पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 2

दोनों कारें जिस तेजी से आई थीं, उसी तेजी से वहां से चलीं तो तकरीबन 15 मिनट बाद वे नजदीक के थाना सदर बाजार आ कर रुकीं. कार में सवार सभी लोग नीचे उतरे और उस युवक को नीचे उतार कर हवालात में डाल दिया. थाने में उस युवक के बैग और पर्स की तलाशी ली गई तो उस में से भारतीय सेना के गोपनीय दस्तावेज, राष्ट्रीय महत्व की कई गुप्त सूचनाएं, पहचान पत्र, बरेली व बिहार के पतों के वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, दिल्ली मैट्रो का ट्रैवलर कार्ड, भारत समेत 3 देशों की करेंसी, एटीएम कार्ड, 16 जीबी के पैनड्राइव और सिमकार्ड आदि चीजें मिलीं.

पुलिस ने उस के खिलाफ 3/9 औफिशियल सीक्रेट एक्ट, 14 विदेशी एक्ट व आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 380, 420, 411 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दरअसल, जिस युवक को पकड़ कर पुलिस लाई थी, वह कोई और नहीं, आसमा का शौहर मोहम्मद कलाम था. उसे पकडऩे वाली थाने की पुलिस नहीं, स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एसपी शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव और सीओ अमित कुमार के नेतृत्व वाली टीम थी. कलाम कई महीने से एसटीएफ और खुफियां एजेंसियों के टौप सीक्रेट मिशन के टौप टारगेट पर था.

उस का नाम मोहम्मद कलाम नहीं, मोहम्मद एजाज था. वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सॢवसेज इंटेलीजैंस (आईएसआई) का उत्तर प्रदेश में अब तक का सब से बड़ा एजेंट था और बड़ी होशियारी से अपने मिशन को अंजाम दे रहा था. बेहद शातिराना अंदाज वाला एजाज मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था. पहचान बदल कर उस ने हिंदुस्तान में ऐसी कामयाब पैठ बनाई थी कि आसमा से निकाह तक कर लिया था. अपने मिशन के लिए वह पूरी तरह प्रशिक्षित था. 3 भाषाओं पर उस की अच्छी पकड़ थी और हाईटैक टैक्नोलौजी के जरिए अपने आकाओं से बराबर संपर्क में रहता था. उस के मंसूबे बेहद खतरनाक थे.

औपचारिक पूछताछ के बाद एजाज के मंसूबों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए एसटीएफ की एक टीम उसे ले कर बरेली उस के घर पहुंची और छापा मार कर उस के घर की तलाशी ले कर कंप्यूटर, डाटा कार्ड, कई वीडियो कैसेट, हिंदी उर्दू की कुछ किताबें और कुछ जरूरी कागजात बरामद किए.

आसमा को जब पता चला कि उस का शौहर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट है तो उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ. उस के रिश्ते का आईना चटक कर बिखर गया. आसपड़ोस के लोग भी हैरान थे कि जो शख्स उन के बीच नेकियां दिखा कर सादगी से रह रहा था, वह देश का दुश्मन था.

आईएसआई एजेंट की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी. सन 2012 के बाद पहली बार कोई पाकिस्तान एजेंट पकड़ा गया था. यह खबर सुॢखयां बनने के बाद खुफिया एजेंसियों तक पहुंच गईं. एजाज से पूछताछ की गई तो उस ने हर सवाल का नपातुला जवाब दिया, जैसे वह ऐसे हालातों के लिए भी तैयार था.

उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश किया जाना जरूरी था, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उसे स्पैशल जज संजय सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

एजाज से विस्तृत पूछताछ की जानी जरूरी थी, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उस के रिमांड की अरजी दाखिल की तो अदालत ने उसे 7 दिनों के रिमांड पर दे दिया. पुलिस एजाज को थाने ले आई, जहां पूछताछ के लिए एक टीम का गठन पहले ही कर लिया गया था. इस टीम में इंटेलीजैंस ब्यूरो के स्थानीय एडिशनल डायरेक्टर एस.के. सिंह , एसपी स्वप्निल ममगई, सीओ वीर कुमार, आर्मी इंटेलीजैंस के मेजर मोती कुमार, थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी गजेंद्रपाल सिंह व सबइंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को शामिल किया गया था.

इस के अलावा एसटीएफ, स्थानीय पुलिस, राज्य व केंद्रीय इंटेलीजैंस ब्यूरो, आर्मी इंटेलीजैंस, मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, सीओ (अभिसूचना) वी.के. शर्मा, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच व उत्तराखंड इंटेलीजैंस ने भी एजाज से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में एजाज ने तमाम चौंकाने वाले राज उगले. एजाज की जड़ें बहुत गहरी थीं. वह 3 सालों के कौंट्रैक्ट पर भारत आया आईएसआई का बेहद खास मोहरा था.

अपने मिशन के जुनून में उस ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस के निशाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, एनसीआर के जिले और उत्तराखंड था. मिशन की कामयाबी के लिए वह आसमा जैसी भोलीभाली युवती की जिंदगी से भी खेल गया था. इस बीच उस ने एक और युवती को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस के आईएसआई का एजेंट बनने से ले कर भारत आने और पहचान बदल कर रहने तक का हर पहलू चौंकाने वाला था.

मोहम्मद एजाज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद शहर के तारामंडी चौक निवासी मोहम्मद इशहाक का बेटा था. आॢथक रूप से समृद्ध इशहाक एग्रीकल्चरल रिसर्च सैंटर में नौकरी करते थे. हालांकि सन 2004 में उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 5 बेटे अशफाक, मुश्तियाक, फहद, एजाज, इश्तियाक तथा 3 बेटियां शबनम, शहजाद और शाजिदा थीं.

एजाज के सभी भाई वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी व प्रोसैङ्क्षसग का काम करते थे. हाईस्कूल पास एजाज भी इसी काम में लग गया था. पंजाबी और उर्दू भाषा उसे आती थी. इशहाक के परिवार के संपर्क कई नामी हस्तियों से थे. उस के भाई सरकार के लिए भी फोटोग्राफी करते थे, शायद इसी वजह से उन के संबंध बड़े लोगों से थे. देखने में सीधासादा दिखने वाला एजाज तेजतर्रार युवक था.

पाकिस्तान में एक दर्जन से भी ज्यादा आतंकी व कट्टर संगठन आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं. ऐसे संगठनों को उसी के जरिए देशीविदेशी आॢथक मदद मिलती है. इन संगठनों का काम किसी न किसी तरीके से भारत में अराजकता और ज्यादा से ज्यादा तबाही फैलाना होता है. सैन्य छावनियां उस के निशाने पर होती हैं.

आईएसआई का आतंकी संगठनों के क्रियाकलापों और उन के प्रशिक्षण केंद्रों तक में सीधा दखल होता है. उस के अपने प्रशिक्षक भी वहां होते हैं. आतंकियों के अलावा वह अपने जासूस भी तैयार करती है, जिन्हें मोहरा बना कर आईएसआई अपने मकसद पूरा करती है. इस के पीछे उस की सोच बदनामी से बचना होता है. सीधेसादे लोगों की उन्हें कभी धर्म के नाम पर तो कभी पैसे का लालच दे कर बरगलाया जाता है. झूठे वीडियो दिखाए जाते हैं कि भारत में मुसलमानों पर किस तरह अत्याचार हो रहा है. नई उम्र के लडक़ों को तरजीह दे कर उन्हें बहलाफुसला कर प्रशिक्षण केंद्रों तक लाया जाता है. भटके युवाओं के लिए उन के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.

सन 2012 में एजाज की जानपहचान आईएसआई के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्हें वह काम का युवक लगा तो उन्होंने उसे अपने साथ शामिल कर के एक साल तक गहन प्रशिक्षण दिया. यह प्रशिक्षण उस ने एसपी सलीम की देखरेख में लिया. उसे जासूसी के गुर सिखाए गए, भारत के रहनसहन के बारे में बताया गया.

यही नहीं, भारत की सैन्य गतिविधियों की जानकारी बारीकी से दी गई. उसे समझाया गया कि सेना में बिग्रेड, यूनिट व कमांड में क्या फर्क है. औपरेशन ङ्क्षवग कौन सी होती है, आर्मी औफिसर के रैंक और स्टार के बारे में बताया गया. आर्मी यूनिट के अफसरों के पदों के बारे में भी समझाया गया, ताकि वह अफसर का बैच देख कर उस के पद को जान सके.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 1

बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.

सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”

“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.

“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”

इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”

“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”

“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”

“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”

“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”

“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”

“मैं मेहनत के जरिए तुम्हें खुशियां दे कर एक अच्छा शौहर बनने की कोशिश कर रहा हूं.”

“लेकिन हम तो खुश हैं. ऐसे वक्त पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है कलाम. मैं चाहती हूं कि नए मेहमान के आने तक तुम कहीं भी आनाजाना बंद कर दो.” आसमा ने कलाम का हाथ थाम कर कहा.

“ठीक है, मैं 2 दिन बाद लौट कर आऊंगा तो फिर कहीं नहीं जाऊंगा.” कलाम ने कहा और वहां से उठ कर कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा.

आसमा और कलाम उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दीवानखाना चौराहे के पास मोहल्ला शाहबाद में वसीम उल्लाह के एक पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर किराए पर रहते थे. उन की ङ्क्षजदगी बेहद साधारण थी. आसमा दिल की अच्छी थी और कलाम आसपड़ोस में सभी से घुलमिल कर रहता था. दिखावे की जिंदगी से उसे परहेज था. उस की आदतों और व्यवहार की लोग तारीफें किया करते थे.

कलाम शादियों की वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करता था. फोटोग्राफी उस का शौक था और पेशा भी. कलाम बिहार का रहने वाला था. एक साल पहले उस की मुलाकात बिहार के ही आरा जनपद के गांव अजीमाबाद की रहने वाली आसमा से हुई तो दोनों आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिलों में उतर गए.

आसमा का परिवार बेहद साधारण था. कलाम ने आसमा के साथ दुनिया बसाने की उम्मीदों में निकाह की पेशकस की तो आसमा के पिता शमशेर मना नहीं कर सके. कलाम अच्छा लडक़ा था. कलाम ने बताया था कि उस के परिवार में कोई नहीं है, वह दुनिया में अकेला है. दोनों की रजामंदी के बाद अक्तूबर, 2014 में उन का निकाह कर दिया गया था.

निकाह के बाद कलाम घरजंवाई बन कर 2 महीने शमशेर के घर रहा. इस के बाद वह आसमा को ले कर बरेली आ गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. घर चलाने के लिए उस ने वीडियोग्राफी करने वालों के साथ वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम शुरू कर दिया.

मुलाकात के दौरान कम वक्त में ही किसी को अपना बना लेने का हुनर कलाम को अच्छी तरह आता था. वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाता था. कलाम लोगों की मदद भी कर दिया करता था. यही वजह थी कि हर कोई उस की नेकियों का कायल था. काम का सिलसिला बता कर कलाम अकसर बाहर आताजाता रहता था. 26 नवंबर, 2015 को भी कलाम आसमा से मेरठ जाने की बात कह कर घर से निकला था.

उम्मीदें और विश्वास करना हर इंसान की फितरत है, लेकिन आने वाले कल में यह अंदाजा किसी को नहीं होता कि उस की उम्मीदें पूरी होंगी और विश्वास का वजूद कायम रहेगा. वक्त और हालात कब करवट ले ले, इस बात कोई नहीं जानता. कलाम आसमा का शौहर था. उस के निकाह को भी एक साल बीत चुका था. खुशियां उस की धडक़नों में बिखरी हुई थीं, लेकिन वह अपने शौहर की बहुत सी हकीकतों से वाकिफ नहीं थी.

आसमा नहीं जानती थी कि वक्त के साथ उस की जिंदगी का नाजुक रिश्ता आंखों को आंसुओं से तर कर के तपते रेगिस्तान की गरम रेत पर पड़ कर दिल पर भी छाले देने वाला है. ऐसे छाले जिन का कोई मरहम नहीं होगा, वह दर्द की एक अनचाही सौगात दे जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद का कैंट रेलवे स्टेशन आर्मी एरिया से एकदम सटा है. वहां पहुंचने के सभी रास्ते इसी एरिया से गुजरते हैं. चौबीसों घंटे लोगों की आवाजाही का सिलसिला जारी रहता है. 27 नवंबर की दोपहर तकरीबन 3 बजे का वक्त था. सफेद रंग की 2 कारें तेजी से स्टेशन के एकदम सामने आ कर रुकीं. दोनों कारों में बैठे लोग बिजली की सी फुरती से उतरे. उन में से कुछ लोगों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे.

हथियारबंद लोग तो टिकट काउंटर के आसपास ही रुक गए, जबकि बगैर हथियार वाले 5 लोग गलियारे को पार करते हुए प्लेटफौर्म पर पहुंच गए. वहां तमाम लोग मौजूद थे और काफी चहलपहल थी. उन लोगों ने अपनी नजरों को खास अंदाज में चारों ओर इस तरह दौड़ाया, जैसे उन्हें किसी की तलाश हो. तभी उन में से एक अपने साथियों से मुखातिब हुआ, “हमारा मकसद पूरा होगा क्या?”

“बिलकुल सर, आज हमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.” उन में से एक ने आत्मविश्वास भरे लहजे में बोला.

“ठीक है.” उसी दौरान उन सभी की नजरें प्लेटफौर्म पर बने एक टी स्टाल की ओट ले कर बेफिक्री भरे अंदाज में खड़े एक युवक पर जा कर ठहर गईं. वह स्मार्ट सा नौजवान था. उस ने ब्लैक कलर का ट्राउजर और उसी से मिलतीजुलती हाईनेक वुलन जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक लैपटौप वाला बैग झूल रहा था. उसे देख कर आने वाले सभी लोगों ने एकदूसरे से थोड़ा दूरियां बनाईं और फिर आहिस्ताआहिस्ता चल कर उस के इर्दगिर्द फैल गए. युवक की नजरें उन से चार हुईं, लेकिन उस ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया और जेब से मोबाइल निकाल कर उस के कीपैड पर अंगुलियां चलाने लगा.

