प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 3

पुलिस उसे आरोपी न बना सके, इसलिए प्रखर ने अपनी ओर से सब कुछ किया. कंचन का वाट्सऐप व अपना इंस्टाग्राम दोस्त शीलू के मोबाइल में इंस्टाल किए. उस से अंजलि को मैसेज भेज रहा था. प्रखर को पता था कि पुलिस उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालेगी, लोकेशन देखेगी. उस की और कंचन की लोकेशन अलग आएगी. काल डिटेल्स में बातचीत नहीं निकलेगी, इसलिए वह इंस्टाग्राम पर काल कर रहा था. यदि पुलिस उस के इंस्टा प्रोफाइल की डिटेल्स निकालेगी तो भी कुछ नहीं मिलेगा. बातचीत के लिए शातिर प्रखर ने दूसरा प्रोफाइल बनाया था.

प्रखर के मुंह से यह सुन कर उस की मां भी दंग रह गई. पहले उसे लग रहा था कि प्रखर हत्या जैसी घटना नहीं कर सकता. जब अपनी आंखों के सामने बेटे को सच उगलते देखा तो वह बोली, “प्रखर, तुम ने सभी की जिंदगी बरबाद कर दी. मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा अच्छे ढंग से तुम्हें पाला. यदि किसी से प्यार था तो मुझे तो बताता. प्यार के लिए कोई इस तरह अपराधी नहीं बनता है.”

पुलिस ने उसी दिन दबिश दे कर गंजडुंडवारा निवासी शीलू को गिरफ्तार कर लिया. दोनों का आमना सामना कराया गया. दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, बाइक और खून से सना अंगोछा (गमछा) भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

प्रखर के बाबा व पिता की हो चुकी है हत्या

सनसनीखेज वारदात को अंजाम देने वाले प्रखर गुप्ता की कहानी भी कम चौंकाने वाली नहीं है. वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज के कस्बा गंजडुंडवारा का रहने वाला है. कई साल से अपनी मां व हाईस्कूल पास छोटे भाई के साथ आगरा में रह रहा था. दयालबाग सौ फुटा रोड स्थित अपर्णा रिवर व्यू अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले रखा है.

उस के बाबा की रंजिश में हुत्या हुई थी. पिता विष्णुरत्न गुप्ता भी हत्या के मामले में पहले जेल गए थे. जेल से बाहर आने के बाद विरोधियों ने 2013 में उन की भी हत्या कर दी. उस समय प्रखर 11 साल का था. मां आगरा में संजय पैलेस में एक कंपनी में काम करती है. 21 वर्षीय प्रखर ने इंटर तक पढ़ाई की है. उस ने मां से कहा कि अब वह व्यापार करेगा. उस की जिद पर मां ने 2 लाख रुपए की बाइक दिलाई थी.

कच्ची उम्र के प्यार की सनसनीखेज कहानी—

कारोबारी बजाज दंपत्ति अपनी इकलौती बेटी कंचन को एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे थे. मां अंजलि बेटी की पढ़ाई पर काफी ध्यान दे रही थीं. पुलिस पूछताछ में पता चला कि कंचन का स्कूल में एक दोस्त है कुशल. प्रखर कुशल का दोस्त था.

कुशल ने ही उस की प्रखर से पहचान कराई थी. प्रखर ने कंचन से दोस्ती ही झूठ बोल कर की थी. उस ने बताया था कि वह डीयू (दिल्ली यूनिवर्सिटी) में ग्रैजुएशन का छात्र है. वह जिम भी जाता है. गांव में खेती है और मां नौकरी करती है.

पहली ही मुलाकात में कंचन उस से प्रभावित हो गई. अपनी कीमती बाइक पर प्रखर कंचन को स्कूल छोडऩे व लेने जाने लगा. यह सब कंचन को बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. ये बात जनवरी, 2023 की है.

मार्च के महीने में कंचन अपने घर से बिना बताए प्रखर के साथ बाहर घूमने चली गई थी. कई घंटे बाद घर लौटी. वापस लौट कर आई तो मां बहुत नाराज हुई. पूछा कहां गई थीं, किस के साथ गई थीं? इस घटना के बाद मां ने उस का मोबाइल भी चैक किया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म खंगाला.

मोबाइल में अंजलि ने प्रखर के साथ उस के फोटो देख लिए तो उन्होंने घर में बहुत क्लेश किया. पूछा, “ये लडक़ा कौन है?”

तब कंचन ने बताया कि उस का दोस्त प्रखर गुप्ता है. यह सुन कर मां ने उसे डांटा. फोन पर प्रखर से भी बात की और बेटी से दूर रहने को कहा. मां की सख्ती के चलते करीब एक महीने प्रखर उस से मिल नहीं पाया था. चोरीछिपे केवल फोन पर बातचीत होती थी.

बेटी के आपत्तिजनक फोटो देख कर परेशान थीं अंजलि

घटना से 20 दिन पहले अंजलि को कंचन की प्रखर के साथ फिर से दोस्ती की भनक लग गई थी. उन्होंने बेटी से इस संबंध में बात की तो बेटी ने कहा कि प्रखर उस से बहुत प्यार करता है. अंजलि ने कंचन के मोबाइल में प्रखर के साथ उस के आपत्तिजनक फोटो देख लिए थे. फोटो देख कर अंजलि परेशान हो गई.

उन्हें लगा कि यदि बेटी को काबू में न रखा गया तो वह समाज में बजाज परिवार की नाक कटा देगी. उन्होंने बेटी पर पहरा बैठा दिया. फोन काल से ले कर हर चीज पर नजर रखी जाने लगी. कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन इस के बाद वह फिर से प्रखर को चोरीछिपे फोन करने लगी. उन का प्रेम प्रसंग जारी रहा. जब मां को यह बात पता चली तो उन्होंने बेटी के न मानने पर प्रखर को पोक्सो एक्ट में जेल भिजवाने की धमकी दी.

यह भी कहा कि नाबालिग का बयान कोई मायने नहीं रखता है, इन फोटो व चैट से ही प्रखर को जेल जाना पड़ेगा. यह बात कंचन ने अपने बौयफ्रैंड प्रखर को बता दी. जेल जाने की बात से प्रखर परेशान हो गया. उसे लगा कि यदि वह जेल चला जाएगा तो कारोबारी की इकलौती बेटी को पाने का उस का सपना अधूरा रह जाएगा. उस का प्यार उस से छिन रहा था. प्रेमिका पर लगाई जा रही बंदिशों से वह आजिज आ चुका था. जेल जाने के डर से प्रखर ने अंजलि बजाज की हत्या की योजना बनाई.

अंजलि बजाज की हत्या के लिए प्रखर को एक साथी की तलाश थी. वह अकेले अंजलि की हत्या नहीं कर सकता था. वह अपने गांव गंजडुंडवारा गया और वहां 10 दिन रुका. इस बीच उस का दोस्त शीलू मिला. वह घर में खाली बैठा था. उस से बातचीत की और उसे 10 हजार रुपए का लालच दिया. उस से कहा कि स्कूल में झगड़ा हो गया है एक को सबक सिखाना है.

शीलू इस के लिए तैयार हो गया. वह शीलू को 3 जून को आगरा बुला लाया. दोनों आईएसबीटी के पास एक होटल में ठहरे. वहां 2 दिन रुकने के बाद दोनों सिकंदरा स्थित होटल में आ गए.

कंचन ने बहाने से बुलाया था मां को

साजिश के तहत कंचन 7 जून को अपने शास्त्रीपुरम स्थित घर से दोपहर में निकल कर पार्क में जा कर छिप गई. थोड़ी देर बाद उस ने अपनी मां अंजलि को फोन कर बताया कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ जा रही है. यदि आखिरी बार मिलना है तो मिल लो. यह सुन कर अंजलि घबरा गईं.

थोड़ी देर बाद बेटी ने वाट्सएप पर लोकेशन भेजी. लोकेशन ककरैठा स्थित वनखंडी महादेव मंदिर की थी. बेटी ने प्रेमी के साथ जाने का नाटक कर मां को वनखंडी मंदिर पर भेज दिया. लेकिन अंजलि के साथ पति उदित को देख कर प्रखर ने कंचन को फोन से मैसेज भेज कर दोनों को अलग करने को कहा. इस पर कंचन ने पिता को फोन कर स्वयं को ले जाने की बात कह कर मंदिर पर मां से अलग कर हत्यारों के सामने भेज दिया. जबकि खुद पार्क में छिपने के बाद मां और पिता को भ्रमित करने के बाद घर आ गई.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 2

पुलिस की शुरुआती जांच में शक ये उठा कि आखिर अंजलि अपने घर से चल कर मंदिर पर पहुंची लेकिन जंगल में क्यों गईं?

इस की जांच के लिए पुलिस ने उन के फोन की वाट्सएप चैट निकाली. इस से पता चला कि अंजलि की बेटी के फोन से ही मैसेज आया था. जिस में लिखा था कि वो अपने दोस्त के साथ ककरैठा जंगल में महादेव मंदिर के पास है. इस कारण अंजलि कंचन की तलाश में उस जंगल में चली गई थीं. अब पुलिस को यहीं से शक हो गया कि अंजलि मर्डर केस में उन की ही बेटी का कुछ न कुछ हाथ तो जरूर है या फिर उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था.

मां को 47 बार काल किया था कंचन ने

पुलिस ने जब बेटी व मां के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकाली, तब जांच से पता चला कि घटना वाले दिन 7 जून को कंचन ने अपनी मां अंजलि व एक अन्य नंबर पर दोपहर 2.20 बजे से 3.56 बजे तक 47 बार फोन किया. पुलिस यह जान गई थी कि कुछ तो है, जो कंचन छिपाना चाहती है. एसएचओ आनंद कुमार शाही का ऐसा अनुमान था कि कंचन ने ही अपनी मां को हत्यारोपियों के सामने तक भेजा था.

शीलू के मोबाइल में चला रहा था इंस्टाग्राम व वाट्सऐप

पुलिस ने प्रखर गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस यह देखना चाहती थी कि प्रखर 7 जून को कहां था. रिपोर्ट से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 7 जून को दोपहर 12 बजे तक प्रखर आगरा में ही था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था.

पुलिस को जांच में पता चला कि अंजलि पति के साथ जब मंदिर पर पहुंची थीं और गायब हुई थीं, इस समयावधि में प्रखर गुप्ता का तो नहीं लेकिन एक अन्य मोबाइल नंबर उस समय वनखंडी महादेव मंदिर के पास मौैजूद था. यानी वारदात के समय मृतका अंजलि और उस गुमनाम मोबाइल की लोकेशन एक ही जगह पर थी. दोनों ही फोन एक ही टावर से जुड़े थे.

पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि यह नंबर कासगंज के गंजडुंडवारा के रहने वाले शीलू का था. पता चला कि वह प्रखर गुप्ता का दोस्त है. शीलू के मोबाइल में प्रखर गुप्ता का इंस्टाग्राम अकाउंट व कंचन का वाट्सऐप एकाउंट चल रहा था. कंचन ने अपने प्रेमी प्रखर को अपना वाट्सऐप एक्सेस दे कर उस से लोकेशन भी शेयर करा दी. वह मां अंजलि को लोकेशन भेज कर अपने पास बुलाता गया, जबकि अंजलि समझ रही थी कि बेटी अपनी लोकेशन भेज रही है. इसी झांसे में वह हत्यारों के पास पहुंच गई. पुलिस ने शीलू के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

केदारनाथ की कह कर निकला था घर से

प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस ने कंचन के प्रेमी प्रखर गुप्ता की तलाश शुरू की. वह घर से फरार मिला. पुलिस शुक्रवार 9 जून, 2023 की रात को उस के घर पहुंची थी. मां से प्रखर के बारे में पूछा. उस ने बताया कि बेटा तो 3 दिन से बाहर है. केदारनाथ जाने की कह कर घर से निकला था.

यह सुन कर पुलिस का शक और गहरा गया. जबकि उस की लोकेशन बुधवार 7 जून दोपहर 12 बजे तक शहर में ही थी. इस खुलासे के बाद पुलिस ने प्रखर की तलाश में सर्विलांस की मदद ली. सुराग मिलने पर टीम उत्तराखंड और दिल्ली भेजी गईं.

अंजलि के लापता होने से हत्या तक की घटना सस्पेंस फिल्म की पटकथा जैसी है. शातिर प्रखर गुप्ता ने हत्या से पहले पूरी तरह शोध कार्य किया था कि पुलिस कैसे पकड़ती है? पुलिस से कैसे बचना है? गहन मंथन करने के बाद हाईटेक साजिश रची गई थी. फोटो में बाइक के नंबर से पुलिस को प्रखर के बारे में पूरी जानकारी व उस का पता मिल गया था. उस के बाद कडिय़ां आपस में जुड़ती चली गईं. पुलिस ने तब दबिश देनी शुरू कर दी.

गिरफ्तारी के बाद भी डरा नहीं प्रखर

पुलिस को इस मर्डर केस की साजिश का परत दर परत खुलासा करने में 3 दिन लगे. 11 जून को खंदारी के पास से पुलिस ने 21 वर्षीय प्रखर गुप्ता को गिरफतार कर लिया. पुलिस ने प्रखर से पूछताछ शुरू की तो उस ने कहा पुलिस तो रस्सी का सांप बना देती है. निर्दोष को फंसाती है. कोर्ट तो सबूत मांगता है. हत्यारोपी के मुंह से ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई.

पुलिस से डरने के बजाए हत्यारोपी प्रखर पुलिस पर हावी था. उस ने झूठीसच्ची कहानी गढ़ कर पुलिस को घंटों घुमाया. फिल्मों, वेब सीरीज, सीरियलों को देख कर प्रखर ने जो सीखा था, वह पूरा ज्ञान पुलिस पर उड़ेल दिया. कोर्ट में बात करेंगे.

वह टूट नहीं रहा था. कहने लगा, कहां हैं उस के फिंगरप्रिंट, लोकेशन और आला कत्ल, अंजलि का मोबाइल? सबूत हों तो दिखाओ. वह पुलिस के सामने फिल्म ‘दृश्यम’ का अजय देवगन बन गया था.

इस के बाद पुलिस ने भी पैंतरा बदला और प्रखर के सामने उस की मां व छोटे भाई को ले कर आई. कहा कि तुम्हारे साथ मां और भाई भी जेल जाएंगे. इतना सुनते ही प्रखर टूट गया. उस ने कहा कि अंजलि को शीलू ने मार दिया, उस ने कुछ नहीं किया. उस ने तो बात करने के लिए बुलाया था. वह घटना के समय शीलू के साथ था.

कंचन भी प्रखर को निर्दोष बताने लगी. उस ने भी कहा कि मां को शीलू ने ही मारा है. इस पर शीलू ने कहा कि वह प्रखर को जानता है. वह गांव से उसे बहाने से बुला कर लाया था. हम दोनों ने मिल कर हत्या की है. इस में कंचन का भी हाथ है. प्रखर और उस की प्रेमिका दोनों झूठ बोल रहे हैं. पुलिस द्वारा सबूत दिखाने पर आखिर प्रखर ने अंजलि की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

प्यार में कराई मां की हत्या

प्रखर बोला, “हां, उस ने अंजलि बजाज को मारा है. क्या करता, उस का प्यार उस से छिन रहा था. उस के सपने चूरचूर हो रहे थे. उन्हें पता चल गया था कि कंचन से उस का करीबी रिश्ता जुड़ चुका है. वह अंजलि बजाज को नहीं मारता तो वह उसे पोक्सो एक्ट में जेल भिजवा देती.

“कंचन भले ही कोर्ट में कहती रहती कि वह उस से प्यार करती है, तब भी उसे जेल जाना पड़ता क्योंकि नाबालिग की बात कोई मायने नहीं रखती.”

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या में उस ने अपने गांव के दोस्त शीलू की मदद ली थी. हत्या से पहले उस ने व शीलू ने शराब भी पी थी ताकि अंदर से हिम्मत आ जाए.

दोस्ती में विश्वास की हत्या

दीपक कई दिनों से घरवालों से पहले की तरह ज्यादा बात नहीं कर रहा था. इस बात को उस की मां राजबाला अच्छे से समझ रही थीं. उन्होंने उस से कई बार  परेशानी की वजह जाननी भी चाही लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता था.

एक दिन दोपहर के समय दीपक घर लौटा तो राजबाला ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, मैं कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तू किसी से ज्यादा बात भी नहीं करता और खोयाखोया सा रहता है.’’

‘‘नहीं मां, कोई खास बात नहीं है.’’ दीपक ने टालने वाले अंदाज में कहा. फिर वह विषय को बदलते हुए बोला, ‘‘मां मुझे तेज भूख लगी है. खाना लगा दो.’’

राजबाला ने भी सोचा कि जब यह खाना खा लेगा उस के बाद परेशानी की वजह बूझेगी. बेटे को खाना लाने के लिए रसोई में चली गईं और खाना परोस कर उसे दे दिया. दीपक ने खाना खाना अभी शुरू ही किया था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. दीपक ने मोबाइल स्क्रीन पर देखा तो वह नंबर उसे अनजाना लगा. इसलिए काल रिसीव करने के बजाय काट दी.

उस ने एकदो निवाले ही खाए थे कि फोन की घंटी फिर बजी. फोन उसी नंबर से था जिस से कुछ पल पहले आया था. दीपक झुंझला रहा था कि पता नहीं कौन है, जो ठीक से खाना भी नहीं खाने दे रहा. झुंझलाहट में उस ने काल रिसीव की.

दूसरी ओर से न मालूम किस की आवाज आई कि उसे सुनने के बाद उस का गुस्सा उड़न छू हो गया और बोला, ठीक है, मैं थोड़ी देर बाद पहुुंचता हूं.’’ कह कर फोन काट दिया.

उस समय राजबाला वहीं बैठी थीं. उन्होंने बेटे से मालूम भी किया कि किस का फोन था लेकिन दीपक ने नहीं बताया. फोन पर बात करने के बाद दीपक ने फटाफट खाना खाया और घर से बाहर की ओर निकल गया.

‘‘तू, मेरा मोबाइल लाने वाला था, क्या हुआ?’’ जाते समय मां ने पीछे से आवाज लगाई.

‘‘मम्मी, मुझे ध्यान है. आज वो भी ले लूंगा. पैसे मेरे पास ही हैं.’’ कह कर दीपक चला गया. यह बात 11 फरवरी की है.

दोपहर को घर से निकला दीपक जब देर शाम तक घर नहीं लौटा, तो राजबाला को चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया तो वह भी बंद आ रहा था, उन का बड़ा बेटा नितिन उस समय अपने काम पर गया हुआ था. राजबाला ने फोन कर के सारी बात नितिन को बता दी.

कुछ देर बाद वह भी घर आ गया. घर पहुंच कर नितिन ने सभी संभावित जगहों पर दीपक की तलाश की, लेकिन देर रात तक भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. जवान बेटे के गायब हो जाने पर घर के सभी लोग परेशान थे. पिता जसवंत अग्रवाल थाना मुरादनगर पहुंचे और थानाप्रभारी को 25 वर्षीय बेटे दीपक अग्रवाल के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस ने भी सोचा कि दीपक कोई नासमझ तो है नहीं जो कहीं खो जाएगा. यारदोस्तों के साथ कहीं चला गया होगा और 2-4 दिन में घूमघाम कर लौट आएगा. यही सोच कर पुलिस ने उस की गुमशुदगी को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन दीपक के मांबाप के दिलों पर क्या गुजर रही थी. इस बात को केवल वे ही महसूस कर रहे थे. बेटे की चिंता में एकएक दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था.

जसवंत अग्रवाल थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो रहे थे मगर पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी. इस के 3 दिन बाद 14 फरवरी को मुरादनगर पुलिस को सूचना मिली कि एनटीपीसी के जंगलों के पास खुर्रमपुर गांव के रहने वाले टीटू के गन्ने के खेत में एक लाश पड़ी है. यह इलाका थाना मुरादनगर क्षेत्र में ही आता है इसलिए खबर मिलते ही थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद उस जगह पर पहुंच गए जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

उन्होंने देखा कि खेत में 25-30 साल के युवक की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जितनी तादाद में वहां खून फैल कर जम चुका था, उस से लग रहा था कि उस की हत्या वहीं पर की होगी. उस के गले पर गोली का निशान दिख रहा था.

निरीक्षण में पता चला कि हत्यारों ने उस की पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे और लिंग को जला दिया था. इस से ऐसा लगा कि मारने वालों को उस से गहरी खुन्नस रही होगी. लाश विकृत अवस्था में थी, थानाप्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

चूंकि मामला मर्डर का था इसलिए थानाप्रभारी ने जिले के आलाअधिकारियों को भी यह सूचना दे दी, तो जिले से एसएसपी और एसपी (आरए) भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से बात की और थानाप्रभारी को कुछ निर्देश दे कर चले आए. थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद में हिंडन स्थित मोर्चरी भेज दिया.

हत्या के इस मामले की जांच थाना प्रभारी अवधेश प्रसाद ने शुरू कर दी. थानाप्रभारी के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि लाश की शिनाख्त न होने की वजह से उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिल पा रहा था, जिस से जांच आगे बढ़ सके. फिर उन्होंने इस काम में मुखबिरों को भी लगा दिया. इस से पहले कि उन्हें अज्ञात लाश के बारे में कहीं से कोई क्लू मिलता उन का वहां से तबादला हो गया.

इधर जसवंत अग्रवाल अपने लापता बेटे का पता लगवाने के लिए थाने के चक्कर लगाते रहे. पुलिस ने टीटू के गन्ने के खेत से जिस अज्ञात युवक की लाश बरामद की थी उस के बारे में भी जसवंत को कुछ नहीं बताया. जबकि अज्ञात लाश का हुलिया जसवंत के गायब बेटे दीपक से मिलताजुलता था.

जसवंत अग्रवाल ने भी हिम्मत नहीं हारी. उस ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने अपना दुखड़ा रोया. इस का नतीजा यह निकला कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के आदेश पर मुरादनगर के नए थानाप्रभारी ने 19 फरवरी को दीपक की गुमशुदगी के मामले को भांदंवि की धारा 364 के तहत दर्ज कर लिया और इस मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई राजेश शर्मा, कांस्टेबल पुष्पेंद्र, कुंवर पाल, अवश्री आदि को शामिल किया गया.

सबइंस्पेक्टर राजेश शर्मा ने सब से पहले दीपक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि दीपक के मोबाइल पर आखिरी काल जिस नंबर से आई थी, वह नंबर एक पीसीओ का था. पुलिस ने उस पीसीओ के मालिक का पता लगा कर उसे पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.

उस से पूछा गया कि 11 फरवरी को दोपहर के समय उस के यहां से किस ने काल की थी. उस के पीसीओ पर रोजाना तमाम लोग काल करने आते हैं. उन में से कुछ परिचित होते हैं, कुछ अपरिचित. अब 8-10 दिन पहले दोपहर को किनकिन लोगों ने बात की. उस के लिए यह बताना आसान नहीं था. उस से पूछताछ में कोई सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

पुलिस को गन्ने के खेत से मिली लाश के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. हत्या के इस केस की तरह पुलिस टीम को दीपक के अपहरण के बारे में भी कोई सुराग न मिला तो पुलिस ने इस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया. थाने के चक्कर लगातेलगाते जसवंत भी थकहार गए.

7-8 महीने बीत गए पुलिस न तो उस अज्ञात लाश की ही शिनाख्त करा पाई और न ही दीपक के बारे में पता लगा पाई. इसी दौरान नए थानाप्रभारी रामप्रकाश शर्मा से जसवंत अग्रवाल ने मुलाकात की और बेटे का पता लगाने की अपील की.

थानाप्रभारी दीपक ने फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया. जांच करने पर उन्हें यह पता चला कि दीपक की दोस्ती मोहित शर्मा नाम के एक युवक से थी. वह कृष्णा कालोनी में रहता था. वह एक अपराधी किस्म का व्यक्ति था. उस से खिलाफ थाना मुरादनगर में ही हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत 2 मुकदमे दर्ज थे. जबकि दीपक एक शरीफ लड़का था.

अब थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात घूम गई कि एक अपराधी के साथ दीपक का क्या रिश्ता हो सकता है? उन्हें लग रहा था कि तफ्तीश अब कुछ आगे बढ़ सकती है. उन्होंने मोहित शर्मा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस का अध्ययन करने पर पता चला कि मोहित 2 और फोन नंबरों पर ज्यादा बातें करता था. जिन नंबरों पर उस की ज्यादा बातें होती थीं. जांच में वह शशि और लक्ष्मण नाम के शख्स के पाए गए, जोकि मुरादनगर में ही रहते थे. उन दोनों के खिलाफ भी थाना मुरादनगर में कई मुकदमे दर्ज थे.

पुलिस ने मोहित शर्मा, शशि और लक्ष्मण को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. तीनों से दीपक के बारे में मालूमात की तो उन्होंने दीपक के बारे मे अनभिज्ञता जताई. जिस दिन मोहित गायब हुआ था उस दिन की इन तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन जांची तो वह कहीं और की पाई गईं. इस से पुलिस को वे बेकुसूर लगे. उन के खिलाफ कोई सुबूत न मिला तो पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया.

थानाप्रभारी ने दीपक के फोन की काल डिटेल्स का फिर से अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जिन नंबरों पर दीपक की अकसर बात होती थी उन में से एक नंबर दीपक के गुम होने के बाद से लगातार बंद आ रहा था. अब पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश की कि जिस फोन में वह नंबर चल रहा था. उस में अब कौन सा नंबर चल रहा है.

फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे थानाप्रभारी को इस काम में सफलता मिल गई. उस फोन में जो नंबर चल रहा था वह कनक नाम की एक लड़की की आईडी पर लिया गया था. पुलिस ने कनक को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.पू छताछ में पता चला कि वह दीपक की दोस्त है लेकिन उस ने दीपक के बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार कर दिया. जब सिम बदलने की वजह पूछी तो वह कोई उचित जवाब ना दे सकी और घबराहट में इधरउधर देखने लगी.

थानाप्रभारी को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है, इसलिए उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह अधिक देर ना टिक सकी और बोली कि दीपक अब इस दुनिया में नहीं है. उस के दोस्तों मोहित, लक्ष्मण और शशि ने उस की हत्या कर दी है.

कनक ने जिन लोगों के नाम बताए थे पुलिस ने उन के ठिकानों पर दविशें डालीं लेकिन वे फरार हो चुके थे और उन्होंने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे. फिर पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 29 दिसंबर को तीनों को पाइपलाइन रोड से हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर ऐसे 2 मामलों का खुलासा हो गया जो पिछले 9 महीने से पुलिस के गले की फांस बने हुए थे. उन से पूछताछ के बाद दीपक की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का एक थाना है मुरादनगर. मुरादनगर की ही कृष्णा कालोनी में जसवंत अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी राजबाला के अलावा 4 बच्चे थे. 2 बेटे व 2 बेटियां. बेटियों की शादी वह अपनी नौकरी के दौरान ही कर चुके थे. बेटा नितिन फरीदाबाद में स्थित प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. जबकि छोटे बेटे दीपक को फरीदाबाद में जूतों की दुकान खुलवा दी थी.

कुछ समय बाद ही दीपक का मन इस दुकान से उचट गया, तो अपने घर वालों से बात कर के वह औनेपौने दामों में दुकान का सारा सामान बेच कर अपने घर मुरादनगर आ गया. दीपक मुरादनगर में ही रह कर कोई ऐसा काम करना चाहता था जिस से अच्छी आमदनी हो. मुरादनगर में ही कनक नाम की एक लड़की रहती थी उसी से जफर और लक्ष्मण के अवैध संबंध थे.

दीपक की लक्ष्मण और जफर से दोस्ती थी. इसलिए उसे कनक के अवैध संबंधों की जानकारी थी. चूंकि कनक के कदम बहक चुके थे, इसलिए उस ने दीपक से भी नजदीकी बना ली थी. बाद में उस ने लक्ष्मण और जफर को किनारे कर के 25 वर्षीय दीपक से अवैध संबंध बना लिए.

लक्ष्मण और जफर ने जब प्रेमिका की तरफ से बेरुखी महसूस की तो उन्होंने इस की वजह खोजनी शुरू कर दी. तब उन्हें पता चला कि इस की असली वजह दीपक है. यानी दीपक ने उन के प्यार में सेंध लगा दी है. ऐसे विश्वासघाती दोस्त को उन्होंने सबक सिखाने की योजना बना ली और तय कर लिया कि वह उसे ठिकाने लगा कर ही रहेंगे, इस योजना में उन्होंने अपने एक और दोस्त शशि को भी शामिल कर लिया.

फरीदाबाद की जूतों की दुकान बंद कर के दीपक बेरोजगार हो गया था. घर का खर्चा उस का बड़ा भाई नितिन ही चला रहा था. दीपक अकसर अपने कामधंधे को ले कर तनाव में रहने लगा था. इस बात को घर वाले भी महसूस कर रहे थे.

योजनानुसार 11 फरवरी को मोहित ने पीसीओ से दीपक को फोन किया और एक जरूरी काम का बहाना कह कर घर से बुला लिया. बाइक पर बिठा कर वह उसे एनटीपीसी के जंगल में ले गया. वहां पहले से ही लक्ष्मण, शशि के साथ जफर भी मौजूद था. इन सभी ने पहले वहां बैठ कर जम कर शराब पी. जब दीपक को अधिक नशा हो गया तो वे उसे पास ही के गन्ने के खेत में ले गए.

वहां पहुंचते ही जफर ने उस की गरदन पर  तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही दीपक नीचे गिर गया. कुछ देर बाद उस की मौत हो गई. पहचान मिटाने के लिए उन्होंने उस के चेहरे और गुप्तांग पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी और वहां से चले गए. इस से पहले उन्होंने उस की जेब में रखे 10 हजार रुपए निकाल लिए. वह पैसे उस की मां ने फोन खरीदने के लिए दिए थे.

दीपक की हत्या के बाद जफर और शशि ने बिजनौर के पास दिल्ली के एक कार ड्राइवर से 2 लाख रुपए लूट लिए. विरोध करने पर उन्होंने उस की हत्या कर दी. बाद में जब यह मामला खुला तो बिजनौर पुलिस ने जफर और शशि को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

कुछ समय बाद शशि जमानत पर बाहर आ गया. जबकि जफर की जमानत नहीं हो सकी. उन से पूछताछ के बाद पता चला कि पुलिस ने 14 फरवरी को खुर्रमपुर के टीटू के खेत से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, वह दीपक अग्रवाल की ही थी.

हत्याकांड की हर बिखरी कड़ी अब जुड़ चुकी थी. सो सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34, 120बी के तहत गिरफ्तार कर गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

पुलिस हत्या में शामिल चौथे अभियुक्त जफर को अदालत में प्रार्थना पत्र दे कर, ट्रांजिट रिमांड पर लाने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित. कनक परिवर्तित नाम है

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर

मां के प्रेम का जब खुला राज

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 1

आगरा के शास्त्रीपुरम के ए ब्लौक स्थित भावना एरोमा कालोनी निवासी कारोबारी उदित बजाज 7 जून, 2023 की रात 9 बजे थाना सिकंदरा पहुंचे. वे बहुत घबराए हुए थे. उन्होंने एसएचओ आनंद कुमार शाही को पत्नी के लापता होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उन की 40 वर्षीय पत्नी अंजलि बजाज अपराह्नï 3 बजे यमुना किनारे ककरैठा में वनखंडी महादेव मंदिर में पूजा कर ने गई थीं. लेकिन अब तक वापस नहीं आई हैं. उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ जा रहा है.

सूचना पर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने रात में ही अंजलि की तलाश शुरू कर दी. एसएचओ आनंद कुमार शाही पुलिस टीम के साथ वनखंडी महादेव मंदिर जा पहुंचे. उन्होंने मंदिर के चप्पेचप्पे में अंजलि को तलाश किया, लेकिन अंजलि बजाज का कोई सुराग नहीं मिला.

उदित बजाज का आगरा में जूते के धागे का काम है. संजय पैलेस में उन की दुकान है. परिवार में इकलौती 15 वर्षीय बेटी कंचन के अलावा उदित के वृद्ध मातापिता साथ रहते हैं. दूसरे दिन पुलिस ने पति उदित बजाज से पूछताछ की. कारोबारी उदित ने बताया कि वह पत्नी के साथ मंदिर कार से गए थे. कंचन भी घर से कहीं चली गई थी. उस का फोन आया, उस ने बताया, पापा वह सिकंदरा में हाईवे पर अमर उजाला के पास खड़ी हैं, आप मुझे ले जाओ. पत्नी को मंदिर पर छोड़ कर वह बेटी को लेने पहुंचे.

रास्ते में कंचन का फोन आ गया कि वह घर पहुंच गई है. अब आने की जरूरत नहीं है. उस ने अपनी दादी से भी बात करा दी. उदित एक बार झुंझलाए भी फिर वे पत्नी को लेने के लिए वापस मंदिर पहुंचे लेकिन वहां पत्नी नहीं मिली. उदित को लगा कि पत्नी अकेले घर चली गई होंगी.

वह घर आए तो वहां पत्नी नहीं थीं. पत्नी का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ आ रहा था. वह एक बार फिर मंदिर पहुंचे, अंजलि को काफी तलाश किया, लेकिन वह नहीं मिलीं. परिचितों व रिश्तेदारों के यहां भी पता किया लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. पत्नी के न मिलने पर वह घबरा गए. शाम तक इंतजार किया इस के बाद ही वे रात में थाने पहुंचे थे.

वनखंडी के जंगल में मिली अंजलि की लाश

पत्नी के लापता होने के दूसरे दिन यानी 8 जून को एक व्यक्ति का पुलिस के पास फोन आया. उस ने बताया कि वनखंडी मंदिर के पास जंगल में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना पर पुलिस वनखंडी महादेव मंदिर पहुंची. ये मंदिर यमुना किनारे स्थित है. मंदिर से यमुना करीब 700 मीटर की दूरी पर है. मंदिर के आसपास जंगल है.

वनखंडी महादेव मंदिर से करीब 900 मीटर दूर ककरैठा के जंगल में रास्ते के बराबर में बने गड्ढे में नाले के पास एक महिला की लाश पड़ी थी. उदित बजाज ने गुमशुदी दर्ज कराते समय अपनी पत्नी की फोटो भी पुलिस को दी थी. पुलिस ने फोटो से मिलान किया तो वह लाश अंजलि बजाज की ही निकली.

अंजलि की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. गरदन और पेट पर गहरे घाव थे. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि अंजलि की चाकू से गोद कर हत्या की गई थी. देखने से लग रहा था कि हत्या के बाद लाश को घसीट कर नाले के पास गड्ढे में फेंक कर हत्यारा मृतका का मोबाइल ले कर फरार हो गया.

सूचना पर डीसीपी विकास कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुलाया गया. शव को घसीटने के निशान व मृतका की एक चप्पल भी घटनास्थल पर मिली थी. लाश मिलने पर पति उदित बजाज को सूचना दी गई. उदित ने घटनास्थल पर पहुंच गए लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी अंजलि बजाज के रूप में की. पत्नी का शव देखते ही वे फूटफूट कर रोने लगे. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को मोर्चरी भेज दिया.

अब अंजलि की गुमशुदगी का मामला कत्ल के मामले में भादंवि की धारा 302/34/120बी में तब्दील हो चुका था. अंजलि बजाज हत्याकांड के खुलासे के लिए डीसीपी विकास कुमार के निर्देशन में पुलिस की 6 टीमें बनाईं. टीम में एसओजी (सिकंदरा) आनंद कुमार शाही, एसआई सत्येंद्र सिंह, जितेंद्र प्रताप सिंह, सर्विलांस प्रभारी सचिन धामा, सर्विलांस प्रभारी (नगर जोन) अंकुर मलिक के अलावा एसओजी और स्वाट टीम को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने कारोबारी उदित बजाज के निवास शास्त्रीपुरम और वनखंडी मंदिर के बीच 9 किलोमीटर के फासले में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम शुरू कर दिया. मंदिर के पास से जिस रहस्यमय तरीके से अंजलि गायब हुई थी और जिस तरह से उन की हत्या की गई थी, उस से साफ था कि किसी ने यह काम पूरी तैयारी से किया है. आखिर वो हत्यारा कौन हो सकता है?

पुलिस को लगा कि अंजलि की हत्या कारोबारी दुश्मनी के चलते तो नहीं की गई, लेकिन इस के लिए पुलिस को पुख्ता सबूतों की जरूरत थी. पुलिस ने पति उदित बजाज के मोबाइल काल की जांच की, लेकिन उन्हें कोई शक वाली बात नजर नहीं आई.

घूमफिर कर कंचन पर जा रहा था शक

पुलिस को शक हो रहा था कि कहीं उदित बजाज ने ही पत्नी की हत्या कर ये सब नाटक नहीं किया. पुलिस ने उदित से सवालजवाब भी किए. उन्होंने पुलिस को सच्चाई बता दी. उन की बात सुन कर पुलिस को उन की बेटी कंचन पर शक हुआ. बेटी कभी मंदिर तो कभी हाईवे पर मां और पिता को क्यों बुला रही थी? कारोबारी उदित बजाज की 15 वर्षीय बेटी कंचन इस समय 11वीं कक्षा में पढ़ रही है.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह घबरा गई और फूटफूट कर रोने लगी. घर वालों व पुलिस ने किसी तरह किशोरी को शांत कराया. उस ने बताया कि मां की हत्या के बारे में उसे कुछ नहीं पता. पुलिस ने कंचन का मोबाइल चैक किया. सोशल मीडिया प्रोफाइल और गैलरी में एक युवक के साथ फोटो मिले. कंचन से पूछा गया, “ये कौन है?”

उस ने कहा, “यह प्रखर गुप्ता है.”

पुलिस ने उस के फोन की गैलरी में एकएक फोटो को खंगाला. एक फोटो में कंचन युवक के साथ बाइक पर बैठी थी, बाइक का नंबर दिखाई दे रहा था. पुलिस ने उस नंबर को चैक किया. प्रखर गुप्ता निवासी दयालबाग, आगरा का नाम और पता निकल कर आ गया.

तब पुलिस को कुछ आशंका हुई. पूछा, “यह तुम्हारा ब्यायफ्रैंड है?”

इस पर कंचन ने मना कर दिया. प्रखर के साथ उस के तमाम फोटो देख कर पुलिस को शक तो होने लगा था, लेकिन पुलिस ने बड़ी खामोशी से प्रखर गुप्ता के बारे में जानकारी करनी शुरू कर दी. इस के बाद पुलिस इस हत्याकांड की कडियां जोडने में जुट गई.

वाट्सएप चैट में छिपा हत्या का राज

कंचन का मोबाइल पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. मोबाइल से कंचन ने चैट्स और काल हिस्ट्री डिलीट कर दी थी. पुलिस उन्हें रिकवर कर रही थी. पूछताछ के लिए पुलिस कंचन को थाने ले गई. जब पुलिस की जांच आगे बढऩे लगी तो सभी के होश उडऩे लगे.

घटना की जानकारी होने पर उदित के बुजुर्ग मातापिता भी हिल गए. बाबा दादी को नातिनी की चिंता सताने लगी. परिजनों की खुशहाल जिंदगी में अचानक भूचाल आ गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. सभी प्रार्थना कर रहे थे कि काश! कंचन घिनौनी साजिश का हिस्सा न निकले. यदि ऐसा हुआ तो उन का बेटा उदित अकेला रह जाएगा. पतिपत्नी ने बेटी को ले कर बड़ेबड़े सपने संजो कर रखे थे.

कारोबारी उदित बजाज की पत्नी अंजलि की मौत अत्यधिक खून बह जाने के कारण हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अंजलि की छाती और पेट पर चाकू से प्रहार किए गए थे. इस से यह अनुमान लगाया गया कि अंजलि ने हत्यारे से अपने बचाव का प्रयास किया इसी दौरान उसे चोट लगी थी.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि

गलतफहमी ने बनाया दोस्त को दुश्मन

दोस्ती में आदमी एकदूसरे की आदतों, बातों और इरादों से अच्छी तरह परिचित हो जाता है. उस बीच दोनों एकदूसरे को काफी हद तक जान चुके होते हैं. दोस्ती की इसी पगडंडी पर चलते हुए शुरू किया गया प्यार का सफर लंबा चलता है. निश्चल ने भी राखी के साथ प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत दोस्ती के बाद ही की थी.

उन का प्यार इतनी गहराई तक पहुंच गया था कि उन्होंने ख्वाबों का एक महल भी बना लिया था, लेकिन एक दिन निश्चल को अचानक अपने ख्वाब तब टूटते नजर आए, जब राखी की बातों में अचानक बेरुखी की हवाएं तैरने लगीं. पहले तो निश्चल ने प्रेमिका की बेरुखी को नजरंदाज करने की कोशिश की, लेकिन एक दिन तो हद हो गई.

उस दिन उस ने आदतन राखी के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बड़ी बेरुखी से कहा, “कहो, किसलिए फोन किया है?”

राखी के इस व्यवहार पर निश्चल पहले तो हैरान हुआ, फिर भी उस की बेरुखी को नजरअंदाज करते हुए बड़े प्यार से बोला, “कैसी बात कर रही हो, अपने प्यार से बात करने की भी कोई वजह होती है क्या. दिल ने याद किया तो मैं ने तुम्हारा नंबर मिला दिया.”

“वह तो ठीक है निश्चल, पर मैं चाहती हूं कि अब हमारा इस तरह ज्यादा बातें करना ठीक नहीं है.” राखी ने उसी लहजे में जवाब दिया.

राखी की इन बातों और व्यवहार से निश्चल का दिमाग घूम गया. उस ने कहा, “राखी, तुम्हें क्या हो गया है. तुम ये कैसी अजीब बातें कर रही हो?”

“मैं जो कह रही हूं, ठीक ही कह रही हूं. अब पता नहीं तुम्हें यह सब अजीब क्यों लग रहा है.” राखी तुनक कर बोली.

“मैं एक बात कहूं राखी?” निश्चल ने कहा.

“हां, कहो.”

“मैं पिछले 2-3 दिनों से महसूस कर रहा हूं कि तुम काफी बदल सी गई हो. बताओ मुझ से ऐसी क्या गलती हो गई है?” निश्चल ने माहौल सामान्य करने की गरज से कहा.

“ऐसी तो कोई बात नहीं है निश्चल. फिर भी तुम्हें ऐसा लगता है तो मैं भला इस में क्या कर सकती हूं.” राखी ने निराश करने वाले अंदाज में कहा.

“क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रही हो?” निश्चल ने पूछा.

“मैं कौन होती हूं ऐसा करने वाली. वैसे भी मुझे अभी बहुत काम है. अब हम बाद में बात करेंगे. ओके बाय.” कहने के साथ ही राखी ने फोन काट दिया.

निश्चल यह सोचसोच कर परेशान था कि राखी को अचानक न जाने ऐसा क्या हो गया है, जो वह इस तरह का व्यवहार करने लगी है. उसी दौरान उस के दिमाग में आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राखी को उस की वे बातें पता चल गई हों, जो राज बनी रहनी चाहिए थीं.

इस के बाद वह यह सोचने लगा कि राखी को ऐसी बातें भला कौन बताएगा? इस पर उस ने सोच के घोड़े दौड़ाए तो कुछ देर बाद गहरी सांस ले कर हलके से बुदबुदाया, ‘ओह, अब समझ में आया, सजल ने ही राखी को उस के बारे में बताया होगा.’

अपने इस खयाल की पुष्टि के लिए उस ने फिर से राखी का मोबाइल मिलाया तो राखी ने पूछा, “अब क्या हुआ, मैं ने कहा तो था कि बाद में बात करेंगे.”

“राखी, मुझे एक बात पूछनी थी.” निश्चल बोला.

“बताओ क्या पूछना है?”

“मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम्हारी सजल से कोई बात हुई थी?” निश्चल ने पूछा.

“हां, हुई तो थी, लेकिन इस में बुरा क्या है. वह तुम्हारा अच्छा दोस्त है.” राखी ने कहा.

“मुझे लगता है कि उसी ने मेरे बारे में तुम से कुछ उलटीसीधी बातें की हैं, तभी तुम बदल गई हो.” निश्चल ने अपने मन की बात कही.

“सौरी निश्चल, मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं करना चाहती.”

राखी बात को खींचना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने बात को यहीं विराम देना चाहा.

लेकिन निश्चल राखी से सच्चाई जानना चाहता था, इसलिए उस ने पूछा, “तो फिर इस बेरुखी की वजह क्या है, यह तो बता दो?”

“मैं कुछ नहीं बताना चाहती, बाय.” पीछा छुड़ाते हुए राखी ने अपनी बात खत्म कर दी. निश्चल उस के इस रूखे और उपेक्षित व्यवहार से ठगा सा रह गया.

निश्चल अरोड़ा उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के कस्बा बेहट की संजय कालोनी निवासी रमेश अरोड़ा का बेटा था. राखी भी उसी कालोनी में रहती थी. कुछ महीने पहले ही दोनों के बीच दोस्ती के बाद प्यार हो गया था. दोनों अकसर मोबाइल पर लंबीलंबी बातें और चैटिंग किया करते थे. राखी के प्यार से निश्चल की जिंदगी में जैसे बहार आ गई थी. लेकिन राखी का अचानक बदला रुख उसे परेशान करने लगा था. उस का ही एक दोस्त था सजल चुघ.

25 वर्षीय सजल की कस्बे में ही छोटे चौक पर पुश्तैनी किराने की दुकान थी. वह एक प्रतिष्ठित परिवार से था. उस के पिता राजेंद्र चुघ दुकान संभालते थे, जबकि चाचा मुकेश चुघ व्यापारी नेता थे. सजल व निश्चल न सिर्फ गहरे दोस्त थे, बल्कि वे एकदूसरे के हमराज भी थे. इसी दोस्ती के नाते निश्चल ने उस का परिचय अपनी प्रेमिका राखी से करा दिया था.

सजल निश्चल की गैरमौजूदगी में भी कभीकभी राखी से बातें कर लिया करता था. इसीलिए राखी के बदले रवैए के पीछे निश्चल यह मान बैठा था कि सजल ने ही उस के बारे में राखी से कोई ऐसी बात कह दी होगी, जिस से राखी उस से दूरियां बना रही है.

जिंदगी के बहुत मौकों पर इंसान गलतफहमियों का शिकार हो जाता है. गहरे दोस्त होने के नाते निश्चल को यूं तो अपने मन में पल रही गलतफहमियों को बातचीत के जरिए दूर कर लेना चाहिए था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह दोस्ती में ऐसी बातें कर के खुद को छोटा साबित नहीं करना चाहता था. अलबत्ता वह मन ही मन सजल से नाराज रहने लगा था. इतना ही नहीं, उस ने उस के खिलाफ एक खतरनाक योजना तक बना डाली थी.

12 नवंबर की रात को सजल दुकान बंद कर के घर आया और करीब सवा 8 बजे अपने दादा बाबूराम चुघ से घूमने जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह अकसर इसी तरह जाता था. लेकिन वह आधे घंटे बाद घर वापस आ जाता था, जब उस दिन 2 घंटे बाद भी वह वापस नहीं आया तो घर वालों ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिला.

सजल के पास एक और मोबाइल फोन था. घर वालों ने उस फोन का नंबर मिलाया. उस पर घंटी तो जा रही थी, लेकिन वह फोन रिसीव नहीं कर रहा था. घर वालों ने 2-3 बार उस नंबर पर फोन किया. हर बार घंटी बजती रही, लेकिन फोन नहीं उठा. इस के बाद घर के सभी लोग सजल को ढूंढऩे निकल पड़े. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. रात में कई बार उसे फोन किया गया, लेकिन उस ने एक भी फोन का जवाब नहीं दिया. उस की चिंता में घर वाले रात भर जागते रहे.

अगली सुबह उस का दूसरा मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया. उस के इस तरह अचानक लापता होने का कारण किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सजल के करीबी दोस्त निश्चल अरोड़ा और अनुज सक्सेना भी परेशान थे. सभी लोगों को यही लग रहा था कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. जब कहीं से सजल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता राजेंद्र चुघ अपने रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंचे और थानाप्रभारी नरेश चौहान से मिल कर सजल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मामला एक प्रतिष्ठित व्यापारी के बेटे के लापता होने का था, इसलिए पुलिस भी इस मामले को ले कर चिंतित थी. उसी दिन पुलिस को सूचना मिली कि बेलका गांव के पास बेहट शाकुंभरी मार्ग पर ऋषिपाल के आम के बाग में एक युवक की लाश पड़ी है. खबर मिलते ही नरेश चौहान पुलिस टीम के साथ उस बाग में पहुंच गए. वह लाश एक 24-25 साल के लडक़े की थी.

शव खून से लथपथ था. देख कर ही लगता था कि उस के सिर पर गोली चलाई गई थी. शव के नजदीक ही 2 मोबाइल पड़े थे. एक मोबाइल की बैटरी निकली हुई थी, जबकि दूसरा स्विच्ड औफ था. उसी दिन व्यापारी राजेंद्र चुघ ने अपने बेटे सजल की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने उस का जो हुलिया बताया था, वह उस मृत युवक से मेल खा रहा था.

यह लाश कहीं सजल की तो नहीं है, जानने के लिए थानाप्रभारी ने फोन कर के राजेंद्र चुघ को बाग में ही बुला लिया. राजेंद्र चुघ अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंचे तो लाश देखते ही रो पड़े. उन की पत्नी को तो इतना सदमा पहुंचा कि वह बेहोश हो गईं. राजेंद्र चुघ ने उस लाश की पहचान अपने बेटे सजल के रूप में की. उन्होंने बताया कि दोनों मोबाइल सजल के ही हैं. शव के पास लाल रंग की एक हवाई चप्पल पड़ी थी, जो मृतक की नहीं थी. पुलिस ने सोचा कि शायद यह हत्यारे की है.

मामला हत्या का था, इसलिए सूचना पा कर एसपी चरण सिंह यादव, एसपी (देहात) जगदीश शर्मा भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया. शव के आसपास किसी वाहन के टायरों के निशान भी थे.

सजल की हत्या से कस्बे में सनसनी फैल गई थी. हत्या के विरोध में कस्बे के बाजार बंद हो गए. सैकड़ों व्यापारी घटनास्थल पर जमा हो गए. सभी व्यापारी हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. पुलिस ने व्यापारियों को समझाबुझा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया. एसएसपी राजेंद्र प्रसाद यादव ने नरेश चौहान को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. इस के अलावा उन्होंने क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार इंसपेक्टर संजय पांडेय को भी इस केस की जांच में लगा दिया.

पुलिस टीम हत्या की वजह तलाशने में जुट गई. पुलिस ने मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. एक बात साफ थी कि हत्यारे सजल के करीबी थे. क्योंकि इतनी दूर उन के साथ वह अपनी मरजी से ही गया था. जवान बेटे की मौत से चुघ परिवार में कोहराम मचा था. पुलिस अच्छी तरह जानती थी कि अगर केस का खुलासा नहीं हुआ तो बड़ा बखेड़ा खड़ा होगा, इसलिए पुलिस हत्यारों की तलाश में लग गई.

अगले दिन पुलिस को कुछ लोगों से पता चला कि 12 नवंबर की रात को उन्होंने सजल के साथ निश्चल और अनुज को जाते देखा था. इस खबर की पुष्टि के लिए पुलिस ने सजल के मोबाइल की लोकेशन के साथ निश्चल और अनुज के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई.

तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन साथसाथ पाई गई. शक पुख्ता होने पर नरेश चौहान ने निश्चल और अनुज को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सजल की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इंकार कर दिया. लेकिन जब मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर उन से पूछताछ की तो वे ज्यादा देर तक पुलिस को गुमराह नहीं कर सके. उन्हें सच बोलने पर मजबूर होना पड़ा.

इस के बाद उन्होंने सजल की हत्या का चौंकाने वाला राज उगला. पता चला कि महज गलतफहमी में एक दोस्त दूसरे की जान का दुश्मन बन गया था.

दरअसल, निश्चल अपनी प्रेमिका राखी के व्यवहार में आए बदलाव की वजह नहीं समझ पाया था. इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा था. एक दिन उस ने राखी से जिद कर के पूछने की कोशिश करते हुए कहा, “राखी, तुम इतनी बदल क्यों गई हो?”

“निश्चल, ऐसा तुम्हें लगता है तो बताओ भला मैं क्या कर सकती हूं.” राखी ने टालने वाले अंदाज में कहा.

“नहीं, कोई तो वजह है. वह वजह क्या है, आज तुम्हें बतानी ही होगी.” निश्चल ने दबाव डालते हुए पूछा.

“कोई वजह नहीं है निश्चल. मैं तुम से और ज्यादा बात करना नहीं चाहती. इसलिए आगे से तुम इस बात का ध्यान रखना.” राखी ने दो टूक जवाब दिया.

राखी की यही बेरुखी उस पर बिजली बन कर गिरी थी. रहरह कर उस के दिमाग में यह बात आती रहती थी कि इस के पीछे सजल ही जिम्मेदार है. वही राखी को उस के खिलाफ भडक़ाने का काम कर रहा है. बस, वह मन ही मन सजल से रंजिश रखने लगा. उसे यह गलतफहमी हो गई कि सजल राखी को भडक़ा कर उस की खुशियों को छीनने का काम कर रहा है.

सजल को सबक सिखाने के लिए निश्चल ने एक खतरनाक योजना बना डाली. अपने दोस्त अनुज सक्सेना को भी उस ने अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. यह योजना थी सजल की हत्या की. उस की हत्या के लिए उस ने एक तमंचे और कुल्हाड़ी का भी इंतजाम कर लिया.

वह सजल से लगातार मिलता रहा और अपने इरादों को बिलकुल भी जाहिर नहीं होने दिया. वैसे भी जब कोई अजीज दोस्त हो तो उस के इरादों को भांपना मुश्किल हो जाता है. सजल भी दोस्ती के विश्वास में निश्चल के इरादों से पूरी तरह अंजान था.

12 नवंबर की रात सजल घर से घूमने के लिए निकला तो उसे रास्ते में निश्चल व अनुज मिल गए. निश्चल चूंकि जानता था कि सजल रात में घूमने के लिए घर से रोजाना निकलता है, इसलिए पहले से ही वह अपनी आल्टो कार संख्या यूपी 16 एक्स-1015 लिए रास्ते में खड़ा था.

निश्चल और अनुज के इस तरह मिलने पर सजल को हैरानी नहीं हुई. कुछ देर में घूम कर आने की बात कह कर उन्होंने सजल को अपनी कार में बैठा लिया. सजल को अपने दोस्तों पर जरा भी शक नहीं हुआ. वे कार से ऋषिपाल के आम के बाग में पहुंच गए. उस वक्त वहां बिलकुल सुनसान था.

अनुज ने सजल को बातों में लगा लिया तो उसे बीच निश्चल ने तमंचा निकाल कर उस के सिर को टारगेट कर के गोली चला दी. गोली लगते ही सजल नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई. अनुज ने भी तमंचा ले कर एक गोली और उस पर चलाई. सजल की हत्या करने के बाद उन्होंने सजल के दोनों मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिए.

फेंकते समय ही एक मोबाइल की बैटरी निकल गई थी. सजल की हत्या कर के वे जल्दी से वहां से भागे, जिस से निश्चल की एक चप्पल वहीं छूट गई थी. घटनास्थल से कुछ दूर जा कर उन्होंने एक खेत में तमंचा व कुल्हाड़ी छिपा दी और अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह तक सजल के लापता होने की खबर फैल चुकी थी. चूंकि वे उस के गहरे दोस्त थे, इसलिए सजल को ढुंढवाने का उन्होंने भी बराबर नाटक किया. सजल का शव मिलने पर वे भी घटनास्थल पर पहुंचे. दोनों ने सोचा था कि उन्हें सजल के साथ जाते हुए किसी ने नहीं देखा. लेकिन गांव के ही किसी व्यक्ति ने उन्हें सजल के साथ जाते देख लिया था. उसी के आधार पर वे पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

एसपी देहात जगदीश शर्मा और सीओ चरण सिंह भी थाने आ गए थे. पुलिस ने तमाम लोगों की मौजूदगी में हत्याकांड का खुलासा किया. जब कस्बे के लोगों को पता चला कि सजल की हत्या किसी और ने नहीं, उस के खास दोस्तों ने की थी तो सब हैरान रह गए.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खेत से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा, खाली कारतूस और एक कुल्हाड़ी बरामद कर ली थी. हत्या में प्रयुक्त की गई कार भी पुलिस ने बरामद कर ली थी.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हो सकी थी.

निश्चल ने गलतफहमी को दिल से नहीं लगाया होता और सजल दोस्त के इरादों को भांप गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. न सजल दुनिया से जाता और न उस के दोस्त जेल जाते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राखी बदला हुआ नाम है.

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल

संतान के लिए मासूम की बलि

उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय अलीगढ़ से लगभग 30 किलो. मीटर दूर इगलास कोतवाली का एक कस्बा है बेसवां. इसी कस्बे के वार्ड नंबर 3 में श्रीकिशन अपनी पत्नी राखी के साथ रहता था. शादी के कई सालों बाद भी उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. उन्होंने तमाम डाक्टरों और हकीमों से इलाज कराया, लेकिन उन्हें संतान सुख नहीं मिल पाया. औलाद न होने से दोनों बहुत चिंतित रहते थे. राखी को तो और ज्यादा चिंता थी.

गांवदेहात में आज भी बांझ औरत को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता. और तो और किसी शुभकार्य में बांझ औरत को बुलाया तक नहीं जाता. इस बात को राखी महसूस भी कर रही थी. इस से वह खुद को अपमानित तो समझती ही थी, मन ही मन घुटती भी रहती थी. उस की एक ही मंशा थी कि किसी भी तरह वह मां बन जाए. उस की गोद भर जाए, जिस से उस के ऊपर से बांझ का कलंक मिट जाए.

इस के लिए वह फकीरों और तांत्रिकों के पास भी चक्कर लगाती रहती थी. पर नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था. श्रीकिशन का एक बड़ा भाई था धर्म सिंह, जो उस के साथ ही रहता था और अविवाहित था. वह कस्बे के ही श्मशान में जा कर तांत्रिक क्रियाएं करता रहता था.

एक दिन राखी गुमसुम बैठी थी. श्रीकिशन ने जब उस से वजह पूछी तो उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. पति ने उसे ढांढस बंधाया तो वह बोली, “पता नहीं हमारी मुराद कब पूरी होगी, कब तक हम यह दंश सहते रहेंगे?”

“राखी, हम ने अपना इलाज भी कराया और इधरउधर भी दिखाया. इस के बावजूद भी तुम मां नहीं बन सकीं तो इस में तुम्हारा क्या दोष है? हम लोग कोशिश तो कर ही रहे हैं.” श्रीकिशन ने समझाया.

“देखोजी, हम भले ही कोशिश कर चुके हैं. लेकिन एक बार क्यों न तुम्हारे भाई (जेठ) से कोई उपाय करने को कहें. श्मशान में न जाने कितने लोग अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आते हैं, लेकिन हम ने उन्हें कुछ समझा ही नहीं. शायद उन्हीं की तंत्र विद्या से हमारा कुछ भला हो जाए.” राखी ने कहा.

“ठीक है, अब तुम सो जाओ, सुबह मैं उन से बात करूंगा.” श्रीकिशन ने कहा.

सुबह उठ कर श्रीकिशन ने बड़े भाई धर्म सिंह से राखी के मन की पीड़ा बताई. चाय बना रही राखी भी उस की बातें सुन रही थी. श्रीकिशन की बात पर धर्म सिंह ने कहा, “आज तू ने कहा है तो मैं जरूर कुछ करूंगा. ऐसा कर तू आज काम पर मत जा. पतिपत्नी गद्दी पर बैठो, तभी मैं कुछ उपाय बता सकूंगा.”

दोपहर के बाद धर्म सिंह मरघट से घर लौटा. जिस कमरे में वह रहता था, वहां भी उस ने तंत्र क्रियाएं करने के लिए गद्दी बना रखी थी. श्रीकिशन और राखी को सामने बैठा कर वह तंत्र क्रियाएं करने लगा. तंत्र क्रियाएं करतेकरते धर्म सिंह जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बात करने लगा. इसी बातचीत में उस ने ऐसी बात कही, जिसे सुन कर श्रीकिशन और राखी के रोंगटे खड़े हो गए. राखी तो कांपने लगी. धर्म सिंह किसी की बलि देने की बात कर रहा था.

बातें खत्म हुईं तो श्रीकिशन ने अपने भाई से पूछा, “भैया बलि का काम तो बड़ा मुश्किल है, फिर आप ने बलि देने का वादा क्यों कर लिया?”

“तू चुप रह. तू नादान है, जिस बच्चे की बलि देनी है, ऊपर वाले ने उस बच्चे पर बलि का नाम लिख कर इस दुनिया में भेजा है.” धर्म सिंह ने उसे समझाते हुए कहा.

“बलि देने वाला वह बच्चा कौन है, यह कैसे पता चले?” श्रीकिशन ने शंका व्यक्त की.

“इस की चिंता तू मत कर. जब तेरी पत्नी पूजा के समय बैठी होगी, वह खुदबखुद हमें बताएगी.” धर्म सिंह ने धूर्त हंसी हंसते हुए कहा.

“किस की बलि देनी है, भला यह मुझे कौन बताएगा?” राखी ने पूछा.

“तुझे वही बताएगा, जो अभी मुझ से बातें कर रहा था. वह तुझे नाम भी बताएगा और पता भी.” धर्म सिंह ने कहा.

“फिर यहां तक उस बच्चे को ले कर कौन आएगा?” श्रीकिशन ने पूछा.

“वह खुद इस की गोद में आ जाएगा.” कह कर धर्म सिंह ने दोनों को वहां से हटा दिया.

2-3 दिन बाद राखी ने अपने जेठ से पूछा, “भाई साहब, पूजा वगैरह करने में अभी कितने दिन लगेंगे?”

“राखी, एक बात है, जो मैं तुम से नहीं कह पा रहा हूं. आखिर किस मुंह से कहूं?” धर्म सिंह ने कहा.

“कोई खास बात है, जो तुम इतना हिचक रहे हो?” राखी ने पूछा.

“हां, खास ही है.” उस ने कहा.

“तो बता दो, मैं भला कोई बाहरी थोड़े ही हूं, जो बुरा मान जाऊंगी. बता दो, क्या बात है?” राखी ने पूछा.

“दरअसल, बात यह है कि बलि से पूर्व कुछ तंत्र क्रियाएं करनी पड़ेंगी. उस वक्त तुझे गद्दी पर निर्वस्त्र हो कर बैठना होगा.” धर्म सिंह ने कहा.

“तो क्या हुआ. अपनी गोद भरने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. देर मत करो, जल्द पूजा की तैयारी करो.”

राखी अपने जेठ का स्वभाव पहले से ही जानती थी. वह निहायत ही शरीफ इंसान था. शुरू से ही औरत जाति से परहेज रखता था.

श्रीकिशन की गैरहाजिरी में एक दिन धर्म सिंह ने अनुष्ठान शुरू किया. उस ने तंत्र क्रियाएं शुरू कीं. सामने बैठी राखी ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए. निर्वस्त्र बैठी राखी धर्म सिंह के कहे अनुसार हवन में आहुतियां देने लगी. उसी बीच धर्म सिंह ने जैसे ही शराब की शीशी खोल कर हवन कुंड में जल रही अग्नि पर डाली, राखी बैठेबैठे ही झूमने लगी.

तंत्र क्रिया करने वाले धर्म सिंह ने पूछा, “अब बता क्या नजर आ रहा है?”

इसी के साथ शराब की कुछ बूदें आग में डालीं. तभी राखी ने कहा, “यह तो मोहिनी है, विनोद की बेटी.”

“कहां है?” धर्म सिंह ने पूछा.

“यह आ गई मेरी गोद में.” राखी के दोनों हाथ ऐसे उठे, जैसे उस की गोद में कोई बच्चा आ गया हो. उस ने आगे कहा, “लो, दे दो इस की बलि.”

“ठीक है. तेरी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी.” कह कर धर्म सिंह ने पानी के छींटे राखी पर फेंके. छींटे पड़ते ही राखी होश में ऐसे आ गई, जैसे नींद से जागी हो. वह उठी और सारे कपड़े समेट कर तेजी से दूसरे कमरे में भाग गई.

श्रीकिशन के घर के पास ही विनोद रहता था. उस के परिवार में 3 बेटे और एक बेटी मोहिनी थी.

23 अक्तूबर को 2 साल की मोहिनी घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद उस की तो सीमा को उस का खयाल आया तो वह उसे लेने बाहर आई. लेकिन मोहिनी कहीं दिखाई नहीं दी. उस ने बच्चों से मोहिनी के बारे में पूछा. बच्चों ने कहा कि वह अभी तो यहीं खेल रही थी. सीमा ने उसे आसपास देखा. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दी.

ऐसा भी नहीं था कि 2 साल की बच्ची खेलतेखेलते कहीं दूर चली जाए. फिर भी उस ने तमाम लोगों से बेटी के बारे में पूछा, पर कहीं से उस के बारे में पता नहीं चला. इस के बाद घर के सभी लोग मोहिनी को ढूंढने लगे. अंधेरा हो गया. गांव वाले भी मोहिनी को ढूंढने में मदद कर रहे थे. पर मोहिनी नहीं मिली.

पता नहीं क्यों सीमा एक ही रट लगाए रही कि मेरी बेटी कहीं नहीं गई, वह श्रीकिशन के घर में ही होगी. सीमा की इस रट पर दूसरे दिन सुबह मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह से कहा कि जब सीमा कह रही है तो वह उस अपने घर में ढूंढऩे दे.

श्रीकिशन और धर्म सिंह ने साफ कहा कि उस के घर में कोई भी नहीं घुस सकता. गांव वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि इन दोनों भाइयों को अपने घर की तलाशी देने में क्यों ऐतराज है? घर की चौखट पर खड़ी राखी की घबराहट देख कर कुछ लोगों को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उसी दौरान किसी ने इगलास पुलिस को इस की सूचना दे दी थी.

उस दिन मोहर्रम था. थाना पुलिस मोहर्रम का जुलूस निकलवाने की तैयारी कर थी. इंसपेक्टर संजीव चौहान को बच्ची के गायब होने की जानकारी मिली तो वह पुलिस बल के साथ बेसवां जा पहुंचे. धर्म सिंह के घर के बाहर खड़े मोहल्ले के लोगों ने विनोद की बच्ची के कल से गायब होने की बात उन्हें बताने के साथ उन से यह भी कहा कि श्रीकिशन घर की तलाशी नहीं लेने दे रहा है.

संजीव चौहान कुछ लोगों के साथ श्रीकिशन के घर में घुस गए. तलाशी ली गई तो जीने के नीचे कबाड़ में मासूम मोहिनी की लाश मिल गई. संजीव चौहान लाश उठा कर बाहर ले आए.

मोहिनी के शरीर से निकला खून सूख चुका था. उस की जीभ पर चीरा लगा हुआ था. इस के अलावा उस के पूरे शरीर पर राख मली हुई थी. इस सब से साफ लग रहा था कि उस की बलि दी गई थी. लोगों का शक सही निकला. इस के बाद नाराज मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी की पिटाई शुरू कर दी.

पुलिस ने किसी तरह तीनों को भीड़ के चंगुल से छुड़ा कर अपने कब्जे में लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के मोहिनी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के पूछताछ की तो पता चला कि बलि देने के लिए राखी ने ही  मोहिनी का घर के बाहर से अपहरण किया था. अपहरण कर के उस ने उसे जेठ धर्म सिंह को सौंप दिया था.

उस के बाद तंत्र क्रियाएं करते समय धर्म सिंह ने ही उस मासूम बच्ची की गरदन व जीभ काट कर खून तंत्र क्रिया में चढ़ाया था. बच्ची के मरने के बाद उन्होंने लाश जीने के नीचे रखे कबाड़ में छिपा दी थी. जब मोहिनी को उस के घर वाले और कस्बे वाले ढूंढऩे लगे तो धर्म सिंह व श्रीकिशन घबरा गए. वह उस की लाश को कहीं ठिकाने लगाने का मौका ढूंढ़ रहे थे. अगली रात में शायद वह ऐसा करते, लेकिन उस के पहले ही पुलिस उन के यहां पहुंच गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस घटना से यही लगता है कि इतनी तरक्की के बावजूद गांवों में आज भी शिक्षा का इतना प्रचारप्रसार नहीं हुआ है, जिस से लोगों की रूढि़वादी सोच में बदलाव आ सके. राखी और उस के घर वालों ने संतान की चाह में जो अपराध किया है, उस से वे तीनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. अगर वे किसी अच्छे डाक्टर से सलाह ले कर अपना इलाज कराते तो शायद उन्हें संतान सुख अवश्य मिल जाता और उन के जेल जाने की नौबत भी न आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित