चौहरा हत्याकांड : हनीमून के बाद दबेपांव आई मौत

पत्नी व 3 बच्चों के होते हुए भी सर्राफा कारोबारी मुकेश वर्मा ने रिश्ते की साली स्वाति सोनी के साथ मंदिर में शादी कर ली थी. उस के साथ गोवा में हनीमून के बाद वह घर लौटा तो दबेपांव मौत ने भी घर में दस्तक दे दी. नतीजतन घर के 4 लोग मौत के मुंह में समा गए. आखिर कैसे हुआ यह सब? पढ़ें, यह दिलचस्प कहानी.

प्लान के मुताबिक 10 नवंबर, 2024 की सुबह 10 बजे मुकेश अपनी स्कूटी से घर से निकला. इस के बाद वह अपनी जानपहचान वाले 3 मैडिकल स्टोर्स पर गया और वहां से नींद वाली 15 गोलियां खरीदीं. इन गोलियों को पीस कर उस ने 4 पुडिय़ा बना ली और अपने घर वापस लौट आया. इस के बाद शाम तक वह बीवीबच्चों से खूब हंसता, बोलता, बतियाता रहा. उन्हें मुकेश के प्लान की भनक तक नहीं लगी.

रात 10 बजे मुकेश ने और्डर कर 4 पिज्जा मंगवा लिए. बड़ी चालाकी से उस ने पिज्जा में पिसी हुई नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. पत्नी व बच्चे उस समय टीवी पर कोई मूवी देख रहे थे. रात 12 बजे के आसपास मूवी खत्म हुई तो सभी ने पिज्जा खाया. बच्चों को पिज्जा का स्वाद कुछ अजीब लगा तो उन्होंने आधाअधूरा पिज्जा ही खाया और बचा हुआ फ्रिज में रख दिया. पिज्जा खाने के बाद पत्नी रेखा, बेटी भव्या और बेटा अभीष्ट ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे मेें पड़े पलंग पर जा कर लेट गए, जबकि दूसरी बेटी काव्या फस्र्ट फ्लोर वाले कमरे में जा कर पलंग पर लेट गई. नींद की गोलियों ने कुछ देर बाद ही असर दिखाना शुरू कर दिया. फिर एक के बाद एक सभी गहरी नींद के आगोश में समा गए.

लेकिन मुकेश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. रात 2 बजे मुकेश ने अपनी माशूका स्वाति से मोबाइल फोन पर बात की और सारी बात बताई. उस ने स्वाति से फोन पर संपर्क बनाए रखने को भी कहा. स्वाति सुबह तक उस के संपर्क में रही. इधर पत्नी व बच्चे जब गहरी नींद में सो गए तो सुबह लगभग 4 बजे मुकेश ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे में पहुंचा. उस ने पलंग पर सो रही पत्नी रेखा, बेटी भव्या व बेटे अभीष्ट पर एक नजर डाली. फिर रस्सी का टुकड़ा, जिसे उस ने पहले से ही कमरे में सुरक्षित कर लिया था, पत्नी रेेखा (44 वर्ष) की गरदन में लपेटा और कसने लगा. नींद की आगोश में समाई रेखा चीख भी नहीं पाई और उस ने दम तोड़ दिया.

रेखा के बाद उस ने बेटी भव्या (19 वर्ष) और बेटा अभीष्ट (13 वर्ष) को भी रस्सी से गला कस कर मार डाला. इस के बाद वह फस्र्ट फ्लोर पर कमरे में सो रही छोटी बेटी काव्या (17 वर्ष) के पास पहुंचा और उस का भी रस्सी से गला कस दिया. पत्नी व बेटियों का गला कसने के बाद मुकेश ने बेटे अभीष्ट को भी नहीं बख्शा और उसे भी मौत की नींद सुला दिया. पत्नी व बच्चों की हत्या करने के बाद मुकेश ने प्रेमिका स्वाति से फोन पर बात की और उसे बताया कि उस ने पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी है. वह सुबह इटावा रेलवे स्टेशन पर आ कर मिले और फोन पर संपर्क में रहे.

4 हत्याएं करने के बाद नारमल क्यों रहा मुकेश

मुकेश 3 घंटे तक लाशों के बीच बैठा रहा. इस बीच उस ने बच्चों के गले में पड़ी  सोने की चेन, पत्नी के गले में पड़ा मंगलसूत्र, चेन व दोनों हाथों से सोने कीे अंगूठियां निकाल कर सुरक्षित कर लीं. तिजोरी का लौकर खोल कर उस में रखी ज्वैलरी भी सुरक्षित कर ली. सुबह 8 बजे मुकेश ने दोनों कमरों का ताला बंद किया और कीमती सामान का थैला ले कर प्लान के मुताबिक रेलवे स्टेशन पहुंच गया. अपने किए गए प्रौमिस के मुताबिक स्वाति रेलवे स्टेशन के बाहर मौजूद थी. चंद मिनट पहले ही वह कानपुर से इटावा ट्रेन द्वारा आई थी.

मुकेश ने कुछ मिनट स्वाति से बात की, फिर कीमती सामान वाला थैला उसे थमा दिया. इस के बाद दोनों बस स्टाप आए. मुकेश ने स्वाति को कानपुर जाने वाली बस में बैठा दिया. बस में बैठते ही स्वाति ने अपना मोबाइल फोन स्विच औफ कर लिया. पुश्तैनी मकान में रहने वाले मुकेश के भाइयों ने सुबह मुकेश के दोनों कमरों में ताला लगा देखा तो था, लेकिन उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया. उन्होंने सोचा कि मुकेश परिवार के साथ कहीं घूमनेफिरने गया होगा, एकदो दिन में वापस आ जाएगा.

मुकेश ने पुलिस से बचने का प्लान पहले से ही बना लिया था. उसी प्लान के तहत वह सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचा. वहां टंगे बोर्ड से उस ने सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह का फोन नंबर नोट किया. फिर दोपहर में गल्ला मंडी स्थित एक होटल पर भरपेट खाना खाया. यहीं पर उस ने एक सुसाइड नोट तैयार किया. इस सुसाइड नोट में उस ने अपने भाई अखिलेश वर्मा व सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा पर लाखों रुपया हड़पने और मांगने पर ताने मार कर जलील करने का आरोप लगाया. तथा हत्या/आत्महत्या करने को उकसाने का आरोप लगाया.

इस नोट को लिखने के बाद गल्ला मंडी में ही एक ज्वैलर्स की दुकान पर उस ने अपनी सोने की अंगूठी बेची. अंगूठी बेचने से उसे जो पैसे मिले, उन में से 700 रुपया सैलून वाले को तथा डेढ़ हजार रुपया सोनू नाम के व्यक्ति को उधारी के दिए. सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने के बावजूद मुकेश विचलित नहीं हुआ. वह बेखौफ इटावा शहर की गलियों में घूमता रहा. शाम 6 बजे के बाद उस ने अपने साढ़ू भोपाल निवासी आशीष वर्मा तथा भिंड निवासी साले रविंद्र व सत्येंद्र से फोन पर बात की और हालचाल पूछा.

उस ने अपने भाइयों से भी फोन पर बात की, लेकिन किसी को महसूस नहीं होने दिया कि उस ने 4 लोगों का मर्डर किया है. रात करीब सवा 8 बजे मुकेश ने सुसाइड नोट का फोटो खींच कर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह को वाट्सऐप कर दिया तथा डायल 112 पर सूचना दी कि उस की पत्नी व बच्चों ने सुसाइड कर लिया है. वह भी सुसाइड करने रेलवे स्टेशन जा रहा है. इस के बाद उस ने बेटी काव्या व पत्नी रेखा के मोबाइल फोन के वाट्सऐप स्टेटस पर मृतकों की फोटो लगा कर कैप्शन लिखा, ‘ये सब लोग खत्म.Ó फिर उस ने अपना मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

इस स्टेटस को देख कर सगेसंबंधी सन्न रह गए. पड़ोसी भी सकते में आ गए. पड़ोसी मुकेश के घर पहुंचे तो ताला बंद था. उन्होंने मुकेश के बड़े भाई रत्नेश वर्मा व अवधेश वर्मा को सूचना दी. थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर आ गए. उन्होंने पड़ोसियों के सहयोग से कमरों का ताला तोड़ा. अंदर का दृश्य देख कर सभी का कलेजा कांप उठा. रत्नेश वर्मा ने सूचना थाना सिविल लाइंस पुलिस को दी तो हड़कंप मच गया. सूचना पाते ही एसएचओ विक्रम सिंह चौहान पुलिस दल के साथ लालपुरा स्थित मुकेश वर्मा के घर आ गए.

मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने सूचना पुलिस अफसरों को दी तो थोड़ी देर में मौके पर एसएसपी संजय कुमार वर्मा, एएसपी अभय नाथ त्रिपाठी तथा सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अफसरों ने घटनास्थल को देखा तो सहम गए. 2 कमरों में 4 लाशें पड़ी थीं. दोनों कमरों में खून की एक बूंद भी नहीं थी. अब तक फोरैंसिक टीम भी आ गई थी और वह जांच में जुट गई थी. घर का मुखिया मुकेश वर्मा घर से नदारद था. पुलिस को पता चल गया था कि उस ने डायल 112 पर पत्नी व बच्चों के सुसाइड करने की जानकारी दी. लेकिन वह स्वयं कहां है, जीवित भी है या नहीं, इस की जानकारी न दे कर उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था.

अब तक मीडिया को भी घटना की जानकारी मिल गई थी, इसलिए मीडियाकर्मियों की भी भीड़ जुट गई थी. पुलिस औफिसर इस स्थिति में नहीं थे कि वे बता सकें कि मामला हत्या का है या आत्महत्या का. अत: उन के सवालों से बचने के लिए चारों शवों को इटावा के सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मुकेश की खोज में पुलिस ने उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लिया तो रात 8:20 पर उस की लोकेशन इटावा रेलवे स्टेशन के पास मिली. उस के बाद उस का फोन बंद हो गया था. पुलिस की टीम इटावा रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां पता चला कि मुकेश रेल से कट कर आत्महत्या करना चाहता था, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. वह जीआरपी पुलिस की हिरासत में है. पुलिस टीम तब मुकेश को अपनी कस्टडी में ले कर थाना सिविल लाइंस आ गई.

थाने में पुलिस अफसरों ने जब मुकेश से पूछताछ की तो उस ने पहले से प्लानिंग कर बनाई गई कहानी पुलिस को बताई. उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि पिछले कई सालों से वह परेशान था. रिश्तेदारों को उस ने 15 लाख रुपए उधार दिए थे, जो वापस नहीं कर रहे थे. पैसा मांगने पर वे उसे जलील करते थे और ताने मारते थे. इस कारण उसे व्यापार करने में दिक्कत आ रही थी. धीरेधीरे घर खर्च का ज्यादा और आमदनी कम होती गई. इस से वह काफी समय से तनाव में था. टेंशन के चलते सिर्फ वह आत्महत्या करना चाहता था. उस ने यह बात पत्नी रेखा को बताई तो वह बोली कि आत्महत्या के बाद उस का और बच्चों का क्या होगा.

फिर पत्नी की सहमति के बाद उस ने सभी को मारने के बाद आत्महत्या करने की योजना बनाई. वह करवाचौथ वाले दिन सभी को मारना चाहता था, लेकिन पत्नी ने उस दिन ऐसा करने से मना कर दिया, जिस से मौत टल गई. इस के बाद दीपावली के बाद का प्लान बनाया. 11 नवंबर, 2024 को बड़ी बेटी भव्या पढ़ाई के लिए वापस दिल्ली जाने वाली थी, इसलिए उस ने एक दिन पहले ही सब को मारने का प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक वह मैडिकल स्टोर से नींद की 15 गोलियां खरीद कर लाया. 5 गोलियां पीस कर पत्नी रेखा को पिज्जा के साथ मिला कर खिला दी, बाकी गोलियां बच्चों को पीस कर पिज्जा के साथ खिला दीं.

उस ने बताया कि गला घोंटते समय बच्चे बेहोशी की अवस्था में बोले थे, ”पापा, ये क्या कर रहे हो?

तब मैं ने उन से कहा था कि मेरे मरने के बाद तुम लोग रह नहीं पाओगे. इसलिए मरना ही बेहतर है और फिर गला घोंट कर सभी को मार डाला. मुकेश ने आगे बताया कि घटना को अंजाम देने के बाद वह दिन भर शहर की गलियों में भटकता रहा. रात साढ़े 8 बजे वह इटावा रेलवे स्टेशन पहुंचा और सुसाइड के लिए पूर्वी छोर पर पटरियों के बीच लेट गया. मरुधर एक्सप्रैस उस के ऊपर से गुजर गई, लेकिन वह बच गया. जीआरपी ने उसे पकड़ा. जामातलाशी में पुलिस को मुकेश से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. उन्हें पुलिस ने सुरक्षित कर लिया. मुकेश की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से रस्सी का वह टुकड़ा बरामद कर लिया, जिस से उस ने पत्नी व बच्चों का गला घोंटा था.

पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के बाद उस की बात को सच मान कर उस का बयान दर्ज किया. लेकिन अधिकारियों के मन में एक फांस चुभ रही थी कि मुकेश को यदि आत्महत्या करनी ही थी तो उस ने घर में क्यों नहीं की? घटना को अंजाम देने के 16 घंटे बाद वह आत्महत्या करने इटावा रेलवे स्टेशन क्यों गया? वह भी बच गया. उस के शरीर पर खरोंच तक नहीं आई. उन्हें लगा कि दाल में कुछ काला जरूर है. 12 नवंबर, 2024 को इस हत्या/आत्महत्या प्रकरण की खबर प्रमुख अखबारों में छपी, जिसे पढ़ कर लोग सन्न रह गए. शहरवासियों तथा सगेसंबधियों की भीड़ मुकेश के घर पर जुट गई. सहमति से आत्महत्या की बात न शहरवासियों के गले उतर रही थी और न ही परिवार तथा सगेसंबधियों की समझ में आ रही थी.

सगेसंबंधी भी नहीं समझ पाए वारदात की वजह

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए मुकेश के बड़े भाई एडवोकेट रत्नेश वर्मा, अवधेश वर्मा तथा मां चंद्रकला से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि रिश्तेदारों व पड़ोसियों के फोन आने के बाद वह मुकेश के घर गए तो देखा कि लाशें पड़ी थीं. रत्नेश ने बताया कि मुकेश के घर में तनाव जैसी कोई बात नहीं थी. तनाव की बात उस ने कभी उन्हें नहीं बताई. आर्थिक स्थिति भी कमजोर नहीं थी. वह सोनेचांदी के व्यापार में अच्छा पैसा कमाता था. पता नहीं मुकेश ने यह कदम क्यों उठाया.

अब तक मृतका रेखा का भाई भिंड निवासी सत्येंद्र सोनी भी बहन के घर आ गया था. उस ने पुलिस औफिसरों को बताया कि उस ने भांजी काव्या का स्टेट्स देखा था, जिस में लिखा था-ये सब खत्म. बहन और बच्चों की फोटो लगी थी. इस के बाद उस ने सब को फोन लगाया, लेकिन किसी का फोन नहीं लगा. यहां आ कर पता चला कि बहन व बच्चों की हत्या हो गई है.

सत्येंद्र ने आरोप लगाया कि बहनोई मुकेश शराब पीता था. औरत उस की कमजोरी थी. बहनोई मुकेश ने ही प्लान के तहत उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. सहमति से हत्या/आत्महत्या की बात गलत है. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि दीपावली के 2 दिन पहले उस की बहन रेखा व बच्चे भिंड आए थे. तब रेखा ने न तनाव वाली बात बताई थी और न ही आर्थिक परेशानी की. वह हंसीखुशी से बच्चों के लिए पटाखे खरीद कर चली गई थी.

पूछताछ के बाद एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने दोपहर बाद 2 बजे पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मुकेश वर्मा को मीडिया के समक्ष पेश किया. पत्रकारों से रूबरू होते वक्त मुकेश को न कोई पछतावा था और न ही माथे पर कोई शिकन. साले सत्येंद्र ने भी मुकेश पर हत्या का आरोप लगाया था. अत: सिविल लाइंस थाने के एससएचओ विक्रम सिंह ने सत्येंद्र सोनी की तहरीर पर मुकेश वर्मा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. शाम 4 बजे उसे इटावा कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जेल भेजने के बाद अधर में क्यों अटका मामला

पुलिस ने मुकेश को जेल जरूर भेज दिया था, लेकिन सामूहिक हत्या आत्महत्या का मामला अब भी अधर में ही लटका हुआ था. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो मुकेश के एक और झूठ का खुलासा हो गया. पता चला कि मुकेश ने आत्महत्या करने का नाटक किया था. मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन उस के ऊपर से गुजरी ही नहीं थी. वह प्लेटफार्म नंबर 4 पर खड़ी मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन के इंजन के आगे लेट गया था. गाड़ी चलने के पहले ही चालक की नजर उस पर पड़ गई थी. चालक ने तब उसे जीआरपी के हवाले कर दिया था.

पुलिस की इस गुत्थी को सुलझाया मृतका रेखा की बहन राखी तथा उस के पति आशीष वर्मा ने, जो भोपाल से इटावा आए थे. आशीष वर्मा व राखी ने पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी दी. राखी ने बताया कि उस के बहनोई मुकेश वर्मा का कानपुर (बर्रा) की रहने वाली तलाकशुदा महिला स्वाति सोनी से नाजायज रिश्ता है. वह महिला मुकेश की पहली पत्नी नीतू की रिश्तेदार है. रिश्ते में वह मुकेश की साली लगती है.

इन नाजायज संबंधों की जानकारी रेखा को भी हो गई थी. वह इस का विरोध करती थी, जिस से घर में कलह होती थी. बहन ने उसे कई बार फोन पर यह जानकारी दी थी. करवाचौथ पर रेखा ने मुकेश के मोबाइल फोन में स्वाति की तसवीर देखी थी, तब खूब झगड़ा हुआ था. उस ने बताया कि अवैध संबंधों के चलते ही बहनोई मुकेश ने प्रीप्लान कर उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. हत्या के इस प्लान में स्वाति भी शामिल है. उस ने मुकेश को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है.

अवैध रिश्तों में हुई सामूहिक हत्या का पता चलते ही पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. उन्होंने जांच तेज कर दी. पुलिस को मुकेश के पास से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए थे. पुलिस ने उन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात 2 बजे से 5 बजे के बीच एक फोन नंबर सक्रिय था, जिस पर मुकेश ने कई बार बात की थी. इस नंबर पर पहले भी उस की बातें होती थीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नंबर स्वाति सोनी निवासी विश्व बैंक कालोनी बर्रा (कानपुर) के नाम दर्ज है.

एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने स्वाति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम भेजी. लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. पुलिस टीम तब खाली हाथ लौट आई. पुलिस ने उस की टोह में खबरियों को लगा दिया. इधर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह मुकेश के उस हस्तलिखित सुसाइड नोट की जांच कर रहे थे, जिसे मुकेश ने उन के वाट्सऐप पर भेजा था. जांच में यह बात सच निकली कि मुकेश के फुफेरे भाई मनोज वर्मा ने उस का लाखों रुपया हड़प लिया था. मांगने पर जलील करता था. झूठे मामले में फंसाने की धमकी देता था. इस के अलावा भाई अखिलेश ने भी उस के रुपए हड़प रखे थे. जांच पूरी होने के बाद सीओ (सिटी) ने उन की गिरफ्तारी का जाल बिछाया.

15 नवंबर, 2024 को सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह की टीम ने अखिलेश व मनोज वर्मा को बस स्टैंड इटावा से दबोच लिया. पूछताछ में दोनों ने गलत फंसाने का आरोप लगाया. लेकिन पुलिस ने उन की एक न सुनी और दोनों को आत्महत्या करने को मजबूर करने के जुर्म में जेल भेज दिया. 20 नवंबर, 2024 की दोपहर 12 बजे एसएचओ विक्रम सिंह चौहान को मुखबिर के जरिए जानकारी मिली कि मुकेश की प्रेमिका स्वाति इस समय अंबेडकर चौराहे के पास निर्माणाधीन रामनगर ओवरब्रिज के नीचे मौजूद है. वह कोर्ट में सरेंडर करने के लिए किसी वकील का वेट कर रही है.

चूंकि मुखबिर की इनफार्मेशन खास थी, इसलिए पुलिस टीम रामनगर ओवरब्रिज के नीचे पहुंची और घेराबंदी कर स्वाति को गिरफ्तार कर लिया. उसे थाना सिविल लाइंस लाया गया. उस की गिरफ्तारी की सूचना पर पुलिस अफसर भी थाने आ गए. पुलिस औफसरों ने स्वाति से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मुकेश वर्मा से उस का नाजायज रिश्ता था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विक्रम सिंह चौहान ने स्वाति सोनी के खिलाफ बीएनएस की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच, मुकेश व स्वाति के बयानों तथा अन्य सूत्रों के आधार पर इस सामूहिक हत्याकांड की सनसनीखेज कहानी सामने में आई.

बीवीबच्चों वाला मुकेश क्यों फंसा स्वाति के चक्कर में

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है— लालपुरा. इसी मोहल्ले में खुशीराम वर्मा सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चंद्रकला के अलावा 6 बेटे रत्नेश, राकेश, अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश थे. खुशीराम वर्मा सर्राफा व्यापारी थे. इस व्यवसाय में उन का बड़ा नाम था. उन्होंने अपना हुनर बेटों को ही नहीं, रिश्तेदारों को भी सिखाया था. वे सभी इसी व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे. खुशीराम वर्मा के बच्चे पढ़लिख कर जवान हुए तो सभी किसी न किसी व्यापार में रम गए. बेटे कमाने लगे तो उन्होंने एक के बाद एक सभी बेटों का विवाह कर दिया. 3 मंजिला घर में उन के 4 बेटे अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश वर्मा अपनेअपने परिवारों के साथ रहने लगे.

जबकि सब से बड़ा बेटा रत्नेश वर्मा, जोकि नोटरी वकील था, वह एआरटीओ औफिस के सामने नवविकसित कालोनी में परिवार सहित रहता था. उस से छोटा राकेश वर्मा सपरिवार गाड़ीपुरा मोहल्ले में रहता था. उस की वहीं स्थित चारा मार्केट में सर्राफा की दुकान तथा पालिका बाजार में कपड़े की दुकान थी.

खुशीराम वर्मा के चौथे नंबर का बेटा था— मुकेश. उस की शादी नीतू से हुई थी. शादी के एक साल बाद नीतू ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने भव्या रखा. भव्या 2 साल की थी, तभी उस की मम्मी नीतू का निधन हो गया. वह कैंसर से पीडि़त थी.

पत्नी की मौत के बाद मुकेश को बेटी के पालनपोषण की समस्या हुई तो उस ने सन 2006 में रेखा से दूसरी शादी कर ली. रेखा भिंड शहर कोतवाली के मोहल्ला झांसी की रहने वाली थी. उस के 2 भाई सत्येंद्र, रविंद्र तथा एक बहन राखी थी. दूसरी शादी के बाद मुकेश खुश था. रेखा ने एक बेटी काव्या व बेटे अभीष्ट को जन्म दिया. रेखा अब दोनों बेटियों व बेटे का पालनपोषण करने लगी. बच्चे कुछ बड़े हुए तो तीनों बच्चे ज्ञानस्थली स्कूल में पढऩे लगे. मुकेश वर्मा सर्राफा व्यापार का मंझा हुआ खिलाड़ी था. सर्राफा की दुकान पर उस का छोटा भाई रघुवेश बैठता था. मुकेश दिल्ली से सोनाचांदी के आभूषण लाता था और इटावा, औरैया, मैनपुरी के व्यापारियों को सप्लाई करता था. उस का बिजनैस कानपुर तक फैला था. इस व्यवसाय से उसे लाखों रुपए की कमाई होती थी.

वर्ष 2019 में मुकेश अपनी पत्नी रेखा के साथ मथुरा-वृंदावन घूमने गया. वहां एक होटल में उस की मुलाकात स्वाति सोनी से हुई. वह भी अपने पति अर्पण के साथ घूमने आई थी. वह भी उसी होटल में रुकी थी, जिस में मुकेश ठहरा था. दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो रिश्तेदारी खुल गई. स्वाति मुकेश की पहली पत्नी नीतू की मौसी की बेटी निकली. इस नाते मुकेश और स्वाति के बीच जीजासाली का रिश्ता बन गया.

गुपचुप शादी कर गोवा में मनाया हनीमून

स्वाति मुकेश के रहनसहन से प्रभावित हुई. लौटते समय दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. स्वाति सोनी, बर्रा (कानपुर) की रहने वाली थी. उस की शादी 2007 में जालौन के उरई कस्बा निवासी अर्पण से हुई थी. अर्पण प्राइवेट नौकरी करता था. उस की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. वह शराब का लती भी था. स्वाति उस से खुश नहीं थी. खर्चे पूरे न होने के कारण स्वाति और अर्पण के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था.

स्वाति पहली ही नजर में मुकेश के दिलोदिमाग पर छा गई थी, इसलिए वह उस की ससुराल जाने लगा. मोबाइल फोन पर भी दोनों की रसभरी बातें होने लगीं. जल्दी ही दोनों के बीच दूरियां कम हो गईं और उन के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. मुकेश ने स्वाति के पति अर्पण से भी दोस्ती कर ली और उस के साथ शराब की पार्टी करने लगा. लेकिन एक रोज भांडा फूट गया, जब अर्पण ने दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया. अर्पण ने स्वाति को जम कर पीटा. तब स्वाति रूठ कर मायके बर्रा कानपुर आ गई. साथ में बेटे को भी ले आई. बाद में पति अर्पण से उस का तलाक हो गया.

स्वाति मायके में आ कर रहने लगी तो मुकेश का वहां भी आनाजाना शुरू हो गया. मुकेश जब भी बिजनैस के सिलसिले में आता, स्वाति के घर पर ही रुकता. रात में उस के साथ रंगरलियां मनाता. मुकेश ने बर्रा में ही उसे ब्यूटीपार्लर खुलवाया ताकि वह कुछ पैसा कमा सके, लेकिन स्वाति ब्यूटीपार्लर चला नहीं पाई. कुछ समय बाद स्वाति के कहने पर मुकेश ने बर्रा की विश्व बैंक कालोनी में एक मकान खरीद लिया. इस मकान में स्वाति मालकिन बन कर रहने लगी. यही नहीं मुकेश ने खाड़ेपुर में स्वाति को सर्राफा की दुकान भी खुलवा दी. इस दुकान पर मुकेश भी बैठता था. पूछने वालों को स्वाति मुकेश को अपना पति बताती थी. मुकेश अब कईकई दिनों तक बर्रा में ही रुकने लगा था.