उन लोगों के हावभाव देख कर शायद उस युवक को अहसास हो गया कि वे उसी की तरफ आ रहे हैं. वे जैसे ही उस के नजदीक पहुंचे, वह युवक आगे बढ़ा. लेकिन तभी उन लोगों में से एक शख्स बोला, “रुकिए मिस्टर.”

“जी फरमाइए.” उस ने पलट कर बेपरवाही से कहा.

“तुम्हें तो दिल्ली जाना है?”

“जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं. क्या आप मुझे जानते हैं?”

“हम तो तुम्हारे साए से भी वाकिफ हैं मियां. लेकिन दुख इस बात का है कि आप से पहले मिल नहीं सके.” एक दूसरे शख्स ने आगे आ कर उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा तो वह युवक असमंजस में पड़ गया.

वैसे तो वे सभी बेहद चालाकी से उस के नजदीक आए थे, लेकिन वह उन से तेज निकला. पलक झपकते ही हिरन सी तेजी से उस ने छलांग लगा दी. बाजी पलट सकती है, शायद यह बात आने वालों को पहले से पता थी. इसलिए वे सब भी होशियार थे. उन में से एक ने चंद कदम दौड़ कर फुरती से उसे पकड़ लिया. पकड़ मजबूत थी, इसलिए कोशिश के बावजूद वह युवक हिल नहीं सका. युवक अपनी बेबसी पर छटपटा कर रह गया. तुरंत उस की तलाशी ली गई. उस का बैग, पर्स व मोबाइल उन लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया.

“कोई वैपन तो नहीं है?” किसी ने पूछा तो तलाशी लेने वाले ने कहा, “नहीं सर.”

आननफानन में वे उसे खींच कर स्टेशन के बाहर लाए और फुरती से कार में धकेल कर खुद भी कार में बैठे और जिस तरह तेजी से आए थे, उसी तरह चले गए. यह सब फिल्मी अंदाज में हुआ था. लोगों की भीड़ भी जमा हो गई थी, लेकिन उन लोगों के हथियार देख कर कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था.

यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 3

पुलिस की सूचना पर रोक्सेन भी वहां पहुंच गई थी. बेटी की लाश देख कर उस का कलेजा फटा जा रहा था. आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. वह उस पल को कोस रही थी, जब उस ने वाकर पर विश्वास किया था. उस ने उस के साथ विश्वासघात ही नहीं किया, उस की जिंदगी वीरान कर दी थी. पुलिस ने वाकर की लाश को नीचे उतारा. उस के कपड़ों की तलाशी ली गई, तो पैंट की जेब से एक कागज निकला.

उसे खोला गया, तो वह सुसाइड नोट था. वाकर ने उस में लिखा था, ‘‘मैं इंसान नहीं, जानवर से भी गया गुजरा हूं. मैं ने रोक्सेन से प्यार किया. मेरा प्यार सच्चा था. उस ने भी मुझ पर भरोसा किया और मुझे अपना सब कुछ मान लिया. उस ने मुझे दिल से पति माना, तो मैं ने भी उसे पत्नी माना.

‘‘उस के बच्चों को अपना बच्चा मान लिया. मैं ने पूरी कोशिश की कि रोक्सेन को दिया वादा निभाऊं और स्टेसी एवं रौबर्ट का पिता बनूं. लेकिन मैं अपना वादा निभा नहीं पाया. मैं ने जो किया, उस से रोक्सेन को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. इसलिए अपने गुनाह की सजा मैं ने खुद चुन ली.

‘‘स्टेसी को मैं बेटी की तरह प्यार करता था. मगर उस के शरीर में आए बदलावों से मेरी नीयत खराब हो गई. मैं उसे बेटी नहीं, औरत समझने लगा. मैं एकांत में उस से छेड़छाड़ करने लगा. जिस का वह कोई विरोध नहीं करती थी. शायद वह उसे पिता का स्नेह समझती थी. रोक्सेन ने मेरी हरकत देख ली और मेरी नीयत को समझ गई. उस ने मुझे टोका, तो एक बार फिर मैं ने वादा किया कि कभी कोई गलत काम नहीं करूंगा.

‘‘लेकिन मैं अपने आप को रोक नहीं सका. कल स्टेसी ने लौरी पर चलने की जिद की, तो मैं खुश हो गया. मैं ने ठान लिया कि हर कीमत पर आज अपनी चाहत पूरी कर लूंगा. मैं ने जल्दीजल्दी माल सप्लाई किया और लौरी को जंगल में ले गया. तब तक अंधेरा हो चुका था. मैं ने रोक्सेन को फोन किया कि हम लौट नहीं पाएंगे. स्टेसी से मैं ने कहा कि सुबह उसे एक नई जगह ले चलूंगा और उस की पसंद के कपड़े खरीद कर दूंगा.

‘‘मेरी नीयत से बेखबर स्टेसी बेहद खुश थी. खाना मैं साथ में पैक करवा कर लाया था. अपने लिए शराब की बोतल भी खरीद ली थी. मैं शराब पीने बैठ गया. स्टेसी लौरी में टीवी देख रही थी. मुझे नशा चढ़ा, तो मेरी आंखों के सामने स्टेसी का जिस्म घूमने लगा. मैं खुद पर नियंत्रण खो बैठा और जो नहीं करना चाहिए था, वह कर डाला. मेरे वहशीपन से स्टेसी बेहोश हो गई थी.

‘‘स्टेसी मुझ से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ा रही थी. उस समय मैं शैतान बन गया था. मनमानी करने के बाद नशा कम हुआ, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं ने बहुत बड़ा गुनाह कर डाला है. अगर स्टेसी जिंदा रही, तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. जेल जाने के डर से मैं ने एक गुनाह और कर डाला. उसे गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद रोक्सेन को दिए वादे की याद आई. अब मुझे अपने गुनाह पर पछतावा होने लगा. तब मैं ने सोचा कि रोक्सेन मेरे मुंह पर नफरत से थूक कर मुझे जेल भिजवाए, उस से पहले ही मैं खुद को क्यों न खत्म कर दूं. मेरी मौत का जिम्मेदार मेरे अंदर का शैतान है. मुझे दुख है कि मैं ने एक पल के सुख के लिए अपने प्यार और अपनी बेटी को खो दिया. रोक्सेन, हो सके तो मेरी लाश पर थूक देना. मैं इसी के काबिल हूं- वाकर.’’

रोक्सेन ने वाकर की लाश पर थूका तो नहीं, लेकिन उसे नफरत से देखते हुए चीखी, ‘‘मैं ने तुम पर भरोसा कर के अपना सब कुछ सौंप दिया था. मैं तुम्हें अपना चार्मिंग प्रिंस समझती थी, लेकिन तुमने…? तुम मुझे इतना प्यार करते थे, मेरे बच्चों का इतना खयाल रखते थे. तुम ऐसा भी कर सकते थे, विश्वास नहीं होता. तुम गंदे आदमी निकले. अच्छा किया जो आत्महत्या कर ली, वरना मैं तुम्हारी हत्या करने से न हिचकती.’’

पुलिस ने 5 जून, 2013 को पूरा प्रकरण कोर्ट में पेश किया, जहां से इस केस की फाइल बंद कर देने का हुक्म दिया गया. आखिर सजा किसे दी जाती, दुष्कर्मी ने खुद ही मौत को गले लगा लिया था.  उस समय कोर्ट में रोक्सेन भी मौजूद थी. उसे तसल्ली देने के लिए उस का पूर्व पति कोरोनट और बेटी एमा हेमंड भी आई थी. दोनों उस समय भी उस के साथ थे, जब पोस्टमार्टम के बाद स्टेसी की लाश को कब्र में दफन किया जा रहा था.

फूल के साथ रोक्सेन के आंसू भी स्टेसी की कब्र पर पड़े थे, जो कह रहे थे कि कहीं न कहीं इस में वह खुद भी गुनहगार है, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अगर वह वाकर से प्यार न करती, तो आज उस की बेटी की यह हालत न होती. लेकिन अब उस के पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं था. सच है, बीता वक्त कभी वापस नहीं आता.

रोक्सेन ने वाकर पर आंखें मूंद कर विश्वास किया, यह उस की सब से बड़ी भूल थी. ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जिन में प्रेमी या सौतेले पिता अपनी प्रेमिका या दूसरी पत्नी के बच्चों, खास कर बेटियों को दिल से अपना बेटा या बेटी मानते हैं.

बात अगर शादीशुदा महिलाओं के वाचाल किस्म के प्रेमियों की करें, तो उन की निगाह प्रेमिका की जवान हो रही बेटी पर जाते देर नहीं लगती. स्टेसी के साथ भी यही हुआ.

बात प्रेमी या दूसरे पति की ही नहीं, बल्कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले 80 प्रतिशत लोग रिश्तेदार या करीबी लोग ही होते हैं. ऐसे लोगों से सतर्क रहना जरूरी है. खासकर जब रिश्ते स्वार्थों पर टिके हों.

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 3

पुलिस ने प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को उसी समय हिरासत में ले लिया. रामसूरत लाख सफाई देता रहा कि उस का इस मामले से कोई संबंध नहीं है, पर पुलिस ने उस की एक न सुनी. हां, पुलिस ने उसे इतना भरोसा जरूर दिया कि अगर वह निर्दोष पाया गया तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यह बात 27 नवंबर, 2015 सुबह 3 बजे की है.

एसीपी जसबीर ङ्क्षसह ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार करने व कैश बरामद होने की जानकारी डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा, जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया सहित कई अन्य अधिकारी भी ओखला के उस गोदाम पर पहुंच गए. सभी संदूकों को जब्त करने के बाद पुलिस प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को थाने ले आई.

पुलिस यही अनुमान लगा रही थी कि इतनी बड़ी रकम को लूटने में जरूर किसी बड़े गैंग का हाथ रहा होगा, लेकिन थाने में प्रदीप शुक्ला से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि इस लूट में उस के अलावा कोई दूसरा शामिल नहीं था और यह लूट भी कोई पहले से बनाई प्लाङ्क्षनग के तहत नहीं की गई थी, बल्कि अचानक यह सब किया गया था.

प्रदीप शुक्ला ने करीब 3 महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी एसआईएस में ड्राइवर की नौकरी जौइन की थी. उस की ड्यूटी विकासपुरी ब्रांच से कैश ले कर कंपनी के ओखला स्थित हैडऔफिस में पहुंचाने की थी. कभीकभी उसे एटीएम मशीनों में पैसे रखने वाली टीम के साथ भी भेज दिया जाता था.

प्रदीप ने बताया कि उस से जितना काम लिया जाता था, उस के मुताबिक उसे सैलरी नहीं मिलती थी. मजबूरी में उसे कम पैसों में वहां नौकरी करनी पड़ रही थी. इसीलिए कभीकभी उस के दिमाग में विचार आता था कि जो पैसे वह वैन में ले कर जाता है, अगर उसे मिल जाएं तो उस की पूरी ङ्क्षजदगी ठाठ से कटेगी. लेकिन यह उस की केवल सोच थी, उस ने वे पैसे ले कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. बहरहाल कम वेतन मिलने की वजह से वह मानसिक तनाव में जरूर रहता था.

26 नवंबर को वह साढ़े 22 करोड़ रुपए विकासपुरी के करेंसी चेस्ट से ले कर चला. जब श्रीनिवासपुरी रेडलाइट के पास वैन का गनमैन विजय कुमार पटेल लघुशंका के लिए उतर गया तो अचानक उसे लालच आ गया. उस ने सोचा कि पैसे ले कर भागने का इस से अच्छा मौका उसे फिर कभी नहीं मिलेगा और वह नोटों से भरे उन 9 संदूकों को ले कर सीधे ओखला फेज-3 स्थित रामसूरत के पास पहुंच गया. वह उसे पहले से जानता था.

रामसूरत जिस गोदाम में चौकीदारी करता था, वहां पहले मॢसडीज कारों का वर्कशाप था. लेकिन कुछ सालों से वहां तार का काम होता था. यह गोदाम धु्रवकुमार नाम के एक बिजनेसमैन का था. रामसूरत धु्रवकुमार के यहां पिछले 22 सालों से नौकरी कर रहा था. प्रदीप की पत्नी शशिकला पहले इसी गोदाम में काम करती थी. तभी से प्रदीप की रामसूरत से जानपहचान थी. रामसूरत ने ही किसी से सिफारिश कर के प्रदीप की नौकरी एसआईएस सिक्योरिटी कंपनी में बतौर ड्राइवर लगवाई थी.

शाम को करीब 5 बजे प्रदीप कैश वैन ले कर रामसूरत के पास गोदाम में पहुंचा. प्रदीप ने रामसूरत को बताया कि उन 9 संदूकों में पन्नी के बंडल हैं. उन्हें वह बनारस ले जाएगा, जिस की एवज में उसे 10 हजार रुपए मिलेंगे. इस के बाद उस ने वैन से नोटों से भरे सारे संदूक उतार कर गोदाम के एक कमरे में रख दिए. फिर मौका मिलने पर उस ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए.

इस के बाद वह यह कह कर वैन ले कर चला गया कि थोड़ी देर में लेबर ले कर आ रहा है ताकि सभी संदूकों को पैक करा कर बनारस ले जा सके. इस पर रामसूरत मान गया. इस के बाद प्रदीप वैन को गोङ्क्षवदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ कर चला आया. लौटते समय रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि इस रकम को ले कर वह कहां जाए.

प्रदीप ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए थे. खानेपीने का कुछ सामान लेने के लिए वह बाजार चला गया. वहां से उस ने महंगी शराब खरीदी, होटल से चिकन पैक कराया. इस के बाद वह गोदाम लौट आया. उसे अकेले देख कर रामसूरत ने पूछा, ‘‘तुम तो पैङ्क्षकग के लिए लेबर लेने गए थे, लेबर कहां है?’’

इस पर प्रदीप ने बताया कि रात की वजह से लेबर नहीं मिली, सुबह को देखूंगा. रामसूरत ने भी उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह वहां से चला गया. उस के जाने के बाद प्रदीप ने उन संदूकों के पास बैठ कर शराब पी और चिकन खाया. फिर वह कपड़ा बिछा कर वहीं सो गया. रामसूरत भी अपनी जगह पर जा कर सो गया.

सुबह 3 बजे के करीब किसी ने गेट खटखटाया तो रामसूरत की नींद खुली. वह गेट पर गया तो बाहर भारी संख्या में पुलिस को देख कर घबरा गया. पुलिस वालों ने जब उसे फोटो दिखाया तो वह समझ गया कि प्रदीप जरूर ही कोई गलत काम कर के भागा है. चाबी लेने के बहाने रामसूरत उस कमरे में आया जहां प्रदीप सो रहा था.

रामसूरत ने प्रदीप को जगा कर कहा, ‘‘ये पन्नी के बौक्स क्या तुम चोरी कर के लाए हो, जो पुलिस यहां आई है.’’ पुलिस का नाम सुनते ही प्रदीप डर गया. वह झट से बोला कि कोई भागने का रास्ता हो तो बताओ. इस से रामसूरत को विश्वास हो गया कि वह जरूर कोई गड़बड़ कर के आया है. इस से पहले कि प्रदीप वहां से भाग पाता, रामसूरत ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

प्रदीप मिन्नतें करते हुए दरवाजा खोलने को कहता रहा लेकिन रामसूरत ने उस की एक नहीं सुनी और वह गेट पर खड़े पुलिस वालों को उस कमरे में ले गया जहां प्रदीप था. प्रदीप ने एक संदूक से जो 11 हजार रुपए निकाले थे, उन में से वह साढ़े 10 हजार रुपए खर्च कर चुका था.

उस से पूछताछ के बाद पुलिस को जब यकीन हो गया कि इस लूट के मामले में उस के अलावा किसी और का हाथ नहीं है तो हिरासत में लिए गए बाकी लोगों को छोड़ दिया गया. साथ ही पुलिस ने ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने वाले चौकीदार रामसूरत को धन्यवाद भी दिया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने 10 घंटे के अंदर ही दिल्ली की सब से बड़ी कैश लूट का खुलासा कर रकम बरामद करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

प्रदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी नरेश सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 3

इस के बाद पुलिस ने गगन को 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले कर गहराई से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने जो कुछ बताया, उस से इन हत्याओं का जो राज सामने आया, वह कुछ इस तरह से था.

गगन एक बड़ा सैक्स रैकेट चलाता था. उस के नेटवर्क में देसी ही नहीं, विदेशी लड़कियों की भी खूब डिमांड थी. सोनू पंजाबन के लिए काम कर चुके गगन के नेटवर्क में काफी रशियन लड़कियां थीं, जिन्हें वह दिल्ली, एनसीआर के अलावा चंडीगढ़, जयपुर और मुंबई की रेव पार्टियों में भेजता था. इस के लिए वह रूस में सैक्स रैकेट से जुड़े लोगों से संपर्क कर के लड़कियों को टूरिस्ट वीजा पर 3 महीने के लिए भारत बुलाता था.

भारत में रशियन लड़कियों की डिमांड पूरी करने के लिए सैक्स रैकेट से जुड़े लोग सीआईएस (कौमनवैल्थ औफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) से जुड़े देशों जैसे उज्बेकिस्तान व कजाकिस्तान की गरीब लड़कियों को अच्छी जिंदगी का लालच दे कर टूरिस्ट वीजा पर भारत ला कर देह धंधे के कारोबार से जोड़ देते थे.

गगन और उस की पत्नी माशा के इस धंधे की पार्टनर नाज उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. माशा लोगों को ब्लैकमेल करने में माहिर थी. नाज पहले खुद अपनी देह बेचती थी, उम्र ढलने पर उस की डिमांड कम हुई तो वह दूसरी लड़कियों से धंधा करवा कर उन की कमाई से कमीशन लेने लगी. वह ज्यादातर उज्बेक लड़कियों को ही पटाने की कोशिश करती थी.

शाखनोजा को देखते ही नाज उस पर लट्टू हो गई थी. उसे उस ने देहधंधे में उतारने की कोशिश भी की. इस कोशिश में जब उसे लगा कि वह ऐसीवैसी लड़कियों में नहीं है, तब उस ने उस की रूममेट बन कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश की. अमीर एवं प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखने वाली शाखनोजा एक प्रतिभावान कलाकार थी. उस की कला की कदर भी बढ़ रही थी. अपने नृत्य कार्यक्रमों से उसे अच्छा पैसा मिलने लगा था.

नाज के माध्यम से ही वह माशा और उस के पति गगन के संपर्क में आई. उसे इन की असलियत मालूम नहीं थी. अलबत्ता ये सभी उस से उम्र में बड़े थे, इस वजह से वह इन लोगों की बहुत इज्जत करती थी. शाखनोजा स्वभाव से थोड़ा भोली थी, जिस का फायदा उठाते हुए ये लोग उस से पैसे उधार मांगने लगे, जो बढ़तेबढ़ते 8 लाख रुपए तक पहुंच गए.

एक दिन शाखनोजा ने इन से अपने पैसे वापस मांगे तो नाराज हो कर इन लोगों ने उसे धमकाने के लिए 24 सितंबर, 2015 की रात धोखे से साउथ एक्सटेंशन में एक जगह बुला लिया. वहां थोड़ाबहुत हडक़ा कर इन लोगों ने उसे अपनी गाड़ी में जबरदस्ती बैठा लिया और चले गए.

कार गगन चला रहा था. माशा उस की बगल वाली सीट पर बैठी थी. पिछली सीट पर नाज लगातार शाखनोजा की पिटाई करते हुए उस का गला दबा कर उसे डरा रही थी. उसी बीच उबडख़ाबड़ जगह पर कार थोड़ा उछली तो नाज के हाथों का दबाव बढ़ गया, जिस की वजह से शाखनोजा की मौत हो गई.

ये लोग शाखनोजा को मारना नहीं चाहते थे, लेकिन जब वह मर गई तो उस की लाश को दिल्ली में फेंकना खतरे से खाली नहीं था. उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इन्होंने एक सूटकेस का इंतजाम किया और उस में लाश को रख कर रात ही में पानीपत के कस्बा समालखा में एक जगह उस सूटकेस और लाश पर पैट्रोल छिडक़ कर आग लगा दी. इस तरह इन लोगों ने शाखनोजा से छुटकारा पा लिया.

इस घटना से गगन और माशा जरा भी नहीं घबराए, लेकिन नाज के दिलोदिमाग पर इस का गहरा असर पड़ा. उसे पकड़े जाने का भय सताने लगा. हालांकि कुछ दिनों बाद एक बार पुलिस उस से पूछताछ भी कर चुकी थी. तब गगन उस के लिए ढाल बन गया था. इस के बाद गगन को लगा कि यह डरपोक औरत खुद तो फंसेगी ही, अपने साथ उन्हें भी फंसाएगी. रहीसही कसर शाखनोजा के उस पत्र ने पूरी कर दी, जिस में उस ने अपनी जिंदगी से जुड़ी तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए एंबेसी को लिखा था. यह पत्र पुलिस को बाद में शाखनोजा के सामान से मिला था.

खैर, नाज को अपने लिए खतरा बनते देख गगन ने 5 अक्टूबर, 2015 को उसे भी गला घोंट कर मार दिया और उस की लाश को उत्तर प्रदेश के हापुड़ ले जा कर एक सुनसान जगह में पैट्रोल डाल कर जला दिया. पूछताछ के बाद गगन को उन दोनों जगहों पर ले जाया गया, जहां उस ने लाशें जलाई थीं. वहां के थानों में अधजली लाशें मिलने के मामले दर्ज थे. बरामदगी के नाम पर स्थानीय पुलिस को इन महिलाओं की अस्थियां ही मिल पाई थीं.

शाखनोजा की पहचान के लिए पुलिस ने उस की हड्डी एवं उस की मां शोखिस्ता का डीएनए टैस्ट करवाया है. मामले का खुलासा होने पर माशा भूमिगत हो गई थी. उस से पूछताछ के लिए पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गगन से शाखनोजा की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें मिली हैं. ये तसवीरें उस ने उसे ब्लैकमेल करने के लिए 16 अगस्त को तब खींची थीं, जब एक नृत्य आयोजन के बाद उसे बेहोशी की दवा मिला कोला पिलाया गया था. यह षडयंत्र गगन का रचा था.

बहरहाल, जमिरा का कहना है कि उस की बहन को बैले डांसर कह कर उस की प्रतिभा का अपमान न किया जाए. वह एक अच्छी नर्तकी थी, जो अपनी कला को निखारने के लिए इंडिया आई थी. लेकिन यहां आ कर उसे बदनामी और निर्मम मौत मिली.

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बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 2

इस के बाद उन की मुलाकातें होने लगीं. वे जब भी मिलते, घंटों एकदूसरे के साथ रहते. रोक्सेन को वाकर की नजदीकी बेहद सुकून देती थी. उस के मिलने से मन तो तृप्त हो जाता था, लेकिन तन की प्यास वैसी ही बनी रहती थी. वाकर एकांत में रोक्सेन के किसी अंग को छू लेता या होंठों को चूम लेता, तो उस की देह में आग सी लग जाती. मन करता कि वाकर की बांहों में समा जाए और उस से कहे कि वह उस के प्यासे तन को तृप्त कर दे. लेकिन वह ऐसा इसलिए नहीं कह पाती थी, क्योंकि वह जगह इस के लिए सुरक्षित नहीं होती थी.

पति की बेरुखी से विचलित वाकर की नजदीकी पा कर रोक्सेन ज्यादा दिनों तक अपनी इच्छा दबाए नहीं रह सकती थी. उस ने वाकर से सीधे तो नहीं कहा, लेकिन एक दिन घुमाफिरा कर अपने मन की बात कह ही दी, ‘‘वाकर, कहीं ऐसी जगह चलते हैं, जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो.’’

‘‘ठीक है, हम कल सुबह किंगस्टन झील पर पिकनिक मनाने चलते हैं.’’ वाकर ने रोक्सेन के दिल की मंशा भांप कर कहा.

अगले दिन पति काम पर चला गया और बच्चे स्कूल चले गए, तो रोक्सेन वाकर के साथ पिकनिक पर निकल गई. शहर से किंगस्टन झील लगभग 30 किलोमीटर दूर थी. वाकर अपनी लौरी से रोक्सेन को वहां ले गया. किंगस्टन एक छोटी सी झील थी. उस के दोनों ओर छोटेबड़े पहाड़ थे. वहां इक्कादुक्का लोग ही नजर आ रहे थे. वे भी प्रेमी युगल थे, जो इन्हीं की तरह एकांत की तलाश में यहां आए थे. रोक्सेन और वाकर भी एक छोटी सी पहाड़ी के पीछे जा पहुंचे. वहां से झील के आसपास का नजारा तो देखा जा सकता था, लेकिन उन तक किसी और की नजर नहीं पहुंच सकती थी. इसी का फायदा उठा कर वे एकदूसरे की बांहों में समा गए.

एकांत का पहला दिन रोक्सेन और वाकर के लिए यादगार बन गया. इस के बाद तो उन का मिलना आम हो गया. वाकर बेखौफ रोक्सेन के घर भी आनेजाने लगा. लेकिन वह इस बात का ध्यान जरूर रखता था कि उस का पति कोरोनट घर पर न हो. वह रोक्सेन की बेटियों की भी वह परवाह नहीं करता था. बेटा रौबर्ट अभी छोटा ही था. रोक्सेन को भी अब कोई खौफ नहीं था. उस ने बच्चों से वाकर का परिचय कराते हुए कहा था कि ये तुम्हारे अंकल हैं. वाकर जब भी आता था, बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता था, इसलिए बड़ी बेटी को छोड़ कर बाकी के दोनों बच्चे उस से खुश रहते थे. वे उस के आने का इंतजार भी करते थे.

धीरेधीरे रोक्सेन वाकर के इतने नजदीक आ गई कि उसे पति कोरोनट फालतू की चीज लगने लगा. अब वह वाकर को ही अपना पति मानने लगी थी. वाकर भी उस से सिर्फ शारीरिक सुख ही नहीं हासिल करता था, बल्कि उस की और उस के बच्चों की हर जरूरत का भी पूरा खयाल रखता था. यही वजह थी कि रोक्सेन को अब पति कोरोनट की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. वह वाकर को उस के सामने ही घर बुलाने लगी थी.

कोरोनट और उस की बड़ी बेटी को वाकर का आना बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि रोक्सेन और उस के बातव्यवहार से उसे अंदाजा हो गया था कि इन के बीच गलत संबंध है. फिर एक दिन उस ने उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख भी लिया. कोरोनट ने इस पर ऐतराज जताया, तो रोक्सेन ने उसे खरीखोटी सुनाते हुए कहा, ‘‘तुम न तो पेट की आग ठीक से बुझा पाते हो और न तन की. अब ऐसे पति से तो बिना पति के ही ठीक हूं. मैं ने अपना रास्ता खोज लिया है. अच्छा यही होगा कि तुम भी अपना रास्ता खोज लो. अब हम एक राह पर एक साथ नहीं चल सकते.’’

‘‘बच्चों का तो खयाल करो?’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाना चाहा.

‘‘तुम्हें उन की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही उन्हें वाकर को डैडी कहना सिखा दूंगी.’’ रोक्सेन ने तल्खी से कहा.

कोरोनट को लगा कि अब रोक्सेन से उम्मीद करना बेकार है. वह अपनी राह पर इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उस का लौटना मुमकिन नहीं है. इसलिए अब उसे अपना रास्ता अलग कर लेना चाहिए. कोरोनट ने रोक्सेन को तलाक दे कर उसे अपनी जिंदगी से अलग कर दिया. मां की हरकतों से नाखुश बड़ी बेटी एमा हेमंड भी बाप के साथ चली गई थी. रोक्सेन को इस का जरा भी अफसोस नहीं हुआ, क्योंकि वह तो यही चाहती थी. उस की मुराद पूरी हो गई थी. अब उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं रहा, तो वाकर का अधिकतर समय उसी के घर गुजरने लगा.

जल्दी ही रोक्सेन की बेटी स्टेसी लारैंस और बेटे रौबर्ट ने वाकर को पिता के रूप में स्वीकार कर लिया था. रौबर्ट 4 साल का था, तो स्टेसी 9 साल की. संयोग से समय से पहले ही स्टेसी के शरीर में बदलाव आने लगा था. इसी बदलाव की वजह से उसे बनियान की जगह ब्रा पहननी पड़ रही थी. हारमोंस की गड़बड़ी की वजह से इसी उम्र में उसे मासिक भी शुरू हो गया था. रोक्सेन जो अब तक उसे बच्ची समझती थी, ऊंचनीच समझाने लगी. कुछ भी रहा हो, स्टेसी बेहद समझदार थी. अच्छेबुरे का उसे पूरा खयाल था.

स्कूल की छुट्टी के दिन अकसर स्टेसी वाकर की लौरी में बैठ कर घूमने चली जाती थी. लेकिन रोक्सेन को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह बेटी को रोकती थी. क्योंकि वह औरत थी और मर्दों की निगाहों को भलीभांति पहचानती थी. उसे वाकर की निगाहों में खोट नजर आने लगा था.

यही वजह थी कि वह वाकर पर नजर रखने लगी थी. ऐसे में ही एक दिन उस ने वाकर को स्टेसी के शरीर से ऐसी छेड़छाड़ करते देख लिया, जो एक पिता नहीं, मर्द कर सकता है. उस ने तुरंत वाकर को टोका, ‘‘वाकर, तुम्हें मैं ने अपना मन ही नहीं, तन भी सौंपा है. तुम्हें वे अधिकार दिए हैं, जो सिर्फ पति को दिए जाते हैं. तुम ने भी वादा किया है कि मेरे बच्चों को अपने बच्चे समझ कर वह सब दोगे, जो एक पिता का कर्तव्य होता है. लेकिन अब तुम्हारी नीयत ठीक नहीं दिख रही है.’’

‘‘ऐसा नहीं है रोक्सेन. मैं न वादे को भूला हूं और न कभी अपने फर्ज भूलूंगा. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हें आहत होना पड़े. अगर गलती से मुझ से कुछ गलत हो गया है तो मैं तुम्हें अपना मुंह नहीं दिखाऊंगा.’’ वाकर ने एक बार फिर रोक्सेन से वादा किया.

गलतफहमी दूर हुई, तो रोक्सेन ने वाकर को बांहों में भर लिया, ‘‘मैं ने तुम पर पूरा भरोसा किया है और करती रहूंगी.’’

इस के बाद रोक्सेन ने स्टेसी को छूट दे दी. वह वाकर के साथ घूमने जाने लगी. उस का नईनई जगहों पर घूमना तो होता ही, वाकर उसे तरहतरह की चीजें भी खिलाता. एक तरह से स्टेसी की पिकनिक हो जाती.

3 अप्रैल, 2013 को भी स्टेसी वाकर के साथ लौरी पर घूमने गई थी. वाकर को कई जगह माल सप्लाई करना था. फिर भी उसे शाम तक लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा, तो रोक्सेन को चिंता हुई. वह फोन करने ही जा रही थी कि वाकर का फोन आ गया. उस ने कहा कि काम की वजह से वह आज लौट नहीं पाएगा, कल आएगा. लेकिन वह अगले दिन भी नहीं लौटा, तो रोक्सेन को वाकर और बेटी स्टेसी की चिंता हुई. उस ने सैकड़ों बार फोन किया, लेकिन एक भी बार फोन नहीं उठा. मजबूर हो कर उस ने पुलिस को फोन किया.

पुलिस फौरन हरकत में आ गई. वाकर जिस कंपनी का माल सप्लाई करता था, वहां पता किया गया. जानकारी मिली कि उस की लौरी में सभी तरह की सुविधाएं हैं. उस में वायरलेस फोन भी लगा है, जो कंपनी से चलता था. वायरलेस औपरेटर से पुलिस ने लौरी की लोकेशन पता की. ट्रैकिंग डिवाइस से पता चला कि लौरी की लोकेशन वेस्ट मिडलैंड्स के जंगल की है. पुलिस वहां पहुंची. काफी ढूंढने पर जंगल के बीच खड़ी लौरी मिल गई. लौरी के अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था. उस के अंदर स्टेसी की लाश पड़ी थी.

कमर के नीचे से वह निर्वस्त्र थी. वहां खून भी पड़ा था. देख कर ही लग रहा था कि स्टेसी के साथ जबरदस्ती की गई थी. कमर के नीचे के हिस्से पर वहशीपन के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. गरदन पर भी अंगुलियों के नीले निशान थे. दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी गई थी.

वाकर वहां नहीं था. अनुमान लगाया गया कि यह अमानवीय कृत्य वाकर ने ही किया होगा. वाकर की तलाश में पुलिस जंगल में फैल गई. लौरी से कुछ दूरी पर वाकर एक पेड़ से लटका मिल गया. शायद उस ने भी आत्महत्या कर ली थी.

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 2

पुलिस ने पूछताछ के लिए गनमैन विजय कुमार को हिरासत में ले लिया था. इस वारदात के पीछे पुलिस को 3 ऐंगल नजर आ रहे थे. पहला यह कि कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप शुक्ला इतनी बड़ी लूट को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

दूसरा ऐंगल यह लग रहा था कि किसी प्रोफेशनल गिरोह ने रास्ते में प्रदीप को काबू कर के उस का अपहरण कर लिया होगा और रकम व प्रदीप को वह अपनी गाड़ी में डाल कर ले गए होंगे. अगर ऐसा हुआ तो अपहत्र्ता प्रदीप की हत्या कर सकते थे.

तीसरा ऐंगल यह लग रहा था कि गनमैन विजय कुमार ने साजिश रच कर यह वारदात कराई है. गनमैन योजना के तहत लघुशंका के बहाने उतर गया होगा और उस के साथियों ने ड्राइवर का पीछा कर के वारदात को अंजाम दिया होगा. पुलिस इन तीनों संभावनाओं पर तहकीकात कर रही थी.

विकासपुरी से कैश ले कर वैन जिस रूट से होते हुए श्रीनिवासपुरी की रेडलाइट तक पहुंची थी, पुलिस ने यह पता लगाया कि इस रास्ते में कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पुलिस यह जानना चाहती थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाश विकासपुरी से ही किसी गाड़ी से कैश वैन का पीछा कर रहे थे. इस के अलावा गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई. क्योंकि कैश वैन लावारिस अवस्था में इसी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी मिली थी.

पुलिस की एक टीम विकासपुरी स्थित करेंसी चेस्ट पहुंची. वहां से पता चला कि एसआईएस की किसी भी वैन में रोजाना 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं रखे जाते थे तब पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि उस दिन वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए क्यों रखे गए?

इस के अलावा यहां एक खामी और सामने आई, वह यह थी कि हर दिन हरेक कैश वैन पर 2 गनमैन, एक ड्राइवर और एक कस्टोडियन सवार होता था लेकिन उस दिन कैश वैन में एक गनमैन और एक कस्टोडियन को क्यों नहीं भेजा गया? इतने ज्यादा कैश के साथ केवल एक ही गनमैन क्यों भेजा गया? कस्टोडियन सुरेश कुमार उस वैन में क्यों नहीं गया?

इस के अलावा पुलिस को यह भी पता चला कि वैन में रकम रखने की जिम्मेदारी कस्टोडियन की होती है, लेकिन उस वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए कस्टोडियन के बजाय किसी विक्रम नाम के कर्मचारी ने रखे थे. इन खामियों को देख कर पुलिस को शक हुआ कि लूट की योजना बनाने में यहां के कर्मचारियों का भी हाथ हो सकता है. इसीलिए पुलिस ने विक्रम, कस्टोडियन सुरेश कुमार और अन्य कई कर्मचारियों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

इस से पहले दिल्ली में कैश लूट के जो मामले हुए थे, उन में जिन बदमाशों के शामिल होने की बात सामने आई थी, पुलिस ने उन बदमाशों के डोजियर के आधार पर उन की तलाश शुरू कर दी. उन में से पुलिस के हाथ जितने भी बदमाश लगे, उन से भी सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.

प्रदीप शुक्ला नाम का जो ड्राइवर कैश के साथ लापता था, पुलिस ने एसआईएस कंपनी से उस का फोटो और उस की डिटेल हासिल की तो पता चला कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाला था और उस ने 10 सितंबर, 2015 को ही इस कंपनी में नौकरी जौइन की थी.

कंपनी में उस ने दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का पता लिखवाया था. पुलिस की एक टीम उस के कोटला मुबारकपुर वाले पते पर पहुंची तो पता चला कि वह पहले कभी इस पते पर रहता था. मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि अब वह ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक हरकेशनगर में रहता है.

हरकेशनगर का पता ले कर पुलिस टीम जब उस के कमरे पर पहुंची तो वहां उस की पत्नी शशिकला और 3 बच्चे मिले. पुलिस ने जब शशिकला से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्ïयूटी गए हैं. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप घर में नोटों के बौक्स रख कर कहीं फरार हो गया हो और पत्नी झूठ बोल रही हो. यह शंका दूर करने के लिए पुलिस ने उस के कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहां उसे कुछ नहीं मिला. पुलिस वहां से खाली हाथ लौट आई.

अब तक पुलिस की किसी भी टीम को ऐसा कोई क्लू नहीं मिल सका था, जिस से प्रदीप के बारे में कोई जानकारी मिल सकती. अब तक काफी रात हो चुकी थी. लेकिन पुलिस टीमें अपनेअपने काम में लगी थीं. पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था, इस से उस की आखिरी लोकेशन अपराह्न पौने 4 बजे श्रीनिवासपुरी की आ रही थी.

इस से यही लग रहा था कि वहां से कैश वैन सहित फरार होते समय उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि प्रदीप ने उसी दिन 26 नवंबर को आखिरी बार किसी अजीत के फोन पर बात की थी. बाद में पता चला कि अजीत भी हरकेशनगर में रहता है.

पुलिस अजीत के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उस से प्रदीप के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रदीप से उस की कोई खास बात नहीं हुई थी, लेकिन उस ने प्रदीप को शाम 4-5 बजे के बीच ओखला फेज-3 में देखा था.

थानाप्रभारी नरेश सोलंकी अजीत को ले कर ओखला फेज-3 में उस जगह पहुंच गए, जहां उस ने प्रदीप को देखा था. वहां तमाम इंडस्ट्री हैं, इसलिए प्रदीप को ढूंढना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने इस बात से डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा को अवगत कराया तो उन्होंने उस इलाके में सर्च औपरेशन चलाने के निर्देश दिए.

सर्च औपरेशन में सरिता विहार के थानाप्रभारी मङ्क्षहदर ङ्क्षसह, नेहरू प्लेस पुलिस चौकी इंचार्ज मनमीत मलिक, एसआई राजेंद्र डागर, जितेंद्र ङ्क्षसह, हैडकांस्टेबल यतेंद्र आदि को भी लगा दिया गया. इस टीम का निर्देशन कालकाजी के एसीपी जसवीर ङ्क्षसह कर रहे थे.

पुलिस टीम हर फैक्ट्री में जाती और प्रदीप का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछती. इसी क्रम में पुलिस ओखला फेज-3 स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वह ढाबा अजय का था. वह ढाबा देर रात तक खुला रहता था. पुलिस ने ढाबे वाले को प्रदीप का फोटो दिखाया तो उस ने बताया कि इसे उस ने यहीं पर रात साढ़े 9 बजे के करीब देखा था. ढाबे वाले से बात कर के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि प्रदीप ज़िंदा है. क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि अपहत्र्ताओं ने उसे कहीं मार न दिया हो.

कैश कहां है, यह बात प्रदीप के मिलने पर ही पता लग सकती थी. इसलिए उसे ढूंढना जरूरी था. पुलिस को लगा कि कुछ घंटे पहले जब प्रदीप यहीं था तो जरूर यहीं कहीं छिपा होगा. इस के बाद पुलिस पूरे उत्साह से एकएक फैक्ट्री में जा कर उसे खोजने लगी.

खोजबीन करते हुए पुलिस ढाबे से करीब 50 गज दूर एक फैक्ट्री के गेट पर पहुंची तो उस में अंदर से ताला बंद था. गेट खटखटाने पर गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी आया. वह उस फैक्ट्री का चौकीदार था. उस का नाम रामसूरत था. पुलिस ने चौकीदार को ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा और गोदाम की तलाशी लेने के लिए कहा.

पुलिस को देख कर चौकीदार रामसूरत डर गया. वह गेट की चाबी लेने की बात कह कर अंदर गया और कुछ देर बाद लौट कर गेट खोल कर पुलिस को अंदर ले आया. उस ने एक कमरे का दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘सर, जिस की आप को तलाश है, वह यह रहा.’’

पुलिस कमरे में घुसी तो सचमुच वहां फरार ड्राइवर प्रदीप शुक्ला मिल गया. उसी कमरे में कैश से भरे 9 संदूक भी रखे थे. यह सब देख कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले कर उन बक्सों की जांच की तो उन में से केवल एक बक्से की क्लिप हटी थी, बाकी 8 बक्से जैसे के तैसे थे.