अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 2

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 2

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई – भाग 2

इस के बाद थाना प्रभारी रामऔतार ने मृतक मनीष के पिता कल्लू की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत राजेश कुरील के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में इस दोहरे हत्याकांड के पीछे एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने शरीर सुख के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर नर्वल थाने के अंतर्गत एक गांव है रायपुर. बाबूराम कुरील अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रन्नो के अलावा 2 बेटियां अनीता, सुनीता तथा एक बेटा अरविंद था.

बाबूराम मनरेगा में मजदूरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस ने बड़ी बेटी अनीता का विवाह कर दिया था.

अनीता से 3 साल छोटी सुनीता थी. वह बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. सुनीता के युवा होते ही बाबूराम उस की शादी के लिए चिंतित रहने लगा. दौड़धूप और रिश्ते नातेदारो के सहयोग से उसे राजेश पसंद आ गया.

राजेश के पिता मौजीलाल कुरील नरौरा गांव के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी चंद्रावती के अलावा 2 बेटियां आशा, बरखा तथा बेटा राजेश था. मौजीलाल के पास 5 बीघा खेती की जमीन थी. राजेश पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था. राजेश, ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था, लेकिन शरीर से हष्टपुष्ट था.

मौजीलाल अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. राजेश अभी कुंवारा था. बाबूराम कुरील जब उस के पास सुनीता का रिश्ता ले कर आया तो मौजीलाल ने स्वीकार कर लिया.

अंतत: 7 जून, 2008 को राजेश के साथ सुनीता का विवाह हो गया. कुछ ही दिनों में सुनीता ससुराल के माहौल में रम गई. ससुराल में उसे सभी ने खूब प्यार दिया. शादी के एक साल बाद ही सुनीता एक बेटे की मां बन गई.

बेटे के जन्म के बाद ससुराल में सुनीता का मान और भी बढ़ गया था. सास चंद्रावती तथा ससुर मौजीलाल फूले नहीं समा रहे थे. इसी हंसीखुशी के साथ सुनीता और राजेश के गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. बाद में सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.

राजेश एक मामूली किसान था. 3 बच्चों के जन्म के बाद उस के परिवार का खर्च बढ़ गया था. इसलिए वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा. वह सुबह को पिता के साथ खेत पर चला जाता और शाम ढले घर लौटता. उस समय राजेश इतना थका होता था कि खाना खाने के बाद उसे केवल बिस्तर ही सूझता था.

दूसरी ओर सुनीता की हसरतें जवान थीं. 3 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उस का जिस्म कसा हुआ था. हर रात वह पति का प्यार चाहती थी, लेकिन राजेश उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

जैसेतैसे दिन बीत रहे थे. सुनीता तन की शांति के लिए घर के बाहर ताकझांक करने लगी थी. दरअसल सुनीता का दिन तो कामकाज और बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. अंतत: उस की नजरें अपने से 10 साल छोटे कुंवारे मनीष पर टिक गईं.

मनीष के पिता कल्लू कुरील, फतेहपुर जनपद के औंग थाने के गांव गलाथा में रहते थे. उस के परिवार में पत्नी रामप्यारी के अलावा 5 बेटे, 2 बेटियां थीं. कल्लू के पास खेती की 8 बीघा जमीन थी जिस में अच्छी पैदावार होती थी. खेती के अलावा वह गल्ले का करोबार भी करता था. इस व्यापार में उस के बेटे भी उस का हाथ बंटाते थे. कुल मिला कर कल्लू की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

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कल्लू की संतानों में मनीष सब से छोटा था. मनीष का मन न तो पढ़ाई में लगा और न ही खेती के काम में. आठवीं पास करने के बाद उस ने ड्राइवरी सीख ली और अपने दोस्त की टैंपों चलाने लगा. जब हाथ साफ हो गया तब उस ने पिता पर दबाव बना कर वैन खरीद ली और उसे चलाने लगा. वह कानपुर फतेहपुर के बीच वैन से सवारियां ढोने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होती थी.

चूंकि मनीष की मां रामप्यारी राजेश की बुआ थी, इस नाते राजेश और मनीष फुफेरे भाई थे. सुनीता जब ब्याह कर ससुराल आई थी तब मनीष केवल 12 साल का था. लेकिन अब वह 22 साल का गबरू जवान हो गया था.

मनीष का सुनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था इसलिए उन के बीच हंसीमजाक भी होती रहती थी. सुनीता ने मनीष के बारे में सोचा तो वह उसे अच्छा लगा. अत: उस का रुझान मनीष की ओर हो गया.

अब मनीष जब भी घर आता सुनीता जानबूझ कर अपने सुघड अंगों का प्रदर्शन करती. कुंआरा मनीष उन्हें ललचाई नजरों से देखता. सुनीता समझ गई कि मनीष पर उस के रूप का जादू चल गया है.

उन्हीं दिनों एक रोज मनीष आया तो सुनीता से नजरें मिलते ही वह मुसकराया, सुनीता के होंठों पर भी मुसकान खिल गई. कुछ देर बाद सुनीता चाय बना कर लाई और दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. उस समय घर में दोनों अकेले थे. चाय पीते समय मनीष सुनीता को बड़े गौर से देख रहा था. सुनीता ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘मनीष तुम मुझे इतना घूर कर क्यों देख रहे हो?’’

‘‘भाभी तुम हो ही इतनी खूबसूरत.’’ मनीष ने कहा तो सुनीता मुसकराई, ‘‘मनीष, मैं कुंवारी लड़की नहीं हूं, शादीशुदा और 3 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं भाभी. पर तुम मेरे लिए कुंवारी जैसी ही हो.’’ कहते हुए मनीष ने सुनीता को अपनी बांहों में जकड़ लिया और चुंबनों की झड़ी लगा दी.

सुनीता ने नारी सुलभ नखरा किया, ‘‘मनीष छोड़ो मुझे. यह पाप है.’’

‘‘कोई पाप नहीं है भाभी. हम दोनों की जरूरत एक ही है. पापपुण्य को भूल जाओ.’’

सुनीता तो पहले से ही मनीष का साथ चाहती थी. उस का विरोध केवल बनावटी था. लिहाजा सुनीता ने भी मनीष के गले में बाहें डाल दीं. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. उस दिन के बाद देवरभाभी की पापलीला शुरू हो गई.

मनीष को जवान तथा मदमस्त कर देने वाली सुनीता का साथ मिला तो वह उस का दीवाना बन गया. दूसरी तरफ सुनीता भी कुंवारे मनीष से खुश थी. पति से ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था. अत: सुनीता ने मनीष को ही अपना सबकुछ मान लिया.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 2

थानाप्रभारी ने रेखा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बर्रा 8 में उस के जेठ ज्वाला प्रसाद का साढ़ू रामप्रकाश अपनी पत्नी रामकली के साथ रहता है. उस का 9 साल का एक बेटा भी है. इस जानकारी पर अतुल श्रीवास्तव बर्रा 8 स्थित रामप्रकाश के घर पहुंचे तो वहां ताला लटक रहा था.

रामप्रकाश पर शक गहराया तो पुलिस ने उस की तलाश तेज कर दी. थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने ताबड़तोड़ छापे मार कर रामप्रकाश के कई रिश्तेदारों को उठा लिया. उन में से जिन के पास रामप्रकाश का मोबाइल नंबर था, उन से बात करने को कहा. लेकिन रामप्रकाश ने कोई काल रिसीव ही नहीं की.

लेकिन एक खास रिश्तेदार से उस ने बात की और बताया कि वह महाराजपुर के संदलपुर गांव में है. यह जानकारी प्राप्त होते ही थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव संदलपुर गांव पहुंच गए और वहां से उन्होंने रामप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया.

उसे थाना बर्रा लाया गया. थाने पर जब उस से उस की पत्नी रामकली के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि रामकली उस की बहन चंदा के घर नौरंगाबाद में है. उस के साथ उस का बेटा भी है. यह पता चलते ही अतुल श्रीवास्तव ने नौरंगाबाद से रामकली को हिरासत में ले लिया.

थानाप्रभारी ने रामप्रकाश तथा उस की पत्नी रामकली से थाने में प्रेमप्रकाश की हत्या के बारे में पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने इस बात से इनकार किया कि प्रेमप्रकाश की हत्या में उन का कोई हाथ है. जब दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो रामकली टूट गई.

उस के टूटते ही रामप्रकाश ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. रामकली ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था, बरामद करा दी. रामप्रकाश ने अपने घर से मृतक का मोबाइल फोन बरामद करा दिया, जिसे उस ने तोड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया था. पुलिस ने दोनों चीजें बरामद कर लीं.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने प्रेमप्रकाश हत्याकांड के कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को दी. रवीना त्यागी ने आननफानन में अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर के घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने मृतक की पत्नी रेखा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रामप्रकाश और उस की पत्नी रामकली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में साली की चाल में जीजा के हलाल होने की घटना प्रकाश में आई.

बर्रा कानपुर शहर का एक विशाल आबादी वाला क्षेत्र है. बड़ा क्षेत्र होने के कारण इसे 8 भागों में बांटा गया है. इसी बर्रा भाग 7 के जरौली फेस-1 के अंतर्गत नरपत नगर मोहल्ला पड़ता है. प्रेमप्रकाश अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रवि व पंकज तथा 2 बेटियां सोनम और पूनम थीं.

प्रेमप्रकाश मीट का व्यापारी था. घर से कुछ दूरी पर पारकर रोड पर उस की दुकान थी. प्रेमप्रकाश अपनी दुकान तो चलाता ही था, साथ ही छोटे दुकानदारों को भी मीट की सप्लाई करता था. इस के अलावा होटलों में भी वह मीट सप्लाई करता था. मीट व्यापार में प्रेमप्रकाश को अच्छी कमाई होती थी. क्षेत्र में वह प्रेम मीट वाला के नाम से जाना जाता था.

प्रेमप्रकाश कमाता तो अच्छा था, लेकिन उस में कुछ कमियां भी थीं. वह शराब व शबाब का शौकीन था. अपनी आधी कमाई वह शराब और अय्याशी में ही खर्च कर देता था. बाकी बची कमाई से घर का खर्च चलता था. पति की इस कमजोरी से रेखा वाकिफ थी.

जब वह शराब पी कर आता तो रेखा उसे समझाती, लेकिन वह कहता, ‘‘रेखा, जिस तरह तुम मेरी संगिनी हो, उसी तरह यह लाल परी भी मेरी संगिनी है. शाम ढलते ही यह मुझे सताने लगती है, तब मैं बेबस हो जाता हूं.’’

रेखा ने पति को लाख समझाया, पर जब समझातेसमझाते थक गई तो उस ने उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया. वह केवल घर और बच्चों की परवरिश में लगी रहती. बच्चे जब बड़े हुए तो वह प्रेम के साथ दुकान चलाने का गुर सीखने लगे और बेटियां मां के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगीं.

प्रेमप्रकाश के बड़े भाई का नाम ज्वाला प्रसाद था. वह उस के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. ज्वाला प्रसाद की पत्नी का नाम शिवकली था. प्रेमप्रकाश शराबी और अय्याश था, इसलिए वह प्रेमप्रकाश को पसंद नहीं करता था. दरअसल, प्रेमप्रकाश व शिवकली का रिश्ता देवरभाभी का था. इस नाते वह शिवकली से हंसीमजाक, छेड़छाड़ कर लेता था. लेकिन ज्वाला को यह सब पसंद नहीं था. उस ने प्रेमप्रकाश के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

शिवकली की तरह उस की बहन रामकली भी खूबसूरत थी. वह बर्रा-8 निवासी रामप्रकाश से ब्याही थी. रामकली रामप्रकाश की 5वीं पत्नी थी. उस की पहली पत्नी मीरा बर्रा में ही रहती थी. दूसरी और तीसरी पत्नी ने उस का साथ यह कह कर छोड़ दिया था कि वह उम्र में बड़ा है.

चौथी पत्नी सरोज को वह बिहार के दरभंगा से लाया था. लेकिन प्रताड़ना से परेशान हो कर वह भाग गई थी. इस के बाद ही वह रामकली को ब्याह कर लाया था. शादी के 2 साल बाद रामकली एक बच्चे की मां बन गई थी.

एक रोज सीटीआई चौराहा स्थित गुलाब सिंह के शराब ठेके पर बड़े ही नाटकीय ढंग से प्रेमप्रकाश और रामप्रकाश की मुलाकात हुई. उस रोज ठेके पर दोनों शराब पीने आए थे. शराब पीतेपीते बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों का रिश्ता साढ़ू भाई का निकला. इस के बाद तो शराब का नशा दोगुना हो गया. उस रोज खानेपीने का पैसा प्रेमप्रकाश ने ही चुकता किया. यद्यपि रामप्रकाश मना करता रहा.

रामप्रकाश और प्रेमप्रकाश दोनों ही पक्के शराबी थे. उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई. रिश्ते ने उन की दोस्ती और गहरी कर दी. पहले दोनों शराब ठेके पर पीते थे, लेकिन अब उन की महफिल रामप्रकाश के घर जमने लगी.

घर आतेजाते प्रेमप्रकाश की नजर रामप्रकाश की खूबसूरत बीवी रामकली पर पड़ी, जो रिश्ते में उस की साली लगती थी. साली का शबाब पाने के लिए प्रेमप्रकाश जोड़जुगत बैठाने लगा.

जब भी प्रेमप्रकाश का मन रामप्रकाश के घर जाने का होता, वह उसे मोबाइल से सूचना देता और फिर शाम ढलते ही मीट की थैली और शराब की बोतल ले कर रामप्रकाश के घर पहुंच जाता. रामकली मीट पकाती और वे दोनों शराब की महफिल सजाते.

कभीकभी तो रामकली ही दोनों को पैग बना कर देती. इस दौरान प्रेमप्रकाश की निगाहें रामकली पर ही टिकी रहतीं. वह उस से शरारत भी कर बैठता था.

चूंकि प्रेमप्रकाश और रामकली का रिश्ता जीजासाली का था. इस नाते प्रेमप्रकाश रामकली से हंसीमजाक और छेड़छाड़ करने लगा. कभी एकांत मिलता तो वह उसे बांहों में भी भर लेता और गालों पर चुंबन जड़ देता.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 2

पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी.

लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी. वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए.

रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था.

खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी.

आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया.

नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी.

चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी.

ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो. भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी.

बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था.

आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों.

भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी.

आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा.

जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 2

डीसीपी जतिन नरवाल उस समय थाने में ही मौजूद थे. बौबी की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने एसीपी आर.पी. गौतम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रमेश दहिया, अतिरिक्त थानाप्रभारी मनमोहन कुमार, एसआई प्रकाश, आशीष, एएसआई निक्काराम, हैडकांस्टेबल विजय आदि को शामिल किया.

रवि कुमार का साला बौबी द्वारका की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. बौबी से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘सर, मेरी बहन सविता तो अपनी ससुराल में खुश है. उस के पति रवि कुमार बेहद सज्जन व्यक्ति हैं, भला मैं उन के बारे में इस तरह क्यों सोचूंगा? यह जो हमला करने वाला आदमी है, इसे तो मैं जानता तक नहीं.’’

बौबी को जब पता चला कि उस के बहनोई अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं तो वह बेचैन हो उठा. उस ने फोन द्वारा यह जानकारी बहन सविता को दी. बौबी की बातों से पुलिस को लगा कि प्रेम सिंह उसे झूठा फंसाने की कोशिश कर रहा है तो पुलिस ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी.

बौबी घर न जा कर सीधे सेंट स्टीफंस अस्पताल पहुंचा. लेकिन उस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही रात करीब ढाई बजे उस के बहनोई रवि कुमार की मौत हो गई थी. रवि की मौत की खबर पा कर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई और शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस ने मामले में हत्या की धारा जोड़ कर अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह को तीस हजारी कोर्ट में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर सबूत जुटाने के लिए एक दिन के रिमांड पर ले लिया. चूंकि डा. प्रेम सिंह बौबी को इस मामले में झूठा फंसाना चाहता था, इस से पुलिस समझ गई कि यह आदमी बेहद शातिर है.

रिमांड अवधि के दौरान उस से की गई पूछताछ में उस ने जो सच्चाई बताई, उस के अनुसार, उस ने यह काम जिम ट्रेनर अनीश यादव के कहने पर किया था. अनीश ने इस के एवज में उसे डेढ़ लाख रुपए दिए थे.

‘‘यह अनीश यादव कौन है और वह कहां रहता है?’’ मनमोहन कुमार ने पूछा.

‘‘सर, अनीश रवि कुमार की पत्नी सविता का प्रेमी है और वह पालम कालोनी की राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता है.’’ प्रेम सिंह ने बताया.

प्रेम सिंह को ले कर पुलिस टीम जिम ट्रेनर अनीश यादव के घर पहुंची तो वह भी घर पर ही मिल गया. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो रवि कुमार को अनूठे तरीके से मारने की जो कहानी सामने आई, वह प्रेमप्रसंग की चाशनी में सराबोर थी—

सविता दक्षिणीपश्चिमी दिल्ली की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहने वाले सुरेशचंद की बेटी थी. सुरेशचंद उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के रहने वाले थे. 15-20 साल पहले वह दिल्ली आ गए थे और औटो चलाने लगे थे. बेटी सविता के अलावा उन का एक ही बेटा था, जिस का नाम था बौबी.

छोटा परिवार था. औटो चलाने से जो कमाई होती थी, उस से परिवार का गुजरबसर बड़े आराम से हो जाता था. इसलिए उन्होंने अपने दोनों बच्चों को ठीक से पढ़ायालिखाया. पालम कालोनी में ही नवीन रहता था, जो कालेज में सविता के साथ पढ़ता था. साथ पढ़ने की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई.

राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में ही नवीन का दोस्त अनीश रहता था. पढ़ाई के साथसाथ उसे बौडी बनाने का शौक था. इस के लिए वह घंटों जिम में एक्सरसाइज करता था. नवीन ने उसे अपनी प्रेमिका सविता के बारे में सब कुछ बता दिया था. यही नहीं, उस ने सविता से उसे मिलवा भी दिया था. पहली मुलाकात में ही सविता अनीश यादव से प्रभावित हो उठी थी. किसी तरह सविता को अनीश का फोन नंबर मिल गया तो वह उस से फोन पर बातें करने लगी.

अनीश सविता के बात करने का आशय समझ गया. दरअसल सविता का झुकाव नवीन के बजाए अनीश की तरफ हो गया था. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे थे. नवीन को जब इस बात का पता चला तो उसे दोस्त की बेवफाई का बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने एक तरह से नवीन की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए नवीन ने उस से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए. उधर अनीश और सविता एकदूसरे को जीजान से चाहने लगे थे. वे प्यार के उस मुकाम पर पहुंच गए थे, जहां से वापस आना आसान नहीं होता. उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन वे शादी कोर्ट में करने के बजाए घर वालों की सहमति से सामाजिक रीतिरिवाज से करना चाहते थे.

दोनों ने ही यह बात अपनेअपने घर वालों को कही तो अनीश ने तो किसी तरह अपने घर वालों को राजी कर लिया, पर सविता के घर वाले राजी नहीं हुए. उस की मां तो राजी हो गई थी, पर पिता किसी भी तरह तैयार नहीं हुए. इस की वजह यह थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे. सुरेश बेटी सविता की शादी अपनी ही जाति के लड़के से करना चाहते थे.

पिता का यह फरमान सविता को बहुत अखरा. सुरेशचंद्र कैंसर पीडि़त थे. डाक्टरों ने कह दिया था कि वह कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. इसलिए सविता जिद कर के पिता के दिल को दुखाना नहीं चाहती थी. यह बात उस ने प्रेमी अनीश को बताई तो अरमानों पर पानी फिरने का उसे भी दुख हुआ. सविता ने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी करने से इनकार कर दिया.

सविता का मानना था कि उस के पिता ज्यादा दिनों के मेहमान तो हैं नहीं, इसलिए उन के गुजर जाने के बाद वह अनीश से शादी कर लेगी. लेकिन अनीश इंतजार करने को तैयार नहीं था. लिहाजा उस ने 29 फरवरी, 2016 को दिल्ली के संगम विहार की एक लड़की से शादी कर ली.

सविता को जब पता चला कि अनीश ने शादी कर ली है तो उसे बड़ा दुख हुआ. उस ने इस बात की शिकायत अनीश से की तो उस ने  कह दिया कि यह शादी घर वालों ने जबरदस्ती की है. इस पर सविता ने मन ही मन ठान लिया कि वह अनीश को किसी और लड़की का नहीं होने देगी.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब – भाग 2

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.

आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.

आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.

विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.

बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.

पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.

आसिफ से की पूछताछ

अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.

उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.

चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.

आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.

अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ

आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.

न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.

वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.

चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 2

गांव में जहां शिवलोचन का मकान था, फूलचंद की मां उस से कुछ दूर अपने पैतृक मकान में रहती थी. वहीं पर वह अपनी गुजरबसर के लिए चाय का ढाबा चलाती थी. शिवलोचन की पत्नी माया जब 7-8 महीने पहले बच्चों को ले कर मायके गई थी तो जाते वक्त घर का ताला लगा कर चाभी अपनी सास चुनकी देवी को दे गई थी. तभी से शिवलोचन का मकान बंद पड़ा था.

इसी दौरान शिवलोचन के पड़ोसी हुकुम सिंह ने उस से कहा कि 8 महीने पहले शिवलोचन ने उस का सेकेंड हैंड टीवी यह कह कर लिया था कि कुछ दिन में पैसे दे देगा. लेकिन टीवी लेने के कुछ दिन बाद ही शिवलोचन और उस की पत्नी पता नहीं कहां चले गए. उन्होंने न तो पैसे दिए, न टीवी लौटाया.

हुकुम सिंह ने फूलचंद से कहा कि शिवलोचन तो पता नहीं कब आएगा, इसलिए वह उस का टीवी निकाल कर उसे दे दे. फूलचंद ने अपनी मां चुनकी देवी से शिवलोचन के घर की चाभी ले कर ताला खोला तो अंदर के दोनों कमरों से तेज बदबू का झोंका आया. बंद कमरों के खुलने के कुछ देर बाद जब बदबू कम हुई तो फूलचंद ने हुकुम सिंह का टीवी उठा कर उसे दे दिया.

फूलचंद को लगा कि लंबे समय से मकान बंद था, जिस से सीलन और गंदगी की वजह से बदबू आ रही होगी. उस ने सोचा कि क्यों न दोनों कमरों की सफाई कर दी जाए. लेकिन जब वह उस कमरे की सफाई करने लगा, जिस में शिवलोचन और माया रहते थे तो कमरे के फर्श की कच्ची जमीन थोड़ी धंसी हुई दिखाई दी.

यह देख कर फूलचंद का मन शंका से भर उठा. क्योंकि वहां की जमीन को देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कच्चे फर्श का वह हिस्सा अलग हो. उस जगह को गौर से देखने पर लगा, जैसे वहां कोई चीज दबाई गई हो.

पांव से दबाने पर वहां की जमीन नीचे की तरफ दब रही थी. गांव के कुछ लोगों को बुला कर फूलचंद के जमीन का वह हिस्सा दिखाया तो सब ने राय दी कि क्यों न जमीन खोद कर देख लिया जाए. लेकिन जमीन में ऐसीवैसी किसी चीज के दबे होने की आशंका से फूलचंद खुदाई करने से हिचक रहा था. लिहाजा उस ने सब से राय ली कि क्यों न पहले पुलिस को खबर कर दी जाए.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसे डर रहे हो जैसे जमीन में खजाना गड़ा हो. अरे तुम्हारा घर है, तुम्हारी जमीन है. खोद कर देखो, जो कुछ भी होगा सामने आ जाएगा और अगर ऐसावैसा कुछ हुआ भी तो पुलिस को खबर कर देना.’’ कई लोगों ने एक राय हो कर कहा.

बात फूलचंद की समझ में आ गई. लिहाजा उस ने कमरे के उस हिस्से की फावड़े से खुदाई शुरू कर दी. 3 फुट गहरा गड्ढा खुद चुका था मगर कुछ भी नहीं निकला. लेकिन एक बात ऐसी थी, जिस की वजह से केवल फूलचंद ही नहीं, बल्कि गांव वालों का मन भी आशंका से भर उठा.

बात यह थी कि उस जगह की मिट्टी काफी नरम थी. मिट्टी की सतह वैसे नहीं चिपकी थी, जैसे आमतौर पर चिपकी होती है. इतना ही नहीं जैसेजैसे जमीन खोदी जा रही थी, गड्ढे में से बदबू आनी शुरू हो गई थी. छह इंच जमीन और खोदते ही फूलचंद की आशंका सच साबित हुई. जमीन के उस गड्ढे से कुछ हड्डियां मिली. इस के बाद दहशत में आ कर फूलचंद ने खुदाई रोक दी.

गांव वालों से बातचीत के बाद फूलचंद अपनी मां चुनकी देवी, पड़ोसी हुकुम सिंह, गांव के प्रधान, चौकीदार और कुछ अन्य लोगों को साथ ले कर थाना पहाड़ी पहुंचा. यह 7 जुलाई, 2018 की दोपहर की बात है. पहाड़ी थाने के एसएचओ इंसपेक्टर अरुण पाठक थाने में ही मौजूद थे.

एक साथ इतने सारे लोगों को आया देख पाठक ने उन से आने की वजह पूछी तो फूलचंद ने अपने भाई और भाभी के घर से गायब होने के बारे में बता कर घर में हुई खुदाई के दौरान मानव हड्डियों के निकलने की बात उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर अरुण पाठक बोले, ‘‘अरे भाई, जब तुम ने इतना गड्ढा खोद ही दिया था तो थोड़ा सा और खोद लेते. कम से कम यह पता तो चल जाता कि वहां किसी जानवर की हड्डियां दबी हैं या इंसान की.’’

‘‘दरअसल, मेरे भाईभाभी का कुछ पता नहीं है, इसलिए हमें बड़ा डर लग रहा है. आप चल कर देख लीजिए.’’ फूलचंद ने इंसपेक्टर पाठक के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

इंसपेक्टर अरुण पाठक पुलिस टीम ले कर फूलचंद और उस के साथ आए गांव वालों के साथ लोहदा गांव में शिवलोचन के घर पहुंच गए. घर के बाहर पहले से ही काफी भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने पहले से 2-3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई.

पहले से करीब साढे़ 3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. करीब साढ़े 3 फीट खुदे गड्ढे की एक फीट और खुदाई हुई तो पूरा नरकंकाल निकला. नरकंकाल की गर्दन में रस्सी बंधी हुई थी, जो गली नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे रस्सी से उस का गला दबाया गया हो.

चूंकि शव पूरी तरह कंकाल में तब्दील हो चुका था, इसलिए लग रहा था कि शव को कई महीने पहले दफनाया गया था. मामले की गंभीरता को समझते हुए इंसपेक्टर अरुण पाठक ने इलाके के क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह और नायब तहसीलदार को मौके पर बुलवा लिया.

दोनों अधिकारियों ने बात जानने के बाद नरकंकाल को सावधानीपूर्वक गड्ढे से बाहर निकलवा लिया. इस दौरान चित्रकूट जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा भी फोरेंसिक टीम को ले कर लोहदा पहुंच गए.

कंकाल किसी आदमी का था, यह ढांचे से साबित हो रहा था. कंकाल की पहचान के लिए गड्ढे से कोई ऐसी चीज नहीं निकली थी, जिसे पहचान कर कोई यह बता पाता कि कंकाल किस का है. अलबत्ता फूलचंद व उस की मां चुनकी देवी ने कंकाल को गौर से देखने के बाद आशंका जताई कि कंकाल शिवलोचन का हो सकता है.

इंसपेक्टर अरुण पाठक ने फूलचंद से पूछा, ‘‘तुम यह बात इतने विश्वास से कह रहे हो कि कंकाल शिवलोचन का ही है?’’

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी- भाग 2

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.