स्वाति बहुत चालाक थी. उस की नजर मुकेश की धनदौलत पर टिकी थी. इसलिए वह मुकेश को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. स्वाति मुकेश के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह उस के साथ शादी रचा कर जिंदगी भर तक साथ रहने का सपना देखने लगी थी. अपना सपना पूरा करने के लिए स्वाति ने मुकेश के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह राजी हो गया. मुकेश यह तक भूल गया कि वह शादीशुदा और 4 बच्चों का बाप है. मुकेश के राजी होने के बाद स्वाति ने उस के साथ मंदिर में विवाह कर लिया. फिर वह हनीमून के लिए मुकेश के साथ गोवा चली गई. वहां से सप्ताह भर बाद मौजमस्ती करने के बाद दोनों लौटे.

एक रोज रेखा ने पति के मोबाइल फोन में स्वाति की फोटो देखी तो उस का माथा ठनका. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है.

और अवैध संबंधों में स्वाहा हो गया परिवार

अपना घर उजड़ता देख कर रेखा ने विरोध शुरू किया, जिस से दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. लेकिन विरोध के बावजूद मुकेश नहीं माना. धीरेधीरे दोनों के बीच नफरत बढ़ती गई.

वर्ष 2021 में मुकेश के छोटे भाई रघुवेश की बीमारी के चलते मौत हो गई. उस के बाद मुकेश ने गल्ला मंडी वाली दुकान 16 लाख रुपए में बेच दी. दुकान बेचने का रेखा ने भरपूर विरोध किया था, लेकिन मुकेश नहीं माना. दुकान बेचने से मिले 16 लाख रुपयों में से 3 लाख रुपया स्वाति ने लटकेझटके दिखा कर ले लिए तथा 10 लाख रुपए उस ने सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा को दे दिया. उस ने चांदी रिफाइनरी का काम शुरू किया था और आधा लाभ देने का वादा किया था. बाद में वह अपने प्रौमिस से मुकर गया.

अब तक मुकेश के बच्चे भी बड़े हो गए थे. बड़ी बेटी भव्या 18 साल की उम्र पार कर चुकी थी. उस ने स्थानीय ज्ञानस्थली स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर दिल्ली यूनिवर्सिटी के रानी लक्ष्मीबाई कालेज में बीकौम (प्रथम वर्ष) में प्रवेश ले लिया था. 17 वर्षीय काव्या 11वीं कक्षा में तथा 13 वर्षीय अभीष्ट 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. तीनों बच्चे होनहार थे. मन लगा कर पढ़ाई कर रहे थे.

रेखा की छोटी बहन राखी भोपाल निवासी आशीष वर्मा को ब्याही थी. रेखा जब परेशान होती थी, तब वह राखी से मोबाइल फोन पर बात करती थी और अपना दर्द बयां करती थी. उस ने राखी को बताया था कि उस के बहनोई के कानपुर की एक तलाकशुदा महिला से नाजायज संबंध है. उस के कारण घर में कलह होती है. दुकान बेचने की जानकारी भी उस ने राखी को दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश वर्मा की उलझन भी बढ़ती जा रही थी, जिस के कारण उस का व्यापार में भी मन नहीं लगता था. उस का दिन का चैन छिन गया था और रात की नींद हराम हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्या न करे. इसी उलझन मेें उस ने 7 नवंबर को स्वाति के घर का रुख किया. मुकेश और स्वाति ने कान से कान जोड़ कर पूरा प्लान बना लिया. मुकेश ने पत्नी और बच्चों को मारने का प्लान बना लिया. यही नहीं, पुलिस से बचने के लिए मुकेश ने पूरी योजना भी बना ली.

फिर प्लान के तहत ही मुकेश ने 10 नवंबर की रात पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी और स्वयं आत्महत्या करने का नाटक रचा. 21 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी स्वाति सोनी को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मुकेश को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

True Crime Stories : कोल्ड ड्रिंक पिलाकर की पांच लोगों की हत्या

True Crime Stories : पुलिस अधिकारियों को बरामदे में ही 2 महिलाएं घायल पड़ी दिखाई दीं. पूछने पर सुभाष ने बताया कि एक महिला उस की बहू डौली है तथा दूसरी रिश्तेदार सुषमा है. पुलिस अधिकारियों ने इन दोनों को इलाज हेतु सैफई अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारी आंगन में पहुंचे तो वहां 3 लाशें पड़ी थीं. इन की हत्या गला काट कर बड़ी बेरहमी से की गई थी. आंगन में खून ही खून फैला था.

पूछने पर सुभाष ने बताया कि एक लाश उस के छोटे बेटे अभिषेक उर्फ भुल्लन (20 वर्ष) की है, जबकि दूसरी लाश दामाद सौरभ (26 वर्ष) की है. तीसरी लाश बेटे के दोस्त दीपक (21 वर्ष) की है.

Bhullan (Mratak)               Sonu (Mratak)

     अभिषेक उर्फ भुल्लन                                 मृतक सोनू

लाश के पास ही खून सना फरसा पड़ा था. शायद उसी फरसे से उन का कत्ल किया गया था, इसलिए फरसे को पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

एसपी विनोद कुमार सहयोगियों के साथ आंगन से जीने के रास्ते छत पर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर वह चौंक गए. कमरे के अंदर सुभाष के बेटे सोनू व उस की नई नवेली दुलहन True Crime Stories सोनी की लाश पड़ी थी. उन दोनों के हाथ की मेहंदी व पैरों की महावर अभी छूटी भी न थी कि उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया था. उन दोनों की हत्या भी गला काट कर ही की गई थी. सोनू की उम्र 23 साल के आसपास थी, जबकि सोनी की उम्र 20 वर्ष थी.

निरीक्षण करते हुए एसपी विनोद कुमार जब मकान के पिछवाड़े पहुंचे तो वहां एक और युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि वह लाश सुभाष के बड़े बेटे शिववीर (Shivvir) की है.

पता चला कि शिववीर ने ही पूरे परिवार का कत्ल किया था, फिर पकड़े जाने के डर से खुदकुशी कर ली थी. शिववीर की उम्र 28 साल के आसपास थी.

शिववीर के शव के पास ही एक तमंचा पड़ा था. इसी तमंचे से गोली मार कर उस ने खुदकुशी की थी. पुलिस ने तमंचे को सुरक्षित कर लिया. पुलिस ने शिववीर की तलाशी ली तो उस की जेब से मिर्च स्प्रे तथा नींद की गोलियों के 2 खाली पत्ते मिले. पुलिस ने इसे भी सुरक्षित कर लिया.

इस के अलावा पुलिस ने कमरे से कुल्हाड़ी व फावड़ा भी कब्जे में लिया, जिस से शिववीर ने पत्नी, भाभी व पिता पर हमला किया था.  यह बात 24 जून, 2023 की है.

शिववीर ने घर के 5 जनों को क्यों काटा

यह वीभत्स घटना उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मैनपुरी (Mainpuri) जिले के किशनी थाने के गांव गोकुलपुरा अरसारा में बीती रात घटित हुई थी. सामूहिक नरसंहार (Mainpuri Mass Murder Case) की खबर थाना किशनी पुलिस को मिली तो पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया.

पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल की तरफ रवाना हो लिए. कुछ ही देर में एसएचओ अनिल कुमार, एसपी विनोद कुमार, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ चंद्रशेखर सिंह घटनास्थल पर आ गए.

सुभाष के दरवाजे पर अब तक भारी भीड़ जुट चुकी थी. ग्रामीणों की इतनी भीड़ देख कर पुलिस अधिकारी भी हैरान रह गए. उन्हें लगा कि असामाजिक तत्त्व भीड़ को गुमराह कर कहीं कोई बवाल खड़ा न कर दें. इसलिए उन्होंने अतिरिक्त फोर्स मंगा कर गोकुलपुरा गांव में तैनात करा दी.

सामूहिक हत्याकांड (Mainpuri Mass Murder) की खबर सुन कर अब तक सुभाष यादव के घर पर रिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया था. जब भी कोई खास रिश्तेदार आता, महिलाओं का करुण रुदन कलेजा चीरने लगता. माहौल उस समय तो बेहद गमगीन हो उठा, जब नईनवेली दुलहन True Crime Stories मृतका सोनी के मम्मीपापा के साथ सैकड़ों लोग आ गए.

वेदराम व उन की पत्नी सुषमा बेटी दामाद का शव देख कर बिलख पड़े. उन का करुण रुदन इतना द्रवित कर देने वाला था कि वहां मौजूद शायद ही कोई ऐसा हो, जिस की आंखों में आंसू न आए हों. पुलिसकर्मी तक अपने आंसू न रोक सके.

Deepak (Mratak)                  Saurabh (Mratak)

मृतक दीपक                                              मृतक सौरभ

मृतक दीपक के मम्मीपापा भी फिरोजाबाद से आ गए थे. वह भी बेटे की लाश के पास सुबक रहे थे. प्रियंका भी पति सौरभ की लाश के पास बिलख रही थी. उस की मम्मी शारदा देवी उसे ढांढस बंधा रही थी. यह बात दीगर थी कि उन की आंखों से भी लगातार आंसू बह रहे थे. क्योंकि उन की आंखों के सामने ही बेटे, बहू और दामाद की लाश पड़ी थी.

पुलिस अधिकारियों ने संवेदना व्यक्त करते हुए किसी तरह समझाबुझा कर मृतकों के घर वालों को शवों से अलग किया, फिर पंचनामा भरवा कर मृतक सोनू, भुल्लन, दीपक, सौरभ, शिववीर तथा सोनी के शवों को पोस्टमार्टम के लिए मैनपुरी के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद एसपी विनोद कुमार ने घर के मुखिया सुभाष यादव से घटना के बारे में जानकारी जुटाई. सुभाष यादव ने बताया कि यह खूनी खेल उस के बड़े बेटे शिववीर ने ही खेला है. 22 जून को उस के मंझले बेटे सोनू की शादी थी. बारात गंगापुरा (इटावा) गई थी. 23 जून को दोपहर बाद बारात वापस आई. घर में बहू की मुंहदिखाई व अन्य रस्में पूरी हुईं. खूब गाना बजाना हुआ.

रात 12 बजे तक डीजे पर सब नाचतेझूमते रहे. शिववीर भी जश्न में शामिल रहा. लेकिन उस के मन में क्या चल रहा है, हम लोग भांप नहीं पाए. रात के अंतिम पहर में इस क्रूर हत्यारे ने हमला कर 5 जनों को काट कर मौत की नींद सुला दिया. शायद उस का इरादा सभी को खत्म करने का था, लेकिन पत्नी बेटी सहित वह बच गए.

Ghar Ke Mukhiya Se Puch-Tach Karte S.P. Vinod Kumar

घर के मुखिया सुभाषचंद यादव से बातचीत करते हुए एसपी विनोद कुमार

एसपी विनोद कुमार ने गोकुलपुरा अरसारा गांव में डेरा जमा लिया था. शवों के अंतिम संस्कार तक वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. देर शाम एडीजी राजीव कृष्ण व आईजी दीपक कुमार गोकुलपुरा पहुंचे और उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण कर घर के मुखिया सुभाषचंद यादव से बातचीत की. उन्होंने एसपी विनोद कुमार से भी घटना से संबंधित जानकारी हासिल की तथा कुछ आवश्यक निर्देश दिए.

मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम वीडियोग्राफी के साथ 3 डाक्टरों के पैनल ने किया. वहां क्षेत्रीय विधायक बृजेश कठेरिया मृतकों के परिजनों के साथ रहे और उन्हे धैर्य बंधाते रहे.

पोस्टमार्टम के बाद शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. पुलिस व्यवस्था के साथ दीपक का शव फिरोजाबाद तथा सौरभ का शव उस के गांव चांद हविलिया (किशनी) भेज दिया गया. 3 बेटों सोनू, भुल्लन व शिववीर का दाह संस्कार सुभाष ने किया.

इधर वेदराम यादव अपनी बेटी सोनी का शव ले कर अपने गांव गंगापुरा पहुंचे तो माहौल बेहद गमगीन हो गया. लाडली बेटी का शव देखने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा. हर आंख में आंसू थे.

दर्द इस बात का था कि जिस बेटी को पूरे गांव ने हंसी खुशी से ससुराल भेजा था, उस का कफन में लिपटा शव गांव आया था. पूर्व दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री रामसेवक यादव भी बेहद दुखी थे. क्योंकि लाडली बेटी सोनी उन के गांव व परिवार की थी. वेदराम को ढांढस बंधाते वह स्वयं भी रो रहे थे.

Ghatna Sthal Par Pahuchi Sansad Dimple Yadav

घटनास्थल पर पहुंची डिंपल यादव

सामूहिक नरसंहार से राजनीतिक गलियारों में भी हलचल शुरू हो गई थी. चूंकि मामला यादव परिवार से जुड़ा था और डिंपल यादव भी मैनपुरी से सांसद हैं, इसलिए वह दूसरे रोज ही गोकुलपुरा गांव जा पहुंचीं.

पर्यटन राज्यमंत्री जयवीर सिंह ने भी सामूहिक नरसंहार (Mainpuri Mass Killing) पर गहरा दुख व्यक्त किया. शिववीर ने अपने सगे भाइयों की हत्या क्यों की? परिवार के प्रति उस के मन में ईष्र्या, द्वेष और नफरत की भावना क्यों पनपी? वह क्या हासिल करना चाहता था? यह सब जानने के लिए हमें उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि को समझना होगा.

 

UP Crime : 30 करोड़ के लिए पत्नी बनी पति की कातिल

UP Crime :  उर्मिला ने शैलेंद्र को रिझाने के जतन शुरू कर दिए. कभी वह उसे तिरछी नजरों से देख कर मुसकराती तो कभी शरमाने का अभिनय करती. शैलेंद्र पहले से ही उसे हसरत भरी निगाहों से देखता था. उर्मिला ने मुसकरा कर उसे देखना शुरू किया तो उस की हसरतें उफान मारने लगीं. जब उर्मिला के कामुक बाणों का शैलेंद्र पर प्रभाव हुआ तो वह एक कदम आगे बढ़ी. यही नहीं, अब वह निर्माणाधीन मकान देखने भी जाने लगी. वहां दोनों खुल कर बतियाते और हंसीमजाक भी करते. शैलेंद्र समझ गया कि उर्मिला उस की बांहों में समाने को बेताब है.

एक दिन उस ने साहस दिखाते हुए उर्मिला को बाहुपाश में जकड़ लिया, ”भाभी, बहुत ललचा चुकी हो,  आज मर्यादा टूट जाने दो.’’

”तोड़ दो,’’ उम्मीद के विपरीत उर्मिला शैलेंद्र की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ”मैं भी यही चाहती हूं.’’

राजेश गौतम स्कूल गया था और दोनों बेटे पढऩे के लिए स्कूल जा चुके थे. सुनहरा मौका देख कर शैलेंद्र उर्मिला को बैड पर ले गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

4 नवंबर, 2023 की सुबह 7 बजे किसी परिचित ने कानपुर के अनिगवां निवासी ब्रह्मदीन गौतम को फोन पर सूचना दी कि उन का शिक्षक भाई राजेश गौतम स्वर्ण जयंती विहार स्थित पार्क के पास सड़क पर घायल पड़ा है. उस का एक्सीडेंट हुआ है. किसी तेज रफ्तार कार ने उसे कुचल (UP Crime) दिया है. यह जानकारी मिलते ही ब्रह्मदीन ने अपने बेटे कुलदीप को साथ लिया और स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए. वहां पार्क के पास राजेश सड़क पर औंधे मुंह पड़ा था.

उस के सिर से खून बह रहा था. थोड़ी ही देर में घर के अन्य लोगों के साथ राजेश की पत्नी उर्मिला भी वहां पहुंच गई. पति की हालत देख कर उर्मिला की चीख निकल गई. ब्रह्मदीन व महेश भी भाई की हालत देख कर हैरान रह गए थे. कुलदीप तो समझ ही नहीं पा रहा था कि चाचा हर रोज मार्निंग वाक पर इसी सड़क पर आते थे, लेकिन आज इतना खतरनाक एक्सीडेंट कैसे हो गया. राजेश को हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. लेकिन सांस की आस में राजेश को कांशीराम अस्पताल ले जाया गया, जहां के डाक्टरों ने उसे रीजेंसी ले जाने को कहा. इसी बीच किसी ने राजेश के (UP Crimes) एक्सीडेंट की सूचना थाना सेन पश्चिम पारा पुलिस को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एसएचओ पवन कुमार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ कांशीराम अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अनुसार राजेश की सांसें थम चुकी थीं, लेकिन घर वालों की जिद की वजह से पुलिस उसे पहले रीजेंसी फिर जिला अस्पताल हैलट ले गई. वहां के डाक्टरों ने भी राजेश गौतम को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया और घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद एसएचओ पवन कुमार दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. सुबह की सैर करने वाले कई लोग भी वहां मौजूद थे. उन में से एक कमल गौतम ने बताया कि राजेश गौतम से वह परिचित था. वह हर रोज मार्निंग वाक पर आते थे.

आज सुबह साढ़े 6 बजे के लगभग वह सड़क पर तेज कदमों से टहल रहे थे, तभी एक कार उन के नजदीक से पास हुई. फिर उसी कार ने कुछ दूरी पर जा कर यू टर्न लिया और तेज रफ्तार से आ कर राजेश को टक्कर मार दी. राजेश उछल कर दूर जा गिरे. एसएचओ पवन कुमार घटनास्थल पर जांच कर ही रहे थे, तभी एसीपी (घाटमपुर) दिनेश कुमार शुक्ला तथा एडीसीपी अंकिता शर्मा भी वहां पहुंच गईं. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

अंतिम संस्कार के बाद मृतक का भाई ब्रह्मदीन, महेश तथा भतीजा कुलदीप, उर्मिला के घर में ही रात को रुक गए. रात में राजेश की मौत पर चर्चा शुरू हुई तो कुलदीप बोला, ”उर्मिला चाची, हमें लगता है कि चाचा को सोचीसमझी रणनीति के तहत मौत के घाट उतारा गया है और दुर्घटना का रूप दिया गया है. लगता है कि चाचा से कोई खुन्नस खाए बैठा था.’’

”कुलदीप, ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम सब लोग मेरे घर पर फालतू की बकवास मत करो और मेरा दिमाग खराब न करो. अच्छा होगा, तुम सब हमारे घर से चले जाओ.’’

घर वालों को उर्मिला पर क्यों हुआ शक

उर्मिला का व्यवहार देख कर कुलदीप ने उर्मिला से बहस नहीं की और अपने पिता व परिवार के अन्य लोगों के साथ वापस घर लौट आया.

इधर तमतमाई उर्मिला सुबह 10 बजे ही एडीसीपी कार्यालय जा पहुंची. उस ने एडीसीपी अंकिता शर्मा को एक तहरीर देते हुए कहा कि उसे शक है कि पति के भतीजे कुलदीप व उस के घर वालों ने पति की करोड़ों की प्रौपर्टी हड़पने के लिए दुर्घटना का रूप दे कर उन की (UP Crimes ) हत्या की है.

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एडीसीपी अंकिता शर्मा

इधर कुलदीप को जब पता चला कि उर्मिला चाची ने उस के व घर वालों के खिलाफ शिकायत की है तो कुलदीप एडीसीपी अंकिता शर्मा से मिला और बताया कि वह नेवी में कार्यरत है. उसे शक है कि उस के चाचा राजेश की मौत किसी षड्यंत्र के तहत हुई है. वह चाहता है कि इस की गंभीरता से जांच हो. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाली. इस से पता चला कि राजेश को कुचलने के बाद कार बेकाबू हो कर खंभे से टकराई तो कार चालक पीछे आ रही दूसरी वैगन आर कार में सवार हो कर भाग गया था.

इन सबूतों को देख कर एडीसीपी अंकिता शर्मा ने एसीपी दिनेश शुक्ला की देखरेख में एक जांच टीम भी गठित कर दी. टीम में 2 महिला सिपाही व एक तेजतर्रार महिला एसआई को भी शामिल किया गया.

पुलिस कैसे पहुंची आरोपियों तक

ईको स्पोर्ट कार, जिस से राजेश को टक्कर मारी गई थी, का पता लगाया तो वह कार आवास विकास 3 कल्याणपुर, कानपुर निवासी सुमित कठेरिया की निकली. वैगनआर कार के नंबर की जांच करने पर पता चला कि यह नंबर फरजी है. यह नंबर किसी लोडर का था. अब पुलिस का शक और गहरा गया.

जांच में पुलिस टीम को 12 संदिग्ध मोबाइल नंबर मिले थे, उन में एक नंबर मृतक राजेश की पत्नी उर्मिला का भी था. पुलिस ने जब उर्मिला के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस ने एक फोन नंबर पर महीने भर में 400 बार काल्स की थीं. घटना वाले दिन भी उस की इस नंबर पर कई बार बातें हुई थीं. पुलिस ने इस नंबर की जांचपड़ताल की तो पता चला कि यह नंबर शैलेंद्र सोनकर का है.

पुलिस ने शैलेंद्र सोनकर के बारे में मृतक के घर वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि शैलेंद्र सोनकर आर्किटेक्ट इंजीनियर है. उसी ने राजेश के कोयला नगर वाले मकान को बनाने का ठेका लिया था. मकान बनवाने के दौरान ही शैलेंद्र का उर्मिला के घर आनाजाना शुरू हुआ और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं.

पुलिस जांच से अब तक यह साफ हो चुका था कि उर्मिला और ठेकेदार इंजीनियर शैलेंद्र के बीच कोई चक्कर है. पुलिस ने अब हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. पुलिस टीम ने विकास सोनकर, शैलेंद्र सोनकर व सुमित कठेरिया को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घरों से फरार थे.

29 नवंबर, 2023 की शाम 5 बजे एसएचओ पवन कुमार को मुखबिर के जरिए पता चला कि उर्मिला व उस के साथी इस समय कोयला नगर स्थित गणेश चौराहे पर मौजूद हैं. शायद वे शहर से फरार होने की फिराक में हैं. चूंकि सूचना खास थी, अत: एसएचओ पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और उर्मिला को उस के 2 साथियों के साथ हिरासत में ले लिया. लेकिन सुमित कठेरिया वहां से फरार हो गया था. तीनों को थाने लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो  तीनों ने राजेश की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.

चूंकि तीनों हत्यारोपियों ने शिक्षक राजेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, इसलिए मृतक के बड़े भाई ब्रह्मदीन की तरफ से शैलेंद्र सोनकर, विकास, सुमित कठेरिया तथा उर्मिला गौतम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और सुमित के अलावा तीनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. सुमित कठेरिया की तलाश में पुलिस जी जान से जुट गई.

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पुलिस कस्टडी में आरोपी

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों एवं मृतक के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस वारदात के पीछे औरत और जुर्म की एक ऐसी कहानी सामने आई, जिस ने प्यार और प्रौपर्टी के लालच में अपने ही सुहाग की सुपारी दे दी.

उर्मिला की शादी की अजीब थी कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के चकेरी थाने के अंतर्गत आता है- दहेली सुजानपुर. 2 दशक पहले दहेली सुजानपुर गांव था और यहां खेती होती थी. लेकिन जैसे जैसे शहर का विकास हुआ, यह गांव शहर की परिधि में आ गया. कानपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन अधिग्रहण कर कालोनियां बनाईं और लोगों को बसाया. प्रौपर्टी डीलरों ने भी प्लौट काट कर बेचे तथा फ्लैट भी बनाए. सालों पहले जो जमीन कौडिय़ों के दाम बिकती थी, वही जमीन अब लाखोंकरोड़ों की हो गई है.

इसी दहेली सुजानपुर में राजाराम गौतम रहते थे. उन के 3 बेटे ब्रह्मïादीन, राजेश व महेश थे. राजाराम के पास 20 एकड़ जमीन थी. उन्होंने अपने जीते जी मकान व जमीन का बंटवारा तीनों बेटों में कर दिया था. हर बेटे के हिस्से में करोड़ों की जमीन आई थी. उन के 2 बेटे ब्रह्मदीन व महेश, सनिगवां में मकान बना कर परिवार सहित रहने लगे थे. बड़ा बेटा ब्रह्मदीन एमईएस चकेरी में नौकरी करता था. ब्रह्मादीन के बेटे कुलदीप का इंडियन नेवी में चयन हो गया था.

राजेश गौतम 3 भाइयों में मंझला था. वह अन्य भाइयों से ज्यादा तेजतर्रार था. वह दहेली सुजानपुर में ही रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 2 बेटे थे. वह सरसौल ब्लाक के सुभौली गांव स्थित प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक था. राजेश दबंग शिक्षक था.

वर्ष 2012 में राजेश का विवाह खूबसूरत उर्मिला के साथ बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ था. दरअसल, राजेश अपने दोस्त विमल के लिए उर्मिला को देखने उस के साथ बनारस गया था. विमल ने तो उर्मिला को देखते ही पसंद कर लिया था, लेकिन उर्मिला ने विमल को यह कह कर नकार दिया था कि विमल गंजा है. वहीं उस ने राजेश को पसंद कर लिया था.

बनारस से लौटने के बाद उर्मिला और राजेश के बीच मोबाइल फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. 2-3 महीने बाद उर्मिला ने अपने घर वालों को और राजेश ने भी अपने घर वालों से एकदूसरे से शादी कराने की बात कही तो घर वालों ने भी इजाजत दे दी. उस के बाद 17 जून, 2012 को उर्मिला का विवाह राजेश के साथ धूमधाम से हो गया.

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राजेश गौतम और उर्मिला

खूबसूरत उर्मिला को पा कर राजेश गौतम अपने भाग्य पर इतरा उठा था. उर्मिला भी उस से शादी कर के खुश थी. उर्मिला ने आते ही घर संभाल लिया था और पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. शादी के एक साल बाद उर्मिला ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से घर में खुशियां दोगुनी हो गईं. इस के 2 साल बाद उर्मिला ने एक और बेटे को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद राजेश ने पत्नी की इच्छाओं पर गौर करना कम कर दिया. क्योंकि उस ने नौकरी के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था.

