भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 3

यदि लाडो को कुरेदा जाए तो दिव्या के विषय में बहुत कुछ मालूम हो सकता था. एसएचओ चतुर्वेदी कंचन के घर पहुंचे. कंचन पुलिस को दरवाजे पर देख कर डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ता देख इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने भांप लिया कि वह बहुत कुछ जानती है.

“क्या नाम है तुम्हारा?” कंचन को घूरते हुए उन्होंने पूछा.

“कं…च..न.” कांपती आवाज में वह बोली.

“तुम्हारा भाई बनवारी लाडो को रात 11 बजे तुम्हारे घर ले कर आया था. उस के साथ उस की सहेली दिव्या भी थी, बनवारी ने उसे कहां छोड़ दिया.”

“म… मैं नहीं जानती साहब, बनवारी यहां तो लाडो को ही ले कर आया था. उस ने मुझे कुछ नहीं बताया.”

“लेकिन जब लाडो और दिव्या के मांबाप तुम्हारे घर बनवारी से पूछताछ करने आए तो तुम ने बनवारी को भगा दिया.”

“मैं ने नहीं भगाया, वो खुद चला गया.”

“कहां गया है?”

“मैं नहीं जानती. शायद घर गया होगा.”

“उस के घर का पता बताओ.” चतुर्वेदी ने पूछा.

बनवारी के डर से मुंह नहीं खोल रही थी लाडो

कंचन ने घर का पता बता दिया. एसएचओ ने अपने साथ आए हैडकांस्टेबल को 2 पुलिस वालों के साथ बनवारी के घर दबिश डालने के लिए भेज दिया. वह लाडो से पूछताछ करने के लिए रुक गए. वह बहुत डरी हुई थी.

लाडो से उन्होंने दिव्या के विषय में प्यार से पूछा, “तुम अपनी सहेली दिव्या के साथ लाला की परचून की दुकान पर गई थी, वहां से तुम कहां गई थी? और बनवारी तुम्हें कहां मिला था.”

लाडो ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह जमीन की तरफ देखती रही. इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने महसूस किया कि लाडो किसी सदमे से डरी हुई है. यह मुंह नहीं खोलेगी. वह कुछ सोचने लगे. यदि बनवारी लाडो को साथ लाया था तो दिव्या भी बनवारी के साथ जरूर रही होगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि बनवारी ने ही दिव्या का रेप किया हो और उस की हत्या कर दी हो.

लाडो साथ थी, उस ने सब अपनी आंखों से देखा होगा. बनवारी ने उसे भी धमकाया होगा कि किसी से कुछ नहीं कहेगी. लाडो के भय का कारण यही हो सकता है. बनवारी ही दिव्या का कातिल है, उसी ने दिव्या को अपनी हवस का शिकार बनाया है.

चतुर्वेदी की नजर में बनवारी संदिग्ध बन गया था. उसे भगाने में कंचन का हाथ था, इसलिए वह भी दोषी थी. चतुर्वेदी विचारों के तानेबाने बना रहे थे, तभी हैडकांस्टेबल ने फोन कर के बताया कि बनवारी अपने घर से फरार है.

“उसे तलाश करो. अपने खास मुखबिर लगा दो. बनवारी इस केस का मुख्य अभियुक्त है.” इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने आदेश दिया.

बनवारी छटा हुआ बदमाश था. वह पुलिस को छका रहा था. उस के बारे में जब मालूम होता कि वह फलां जगह पर है, पुलिस वहां पहुंचती तो वह वहां से भाग चुका होता था. मगर वह कब तक भागता. पुलिस के मुखबिर उस की टोह में लगे हुए थे.

6 सितंबर को उसे कोसीकलां में मुखबिर ने देखा तो थाना यमुनापार को सूचना दे दी. पुलिस ने बहुत सावधानी से उसे कोसीकलां पहुंच कर घेरे में लिया तो वह गोलियां चलाने लगा. पुलिस ने भी गोलियां दागीं. आखिर में गोलियां खत्म हो जाने पर बनवारी हाथ उठा कर दीवार की ओट से बाहर आ गया. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया.

उस पर पुलिस ने सख्ती की तो उस ने कुबूल कर लिया कि उसी ने दिव्या से रेप किया और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस ने बताया कि 31 अगस्त, 2020 को वह लाला की परचून की दुकान पर सिगरेट लेने गया था. वहां अपनी भांजी लाडो के साथ दिव्या को देख कर उस के हवस का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

वह दोनों को बाइक पर बिठा कर मावली गांव के एक खेत में ले गया. जहां उस ने अपनी भांजी लाडो के सामने ही दिव्या के साथ रेप कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी. भांजी लाडो को उस ने डराधमका दिया था.

बनवारी से पूछताछ करने के बाद एसएचओ चतुर्वेदी ने उसे विधिवत गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया. एसएचओ ने 5 दिन में बनवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत, गवाह आदि एकत्र कर के पोक्सो कोर्ट के जज रामकिशोर यादव-3 की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी.

यह केस 3 साल तक चला और अंत में डरी हुई लाडो का मुंह खुलवा कर डीजीसी (स्पैशल) वकील अलका उपमन्यु ने इस केस का रुख बदल दिया. लाडो ने अपने मामा बनवारी की करतूत कोर्ट को बताई.

कोर्ट में लाडो के बयान देने के बाद कोर्टरूम में सन्नाटा भर गया, जिसे माननीय जज राम किशोर यादव ने तोड़ा, “इस बच्ची लाडो का चश्मदीद बयान सुन लेने के बाद मुझे अपना फैसला सुनाने का रास्ता मिल गया है.

बनवारी को हुई सजा ए मौत

जज महोदय राम किशोर यादव थोड़ी देर के लिए रुके, फिर बोलने लगे, “यह वकील अलका उपमन्यु की सूझबूझ का कमाल है. इन्होंने उस बच्ची के मन से उस के मामा बनवारी का भय निकाल कर उसे न्याय के कटघरे में ला कर सच्चाई बयान करने के लिए तैयार किया. उन के उसी गवाह ने सारे केस का रुख पलट दिया. दूध का दूध और पानी का पानी हो गया.

