देर में मृतक के अन्य घर वाले भी आ गए. हरिगोविंद की लाश देख कर घर वालों ने रोनाधोना शुरू कर दिया. सुघर सिंह के घर के बाहर भारी भीड़ जमा होते देख थानाप्रभारी बचन सिंह ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह, फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने पूरे मकान का निरीक्षण किया.

पुलिस ने मकान की छत पर जा कर भी जांच की. घर में बड़ी मात्रा में तंत्रमंत्र में इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी मिली, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. तांत्रिक हरिगोविंद के सिर व गले पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मृतक के बड़े भाई वीर सिंह ने बताया कि उस के भाई हरिगोविंद को सुघर सिंह ने विपिन को भेज कर झाड़फूंक के लिए बुलवाया था. सुघर सिंह और उस के घर वाले घटना के बाद से ही फरार थे. वीर सिंह का आरोप था कि उस के भाई की हत्या साजिशन की गई थी, जिस में सुघर सिंह के सभी घर वाले शामिल थे. पुलिस ने वीर सिंह की तहरीर पर 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया.

7 आरोपियों में विपिन के अलावा कुडरिया गांव का सुघर सिंह, उस की पत्नी सिया दुलारी, मलेपुरा निवासी दामाद विपिन, तीनों बेटे सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश और श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका शामिल थे. वीर सिंह ने अपनी तहरीर में कहा कि उस के छोटे भाई हरिगोविंद को 20 फरवरी को आरोपी विपिन व श्यामबाबू प्रेत बाधा दूर करने के लिए ले गए थे. श्यामबाबू ने उस के भाई को धमकी भी दी थी कि कई बार बुला कर काफी पैसा खर्च करवा लिया है. अगर आज भूत नहीं उतरा तो समझ लेना, तेरा भूत उतारूंगा.

एसएसपी आकाश तोमर ने प्रैसवार्ता में बताया कि तथाकथित तांत्रिक की हत्या के मामले में बकेवर पुलिस ने कुडरिया निवासी सुघर सिंह, उस की पत्नी सियादुलारी और मलेपुरा निवासी उस के दामाद विपिन कुमार को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल नल का हत्था और लोहे की पत्ती बरामद की गई है. गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने तांत्रिक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया है. हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

कुडरिया के रहने वाले सुघर सिंह दोहरे के 3 बेटे व 2 बेटियां हैं. बेटों में सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश शामिल हैं. मझले बेटे श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका व छोटा भाई ब्रह्मप्रकाश काफी समय से बीमार चल रहे थे. दोनों का गांव में ही इलाज कराया गया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई. घर के लोगों ने अंधविश्वास के चलते उन पर भूतप्रेत का साया समझ लिया और उस के निदान के लिए उपाय तलाशने लगे. इस बीच उन्होंने कई जानकार तांत्रिक व सयानों से झाड़फूंक कराई. यह सब घर में कई महीनों से चल रहा था, लेकिन प्रियंका व ब्रह्मप्रकाश की बीमारी में झाड़फूंक से कोई फायदा नहीं हो रहा था.

सुघर सिंह की बेटी सुमन की शादी थाना लवेदी के ग्राम मलेपुरा निवासी विपिन के साथ हुई थी. विपिन ने सुघर सिंह को किसी अच्छे तांत्रिक से क्रिया कराने की सलाह दी. उस ने अपने ही गांव के तांत्रिक हरिगोविंद को तंत्रमंत्र विद्या में पारंगत बता कर उस से पूजापाठ कराने को कहा. हरिगोविंद विपिन का चचेरा चाचा था. उस ने बताया कि तंत्रमंत्र क्रिया कराने से भूत बाधा से मुक्ति मिल जाएगी. इस की जानकारी होने पर एक दिन श्यामबाबू अपने बहनोई विपिन के गांव पहुंचा और अपनी पत्नी व भाई की बीमारी दूर करने के लिए तंत्रमंत्र साधना कराने के लिए कहा.

विपिन ने इस संबंध में अपने तांत्रिक चचेरे चाचा हरिगोविंद, जो लवेदी में रह कर तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करता था, से संपर्क किया था. 45 वर्षीय हरिगोविंद की गांव में तांत्रिक के रूप में अच्छी पहचान बनी हुई थी. उस का दावा था कि वह अपनी शक्ति से भूतबाधा से पीडि़त व्यक्ति को मुक्ति दिला सकता है. घटना से 2 दिन पहले श्यामबाबू बहनोई विपिन के साथ उस के गांव जा कर मिला. तांत्रिक हरिगोविंद के बताए अनुसार तय हुआ कि महाशिवरात्रि से एक दिन पहले यानी 20 फरवरी को तंत्र क्रिया शुरू की जाएगी, जो शिवरात्रि को पशु बलि देने के साथ संपन्न होगी.  तांत्रिक ने कहा कि बलि के बिना भूतबाधा से मुक्ति नहीं मिलेगी. इस के लिए हरिगोविंद ने श्यामबाबू को जरूरी सामान लाने के लिए एक लिस्ट थमा दी.

निश्चित दिन गुरुवार 20 फरवरी को विपिन दिन में ही तांत्रिक हरिगोविंद को ले कर गांव कुडरिया स्थित श्यामबाबू के घर पहुंच गया. इस बीच श्यामबाबू ने तंत्र क्रिया के लिए सभी सामान के साथ बलि के लिए मुर्गे व अन्य पशुओं का भी इंतजाम कर लिया था. सुघर सिंह के घर के आंगन के बीच एक गड्ढा खोद कर उसमें तांत्रिक क्रियाएं शुरू की गई. इस दौरान हरिगोविंद ने मुर्गा, बकरा व पड्डा (भैंस का बच्चा) की बलि देने के साथ ही उन के खून को एक बरतन में इकट्ठा किया और तरहतरह की तांत्रिक क्रियाएं करने लगा. वह जय मां काली के उद्घोष के साथ ही तेजी से सिर हिलाने लगा. इसी बीच उस ने प्रियंका के साथ कुछ गलत हरकतें करनी शुरू कर दीं.

पहले तो घर वाले कुछ नहीं बोले, लेकिन जब तांत्रिक की हरकतें ज्यादा बढ़ गईं, तब घर वालों का खून खौल उठा. इस बात को ले कर घर वालों का तांत्रिक से विवाद हो गया. विवाद बढ़ने पर उन लोगों ने तांत्रिक हरिगोविंद को दबोच लिया और उस के सिर पर हैंडपंप के हत्थे से और गरदन पर लोहे की पत्ती से प्रहार किए, जिस से उस की मृत्यु हो गई. हत्या करने के बाद सुघर सिंह के घर वाले रात में ही फरार हो गए. सुघर सिंह का दामाद विपिन तांत्रिक को साथ ले कर कुडरिया आया था, लेकिन वापस लौट कर अपने गांव मलेपुर स्थित घर आ कर सो गया. उस ने मृतक हरिगोविंद के घर वालों को इस बारे में कुछ नहीं बताया. कुडरिया से मलेपुर गांव के बीच की दूरी करीब 9 किलोमीटर है.

हरिगोविंद के घर वालों को शुक्रवार सुबह लगभग 9 बजे घटना की जानकारी मिली. इस पर हरिगोविंद के घर वाले विपिन के घर पहुंच गए. विपिन घर पर सोता हुआ मिला. जब विपिन से हरिगोविंद के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस पर उन लोगों ने उसे मारापीटा. हरिगोविंद के घर वाले विपिन को ले कर कुडरिया गांव आए. लेकिन उन के पहुंचने से पहले ही मृतक के भतीजे संतोष ने शव की शिनाख्त चाचा हरिगोविंद के रूप में कर दी थी. पुलिस ने पहले विपिन की पत्नी सुमन को भी हिरासत में लिया था, लेकिन आरोपियों में उस का नाम न होने पर छोड़ दिया था.

तांत्रिक हरिगोविंद शादीशुदा था. उस के 4 बच्चे हैं. 2 बेटे व 2 बेटियां. सभी बालिग हैं. अपनी घरगृहस्थी चलाने के लिए उस ने आसपास के क्षेत्र में तंत्र विद्या में निपुण होने के तौर पर पहचान बना रखी थी. मलेपुर गांव में उस की पहचान तांत्रिक डाक्टर के रूप में थी. तंत्रमंत्र के साथ वह दवाई भी देता था. मलेपुर गांव के लोगों के अनुसार हरिगोविंद तंत्रमंत्र व झाड़फूंक करता था. वह लंबे समय से अंधविश्वास से ग्रस्त लोगों को अपनी कथित तंत्रविद्या से भूतप्रेत बाधाओं को ठीक करने और उन का मुकद्दर बनाने का दावा करता रहता था.

अज्ञानता के चलते सीधेसादे लोग मामूली बीमार होने पर भी डाक्टर के पास न जा कर सीधे हरिगोविंद के पास झाड़फूंक के लिए चले जाते थे. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक के नाम पर वह लोगों से मोटी कमाई करता था. तंत्र क्रिया के दौरान कथित तांत्रिक हरिगोविंद द्वारा निरीह पशुपक्षियों की नृशंस हत्या का प्रतिफल उसे अपनी जान गंवा कर मिला.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Dispute : पत्नी ने साजिश रचकर पति को गोली से मरवाया

Family Dispute : राजनीति में पैसा भी है और पावर भी, लेकिन इन चीजों को पचाना सब के बस की बात नहीं होती. रणजीत जमीन से उठ कर एक खास मुकाम तक भी पहुंच गया और 2-2 महिलाओं से शादी भी रचा ली, लेकिन उस ने सोचा भी नहीं होगा कि…

बात सन 2000 की है. गोरखपुर के कैंट थाना क्षेत्र इलाके के चेतना तिराहे पर एक नुक्कड़ नाटक चल रहा था. नाटक के कलाकार ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे. ये लोग देशभक्ति से ओतप्रोत नाटक का मंचन करते हुए लोगों को जागरूक कर रहे थे. सामान्य कदकाठी और गेहुंआ रंग का एक युवक नाटक का निर्देशन कर रहा था. वही कलाकारों का लीडर था. उस का नाम था रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से प्रेरित हो कर रणजीत ने अपने नाम के आगे बच्चन शब्द जोड़ लिया था. दरअसल, रणजीत रंगमंच का एक उम्दा कलाकार था. कला की दुनिया में वह नाम कमाना चाहता था, इसलिए सतत प्रयासरत था.

‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे सुन कर एक युवती के पांव थम से गए. उसे नाटक इतना भाया कि वह नाटक खत्म होने तक वहीं जमी रही. वह युवती पूर्वांचल मैराथन की प्रथम विजेता कालिंदी शर्मा थी, जो मूलरूप से कुशीनगर जिले के थाना नेबुआ में आने वाले भंडार बिंदौलिया की रहने वाली थी. उस वक्त वह गोरखपुर के शाहपुर इलाके के असुरन चौक के पास अपने मातापिता और 5 बहनों के साथ रह रही थी. नुक्कड़ नाटक के समापन के बाद कालिंदी ने कलाकारों से पूछा कि तुम्हारा लीडर कौन है? उन में से एक कलाकार ने रणजीत बच्चन की ओर इशारा कर के बताया कि वही हमारे लीडर हैं. नाटक का मंचन उन्हीं के निर्देशन में होता है.

कालिंदी शर्मा ने रणजीत बच्चन से मुलाकात की और अपने बारे में बताया. कालिंदी का परिचय जान कर रणजीत काफी प्रभावित हुआ. इस मुलाकात के बाद दोनों में दोस्ती हो गई. दरअसल, कालिंदी की चाहत थी कि वह देश के लिए कुछ करे. रणजीत की सोच भी यही थी कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से उस का नाम हो. दोनों की एक ही सोच थी, कुछ बड़ा करने की. अब तक दोनों अलगअलग थे. दोनों की सोच एक जैसी निकली तो दोनों की दिशाएं एक हो गईं. इसी बीच कालिंदी के जीवन के साथ एक नया कीर्तिमान जुड़ गया था. मैराथन दौड़ में प्रथम आने के आधार पर उसे नेहरू युवा केंद्र के सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु 2 साल के लिए एनएसबी सदस्य बना दिया गया था. संस्थान की ओर से उसे समाज को जागरूक करने वाले कुछ कार्यक्रम करने को कहा गया था, उस में नुक्कड़ नाटक का भी कराया जाना था. विषय था सारक्षरता.

कालिंदी ने रणजीत के साथ मिल कर नाटक का प्रस्तुतीकरण कराया जिस से लोग काफी प्रभावित हुए. कालिंदी के इस काम से संस्थान के निदेशक खुश हुए. इस मंचन के बाद से कालिंदी के दिल में रणजीत के लिए सौफ्ट कौर्नर बन गया, कह सकते हैं कि वह रणजीत को चाहने लगी थी. 40 वर्षीया कालिंदी शर्मा 5 बहनों में सबसे बड़ी थी. उस के पिता परमात्मा शर्मा प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आमदनी बहुत कम थी. उसी से परिवार के भरणपोषण के साथसाथ बेटियों की पढ़ाई का खर्चा भी होता था. कालिंदी परमात्मा शर्मा की सब से बड़ी संतान थी. कालिंदी ने अपनी लगन और परिश्रम की बदौलत समाजशास्त्र से परास्नातक की डिग्री ली.

करीब 45 वर्षीय रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन मूलरूप से गोरखपुर के गोला थाना क्षेत्र के अहिरौली लाला टोला का रहने वाला था. उस के पिता ताराशंकर श्रीवास्तव सिंचाई विभाग में ट्यूबवेल आपरेटर थे. कहने को तो ताराशंकर मूलरूप से अहिरौली गांव के निवासी थे, लेकिन 4 दशक पहले उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया था. वह परिवार सहित गोरखपुर आ कर बस गए थे. 20 साल पहले सन 2000 में ताराशंकर की मृत्यु हो गई थी. पिता की मृत्यु के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी तीसरे बेटे रघुवंश कुमार श्रीवास्तव के कंधों पर आ गई थी. बाद में उन के 2 बड़े बेटों पप्पू और राजेश की भी बीमारी से मौत हो गई. रघुवंश अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम देते रहे.

ताराशंकर की सभी संतानों में सब से कुशाग्र बुद्धि वाला उन का सब से छोटा बेटा रणजीत था. उस में कुछ नया करने की जिजीविषा रहती थी. होश संभालने के बाद जब वह कुछ समझदार हुआ तो बड़ा हो कर फिल्मी दुनिया में जाने की सोचने लगा. रणजीत गांव के कुछ युवकों की टोली बना कर नुक्कड़ नाटक किया करता था. इसी नुक्कड़ नाटक के जरिए उस की मुलाकात कालिंदी से हुई. सन 2002 के जनवरी में कालिंदी के मन में एक योजना आई. ॒यह योजना थी साइकिल यात्रा से देश में शांति का संदेश फैलाना. कालिंदी ने यह बात रणजीत को बताई तो वह खुश हुआ. रणजीत ने कालिंदी की साइकिल यात्रा पर मुहर लगा दी. रणजीत बच्चन ने कालिंदी सहित अपनी नाटक मंडली के 16 सदस्यों सहित यात्रा की तैयारी कर ली. टीम का नेतृत्व उस ने अपने हाथों में ले लिया.

4 फरवरी, 2002 को रणजीत बच्चन के नेतृत्व में साइकिल से भारत भ्रमण यात्रा शुरू हुई. आखिरी समय में सिर्फ कालिंदी और रणजीत बच्चन ही बचे रहे. 7 साल 10 महीने 14 दिन में दोनों ने भारत, नेपाल और भूटान सहित साइकिल से 1 लाख 32 हजार किलोमीटर की यात्रा तय कर के एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था. इस उपलब्धि के लिए लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में दोनों के नाम दर्ज हुए. इसी यात्रा के दौरान फरवरी, 2005 में कालिंदी और रणजीत बच्चन ने महाराष्ट्र के नासिक में एक मंदिर में गंधर्व विवाह कर लिया था. लेकिन दोनों ने अपने प्रेम विवाह को घरपरिवार और समाज से छिपा कर रखा. फिर जब बात खुली तो 9 साल बाद 31 मार्च, 2014 को परिवार वालों ने इस शादी पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी.

साइकिल यात्रा के दौरान सरकार और लोगों से काफी पैसा मिला था. उन पैसों से रणजीत ने गोरखपुर के गुलरिहा थानाक्षेत्र के पतरका टोला में अपने नाम से एक जमीन खरीद ली. उस जमीन पर रणजीत अपनी मां के नाम पर कौशल्या देवी वृद्ध एवं अनाथ आश्रम खोलना चाहता था. योजना पर काम भी शुरू किया गया, लेकिन यह योजना पूरी हो पाती, इस से पहले ही उस की हत्या हो गई. नुक्कड़ नाटकों से न तो कोई मुकाम मिलने वाला था और न ही दौलत. रणजीत यह बात समझ गया था. फलस्वरूप उस ने अपनी दिशा बदल दी, लेकिन लक्ष्य वही रहा. उन दिनों प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी.

सत्ताधारी दल के साथ रहना मुफीद था, इसलिए रणजीत ने जुगाड़ लगा कर बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. लेकिन उस ने जो सोचा था, वह नहीं हो सका. इस पर रणजीत ने बसपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली. सन 2013 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाला था. साइकिल समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न है. चुनाव में रणजीत ने कालिंदी के साथ मिल कर साइकिल यात्रा के जरिए सपा के लिए खूब प्रचार किया, जिस का परिणाम सकारात्मक निकला. चर्चा में बने रहने के लिए रणजीत कुछ न कुछ करता रहता था. इस के लिए वह कभी महापुरुषों की प्रतिमा सफाई अभियान, कभी इंसेफेलाइटिस जागरूकता तो कभी पल्स पोलियो अभियान चलाता रहता था. शोहरत हासिल करने के लिए उस ने पानी पर साइकिल तक चलाई थी, लेकिन उसे मनचाहा मुकाम नहीं मिला.

रणजीत बच्चन का सितारा उस समय बुलंदियों पर पहुंच गया, जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर रणजीत को काफी महत्व मिला. उसे राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया. रणजीत और कालिंदी के काम से खुश हो कर अखिलेश यादव ने दोनों को 5-5 लाख का पुरस्कार भी दिया. रणजीत ने कालिंदी के हिस्से के भी पैसे खुद रख लिए थे. इस के बाद दोनों ने लखनऊ की ओसीआर बिल्डिंग के बी-ब्लौक के फ्लैट नंबर 604 आवंटित करा लिए था. राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद रणजीत बच्चन के शौक भी बढ़ गए थे. बाइक से चलने वाले रणजीत ने अब कार लेने का मन बना लिया था. नवंबर, 2014 के अंतिम सप्ताह में रणजीत ने ओएलएक्स पर एक एक्सयूवी कार देखी. कार उसे पसंद आ गई. वह कार लखनऊ के संजय श्रीवास्तव के नाम पर रजिस्टर्ड थी.

जय श्रीवास्तव की बेटी स्मृति वर्मा ने कार बेचने के लिए ओएलएक्स साइट पर डाल रखी थी. स्मृति वर्मा लखनऊ की विकास नगर कालोनी के आवास संख्या- 2/625 में रहती थी. साइट पर कार के साथ स्मृति का फोन नंबर भी था. बातचीत के बाद सौदा पक्का हो गया तो 27 नवंबर को रणजीत दोस्तों के साथ वाहन की डिलिवरी लेने लखनऊ स्थित स्मृति के घर विकास नगर पहुंच गया. रणजीत बच्चन ने जब दूधिया रंगत वाली बला की खूबसूरत स्मृति को देखा तो उसे अपलक देखता रह गया. एक ही नजर में स्मृति रणजीत की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर गई. उस ने तय कर लिया कि सौदा चाहे कितना भी मंहगा हो, तय कर के ही रहेगा. पेशगी के तौर पर रणजीत ने स्मृति को साढ़े 4 लाख रुपए नकद दे दिए. बाकी के रुपए कागजात हैंडओवर होने के बाद देना तय हुआ. इस पर स्मृति मान गई तो वह कार ले कर गोरखपुर आ गया.

इस के बाद स्मृति और रणजीत के बीच मोबाइल पर बातचीत होने लगी. बातोंबातों में रणजीत को पता चला कि स्मृति पिता के स्थान पर कोषागार विभाग में कनिष्ठ लेखाकार है. रणजीत ने जब से स्मृति को देखा था, उस का दिन का चैन और रात की नींद उड़ गई थी. उस के दिमाग में एक ही बात उछलकूद मचा रही थी कि चाहे जैसे भी हो, स्मृति को अपना बना ले. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों कालिंदी रणजीत के बच्चे की मां बनने वाली थी. लेकिन उसे इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पूरी तरह से स्मृति के प्यार के रंग में डूब चुका था. इसी चक्कर में उस ने स्मृति से खुद को कुंवारा बताया था. उस ने अपनी लच्छेदार बातों से स्मृति के चारों ओर सम्मोहन का ऐसा जाल फैला दिया कि वह उसी जाल में घिर गई. रणजीत स्मृति से प्रेम करने लगा था, स्मृति भी उस से प्यार करती थी.

स्मृति वर्मा का रणजीत की ओर झुकाव तब हुआ, जब उसे पता चला कि सत्ता के गलियारे में उस की पहुंच बहुत ऊपर तक है. इतना ही नहीं, वह दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री है. प्रदेश सरकार में उस की अच्छी धाक है. रणजीत ने स्मृति के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. बराबर आनेजाने से रणजीत ने स्मृति के अतीत के पन्नों को पढ़ लिया था, जिन में उस के जीवन के पन्नों पर कई दुख भरी कहानियां लिखी हुई थीं. राजधानी लखनऊ के विकासनगर में नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव परिवार सहित रहते थे. पत्नी शोभना और 3 बच्चों में 2 बेटियां थीं, श्रुति और स्मृति और एक बेटा शिवांश. शोभना के शरीर पर जगहजगह सफेद दाग थे. सफेद दाग की वजह से संजय पत्नी को पसंद नहीं करते थे.

उन्होंने शोभना को तलाक दे दिया था. शोभना के पास 3 बच्चे थे. तीनों के पालनपोषण की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. ऐसे में वह क्या करती, बच्चों को ले कर कहां जाती. तलाक के बावजूद शोभना बच्चों के साथ पति के ही घर में रहती थी. नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव के घर में तलाकशुदा शोभना भी रह रही थी, लेकिन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं था. बाद में संजय श्रीवास्तव ने कानपुर की रहने वाली एक दूसरी महिला से शादी कर ली. उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पत्नी को अपने घर नहीं ला सके. बच्चों और शोभना के दबाव के चलते संजय का जीवन रेत के महल सा हो गया था. इसलिए दूसरी पत्नी अकसर कानपुर में ही रहती रही.

पहली पत्नी शोभना के तीनों बच्चे धीरेधीरे बड़े होते रहे. इन में दूसरे नंबर की बेटी स्मृति खूबसूरत और जहीन थी. बात सन 2013 की है. नायब तहसीलदार संजय की बड़ी बेटी श्रुति अपने प्रेमी के साथ घर से अचानक भाग गई. बेटी के इस घिनौने कदम से संजय श्रीवास्तव की समाज में बहुत बदनामी हुई. बेटी की इस करतूत से बुरी तरह आहत तहसीलदार श्रीवास्तव ने सारी संपत्तियों की पावर औफ अटार्नी छोटी बेटी स्मृति के नाम कर दी ताकि उन के न रहने पर वह संपत्ति की देखभाल कर सके. आननफानन में तहसीलदार संजय ने स्मृति की शादी लखनऊ के एक बैंक मैनेजर के साथ तय कर दी थी.

तिलक की रस्म भी पूरी हो गई थी. चढ़ावे में नकदी और लाखों रुपए के कीमती गहने चढ़ाए गए. घर में शादी की जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं, अचानक एक दुखद हादसे ने बहुत कुछ बदल दिया. तिलक की रस्म के कुछ दिनों बाद की बात है. रात का समय था. संजय श्रीवास्तव अपनी छत पर टहल रहे थे. अचानक वह रहस्यमय तरीके से छत से नीचे सड़क पर जा गिरे. सिर में आई गंभीर चोट की वजह से मौके पर ही उन की मौत हो गई. वह छत से कैसे गिरे, यह रहस्य आज भी बरकरार है. जहां खुशियां होनी चाहिए थीं, वहां मातम छा गया. पिता की मौत के बाद स्मृति की शादी टूट गई. लाखों रुपए नकद और लाखों के जेवरात ससुराल में फंसे रह गए. स्मृति के ससुराल वालों ने पैसे और जेवर लौटाने से मना कर दिया.

स्मृति के सामने ससुराल वालों से सामान वापस लेना चुनौती थी. ऐसे में रणजीत बच्चन स्मृति से टकरा गया. दोनों के बीच जब नजदीकियां बढ़ीं तो स्मृति ने अपनी आपबीती रणजीत से बता कर ससुराल से नकदी और गहने वापस दिलवाने की पेशकश की. उस ने यह भी कह दिया था कि जिस दिन वह गहने और नकदी दिलवा देगा उसी दिन वह उस की हो जाएगी. रणजीत के लिए स्मृति की शर्त जीतना कोई बड़ी बात नहीं थी. क्योंकि उस पास साम, दाम, दंड, भेद चारों शस्त्र थे, इसलिए थोड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए उस ने स्मृति की ससुराल जा कर चारों शस्त्र आजमाए. भले ही जबरदस्ती सही, लेकिन उस ने नकदी और जेवरात वसूल कर स्मृति की झोली में डाल दिए.

रणजीत की इस दबंगई से खुश हो कर स्मृति ने उस से शादी करने के लिए हामी भर दी. आखिर 18 जनवरी, 2015 को रणजीत और स्मृति ने मंदिर में जा कर शादी कर ली. रणजीत ने यह राज पहली पत्नी कालिंदी से छिपाए रखा. रणजीत द्वारा स्मृति से शादी करने के 3 दिनों बाद 21 जनवरी को कालिंदी ने बेटे को जन्म दिया. कालिंदी के मां बनने की जानकारी मिलने के बाद भी रणजीत पत्नी को देखने हौस्पिटल तक नहीं आया. लेकिन रणजीत की सच्चाई न तो पहली पत्नी कालिंदी से छिप सकी और न ही दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा से.

कालिंदी को जब रणजीत की दूसरी शादी की बात पता चली तो उस के पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई. उसे रणजीत से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि जिस रणजीत के लिए उस ने अपने घर वालों से बगावत कर उसे अपना जीवन सौंप दिया था, वही हमसफर सितमगर निकलेगा. जब यह बात दूसरी पत्नी स्मृति को पता चली कि रणजीत पहले से ही शादीशुदा है तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. रणजीत ने उसे धोखा दिया था. उस ने एक साथ कई जिंदगियां दांव पर लगा दी थीं. पति की सच्चाई सामने आने के बाद स्मृति उसे छोड़ कर विकासनगर वापस लौट आई. उसे नाराज देख रणजीत के हाथपांव ठंडे पड़ गए.

स्मृति से रणजीत इतना प्यार करता था कि उस की जुदाई एक पल के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकता था, वह सच्चाई जान कर उस से नाराज हो कर गई थी इसलिए रणजीत ने स्मृति को मनाने के लिए जमीनआसमान एक कर दिया. खैर, पहली पत्नी कालिंदी चुप बैठने वालों में से नहीं थी. पति के धोखा देने के एवज में उस ने रणजीत के खिलाफ गोरखपुर महिला थाने में एक तहरीर दी. कालिंदी के उठाए कड़े कदम से रणजीत की त्यौरियां चढ़ गईं. दोनों के प्यार ने अब नफरत और दुश्मनी का रंग ले लिया.

स्थिति यहां तक पहुंच गई कि जहां देखो हत्या कर दो. कालिंदी अपनी और बच्चे की जान बचाने के लिए यहांवहां छिपती रही. जान का दुश्मन बना रणजीत कालिंदी को नहीं ढूंढ पाया. कालिंदी भागतेभागते थक चुकी थी. वह जानती थी कि रणजीत से जीत पाना आसान नहीं है. आखिर उस ने रणजीत के सामने घुटने टेक दिए. इस का सब से बड़ा कारण यह था कि उस के मायके वालों ने उस का साथ देना छोड़ दिया था. वे रणजीत की करतूतों से बेहद नाराज थे. ऐसे में कालिंदी के सामने एक ही सहारा बचा था, रणजीत के पास वापस लौटने का. आखिरकार कालिंदी बेटे आदित्य को ले कर रणजीत के पास लखनऊ आ गई, रणजीत ने भी सारे गिलेशिकवे भुला कर उसे माफ कर दिया.

कहते हैं एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. सच भी यही है. कालिंदी के ओसीआर आते ही स्मृति ने रणजीत से दूरी बना ली. स्मृति से दूरियां रणजीत से सहन नहीं हो रही थीं. स्मृति की दूरियों से खुन्नस खाया रणजीत कालिंदी पर अपनी मर्दानगी और जुल्म की कहानी लातघूंसों से लिखता था और मोबाइल का स्पीकर औन कर के स्मृति को सुनाता था. वह यह दिखाने की कोशिश करता था कि वो उसे कितना प्यार करता है, इसी से अंदाजा लगा सकती है. जबकि बेटे की खातिर कालिंदी पति के जुल्मों को सह कर भी उफ तक नहीं करती थी.

कालिंदी पर एक और आपदा तब टूटी जब 2017 में उस के ढाई साल के बेटे आदित्य की मृत्यु हो गई. बेटे की मौत से कालिंदी ही नहीं रणजीत भी बुरी तरह से टूट गया. इस घटना के बाद से रणजीत का झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया और वह एक वस्त्र (गेरुआ वस्त्र) धारण करने लगा. इस दौरान वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक चक्रपाणि महाराज के संपर्क में आया और संगठन का प्रदेश अध्यक्ष बन गया. बाद में रणजीत बच्चन ने अपना खुद का संगठन ‘विश्व हिंदू महासभा’ बनाया और खुद को उस का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. कालिंदी उस की सहयोगी रही.

हिंदूवादी नेता की छवि बनाने के लिए वह भगवा कपड़े पहनने लगा. विभिन्न मंचों से हिंदुत्व पर बेबाक टिप्पणी करने लगा, जिस से उसकी छवि हिंदू नेता के रूप में उभरने लगी. अतिमहत्त्वाकांक्षी रणजीत का संगठन चल निकला. धीरेधीरे बेटे की मौत को वह भूलने लगा था. अब भी वह स्मृति की याद में पागल था. जबकि स्मृति उस से दूर हो चली थी. उस के जीवन में दूसरा पुरुष आ गया था, जिस का नाम दीपेंद्र सिंह था. सन 2017 में अमर नगर रायबरेली निवासी दीपेंद्र की स्मृति से मुलाकात उस के दफ्तर में हुई थी. वह किसी आवश्यक काम से वहां आया था. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें होती रहीं. दोनों पहले दोस्त, फिर दोस्त से प्रेमी बन गए. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे और शादी करना चाहते थे.

रणजीत से छुटकारा पाने के लिए स्मृति ने अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल कर दी थी. रणजीत ने स्मृति को तलाक देने से साफ इनकार कर दिया था. वह जान चुका था कि स्मृति दीपेंद्र से प्यार करने लगी है. रणजीत ने खुले तौर पर स्मृति को धमकी दी कि वह दीपेंद्र का साथ छोड़ दे अन्यथा इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. रणजीत के धमकाने का स्मृति पर कोई असर नहीं हुआ था. बावजूद इस के वह खुलकर दीपेंद्र से मिलती रही. यह बात रणजीत से सहन नहीं हो पा रही थी. दीपेंद्र को ले कर रणजीत और स्मृति के बीच विवाद बढ़ता गया. रणजीत स्मृति के पीछे जितनी तेज भागता गया, स्मृति उतनी ही तेजी से दीपेंद्र के पास आती गई. जबकि कालिंदी रणजीत के पीछे भाग रही थी.

बात 18 जनवरी, 2020 की है. उस दिन रणजीत और स्मृति की शादी की सालगिरह थी. लखनऊ के एक बड़े होटल में रणजीत ने दिन में एक पार्टी का आयोजन किया था. उस ने खासतौर पर स्मृति को आने के लिए आमंत्रित किया था. पार्टी में बड़ेबड़े लोग आए थे. समय बीत जाने के बाद भी स्मृति वहां नहीं पहुंची, तो रणजीत ने खुद को अपमानित महसूस किया. उसे स्मृति पर गुस्सा भी आया. उस ने मन ही मन स्मृति को सबक सिखाने की ठान ली. जैसेतैसे पार्टी खत्म कर के वह स्मृति के घर जा पहुंचा. संयोग से उस की मुलाकात घर पर ही हो गई. स्मृति को देखते ही रणजीत का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने आव देखा न ताव, गुस्से से तमतमाते हुए स्मृति के गालों पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

थप्पड़ इतना जोरदार था कि उसे दिन में तारे नजर आने लगे. उसे सावधान करते हुए रणजीत ने दीपेंद्र का साथ छोड़ने के लिए हिदायत दी और वापस लौट आया. रणजीत का यह थप्पड़ स्मृति को काफी नागवार गुजरा. उस ने यह बात दीपेंद्र से बताई और रणजीत को सदा के लिए रास्ते से हटाने का दबाव बनाया. दीपेंद्र स्मृति से टूट कर प्यार करता था. उस ने इस काम के लिए हामी भर दी. दीपेंद्र ने इस के लिए अपने चचेरे भाई जितेंद्र की मदद ली. जितेंद्र मनबढ़ किस्म का युवक था. उस के खिलाफ रायबरेली के कई थानों में गंभीर और संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. जितेंद्र तैयार हो गया.

योजना बनने के बाद 29 जनवरी, 2020 को दीपेंद्र चचेरे भाई जितेंद्र को साथ ले कर अपनी गाड़ी से रायबरेली से लखनऊ पहुंचा और 3 दिनों तक शहर में रह कर उस ने रणजीत की रेकी की. वह घर से कब निकलता है, कब घर लौटता है. घर से निकलते समय उस के साथ कौनकौन होता है, वगैरह. दीपेंद्र और जितेंद्र ने 3 दिनों तक रेकी कर के रणजीत की पूरी कुंडली तैयार कर ली और रायबरेली लौट आए. 1 फरवरी, 2020 की रात दीपेंद्र और उस का भाई जितेंद्र ड्राइवर संजीत के साथ बोलेनो कार से लखनऊ आ कर एक होटल में ठहर गए.

2 फरवरी की सुबह साढ़े 5 बजे डेली रूटीन के तहत सब से पहले घर से कालिंदी मौर्निंग वाक के लिए निकली. उस के 2-4 मिनट के अंतराल पर रणजीत अपने पुराने परिचित और गोरखपुर निवासी आदित्य कुमार श्रीवास्तव उर्फ सोनू के साथ निकला. आदित्य कुछ दिन पहले एक ठेके के संबंध में रणजीत से मिलने आया था. रणजीत ने उसे वाक पर साथ चलने के लिए कहा, तो वह साथ हो गया. कालिंदी आगेआगे दौड़ती हुई जा रही थी और पीछे मुड़मुड़ कर देख रही थी कि रणजीत कहां तक पंहुचे. कालिंदी पहली बार ग्लोब पार्क की ओर निकली थी. रणजीत और आदित्य जब पार्क की ओर आते दिखे तो उस ने उन्हें हाथ हिला कर इशारा किया कि वह आगे बढ़ रही है.

कालिंदी दयानिधान पार्क की ओर दौड़ती हुई चली गई, जहां वह अक्सर जाया करती थी. इधर हजरतगंज चौराहे के पास दीपेंद्र कार से उतर गया. जितेंद्र थोड़ी दूर स्थित कैपिटल सिनेमा के पास उतरा और वहीं खड़ा हो गया. रणजीत आदित्य के साथ ओसीआर से निकल कर सीडीआरआई जा रहा था. उसी वक्त जितेंद्र ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया था. वह शाल से अपना चेहरा ढके हुए था. जैसे ही दोनों ग्लोब पार्क के पास पहुंचे, जितेंद्र फुरती के साथ आगे बढ़ा और पिस्टल निकाल कर रणजीत पर तान दिया. उस ने दोनों से मोबाइल फोन मांगा तो रणजीत और आदित्य ने कोई मोबाइल चोर समझ कर अपनेअपने फोन उस की ओर बढ़ा दिए. जितेंद्र ने दोनों के फोन अपने कब्जे में कर लिए.

रणजीत और आदित्य कुछ समझ पाते, तब तक जितेंद्र ने रणजीत को लक्ष्य बना कर उस के सिर में .32 बोर की गोली मार दी. गोली लगते ही रणजीत वहीं जमीन पर गिर पड़ा. यह देख आदित्य अपनी जान बचा कर वहां से भागा, तो जितेंद्र ने उसे भी गोली मार दी. यह संयोग ही था कि गोली उस के बाएं हाथ में लगी. गोली मारने के बाद जितेंद्र वहां से भाग निकला और दीपेंद्र के पास जा पहुंचा. दीपेंद्र उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने बताया कि काम हो गया है. फिर उसी कार में सवार हो कर दोनों रायबरेली चले गए.

उसी दिन शाम को दीपेंद्र और जितेंद्र रायबरेली से इलाहाबाद पहुंचे. वहां से दोनों मुंबई भाग गए. बीच रास्ते में दीपेंद्र ने स्मृति को मैसेज कर के बता दिया था कि काम हो गया. यह सुन कर वह खुश हो गई. गोली से घायल आदित्य श्रीवास्तव की तहरीर पर हजरतगंज पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धारा 302, 307 के तहत अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने घटना का खुलासा करने के लिए 8 टीमें गठित कर दीं.

जांच की दिशा जर, जमीन और जोरू को ले कर तय की गई थी. पुलिस ने पहली पत्नी कालिंदी से पूछताछ शुरू की. कालिंदी से हुई पूछताछ से पता चला कि रणजीत ने दूसरी शादी विकास नगर सेक्टर-2/625 की रहने वाली स्मृति वर्मा से की थी. तकरीबन 4 दिनों की छानबीन के बाद पुलिस का पुख्ता शक दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा पर जा टिका. पुलिस ने स्मृति को हिरासत में ले कर उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो वह टूट गई और पूरी कहानी पुलिस को बता दी. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि रणजीत की हत्या उसी ने अपने प्रेमी दीपेंद्र से मिल कर कराई थी.

पूछताछ में उस ने दीपेंद्र के मुंबई चले जाने की बात बताई. उसी दिन हजरतगंज पुलिस टीम फ्लाइट से मुंबई पहुंची और वहां से दीपेंद्र को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. पता नहीं कैसे शूटर जितेंद्र को पुलिस के आने की भनक लग गई थी और वह वहां से फरार हो गया था. 6 फरवरी, 2020 को पुलिस ने रणजीत हत्याकांड के 3 आरोपियों— स्मृति वर्मा प्रेमी दीपेंद्र और ड्राइवर संजीत को गिरफ्तार कर लिया. कमिश्नर सुजीत पांडेय ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के घटना का खुलासा किया. 3 दिन बाद पुलिस मुठभेड़ के बाद हजरतगंज में शूटर जितेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे. पुलिस ने अज्ञात की जगह चारों आरोपियों स्मृति बच्चन उर्फ स्मृति वर्मा, दीपेंद्र, शूटर जितेंद्र और चालक संजीत को नामजद कर दिया था. यही नहीं, धारा 302, 307 के साथसाथ केस में धारा 120बी और 7 सीएलए की धाराएं भी जोड़ दी थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने आरोपियों से रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे.

—कथा वादी आदित्य, रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी और पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur News : कंपनी के घाटे से परेशान फर्टिलाइजर कंपनी के डायरेक्‍टर ने बाथरूम में खुद को मारी गोली

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन ने कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ एक अहम मीटिंग फिक्स की थी, जिस में कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड केमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी विशेष मंत्रणा के लिए बुलाया गया था. सुनील जोशी मीटिंग के लिए गेस्टहाउस पहुंचे भी लेकिन…

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर ने कंपनी के उच्चाधिकारियों की एक अहम बैठक बुलाई थी. यह बैठक कानपुर (कैंट) स्थित कंपनी के आलीशान गेस्टहाउस में दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी. बैठक में शामिल होने के लिए चेयरमैन मनोज गौर के अलावा वाइस चेयरमैन ए.के.जैन, प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन, डायरेक्टर स्तर के पदाधिकारी रमेश चंद्र तथा वीरेंद्र सिंह गेस्टहाउस आ चुके थे. वे सब मीटिंग की तैयारी में व्यस्त थे. इसी अहम बैठक में जेपी गु्रप की कंपनी कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड कैमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी शामिल होना था. जोशी स्वरूपनगर स्थित रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट के प्रथम तल पर अपने परिवार के साथ रहते थे.

मीटिंग को ले कर वह सुबह से ही उलझन में थे. पति को परेशान देख उन की पत्नी मेनका ने पूछा भी पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया. हां, इतना जरूर कहा कि आज वह एमडी से बात कर ही लेंगे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने उलझन के कारण नाश्ता भी नहीं किया और प्रात: 9 बजे अपनी निजी कार से गेस्टहाउस के लिए रवाना हो गये. 20 मिनट बाद वह कैंट स्थित कंपनी के गेस्टहाउस पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारी से मनोज गौर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चेयरमैन साहब रात को ही गेस्टहाउस आ गए थे. इस समय वह बाथरूम में हैं. मीटिंग 12 बजे के बाद शुरू होगी.

इस के बाद सुनील कुमार जोशी कमरे में चले गए. उन्होंने कर्मचारी गौतम राजपूत से पानी लाने को कहा. गौतम पानी लेने चला गया, लेकिन उस के आने से पहले ही वह बाथरूम चले गए. कुछ देर बाद ही बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई. आवाज सुन कर किचन में नाश्ता तैयार कर रहे बुद्धराम कुशवाहा, गौतम राजपूत व जितेंद्र रूम में आ गए. उन तीनों ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उन के होश गुम हो गए. बाथरूम के अंदर सुनील कुमार जोशी खून से लथपथ मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. कर्मचारियों ने तुरंत जा कर प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन को घटना की जानकारी दी.

मामला गंभीर देख कर अनिल मोहन फौरन वहां जा पहुंचे, जहां सुनील कुमार जोशी खून के सैलाब में डूबे पड़े थे. उन की हालत गंभीर थी. अनिल मोहन ने कर्मचारियों की मदद से उन्हें कार में बिठाया और कानपुर के चर्चित अस्पताल रीजेंसी ले गए. चूंकि सुनील कुमार जोशी की हालत नाजुक थी, अत: उन्हें गहन चिकित्सा यूनिट में भरती किया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए. सुनील जोशी द्वारा खुदकुशी की कोशिश किए जाने की जानकारी मिलते ही उन की पत्नी मेनका जोशी तत्काल रीजेंसी अस्पताल पहुंचीं. लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि उन के पति की मृत्यु हो गई है. इस सदमे को बरदाश्त कर पाना मेनका जोशी के लिए बहुत मुश्किल था.

परिवार की महिलाओं व कंपनी के बड़े अधिकारियों ने जैसेतैसे उन्हें धैर्य बंधाया. इस के बाद मेनका अस्पताल से घटनास्थल गेस्टहाउस को रवाना हो गईं. इधर प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ने डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी द्वारा गोली मार कर आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना कैंट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आदेश चंद्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस घटना के बारे में सूचित कर दिया था. थाने से कंपनी का गेस्टहाउस दो किलोमीटर दूर था. अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. चूंकि गेस्टहाउस में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थी, अत: भीड़ ज्यादा नहीं थी. गेस्टहाउस के कर्मचारी, पदाधिकारी तथा मृतक के परिजन ही वहां मौजूद थे.

थानाप्रभारी आदेशचंद्र घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा डीएसपी अरविंद कुमार चतुर्वेदी भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की. कमरे से अटैच बाथरूम में खून फैला हुआ था. वहीं पिस्टल भी पड़ी थी. जांच से पता चला कि डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने .30 बोर की इंग्लिश पिस्टल से खुद को गोली मारी थी. टीम ने जांच के लिए ब्लड सैंपल और पिस्टल से फिंगरप्रिंट ले लिए. पास ही कारतूस का खोखा पड़ा था. टीम ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. फोरैंसिक टीम ने पिस्टल से मैगजीन निकाली तो उस में 5 गोलियां मौजूद थीं. सभी बरामद वस्तुओं को टीम ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें कमरे में मृतक सुनील कुमार जोशी का मोबाइल फोन रखा मिल गया. एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल ने मोबाइल फोन खंगाला तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. मृतक सुनील कुमार जोशी ने प्रात: 9 बज कर 26 मिनट पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के वाट्सऐप गु्रप में जो मैसेज किया, उस से साफ जाहिर था कि उन की मनोदशा ठीक नहीं थी. मैसेज में उन्होंने लिखा था कि 30 साल से कंपनी की सेवा कर रहा हूं. अच्छे और बुरे दिन देखे. लेकिन अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है.

घटनास्थल (गेस्टहाउस) पर जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वह अपने रूम के बाथरूम में थे. इसी दौरान अनिल मोहन सुनील को अस्पताल ले जा चुके थे. गेस्टहाउस कर्मचारियों से उन्हें घटना की जानकारी हुई तो वह अवाक रह गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि फर्टिलाइजर कंपनी में करोड़ों का स्क्रैप बेचा गया था, जिसे बिना किसी लिखापढ़ी तथा कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दिए बिना उठवा दिया गया था. इसी को ले कर कंपनी में विवाद की स्थिति थी. मनोज गौर ने बताया कि इस मामले को ले कर उन्होंने कई बार सुनील जोशी से बात करने की कोशिश की, मगर वह उन का फोन ही नहीं उठाते थे और बात करने से बचते थे.

स्क्रैप बिक्री घोटाले को ले क र ही उन्होंने आज कानपुर स्थित कंपनी के गेस्टहाउस में मीटिंग रखी थी. शायद वह इस मीटिंग को फेस करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. गेस्टहाउस आए जरूर पर उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. गेस्टहाउस में ही मनोज गौर का सामना सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी से हो गया जो रिश्ते में उन की भतीजी लगती थी. गमगीन भतीजी को देख कर चेयरमैन मनोज गौर भावुक हो गए और बोले, ‘‘सुनील से गलती हो गई थी, तो मुंह छिपाने से क्या फायदा था. कंपनी के जिम्मेदार पद पर हो कर भी फोन नहीं उठा रहे थे. सामने आ कर स्थितियां स्पष्ट करते तो कोई रास्ता निकाला जाता.’’

मेनका जोशी ने अपने फूफा मनोज गौर की बात को गौर से सुना जरूर, पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. जाने वाला हमेशा के लिए जा चुका था. अब कुछ कहनेसुनने से क्या फायदा था. वह चुपचाप सुबकती रही और आंखों से आंसू बहाती रहीं. एसएसपी अनंत देव तिवारी इस हाईप्रोफाइल मामले पर पैनी नजर रखे हुए थे और बड़ी बारीकी से जांच में जुटे थे. इसी कड़ी में उन्होंने प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि घटना के समय वह अपने रूम में थे. तभी 3 कर्मचारी बदहवास हालत में उन के रूम में आए और बताया कि डायरेक्टर सुनील जोशी ने बाथरूम में खुद को गोली मार ली है. वह लहूलुहान बाथरूम में पड़े हैं. यह सुनते ही वह अवाक रह गए. फिर वह सुनील जोशी को कार से रीजेंसी अस्पताल ले गए और भरती कराया. उस के बाद थाना छावनी पुलिस तथा सुनील की पत्नी मेनका को इस घटना के बारे में सूचना दी.

अनंत देव तिवारी ने गेस्टहाउस के कर्मचारियों से पूछताछ की तो गौतम राजपूत, बुद्धराम कुशवाहा तथा जितेंद्र ने बताया कि वे तीनों रसोइया हैं. उस वक्त वे किचन में नाश्ता तैयार कर रहे थे. जब बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई तो उन लोगों ने वहां पहुंच कर देखा कि सुनील जोशी तड़प रहे थे. शायद उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. वे तीनों घबरा गए और तुरंत जा कर अनिल मोहन को जानकारी दी. फिर वही घायल सुनील जोशी को अस्पताल ले गए. कंपनी के गेस्टहाउस (घटनास्थल) में मृतक सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी, उन का साला सोनू तथा परिवार के अन्य लोग मौजूद थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब मेनका जोशी से पूछताछ की तो वह बोलीं कि उन के पति ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उन की हत्या की गई है. वह रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग करेंगी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से सुनील की पिस्टल के संबंध में पूछा तो मेनका ने बताया कि इंगलिश पिस्टल लाइसेंसी है तथा उन के पति सुनील की है. मृतक सुनील जोशी के साले सोनू का आरोप था कि जिस बाथरूम में सुनील को गोली लगी थी, वहां खून की मोटी परत जमी थी. इस से जाहिर है कि गोली लगने के बाद वह काफी देर तक फर्श पर पड़े रहे और खून निकलता रहा. उन्हें तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया.

सोनू ने यह भी आरोप लगाया कि जब गेस्टहाउस में आधा दर्जन से अधिक उच्चपदस्थ अधिकारी मौजूद थे तब गोली लगने के बाद सुनील को अस्पताल ले जाने के लिए अकेले प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ही आगे आए. बाकी अस्पताल में उन्हें देखने तक नहीं गए. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग की जाएगी. सुनील जोशी के परिवार के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि कंपनी का निदेशक मंडल अपने कारनामों को सुनील पर थोप कर बचने का प्रयास कर रहा था. किस ने गलत किया है, इस का फैसला करने के लिए ही बैठक बुलाई गई थी. अपने ऊपर लगे आरोपों से सुनील बेहद नाराज थे. मीटिंग से पहले आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर जांच की मांग करेंगे.

घटनास्थल पर जांचपड़ताल तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारी सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल पहुंचे, जहां मृतक सुनील जोशी का शव रखा था. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पाया कि सुनील ने दाईं कनपटी में पिस्टल सटा कर गोली मारी थी, जो बाईं कनपटी से पार हो गई थी. मृतक सुनील की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट थे. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सुनील के शव का पंचनामा भरवा कर तथा सीलमोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारी इस मामले पर आपस में गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुनील जोशी ने आत्महत्या ही की है. कारण उन पर करोड़ों रुपए का स्क्रैप बेचने तथा रुपयों का जमा खर्च का हिसाब न देने का आरोप कंपनी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने लगाया था. इसी की जवाबदेही के लिए कानपुर में बैठक बुलाई गई थी. सुनील गेस्टहाउस आ गए, लेकिन वह बैठक में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और खुदकुशी कर ली. फिर भी मृतक के घर वाले यदि कोई तहरीर देते हैं, तो रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जाएगी.

पुलिस जांच से इस रहस्यमयी आत्महत्या की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—कानपुर महानगर का एक पौश इलाका है स्वरूप नगर. स्वरूप नगर में ज्यादातर बंगले औद्योगिक घरानों के हैं. क्षेत्र में कई अपार्टमेंट भी हैं, जिन में संपन्न परिवार रहते हैं. स्वरूप नगर में ही रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट है. इस अपार्टमेंट के भूतल पर कानपुर फर्टिलाइजर के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मेनका जोशी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं. मेनका के पिता अनिल कुमार शर्मा कानपुर शहर के संपन्न और सम्मानित व्यक्ति थे. वह कानपुर के पूर्व मेयर रह चुके थे. मेनका के बाबा रतन लाल शर्मा भी मेयर रह चुके थे. पितापुत्र के कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.

अनिल कुमार शर्मा ने अपनी बहन की शादी जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के साथ की थी, जबकि बेटी मेनका की शादी डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी के साथ की थी. इस तरह रिश्ते में मनोज गौर मेनका के फूफा थे. कानपुर के औद्योगिक क्षेत्र पनकी में फर्टिलाइजर कंपनी की स्थापना कब और कैसे हुई, इस के लिए अतीत की ओर जाना होगा. विदेशी कंपनी आईसीआई ने पनकी में उर्वरक कारखाना लगाया था. इस का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 6 दिसंबर, 1969 को किया था. उस समय यह देश का पहला यूरिया बनाने वाला कारखाना था, जो नेप्था से चलता था.

वर्ष 1993 में विदेशी कंपनी आईसीआई ने कारखाना गोयनका गु्रप को बेच दिया. तब इस का नाम डंकन्स फर्टिलाइजर लिमिटेड किया गया. घाटे के कारण वर्ष 2002 में गोयनका ने कारखाना बंद कर दिया. इस के बाद जनवरी, 2012 में जेपी गु्रप के चेयरमैन जे.पी. गौर व मनोज गौर ने डंकन्स को खरीद लिया और नाम रखा कानपुर फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल लिमिटेड. यह उत्तर भारत का सब से बड़ा संयंत्र है. इस की उत्पादक क्षमता 2200 टन प्रति दिन है. कारखाने में 1000 कुशल श्रमिक कार्य करते है. प्लांट में ऊर्जा संरक्षण का पूरा सिस्टम लगाया गया है तथा प्लांट को गेल से सीधे प्राकृतिक गैस सप्लाई होती है.

सुनील कुमार जोशी कानपुर फर्टिलाइजर के ही डायरेक्टर नहीं थे, बल्कि 9 अन्य कंपनियों के भी डायरेक्टर थे. उन का जीवन हर तरह से खुशहाल था. उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से और डायरेक्टर जैसे पदों पर रह कर खूब दौलत कमाई. सुनील को लग्जरी कारों और आलीशान घर का बहुत शौक था. वह हर साल लग्जरी कारों पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे. उन्होंने दिल्ली और कानपुर में 2 आलीशान बंगले बनवाए थे. उन के शौक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली वाले बंगले का रेनोवेशन कराने के नाम पर ही 5 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया था.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को फिल्मों में भी दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्होंने बौलीवुड में भी निवेश किया था. उन्होंने बौलीवुड हस्तियों के मैनेजर रहे अनिदा सील के साथ मिल कर एक कंपनी बनाई, जिस में उन की पत्नी मेनका जोशी निदेशक थीं. कंपनी की पहली फिल्म में गोविंदा का लीड रोल था. लेकिन फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह गिरी. पहली ही फिल्म में हुए घाटे को ले कर उन का विवाद भी हुआ था. जिसे खत्म करने के लिए गोविंदा कई दिन कानपुर में रहे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी और जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के बीच दूरियां तब बढ़ीं, जब सुनील जोशी ने सतना के एक ठेकेदार के मार्फत कंपनी का 10 करोड़ का स्क्रैप बेच दिया. स्क्रैप बेचे जाने की जानकारी उन्होंने चेयरमैन मनोज गौर को भी नहीं दी और न ही यह बताया कि रुपया कब, कहां और कैसे खर्च किया.

कानपुर फर्टिलाइजर कंपनी में जब स्क्रैप बेचने को ले कर स्थितियां स्पष्ट हुईं तो सुनील जोशी और मनोज गौर के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कंपनी की माली हालत को ले कर चेयरमैन मनोज गौर पहले से ही तनाव में थे ऊपर से करोड़ों का स्क्रैप बिक जाने के मामले ने आग में घी का काम किया. हालात यहां तक आ गए थे कि मनोज गौर, सुनील जोशी से स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानना चाह रहे थे. मगर दोनों के बीच बात नहीं हो पा रही थी. इसी तनाव के बीच जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने फर्टिलाइजर कंपनी को बंद करने का फैसला कर लिया. दरअसल कंपनी को यूरिया खाद बनाने के एवज में सरकार से सब्सिडी मिलती है, तभी कम दाम पर किसानों तक खाद पहुंचती है.

पिछले 8 महीने से करीब 1200 करोड़ की सब्सिडी सरकार ने रोक दी थी, जिस से कंपनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और 1000 कामगारों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था. यद्यपि कंपनी में उत्पादन ठीक हो रहा था. स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानने तथा कंपनी में तालाबंदी को लेकर ही जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने 18 मार्च को बैठक बुलाई थी. चूंकि सुनील जोशी को मीटिंग में स्क्रैप बिक्री का हिसाब देना था. साथ ही वह तालाबंदी भी नहीं चाहते थे, अत: वह परेशान हो उठे. जैसेजैसे बैठक की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उन की उलझन बढ़ती जा रही थी.

18 मार्च, 2020 की सुबह सुनील जोशी जल्दी ही उठ गए. उन्होंने रात में ही निश्चय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. उलझन के चलते वह बैठक में जाने को तैयार हुए, फिर बिना खाएपिए ही अपनी कार से गेस्टहाउस के लिए निकल गए. सुबह 9:20 पर वह गेस्टहाउस के रूम में पहुंच गए. उन्होंने कर्मचारी से पानी मांगा, लेकिन पानी पिए बिना ही वह बाथरूम में चले गए. फिर उन्होंने कंपनी गु्रप पर एक मैसेज डाला, जिस में उन्होंने लिखा—

‘डियर आल, जिंदगी ने बीते 30 सालों में मुझे बहुत कुछ सिखाया. इस दौरान बहुत से उतारचढ़ाव देखे. जिंदगी में बहुत से अच्छेबुरे लोग भी आए. हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी कुछ बुरा नहीं दिखाएगी. व्यापारिक परिवेश में पैदा होने के कारण हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी ऐसे ही उतारचढ़ाव के साथ ही चलती है. पर जब हमारे पास परिवार होता है, तो जिंदगी के उतार बहुत परेशान करते है. बहुत सारे लोगों ने मुझे प्यार व इज्जत दी है. मैं ने हमेशा संतुलित जीवन जीने का प्रयास किया है. आज मेरे लिए रास्ते बंद हो चुके हैं और इस अंधेरी गुफा में मुझे कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है. मेरे पास संसाधन नहीं है कि मेरा परिवार मेरे बगैर जिंदगी गुजार सके. एक घर दिल्ली में और एक घर कानपुर में ही है.

मैं श्री मनोज गौर से निवेदन करना चाहता हूं कि वह मेरा कर्ज चुकाने में मेरे परिवार की मदद करें. इस के लिए वह दिल्ली वाला मकान बेच दें. जो पैसा बचे उसे वह एफडी करा दें, जिस से मेरा परिवार जीवनयापन कर सके. इतना सब करने के लिए 12 माह का समय लगेगा. इतने समय के लिए कंपनी के निदेशकों से निवेदन है कि अगले 15 माह के लिए मेरा वेतन मुझे मिलता रहे. मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और उन्हें अभी बहुत सारा समर्थन चाहिए. यह मेरे परिवार की गलती नहीं कि मैं जीवन में फेल हो गया. सभी को प्रेम और समर्थन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. लव यू आल. सुनील जोशी.’

इस मैसेज को भेजने के बाद सुनील जोशी ने अपनी लाइसैंसी इंग्लिश पिस्टल निकाली और दाईं कनपटी में सटा कर गोली दाग दी. गोली उन की बाईं कनपटी को पार कर बाहर निकल गई और वह फर्श पर गिर पड़े. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. जांचपड़ताल के दौरान मृतक सुनील की पत्नी मेनका, साले सोनू और परिवार के एक अन्य सदस्य ने पुलिस को दिए बयान में सुनील जोशी द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात को नकार कर उन की हत्या की आशंका जताई थी. साथ ही रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही थी. लेकिन हफ्ता 2 हफ्ता बीत जाने के बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई. अत: पुलिस इस मामले को आत्महत्या मान कर फाइल बंद करने की तैयारी पूरी कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mathura News : कर्ज चुकाने के लिए पड़ोसी के बच्‍चे को किया किडनैप, मांगे 20 लाख

Mathura News : अमित बाहर से आने वालों को वृंदावन घुमाता था. गौवर्धन की परिक्रमा कराता था, लेकिन महाराष्ट्र से आई मधु के प्यार में ऐसा पड़ा कि उस के साथ घर बसा लिया, अमित ने मधु से खुद को पैसे वाला बताया. इस का नतीजा तब सामने आया जब…

लौकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए. जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू की याद आई.

वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’

गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची. उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा  तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’

मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा. कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना. पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है. सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए.

उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन)  विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली. पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.  इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.

लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा. गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे.

सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’ कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया. गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.

परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है. यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया. पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.

सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.

पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके. पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया.

पुलिस ने 12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की. इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई. पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई  विनय निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—

अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई. इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया. इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.

कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था. उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया.  वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’

बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

कांग्रेस युवा नेत्री हिमानी मर्डर केस : हत्या के पीछे चौंकाने वाले खुलासे

Haryana Crime : कांग्रेस की युवा नेत्री हिमानी नरवाल की हत्या ने हरियाणा ही नहीं, बल्कि देशभर के लोगों को झकझोर कर रख दिया है. घटना हरियाणा के रोहतक की है, जहां 22 साल की हिमानी नरवाल की हत्या की गई फिर उस के शव को सूटकेस में भर कर फेंक दिया गया. अब शव को ले कर जांच में जुटी पुलिस ने एक आरोपी सचिन को अरैस्ट कर लिया गया है, जो हिमानी का दोस्त बताया जा रहा है और बहादुरगढ़ का रहने वाला है.

सूत्रों का कहना है कि हिमानी की हत्या उस के घर में ही की गई थी. जिस सूटकेस में हिमानी के शव को बरामद किया गया है, भी हिमानी का ही था.

आरोपी आया पुलिस गिरफ्त में

जब आरोपी को पकड़ा गया तो उस के पास से हिमानी का आईफोन मिला, इस में आरोपी ने अपना सिमकार्ड डाल रखा था. जिस के जरिए उसे दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर हरियाणा पुलिस को सौंपा था. हरियाणा के रोहतक शहर में पहली मार्च, 2025 शनिवार को पूर्वांह करीब 11 बजे सांपला बस स्टैंड पर काफी भीड़भाड़ जमा थी. उसी भीड़ में से एक शख्स की नजर सड़क के किनारे पड़े एक नीले रंग के बड़े से सूटकेस पर पड़ी. इस के बाद वहां के लोगों ने पुलिस को इस सूटकेस के बारे में सूचित किया.

इस के बाद सांपला थाने के एसएचओ बिजेंद्र सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए. जब पुलिस ने सूटकेस को खोला तो सभी के होश उड़ गए, क्योंकि उस में एक जवान लड़की की लाश थी. युवती के हाथों में मेहंदी और गले मे काले रंग की चुन्नी थी.

ऐसे हुई मृतका की शिनाख्त

युवती के शरीर पर लाल रंग का टौप और उस ने लाल रंग की पेंट पहनी थी. एसएचओ को देखने से लग रहा था कि युवती की हत्या गला घोंट कर की गई है.

बिजेंद्र सिंह ने इस कि सूचना जिले के सीनियर आधिकारियों को दे दी और जल्द से जल्द फौरेंसिंग टीम को भी बुला लिया गया. युवती की लाश की पहचान दोपहर तक नहीं हो पाई थी. युवती की पहचान न होने से पुलिस ने शव को रोहतक के जिला अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. सूटकेस में मिली युवती की लाश की सनसनी पूरे इलाके में फैल चुकी थी.

रोहतक विधायक ने की शव की पहचान

कुछ ही देर में शव की तसवीरें बड़ी तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं, जिस के कारण विधायक भारत भूषण बन्ना ने युवती की पहचान कर ली. विधायक ने बताया कि इस युवती का नाम हिमानी नरवाल है और यह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता थी. युवती पार्टी के हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी और कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल भी हुई थी. हिमानी की कई तसवीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल हैं.

अब विधायक बी.बी. बत्रा ने मांग कि है कि हिमानी नरवाल की हत्याकांड की जांच एसआईटी के द्वारा की जाए. विधायक ने यह भी कहा कि हरियाणा की कानून व्यवस्था खराब हो गई है. अपराधियों में अब पुलिस का डर नहीं रहा है और ऐसे ही हरियाणा में कई वारदात हो रहे हैं.

मृतका की मम्मी ने लगाया पुलिस पर आरोप

इसी बीच हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी इस घटना को ले कर हैरानी जताई और कहा कि इस हत्याकांड की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए और पीड़िता के घर वालों को न्याय दिलाया जाएगा. बताया गया है कि हिमानी नरवाल के पिता ने कुछ साल पहले आत्महत्या की थी. उस के एक भाई की भी हत्या कर दी गई थी.

पुलिस ने हिमानी नरवाल की हत्या के आरोप में गिफ्तार किए सचिन से पूछताछ की तो उसने बताया कि ब्लैकमेलिंग से तंग आकर उसे हिमानी की हत्या करने को मजबूर होना पड़ा. उधर हिमानी की मम्मी सविता नरवाल सचिन के ब्लैकमेलिंग के आरोप को झूठा बताया है. उन्होंने पुलिस की जांच पर उंगली उठाते हुए कहा कि उन की बेटी की हत्या में एक से अधिक लोग शामिल हो सकते हैं.

बहरहाल, पुलिस ने आरोपी सचिन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

Maharashtra Crime : खाने में जहर खिलाकर पति को मार डाला

Maharashtra Crime : जब महिलाएं पति की व्यस्तता या किसी मजबूरी की वजह से अन्य पुरुष से संबंध बनाती हैं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती है कि यह उन की बरबादी की शुरुआत है. सेना के जवान संजय की पत्नी शीतल ने भी यही किया. नतीजा यह निकला कि उस का पति संजय…

38 वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे. संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया. 28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया. जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी. आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था. 8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया.

पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था. भटकने लगा शीतल का मन हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती. एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं.

यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ. संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था. उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा. योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे. योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया. दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली,

लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है. बनने लगी बरबादी की भूमिका साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया. बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी. मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया. 8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके.

सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है. एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया. संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए. आखिर सच आ ही गया सामने शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी. रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी. अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया,

जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके. शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया. उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

 

Agra News : पत्‍नी ने खिलाई नींद की गोली, प्रेमी ने हंसिए से रेता गला

Agra News : गत वर्ष नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि बच्चों और किशोरों के साथ यौन संबंध बनाने वाले निकट संबंधी होते हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं था कि मायके से बने यौन संबंध जब ससुराल तक जाते हैं तो क्या होता है. विक्रम की जान ऐसे ही…

जिला आगरा की तहसील एत्मादपुर के थाना बरहन के क्षेत्र में एक गांव है खांडा. यहां के निवासी सुरेंद्र सिंह का 27 वर्षीय बेटा विक्रम सिंह उर्फ नितिन नोएडा के सेक्टर-6 में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर आपरेटर था. उस की शादी नवंबर 2015 में अछनेरा थानांतर्गत कुकथला निवासी किशनवीर सिंह की बेटी रानी उर्फ रवीना के साथ हुई थी. दोनों का 2 साल का एक बेटा है. विक्रम नोएडा में अपने मातापिता, भाई अमित, बीवी व बच्चे के साथ रहता था. कोरोना वायरस फैलने और लौकडाउन की घोषणा के बाद 27 मार्च, 2020 को विक्रम परिवार सहित अपने गांव खांडा आ गया था. इस के लिए विक्रम को 50 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा था. उस के पिता सुरेंद्र सिंह नोएडा में ही रह गए थे.

विक्रम को घर आए 5 दिन हो गए थे. 31 मार्च की रात विक्रम अपनी बीवी रानी के साथ कमरे में सोने चला गया. जबकि उस की मां कृपा देवी मकान की छत पर सोने चली गई. छोटा भाई अमित गांव में ही रहने वाली मौसी के यहां सो रहा था. रात डेढ़ बजे रानी अचानक कमरे से चीखती हुई बाहर निकली और छत पर बने कमरे में सो रही सास को जगा कर बताया कि विक्रम ने आत्महत्या कर ली है. यह सुनते ही कृपा देवी बदहवास सी नीचे उतर कर कमरे में पहुंचीं. कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए. बिस्तर पर विक्रम खून से लथपथ पड़ा था. उस की गरदन से खून निकल रहा था. जिस से तकिया व चादर खून से रंग गए थे.

घटना की जानकारी मिलते ही मृतक का चचेरा भाई राजेश सिकरवार घटनास्थल पर पहुंच गया. विक्रम की मौत की जानकारी होते ही परिवार की महिलाओं में कोहराम मच गया. राजेश ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थाना बरहन के थानाप्रभारी महेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाए वारदात पर पहुंच गए. तब तक सुबह हो चुकी थी. हत्या की जानकारी होते ही आसपड़ोस के लोग एकत्र हो गए थे. पूछताछ में मां कृपा देवी ने बताया, ‘‘रात सभी ने हंसीखुशी खाना खाया था. उस समय विक्रम के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं दिख रहा था. न ही उस ने किसी बात का जिक्र किया था. उस ने अचानक आत्महत्या क्यों कर ली, समझ से परे है.’’

सूचना मिलते ही सीओ (एत्मादपुर) अतुल सोनकर भी पहुंच गए. फोरैंसिक टीम भी बुला ली गई थी. मृतक की बीवी रानी से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि खाना खाने के बाद हम लोग कमरे में सो गए. रात में पति से झगड़ा हुआ था, हो सकता है उन्होंने गुस्से में गला काट कर आत्महत्या कर ली हो. मुझे तो आंखें खुलने पर घटना के बारे में पता चला, तभी मैं ने शोर मचाया और सास को छत पर जा कर जगाया. विक्रम ने बंद कमरे में आत्महत्या कैसे की? यह रानी नहीं बता सकी. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक का गला रेता हुआ था. लेकिन कमरे में कोई चाकू या धारदार हथियार नहीं मिला था.

रानी की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि बिस्तर पर आत्महत्या करते समय रानी भी सो रही थी लेकिन उसे आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं हुई. ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटना की जानकारी मिलने पर मृतक के पिता भी नोएडा से आ गए. उन्होंने अपनी बहू रानी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस के प्रेम संबंध उस के फुफेरे भाई प्रताप सिंह उर्फ अनिकेत से हैं, जो खांडा का रहने वाला है. सुरेंद्र सिंह ने पहली अप्रैल को पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में भी विक्रम की हत्या का आरोप रानी अनिकेत पर लगाया. इस पर पुलिस रानी को पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गई.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि विक्रम की पत्नी रानी हर महीने बीमारी का बहाना बना कर इलाज के नाम पर विक्रम से दवाइयों का 28,000 रुपए तक का बिल लेती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए 10 हजार रुपए में अपनी सोने की चेन भी गिरवी रख दी थी. पुलिस ने थाने में रानी से घटना के बारे में गहराई से पूछताछ की, ‘‘जब विक्रम ने चाकू से अपना गला अपने आप काट कर आत्महत्या की है तो चाकू भी वहीं होना चाहिए था.’’ इस पर रानी ने चुप्पी साध ली. पुलिस ने यह भी पूछा, ‘‘अगर विक्रम की हत्या किसी बाहरी व्यक्ति ने की तो कमरे का दरवाजा किस ने खोला? और वह आदमी कौन था?’’

इन सवालों के भी रानी के पास कोई जवाब नहीं थे. उस की चुप्पी सच्चाई बयां कर रही थी. पहले दिन तो रानी पुलिस को गुमराह करती रही, लेकिन दूसरे दिन यानी 2 अप्रैल, 2020 को पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी फुफेरे भाई प्रताप जो गांव में ही रहता है के साथ मिल कर रात में विक्रम की हत्या कर दी थी. पुलिस पूछताछ में विक्रम की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

रानी की शादी उस के बुआ के बेटे प्रताप ने अपने ही गांव खांडा निवासी विक्रम सिंह से कराई थी. बहन के घर प्रताप का आनाजाना था. दोनों के बीच 2 साल से नजदीकियां बढ़ गई थीं. धीरेधीरे दोनों का प्रेमसंबंध नाजायज संबंधों में बदल गया. बीवी की हरकतें देख कर विक्रम को उस पर शक हो गया था. यह बात रानी ने प्रताप को बताई. इस पर उस ने रानी के घर आना बंद कर दिया था. रानी जब मायके जाती तो प्रताप वहां पहुंच जाता था. वहां दोनों किसी तरह मिल कर अपने दिल की प्यास बुझा लेते थे. जब रानी गांव में रहती थी, तो पति से रुपए मंगा कर अपने प्रेमी के ऊपर खर्च करती थी. इस की जानकारी होने पर विक्रम ने बीवी के मायके जाने पर रोक लगा दी थी. उस ने रानी को समझाया भी, लेकिन रानी पर पति की बातों का कोई असर नहीं हुआ. इस पर विक्रम रानी को नोएडा में अपने साथ रखने लगा था.

लौकडाउन होने पर विक्रम परिवार सहित 5 दिन पहले गांव आया था. गांव आने पर रानी को पता चला कि प्रताप की शादी तय हो गई है. 25 अप्रैल को उस की बारात जानी थी. रानी को यह बात नागवार गुजरी. वह चाहती थी कि प्रताप शादी न करे. वह उस के बिना नहीं रह सकती. वह प्रताप से मिलना चाहती थी. जबकि विक्रम उसे घर से बाहर नहीं जाने दे रहा था. इस पर उस ने मोबाइल पर प्रताप से बात की. इस बातचीत के दौरान मिल कर विक्रम की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक रानी ने 31 मार्च की रात आलू की सब्जी में नींद की 8 गोलियां मिला कर विक्रम को खिला दीं. गोलियां प्रताप ने ला कर दी थीं.

रात करीब एक बजे विक्रम की तबियत खराब हुई. उस ने रानी से कहा कि उसे बैचेनी हो रही है. इस पर रानी ने पति को अंगूर खिलाए. फिर जैसे ही वह सोया, रानी ने मैसेज कर के प्रताप को बुला लिया. प्रताप और रानी ने उस का गला दबा दिया. वह जिंदा न बच जाए. इस के लिए हंसिए से उस का गला भी रेत दिया. हत्या के बाद प्रताप हंसिया ले कर फरार हो गया. रानी और प्रताप की साजिश थी कि विक्रम की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे देंगे. अगर विक्रम की मां रात में चिल्लाचिल्ला कर भीड़ जमा न करती तो वे ऐसा प्रयास भी करते. लेकिन हड़बड़ाहट में रानी मौके से खून नहीं साफ  कर सकी थी.

रानी को पुलिस ने 3 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस हत्यारोपी प्रताप की तलाश में जुट गई. 3 अप्रैल को ही पुलिस ने प्रताप को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया भी बरामद कर लिया.  रानी ने रिश्तों को कलंकित कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Jharkhand News : रात को शादी से लौट रहीं लड़कियों के साथ घटी ऐसी घटना कि लोगों के रौंगटे खड़े हो गए

Jharkhand News : एक सनसनीखेज वारदात ने लोगों का दिल दहला दिया है. घटना एक शादी से लौट रहीं लङकियों के साथ घटी जिस में 18 लड़कों ने 3 लड़कियों को अगवा कर गैंगरेप किया है. इस सनसनीखेज वारदात ने सभी को झकझोर कर रख दिया है.

घटना झारखंड के खूंटी जिले की है, जिस में पहले 5 नाबालिग लड़कियों को अगवा कर लिया गया. इस के बाद इन 5 लड़कियों में से 3 लड़कियों के साथ 18 लड़कों ने गैंगरेप किया. लेकिन जो 2 लड़कियां थीं वे आरोपियों से बच कर भाग निकलने में कामयाब हो गईं और गांव में अपने साथ होने वाली इस खौफनाक वारदात के बारे में लोगों को उन्होंने जानकारी दी.

गुस्से में लोग

इस के बाद गांव के सभी लोग पुलिस थाने पहुंच गए और पुलिस ने केस दर्ज कर सभी आरोपियों को अरेस्ट कर लिया है।

खूंटी जिले के एसपी अमन कुमार ने कहा है कि यह घटना शुक्रवार देर रात की है, जिस में 5 लड़कियां रनियां इलाके में एक शादी समारोह में शामिल हुई थीं. जब ये शादी समारोह से वापस लौट रही थीं तो कुछ लड़के उन का पीछा करने लगे. जब आरोपी उन्हें अगवा कर एक सुनसान पहाड़ी पर ले जाने लगे तो उसी दौरान 2 लड़कियां उन आरोपियों के चंगुल से बच कर भाग गईं और गांव पहुंच कर उन्होंने यह जानकारी गांव वालों को दे दी.

जघन्य अपराध

आरोप है कि सभी 18 लड़कों ने उन 3 लड़कियों के साथ सामूहिक रेप कर उन्हें जंगल में छोड़ दिया. उधर सूचना मिलते ही गांव वाले घटनास्थल पर पहुंच गए.

आरोपी तो फरार हो चुके थे, जंगल में पीड़ित 3 लड़कियां मिलीं, जिन्हें गांव वाले अपने साथ ले आए. उन की उम्र 12 से 16 वर्ष है. आरोपी लड़कों की उम्र 12 से 17 साल की बताई गई है. पीड़ित लड़कियों के परिजन उन्हें स्थानीय थाने ले कर गए और मामला दर्द कराया।

एसपी अमन कुमार का कहना है कि पीड़ित लड़कियों की तहरीर के आधार पर आरोपियों के खिलाफ आईपीसी धारा और पौक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है और सभी आरोपियों को अरेस्ट कर के किशोरगृह भेज दिया गया है. इस घटना से आसपास के लोग आक्रोशित हैं और इन सभी आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी काररवाई की मांग कर रहे हैं।