पति की बेरुखी पर उर्मिला रात भर बेचैन रहती. उसे घर में सब सुख था, किसी चीज की कमी न थी, लेकिन पति के प्यार से वंचित थी. इस तरह उर्मिला नीरस जिंदगी गुजारने लगी. उस ने दोनों का एडमिशन कोयला नगर स्थित मदर टेरेसा स्कूल में करा दिया. राजेश गौतम ने प्रौपर्टी डीलिंग में करोड़ों रुपए कमाए. साथ ही कोयला नगर क्षेत्र में ही उस ने 5-6 प्लौट भी खरीद लिए, जिन की कीमत करोड़ों रुपए थी. राजेश कमाई में इतना व्यस्त हो गया कि पत्नी की भावनाओं की कद्र करना ही भूल गया.

30 करोड़ की संपत्ति थी राजेश के पास

वह सुबह उठता, पहले टहलने जाता, फिर तैयार होकर स्कूल चला जाता. दोपहर बाद स्कूल से आता, फिर प्रौपर्टी के काम में व्यस्त हो जाता. इस के बाद देर रात आता और खाना खा कर सो जाता. यही उस का रुटीन था. राजेश गौतम की तमन्ना थी कि वह कोयला नगर में एक ऐसा आलीशान मकान बनाए, जिस की चर्चा क्षेत्र में हो. अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए उस ने 300 वर्गगज वाले अपने प्लौट पर मकान बनाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने 6 करोड़ रुपए का इंतजाम भी कर लिया.

राजेश ने मकान का ठेका अपने दोस्त हेमंत सोनकर के रिश्तेदार इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर को दे दिया. ठेका मिलने के बाद शैलेंद्र ने राजेश के घर आनाजाना शुरू कर दिया. इसी आनेजाने में शैलेंद्र सोनकर की नजर राजेश की खूबसूरत पत्नी उर्मिला पर पड़ी. पहली ही नजर में उर्मिला उस के दिलो दिमाग में रचबस गई. उर्मिला भी जवान और हैंडसम शैलेंद्र को देख कर प्रभावित हुई.

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इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर

उर्मिला देह सुख से वंचित थी, इसलिए उस का मन बहकने लगा. जब औरत का मन बहकता है तो उसे पतित होने में देर नहीं लगती. इस के बाद उर्मिला की आंखों के सामने शैलेंद्र की तसवीर घूमने लगी. वैसे भी उर्मिला ने महसूस किया था कि वह जब भी घर आता है, उस की मोहक नजरें हमेशा ही उस से कुछ मांगती सी प्रतीत होती हैं. दोनों के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. फिर जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

आखिर क्यों बहकी उर्मिला

कुछ समय बाद उर्मिला शैलेंद्र की इस कदर दीवानी हो गई कि वह अपने निर्माणाधीन मकान पर भी जाने लगी. मौका निकाल कर वह वहां भी शैलेंद्र के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

विवाहित और 2 बच्चों की मां उर्मिला ने पति से विश्वासघात कर शैलेंद्र के साथ अवैध संबंध तो बना लिए थे, लेकिन उस वक्त उस ने यह नहीं सोचा था कि इस का अंजाम क्या होगा. 2 नावों पर पैर रखना हमेशा नुकसानदायक ही होता है. हुआ यह कि मार्च 2023 की एक दोपहर राजेश अचानक स्कूल से घर वापस आ गया और उस ने उर्मिला व शैलेंद्र को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. फिर तो राजेश का खून खौल उठा. शैलेंद्र फुरती से भाग गया. तब उस ने उर्मिला की जम कर पिटाई की.

बाद में उस ने शैलेंद्र को खूब फटकार लगाई. उर्मिला की अनैतिकता को ले कर कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह उर्मिला को जानवरों की तरह पीटता. एक दिन तो हद ही हो गई. राजेश की पिटाई से आहत हो कर उर्मिला नग्नावस्था में ही घर के बाहर आ गई थी. अड़ोसपड़ोस तथा परिवार के लोग उर्मिला की अनैतिकता से वाकिफ थे, इसलिए किसी ने भी उस का पक्ष नहीं लिया. पति की पिटाई से उर्मिला राजेश से नफरत करने लगी थी. इसी नफरत के चलते उस ने एक रोज राजेश को खाने में जहर दे दिया. उस की तबीयत बिगड़ी तो घर वालों ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस का 2 सप्ताह इलाज चला. तब जा कर वह ठीक हुआ.

उर्मिला अपने आशिक शैलेंद्र को भी पति के खिलाफ उकसाती थी. वह वीडियो काल कर उसे अपने शरीर के जख्म दिखाते हुए ताने देती थी कि यह जख्म तुम्हारे प्यार की निशानी के तौर पर दिए गए हैं. उर्मिला के शरीर पर जख्म देख कर शैलेंद्र का गुस्सा फट पड़ता था.

पति की हत्या क्यों कराना चाहती थी उर्मिला

एक दिन उर्मिला ने शैलेंद्र से कहा, ”मैं अब अपने पति से छुटकारा चाहती हूं. वह हम दोनों के मिलन में बाधा बना है. प्रताडि़त भी करता है. तुम इस कांटे को हमेशा के लिए दूर कर दो. राजेश के पास 3 करोड़ का जीवन बीमा और 20 करोड़ की अचल संपत्ति तथा यह 6 करोड़ का आलीशान मकान है. उस के मरने के बाद यह सब हमारा होगा. मैं तुम से ब्याह कर लूंगी. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे. उस की सरकारी नौकरी भी मुझे मिल जाएगी.’’

शैलेंद्र सोनकर का ममेरा भाई विकास सोनकर शास्त्री नगर में रहता था. वह ड्राइवर था. उस ने अपनी मंशा उसे बताई तो विकास ने शैलेंद्र को अपने साथी ड्राइवर सुमित कठेरिया से मिलवाया, जो आवास विकास-3 कल्याणपुर में रहता था. सुमित ने शैलेंद्र को एक ट्रक ड्राइवर से मिलवाया. ट्रक ड्राइवर ने राजेश को ट्रक से कुचल कर मारने का वादा किया और 2 लाख में हत्या की सुपारी ली. इस के बाद उर्मिला ने रुपयों का इंतजाम किया और डेढ़ लाख रुपए ड्राइवर को दे दिए, लेकिन उस ट्रक ड्राइवर ने काम तमाम नहीं किया और डेढ़ लाख रुपया ले कर फरार हो गया.

उस के बाद सुमित कठेरिया ने विकास के साथ मिल कर राजेश की हत्या की सुपारी 4 लाख में ली. उर्मिला और शैलेंद्र हर हाल में राजेश को मौत (New Year 2025 Crimes ) के घाट उतारना चाहते थे, अत: उन्होंने रकम मंजूर कर ली. इस के बाद उर्मिला, शैलेंद्र, सुमित व विकास ने राजेश को कुचल कर मारने की पूरी योजना बनाई. 4 नवंबर, 2023 की सुबह 6 बजे राजेश गौतम मार्निंग वाक पर निकला, तभी उस की पत्नी उर्मिला ने शैलेंद्र को फोन पर सूचना दे दी. सूचना पा कर सुमित कठेरिया अपनी ईको स्पोर्ट कार से तथा शैलेंद्र विकास के साथ अपनी वैगनआर कार से स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए.

उन लोगों ने पहले रेकी की, फिर राजेश की पहचान कर सुमित कठेरिया ने अपनी ईको स्पोर्ट कार से राजेश को जोरदार टक्कर मारी. राजेश टकरा कर करीब 20 मीटर दूर जा गिरा और तड़पने लगा. टक्कर मारने के बाद भागते समय सुमित की कार बिजली के खंभे से टकरा गई और उस का टायर फट गया. तब सुमित अपनी कार वहीं छोड़ कर कुछ दूरी बनाए खड़ी शैलेंद्र की वैगनआर कार के पास पहुंचा और उस में बैठ कर शैलेंद्र के साथ फरार हो गया.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 30 नवंबर, 2023 को आरोपी उर्मिला गौतम, शैलेंद्र सोनकर तथा विकास सोनकर को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी सुमित कठेरिया ने भी बाद में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

राजेश के दोनों बेटे अपने ताऊ ब्रह्मदीन के पास रह रहे थे. ताऊ ने दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ली है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story : 23 साल बाद मिला साधु के वेश में कातिल प्रेमी

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

मंगेतर के इश्क में हुई मौत

17 अप्रैल, 2023 को रोशनी का डिजिटल मार्केटिंग का पेपर था. वह जालौन जिले के एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल डिग्री कालेज में बीए (द्वितीय वर्ष) की छात्रा थी. इसी कालेज में उस की बड़ी बहन शीलम भी पढ़ती थी. वह बीए फाइनल में थी. उस का हिंदी साहित्य का पेपर था. सुबह 8 बजे उन दोनों को उन का भाई श्रीचंद्र अपनी बाइक से कालेज गेट पर छोड़ कर चला गया था.

लगभग साढ़े 10 बजे रोशनी और शीलम परीक्षा दे कर कालेज से निकलीं. हाथों में प्रवेश पत्र थामे दोनों बहनें अपने घर की तरफ चल दीं. चलतेचलते दोनों आपस में बातचीत भी करती जा रही थी. जैसे ही वे कोटरा तिराहे की ओर बढ़ीं, तभी रोशनी एकाएक ठिठक कर रुक गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर देखा. पीछे एक बजाज पल्सर बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई. क्योंकि वह बाइक पर पीछे की सीट पर बैठे युवक को जानती थी. रोशनी ने तुरंत अपनी बड़ी बहन शीलम का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ”जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

शीलम ने रोशनी को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा मामला समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

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चेहरे पर हलकी दाढ़ी और सख्त चेहरे वाला युवक राज उर्फ आतिश था, जो रोशनी का मंगेतर था, पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. राज व उस के साथी को देख कर दोनों बहनों की चाल में लडख़ड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर रोशनी ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही राज बाइक से उतर कर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए रोशनी का गला दबोच लिया. गले पर कसते सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए रोशनी ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, राज ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रोशनी के सिर पर सटा कर फायर कर दिया.

गोली लगते ही रोशनी चीखी और सड़क पर बिछ गई. उस के सिर से खून की धार बह निकली. कुछ देर छटपटाने के बाद रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. बदहवास शीलम ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. इसी बीच कुछ लोगों को आते देख कर राज डर गया. हड़बड़ाहट में वह भागा तो उस का तमंचा हाथ से छूट गया. वह बिना तमंचा उठाए ही अपने साथी के साथ बाइक पर सवार हो कर फरार हो गया.

हत्यारे फरार हो गए, तब शीलम जोरजोर से चीखने लगी. उस ने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन सभी ने मुंह फेर लिया. उस के बाद उस ने हिम्मत जुटा कर मोबाइल फोन से अपने घर वालों को जानकारी दी.

सामने हुई हत्या तमाशबीन क्यों रहे लोग

रोशनी की हत्या की खबर सुनने के बाद घर में कोहराम मच गया. कुछ ही देर बाद मृतका के मम्मीपापा, भाई व परिवार के अन्य लोग वहां पहुंच गए और खून से लथपथ रोशनी की लाश देख कर दहाड़ मार कर रोने लगे.

रोशनी की हत्या दिनदहाड़े कस्बे के कोटरा तिराहे के भीड़ भरे बाजार में की गई थी, लेकिन हत्यारों का सामना करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा सका था. दुकानदार तो इतने दहशत में आ गए थे कि वे अपनी दुकानों के शटर गिरा कर तमाशबीन बन गए थे.

दरअसल, दहशत इसलिए थी कि एक दिन पहले ही कुख्यात माफिया अतीक व उस के भाई की हत्या प्रयागराज में गोली मार कर की गई थी. लोगों के दिमाग में भय था कि इस हत्या का कनेक्शन कहीं उस वारदात से तो नहीं जुड़ा है.

घटनास्थल से एट कोतवाली की दूरी मात्र 200 मीटर थी. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह चौहान को वारदात की खबर लगी तो वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पहुंच गए. पुलिस के पहुंचते ही भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर निरीक्षण में जुट गए.

21 वर्षीया रोशनी की हत्या सिर में गोली मार कर की गई थी. शव के पास ही .315 बोर का तमंचा पड़ा था, जिस से उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने तमंचे को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. मृतका का मोबाइल फोन व प्रवेशपत्र भी वहीं पड़ा था. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया.

अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अफसरों के आते ही चीखपुकार बढ़ गई. मृतका की मम्मी सुनीता, पापा मानसिंह तथा भाई श्रीचंद्र दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह उन्हें शव से अलग किया, फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल पर मृतका की बहन शीलम मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों को उस ने बताया कि उस की बहन रोशनी की हत्या उस के मंगेतर राज उर्फ आतिश ने की है. वह कंदौरा थाने के गांव जमरेही का रहने वाला है. रोशनी और राज आपस में प्रेम करते थे. मम्मीपापा ने दोनों का रिश्ता भी तय कर दिया था.

लेकिन जब रोशनी को पता चला कि राज गुस्से वाला, शक्की व सनकी स्वभाव का है तो रोशनी ने उस से शादी करने से इंकार कर दिया. इस से वह नाराज हो गया और रोशनी को डराने धमकाने लगा. रोशनी नहीं मानी तो आज उस ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी. उस के साथी को वह जानती पहचानती नहीं है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतका रोशनी के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही मृतका की बड़ी बहन शीलम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत राज उर्फ आतिश तथा एक अज्ञात व्यकित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने ऐसे ढूंढ निकाला आरोपी

एसपी डा. ईरज राजा ने छात्रा रोशनी हत्याकांड को बड़ी गंभीरता से लिया. अत: आरोपियों को पकडऩे के लिए उन्होंने पुलिस की 4 टीमें गठित कीं. एक टीम सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई तथा दूसरी टीम कोतवाल अवधेश कुमार सिंह की अगुवाई में गठित की.

एसओजी तथा सर्विलांस टीम को भी सहयोग के लिए शामिल किया. इन चारों टीमों ने आरोपितों के हरसंभावित ठिकानों, हमीरपुर, कंदौरा, जमरेही, विवार तथा धनपुरा में ताबड़तोड़ दबिशें दीं, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.

शाम 5 बजे कोतवाल अवधेश कुमार सिंह को मुखबिर के जरिए पता चला कि आरोपी राज एट थाने के गांव सोमई में किसी परिचित के घर छिपा है. इस सूचना पर पुलिस टीम ने सोमई गांव में दबिश डाल कर और उसे दबोच लिया. पुलिस टीम ने उस की बिना नंबर प्लेट वाली बजाज पल्सर बाइक भी बरामद कर ली. पूछताछ के लिए उसे थाना एट लाया गया.

थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और रोशनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि रोशनी उस की प्रेमिका थी. वह उस से शादी करना चाहता था. घर वाले भी राजी हो गए थे, लेकिन रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया. उस ने उसे प्यार से भी समझाया और धमकाया भी. लेकिन जब वह नहीं मानी तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

”तुम्हारे साथ जो अन्य युवक था, उस से तुम्हारा क्या संबंध है?’’ कोतवाल अवधेश सिंह ने पूछा.

”सर, वह मेरा  ममेरा भाई रोहित उर्फ गोविंदा था. वह हमीरपुर जिले के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला है. हमारे और रोशनी के बारे में उसे सब पता था. हम ने जब उसे प्रेमिका की बेवफाई और उसे सबक सिखाने की बात कही तो वह साथ देने को राजी हो गया.’’

”तुम्हारी बाइक की नंबर प्लेट नहीं है. क्या वह चोरी की है?’’ श्री सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, बाइक चोरी की नहीं है. हम ने पहचान छिपाने के लिए नंबर प्लेट जंगल में छिपा दी तथा खून से सने कपड़े चिकासी गांव के पास बेतवा नदी में फेंक दिए थे.’’

चूंकि सबूत के तौर पर खून से सने कपड़े तथा नंबर प्लेट बरामद करना जरूरी था, अत: कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने आरोपी राज की निशानदेही पर कपड़े व प्लेट बरामद करने पुलिस टीम के साथ निकल पड़े. अब तक अंधेरा छा चुका था. राज जब पचखौरा नहर पुलिया के पास पहुंचा तो उस ने पुलिस जीप रुकवा दी.

वह नीचे उतरा और बताया कि यहीं नहर झाडिय़ों में उस ने नंबर प्लेट छिपाई थी. पुलिस के साथ राज झाडिय़ों की तरफ बढ़ा, तभी अचानक उस ने कोतवाल अवधेश कुमार सिंह के हाथ से सरकारी पिस्टल छीन ली और फायर झोंकने की धमकी दे कर भागने लगा. पुलिस टीम ने भी उस की घेराबंदी कर जवाबी काररवाई शुरू कर दी.

राज ने एक फायर किया, तभी पुलिस ने भी गोली चला दी. पुलिस की गोली राज के पैर में लगी, जिस से वह जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. घायल राज को तुरंत जिला अस्पताल में इलाज हेतु भरती कराया गया.

पुलिस की अन्य टीमें दूसरे आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा को पकडऩे के लिए अथक प्रयास में जुटी रहीं, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस जांच में एक ऐसे शक्की व सनकी प्रेमी की कहानी सामने आई, जिस ने एक होनहार छात्रा की सांसें छीन लीं और स्वयं का जीवन भी अंधकारमय बना लिया.

मौसी के घर ऐसे बढ़ी प्रेम की बेल

उत्तर प्रदेश का एक जिला है जालौन. इसी जिले के एट थाना अंतर्गत ऐंधा गांव में मानसिंह अहिरवार सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे हरीश कुमार, श्रीचंद्र और 4 बेटियां रजनी, मोहनी, शीलम तथा रोशनी थी. मानसिंह किसान था.

खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस का बड़ा बेटा हरीश कुमार उरई में प्राइवेट जौब करता था, जबकि छोटा बेटा श्रीचंद्र खेती के काम में हाथ बंटाता था. 2 बेटियों रजनी व मोहनी के जवान होते ही मानसिंह ने उन का विवाह कर दिया था.

मानसिंह की सब से छोटी बेटी का नाम रोशनी था. वह बहुत चंचल थी. इसलिए वह किसी से भी बातचीत में नहीं झिझकती थी. रोशनी से बड़ी शीलम थी. वह भी बातूनी व हंसमुख थी. दोनों बहनें सुंदर तो थीं ही, पढऩे में भी तेज थी.

दोनों एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय में पढ़ती थीं और साथसाथ कालेज जाती थीं. कालेज में लड़के लड़कियां साथ पढ़ते थे, लेकिन कभी किसी लड़के की हिम्मत नहीं हुई कि वह इन दोनों बहनों से पंगा ले.

रोशनी की मौसी अनीता, कदौरा थाने के गांव जमरेही में ब्याही थी. वह रोशनी को बहुत चाहती थी. बात उन दिनों की है, जब रोशनी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. मौसी के बुलावे पर वह जमरेही गांव पहुंची. वहां मौसी ने उस की खूब आवभगत की और कुछ दिनों के लिए उसे अपने घर रोक लिया था.

मौसी के घर पर ही एक रोज रोशनी की मुलाकात राज उर्फ आतिश से हुई. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. राज उर्फ आतिश, रोशनी की मौसी अनीता का पड़ोसी था और उस की जातिबिरादरी का था.

चूंकि राज का अनीता के घर बेरोकटोक आनाजाना था, इसलिए उस की मुलाकातें बढऩे लगीं. उन मुलाकातों ने दोनों के दिलों में प्रेम के बीज बो दिए. धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत भी होने लगी. खूबसूरत रोशनी जहां राज के दिल में समा गई थी, वहीं स्मार्ट राज से बातचीत करना रोशनी को भी अच्छा लगने लगा था.

एक रोज राज अनीता के घर गया तो वह घर में नहीं दिखी. इस पर राज ने पूछा, ”रोशनी, आंटी नहीं दिख रहीं, क्या वह कहीं गई हैं?’’

”हां, मौसी खेत पर गई हैं. घंटे-2 घंटे बाद ही आएंगी.’’ रोशनी ने जवाब दिया.

रोशनी की बात सुन कर राज मन ही मन खुश हुआ. उसे लगा कि आज उसे अपने दिल की बात कहने का अच्छा मौका मिला है. अत: वह बोला, ”रोशनी आओ, मेरे पास बैठो. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. लेकिन..?’’

”लेकिन क्या?’’ रोशनी ने आंखें नचा कर पूछा.

”यही कि डर लगता है कि कहीं तुम मेरी बात का बुरा न मान जाओ.’’

”तुम मुझे गाली तो दोगे नहीं, फिर भला मैं बुरा क्यों मान जाऊंगी?’’

”रोशनी, तुम मेरे जीवन को भी रोशनी से भर दो.’’ कहते हुए राज ने रोशनी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. फिर बोला, ”रोशनी, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है. मैं तुम्हें अपने घर की रोशनी बनाना चाहता हूं.’’

रोशनी कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ”राज, मुझे तुम्हारा प्यार तो कुबूल है, लेकिन शादी का वादा नहीं कर सकती. क्योंकि एक तो मैं अभी पढ़ रही हूं, दूसरे शादी विवाह की बात घर वाले ही तय करेंगे. मैं ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहती, जिस के टूटने से तुम्हारे दिल को ठेस लगे.’’

इस के बाद रोशनी और राज का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था, अत: उन की बात देरसवेर फोन पर भी होने लगी थी. ज्यादा देर बात करने को मौसी टोकती तो वह कालेज की सहेली से बात करने का बहाना बना देती. कभीकभी मां या बड़ी बहन से बात करने की बात कहती. अनीता उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन अनीता के विश्वास को ठेस तब लगी, जब उस ने एक शाम धुंधलके में राज और रोशनी को आपस में छेड़छाड़ करते देख लिया. दूसरे रोज अनीता ने रोशनी को प्यार से समझाया, ”बेटी, लड़की की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं जाता.’’

रोशनी समझ गई कि मौसी को उस पर शक हो गया है. उस ने अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा. लेकिन अनीता ने यकीन नहीं किया. उस ने राज को भी फटकार लगाई. इसी के साथ वह दोनों पर निगरानी रखने लगी. लेकिन फिर भी दोनों फोन पर बतिया लेते थे और दिल की लगी बुझा लेते थे.

अनीता नहीं चाहती थी कि उस के घर पर रहते रोशनी कोई गलत कदम उठाए और वह बदनाम हो जाए. अत: उस ने रोशनी को उस के घर ऐंधा भेज दिया. रोशनी प्रेम रोग ले कर घर वापस आई थी. अत: उस का मन न तो पढ़ाई मेंं लगता था और न ही घर के दूसरे काम में.

वह खोईखोई सी रहने लगी थी. बड़ी बहन शीलम ने उस से कई बार पूछा कि वह खोईखोई सी क्यों रहती है? लेकिन रोशनी ने उसे कुछ नहीं बताया. वह बुत ही बनी रही.

बड़ी बहन को ऐसे पता लगा रोशनी के अफेयर का

एक रोज रोशनी बाथरूम में थी, तभी उस के फोन पर काल आई. काल शीलम ने रिसीव की और पूछा, ”आप कौन और किस से बात करनी है?’’

इस पर दूसरी ओर से आवाज आई, ”मैं राज बोल रहा हूं. मुझे रोशनी से बात करनी है. जब वह मौसी के घर जमरेही आई थी, तभी उस से जानपहचान हुई थी.’’

”ठीक है, अभी वह घर पर नहीं है.’’ कह कर शीलम ने काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर सोचने लगी कि कहीं रोशनी किसी लड़के के प्यार के चक्कर में तो नहीं पड़ गई. कहीं रोशनी उसी के प्यार में तो नहीं खोई रहती. यदि ऐसा कुछ है तो वह आज भेद खोल कर ही रहेगी.

कुछ देर बाद रोशनी बाथरूम से बाहर आई तो शीलम ने पूछा, ”रोशनी, यह राज कौन है? तू उसे कैसे जानती है?’’

”दीदी, मैं किसी राज को नहीं जानती.’’ रोशनी धीमी आवाज में सफेद झूठ बोल गई.

”देखो रोशनी, अभी कुछ देर पहले जमरेही से राज का फोन आया था. वैसे तो उस ने मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है. लेकिन मैं सच्चाई तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

रोशनी समझ गई कि उस की आशिकी का भेद खुल गया है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. अत: वह बोली, ”दीदी, जब हम मौसी के घर गए थे तो वहां हमारी मुलाकात मौसी के पड़ोस में रहने वाले अशोक अहिरवार के बेटे राज उर्फ आतिश से हुई थी. कुछ दिनों बाद ही हमारी मुलाकातें प्यार में बदल गईं और हम दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दीदी, राज पढ़ालिखा स्मार्ट युवक है. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक है. राज मुझे बेहद प्यार करता है और शादी करना चाहता है.’’

सच्चाई जानने के बाद शीलम ने सारी बात अपनी मम्मी सुनीता तथा पापा मानसिंह को बताई तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उन दोनों ने पहले प्यार से फिर डराधमका कर रोशनी को समझाने की कोशिश की, लेकिन रोशनी नहीं मानी. दोनों भाइयों ने भी रोशनी को समझाया. पर रोशनी ने राज से बातचीत करनी बंद नहीं की. वह कालेज आतेजाते तथा देर रात में राज से बातें करती रहती.

रोशनी की दीवानगी देख कर घर वालों को लगा कि यदि रोशनी पर ज्यादा सख्ती की गई तो कहीं ऐसा न हो कि रोशनी पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर अपने प्रेमी के साथ फुर्र न हो जाए. इसलिए मानसिंह ने अपने परिवार के साथ इस गहन समस्या पर मंथन किया. फिर निर्णय हुआ कि रोशनी की शादी राज के साथ तय कर दी जाए. लेकिन शर्त होगी कि शादी बीए फाइनल करने के बाद ही होगी.

इस के बाद सुनीता अपने पति मानसिंह के साथ अपनी बहन अनीता के घर जमरेही पहुंची. उस ने बहन को राज और रोशनी के प्रेम संबंधों के बारे में बताया और दोनों की शादी तय करने की बात कही. अनीता को दोनों के संबंधों के बारे में पहले से ही पता था सो वह राजी हो गई. अनीता ने कहा कि राज पढ़ालिखा है. संपन्न किसान का बेटा है. सब से बड़ी बात जातबिरादरी का है. अत: रिश्ता हर मायने में सही है.

सब को रिश्ता उचित लगा तो मानसिंह ने अशोक अहिरवार से उन के बेटे राज उर्फ आतिश के रिश्ते की बात चलाई. अशोक भी तैयार हो गया. उस के बाद रोशनी का रिश्ता राज के साथ तय हो गया. शर्त यह रखी गई कि रोशनी जब बीए पास कर लेगी, तब दोनों की शादी होगी. इस शर्त को राज व उस के घर वालों ने मान लिया.

शादी तय हो जाने के बाद राज का रोशनी के घर आनाजाना शुरू हो गया. वह हर सप्ताह बाइक से रोशनी के घर पहुंच जाता, रोशनी उस के साथ घूमने फिरने निकल जाती. फिर शाम को ही वापस आती. इस बीच दोनों खूब हंसते बतियाते, रेस्तरां में खाना खाते और जम कर लुत्फ उठाते. उन पर घर वालों की कोई पाबंदी न थी. अत: उन्हें किसी प्रकार का कोई डर भी न था. इस तरह एक साल बीत गया.

रोशनी अब तक बीए (प्रथम वर्ष) पास कर द्वितीय वर्ष में पढऩे लगी थी. जबकि उस की बड़ी बहन शीलम तृतीय वर्ष में पढ़ रही थी. दोनों बहनें एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय की छात्रा थीं. वह घर से कालेज साथ ही आतीजाती थीं. रोशनी को फोन पर बतियाने का बहुत शौक था. कालेज से निकलते ही वह बतियाने लगती थी. जबकि शीलम गंभीर थी. उसे फालतू बकवास पसंद न थी.

मंगेतर को ऐसे हुआ रोशनी पर शक

एक रोज राज ने रोशनी को काल की तो उस का नंबर व्यस्त बता रहा था. कई बार कोशिश करने पर भी जब रोशनी से बात नहीं हो पाई तो राज के मन में शक बैठ गया कि रोशनी उस के अलावा किसी और से भी प्यार करती है. जिस से वह घंटों बतियाती है. इसलिए उस का फोन व्यस्त रहता है. उस रोज वह बेहद परेशान रहा और कई तरह के विचार उस के मन में आते रहे.

राज के मन में शक समाया तो वह दूसरे रोज सुबह 11 बजे कालेज गेट पहुंच गया. रोशनी कालेज से निकली तो वह उस का पीछा करने लगा. उस रोज रोशनी कालेज अकेले ही आई थी. कुछ दूर पहुंचने पर रोशनी फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने लगी. राज का शक यकीन में बदल गया कि रोशनी का कोई और भी यार है.

गुस्से से भरा राज रोशनी के पास जा पहुंचा और मोबाइल छीन कर बोला, ”तुम हंसहंस कर किस से बात कर रही थी. क्या मेरे अलावा कोई और भी दिलवर है?’’

राज को सामने देख कर रोशनी घबरा गई और बोली, ”मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी. वह आज कालेज आई नहीं थी. लेकिन तुम यह बहकीबहकी बातें क्यों कर रहे हो?’’

”क्योंकि मुझे सच्चाई पता है. तुम सहेली से नहीं, अपने यार से बात कर रही थी.’’

”लगता है तुम शक्की और सनकी इंसान हो. मुझ पर यकीन नहीं तो मिलने क्यों आते हो. लगता है तुम्हारा प्यार छलावा है. तुम तो प्यार के काबिल ही नहीं हो.’’

उन दोनों के बीच उस दिन जम कर बहस हुई. इस बहस से रोशनी का दिल टूट गया. राज के प्रति उस की जो मोहब्बत थी, वह घायल हो गई. वह सोचने को मजबूर हो गई कि ऐसे शक्की इंसान के साथ वह जीवन कैसे गुजार सकेगी. रोशनी इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. जबकि बड़ी बहन शीलम उसे समझाती कि वह चिंता न करे. सब ठीक हो जाएगा.

कहते हैं कि शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. राज के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस का शक दिनबदिन बढ़ता ही गया. वह जब भी रोशनी को किसी से फोन पर बात करते देख लेता तो वह बात करने से रोकता, साथ ही उसे डांटता व अपशब्द भी कहता.

रोशनी को यह नागवार गुजरता था. फिर भी उस ने कई बार राज को समझाया भी कि वह अपनी दोस्त सहेलियों से ही बात करती है. लेकिन राज रोशनी की कोई बात सुनने को तैयार न था. कई बार समझाने पर भी जब राज के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया तो रोशनी उस से दूरी बनाने लगी. उस ने उस से मिलना भी कम कर दिया.

राज के दुव्र्यवहार से अब रोशनी चिंतित रहने लगी थी. सुनीता ने बेटी के माथे पर चिंता की लकीरें पढ़ीं तो उस ने एक रोज रोशनी से पूछा, ”बेटी, आजकल तू गुमसुम रहती है. चेहरे से हंसी भी गायब है, खाना भी समय पर नहीं खाती. आखिर बात क्या है?’’

मां की सहानुभूति पा कर रोशनी की आंखों में आंसू आ गए. बोली, ”मां, मैं राज को ले कर चिंतित हूं. वह शक्की इंसान है. फोन पर किसी से बात करते देखता है तो शक करता है. मैं ने उस से दिल लगा कर भूल की है. मैं ऐसे शक्की इंसान से शादी नहीं कर सकती.’’

बेटी के दर्द से सुनीता भी तड़प उठी. उस ने यह बात पति मानसिंह को बताई तो उस का पारा भी चढ़ गया. इस के बाद मानसिंह ने अपनी पत्नी व बेटों से विचारविमर्श किया और शादी तोड़ देने का निश्चय किया. रिश्ता खत्म करने की जानकारी मानसिंह ने अशोक अहिरवार व उस के बेटे राज को भी दे दी.

राज क्यों नहीं चाहता था रोशनी से रिश्ता तोडऩा

रिश्ता टूटने से राज उर्फ आतिश बौखला गया. उस ने रोशनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने काल रिसीव ही नहीं की. दूसरे रोज राज रोशनी के कालेज पहुंच गया. रोशनी कालेज के बाहर आई तो उस ने पूछा, ”रोशनी, रिश्ता तुम ने तोड़ा है या तुम्हारे घर वालों ने?’’

”मैं ने अपनी व घर वालों की मरजी से खूब सोचसमझ कर रिश्ता तोड़ा है.’’

”क्यों तोड़ा है?’’ राज ने पूछा.

”इसलिए कि तुम शक्की व सनकी इंसान हो. तुम जैसे इंसान के साथ मैं जीवन नहीं बिता सकती.’’

”सोच लो. कहीं तुम्हारा यह फैसला भारी न पड़ जाए.’’ राज ने धमकी दी.

”मैं ने अच्छी तरह सोचसमझ कर ही फैसला लिया है. तुम्हारी धमकी से मैं डरने वाली नही हूं. और हां, आज के बाद मुझ से मिलने कालेज में मत आना.’’

लेकिन रोशनी की बात पर राज ने गौर नहीं किया. वह अकसर कालेज आ जाता और रोशनी को धमकाता कि वह उस से शादी करे. यही नहीं राज रोशनी के मम्मीपापा व भाइयों को भी फोन पर धमकाने लगा था कि रिश्ता तोड़ कर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया. अब भी समय है रिश्ता जोड़ लो. वरना परिणाम अच्छा न होगा.

अप्रैल, 2023 के दूसरे सप्ताह से रोशनी और शीलम की वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी. दोनों बहनें साथसाथ परीक्षा देने आतीजाती थीं. 14 अप्रैल, 2023 को रोशनी व शीलम पेपर दे कर निकलीं तो कालेज गेट से कुछ दूरी पर राज ने रोशनी को रोक लिया और बोला, ”रोशनी, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि मुझ से रिश्ता जोड़ोगी या नहीं?’’

रोशनी गुस्से से बोली, ”मैं तुम से एक बार नहीं, सौ बार कह चुकी हूं कि तुम जैसे शक्की और सनकी इंसान से मैं शादी हरगिज नहीं करूंगी.’’

”यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ राज ने आंखें तरेर कर पूछा.

”हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रोशनी ने भी आंखें तरेर कर ही जवाब दिया.

”तो तुम मेरा फैसला भी सुन लो, यदि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन भी नहीं बनने दूंगा.’’ धमकी दे कर राज चला गया.

राज उर्फ आतिश का ममेरा भाई था रोहित उर्फ गोविंदा. वह हमीरपुर जनपद के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला था. राज की रोहित से खूब पटती थी. रोहित को रोशनी और राज के रिश्तों की बात पता थी. प्यार में जख्मी राज रोहित के पास पहुंचा और उसे बताया कि रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया है. वह उस को बेवफाई का सबक सिखाना चाहता है. उस की मदद चाहिए.

रोहित मदद को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने मिल कर तमंचा व कारतूस का इंतजाम किया और एट आ गए.

17 अप्रैल, 2023 को शीलम और रोशनी अपनाअपना पेपर दे कर कालेज से निकलीं तो बाइक से राज व रोहित ने उन का पीछा करना शुरू किया. शीलम व रोशनी जैसे ही कोटरा तिराहा पहुंचीं, तभी राज व रोहित ने उन्हें घेर लिया. फिर बिना कुछ कहे राज ने रोशनी के सिर में तमंचा सटा कर फायर कर दिया. रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

पूछताछ करने के बाद 19 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी राज उर्फ आतिश को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. दूसरा आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी और बच्चों के फरजी मर्डर की असली कहानी

महीनों बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया तो सुखवती ने मजबूर हो कर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. मामले की नजाकत को समझते हुए अदालत ने एसएसपी राजेश यश को फटकार लगाई. एसएसपी ने एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह को लाइन पर लिया. एसपी ज्ञानेंद्र सिंह ने रक्सा के एसएचओ को सख्त आदेश दिया कि वह सुखवती की बेटी छाया और 2 बच्चों की हत्या का मुकदमा दर्ज कर जरूरी काररवाई करें.

अदालत के आदेश पर 13 दिसंबर, 2023 को रक्सा पुलिस ने पति चंदन, देवर मनोज व विनोद, सास कलावती और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ छाया और उस के 2 बच्चों की हत्या और शव गायब करने का मुकदमा दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू कर दी.

दरअसल, 50 वर्षीया सुखवती कुशवाहा बेटी छाया और उस के 2 बेटों (नातियों) निखिल (7 वर्ष) और जयदेव (4 वर्ष) के ससुराल से रहस्यमय तरीके से गायब होने को ले कर बुरी तरह परेशान थी.

19 जनवरी, 2023 के बाद से तीनों का कहीं पता नहीं चल रहा था. वह अपनी तरफ से बेटी और नातियों का पता लगा कर थक चुकी थी. जब तीनों का कहीं पता नहीं चला तो सुखवती रक्सा थाने में पहुंची और बेटी के पति चंदन, देवर मनोज और विनोद, सास कलावती और एक अन्य व्यक्ति पर हत्या की आशंका जताते हुए उन के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की लिखित तहरीर एसएचओ प्रदीप सिंह को दी. यह मामला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के डेली गांव का था.

SSP- RAJESH YASH

           एसएसपी राजेश यश

मामला गंभीर था, पुलिस ने सुखवती की तहरीर ले कर अपने पास रख ली और जरूरी काररवाई करने की आश्वासन दे कर उसे घर भेज दिया था. लेकिन पता नहीं क्यों पुलिस को यह मामला हत्या का नहीं, बल्कि कुछ और ही लग रहा था. इधर सुखवती बेटी के ससुरालियों पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन पुलिस मुकदमा दर्ज करने के बजाए उसे टालती रही.

सुखवती का दामाद चंदन मध्य प्रदेश के दतिया का रहने वाला था. जैसे ही उसेे पता चला कि उस की सास ने उस के और उस के दोनों भाइयों तथा मां के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है, वैसे ही चारों पुलिस से बचने के लिए घर छोड़ कर फरार हो गए.

इधर झांसी पुलिस नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने जब दतिया पुलिस के साथ उन के घर पहुंची तो सभी आरोपी घर छोड़ कर फरार हो चुके थे.

पुलिस का शक पुख्ता हो गया कि छाया और उस के दोनों बेटों की हत्या कर शव गायब करने के पीछे जरूर इन्हीं का हाथ होगा तभी तो वे घर छोड़ कर फरार हैं. आरोपियों के फरार होने से पुलिस खाली हाथ झांसी लौट आई और पूरी काररवाई की रिपोर्ट सीओ स्नेहा तिवारी को दे दी.

C.O. SNEHA TIWARI

चंदन इस बात को ले कर अच्छाखासा परेशान था कि जब उस ने पत्नी और बेटों को मारा ही नहीं तो सास ने उसे और उस के घर वालों को झूठे आरोप में क्यों फंसाया? जबकि सच यह था कि वह पत्नी और बच्चों को उस के मायके डेली गांव के बाहर छोड़ कर अपने घर वापस लौट आया था. तो फिर अचानक वे तीनों वहां से कहां गायब हो गए? आखिर उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया? वह गई तो गई कहां, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

कहां गायब हो गई छाया बच्चों के साथ

चंदन और उस के घर वालों को पूरा यकीन था कि उन पर लगाए गए आरोप सरासर गलत और बेबुनियाद हैं. वह सोच रहे थे कि अगर तीनों की हत्या हुई होती तो उन के शव कहीं न कहीं तो बरामद हुए होते. कहीं ऐसा तो नहीं कि वो जिंदा हों और उन्हें नाहक परेशान करने के लिए सास सुखवती ने यह मनगढ़ंत कहानी बना कर झूठा मुकदमा दर्ज कराया हो.

दरअसल, बात 19 जनवरी, 2023 की है. चंदन पत्नी छाया और दोनों बेटों निखिल और जयदेव को अपनी ससुराल के गांव के बाहर छोड़ कर वापस अपने घर दतिया लौट आया था. पत्नी और बच्चों को मायके पहुंचाने की चंदन की मजबूरी बन गई थी.

मजबूरी यह थी कि सालों से दोनों के बीच आए दिन झगड़े होते रहते थे. उन के बीच विवाद की खाई दिन पर दिन गहरी होती जा रही थी. फिर नौबत हाथापाई पर बन आई थी. रोजरोज की कलह से चंदन बुरी तरह ऊब चुका था.

घर का माहौल ऐसा हो गया था कि सामने थाली में परोसा हुआ निवाला भी सुकून से निगला नहीं जा रहा था. इसलिए उस ने पत्नी को उस के मायके छोडऩे का फैसला ले लिया था और यही सोच कर उसे मायके उसे बच्चों सहित पहुंचा दिया था, लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि छाया दोनों बच्चों के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थी.

इधर छाया की मां सुखवती की अपनी बेटी से बात नहीं हो पा रही थी. धीरेधीरे महीनों बीत गए. न तो छाया का फोन मां (सुखवती) को आता था और न ही उस के फोन करने पर छाया को काल ही लगती थी. इसे ले कर सुखवती बुरी तरह परेशान रहती थी. इस से पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था. सुखवती यही सोच कर हमेशा परेशान रहती थी कि बात आखिर क्या है.

चंदन भी अपनी सफाई में सास सुखवती को बता चुका था कि उस ने 19 जनवरी, 2023 को छाया और दोनों बच्चों को डेली गांव के बाहर छोड़ दिया था. सुखवती को दामाद की बात पर तनिक भी यकीन नहीं था कि जो वह कह रहा है वह सच हो सकता है.

सुखवती ने चंदन पर आरोप लगाते हुए कहा, ”सचसच बता दो दामादजी, बेटी और नाती कहां है? नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. अगर नहीं बताया तो बेटी और नातियों के कत्ल के जुर्म में एकएक को जेल की चक्की न पिसवाया तो मेरा भी नाम सुखवती नहीं होगा. समझे.’’

चंदन चुप बैठने वालों में से नहीं था. सास को पलटवार जबाव दिया, ”चाहे जिस की कसम खिला दो सासूमां, मेरा जवाब एक ही होगा. मैं ने पत्नी और बच्चों को नहीं मारा है. जानबूझ कर भला कोई अपने ही अंगों को नुकसान पहुंचाता है? तो फिर आप ने कैसे सोच लिया कि मैं ने उन्हें मार डाला है. मुझे तो लगता है कि कहीं आप ने ही तो नहीं उन्हें मार डाला और इलजाम हमारे सिर थोप रही हैं. लेकिन मैं भी पीछे हटने वालों में से नहीं हूं, इस बात का पता लगा कर रहूंगा कि वो हैं तो हैं कहां? समझीं. मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं पत्नी और बच्चे जिंदा हैं.’’

दामाद के खिलाफ क्यों लिखाई रिपोर्ट

सास और दामाद के बीच में रस्साकशी जारी थी. सास सुखवती को दामाद की किसी भी बात पर रत्ती भर भरोसा नहीं हो पा रहा था कि वह जो कह रहा है, सच कह रहा है. यह सोच कर वह और भी ज्यादा परेशान और दुखी थी. बेटी और बच्चों को मारा नहीं तो वो कहां हैं? जबकि एक साल होने जा रहा है. अगर वह जिंदा होती तो एक भी बार मां की सुध नहीं लेती?

खैर, सुखवती की समझ में जो आया, जो उचित समझा, उस ने वही किया था. अदालत ने रक्सा पुलिस को कठोर हिदायत दी थी कि जांच की प्रतिदिन की रिपोर्ट कोर्ट को मिलनी चाहिए और जल्द से जल्द इस मामले से परदा उठना चाहिए. मामला कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद से इस केस को ले कर मीडिया ने तूफान खड़ा कर दिया था. पुलिस की रोज भद पिट रही थी. लेकिन काररवाई जहां से चली थी, वहीं आ कर ठप्प पड़ी थी.

SP. CIY- GYANENDRA KUMAR SINGH

  एसपी ज्ञानेंद्र कुमार सिंह

पत्नी और बच्चों को ले कर चंदन परेशान तो था ही, साथ ही उस ने अपने जानपहचान और नातेरिश्तेदारों से भी कह रखा था कि छाया और बच्चों के बारे में कोई जानकारी मिले तो उसे जरूर इत्तला कर दें. जहां चाह होती है, वहीं राह मिल भी जाती है.

बात 14 मार्च, 2024 की है. चंदन को उस के मोबाइल पर एक वीडियो क्लिप मिली, जिस में स्कूल के छोटेछोटे बच्चे कार्यक्रम करते नजर आ रहे थे. उन्हीं बच्चों के बीच कार्यक्रम करते हुए 2 बच्चे ऐसे भी दिखे, जिन्हें देख कर आश्चर्य के मारे चंदन की आंखें फटी की फटी रह गईं. वे दोनों बच्चे कोई और नहीं, बल्कि उस के दोनों बेटे निखिल और जयदेव थे.

यह देख कर चंदन की खुशियों का ठिकाना नहीं था, क्योंकि जिन की हत्या कर शव छिपाने का झूठा आरोप उस पर और उस के घर वालों पर लगाया गया था, वो जिंदा हैं. इस का मतलब साफ था कि छाया और उस के बच्चे तीनों जिंदा हैं.

उस वीडियो में स्कूल का एक बैनर लगा था, जिस पर स्कूल का नाम और पता लिखा था. वह मध्य प्रदेश का सीहोर जिला था. स्कूल का पता मिल जाने पर चंदन सीहोर पहुंच गया और उस ने इस बात का पता लगा लिया कि छाया जिंदा है. वह वहां अपने प्रेमी के साथ रह रही है. सीहोर में ही उस ने चायनाश्ते की दुकान खोल रखी है.

झांसी से मध्य प्रदेश कैसे पहुंची छाया और उस के बच्चे

पूरी जानकारी इकट्ठी करने के बाद चंदन रक्सा थाने के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह के पास पहुंचा और अपनी पत्नी छाया और दोनों बच्चों के जिंदा होने की जानकारी दी. यह जानकारी मिलने के बाद वह भी चौंक गए.

उन्होंने इस सूचना से सीओ स्नेहा तिवारी को अवगत करा. यह बात 15 मार्च, 2024 की थी. एसपी ज्ञानेंद्र कुमार सिंह के आदेश पर सीओ स्नेहा तिवारी ने आननफानन में एक मीटिंग बुलाई और छाया व दोनों बच्चों को सहीसलामत बरामद कर झांसी तक लाने की जिम्मेदारी एसएचओ प्रदीप सिंह को सौंप दी. एसएचओ ने उसी दिन दोपहर को रक्सा थाने से 2 एसआई और एक लेडी कांस्टेबल शीला को सीहोर के लिए रवाना कर दिया.

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उसी दिन रात करीब 10 बजे झांसी पुलिस सीहोर (मध्य प्रदेश) पहुंच गई और सीहोर पुलिस की मदद से छाया और उस के दोनों बच्चों को उस के घर से सहीसलामत बरामद कर लिया. वह अपने प्रेमी सोबरन के साथ रह रही थी. तभी पता चला कि छाया के पास प्रेमी से 3 माह का एक बेटा भी है.

इस सफलता पर पुलिस फूली नहीं समा रही थी. पिछले कई महीने से जिस छाया और उस के बच्चों की हत्या कर शव गायब करने की चर्चा सुर्खियों में बनी हुई थी, उस का खुलासा हो गया था. मां और बच्चे तीनों जिंदा पुलिस के सामने खड़े थे.

सीहोर गई झांसी पुलिस ने सीओ स्नेहा तिवारी को पूरी बात बता दी और सीहोर से पुलिस छाया, उस के बच्चों और प्रेमी सोबरन साहू को हिरासत में ले कर झांसी रवाना हो गई.

16 मार्च की सुबह साढ़े 10 बजे पुलिस सभी को ले कर पुलिस लाइंस पहुंची. वहां सीओ स्नेहा तिवारी ने छाया और उस के बेटों से पूछताछ की. पूछताछ में छाया ने पुलिस को बताया कि वह अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ भागी थी और प्रेमी के साथ ही जीवन बिताना चाहती है. ससुराल पक्ष का इस में कोई दोष नहीं है.

पूछताछ करने के बाद शाम 3 बजे सीओ स्नेहा तिवारी ने पुलिस लाइंस में एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और पत्रकारों के साथसाथ उन्होंने छाया की मां सुखवती को भी बुलाया था ताकि वह भी सच से रूबरू हो जाए. सुखवती और पत्रकारों के सामने जब तीनों को पेश किया गया तो छाया और उस के बच्चों को देख कर सभी हैरान रह गए.

खैर, करीब डेढ़ साल से छाया और उस के बच्चे एक बड़ा प्रश्न बन कर सभी को परेशान किए जा रहे थे, उस का खुलासा हो गया था और सब से ज्यादा सुकून चंदन और उस के घर वालों को मिला था. जो कई माह से बचते बचाते इधरउधर छिपते फिर रहे थे. तीनों के सहीसलामत जिंदा बरामद होने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली और अपने घर वापस लौटे.

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              सोबरन साहू

इधर पुलिस ने प्रेमी सहित चारों को अदालत में पेश किया. चीखचीख कर छाया ने अदालत के सामने कहा कि वह अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती, बच्चों को साथ ले कर प्रेमी सोबरन के साथ जीवन बिताना चाहती है. वह अपनी मरजी से प्रेमी के साथ गई थी. इस में ससुराल वालों का कोई दोष नहीं है.

पूरी बातें सुनने के बाद अदालत ने छाया और उस के बच्चों को नारी निकेतन भेज दिया और सोबरन को जेल. सुखवती को पता नहीं था कि उस की बेटी और नाती जिंदा हैं. इसीलिए उस ने बेटी के ससुराल वालों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दिया था. सीओ स्नेहा तिवारी ने कहा कि जब मामले का पटाक्षेप हो गया है तो जल्द ही इस मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगा कर मुकदमा बंद कर दिया जाएगा.

छाया के बयान के बाद इस मामले की कहानी इस तरह सामने आई—

28 वर्षीय छाया कुशवाहा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला झांसी के रक्सा थाने के डेली गांव की रहने वाली थी. माखन कुशवाहा के 3 बच्चों में छाया उस की सब से बड़ी बेटी थी. छाया से छोटे 2 और बेटे थे. कुल मिला क र 5 सदस्यों वाला परिवार था. माखन सब्जी विक्रेता था.

यह तो सच है लड़कियों को सयानी होने में समय नहीं लगता है. बचपन की गलियों को छोड़ पंख लगाए कब जवानी की दहलीज पर खड़ी हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता. कुछ ऐसा ही माखन कुशवाहा के साथ भी हुआ. छाया कब जवान हो गई, घर वालों को पता ही नहीं चला. जब पता चला तो मांबाप को उस की शादी की चिंता सताने लगी.

चिंता सताती भी क्यों नहीं, वह तो कीचड़ में खिले कमल जैसी खूबसूरत थी. तितली जैसी स्वच्छंद, पंख पसारे आसमान में उड़ती फिरती थी. सामान्य कदकाठी की गोरी रंगत वाली छाया रंगीनमिजाज की थी. इसीलिए तो आशिकों की कतारें लगी थीं, लेकिन उस ने किसी आशिक भौंरे को पास फटकने का मौका नहीं दिया.

पति और ससुराल में मस्त थी छाया

माखन कुशवाहा का परिवार मध्यमवर्गीय था. वह नहीं चाहते थे कि परिवार के मानसम्मान पर कोई बट्टा लगे. वह बेटी के जल्द से जल्द हाथ पीले कर देना चाहते थे. थोड़े से प्रयास के बाद छाया की शादी मध्य प्रदेश के दतिया के रहने वाले चंदन कुशवाहा के साथ कर दी गई. यह बात साल 2016 की है.

विदा हो कर छाया ससुराल पहुंची. ससुराल का प्यारदुलार पा कर वह फूली नहीं समा रही थी. कुंवारे मन में जिस सपनों के राजकुमार की कल्पना की थी, वैसा ही उस का पति मिला था. प्यार से हराभरा ससुराल पा कर वह खुद को धन्य मानती थी.

