
जयकुमार 2 दिन घर नहीं आया तो उस की मां गंजू के घर गई. उस ने बताया कि जयकुमार 2 दिनों से घर नहीं आया है और उस का फोन भी नहीं लग रहा है तो गंजू को भी चिंता हुई. उस ने रीना से प्रीति के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो परीक्षा देने अलीगढ़ गई है. जब उसे पता चला कि देवेंद्र भी घर पर नहीं है तो उस ने देवेंद्र को फोन कर के कहा कि वह जयकुमार को वापस भेज दे.
गंजू के इस फोन से देवेंद्र शर्मा घबरा गया. वह क्या जवाब दे, एकदम से उस की समझ में नहीं आया. लेकिन अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘प्रीति भी घर से गायब है. लगता है, वह उसे कहीं भगा ले गया है.’’
यह सुन कर संध्या परेशान हो उठी. उसे विश्वास नहीं हुआ कि उस का बेटा ऐसा भी कर सकता है. दूसरी ओर देवेंद्र परेशान था. वह गुनाह का ऐसा जाल बुनना चाहता था, जिस में जयकुमार का परिवार इस तरह फंस जाए कि कोई काररवाई करने के बजाए वह बचने के बारे में सोचे. उस ने पड़ोस में रहने वाले चौकीदार राकेश को बताया कि जयकुमार नाम का एक लड़का उस की बेटी को भगा ले गया है.
इस के बाद वह वकील मुन्नालाल के पास पहुंचा और उसे सारी बात बता दी. वकील मुन्नालाल देवेंद्र का परिचित था. उस ने उसे सलाह दी कि वह जयकुमार के खिलाफ बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज करा दे.
इस के बाद देवेंद्र मुन्नालाल वकील और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर थाना गांधीपार्क पहुंचा और जयकुमार के खिलाफ अपनी नाबालिग बेटी प्रीति को भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. यह मुकदमा 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच एसआई अभय कुमार को सौंपी गई.
अभय कुमार ने जयकुमार को नाबालिग प्रीति को भगाने का दोषी मानते हुए जांच शुरू की तो देवेंद्र को लगा कि उस ने जो किया है, पुलिस उस बारे में जान नहीं पाएगी. लेकिन चिंता की बात यह भी थी कि प्रीति का वह क्या करे. अब उसे घर में रखना ठीक नहीं था. दूसरी ओर उसे पता भी चल गया था कि जयकुमार की हत्या हो चुकी है.
पूछताछ में प्रीति सच्चाई उगल सकती थी, इसलिए उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने किसी को भी यह बात बताई तो वह उस की भी हत्या कर के उस की लाश को जयकुमार की लाश की तरह रेल की पटरी पर डाल आएगा. प्रीति डर गई. उस ने पिता से वादा किया कि वह मर सकती है, लेकिन यह बात किसी को बता नहीं सकती.
अब प्रीति को छिपा कर रखना था. इस के लिए देवेंद्र ने प्रीति को थाना सादाबाद, जिला हाथरस के गांव करसोरा स्थित अपने साले प्रमोद कुमार की ससुराल भिजवा दिया. चूंकि प्रमोद उस के साथ जयकुमार की हत्या में शामिल था, इसलिए देवेंद्र जो चाहता था, उसे वैसा ही करना पड़ता था. प्रीति मामा की ससुराल पहुंच गई, जबकि पुलिस जयकुमार और प्रीति की तलाश में दरदर भटकती रही.
प्रीति से छुटकारा पाने के लिए देवेंद्र उस के लिए लड़का तलाशने लगा. थोड़ी कोशिश कर के थाना वृंदावन के मोहल्ला चंदननगर के रहने वाले पूरन शर्मा का बेटा राहुल उसे पसंद आ गया तो करसोरा से ही उस ने प्रीति की शादी राहुल से कर दी. प्रीति की यह शादी 27 फरवरी, 2014 को हुई.
इस तरह प्रीति को ससुराल भेज कर देवेंद्र निश्चिंत हो गया. मजे की बात यह थी कि वह शांत नहीं बैठा था. वह महीने, 15 दिनों में थाने पहुंच जाता और पुलिस से बेटी की तलाश के लिए गुहार लगाता. यही नहीं, वह फरीदाबाद में रहने वाले जयकुमार के घर वालों को भी धमकाता कि वे जयकुमार के बारे में पता कर के उस की बेटी को बरामद कराएं, वरना वह उन्हें शांति से जीने नहीं देगा.
भले ही जयकुमार का कत्ल हो गया था और प्रीति की शादी हो गई थी. फिर भी पुलिस का डर तो देवेंद्र को सताता ही रहता था. कहीं जयकुमार की हत्या का रहस्य खुल न जाए, इस बात से परेशान देवेंद्र एक बार फिर वकील मुन्नालाल से मिला. उस ने कहा कि अगर पुलिस को प्रीति के बारे में पता चल गया तो उस की परेशानी बढ़ सकती है. पुलिस उस पर शिकंजा कस सकती थी. अब तक प्रीति गर्भवती हो चुकी थी.
मुन्नालाल ने पूरी कहानी पर एक बार फिर नए सिरे से विचार किया. इस के बाद उस ने सलाह दी कि वह प्रीति को पुलिस के सामने पेश कर के उस से कहलवाए कि वह जयकुमार के बच्चे की मां बनने वाली है. वह उसे धोखा दे कर मथुरा रेलवे स्टेशन पर छोड़ कर कहीं भाग गया है. उस के बाद वह पिता के पास आ गई है.
प्रीति के अपहरण के मामले की जांच अब तक कई थानाप्रभारी कर चुके थे. लेकिन कोई मामले की तह तक नहीं पहुंच सका था. शायद उन्होंने कोशिश ही नहीं की थी. जबकि पुलिस ने कई बार फरीदाबाद जा कर जयकुमार की मां एवं रिश्तेदारों से पूछताछ की थी.
पूछताछ में जयकुमार की विधवा मां ने हर बार यही कहा था कि जयकुमार और प्रीति एकदूसरे को प्यार करते थे. दोनों को प्रीति के पिता देवेंद्र ने ही गायब किया है. मुकदमा दर्ज कराने के बाद देवेंद्र फरीदाबाद छोड़ कर बल्लभगढ़ में रहने लगा था. उस ने प्रीति को फोन कर के कहा कि वह सासससुर से लड़ाई कर के उस के यहां आ जाए. प्रीति पिता के हाथ की कठपुतली थी, इसलिए पिता ने जैसा कहा, उस ने वैसा ही किया.
इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहती थी कि उस के प्रेमसंबंधों की जानकारी उस की ससुराल वालों को हो. क्योंकि जानकारी होने के बाद वे उसे घर से निकाल सकते थे. पिता के कहने पर प्रीति ने सास से लड़ाई कर ली तो उसी दिन देवेंद्र उसे विदा कराने उस की ससुराल पहुंच गया.
वकील की सलाह के अनुसार देवेंद्र ने 1 सितंबर, 2015 को प्रीति को एसएसपी के सामने पेश कर दिया. प्रीति ने पुलिस के सामने वही सब कहा, जैसा उसे वकील ने सिखाया था. एसएसपी के आदेश पर प्रीति का मैडिकल कराया गया. जिस समय प्रीति को एसएसपी के सामने पेश किया गया था, उस समय थाना गांधीपार्क के थानाप्रभारी अमित कुमार थे. मजे की बात यह थी कि उन्होंने प्रीति से यह भी जानने की कोशिश नहीं की थी कि जयकुमार के साथ भागने के बाद वह उस के साथ कहांकहां रही.
पुलिस की देखरेख में ही प्रीति ने बच्चे को जन्म दिया. पुलिस ने अदालत में भी प्रीति के बयान करा दिए. वहां भी प्रीति ने वही कहानी सुना दी. अदालत ने प्रीति को उस के पिता को सौंप दिया. अब तक वैसा ही हो रहा था, जैसा देवेंद्र चाह रहा था. लेकिन इसी के बाद जब अलीगढ़ के एसएसपी बन कर राजेश पांडेय आए तो सब उलटा हो गया और वह पकड़ा गया.
मृतक जयकुमार के घर वालों को भी उस की हत्या की सूचना दे दी गई थी. पुलिस ने उस की मां को बुला कर जब जयकुमार के रखे सामान को दिखाया तो उस ने बेटे के जूते और कपड़ों की पहचान कर के फोटो में भी उस की शिनाख्त कर दी.
इस के बाद पुलिस ने प्रीति, देवेंद्र और प्रमोद को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एसएसपी ने इस मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है, साथ ही थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को शाबाशी दी.
प्रीति की ससुराल वालों को जब सच्चाई का पता चला तो वे हैरान रह गए. प्रीति ने प्रेम क्या किया, अपनी तो जिंदगी बरबाद की ही, प्रेमी को भी मरवा दिया जो विधवा मां का एकलौता सहारा था.
मां ने भले ही समझाया, लेकिन जयकुमार के प्यार में डूबी प्रीति को मां की बात समझ में नहीं आई. परेशान हो कर रीना ने सारी बात पति को बता दी. बेटी की आशिकी के बारे में सुन कर देवेंद्र तिलमिला उठा. वह मकान मालिक गंजू से मिला और उन से कहा कि वह जयकुमार को घर आने से मना करें, क्योंकि वह उस की बेटी प्रीति को बरगला रहा है.
‘‘आप का कहना ठीक है, लेकिन अपने किसी रिश्तेदार को मैं घर आने से कैसे रोक सकता हूं. आप अपनी बेटी को थोड़ा संभाल कर रखिए.’’ मकान मालिक गंजू ने कहा.
गंजू की इस बात से देवेंद्र ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. अब वह मकान मालिक से तो कुछ नहीं कह सकता था, लेकिन जयकुमार उसे जब भी मिलता, उसे धमकाता कि वह जो कर रहा है, ठीक नहीं है. वह उस की बेटी का पीछा छोड़ दे वरना उसे पछताना पड़ सकता है. लेकिन जयकुमार भी प्रीति के प्रेम में इस तरह डूबा था कि देवेंद्र की चेतावनी का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. जबकि देवेंद्र मन ही मन बौखलाया हुआ था.
प्रीति की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तारीख आ गई तो वह परीक्षा देने अपने मामा प्रमोद कुमार के यहां अलीगढ़ चली गई. उस के मामा अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क की बाबा कालोनी में रहते थे. घर वाले तो यही जानते थे कि प्रीति बस से अलीगढ़ गई है, लेकिन घर से निकलने से पहले उस ने जयकुमार को फोन कर दिया था, इसलिए वह मोटरसाइकिल ले कर उसे रास्ते में मिल गया था. उस के बाद प्रीति उस की मोटरसाइकिल से अलीगढ़ गई थी.
मामा के घर रह कर प्रीति ने परीक्षा दे दी. उसी बीच प्रीति के मामामामी अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में चले गए तो घर खाली देख कर उस ने जयकुमार को फोन कर के अलीगढ़ बुला लिया. प्रेमिका के बुलाने पर घर में बिना किसी को कुछ बताए जयकुमार उस से मिलने अलीगढ़ पहुंच गया. प्रेमी को देख कर प्रीति का दिल बल्लियों उछल पड़ा. वह प्रेमी के आगोश में समा गई.
जयकुमार और प्रीति को उस दिन पहली बार एकांत और आजादी मिली थी, इसलिए उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दीं. ऐसे में जयकुमार ने प्रीति से वादा किया कि कुछ भी हो, हर हालत में वह उसे अपना कर रहेगा. प्रीति को भी प्रेमी पर पूरा विश्वास था. लेकिन उस दिन दोनों ने एक गलती कर दी. जयकुमार को प्रेमिका से मिल कर वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वह तो उस दिन और पिला दे साकी वाली स्थिति में था. प्रीति भी भूल गई थी कि अगले दिन मामामामी लौट आएंगे.
दोनों एकदूसरे में इस तरह खो गए कि सब कुछ भूल गए. याद तब आया, जब दरवाजे पर दस्तक हुई. प्रीति ने दरवाजा खोला तो मामामामी को देख कर सन्न रह गई. जयकुमार घर में ही था. प्रमोद ने अपने घर में जयकुमार को देखा तो पूछा, ‘‘यह कौन है?’’
‘‘यह जयकुमार है. मेरे मकान मालिक का साला.’’ प्रीति ने बताया.
प्रमोद को जब पता चला कि जयकुमार एक दिन पहले उस के घर आया था और प्रीति के साथ रात में रुका था तो उसे इस बात की चिंता हुई कि यह लड़का यहां क्यों आया था? उसे दाल में कुछ काला लगा तो उस ने जयकुमार को एक कमरे में बंद कर दिया और अपने बहनोई देवेंद्र को फोन कर के सारी बात बता दी. देवेंद्र उस समय उत्तराखंड के रुद्रपुर में था. उस ने कहा, ‘‘जब तक मैं आ न जाऊं, तब तक उसे उसी तरह कमरे में बंद रखना.’’
प्रीति डर गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रेमी को छुड़ाने के लिए वह क्या करे. उस ने मामामामी से बहुत विनती की कि वे जयकुमार को छोड़ दें, लेकिन प्रमोद कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था, इसलिए उस ने जयकुमार को नहीं छोड़ा.
शाम को देवेंद्र अलीगढ़ पहुंचा तो उस ने पहले ही मन ही मन तय कर लिया था कि बेटी के इस प्रेमी के साथ उसे क्या करना है? उस ने रास्ते में ही शराब की बोतल खरीद ली थी और साले के यहां पहुंचने से पहले ही उस ने शराब पी कर मूड बना लिया था.
नशे में धुत्त वह साले के यहां पहुंचा तो जयकुमार को कमरे से निकाल कर बातचीत शुरू हुई. इस बातचीत में जयकुमार ने साफसाफ कह दिया कि वह प्रीति से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. यह सुन कर देवेंद्र का खून खौल उठा और वह जयकुमार की पिटाई करने लगा.
पिटाई करते हुए ही उस ने जयकुमार से कहा, ‘‘इस बार तुम ने जो किया, माफ किए देता हूं. अब दोबारा ऐसी गलती मत करना. चलो, हम तुम्हें दिल्ली जाने वाली बस में बिठा देते हैं. फरीदाबाद आऊंगा तो तुम्हारी मां से बात करूंगा.’’
प्यार में बड़ी उम्मीदें होती हैं, जयकुमार को भी लगा कि शायद प्रेमिका का बाप मां से बात कर के शादी करा देगा. लेकिन देवेंद्र के मन में तो कुछ और था. अब तक अंधेरा गहरा चुका था. देवेंद्र और प्रमोद जयकुमार को ले कर पैदल ही चलते हुए नगला मानसिंह होते हुए रेलवे लाइन की ओर नई बस्ती के अवतारनगर में रहने वाले अपने एक परिचित विनोद के घर पहुंचे.
विनोद ने चाय बनवाने के लिए कहा तो देवेंद्र ने सिर्फ पानी लाने को कहा. विनोद ने जयकुमार के बारे में पूछा तो देवेंद्र ने बताया कि यह उस के दोस्त का बेटा है. विनोद पानी ले आया तो प्रमोद और देवेंद्र ने शराब पी. नशा चढ़ा तो दोनों जयकुमार को ले कर रेलवे लाइन की ओर चल पड़े. अब तक काफी अंधेरा हो चुका था. जयकुमार कुछ समझ पाता, उस के पहले ही सुनसान पा कर दोनों ने उसे एक गड्ढे में गिरा दिया.
वह संभल भी नहीं पाया, उस के पहले ही दोनों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद दोनों वहीं बैठ कर ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्हें ट्रेन आती दिखाई दी तो जयकुमार की लाश को उठा कर दोनों ने पटरी पर रख दिया. ट्रेन लाश के ऊपर से गुजर गई तो वह कई टुकड़ों में बंट गई.
देवेंद्र और प्रमोद ने राहत की सांस ली, क्योंकि अब कांटा निकल गया था. लेकिन अब क्या करना है, अभी देवेंद्र को इस बारे में सोचना था. उस ने जो किया था, उसे भले ही किसी ने नहीं देखा था, लेकिन उसे होशियार तो रहना ही था. सुबह प्रीति ने उस से पूछा, ‘‘पापा, जयकुमार चला गया क्या?’’
देवेंद्र ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपनी पढ़ाई से मतलब रख. कौन कहां गया, इस से तुझे क्या मतलब?’’
प्रीति को शक हुआ. अगले दिन उस ने जयकुमार को फोन किया. लेकिन उस का तो फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. अब प्रीति की समझ में आ गया कि जयकुमार के साथ क्या हुआ है. वह बुरी तरह डर गई.
क्रमशः
गांवों में आज भी ज्यादातर घरों में दिन ढलते ही रात का खाना बन जाता है. शाम के यही कोई साढ़े 6 बजे खाना खा कर सुरेंद्र सोने के लिए जानवरों के बाड़े में चला गया था. उस के जाने के बाद सुरेंद्र की पत्नी ममता, बेटा कुलदीप, दीपक, रतन और बहू प्रभा खाना खाने की तैयारी करने लगी थी. सभी खाने के लिए बैठने जा रहे थे कि तभी प्रभा के पिता फूल सिंह पाल, चाचा रामप्रसाद, भाई लाल सिंह उस के मौसेरे भाई टुंडा के साथ उन के यहां आ पहुंचे.
किसी के हाथ में कुल्हाड़ी थी तो कोई चापड़ लिए था तो कोई डंडा. उन्हें इस तरह आया देख कर घर के सभी लोग समझ गए कि इन के इरादे नेक नहीं हैं. वे कुछ कर पाते, उस से पहले ही उन्होंने प्रभा को पकड़ा और कुल्हाड़ी से उस की हत्या कर दी. प्रभा की सास ममता बहू को बचाने के लिए दौड़ी तो हमलावरों ने उसे भी कुल्हाड़ी से काट डाला.
ममता प्रभा की 9 महीने की बेटी को लिए थी, हत्यारों ने उसे छीन कर एक ओर फेंक दिया था. 2 लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद हमलावरों ने कुलदीप को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया. कुलदीप जान की भीख मांगने लगा तो फूल सिंह ने कहा, ‘‘कुलदीप, तुझे हम जान से नहीं मारेंगे, तुझे तो अपाहिज बना कर छोड़ देंगे, ताकि तू उम्र भर चलने को तरसे और अपनी बरबादी पर रोता रहे.’’
इतना कह कर फूल सिंह ने कुलदीप के दोनों पैर कुल्हाड़ी से काट दिए. सुरेंद्र की बुआ श्यामा और छोटेछोटे बच्चे चीखतेचिल्लाते रहे और गांव वालों से मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन गांव का कोई भी उन की मदद को नहीं आया. लोग अपनीअपनी छतों पर खड़े हो कर इस वीभत्स नजारे को देखते रहे.
कुछ ही देर में इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे कर जिस तरह हमलावर आए थे, उसी तरह फरार हो गए. सुरेंद्र का घर खून से डूब गया था. 2 महिलाओं की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं, जबकि कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. हमलावरों के जाने के बाद गांव वाले जुटने शुरू हुए. खबर सुन कर सुरेंद्र और उस के मातापिता, भाई, चाचा आदि आ गए. लोमहर्षक नजारा देख कर वे सन्न रह गए.
सुरेंद्र ने पुलिस चौकी साढ़ को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव घटना की सूचना कोतवाली घाटमपुर को दे कर हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, भीम प्रकाश, प्रवेश मिश्रा, संजय कुमार के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.
घटना की सूचना पा कर कोतवाली घाटमपुर के प्रभारी गोपाल यादव और सीओ जे.पी. सिंह गांव ढुकुआपुर के लिए चल पड़े थे. ढुकुआपुर से पुलिस चौकी 8 किलोमीटर दूर थी इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में पौन घंटा लग गया. 3 लोगों को खून में लथपथ देख कर पुलिस हैरान रह गई. देख कर ही लग रहा था कि कि यह सब दुश्मनी की वजह से हुआ है.
2 महिलाओं की मौत हो चुकी थी. कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. पुलिस ने कुलदीप को स्वरूपनगर के एसएनआर अस्पताल भिजवाया. सूचना मिलने पर एसपी (देहात) अनिल मिश्रा भी वहां आ गए थे. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से घटना के बारे में जानना चाहा, लेकिन पुलिस के सामने किसी ने मुंह नहीं खोला. लोग अलगअलग बहाने बना कर वहां से खिसकने लगे. पुलिस समझ गई कि डर या किसी अन्य वजह से लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं.
हमलावरों ने सुरेंद्र की पत्नी ममता और बहू प्रभा की हत्या कर दी थी, जबकि बेटे कुलदीप के दोनों पैर काट दिए थे. पुलिस ने जब सुरेंद्र से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह सब कुलदीप की ससुराल वालों ने किया है. पुलिस ने सुरेंद्र पाल की ओर से फूल सिंह, उस के बेटे, भाई रामप्रसाद पाल, लाल सिंह, टुंडा उर्फ मामा और रामप्रसाद उर्फ छोटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए कानपुर भिजवा दिया था.
इस लोमहर्षक कांड के बाद गांव में दहशत फैल गई थी. गांव वाले दबी जुबान से तरहतरह की बातें कर रहे थे. एसएसपी यशस्वी यादव ने सीओ जे.पी. सिंह को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द हमलावरों को गिरफ्तार करें. सीओ ने तुरंत ही प्रभारी निरीक्षक गोपाल यादव और चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव के नेतृत्व में 2 टीमें गठित कीं.
पहली टीम में एसआई अखिलेश मिश्रा, कांस्टेबल धर्मेंद्र सिंह, प्रवेश बाबू और इरशाद अहमद को शामिल किया गया, जबकि दूसरी टीम में हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, अजय कुमार यादव और भीम प्रकाश को भी शामिल किया गया. चूंकि आरोपी अपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस टीमें उन की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारने लगीं. आखिर सुबह होतेहोते पुलिस को सफलता मिल ही गई. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह और रामप्रसाद उर्फ छोटे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो इस खूनी तांडव की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की प्रस्तावना पर लिखी हुई थी.
उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर की एक तहसील है घाटमपुर. यहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव ढुकुआपुर. इस गांव में वैसे तो सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन गड़रियों की संख्या कुछ ज्यादा है. इसी गांव में सुरेंद्र सिंह पाल भी अपने परिवार के साथ रहता था. वैसे सुरेंद्र पाल का पुश्तैनी मकान गांव के बीचोंबीच था, लेकिन भाइयों में जब बंटवारा हुआ तो वह गांव के बाहर खाली पड़ी जमीन पर मकान बना कर रहने लगा.
सुरेंद्र के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 3 बेटे, कुलदीप, दीपक और करण थे. कुलदीप पढ़ाई के साथ पिता के काम में भी हाथ बंटाता था. सुरेंद्र के पड़ोस में ही फूल सिंह पाल का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 1 बेटी प्रभा थी. प्रभा और कुलदीप एक ही स्कूल में पढ़ते थे. दोनों आसपास ही रहते थे, इसलिए स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे. दोनों साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए जवान हुए तो उन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला.
कुलदीप और प्रभा का प्यार कुछ दिनों तक तो चोरीछिपे चलता रहा, लेकिन वह इसे ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से छिपा न सके. वैसे भी प्यार कहां छिप पाता है. दोनों के प्रेमसंबंधों की बात गांव के लोगों तक पहुंची तो लोग उन के बारे में चटखारे ले ले कर बातें करने लगे.
गांव वालों से होते हुए यह बात किसी तरह प्रभा और कुलदीप के घर वालों के कानों तक पहुंची तो फूल सिंह ने पत्नी रानी से बात कर के प्रभा पर पाबंदी लगा दी कि वह घर के बाहर अकेली नहीं जाएगी. कहते हैं, बंदिशें लगाने से मोहब्बत और बढ़ती है. प्रभा की कुलदीप से मुलाकात भले ही नहीं हो पा रही थी, लेकिन फोन के जरिए बात होती रहती थी.
चूंकि उन्होंने पहले से ही तय कर लिया था कि वे प्यार में आने वाली हर रुकावट का विरोध करेंगे, इसलिए वे बगावत पर उतर आए. जमाने की परवाह किए बगैर अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचाने के लिए वे जनवरी, 2012 में अपनेअपने घरों को छोड़ कर हरियाणा के गुड़गांव शहर चले गए. गुड़गांव में कुलदीप का एक दोस्त रहता था. कुलदीप ने उसी की मदद से आर्यसमाज रीति से प्रभा के साथ विवाह भी कर लिया. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली की एक फैक्ट्री में नौकरी भी मिल गई. इस के बाद कुलदीप दिल्ली में किराए पर कमरा ले कर प्रभा के साथ रहने लगा.
प्रभा के इस तरह भाग जाने से फूल सिंह की बहुत बदनामी हुई. उस ने 16 जनवरी, 2012 को थाना घाटमपुर में कुलदीप के खिलाफ प्रभा को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट में उस ने प्रभा को नाबालिग बताया था. मामला नाबालिग लड़की का था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र पाल और उस के परिवार वालों पर शिकंजा कसा. मजबूरन कुलदीप को वापस जाना पड़ा.
चूंकि कुलदीप के खिलाफ पहले से रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए पुलिस ने कुलदीप को गिरफ्तार कर के पूछताछ की. प्रभा का मैडिकल परीक्षण कराया. मैडिकल में प्रभा की उम्र 18 साल से ऊपर निकली. वह संभोग की अभ्यस्त पाई गई. प्रभा ने कुलदीप की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा था कि उस ने कुलदीप के साथ अपनी मरजी से जा कर शादी की थी. प्रभा ने सुबूत के तौर पर अपने और कुलदीप के शादी के फोटो भी दिखाए. लेकिन पुलिस ने उस की एक न सुनी और कुलदीप को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया.
मजिस्ट्रेट के सामने प्रभा के बयान कराए गए तो प्रभा ने वही सब कहा जो उस ने पुलिस के सामने चीखचीख कर कहा था. प्रभा के बयान और उस के बालिग होने की रिपोर्ट के मद्देनजर मजिस्ट्रेट ने प्रभा को उस की मरजी के अनुसार जहां और जिस के साथ जाने व रहने की इजाजत दे दी.
अदालत के फैसले के बाद प्रभा ने अपने घर के बजाय सासससुर के साथ जाने की इच्छा जताई तो पुलिस ने उसे कुलदीप के घर पहुंचा दिया. बेटी के इस फैसले से फूल सिंह और उस के धर वालों ने बड़ी बेइज्जती महसूस की. कुछ दिनों बाद कुलदीप भी छूट कर घर आ गया. माहौल खराब न हो, इसलिए कुलदीप प्रभा को ले कर फिर से दिल्ली चला गया. जनवरी, 2013 में प्रभा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने शिवानी रखा.
समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. शिवानी भी 9 महीने की हो गई. अपने मातापिता से भी कुलदीप के संबंध ठीक हो गए थे. वह अकसर घर वालों से फोन पर बातचीत करता रहता था. लेकिन फूल सिंह ने बेटी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए थे. कुलदीप बेटी का मुंडन संस्कार कराना चाहता था, इसलिए घर वालों से बात कर के वह पत्नी और बेटी को ले कर 9 अक्तूबर, 2013 को अपने गांव ढुकुआपुर आ गया.
सुरेंद्र पाल ने मुंडन संस्कार की सारी तैयारियां पहले से ही कर रखी थीं. 10 अक्तूबर को बड़ी धूमधाम से शिवानी का मुंडन संस्कार हुआ. प्रभा के मातापिता ने कुलदीप को अपना दामाद स्वीकार नहीं किया था. वह कुलदीप से खुंदक खाए बैठा था. इसलिए सुरेंद्र ने मुंडन कार्यक्रम में फूल सिंह और उस के परिवार वालों को नहीं बुलाया था.
गांव वाले मुंडन की दावत खा कर जब लौट रहे थे तो तरहतरह की बातें कर रहे थे. वे बातें फूल सिंह ने सुनीं तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कुलदीप और उस के घर वालों को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उस ने मोहद्दीपुर थाना बकेवर में रहने वाले अपने भाई रामप्रसाद से सलाह- मशविरा कर के उसे भी शामिल कर लिया. अब इंतजार था, सुरेंद्र के मेहमानों के चले जाने का. 13 अक्तूबर को उस के यहां से सभी मेहमान चले गए. केवल सुरेंद्र की बुआ श्यामा रह गई थीं.
14 अक्तूबर, 2013 की शाम सुरेंद्र खाना खा कर घर से करीब 50 मीटर दूर जानवरों के बाड़े में सोने चला गया. उस की पत्नी ममता बच्चों को खाना खिलाने की तैयारी कर रही थी तभी फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद आदि कुल्हाड़ी, चापड़ और डंडे ले कर सुरेंद्र के घर में दाखिल हुए.
घर वाले कुछ समझ पाते उस से पहले उन्होंने प्रभा की हत्या की, क्योंकि उसी की वजह से समाज में उन की नाक कटी थी. ममता बहू को बचाने आई तो उन्होंने उसे भी काट डाला. उस के बाद कुलदीप के दोनों पैर काट दिए. इतना सब कर के वे फरार हो गए. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद उर्फ छोटे पाल से पूछताछ कर के सभी को जेल भेज दिया.
पुलिस ने टुंडा उर्फ मामा से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. पुलिस का कहना था कि उस का एक हाथ कटा था. एक हाथ से वह किसी पर हमला नहीं कर सकता. दूसरे पुलिस जब उस के घर फरीदपुर पहुंची तो वह घर पर ही सोता मिला था. अगर वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल होता तो अन्य हमलावरों की तरह वह भी घर से फरार होता. वह आराम से अपने घर में नहीं सो रहा होता.
उधर सुरेंद्र का कहना है कि टुंडा घटना में शामिल था. पुलिस ने जानबूझ कर उसे छोड़ दिया. सच्चाई जो भी हो, इस लोमहर्षक कांड ने यह तो साबित कर दिया है कि लोग खुद को कितना भी आधुनिक कहें, लेकिन अभी उन की सोच नहीं बदली है. अगर फूल सिंह बेटी की पसंद को स्वीकार कर लेता तो उसे इस जघन्य अपराध के आरोप में जेल न जाना पड़ता. कथा लिखे जाने तक कुलदीप अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.
—कथा पुलिस सूत्र और जनचर्चा पर आधारित
पिछले साल सन 2016 के सितंबर महीने में अलीगढ़ का एसएसपी राजेश पांडेय को बनाया गया तो चार्ज लेते ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि जितनी भी जांचें अधूरी पड़ी हैं, उन की फाइलें उन के सामने पेश करें. जब सारी फाइलें उन के सामने आईं तो उन में एक फाइल थाना गांधीपार्क में दर्ज प्रीति अपहरण कांड की थी, जिस की जांच अब तक 10 थानाप्रभारी कर चुके थे और यह मामला 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था.
राजेश पांडेय को यह मामला कुछ रहस्यमय लगा. उन्होंने इस मामले की जांच सीओ अमित कुमार को सौंपते हुए जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. अमित कुमार ने फाइल देखी तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ. क्योंकि इतने थानाप्रभारियों ने मामले की जांच की थी, इस के बावजूद मामले का खुलासा नहीं हो सका था. उन्होंने थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को कुछ निर्देश दे कर फाइल सौंप दी.
मामला काफी पुराना और रहस्यमयी था, इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए दिनेश कुमार दुबे ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई अजीत सिंह, एसआई धर्मवीर सिंह, कांस्टेबल सत्यपाल सिंह, मोहरपाल सिंह और नितिन कुमार को शामिल किया.
फाइल का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उन्होंने मामले की जांच फरीदाबाद से शुरू की, क्योंकि प्रीति को भगाने का जिस युवक जयकुमार पर आरोप था, वह फरीदाबाद का ही रहने वाला था. दिनेश कुमार दुबे फरीदाबाद जा कर उस की मां संध्या से मिले तो उस ने बताया कि जयकुमार उस का एकलौता बेटा था. उस पर जो आरोप लगे हैं, वे झूठे हैं. उस का बेटा ऐसा कतई नहीं कर सकता. उस ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी.
संध्या से पूछताछ के बाद दिनेश कुमार दुबे को मामला कुछ और ही नजर आया. अलीगढ़ लौट कर उन्होंने 13 जनवरी, 2016 को प्रीति के पिता देवेंद्र शर्मा को थाने बुलाया, जिस ने जयकुमार पर बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस के सामने आने पर वह इस तरह घबराया हुआ था, जैसे उस ने कोई अपराध किया हो. जब सीओ अमित कुमार, एसपी (सिटी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने उस से जयकुमार के बारे में पूछताछ की तो पुलिस अधिकारियों को गुमराह करते हुए वह इधरउधर की बातें करता रहा.
लेकिन यह भी सच है कि आदमी को एक सच छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में ही कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाती है कि सच सामने आ जाता है. उसी तरह देवेंद्र के मुंह से भी घबराहट में निकल गया कि कहीं जयकुमार ने घबराहट में ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली.
देवेंद्र की इस बात ने पुलिस अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसे कैसे पता चला कि जयकुमार ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने दिसंबर, 2013 के ट्रेन एक्सीडेंट के रिकौर्ड खंगाले तो पता चला कि थाना सासनी गेट पुलिस को 7 दिसंबर, 2013 को ट्रेन की पटरी पर एक लावारिस लाश मिली थी.
इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने देवेंद्र के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने जयकुमार की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जयकुमार की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस की शातिराना कहानी सुन कर पुलिस हैरान रह गई. देवेंद्र ने बताया कि अपनी इज्जत बचाने के लिए उसी ने अपने साले प्रमोद कुमार के साथ मिल कर जयकुमार की हत्या कर दी थी. इस बात की जानकारी उस की बेटी प्रीति को भी थी.
इस के बाद पुलिस ने देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति और उस के साले प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रीति और प्रमोद ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. तीनों की पूछताछ में जयकुमार की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—
उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क के नगला माली का रहने वाला देवेंद्र शर्मा रोजीरोटी की तलाश में हरियाणा के फरीदाबाद आ गया था. उसे वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई तो रहने की व्यवस्था उस ने थाना सारंग की जवाहर कालोनी के रहने वाले गंजू के मकान में कर ली. उन के मकान की पहली मंजिल पर किराए पर कमरा ले कर देवेंद्र शर्मा उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. यह सन 2013 के शुरू की बात है.
उन दिनों देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति यही कोई 17-18 साल की थी और वह अलीगढ़ के डीएवी कालेज में 12वीं में पढ़ रही थी. फरीदाबाद में सब कुछ ठीक चल रहा था. देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति जवान हो चुकी थी. मकान मालिक गंजू की पत्नी गुडि़या का ममेरा भाई जयकुमार अकसर उस से मिलने उस के यहां आता रहता था. वह पढ़ाई के साथसाथ एक वकील के यहां मुंशी भी था. इस की वजह यह थी कि उस के पिता शंकरलाल की मौत हो चुकी थी, जिस से घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहा था.
जयकुमार अपनी मां संध्या के साथ जवाहर कालोनी में ही रहता था. फुफेरी बहन गुडि़या के घर आनेजाने में जयकुमार की नजर देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति पर पड़ी तो वह उस के मन को ऐसी भायी कि उस से प्यार करने के लिए उस का दिल मचल उठा. अब वह जब भी बहन के घर आता, प्रीति को ही उस की नजरें ढूंढती रहतीं.
एक बार जयकुमार बहन के घर आया तो संयोग से उस दिन प्रीति गुडि़या के पास ही बैठी थी. जयकुमार उस दिन कुछ इस तरह बातें करने लगा कि प्रीति को उस में मजा आने लगा. उस की बातों से वह कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया.
जयकुमार देखने में ठीकठाक तो था ही, अपनी मीठीमीठी बातों से किसी को भी आकर्षित कर सकता था. उस की बातों से ही आकर्षित हो कर प्रीति ने उस का मोबाइल नंबर लिया था. इस के बाद दोनों की बातचीत मोबाइल फोन से शुरू हुई तो जल्दी उन में प्यार हो गया. फिर खतरों की परवाह किए बिना दोनों प्यार की राह पर बेखौफ चल पड़े. दोनों घर वालों की चोरीछिपे जब भी मिलते, घंटों भविष्य के सपने बुनते रहते.
जल्दी ही प्रीति और जयकुमार प्यार की राह पर इतना आगे निकल गए कि उन्हें जुदाई का डर सताने लगा था. उन के एक होने में दिक्कत उन की जाति थी. दोनों की ही जाति अलगअलग थी. उन की आगे की राह कांटों भरी है, यह जानते हुए भी दोनों उसी राह पर आगे बढ़ते रहे.
देवेंद्र गृहस्थी की गाड़ी खींचने में व्यस्त था तो बेटी आशिकी में. लेकिन कहीं से प्रीति की मां रीना को बेटी की आशिकी की भनक लग गई. उन्होंने बेटी को डांटाफटकारा, साथ ही प्यार से समझाया भी कि जमाना बड़ा खराब है, इसलिए बाहरी लड़के से बातचीत करना अच्छी बात नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बिना मतलब की बदनामी होगी.
क्रमशः
रात के दस बजने वाले थे. वाराणसी जनपद के सिगरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली नगर निगम चौकी के प्रभारी सबइंसपेक्टर बसंत कुमार एसआई चंद्रकेश शर्मा और 2 सिपाहियों गामा यादव व बाबूलाल के साथ शिवपुरवा तिराहे के पास मौजूद थे. उसी समय एक मुखबिर ने आ कर बताया कि इलाके में पिछले कुछ महीनों से मोबाइल और लैपटाप वगैरह की जो चोरियां हुई हैं, उन का चोर चोरी का सामान बेचने के लिए खरीदार से संपर्क करने के लिए आने वाला है.
चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर बसंत कुमार के लिए सूचना काफी महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर से कुछ जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्होंने उस चोर को पकड़ने के लिए व्यूह रचना तैयार कर अपने साथी पुलिस वालों को सतर्क कर दिया. मुखबिर को उन्होंने छिप कर खड़ा होने को कह दिया. थोड़ी देर बाद मुखबिर ने सनबीम स्कूल की ओर से पैदल आ रहे 2 युवकों की ओर इशारा कर दिया. उन दोनों की पहचान कराने के बाद मुखबिर वहां से चला गया.
सबइंसपेक्टर बसंत कुमार और उन के साथी चौकन्ने हो गए. दोनों युवकों में से एक के पास एक काले रंग का बड़ा सा बैग था, जिसे वह पीठ की तरफ टांगे हुए था. दोनों युवक जैसे ही रेलवे कालोनी जल विहार मोड़ के पास पहुंचे. सबइंसपेक्टर बसंत कुमार ने उन दोनों को रुकने का आदेश दिया. लेकिन पुलिस को देख कर दोनों तेजी से विपरीत दिशा की ओर भागने लगे. लेकिन पहले से तैयार पुलिस टीम ने दौड़ कर उन्हें पकड़ लिया.
पुलिस के शिकंजे में फंसते ही दोनों युवक गिड़गिड़ाए, ‘‘सर, आप हम लोगों को क्यों पकड़ रहे हैं, हम ने क्या किया है?’’
‘‘कुछ नहीं किया तो भागने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘साहब, हम डर गए थे कि कहीं आप हमें किसी झूठे मुकदमे में न फंसा दें.’’
‘‘तुम्हें क्या लगता है कि पुलिस वाले यूं ही राह चलते लोगों को फंसा देते हैं. खैर, अपना बैग चेक कराओ.’’ कह कर बसंत कुमार ने सिपाही गामा यादव को आदेश दिया, ‘‘इन का बैग चेक करो.’’
‘‘साहब, बैग में कपड़ेलत्तों के अलावा कुछ नहीं है.’’ एक युवक ने कहा तो बसंत कुमार ने उसे डांटा, ‘‘अगर आपत्तिजनक कुछ नहीं है तो घबरा क्यों रहे हो?’’
सबइंसपेक्टर चंद्रकेश शर्मा ने युवक की पीठ पर टंगा काले रंग का बैग जबरदस्ती ले कर खोला तो उस में लैपटाप और नए मोबाइल सेट के डिब्बे दिखे. बैग में मोबाइल सेट और लैपटाप देखते ही बसंत कुमार समझ गए कि शिकार जाल में फंस चुका है.
बसंत कुमार ने बैग वाले युवक का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम जयमंगल निवासी शिवपुरवा बताया. उस के साथी का नाम गुडलक था. वह सिगरा थानाक्षेत्र की महमूरगंज रोड स्थित संपूर्णनगर कालोनी में रहता था. विस्तृत पूछताछ के लिए दोनों युवकों को हिरासत में ले कर चौकीप्रभारी बसंत कुमार अपनी टीम के साथ सिगरा थाने आ गए.
सिगरा थाने में जयमंगल से विस्तृत पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस के बैग में सारा सामान चोरी का है. पुलिस को उस के बैग से 3 लैपटाप, 10 मोबाइल सेट, रितेश नाम से एक वोटर आईडी के अलावा 1560 रुपए और 1 किलो 100 ग्राम चरस मिली. जबकि गुडलक की तलाशी में उस की पैंट की जेब से प्लास्टिक की थैली में रखी 240 ग्राम चरस मिली.
जयमंगल और गुडलक से पूछताछ चल ही रही थी कि तभी गश्त पर गए थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र थाने लौट आए. उन्हें जब पता चला कि पिछले दिनों इलाके में हुई चोरी की घटनाओं में शामिल 2 चोर पकड़े गए हैं तो वह भी पूछताछ में शामिल हो गए. जयमंगल से बरामद रितेश नाम से जारी वोटर आईडी को देखने पर पता चला कि उस पर फोटो जयमंगल का लगा था. इस का मतलब उस ने फरजी नाम से आईडी बनवा रखी थी.
थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र ने इस बारे में जयमंगल से जब अपने तरीके से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने रितेश नाम से फर्जी वोटर आईडी बनवाई थी, ताकि होटल वगैरह में ठहरने के लिए उस आईडी का इस्तेमाल कर के अपनी असली पहचान छिपा सके.
पूछताछ के दौरान यह भी खुलासा हुआ कि वह शिवपुरवा (सिगरा क्षेत्र) स्थित अपने पैतृक घर में न रह कर पिछले तीन सालों से अपनी प्रेमिका पत्नी के साथ पड़ोसी जनपद भदोही के गोपीगंज थानाक्षेत्र स्थित खमरिया में किराए का मकान ले कर रह रहा था. जयमंगल ने गुडलक को अपना दोस्त बताया. जयमंगल पहले ही स्वीकार कर चुका था कि उस के बैग से बरामद सामान अलगअलग जगहों से चोरी किया गया था. चरस के बारे में उस का कहना था कि नशे के लिए चरस का इस्तेमाल वह खुद करता था.
पूछताछ चल ही रही थी कि तभी थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र की नजर जयमंगल के हाथों पर पड़ी. उस के हाथों पर 2-3 लड़कियों के नाम गुदे हुए थे. एक साथ 2-3 लड़कियों के नाम हाथों पर गुदे देख शिवानंद मिश्र ने इस बारे में जयमंगल से पूछा. उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर न सिर्फ थानाप्रभारी बल्कि वहां मौजूद सभी पुलिस वाले आश्चर्यचकित रह गए.
जयमंगल ने बताया कि उस के हाथ पर ही नहीं, बल्कि शरीर के विभिन्न हिस्सों पर उस ने पच्चीसों लड़कियों के नाम गोदवाए हुए हैं. जयमंगल की टीशर्ट को पेट के ऊपर तक उठा कर देखा गया तो उस के सीने और पीठ पर दर्जनों लड़कियों के नाम गुदे मिले. दोनों हाथ, छाती और पीठ पर जिन लड़कियों के नाम गुदे थे, वे सब जयमंगल की प्रेमिकाएं थीं. पूछताछ में पता चला कि जयमंगल को नईनई लड़कियों से देस्ती करने का शौक था. वह उन से दोस्ती ही नहीं करता था, बल्कि उन से जिस्मानी संबंध भी बनाता था.
आर्थिक रूप से कमजोर घर की लड़कियों से जानपहचान बढ़ा कर उन से दोस्ती करना उस का शगल था. इस के लिए वह उन्हें उन की पसंद और जरूरत के मुताबिक तोहफे देता था. इतना ही नहीं, जिन लड़कियों से वह दोस्ती करता था, गाहेबगाहे उन के परिवार वालों की भी आर्थिक मदद कर के परिवार वालों की नजरों में शरीफजादा बन जाता था. इसी वजह से परिवार वाले जयमंगल के साथ अपनी लड़की के घूमनेफिरने पर ज्यादा बंदिशें नहीं लगाते थे.
लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए शुरूशुरू में जयमंगल उन का नाम अपने बदन पर गुदवा लेता था. लेकिन जब समय के साथ प्रेमिकाओं की संख्या बढ़ने लगी तो बदन में लड़कियों का नाम गुदवाना उस का शौक बन गया. पुलिस के समक्ष जयमंगल ने खुलासा किया कि अब तक वह 27 प्रेमिकाओं के नाम अपने बदन पर गुदवा चुका है.
जिन लड़कियों को किसी कारणवश वह छोड़ देता था या फिर लड़की ही उस से किनारा कर लेती थी, उस लड़की का नाम वह अपने बदन से मिटा देता था. नाम मिटाने के लिए वह उसे ब्लेड से खुरचने के साथसाथ कई बार गुदे हुए नाम को जला देता था. जयमंगल के हाथों में 3-4 जगहों पर जले के निशान भी दिखाई दिए, जिस के बारे में उस ने पुलिस को बताया कि जली हुई जगह पर उस की जिन प्रेमिकाओं के नाम गुदे थे, अब उन से उस का कोई रिश्ता नहीं रहा. इसलिए उस ने उन के नाम भी अपने बदन से मिटा दिए.
पुलिस की माने तो जयमंगल अब तक 30 से अधिक लड़कियों को अपनी प्रेमिका बना चुका था. जिन में से 2 दर्जन से अधिक प्रेमिकाओं के नाम उस ने अपने बदन पर भी गुदवाए थे. अपनी प्रेमिकाओं में से ही एक गुडि़या से उस ने 3 साल पहले एक मंदिर में शादी कर ली थी. फिलहाल वह उसी के साथ रह रहा था.
पूछताछ के दौरान चौंकाने वाली एक बात यह भी पता चली कि जयमंगल एक रईस खानदान का लड़का था. किशोरावस्था में उस के कदम बहक गए और ज्यादा से ज्यादा लड़कियों से दोस्ती करने की आदत ने उसे चोरी करने पर मजबूर कर दिया.
पुलिस की मानें तो बनारस के शिवपुरवा नगर निगम इलाके में जयमंगल का बहुत बड़ा पुश्तैनी मकान था, इस मकान के अलावा भी शहर के कई इलाकों में उस परिवार के कई मकान थे जिन्हें उन लोगों ने किराए पर उठा रखे थे. लेकिन जयमंगल की गलत हरकतों की वजह से परिवार वाले पिछले 5-6 सालों से उसे पैसा नहीं देते थे. जयमंगल खुद भी परिवार वालों से किसी तरह की आर्थिक मदद लेने के बजाय चोरी कर के अपनी जरूरतें और शौक पूरा करने का आदी हो चुका था.
जयमंगल ने पुलिस को यह भी बताया कि वह चोरी की ज्यादातर घटनाओं को खुद ही अंजाम दिया करता था. हां, कभीकभार वह किसी जरूरतमंद दोस्त को चोरी में जरूर शामिल कर लेता था, ताकि उस की मदद हो सके. चोरी के लिए कई बार वह होटलों में भी ठहरता था. फरजी आईडी उस ने इसीलिए बनवा रखी थी.
पुलिस ने जयमंगल के पास से जो 10 मोबाइल सेट बरामद किए थे, उन में से 2 मोबाइलों की चोरी की रिपोर्ट सिगरा थाने में पहले से ही दर्ज थी. थाने में दर्ज मोबाइल चोरी की रिपोर्ट के अनुसार चोरी का माल उस के पास से बरामद हो गया था.
पुलिस ने जयमंगल के विरुद्ध भादंवि की धारा 419, 420, 468, 467, 471, 41, 411, 414 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया. इस के अलावा उस के पास से बरामद 1 किलो 100 ग्राम चरस के लिए एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/18/20 के अंतर्गत अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. जयमंगल के साथी गुडलक के पास से भी 240 ग्राम चरस बरामद हुई थी, इसलिए उस के खिलाफ भी एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/18/20 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया.
जयमंगल और गुडलक की गिरफ्तारी 17 जुलाई, 2014 को हुई थी. अगले दिन 18 जुलाई को दोनों को बनारस के नगर पुलिस अधीक्षक सुधाकर यादव ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर दोनों आरोपियों को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया.
जयमंगल ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उस ने जो भी चोरियां की थी, वे अपनी माशूकाओं को गिफ्ट देने और उन्हें खुश करने के लिए की थीं. इस के पहले भी वह 3-4 बार जेल जा चुका था और जब भी बाहर आता था, अपने पुराने धंधे में लग जाता था. पुलिस ने दोनों को वाराणसी के जिला न्यायालय में प्रस्तुत किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित