
दोपहर का वक्त था. श्रीमती आइवी सिंह सोफे पर बैठी सोच में गुम थीं. जिंदगी में आए उतारचढ़ाव की कल्पना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था. सोच का यह सागर अकसर दस्तक दे ही देता था. वह जिस कमरे में बैठी थीं, वह अस्पतालनुमा था. वह बिस्तर पर बेसुध से लेटे अपने पति आनंद सिंह को एकटक निहारे जा रही थीं. उन के साथ बिताए खुशगवार पलों की यादें एक तरफ खुशी दे रही थीं तो दूसरी तरफ दर्द का एक ऐसा तूफान भी था, जिस के थमने की कोई उम्मीद नहीं थी.
वर्तमान में उन के पास यूं तो हर खुशी थी, लेकिन पति की बीमारी की टीस उन्हें पलपल ऐसा अहसास कराती थी, जैसे कोई नाव किनारों की तलाश में बारबार लहरों से टकरा रही हो. अच्छेबुरे अनुभवों से उन की आंखों के किनारों को आंसुओं ने अपनी जद में ले लिया.
इसी तरह कुछ समय बीता तो उन्हें अपने सिर पर किसी के हाथ की छुअन का अहसास हुआ. आइवी सिंह ने नजरें उठा कर देखा. उन की मां आर. हिगिंस पास खड़ी थीं. बेटी को देख कर उन की भी आंखें नम हो गईं. वह शांत लहजे में बोलीं, ‘‘यूं परेशान नहीं होते बेटा.’’
आइवी ने हथेलियों से आंसू पोंछ कर पलकें उठाईं और मां का हाथ थाम कर बोलीं, ‘‘समझ नहीं आता मां क्या करूं?’’
‘‘सभी दिन एक जैसे नहीं रहते बेटी. एक न एक दिन आनंद ठीक हो जाएंगे, सब्र रखो.’’
‘‘सब्र तो कर ही रही हूं मां, लेकिन डाक्टर तो ना कर चुके हैं.’’
‘‘ऐसा नहीं है. कोई न कोई इलाज जरूर निकलेगा, बस तुम हौसला रखो.’’
आइवी सिर्फ कहने को सुहागन थीं. पति आनंद जीवित तो थे, लेकिन न वह चल फिर सकते थे न बोल सकते थे और न ही कुछ खा सकते थे. किसी अबोध बच्चे की तरह उन की देखभाल करना रोजमर्रा की बात थी.
उन की यह हालत कुछ दिनों या महीनों से नहीं, बल्कि लगातार 25 सालों से बनी हुई थी. दुनिया कितने रंग बदल चुकी है, वक्त का चक्र कैसे घूम रहा है और जिंदगी ने जवानी से बुढ़ापे की राह कैसे पकड़ ली है, आनंद को इस का रत्ती भर भी अहसास नहीं था.
आइवी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसे हालात आ जाएंगे. जिंदगी इस तरह जवानी से बुढ़ापे की ओर बढ़ेगी. पति की ऐसी दशा में सुहागन हो कर भी बेगानी सी जिंदगी का दर्द क्या होता है, यह आइवी ने अनगिनत बार बहुत करीब से महसूस किया था.
विवाह के बाद पति के साथ बिताए गए चंद महीनों की खुशनुमा यादों का महज एक गुलिस्तां आइवी के दिलोदिमाग में था. उसी के सहारे पति को जिंदा रखने की जुगत में जिंदगी अपनी रफ्तार से बीत रही थी. लेकिन उन की जिंदगी का इम्तिहान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था.
हर इंसान अपनी जिंदगी के खुशगवार होने की उम्मीदों के चिराग रोशन रखता है, लेकिन यह भी सच है कि वह वक्त का गुलाम होता है. दरअसल आइवी के पति पिछले 25 सालों से बिस्तर पर कोमारूपी बीमारी ‘ब्रेन स्टेम’ के शिकार थे. दुनिया में अभी तक कोई चिकित्सक ऐसा नहीं मिला था, जो उन के पति का इलाज कर सके.
आधुनिक दौर के बिखरते रिश्तों की कुछ कड़वी सच्चाइयों की तरह अगर उन्होंने भी पतिपत्नी के नाजुक रिश्तों को चटका दिया होता तो आनंद न जाने कब दुनिया को अलविदा कह चुके होते. वह हर मुसीबत का सामना कर के पति के लिए अकल्पनीय हालात से लगातार जूझ रही थीं.
इस के बावजूद आइवी ने हिम्मत न हारने की कसम खा ली थी. दुनिया में आइवी सिंह जैसी बहुत कम महिलाएं होती हैं, जो मुसीबत के दौर में उस शख्स से किनारा नहीं करतीं, जिस के साथ उन का दिल की गहराइयों से नाता हो. पतिपत्नी के नाजुक रिश्ते की डोर को अपने समर्पण से न सिर्फ उन्होंने मजबूत कर दिया था, बल्कि अपनी हिम्मत से वफा की एक ऐसी बुलंद इमारत खड़ी कर दी थी, जो किसी के भी दिल को छू जाए.
वफा की यह इमारत उन के लिए दुनिया के हर खजाने से ज्यादा अनमोल थी. वक्त ने आइवी की दुनिया कैसे बदली थी, इस के पीछे भी एक कहानी थी.
आइवी की जिंदगी कभी किसी महकते हुए चमन की तरह थी. वक्त का हर पल जैसे उन के लिए मोती की तरह था. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के एक ईसाई परिवार में जन्मी आइवी बी. हिगिंस की एकलौती बेटी थीं. हिगिंस सरकारी मुलाजिम थे. आर्थिक रूप से संपन्न हिगिंस की पत्नी आर. हिगिंस अध्यापिका थीं.
परिवार की माली हालत अच्छी थी, लिहाजा आइवी की परवरिश अच्छे माहौल में हुई. हिगिंस दंपति ने बेटी को अच्छे संस्कार दिए. आइवी को उन्होंने नाजों से पाला था. प्यार, समर्पण व जिम्मेदारियों की पूंजी आइवी को मातापिता से बचपन से ही मिली थी. परिवार पढ़ालिखा था और सभी सदस्य मृदुभाषी थे, इसलिए समाज में उन्हें इज्जत की नजरों से देखा जाता था.
प्राथमिक शिक्षा के बाद आइवी ने उच्च शिक्षा हासिल की. आइवी जीवन के उस मुकाम पर थीं, जहां लड़कियां अकसर अपनी कल्पना के शहजादों को ख्वाबों में देखती हैं.
हर मातापिता की तरह हिगिंस दंपति भी चाहते थे कि वह बेटी को अलग दुनिया बसाने के लिए अपने घर से विदा कर दें. उन्होंने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू की. जल्द ही उन्हें रिश्तेदारी के माध्यम से एक युवक का पता चला. युवक का नाम था आनंद सिंह.
आकर्षक व्यक्तित्व के आनंद भारतीय नौसेना के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे. आनंद उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला के रहने वाले थे. उन के पिता निर्मल सिंह पादरी थे, जबकि मां पुष्पा सिंह कुशल गृहिणी थीं. आनंद सिंह अपने परिवार की होनहार संतान थे. बचपन से ही वह चाहते थे कि बड़े हो कर देश की सेवा करें, इसलिए उन की राह में बाधा नहीं आई और उन्होंने मेहनत से तैयारी कर के सन 1976 में मनचाही नौकरी पा ली.
आनंद सिंह देहरादून के नेवल हाइड्रोग्राफिक कार्यालय में तैनात थे. दोनों परिवारों के बीच बातचीत हुई तो आइवी का रिश्ता आनंद के साथ तय कर दिया गया. इस रिश्ते से दोनों परिवार भी खुश थे और आइवी व आनंद भी.
22 मई, 1986 को आइवी और आनंद परिणयसूत्र में बंध गए. एकदूसरे को पा कर पतिपत्नी खुश थे. इतने खुश कि उन्हें अपने सामने दुनिया की हर खुशी फीकी नजर आती थी. आनंद ठीक वैसे ही थे, जैसे जीवनसाथी की कल्पना आइवी ने की थी.
आनंद चूंकि नौसेना का हिस्सा थे, इसलिए अनुशासन वहां पहली शर्त थी. उन का जिंदगी जीने का अंदाज दूसरों से जुदा था. वह साफसफाई व नियमबद्ध जीवन के मुरीद थे. आइवी खुद भी ऐसी ही थीं. उन्होंने आनंद के अनुरूप खुद को ढाल लिया था.
दोनों की शादी को कुछ महीने ही बीते थे कि आइवी के पिता बी. हिगिंस का देहांत हो गया. उन की मृत्यु ने आर. हिगिंस को अकेला सा कर दिया. आइवी को भी पिता की मृत्यु से धक्का लगा था. वह मेरठ चली आईं और उन्होंने मां के गम को बांटने की पूरी कोशिश की. करीब 2 महीने बाद वह वापस ससुराल चली गईं. आनंद उन्हें अपने साथ देहरादून अपने तैनाती स्थल पर ले आए. अभी कुछ महीने ही बीते थे कि एक दिन आनंद को इंडियन पीस कीपिंग कोर्स की 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए विशाखापट्टनम जाना पड़ा.
उन के ट्रेनिंग पर जाने के बाद आइवी मेरठ आ गईं और कानून की पढ़ाई करने लगीं. उन दिनों चूंकि मोबाइल फोन नहीं होते थे, इसलिए पत्र ही संदेश पहुंचाने का एक जरिया थे. आनंद पत्नी से बराबर पत्राचार करते रहे.
आनंद आईएनएस एंड्रो जहाज पर तैनात थे. श्रीलंका में उन दिनों ताकतवर गुरिल्ला लड़ाकों वाले प्रतिबंधित संगठन लिट्टे का आतंक था. नौसेना भी उन के खिलाफ रणनीति तैयार कर रही थी. आनंद को रहने के लिए अलग कमरा मिला हुआ था. ड्यूटी आनेजाने के लिए वह अपनी बुलेट मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते थे.
किस इंसान के साथ कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. बुरा वक्त जब खुशियों को ग्रहण लगाता है तो भविष्य के सारे सपने एक झटके में टूट जाते हैं और सपनों के घरौंदे ताश के पत्तों की तरह बिखर जाते हैं. आनंद के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ.
देहरादून स्थित नौसेना के नेवल हाइड्रोग्राफिक कार्यालय में आए एक सिगनल ने सभी की चिंता बढ़ा दी. आनंद के धारचूला स्थित आवास पर नौसेनाकर्मी सुबहसुबह पहुंच गए. उन्होंने जो बताया उसे सुन कर आनंद सिंह के पिता निर्मल सिंह और मां पुष्पा का दिल बैठ गया.
दरअसल, आनंद एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे. 12 अगस्त, 1989 की रात जब वह जहाज से वापस अपने कमरे पर जा रहे थे तो रास्ते में एक दुर्घटना का शिकार हो गए. दुर्घटना होते चूंकि किसी ने नहीं देखी थी, इसलिए अंदाजा यही लगाया गया कि बारिश की वजह से शायद उन की मोटरसाइकिल फिसल गई होगी.
आनंद अस्पताल में भरती थे. हताश परेशान निर्मल सिंह यह सूचना देने के लिए तुरंत मेरठ रवाना हो गए. उन्हें अचानक इस तरह आया देख कर आर. हिगिंस व आइवी का दिल धड़क उठा. निर्मल सिंह के चेहरे पर झलक रही परेशानी की लकीरें उन की धड़कनों की रफ्तार बढ़ा रही थीं. निर्मल सिंह ने उन्हें जो बताया उसे सुन कर आइवी के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.
हंसती मुसकराती जिंदगी में अचानक ऐसा झटका लगेगा, इस बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था. नौसेना ने आनंद के परिवार को विशाखापट्टनम ले जाने के लिए निजी विमान की व्यवस्था कर दी थी. सभी लोग वहां के लिए रवाना हो गए. आनंद अस्पताल में बेसुध पड़े थे. दुर्घटना गंभीर थी. डाक्टर इसलिए चिंतित थे, क्योंकि उन्हें बाहरी चोटों के अलावा दिमाग में अंदरूनी चोटें भी आई थीं.
आनंद की दिमागी चोटों को जांचने के लिए कोई प्रमुख यंत्र नहीं था. सीटी स्कैन (कंप्यूटर टोमोग्राफी स्कैनर) मशीन वहां नहीं थी, जिस से यह पता लगाया जा सकता कि अंदर क्या चोटें हैं. मस्तिष्क का इलाज करने वाले न्यूरोलौजिस्ट भी वहां नहीं थे. नौसेना ने बाहर से डाक्टरों की टीम को बुलवा कर आनंद की जांच कराई. कई दिनों के बाद भी आनंद होश में नहीं आए और वह कोमा में चले गए.
ऐसी स्थिति में वहां उन का इलाज संभव नहीं था. इसलिए डाक्टरों की राय पर नौसेना ने उन्हें हवाई जहाज से कोलकाता स्थित कमांड अस्पताल भेज दिया. आनंद का वहां भी इलाज किया गया, लेकिन सब से ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह डीप कोमा में चले गए थे.
यह अवस्था ऐसी होती है, जिस में इंसान की सभी तरह की गतिविधियों का संपर्क दिमाग से टूट जाता है. यानी वह काम करना बंद कर देता है. नौसेना ने उन्हें कोमा से उबारने के लिए 2 डाक्टरों को स्थाई रूप से लगा दिया, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ.
आनंद के कोमा में चले जाने से दोनों परिवार सदमे में थे. उन की खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई थी. आइवी इस बेबसी पर आंसू बहा कर रह जाती थीं. उन्हें आनंद की बातें, हंसमुख स्वभाव व यादें रहरह कर परेशान कर रही थीं. जिंदगी ने उन्हें गम के सागर किनारे खड़ा कर दिया था. वह ऐसी दुलहन थीं, जो पति के साथ खुशी के चंद महीने ही बिता पाई थीं.
यह ऐसा वक्त था, जब जिंदगी ने आइवी का इम्तिहान लेना शुरू कर दिया था. निर्मल सिंह व पुष्पा भी उम्मीद खो रहे थे. खूबसूरत आइवी का दुख उन्हें भी साल रहा था. उन्होंने एक दिन आर. हिगिंस से कहा, ‘‘बेटे के साथ ऐसा कुछ होना हमारी किस्मत का पन्ना हो सकता है, लेकिन आइवी के सामने पूरा जीवन पड़ा है. आप चाहें तो उसे दूसरे विवाह की इजाजत दे सकती हैं.’’
हिगिंस को यह बात बहुत नागवार गुजरी, वह बोलीं, ‘‘नहीं भाईसाहब, हम लोग ऐसे नहीं हैं. आनंद आखिर पति है उस का.’’
‘‘पता नहीं आनंद कब तक ठीक होगा…’’
‘‘आप इस की फिक्र मत कीजिए. फिर भी मैं आइवी से बात करूंगी.’’ पुष्पा बोलीं.
इस के बाद पुष्पा और हिगिंस ने आइवी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी, लेकिन आइवी ने साफ कह दिया कि वह दूसरा विवाह करने की कभी सोच भी नहीं सकती. वह पति की सेवा कर के उन्हें ठीक करने की कोशिश करेगी.
आनंद की बीमारी कब ठीक होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता था. उन की घर ले जाने लायक स्थिति नहीं थी. लेकिन अस्पताल में भी हमेशा नहीं रखा जा सकता था. आइवी उन्हें अपने घर में रखना चाहती थीं.
उन के कहने पर डाक्टरों ने उन्हें घर ले जाने की इजाजत तो दे दी, लेकिन वहां अस्पताल की तरह इंतजाम करने थे. आइवी का घर काफी बड़ा था. एक कमरे को डाक्टरों की मदद से अस्पताल के कमरे जैसा रूप दे दिया गया. वहां पर जरूरी मशीनें भी लगा दी गईं. औक्सीजन के अलावा मिनी वेंटीलेटर मशीन भी वहां लगा दी. इस के बाद वह आनंद को घर ले आईं.
घर पर एक नर्स की व्यवस्था भी कर दी गई. इस तरह उन की घर पर ही देखरेख होने लगी. कभी ज्यादा दिक्कत होती तो आइवी उन्हें अस्पताल ले जाती थीं. साल दर साल बीतते रहे. आदमनी कम होने लगी और खर्च बढ़ने से परिवार की आर्थिक स्थिति भी डगमगाने लगी.
आर. हिगिंस घर के ही एक हिस्से में स्कूल चलाती थीं. उस से उन की आजीविका चलती थी. नौसेना के अधिकारियों ने देशविदेश के कई चिकित्सकों से भी उन का इलाज कराया. लेकिन आनंद की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. आइवी चाहती थीं कि किसी भी तरह आनंद ठीक हो जाएं, इसलिए उन्होंने उन का आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक इलाज भी कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
आइवी की बेटी भूमिका, जो सिर्फ पिता को देखती तो थी लेकिन उन से बात नहीं कर सकती थी. उधर नौसेना ने आनंद को पेंशन देनी शुरू कर दी. भारतीय नौसेना ने कई बार आइवी के सामने नौकरी की पेशकश की, लेकिन पति की देखभाल करने की वजह से उन्होंने उसे ठुकरा दिया.
इस बीच आइवी ने वकालत शुरू कर दी थी. हालांकि इस काम को वह ज्यादा समय नहीं दे पाती थीं. जीवन के इस सफर में उन्होंने बहुत लोगों को बदलते देखा. लेकिन संस्कारों और आत्मविश्वास की पूंजी के हौसलों ने उन के कदमों को कभी डगमगाने नहीं दिया. पति की सेवा करनी थी, इसलिए कई महीने उन्होंने नर्स का प्रशिक्षण हासिल किया.
आनंद की पूरी दुनिया कई सालों से एक कमरे में सिमटी हुई है. वह दिनरात वहां लेटे रहते हैं. लेकिन वह अपनी कोई इच्छा नहीं जता सकते. खुली आंखों से वह शून्य को निहारते रहते हैं. देख कर विश्वास नहीं होता कि कभी फिल्मी हीरो की मानिंद रहा एक नौजवान 25 साल से एक जैसे हालात में बुढ़ापे की तरफ बढ़ चुका है.
आनंद का पालनपोषण किसी बच्चे की तरह किया जाता है. खाने के नाम पर उन्हें उच्च प्रोटीन भोजन व फल तरल रूप में दिए जाते हैं. घर का एक बड़ा कमरा किसी मिनी अस्पताल से कम नहीं है. एक बेड पर आनंद सिंह लेटे रहते हैं.
आनंद की जिंदगी में न जाने कितने डाक्टर आए, लेकिन कोई डाक्टर ऐसा नहीं मिला जो उन के सफल इलाज का फार्मूला जानता हो. एक अलमारी आनंद के अब तक के हुए इलाज के कागजी दस्तावेजों से चुकी है. कमरे में एसी लगा है और अंदर जूतेचप्पल ले जाने की इजाजत नहीं है.
मरीज को बिजली के चले जाने पर कोई परेशानी न हो, इस के लिए जनरेटर भी लगा हुआ है. आनंद को नहलाया नहीं जा सकता. गीले कपड़े से उन के बदन को साफ किया जा सकता है. पति की शेविंग से ले कर सभी काम आइवी ही करती हैं.
भूमिका भी अपनी मां आइवी का हाथ बंटाती है और पिता से बहुत प्यार करती है. यह वक्त का क्रूर मजाक ही है कि भूमिका ने पिता को कभी चलतेफिरते या बोलते नहीं देखा. वह अपने पिता से किसी चीज की इच्छा भी नहीं जता सकती. एक प्रतिष्ठित स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाली भूमिका बहुत होनहार है. बड़ी हो कर वह डाक्टर बनना चाहती है.
कई चिकित्सकों द्वारा अभी आनंद का इलाज किया जा रहा है. आइवी सिंह फिजिशियन डा. विनेश अग्रवाल, डा. ए.के. चौहान, डा. वी.के. बिंद्रा, डा. अनिल चौहान व न्यूरोलौजिस्ट डा. गिरीश त्यागी, संदीप सहगल आदि का विशेष सहयोग बताती हैं. व्यस्त दिनचर्या के बीच भी वह आनंद के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं.
आनंद के इलाज पर इतना अधिक रुपए खर्च हो चुके हैं कि हिसाब से किसी बड़े रजिस्टर के सभी पन्ने भर जाएं. उन के लिए दौलत पति की सेवा और उन की जिंदगी से ज्यादा मायने नहीं रखती.
आइवी अपने स्कूल में खुद भी पढ़ाती हैं और वकालत के लिए कचहरी भी जाती हैं. प्रशिक्षित नर्स की तरह पति का खयाल भी रखती हैं. मन बहलता रहे, इसलिए उन्होंने अपने घर में पालतू परिंदों के अलावा इंसान का वफादार साथी कुत्ता भी पाल रखा है.
आइवी पति के चेहरे के भावों को किसी जौहरी की तरह पहचानते हैं. वह कुछ बोल नहीं पाते, लेकिन वह कब क्या चाहते हैं, वह चेहरा देख कर ही पलभर में जान जाती हैं.
आइवी सिंह कहती हैं कि किसी ऐसे शख्स को जो असहाय हो, बोल भी न सके, उसे छोड़ना आसान नहीं होता और फिर जीवन प्यार और पति का साथ छोड़ने के लिए नहीं होता.
पति की सेवा करते हुए आइवी ने 25 साल गुजार दिए. उन के अंदर गजब का आत्मविश्वास भरा है, जो उन्हें डगमगाने नहीं देता. उन्हें विश्वास है कि कभी तो वह पल आएगा, जब उन की जिंदगी का इम्तिहान खत्म होगा और उन के पति ठीक हो जाएंगे.
—कथा आइवी सिंह के साक्षात्कार पर आधारित
जीतो के बयान और नरेश तथा कुलदीप की गवाही के आधार पर पुलिस राज के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भिजवा देगी, क्योंकि जीतो के मैडिकल में इस बात की पुष्टि हो जाती कि उस के साथ शारीरिक संबंध बनाया गया है. छेड़छाड़ के आरोप में तुरंत दोनों की जमानत हो जाती, जबकि दुष्कर्म के आरोप में राज को जेल भेज दिया जाता.
इस काम के लिए सुरजीत ने नरेश और कुलदीप को 5-5 हजार रुपए तथा जीतो को 10 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे. इतने ही रुपए उन्हें तब और मिलने थे, जब वे रिपोर्ट की कौपी सुरजीत को देते. यह सारी कारगुजारी सुरजीत की बनाई थी.
बहरहाल, मैं ने परमजीत सिंह से उन तीनों के बयान दर्ज कर के जीतो को अस्पताल ले जा कर मैडिकल कराने को कहा. इस के बाद मैं ने थाना मानावाला से हवलदार जसबीर को बुलवा कर पूछा, “यह राज वाला क्या मामला है?”
उस ने सब कुछ सचसच बता दिया. उस ने कहा कि वह न राज को जानता है और न ही उसे उस के द्वारा की गई किसी छेड़छाड़ की बात मालूम है. सुरजीत ने उसे रुपए दे कर राज पर झूठा मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहा था. लेकिन बीच में राज के पत्रकार पिता के आ जाने से वह राज पर कोई कार्यवाई नहीं कर सका था.
जसबीर ने यह भी बताया था कि उस के बाद भी सुरजीत उस के पास आया था और कह रहा था कि वह चाहे जितने रुपए ले ले, लेकिन राज पर दुष्कर्म का केस बना कर उसे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने उसे साफ मना कर दिया था. शायद इसीलिए वह उस का थानाक्षेत्र छोड़ कर अपने मंसूबे को पूरे करने के मेरे थानाक्षेत्र में आया था.
मैं ने जसबीर की मुलाकात राज और अमन सिंह से भी कराई और उसे पूरी कहानी बताई. इस के बाद मैं ने उस से कहा कि सुरजीत ने राज के खिलाफ अपनी बहन से छेड़छाड़ की जो झूठी रिपोर्ट दी थी, उस पर वह उस के खिलाफ कार्यवाई करे. जसबीर इस के लिए तैयार हो गया.
अब तक परमजीत सिंह जीतो का मैडिकल करवा कर लौट आए थे. इस के बाद मैं ने नरेश, कुलदीप और जीतो से पूछा, “इस के बाद सुरजीत ने तुम लोगों से क्या करने को कहा था?”
“उस ने कहा था कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मैं उसे फोन करूं. इस के बाद वह आता और रिपोर्ट की कापी ले कर मेरे बाकी रुपए देता.” जीतो ने कहा.
“ठीक है, तुम उसे फोन कर के बताओ कि रिपोर्ट दर्ज हो गई है. पुलिस राज को पकड़ने उस के औफिस गई है.”
मेरे कहने पर जीतो ने सुरजीत को फोन कर के वही सब कहा, जो मैं ने उसे समझाया था. सुरजीत ने जीतो से आधे घंटे बाद मेन बाईपास चौक पर मिलने को कहा. मैं ने परमजीत सिंह और जसबीर के नेतृत्व में एक टीम तैयार की और जीतो के साथ सुरजीत को पकड़ने के लिए भेज दी.
दरअसल, मुझे सुरजीत पर बहुत गुस्सा आ रहा था. इसलिए नहीं कि राज मेरे दोस्त अमन सिंह का बेटा था, गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि बहन की गलती मान कर उसे समझाने के बजाय वह एक निर्दोष को सजा दिलवाना चाहता था, वह भी सिर्फ अपने अहं और झूठी शान के लिए. इस तरह के लोग एक तरह से समाज पर कलंक हैं और घृणा के पात्र बन जाते हैं.
बहरहाल, सुरजीत को पकड़ने गई टीम खाली हाथ लौट आई. वह बाईपास पर नहीं आया. पुलिस टीम उस के घर भी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जीतो ने कई बार फोन कर के उस से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. शायद उसे पुलिसिया कार्यवाई की भनक लग गई थी. वह फरार हो गया था.
बहरहाल, जीतो, नरेश और कुलदीप के खिलाफ मैं ने कार्यवाई करनी शुरू कर दी. नरेश पर मैं ने जीतो से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करना चाहा तो जीतो और नरेश मेरे पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगे.
नरेश ने जीतो के साथ शारीरिक संबंध तो बनाए ही थे, जो मैडिकल रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गए थे. लेकिन जीतो ने कहा, “साहब, हम से गलती हो गई है, हमें माफ कर दें. यह संबंध मेरी मरजी से बने थे.”
जीतो के इस नए बयान पर मैं ने नरेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करने के बजाय इम्मोरल ट्रैफिकिंग एक्ट (देह व्यापार) का मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया. कुलदीप के खिलाफ मैं ने जीतो से छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज किया. अगले दिन तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जमानत मिल गई.
यह संयोग की ही बात थी कि राज मेरे पत्रकार दोस्त का बेटा था, वरना सुरजीत अपनी घिनौनी योजना को अंजाम दे कर एक भले लडक़े को जेल भिजवा कर उस पर एक ऐसा कलंक का टीका लगा देता, जो पूरी जिंदगी न छूटता. इस से उस का जीवन भी अंधकारमय हो जाता.
प्रस्तुति:
—कथा सत्य घटना पर आधारित, पात्रों के नाम बदले गए हैं.
किशोरीलाल की एक जवान बेटी थी सुधा, जो ग्रैजुएशन कर के उन दिनों घर में बैठी थी. वह पोस्टग्रैजुएशन करना चाहती थी, लेकिन एडमिशन में देरी थी. किशोरीलाल ने सोचा कि सुधा पूरे दिन घर में बैठी बोर होती रहती है, क्यों न इस बीच अस्थाई रूप से उसे अपनी कंपनी में लगवा दे. मन भी बहलता रहेगा, 4 पैसे कमा कर भी लाएगी.
उस ने इस विषय पर राज से बात की तो उसे भला क्या ऐतराज होता. जहां 40-50 लडक़ेलड़कियां काम कर रहे थे, वहां एक और सही. सुधा ने फाइनैंस कंपनी जौइन कर ली. वह खुले विचारों वाली आधुनिक युवती थी. बातचीत में किसी से भी जल्दी घुलमिल जाना और दोस्ती कर लेना उस की फितरत थी.
स्कूल में पढ़ते समय से ही उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. उन में से किसी एक ने उसे धोखा भी दिया था. बहरहाल राज को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी, क्योंकि राज के खूबसूरत होने के साथसाथ कंपनी में भी उस की बड़ी इज्जत थी. कोई न कोई बहाना बना कर सुधा राज के नजदीक जाने की कोशिश करने लगी.
इस कोशिश में उस ने घुमाफिरा कर कई बार उस से प्यार करने का इशारा किया. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह एक लडक़े से प्यार करती थी, लेकिन उस ने उसे धोखा दे दिया था. अब मांबाप उस की शादी करना चाहते हैं, लेकिन वह अभी शादी नहीं करना चाहती.
राज ने उस की कोशिश को नाकाम करते हुए उसे समझाया कि उसे इन बातों पर ध्यान न दे कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. फिर अभी उसे आगे की पढ़ाई भी करनी है. उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी उस का पूरा जीवन पड़ा है. उसे इस तरह की फिजूल की बातें दिमाग में नहीं लाना चाहिए.
राज की बातों पर गौर किए बगैर सुधा सुधरने के बजाय मैसेज करने लगी. उन संदेशों में वह राज से सलाह मांगती कि अब उसे क्या करना चाहिए, साथ ही बीचबीच में प्यार के इजहार वाले मैसेज भी कर देती थी. सुधा के इन संदेशों से परेशान हो कर राज ने उसे संदेश भेजा कि वह उस का समय बरबाद न करे, जैसा उस ने उसे समझाया है, वह वैसा ही करे.
संयोग से किसी दिन सुधा का फोन उस के भाई सुरजीत के हाथ लग गया. उस ने मैसेज बौक्स में बहन के भेजे मैसेज देखे तो गुस्से से पागल हो उठा. उस ने बहन को समझाने के बजाय राज को सबक सिखाने का इरादा बना लिया. जबकि राज का इस मामले में कोई दोष नहीं था. बहन से उस ने कुछ कहना इसलिए उचित नहीं समझा, क्योंकि वह उस की फितरत को जानता था. उस ने मैसेज वाली बात मांबाप को भी बता दी थी.
यह सब सुन कर किशोरीलाल तो इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने नौकरी पर जाना ही बंद कर दिया. सुधा की भी नौकरी छुड़वा दी गई. सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए थाने के अपने एक परिचित हवलदार को कुछ रुपए दे कर कहा कि राज उस की बहन से छेड़छाड़ कर के उसे परेशान करता है. वह उसे किसी झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भिजवा दे.
हवलदार, जिस का नाम जसबीर था, ने फोन कर के राज को थाने बुलाया. फोन पर उस ने राज को धमकाते हुए कहा था कि थाने में उस के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज है. अगर वह थाने नहीं आया तो वह उसे उस के औफिस से गिरफ्तार कर लेगा.
समझदारी दिखाते हुए राज ने यह बात अपने पत्रकार पिता अमन सिंह को बता दी, साथ ही सुधा द्वारा भेजे गए संदेशों के बारे में भी बता दिया. अमन इस बारे में मेरे पास सलाह लेने आया. मेरे पास आने से पहले उस ने हवलदार जसबीर सिंह को फोन कर के अपना परिचय दे कर पूछा था कि उस के बेटे राज से उसे ऐसा क्या काम है, जो वह उसे थाने बुला रहा है.
पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी फोन कर के हवलदार जसबीर सिंह से यही बात पूछी तो उस दिन के बाद उस ने राज को कभी फोन नहीं किया. इस के बाद अमन सिंह इस मामले को सुलझाने के लिए राज की कंपनी के मैनेजर से मिले. उन्होंने किशोरीलाल को औफिस में बुलवाया, जिस से आमनेसामने बैठ कर बातचीत हो सके और जो भी गलतफहमी हो दूर की जा सके.
तय समय पर राज, अमन सिंह और किशोरीलाल मैनेजर की केबिन में इकट्ठा हुए. किशोरीलाल के साथ उस की पत्नी और बेटा सुरजीत भी आया था. सुरजीत के बारे में जैसा मुझे पता चला था, उस के हिसाब से वह अपनी मां के लाड़प्यार में बिगड़ा आवारा किस्म का लडक़ा था. वह दिन भर गुंडागर्दी और आवारागर्दी किया करता था. वह खुद को किसी तीसमार खां से कम नहीं समझता था.
बातचीत शुरू हुई तो सुरजीत और उस की मां किशोरीलाल को चुप करा कर जोरजोर से बोल कर राज पर झूठे आरोप लगाने लगे. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, वे उसे सजा दिलाने की बात कर रहे थे. अंत में मैनेजर साहब को हस्तक्षेप करना पड़ा.
उन्होंने कहा, “मैं राज को 5 सालों से जानता हूं. वह कैसा है, यह तुम लोगों को बताने की जरूरत नहीं है. रही बात सुधा की तो उसे भी 10 दिनों में जान लिया. फायदा इसी में है कि बात को यहीं खत्म कर दिया जाए.”
उस दिन समझौता तो हो गया, लेकिन जातेजाते सुरजीत ने राज को धमकाते हुए कहा, “मैं तुम्हें देख लूंगा.”
यह बात भी यहीं खत्म हो गई. उस दिन जो समझौता हुआ था, सुरजीत उस से बिलकुल खुश नहीं था. वह राज को सजा दिलाना चाहता था. सजा भी ऐसी कि वह मुंह दिखाने लायक न रहे.
2 महीने तक शांत रहने के बाद सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना में उस ने कालगर्ल जीतो और 2 आवारा लडक़ों नरेश तथा कुलदीप को शामिल किया. उस ने उन से कहा कि योजना सफल होने पर वह उन्हें मोटी रकम देगा.
उस की योजना के अनुसार, नरेश को किसी सुनसान जगह पर जीतो के साथ शारीरिक संबंध बनाना था. उस के बाद जीतो थाने जा कर शिकायत दर्ज कराती कि उस के साथ दुष्कर्म हुआ है. जीतो पुलिस को उस जगह ले जाती, जहां दुष्कर्म हुआ था. नरेश और कुलदीप वहीं छिपे रहेंगे, जिन्हें पुलिस दुष्कर्म का साथी मान कर थाने ले आती.
थाने आ कर जीतो बताती कि इन दोनों ने दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म इन के दोस्त ने किया था, जो भाग गया है. पुलिस जब नरेश और कुलदीप से उन के दोस्त का नाम पूछती तो वे उस का नाम राज बता कर उस का मोबाइल नंबर देते हुए उस के बारे में पूरी जानकारी दे देते.
बात उतनी बड़ी नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि हलके में लिया जाता. उस के पीछे का मकसद और साजिश इतनी खतरनाक थी कि पूरी घटना जानने के बाद मैं दंग रह गया था. इस बात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों को ले कर इतने बड़ेबड़े मंसूबे कैसे बना लेते हैं?
उस दिन मैं थोड़ी देर से थाने पहुंचा था. इस की वजह यह थी कि मेरे बेटे के स्कूल में सालाना समारोह था, इसलिए मुझे वहां जाना पड़ा था. थाने पहुंच कर मैं ने ड्यूटी अफसर परमजीत सिंह को बुला कर पूछा, “कोई खास बात तो नहीं है?”
“जी कोई खास बात नहीं, बस एक…”
परमजीत बात पूरी कर पाता, मुख्य मुंशी गुरजीत सिंह कुछ फाइलें ले कर हस्ताक्षर कराने आ गया. मैं ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए परमजीत सिंह को हाथ से बैठने का इशारा किया. वह मेरे सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. सभी फाइलोंपर दस्तखत कर के मैं ने मुंशी से 2 चाय भिजवाने को कहा.
मुंशी चला गया तो मैं परमजीत से मुखातिब हुआ, “हां, तो तुम क्या कह रहे थे?”
“सर, लगभग 12 बजे टोल नाके पर तैनात हमारे थाने के पुलिसकर्मियों के पास एक लड़की भागती हांफती आई. उस की हालत बता रही थी कि किसी बात को ले कर वह काफी परेशान थी. पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़ कर उस की उस हालत की वजह पूछी तो उस ने हांफते हुए कहा कि वह सतलुज नदी में कोई पूजा सामग्री फेंकने आई थी. सामग्री फेंक कर जैसे ही वह लौटी 2 लडक़ों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती खींच कर खेतों में ले गए, जहां उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की. लडक़ों ने उस का मुंह दबा रखा था, जिस से वह चीख भी नहीं सकी.”
परमजीत इतनी बात कर चुप हुआ तो पूरी बात जानने के लिए मैं ने कहा, “आगे क्या हुआ?”
“लड़की ने अपना नाम जीतो बताया था. उस की बात सुन कर हवलदार चरण सिंह और इंद्र सिंह ने फोन द्वारा मुझे घटना की सूचना दे कर खुद जीतो द्वारा बताए गए खेत की ओर चल पड़े. उन के खेतों में पहुंचने तक मैं भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया.”
जीतो का कहना था कि वे लड़के अभी यहीं कहीं छिपे होंगे, इसलिए हम सभी लडक़ों की तलाश करने लगे. थोड़ी तलाश की तो 2 लड़के सतलुज किनारे एक झाड़ी के पास बैठे मिल गए. जीतो ने उन की शिनाख्त करते हुए कहा कि इन दोनों ने उस के साथ दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म करने वाला कोई और लडक़ा था.
“तो क्या 3 लड़के थे?” मैं ने पूछा तो परमजीत ने कहा, “जी सर, दुष्कर्म करने वाला तीसरा लडक़ा भाग गया था. सर, मैं जीतो और उन दोनों लडक़ों को थाने ले आया हूं. अब आप बताइए कि आगे क्या किया जाए?”
“अरे भई करोगे क्या, लड़की का मैडिकल कराओ, बयान लो और उस फरार लड़के के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे पकड़ो और क्या करोगे. वैसे ये सब रहने वाले कहां के है. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है, उस का क्या नाम है, वह कहां रहता है?” मैं ने पूछा.
मेरी इस बात पर परमजीत कुछ परेशान सा हो गया. मैं ने आंखों से आगे बताने का इशारा किया तो उस ने कहा, “सर, इन दोनों लडक़ों के नाम तो नरेश और कुलदीप हैं. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है. उस का नाम राज है और वह आप के दोस्त पत्रकार अमन सिंह का बेटा है.”
“क्या… अमन का बेटा राज?” मैं चौंका. पत्रकार अमन सिंह सचमुच मेरा अच्छा दोस्त था. वह निहायत ही शरीफ और शांतिप्रिय आदमी था. झूठ से उसे सख्त नफरत थी. उस ने कभी झूठी खबरें नहीं लिखी थीं. अपने काम से काम रखने वाला अमन अपनी नेकनीयती की वजह से हमेशा आर्थिक तंगी से जूझता रहता था. उस के सिखाए दर्जनों लड़के दुनियादारी के मजे कर रहे थे, लेकिन वह वैसा नहीं बन पाया था.
मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो मुझे याद आया कि अमन के बेटे का नाम राज ही है, क्योंकि 2-3 महीने पहले अमन किसी मामले में मुझ से सलाह लेने आया था, तब उस ने बेटे का नाम ले कर कोई चर्चा की थी. तब मुझे पता चला था कि उस के बेटे का नाम राज है.
मैं हैरान था कि अमन जैसे शरीफ आदमी का बेटा इस तरह का काम कैसे कर सकता है? लेकिन आज के समय में किसी के बारे में कोई राय रखना उचित नहीं है. जरूरी नहीं कि बाप शरीफ हो तो बेटा भी शरीफ ही हो.
बहरहाल, अमन को उस दिन मेरे पास आना था, क्योंकि उसे कुछ रुपयों की जरूरत थी. 2 दिन पहले उस ने फोन कर के मुझ से कहा था तो मैं ने उसे उस दिन आ कर रुपए ले जाने के लिए कहा था. वह किसी भी समय आ सकता था. मैं सोचने लगा कि अमन जब अपने बेटे की इस करतूत के बारे में सुनेगा तो उस पर क्या गुजरेगी?
“उन दोनों लडक़ों को ले आओ.” मैं ने कहा.
मेरे कहने पर परमजीत सिंह ने नरेश और कुलदीप को ला कर मेरे सामने खड़ा कर दिया. दोनों देखने में ही आवारा लग रहे थे. उन्हें देख कर मैं सोच भी नहीं सकता था कि ऐसे घटिया लडक़ों से राज की दोस्ती हो सकती है. फिर भी मैं ने पूछा,
“सचसच बताओ, क्या बात है?”
नरेश थोड़ा तेज दिखाई दे रहा था. उसी ने कहा, “सर, हम ने उसे मना किया था. कहा कि छेड़छाड़ की बात और है, लेकिन वह नहीं माना. लड़की को पकड़ खेत में ले गया और लडक़ी की इज्जत खराब कर दी.”
“वह सब तो ठीक है, लेकिन उस लड़के का नाम क्या है, कौन है वह?”
“सर, उस का नाम राज है. उस के पापा पत्रकार हैं. उन का नाम अमन सिंह है. राज एक फाइनैंस कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर है.”
इस के बाद उस ने वही सब मुझे भी बताया, जो उस ने परमजीत को बताया था. नरेश के साथी कुलदीप ने भी वही सब बताया था, जो नरेश ने बताया था. मैं उन से पूछताछ कर ही रहा था कि अमन आ पहुंचा. मुझ से हाथ मिला कर वह मेरे सामने कुरसी पर बैठ गया तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, “तुम्हारे बेटे ने जो किया है, मुझे उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. तुम ने यही सब सिखाया है उसे?”
“मेरा बेटा… आप मेरे किस बेटे की बात कर रहे हैं?”
“राज की और किस की..?”
“क्यों, क्या किया राज ने?” अमन ने हैरानी से पूछा.
“एक लडक़ी के साथ जबरदस्ती की है.”
“जबरदस्ती… क्या मतलब?”
“भई एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया है राज ने.” मैं ने आवाज पर जोर दे कर कहा.
“यह आप क्या कह रहे हैं? कहां किस के साथ दुष्कर्म किया है? राज ऐसा कतई नहीं कर सकता.” अमन ने जिद सी करते हुए कहा.
“ऐसा नहीं कर सकता तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. पूछो राज के इन साथियों से.” मैं ने नरेश और कुलदीप की ओर इशारा कर के कहा, “अपने इन्हीं साथियों के साथ उस ने घटना को अंजाम दिया है. दोनों उसी के दोस्त हैं.”
“आप यह क्या कह रहे हैं. ये आवारा लड़के राज के दोस्त कतई नहीं हो सकते. राज के सिर्फ 3 दोस्त हैं, जिन्हें मैं अच्छी तरह से जानता हूं. तुम इन सडक़छाप लडक़ों को राज का दोस्त कह दोगे तो क्या मैं मान लूंगा.”
दुष्कर्म के मामले में राज का नाम आने से अमन काफी नाराज था. उस ने खीझते हुए कहा, “अच्छा, अब बात समझ में आई, मैं ने आप से कुछ रुपए मांगे थे, नहीं देने का मन था तो मना कर देते. मेरे बेटे पर इस तरह का झूठा आरोप लगाने की क्या जरूरत थी? सच ही कहा गया है, पुलिस वाले की न दोस्ती अच्छी होती है और न दुश्मनी.”
“अमन ये तुम क्या बेकार की बातें कर रहे हो? मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूं. जो कुछ भी कह रहे हैं, वह ये लड़के और वह लड़की कह रही है, जिस के साथ राज ने दुष्कर्म किया है. रही बात पैसों की तो उस के लिए मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था. तुम्हें रुपए देने के लिए ही तो मैं ने बुलाया था.”
“मुझे अब आप की कोई मदद नहीं चाहिए. आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए.”
मैं खामोश हो गया. अमन सिर झुकाए किसी सोच में डूबा बैठा रहा. कुछ देर बाद मैं ने अमन को प्यार से समझाया. लड़की को बुला कर पूरी बात उस के सामने कहलवाई. नरेश और कुलदीप से भी बात कराई. तब जा कर बात उस की समझ में आई.
वह कुछ देर शांत बैठा रहा. उस के बाद अचानक जेब से मोबाइल फोन निकाला और किसी से बात करने लगा. उस की बातचीत से समझ में आया कि उस ने राज को फोन किया था और अपने 2-4 दोस्तों के साथ आने को कहा था.
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अमन करना क्या चाहता है. मैं ने अमन के लिए चाय मंगाई. चाय पी कर हम सभी चुपचाप बैठे रहे. वहां की खामोशी बता रही थी कि कोई किसी से बात नहीं करना चाहता.
लगभग आधे घंटे बाद अमन के फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, “आ जाओ.”
इस के बाद अमन उस से मुखातिब हुआ, “इन तीनों से कहो कि अभी जो लडक़े आएंगे, उन में पहचान कर बताएं कि राज कौन है, जिस ने इस लड़की के साथ जबरदस्ती की है.”
अमन के इतना कहतेकहते 6 लडक़े मेरे औफिस में आ कर खड़े हो गए. सभी लड़के नरेश और कुलदीप से एकदम अलग पढ़ेलिखे और अच्छे घरों के लग रहे थे. मैं ने सब से पहले जीतो से कहा, “बताओ, इन लडक़ों में से कौन राज है, जिस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?”
मेरी बात सुन कर वह बगलें झांकने लगी. मैं ने डांटा तो हड़बड़ा कर उस ने एक लड़के की ओर इशारा कर दिया. मेरे कहने पर परमीत सिंह ने उस लडक़े को खड़ा कर दिया. इस के बाद मैं ने नरेश और कुलदीप से कहा कि वे बताएं कि उन में इन का दोस्त राज कौन है?”
जीतो की तरह वे भी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मैं ने डांटते हुए कहा, “अब पहचान कर बताओ न तुम्हारा दोस्त राज कौन है?”
दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे, “साहब, हम नहीं जानते कि इन में से राज कौन है? हमें तो राज का नाम लेने के लिए रुपए दिए गए थे.”
“जी साहब,” नरेश और कुलदीप के सच उगलते ही जीतो ने भी बीच में सच उगल दिया, “ये सच कह रहे हैं साहब. राज को दुष्कर्म के मामले में फंसाने के लिए हम सभी को रुपए दिए गए थे. मैं न तो राज को जानती हूं और न मैं ने कभी उसे देखा है.”
इस के बाद उन तीनों ने जो बताया, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आज की युवा पीढ़ी को यह क्या हो गया है, जो छोटीछोटी बातों पर इतने खतरनाक मंसूबे बना लेती हैं. इस के बाद जीतो, नरेश और कुलदीप से की गई पूछताछ में इस फरजी दुष्कर्म की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.
राज जिस फाइनैंस कंपनी में काम करता था, उसी में उस के साथ ही किशोरीलाल भी काम करता था. उस का काम लोन पास करवाना था. वह सीधासादा पारिवारिक आदमी था. इसलिए राज उस की बहुत इज्जत करता था. इस के अलावा एक वजह यह भी थी कि वह उस के पिता की उम्र का था.
सुबह मैं ने जाहिद को अपने औफिस में बुला कर कहा, “जाहिद मियां, तुम इतना झूठ बोल चुके हो कि अब मैं तुम्हें कोई मौका नहीं दूंगा. तुम यह बताओ कि यह झूठ किस लिए बोला था. अब तुम बताओ कि करामत और तुम्हारी पत्नी कहां हैं?”
“मुझे क्या पता साहब.” उस ने जवाब में कहा.
मैं ने चीख कर पूछा, “तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”
उस के होंठ कांपने लगे, लेकिन आवाज नहीं निकली. मैं ने गरज कर कहा, “जल्दी बोलो…”
इस पर भी उस ने कुछ नहीं बताया तो मैं ने एक हैडकांस्टेबल को बुला कर जाहिद को उस के हवाले कर के कहा, “यह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कह नहीं पा रहा है. इस की सुन लो.”
हैडकांस्टेबल उसे पकड़ कर ले गया
मैं ने उन आदमियों में से एक को, जो जाहिद के घर आए थे, बुला कर पूछा, “यहां कब से आए हुए हो?”
“कल सुबह आए थे.”
“पहले कब आए थे?”
“पिछली बार… कोई एक महीना हो गया.”
उसे भेज कर दूसरे को बुलाया, उस से भी यही सवाल किया. उस ने जवाब दिया, “कोई डेढ़दो महीने पहले आए थे.”
मैं ने अभी जाहिद के छोटे भाई को नहीं बुलाया और अपने काम में लग गया. कोई एक घंटे बाद हैडकांस्टेबल हंसता हुआ आया. उस ने कहा, “सर, आप को जाहिद बुला रहा है.”
मैं वहां गया. हैडकांस्टेबल ने उसे जिस पोजीशन में रखा था, जाहिद 15 मिनट से अधिक सहन नहीं कर सकता था. उस की आंखें मांस की तरह लाल हो गई थीं.
मैं ने उसे बिठाया, पानी पिलाया. उस के सामान्य होने पर मैं ने कहा, “देख, तेरे साथ यह जो हुआ है, वह ट्रेलर है. अब भी मुंह नहीं खोला तो समझ ले आगे क्या होगा?”
उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बोला, “साहब, मुझे बचा लो.”
मैं ने कहा, “कुछ कहो तो सही, पहले अपना अपराध बताओ, फिर मैं कुछ करूंगा. तुम मेरे दुश्मन नहीं हो, मेरा तुम ने क्या बिगाड़ा है.”
उस की जबान पर बात आती और चली जाती. अपराध स्वीकार करने से पहले हर अपराधी का यही हाल होता है. मैं ने उसे तसल्ली दी, “मुझे यह बताओ कि तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”
“अब वे जिंदा नहीं हैं.”
इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार, वह मुनव्वरी की करतूत से तंग आ गया था लेकिन उस के बाप से डरता था, इसलिए उसे तलाक नहीं दे सकता था. मुनव्वरी के मातापिता बेटी को समझाने के अलावा उसे उलटा पाठ पढ़ाते थे. तंग आ कर जाहिद ने अपने इन दोनों रिश्तेदारों से बात की.
दोनों ने जाहिद के साथ मिल कर करामत और मुनव्वरी को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. जाहिद को पता था कि करामत रोज अपने दोस्तों के साथ रात को ताश खेलने जाता है. उन्होंने दिन के समय टीलों के पास वह जगह देख ली, जहां दोनों की लाशों को छिपाया जा सकता था. घटना की रात जाहिद ने मुनव्वरी का गला उस समय दबा दिया, जब वह सोई हुई थी. जाहिद के भाई और दोनों रिश्तेदारों ने उस की लाश को एक बोरी में डाल कर सिल दिया.
जाहिद का भाई देख आया कि करामत अपने दोस्तों के साथ ताश खेल रहा है. चारों गली के मोड़ पर घात लगा कर करामत का इंतजार करने लगे. करामत जब ताश खेल कर लौट रहा था तो चारों ने चाकू के बल पर उसे रोक लिया. उस के बाद वे उसे खेतों की तरफ ले गए. डर की वजह से करामत उन के साथ चला गया.
खेतों में जा कर एक आदमी ने पीछे से उस का गला दबा दिया. वह मर गया तो उस की लाश को बोरी में डालने के बाद कंधे पर रख कर चल पड़े. बारीबारी से वे उसे ले कर चलते रहे और टीले के पास ले गए. टीले पर दीवार की तरफ कुदरती गड्ढा था. अंदर से वह चौड़ा था. उन्होंने करामत की लाश को उस गढ्ढे में डाल कर दबा दिया. जाहिद और उस के भाई ने दोनों रिश्तेदारों के साथ घर से मुनव्वरी की लाश को भी ला कर वहीं दबा दिया, जहां करामत की लाश दबाई थी.
करामत को जब वे लोग ले जा रहे थे तभी उस की जेब से एक लिफाफा गिर गया था. घसीटने में उस के पैरों से स्लीपर निकल गए थे. स्लीपर गिरा, जिस का उन चारों को पता नहीं चल पाया था. मुनव्वरी की जूतियां घर में थीं, क्योंकि उसे मार कर बोरी में भर दिया गया था. उन लोगों की योजना थी कि सुबह जाहिद थाने जा कर रिपोर्ट करेगा कि करामत और उस की पत्नी भाग गए हैं. जाहिद ने किया भी वही.
मैं ने मुलजिमों की निशानदेही पर करामत और मुनव्वरी की लाशें टीले के पास से निकलवाईं और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. अदालत में जब मामला चला तो मैं ने पुख्ता सुबूत पेश किए, जिस से जाहिद और उस के दोनों रिश्तेदारों को फांसी की सजा तथा भाई को अपराध में शामिल होने का दोषी होने पर 5 साल की सजा हुई. उन्होंने सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की, लेकिन उन की अपील खारिज हो गई.
इजाबेला को देख कर भले ही फिलिप मुसकरा देता था, लेकिन सही मायने में उसे देख कर उसे गुस्सा आता था. उस ने बाप के साथ मिल कर एलेक्स को प्यार के नाम पर धोखा देने की कोशिश की थी. अगर वह सचमुच एलेक्स को प्यार करती होती तो आत्महत्या कर लिया होता. आत्महत्या नहीं करती तो कम से कम बीमार तो पड़ ही गई होती या अपने कमीने बाप को छोड़ दिया होता. लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं किया था. इस का मतलब उस का प्यार नाटक था.
एक दिन इजाबेला फिलिप के एकदम सामने पड़ गई तो उस ने नमस्ते किया. फिलिप ने उसे बताया कि आजकल एलेक्स कैलिफोर्निया में है और बहुत खुश है. वह टेनिस का अच्छा खिलाड़ी है. हर समय लड़कियां उस के पीछे लगी रहती हैं.
यह बताते हुए फिलिप उस के चेहरे को गौर से देख रहा था कि प्रतिक्रियास्वरूप उस पर कैसे भाव आते हैं. लेकिन उस का चेहरा भावशून्य बना रहा. बल्कि उसे लगा कि वह मुसकरा रही है. तब बेचैनी से फिलिप ने कहा, ‘‘कभी तुम उस से बहुत प्यार करती थीं?’’
‘‘जी, शायद वह मेरी बेवकूफी थी.’’ इजाबेला ने झट कहा, ‘‘कई महीने पहले एलेक्स ने भी फोन कर के कहा था.’’
‘‘तुम उतनी नहीं भोली हो, जितनी दिखती हो,’’ फिलिप ने कहा, ‘‘कितनी आसानी से तुम ने उसे बुद्धू बना दिया.’’
‘‘इन बातों का अब क्या मतलब मि. फिलिप. आप ने ही कहा था कि एलेक्स को छोड़ दो. मैं ने छोड़ दिया. अब आप शिकायत कर रहे हैं कि मैं ने बड़ी आसानी से उसे भुला दिया.’’
‘‘तुम जैसी लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं. किसी पर भी हक जमा सकती हैं.’’
‘‘कैसा हक मि. फिलिप? मुझे पता है कि एलेक्स आप का बेटा है. वह आप से अलग थोड़े ही हो सकता है. उस समय वह भावुक हो रहा था, वरना मुझ में ऐसा क्या था, जिस के लिए वह आप को और आप की जायदाद को छोड़ देता. वह मुझ से सिविल मैरिज के लिए कह रहा था, पर मैं ने मना कर दिया.’’
फिलिप चौंका, फिर स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘कर लेना चाहिए था सिविल मैरिज. तुम दोनों बालिग तो हो ही चुके हो.’’
‘‘वह मुझ से कह रहा था कि मैं उस के साथ कैलिफोर्निया चलूं, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. मुझे पता था कि वह बाद में पछताता. क्योंकि उस की शक्लसूरत, आदत और मिजाज सब कुछ आप जैसे हैं. वह भी दौलत से उतना ही प्यार करता है, जितना आप. बाद में अपनी गरीबी के लिए मुझ पर आरोप लगता. उसे मेहनतमजदूरी करनी पड़ती तो प्यार का नशा उतर जाता और लड़ाईझगड़ा होने लगता. अंत में तलाक हो जाता.’’ इजाबेला ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए कहा.
‘‘ये बातें तुम्हें एलेक्स से कहनी चाहिए थीं.’’
‘‘अब कोई फायदा नहीं, जो होना था, वह हो चुका है. अब इस बारे में सोचने से क्या फायदा.’’
इजाबेला की बातें सुन कर फिलिप को लगा, वह सचमुच एलेक्स से प्यार करती थी. उस ने बिना मतलब एक मासूम लड़की का दिल तोड़ा. उस पूरे सप्ताह वह काफी उदास रहा. एक दिन उस ने रोजा से कहा, ‘‘काश, इजाबेला किसी और की बेटी होती तो एलेक्स से उस की शादी हो गई होती.’’
‘‘किसी और की नहीं, किसी करोड़पति की बेटी कहो. तब तुम्हारा मकसद पूरा हो जाता.’’ रोजा ने कहा.
अगले ही दिन एलेक्स आ गया. उस का रवैया एकदम नार्मल था. वह खुश भी नजर आ रहा था. इस से फिलिप को तसल्ली हुई. उस ने स्पोर्ट कार खरीद ली थी. वह रोज टेनिस खेलने जाता था. उस के आने के बाद फिलिप ने एक दिन डिनर रखा. उस में इजाबेला को खासतौर से बुलाया. फिलिप एलेक्स के साथ दरवाजे पर खड़े हो कर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहा था.
इजाबेला आई तो बहुत ही खूबसूरत और ग्रेसफुल लग रही थी. उस के आते समय फिलिप की नजरें एलेक्स पर ही जमी थीं. एलेक्स ने उस पर खास ध्यान नहीं दिया था. सब की ही तरह हाथ मिला कर हालचाल पूछ लिया था. उसी तरह फिलिप ने भी हालचाल पूछा था. इजाबेला रोजा से बड़े प्यार से बातें कर रही थी.
फिलिप सब से मिलजुल रहा था, लेकिन उस की नजरें एलेक्स पर ही टिकी थीं. उस ने देखा, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह नजर आ रहे थे, जैसे उन का एकदूसरे से कोई ताल्लुक ही नहीं था. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस की दूर की सोच ने उसे बुरे अंजाम से बचा लिया. इस तरह इजाबेला को पार्टी में बुलाने का उस का मकसद पूरा हो गया.
पार्टी खत्म हुई तो इजाबेला ने जाने की इजाजत मांगी. फिलिप ने एलेक्स से कहा कि वह इजाबेला को उस के घर तक छोड़ आए. उन के बाहर निकलने से पहले फिलिप पिछले दरवाजे से निकल कर वहां गया, जिधर से वे जाने वाले थे. वह एक झाड़ी के पीछे छिप कर खड़ा हो गया. बाहर आते ही एलेक्स बेताबी से इजाबेला को बांहों में भर कर प्यार करने लगा.
इजाबेला ने उस के सीने से लग कर रोते हुए कहा, ‘‘एलेक्स, अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती. मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊंगी.’’
‘‘बेवकूफी वाली बातें मत करो. जिस तरह तुम ने एक साल बिता दिया, उसी तरह कुछ दिन और बिता दो. यही तो दूर की सोच है.’’ इजाबेला के बालों को सहलाते हुए एलेक्स ने कहा.
‘‘लेकिन इस बात का क्या भरोसा कि अब हमें ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक यह नाटक नहीं कर सकती.’’
‘‘बस, कुछ दिनों की ही बात है. मैं खुद जा कर डाक्टर से मिला था. उस ने बताया है कि डैडी का दिल काफी कमजोर होने के साथ बहुत ज्यादा बढ़ चुका है, इसलिए वह ज्यादा दिनों तक जिंदा रहने वाले नहीं हैं. बस कुछ हफ्ते या 2-4 महीने के मेहमान हैं. उस के बाद हमारे इंतजार की घडि़यां और दुख के दिन खत्म हो जाएंगे.’’
ये बातें सुन कर फिलिप को लगा कि उस ने एलेक्स का प्यार छीना तो इजाबेला ने उस से उस का बेटा छीन लिया. वह उस की जायदाद का एकलौता वारिस था. कहां उसे अपनी दूर की सोच पर नाज था, अपनी अक्ल पर घमंड था, आज उस का बेटा उस से ज्यादा दूर की सोच वाला और समझदार निकल चुका था. कितनी आसानी से बिना किसी लड़ाईझगड़े के उस ने अपनी दूर की सोच की वजह से अपने प्यार को पा लिया था.