चंदन प्राइवेट जौब करता था. महीने की सैलरी के आधे पैसे घर खर्च के लिए निकाल कर बाकी के पैसे पत्नी के हाथों पर ला कर रख देता था. उस की हर ख्वाहिश उन्हीं पैसों से पूरी करता था. छाया ने कभी पति की किसी भी बात को ले कर किसी से भी शिकायत नहीं की थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का चंदन पत्नी को हर तरह से खुश रखता था.

शादी के 6 महीने बाद छाया ससुराल से विदा हो कर मायके आई. एक बार पगफेरे की रस्म पूरी हो जाने के बाद वह ससुराल और मायके दोनों जगह मिला कर रहती थी. अब तक वह एक बच्चे की मां भी बन चुकी थी. इसी बीच उस की जिंदगी के रंगीन पन्नों पर सोबरन साहू नामक युवक की एक नई प्रेम कहानी जुड़ गई थी. प्रेम कहानी ने छाया के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया था.

दरअसल, हुआ यूं था कि मध्य प्रदेश के करैरा का रहने वाला सोबरन साहू झांसी नौकरी की तलाश में आया था. उस ने छाया के घर में किराए का एक कमरा लिया था और वहीं रह कर नौकरी की तलाश कर रहा था. उसे नौकरी मिली नहीं तो उस ने ठेले पर सब्जी बेचने का काम शुरू किया. सोबरन एक मेहनती युवक था. उसे ठेले पर सब्जी बेचने में कोई गुरेज नहीं था. बल्कि इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी.

सोबरन समय का सताया हुआ इंसान था. पूरी दुनिया में साल 2019 में कोरोना महामारी फैली थी, जिस ने असंख्य लोगों को असमय काल का भाजन बनाया था. सोबरन की पत्नी रूबी भी कोरोना में जान गंवा चुकी थी. तब उस के पास छोटा बच्चा था. पत्नी की असमय मौत हो जाने से वह पूरी तरह टूट गया था.

मांबाप ने बच्चे को पालपोस कर बड़ा किया. बूढ़े मांबाप ने उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी लेकिन सोबरन ने शादी करने से मना कर दिया. साल 2020-21 में कोरोना महामारी का दौर थमा और पटरी पर जिंदगी रेंगने लगी तो वह करैरा से झांसी आ गया था और वहीं किराए के कमरे में रह रहा था.

सुंदर और गोरी छाया पर जब से सोबरन की नजरें पड़ी थी, उस के दिल में एक अजीब सी सिहरन पैदा हुई थी. अनायास सोबरन छाया की ओर खिंचा चला जा रहा था. उसे यह नहीं समझ आ रहा था कि ये उस के साथ क्या हो रहा है. वह क्यों छाया की ओर खिंचा चला जा रहा.

जबकि वह यह भी जानता था कि छाया शादीशुदा है. ऐसा सोचना भी गलत होता है, लेकिन उसे इस से कोई लेनादेना नहीं था. उसे तो बस छाया अच्छी लगती थी और वह उस के दिल के किसी कोने में घर कर गई, बस वह यही जानता था.

पुरुषों की नजरों को पढऩे की कला नारी में होती है. छाया भी सोबरन की आशिकी भरी निगाहों को भांप गई थी. फिर क्या था, छाया के मन में भी सोबरन के लिए प्यार ने अपनी जगह बना ली थी. वह भी उसे चाहने लगी थी. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए और अपने दिल की बात एकदूसरे को बता कर प्यार का इजहार कर दिया.

छाया ने पति से क्यों बनाई दूरी

दरअसल, मौका देख कर सोबरन ने अपना अतीत छाया के सामने परोस दिया था कि उस ने अपने बच्चे की परवरिश की खातिर अपनी नींद को खिलौना बना कर कांख में दबा लिया था. बड़े ही कष्टों और तकलीफों से उस ने बच्चे को पाला था.

इस की पीड़ा छाया के दिल में घर कर गई थी. उस के बाद से उस का झुकाव सोबरन की ओर बढ़ता चला गया था और वह उसे दिल दे बैठी थी.

सोबरन की महबूबा बनने के बाद छाया का मन ससुराल में कम मायके में ज्यादा लगने लगा था. इसी वजह से छाया मायके में ज्यादा रहती थी. अचानक से मायके के प्रति प्रेम उमडऩे से चंदन कुछ हैरान और परेशान सा रहने लगा था. उस की समझ में यह बात आ नहीं रही थी कि आखिर पत्नी का मायके से इतना लगाव कैसे हो गया. इस से पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था.

पत्नी की हरकत उसे बड़ी अजीब सी लग रही थी, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि माजरा क्या है? यह बात वह किसी से पूछ भी नहीं सकता था, लेकिन शक चंदन के मन में कुंडली मार ली. इस बात का जल्द से जल्द पता लगाने का उस ने पक्का फैसला भी कर लिया था. ये बात साल 2021 की थी.

उस दिन के बाद से चंदन पत्नी पर कड़ी नजर रखने लगा था. एक दिन की बात है. समय रात का हो रहा था. घर का सारा कामकाज निबटा कर छाया अपने बिस्तर पर सोने पहुंची. देखा पति चंदन पहले ही बिस्तर पर सोया पड़ा था. छाया उसे हिलाडुला कर यह जानता चाहती थी कि पति सचमुच गहरी नींद में है या कच्ची नींद में है. छाया ने सोचा कि वह गहरी नींद में जा चुका था. क्यों उस के हिलाने डुलाने से उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

छाया जब पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि पति गहरी नींद में सो रहा है तो वह दबेपांव बैड से उतरी और अलमारी की ओर बढ़ी, जहां उस ने अपना काले रंग का बड़ा बैग रखा था. बैग की चेन खोल कर उस में से एक चमचमाता मोबाइल फोन निकाला और फिर चेन बंद कर के झट से बैड पर आ कर पति के बगल में लेट गई.

मोबाइल फोन का स्विच औन कर प्रेमी सोबरन से धीमी आवाज में प्यारभरी बातें करने लगी. बीचबीच में पलट कर वह देख लेती थी कि पति जागा तो नहीं है और कहीं बातें तो नहीं सुन रहा है, वरना कयामत आ जाएगी.

जिस मोबाइल से छाया बात कर रही थी उसे सोबरन ने उसे बतौर गिफ्ट दिया था बातचीत करने के लिए, ताकि उन का प्यार राज बना रहे और आराम से बातें भी होती रहें. लेकिन दोनों के प्यार का यह खेल ज्यादा दिनों तक परदे में नहीं रह सका था.

दरअसल, चंदन सोने का नाटक कर रहा था. वह पत्नी की बातें सुन रहा था कि इतनी रात गए वह किस से बातें कर रही है. उस की बातें सुन कर उस का शक यकीन में बदल गया कि पत्नी का किसी गैरमर्द के साथ चक्कर चल रहा है.

उस समय उस ने उस से कुछ नहीं कहा ताकि पत्नी को शक न हो जाए. बहरहाल, चंदन की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी. वह रात भर करवटें बदलता रहा. पत्नी के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें लग गईं उसे पता ही नहीं चला. आंखें तब खुलीं, जब सूरज सिर पर चढ़ आया था

पत्नी को देखते ही रात वाली बातें उसे याद आ गईं और दिल पर लगा जख्म हरा हो गया. लेकिन सच्चाई पत्नी के सामने नहीं आने दी. इस के बाद चंदन ने पत्नी की सच्चाई सामने लाने की ठान ली और अपनी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

उसे जल्द ही पता चल गया कि पत्नी का मायके में किराए पर रह रहे किराएदार सोबरन के साथ चक्कर चल रहा है. जब चंदन ने पत्नी की पूरी सच्चाई इकट्ठी कर ली तो एक दिन रात के समय एकांत में उस के सामने परोसते हुए पूछा, ”ये क्या है छाया, तुम्हें घरपरिवार के मानसम्मान का कोई खयाल भी है?’’

”मतलब? मैं समझी नहीं आप क्या कह रहे हैं?’’ छाया चौंकते हुए बोली.

”ठीक है, मैं तुम्हें मतलब समझा देता हंू.’’ पत्नी की आंखों में आंखें डाले चंदन ने आगे कहा, ”देखो, अपनी हरकतों से बाज आ जाओ. जो तुम कर रही हो, अच्छा नहीं कर रही हो.’’

”वही तो जानना चाहती हूं कि मैं ने ऐसा क्या कर दिया, जिस से इस घर पर पहाड़ टूट गया?’’ छाया झल्ला कर बोली. उसे शक हो गया था कि कहीं उस के प्यार वाली बात पति को पता तो नहीं चल गई.

”इधरउधर की बात से तो अच्छा है कि मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊं. यह बताओ, सोबरन से तुम्हारा क्या संबंध हैï? तुम कब से जानती हो उसे?’’

पत्नी के प्रेमी का ऐसे खुला राज

पति के मुंह से सोबरन का नाम सुनते ही छाया के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. छाया यह सोचसोच कर परेशान हो रही थी कि चंदन को कैसे पता उस के रिश्तों के बारे में? आखिर उसे किस ने बताया?

उस रात चंदन ने पत्नी को खूब समझाया कि उस का अपना घरपरिवार है. समाज में इज्जत है. जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जाए और अपने परिवार के लिए जियो. तुम्हारी गलतियों को माफ करने के लिए मैं तैयार हूं. नहीं तो मेरे घर में ऐसी कुल्टा औरत के लिए कोई जगह नहीं है.

पति के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ था. प्रेमी सोबरन का साथ छोडऩे के लिए वह हरगिज तैयार नहीं थी और पति से साफ शब्दों में कह भी दिया कि सोबरन के बिना मैं जी नहीं सकती.

पत्नी का निर्लज्जता भरा जवाब सुन कर चंदन ठगा सा रह गया. गुस्से में उस का शरीर कांपने लगा. उस की आंखें गुस्से से सुर्ख हो गईं. पति का ऐसा रौद्र रूप देख कर एक पल के लिए छाया भी दहशत में आ गई थी, लेकिन बेहया की तरह उस के सामने डटी रही. इस के बाद दोनों के बीच एक गहरी खाई खुद गई थी. विवादों ने मधुर रिश्तों के बीच अपना डेरा जमा लिया था. सोबरन को ले कर आए दिन घर में कलह होने लगी थी.

पानी जब सिर से ऊपर बहने लगा तो चंदन ने पत्नी की पूरी सच्चाई अपने मांबाप और अपने भाइयों को बता दी. बहू के अनैतिक पतन की कहानी सुन कर घर वालों के बदन में आ लग गई. कोई भी इज्जतदार परिवार बहू की इस हरकत को सहन नहीं कर सकता था. चंदन के घर वाले भी इसे सहन करने के लिए तैयार नहीं थे. नतीजा रोजरोज घर में कलह बढ़ती गई.

पत्नी के साथ सख्ती करने के बजाए उसे सहीसलामत उस के घर (मायके) पहुंचा देने में ही चंदन ने भलाई समझी. वह 19 जनवरी, 2023 को छाया और दोनों बच्चों को मायके (डेली) गांव के बाहर छोड़ कर वापस अपने घर लौट आया था.

पति की बंदिशों से छाया आजाद हो चुकी थी. वह लौट कर मायके जाना नहीं चाहती थी. सोच रही थी जब मांबाप पूछेंगे तो उन को क्या जबाव देगी, इसलिए उस ने एक प्लान बनाया. उस ने फोन कर के प्रेमी सोबरन को गांव के बाहर बुलाया. उस समय सोबरन घर (डेली) पर ही था.

प्रेमिका की काल रिसीव कर सोबरन उस से मिलने गांव के बाहर पहुंचा, जहां छाया सामान और दोनों बच्चों के साथ खड़ी थी. छाया ने सोबरन से सारी बातें कह सुनाई और इसी समय यहां से कहीं दूर चलने की अपनी जिद पर अड़ गई.

मरता क्या न करता. सोबरन उसी समय छाया और दोनों बच्चों को ले कर मध्य प्रदेश की उद्योगनगरी जिला सीहोर जा पहुंचा. वहां दोनों ने अपने तरीके से अपनी नई जिंदगी शुरू की. सीहोर में उन्होंने किराए का कमरा लिया और जीवन की नई पारी की शुरुआत की.

दोनों ने मिल कर सीहोर तहसील में चायनाश्ते और पूरीकचौरी की दुकान खोली और मजे से जीने लगे. सोबरन को पा कर छाया बहुत खुश थी और छाया को पा कर सोबरन ने पत्नी की कमी पूरी कर ली थी.

धीरेधीरे 4 महीने का समय बीत गया था. छाया ने न तो मां का हालचाल लिया था और न उस के बारे में कोई समाचार ही मिल पा रहा था. जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ था कि 15 दिनों में एक बार फोन कर के छाया ने मां का हालचाल न लिया हो, पहली बार ऐसा हुआ था जब 4 महीने का समय बीत गया था और उस ने मां का समाचार नहीं लिया था.

ताज्जुब की बात तो यह थी कि मां सुखवती जब बेटी के फोन पर काल करती तो उस का फोन स्विच औफ बताता या नेटवर्क क्षेत्र से बाहर आता था. बेटी का कहीं पता नहीं चल रहा था.

यह देख कर सुखवती चिंतित और परेशान हो गई थी. जब दामाद को फोन कर बेटी के बारे में पूछती थी तो दामाद का ऊलजुलूल जवाब सुन कर कर परेशान हो जाती थी.

चंदन ने क्यों ली राहत की सांस

सासू मां को दामाद चंदन ने जवाब दे दिया कि छाया से अब उस का कोई रिश्ता नहीं है. उस ने चरित्रहीनता का चोला ओढ़ा है, उस के बाद से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता खत्म हो गया. अब वह आजाद है, जिस के साथ रहना चाहे, घर बसाना चाहे रह सकती है, घर बसा सकती है. फिलहाल मैं ने उसे 19 जनवरी, 2023 को मायके पहुंचा दिया था.

दामाद का जवाब सुन कर सुखवती चौंक गई. बेटी को मायके छोड़ा होता तो घर पर ही होती, लेकिन वह घर पहुंची ही नहीं. चंदन भी सासूमां का सवाल सुन कर अवाक रह गया था कि छाया घर नहीं पहुंची तो 4 माह से कहां है?वो एक अबूझ पहेली बन गई थी.

परेशान हो कर सुखवती ने बेटी की ससुराल वालों पर हमला बोल दिया था. उस ने दामाद, सास और देवरों पर बेटी और नातियों की हत्या कर शव छिपाने का आरोप लगाया था. सास के आरोप से चंदन और उस के घर वाले परेशान हो गए थे कि उस ने उसे नुकसान तो पहुंचाया ही नहीं, फिर ये क्यों बेवजह हमें हत्या के आरोप में फंसा रही है.

इधर सुखवती को थाने से न्याय नहीं मिला तो उस ने अदालत का सहारा लिया. अदालत के आदेश पर छाया की ससुराल वालों पर हत्या कर शव गायब करने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होते ही छाया के ससुराल वाले फरार हो गए.

चंदन को यकीन था कि छाया जिंदा है और वह अपने प्रेमी के साथ ही कहीं रह रही होगी. फिर फरारी के दौरान ही उस ने छाया का पता लगाना शुरू किया और अपने लक्ष्य में कामयाब हो गया. एक गुमनाम वीडियो ने छाया और दोनों बेटों के जिंदा होने का सबूत दे दिया.

फिर क्या था, करीब सवा साल से छाया और उस के बच्चे रहस्य बने थे, पटाक्षेप हो गया था. सुखवती को बेटी की करतूत पता नहीं थी. जब सच्चाई उस के सामने आई तो वह भी हैरान रह गई थी. फिलहाल उस ने भी बेटी से मुंह मोड़ लिया था. छाया को प्रेमी सोबरन से एक बेटा पैदा हुआ.

कथा लिखे जाने तक छाया और उस के तीनों बच्चे नारी निकेतन में थे, प्रेमी सोबरन जेल में बंद था. छाया ने कानून से गुजारिश की है कि वह अपनी ससुराल लौटना नहीं चाहती है, वह अपने प्रेमी के साथ बाकी जीवन बिताना चाहती है.

कथा लिखने तक पुलिस मामले की जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगाने की तैयारी कर रही थी. चंदन और उस के घर वाले अपने घर लौट आए थे और उन्होंने राहत की सांस ली.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अवैध संबंधों में हुई थी भाजपा नेता की हत्या

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को दोपहर 12 बजे के करीब थाना फीलखाना से सूचना मिली कि भाजपा के दबंग नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर माहेश्वरी मोहाल में जानलेवा हमला किया गया है. दोनों को मरणासन्न हालत में हैलट अस्पताल ले जाया गया है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए वह एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह मौजूद थे. सत्तापक्ष के नेता पर हमला हुआ था, इसलिए मामला बिगड़ सकता था.

इस बात को ध्यान में रख कर एसएसपी साहब ने कई थानों की पुलिस और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुला लिया था. माहेश्वरी मोहाल के कमला टावर चौराहे से थोड़ा आगे संकरी गली में बालाजी मंदिर रोड पर दिनदहाड़े यह हमला किया गया था. सड़क खून से लाल थी. अखिलेश कुमार मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने अपना काम किया.

घटनास्थल पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था. दुकानों के शटर गिरे हुए थे, आसपास के लोग घरों में दुबके थे. वहां लोग कितना डरे हुए थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वहां कोई कुछ भी कहने सुनने को तैयार नहीं था. बाहर की कौन कहे, छज्जों पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. यह 29 नवंबर, 2017 की बात है.

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घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद अखिलेश कुमार मीणा हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां कोहराम मचा हुआ था. इस की वजह यह थी कि जिस भाजपा नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर हमला हुआ था, डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया तो दहल उठे.

मृतक सतीश कश्यप का पूरा शरीर धारदार हथियार से गोदा हुआ था. जबकि ऋषभ पांडेय के शरीर पर मात्र 3 घाव थे. इस सब से यही लगा कि कातिल के सिर पर भाजपा नेता सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन को मारने का जुनून सा सवार था.

अस्पताल में मृतक सतीश कुमार की पत्नी बीना और दोनों बेटियां मौजूद थीं. सभी लाश के पास बैठी रो रही थीं. ऋषभ की मां अर्चना और पिता राकेश पांडेय भी बेटे की लाश से लिपट कर रो रहे थे. वहां का दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था. अखिलेश कुमार मीणा ने मृतकों के घर वालों को धैर्य बंधाते हुए आश्वासन दिया कि कातिलों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक सतीश कश्यप की पत्नी बीना और बेटी आकांक्षा से हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो आकांक्षा ने बताया कि उस के पिता की हत्या शिवपर्वत, उमेश कश्यप और दिनेश कश्यप ने की है. एक महिला से प्रेमसंबंधों को ले कर शिवपर्वत उस के पिता से दुश्मनी रखता था. उस ने 10 दिनों पहले धमकी दी थी कि वह उस के पिता का सिर काट कर पूरे क्षेत्र में घुमाएगा.

मृतक सतीश कश्यप ने इस की शिकायत थाना फीलखाना में की थी, लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और एक महिला सपा नेता के कहने पर समझौता करा दिया. अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता और शिवपर्वत पर काररवाई की होती तो आज भाजपा नेता सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय जिंदा होते.

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अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक ऋषभ के घर वालों से पूछताछ की तो उस की मां अर्चना पांडेय ने बताया कि उन का बेटा अकसर नेताजी के साथ रहता था. वह उन का विश्वासपात्र था, इसलिए वह जहां भी जाते थे, उसे साथ ले जाते थे. आज भी वह उन के साथ जा रहा था. ऋषभ स्कूटी चला रहा था, जबकि नेताजी पीछे बैठे थे. रास्ते में कातिलों ने हमला कर के दोनों को मार दिया.

मृतक सतीश कश्यप की बेटी आकांक्षा ने जो बताया था, उस से साफ था कि ये हत्याएं प्रेमसंबंध को ले कर की गई थीं. इसलिए एसएसपी साहब ने थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर तुरंत रिपोर्ट दर्ज करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

मृतक सतीश कश्यप के घर वालों ने शिवपर्वत पर हत्या का आरोप लगाया था, इसलिए देवेंद्र सिंह ने सतीश कश्यप के बड़े भाई प्रेम कुमार की ओर से हत्या का मुकदमा शिवपर्वत व 2 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि बंगाली मोहाल का रहने वाला शिवपर्वत नगर निगम में सफाई नायक के पद पर नौकरी करता था. वह दबंग और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के इटावा बाजार निवासी राकेश शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा से अवैधसंबंध थे. इधर कल्पना शर्मा का मिलनाजुलना सतीश कश्यप से भी हो गया था. इस बात की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो वह सतीश कश्यप से दुश्मनी रखने लगा. इसी वजह से उस ने सतीश की हत्या की थी.

शिवपर्वत को गिरफ्तार करने के लिए एसपी अनुराग आर्या ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, चौकीप्रभारी फूलचंद, एसआई आशुतोष विक्रम सिंह, सिपाही नीरज, गौतम तथा महिला सिपाही रेनू चौधरी को शामिल किया.

शिवपर्वत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. इस के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन के आधार पर उसे फूलबाग चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. शिवपर्वत को गिरफ्तार कर थाना फीलखाना लाया गया.

एसपी अनुराग आर्या की मौजूदगी में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी बहानेबाजी के सीधे सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस की प्रेमिका कल्पना शर्मा की बेटी की शादी 30 नवंबर को थी. इस शादी का खर्च वही उठा रहा था, जबकि सतीश कश्यप भी शादी कराने का श्रेय लूटने के लिए पैसे खर्च करने लगे थे. यही बात उसे बुरी लगी थी.

उस ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, लेकिन वह नहीं माने. उस की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब कल्पना शर्मा ने सतीश कश्यप को भी शादी में निमंत्रण दे दिया. इस के बाद उस ने सतीश कश्यप की हत्या की योजना बनाई और शादी से एक दिन पहले उन की हत्या कर दी. ऋषभ को वह नहीं मारना चाहता था, लेकिन वह सतीश कश्यप को बचाने लगा तो उस पर भी उस ने हमला कर दिया. इस के अलावा वह जिंदा रहता तो उस के खिलाफ गवाही देता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस से हथियार, खून सने कपड़े बरामद कराने के लिए कहा तो उस ने फेथफुलगंज स्थित जगमोहन मार्केट के पास के कूड़ादान से चाकू और खून से सने कपडे़ बरामद करा दिए. बयान देते हुए शिवपर्वत रोने लगा तो अनुराग आर्या ने पूछा, ‘‘तुम्हें दोनों की हत्या करने का पश्चाताप हो रहा है क्या?’’

शिवपर्वत ने आंसू पोंछते हुए तुरंत कहा, ‘‘सर, हत्या का मुझे जरा भी अफसोस नहीं है. मैं यह सोच कर परेशान हो रहा हूं कि मेरी प्रेमिका इस बात को ले कर परेशान हो रही होगी कि पुलिस मुझे परेशान कर रही होगी.’’

सतीश कश्यप और ऋषभ की हत्याएं कल्पना शर्मा की वजह से हुई थीं, इसलिए पुलिस को लगा कि कहीं हत्या में कल्पना शर्मा भी तो शामिल नहीं थी. इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने कल्पना शर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना से पहले और बाद में शिवपर्वत की उस से बात हुई थी.

इसी आधार पर पुलिस पूछताछ के लिए कल्पना को भी 3 दिसंबर, 2017 को थाने ले आई, जहां पूछताछ में उस ने बताया कि सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन की हत्या की योजना में वह भी शामिल थी. इस के बाद देवेंद्र सिंह ने उसे भी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. शिवपर्वत और कल्पना शर्मा से विस्तार से की गई पूछताछ में भाजपा नेता सतीश कश्यप और उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महानगर कानपुर के थाना फीलखाना का एक मोहल्ला है बंगाली मोहाल. वहां की चावल मंडी में सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी बीना के अलावा 2 बेटियां मीनाक्षी, आकांक्षा और एक बेटा शोभित उर्फ अमन था.

सतीश कश्यप काफी दबंग था. उस की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, इसलिए वह किसी से भी नहीं डरता था. इस की वजह यह थी कि उस का संबंध बब्बन गैंग के अपराधियों से था. इसीलिए बाद में उसे लोग छोटे बब्बन के नाम से पुकारने लगे थे.

इसी नाम ने सतीश को दहशत का बादशाह बना दिया था.फीलखाना के बंगाली मोहाल, माहेश्वरी मोहाल, राममोहन का हाता और इटावा बाजार में उस की दहशत कायम थी. लोग उस के नाम से खौफ खाते थे. उस पर तमाम मुकदमे दर्ज हो गए. वह हिस्ट्रीशीटर बन गया. 10 सालों तक इलाके में सतीश की बादशाहत कायम रही. लेकिन उस के साथ घटी एक घटना से उस का हृदय परिवर्तित हो गया. उस के बाद उस ने अपराध करने से तौबा कर ली.

दरअसल उस के बेटे का एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की जान बच गई. इसी के बाद से सतीश ने अपराध करने बंद कर दिए. अदालत से भी वह एक के बाद एक मामले में बरी होता गया.

अपराध से किनारा करने के बाद सतीश राजनीति करने लगा. पहले वह बसपा में शामिल हुआ. सपा सत्ता में आई तो वह सपा में चला गया. सपा सत्ता से गई तो वह भाजपा में आ गया. राजनीति की आड़ में वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करता था. वह विवादित पुराने मकानों को औने पौने दामों में खरीद लेता था. इस के बाद उस पर नया निर्माण करा कर महंगे दामों में बेचता था. इस में उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

ऋषभ सतीश कश्यप का दाहिना हाथ था. उस के पिता राकेश पांडेय इटावा बाजार में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा बेटा ऋषभ और बेटी रेनू थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. 8वीं पास कर के ऋषभ सतीश कश्यप के यहां काम करने लगा था.

वह उम्र में छोटा जरूर था, लेकिन काफी होशियार था. सतीश कश्यप का सारा काम वही संभालता था. हालांकि सतीश का बेटा अमन और बेटी आकांक्षा भी पिता के काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन ऋषभ भी पूरी जिम्मेदारी से सारे काम करता था. इसलिए सतीश हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

बंगाली मोहाल में ही शिवपर्वत वाल्मीकि रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह नगर निगम में सफाई नायक था. उसे ठीकठाक वेतन तो मिलता ही था, इस के अलावा वह सफाई कर्मचारियों से उगाही भी करता था. लेकिन वह शराबी और अय्याश था, इसलिए हमेशा परेशान रहता था. उस की नजर हमेशा खूबसूरत महिला सफाईकर्मियों पर रहती थी, जिस की वजह से कई बार उस की पिटाई भी हो चुकी थी.

एक दिन शिवपर्वत इटावा बाजार में बुटीक चलाने वाली कल्पना शर्मा के घर के सामने सफाई करा रहा था, तभी उस की आंख में कीड़ा चला गया. वह आंख मलने लगा और दर्द तथा जलन से तड़पने लगा. उसे परेशान देख कर कल्पना शर्मा ने रूमाल से उस की आंख साफ की और कीड़ा निकाल दिया. कल्पना शर्मा की खूबसूरत अंगुलियों के स्पर्श से शिवपर्वत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. वह भी काफी खूबसूरत थी, इसलिए पहली ही नजर में शिवपर्वत उस पर मर मिटा.

इस के बाद शिवपर्वत कल्पना के आगेपीछे घूमने लगा, जिस से वह उस के काफी करीब आ गया. वह उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. कल्पना अनुभवी थी. वह समझ गई कि यह उस का दीवाना हो चुका है. कल्पना का पति राजेश कैटरर्स का काम करता था. वह अकसर बाहर ही रहता था. ज्यादातर रातें उस की पति के बिना कटती थीं, इसलिए उस ने शिवपर्वत को खुली छूट दे दी, जिस से दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

नाजायज संबंध बने तो शिवपर्वत अपनी पूरी कमाई कल्पना पर उड़ाने लगा, जिस से उस के अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. पत्नी और बच्चे भूखों मरने लगे. पत्नी वेतन के संबंध में पूछती तो वह वेतन न मिलने का बहाना कर देता. पर झूठ कब तक चलता. एक दिन रामदुलारी को पति और कल्पना शर्मा के संबंधों का पता चल गया. वह समझ गई कि पति सारी कमाई उसी पर उड़ा रहा है.

औरत कभी भी पति का बंटवारा बरदाश्त नहीं करती तो रामदुलारी ही कैसे बरदाश्त करती. उस ने पति का विरोध भी किया, लेकिन शिवपर्वत नहीं माना. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो आजिज आ कर वह बच्चों को ले कर मायके चली गई. इस के बाद तो शिवपर्वत आजाद हो गया. अब वह कल्पना के यहां ही पड़ा रहने लगा. उस की बेटी उसे पापा कहने लगी.

खूबसूरत और रंगीनमिजाज कल्पना शर्मा की सतीश कश्यप से भी जानपहचान थी. सतीश की उस के पति राजेश से दोस्ती थी. उसी ने कल्पना से उस को मिलाया था. उस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. लेकिन ये संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सके. दोनों अलग हो गए थे.

कल्पना शर्मा की बेटी सयानी हुई तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगी. बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए वह मकान का एक हिस्सा बेचना चाहती थी. सतीश कश्यप को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना शर्मा से मिला और उस का मकान खरीद लिया. मकान खरीदने के लिए वह कल्पना शर्मा से मिला तो एक बार फिर दोनों का मिलना जुलना शुरू हो गया. सतीश ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस की बेटी की शादी में हर तरह से मदद करेगा.

मदद की चाह में कल्पना शर्मा का झुकाव सतीश की ओर हो गया. अब वह शिवपर्वत की अपेक्षा सतीश को ज्यादा महत्त्व देने लगी. एक म्यान में 2 तलवारें भला कैसे समा सकती हैं? प्रेमिका का झुकाव सतीश की ओर देख कर शिवपर्वत बौखला उठा. उस ने कल्पना शर्मा को आड़े हाथों लिया तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा, ‘‘शिव, तुम्हें किसी ने झूठ बताया है. हमारे और नेताजी के बीच कुछ भी गलत नहीं है.’’

कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी तय कर दी थी. शादी की तारीख भी 30 नवंबर, 2017 रख दी गई. गोकुलधाम धर्मशाला भी बुक कर लिया गया. वह शादी की तैयारियों में जुट गई. शिवपर्वत शादी की तैयारी में हर तरह से मदद कर रहा था. लेकिन जब उसे पता चला कि सतीश कश्यप भी शादी में कल्पना की मदद कर रहा है तो उसे गुस्सा आ गया.

शिवपर्वत ने कल्पना शर्मा को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि अगर सतीश उस की बेटी की शादी में आया तो ठीक नहीं होगा. अगर उस ने उसे निमंत्रण दिया तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेमिका को खरीखोटी सुना कर उस ने सतीश को फोन कर के धमकी दी कि अगर उस ने कल्पना से मिलने की कोशिश की तो वह उस का सिर काट कर पूरे इलाके में घुमाएगा. देखेगा वह कितना बड़ा दबंग है.

शिवपर्वत सपा का समर्थक था. सपा के कई नेताओं से उस के संबंध थे. उस के भाई भी सपा के समर्थक थे और उस का साथ दे रहे थे. सतीश ने शिवपर्वत की धमकी की शिकायत पुलिस से कर दी. सीओ कोतवाली ने शिवपर्वत को थाने बुलाया तो वह सपा नेताओं के साथ थाने आ पहुंचा. सपा नेताओं ने विवाद पर लीपापोती कर के समझौता करा दिया.

शिवपर्वत के मना करने के बावजूद कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी का निमंत्रण सतीश कश्यप को दे दिया था. जब इस की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया. तब कल्पना ने कहा कि सतीश कश्यप दबंग है. उस से डर कर उस ने उसे शादी का निमंत्रण दे दिया है. अगर वह चाहे तो उसे रास्ते से हटा दे. इस में वह उस का साथ देगी.

‘‘ठीक है, अब ऐसा ही होगा. वह शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.’’ शिवपर्वत ने कहा.

इस के बाद उस ने शादी के एक दिन पहले सतीश कश्यप की हत्या करने की योजना बन डाली. इस के लिए उस ने फेरी वाले से 70 रुपए में चाकू खरीदा और उस पर धार लगवा ली. 29 नवंबर की सुबह सतीश किसी नेता से मिल कर घर लौटे तो उन्हें किसी ने फोन किया. फोन पर बात करने के बाद वह ऋषभ के साथ स्कूटी से निकल पड़े. पत्नी बीना ने खाने के लिए कहा तो 10 मिनट में लौट कर खाने को कहा और चले गए.

करीब 11 बजे वह बालाजी मंदिर मोड़ पर पहुंचे तो घात लगा कर बैठे शिवपर्वत ने स्कूटी रोकवा कर उन पर हमला कर दिया. सतीश कश्यप सड़क पर ही गिर पड़े. सतीश को बचाने के लिए ऋषभ शिवपर्वत से भिड़ गया तो उस ने उस पर भी चाकू से वार कर दिया. ऋषभ जान बचा कर भागा, लेकिन आगे गली बंद थी. वह जान बचाने के लिए घरों के दरवाजे खटखटाता रहा, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

पीछा कर रहे शिवपर्वत ने उसे भी घायल कर दिया. ऋषभ जमीन पर गिर पड़ा. इस पर शिवपर्वत का गुस्सा शांत नहीं हुआ. लौट कर उस ने सड़क पर पड़े तड़प रहे सतीश कश्यप पर चाकू से कई वार किए. एक तरह से उस ने उस के शरीर को गोद दिया. इस के बाद इत्मीनान से चाकू सहित फरार हो गया.

शिवपर्वत ने इस बात की सूचना मोबाइल फोन से कल्पना शर्मा को दे दी थी. इस के बाद रेल बाजार जा कर कपड़ों की दुकान से उस ने एक जींस व शर्ट खरीदी और सामुदायिक शौचालय जा कर खून से सने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लिए और फिर रेलवे स्टेशन पर जा कर छिप गया.

इस वारदात से इलाके में दहशत फैल गई थी. दुकानदारों ने शटर गिरा दिए थे और गली के लोग घरों में घुस गए थे. लेकिन किसी ने घटना की सूचना पुलिस और सतीश कश्यप के घर वालों को दे दी थी.

खबर पाते ही सतीश कश्यप की पत्नी बीना अपनी दोनों बेटियों मीनाक्षी और आकांक्षा तथा बेटे अमन के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचीं. उन की सूचना पर ऋषभ के पिता राकेश और मां अर्चना भी आ गईं. थाना फीलखाना के प्रभारी देवेंद्र सिंह भी आ गए. उन्होंने घायलों को हैलट अस्पताल भिजवाया और वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पूछताछ के बाद थाना फीलखाना पुलिस ने अभियुक्त शिवपर्वत और कल्पना शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं. कल्पना शर्मा के जेल जाने से उस की बेटी का रिश्ता टूट गया.

सोचने वाली बात यह है कि शिवपर्वत को मिला क्या? उस ने जो अपराध किया है, उस में उसे उम्रकैद से कम की सजा तो होगी नहीं. उस ने जिस कल्पना के लिए यह अपराध किया, क्या वह उसे मिल पाएगी? उस ने अपनी जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही कल्पना और उस की बेटी का भी भविष्य खराब कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फोन बना दोधारी तलवार

पूनम का मूड सुबह से ही ठीक नहीं था. बच्चों को स्कूल भेजने का भी उस का मन नहीं हो रहा था. पर बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी था, इसलिए किसी तरह उस ने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. पूनम के चेहरे पर एक अजीब सा खौफ था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहे. वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

पूनम का मूड खराब देख कर उस के पति विनय ने हंसते हुए पूछा, ‘‘डार्लिंग, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. आखिर बात क्या है?’’

पूनम ने पलकें उठा कर पति को देखा. फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह फूट फूट कर इस तरह रोने लगी, जैसे गहरे सदमे में हो.

विनय ने करीब आ कर उसे सीने से लगा लिया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ पूनम, तुम मुझ से नाराज हो क्या? क्या तुम्हें मेरी कोई बात बुरी लग गई?’’

‘‘नहीं,’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

‘‘तो फिर क्या बात है, जो तुम इस तरह रो रही हो?’’ विनय ने हमदर्दी दिखाई.

पति का प्यार मिलते ही पूनम ने मोबाइल की ओर इशारा कर के सुबकते हुए बोली, ‘‘मेरी परेशानी का कारण यह मोबाइल है.’’

विनय ने हैरत से एक नजर मेज पर रखे मोबाइल फोन पर डाली, उस के बाद पत्नी से मुखातिब हुआ, ‘‘मैं समझा नहीं, इस मोबाइल से तुम्हारी परेशानी का क्या संबंध है? साफसाफ बताओ, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

पूनम मेज से मोबाइल उठा कर पति के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘आप खुद ही देख लो. इस के मैसेज बौक्स में क्या लिखा है?’’

विनय की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने फटाफट फोन के मैसेज का इनबौक्स खोल कर देखा. जैसे ही उस ने मैसेज पढ़ा, उस के चेहरे पर एक साथ कई रंग आए गए.

मैसेज में लिखा था, ‘मेरी जान, तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी विनय के साथ देखता हूं, मेरा खून खौल जाता है. आखिर तुम उस के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो. मैं ने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी है.’

मैसेज पढ़ कर विनय को गुस्सा आ गया. फोन को मेज पर रख कर उस ने पत्नी से कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ पूनम दबी जुबान से बोली.

विनय कुछ देर सोचता रहा, फिर उस ने पत्नी की आंखें में झांका. उसे लगा कि पत्नी सच बोल रही है, क्योंकि अगर वह उस के साथ गेम खेल रही होती तो इस तरह परेशानी और रुआंसी नहीं होती. उसे लगा कि वाकई कोई उस की पत्नी को परेशान कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने का एक मोहल्ला है शारदानगर. इसी मोहल्ले के इंद्रपुरी में विनय झा अपने परिवार के साथ रहता था. उस का अपना आलीशान मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उस का हौजरी का व्यवसाय था. इस से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी.

विनय झा इस से पहले अपने भाइयों के साथ दर्शनपुरवा में रहता था. वहां उस का अपना छोटा सा कारखाना था. उस का परिवार काफी दबंग किस्म का था. दबंगई से ही इन लोगों ने पैसा कमाया और फिर उसी पैसे से हौजरी का काम शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा तो विनय ने इंद्रपुरी में मकान बनवा लिया.

पूनम से विनय की शादी कुछ साल पहले हुई थी. पूनम बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में विनय उस का दीवाना हो गया था. उस की दीवानगी पूनम को भी भा गई. दोनों की पसंद के बाद उन की शादी हो गई. दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे. 8 साल के अंतराल में पूनम 2 बच्चों की मां बन गई.

ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक पूनम को अश्लील मैसेज तथा प्रेमप्रदर्शन वाले फोन आने लगे. पूनम पति का गुस्सा जानती थी, अत: पहले तो उस ने पति को कुछ नहीं बताया, पर जब अति हो गई तो मजबूरी में बताना पड़ा.

विनय झा ने जब पत्नी के फोन में आए हुए मैसेज पढ़े तो उस की आंखों में खून उतर आया. जिस फोन नंबर से मैसेज आए थे, विनय ने उस नंबर पर काल की तो फोन रिसीव नहीं किया गया. इस पर विनय गुस्से में बड़बड़ाया, ‘‘कमीने…तू एक बार सामने आ जा. अगर तुझे जिंदा दफन न कर दिया तो मेरा नाम विनय नहीं.’’

गुस्से में कांपते विनय ने पूनम से पूछा, ‘‘क्या वह तुम्हें फोन भी करता है?’’

‘‘हां,’’ पूनम ने सिर हिलाया.

‘‘क्या कहता है?’’

‘‘नाजायज संबंध बनाने को कहता है. अब कैसे बताऊं आप को, इस ने तो मेरी जान ही सुखा दी है. लो, आप दूसरे मैसेज भी पढ़ लो. इन से पता चल जाएगा कि उस की मानसिकता क्या है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि वह तुम्हें फोन कब करता है या मैसेज कब भेजता है?’’ विनय ने पूछा.

‘‘जब आप घर पर नहीं होते, तभी उस के फोन आते हैं. जब आप घर पर होते हो तो न फोन आता है न मैसेज.’’ वह बोली.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह मुझ पर निगाह रखता है. उसे मेरे घर जानेआने का वक्त भी मालूम है.’’ कहते हुए विनय ने मैसेज बौक्स खोल कर दूसरे मैसेज भी पढ़े. एक मैसेज तो बहुत जुनूनी था, ‘‘तुम मुझ से क्यों नहीं मिलतीं? रात को सपने में तो खूब आती हो. अपने गोरे बदन को मेरे बदन से सटा कर प्यार करती हो. आह जान, तुम कितनी प्यारी हो. एक बार मुझ से साक्षात मिल कर मेरी जन्मों की… नहीं तो समझ लेना मैं तुम्हारी चौखट पर आ कर जान दे दूंगा. अभी तो मैं इसलिए चुप हूं कि तुम्हें रुसवा नहीं करना चाहता.’’

मैसेज पढ़ कर विनय की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘कमीने, तेरी प्यास तो मैं बुझाऊंगा. तू जान क्या देगा, मैं ही तेरी जान ले लूंगा.’’

पति का रूप देख कर पूनम का कलेजा कांप उठा. उसे लगा कि उस ने पति को बता कर कहीं गलती तो नहीं कर दी. विनय ने डरीसहमी पत्नी को मोबाइल देते हुए समझाया, ‘‘अब जब उस का फोन आए तो उस से बात करना. मीठीमीठी बातें कर के उस का नाम व पता हासिल कर लेना. इस के बाद मैं उस के सिर से प्यार का भूत उतार दूंगा.’’

पति की बात पर सहमति जताते हुए पूनम ने हामी भर दी.

एक दिन विनय जैसे ही घर से निकला, पूनम के मोबाइल पर उस का फोन आ गया. पूनम के हैलो कहते ही वह बोला, ‘‘पूनम, तुम मुझे भूल गई, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला और न भूलूंगा. याद है, हम दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

पूनम अपने दिमाग पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. तभी उस ने कहा, ‘‘2 साल पहले, जब मैं तुम्हारे घर फर्नीचर बनाने आया था. याद है, उस समय मैं तुम्हारे इर्दगिर्द रहा करता था. तुम्हारी खूबसूरती को निहारता रहता था. तुम इतराती इठलाती होंठों पर मुसकान बिखेरती इधर से उधर निकल जाती थी और मैं तड़पता रह जाता था.’’

‘‘अच्छा, तब से तुम मेरे दीवाने हो. पागल, तब प्यार का इजहार क्यों नहीं किया? अच्छा, तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा, अपने बारे में थोड़ा बताओ न.’’ पूनम खिलखिला कर हंसी.

‘‘हाय मेरी जान, तुम हंसती हो तो मेरे दिल में घंटियां सी बज उठती हैं. सो स्वीट यू आर.’’ उधर से रोमांटिक स्वर में कहा गया, ‘‘मैं तुम्हारा दीवाना विजय यादव बोल रहा हूं.’’

विजय यादव का नाम सुनते ही पूनम चौंकी. अब उसे उस की शक्लसूरत भी याद आ गई. इस के बाद पूनम ने उसे समझाया, ‘‘देखो विजय, अब बहुत हो गया. मैं किसी की पत्नी हूं, तुम्हें ऐसे मैसेज भेजते हुए शर्म आनी चाहिए. मैं कह देती हूं कि आइंदा मुझे न फोन करना और न मैसेज करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

पूनम ने फोन काटा ही था कि उस का पति विनय आ गया. उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘उसी का जो फोन करता है और अश्लील मैसेज भेजता है. आज मैं ने जान लिया कि वह कौन है.’’ पूनम ने विनय को बताया, ‘‘विजय यादव जो अपने यहां फर्नीचर बनाने आया था, वही यह सब कर रहा है. वैसे मैं ने उसे ठीक से समझा दिया है, शायद अब वह ऐसी हरकत न करे.’’

विजय यादव उर्फ   के पिता रामकरन यादव रावतपुर क्षेत्र के केशवनगर में रहते थे. रामकरन फील्डगन फैक्ट्री में काम करते थे. उन के 3 बेटों में इंद्रबहादुर मंझला था. वह बजरंग दल का नेता था और प्रौपर्टी तथा फर्नीचर का व्यवसाय करता था. ब्रह्मदेव चौराहा पर उस की फर्नीचर की दुकान थी. दुकान पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा कारीगर काम करते थे.

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इंद्रबहादुर आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दबंग भी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह बजरंग दल का जिला संयोजक था. उस की एक बड़ी खराब आदत थी उस का अय्याश होना. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह इधर धर मुंह मारता रहता था.

करीब 2 साल पहले इंद्रबहादुर इंद्रपुरी में  विनय झा के घर फर्नीचर बनाने आया था. उस समय जब उस ने खूबसूरत पूनम को देखा तो वह उस पर मर मिटा. उस ने उसी समय उसे अपने दिल में बसा लिया. उस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस के आगे पीछे मंडराने लगा. किसी बहाने से उस ने पूनम का फोन नंबर ले लिया. फिर वह उसे फोन करने लगा और अश्लील मैसेज भेजने लगा.

पूनम के समझाने के बाद वाकई कुछ दिनों तक इंद्रबहादुर ने उसे न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजे. इस से पूनम को तसल्ली हुई. पर 15-20 दिनों बाद उस की यह खुशी परेशानी में बदल गई. वह फिर से उसे फोन करने लगा.

एक रोज तो विजय ने हद कर दी. उस ने फोन पर पूनम से कहा कि अब उस से रहा नहीं जाता. उस की तड़प बढ़ती जा रही है. वह उस से मिल कर अपने अरमान पूरे करना चाहता है. गुरुदेव चौराहा आ कर मिलो. उस ने यह भी कहा कि अगर वह नहीं आई तो वह खुद उस के घर आ जाएगा.

इंद्रबहादुर की धमकी से पूनम डर गई. वह नहीं चाहती थी कि वह उस के घर आए. क्योंकि वह पति व परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों में गिरना नहीं चाहती थी. इसलिए वह उस से मिलने गुरुदेव चौराहे पर पहुंच गई. वहां वह उस का इंतजार कर रहा था. पूनम ने उस से घरपरिवार की इज्जत की भीख मांगी, लेकिन वह नहीं पसीजा. वह एकांत में मिलने का दबाव बनाता रहा.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. इंद्रबहादुर जब बुलाता, पूनम डर के मारे उस से मिलने पहुंच जाती. इस मुलाकात की पति व परिवार के किसी अन्य सदस्य को भनक तक न लगती. एक दिन तो इंद्रबहादुर ने पूनम को जहरीला पदार्थ देते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, तुम इसे अपने पति को खाने की किसी चीज में मिला कर खिला देना. कांटा निकल जाने पर हम दोनों मौज से रहेंगे.’’

पूनम जहरीला पदार्थ ले कर घर आ गई. उस ने उस जहर को पति को तो नहीं दिया, लेकिन खुद उस का कुछ अंश दूध में मिला कर पी गई. जहर ने असर दिखाना शुरू किया तो वह तड़पने लगी. विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गया, जिस से पूनम की जान बच गई. विनय ने पूनम से जहर खाने की बाबत पूछा तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.

इस के बाद पूनम को ले कर इंद्रबहादुर और विनय में झगड़ा होने लगा. दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. इसी झगड़े में एक दिन आमनासामना होने पर इंद्रबहादुर ने छपेड़ा पुलिया पर विनय के पैर में गोली मार दी. विनय जख्मी हो कर गिर पड़ा. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां किसी तरह विनय की जान बच गई.

विनय ने थाना कल्याणपुर में इंद्रबहादुर के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. विनय ने घटना के पीछे की असली बात को छिपा लिया. उस ने लेनदेन तथा महिला कर्मचारी को छेड़ने का मामला बताया. पुलिस ने भी अपनी विवेचना में पूनम का जिक्र नहीं किया. पुलिस ने इंद्रबहादुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

लगभग 10 महीने तक इंद्रबहादुर जेल में रहा. इस के बाद 9 अक्तूबर, 2017 को वह कानपुर जेल से जमानत पर रिहा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह फिर पूनम से मिलने की कोशिश करने लगा. लेकिन इस बार पूनम की ससुराल वाले सतर्क थे. उन्होंने पूनम का मोबाइल फोन बंद करा दिया था और घर पर कड़ी निगरानी रख रहे थे.

काफी मशक्कत के बाद भी जब वह पूनम तक नहीं पहुंच पाया, तब उस ने एक षडयंत्र रचा. षडयंत्र के तहत उस ने एक लड़की को सेल्सगर्ल बना कर विनय के घर भेजा और उस के जरिए पूनम को अपने नाम से लिया गया सिमकार्ड और मोबाइल फोन भिजवा दिया. पूनम के पास फोन पहुंचा तो विजय एक बार फिर पूनम के संपर्क में आ गया.

अब वह दिन में कईकई बार पूनम को फोन करने लगा. दोनों के बीच घंटों बातचीत होने लगी. बातचीत में विजय पूनम से एकांत में मिलने की बात कहता था. पूनम ने उसे उस की शादीशुदा जिंदगी और परिवार की इज्जत का हवाला दिया तो वह पूनम को बरगलाने की कोशिश करने लगा.

उस ने पूनम को समझाया कि वह अपने पति विनय की कार में चरस, स्मैक और तमंचा रख दे. यह सब चीजें वह उसे मुहैया करा देगा. इस के बाद वह पुलिस को फोन कर के विनय को पकड़वा देगा. विनय के जेल जाने के बाद दोनों आराम से साथ रहेंगे.

पूनम ने इंद्रबहादुर द्वारा फोन देने तथा बातचीत करने की जानकारी पति विनय को नहीं दी थी. दरअसल पूनम डर रही थी कि पति को बताने से वह भड़क जाएगा और उस से झगड़ा करेगा. इस झगड़े और मारपीट में कहीं उस के पति की जान न चली जाए. क्योंकि इंद्रबहादुर गोली मार कर विनय को पहले भी ट्रेलर दिखा चुका है.

इधर पति का साथ छोड़ने और अवैध संबंध बनाने की बात जब पूनम ने नहीं मानी तो इंद्रबहादुर ने एक और षडयंत्र रचा. उस ने पूनम को बदनाम करने के लिए रिचा झा और राधे झा नाम की फरजी आईडी से फेसबुक एकाउंट बना लिया. इस के बाद इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव ने पूनम के साथ अपनी अश्लील फोटो फेसबुक पर अपलोड कर इस की जानकारी उस के पति विनय, परिवार के अन्य लोगों तथा रिश्तेदारों को दे दी, ताकि वह बदनाम हो जाए.

विनय झा ने जब पूनम के साथ इंद्रबहादुर की अश्लील फोटो फेसबुक पर देखी तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी सच्चाई विनय को बता दी.

सच्चाई जानने के बाद विनय ने इस गंभीर समस्या पर अपने बड़े भाई विनोद झा और भतीजे सत्यम उर्फ विक्की से बात की. विनोद व सत्यम भी फेसबुक पर पूनम अश्लील फोटो देख चुके थे. वे दोनों भी इस समस्या का निदान चाहते थे. गहन मंथन के बाद पूनम, विनय, विनोद तथा सत्यम उर्फ विक्की ने इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव की हत्या की योजना बनाई. हत्या की योजना में विनय ने अपने मामा के साले के लड़के अनुपम को भी शामिल कर लिया.

अनुपम गाजियाबाद का रहने वाला था. उस का आपराधिक रिकौर्ड था. वह पूर्वांचल के एक बड़े माफिया के संपर्क में भी रहा था. इस के बाद अनुपम ने पूनम, विनय, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की के साथ विजय की हत्या की अंतिम रूपरेखा तैयार की और हत्या के लिए एक चापड़ खरीद कर रख लिया. इस के बाद अनुपम वापस गाजियाबाद चला गया.

24 सितंबर, 2017 को अनुपम अपने एक अन्य साथी के साथ कानपुर आया और विनय झा के घर पर रुका. उस ने इंद्रबहादुर की हत्या के संबंध में एक बार फिर पूनम, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की से विचारविमर्श किया. इस के बाद वह उन के साथ वह जगह देखने गया, जहां इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव को षडयंत्र के तहत बुलाना था.

शाम पौने 6 बजे पूनम झा ने योजना के तहत इंद्रबहादुर को फोन किया. उस ने उसी मोबाइल से बात की, जो उस ने पूनम को भिजवाया था. फोन पर पूनम ने उस से कहा कि वह पति विनय को फंसा कर जेल भिजवा कर उस के साथ रहने को तैयार है, लेकिन इस से पहले वह उस की सारी योजना समझना चाहती है, इसलिए वह उस से मिलने अरमापुर थाने के पीछे मजार के पास आ जाए. चरस, स्मैक व असलहा भी साथ ले आए, ताकि मौका देख कर वह उस सामान को पति की गाड़ी में रख सके.

पूनम की बातों में फंस कर इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव अपनी बोलेरो गाड़ी से अरमापुर थाने के पीछे पहुंच गया. यह सुनसान इलाका है. वहां पूनम व उस का पति तथा अन्य साथी पहले से मौजूद थे. इंद्रबहादुर पूनम से बात करने लगा. उसी समय अनुपम ने रेंच से विजय के सिर पर पीछे से वार कर दिया. विजय लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा तो पूनम के पति विनय झा, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा अनुपम ने उसे दबोच लिया.

उसी समय पूनम विजय की छाती पर सवार हो गई और बोली, ‘‘कमीने, तूने मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम कर बदनाम किया है. आज तुझे तेरे पापों की सजा दे कर रहूंगी.’’ कहते हुए पूनम ने चापड़ से विजय की गरदन पर वार कर दिया. गरदन पर गहरा घाव बना और खून बहने लगा. इस के बाद विनय ने चापड़ से कई वार किए. इस के बाद वे सब उसे मरा समझ कर वहां से भाग निकले. चापड़ उन्होंने पास की झाड़ी में छिपा दिया.

इंद्रबहादुर गंभीर घायलावस्था में पड़ा कराह रहा था. कुछ समय बाद उधर से एक राहगीर निकला तो इंद्रबहादुर ने आवाज दे कर उसे रोक लिया. उस ने राहगीर को अपने बड़े भाई वीरबहादुर यादव का नंबर दे कर कहा कि वह फोन कर के उसे उस के घायल होने की सूचना दे दे. उस राहगीर ने वीरबहादुर को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वीरबहादुर अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया. गंभीर रूप से घायल इंद्रबहादुर ने अपने बड़े भाई को बता दिया कि उस की यह हालत पूनम झा, उस के पति विनोद, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा रिश्तेदार अनुपम व उस के साथी ने की है. यह बता कर विजय बेहोश हो गया. वीरबहादुर ने भाई विजय यादव के बयान की मोबाइल पर वीडियो बना ली थी.

वीरबहादुर अपने घायल भाई इंद्रबहादुर को साथियों के साथ हैलट अस्पताल ले गया. पर उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए उसे वहां से रीजेंसी अस्पताल भेज दिया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बजरंग दल के नेता इंद्रबहादुर की हत्या की खबर फैली तो हड़कंप मच गया.

उस के सैकड़ों समर्थक अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को खबर लगी तो वह भी रीजेंसी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक के परिजनों व समर्थकों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

मीणा ने अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाएं तथा रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्तों के खिलाफ सख्त काररवाई करें. मीणा ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम हाउस व अस्पताल के बाहर भारी पुलिस फोर्स भी तैनात कर दिया.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा का आदेश पाते ही अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता ने मृतक विजय यादव के भाई वीरबहादुर यादव से घटना के संबंध में बात की. उस ने भाई के मरने से पहले रिकौर्ड किया वीडियो उन्हें सौंप दिया.

वीरबहादुर की तहरीर पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत पूनम झा, उस के पति विनय, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की, रिश्तेदार अनुपम तथा उस के साथी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

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चूंकि हत्या का यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता, क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मनोज मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी विनोद मिश्रा, सर्विलांस सेल प्रभारी देवी सिंह, कांस्टेबल चंदन कुमार गौड़, देवेंद्र कुमार, भूपेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, ललित, राहुल कुमार तथा महिला कांस्टेबल पूजा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर 25 नवंबर की दोपहर पूनम झा, उस के पति विनय झा, जेठ विनोद झा तथा भतीजे सत्यम उर्फ विक्की को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई.

प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने पूनम झा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में इंद्रबहादुर से घंटों बातचीत होने और घटना से पहले भी इंद्रबहादुर से बातचीत होने का रिकौर्ड सामने आ गया.

इस के बाद सख्ती करने पर सभी आरोपी टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर झाडि़यों में छिपाया गया चापड़ तथा पूनम ने अपनी साड़ी बरामद करा दी, जो उस ने हत्या के समय पहनी थी.

पुलिस टीम ने सभी आरोपियों को एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा के सामने पेश किया. मीणा ने आननफानन प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के समक्ष घटना का खुलासा कर दिया. आरोपी विनय ने पत्रकारों को बताया कि इंद्रबहादुर जबरन उस की पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहता था. इस के लिए वह पूनम पर दबाव बना रहा था. वह पूनम की मार्फत उसे तथा उस के परिवार को गलत धंधे में भी फंसाना चाहता था.

पूनम जब तैयार नहीं हुई तो उस ने फरजी फेसबुक आईडी बना कर पूनम को बदनाम किया. इसी के बाद उस ने विजय की हत्या की योजना बनाई और उसे मौत की नींद सुला दिया.

पुलिस ने 26 नवंबर, 2017 को सभी अभियुक्तों को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अभियुक्त अनुपम व उस का साथी फरार था. पुलिस उन की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शिकार के आरोप में गोल्फर ज्योति रंधावा

सन 2018 वन्यजीवों और वन्यजीव अभयारण्यों के लिए खतरे के रूप में सामने आया. न तो जंगल सुरक्षित रहे  और न ही जंगली जानवर. पूरे साल दोनों पर संकट मंडराता रहा.

वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए पूरे देश में राज्यों के जंगलात महकमों में लाखों कर्मचारियों की फौज है. हर साल तरहतरह की योजनाओं के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं, फिर भी वन्यजीव महफूज नहीं हैं. वन्यजीव अभयारण्यों में शिकार की घटनाएं बढ़ रही हैं. वन्यजीवों की प्राकृतिक और अप्राकृतिक मौत के आंकड़ों में हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन राज्य सरकारें और केंद्र सरकार ऐसी घटनाओं को नहीं रोक पा रही हैं.

देश के तमाम वन्यजीव अभयारण्यों पर शिकारियों की नजरें टिकी रहती हैं. मांसाहारी लोग अपने स्वाद के लिए वन्यजीवों का शिकार करते हैं, जबकि प्रोफेशनल शिकारी वन्यजीवों के अंगों की तस्करी के लिए काम करते हैं. वन्यजीवों के विभिन्न अंगों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे दाम मिलते हैं.

वन्यजीव अंगों के सब से बड़े खरीदार चीन ने पिछले साल बाहर से वन्यजीव अंग मंगाने से रोक हटा दी थी. नतीजतन भारत और अन्य देशों में शिकार की घटनाएं तेजी से बढ़ गईं. बाद में अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण चीन ने फिर से वन्यजीव अंगों पर रोक लगा दी.

शेर, बाघों और तेंदुओं पर छाया संकट

पिछले साल गुजरात के गिर अभयारण्य में 25 से ज्यादा एशियाई शेरों की मौत सब से ज्यादा चर्चा का विषय रही. गिर के शेरों पर अभी खतरा टला नहीं है. दूसरी ओर राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य में भी बाघों पर संकट मंडरा रहा है. सन 2004 में शिकारियों ने सरिस्का अभयारण्य में बाघों का पूरी तरह सफाया कर दिया था. वह भी इस तरह कि सरिस्का में एक भी बाघ नहीं बचा.

आज भी हालात वैसे ही बने हुए हैं. पिछले साल सरिस्का में 3 बाघों की मौत हो गई. इन में 2 बाघों का शिकार किया गया था. मध्य प्रदेश में भी बाघों के शिकार के कई मामले सामने आए. महाराष्ट्र में अवनि बाघिन की विवादास्पद मौत ने भारत ही नहीं दुनिया भर के वन्यजीव पे्रमियों को सकते में डाल दिया था.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में 12 दिसंबर तक देश भर में 50 बाघों की मौत हुई. इन में सब से ज्यादा 13 बाघ मध्य प्रदेश में और 10 बाघ कर्नाटक में मारे गए. पिछले साल अक्तूबर तक लेपर्ड के शिकार के 66 मामले सामने आए. इस से पहले 2015 से 17 तक 194 लेपर्ड का शिकार किया गया.

बीते साल 15 नवंबर तक 51 हाथियों की अप्राकृतिक मौत हुई. इन में शिकार, ट्रेन, हादसे और बिजली के करंट से हुई मौतें शामिल हैं. देश में 10 साल में शिकारियों ने 384 बाघों को मार डाला. इस दौरान 961 शिकारियों को पकड़ा जा सका.

भारत में वैसे तो 50 टाइगर रिजर्व हैं, लेकिन इन में खासतौर से उत्तर भारत में राजस्थान के रणथंभौर व सरिस्का, उत्तर प्रदेश का दुधवा, उत्तराखंड का कार्बेट, मध्य प्रदेश का पन्ना, कान्हा व बांधवगढ़, झारखंड का पलामू, छत्तीसगढ़ का इंद्रावती और बिहार का वाल्मिकी बाघ अभयारण्य प्रमुख हैं.

इन अभयारण्यों में खासतौर से सर्दियों के मौसम में शिकार की सब से ज्यादा घटनाएं होती हैं. इस दौरान वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी शिकारियों पर नजर रखने के लिए ज्यादा सतर्कता बरतते हैं. इस के बावजूद शिकारी कभी वन्यजीवों को मारने में कामयाब हो जाते हैं तो कभी नहीं हो पाते.

दिसंबर 2018 की 26 तारीख को सर्द दिन था. सूरज निकल आया था, लेकिन धूप अभी धरती तक नहीं पहुंची थी. हलके बादल छाए होने से मौसम भी साफ नहीं था. पिछले कई दिनों से पारा लगातार नीचे जाने से कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी.

मौसम के मद्देनजर भारतनेपाल सीमा से सटे दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारी चौकस थे. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रमेश पांडेय के निर्देशन में कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वन अधिकारियों और कर्मचारियों की ओर से शिकारियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा था.

सुबह करीब 7 बजे वनकर्मियों को वायरलैस पर सूचना मिली कि जंगल में एक कार देखी गई है. कार में शिकारी हो सकते हैं. शिकारियों की सूचना पर वन विभाग के कर्मचारियों और स्पैशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के जवान उस कार की तलाश में जुट गए.

वनकर्मियों ने करीब आधे घंटे बाद ही मोतीपुर रेंज की खपरा वन चौकी के पास कंपार्टमेंट 5 और 6 के बीच एक महंगी कार को जंगल से गुजरते देखा. वनकर्मियों ने घेराबंदी कर इस कार को रोक लिया. कार उस में 2 लोग सवार थे. वनकर्मियों ने पूछताछ की तो उन्होंने जंगल भ्रमण करने की बात कही.

वन कर्मचारी कार में सवार दोनों लोगों के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए. कार की तलाशी ली गई तो उस में विदेशी राइफल, 80 जिंदा कारतूस, मैगजीन, नाइट विजन दूरबीन के अलावा सांभर की 2 खालें, मृत जंगली मुर्गा आदि चीजें बरामद हुईं.

वनकर्मियों ने कार में सवार दोनों लोगों के नामपते पूछे. इन में से एक ने अपना नाम ज्योति रंधावा और दूसरे ने महेश विराजदार बताया. संदिग्ध कार में शिकारी पकड़े जाने की सूचना पर मोतीपुर रेंज के डीएफओ जी.पी. सिंह और उन की टीम मौके पर पहुंच गई.

डीएफओ ने हथियारों और शिकार के साथ पकड़े गए ज्योति रंधावा और महेश विराजदार से पूछताछ की. ज्योति ने कार में मिली खालें सूअर की बताईं लेकिन वन अधिकारियों की नजर में वे सांभर की खालें थीं. कार में मिली विदेशी राइफल लाइसेंसी निकली.

वनकर्मियों ने आवश्यक पूछताछ के बाद ज्योति और महेश को संरक्षित वनक्षेत्र में वन्यजीवों का शिकार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. दोनों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम की धारा 26, 52 व 64 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धार 9, 27, 29, 31, 32, 38, 44, 49 व 51 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

जिन्हें शिकारी समझा निकले ख्यातनाम गोल्फर

वन विभाग के अधिकारियों ने शिकार के दोनों आरोपियों को उसी दिन अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में बहराइच जिला कारागार भेज दिया. दूसरी ओर, वन विभाग के अधिकारियों ने कार से बरामद उन खालों को जांच के लिए नैशनल वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून भेज दिया, जो आरोपियों ने सूअर की बताई थीं, लेकिन दिखाई सांभर की दे रही थीं.

वन अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में पता चला था कि ज्योति रंधावा अंतरराष्ट्रीय स्तर के नामी गोल्फर और नैशनल शूटर हैं. उन्होंने अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह से शादी की थी लेकिन दोनों का विवाह ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया था.

ज्योति रंधावा के पिता रणधीर सिंह रंधावा का उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में नानपारा-लखीमपुर हाइवे से सटी खपरा वन चौकी क्षेत्र के गांव खडि़या नौनिहा में फार्महाउस है. यह फार्महाउस करीब 80 एकड़ में फैला हुआ है. रणधीर सिंह रंधावा सेना से रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं.

ज्योति रंधावा हरियाणा के गुड़गांव में रहते हैं. वह 2-3 दिन पहले ही साल 2018 को अलविदा कहने के मकसद से अपने पिता रणधीर सिंह और बेटे जोरावर सिंह के अलावा अपने दोस्त महेश विराजदार के साथ फार्महाउस पर आए थे.

यह उन का दुर्भाग्य रहा कि उन्हें शिकार के आरोप में जेल जाना पड़ गया. ज्योति का पूरा नाम ज्योतिंदर सिंह रंधावा है. उन के दादा भी सेना में थे, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था.

नई दिल्ली में 4 मई, 1972 को जन्मे ज्योति अंतरराष्ट्रीय गोल्फर हैं. 1994 में पेशेवर गोल्फर बने ज्योति ने सन 2000 में इंडियन ओपन और सिंगापुर ओपन जीता था. वह पहले ऐसे भारतीय खिलाड़ी बने, जिन्होंने एशिया में और्डर औफ मेरिट जीता.

वर्ष 2004 से 2009 के बीच ज्योति दुनिया के शीर्ष 100 गोल्फरों में शामिल रहे. एशियाई रैंकिंग में भी वह शीर्ष स्थान हासिल कर चुके थे. वे एशियन और यूरोपीय टूर में भी अपनी काबिलियत दिखा चुके हैं. ज्योति 2002 में एशियन टूर मनी लिस्ट में शीर्ष पर रहे थे.

सन 2004 में ज्योति ने जौनी वाकर क्लासिक में संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रह कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. उन्होंने 3 बार इंडियन ओपन चैंपियनशिप अपने नाम की. एशियन टूर में उन्होंने 8 खिताब जीते. विश्व रैंकिंग में जीव मिल्खा सिंह के बाद उन की दूसरी सब से ऊंची रैंकिंग है.

गोल्फ में सफलता हासिल करने के बाद ज्योति रंधावा ने निशानेबाजी में भी हाथ आजमाए. वह कई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं. ज्योति देश के अच्छे निशानेबाजों में हैं. इस के अलावा वह रोमांच के शौकीन हैं. ज्योति के पास कई तरह की कारें और मोटरसाइकिलें हैं. जंगल में ट्रेकिंग और ड्राइविंग करना उन का शगल है.

पेशेवर गोल्फर और निशानेबाजी के अलावा ज्योति रंधावा डौग ट्रेनर भी हैं. उन के पास इटालियन शिकारी कुत्ते हैं. कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में आदमखोर घोषित की गई रालेगांव की बाघिन अवनि को पकड़ने के लिए ज्योति रंधावा को बुलाया गया था.

विवादों और विरोध की वजह से लौटना पड़ा शफात अली और ज्योति को

अदालत के आदेश पर बाघिन अवनि को पकड़ने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पहले हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफात अली खान को बुलाया था. इस के बाद शफात अली खान के सुझाव पर उन के दोस्त नामी गोल्फर ज्योति रंधावा को भी बुलाया गया. रंधावा हवाईजहाज से अपने 2 शिकारी इटालियन केन कोर्स डौग्स ले कर वहां गए भी थे.

बाद में वन्यजीव प्रेमियों के विरोध के कारण शार्पशूटर शफात अली खान और गोल्फर ज्योति रंधावा को वापस भेज दिया गया था. बाघिन अवनि पर 13 लोगों की जान लेने का आरोप था.

शिकार के मामले में पकड़े गए ज्योति रंधावा ने 2001 में बौलीवुड फिल्म ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ फेम अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह से शादी की थी. 28 मार्च, 1976 को राजस्थान के जोधपुर में जन्मी चित्रांगदा सिंह के पिता निरंजन सिंह चहल भारतीय सेना में कर्नल थे. चित्रांगदा के भाई दिग्विजय सिंह चहल गोल्फर हैं. दिल्ली के लेडी इरविन कालेज से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद चित्रांगदा ने 1994 में मौडलिंग की दुनिया में कदम रखा था.

गुलजार के म्यूजिक वीडियो सनसेट पौइंट के जरिए चित्रांगदा सिंह पहली बार दर्शकों की नजर में चढ़ीं. फिर उन्होंने अभिजीत भट्टाचार्य के म्यूजिक वीडियो में काम किया.

हिंदी फिल्मों में वह शादी के 2 साल बाद आईं. उन्हें पहला ब्रेक निर्देशक सुधीर कुमार ने सन 2003 में ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में दिया था. बाद में चित्रांगदा ने बौलीवुड की करीब दरजन भर फिल्मों में काम किया.

ज्योति रंधावा से शादी के बाद चित्रांगदा सिंह ने 2009 में एक बेटे को जन्म दिया था. बेटे का नाम जोरावर सिंह रखा गया. कहा जाता है कि ज्योति रंधावा और उन के परिवार को चित्रांगदा का फिल्मों में काम करना पसंद नहीं था. फिल्मों में काम करने को ले कर ज्योति और चित्रांगदा में झगड़े शुरू हो गए. बाद में दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया.

अप्रैल 2014 में अदालत ने दोनों का तलाक मंजूर कर लिया. अदालत ने उस समय 5 साल के जोरावर सिंह को मां चित्रांगदा सिंह को सौंपा था. इस तरह 13 साल पुराना ज्योति-चित्रांगदा का वैवाहिक रिश्ता टूट गया.

ज्योति के साथ शिकार के मामले में पकड़े गए सेना के पूर्व कैप्टन महेश विराजदार महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के रहने वाले हैं. वह भारतीय नौसेना में कैप्टन रहे थे. करीब 4 साल पहले वित्तीय अनियमितता के मामले में कोर्ट मार्शल के बाद उन्हें नौसेना ने निकाल दिया था.

वन्यजीवों के शिकार के आरोप में बेटे ज्योति की गिरफ्तारी और जेल भेजे जाने की सूचना मिलने पर उन के पिता रणधीर सिंह दूसरे दिन ही बहराइच जेल पहुंच गए. बेटे को जेल में देख कर वह खूब रोए. जेल में ज्योति को आम बंदियों की तरह बैरक में रखा गया था. भोजन भी उन्हें जेल का ही दिया जाता था.

ज्योति रंधावा की गिरफ्तारी के बाद वन अधिकारियों ने कतर्निया घाट अभयारण्य की सुरक्षा बढ़ा दी थी. अन्य शिकारियों के जंगल में छिपे होने की आशंका में सघन जांच अभियान चलाया गया. कतर्निया के आसपास बने फार्महाउसों की तलाशी भी ली गई.

शिकार के मामले में गिरफ्तार किए गए ज्योति रंधावा की मुश्किलें उस समय और बढ़ गईं, जब 29 दिसंबर को वन विभाग की ओर से मोतीपुर पुलिस थाने में अलग से मुकदमा दर्ज कराया गया. लाइसेंसी राइफल के दुरुपयोग का यह मुकदमा कतर्निया रेंज के वन्यजीव प्रतिपालक अवधेश कुमार पांडेय की तहरीर पर दर्ज किया गया.

30 दिसंबर को ज्योति रंधावा से मिलने उन के बहनोई चंडीगढ़ निवासी ब्रिगेडियर के. अजय सिंह और बहन प्रिया बहराइच जिला कारागार पहुंचे. मुलाकात के दौरान भाईबहन की आंखों में आंसू टपक पड़े.

बहस के लिए मामला पहुंचा अदालत

ज्योति और उन के दोस्त महेश विराजदार की ओर से 2 जनवरी, 2019 को सीजेएम की अदालत में जमानत अरजी पेश की गई, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया. इस के बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश उपेंद्र कुमार की अदालत में जमानत अरजी लगाई गई. इस पर सुनवाई के लिए अदालत ने 7 जनवरी, 2019 की तारीख तय की.

7 जनवरी को जमानत की अरजी पर जिला जज के समक्ष अभियोजन और बचावपक्ष के वकीलों ने करीब 50 मिनट तक बहस की. रंधावा की जमानत याचिका पर बहस के लिए सुप्रीम कोर्ट से भी वकील पहुंचे, लेकिन उन्होंने अदालत में वकालतनामा पेश नहीं किया.

अभियोजन पक्ष के वकील ने सुनवाई के लिए अदालत से समय मांगते हुए कहा कि इस मामले में मोतीपुर रेंज कार्यालय से मूल कागजात, आपराधिक इतिहास, विसरा रिपोर्ट और विधिविज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट नहीं आई है.

बचावपक्ष ने इस का विरोध करते हुए तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों की गिरफ्तारी और बरामदगी के संबंध में जो कागजात दिए हैं, उन से स्पष्ट है कि आरोपी टाइगर रिजर्व में नहीं पकड़े गए.

वन्य जंतु की जो बरामदगी दर्शाई गई है, वह वन्यजंतु अधिनियम की अनुसूची में उल्लेखित जीव नहीं है. आरोपियों के खिलाफ 51(1) का ही अपराध है, जिस में 3 साल की सजा से दंडित किया जा सकता है.

बचावपक्ष के वकील ने दोनों आरोपियों को वन्यजीव अधिनियम 1952 के विभिन्न प्रावधानों को दृष्टिगत रख कर अंतरिम जमानत पर रिहा करने की प्रार्थना की.

अभियोजन पक्ष ने अंतरिम जमानत का विरोध किया. दोनों पक्षों के वकीलों के तर्कों को सुनने के बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अंतरिम जमानत का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया और मूल जमानत अरजी पर सुनवाई के लिए 10 जनवरी की तारीख तय की.

10 जनवरी को वन विभाग की ओर से धारा बढ़ाने और पता सत्यापन के लिए ज्योति रंधावा को रिमांड पर लेने हेतु दाखिल की गई अरजी पर सीजेएम की अदालत में सुनवाई हुई. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सीजेएम ने ज्योति रंधावा पर वन अधिनियम की धारा 48ए व 51(1सी) बढ़ाने और पते को दुरुस्त करने के आदेश दिए.

वन विभाग के अधिवक्ता सुरेश चंद्र यादव ने बताया कि गिरफ्तारी के समय ज्योति रंधावा ने गलत पता बता कर गुमराह किया था. जांच में पता गलत पाया गया. इसे ले कर अलग से काररवाई की जाएगी. इस दिन दोनों आरोपियों के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई नहीं हो सकी, इसलिए 14 जनवरी की तारीख निश्चित की गई.

वन का समृद्ध इलाका है कतर्निया घाट

14 जनवरी को बहराइच के जिला जज उपेंद्र कुमार ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए ज्योति और उन के दोस्त महेश की जमानत अरजी खारिज कर दी. कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपियों को जमानत नहीं मिली थी. वन अधिकारियों का कहना है कि इन के खिलाफ दर्ज मुकदमों में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. वन विभाग व पुलिस यह जांच कर रही है कि रंधावा शिकार के अन्य मामलों में तो लिप्त नहीं रहे हैं.

भारत नेपाल सीमा पर बहराइच जिले में स्थित कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य कई तरह के जंगली जानवरों और घने जंगलों से समृद्ध है. यह जंगल लंबे समय से भारत और नेपाल के शिकारियों के निशाने पर रहा है. इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, हिरण, चीतल, सांभर, बारहसिंघा आदि वन्यजीवों के अलावा अजगरों व कई तरह के सरीसृपों की बहुतायत है.

कई तरह के देशीविदेशी पक्षी भी यहां डेरा डाले रहते हैं. नेपाल से बह कर कतर्निया आने वाली गेरुआ नदी में बड़ी संख्या में गैंगटिक डाल्फिन, घडि़याल व मगरमच्छ आदि जलीय जीव हैं. आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के फिल्मकारों ने यहां गैंगटिक डाल्फिन की जिंदगी पर फिल्में भी बनाई हैं.

सन 1987 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य को दुधवा टाइगर रिजर्व का हिस्सा बनाया गया था. करीब 400 वर्ग किलोमीटर में फैले कतर्निया घाट अभयारण्य की स्थापना सन 1975 में हुई थी. अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्कर दिवंगत संसार चंद के तार भी कतर्निया घाट अभयारण्य से जुड़े हुए थे.

इस अभयारण्य की मोतीपुर रेंज में कुछ समय पहले एक महिला तस्कर रोशनी को बाघ के खाल के साथ पकड़ा गया था. वर्ष 2018 में कतर्निया अभयारण्य में वन्यजीवों के शिकार के आरोप में नेपाली शिकारियों सहित 17 लोगों को पकड़ा गया और 15 मुकदमे दर्ज किए गए. वनकर्मियों और शिकारियों की मुठभेड़ें भी हुईं.

बहरहाल, यह बात साफ हो गई है कि सेलिब्रिटियों का शौक उन की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा देता है. शिकार के मामले में अभिनेता सलमान खान अभी तक फंसे हुए हैं. राजस्थान के जोधपुर में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान सलमान खान पर 2 अक्तूबर, 1998 को काले हिरण का शिकार करने का मामला दर्ज था.

