UP News : 4 साल बाद खुला प्रेमिका की हत्या का राज

UP News : सलमान ने जिस रचना को कभी दिल से प्यार किया था, उसे ही गाजरमूली की तरह काट कर फेंक दिया. वह भी इसलिए क्योंकि रचना उस की चाहत पूरी नहीं कर सकी. बेवकूफ थी रचना जो एक बार पीछा छूटने के बाद फिर उसी सलमान से…

इलाहाबाद (प्रयागराज) के वेणीमाधव मंदिर के आसपास का इलाका धनाढ्य लोगों का है. इसी इलाके की वेणीमाधव मंदिर वाली गली में उमा शुक्ला का परिवार रहता था. उन के 3 बच्चे थे, एक बेटा भोला और 2 बेटियां निशा और रचना. पति की मृत्यु के बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उमा ने ही उठाई. जब बेटा भोला बड़ा हो गया तो उमा शुक्ला को थोड़ी राहत मिली. रचना उमा शुक्ला की छोटी बेटी थी, थोड़े जिद्दी स्वभाव की. उस दिन साल 2016 के अप्रैल की 16 तारीख थी. समय सुबह के 10 बजे. रचना जींस और टौप पहन कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी. मां ने पूछा तो बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए जाना है, जल्दी लौट आऊंगी.’’

उमा शुक्ला कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन रचना बिना मौका दिए अपनी स्कूटी ले कर बाहर निकल गई. बड़ी बेटी निशा पहले ही कालेज जा चुकी थी. थोड़ी देर में लौटने को कह कर रचना जब 2 घंटे तक नहीं लौटी तो उमा शुक्ला को चिंता हुई. उन्होंने फोन लगाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद तो उमा का फोन बारबार रिडायल होने लगा. उन्होंने रचना के कालेज फ्रैंड्स को भी फोन किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. शाम होतेहोते जब बेटा भोला शुक्ला और बेटी निशा लौट आए तो उन्होंने सुबह गई रचना के अभी तक नहीं लौटने की बात बताई. निशा और भोला ने भी रचना का फोन ट्राई किया, उस के दोस्तों से भी पता किया लेकिन रचना का पता नहीं चला.

रचना को इस तरह लापता देख भोला ने थाना दारागंज में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. मां, बेटा और बहन निशा रात भर इस उम्मीद में जागते रहे कि क्या पता रचना आ जाए. अगले दिन 17 अप्रैल को अखबारों में एक खबर प्रमुखता से छपी कि प्रतापगढ़-वाराणसी मार्ग पर हथीगहां के पास एक लड़की की अधजली लाश मिली है. लाश का जो हुलिया बताया गया था, वह काफी हद तक रचना से मिलता था. यह खबर पढ़सुन कर उमा शुक्ला का कलेजा दहल गया. फिर भी मन में कहीं थोड़ी सी उम्मीद थी कि संभव है, लाश किसी और की हो. कई बार निगाहें धोखा खा जाती हैं. इसी के मद्देनजर भोला अलगअलग 4-5 अखबार खरीद लाया था ताकि खबरों और फोटो को ठीक से जांचापरखा जा सके.

अखबारों में छपी खबर और फोटो में कोई फर्क नहीं था. इस से उमा शुक्ला और भोला इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि लाश रचना की है. इस पर मांबेटे सारे अखबार ले कर थाना दारागंज जा पहुंचे और तत्कालीन थानेदार विक्रम सिंह से मिले. उमा शुक्ला ने जोर दे कर विक्रम सिंह को बताया कि लाश उन की बेटी रचना की है और उस का हत्यारा है सलमान. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सलमान को पकड़ कर ठीक से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन विक्रम सिंह हत्या के मामले में पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे, वह यह मान कर चल रहे थे कि रचना जिंदा भी तो हो सकती है. उन्होंने उन दोनों को समझा दिया कि हथिगहां में मिली लाश रचना की नहीं है. वह जिंदा होगी और लौट आएगी.

विक्रम सिंह ने उमा शुक्ला से एक लिखित शिकायत ले ली और मांबेटी को समझा कर घर भेज दिया. लेकिन आरोपी का नाम बताने के बावजूद पुलिस ने अगले 2-3 दिन तक रचना के मामले में कोई रुचि नहीं ली. इस पर उमा शुक्ला और भोला एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव से मिले. दोनों ने उन्हें पूरी बात बताई तो बृजेश श्रीवास्तव ने थानाप्रभारी विक्रम सिंह को इस मामले में तुरंत काररवाई करने को कहा. इस का लाभ यह हुआ कि पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धाराओं 363, 366 में तरमीम कर के सलमान व अन्य को आरोपी बना दिया.

पुलिस का ढुलमुल रवैया मुकदमा तो दर्ज हो गया, लेकिन पुलिस ने किया कुछ नहीं. आरोपी सलमान की गिरफ्तारी तो दूर पुलिस ने उस से पूछताछ तक नहीं की. इस की वजह भी थी. सलमान इलाहाबाद के रईस व्यवसायी साजिद अली उर्फ लल्लन का एकलौता बेटा था. पुलिस और नेताओं तक पहुंच रखने वाले लल्लन मियां अपने परिवार के साथ थाना दारागंज क्षेत्र के मोहल्ला बक्शी खुर्द में रहते हैं. उन के पास पैसा भी था और ऊपर तक पहुंच भी. बात 2015 की है. जब भी रचना किसी काम से घर से बाहर निकलती थी, तो इत्तफाकन कहिए या जानबूझ कर सलमान उस के सामने पड़ जाता था. जब भी वह खूबसूरत रचना को देखता तो उस पर फब्तियां कसता, छेड़छाड़ करता. उस समय उस के साथ कई दोस्त होते थे. यह सब देखसुन कर रचना चुपचाप निकल जाती थी.

सलमान के खास दोस्तों में मीरा गली का रहने वाला लकी पांडेय और सलमान का ममेरा भाई अंजफ थे. अंजफ पहले सलमान के पड़ोस में रहता था. बाद में उस का परिवार कर्नलगंज थाना क्षेत्र के बेलीरोड, जगराम चौराहा के पास रहने लगा था. तीनों हमप्याला, हमनिवाला थे. तीनों साथसाथ घूमते थे. लकी पांडेय और अंजफ सलमान के पैसों पर ऐश करते थे. रचना सलमान की आए दिन छेड़छाड़ से तंग आ गई थी. एक दिन उस ने मां को सलमान द्वारा छेड़ने की बात बता दी. किसी तरह यह बात भोला के कानों तक पहुंच गई. यह सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने बहन को परेशान करने वाले सलमान को सबक सिखाने की ठान ली. एक दिन भोला ने सलमान को रास्ते में रोक कर उग्रता से समझाया, ‘‘जिस लड़की को तुम जातेआते छेड़ते हो, वो मेरी छोटी बहन है. अपनी आदत सुधार लो सलमान, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा रहेगा. मैं तुम्हें पहली और आखिरी बार समझा रहा हूं.’’

सलमान को किसी ने पहली बार उसी के इलाके में धमकाया था. वह ऐसी धमकियों की चिंता नहीं करता था. भोला के चेताने पर भी सलमान पर कोई असर नहीं हुआ. अब राह में जातीआती रचना को वह पहले से ज्यादा तंग करने लगा. जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो रचना से सहन नहीं हुआ. उस ने सलमान के खिलाफ थाना दारागंज में छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन सलमान के पिता साजिद अली की पहुंच की वजह से पुलिस उस पर हाथ डालने से कतराती रही. भोला के कहनेसुनने पर पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करा दिया. समझौते के बाद भोला और उस की मां उमा शुक्ला ने बेटी की इज्जत की खातिर पिछली बातों को भुला दिया. लेकिन घमंडी सलमान इसे आसानी से भूलने वाला नहीं था. उस के मन में अपमान की चिंगारी सुलग रही थी.

बहरहाल, मार्च 2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो उमा शुक्ला को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उम्मीद की इसी किरण के सहारे उमा शुक्ला ने योगी आदित्यनाथ को एक शिकायती पत्र भेजा. योगीजी ने उस पत्र का संज्ञान लिया और रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच स्पैशल टास्क फोर्स से कराने के आदेश दे दिए. थाना पुलिस ने रचना शुक्ला कांड की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी थी. एसटीएफ ने रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच शुरू तो की, लेकिन बहुत धीमी गति से. फलस्वरूप नतीजा वही रहा ढाक के तीन पात. एसटीएफ भी यह पता नहीं लगा सकी कि रचना जिंदा है या मर चुकी. अगर जिंदा है तो 3 साल से कहां है या आरोपी ने उसे कहां छिपा रखा है.

एसटीएफ की जांच की गति देख कर उमा शुक्ला का इस जांच से भी भरोसा उठ गया. अब उन के लिए न्यायालय ही एक आखिरी आस बची थी. उमा शुक्ला ने दिसंबर, 2019 के दूसरे सप्ताह में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में उन्होंने लिखा कि उन की बेटी का अपहरण हुए 4 साल होने वाले हैं. पुलिस अब तक बेटी के बारे में पता नहीं लगा सकी. आरोपी समाज में छुट्टे घूम रहे हैं. हाईकोर्ट पहुंची उमा शुक्ला हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया और 6 जनवरी, 2020 को एसएसपी एसटीएफ राजीव नारायण मिश्र और वर्तमान थानाप्रभारी दारागंज आशुतोष तिवारी को फटकार लगाई. साथ ही 15 दिनों के अंदर रचना शुक्ला के बारे में कारगर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.

हाईकोर्ट के आदेश के बाद एसएसपी राजीव नारायण मिश्र ने एएसपी नीरज पांडेय को आड़े हाथों लिया और काररवाई कर के जल्द से जल्द रिपोर्ट देने का सख्त आदेश दिया. कप्तान के सख्त रवैए से पुलिस ने रचना शुक्ला कांड से संबंधित पत्रावलियों का एक बार फिर से अध्ययन किया. जांचपड़ताल में उन्होंने सलमान और उस के दोस्त लकी पांडेय को संदिग्ध पाया. अंतत: पुलिस ने 19 जनवरी, 2020 की सुबह सलमान और लकी पांडेय को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दोनों को गुप्त स्थान ले जा कर पूछताछ की गई. शुरू में सलमान एएसपी नीरज पांडेय पर अपनी ऊंची पहुंच का रौब झाड़ने लगा, लेकिन उन के एक थप्पड़ में उसे दिन में तारे नजर आने लगे. सलमान उन के पैरों में गिर गया. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा, ‘‘सर, हमें माफ कर दीजिए.

हम से बड़ी भूल हो गई. करीब 4 साल पहले मैं ने, लकी और अपने ममेरे भाई अंजफ के साथ मिल कर रचना की गला रेत कर हत्या कर दी थी. 4 साल पहले हथिगहां में मिली लाश रचना की ही थी.’’

इस के बाद सलमान परतदरपरत हत्या के राज से परदा उठाता चला गया. करीब 4 सालों से राज बनी रचना शुक्ला की हत्या हो चुकी थी. पता चला सलमान और रचना एकदूसरे को प्यार करते थे. सलमान ने अपनी इस तथाकथित प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया था. रचना शुक्ला के अपहरण और हत्या से परदा उठते ही एसएसपी एसटीएफ राजीव नारायण मिश्र ने अगले दिन यानी 20 जनवरी को पुलिस लाइंस में पत्रकारवार्ता आयोजित की. प्रैस वार्ता में उन्होंने पत्रकारों के सामने रचना शुक्ला के अपहरण और हत्या के आरोपियों सलमान और उस के दोस्त लकी पांडे को पेश किया. पत्रकारों के सामने सलमान और लकी पांडेय ने अपना जुर्म कबूल किया. साथ ही पूरी घटना भी बताई और वजह भी. रचना की हत्या क्यों और कैसे की गई थी, उस ने इस का भी खुलासा किया. रचना की हत्या की यह कहानी कुछ यूं सामने आई.

19 वर्षीय रचना शुक्ला भाईबहनों में सब से छोटी थी. रचना खूबसूरत युवती थी. जितनी देर तक वह घर में रहती, उस का ज्यादातर समय आइना देखने में बीतता था. बक्शी खुर्द मोहल्ले के रहने वाले सलमान ने जब दूधिया रंगत वाली खूबसूरत रचना को जातेआते देखा तो वह उस पर मर मिटा. यह बात सन 2014 की है, तब रचना इंटरमीडिएट की छात्रा थी और उम्र थी 19 साल. रचना उम्र के जिस पड़ाव को पार कर रही थी, वह ऐसी उम्र होती है, जब सहीगलत या अच्छेबुरे की जानकारी नहीं होती. रचना के लिए सलमान का प्यार शारीरिक आकर्षण से ज्यादा कुछ नहीं था. सलमान एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था. उस के लिए पैसा कोई मायने नहीं रखता था. जब भी वह घर से बाहर निकलता, राह में कई चाटुकार दोस्त मिल जाते. उन की संगत में वह पैसे खर्च करता तो वे उसी का गुणगान करते.

रसिक सलमान की दिली डायरी में कई ऐसी लड़कियों के नाम थे, जिन के साथ वह मौजमस्ती करता था. इस के बावजूद वह मुकम्मल प्यार की तलाश में था, जहां उस की जिंदगी स्थिर हो जाए. एक ठहराव हो. रचना को देखने के बाद सलमान को अपना सपना पूरा होता लगा. उसे जिस प्यार की तलाश थी, वह रचना पर आ कर खत्म हो गई. सलमान का प्यार एकतरफा था, क्योंकि इस के लिए रचना ने अपनी ओर से हरी झंडी नहीं दी थी. बाद में जब उस ने सलमान की आंखों में अपने लिए प्यार देखा तो उस का दिल पसीज गया. सलमान घंटों उस के घर के पास खड़ा उस के दीदार के लिए बेताब रहता. रचना चुपकेचुपके सब देखती थी, आखिरकार उस का दिल भी सलमान पर आ गया और उस ने सलमान से इस बात का इजहार भी कर लिया.

पंछी की तरह फंस गई जाल में फलस्वरूप दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों ने प्यार में जीनेमरने की कसमें खाईं. सलमान तो निश्चिंत था, लेकिन रचना को यह चिंता सता रही थी कि घर वाले उन दोनों के प्यार को स्वीकार करेंगे या नहीं, क्योंकि दोनों की जाति ही नहीं धर्म भी अलगअलग थे. रचना की मां उमा शुक्ला कट्टर हिंदू थीं. वह बेटी के इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करतीं. रचना ने सलमान को अपने मन की आशंका बता दी थी. वैसे भी बहुत कम लोग ऐसे हैं जो बेटे या बेटी की शादी दूसरे मजहब के लड़के या लड़की से करना चाहें. खैर, सलमान ने रचना को समझाया और सब कुछ वक्त पर छोड़ देने को कहा. साथ ही कहा कि हम जिएंगे भी एक साथ और मरेंगे भी एक साथ. सलमान की भावनात्मक बातें सुन कर रचना मन ही मन खुश हुई. इतनी खुश कि उस ने सलमान का गाल चूम लिया. सलमान कैसे पीछे रहता, उस ने रचना को बांहों में भर लिया.

सलमान से रचना सच्चे दिल से प्यार करती थी, लेकिन सलमान के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. जिस दिन से उस ने रचना को अपनी बांहों में भरा था, उसी दिन से उस के मन में प्यार नहीं बल्कि वासना की आग धधकने लगी थी. रचना ने सलमान की आंखों में दहकती वासना को महसूस कर लिया था. उस ने उस से कह भी दिया था कि जो तुम मुझ से चाहते हो, वह शादी के पहले संभव नहीं है. मुझे ऐसी लड़की मत समझना, जो दौलत के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाती हैं. जब से यह बात हुई थी, तब से रचना सलमान से थोड़ा बच कर रहने लगी थी. उस ने मिलना भी कम कर दिया था. सलमान यह सब सह नहीं पा रहा था. इस पर सलमान ने एक दांव खेला. उस ने अपने नाम पर एक स्कूटी खरीदी और रचना को गिफ्ट कर दी. यह देख रचना बहुत खुश हुई.

रचना स्कूटी ले कर घर पहुंची तो घर वाले यह सोच कर हैरान हुए कि उस के पास स्कूटी कहां से आई. घर वालों ने रचना से स्कूटी के बारे में पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया कि एक दोस्त की है. कुछ दिनों के लिए वह शहर से बाहर गई है. उस ने स्कूटी मुझे चलाने के लिए दी है. जब वापस लौट आएगी, मैं उसे लौटा दूंगी. बात वहीं की वहीं रह गई. सलमान ने जो सोच कर रचना को स्कूटी दी थी, वह संभव नहीं हो पाया. स्कूटी हड्डी बन कर उस के गले में अटकी रह गई. महीनों बाद रचना ने प्यार का दम भरने वाले सलमान के सामने एक प्रस्ताव रखा. उस ने स्कूटी को अपने नाम पर स्थानांतरित कराने के लिए कहा तो सलमान उसे घुमाते हुए बोला, ‘‘जब हम दोनों एक होने वाले हैं तो स्कूटी चाहे तुम्हारे नाम हो या मेरे, क्या फर्क पड़ता है. वक्त आने दो स्कूटी तुम्हारे नाम करा दूंगा. चिंता क्यों करती हो.’’

सलमान की यह बात रचना की समझ में नहीं आई. वह अपनी मांग पर अड़ी रही. सलमान इस के लिए तैयार नहीं हुआ. साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाले सलमान का नकली चेहरा सामने आ गया था. जिस वासना की चाहत में उस ने रचना को स्कूटी दी थी, उस रचना ने उस की आंखों में वासना की आग देख ठेंगा दिखा दिया. इस बात को ले कर दोनों के बीच विवाद भी हुआ. सलमान ने रचना को भलाबुरा कहा तो रचना भी पीछे नहीं रही. उस ने सलमान को उस के दोस्तों के सामने ही जलील किया. रचना यहीं चुप नहीं बैठी, उस ने सलमान के खिलाफ दारागंज थाने में छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद रचना और सलमान के बीच दूरियां बढ़ गईं. दोनों ने एकदूसरे से मिलना बात करना बंद कर दिया.

रचना ने अपने घर वालों को बता दिया कि सलमान नाम का लड़का उसे छेड़ता है. बहन की बात सुन कर भाई भोला का खून खौल उठा. उस ने सलमान को धमका कर बहन की तरफ न देखने और उस से दूर रहने की हिदायत दे दी. इंतकाम की आग रचना ने सलमान के साथ जो किया, वह उसे काफी नागवार लगा. वह अपमान की आग में झुलस रहा था. उस ने यह कभी नहीं सोचा था, रचना उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत भी कर सकती है. तभी उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि जब तक वह रचना से अपने अपमान का बदला नहीं ले लेगा, तब तक उस के इंतकाम की आग ठंडी नहीं होगी. लेकिन सवाल यह था कि वह रचना से दोबारा कैसे मिले ताकि फिर से दोस्ती हो जाए और वह उसे विश्वास में ले कर अपना इंतकाम ले सके.

जैसेतैसे सलमान ने रचना तक अपना संदेश भिजवाया कि वह एक बार आ कर मिल ले. वह उस से मिल कर माफी मांगना चाहता है. रचना सलमान की बात मान गई और उसे माफ कर दिया. यही नहीं दोनों फिर से पहले की तरह मिलने लगे. सलमान यही चाहता भी था. उस ने रचना को अपने खतरनाक इरादों की भनक तक नहीं लगने दी. इस बीच 3-4 महीने बीत गए. रचना पर फिर से सलमान के इश्क का जादू चल गया. सलमान को इसी का इंतजार था. सलमान ने अपने दोस्तों लकी पांडेय और ममेरे भाई अंजफ से बात कर के रचना को रास्ते से हटाने की बात की. लकी और अंजफ उस का साथ देने को तैयार हो गए.

तीनों ने मिल कर योजना बनाई कि रचना को किसी तरह सलमान के घर बुलाया जाए और उस का काम तमाम कर के लाश नदी में फेंक दी जाए. इस से किसी को पता भी नहीं चलेगा और वे लोग पुलिस से भी बचे रहेंगे. योजना बन जाने के बाद सलमान ने 16 अप्रैल, 2016 की अलसुबह रचना को फोन कर के सुबह 10 बजे रेलवे स्टेशन पर मिलने के लिए कहा. अपनी स्कूटी ले कर रचना ठीक 10 बजे सलमान से मिलने स्टेशन पहुंच गई. सलमान वहां मौजूद मिला. उस ने रचना की स्कूटी प्रयागराज स्टेशन के स्टैंड पर खड़ी कर दी और उसे अपनी बाइक पर बैठा कर बक्शी खुर्द स्थित अपने घर ले गया. उस के घर में बेसमेंट था. सलमान रचना को बेसमेंट में ले गया. वहां लकी और अंजफ पहले से मौजूद थे. उन्हें देख रचना खतरे को भांप गई.

उस ने वहां से भागने की कोशिश की लेकिन उन तीनों ने उसे दौड़ कर पकड़ लिया और उस के हाथपांव रस्सी से बांध दिए. फिर सलमान ने चाकू से उस का गला रेत कर हत्या कर दी. लाश ठिकाने लगाने के लिए सलमान ने अपने मामा शरीफ को फोन किया. शरीफ फौर्च्युनर ले आया. चारों ने मिल कर लाश जूट के बोरे में भर दी. इस के बाद कपड़े से कमरे में फैला खून साफ कर दिया. रचना की लाश जूट की बोरी में भर कर फौर्च्युनर में लाद दी गई. सलमान और उस के मामा शरीफ सहित चारों लोग पहले नैनी की तरफ गए. इरादा था लाश को यमुना में फेंकने का, लेकिन 5 घंटे तक भटकने के बाद भी उन्हें मौका नहीं मिला. इस के बाद ये लोग नवाबगंज की तरफ निकल गए. लेकिन वहां भी लाश को गंगा में फेंकने का मौका नहीं मिला. इन लोगों ने प्रयागराज की सीमा के पास प्रतापगढ़, वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर रचना की लाश हथिगहां के पास सड़क किनारे फेंक दी और सब लौट आए.

इस के बाद सलमान बाइक से फिर वहां गया. उस के पास एक बोतल पैट्रोल था. उस ने रचना की लाश पर पैट्रोल डाला और आग लगा दी, ताकि लाश पहचानी न जा सके, लौट कर उस ने रचना की स्कूटी सोरांव के एक परिचित के गैराज में खड़ी कर दी. बाद में जो हुआ, जगजाहिर है. सलमान और उस के पिता ने पैसों के बल पर पुलिस को अपने पक्ष में कर लिया. रचना के केस की पैरवी कर रहे उस के भाई भोला को साल 2018 में सामूहिक दुष्कर्म के आरोप में फंसा कर जेल भिजवा दिया गया था. इस पर भी रचना के घर वालों ने हार नहीं मानी. रचना की छोटी बहन निशा शुक्ला ने पैरवी करनी शुरू की. आखिरकार हाईकोर्ट की चाबुक से पुलिस की नींद टूटी और आरोपियों को जेल जाना पड़ा.

सलमान और लकी के गिरफ्तार होने के 3 दिनों बाद थाना दारागंज के थानेदार आशुतोष तिवारी ने अंजफ को और 20 दिनों बाद मामा शरीफ को दारागंज से गिरफ्तार कर लिया. करीब 4 सालों से जिस रचना शुक्ला की हत्या रहस्य बनी थी, आरोपियों की गिरफ्तारी से सामने आ गई.अगर पुलिस पीडि़ता उमा शुक्ला की बातों पर विश्वास कर लेती तो घटना के दूसरे दिन ही चारों आरोपी गिरफ्तार हो जाते और इस समय अपने गुनाह की सजा काट रहे होते. बहरहाल, देर से ही सही आरोपी जेल की सलाखों के पीछे चले गए.

Agra Crime : प्‍लास्टिक की रस्‍सी से गर्लफ्रेंड का गला घोंटा, बॉक्‍स में पैक किया और फेंक दिया

Agra Crime : जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…

ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर. 2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी. अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई. राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए.

8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा. सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी. सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया. आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की. शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था. आनंद की तलाश में घर में घुसा आनंद आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था. सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था. अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था. आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था. दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई. दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था.

चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की. आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके. उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र  लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.

पहलापहला प्यार किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया. जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया. एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’

‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है. जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’

आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’

किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.

उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’

आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.

‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए. प्यार का जादू इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा  उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया.

दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा. 2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही. एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही. किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है. इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.

उस परिवार का लड़का दिल्ली में रह कर सोफे बनाने का काम करता था. उस लड़के व उस के परिवार को कविता पसंद आ गई. परिवार अच्छा होने की वजह से सरोज ने उस युवक से अपनी बेटी कविता की कोर्ट मैरिज करा दी. यह पिछले साल नवंबर की बात है. इधर किरन अब जब भी आनंद से मिलती तो विवाह करने की जिद करती. अब आनंद के लिए  किरन को समझाना मुश्किल होने लगा. इसे ले कर वह तनाव में रहने लगा. कोराना वायरस का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ था. उस से बचाने के लिए भारत सरकार ने देश में लौकडाउन कर रखा था. उत्तर प्रदेश की बात करें तो ताज नगरी आगरा में कोरोना संक्रमितों की संख्या सब से अधिक थी.  21 अप्रैल की रात 9 बजे आगरा के थाना लोहामंडी क्षेत्र के हसनपुरा में रहने वाले वरुण प्रजापति ने गजानन नगर में रहने वाली डाक्टर गरिमा बंसल के घर के पास एक कार्टन बौक्स पड़ा देखा. आश्चर्य की बात यह थी कि वह बौक्स सफेद चादर में बंधा हुआ था.

वरूण ने आसपास के लोगों को बुलाया. लोगों के आने पर तरहतरह की बातें होने लगीं. यह रहस्य जानने को सभी बेकरार थे कि बौक्स में है क्या. पता चला कि वह कार्टन बौक्स दोपहर में वहां नहीं था, शाम को अंधेरा घिरने पर किसी ने उसे वहां डाला होगा. मामला संदिग्ध होने पर वरुण ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसपी सिटी रोत्रे बोहन प्रसाद व शाहगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. जहां बाक्स मिला था, वहां से महज एक किलोमीटर की दूरी पर थाना शाहगंज था. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने वहां पहुंचने के बाद एक पुलिसकर्मी को पीपीई किट पहना कर 2 फुट का वह कार्टन बौक्स खुलवाया. बौक्स खुलने पर उस में एक युवती की लाश मिली. मृतका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष रही होगी. उस के गले पर दबाने के निशान थे. मृतका ने नीले रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे. दाएं हाथ पर किरन लिखा था.

बौक्स पर जो चादर बंधी थी, और वह बौक्स किसी अस्पताल के लग रहे थे. बौक्स दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला था. चादर भी अस्पतालों में बिछाई जाने वाली थी. इस से लगा कि हत्यारे का कनेक्शन किसी हौस्पिटल से है. एक किलोमीटर तक के अस्पतालों की जानकारी एकत्र की गई तो ऐसा कोई हौस्पिटल नहीं मिला. मृतका की लाश के फोटो भी कोई नहीं पहचान पाया. मृतका की शिनाख्त नहीं हो पाई तो इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने लाश को मार्चरी में रखवा दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने वरुण प्रजापति से लिखित तहरीर ली और अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

वह अभागी किरन ही थी अगले दिन एक महिला अपने बेटे के साथ शाहगंज थाने पहुंची और अपना नाम सरोज व बेटे का नाम सागर बताया. उन दोनों के अनुसार वे लाश मिलने की बात सुन कर थाने पहुंचे थे. सरोज की बेटी किरन घटना वाले दिन सुबह 10 बजे घर से निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी थी. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने उन्हें लाश का फोटो दिखाया तो सरोज रो पड़ी, वह लाश उस की बेटी किरन की ही थी. शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर राघव ने उन से किरन के बारे में पूछताछ की. लेकिन सरोज ने कुछ भी ऐसा नहीं बताया जो पुलिस के काम का होता. वह किरन के प्रेमसंबंधों को बदनामी के डर से छिपा गईं.

इंसपेक्टर राघव ने बौक्स मिलने के स्थान की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बाइक पर पीछे बौक्स रखे आता दिखाई दिया. उस इलाके की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखते हुए इंसपेक्टर राघव खुशी नेत्रालय तक पहुंच गए. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद चल था, लेकिन उन्हें यह जानकारी मिल गई कि उस नेत्रालय में कोई रहता है. वह नेत्रालय पहुंचे तो आनंद ने गेट खोला. पुलिस को वहां आया देख कर वह चौंका और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस से बच कर भाग नहीं पाया.  पुलिस को उस की हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक भी वहीं खड़ी मिल गई. यह वही बाइक थी, जिस पर आनंद बौक्स रख कर फेेंकने ले गया था. उस के पास से किरन की पासबुक और आधार कार्ड भी बरामद हो गए.

थाने ला कर जब आनंद से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और हत्या की वजह बता दी. किरन ने शादी करने की बात को ले कर आनंद का जीना हराम कर दिया था. दिन रात बस एक ही रट कि शादी कर लो. जबकि आनंद पहले से ही शादीशुदा था, वह तो उस के साथ खेल रहा था. ऐसे में शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. 21 अप्रैल की सुबह 10 बजे किरन घर से अपनी मां से कह कर निकली कि वह आनंद से मिलने जा रही है. किरन सीधे वहां से खुशी नेत्रालय पहुंची. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद था. लेकिन आनंद अंदर अपने कमरे में मौजूद था. आनंद और किरन बैठ कर बात करने लगे. बात बात में ही शादी को ले कर दोनों में विवाद होने लगा.

दोपहर साढ़े 12 बजे आनंद ने प्लास्टिक की रस्सी से किरन का गला घोंट दिया, जिस से किरन की मौत हो गई. आनंद ने किरन के पैरों को उस के दुपट्टे से बांध दिया. फिर नेत्रालय में रखे एक 2 फुट के कार्टन बौक्स और सफेद चादर को उठा लाया. कार्टन बौक्स में आंखों के लेंस आते थे. उस बौक्स में उस ने किसी तरह किरन की लाश को ठूंसा और कार्टन बंद कर के उसे उसी प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया, जिस से उस ने किरन का गला घोंटा था. इस के बाद कार्टन बौक्स को सफेद चादर से बांध कर रख दिया और रात होने का इंतजार करने लगा. वह साढ़े 7 घंटे लाश को अपने कमरे में रखे रहा. रात 8 बजे उस ने बौक्स को अपनी हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक पर रखा और गजानन नगर में डा. गरिमा बंसल के घर के पास डाल दिया. फिर वहां से चला आया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और पकड़ा गया. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद अतुल कुमार उर्फ आनंद को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Extramarital Affair : पड़ोसी के प्यार में पागल पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Extramarital Affair : तमाम पतिपत्नियों की तरह कपिल और खुशबू में लड़ाईझगड़ा होता था. लेकिन खुशबू इस झगड़े को नाक का सवाल बना कर मायके चली गई, जहां उस के संबंध चंदन से बन गए. खुशबू को चंदन की यारी ऐसी भाई कि उस ने…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था. कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया.

लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई. 12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई. थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है.

इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे. इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी. कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए. फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए.

उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली. थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी. इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई. जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए. इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

क्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी. खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे. कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा. कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा. कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी. कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP News : प्रेमिका की गला दबाकर हत्या की और लाश को कूड़े में दबाया

UP News : दो नावों की सवारी हमेशा ही खतरनाक होती है. सब कुछ जानते हुए भी धर्मवीर ऐसा ही कर रहा था. जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो तब तक बहुत देर हो चुकी थी. और वह पहुंच गया जेल. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के पटवाई थानाक्षेत्र में पृथ्वीराज सपरिवार रहते थे.परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा संजय था. पृथ्वीराज के पास जो कुछ खेती की जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का पेट पालते थे.

बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. दूसरे नंबर की प्राची ने हाईस्कूल करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. प्राची खूबसूरत थी. उम्र के 16 बसंत पार करते ही प्राची के रूपलावण्य में जो निखार आया था, वह देखते ही बनता था. वह गांव की गलियों से गुजरती तो मनचलों के सीने पर सांप लोट जाया करते थे. प्राची को भी इस बात का अहसास था कि उस में कुछ बात तो है, तभी तो लोग उसे टकटकी लगा कर देखते हैं. वह उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रही थी, जहां लड़कियों के दिल की जवान होती उमंगें मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना चाहती हैं. ऐसी ही उमंगें प्राची के दिल में कुलांचे भरने लगी थीं. उम्र के इसी पायदान पर खड़ी प्राची ने कब अपना दिल धर्मवीर के हवाले कर दिया, इस का उसे पता भी नहीं लगा था.

धर्मवीर प्राची के घर के पड़ोस में ही रहता था. हाईस्कूल करने के बाद वह अपना पुश्तैनी खेतीबाड़ी का काम करने लगा. आसपड़ोस में घर होने के कारण अकसर प्राची और धर्मवीर का आमनासामना हो जाता था. जब भी प्राची धर्मवीर के सामने पड़ती तो धर्मवीर एकटक उसे देखता रहता था. पहले तो प्राची को यह बात बहुत खली लेकिन धीरेधीरे उसे भी धर्मवीर में रुचि आने लगी. इसी के चलते दोनों चुपकेचुपके एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. एक रोज शाम का समय था. गांव के बाहर एकांत में दोनों एकदूसरे के सामने पड़े तो धर्मवीर को लगा कि अपने दिल की बात कह देने का यही सब से उपयुक्त मौका है. वह प्राची से बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहिए…’’ प्राची ने सीधे तौर पर पूछ लिया तो धर्मवीर झेंप गया.

फिर धर्मवीर हिम्मत कर के बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. लगता है कि अब तुम्हारे बिना मेरा जीना मुश्किल है. क्या तुम मेरी मोहब्बत कबूल करोगी?’’

यह सुन कर प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह धीरे से बोली, ‘‘चाहती तो मैं भी तुम्हें हूं, लेकिन डर लगता है.’’

‘‘डर…कैसा डर?’’ धर्मवीर ने प्राची से पूछा.

‘‘कहीं हमारी मोहब्बत रुसवा हो गई तो?’’

‘‘मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि मैं मर जाऊंगा लेकिन तुम्हें रुसवा नहीं होने दूंगा. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा है, तभी तो जनाब से इश्क करने की जुर्रत की है.’’ कह कर अब तक संजीदा प्राची के चेहरे पर शरारती मुसकान आ गई. धर्मवीर ने उसे अपनी बांहों में ले कर घेरा और तंग कर दिया, जिस पर प्राची कसमसा कर रह गई. धर्मवीर ने आगे बढ़ कर प्राची के होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया.

‘‘उई मां, बड़े बेशर्म हो तुम.’’ कहते हुए प्राची ने धर्मवीर को परे हटा कर खुद को उस की कैद से आजाद किया और हंसती हुई वहां से चली गई.

धर्मवीर प्राची का प्यार पा कर झूम उठा. उसे लगा कि सारे जहां की खुशियां उस की झोली में सिमट आई हैं. कुछ यही हाल प्राची का भी था. धर्मवीर की हरकतों ने उस के बदन में अजीब सी मादकता भर दी थी. इस तरह धर्मवीर व प्राची की प्रेम कहानी शुरू हो गई. दोनों को जैसे ही मौका मिलता, उन के बीच प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. उस समय दोनों को दीनदुनिया की खबर ही न रहती. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. जैसेजैसे समय बीतता रहा, उन का इश्क परवान चढ़ता रहा. प्राची व धर्मवीर ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का किसी को पता न चले, लेकिन इश्क की खुशबू भला कौन रोक पाया है.

प्राची के रंगढंग देख कर उस के पिता पृथ्वीराज को शक हुआ तो उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए अपनी पत्नी ऊषा को कह दिया. ऊषा ने उस पर नजर रखी तो उस ने प्राची को धर्मवीर से इश्क करते देख लिया. जब पृथ्वीराज को पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस समय प्राची घर पर ही थी. उस ने प्राची को आवाज दे कर बुलाया, जब वह उस के पास आ गई तो वह बोला, ‘‘क्यों री, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि तू धर्मवीर से इश्क लड़ाती घूम रही है.’’

पिता के मुंह से यह बात सुन कर प्राची चौंक गई. वह समझ गई कि किसी ने उस के पिता से उस की व धर्मवीर की चुगली कर दी है. फिर भी पिता से झूठ बोलना प्राची के बस में नहीं था, इसलिए वह पिता से बोली, ‘‘हां पापा, बात यह है कि हम दोनों आपस में मोहब्बत करते हैं और अगर आप की इजाजत हो तो विवाह करना चाहते हैं.’’

प्राची ने यह कहा तो मानो पूरे घर में भूचाल आ गया. पृथ्वीराज प्राची पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने प्राची की खूब पिटाई की और उसे हिदायत दी कि अगर उस ने दोबारा धर्मवीर से मिलनेजुलने की कोशिश की तो उस का परिणाम अच्छा नहीं होगा. प्राची की मां ऊषा ने भी समाजबिरादरी का हवाला दे कर प्राची को समझाया. उधर प्राची व धर्मवीर के इश्क की बात धर्मवीर के घर वालों को पता चली तो उन्होंने भी धर्मवीर को प्राची से नाता तोड़ लेने का फरमान सुना दिया. प्राची व धर्मवीर पर सख्त पाबंदियां लगा दी गईं. वे जल बिन मछली की तरह तड़प उठे. दरअसल, प्राची धर्मवीर के दिलोदिमाग पर नशा बन कर छा चुकी थी. उस के सौंदर्य ने धर्मवीर पर जादू सा कर दिया था.

उधर प्राची का भी यही हाल था, उस के खयालों में धर्मवीर के अलावा और कुछ आता ही नहीं था. हर समय वह धर्मवीर से मिलने को बेकरार रहती थी. कहते हैं कि प्रेम में जितनी लंबी जुदाई होती है, प्यार उतना ही गहरा होता है. घर वालों की बंदिशें धर्मवीर व प्राची के प्यार को कम नहीं कर सकीं. जब उन की प्रेम अगन बढ़ती चली गई तो उन्होंने मिलने का एक अनोखा रास्ता खोज लिया. एक दिन धर्मवीर ने प्राची को संदेश भिजवाया कि वह दिन छिपने के बाद उस से जंगल में आ कर मिले. धर्मवीर का संदेश पा कर प्राची उस जगह दौड़ी चली गई, जहां धर्मवीर ने मिलने के लिए बुलाया था. दोनों ने गले मिल कर अपने गिलेशिकवे दूर किए. इस के बाद दोनों यही क्रम दोहराने लगे.

एक बार फिर से दोनों का मिलन बदस्तूर शुरू हो गया. इधर प्राची ने घर में धर्मवीर का नाम लेना तक बंद कर दिया था, जिस के चलते पृथ्वीराज ने सोच लिया कि बेटी के सिर से इश्क का भूत शायद उतर गया है. धर्मवीर के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे तब धर्मवीर और प्राची को इस का पता चला तो उन के होश उड़ गए. धर्मवीर के घर वाले भी किसी कीमत पर प्राची को अपने घर की बहू स्वीकारने को तैयार नहीं थे. प्राची के पिता पृथ्वीराज ने भी साफसाफ कह दिया कि वह अपनी बेटी को कुएं में धक्का दे देगा लेकिन उस का हाथ धर्मवीर के हाथ में नहीं देगा.

अगले दिन प्राची जब धर्मवीर से मिली तो बोली, ‘‘कुछ करो धर्मवीर, अगर हम यूं ही खामोश बैठे रहे तो एकदूसरे से जुदा कर दिए जाएंगे और मैं तुम से जुदा हो कर जिंदा नहीं रहना चाहती. अगर तुम मुझे नहीं मिले तो मैं जहर खा कर जान दे दूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते प्राची, हम ने पाक मोहब्बत की है. हमारी मोहब्बत जरूर कामयाब होगी.’’ धर्मवीर प्राची के हाथ को अपने हाथ में ले कर बोला तो प्राची के मन को तसल्ली हुई.

9 दिसंबर, 2019 की सुबह लगभग साढ़े 8 बजे प्राची घर का कूड़ा गांव के बाहर घूरे पर डालने गई. काफी समय बीत गया, वह नहीं लौटी तो उस के मातापिता ने उसे पूरे गांव में तलाशा, लेकिन उस का कोई पता नहीं लगा. काफी तलाशने के बाद भी जब प्राची का नहीं मिली तो 10 दिसंबर को पृथ्वीराज ने थाना पटवाई में बेटी के लापता होने की सूचना दी. साथ ही उन्होंने गांव के ही धर्मवीर पर शक जताया. इस सूचना पर थानाप्रभारी इंद्र कुमार ने थाने में प्राची की गुमशुदगी की सूचना लिखा दी. थानाप्रभारी ने धर्मवीर के बारे में पता करवाया तो वह भी घर से गायब मिला. उस की सुरागरसी के लिए उन्होंने अपने मुखबिरों को लगा दिया. 15 दिसंबर को पटवाई चौराहे से थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने धर्मवीर को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब धर्मवीर से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने प्राची की हत्या कर लाश छिपाने का जुर्म स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं पुलिस ने धर्मवीर की निशानदेही पर गांव के बाहर घूरे में दबी सीमा की लाश भी बरामद करा दी. प्राची की लाश क्षतविक्षत हालत में थी. उस का एक हाथ गायब था. अनुमान लगाया कि शायद कुत्तों ने उस की लाश को नोंच खाया होगा. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस धर्मवीर को ले कर थाने आ गई. इस के बाद प्राची के पिता पृथ्वीराज की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पूछताछ में हत्या की जो वजह निकल कर आई, वह कुछ इस तरह थी—

धर्मवीर और प्राची के घरवाले जब उन की शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो इस प्रेमी युगल की चिंता बढ़ गई. तब धर्मवीर ने प्राची से वादा किया, ‘‘प्राची मैं घर वालों के कहने पर दूसरी लड़की से विवाह तो कर लूंगा लेकिन मैं सच्चे दिल से तुम्हारा ही रहूंगा. हमारा रिश्ता भले ही दुनिया की नजर में अलग हो जाए, लेकिन हम हमेशा एक रहेंगे. विवाह के बाद भी मैं तुम्हारा ही बना रहूंगा.’’

धर्मवीर के इस वादे पर प्राची को पूरा भरोसा था. इस के अलावा उन के पास अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा था. धर्मवीर के लिए जो रिश्ते आ रहे थे, उन में से धर्मवीर के परिजनों को एक रिश्ता भा गया. वह था रामपुर के मिलक थाना क्षेत्र के ऊंचा खाला निवासी नीलम का. नीलम अब अपने परिवार के साथ मुरादाबाद में रह रही थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों का रिश्ता पक्का कर दिया गया. 19 अप्रैल, 2019 को धर्मवीर और नीलम का विवाह संपन्न हो गया. नीलम काफी सुंदर, शिक्षित व गुणवती थी. उस ने धर्मवीर के परिवार में आते ही अपनी बातों व कार्यों से सब का दिल जीत लिया.

उस में धर्मवीर भी था. नीलम के आने से धर्मवीर के दिलोदिमाग से प्राची के इश्क का भूत उतरने लगा था. लेकिन उस ने प्राची से संबंध खत्म नहीं किए थे. एक तरह से वह दो नावों की सवारी कर रहा था. ऐसे में उस का डूबना निश्चित था. नीलम को कुछ ही दिनों में पति की हकीकत पता लग गई कि वह कैसे उसे धोखा दे रहा है. कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन शौहर का बंटवारा बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकती. बीवी के रहते पति पराई औरत से इश्क लड़ाए, यह बात नीलम को पसंद नहीं थी. लिहाजा वह घर छोड़ कर मायके चली गई. धर्मवीर ने नीलम को काफी मनाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.

इधर प्राची को पता चला तो वह धर्मवीर पर खुद से विवाह करने का दबाव बनाने लगी. इस से धर्मवीर परेशान हो गया. वह नीलम को हर हाल में घर वापस लाना चाहता था. इसी बीच 3 दिसंबर, 2019 को नीलम ने मुरादाबाद के महिला थाने में धर्मवीर के खिलाफ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया. 8 दिसंबर को मुरादाबाद पुलिस धर्मवीर के घर आई, वह घर पर नहीं था. मुरादाबाद पुलिस पूछताछ कर के वापस लौट गई. सब कुछ धर्मवीर की बरदाश्त के बाहर हो गया. उस ने प्राची से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. 9 दिसंबर की सुबह उस ने प्राची को मिलने के लिए गांव के बाहर बुलाया. प्राची घर का कूड़ा घूरे पर फेंकने के बहाने घर से निकली.

घूरे के पास धर्मवीर उसे खड़ा मिल गया. प्राची के आते ही धर्मवीर ने उसे दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस की लाश घूरे में दबा दी और वहां से फरार हो गया. लेकिन वह कानून की गिरफ्त से अपने आप को न बचा सका. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इंसपेक्टर इंद्र कुमार ने उसे सीजेएम कोर्ट में पेश किया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

प्राची परिवर्तित नाम है.

Love Crime Stories : प्रेमिका को सिंदूर भरने के बहाने बाग में ले गया और पैट्रोल डालकर जिंदा जलाया

Love Crime Stories : वंशिका गुप्ता और अतुल गुप्ता के परिवार की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. लेकिन लालची स्वभाव के अतुल के पिता पारसनाथ गुप्ता ने अतुल की शादी वंशिका के बजाय किसी और लड़की से तय कर दी. इस के बाद जो हुआ वो…

दिलीप गुप्ता बहुत बेचैन थे. उन की नजरें बारबार कलाई घड़ी की ओर चली जाती थीं, समय देखते तो उन की बेचैनी बढ़ जाती. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वंशिका ने आने में इतनी देर कैसे कर दी. बेटी के बारे में सोचसोच कर उन के माथे की सिलवटें और भी गहरी होती जा रही थीं. उन की 21 वर्षीया बेटी वंशिका महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी (तृतीय वर्ष) की छात्रा थी. 1 फरवरी, 2020 को वह सुबह 10 बजे कालेज जाने के लिए घर से निकली थी. उसे हर हाल में 3 बजे तक वापस घर आ जाना चाहिए था, लेकिन अब शाम के 5 बज चुके थे, वह घर नहीं लौटी थी. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. दिलीप गुप्ता इसलिए बेचैन थे.

दिलीप गुप्ता की परेशानी तब और बढ़ गई, जब शाम 6 बजे उन के मोबाइल पर किसी अनजान फोन नंबर से एक एसएमएस आया. मैसेज में लिखा था, ‘अंकल, वंशिका का अपहरण हो गया है.’ मैसेज पढ़ कर दिलीप गुप्ता घबरा गए. उन की पत्नी रजनी ने तो रोना शुरू कर दिया. वह बारबार कह रही थी कि वंशिका जरूरी काम से कालेज गई थी. वह अपहर्त्ताओं के चक्कर में कैसे फंस गई. दिलीप गुप्ता ने मैसेज भेजने वाले मोबाइल फोन पर काल लगाई, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से पतिपत्नी की धड़कनें बढ़ गईं. वंशिका की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. ऐसे समय में उस का अपहरण हो जाने से अतुल गुप्ता का परिवार स्तब्ध रह गया.

दिलीप गुप्ता की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उन की बेटी का फिरौती के लिए अपहरण हुआ है. इसी अविश्वास की वजह से वह अपने परिजनों के साथ बेटी की खोज में जुट गए. बछरावां कस्बे में वंशिका की कई सहेलियां थीं. वह उन के घर गए. कई से मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाई. इस के अलावा उन्होंने बसअड्डे व नातेरिश्तेदारों के यहां वंशिका की खोज की, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. गुप्ता पूरी रात बेटी की खोज में जुटे रहे. 2 फरवरी की सुबह 8 बजे दिलीप गुप्ता बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बछरावां जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन की नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. खबर पढ़ कर उन का दिल कांप उठा, मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

खबर के मुताबिक, रायबरेली के हरचंदपुर थाना क्षेत्र के शोरा गांव स्थित एक ढाबे के पीछे यूकेलिप्टस के बाग में पुलिस को एक युवती की अधजली लाश मिली थी, जिस की पहचान नहीं हो पाई थी. खबर में कुछ पहचान वाली बातें भी छपी थीं. दिलीप गुप्ता को शक हुआ कि कहीं लाश उन की बेटी की तो नहीं. इस जानकारी के बाद वह पत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ थाना हरचंदपुर जा पहुंचे. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह उस समय थाने में ही थे और सहयोगी पुलिसकर्मियों से अज्ञात लाश के बारे में चर्चा कर रहे थे. दिलीप गुप्ता ने उन्हें परिचय दिया और बेटी की गुमशुदगी की जानकारी दे कर बरामद शव को देखने की इच्छा जताई.

शिनाख्त हेतु युवती के शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया था. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह दिलीप गुप्ता व उन के घर वालों को पोस्टमार्टम हाउस ले गए. युवती का अधजला शरीर सामने आया तो घर वाले चीख पड़े. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने उन्हें सांत्वना दे कर लाश की पहचान कराई. परिवार के लोगों ने चेहरे से शिनाख्त करने में असमर्थता जताई. फिर उस के कपड़ों और पहनावे से अंदाजा लगाया. पैरों की नेल पौलिश, कान में सोने की बाली, जूड़ा बांधने का तरीका, नाक में छोटी नथुनी, जींस के कपड़े और जूतों से मातापिता ने लाश पहचान ली. मृतका उन की बेटी वंशिका ही थी.

अनिल कुमार सिंह मृतका के पिता दिलीप गुप्ता और मां रजनी गुप्ता को थाना हरचंदपुर ले आए. सब से पहले उन्होंने लाश की शिनाख्त हो जाने की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी. सूचना पाते ही वह थाने आ गए. उन्होंने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से विस्तृत पूछताछ की. दिलीप गुप्ता ने बताया कि उन्हें एक रिश्तेदार अतुल गुप्ता पर शक है, जो उन की बेटी वंशिका को परेशान करता था. कुछ दिन पहले उस ने वंशिका के कालेज में उस के साथ मारपीट भी की थी, साथ ही धमकी भी दी थी. यह मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही अतुल व उस के घर वालों ने माफी मांग कर मामले को रफादफा कर दिया था.

अतुल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के शिवरतनगंज थाने के अहोरवा भवानी का रहने वाला था. वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी पारसनाथ का बेटा है. शक है कि रंजिशन अतुल गुप्ता ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर वंशिका की हत्या की है. दिलीप गुप्ता ने दूसरा शक वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव पर जताया. उन्होंने बताया कि वंशिका उस के साथ खूब हिलीमिली थी. कल भी वह वंशिका के साथ ही कालेज गई थी. उस ने ही कल उस के मोबाइल पर वंशिका के अपहरण का मैसेज भेजा था. फिर उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था. अंजलि श्रीवास्तव बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.

3 फरवरी की सुबह लोगों ने अखबारों में बीएससी की छात्रा वंशिका को पैट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने की खबर अखबारों में पढ़ी तो बछरावां की जनता सड़कों पर उतर आई. सामाजिक संगठन, कालेज की छात्राएं, स्कूल छात्राएं और व्यापारी घटना के विरोध में धरनाप्रदर्शन करने लगे. मासूम बच्चों ने जहां रैली निकाल कर वंशिका के लिए न्याय की गुहार लगाई, जबकि कालेज की छात्राओं ने वंशिका के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. सामाजिक संगठन की महिलाओं ने भी सड़क पर जोरदार प्रदर्शन किया.

बछरावां की जनता और व्यापारियों ने तो राष्ट्रीय राजमार्ग-30 को जाम कर दिया. लोग सड़क पर लेट कर प्रदर्शन करने लगे. लोगों को सरकार और पुलिस पर गुस्सा था. वे नारे लगा रहे थे, ‘बिटिया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं. पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद मुर्दाबाद.’ वे लोग जल्द से जल्द हत्यारों को गिरफ्तार कर के उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे. जाम तथा बड़े प्रदर्शन से पुलिस के हाथपांव फूल गए. इंसपेक्टर पंकज तिवारी भारीभरकम फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने उग्र प्रदर्शन की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी तो वह मौके पर आ गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया.

उन्होंने आश्वासन दिया कि हत्या से जुड़े कुछ लोगों के नाम सामने आए हैं. हत्या का जल्द खुलासा होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट या रेप की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन की बात पर भरोसा नहीं किया. लगभग 3 घंटे की जद्दोजेहद के बाद क्षेत्रीय भाजपा विधायक रामनरेश रावत को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाया कि सरकार की ओर से मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी. साथ ही यह भी कि वंशिका के कातिल जल्द पकड़े जाएंगे. विधायक के आश्वासन पर प्रदर्शन समाप्त हो गया.

चूंकि वंशिका हत्याकांड ने पुलिसप्रशासन की नींद हराम कर दी थी, इसलिए एसपी स्वप्निल ममगाई ने मामले को गंभीरता और चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने वंशिका हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थाना हरचंदपुर इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, थाना बछरावां इंसपेक्टर पंकज तिवारी, थाना शिवगढ़ इंसपेक्टर राकेश सिंह, महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी, सीओ (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (महराजगंज) राघवेंद्र चतुर्वेदी और सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास को शामिल किया गया. पुलिस टीम की कमान एएसपी नित्यानंद राय को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास ने पहली फरवरी को घटनास्थल पर सक्रिय 2 नंबरों को संदिग्ध पाया. इन नंबरों की जानकारी जुटाई गई तो इन में एक नंबर अतुल गुप्ता का था और दूसरा ललित गुप्ता का. दोनों अमेठी के कस्बा अहोरवा भवानी, थाना शिवरतनगंज के रहने वाले थे. अतुल गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि घटना वाले दिन अतुल एक नंबर पर कई घंटे संपर्क में रहा. इस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो वह नंबर अंजलि श्रीवास्तव, शांतिनगर, बछरावां (रायबरेली) के नाम था.

पुलिस टीम ने अंजलि श्रीवास्तव और अतुल के संबंध में मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अंजलि श्रीवास्तव उन की बेटी की फ्रैंड है और अतुल गुप्ता उन का रिश्तेदार. अतुल बेटी को परेशान करता था और अंजलि भी विश्वसनीय नहीं है. उन दोनों पर उन्हें शक है. अंजलि और अतुल पुलिस की रडार पर आए तो पुलिस टीम ने दोनों को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाना हरचंदपुर ले आई. पुलिस टीम में शामिल महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी अंजलि श्रीवास्तव  को पूछताछ वाले कमरे में ले गईं और बोली, ‘‘अंजलि, सचसच बताओ, वंशिका को किस ने जला कर मारा. मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें सब मालूम है.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम. कालेज में वह मिली जरूरी थी, पर उस का अपहरण किस ने किया या उसे किस ने जला कर मारा, मुझे पता नहीं.’’

‘‘चालाक मत बनो अंजलि, अतुल के मोबाइल से यह बात पता चल गई है कि तुम उस के संपर्क में थी और तुम्हें सब पता है.’’

यह सुन कर अजलि का चेहरा फक पड़ गया. वह सिर झुका कर बोली, ‘‘मैडम, मैं अतुल के संपर्क में जरूर रही, पर जो किया अतुल ने किया. वह वंशिका की मांग में सिंदूर भरने के बहाने उसे कार में बिठा कर ले गया था.’’

अंजलि के टूटने के बाद अब बारी अतुल की थी. पुलिस टीम अतुल को पूछताछ कक्ष में ले गई. उस से पूछा गया, ‘‘अतुल, तुम ने वंशिका की हत्या क्यों की? तुम्हारे साथ और कौन था? वैसे तो अंजलि ने सब कुछ बता दिया है, लेकिन हम तुम्हारे मुंह से जानना चाहते हैं.’’

पहले तो अतुल गुप्ता अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से मुकरता रहा, लेकिन पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अतुल ने बताया कि वंशिका उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी, जबकि उस की शादी 25 फरवरी, 2020 को किसी दूसरी लड़की से होनी तय हो गई थी. वंशिका जब उसे समाज में बदनाम करने तथा जिंदगी तबाह करने की धमकी देने लगी तो उस ने वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने वंशिका की खास सहेली अंजलि श्रीवास्तव व अपने चचेरे भाई ललित गुप्ता, ममेरे भाई कृष्णचंद गुप्ता उर्फ धीरू को भी शामिल कर लिया. धीरू महाराजगंज थाने के गांव डेपार मऊ का रहने वाला है.

4 फरवरी की रात पुलिस टीम ने अहोरवा भवानी स्थित ललित गुप्ता के घर छापा मारा. पुलिस को देख कर ललित कंबल ओढ़ कर तख्त के नीचे छिप गया लेकिन वह पुलिस की निगाह से नहीं बच सका. ललित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने सुबह 4 बजे महाराजगंज थाने के गांव डेपारमऊ में धीरू के घर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. धीरू के न मिलने पर पुलिस टीम थाना हरचंदपुर लौट आई. थाने में ललित ने अतुल को हवालात में देखा तो उस का चेहरा मुरझा गया. पूछताछ में ललित ने पहले तो गुनाह से इनकार किया, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. धीरू को पुलिस काफी प्रयास के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पाई.

अभियुक्त अतुल गुप्ता और ललित गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस टीम ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस पर झांसा दे कर वंशिका को ले जाया गया था. यह कार दुर्गेश के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अतुल का रिश्तेदार था. वह घूमने जाने का बहाना कर कार लाया था. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल रस्सी, पैट्रोल की 5 लीटर की खाली कैन, क्लोरोफार्म की खाली शीशी व सिंदूर की डब्बी भी कार से बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पास से 4 मोबाइल फोन भी बरामद किए. पुलिस टीम ने वंशिका गुप्ता हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. यह खबर मिलते ही एसपी स्वप्निल ममगाई व एएसपी नित्यानंद राय थाना हरचंदपुर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ की फिर खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, साथ ही टीम को 25 हजार रुपया पुरस्कार देने की घोषणा की. इस के बाद एसपी स्वप्निल ममगाई ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया. चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना हरचंदपुर प्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता, कृष्णचंद उर्फ धीरू गुप्ता और अंजलि श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. इन में अतुल, ललित तथा अंजलि श्रीवास्तव को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक दिलजले प्रेमी की हैवानियत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर लखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर है कस्बा बछरावां. यह रायबरेली जिले का औद्योगिक कस्बा है. इसी बछरावां कस्बे के सब्जीमंडी में दिलीप कुमार गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी रजनी गुप्ता के अलावा 4 संतानों में से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इन में वंशिका सब से बड़ी थी. दिलीप की पान की दुकान है. दुकान से होने वाली आय से ही परिवार का भरणपोषण करते थे. समाज में उन की अच्छी पैठ थी. दिलीप गुप्ता की बेटी वंशिका अपने अन्य भाईबहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह दिखने में सुंदर थी. उस का दूधिया गोरा रंग, नैननक्श, इकहरा बदन और लंबा कद सभी को आकर्षित करता था. उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से उसे सभी पसंद करते थे.

दिलीप गुप्ता व उन की पत्नी रजनी, वंशिका को बहुत चाहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही अच्छी नहीं थी, लेकिन वह वंशिका की हर फरमाइश पूरी करते थे. वंशिका ने भी अपने मांबाप को कभी निराश नहीं किया था. वह पढ़ने में मेधावी थी. इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मांबाप की इजाजत के बाद वंशिका ने बछरावां से 15 किलोमीटर दूर महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश ले लिया था. आवागमन के साधन होने की वजह से वंशिका को महाविद्यालय पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के साथ कस्बे की अनेक लड़कियां पढ़ने जाती थीं.

वंशिका गुप्ता की वैसे तो कई फ्रैंड थीं, लेकिन उसी की क्लास में पढ़ने वाली अंजलि श्रीवास्तव ज्यादा घनिष्ठ थी. अंजलि बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां व छोटी बहन के साथ किराए के मकान में रहती थी, उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे. वंशिका व अंजलि हमउम्र थीं. दोनों घर से ले कर पढ़ाईलिखाई तक की बातें एकदूसरे से शेयर करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.  वंशिका ने बीएससी की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. वह प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करना चाहती थी, सो वह खूब मना लगा कर पढ़ने लगी. उस ने कालेज जाना कम कर दिया था और घर में ही पढ़ाई करने लगी थी. उस ने कस्बे के कोचिंग में पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

उन्हीं दिनों एक शादी समारोह में वंशिका की मुलाकात अतुल गुप्ता से हुई. वंशिका अपने मातापिता के साथ अमेठी के थाना शिवरतनगंज क्षेत्र के कस्बा अहोरवां भवानी निवासी रिश्तेदार के घर शदी में आई थी. अतुल गुप्ता भी शादी में आया था. वह अहोरवां भवानी का ही रहने वाला था. वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. अतुल गुप्ता की नजर वंशिका पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस के दिल में उतर गई. वह उस से बात करना चाहता था. जब उसे मौका मिला तो वह वंशिका की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘आप अहोरवां भवानी की तो नहीं हैं, कहीं बाहर से आई हैं क्या?’’

‘‘मैं बछरावां की रहने वाली हूं. नाम है वंशिका. मैं अपने मातापिता के साथ शादी में शामिल होने आई हूं.’’ जब अतुल ने वंशिका का परिचय पूछा तो औपचारिक रूप से उस ने भी पूछ लिया, ‘‘आप ने तो मेरा परिचय जान लिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

अतुल गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं अहोरवां भवानी का ही रहने वाला हूं. नाम है अतुल गुप्ता. पिता का नाम पारसनाथ गुप्ता. कपड़े के व्यवसायी हैं. मैं भी दुकान पर बैठता हूं.’’

ऐसी ही हलकीफुलकी बातों के बीच अतुल और वंशिका का परिचय हुआ, जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में अतुल वंशिका के मोबाइल पर फोन कर के उस से बातें करने लगा. वंशिका को भी अतुल का स्वभाव अच्छा लगा, वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अतुल गुप्ता ने इन नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाया. वह वंशिका के कालेज पहुंचने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए बाहर भी ले जाने लगा. दोनों घूमने जाते तो अच्छे दोस्तों की तरह खुल कर दिल की बातें करते.

कुछ ही मुलाकातों में वंशिका को लगने लगा कि अतुल ही उस का भावी जीवनसाथी बनेगा. परिणामस्वरूप दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब तक वंशिका बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा पास कर अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी. एक दिन वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव ने उसे किसी युवक के साथ हंसतेबतियाते देखा तो बाद में उस ने पूछा, ‘‘वंशिका, वह लड़का कौन था, जिस से तुम हंसहंस कर बातें कर रही थी?’’

वंशिका हौले से मुरा कर बोली, ‘‘अंजलि, तू मेरी सब से अच्छी फ्रैंड है. तुझ से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस का नाम अतुल गुप्ता है, धनाढ्य कपड़ा व्यापारी का बेटा है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. मुझे लगता है अतुल ही मेरा भावी जीवनसाथी होगा.’’

बाद में वंशिका ने अतुल गुप्ता से अंजलि का भी परिचय करा दिया. अंजलि दोनों के प्यार की राजदार बनी तो वह उन दोनों का सहयोग करने लगी. वंशिका और अतुल का प्यार दिन पर दिन बढ़ने लगा. वंशिका को अतुल से बात किए बिना सकून नहीं मिलता था. अतुल का भी यही हाल था. वंशिका के मातापिता को जब दोनों के बढ़ते प्यार की जानकारी हुई तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि वंशिका ने इस बारे में उन्हें बताया क्यों नहीं. पूछने पर वंशिका ने साफ कह दिया कि वह अतुल से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी. दिलीप गुप्ता ने बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, ठीक है कि अतुल अच्छा लड़का है. हमारा दूर का रिश्तेदार भी है. लेकिन हमारी और उन लोगों की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर है. मेरी पान की छोटी सी दुकान है और वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी.

मुझे डर है कि कहीं वह तुम्हें मंझधार में न छोड़ दे.’’ रजनी ने भी वंशिका को समझाया, लेकिन अतुल के प्यार में अंधी हो चुकी वंशिका को मांबाप की बात समझ में नहीं आई. दूसरी ओर पारसनाथ गुप्ता को जब पता चला कि उन का बेटा अतुल बछरावां के साधारण पान विक्रेता दिलीप गुप्ता की बेटी के प्यार में है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘बेटा, रिश्ता बराबरी का अच्छा होता है. तुम्हारी और उस की हैसियत में बड़ा अंतर है. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है. तुम उसे भूल जाओ, इसी में सब की भलाई है.’’

अतुल ने पिता की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उसे लगा कि वह ठीक कह रहे हैं. अत: उस ने वंशिका से दोस्ती खत्म करने का निश्चय कर लिया और उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वंशिका जब भी फोन करती तो वह रिसीव नहीं करता था. बारबार फोन करने पर वह रिसीव करता और वंशिका उलाहना देती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता. पारसनाथ गुप्ता ने अतुल में परिवर्तन पाया तो उन्होंने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया. 25 फरवरी, 2020 की शादी की तारीख भी तय कर दी गई. अतुल ने इस रिश्ते का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मौन स्वीकृति दे दी.

नवंबर, 2019 में वंशिका को पता चला कि अतुल के मांबाप ने उस की शादी तय कर दी है और 25 फरवरी की शादी की तारीख भी तय हो गई है. यह पता चलते ही वंशिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे अपना सपना टूटता नजर आया तो उस ने अतुल से मुलाकात की और पूछा, ‘‘अतुल, जो बात मैं ने सुनी है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां वंशिका, तुम ने जो सुना, वह सच है. मातापिता ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो क्या?’’ उस की बात सुन कर वंशिका तीखे स्वर में बोली, ‘‘अगर यह सच है तो फिर मेरे साथ घंटों प्यार भी बातें करना, दिनदिन भर मेरे साथ घूमनाफिरना क्या था?’’

‘‘वह दोस्ती थी. तुम चाहो तो यह दोस्ती मेरी शादी के बाद भी जारी रख सकती है.’’

‘‘अतुल, तुम्हारे लिए यह दोस्ती भर होगी, मैं तो तुम से प्यार करती हूं. मैं शादी करूंगी तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारी बैठी रहूंगी. तुम भी कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं तुम्हें समाज में बदनाम कर दूंगी. झूठे मामलों में फंसा दूंगी, समझे.’’

अतुल ने वंशिका से उलझना ठीक नहीं समझा. वह घर वापस आ गया. इस के बाद वह वंशिका की धमकी से परेशान रहने लगा. दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं और उन का प्यार नफरत में बदलने लगा. जनवरी, 2020 में पहले हफ्ते में एक रोज वंशिका ने अतुल को फोन कर धमकी दी कि अगर उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया तो वह उसे भी दूल्हा नहीं बनने देगी, शादी में हंगामा कर शादी तुड़वा देगी. उस रोज अतुल पहले से ही तनाव में था. गुस्से में वह वंशिका के कालेज पहुंचा. वहां वादविवाद हुआ तो उस ने वंशिका के गाल पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. कालेज में सार्वजनिक अपमान से वंशिका तिलमिला उठी. उस ने घर आ कर यह जानकारी मांबाप को दी. दिलीप गुप्ता इस बारे में बात करने अतुल के घर पहुंचे और उस के पिता पारसनाथ गुप्ता से बेटी को प्रताडि़त करने की शिकायत की.

बेटे की गलती पर पारसनाथ गुप्ता ने दिलीप के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. उन्होंने अतुल को भी माफी मांगने पर विवश कर दिया. इस के बाद मामला रफादफा हो गया. अतुल ने माफी मांग कर मामला रफादफा जरूर कर दिया था, लेकिन उस का तनाव कम नहीं हुआ था. वह जानता था कि वंशिका को समझाना आसान नहीं है. इसलिए वह वंशिका से निजात पाने की सोचने लगा. पिता द्वारा हाथ जोड़ कर माफी मांगना भी उस के क्रोध को बढ़ा रहा था. अतुल की अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई कृष्णचंद उर्फ धीरू से खूब पटती थी. अतुल ने जब यह बात उन्हें बताई तो तीनों ने मिल कर खूब सोचा कि वंशिका से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अंतत: तय हुआ कि वंशिका को ही मिटा दिया जाए.

इस के बाद तीनों ने मिल कर वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव को भी आर्थिक प्रलोभन दे कर शामिल किया गया. अंजलि को वंशिका की सुरागरसी का काम सौंपा गया ताकि वह उस की गतिविधियों की जानकारी देती रहे. पहली फरवरी, 2020 की सुबह 9 बजे अंजलि श्रीवास्तव ने अतुल को मैसेज किया कि वंशिका और वह महावीर सिंह महाविद्यालय जा रही हैं. वहीं से वह वंशिका को ले कर गंगागंज आएगी. वह वहीं आ जाए. अंजलि का मैसेज मिलते ही अतुल सक्रिय हो गया. वह घूमने जाने का बहाना कर अपने रिश्तेदार दुर्गेश की कार ले आया. फिर वह अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई धीरू के साथ अहोरा भवानी से कार से निकल पड़ा.

इन लोगों ने मैडिकल स्टोर से क्लोरोफार्म की शीशी तथा बाजार से रस्सी व सिंदूर की डब्बी खरीदी, साथ ही रतापुर स्थित पैट्रोलपंप से कैन में 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. उस के बाद तीनों गंगागंज आ गए. वहां तीनों वंशिका और अंजलि का इंतजार करने लगे. दूसरी ओर वंशिका और अंजलि बछरावां से सुबह 10 बजे निकलीं और 11 बजे कालेज पहुंचीं. दोनों एक घंटा कालेज में रुकीं. दोनों 12 बजे कालेज से निकलीं. अंजलि घूमने के बहाने वंशिका को गंगागंज ले आई. इस बीच अंजलि फोन पर अतुल के संपर्क में रही और मैसेज भेजती रही. गंगागंज पहुंचने पर अंजलि ने अतुल को मैसेज किया तो वह उस के बताए होटल पर पहुंच गया. उस समय दोनों समोसा खा रही थीं.

अतुल को देख कर अंजलि बोली, ‘‘वंशिका, वह देखो अतुल कार में बैठा है. चलो उस से मिल लेते हैं.’’

वंशिका ने पहले तो मना किया फिर अंजलि के समझाने पर वह कार के पास जा पहुंची. वंशिका पहुंची तो अतुल बोला, ‘‘वंशिका, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि आज ही तुम्हारी मांग भरूं. देखो, सिंदूर की डब्बी भी साथ लाया हूं. तुम मेरे साथ मंदिर चलो.’’

अतुल की बात पर वंशिका को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन सिंदूर देख कर उस का प्यार उमड़ पड़ा और वह उस की कार में बैठ गई. वंशिका के बैठते ही कार चल पड़ी. कार को ललित चला रहा था और वंशिका अतुल तथा धीरू पीछे की सीट पर बैठे थे. छलिया प्रेमी के खतरनाक इरादों से अनजान वंशिका जैसे ही अतुल के सीने से लगी, तभी उस की हैवानियत शुरू हो गई. उस ने क्लोरोफार्म की शीशी निकाली और वंशिका को सुंघा दी. कुछ क्षण बाद ही वंशिका बेहोश हो गई. इस के बाद अतुल और धीरू ने मिल कर वंशिका के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. ललित ने गंगागंज से लगभग 3 किलोमीटर दूर शेरागांव के पास गोपाल ढाबे के पीछे सुनसान जगह पर कार रोकी.

सामने यूकेलिप्टस का बाग था. अतुल और धीरू हाथपैर बंधी बेहोश वंशिका को कार से उठा कर बाग में ले गए और पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया. बेहोशी के कारण वंशिका चिल्ला भी न सकी. घटना को अंजाम देने के बाद तीनों फरार हो गए. वंशिका की सहेली अंजलि गंगागंज से ही वापस अपने घर चली गई थी. शाम 4 बजे के लगभग शेरागांव के लोगों ने बाग में अधजली लाश देखी तो थाना हरचंदपुर को सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह पहुंचे तो युवती की अधजली लाश देख कर उन की रूह कांप उठी. सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी नित्यानंद राय तथा सीओ गोपीनाथ सोनी भी घटनास्थल पर गए. शव की शिनाख्त न हो पाने पर शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

दूसरे रोज पोस्टमार्टम हाउस में बछरावां निवासी पान विक्रेता दिलीप गुप्ता ने शव की पहचान अपनी 21 वर्षीया बेटी वंशिका के रूप में कर दी. उस के बाद तो हड़कंप मच गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो प्यार के प्रतिशोध में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 6 फरवरी, 2020 को थाना हरचंदपुर पुलिस ने अभियुक्त अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता तथा दगाबाज सहेली अंजलि श्रीवास्तव को रायबरेली की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : भाभी के प्यार में पागल छोटे भाई ने की बड़े भाई की हत्या

Extramarital Affair : संदीप को शराब पीने की लत थी, इस से उस की पत्नी अमनदीप परेशान रहती थी. इसी परेशानी के आलम में देवर गुरदीप से आंतरिक संबंध बन गए. अवैध संबंधों की परिणति छोटे भाई के हाथों बड़े भाई की हत्या के रूप में हुई. अगर अमनदीप…

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी. अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया. संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था. सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था.

उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं. संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है. कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी. इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं. लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती. ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था. संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती. एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी. गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी. उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया. लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी. दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया. किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई. संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया. इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Mirzapur Crime : पत्नी ने 21 साल बाद लिया अपहरण का बदला

Mirzapur Crime : कोई महिला 21 साल तक किसी की पत्नी बन कर रहे, उस के 2 बच्चों की मां बने और फिर इसलिए पति की हत्या करवा दे, क्योंकि 21 साल पहले उस के पति ने न केवल उस का अपहरण किया था, बल्कि उस के भाई की हत्या भी कर दी थी. सुनने में यह असंभव सी बात लगती है, लेकिन कंचन और प्रमोद के मामले में ऐसा ही हुआ. कैसे…

4 फरवरी, 2020 की सुबह मीरजापुर के थाना विंध्याचल की पुलिस को सूचना मिली कि गोसाईंपुरवा स्थित कालीन के कारखाने में रहने वाले प्रमोद की रात में किसी ने हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने भादंवि की धारा 302, 452 के तहत प्रमोद की हत्या का मुकदमा  दर्ज कराया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो प्रमोद की लाश चारपाई पर पड़ी थी. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास रही होगी, उस का सिर किसी भारी चीज से कुचला गया था. मृतक के शरीर से जो खून बहा था, वह सूख कर काला पड़ चुका था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या आधी रात के पहले यानी 9-10 बजे के आसपास की गई थी. ठंड का मौसम था, इसलिए खून पूरी तरह नहीं सूखा था.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने साथियों की मदद से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. उन्होंने आसपास उस भारी चीज की भी तलाश की, जिस से हत्या की गई थी. पर काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम बुला ली. टीम ने वहां से जरूरी साक्ष्य जुटाए. सारी काररवाई पूरी कर उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. सारी काररवाई निपटा कर वेदप्रकाश राय ने हत्यारे का पता लगाने के लिए कारखाने में काम करने वाले प्रमोद के साथियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि प्रमोद कहीं बाहर का रहने वाला था. वह काफी दिनों से यहीं रह रहा था. वह कहां का रहने वाला था, यह बात कोई नहीं बता सका.

बस इतना ही पता चला कि उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. पत्नी जिला कौशांबी में होमगार्ड में थी. बेटी अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही थी, जबकि बेटा दिल्ली में रह कर कोई प्राइवेट नौकरी करता था, साथ ही उस ने राजस्थान इंटर कालेज से प्राइवेट फार्म भी भर रखा था. प्रमोद मीरजापुर में कालीन बुनाई का काम करता था, जबकि पत्नी कंचनलता कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर थी. इस का मतलब दोनों अलगअलग रहते थे. पूछताछ में प्रमोद के साथियों ने यह भी बताया था कि पतिपत्नी में पटती नहीं थी. प्रमोद पत्नी से अकसर मारपीट करता था. उस की इस मारपीट से आजिज कंचनलता मीरजापुर कम ही आती थी.

थानाप्रभारी राय को जब पतिपत्नी के बीच तनाव की बात पता चली तो उन्हें लगा कि कहीं प्रमोद की हत्या इसी तनाव के कारण तो नहीं हुई. पूछताछ में उन्हें यह भी पता चला कि उस कारखाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इस से उन्हें उम्मीद जगी कि सीसीटीवी फुटेज से हत्यारे का अवश्य पता चल जाएगा. उन्होंने उस रात की सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उन की उम्मीद पूरी तरह से खरी उतरी. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि प्रमोद की हत्या एक पुरुष और एक महिला ने मिल कर की थी. थानाप्रभारी को लगा कि वह औरत कोई और नहीं, मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही होगी.

राय ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज प्रमोद के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को दिखाई तो उस महिला की ही नहीं, बल्कि उस के साथ हत्या में शामिल पुरुष की भी पहचान कर दी. वह औरत मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही थी. उस के साथ जो पुरुष था, वह उस का भाई अंबरीश था. प्रमोद की हत्या बहनभाई ने मिल कर की थी. प्रमोद के हत्यारों को पता चल गया था, अब उन्हें गिरफ्तार करना था. लेकिन उन्हें गिरफ्तार करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय जानते थे कि अब तक कंचनलता फरार हो चुकी होगी. हत्या के बाद उन्होंने उसे बुला कर पूछताछ भी की थी, तब उस ने स्वयं को निर्दोष बताया था.

फिर भी एक पुलिस टीम कौशांबी गई. जैसी पुलिस को आशंका थी, वैसा ही हुआ. कंचनलता वहां नहीं मिली. उस का मोबाइल नंबर उन के पास था ही. पुलिस ने यह बात एसपी डा. धर्मवीर सिंह को बताई तो उन्होंने कंचनलता का नंबर सर्विलांस टीम को दे कर उस के बारे में पता करने का आदेश दिया. यही नहीं, उन्होंने सर्विलांस टीम के अलावा एसआईटी और स्वाट को भी कंचनलता व उस के भाई अंबरीश को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. इसी के साथ उन्होंने दोनों भाईबहन को गिरफ्तार करने वाली टीम को 25 हजार रुपए बतौर ईनाम देने की घोषणा भी की.

अब थाना पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, एसआईटी और स्वाट भी कंचनलता और अंबरीश के पीछे लग गईं. थाना पुलिस ने अपने मुखबिरों को दोनों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया था. इन कोशिशों से फायदा यह निकला कि 22 फरवरी यानी हत्या के 19 दिनों बाद मुखबिर ने सटीक जानकारी दी. मुखबिर ने काले रंग की उस प्लेटिना मोटरसाइकिल यूपी53सी जेड1559 के बारे में भी बताया, जिस पर सवार हो कर भाईबहन गोसाईंपुरवा से अमरावती चौराहे की ओर जा रहे थे. मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीमों ने रात लगभग सवा 10 बजे कालीखोह मेनरोड गेट के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों उसी मोटरसाइकिल पर सवार थे, जिस के बारे में मुखबिर ने सूचना दी थी. दोनों को गिरफ्तार करने के बाद थाने लाया गया.

कंचन और अंबरीश की गिरफ्तारी की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर एसपी भी थाना विंध्याचल आ गए. उन की उपस्थिति में कंचन और अंबरीश से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का अपराध स्वीकार करने के साथ प्रमोद की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

इस कहानी की शुरुआत सन 1999 में तब हुई, जब अंबरीश नाबालिग था. वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवां के गांव बेलवाडांडी के रहने वाले सोहरत सिंह (गौड़) का सब से छोटा बेटा था. उस से बड़ा एक भाई धर्मवीर और 2 बहनें शशिकिरन तथा कंचनलता थीं. शशिकिरन शादी लायक हुई तो सोहरत सिंह ने उस की शादी जिला संत कबीर नगर के रहने वाले दशरथ सिंह से कर दी. इस के बाद उन्हें दूसरी बेटी कंचनलता की शादी करनी थी. क्योंकि वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. सोहरत सिंह उस के लिए घरवर की तलाश में लगे थे. लेकिन वह उस की शादी कर पाते, उस के पहले ही उस के साथ एक दुर्घटना घट गई.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचनलता काफी सुंदर थी. सुंदर होने की वजह से गांव के लड़कों की नजरें उस पर जम गई थीं. ज्यादातर लड़के तो उसे सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेते थे, पर उन्हीं में एक प्रमोद था, जो उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था. कंचन को एक नजर देखने के लिए वह दिन भर उस के घर के आसपास घूमता रहता था. उस की हरकतों से कंचन को उस के इरादों का पता चल गया. कंचन उस तरह की लड़की नहीं थी, उसे खुद की और मातापिता की इज्जत का खयाल था, वह जानती थी कि अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो जीवन भर नहीं छूटेगा.

यही सब सोच कर एक दिन उस ने प्रमोद को डांट दिया. प्रमोद दब्बू किस्म का लड़का नहीं था. वह कंचन से प्यार करता था, इसलिए डांट का भी जवाब प्यार से ही दिया. उस ने कहा, ‘‘कंचन, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मेरे दिल में बसी हो, मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा.’’

कंचन तो वैसे ही गुस्से में थी. उस ने प्रमोद को दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शक्ल देखी है अपनी, जो मुझे रानी बनाने चला है. तेरे जैसे 36 लड़के मेरे पीछे पड़े हैं. पर मैं ने किसी को राह में नहीं आने दिया तो तू किस खेत की मूली है.’’

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.

उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था. इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’

कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी. उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए. इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया. गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी. 27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई. कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में. गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का. घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला. सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया. उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था. उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी. पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है. नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.

दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा. गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है. धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे. यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता. कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था. मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.

अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी. करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था. कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.

अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था. अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा. अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है.

उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा. दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे. रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई. अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था.

उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया. अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.  उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया. अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.

उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई. दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी. इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.

 

Social Crime : Code के जरिए किया जाता था जिस्मफरोशी का धंधा

Social Crime : ज्यादातर युवतियां या महिलाएं देह व्यापार में अपनी मरजी से नहीं आतीं. उन्हें या तो रंगीन सपने दिखा कर जिस्म की मंडी में लाया जाता है या फिर मोटी कमाई के बहाने. कई लड़कियां ऐसी होती हैं जो शरीर को दांव पर लगा कर अमीर बनना चाहती हैं. बरेली की बबीता भी ऐसी ही लड़कियों…

एक मुखबिर ने बरेली के एएसपी अभिषेक वर्मा को उन के मोबाइल पर फोन कर के सूचना दी कि बबीता नाम की एक महिला सनसिटी विस्तार कालोनी के एक दोमंजिला मकान में बड़े स्तर पर जिस्मफरोशी का धंधा चला रही है. मुखबिर ने उन्हें बबीता का फोन नंबर भी दे दिया. इतना ही नहीं, उस ने बबीता से बात करने के कुछ कोड नाम भी दे दिए, जिन का उपयोग वह अपने धंधे में करती थी. खबर महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए एएसपी ने खुफिया तौर पर पहले इस सूचना की जांच कराई, तो खबर सही निकली. इस के बाद उन्होंने इज्जतनगर के थानाप्रभारी और महिला थाने की थानाप्रभारी को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने दोनों पुलिस अधिकारियों को इस सूचना से अवगत कराते हुए तुरंत रेड पार्टी तैयार करने को कहा. आननफानन में रेड पार्टी तैयार कर ली गई. टीम में शामिल एक हैड- कांस्टेबल को डिकोय कस्टमर (फरजी ग्राहक) बनाया गया. डिकोय कस्टमर ने बबीता का फोन नंबर मिलाया. जैसे ही बबीता ने हैलो कहा तो वह बोला, ‘‘मैडम, मैं अमरीश बोल रहा हूं. मुझे आप का नंबर रहमान भाई ने दिया है.’’ रहमान का नाम सुनते ही बबीता समझ गई कि यह कस्टमर वास्तविक है. वह बोली, ‘‘हां, बताइए अमरीशजी, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं.’’

‘‘मैडम, रहमान भाई ने बताया था कि नईनई गाडि़यां हैं, जिन पर सवारी करने में बड़ा ही मजा आता है. ऐसी किसी अच्छी गाड़ी पर मैं भी सफर करना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, आप का स्वागत है. कल ही हमारे पास दिल्ली से 2 नई गाडि़यां आई हैं. आप आ जाइए. रहमान भाई ने हमारा पता तो बता ही दिया होगा.’’ वह बोली.

‘‘हांजी, उन्होंने बता दिया है.’’ डिकोय कस्टमर ने कहा.

‘‘ठीक है आप आ जाइए. और हां, जब आप मेरे यहां आएंगे तब गेट पर चौकीदार आप से कोड पूछेगा तो कोड ‘समंदर में तैरना है’ बता देना. वह आप को मेरे पास ले आएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी कुछ देर में आप के पास पहुंचता हूं.’’ इस के बाद डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. यह बात 12 नवंबर, 2019 की है.

बबीता से बात पक्की हो जाने के बाद 12 नवंबर, 2019 की रात 10 बजे ही एएसपी अभिषेक वर्मा के नेतृत्व में पुलिस टीम सनसिटी विस्तार कालोनी पहुंच गई. टीम के सभी सदस्य बबीता के घर से कुछ दूर अलगअलग गाडि़यों में रहे. केवल हैडकांस्टेबल ही फरजी ग्राहक बना कर उस के घर पहुंचा. उसे बबीता के घर के बाहर चौकीदार खड़ा मिला. उस ने चौकीदार से कहा, ‘‘मुझे बबीता मैडम से मिलना है.’’

‘‘क्या काम है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘समंदर में तैरना है.’’ डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने कहा.

यह सुनते ही चौकीदार समझ गया कि वह ग्राहक है, इसलिए वह उसे ले कर घर के अंदर चला गया. वहां कमरे में एक महिला मौजूद थी. फरजी ग्राहक ने पूछा, ‘‘क्या आप ही बबीताजी हैं?’’

‘‘जी हां, वैसे नाम में क्या रखा है. असल में तो काम ही मायने रखता है.’’ बबीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘बैठिए, मैं आप को अभी गाडि़यां दिखाती हूं. वैसे मैं आप को एक बात और बताना चाहती हूं कि कस्टमर की डिमांड पर हम विदेशी गाडि़यों की भी डील करते हैं.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. फिलहाल तो आप हमें नई गाड़यां दिखाइए.’’ वह बोला.

तभी बबीता ने आवाज लगाई तो 2 युवतियां कमरे में आ कर खड़ी हो गईं. उन्हें देखते ही डिकोय कस्टमर ने कहा, ‘‘क्या बात है मैडम, जैसा हम ने सुना था, यहां तो उस से ज्यादा देखने को मिला. वास्तव में आप बहुत पहुंची हुई हैं. इन्हें देख कर मन कर रहा है कि दोनों को ही पसंद कर लूं. लेकिन फिलहाल मैं इन के साथ जाना पसंद करूंगा.’’ उस ने आसमानी रंग का टौप पहनी युवती की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘यह मोहिनी है. इस का 2 घंटे का चार्ज 3 हजार रुपए है.’’ बबीता ने कहा.

‘‘मैडम, आप पैसों की चिंता न करें.’’ कहते हुए डिकोय कस्टमर ने 3 हजार रुपए बबीता के हाथ में दे दिए. इस के बाद उस ने अपनी जेब से फोन निकालते हुए कहा, ‘‘इसे बंद कर देते हैं वरना बीच में डिस्टर्ब करेगा.’’ उसी समय डिकोय कस्टमर ने एएसपी अभिषेक वर्मा को फोन पर मिस काल कर दी थी. यह मिस काल बाहर इंतजार कर रही पुलिस टीम के लिए एक इशारा थी. कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खटखटाने पर फरजी ग्राहक बने हैडकांस्टबल ने दरवाजा खोल दिया. पुलिस टीम धड़धड़ाती हुई उस कमरे में आ गई.

महिला पुलिस ने बबीता की तलाशी ले कर वे 3 हजार रुपए बरामद कर लिए जो हेड कांस्टेबल ने सौदा तय करते समय उसे दिए थे. उन नोटों के नंबर एएसपी ने पहले से ही अपने पास लिख लिए थे. ऊपर की मंजिल पर 2 युवतियां कमरों में मिलीं चौकीदार पुलिस को आया देख भाग चुका था. कुल मिला कर पुलिस ने वहां से 6 युवतियों को हिरासत में ले लिया. सभी के मोबाइल फोन और पर्स पुलिस ने कब्जे में ले लिए कमरों से भी कई आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद हुईं. बबीता का मोबाइल पुलिस ने चैक किया तो उस में जिस्मफरोशी का धंधा कराने वाली कई युवतियों के फोटो मिले. सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना इज्जतनगर आ गई. वहां उन से पूछताछ की गई.

पूछताछ के बाद पता चला कि रैकेट की सरगना बबीता काफी समय से जिस्मफरोशी के धंधे का संचालन कर रही थी. 45 वर्षीय बबीता उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के सिविल लाइंस एरिया की बाबा कालोनी की रहने वाली थी. वह शादीशुदा थी लेकिन अपने पति को छोड़ चुकी थी. बबीता फोन पर संपर्क के बाद वाट्सऐप पर ग्राहकों को युवतियों के आकर्षक फोटो भेज देती थी. इस के बाद रेट तय होने पर वह ग्राहक को अपने ठिकाने पर बुला लेती थी.

वहीं पर उस की मुलाकात बरेली के इज्जतनगर थानाक्षेत्र की सनसिटी विस्तार कालोनी में रहने वाले गोविंदा नाम के युवक से हुई थी. बाद में उस ने गोविंदा को भी अपने धंधे में शामिल कर लिया था. अपने धंधे को बढ़ाने के लिए बबीता ने छोटे शहर बदायूं से निकल कर महानगर बरेली में धंधा शुरू करने की सोची. चूंकि गोविंदा बरेली का ही रहने वाला था, इसलिए उस ने उस की सोच को और बढ़ावा दिया. करीब 6 महीने पूर्व बबीता ने गोविंदा के सहयोग से सनसिटी विस्तार कालोनी में किराए पर एक मकान ले लिया. वह मकान गोविंदा के घर के पास ही था. गोविंदा ग्राहकों को लाने के अलावा मकान के बाहर रह कर पहरेदारी करता था. दोनों ने धंधे के संचालन के लिए कुछ कोड वर्ड बना रखे थे. धीरेधीरे बबीता के संबंध दूसरे शहरों के संचालकों से भी हो गए.

वह दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु कोलकाता आदि शहरों से भी लड़कियां भी बुलाती थी. दबिश के दौरान पकड़ी गई 2 लड़कियां मोहिनी और प्रिया दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र की थीं. इन्हें बबीता ने दिल्ली से कुछ दिन पहले ही बुलवाया था. दिल्ली की रहने वाली मोहिनी के जिस्मफरोशी के धंधे में आने की कहानी रोमांस से शुरू हुई थी. मोहिनी खूबसूरत थी. उस का यौवन निखरा तो कोई भी उसे देख कर आकर्षित हो जाता था. एक दिन मोहिनी बाजार गई तो वहां कुछ लड़के उसे छेड़ने लगे. पहले तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन जब परेशान हो गई तो उस ने शोहदों को झाड़ना शुरू कर दिया.

तभी एक युवक ने आगे आ कर उन लड़कों का विरोध किया तो वे लड़के मिल कर उसे पीटने लगे. इसी बीच वहां पुलिस आ गई और उन लड़कों को पकड़ कर ले गई. मोहिनी अपने कपड़े ठीक कर के उस अजनबी युवक के पास पहुंची, जो उस की इज्जत बचाने के लिए उन बदमाश लड़कों से भिड़ गया था. उस युवक के शरीर पर चोटें भी आई थीं. मोहिनी ने उस की चोटें देखीं तो उस की आंखों में आंसू भर आए. घर पहुंच कर मोहिनी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि जिस युवक ने अपनी जान पर खेल कर उस की इज्जत बचाई थी, वह उस का नाम तक नहीं पूछ सकी. उस रात मोहिनी की आंखों से नींद कोसों दूर रही. वह पूरी रात उस अजनबी के बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही.

कुछ दिनों बाद मोहिनी बाजार गई तो एक दुकान पर वही युवक दिखाई दे गया. मोहिनी तुरंत उस के पास पहुंच गई. नजरों से नजरें मिलीं तो दोनों मुसकरा दिए.

मोहिनी ने उस युवक के पास पहुंच कर पूछा, ‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, आप कैसी हैं?’’ उस ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं.’’ मोहिनी बोली.

उसे देख मोहिनी के दिल के तार झनझना उठे. वह उस युवक के चेहरे को निहारने लगी. फिर कुछ देर बाद खुद को संभाल कर बोली, ‘‘उस दिन भी मैं ने आप का नाम नहीं पूछा था और आज भी आप से बातें कर रही हूं, मगर नाम अभी भी नहीं पूछा.’’

‘‘मेरा नाम सूरज है. यहीं कुछ दूरी पर रहता हूं. अपना नाम भी बता दीजिए.’’

‘‘मुझे मोहिनी कहते हैं और मैं तुगलकाबाद में रहती हूं.’’

इस के बाद दोनों पास के एक रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. चाय पीते हुए उस दिन मोहिनी और सूरज ने काफी बातें कीं. उस के बाद फिर मिलने का वादा कर के दोनों विदा हो गए. उस दिन के बाद मोहिनी और सूरज अकसर रोज ही मिलने लगे. मेलमुलाकातों में दोनों को ही पता नहीं चला कि वे कब एकदूसरे से प्यार की डोर में बंध गए. एक दिन मोहिनी ने अपने प्यार की बात घर में बता दी. इस से घर में तूफान आ गया. उसी दिन से उस पर तमाम तरह की पाबंदियां लग गईं. प्यार के नाम पर मोहिनी ने सख्त फैसला लिया और सूरज के लिए घर छोड़ दिया. सूरज भी यही चाहता था. वह दिल्ली में एक जगह किराए का कमरा ले कर मोहिनी के साथ रहने लगा. दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जबजब मोहिनी सूरज से शादी करने की बात कहती तो वह किसी तरह उसे समझाबुझा कर शांत करा देता.

जब मोहिनी से उस का जी भर गया तो एक दिन वह उसे अकेला छोड़ कर फरार हो गया. मोहिनी ने सूरज को ढूंढने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उसे नहीं मिला. वह निराश हो गई. मोहिनी की समझ में आ गया कि सूरज वास्तव में उस के रूप का लोभी भंवरा था. साल भर साथ रह कर वह उस का पराग चूसता रहा. मन भर गया तो दूसरे फूल की तलाश में उड़ गया. सूरज के जाने के बाद मोहिनी की भूखों मरने की नौबत आ गई. उसे एक कंपनी में काम मिल गया था. जहां वह काम करती थी, वहां के कर्मचारी उसे भूखे भेडि़ए की तरह देखते और उसे पाने के लिए अकसर मौके की तलाश में रहते थे.

मोहिनी उन की गंदी नजरों को पहचान नहीं पाई और एक दिन धोखे से उन की हवस का शिकार हो गई. उन्होंने पहले मोहिनी के जिस्म से खिलवाड़ किया फिर 3 हजार रुपए उस की झोली में डाल दिए. मोहिनी बेबस थी. उस ने अपने होंठ सिल लिए. इसी का लाभ उठा कर वे लोग समयसमय पर मोहिनी के साथ मौजमस्ती करने लगे. जब मोहिनी उन लोगों से ज्यादा परेशान हो गई तो उस ने सोचा कि अगर किस्मत में यही सब लिखा है तो क्यों न वह स्वयं अपनी शर्तों पर अपने जिस्म का सौदा करे. इस के बाद मोहिनी नौकरी छोड़ कर जिस्म बेचने लगी. धीरेधीरे वह हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट में शामिल हो गई, जिस में उसे कौंट्रैक्ट बेसिस पर दूसरे शहरों में भी भेजा जाने लगा. जब बरेली आई तो पकड़ी गई.

दिल्ली की दूसरी युवती प्रिया छात्र थी. अच्छे रहनसहन, खानपान और अपनी लग्जरी सुविधाओं का पूरा करने के लिए वह जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. इसे वह गलत भी नहीं मानती थी. अगर अपने तन की कमाई से अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकती है तो इस में गुरेज ही क्या है. यही सोच उसे इस धंधे में ले आई. पुलिस हिरासत में ली गई तीसरी युवती बरेली के जोगी नवादा मोहल्ले की रहने वाली ज्योति थी. वह मध्यम परिवार से थी. अचानक उस के पिता की मृत्यु हो गई तो वह एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने लगी. लेकिन ज्योति की मामूली तनख्वाह से खर्च पूरे नहीं होते थे, इसलिए वह किसी दूसरी अच्छी नौकरी की तलाश में लग गई.

पुरानी नौकरी के दौरान उस की मुलाकात चांदनी नाम की एक महिला से हुई. चांदनी को ज्योति की समस्या का पता लगा तो वह सोचने लगी कि वह किसी तरह ज्योति को रंगीन मर्दों की आंखों की ज्योति बना दे तो वह उस के लिए टकसाल साबित हो सकती है. चांदनी देह के धंधे में काफी समय से थी और शिकार की तलाश में रहती थी. चूंकि ज्योति अभावों से त्रस्त थी, इसलिए उस ने चांदनी को धैर्य रखने को कहा. ज्योति ने अपनी मजबूरी का रोना रोते हुए चांदनी से जल्दी नौकरी दिलाने को कहा तो चांदनी बोली, ‘‘चिंता मत करो ज्योति, मेरी बात मानोगी तो मैं तुम्हें हजारों रुपए कमाने वाली लड़की बना दूंगी.’’

‘‘कैसे?’’ ज्योति ने पूछा तो चांदनी ने अपने हाथ से उस की ठोड़ी उठाई और उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘जो काम लाखोंकरोड़ों में नहीं हो सकता, वह काम एक कमसिन, खूबसूरत और अनछुआ जिस्म बहुत आसानी से कर सकता है.’’

ज्योति को शांत देख चांदनी ने ऐसा बातों का जाल फेंका कि ज्योति के बचने के लिए एक छेद नहीं था. अपनी बात कह कर चांदनी चली गई. ज्योति घंटों सोचती रही. उस ने अपनी मजबूरी पर सोचा, भविष्य पर विचार किया. अंतत: उस ने फैसला कर ही लिया कि जिंदगी की हजारों सुनहरी रातों के लिए यह भी सही. बाद में ज्योति ने अपने फैसले से चांदनी को अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘बेटी, मैं जानती थी कि तेरा यही फैसला होगा. इसीलिए मैं ने एक कंपनी के जनरल मैनेजर से बात कर ली है. रात करीब 9 बजे वह आएगा, तू सजसंवर कर तैयार रहना.’’

निश्चित समय पर एक अधेड़ व्यक्ति आया और ज्योति को कली से फूल बना गया. उस के जाने के बाद चांदनी ज्योति के पास पहुंची और उसे 5 हजार रुपए देते हुए बोली, ‘‘जीएम साहब खुश हो गए. जातेजाते ईनाम में ये रुपए दे गए हैं.’’

ज्योति ने वह रुपए रख लिए. अगले दिन चांदनी ज्योति से बोली, ‘‘बेटी, आज एक बड़ा आदमी आएगा उसे खुश करना है.’’

ज्योति को न चाहते हुए भी दूसरी रात काली करनी पड़ी. मैनेजर गया तो चांदनी ने उसे 3 हजार रुपए थमा दिए. इस के बाद तो यह रोज का काम हो गया. चांदनी आधा पैसा खुद रख लेती और आधा उसे दे देती थी. ज्योति मैली तो हो ही चुकी थी, उस ने इसी को अपनी नियति मान लिया और वह खुशीखुशी जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. इस समय वह बबीता के सैक्स रैकेट से जुड़ी थी. शाहजहांपुर के तारीन बहादुरगंज की रहने वाली 21 वर्षीय शिल्पी और बरेली के फरीदपुर की रहने वाली 45 वर्षीय रानी भी पैसों का अभाव दूर करने के लिए देहव्यापार की कुछ शातिर महिलाओं के चंगुल में फंस गई थीं.

पुलिस ने इन सभी से पूछताछ कर कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. पुलिस बबीता के धंधे के सहयोगी गोविंदा की तलाश कर रही थी. उस के बारे में जब विस्तृत जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह भी सनसिटी में ही रहता है और केबल का काम करता है. फरार होने के बाद उस ने अपने घर के दरवाजे ग्राहकों के लिए खोल दिए थे. 17 नवंबर की रात को एएसपी अभिषेक वर्मा ने इज्जतनगर थाना पुलिस और महिला थाना पुलिस के सहयोग से गोविंदा के घर पर दबिश दी तो गोविंदा घर पर ही मिल गया. उस के अलावा 2 अलगअलग कमरों में 2 ग्राहक 2 युवतियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में मिले. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पकड़ी गई युवतियां श्याम और रश्मि बरेली के जोगी नवादा की रहने वाली थीं. आर्थिक अभावों के चलते वे भी इस धंधे में आ गई थीं और काफी समय से इस धंधे में थीं. पकड़े गए दोनों युवकों ने अपने नाम राशिद निवासी काजी टोला, खेड़ा कांठ, जिला मुरादाबाद और दूसरे ने संजीव सिंह गंगवार निवासी विष्णुधाम बीडीए कालोनी तुलाशेरपुर, थाना इज्जतनगर बरेली बताया. तलाशी में राशिद के पास से तमंचा मिला. पूछताछ में पता चला कि राशिद गैंगस्टर है. उस पर बरेली के सीबीगंज में लूट का मुकदमा दर्ज था. जबकि संजीव भी दुष्कर्म के केस में आरोपित है. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने सभी को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा में कई पात्रों के नाम बदले गए हैं.

 

Uttar Pradesh Crime : कातिल बनी देवरानी की दीवानगी

Uttar Pradesh Crime : सुधा अपनी ससुराल आ जरूर गई थी, लेकिन दिल मायके में प्रेमी नीटू उर्फ लिटिल के पास ही बसा हुआ था. नीटू भी उस के बगैर बेचैन रहने लगा था. वह भी किसी न किसी बहाने उस से मिलने आने लगा. किंतु एक दिन वह प्रेमी संग जेठानी सीमा द्वारा रंगेहाथों पकड़ी गई. फिर क्या हुआ? पढ़ें, इस सनसनीखेज कहानी में दीवानी हुई देवरानी की दास्तान…

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गांव दरियापुर में 10 अक्तूबर, 2024 की  शुरुआत भी एक सामान्य दिन की तरह हुई थी. गांव के हरपाल सिंह अपनी दिनचर्या में जुट गए थे. वह अपने बच्चों राहुल कुमार, सौरभ और गौरव के साथ सुबह के 9 बजे पशुओं का चारा लाने के लिए खेतों की ओर निकल गए थे. राहुल की पत्नी सीमा (38 वर्ष) ने सुबह का घरेलू काम निपटाने के बाद 7 वर्षीय बड़ी बेटी रीतिका को स्कूल भेज दिया था. सास धरमी देवी अपनी बेटी के घर बिजनौर गई हुई थी. सीमा ने अपने 9 महीने के बेटे गीत को दूध पिला कर पालने में सुलाने के बाद देवरानी सुधा (31 वर्ष) को आवाज लगाई, ”सुधा…अरी ओ सुधा, जल्दी बाथरूम से निकलो, खेत पर जाने का टाइम हो गया है…’’

”अभी आई दीदी,’’ सुधा ने बाथरूम से ही आवाज दी.

”सुनो, गीत दूध पी कर पालने में सो रहा है. उस का खयाल रखना. …और हां, चकोर बाहर खेल रही है, उसे बुला कर नाश्ता करवा देना.’’ चकोर सीमा की छोटी बेटी थी. वह देवरानी सुधा को घर का कुछ और काम समझा कर चली गई.

सुधा सौरभ की पत्नी और घर की नईनवेली दुलहन थी. ससुराल आए उसे कुछ महीने ही हुए थे. खूबसूरत और मिलनसार स्वभाव की होने के कारण वह बहुत जल्द ही परिवार के सभी सदस्यों की चहेती बन गई थी. घर के बहुत सारे कामकाज निपटाने की जिम्मेदारी उसी पर थी. वह सभी के साथ बहुत ही प्यार से पेश आती थी. सभी उस के व्यवहार से खुश थे. सीमा के जाने के कुछ समय बाद ही सुधा बाथरूम से निकल आई थी. जैसेतैसे पहने कपड़े सही करने के लिए अपने कमरे में चली गई थी. कमरे से ही एक नजर बाहर बरामदे में भी डाली. पालने में सो रहे गीत को देखा. इसी बीच उस की निगाहें बाहर के खुले दरवाजे की ओर गईं.

वहां से बच्चों संग खेलती हुई सीमा की छोटी बेटी चकोर की आवाज भी सुनाई दी. वह निश्चिंत हो गई कि घर में सब कुछ ठीक है. कमरे से कुछ मिनटों में वह बाहर निकली. तभी उसे जानीपहचानी आवाज सुनाई दी, ”ससुराल में तुम तो गजब ढा रही हो… तुम्हारी सुंदरता का तो जवाब नहीं.’’

”अरे नीटू तुम? कब आए? अचानक…’’ सुधा एकदम से चौंकती हुई बोली.

”अरे हां, दिल नहीं माना सो चला आया अचानक. तुम्हें देख कर मूड फ्रैश हो गया. तुम तो गजब की मौडल लग रही हो. क्या बात है?’’ नीटू बोला. वह उस के पीहर के गांव का रहने वाला था. उस के अचानक आने से सुधा चौंक गई थी. वह बोली,”तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था?’’

”क्यों?’’

”यह मेरी ससुराल है…लोग पूछेंगे तब तुम्हारे बारे में क्या बताऊंगी?’’ सुधा बोली.

”कुछ भी बता देना.’’

”कुछ भी क्या…इधर आ कमरे में…तुम्हें छिपाना होगा!’’

”इतना भी डरना क्या?’’ नीटू समझाते हुए बोला.

”तुम नहीं समझते हो…तुम्हें कोई देख लेगा तब बात का बतंगड़ बन जाएगा. मैं जैसा कह रही हूं वैसा कर…तुम्हारे लिए पानी ले कर आती हूं.’’ सुधा ने कहा.

”चाय भी लाना…और हां कुछ खाने के लिए भी…’’ नीटू बोला.

”सब लाती हूं. तुम कमरे से बाहर मत निकलना.’’

”जैसा हुक्म!’’ नीटू बोलता हुआ सीधा सुधा के कमरे में चला गया.

दरअसल, नीटू सुधा के गांव का रहने वाला उस का प्रेमी था. दूसरी जाति का होने के कारण सुधा उस से शादी नहीं कर पाई थी. बुझे मन से सुधा अपनी ससुराल आ कर रहने लगी थी, लेकिन वह नीटू को भूल नहीं पाई थी. उन की फोन पर बातें हो जाती थीं. महीनों बाद उसे पास पा कर मन ही मन सुधा खुश हो गई थी. नीटू का भी यही हाल था. वह सुधा से मिलने के लिए बेचैन हो गया था. कुछ समय में ही सुधा कमरे में चाय और सुबह बना नाश्ता ले कर आ गई. नीटू इधरउधर नजरें घुमाता हुआ बोला, ”घर में कोई नजर नहीं आ रहा है?’’

”हां, सभी खेत पर गए हैं. मैं अकेली हूं…’’ सुधा बोली.

”अरे वाह! बड़े अच्छे मौके पर आया हूं… आज तुम्हारे साथ समय बिताने का अच्छा मौका मिल गया. बहुत बातें करेंगे और कुछ रोमांस भी…’’ नीटू खुश हो कर बोला.

”ज्यादा चहकनेबहकने की जरूरत नहीं है. यह मेरी ससुराल है!’’ सुधा ने मजाकिया अंदाज में समझाने की कोशिश की.

”वहां भी अपने बापभाई से डरी रहती थी…और यहां भी!’’ नीटू भी उसी अंदाज में बोला.

सुधा बोली, ”डरने की बात नहीं है, बात बच कर रहने की है. मेरी जेठानी को शक है…फोन पर बात करते कई बार सुन चुकी है. मैं तुम्हें गांव का मुंहबोला भाई बता चुकी हूं.’’

”लेकिन मैं तुम्हारा प्रेमी हूं…अब और सहन नहीं होता!’’ नीटू बोला और एक झटके में सुधा को बांहों में भर लिया.

”छोड़ो, कोई आ जाएगा…’’ सुधा ने छुड़ाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही. नीटू की पकड़ मजबूत थी. सुधा भी कब उस की वासना की रौ में बह गई, पता ही नहीं चला. नीटू ने बड़ी होशियारी से कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था. सुधा की तंद्रा तब भंग हुई, जब उस ने सीमा की आवाज सुनी.

वह कमरे का दरवाजा पीटती हुई बड़बड़ाए जा रही थी, ”बाहर का दरवाजा खुला है. बच्चा पालने में अकेला सो रहा है और महारानी कमरे में बंद है. पता नहीं क्या कर रही है दिन में?’’

हड़बड़ाते हुए सुधा ने कमरे की कुंडी खोली. उसे अस्तव्यस्त कपड़े में देख सीमा चौंक गई. बोल पड़ी, ”देवरजी तो अभी खेत पर ही दिखे थे, तुम कमरे में किस के साथ हो?’’

सुधा जवाब में कुछ नहीं बोली. इसी बीच उस ने कमरे में एक मर्द को देख लिया. पूछ बैठी, ”कौन है भीतर?’’

”कोई तो नहीं है…आइए न, मैं सब बताती हूं आप को.’’ सुधा अपनी जेठानी का हाथ पकड़ कर खींचती हुई दूसरे कमरे में ले जाने लगी. तभी पीछे से नीटू आ गया और सीमा की आंखें और मुंह पास पड़े गमछे से बांध दिया. दोनों ने मिल कर सीमा को एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया. फिर सुधा ने इशारे से धीमी आवाज में नीटू से पूछा, ”अब क्या करें?’’

”यह हमारा भेद खोल देगी. इस का एक ही उपाय है…’’ कहते हुए नीटू ने उस की हत्या करने का इशारा किया.

”नहींनहीं, यह गलत होगा.’’ सुधा घबराई.

”तो फिर तुम ससुराल से बेदखल होने के लिए तैयार हो जाओ.’’

”लेकिन कैसे होगा वह सब…हम पकड़े जाएंगे. पुलिस केस तो हम पर ही बनेगा.’’ सुधा बोली.

”कुछ नहीं होगा. मैं सब संभाल लूंगा…जो कहता हूं, तुम वैसा करती जाओ.

दिन चढ़ चुका था. करीब 12 बजने वाले थे. हरपाल सिंह अपने तीनों बेटे राहुल, सौरभ और गौरव के साथ खेतों से घर लौट आए थे. घर में पसरा सन्नाटा देख कर वे चौंक गए. बरामदे में पालने पर खुद से खेलते बच्चे के सिवाय कोई नजर नहीं आ रहा था. जब उन्होंने पास के कमरे की ओर नजर दौड़ाई, तब वे चौंक पड़े. वहां फर्श पर बड़ी बहू सीमा की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. राहुल उस के पास गया. उस की नाक के पास अपना हाथ ले जा कर पता किया. उस की सांस बंद थी. फर्श पर काफी खून फैल चुका था.

सौरभ ने सुधा को आवाज लगाई. साथ के कमरे से सुधा की अस्पष्ट आवाज सुनाई दी. वह उस ओर भागा. वहां सुधा भी फर्श पर पड़ी थी. उस के हाथपैर बंधे थे. मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. अपनी पत्नी की यह हालत देख कर सौरभ बौखला गया. उस ने उस के मुंह से कपड़ा निकाला. गहरी सांस लेती हुई सुधा से हालचाल पूछा. उस की इस हालत के बारे में एक साथ कई सवाल कर दिए. घबराई सुधा ने हाथ के इशारे से पीने का पानी मांगा. देवर गौरव पानी लेने गया, तब तक सौरभ सुधा को सहारा दे कर कमरे से बाहर निकाल लाया. पूरा एक गिलास पानी पी कर वह कुछ सेकेंड चुप बनी रही. उस के बाद उस ने जो कुछ बताया, वह बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन अर्धबेहोशी के कारण उस के द्वारा दी गई जानकारी आधीअधूरी ही थी. उस ने बताया कि घर में लूटपाट हुई है.

कोई अचानक घर में घुस आया था. उसी ने सीमा की हत्या कर दी. उस ने उस के हाथपैर बांध कर यहां कमरे में डाल दिया था. उस के इंजेक्शन लगा दिया था. वह बेहोश हो गई थी. पता ही नहीं चला कि घर में क्या हुआ और क्या नहीं… इतना बताते हुए सुधा फिर बेहोश हो गई. उसे तुरंत पास के नर्सिंग होम ले जाया गया. घर में हत्या हुई थी. कुछ समय में ही कोहराम मच गया. पासपड़ोस के कुछ लोग भी आ गए थे. हरपाल सिंह ने तुरंत पुलिस को इस की सूचना दी. पुलिस दलबल के साथ कांठ थाने से घंटेभर में पहुंच गई. एसएचओ विजेंद्र सिंह ने घटनास्थल का मुआयना करने से पहले मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने उच्च अधिकारियों को इस हत्याकांड की जानकारी दे दी.

एसएचओ की सूचना पा कर मुरादाबाद जिले के एसएसपी सतपाल अंतिल, एसपी (देहात) कुंवर आकाश सिंह और सीओ (कांठ) अपेक्षा निंबाडिय़ा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. वहां की फोटोग्राफी करवाई गई, वीडियो बनाई गई. घटना की तहकीकात के लिए पासपड़ोस के लोगों से बात की जाने लगी. इस दौरान गांव के एक व्यक्ति ने एसएसपी सतपाल अंतिल को बताया कि सुबह 10-11 बजे के बीच उस ने मृतक सीमा के घर से एक अनजान व्यक्ति को निकलते देखा था. वह बहुत जल्दी में था. वह उसे नहीं पहचानता था. गांव का नहीं था.

यह जानकारी सतपाल अंतिल के लिए महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस ने घर के सभी सदस्यों से पूछताछ की. सीमा के पति राहुल ने पुलिस का बताया कि सीमा का किसी से भी कभी लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था. उस ने बताया कि वह जब अपने भाइयों और पिता के साथ घर आया, तब सुधा बेहोशी की हालत में थी. उस के हाथपैर बंधे थे. कुछ देर के लिए वह होश में आई थी. वह सिर्फ इतना ही बता पाई कि घर में 4 लोग घुस आए थे. उन्होंने उस के साथ मारपीट की और इंजेक्शन लगा दिया. सतपाल अंतिल यह सुन कर चौंक गए. पड़ोसी से मिली जानकारी के अनुसार घर से केवल एक ही व्यक्ति निकला था, जबकि सुधा के अनुसार 4 लोग घर में घुसे थे. उन का इरादा लूटपाट का था, लेकिन घर की हालत को देख कर नहीं लगता कि वहां कोई लूटपाट हुई हो.

पुलिस ने खोजी कुत्ते को भी बुला लिया था. वह घर में ही घूमघूम कर सभी संदिग्ध चीजों को सूंघने लगा. पुलिस को स्योहारा नर्सिंग होम में भरती सुधा के होश में आने का इंतजार था. इस बीच पुलिस ने परिवार के बाकी लोगों से जानकारी जुटा ली थी. इस के मुताबिक सुधा की शादी 10 जुलाई, 2024 को हरपाल सिंह के दूसरे बेटे सौरभ के साथ हुई थी. वह बिजनौर जिले के गांव भगवतपुर रैनी की निवासी थी. शादी के बाद से ही वह अकसर अपने मायके में ही रह रही थी, जिस कारण सौरभ के साथ मधुर संबंध नहीं बन पाए थे.

बताते हैं कि उन के बीच आए दिन नोकझोंक हो जाती थी. उस के देवर और पति के बड़े भाई ने बताया कि सुधा अपने पति सौरभ को ज्यादा तरजीह नहीं देती थी. इसे ले कर सुधा के मायके वाले भी उसे आ कर समझा गए थे. उन्होंने एक तरह से नई जिंदगी में रहने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि कि तुम्हारी शादी हो चुकी है. तुम्हें पूरा जीवन अपने पति सौरभ के साथ ही गुजारना है. ससुराल को ही अपना घर समझना है. तुम्हारी ससुराल ही अब सब कुछ है. अपनी जेठानी से मिलजुल कर रहना है. सास और ससुर की सेवा करनी है. उन के साथ ठीक वैसे ही इज्जत के साथ पेश आना है, जैसा वह अपने मायके में मम्मीपापा और भाइयों के साथ करती आई है. इस तरह सुधा अपने ससुराल में रहने के तैयार हो गई थी.

अब पुलिस को सुधा के होश में आने का इंतजार था. इसी बीच सीमा के शव का पंचनामा भर कर उसे मुरादाबाद के पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया गया. पहली जांच में पाया गया कि सीमा की हत्या बेरहमी से गला रेत कर की गई थी, जिस से काफी मात्रा में खून बहने से उस की मौत हो गई थी. एसएसपी सतपाल अंतिल ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के लिए पुलिस की कुछ टीमें बना दीं. इस के लिए एसओजी प्रभारी अमित कुमार को जिम्मेदारी सौंपी गई. थाना कांठ क्षेत्र की सीओ अपेक्षा निंबोडिया को नर्सिंग होम में भरती सुधा के होश आने पर पूछताछ की जिम्मेदारी दी गई.

निर्देश मिलते ही अपेक्षा निंबाडिया नर्सिंग होम जा पहुंचीं. उन्होंने वहां के डाक्टर से सुधा की हालत के बारे में जानकारी ली. डाक्टर ने बताया कि वह ठीक है. बातचीत करने की हालत में है, लेकिन बेहोशी का नाटक कर रही है. अपेक्षा ने इस बारे में एसपी (देहात) कुंवर आकाश सिंह से बात की. यह सुन कर कुंवर आकाश सिंह नर्सिंग होम जा पहुंचे. उन्होंने पूछताछ करने की कोशिश की, लेकिन सुधा गुमसुम ऐसे लेटी रही, मानो कुछ सुन नहीं पाई हो. सिंह तेज आवाज में डाक्टर से बोले, ”आप के नर्सिंग होम में इस की बेहोशी नहीं टूट रही है तो रिलीज कर दो, हम इसे बड़े अस्पताल में भरती करवाएंगे.’’

डिस्चार्ज होने के बाद नर्सिंग होम के स्वास्थ्यकर्मियों की मदद से सीओ अपेक्षा ने सुधा को पुलिस गाड़ी में बिठाया और उसे अस्पताल ले जाने के बजाए थाना कांठ ले आए. उसे सहारे से कुरसी पर बैठाया गया. चेहरे पर पानी की तेज बौछार की गई. वह कुरसी से गिरने को हुई. अचानक सुधा ने आंखें खोल दीं. सख्ती के साथ अपेक्षा बोलीं, ”अब बता, तू इस वक्त कहां है?’’

सुधा हकलाती हुई कुछ बोलना चाही कि दूसरे पुलिस अधिकारी बोल पड़े, ”ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं है. आज दिन में घर में क्याक्या हुआ? कितने लोग आए थे? सीमा को किस ने मारा? पूरी बात सचसच बता…’’

”…तू अभी थाने में है…सच बोलेगी तो यहीं से छूट जाएगी, वरना मजिस्ट्रैट तो जेल भेज ही देगा.’’ सीओ ने धमकाते हुए कहा.

पुलिस की तीखी हिदायत सुनते ही सुधा ने हाथ के इशारे से पीने के लिए पानी मांगा. एक महिला कांस्टेबल ने टेबल पर रखा पानी का गिलास उठा कर उसे पकड़ा दिया. पानी पी कर ही वह बुदबुदाने लगी. उस ने धीमे स्वर में बताना शुरू किया, ”मैं और मेरी जेठानी सीमा घर में अकेले थे. अचानक 4 लोग घर में घुस आए थे. वे जेठानी सीमा के साथ मारपीट करने लगे और मेरे हाथपैर बांध दिए. मुझे कूल्हे में इंजेक्शन लगा दिया और मैं बेहोश हो गई. उस के बाद मुझे खुद नहीं पता क्या हुआ.’’

इतना सुनते ही आकाश सिंह डपटते हुए बोले, ”घटना को अंजाम देने के लिए 4 नहीं एक व्यक्ति आया था. तुम झूठ बोल रही हो.’’

इसी के साथ अपेक्षा उसे अलग पूछताछ करने ले गईं. अपेक्षा सुधा से बोलीं, ”देखो, साहब को सब पता चल गया है. खैर इसी में है कि तुम सचसच बता दो. मैं तुम्हें बचाने में मदद करूंगी, अन्यथा तुम पूरी जिंदगी जेल में चक्की पीसोगी.’’

सीओ अपेक्षा की सख्ती के आगे सुधा टूट गई. उस ने एक झटके में कहा, ”वह कांड मैं ने अपने प्रेमी नीटू उर्फ लिटिल के साथ मिल कर किया है.’’ यह कहती हुई सुधा सुबकने लगी. सुधा ने आगे बताया कि घटना के एक सप्ताह पहले भी जेठानी सीमा ने सुधा को घर में नीटू के साथ उसे देख लिया था. उस रोज किसी तरह से बात यह कह कर संभाल लिया कि वह उस के मायके का मुंहबोला भाई है. हालसमाचार लेने आया है. घटना के रोज दोबारा नीटू घर में तब आ गया था, जब सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. उस रोज जेठानी ने दोनों को बहुत डांटा. बोली, ”अपने मुंहबोले भाई के साथ मुंह काला कर रही है, इस बात का पता फेमिली वालों को चल गया तो क्या अंजाम होगा, इस का जरा भी अंदाजा है तुम्हें.’’

सीमा ने सुधा को समझाया कि देख अब तेरी शादी सौरभ से हो गई है. वही तेरा सब कुछ है, तुम मेरी अच्छी देवरानी हो, यह सब शादी से पहले का दीवानापन छोड़ दो. सीमा  ने देवरानी को यह आश्वासन भी दिया कि वह इस बात को किसी से नहीं बताएगी. इसलिए अपने पूर्व प्रेमी से संबंध खत्म कर लो. यह सारी बातें कमरे में दुबका नीटू भी सुन रहा था, जो उस के गले नहीं उतरी थी. फिर उस ने आननफानन में एक खतरनाक फैसला ले लिया था. दरअसल, नीटू बारबार सुधा से प्रेम संबंध बनाए रखने पर जोर डालता रहता था. सुधा भी कई दफा उस से कह चुकी थी कि वह उस के बिना नहीं रह सकती. यानी कि आग दोनों तरफ से जल रही थी.

किसी तरह से मायके के लोगों की बातें मानती हुई वह ससुराल चली आई थी, लेकिन दिल मायके में नीटू के पास ही लगा हुआ था. सुधा ने पूछताछ में यह भी कुबूल कर लिया कि उस ने 14 अक्तूबर, 2024 को योजना के मुताबिक अपने प्रेमी नीटू उर्फ लिटिल को फोन कर ससुराल बुला लिया था. हत्या को अंजाम देने के लिए सुधा और नीटू सीमा को खींच कर उस कमरे में ले गए, जिस में भूसा भरा था. पास ही गेहूं काटने की दरांती पड़ी थी, जिस का बेंता टूटा था. सुधा ने जेठानी के सीने पर बैठ कर अपनी चुनरी से उस का मुंह दबा दिया था. सीमा ने अपने बचाव के लिए पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन उस की चीख भी मुंह में दब कर रह गई. उसी समय नीटू ने दरांती से सीमा का गला रेत दिया. दरांती का बेंता टूटा होने के कारण गरदन पर भरपूर वार नहीं हो पा रहा था. तब नीटू ने जेब से चाकू निकाल कर गला रेत दिया था.

सीमा की सांस की नली कट गई थी. जब सीमा मर गई, तब नीटू ने योजना के तहत सीमा के हाथपैर बांध कमरे में डाल दिया. हाथमुंह पर कपड़ा बांध दिया था. कमरे की किवाड़ भेड़ दी. इस से पहले दोनों ने अपने खून से सने हाथपैर भी धोए. दोपहर में फेमिली के लोग घर आए, तब इस हत्याकांड का पता चला. उन्होंने पुलिस को सूचना दी और सीमा के पति राहुल ने थाने में अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. हत्याकांड को अंजाम दे कर नीटू अपने गांव चला गया. पुलिस 16 अक्तूबर, 2024 को सुधा के बयान के आधार पर नीटू उर्फ लिटिल को  गिरफ्तार करने में सफल हो गई.  उसी रोज दोनों को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर दिया गया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

 

Lucknow Crime : बेवफा बीवी ने प्रेमी के साथ मिल कर बनाया पति का मर्डर प्‍लान

Lucknow Crime : कमला और रामकुमार की अच्छीभली गृहस्थी थी. लेकिन जब ज्ञान सिंह दोनों के बीच आया तो उन की गृहस्थी भी बिखरने लगी और रिश्तों के धागे भी उलझ गए. अब कमला और उस के चाहने वाले ज्ञान सिंह के पास एक ही विकल्प था कि…

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी. अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे. इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है. रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी. घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए. रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे. डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली. पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी. उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा. यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए. मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया. थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया. चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई. पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था. उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था.

रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया. इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था.

रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा. चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया. इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था. कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था.

उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया. एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’

कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी. गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था.

धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई. पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’

चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा. मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई. यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है,

लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया. ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया. पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था. इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा. वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.

रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था. इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.

ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’

कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’

ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे. इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.

तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया. राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया. सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.

पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.