यह कटघरे में खड़ा व्यक्ति अलका उपमन्यु की ठोस दलीलों के कारण ही आज हत्या, बलात्कार, अपहरण और साक्ष्य नष्ट करने का दोषी सिद्ध हुआ है. इस का अपराध अक्षम्य है. इस पर रहम नहीं किया जा सकता.

“इसे आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 376 (बलात्कार), 302 (हत्या) के लिए और 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के लिए दोषी माना जाता है. पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 5/61 भी इस पर लगाई जाती है. यह सब 11 व्यक्तियों की गवाही, मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृतका के स्लाइड सैंपल, डीएनए परीक्षण की बदौलत संभव हुआ. ये सब बातें इस अभियुक्त के खिलाफ जाती हैं, इसलिए इस का अपराध दुर्लभतम मान कर इसे मैं फांसी की सजा देता हूं. इसे तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.

“इस पर एक लाख रुपए का जुरमाना हत्या के लिए और रेप के लिए 30 हजार का जुरमाना भी लगाया जाता है. इस राशि का 80 प्रतिशत मृतका के पिता और मां को दिया जाए.”

सबूत न मिलने पर कंचन को बाइज्जत रिहा कर दिया गया

जज महोदय अपना फैसला सुना कर खड़े हो गए और अपने चैंबर में चले गए. फांसी की सजा सुनते ही कटघरे में खड़ा बनवारी रोने लगा. उसे उसी हालत में पुलिस वाले ले कर बाहर खड़ी कैदियों की गाड़ी की तरफ ले आए. उसे अब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई थी. फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की मनोदशा को ध्यान में रख कर जेल अधीक्षक ने बनवारी को अपने संरक्षण में ले लिया. वह उसे अपनी निगरानी में रखना चाहते थे.

—कथा कोर्ट के जजमेंट व पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दिव्या परिवर्तित नाम है.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 2

पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी.

हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, न ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास न तो कोई व्यवस्था थी, न ही समाज उस के साथ था.

सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि न तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, न ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’

प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता न चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया.

एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’

जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’

प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’

प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 2

पुलिस को नहीं मिला हत्यारे का सुराग

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिंह ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था.

हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था. रेनू के भाई अजय सिन्हा बारबार कह रहे थे कि उन की बहन की हत्या पति नितिन नाथ ने ही की है. पुलिस को तलाश में रेनू सिन्हा का मोबाइल नहीं मिला था, लेकिन यह तभी पता चल सकता था कि रेनू की हत्या पति ने की है या किसी अन्य ने.

बहरहाल, पुलिस ने फोरैंसिक टीम को बुला कर मौके से साक्ष्य एकत्र करने की काररवाई पूरी की और रेनू सिन्हा के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. दिलचस्प बात यह रही कि उस समय पुलिस को पूरी कोठी की तलाशी लेने का खयाल तक नहीं आया, लेकिन नितिन का कुछ पता नहीं चला.

सेक्टर 20 थाने आ कर उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास ही रखी. इस के बाद नितिन नाथ का पता लगाने और रेनू सिंह के मोबाइल की जानकारी लेने के लिए पहले दोनों के फोन की काल डिटेल्स व उन के फोन की लोकेशन निकलवाई.

लोकेशन निकलवाई गई तो पुलिस का माथा ठनका, क्योंकि रेनू सिन्हा और नितिन नाथ दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी डी-40 कोठी के आसपास की नजर आ रही थी, जहां वे रहते थे. इस का मतलब साफ था कि रेनू और उन के पति के फोन कोठी के भीतर ही हैं.

आखिरकार रात 12 बजे पुलिस दोबारा और सही मायने में हरकत में आई. तब पुलिस ने रेनू सिन्हा की कोठी और उस के आसपास के मकानों की सीसीटीवी फुटेज चैक करने का काम शुरू किया. इसी दौरान पुलिस ने ये गौर किया कि रेनू का पति नितिन पिछले 24 घंटों से ज्यादा वक्त में कभी बाहर ही नहीं निकला है. हां, दिन में करीब 2 बजे एकदो लोग घर में जरूर आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने कोठी के मेन गेट पर लगा छोटा दरवाजा खोल कर अंदर बुला लिया था.

करीब आधे घंटे बाद आगंतुक चले गए और दरवाजा फिर किसी ने अंदर से बंद कर लिया था. उस के बाद घर के भीतर किसी के आने या किसी के बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं थी. पुलिस ने एक बार फिर से रेनू के घर वालों को मौके पर बुलाया. सीसीटीवी कैमरे में नितिन के घर से बाहर न जाने की पुष्टि होने की बात साफ होने के बाद पुलिस ने फिर से कोठी के निचले और दूसरी मंजिल की तलाशी लेने का काम शुरू किया.

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब रेनू का पति नितिन पुलिस को उसी कोठी में छिपा हुआ मिला. असल में नितिन अपने ही मकान के पहले माले में बने स्टोररूम में छिपा हुआ था.

पुलिस ने जब रेनू की लाश बरामद की थी, तब उस ने ऊपर की मंजिल पर केवल कमरों में ही सरसरी तौर पर तलाशी ली थी. जबकि स्टोर रूम छोड़ दिया था. लेकिन रात को दूसरे चरण में पूरे घर का चप्पाचप्पा छानने की कवायद में पुलिस को घर में स्टोररूम में नितिन नाथ छिपा हुआ मिल गया.

स्टोररूम में बंद मिला हत्यारा पति

इस के लिए भी पुलिस ने एक तरकीब निकाली थी. पुलिस टीम ने 4 अलगअलग मोबाइल फोन से लगातार रेनू और नितिन के मोबाइल पर काल करने का काम शुरू किया और जबकि कुछ टीम घर के अलगअलग हिस्सों में सर्च का काम कर रही थी.