कांकाणी हिरण के शिकार के आरोप वाले मुकदमे में 5 अप्रैल, 2018 को जोधपुर की अदालत ने 5 साल की सजा सुनाई थी. यह बात अभी पूरी तरह साबित नहीं हुई है कि ज्योति रंधावा और उन के दोस्त महेश विराजदार दोषी हैं.

एक लड़की ऐसी भी

उस दिन तारीख थी 10 सितंबर, 2019 और समय था शाम के करीब 5 बजे का. गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के ओमनगर में रहने वाले शिक्षक अनिल कुमार पांडेय विद्यालय से थकेमांदे घर लौटे थे. बड़ी बेटी सुमन पिता के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने लगी.

नाश्ता कर के अनिल आराम करने के लिए अपने कमरे में चले गए. तभी उन के वाट्सऐप पर एक मैसेज और कई फोटो आए. मैसेज में लिखा था, ‘मैं ने तुम्हारी बेटी से बदला ले लिया है. उस की हत्या कर के लाश ऐसी जगह फेंक दी है कि तुम सात जन्मों तक भी नहीं ढूंढ पाओगे.’

अनिल पांडेय सोचने लगे कि यह भद्दा मजाक किस ने किया है. लेकिन जब उन्होंने मैसेज के साथ आए फोटो को ध्यान से देखा तो वह सन्न रह गए. उन के हाथ से मोबाइल छूटतेछूटते बचा. जो 3-4 फोटो वाट्सऐप पर आए थे, वे उन की दूसरे नंबर की बेटी काजल के थे.

फोटो देखने से साफ पता चल रहा था कि किसी ने काजल की हत्या कर के लाश जंगल में कहीं फेंक दी है. उस के सिर से खून निकल रहा था. मुंह और दोनों पैर किसी कपड़े से बंधे थे. उस के दोनों हाथ भी पीछे की ओर बंधे हुए थे.

हड़बड़ाए से अनिल मोबाइल ले कर पत्नी के पास पहुंचे. बच्चों को आवाज दे कर अपने पास बुलाया. उस समय उन के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी और सांसों की रफ्तार तेज हो चली थी. पत्नी ने उन की इस हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने पत्नी की ओर मोबाइल फोन बढ़ा दिया.

पत्नी और बच्चों ने जब वाट्सऐप पर काजल की लाश की फोटो देखीं तो उन की आंखें फटी रह गईं और मुंह से चीख निकल गई.

घर में रोनापीटना शुरू हो गया. अनिल पांडेय के घर में अचानक रोना सुन कर पासपड़ोस के लोग भी उन के यहां पहुंच गए. जब उन्हें पता चला कि काजल की हत्या हो गई है, तो सभी के चेहरों पर दुख की छाया उतर आई. पड़ोसियों ने पांडेयजी को सुझाया कि यह पुलिस केस है, इसलिए पुलिस को यह सूचना दे देनी चाहिए ताकि वे काजल की लाश का पता लगा सकें.

उन की सलाह पर अनिल पांडेय पड़ोसियों के साथ चौरीचौरा थाने पहुंच गए. उस समय शाम के करीब 7 बज रहे थे. थानाप्रभारी नीरज राय थाने में मौजूद थे. अनिल पांडेय ने सारी जानकारी थानाप्रभारी को दे दी.

थानाप्रभारी ने वाट्सऐप पर आई तसवीरों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने अनिल पांडेय से पूछा कि उन्हें किसी पर कोई शक है? तब अनिल पांडेय ने पड़ोस में रहने वाले 3 युवकों के नाम बता दिए, जिन पर उन्हें शक था. उन्होंने बताया कि इन से उन का पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा था. विवाद के चलते उन युवकों ने धमकी दी थी कि वे उन के परिवार वालों की हत्या कर देंगे.

थानाप्रभारी नीरज राय ने बिना समय गंवाए अनिल पांडेय की निशानदेही पर तीनों युवकों को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए. तीनों युवक पांडेयजी के पड़ोसी थे.

पुलिस ने तीनों युवकों से पूरी रात सख्ती से पूछताछ की. पूछताछ के दौरान कोई ऐसी वजह निकल कर सामने नहीं आई जिस से यह साबित होता कि काजल की हत्या उन्हीं तीन युवकों ने की है. तब पुलिस ने उन्हें कड़ी हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अगले दिन सुबह अनिल पांडेय यह पता लगाने थाने पहुंचे कि उन तीनों ने किस वजह से बेटी की हत्या की थी, उन्होंने क्या बताया? थानाप्रभारी नीरज राय ने अनिल को बताया कि युवकों से काजल की हत्या की कोई ऐसी बात नहीं पता चल सकी, जिस से उन की संलिप्तता दिखती. फिलहाल उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया है. यह सुन कर अनिल पांडेय मायूस हो गए.

इसी बीच पुलिस को कहीं से एक चौंकाने वाली खबर मिली. सूचना यह थी कि बीते दिन 2 युवकों को काजल का अपहरण करते देखा गया था.

इस जानकारी के बाद अनिल पांडेय ने भोपा बाजार चौराहा स्थित एक मोबाइल दुकानदार अनूप जायसवाल और उस के कर्मचारी विजय पाठक पर अपहरण कर बेटी की हत्या किए जाने की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को दे दी. इस के पीछे एक खास वजह थी.

अनिल पांडेय ने बताया कि काजल और विजय पाठक के बीच कई दिनों से किसी बात को ले कर गहरा विवाद चल रहा था. संभव है उसी विवाद के चलते विजय और दुकानदार ने मिल कर बेटी का अपहरण किया हो और उस की हत्या कर लाश जंगल में फेंक दी हो. अनिल पांडेय की इस बात में थानाप्रभारी को दम नजर आ रहा था.

अनिल पांडेय की इस तहरीर पर पुलिस ने विजय पाठक और दुकान मालिक अनूप जायसवाल के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने दोनों को भोपा बाजार स्थित मोबाइल की दुकान से हिरासत में ले लिया.

काजल की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, सीओ (चौरीचौरा) सुमित शुक्ला को पहले ही दे दी थी और वह उन्हीं अधिकारियों के दिशानिर्देश पर फूंकफूंक कर कदम रख रहे थे.

दुकान मालिक अनूप जायसवाल ने पूछताछ में बताया कि काजल को दुकान पर काम करने के लिए विजय पाठक ले कर आया था. वह मेहनती लड़की थी. इस से ज्यादा वह काजल के बारे में कुछ नहीं बता सका.

विजय ने पुलिस को बताया कि वह पांडेय जी के पड़ोस में रहता है. इस वजह से उन के परिवार को अच्छी तरह जानता है. कुछ दिनों पहले काजल ने उस से कहा था कि वह कोई नौकरी करना चाहती है. इस पर उस ने अपने दुकान मालिक से बात कर के काजल को उसी की दुकान पर नौकरी दिला दी थी.

कुछ दिनों बाद काजल की बड़ी बहन सीमा ने भी काम करने की इच्छा जाहिर की और कहा कि जहां काजल काम करती है, उसी दुकान पर उस की भी नौकरी लगवा दे. जब इस बात की जानकारी काजल को हुई, तो वह मुझ से झगड़ने लगी थी.

उस ने कहा था कि उस की बहन को यहां नौकरी पर न रखवाए, नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. इसी बात को ले कर उस के और मेरे बीच मतभेद हो गया था. इस बारे में चाहें तो आप सीमा से पूछ लें. पुलिस ने सीमा से पूछताछ की तो उस ने भी विजय की बातों का समर्थन किया.

इस से एक बात तो तय हो गई थी कि विजय पाठक जो कह रहा था, वह सच था. लेकिन काजल की लाश वाली तसवीर झुठलाई नहीं जा सकती थी.

इस सब से पुलिस इस सोच में फंस कर रह गई कि काजल की हत्या अनूप और विजय ने नहीं की तो फिर किस ने की? आखिर यह माजरा है क्या. हत्या की गुत्थी को कैसे सुलझाया जाए. सोचविचार के बाद पुलिस ने कानूनी काररवाई कर के अनूप जायसवाल और विजय को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

घटना के तीसरे दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सीओ सुमित शुक्ला ने थानाप्रभारी नीरज राय और स्वाट टीम के प्रभारी के साथ अपने कार्यालय में एक मीटिंग की. मीटिंग में तय हुआ कि काजल हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए काजल के मोबाइल फोन की घटना से 15 दिनों पहले तक की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की जाए. घटना के खुलासे के लिए काल डिटेल्स ही आखिरी सहारा थीं.

इस के बाद सीओ सुमित शुक्ला ने काजल की लाश वाली तसवीर कंप्यूटर में एनलार्ज कर के देखी तो वे हैरत में पड़ गए. तसवीर में काजल के सिर के जिस भाग से खून बह रहा था, वहां उस के सिर में चोट का कोई निशान नजर नहीं आ रहा था.

हैरानी वाली बात तब सामने आई, जब उस के सिर से बहे खून का निरीक्षण किया गया. पड़ताल के दौरान पता चला कि माथे पर खून जैसा दिखने वाला पदार्थ कुछ और था. क्योंकि वह खून होता तो सूख कर काला पड़ जाता, जबकि ऐसा नहीं हुआ था. यह बात पुलिस को शक करने पर मजबूर कर रही थी. इस सब से सीओ सुमित शुक्ला को यह मामला पूरी तरह संदिग्ध लगने लगा.

काजल हत्याकांड संदिग्ध लगते ही सीओ सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी नीरज राय ने काजल के घर से दुकान आने वाले रास्ते पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की. उन फुटेज में काजल कहीं भी नहीं दिखी.

पुलिस ने फिर से काजल की काल डिटेल्स की जांच की तो पता चला उस के घर से निकलने के कुछ देर बाद ही यानी साढ़े 9 बजे उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. तब से उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. पुलिस विजय और अनूप से काजल के बारे में फिर से पूछताछ करने जेल पहुंची. पूछताछ के दौरान विजय और अनूप ने पुलिस को बताया कि 10 सितंबर को काजल ड्यूटी पर आई ही नहीं थी. यह सुन कर पुलिस और भी परेशान हो गई.

पुलिस इस सोच में थी कि घर से निकली काजल दुकान नहीं पहुंची तो कहां गई? इस सवाल का जवाब पाने के लिए पुलिस जेल से लौट कर सीधे अनिल पांडेय के घर पहुंची. पुलिस ने इस बार पांडेय परिवार के सभी सदस्यों से अलगअलग पूछताछ की. पूछताछ में किसी के बयान एकदूसरे से जरा भी मेल नहीं खा रहे थे.

काजल को ले कर पुलिस अफसरों के दिमाग में जो शक था, वह अब यकीन में बदलता जा रहा था. इस पूछताछ के दौरान पुलिस को काजल के एक ऐसे सच के बारे में पता चला, जिस से पुलिस को विश्वास हो गया कि काजल की हत्या नहीं हुई है, बल्कि वह स्वेच्छा से किसी के साथ चली गई है. मतलब काजल जिंदा है.

पुलिस के लिए काजल चुनौती बन गई थी. किसी भी सूरत में उसे जिंदा बरामद करना जरूरी था. पुलिस को इस बात का यकीन था कि काजल परिवार के किसी न किसी सदस्य से बात जरूर करेगी, इसलिए पुलिस ने अनिल पांडेय, उन की पत्नी और बड़ी बेटी सीमा तीनों के मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिए. इस की जानकारी परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं थी.

पुलिस की मेहनत रंग लाई. 13 सितंबर को सीमा के मोबाइल पर देवरिया जिले के खुखुंदू निवासी उस के फुफेरे भाई राजमणि पांडेय का फोन आया. राजमणि ने सीमा से काजल के मामले में चल रही पुलिस जांच की जानकारी मांगी तो उस ने विस्तार से उसे पूरी बात बता दी.

पुलिस को राजमणि के बातचीत के अंदाज से उस पर संदेह हो गया. पुलिस ने राजमणि का भी मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. इस से पुलिस को काजल की लोकेशन फिरोजाबाद की मिली.

काजल की लोकेशन फिरोजाबाद मिलते ही पुलिस टीम काजल को जिंदा बरामद करने फिरोजाबाद रवाना हो गई. पुलिस फिरोजाबाद पहुंची तो पता चला कि कुछ देर पहले ही काजल वहां से जा चुकी थी.

इस का मतलब साफ था कि कोई था, जो पुलिस की पलपल की सूचना काजल तक पहुंचा रहा था. इसी वजह से फिरोजाबाद गई पुलिस टीम खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

इस बीच पुलिस को काजल का नया फोन नंबर मिल गया था. पुलिस ने वह नंबर भी सर्विलांस पर लगा दिया. 15 सितंबर की सुबह सर्विलांस के जरिए काजल के फोन की लोकेशन बस स्टैंड के पास मिली. पुलिस की एक टीम सादे कपड़ों में बस स्टैंड जा पहुंची और बस स्टैंड को चारों ओर से घेर लिया ताकि वह भाग न सके.

नीले रंग की फ्रौक और उसी से मैच करता लाल रंग का प्लाजो पहने एक गोरीचिट्टी खूबसूरत युवती और एक इकहरे छरहरे बदन का युवक बस स्टैंड परिसर में खड़े किसी के आने का इंतजार कर रहे थे. उन के हावभाव से पुलिस को दोनों पर शक हुआ.

शक के आधार पर पुलिस दोनों के पास पहुंची और इतना ही कहा कि तुम्हारा लुकाछिपी का खेल खत्म हुआ काजल. यह सुन कर दोनों वहां से भागने की कोशिश करने लगे. लेकिन पुलिस ने दोनों को धर दबोचा और उन्हें हिरासत में ले कर थाना चौरीचौरा ले आई. काजल के साथ पकड़ा गया युवक काजल का प्रेमी हरिमोहन था.

काजल के जिंदा होने की सूचना थानाप्रभारी नीरज राय ने सीओ सुमित शुक्ला और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को दे दी. काजल के जिंदा और सहीसलामत बरामदगी की सूचना मिलते ही सीओ सुमित शुक्ला गोरखपुर से चौरीचौरा थाने पहुंच गए. उन्होंने काजल से सख्ती से पूछताछ की.

काजल बिदांस हो कर सीओ शुक्ला के एकएक सवाल का जवाब देती चली गई. उस के जवाब सुन कर शुक्लाजी दांतों तले अंगुलियां दबाते रह गए. पूछताछ के बाद उसी दिन शाम 3 बजे उन्होंने थाना परिसर में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के काजल हत्याकांड के नाटक से परदा उठा दिया था.

प्रैस कौन्फ्रैंस के बाद पुलिस ने काजल और हरिमोहन को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. काजल को अपने किए पर तनिक भी मलाल नहीं था. काजल और हरिमोहन से की गई पुलिसिया पूछताछ में कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

45 वर्षीय शिक्षक अनिल कुमार पांडेय मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के चौरीचौरा इलाके के ओमनगर मोहल्ले के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी सलोनी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. अनिल कुमार पांडेय एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे.

अनिल पांडेय के पांचों बच्चों में दूसरे नंबर की काजल अन्य भाईबहनों से थोड़ी अलग थी. ग्रैजुएशन कर चुकी काजल का मन आगे की पढ़ाई में नहीं लग रहा था, इसलिए उस ने आगे की पढ़ाई छोड़ दी और घर पर ही रहने लगी.

मांबाप उस के इस फैसले से खुश नहीं थे. उस के पिता ने आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उसे समझाया भी, लेकिन वह आगे की पढ़ाई के लिए तैयार नहीं हुई.

खूबसूरत काजल थोड़ी जिद्दी स्वभाव की फैशनपरस्त और आधुनिक विचारधारा वाली युवती थी. वह अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहती थी. आसमान में पंख फैला कर वह उड़ना चाहती थी. काजल की ये बातें न तो उस के मांबाप को पसंद थीं और न ही भाईबहनों को. इसलिए उस के पिता उसे डांट दिया करते थे. पिता की बातों से उस का मन खट्टा हो जाता था.

काजल के पड़ोस में विजय पाठक रहता था. उस का पांडेयजी के घर आना जाना था. वह चौरीचौरा के भोपाबाजार स्थित एयरटेल फ्रैंचाइजी पर काम करता था. काजल और उस के घर वाले यह बात जानते थे. एक दिन काजल ने अपने मन की बात विजय से कह दी कि वह भी नौकरी करना चाहती है. उस के लिए भी कहीं बात करे.

काजल की बातों को उस ने गंभीरता से लिया और वह जहां नौकरी करता था, वहां के मालिक अनूप जायसवाल से उस के लिए भी बात कर ली. अनूप ने विजय से काजल को अपने यहां नौकरी पर रखने को कह दिया.

इस तरह काजल नौकरी करने लगी. उस के पिता अनिल पांडेय को जब यह बात पता चली तो वह आगबबूला हो गए. उन्हें मोबाइल की दुकान पर काजल का नौकरी करना पसंद नहीं था. उन्होंने उसे नौकरी छोड़ देने की चेतावनी भी भी दी. लेकिन उस ने पिता की बात नहीं मानी और नौकरी करती रही.

कभीकभी काजल फिल्मी गाने गुनगुनाया करती थी. उस के स्वर में दर्द छिपा होता था. काजल के इस शौक के बारे में जान कर विजय ने उसे सुझाव दिया कि वह चाहे तो अपना स्वर सिंगिंग ऐप पर लोड कर सकती है. इस से भविष्य में उसे सिंगिंग के क्षेत्र में अवसर मिल सकता है.

विजय का यह सुझाव काजल को जंच गया और उस ने स्टार सिंगिंग ऐप पर अपने कई गाने अपलोड कर दिए. उसी ऐप पर आगरा जिले के खंदौली क्षेत्र के प्यायू खंदौली का रहने वाला हरिमोहन शर्मा भी था. उस ने भी अपने कई गाने अपलोड किए हुए थे. स्टार सिंगिंग ऐप के जरिए काजल और हरिमोहन का एकदूसरे से परिचय हुआ. यह अप्रैल, 2018 की बात है.

काजल और हरिमोहन के बीच यह परिचय जब दोस्ती में बदला तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. अब ऐप के बजाए दोनों सीधे फोन पर बातें करने लगे थे.

बीटेक पास हरिमोहन एक अच्छे परिवार का होनहार युवक था. 4 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर का था. वह पढ़ने में भी अव्वल था. हरिमोहन आगरा में रह कर एक बड़े कोचिंग इंस्टिट्यूट से एसएससी के विद्यार्थियों को तैयारी कराता था.

हरिमोहन सरकारी नौकरी के लिए भी तैयारी कर रहा था. अपनी तैयारी के उद्देश्य से ही वह एसएससी की कोचिंग में विद्यार्थियों को पढ़ाता था. इसी बीच उस के जीवन में काजल ने चुपके से कदम रख दिया था.

जल्दी ही काजल और हरिमोहन की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एकदूसरे से अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर चुके थे. जब दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो हरिमोहन दिसंबर, 2018 और मार्च, 2019 में काजल से मिलने आगरा से गोरखपुर आया और बस से गोरखपुर से चौरीचौरा पहुंचा. कुछ घंटे प्रेमिका काजल के साथ बिताने के बाद उसी दिन वह आगरा लौट आया था.

काजल से मिलने के बाद हरिमोहन की दिनचर्या ही बदल गई थी. उस ने उस के बिना जीने की कल्पना तक छोड़ दी थी. इधर काजल की भी यही स्थिति थी. दिनरात वह प्रेमी के खयालों में खोई रहती थी. अपने दिल की प्यास बुझाने के लिए वह घंटों फोन पर चिपकी रहती थी और प्यार की मीठीमीठी बातें करती थी. पहली ही भेंट में हरिमोहन ने काजल को मोबाइल गिफ्ट किया था.

जब से काजल हरिमोहन के संपर्क में आई थी, तब से उस की जीवनशैली काफी बदल गई थी. यह बात घर वाले महसूस कर रहे थे. घर वालों ने जब उस से मोबाइल के बारे में पूछा तो उस ने झूठ बोलते हुए कह दिया कि उस की एक सहेली ने गिफ्ट किया है.

लेकिन काजल की प्रेम कहानी घर वालों से ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाई. पिता अनिल पांडेय को छोड़ कर घर के सभी सदस्यों को उस के प्रेमप्रसंग के बारे में पता चल चुका था. मां और बड़ी बहन ने तो काजल को समझाया भी था कि वह अपनी हरकतों में सुधार लाए, नहीं तो घर में कयामत आ सकती है.

लेकिन काजल पर मां और बहनों के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने ठान लिया था कि हरिमोहन ही उस के जीवन का शहजादा है. उस के अलावा वह किसी अन्य पुरुष को अपने जीवन में जगह नहीं दे सकती.

काजल समझ चुकी थी कि उस के घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं होंगे, जबकि वह हरिमोहन के बिना नहीं जी सकती. ऐसे में उसे क्या करना चाहिए, वह अकसर यही सोचती रहती थी.

काजल को टीवी के क्राइम सीरियल बहुत पसंद थे. सीरियल देख कर उस के दिमाग में विचारों की उठापटक होने लगी. जल्दी ही उस ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. उस की खतरनाक योजना यह थी कि वह दिखाने के लिए खुद की फरजी हत्या करेगी और सारा इलजाम किसी और पर डाल देगी. घर वाले थोड़े दिन उस की याद में तड़पेंगे, फिर धीरेधीरे उसे भूल जाएंगे.

दूसरी ओर वह हरिमोहन के साथ स्वच्छंद जीवन जीती रहेगी. समय आने पर वह खुद को घर वालों के सामने आ जाएगी. घर वाले थोड़ा नाराज होंगे, लेकिन फिर उसे माफ कर अपना लेंगे.

काजल ने यह बात हरिमोहन को बता कर उसे भी योजना में शामिल कर लिया. अब उसे बस सही समय का इंतजार था. इसी बीच सीमा को ले कर काजल और विजय में विवाद हो गया था. काजल बड़ी बहन सीमा को इसलिए अपने यहां नौकरी पर नहीं रखने देना चाहती थी कि उस की योजना पर पानी फिर सकता था.

वैसे भी घर वाले उस पर दबाव डाल रहे थे कि वह नौकरी छोड़ दे. लड़कियों का मोबाइल की दुकान पर नौकरी करने को लोग अच्छी निगाहों से नहीं देखते. दूसरी ओर काजल हरिमोहन के संपर्क में बनी हुई थी और उस पर दबाव डाल रही थी कि वह उसे जल्द से जल्द अपने साथ ले जाए.

उस के घर वाले उस के बाहर निकलने पर कभी भी पाबंदी लगा सकते हैं. उस ने अपनी योजना देवरिया में रह रहे फुफेरे भाई राजमणि को भी बता दी थी. यह बात अगस्त, 2019 के आखिरी सप्ताह की थी.

योजना के मुताबिक, 10 सितंबर, 2019 की सुबह साढ़े 9 बजे काजल अपना बड़ा पर्स ले कर यह कह कर घर से निकली कि वह दुकान पर अपना हिसाब करने जा रही है. आज के बाद वह नौकरी नहीं करेगी. हिसाब कर के थोड़ी देर में घर लौट आएगी.

यह सुन कर घर वाले यह सोच कर खुश हुए कि काजल में सुधार आ रहा है. लेकिन वे यह नहीं समझ पाए कि विश्वास की जमीन पर धोखे की काली चादर बिछा कर काजल उन के दिए संस्कारों को कलंकित करने वाली है. बहरहाल, उस ने पर्स में अपने सभी सर्टिफिकेट, आधार कार्ड, बैंक पासबुक आदि जरूरी कागजात रख लिए थे, ताकि जरूरत पड़ने पर उन का इस्तेमाल कर सके.

इधर हरिमोहन चौरीचौरा आ कर टैंपो स्टैंड पर खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. जैसे ही काजल वहां पहुंची, सब से पहले उस ने उस का फोन स्विच्ड औफ करा दिया. टैंपो से दोनों कुसम्ही जंगल में स्थित वनसप्ती माता के मंदिर गए. हरिमोहन अपने साथ ग्लिसरीन और लाल रंग ले आया था.

उस ने ग्लिसरीन में लाल रंग मिला कर खून तैयार किया. जंगल के एकांत जगह पर जा कर काजल के सिर पर ग्लिसरीन से बना नकली खून उड़ेल दिया.

उस के बाद हरिमोहन ने काजल के हाथपैर और मुंह बांध कर अपने मोबाइल से 3-4 ऐंगल से फोटो खींचे, जिसे देखने से ऐसा लगे कि बदमाशों ने अपहरण कर के उस की हत्या कर लाश जंगल में फेंक दी हो.

फोटो खींचने के बाद दोनों वहां से मोहद्दीपुर आए, वहां वी मार्ट बाजार से हरिमोहन ने काजल के लिए कपडे़ खरीदे. फिर दोनों टैंपो से नौसढ़ चौराहे पहुंचे. दोनों ने वहां एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया. नौसढ़ से ही आगरा जाने वाली एसी बस में सवार हो कर दोनों आगरा पहुंच गए.

बीच रास्ते में हरिमोहन ने काजल का सिम तोड़ कर चलती बस से बाहर फेंक दिया और सेट भी. फिर उसी बस में बैठेबैठे उस ने काजल की नकली हत्या की सभी तसवीरें उस के पिता अनिल कुमार पांडेय के वाट्सऐप पर भेज दीं.

बहरहाल, पुलिस ने राजमणि पांडेय को भी आरोपी बना लिया. उस का दोष यह था कि वह पुलिस की गतिविधियों की सूचना काजल तक पहुंचाता रहा था. पुलिस ने काजल की सहीसलामत बरामदगी के बाद जेल में बंद विजय पाठक और अनूप जायसवाल को रिहा करा दिया.

पुलिस ने अपनी हत्या की कहानी गढ़ने, झूठे सबूत तैयार करने, पुलिस को गुमराह करने और सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने की आईपीसी की धाराओं 364, 193, 419, 468/34 और 66डी आईटी ऐक्ट में दोनों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया था.

काजल और हरिमोहन ने पुलिस के सामने इकरार किया था कि जेल से छूटने के बाद दोनों शादी करेंगे. जिंदगी रहने तक एकदूसरे से कभी अलग नहीं होंगे.

कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी गोरखपुर मंडलीय कारागार में बंद थे. काजल के मांबाप ने बेटी से सदा के लिए संबंध तोड़ लिए. लेकिन हरिमोहन के घर वालों ने काजल को बहू के रूप में स्वीकार लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित