स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 3

महाराजपुर पुलिस चौकी में कार्यरत जितने भी पुलिसकर्मी थे, उन्हें तुरंत वहां से पुलिस लाइंस में जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का आदेश दे दिया. पर फरार हुए स्पा मैनेजर और मालिकों की गिरफ्तारी के लिए टीमें नियुक्त कर के छापेमारी कर रही थीं.

समाज में गंदगी फैलाने वाले ऐसे लोगों को कानून के कटघरे में खड़ा कर के जेल पहुंचाना ही पुलिस का उद्ïदेश्य था. देखना है ये फरार हुए अभियुक्त कब तक पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेलते हैं.

यह मामला अभी चल ही रहा था, ताजा भी था कि उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद में एक और सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. हुआ यूं कि सीओ (सिटी) संजय मिश्रा अपने औफिस में बैठे. तभी उन्होंने अपने एक मुखबिर को फोन लगा लिया, “हैलो करीम, क्या कह रहे हो?”

“गुड मार्निंग साहब.” दूसरी ओर से करीम की आवाज उभरी, “आजकल खाली हूं साहब, जेब से कडक़ा हो गया हूं, कोई काम बताइए न?”

“करीम, कुछ दिनों से मुझे होटल राधाकृष्णा के विषय में उलटीसीधी बातें सुनने को मिल रही हैं.”

करीम ने तुरंत कहा, “हां साहब, सुना तो मैं ने भी है कि राधाकृष्णा में गरम गोश्त का धंधा होता है. आप कहें तो मैं पता लगाऊं?”

“खाली हो तो यही काम कर लो, खर्चापानी निकल जाएगा तुम्हारा.” संजय मिश्रा ने कहा.

“मैं आज शाम को ही मालूम कर लूंगा.” करीम चहक कर बोला, “आप को अच्छी खबर ही दूंगा साहब.”

“ठीक है.” कह कर संजय मिश्रा ने बात खत्म की.

उधर करीम शाम होने का इंतजार करने लगा. करीम 25-26 साल का युवक था. वह स्मार्ट था, रंगत भी गोरी थी. वह पुलिस के लिए मुखबिरी करता था. सीओ सिटी से बात होने के बाद उस ने शाम को व्हाइट शर्ट और ब्राऊन रंग की जींस पहनी. बालों को संवारा और पैदल ही होटल राधाकृष्णा की तरफ चल पड़ा.

राधाकृष्णा होटल में पहुंच कर वह बार काउंटर पर पहुंच गया, वहां मौजूद सर्विस बौय से उस ने लार्ज व्हिस्की का पैग मांगा. सर्विस बौय पैग बनाने लगा तो करीम धीरे से बोला, “यार, यहां शराब ही मिलती है क्या, उस के साथ कुछ चटपटा माल नहीं मिलता?”

“मिलता है जनाब.” सर्विस बौय पैग उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, “भुने काजू हैं, चटपटी नमकीन है, बौयल एग्स हैं.”

करीम मुसकराया, “यह नहीं यार, तनमन को तृप्त कर दे. कुछ ऐसा चटपटा सामान जो…”

“ओह समझा!” सर्विस बौय आगे को झुक कर मुसकराया, “आप गरम गोश्त की बात कर रहे हैं.”

“ठीक समझे, शराब के साथ शबाब हो तो तबियत फडक़ा फाइट हो जाती है.”

“आप रिसैप्शन काउंटर पर जाइए, वहां रंगीन एलबम है. उस में आप को एक से बढ़ कर एक फुलझडिय़ां मिल जाएंगी.”

“वाह!” करीम ने दोनों हाथ कंधे पर ले जा कर अंगड़ाई ली, “रेट वेट मालूम है तुम्हें?”

“नहीं, यह मैनेजर ही बता देंगे.” सर्विस बौय ने हंस कर कहा, “ऐसी गरम आइटम की कीमत नहीं पूछी जाती, दिल को भा जाए तो दिलफेंक लोग लाखों लुटा देते हैं.”

करीम हंसा, “आदमी दिलचस्प हो तुम.”

सर्विस बौय मुसकराने लगा. करीम ने पैग का बिल दिया और गिलास ले कर वह रिसैप्शन पर आ गया.

रिसैप्शन पर बैठे मोटे से व्यक्ति ने आंखों पर चढ़ा चश्मा ऊंचा कर के करीम को देखा, “फरमाइए जनाब, रूम चाहिए क्या?”

“अकेला हूं,” करीम ने होंठों को गोल किया, “शादी भी नहीं हुई है. रूम ले कर क्या करूंगा. कोई पार्टनर दिलवाएंगे तो रूम लेने का मजा है.”

“पार्टनर भी मिल जाएगा सर.” मैनेजर ने दाईं आंख दबा कर कहा, “एलबम देखेंगे आप.”

“दिखाइए, कोई पसंद आ जाएगी तो रात यहीं गुजार लूंगा.”

मैनेजर ने एलबम निकाल कर दिखाई, उस में अनेक खूबसूरत महिलाओं के फोटो लगे थे. करीम ने एक फोटो पर अंगुली रख कर उस का रेट पूछा.

“3 हजार चार्ज है इस हसीना का, हमारे होटल की शान इसी नगीना से है. यह रूबी है. पसंद हो तो बुलाऊंï?”

“रूम का चार्ज इसी में शामिल है या अलग से देना होगा?”

“यह आधा घंटे का चार्ज है, इस में कमरा हम देंगे आप को. यदि आप पूरी रात मौज करना चाहते हैं तो 7 हजार रुपया लगेगा. 5 लडक़ी के, 2 रूम चार्ज.”

“मैं रात भर रुकूंगा, लेकिन आज नहीं. आप कल के लिए रुबी को कहीं बुक नहीं करेंगे. यह एडवांस हजार रुपया रखिए.”

करीम ने कहने के बाद पर्स से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर रिसैप्शन पर रख दिए. फिर वह होटल से बाहर आ गया. उस ने तुरंत सीओ संजय मिश्रा को फोन कर के सारी जानकारी दे दी.

संजय मिश्रा ने दूसरे दिन शनिवार 27 मई, 2023 को सुबह ही दक्षिण टोला सराय लखसी थाना और महिला थाने की पुलिस को कोतवाली में लिया. उन्हें यहां बुलाने का मकसद समझाने के बाद वह पुलिस बल, जिन में महिला कांस्टेबल भी थी, को साथ ले कर रोडवेज बस अड्ïडे के पास स्थित होटल राधाकृष्णा में छापा डाल दिया.

पुलिस को देख वहां भगदड़ मच गई. होटल मैनेजर को काबू कर लिया गया. ऊपर के फस्र्ट फ्लोर पर बने बहुत से कमरे अंदर से बंद थे. उन्हें खटखटा कर महिला पुलिस को आगे कर दिया गया. सीओ संजय मिश्रा ने ऊंची आवाज में आदेश दिया, “यहां पुलिस ने रेड डाली है. बंद कमरों में मौजूद महिलाएं पुरुष अपने कपड़े ठीक कर के बाहर आ जाएं.”

थोड़ी देर में बंद कमरों से महिलाएं मुंह ढंक कर बाहर आ गईं. हर महिला के साथ एक पुरुष भी था. टोटल 14 महिलाएं और मैनेजर सहित 16 पुरुष वहां से हिरासत में लिए गए. कमरों की तलाशी में आपत्तिजनक सामान भी बरामद हुआ, उसे सीलमोहर कर के कब्जे में ले लिया गया.

सभी पकड़े गए अनैतिक देह में लिप्त पुरुष और महिलाओं को कोतवाली में लाया गया. पुलिस उन से विस्तार से पूछताछ कर के कानूनी काररवाई में लग गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में करीम व जगदीश उर्फ जग्गी परिवर्तित नाम हैं.

उधार का चिराग – भाग 3

नाजनीन ने कोई खास तैयारी नहीं की थी, इस के बावजूद वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं अपने बदनसीब बौस के बारे में सोच रहा था कि वह कितना बेबस था. क्या नहीं था उस के पास, लेकिन वह कितना मजबूर था. उस के दिल पर क्या गुजर रही होगी? नाजनीन की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘शहबाज, तुम ने कितना सही रास्ता निकाल लिया, वरना मैं गलत रास्ते पर जा रही थी.’’

‘‘मैडम, मैं अपनी इस शादी के बारे में सोच रहा था, जो एक तरह की डील है. कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए. उस के बाद सब खतम हो जाएगा.’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘कोई जरूरी नहीं है. तुम चाहो तो मना भी कर सकते हो. कोई जबरदस्ती थोड़े ही है.’’ नाजनीन ने हंस कर कहा.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ मैं चौंका.

‘‘क्या नहीं हो सकता. देखो शहबाज, औरत को सिर्फ दौलत की ही नहीं, एक भरपूर मर्द के साथ की भी जरूरत होती है. बदकिस्मती से अजहर ऐसा मर्द नहीं है. दौलत मेरे पास भी है, हम आराम से जिंदगी गुजार सकते हैं.’’

‘‘मैडम, इस में तो हंगामा हो जाएगा. अजहर अली कभी इस बात को बरदाश्त नहीं करेंगे.’’

‘‘यह मुझे भी पता है कि वह बरदाश्त नहीं करेंगे. क्योंकि वह मुझ से बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ऐसे प्यार का क्या फायदा, जो सिर्फ आग लगाता हो, प्यास न बुझा सकता हो. अब जब तुम मेरी जिंदगी में आ गए हो तो हमें इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. तुम अपने भविष्य की चिंता मत करो. मेरे पास इतनी दौलत है कि मैं तुम्हें कोई कारोबार करवा दूंगी.’’ नाजनीन ने कहा.

‘‘तुम ने तो मुझे मुश्किल में डाल दिया.’’ मैं ने कहा.

‘‘कोई मुश्किल नहीं है, तुम्हें हिम्मत करने की जरूरत है, सब ठीक हो जाएगा. मकसद पूरा होने के बाद कह देना कि तुम तलाक नहीं देना चाहते. उस के बाद वह कुछ नहीं कर पाएंगे, क्योंकि कानूनी और शरअई तौर पर मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘यह तो बहुत बड़ा धोखा होगा. डील के भी खिलाफ होगा.’’

‘‘कोई धोखा नहीं है. उन्होंने मुझ से शादी कर के मुझे धोखा नहीं दिया है? क्या उन्हें मालूम नहीं था कि वह शादी लायक नहीं हैं. इस के बावजूद अपनी नाक ऊंची रखने के लिए उन्होंने मुझ से शादी की. ऐसा कर के उन्होंने मुझे धोखा नहीं दिया?’’

‘‘तुम्हारी बात भी सच है.’’ मैं ने कहा.

‘‘बाकी सब भूल कर सिर्फ यह याद रखो कि उन्होंने मुझे धोखा दिया है. इस की उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए. अगर उन का खानदान उन्हें बच्चे का बाप देखना चाहता है तो मेरा क्या दोष, उन के घर वालों की खुशी के लिए मैं क्यों कष्ट झेलूं? तुम खुद ही बताओ, इस में मेरा क्या दोष है? मैं ही क्यों दुनिया भर के कष्ट उठाऊं? उन का जब मन हुआ शादी कर ली, जब मन हुआ दूसरे को सौंप दिया. आखिर यह क्या तमाशा है?’’

नाजनीन की बातों ने मुझे चौंका दिया. अपनी जगह वह भी ठीक थी. आखिर औरत के साथ वह भी तो आदमी थी. जवान और खूबसूरत भी थी. उस की भी अपनी उमंगें और इच्छाएं थीं.

रूटीन के अनुसार अगले दिन मैं औफिस पहुंचा तो कुछ देर बाद अजहर अली ने मुझे बुलाया. उम्मीद के साथ मुझे देखते हुए उन्होंने कुछ कागजात मेरी ओर बढ़ाए. डील के अनुसार वे तलाक के पेपर थे. मैं ने कहा, ‘‘सर, कुछ दिन रुक जाइए. जिस मकसद के लिए यह काम हुआ है, पहले उसे तो पूरा हो जाने दीजिए.’’

अजहर अली ने कागजात दराज में रख लिए. इस के बाद मेरा काम शुरू हो गया. दिन भर मैं औफिस में रहता, शाम को अपने फ्लैट पर जाता.  देर रात मैं अजहर अली के घर पहुंच जाता, जहां नाजनीन मेरा इंतजार कर रही होती. रोज रात को वह ऐसी बातें छेड़ देती, जो मेरी डील के खिलाफ होतीं. धीरेधीरे मुझे भी लगने लगा कि वह ठीक ही कहती हैं.

लेकिन मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डील के खिलाफ जा सकता. वह मुझे रोज उकसाती.  इस के बावजूद मैं ने फैसला किया कि मैं नाजनीन को तलाक दे दूंगा. उन्होंने मुझ पर जो विश्वास किया है, उसे नहीं तोड़ूंगा. उन्होंने मुझे एक खुशहाल जिंदगी दी है, इसलिए मैं उन्हें धोखा नहीं दूंगा.

2 महीने तक इसी तरह चलता रहा. मैं बड़ी दुविधा में था. नाजनीन रोजाना तलाक न देने की मिन्नतें करती. जबकि मैं अपने वायदे पर अडिग था.

लेकिन जब नाजनीन ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो मैं डगमगा गया. अजहर को इसी बात का इंतजार था. क्योंकि जब मैं ने तलाक देने की बात की तो नाजनीन ने कहा, ‘‘मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा अपने बाप की छाया में पले.’’

मैं ने वायदे की बात की तो उस ने ढेर सारी दलीलें दे कर मुझे चुप करा दिया.

अगले दिन अजहर अली ने मुझे बुलाया. वह बहुत खुश था. शायद नाजनीन ने उसे खुशखबरी सुना दी थी. मैं उसे देख कर हैरान था. उधार की खुशियों में वह कितना खुश था. उस ने कहा, ‘‘शहबाज, तुम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम नाजनीन को तलाक दे कर उस से अलग हो जाओ. हमारी डील खत्म हुई.’’

उस समय अचानक न जाने कैसे मेरे दिल में प्यार जाग उठा. शायद बच्चे से प्यार हो गया था. एक बाप होने का अहसास हो उठा था या नाजनीन की बातों का असर था.

मुझे लगा, मैं बच्चे को नहीं छोड़ सकता.  मैं ने कहा, ‘‘सौरी सर, मैं नाजनीन को तलाक नहीं दे पाऊंगा.’’

‘‘क्या… यह क्या बकवास है?’’ अजहर अली चीखा.

‘‘सर, नाजनीन मां बनने वाली है और मैं बाप, इसलिए प्लीज सर, आप हमारे हाल पर रहम करें और उसे मेरे पास ही रहने दें.’’ मैं ने बेबसी से कहा.

‘‘बेवकूफ आदमी, तुम्हारे पास ऐसा क्या है, जो तुम नाजनीन जैसी औरत को दे सकते हो? नाजनीन ने मजबूरी में तुम से शादी की थी, वरना वह तुम्हारी ओर देखती भी न.’’ अजहर अली गुस्से में गरजा.

मैं ने धीरे से कहा, ‘‘सर, ऐसी बात नहीं है. नाजनीन भी यही चाहती है. अब वह आप के साथ नहीं, मेरे साथ रहना चाहती है, क्योंकि औरत सिर्फ दौलत से ही नहीं खुश रह सकती.’’

अजहर अली चिल्लाया, ‘‘अपनी बकवास बंद करो, नाजनीन कभी ऐसा सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘आप खुद फोन कर के पता कर लीजिए. अगर वह भी यही चाहती है तो क्या आप हमें हमारी मरजी की जिंदगी गुजारने देंगे?’’

‘‘अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर अजहर अली ने फोन लगाया.  दूसरी ओर से फोन उठा लिया गया तो उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन, यह शहबाज क्या कह रहा है? क्या तुम उसी के साथ रहना चाहती हो? ठीक है, मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूं, तुम्हीं उस का दिमाग ठीक कर सकती हो.’’

इस के बाद मुझ से कहा, ‘‘जाओ, नाजनीन से बात कर लो. तुम्हें तुम्हारी औकात का पता चल जाएगा?’’

मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘आप भी मेरे साथ चलिए. आप को भी आप की हैसियत मालूम हो जाएगी?’’

नाजनीन ने मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. उस ने मेरे साथ रहने से साफ मना कर दिया. मुझे लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है. उस ने जो मिन्नतें मुझ से की थीं, वे सब झूठी थीं. उस ने मुझे सीधेसीधे उल्लू बनाया था. उस ने कहा था, ‘‘काफी सोचविचार कर मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि तुम्हारे साथ मैं नहीं रह सकती. क्योंकि तुम मेरे बच्चे को वह जिंदगी नहीं दे सकते, जो अजहर अली दे सकते हैं. बेहतर यही है कि तुम मुझे तलाक दे कर हमारी जिंदगी से दूर हो जाओ.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो मैडम. तुम भले ही मुझ जैसे 10 आदमी खरीद सकती हो, लेकिन बच्चे का बाप और उस के प्यार को नहीं खरीद सकती. जो प्यार उस का असली बाप दे सकता है, वह अजहर अली कभी नहीं दे सकता. इसलिए तुम ठीक नहीं कर रही हो.’’

‘‘तुम्हें फिकर करने की जरूरत नहीं है. तुम तलाक दे दो और सब भूल जाओ.’’

‘‘मैं कैसे भूल जाऊं, तुम मेरी कानूनी बीवी हो. तुम पर मेरा पूरा हक है. औलाद भी मेरी है. तुम मुझे तलाक के लिए मजबूर नहीं कर सकती.’’

वह फौरन बोल पड़ी, ‘‘तुम डील के खिलाफ जा रहे हो शहबाज.’’

‘‘मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, पर औलाद नहीं छोड़ सकता.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो. औलाद के लिए ही तो मैं ने यह सब किया है.’’

‘‘कुछ भी हो, मैं तलाक नहीं दूंगा. यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कह कर मैं पैर पटकता हुआ चला आया.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? अजहर अली की कंपनी के दरवाजे मेरे लिए बंद हो चुके थे. सब कुछ होते हुए भी अब मेरे पास कुछ नहीं था. मेरे लिए कोई फैसला करना मुश्किल था. मेरे अंदर का मर्द और बाप जाग उठा था. वह बच्चा मेरा खून था, इसलिए उस पर मेरा कानूनी हक था.

मेरे लिए यही बेहतर था कि मैं किसी अच्छे वकील से मिलूं. मेरा केस वाजिब था, मेरे पास सारे सुबूत भी थे. निकाहनामा मेरे पास था, इसलिए फैसला मेरे ही हक में होना था. वकील के लिए भी यह केस काफी दिलचस्प होता. औलाद होने के बाद डीएनए टेस्ट के जरिए मैं खुद को बच्चे का बाप साबित कर सकता था. मेडिकल साइंस के इस दौर में ऐसी बातें छिपी नहीं रह सकतीं. इस केस में अजहर की पोजीशन बहुत कमजोर थी, इसलिए बच्चा मुझे मिल सकता था.

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 3

अब्बू को भी पहली बार मुझ पर सख्त गुस्सा आया. वह आशा कर रहे थे कि मैं इस साल इंटर में कोई अच्छी पोजीशन हासिल करूंगी, क्योंकि न केवल मैं ने कालेज से छुट्टी ली थी, बल्कि घर में भी हर समय अपने कमरे में स्टडी में मगन रहती थी. हकीकत यह थी कि मैं कालेज कम ही जाती थी. मेरा सारा समय राहेल के साथ घूमनेफिरने में गुजरता था. कमरे में घुसे रहने का कारण यह था कि वहां मैं सब से छिप कर अपने महबूब के तसव्वुर में गुम रह सकती थी.

उस समय मेरा नशा हिरन हो गया, जब अब्बू ने मुझ से परचों में फेल होने की वजह पूछी थी. उन की चिंता उचित थी. जब मैं इतनी जहीन और पढ़ाकू थी तो मेरे 4 परचों में फेल हो जाने की क्या वजह थी? मैं ने बहाने तराश कर अब्बू को किसी हद तक नार्मल किया. वादा किया कि अगले सालाना इम्तिहान में पोजीशन ले कर दिखाऊंगी. मगर अम्मी किसी तौर पर रजामंद नहीं हुईं. उन्होंने फैसला सुना दिया कि मेरी पढ़ाई खत्म, कालेज जाना बंद. अब्बू ने अम्मी के फैसले के आगे हथियार डाल दिए.

तालीम की तो मुझे भी कोई खास परवाह नहीं थी, मगर कालेज जाना बंद होने की हालत में मेरे लिए राहेल से मुलाकात का रास्ता बंद हो जाता. टेलीफोन भी मेरी पहुंच से बाहर हो गया था. रात को सोने से पहले अम्मी टेलीफोन सेट अपने कमरे में ले जाती थीं. दिन में भी मुझे मौका नहीं मिलता था.

मैं अपना हर तरीका इस्तेमाल कर के थक गई, अम्मी टस से मस नहीं हुईं. तब मैं ने अपना सब से ज्यादा परखा हुआ नुस्खा आजमाया और भूख हड़ताल कर दी. जब मैं ने लगातार 2 दिनों तक कुछ नहीं खाया तो अम्मी घबरा गईं. उन्होंने हर तरह से कोशिश की कि मैं अपनी भूखहड़ताल खत्म कर दूं, मगर मेरी एक ही रट थी कि जब तक मुझे कालेज जाने की इजाजत नहीं मिलेगी, मैं कुछ नहीं खाऊंगी, चाहे मेरी जान ही क्यों न निकल जाए. तीसरे दिन अम्मी ने मुझे बेदिली से इजाजत तो दे दी, मगर धमकी भी दी कि अगर उन्होंने मेरे बारे में ऐसीवैसी कोई बात सुनी तो वह मेरा गला घोंट देंगी और खुद भी जहर खा कर मर जाएंगी.

मैं ने उन की धमकी पर कोई ध्यान नहीं दिया. मैं तो राहेल से मिलने के तसव्वुर में जैसे पागल हुई जा रही थी. क्लासें शुरू होते ही मेरी और राहेल की मुलाकातें फिर शुरू हो गईं. इतने अरसे बाद उसे देख कर मैं जैसे दोबारा जी उठी थी. अब मैं बेधड़क उस के साथ शहर की तफरीहगाहों में चली जाती थी. खास तौर पर समुद्र तट हम दोनों की पसंदीदा जगह थी. उस के संग समुद्र की नरम रेत पर चलते हुए ऐसा लगता, जैसे मैं ने पूरी दुनिया जीत ली हो.

उस दिन भी हमारा क्लफटन (कराची का मुंबई के जुहू जैसा स्थान) का प्रोग्राम था. मैं घर कह कर आई थी कि कालेज के बाद अपनी सहेली के यहां जाऊंगी. वहां से शाम तक घर वापस आऊंगी. राहेल कालेज से बाहर एक जगह पर अपनी गाड़ी लिए मेरे इंतजार में खड़ा था. वहां से हम दोनों क्लफटन पहुंच गए. छुट्टी का दिन न होने की वजह से वहां रश नहीं था. राहेल कुछ ज्यादा ही खुशगवार मूड में था. वह रहरह कर जिस अंदाज में तारीफ कर रहा था, उस ने मुझे आसमान पर पहुंचा दिया था. हम समुद्र के किनारे टहलते रहे. उस की शरारतों में बेबाकी पाई जाती थी, मगर मैं ने बुरा नहीं माना. यों ही हंसतेखेलते वक्त गुजर गया और होश उस समय आया, जब सूरज डूबने के करीब था.

खारे पानी और साहिल की रेत ने मेरा हुलिया बिगाड़ दिया था और मैं इस हुलिए  में घर जा कर अम्मी के क्रोध को दावत नहीं देना चाहती थी. मगर मसला यह था कि मैं अपना हुलिया कहां ठीक करती? इस परेशानी का इजहार मैं ने राहेल से किया तो वह कहकहा लगा कर बोला, ‘‘बस इतनी सी बात? तुम्हें परेशान देख कर तो मेरी जान निकल जाती है. यहीं करीब ही मेरे एक दोस्त का कौटेज है. इत्तेफाक से उस की चाबी मेरे पास है. वहां साफ पानी होगा. तुम आराम से मुंहहाथ धो लेना. वैसे भी देर हो गई है. तुम्हें अब तक घर पहुंच जाना चाहिए था.’’

‘‘तुम याद कहां रहने देते हो?’’ मैं ने नाराजगी से कहा.

कौटेज छोटा सा था और बिलकुल खाली था. चौकीदार भी नहीं था, जबकि सुनसान साहिल पर चौकीदार रखना लाजिमी था.

‘‘इस कमरे से अटैच्ड बाथ है,’’ राहेल ने एक कमरे की तरफ इशारा किया. वह शानदार बेडरूम था. मैं बाथरूम में चली गई. साफ पानी से जल्दीजल्दी मुंहहाथ साफ किए. कंघी से सिर में फंसी रेत साफ की और एक हद तक कपड़े भी साफ किए. फिर मैं ने आईने में अपना जायजा लिया और बाहर जाने के लिए बाथरूम के दरवाजे का हैंडिल घुमाया, मगर वह टस से मस नहीं हुआ. मैं ने जोर लगाया. फिर भी कोई असर नहीं हुआ. अंदर जाते समय वह आसानी से घूम गया था. पहली बार मुझे किसी खतरे का अहसास हुआ, लेकिन मेरे दिल ने तसल्ली दी कि यह कोई फाल्ट है. मैं ने दरवाजा पीट कर राहेल को आवाज दी.

‘‘मैं यहीं हूं. शोर मत मचाओ.’’ उस की आवाज करीब से उभरी.

‘‘राहेल, यह दरवाजा बंद हो गया है. खुल नहीं रहा.’’ मैं ने रुआंसी हो कर कहा.

‘‘बंद नहीं हुआ, बल्कि मैं ने लौक कर दिया है.’’ वइ इत्मीनान से बोला तो मेरी जान निकल गई, ‘‘राहेल, प्लीज, मजाक बंद करो. मुझे पहले ही देर हो गई है.’’

‘‘देर तो तुम्हें हो ही चुकी है जानेमन और मजाक यह नहीं, वह था, जो मैं अब तक करता आया था.’’ उस के लहजे में व्यंग्य था.

‘‘दरवाजा खोलो. तुम मुझे यों कैद नहीं कर सकते.’’ मैं पूरी ताकत से चिल्लाई.

‘‘कैद तो तुम हो चुकी हो. अब जरा 2-4 रोज तो हमारे पास रहो.’’ उस ने कहकहा लगा कर कहा.

‘‘हमारे… हमारे से क्या मतलब?’’ मैं चौंकी.

‘‘भोली लड़की, मैं ने दोस्तों की दावत का इंतजाम किया है. तुम्हारे पास हुस्न का जो खजाना है, उस से तो कितने ही जरूरतमंद खुशहाल हो सकते हैं.’’ उस की हंसी में कमीनापन था.

‘‘बंद करो बकवास. कुत्ते! धोखेबाज!’’ मैं चीखी. फिर सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘राहेल, तुम्हें क्या हो गया है? तुम मुझ से मोहब्बत करते हो. फिर भी मुझे यों रुसवा करना चाहते हो?’’

‘‘मोहब्बत,’’ उस ने फिर कहकहा लगाया, ‘‘यह किस चिडि़या का नाम है? जानेमन, हम तो हुस्नोंशबाब के पुजारी हैं. अब तुम जरा पुरसुकून हो जाओ. नहाधो कर हमारे स्वागत के लिए तैयार हो लो. मैं जा कर दोस्तों को खबर कर आऊं और सुनो, शोर मचाने से कुछ हासिल नहीं होगा. इस वीराने में तुम्हारी फरियाद सुनने कोई नहीं आएगा.’’

                                                                                                                                             क्रमशः

यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 3

सभी न्यूज चैनल्स मंगी की मौत और उस के आखिरी लम्हों की वीडियो की फुटेज दिखा रहे थे. पुलिस की काररवाई पर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे. कातिल ने अपने दावे के मुताबिक मंगी को अदालत में पुलिस के सामने मार दिया था. डीएसपी रंधावा और इंसपेक्टर भट्टी बारबार मंगी के आखिरी लम्हों की वीडियो देख रहे थे, क्योंकि कोई सुबूत हाथ नहीं आ रहा था.

रंधावा पूरे 38 घंटे बाद बिस्तर पर लेटा तो सुबह 7 बजे के अलार्म मोबाइल की सुरीली आवाज से जागा. मोबाइल अलार्म के साथ उस के जेहन में भी एक घंटी बजी. चाय पी कर रंधावा औफिस के लिए निकल पड़े. औफिस में एक बार फिर उन्होंने मंगी के कत्ल की वीडियो देखी. इस बार वीडियो देख कर उन के होंठों पर एक रहस्यमय मुसकराहट आई.

रात 8 बजे रंधावा जज आफाक अहमद के कमरे में बैठे थे. दोनों के बीच मंगी के रहस्यमय कत्ल पर बातचीत चल रही थी. आफाक अहमद ने कहा, ‘‘इस मामले में सब कुछ रहस्यमय है.’’

रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जज साहब, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.’’ इस के बाद दीवार पर नजर डालते हुए वह बोले, ‘‘इस पीतल की घड़ी के बगल में मार्क एंड बेंसन की स्विटजरलैंड मेड घड़ी लगी थी. वह नजर नहीं आ रही है?’’

‘‘वह खराब हो गई है.’’ जज साहब ने कहा.

दोनों दोस्तों की नजरें मिलीं. दोनों ही एकदूसरे के मिजाज और सोच के हर रंग से वाकिफ थे. रंधावा ने कौफी का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘आफाक अहमद, तुम्हारी योग्यता का कोई जवाब नहीं. आखिर तुम ने इस केस को यादगार बना ही दिया.’’

रंधावा की इस बात से आफाक अहमद बिलकुल नहीं चौंके. उन्होंने कहा, ‘‘आखिर तुम्हें मेरा खयाल आ ही गया. लेकिन तुम्हारे पास सिर्फ थ्योरी है. कोई सुबूत नहीं कि यह सब कैसे हुआ?’’

रंधावा ने खुल कर हंसते हुए कहा, ‘‘बेशक कोई सुबूत नहीं है, मगर मैं जान गया हूं कि इस कारनामे को तुम ने कैसे अंजाम दिया?’’

‘‘जरा मैं भी तो सुनूं?’’ जज ने मजा लेते हुए कहा…

‘‘तुम्हें कैप्टन शाद अली की तकनीकी मदद हासिल थी.’’

पहली बार आफाक अहमद थोड़ा परेशान हुए. रंधावा ने आगे कहा, ‘‘मैं यह नहीं जानता कि तुम दोनों का गठजोड़ कैसे हुआ? पर यह जरूर जान गया हूं कि यह तुम दोनों की मिलीभगत थी.’’

जज आफाक अहमद ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मुश्किल आसान कर देता हूं. कैप्टन शाद अली को मेरे पास तुम्हारा भतीजा ले कर आया था.’’

रंधावा ने बात काटी, ‘‘और फिर उस मुलाकात में तुम दोनों ने मासूम दुआ अली के बेरहम कातिल को अदालत के कमरे में ही खत्म करने की योजना बना डाली. तुम्हें अपनी योजना की कामयाबी का सौ फीसदी यकीन था? इस दौरान तुम्हारे अंदर शरारत जाग उठी. तुम ने मुझे बीच में घसीट कर एक तरह से चुनौती दी कि तुम्हारे सामने मंगी मारा जाएगा और तुम कुछ कर सकते हो तो कर लो?’’

आफाक अहमद कहकहा लगाते हुए बोले, ‘‘बिलकुल ठीक जा रहे हो मेरे दोस्त.’’

‘‘योजना यकीनन तुम ने तैयार की थी. तुम्हारे कहने के मुताबिक कैप्टन शाद अली ने तुम्हारे कमरे की ‘मार्क एंड बेंसन’ घड़ी में जरूरी बदलाव कर के ‘एरोगन’ फिट कर दी और उस का ट्रिगर रिमोट कंट्रोल से जोड़ दिया.’’

रंधावा की इस बात से आफाक अहमद सन्न रह गए. उन की इस हालत का मजा लेते हुए रंधावा ने आगे कहा, ‘‘फैसले वाले दिन तुम उस खास घड़ी को ब्रीफकेस में रख कर अपने साथ ले गए. तुम उस समय अपने चैंबर में थे, जब मेरी टीम अदालत के कमरे को चैक कर रही थी. हम ने दीवार पर लगी तुम्हारी खास घड़ी जैसी मार्क एंड बेंसन घड़ी को भी बारीकी से चैक किया था.

निश्चिंत हो कर हम ने अदालत के कमरे को बंद करवा दिया था. इस के बाद तुम्हारे लिए सब कुछ बड़ा आसान हो गया. अपने चैंबर से अदालत के कमरे में खुलने वाले दरवाजे के जरिए तुम ने अंदर से खुलने वाले दरवाजे के जरिए अंदर दाखिल हो कर उस घड़ी की जगह अपनी घड़ी लगा दी.

‘‘मंगी को तुम ने बरी नहीं किया बल्कि उसे मौत दे दी. मुलजिमों के कटघरे और घड़ी का दरम्यानी फासला, घड़ी की ऊंचाई और मंगी की 6 फुट से निकलती लंबाई, सब कुछ तुम्हारी नजर में था. तुम्हारी पूरी योजना तैयार थी. रिमोट का महज एक बटन दबा कर तुम ने उसे खत्म कर दिया. शायद यह शेर ऐसे ही कत्ल के बारे में कहा गया है –

‘न हाथ में खंजर न आस्तीन पर लहू

तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो.’

जज आफाक अहमद ने बेआवाज ताली बजाई. एक पुलिस अफसर के तारीफी अल्फाज उन का रुतबा बढ़ा रहे थे. रंधावा ने कहा, ‘‘कत्ल के बाद जब हम ने दोबारा कमरा बंद किया तो तुम ने पहले की ही तरह जा कर घड़ी बदल दी और हमारे सामने से बड़े आराम से घर चले गए. उस के बाद हम बेचारे बने झक मारते रहे.’’

उन के इस अंदाज पर आफाक अहमद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी कहानी बस अंदाजों पर टिकी है. तुम्हारे पास मेरे खिलाफ न कोई सुबूत है न कोई शहादत. तुम्हारी अंदाजों पर टिकी कहानी सुन कर हाईकोर्ट एक माननीय डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज के लिए गिरफ्तारी वारंट कभी जारी नहीं करेगा? बल्कि मुमकिन है कि ऐसी दरख्वास्त करने वाले पुलिस अफसर के स्टार ही मौके पर उतार लिए जाएं.’’

‘‘जानता हूं.’’ रंधावा ने कहा, ‘‘मेरा ऐसा कुछ करने का कोई इरादा भी नहीं है. और यकीनन वह खास कातिल घड़ी भी अब तक तुम ने ठिकाने लगा दी होगी.’’

आफाक अहमद ने तारीफी अंदाज में कहा, ‘‘यकीनन तुम एक काबिल और होशियार पुलिस अफसर हो. पर यह तो बताओ कि तुम्हें मेरा खयाल आया कैसे?’’

रंधावा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मंगी के ठीक सामने दीवार पर लगी पुरानी घड़ी मेरे जेहन में चुभ रही थी. वैसी ही घड़ी मैं तुम्हारे इस कमरे में देख चुका था. सुबह अलार्म की घंटी ने याद दिलाया. नईपुरानी घडि़यां जमा करना तुम्हारा पुराना शौक रहा है. तुम्हारी तरफ ध्यान गया तो परदे हटते गए और फिर तुम ही अकेले ऐसे शख्स थे, जो अपने चैंबर के रास्ते से कभी भी अदालत के कमरे में जा सकते थे.

‘‘वारदात के पहले और वारदात के बाद बिना किसी की नजरों में आए तुम अदालत के कमरे में दाखिल हो सकते थे. इस के अलावा तुम ने फैसला सुनाने से पहले घड़ी और मंगी के बीच खड़े सफाई वकील को बैठने के लिए कहा था.

‘‘अगर सफाई वकील वहां खड़ा भी रहता तो कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन तुम ने खास तौर पर उसे बैठने को कहा था. उस वक्त की वीडियो देखने पर मुझे यकीन हो गया कि यह कारनामा सिर्फ तुम ही कर सकते थे.’’

आफाक अहमद ने सुकून से कहा, ‘‘तुम क्यों रिटायर हो रहे हो रंधावा? तुम्हारी काबलियत काबिले तारीफ है. 3-4 साल और नौकरी कर लो.’’

‘‘नहीं,’’ रंधावा ने कहा, ‘‘अपनी ईमानदारी और सच्चाई की साख बचातेबचाते अब मैं थक चुका हूं. वैसे एक बात और कहूंगा, तुम्हारी गुनहगार को सजा दिलाने की जिद और उसूल भी एक सुबूत है. मेरा आखिरी केस मेरे लिए सचमुच यादगार रहेगा. इस बात के साथ कि हर उलझे और मुश्किल केस की गुत्थियां सुलझाने वाला रंधावा अपने आखिरी केस को हल करने में नाकाम रहा. लेकिन मुझे खुशी है कि तुम्हारा उसूल अब भी कायम है. तुम्हारे बारे में जो मशहूर है कि तुम मुजरिम को छोड़ते नहीं, वह पूरा हुआ.’’

आफाक अहमद ने इत्मीनान और सुकून से सिर हिलाया. खड़े हो कर रंधावा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी हार और मेरी जीत कोई मायने नहीं रखती दोस्त. सब से अहम बात तो यह है कि हम दोनों के दिल पर कोई बोझ नहीं है.’’

रंधावा ने मुसकरा कर हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं भी इस बात से खुश हूं कि दुआ अली को इंसाफ मिला है, वह कैसे भी मिला है.’’

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 2

मुश्किल से एक मिनट लगा होगा. कोठारी रामलाल के चैंबर से बाहर आ गया. उस वक्त उस का चेहरा पसीने से तर था, सांस फूली हुई थी. रूमाल से पसीना पोंछते हुए वह बाहर के गलियारे में निकल आया. औफिस का मुख्य दरवाजा डुप्लिकेट चाबी से खोल कर वह बाहर चला आया और दरवाजा बंद कर दिया. बाहर आते ही उसे टैक्सी मिल गई. टैक्सियां बदलते हुए वह दोपहर का शो खत्म होने के समय सिनेमाहाल के पास पहुंच गया. शो छूटा तो वह हाल से निकली भीड़ में शामिल हो गया और फिर भीड़ से निकल कर मैनेजर के चैंबर में जा पहुंचा. कुछ इस तरह जैसे फिल्म देख कर बाहर आया हो.

मैनेजर के केबिन में बैठ कर उस ने एक सिगरेट पी और फिर उस से विदा ले कर अपने औफिस आ पहुंचा. उस ने टैक्सी ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम जरा ठहरो, मैं अभी लौटता हूं.’’

पल भर बाद कोठारी बदहवास दौड़ता हुआ बाहर आया और चिल्ला कर बोला, ‘‘खून, किसी ने उसे मार डाला. ड्राइवर, जल्दी चलो… थाने…’’

थाने पहुंच कर कोठारी ने बदहवासी के आलम में इंसपेक्टर को कत्ल की बात बताई, इंसपेक्टर कोठारी और 2 सिपाहियों के साथ तुरंत जिप्सी ले कर चल दिया.

औफिस में आते ही कोठारी निढाल भाव से एक कुरसी पर गिरते हुए बोला, ‘‘आप चैंबर में खुद जा कर देख लें. मुझ में उस भयानक दृश्य को दोबारा देखने की हिम्मत नहीं है.’’

इंसपेक्टर ने जा कर देखा. रामलाल गोयल का निर्जीव शरीर आराम कुरसी पर पड़ा हुआ था. उस की कनपटी पर गोली का निशान था और कनपटी से ले कर फर्श तक खून फैला था. गोली शायद अंदर ही रह गई थी. पुलिस का डाक्टर, फोटोग्राफर आदि आए. औफिस की तलाशी से कोई खास चीज नहीं मिली. जरूरी काररवाई के बाद इंसपेक्टर ने फोन कर के एंबुलेंस बुलवाई. साथ ही कोठारी से कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप अपना बयान लिखवा दें. आगे की काररवाई आप की रिपोर्ट पर निर्भर करेगी.’’

कोठारी ने अटकअटक कर बदहवासी के आलम में अपना बयान लिखवाना शुरू किया, हवलदार उस का बयान नोट करता जा रहा था. कोठारी ने दिन भर की कहानी, मैटनी शो में सिनेमा जाने की बात और लौट कर यह भयानक दृश्य देख कर थाने जाने वगैरह की सारी बातें बयान में लिखवा दीं. हवलदार उस के बयान को पढ़ कर इंसपेक्टर को सुना ही रहा था कि औफस के आगे एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. मोटरसाइकिल खड़ी कर के एक छरहरे, मजबूत शरीर वाले व्यक्ति ने अंदर कदम रखा. कोठारी उसे जानता था.

वह मयंकमोहन था, पत्रकार और शौकिया जासूस. उसे देख कर कोठारी को फिर से पसीना आने लगा. वह सोचने लगा, यह बिना टांग अड़ाए नहीं मानेगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘कहां से आ रहे हैं मि. मयंक? यहां की गंध आप की नाक तक भी पहुंच गई क्या?’’

‘‘एक खास सिलसिले में थाने गया था, आप मिले नहीं. वहां पता लगा तो इधर आ गया. क्या मामला है?’’

मयंक ने बैठ कर सिगरेट सुलगाई. इंसपेक्टर ने कोठारी के मुंह से सुनी कहानी उसे सुना दी. फिर चैंबर में ले जा कर गोयल की लाश भी दिखाई. वह जानता था कि कई बार मयंक बड़े काम का साबित होता है. मयंक ने चेंबर, मेज पर रखे कागजात, नोटबुक और गोयल की लाश वगैरह का सूक्ष्म निरीक्षण किया. फिर वापस औफिस में आ गया.

इंसपेक्टर ने कोठारी का लिखवाया हुआ बयान खुद मयंक को पढ़ कर सुनाया. इस बीच मयंक चुपचाप सिगरेट के कश लेते हुए सुनता रहा. बीचबीच में वह कोठारी को देख रहा था. कोठारी बेचैन सा नजर आ रहा था. जब इंसपेक्टर बयान पढ़ चुका, तो कोठारी ने पूछा, ‘‘मुझे यहां कब तक बैठना होगा? मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं घर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’

‘‘बस, ऐंबुलेंस को आने दीजिए, आ ही रही होगी. हम डैड बौडी को भिजवा कर औफिस में ताला लगा कर सील कर देंगे. अभी आप को औफिस बंद रखना पड़ेगा,.’’

चपरासी लंच कर के कभी का लौट आया था. पुलिस ने उस का भी बयान लिया था. कोठारी ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘ताले सील की क्या जरूरत है? यह रहेगा यहां.’’

‘‘नहीं मि. कोठारी, मर्डर हुआ है यहां. जब तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच जाते हमें औफिस सील करना पड़ेगा. थोड़ी काररवाई और हो जाए तो आप चले जाइएगा. लेकिन आप शहर के बाहर नहीं जा पाएंगे.’’

कोठारी चुपचाप बैठा रहा.

मयंकमोहन इस बीच घूमघूम कर औफिस के ताले की चाबी के छेद, दरवाजे आदि को देख रहा था. इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप के बयान की पुष्टि हो ही जाएगी. कौन सी फिल्म देखी थी आप ने?’’ आप दोपहर वाले शो में प्लाजा सिनेमा में थे न?

‘‘जी हां, प्लाजा में मैं ने ‘सुनहरा तीर’ फिल्म देखी थी. यह क्या पता था कि आज ही यह मनहूस घटना घटेगी.’’

औफिस की बारीकी से छानबीन कर रहे मयंकमोहन ने कोठारी की बात सुनी तो उसे स्थिर दृष्टि से देखने लगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘आप के पास कोई सुबूत है कि आप ने आज ही वह फिल्म देखी है?’’

‘‘जी, मेरे पास आधा टिकट है,’’ कोठारी ने आधा टिकट निकाल कर दिखाते हुए इतमीनान से जवाब दिया, ‘‘सिनेमा का मैनेजर और वहां के गेटकीपर्स वगैरह मुझे जानते हैं. इत्तेफाक से आज मैं मैनेजर से भी मिला था.’’

मयंकमोहन के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट उभर आई. उस ने इंसपेक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर तो देख कर गया है, उस के विचार से हत्या कब हुई होगी.’’

‘‘डाक्टर का अंदाजा है कि हत्या 12 से डेढ़ या 2 बजे के बीच हुई होगी.’’ वैसे आटोप्सी के बाद ठीक पता तो कल ही लगेगा.’’

एंबुलेंस आ गई. अटेंडेंटों ने बौडी को एंबुलेंस में रख दिया. एंबुलेंस चली गई.

इंसपेक्टर ने सिपाहियों से कहा, ‘‘औफिस में ताला और सील लगा दो.’’

मयंकमोहन ने टोका, ‘‘थोड़ा ठहरें, इंसपेक्टर साहब.’’

कोठारी ने इंसपेक्टर से कहा, ‘‘तो, मैं अब जा सकता हूं? यहां तो आप सील लगाएंगे.’’

‘‘जरा आप भी ठहरें मि. कोठारी, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ मयंक ने कहा.

अनिच्छा दिखाते कोठारी ने पूछा, ‘‘क्या बातें?’’

‘‘मि. कोठारी, आप आज दिन के 12 बजे से 3 बजे तक सिनेमा हाल में ही थे न?’’

‘‘बेशक,’’ कोठारी ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘क्या आप मुझे फिल्म की कहानी संक्षेप में सुनाएंगे? फिल्म का नाम भी दोहराने की कृपा करें.’’

‘‘वह सब मैं इंसपेक्टर साहब को बता चुका हूं.’’ कोठारी बोला, तो मयंक ने अनुरोध किया, ‘‘बस, एक बार और. इंसपेक्टर साहब, प्लीज आप एक कागज पर इन का बयान दोबारा नोट कर लें.’’

कोठारी ने बताया, ‘‘फिल्म का नाम था ‘सुनहरा तीर.’ उस की कहानी भी दिलचस्प है.’’ वह संक्षेप में कहानी का सारांश बता कर बोला, ‘‘खास कर वह सीन, जब अंत में हीरो तीरों की बौछार में हीरोइन को घोड़े पर बैठा कर भागता है, बेजोड़ है.’’

‘‘कोठारी साहब, आप यह सब सचसच बता रहे हैं?’’ मयंक ने पूछा.

मगनलाल कोठारी का चेहरा लाल हो गया. वह कुछ बिगड़ कर बोला, ‘‘तो क्या आप को झूठ लग रहा है? आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं ने ही खून किया हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा कब कहा,’’ मयंकमोहन ने इतमीनान से कहा, ‘‘मैं आप की बात पर पूरा विश्वास कर रहा हूं. बस, आप को गवाहों के सामने अपने इस बयान पर हस्ताक्षर करने होंगे.’’

‘‘मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’ कोठारी ने जोश में कहा.

                                                                                                                                                क्रमशः

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 2

उस ने फटाफट कार की डिक्की बंद की और कार ले कर वहां से निकल गया. कार चलाते समय वह बारबार साइड मिरर में देख रहा था कि कहीं कोई उस का पीछा तो नहीं कर रहा. उस के दिमाग में बारबार यही बात घूम रही थी कि अपार्टमेंट में रहने वाले सभी लोग बाहर गए हुए थे तो वहां फायर किस ने किए?

वह रात उस ने होटल माउंटेन हाऊस में गुजारी और सुबह जल्दी न्यूयार्क के लिए रवाना हो गया. ट्रंक में क्या चीज रखी है, यह जानने के लिए उस की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी. न्यूयार्क पहुंचते ही उस ने डिक्की में रखे ट्रंक को खोला. अंदर एक सोने की अंगूठी मिली. उस पुरानी अंगूठी में एक बड़ा हीरा और उस के आसपास कई छोटे हीरे जड़े थे.

वह अंगूठी बहुत कीमती लग रही थी. निक ने अंगूठी जेब में रखी और ट्रंक डिक्की में ही बंद कर दिया. अंगूठी देख कर ग्लोरिया के मन में लालच आ गया. वह उस अंगूठी को अपने पास रखना चाहती थी, लेकिन निक ने यह कह कर उस से अंगूठी ले ली कि यह क्लाइंट या मालिक की अमानत है, वह उन्हें लौटा देगा.

रात साढ़े 9 बजे वह दिए गए पते पर ट्रंक पहुंचाने निकल गया. वह एक 4 मंजिला इमारत थी. अपार्टमेंट के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उसे विक्टर ने एक चाबी दे रखी थी. निक ने वह चाबी ताले में लगाई तो वह खुल गया. फिर दरवाजा खोल कर उस ने वह ट्रंक कमरे में रख दिया. जिस कमरे में ट्रंक रखा था वह हौलनुमा था और बेहद खूबसूरती से सजाया हुआ था.

ट्रंक रखने के बाद वह अपनी कार के पास पहुंचा तो वहां उसे विक्टर एलियानोफ मिला, जो कार से टेक लगा कर सिगरेट पी रहा था. निक को देखते ही बोला, ‘‘निक तुम अपने हुनर में माहिर हो. जी चाहता है कि तुम्हारे हाथ चूम लूं.’’

‘‘हाथ चूमने की जरूरत नहीं है. मुझे जो काम सौंपा गया था, पूरा कर दिया.’’

निक ने उस अंगूठी के बारे में विक्टर को कुछ नहीं बताया. उस ने सोचा कि विक्टर को अंगूठी के बारे में कुछ मालूम नहीं होगा. विक्टर ने एक मोटा लिफाफा निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये हैं तुम्हारे बाकी के 15 हजार डालर.’’

लिफाफा लेते हुए निक बोला, ‘‘मुझे ट्रंक में एक कीमती चीज मिली है.’’

विक्टर ने चौंक कर उसे देखते हुए कहा, ‘‘मेरी जानकारी के अनुसार ट्रंक खाली था तो तुम्हें उस में क्या चीज मिली?’’

‘‘हीरे जड़ाऊ एक अंगूठी थी उस में.’’

‘‘कहां है वो अंगूठी?’’

‘‘वह मेरे पास है मैं उसे उस के मालिक को वापस दूंगा. क्योंकि मैं केवल फालतू चीजें ही चोरी करता हूं, कोई कीमती चीज नहीं. यदि मैं अंगूठी रख लूंगा तो मुझ में और दूसरे चोरों में क्या फर्क रह जाएगा?’’

‘‘अगर तुम इतने ही शरीफ बनते हो तो लाओ अंगूठी मुझे दो, मैं उसे मालिक तक पहुंचा दूंगा.’’

‘‘नहीं, जब इसे चुरा कर मैं लाया हूं तो मैं ही पहुंचाऊंगा.’’

अगले दिन निक अखबार में छपी एक खबर पढ़ कर चौंक उठा. खबर में लिखा था कि न्यूपालिट में डकैती की वारदात कर लाखों रुपए के बहुत पुराने हीरेजवाहरात के जेवर लूट लिए. वारदात के समय डकैतों ने अपार्टमेंट के चौकीदार की गोली मार कर हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ्तार किया है जिन में एक लड़की भी शामिल है. पुलिस ने उन के पास से ट्रंक और कुछ लूटे हुए जेवरात बरामद कर लिए.

खबर पढ़ कर निक समझ गया कि यह सब विक्टर का ही कराधरा होगा. यानी विक्टर ने इस अपराध में उसे भी शामिल कर लिया. उस ने सोचा कि जिन 3 जनों को उसने फंसाया है वह उस के करीबी रिश्तेदार होंगे. निक ने विक्टर को फोन लगाया और मिलने के लिए कहा. विक्टर ने उसे बर्कशायर होटल के कमरा नंबर 787 में मिलने के लिए बुला लिया.

निक फटाफट तैयार हो कर होटल बर्कशायर पहुंच गया. विक्टर कमरे में बैठा टीवी देख रहा था. निक ने बैठते ही कहा, ‘‘मिस्टर विक्टर मैं यह जानना चाहता हूं कि जिन 3 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उन से आप का क्या रिश्ता है? चौकीदार को किस ने मारा?’’

यह सुनते ही विक्टर ने चेकबुक निकाली और 5 हजार डालर का एक चेक काट कर उसे देते हुए कहा, ‘‘मिस्टर निक, ये 5 हजार रखो और भूल जाओ कि तुम ने कोई ट्रंक चोरी किया था और कोई घटना घटी थी. हां, वह कीमती अंगूठी भी तुम रख लो.’’

उस की बात सुन कर निक चौंक गया. वह बोला, ‘‘अच्छा, तो वह मकान आप का ही है. मुझे पहले ही शक था.’’

‘‘हां, मकान मेरा ही है मगर मैं कह रहा हूं कि उन सब बातों को भूलने के लिए ही ये 5 हजार हैं.’’

निक ने सोचा कि विक्टर रकम के बूते उसे चुप कराना चाहता है. वह लालच में नहीं आया. उस ने वह चेक फाड़ दिया और कहा, ‘‘मामला 3 बेगुनाह लोगों का है जिन्हें आप ने कत्ल और डकैती के जुर्म में जेल भिजवाया है.’’

‘‘मिस्टर निक, अक्ल से काम लो अगर वो तीनों छूट जाएंगे तो फांसी का फंदा तुम्हारी गरदन में ही पड़ेगा. मैडिकल रिपोर्ट के मुताबिक चौकीदार की मौत का जो वक्त है उसी वक्त तुम मेरे घर में मौजूद थे. इसलिए कत्ल और डकैती के इल्जाम से तुम निकल नहीं पाओगे.’’

विक्टर की बात में दम था. निक सोचने पर मजबूर हो गया. तभी विक्टर बोला, ‘‘तुम्हें बहुत उत्सुकता है जानने की तो सुन लीजिए, जिस मकान में तुम ने चोरी की, वह हमारा पुश्तैनी मकान है. ऐना एलियानोफ मेरी सौतेली बहन है. मेरे पुरखे रूसी थे. मेरे दादा ऐलेक्स एलियानोफ फौज में जनरल थे. लेनिन के साथ कुछ गलतफहमी होने पर उन्हें रूस छोड़ना पड़ा था. 1921 में वह रूस से इस्तांबुल आ गए. वह खानदानी रईस थे. उन के पास काफी कीमती हीरेजवाहरात थे.

‘‘वह 1932 में न्यूपालिट आ गए. यहां मकान बना कर रहने लगे. सारा कीमती खजाना एक मजबूत संदूक में बंद कर के तहखाने में रख दिया. उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. लेकिन अपनी मौत से पहले दादा ने मेरे पापा को खजाने का राज बता दिया था. इस के बाद मेरे पिता ने एक अमेरिकन महिला से दूसरी शादी कर ली थी. ऐना एलियानोफ उस अमेरिकन महिला से पैदा हुई हमारी सौतेली बहन है.’’

निक ने टोका, ‘‘ऐना की मां कहां है?’’

‘‘ऐना की मां ने मेरे पिता से करीब 20 साल पहले तलाक ले लिया था. तलाक के बाद वह ऐना को ले कर न्यूयार्क चली गई थी. बाद में उसने किसी शख्स से दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘फिर ये कीमती जेवर की चोरी का क्या मामला है?’’ निक ने पूछा.

‘‘मेरे पिता की मौत करीब एक हफ्ता पहले हुई थी. मरने से पहले उन्होंने खानदानी खजाने के बारे में मुझे बता दिया था. मुझ से गलती यह हुई कि सारी बातें मैं ने एक डायरी में नोट कर ली थीं. पिता की मौत की खबर सुन कर सौतेली बहन ऐना भी आ गई थी.

‘‘मैं यह देख कर हैरान रह गया कि पिता के अंतिम संस्कार के बाद ऐना घर में रखी अलमारियां और दराजें खंगालने लगी. वह शायद कोई दस्तावेज तलाश रही थी. इसी बीच उसे मेरी डायरी हाथ लग गई. डायरी पढ़ कर उस ने ट्रंक के खजाने का रहस्य जान लिया था. 2 रोज बाद उस ने अपने 2 साथियों के साथ मिल कर ट्रंक का ताला तोड़ कर सारे जेवर चुरा लिए.’’

‘‘आप के पास इस चोरी का क्या सुबूत है?’’ निक ने पूछा.

‘‘यही तो सारी मुसीबत है. मेरे पास कोई सुबूत नहीं है, पर मुझे पक्का यकीन है कि चोरी उसी ने की, मैं ने उसे अपनी डायरी पढ़ते देख लिया था.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘और आप ने ट्रंक मुझ से चोरी करवा कर ऐना के अपार्टमेंट में रखवा दिया. बाद में आप ने पुलिस को खबर कर दी. लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि चौकीदार का कत्ल किस ने किया?’’ निक बोला.

‘‘जाहिर है यह काम ऐना के साथियों ने किया होगा.’’ विक्टर एलियानोफ बोला.

‘‘यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि जब ऐना और उस के साथी चंद रोज पहले चोरी कर चुके थे, तो फिर दोबारा वहां जा कर कत्ल करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘उन्हें शक हुआ होगा कि चौकीदार ने चोरी करते देख लिया है या शायद वो कुछ और चुराने आए हों.’’ निक चुप रह गया. उस ने जेब से हीरे की अंगूठी निकाल कर विक्टर के हाथ पर रख दी और बाहर निकल गया.

                                                                                                                                             क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 2

इस सनसनीखेज मामले की जांच में तत्परता दिखाना बहुत जरूरी था. क्योंकि अपहर्ता जयकरन को नुकसान पहुंचा सकते थे. दोपहर होतेहोते पुलिस को जयकरन के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. उस से पता चला कि उस की अंतिम लोकेशन दिल्ली-मेरठ रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र में थी. इस के बाद मोबाइल बंद हो गया था.

जबकि जयकरन के मोबाइल से फिरौती के लिए जो काल की गई थी, वह वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर गालंद क्षेत्र से की गई थी. मोबाइल से सिर्फ एक वही काल हुई थी. इस के बाद मोबाइल बंद कर दिया गया था. इस का मतलब अपहर्ता बेहद चालाक थे. उन्होंने फिरौती के लिए न सिर्फ जयकरन के फोन का इस्तेमाल किया था, बल्कि स्थान भी बदल दिया था. संदिग्ध गतिविधियों के चलते पुलिस ने दीपक को रडार पर ले लिया.

उस के मोबाइल की जांच से पता चला कि वह मोदीनगर क्षेत्र का रहने वाला था. जांच के दौरान यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के साथ राजनगर स्थित छोटे बच्चों के रौयल किड्स प्ले स्कूल में रहता था. उस की मां चूंकि स्कूल में ही कर्मचारी थी, इसलिए इस परिवार को स्कूल में रहने के लिए जगह मिली हुई थी.

पुलिस को दीपक के 2 और नजदीकियों के ठिकाने पता चले. इन में एक था संदीप. उस के मोबाइल की लोकेशन जयकरन के मोबाइल की लोकेशन से मैच हो रही थी. संदीप के बारे में पुलिस तत्काल कोई खास जानकारी नहीं जुटा सकी. शक में मजबूती आते ही पुलिस सतर्क हो गई. अगर दीपक ही अपहर्ता था तो यह भी संभव था कि उस ने जयकरन को स्कूल स्थित घर पर ही छिपा कर रखा हो.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श कर के अविलंब स्कूल में दबिश डालने का निर्णय लिया. एसपी अजयपाल शर्मा के नेतृत्व वाली टीम रौयल किड्स स्कूल पहुंची. उस वक्त दोपहर के 3 बजे थे. स्कूल के बच्चों की छुट्टी हो चुकी थी. अचानक पुलिस को वहां आया देख स्कूल की संचालिका रिचा सूद सकते में आ गईं. पुलिस को दीपक की मां अनीता भी वहीं मिल गईं. दीपक के बारे में पूछताछ करने पर वह बुरी तरह घबरा गईं.

“दीपक कहां है?” पुलिस ने पूछा.

“घर पर.” बताते हुए उस ने स्कूल कैंपस में पीछे की तरफ इशारा कर के बताया. वहां क्वार्टर बना हुआ था. पुलिस दनदनाती हुई वहां पहुंची तो वहां पहुंचते ही वह हुआ, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. घर के अंदर से अचानक गोलियां चलनी शुरू हो गईं.

संभवत: क्वार्टर में मौजूद लोगों को अपनी घेराबंदी का अंदाजा हो गया था. इस पर पुलिसकॢमयों ने भी हथियार थाम कर पोजीशन ले ली. कुछ मिनटों तक दोनों तरफ से रुकरुक कर कई राउंड गोलियां चलीं. इस से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई और लोग एकत्र हो गए. पुलिसकॢमयों की निगाहें क्वार्टर पर जमी थीं. तभी ट्रैक सूट पहने एक युवक ने तेजी से क्वार्टर का दरवाजा खोला और बिजली जैसी फुरती से फायरिंग करता हुआ भागा. पुलिस ने उसे चेतावनी दी, “रुक जाओ, वरना गोली मार देंगे.”

युवक ने एक पल के लिए पीछे पलट कर देखा और फिर भागने लगा. इस पर पुलिस ने एक गोली उस के बाएं पैर पर दाग दी. गोली लगते ही वह नीचे गिर गया. उस के गिरते ही पुलिसकॢमयों ने उसे घेर लिया. पुलिस को उम्मीद थी कि वह दीपक होगा, लेकिन उस ने अपना नाम संदीप बताया.

“जयकरन कहां है?” जवाब में उस ने घर की तरफ इशारा कर दिया. पुलिस हथियार तान कर घर के अंदर दाखिल हुई, तो भौचक्की रह गई. पिस्टल से लैश 2 और युवक वहां मौजूद थे. लेकिन वह घबराए हुए थे. जयकरन एक कोने में बैठा थरथर कांप रहा था. उस के हाथपैर बंधे हुए थे.

पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्त में ले कर जयकरन को बंधनमुक्त कराया. अपहर्ताओं को गिरफ्तार कर के जयकरन को सकुशल बरामद करना पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी थी. मौके से गिरफ्तार किए गए दोनों युवकों में एक दीपक व दूसरा उस का छोटा भाई बिट्टू था. उन के कब्जे से पुलिस ने तीन पिस्टल, उन के मोबाइल व जयकरन का मोबाइल भी बरामद कर लिया. बेटे की बरामदगी की सूचना पर विवेक महाजन और उन की पत्नी भी मुठभेड़स्थल पर आ गए. जयकरन बहुत डरासहमा था. इस बीच पुलिस घायल युवक संदीप को अस्पताल ले गई.

पुलिस दीपक व बिट्टू को थाने ले आई. पुलिस ने डरीसहमी स्कूल संचालिका रिचा सूद, दीपक की मां अनीता और उस के सब से छोटे भाई आयुष को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार युवकों व घायल संदीप से विस्तृत पूछताछ की गई तो राह से भटके युवाओं द्वारा रचित अपराध की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

दीपक का प्लेसमेंट एजेंसी का कमीशन पर आधारित काम था. उस के परिवार में मां अनीता के अलावा उस के छोटे भाई बिट्टू व आयुष थे. दीपक के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी. अनीता मेहनती और हिम्मती महिला थीं. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए छोटीमोटी नौकरियां कर के बेटों को इस उम्मीद में पढ़ायालिखाया कि वे जिम्मेदारियां उठा कर घर को संभाल लेंगे. लेकिन इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है.

अनीता ने आॢथक तंगियां भी देखी थीं और जमाने की कठोरता भी. वह मोदीनगर की भूपेंद्र कालोनी में रहती थीं. बाद में उन्होंने रौयल किड्स स्कूल में नौकरी कर ली थी. स्कूल परिसर में ही बने क्वार्टर में उन के रहने का भी इंतजाम हो गया तो वह तीनों बेटों के साथ वहां चली आईं. वहां आ कर दीपक ने एक कंपनी में कमीशन के आधार पर काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह काम उसे छोटा लगता था.

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 2

पहला राज थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई ओमवीर स्वाट टीम से बनाए गए. उन के साथ एसआई मोहित यादव, लेडी एसआई सुमित्रा रावत, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार सभी थाना लिंक रोड, एसआई मोहित कुमार, कांस्टेबल योगेश, विपुल खोकर, अभय प्रताप, लेडी कांस्टेबल मंजू सभी पुलिस लाइंस, कांस्टेबल तरुण स्वाट टीम.

दूसरी टीम स्वाधिका थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई आकाश तिवारी पुलिस लाइंस को बनाया गया. इस टीम में एसआई रोहित गुप्ता, कांस्टेबल नीतेश कुमार, लेडी कांस्टेबल एकता डबास सभी पुलिस लाइंस, मीना थाना लिंक रोड को शामिल किया गया.

तीसरी टीम के प्रभारी एसआई धु्रव सिंह पुलिस लाइंस को बनाया गया. उन के साथ एसआई नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल पुष्पेंद्र शर्मा, लेडी कांस्टेबल सीमा मलिक और जौली सभी थाना लिंक रोड के अलावा एसआई विवेक कुमार पुलिस लाइंस को भी शामिल किया गया. यह टीम द हैवन थैरपी सेंटर के लिए गठित की गई.

चौथी टीम अरोमा थैरपी सेंटर के प्रभारी एसआई सौरव, पुलिस लाइंस के नेतृत्व में गठित की गई. इस टीम में मुनेश कुमार, थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल निशांत स्वाट टीम, कांस्टेबल अंजेश कुमार थाना लिंक रोड, रवि यादव, लेडी कांस्टेबल राधा शर्मा पुलिस लाइंस, उर्वशी थाना लिंक रोड को शामिल किया.

पांचवीं टीम का प्रभारी एसआई विश्वेंद्र, पुलिस लाइंस को बनाया, जिस में एसआई यश कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल महेश कुमार थाना लिंक रोड, कांस्टेबल अनुज पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल रेणु चौहान पुलिस लाइंस, सीमा थाना लिंक रोड को शामिल किया गया. इस टीम को अरमान थैरेपी सेंटर के लिए नियुक्त किया गया.

छठी टीम के प्रभारी एसआई दिनेश कुमार यादव पुलिस लाइंस, कप्तान सिंह थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल अरुण वीर थाना लिंक रोड, कांस्टेबल विपिन पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल पूजा पुलिस लाइंस, शिवांगी को रायल स्पा सेंटर के लिए टीम में शामिल किया गया.

सातवीं टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई संजय कुमार पुलिस लाइंस, चेतन कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार थाना लिंक रोड, सुमित पुलिस लाइंस, कांस्टेबल श्रीकृष्णा पुलिस लाइंस, लेडी कांस्टेबल लता शर्मा पुलिस लाइंस, गीता पुलिस लाइंस.

आठवीं टीम के प्रभारी इंसपेक्टर पुष्पराज सिंह थाना लिंक रोड, महिला एसआई सर्जना पुलिस लाइंस, कांस्टेबल नीरेश यादव, थाना लिंक रोड, कांस्टेबल मनीष थाना लिंक रोड, संजय कुमार, थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल तहजीब खान स्वाट टीम, लेडी कांस्टेबल रेणु पुलिस लाइंस. यह टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए नियुक्त की गई.

‘द रुद्रा थैरपी’ पैसिफिक माल के अंदर चल रहे स्पा सेंटरों पर दबिश तथा आवश्यक काररवाई के मद्ïदेनजर हिदायत दी गई कि मौके पर मौजूद महिलाओं की मर्यादा को ध्यान में रख कर सर्च अभियान एवं वैधानिक काररवाई की जाएगी. इस के बाद सभी की जामातलाशी ले कर यह सुनिश्चित किया गया कि किसी के पास कोई नाजायज वस्तु नहीं है.

पैसिफिक माल में पुलिस ने मारा छापा

ये टीमें रात 8 बज कर 20 मिनट पर द रुद्रा थैरपी पैसिफिक माल के सामने पहुंच गईं. वहां आनेजाने वाले लोगों को पुलिस रेड का गवाह बनाने के लिए पूछा गया, लेकिन कोई भी शख्स बेकार के लफड़े में फंसने को तैयार नहीं हुआ. सभी ने अपनेअपने तरीके से मजबूरी जाहिर कर के इंकार कर दिया. निराश हो कर टीमों ने साढ़े 10 बजे एक साथ आठों स्पा सेंटरों पर धावा बोल दिया.

पुलिस सर्च अभियान के दौरान स्पा सेंटर में प्रवेश करने वाली टीमों के प्रभारियों ने ऊंची आवाज में महिलाओं को अपने नग्न जिस्म ढंकने के लिए कहा. महिलाओं की मर्यादा रख कर उन्हें बंद केबिनों से बाहर निकाला गया. उन की जामातलाशी ली गई और उन के नामपते पूछ कर नोट किए गए. जो अय्याश लोग इन स्पा सेंटरों में मौजमस्ती करने आए थे, उन्हें हिरासत में ले लिया गया.

इन स्पा सेंटरों से कुल 60 युवतियां देह धंधे में लिप्त मिली थीं. इन्हें महिला सबइंसपेक्टर और महिला कांस्टेबल की हिरासत में दे कर सभी के नामपते नोट किए गए. इन की उम्र 19 साल से 22 साल थी. इन में कुछ युवतियां शादीशुदा भी थीं. इन के नामपते मर्यादा का ध्यान रख कर उजागर नहीं किए जा सकते.

जब इन से इस प्रकार का अनैतिक देह धंधा अपनाने का कारण पूछा गया तो सभी ने एक ही बात कही, “हम अपना घर खर्च या जरूरतें पूरी करने के लिए इन स्पा सेंटरों में नौकरी करने आई थीं. न जाने कैसे हमें बहलाफुसला कर हमारी अश्लील वीडियो स्पा मालिक अथवा मैनेजर द्वारा बना ली गई. उसे वायरल करने की धमकी दे कर हमें देह परोसने के लिए मजबूर किया गया. एक के बाद बारबार ऐसा होने लगा. हमें एक या आधा घंटे के लिए 3 से 5 हजार रुपए ग्राहक से ले कर उन के साथ सोने को मजबूर किया जाता रहा, इस में हमारी मरजी नहीं थी.”

गर्म गोश्त के धंधे में हुईं गिरफ्तारियां

इन स्पा सेंटरों के मालिक और मैनेजर पकड़ में आए, उन के नाम हैं— कुशल कुमार, प्रीत कौर, सुभाष कुमार, रोहित, रेनू, थे.

युवतियों के साथ मौजमस्ती करते हुए जिन पुरुषों को हिरासत में लिया गया, उन के नाम सुमित, अमित कुमार गुप्ता, राकेश, अमित कुमार, सागर सोनी, श्याम कुमार, नीरज कपूर, गुलफाम, ललित मोहन, मुशाहिद, सुनील, रोहित जैन, संदीप कुमार, विमल कुमार, सुनील कुमार, रवि कुमार, अश्वनी कुमार, मुकेश कुमार, नदीम कुरैशी, अनुज कुमार, राजेश कुमार, अजय कुमार, विष्णु, अबूजर, विशाल माथुर, मुनीश कुमार, प्रशांत वत्स, अभिषेक, आशुतोष भटनागर, आकाश कश्यप, प्रफुल्ल कुमार, गोरंगो बहेरा मोहन, रमेश चंद, सैंसर पाल सिंह, वसीम थे. ये सभी गाजियाबाद और आसपास के रहने वाले थे.

यह 41 लोग किसी न किसी रूप में रुद्रा पैसिफिक माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों से जुड़े हुए थे. पुलिस टीम ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

छापे के दौरान स्पा सेंटरों के संचालक और मैनेजर गिरफ्तार

स्पा एस-2 का मालिक शाहिद, रायल स्पा का मालिक गौरव वर्मा, स्वातिका स्पा का मालिक दीपक, द हैवन थैरपी का मालिक विशाल उर्फ कपिल, राज थैरपी का मालिक ङ्क्षरकू व राजकुमार, अरोमा थेरपी का मालिक मोहन, अरमान थैरपी का मालिक पिंटू गिरि, रुद्रा थैरपी का मालिक राहुल चौधरी वहां से भाग से भाग गए.

इन सभी का जुर्म अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की हद को पार करता है इसलिए इन्हें धारा 3/4/5/6 लगा कर विधिवत बंदी बनाने के लिए प्रयास किया जाएगा.

पुलिस ने स्पा सेंटरों के केबिनों से आपत्तिजनक हालत में मिली महिलाओं को पीडि़त मान कर उन्हें गवाह बना लिया गया. उन के सगेसंबंधियों और घर वालों को बुला कर उन की सुपुर्दगी में सौंप दिया जाएगा ताकि उन का उचित रीहैबिलिटेशन हो सके.

स्पा सेंटरों से अनेक आपत्तिजनक चीजें जैसे कंडोम, अश्लील उत्तेजक तसवीरें, जोश बढ़ाने वाली दवाइयां, 29 मोबाइल और एक लाख 7 हजार 358 रुपए बरामद हुए थे. उन्हें अलगअलग कपड़ों में रख कर सीलमोहर किया गया. गिरफ्तारी के समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय व मानवाधिकार आयोग के आदेशोंनिर्देशों का भी पालन किया गया.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर 25 मई, 2023 को कोर्ट में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. डीसीपी विवेकचंद्र यादव ने इस काररवाई के बाद महाराजपुर पुलिस चौकी के इंचार्ज शिशुपाल सिंह को सस्पेंड कर दिया.

उधार का चिराग – भाग 2

नाजनीन मुझे ले कर एक अलग टेबल पर बैठ गई. उस ने ढेर सारी चीजें और्डर कर दीं. वह मुझे वहां के तौरतरीके समझाती रही. मेरे बारबार मैडम कहने पर उस ने कहा, ‘‘यह मैडम कहना छोड़ो और मुझे नाम ले कर बुलाओ. मैं अब तुम्हारी बौस नहीं, दोस्त हूं.’’

हम क्लब से बाहर निकले तो उसने पूछा, ‘‘घर पर तुम्हारा कोई इंतजार तो नहीं कर रहा?’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल अकेला हूं.’’

‘‘तब तुम मेरे साथ मेरे घर चलो.’’

11 बजे के आसपास हम दोनों घर पहुंचे. मेरी हालत अजीब सी हो रही थी. घर पहुंचने पर पता चला कि अजहर अली कहीं बाहर गए हुए हैं. वह रात में आएंगे नहीं. कुछ देर रुक कर मैं जाने के लिए खड़ा हुआ, ‘‘नाजनीन, अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘अब इतनी रात को तुम कहां जाओगे. तुम मेरे साथ आओ.’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर बेडरूम में ले आई. इतना शानदार बेडरूम मैं ने पहली बार देखा था. मुझे अजीब सी उलझन हो रही थी. मैं इतना भी बेवकूफ नहीं था कि एक खूबसूरत औरत के इशारे न समझ पाता.

वह मेरे एकदम करीब बैठी थी. मैं सोच रहा था कि क्या करूं? खुद को इस तूफान में बह जाने दूं या अपने बौस की इज्जत का  खयाल करते हुए यहां से भाग निकलूं या इस औरत को अहसास दिलाऊं कि वह गलत कर रही है.

नाजनीन ने मेरे गले में बांहें डाल दीं. मैं एकदम से खड़ा हो गया. उस की बांहें हटाते हुए बेरुखी से कहा, ‘‘मैडम, आप जो कर रही हैं, यह ठीक नहीं है. मुझे जाने दीजिए. आप के शौहर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, इतना बड़ा ओहदा दिया है और मुझे जमीन से उठा कर आसमान पर बिठा दिया है, मैं उन की इज्जत से खिलवाड़ करूं, इतना भी अहसान फरामोश नहीं हूं.’’

‘‘बेवकूफ हो तुम.’’ नाजनीन गुस्से से चीखी, ‘‘यह सब मैं अजहर की रजामंदी से कर रही हूं. उन्हें सब पता है.’’

मैं चौंका, ‘‘क्या… उन्हें यह सब पता है?’’

नाजनीन तुनक कर बोली, ‘‘अब तुम जा सकते हो. चाहो तो कल अपने बौस से मेरी शिकायत कर देना. उस के बाद देखना, वह क्या कहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘यह सब मेरे उसूलों के खिलाफ है, इसलिए मैं जरूर कहूंगा.’’ कह कर मैं उसी वक्त अपने घर आ गया. मुझे नाजनीन पर गुस्सा आ रहा था कि कैसी बेशर्म औरत है, जो अपने शौहर की इज्जत नीलाम कर रही है. पूरी रात मैं उस बेबाक बेधड़क औरत के बारे में ही सोचता रहा.

अगले दिन मैं गुस्से में बौस के चैंबर में पहुंचा तो उन्होंने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहो, शहबाज, क्लब में कैसा लगा? मुबारक हो तुम्हें क्लब की मेंबरशिप मिल गई.’’

‘‘शुक्रिया सर, लेकिन मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सर, कल रात मैडम मुझे क्लब से सीधे अपने घर ले गईं.’’

‘‘मुझे मालूम है, उन्होंने मुझे सब बता दिया है.’’

‘‘सर, कल रात उन्होंने मेरे साथ कुछ ऐसा किया, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. वह सब बताते हुए मुझे शरम आती है.’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं समझ गया, तुम क्या कहना चाहते हो. बैठ जाओ, मुझे तुम से कुछ खास बातें करनी हैं. शहबाज, मैं जो कहने जा रहा हूं, वह एक बहुत बड़ी ट्रेजिडी है. वादा करो, इस बात की चर्चा तुम किसी से नहीं करोगे.’’

‘‘जी सर, आप यकीन रखें, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा.’’

‘‘बात यह है कि मेरा खानदान बहुत बड़ा है और सब की नजरें हमारे ऊपर ही टिकी हैं. हमारी शादी को 7-8 साल हो गए हैं और अब तक हमारी कोई औलाद नहीं हुई है. यह बात हर किसी को बताई भी नहीं जा सकती. दरअसल मेरी मजबूरी यह है कि मैं औलाद पैदा करने के काबिल नहीं हूं.’’

इतना कह कर अजहर अली ने एक लंबी सांस ली और सिर झुका लिया.

मेरे बौस ने एक बहुत बड़ी बात मेरे सामने कह दी थी. उस समय बौस काफी मजबूर और बेबस लग रहे थे. मेरे लिए भी यह बात किसी आघात से कम नहीं थी.

मुझे खामोश देख कर उन्होंने कहा, ‘‘तुम मेरी बात समझ रहे हो न? हमें एक बच्चे की सख्त जरूरत है, जो नाजनीन की कोख से पैदा हुआ हो. हम बच्चा अडौप्ट भी नहीं करना चाहते.’’

‘‘सर, आप बच्चे के लिए दूसरी शादी तो कर सकते हैं.’’ मैं ने कहा.

‘‘बेवकूफी वाली बात मत करो. कमजोरी मुझ में है. दूसरी या तीसरी शादी से क्या होगा?’’

‘‘हां, यह बात भी सही है.’’ मैं ने झेंप कर कहा.

‘‘अब तुम समझ गए होगे कि हम क्या चाहते हैं. मैं ने महीनों तुम्हारे बारे में सोचा, उस के बाद नाजनीन से बात की. तब फैसला लिया गया कि औलाद तुम्हारे जरिए प्राप्त कर ली जाए.’’ अजहर अली ने कहा.

मुझे झटका सा लगा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘बिलकुल हो सकता है. तुम मेरे बच्चे के बाप हो, यह राज केवल हम तीनों को पता होगा. और हां, इस बात की जानकारी किसी अन्य को नहीं होनी चाहिए. बच्चा पैदा होने के बाद तुम्हारा नाजनीन से कोई संबंध नहीं रहेगा.’’ अजहर अली ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘सर, कम से कम आप को मुझ से एक बार पूछ तो लेना चाहिए था कि क्या मैं इस सौदे के लिए तैयार हूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘अगर तुम अक्लमंद हो तो मना नहीं करोगे. फिर इस में तुम्हारा नुकसान ही क्या है? तुम मैनेजर हो गए हो. तुम्हारा वेतन 3 गुना हो गया है, गाड़ीबंगला के साथ तुम्हें एक खूबसूरत औरत मिल रही है.’’ यह कहते हुए अजहर अली की जुबान लड़खड़ा गई थी.

‘‘लेकिन सर, मुझे अफसोस है कि इतना सब मिलने पर भी मैं यह सब नहीं कर सकता.’’

‘‘प्लीज, मेरी बात मान लो शहबाज. इसी में हम सब की भलाई है. अगर तुम ने मना कर दिया तो मैं किसे पकड़ूंगा? मैं ने तुम पर भरोसा किया था, इसीलिए इतनी बड़ी बात तुम से कह दी. अब मेरे घर और खानदान को तुम्हीं बरबादी से बचा सकते हो. अगर इतनी मेहरबानी तुम मुझ पर कर दो तो अच्छा रहेगा.’’

इस के बाद मुझे उन पर रहम आने लगा था. वह मुझे बहुत बेबस लग रहे थे. उन्होंने मेरे सामने ऐसी बात कह दी थी कि मैं मना नहीं कर सकता था. मैं ने कहा, ‘‘सर, एक काम हो सकता है.’’

‘‘कहो, क्या हो सकता है?’’ उन्होंने बेताबी से पूछा.

‘‘सर, आप मैडम को तलाक दे दीजिए.’’ मैं ने कहा.

‘‘क्या बेकार की बात करते हो, इस से क्या होगा?’’

‘‘सर, आप मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए. आप को तलाक इस तरह देना है कि किसी को पता न चले. मैडम आप के साथ ही रहेंगी. इद्दत (तलाक के बाद जितने दिनों तक शादी नहीं हो सकती) के बाद मैं उन से निकाह कर लूंगा. यह उचित और इसलामी तरीका है. इस में कुछ गलत भी नहीं है.’’

‘‘हां, यह तरीका भी ठीक है.’’ अजहर अली ने राहत की सांस ली.

‘‘सर, इस में मुझे भी इत्मीनान रहेगा कि मैं ने कोई गलत काम नहीं किया है. आप का काम हो जाने के बाद मैं मैडम को तलाक दे दूंगा. इस तरह आप की बात भी रह जाएगी और आप का मकसद भी पूरा हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’’

‘‘बहुत ही खामोशी से हो जाएगा, किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ मैं ने कहा.

अजहर अली ने चुपचाप नाजनीन को तलाक दे दिया. इद्दत के दौरान वह अपने घर पर ही रहीं, इसलिए किसी को कुछ पता नहीं चला. इद्दत के बाद नाजनीन से उसी तरह चुपचाप मेरा निकाह हो गया, जिस तरह तलाक हुआ था. नाजनीन की जिंदगी में यह रात पहले भी आ चुकी थी, लेकिन मेरी तो पहली शादी थी, इसलिए मेरे लिए पहली रात खास थी.