पुलिस को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि नितिन घर में छिपा मिलेगा. पुलिस तो रेनू व नितिन के मोबाइल को तलाशने के लिए घर में सर्च कर रही थी, क्योंकि दोनों फोन की लोकेशन लगातार घर में ही आ रही थी. पुलिस जब तलाश करते हुए पहली मंजिल के स्टोररूम तक पहुंची तो इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला की टीम को कुछ घनघनाने की आवाज आई. लगा मानो किसी का मोबाइल वाइब्रेट कर रहा है. जहां से आवाजें आ रही थीं, वह एक स्टोररूम था.

स्टोररूम में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा अंदर से बंद था, जबकि उस के दूसरे गेट पर बाहर से ताला लगा था. पुलिस ने स्टोररूम के दरवाजे का ताला तोड़ा तो अंदर नितिन नाथ छिपा बैठा था. पुलिस ने जब स्टोररूम का दरवाजा खोला तो अंदर नितिन मोबाइल फोन, चार्जर, कौफी मग सब कुछ ले कर इत्मीनान से बैठा हुआ था. तब तक रात के 3 बज चुके थे. यानी जो शख्स पिछले कई घंटों से लाश मिलने वाली जगह से महज 2 मीटर के फासले पर छिपा था, पुलिस को उस तक पहुंचने में कत्ल का खुलासा होने के बाद भी 8 घंटे का वक्त लग गया.

पुलिस को अब लगा कि अगर उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की जांच, कोठी की सही तरीके से तलाशी की होती तो ये कामयाबी दोपहर में ही मिल जाती. बहरहाल, नितिन नाथ को जब पकड़ा गया तो उस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी पत्नी रेनू की हत्या उस ने ही गला दबा कर की है. उस ने एकएक सच से परदा उठा दिया.

रेनू सिन्हा को जीवन में सब कुछ मिला. वह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी वकील थीं, बेटा गिरीश अमेरिका में जौब करता है, शादी भी एक समृद्ध परिवार में हुई. लेकिन, एक चीज थी जो बीते 33 साल से सही नहीं थी. वो था रेनू का वैवाहिक जीवन.

रेनू और नितिन 33 साल पहले एकदूसरे के हुए थे, लेकिन उन का रिश्ता खुशहाल नहीं था. नितिन नाथ सिन्हा पैसे का लालची और ऐशभरी जिंदगी जीने का ख्वाहिशमंद जिद्दी इंसान था, लेकिन रेनू सीधीसादी और रिश्ते की कद्र करने वाली महिला थीं. उन का एकमात्र बेटा 15 साल पहले अमेरिका चला गया और वहीं बस गया. रेनू के भाई भी हर महीने उस से मिलने आते थे.

मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले नितिन नाथ सिन्हा का जन्म वैसे तो ब्रिटेन में हुआ था. उन के पिता ब्रिटेन में एक प्रमुख नेत्र सर्जन थे, जिन्होंने 15 साल तक लंदन में प्रैक्टिस की थी, लेकिन उस के बाद वह भारत आ गए. यहां आ कर नितिन ने उच्चशिक्षा हासिल की और बाद में 1986 बैच का भारतीय सूचना सेवा विभाग का अधिकारी चुना गया.

उस ने 25 साल पहले यानी 1998 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली थी. इस के बाद उस ने अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी की. यही नहीं, वह इंडियन मैडिकल एसोसिएशन में भी पदाधिकारी रह चुका है. पत्नी रेनू सिन्हा को कैंसर था, जिन का इलाज अमेरिका में चल रहा था. कुछ दिन पहले ही वह कैंसर से जीत कर घर लौटी थीं.

इधर कुछ समय से नितिन नाथ अब किसी भी तरह की नौकरी नहीं होने के कारण आर्थिक रूप से परेशान रहने लगा था. वह अपने फिजूल खर्चों के लिए रेनू या उस के भाई पर आश्रित रहता था.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की कोतवाली देहात के गांव नगला समल में रहता था रुकुमपाल. शहर के नजदीक और सड़क के किनारे बसा होने की वजह से गांव के लोग खुश और संपन्न थे. रुकुमपाल के पास खेती की जमीन ठीकठाक थी और वह मेहनती भी था, इसलिए गांव के हिसाब से उस के परिवार की गिनती खुशहाल परिवारों में होती थी. हंसीखुशी के साथ जिंदगी गुजार रही थी कि एक दिन अचानक रुकुमपाल की पत्नी श्यामश्री की मौत हो गई.

श्यामश्री की मौत हुई थी तो बेटी आशा 6 साल की थी और बेटा शीलेश 4 साल का. छोटेछोटे बच्चों को संभालना मुश्किल था, इसलिए घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार भी उस की दूसरी शादी कराना चाहते थे. लेकिन रुकुमपाल ने शादी से तो मना किया ही, खुद को संभाला और बच्चों को भी संभाल लिया.

पत्नी की मौत के बाद बच्चों को मां रामरखी के भरोसे छोड़ कर रुकुमपाल परिवार और जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा था. शादी से उस ने मना ही कर दिया था, इसलिए दोनों बच्चों को बाप के साथसाथ वह मां का भी प्यार दे रहा था. इस में उसे परेशानी तो हो रही थी लेकिन बच्चों के लिए वह इस परेशानी को झेल रहा था. क्योंकि वह बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता था.

समय जितना जालिम होता है, उतना ही दयालु भी होता है. समय के साथ बड़ेबड़े जख्म भर जाते हैं. रुकुमपाल की जिंदगी भी सामान्य हो चली थी. बच्चे भी मां को भूल कर अपनीअपनी जिंदगी संवारने में लग गए थे.

आशा पढ़लिख कर शादी लायक हो गई तो रुकुमपाल ने एटा के ही गांव नगला बेल के रहने वाले विनोद कुमार के साथ उस का विवाह कर दिया था. विनोद वन विभाग में नौकरी करता था. नौकरी की वजह से वह एटा में रहता था, इसलिए आशा भी उस के साथ एटा में ही रहने लगी थी.

रुकुमपाल बेटे को पढ़ाना चाहता था, लेकिन शीलेश इंटर से ज्यादा नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह दिल्ली चला गया और किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. हालांकि रुकुमपाल चाहता था कि शीलेश गांव में ही रहे, क्योंकि उस के पास जमीन ठीकठाक थी. लेकिन शीलेश को जो आजादी दिल्ली में मिल रही थी, शायद वह गांव में नहीं मिल सकती थी, इसलिए उस ने रुकुमपाल से साफ कह दिया था कि वह जहां भी है, वहीं ठीक है.

पत्नी की मौत के बाद रुकुमपाल ने अपना पूरा जीवन यह सोच कर बच्चों के लिए होम कर दिया था कि यही बच्चे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. बेटी तो ससुराल चली गई थी. बचा शीलेश, वह उस की कल्पना से अलग ही स्वभाव का लग रहा था. उस का सोचना था कि पिता ने अपना फर्ज पूरा किया है, उस के लिए कोई कुर्बानी नहीं दी है.

अपनी इसी सोच की वजह से कभीकभी शीलेष रुकुमपाल को ऐसी बात कह देता था कि उस के मन को गहरी ठेस पहुंचती थी. लेकिन उस के लिए शीलेश अभी भी बच्चा ही था. इसलिए वह उस की इन बातों को दिल से नहीं लेता था.

रुकुमपाल को अपने फर्ज पूरे करने थे, इसलिए वह शीलेश की शादी के लिए जीजान से जुट गया. आखिर उस की तलाश रंग लाई और एटा के ही गांव निछौली कलां के रहने वाले सोबरन की बेटी ममता उसे पसंद आ गई. फिर उस ने धूमधाम से उस की शादी कर दी.

सोबरन की 4 बेटियों में ममता सब से छोटी थी. उस का एक ही भाई था किशोरी. अंतिम बेटी होने की वजह से सोबरन ने ममता की शादी खूब धूमधाम से की थी.

ममता के आने से सब से ज्यादा खुशी दादी रामरखी को हुई थी. क्योंकि घर में दुलहन के आ जाने से उसे एक सहारा मिल गया था. कुछ दिन गांव में रह कर ममता शीलेश के साथ दिल्ली चली गई थी.

ममता गर्भवती हुई तो शीलेश उसे गांव छोड़ गया. कुछ दिनों बाद ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने के बाद भी ममता दिल्ली नहीं गई. अब महीने, 2 महीने में शीलेश ही पत्नी और बिटिया से मिलने गांव आ जाता था.

बेटी 2 साल की हुई तो ममता एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उस ने बेटे को जन्म दिया. ममता दिल्ली जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन रुकुमपाल और रामरखी ने उसे जबरदस्ती दिल्ली भेज दिया. दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ममता को लगा कि पति की कमाई से घर ठीक से नहीं चल सकता तो वह गांव लौट आई और रुकुमपाल से साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली नहीं जाएगी.

ममता मजबूरी में गांव में रह रही थी, क्योंकि एक तो पति की कमाई में गुजर नहीं होता था, दूसरे उस के छोटे से कमरे में बच्चों के साथ उसे घुटन सी होती थी. गांव में दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन पति के बिना रात काटना मुश्किल हो जाता था. जिस्म की भूख और अकेलापन काटने को दौड़ता था.

ममता ने शीलेश से कई बार कहा कि वह आ कर गांव में रहे, लेकिन शीलेश को शहर का जो चस्का लग चुका था, वह उसे गांव वापस नहीं आने दे रहा था. पति की इस उपेक्षा से नाराज हो कर ममता मायके चली गई थी. लेकिन अब मायके में तो जिंदगी कट नहीं सकती थी, इसलिए मजबूर हो कर उसे ससुराल आना पड़ा. फिर मांबाप ने भी कह दिया था कि वह जैसी भी ससुराल में है, उसे उसी में खुश रहना चाहिए.

ममता को ससुराल में कोई भी परेशानी नहीं थी. परेशानी थी तो सिर्फ यह कि पति का साथ नहीं मिल पा रहा था. इस परेशानी का भी वह हल ढूंढने लगी. तभी एक दिन वह मायके जा रही थी तो एटा में उस की मुलाकात हरीश से हो गई.

हरीश और ममता एकदूसरे को शादी के पहले से ही जानते थे. हरीश उस के गांव के पास का ही रहने वाला था. दोनों एकदूसरे को तब से पसंद करते थे, जब साथसाथ पढ़ रहे थे. बसअड्डे पर हरीश मिला तो ममता ने पूछा, ‘‘हरीश गांव चल रहे हो क्या?’’

‘‘अब शाम हो गई है तो गांव ही जाऊंगा न. लगता है, तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम भी मायके जा रही हो?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘हां, मायके ही जा रही हूं. अब तुम मिल गए हो तो कोई परेशानी नहीं होगी. बाकी बच्चों को ले कर आनेजाने में बड़ी परेशानी होती है.’’

‘‘किसी को साथ ले लिया करो.’’ हरीश ने कहा तो ममता तुनक कर बोली, ‘‘किसे साथ ले लूं. वह तो दिल्ली में रहते हैं. घर में बूढ़े ससुर हैं, उन्हें खेती के कामों से ही फुरसत नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम से इतनी दूर दिल्ली में रहते हैं और तुम यहां गांव में रहती हो?’’

‘‘क्या करूं, उन के साथ वहां छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं यहां गांव में रहती हूं.’’

‘‘तो उन से कहो, वो भी यहां गांव में आ कर रहें. पति के बिना तुम अकेली कैसे रह लेती हो?’’ हरीश ने कहा तो ममता निराश हो कर बोली, ‘‘उन्हें गांव में अच्छा ही नहीं लगता.’’

‘‘लगता है, वहां उन्हें कोई और मिल गई है. तुम यहां उन के नाम की माला जप रही हो और वह वहां मौज कर रहे हैं.’’

‘‘भई वह मर्द हैं, कुछ भी कर सकते हैं.’’

‘‘तो औरतों को किस ने मना किया है. वह वहां मौज कर रहे हैं, तुम यहां मौज करो. तुम्हारे लिए मर्दों की कमी है क्या.’’

वैसे तो हरीश ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन ममता ने इसे गंभीरता से ले लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 बच्चों की मां हूं, मुझे कौन पूछेगा?’’

‘‘तुम हाथ बढ़ाओ,सब से पहले मैं ही पकड़ूंगा.’’ हरीश ने हंसते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें तब से प्यार करता हूं, जब हम साथ में पढ़ते थे. लेकिन मैं अपने मन की बात कह पाता, उस के पहले ही तुम किसी और की हो गई.’’

जब ममता ने भी उस से मन की बात कह दी तो दोनों चोरीछिपे मिलने ही नहीं लगे बल्कि संबंध भी बना लिए. ममता मौका निकाल कर हरीश से मिलने लगी. हरीश से संबंध बनने के बाद ममता को शीलेश की कोई परवाह नहीं रह गई.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 1

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिन्हा की कोठी दोमंजिला थी. इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी.

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिन्हा ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था. हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था.

यह वारदात 10 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिला नोएडा के सेक्टर 30 में स्थित कोठी नंबर डी 40 में हुई थी, उस के कारण पूरे पुलिस विभाग की नींद उड़ गई थी. वारदात ही ऐसी थी कि उस इलाके में रहने वाले लोगों के दिलोदिमाग में भी दहशत भर गई थी.

यह ऐसा सुरक्षित व पौश इलाका है, जहां कड़ी सुरक्षा के कारण अपराधी वहां आने से पहले सौ बार सोचे. यहां स्थित जिस आलीशान कोठी में ये वारदात हुई थी, उस में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाली 61 साल की सीनियर महिला एडवोकेट रेनू सिन्हा अपने पति नितिन नाथ सिन्हा के साथ रह रही थीं. पति ने कुछ साल पहले ही इंडियन इनफार्मेशन सर्विसेस यानी आईआईएस से वीआरएस लिया था.

दरअसल, रेनू सिन्हा पिछले शनिवार शाम से ही किसी का फोन नहीं उठा रही थीं. कोठी में 2 लोग रहते थे, रेनू सिन्हा और उन के पति नितिन नाथ सिन्हा. रेनू दिल्ली हाईकोर्ट में अभी रेगुलर प्रैक्टिस कर रही थीं, जबकि उन के पति नितिन नाथ सर्विस से वीआरएस लेने के बाद ज्यादातर वक्त घर पर ही बिताते थे. कभी वह गोल्फ कोर्स क्लब या दोस्तों से मुलाकात के लिए चले जाते थे.

हैरत की बात यह थी कि जो लोग रेनू सिन्हा से बात करना चाहते थे, जब उन का फोन नंबर नहीं मिला तो उन्होंने नितिन नाथ सिन्हा के फोन पर संपर्क करना चाहा, तब उन का फोन भी पिक नहीं हुआ. रेनू सिन्हा का फोन नहीं मिलने के कारण सब से ज्यादा चितिंत रेनू के भाई अजय सिन्हा थे.

पेशे से पत्रकार अजय सिन्हा वैसे तो मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले हैं, लेकिन काफी लंबे समय से अपनी पेशेवर जिंदगी के कारण वह भी नोएडा में ही रह रहे थे. कुछ भी हो जाए, रेनू सिन्हा हर रोज अपने भाई व परिवार के लोगों से बात जरूर करती थीं, लेकिन शनिवार के बाद जब रविवार को भी उन्होंने न तो खुद किसी को फोन किया और न ही उन्होंने किसी का फोन पिक किया तो अजय सिन्हा की भी चिंता बढ़ गई.

चिंता उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब रेनू की एक हमउम्र दोस्त प्रमिला सिंह रविवार सुबह करीब एक बजे उन के घर पहुंचीं तो कोठी का मेन गेट बंद था. उन्होंने रेनू व उन के पति को कई बार फोन किया, उन के फोन की घंटी तो बजती रही, लेकिन फोन पिक नहीं किया गया.

प्रमिला ने यह बात फोन कर के रेनू के भाई को बताई. तब अजय को आशंका हुई कि उन की बहन के साथ कुछ अनहोनी जरूर हो गई है. क्योंकि वह जानते थे कि अपने पति नितिन नाथ के साथ रेनू के सबंध अच्छे नहीं हैं. यह बात उन का पूरा परिवार जानता था.

किसी अनहोनी की आशंका में अजय सिन्हा ने कोतवाली सेक्टर 20 नोएडा के एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला को फोन कर के बताया कि उन की बहन रेनू सिन्हा जो अपने पति के साथ सेक्टर 30 के डी 40 में रहती हैं, वह किसी का फोन नहीं उठा रही हैं. वह पुलिस को भेज कर पता कराने की कोशिश करें कि उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है. दरअसल, रेनू सिन्हा का घर सेक्टर 20 थाना क्षेत्र में ही था.

बाथरूम में मिली रेनू सिन्हा की लाश

एक बात तो तय थी कि रेनू और नितिन नाथ के फोन औन थे, उन दोनों के फोन की घंटी भी बज रही थी, लेकिन फोन अन आंसर्ड जा रहा था. यानी काल नहीं उठ रही थी. यही वजह थी कि रेनू के भाई अजय सिन्हा ने सेक्टर 20 थाने के एसएचओ को फोन कर के बहन की गुमशुदगी की खबर दी.

एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने स्थानीय चौकी के इंचार्ज को पुलिस टीम के साथ सेक्टर 30 में डी ब्लौक की कोठी नंबर 40 पर पहुंचने के लिए कहा तो वह पुलिस टीम के साथ तत्काल ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा कोठी के गेट पर तो ताला लटका था.

जब यह बात एसएचओ को पता चली तो उन्होंने अजय सिन्हा को बता दिया कि कोठी पर ताला लटका है और आगे की काररवाई के लिए उन्हें थाने आना होगा. करीब ढाई बजे अजय सिन्हा अपने 1-2 परिचितों को ले कर सेक्टर 20 थाने पहुंच गए.

उन्होंने इंसपेक्टर शुक्ला को सारी बात बताई. साथ ही बताया, “अगर मेरी बहन लापता हैं तो इस का साफ मतलब है कि जीजा नितिन नाथ ने ही उन्हें या तो कोई नुकसान पहुंचा दिया है या उन्हें गायब कर दिया है.”

“ऐसा भी तो हो सकता है कि वे दोनों अपनी मरजी से कहीं चले गए हों और किसी कारणवश उन के फोन उन के पास नहीं हो.” इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

“नहीं इंसपेक्टर साहब, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मेरी बहन कैंसर पेशेंट हैं और करीब एक महीना पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई हैं,” अमेरिका के अजय सिन्हा ने कहा.

“लेकिन आप ने अभी अपने जीजा पर शक जताया, इस की कोई खास वजह?” इंसपेक्टर शुक्ला ने अजय से पूछा.

इस के बाद अजय ने जो कुछ बताया, इंसपेक्टर शुक्ला के लिए यह समझने को काफी था कि नितिन नाथ पर किया गया शक बेवजह नहीं है.

अगले 2 घंटे बाद इंसपेक्टर धर्मप्रकाश शुक्ला अजय सिन्हा और पुलिस की टीम को ले कर एडवोकेट रेनू सिन्हा की कोठी पर पहुंच गए. पुलिस ने सब से पहले ताला तोडऩे वाले को बुलवा कर कोठी के मुख्य गेट पर लगे ताले को तुड़वाया तो देखा छोटे गेट की कुंडी अंदर से बंद थी.

अजय सिन्हा के किसी पत्रकार दोस्त ने पुलिस कमिश्नर (नोएडा) लक्ष्मी सिंह को भी फोन कर दिया था, जिस के कुछ देर बाद सेंट्रल नोएडा के डीसीपी हरीश चंद्र, एडिशनल डीसीपी शक्तिमोहन अवस्थी, इलाके के एसीपी सुमित शुक्ला भी मौके पर ही पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के मौके पर पहुंचते ही सेक्टर 20 थाने की पुलिस और ज्यादा अलर्ट हो गई. इस पूरी कवायद में शाम के 7 बज चुके थे.

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिंह की कोठी दोमंजिला थी. भूतल पर ही रेनू और नितिन नाथ सिन्हा का बैडरूम था. शायद उन के कमरे से उन के लापता होने का कोई सुराग मिल जाए, यह सोच कर तमाम आला अफसर जब उन के कमरे में गए तो उन्हें वहां ऐसा कुछ संदेहजनक नहीं लगा.

इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी. अधिकारियों के कहने पर एक पुलिसकर्मी ने रेनू की नब्ज टटोली, लेकिन उन का शरीर पूरी तरह निर्जीव था. लाश पूरी तरह ठंडी पड़ चुकी थी, जिस का मतलब साफ था कि उन की मौत को कई घंटे बीत चुके हैं.

अजय सिन्हा और उन के घर वाले रेनू सिंह की लाश मिलने के बाद फूटफूट कर रोने लगे. आसपास के कमरों में भी छानबीन की गई. आशंका थी कि कहीं किसी ने रेनू के पति नितिन नाथ की भी तो हत्या नहीं कर दी हो, लेकिन भूतल पर कहीं कुछ नहीं मिला.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 1

मथुरा के यमुनापार की पोक्सो कोर्ट में एडीजे विशेष न्यायाधीश राम किशोर यादव-3 की अदालत में आज दिनांक 25 जुलाई, 2023 दिन मंगलवार को लोगों की भारी भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कोर्ट में 3 साल पहले 9 साल की नाबालिग बेटी दिव्या का बलात्कार कर हत्या करने के दोषी 42 साल के बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को सजा सुनाई जानी थी.

सुबह से ही मीडिया जगत के लोग, वकील, पुलिस अधिकारी और डहरुआ गांव के पीडि़ता के परिजन, पड़ोसी और अन्य लोग दोषी बनवारी लाल को मिलने वाली सजा को सुननेजानने के लिए कोर्टरूम में आ चुके थे.

ठीक 10 बजे न्यायाधीश राम किशोर यादव अपने चैंबर कोर्ट रूम में अपनी कुरसी के पास आए तो सभी उन के सम्मान में उठ कर खड़े हो गए. राम किशोर यादव अपने स्थान पर बैठ गए.

अभियुक्त बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया गया था. दोनों सिर झुका कर खड़े हुए थे. माननीय न्यायाधीश ने एक सरसरी नजर दोनों अभियुक्तों पर डालने के बाद सामने बड़ी मेज के ऊपर अपने दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे बचाव पक्ष के वकील किशन सिंह बेधडक़ और सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) स्पैशल डीजीसी अलका उपमन्यु की ओर देखा.

न्यायाधीश ने उन्हें इशारा कर के कहा, “मिस्टर बेधडक़, आप आखिरी बहस के लिए तैयार हैं न. मैं पहला मौका आप को दे रहा हूं. आप अपनी दलील रखिए. सुश्री अलका उपमन्यु आप भी तैयार रहिए.”

“मैं तैयार हूं सर,” अलका उपमन्यु ने उठ कर आदर से सिर झुकाते हुए कहा.

वकीलों में जम कर हुई बहस

बचाव पक्ष के एडवोकेट किशन सिंह बेधडक़ अपनी जगह से उठ कर जज साहब के सामने आ गए. अपने कोट की कौलर ठीक करते हुए बेधडक़ ने बड़े जोश भरे स्वर में कहा, “जनाब, मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि मेरा मुवक्किल बनवारी निर्दोष है.

उस 31 अगस्त, 2020 की रात को वह अपने घर पर ही था. वह मृतका दिव्या और अपनी भांजी लाडो को ले कर मावली गांव गया ही नहीं, क्योंकि इस का कोई सबूत मेरी अजीज दोस्त अलका उपमन्यु कोर्ट में पेश नहीं कर पाई हैं. मेरे मुवक्किल को फंसाया जा रहा है, वह निर्दोष है.”

अलका उपमन्यु मुसकराती हुई अपनी जगह से उठीं और बोलीं, “माननीय जज साहब, मैं ने 15 दिन पहले ही वे सभी साक्ष्य जो मावली गांव के बाजरे के खेत में घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम और यमुनापार थाने के पुलिस इंसपेक्टर को जांच के दौरान मिले थे, कोर्ट के सामने रख दिए थे. मैं मिस्टर बेधडक़ की कमजोर याद्दाश्त के लिए फिर से सभी साक्ष्यों का ब्यौरा दे देती हूं.

“घटनास्थल से मृतका दिव्या की खून सनी पाजामी बरामद हुई थी, रक्त के नमूने की विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा जांच रिपोर्ट. वैजाइनल स्लाइड व स्वैब. नेल क्रीपिंग, स्कैल्प हेअर, टी शर्ट, पांव में बांधा गया काला धागा, राखी, रबर बैंड, मौके से एकत्र की गई खून आलूदा मिट्टी और सीएमओ साहब की ओर से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिस में 9 साल की अबोध नाबालिग बालिका के साथ हैवानियत से किए गए बलात्कार होने की पुष्टि हुई है. ये सभी चीजें मैं ने कोर्ट को पहले ही सौंप दी थीं.

“इस के अलावा घटनास्थल से बनवारी लाल द्वारा प्रयोग किया गया शराब का पौआ, बीयर की कैन, पानी के 3 पाउच, 2 खाली और एक भरा हुआ. नमकीन, खाली प्लेट, 3 सौस के पाउच और एक रौयल स्टेग क्वार्टर का खाली पौआ और प्लास्टिक के 2 खाली गिलास बरामद हुए थे.

“इन के अलावा बनवारी द्वारा घटना के वक्त पहने हुए कपड़ों का पुलिंदा, जिन पर दिव्या की वैजाइना से निकले खून के धब्बे मिले थे. ये सभी पुख्ता सबूत मैं ने कोर्ट को पहले ही दे दिए थे. इन के अलावा मैं ने इस घटना से जुड़े 11 गवाहों की पेशी कोर्ट में करवा दी है. मैं इन के नाम फिर से कोर्ट के सामने रख देती हूं. इस से पहले आप यह भी जान लें कि इस घटना के वादी दिव्या के पिता ने 31 अगस्त, 2020 को अपनी बेटी और उस के साथ गई बनवारी की भांजी लाडो की घर वापसी न होने पर पूरी रात दोनों लड़कियों को तलाश किया था.

“उस के 2 भाई सोनू और संतोष गांव नौगांव भी उसी रात गए थे, क्योंकि यह सभी लोग जब दिव्या और लाडो को गांव में और आसपास के खेतों में ढूंढ रहे थे, तब बनवारी की बहन कंचन द्वारा अपने छोटे भाई भोला को फोन द्वारा बताया गया था कि वह लाडो की चिंता न करे. लाडो को बनवारी अपनी बाइक पर बिठा कर उस के घर नौगांव, छाता (मथुरा) में ले कर आया है.

“यह सुन कर वादी संतोष और सोनू उसी रात नौगांव गए थे. वहां लाडो तो मिल गई थी, लेकिन बनवारी को कंचन ने अपने घर से भगा दिया था, इसलिए इस घटना में कंचन भी शामिल हो गई थी. इसे मालूम हो गया था कि बनवारी क्या कुछ कर के उस के घर आया है. सब जान कर भी इस ने बनवारी को भाग जाने में मदद की थी, इसलिए यह भी पूरी तरह दोषी है.”

कुछ क्षण रुकने के बाद अलका उपमन्यु बोलीं, “मैं उन 11 गवाहों के नाम दोहरा रही हूं, जो मृतका दिव्या की तलाश और तहकीकात से जुड़े हुए हैं. वादी दिव्या के पिता जिस ने पहली सितंबर, 2020 को यमुनापार थाने में अपनी बेटी दिव्या के अपहरण और बलात्कार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उस ने बनवारी पर दिव्या के अपहरण और बलात्कार करने का संदेह जाहिर किया था.

“संतो उर्फ सत्य प्रकाश, अशोक, डा. करीम अख्तर कुरैशी, सोनू, भोला, संतोष कुमार, डा. विपिन गौतम, इंसपेक्टर महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी, रिटायर्ड हैडकांस्टेबल कैलाशचंद, विजय सिंह और घटना के समय वहां मौजूद रही लाडो.

“ये सब गवाह और साक्ष्य पुलिस द्वारा तैयार किए गए थे मी लार्ड,” किशन सिंह बेधडक़ ने टोका, “पुलिस झूठे गवाह और ऐसे साक्ष्य तैयार कर के मेरे मुवक्किल को फंसाना चाहती है. ऐसा एक भी गवाह अलकाजी के पास नहीं है, जो चश्मदीद हो, जिस ने मावली गांव में बनवारी को दिव्या के साथ बलात्कार करते हुए देखा हो.”

“है मी लार्ड,” अलका उपमन्यु जोश में बोली, “मैं जानती थी कि मेरे अजीज दोस्त बेधडक़ साहब ऐसी ही बात कह कर बनवारी को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेंगे. मैं ने एक चश्मदीद गवाह को बचा कर रखा हुआ था. मैं उसे बुला रही हूं.” अलका उपमन्यु ने पेशकार को इशारा किया तो वह बाहर जा कर 12 साल की एक लडक़ी को कोर्ट रूम में ले आया.

“यह बनवारी की भांजी लाडो है मी लार्ड. मृतका दिव्या की सहेली है. यही 31 अगस्त, 2020 की शाम 8 बजे के आसपास गांव में लाला की दुकान पर दिव्या के साथ कुछ सामान लेने गई थी. बेटी लाडो, तुम इस गवाह के कटघरे में आ जाओ और कोर्ट को बताओ कि 31 अगस्त, 2020 की रात को क्या हुआ था.”

क्या बताया लाडो ने अपनी गवाही में? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल – भाग 3

24 अक्टूबर की रात के 9 बज चुके थे. योगिता ने उस दिन पति को खुश करने का फैसला कर लिया था. इस के लिए उस ने विशेष रूप से आकर्षक ड्रेस पहनी थी. कालिका सिंह जब घर पहुंचा तो वह शराब के नशे में था.

योगिता ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘आज से हम सब कुछ भूल कर एक नए जीवन की शुरुआत करेंगे. मैं ने पिछली सारी बातें भुला दी हैं, तुम भी सब भूल जाओ.’’

कालिका सिंह उस वक्त काफी नशे में था. कुछ योगिता ने उकसाया और कुछ उस का खुद का मन बहकने लगा. उसी मन:स्थिति में उस ने योगिता से पूछा, ‘‘बच्चे सो गए क्या?’’

‘‘हां, बच्चों को मैं ने खिलापिला कर सुला दिया है.’’ योगिता ने कातिलाना अंदाज में कहा. फिर वह कालिका को बेडरूम में ले गई और मिलन के लिए उकसाने लगी. कालिका सिंह जवान तो था ही, बहकने लगा. तब योगिता बोली, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए एक खास दवा का इंतजाम किया है. उसे खा लो, जोश बढ़ेगा तो लगेगा हम कुछ खास कर रहे हैं. आज मैं तुम्हारे प्यार में सबकुछ भूल जाना चाहती हूं.’’

शारीरिक सुख के चक्कर में आदमी सब कुछ भूल जाता है. उस वक्त वह सिर्फ एक ही बात सोचता है कि अपनी पार्टनर के साथ ज्यादा से ज्यादा आनंद उठाए. कालिका सिंह के साथ भी यही हुआ.

योगिता ने उसे फुसला कर जरूरत से ज्यादा सैक्सवर्धक दवा खिला दी. शराब के नशे में कालिका ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों ने कपड़े भी उतार दिए. लेकिन मिलन की स्थिति आने से पहले ही कालिका सिंह बेहोश हो गया.

उस के बेहोश होते ही योगिता ने कपड़े पहन कर गौरव को फोन किया. वह तुरंत आ गया. सब कुछ पहले से ही तय था. इसलिए दोनों ने बिना देर किए बेहोश पड़े कालिका का गला टीवी केबिल के तार से कस दिया. जब कालिका मर गया तो योगिता ने उस के सिर पर वार कर के सिर फोड़ दिया. दोनों ने इस घटना को लूट साबित करने के लिए घर के सामान की तोड़फोड़ शुरू कर दी. उन्होंने सारा सामान इधरउधर बिखेर दिया.

योगिता ने गौरव से कह कर खुद को भी चोट पहुंचवाई, ताकि किसी को शक न हो. इस के बाद गौरव अपने घर लौट गया. गौरव के जाने के बाद योगिता ने पुलिस को फोन किया. पुलिस ने आ कर घायल योगिता को अस्पताल में भर्ती कराया. कालिका का शव देख कर पुलिस को लगा कि सिर फटने से ज्यादा खून बह गया होगा, जिस से वह मर गया है. लेकिन जब कालिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह दम घुटना पता चली तो पुलिस ने अपनी जांच की दिशा बदल दी.

एक तो पुलिस को घर में लूट का कोई सुबूत नहीं मिला, दूसरे मोहल्ले वालों ने रात में गौरव के आने का जिक्र किया था, जिस से शक की सुई योगिता और गौरव की ओर घूम गई. अंतत: एक माह की लंबी छानबीन के बाद रायबरेली पुलिस ने कालिका हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

जिस समय योगिता और गौरव शर्मा रायबरेली के एसपी औफिस में पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय के सामने अपना गुनाह कुबूल कर रहे थे, बाहर बैठे उन के परिवार के लोग टीवी स्क्रीन पर उन की बातें देखसुन रहे थे. कालिका के घर वालों को पहले से ही इस बात का अंदेशा था. लेकिन सच सामने आने के बाद उन की आंखों के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे.

खुलासा होने तक योगिता के घर वाले इस मामले को प्रौपर्टी डीलिंग की दुश्मनी मान रहे थे. लेकिन अपनी बेटी का कारनामा सुन कर उन का सिर शरम से झुक गया. गौरव के पिता और उन के साथी वकील जो अब तक गौरव को निर्दोष मान रहे थे, वह भी अफसोस जताने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस गौरव और योगिता को ले कर बाहर आई तो योगिता का सिर झुका हुआ था. पत्रकारों ने उस से पूछा कि अब वह क्या कहना चाहती है तो उस ने कहा, ‘‘मुझे जेल भेज दो और गौरव को छोड़ दो. मेरा क्या, मैं तो शादीशुदा हूं, मेरे दो बच्चे है, जिंदगी का पूरा सुख भी भोग लिया है, जबकि गौरव की जिंदगी की अभी शुरुआत है. उसे माफ कर दीजिए.’’

भले ही गौरव ने योगिता के दबाव में ऐसा किया था, पर उस का अपराध क्षमा योग्य नहीं था. पुलिस ने दोनों को सीजेएम दिनेश कुमार मिश्रा की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अब गौरव और योगिता का भविष्य अदालत तय करेगी. योगिता के दोनों बेटे अपने चाचा के घर चले गए. इन मासूमों को अब अपनी मां और पिता, दोनों के बिना जीने की आदत डालनी होगी.

—कथा पुलिस सूत्रों, जनचर्चा और अभियुक्तों के बयानों पर आधारित है.

पति पत्नी और वो – भाग 3

28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी.

गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया.

निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’

दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए.

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी(ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया.

पुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

जेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर