बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के हरदोई-कानपुर मार्ग पर हरदोई जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर की दूरी पर एक  कस्बा है बिलग्राम. यहां हरदोई का थाना कोतवाली भी है. इसी कोतवाली क्षेत्र में एक गांव है हैबतपुर. यह गांव बिलग्राम से 4 किलोमीटर पहले ही मुख्य मार्ग पर स्थित है. इसी गांव में रामभजन सक्सेना का परिवार रहता था. मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर करने वाले रामभजन के परिवार में पत्नी सुमित्रा देवी के अलावा 4 बेटे और 4 बेटियां थीं.

रामभजन ने अपने दूसरे नंबर के बेटे रामचंद्र का विवाह लगभग 12 साल पहले हरदोई के ही थानाकोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले गांव पोखरी की रहने वाली रमाकांती से कर दिया था. उस के पिता गंगाराम की मौत हो चुकी थी. उस के 6 भाई और 2 बहनें थीं. भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. उस के भाइयों ने मिलजुल कर उस की शादी रामचंद्र से कर दी थी.

रमाकांती ससुराल आई तो उसे ससुराल में रामचंद्र के साथ गृहस्थी बसाने में कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि ससुराल में सभी अलगअलग अपनेअपने घरों में रहते थे. रामचंद्र भी अन्य भाइयों की तरह मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा था. इसलिए रमाकांती के लिए जैसे हालात मायके में थे, वैसे ही ससुराल में भी मिले. रमाकांती एक के बाद एक कर के तीन बेटियों और 2 बेटों यानी 5 बच्चों की मां बनी. इस समय उस की बड़ी बेटी 10 साल की है तो छोटा बेटा 1 साल का.

रामचंद्र का जिस हिसाब से परिवार बढ़ा, उस हिसाब से आमदनी नहीं बढ़ पाई, इसलिए उसे गुजरबसर में परेशानी होने लगी. गांव में मेहनतमजदूरी से इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वह परिवार का खर्चा उठा सकता. जब वह हर तरह से कोशिश कर के हार गया तो उस ने परिवार सहित कहीं बाहर जा कर काम करने का विचार किया.

उस ने जानपहचान वालों से बात की कि वह ऐसे कौन से शहर जाए, जहां उसे आसानी से काम मिल जाए. उस के गांव के कुछ लोग अंबाला में रहते थे. उन्होंने उसे अंबाला चलने की सलाह दी तो वह उन्हीं के साथ पत्नी और बच्चों को ले कर अंबाला चला गया.

वहां उसे लालू मंडी स्थित सिलाई का धागा बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, जहां उसे 3 सौ रुपए रोज मिलते थे. पास की ही एक अन्य सिलाई धागा फैक्ट्री में उस ने रमाकांती को भी नौकरी दिला दी. फैक्ट्री के पास ही उस ने एक मकान में किराए का एक कमरा ले लिया और उसी में पत्नीबच्चों के साथ रहने लगा. वह मकान चंडीगढ़ के रहने वाले किसी सरदार का था. मकान काफी बड़ा था, जिस में तमाम किराएदार रहते थे. अंबाला में पतिपत्नी इतना कमा लेते थे कि उन की आसानी से गुजरबसर होने लगी.

रमाकांती सुबह से दोपहर तक की शिफ्ट में काम करती थी. इस के बाद वह कमरे पर आ जाती और बच्चों के साथ रहती. जबकि रामचंद्र 12 घंटे की ड्यूटी करता था. वह सुबह जल्दी निकलता तो घर आने में रात के 9 बज जाते थे.

कोई भी आदमी सुबह से ले कर देर रात तक मेहनत करेगा तो जाहिर है, वह थक कर चूर हो जाएगा. रामचंद्र भी जब घर लौट कर आता तो उस का भी वही हाल होता था. घर पहुंच कर वह खाना खाता और चारपाई पर लेट कर खर्राटे भरने लगता. जबकि 5 बच्चों की मां बनने के बाद भी रमाकांती की हसरतें जवान थीं. उस का मन हर रात पति से मिलने को होता, जबकि रामचंद्र की थकान उस की इच्छाओं का गला घोंट देती थी. वह हर रात पति की बांहों में गुजारना चाहती, जबकि पति के सो जाने की वजह से यह संभव नहीं हो पाता था.

जिस मकान में रामचंद्र परिवार के साथ किराए पर रहता था, उसी मकान में सूरज भी एक कमरा किराए पर ले कर रह रहा था.  बिहार के रहने वाले 25 वर्षीय सूरज की अभी शादी नहीं हुई थी. वह भी धागा बनाने वाली उसी फैक्ट्री में नौकरी करता था, जिस में रामचंद्र करता था. एक ही मकान में रहने की वजह से सूरज और रमाकांती में परिचय हो गया था. जब भी दोनों का आमनासामना होता, एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते. धीरेधीरे दोनों में बातचीत भी होने लगी.

सूरज कुंवारा था, इसलिए उस का महिलाओं की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था. इसी आकर्षण की वजह से 5 बच्चों की मां रमाकांती के शारीरिक कसाव और आंखों की कशिश में वह ऐसा डूबा कि उस के आगे उसे बाकी की सारी औरतें बेकार लगने लगीं. वह जब भी उसे देखता उस की कामनाएं अंगड़ाइयां लेने लगतीं. रमाकांती पर उस का मन डोला तो वह उसे अपनी कल्पनाओं की दुल्हन मान कर उस के बारे में न जाने क्याक्या सोचने लगा.

रमाकांती पर दिल आते ही सूरज उस पर डोरे डालने लगा. जल्दी ही रमाकांती को भी उस के मन की बात पता चल गई. उसे एक ऐसे मर्द की चाहत थी भी, जो रामचंद्र की जगह ले सके. इसलिए उस का भी झुकाव सूरज की ओर हो गया. जब सूरज ने रमाकांती की आंखों में प्यास देखी तो वह उस के आगेपीछे चक्कर लगाने लगा.

सूरज रामचंद्र के घर भी आनेजाने लगा. वह रमाकांती को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की आड़ में वह हंसीमजाक भी करने लगा. इसी हंसीमजाक में कभीकभी वह मन की बात भी कह जाता.

अमीर बनने की चाहत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद के पौश इलाके राजनगर एक्सटेंशन की वीवीआईपी सोसाइटी में 30 नवंबर, 2015 की सुबह हडक़ंप मचा हुआ था. इस की वजह वह थी कि इस सोसाइटी में रहने वाले कारोबारी विवेक महाजन का बेटा रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था. दरअसल उन का 13 वर्षीय बेटा जयकरन 29 नवंबर की दोपहर सोसाइटी में ही बने मैदान में खेलने के लिए गया था.

इसी बीच वह लापता हो गया था. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचा तो घर वालों को चिंता हुई. चिंता के बादल तब और गहरे हो गए, जब यह पता चला कि जयकरन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. परिचितों और जयकरन के दोस्तों के यहां भी उस की खोजबीन की जा चुकी थी. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लग पा रहा था. थकहार कर विवेक महाजन ने स्थानीय थाना सिंहानी गेट में बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. पुलिस ने उन्हें नातेरिश्तेदारों के यहां खोजबीन करने की सलाह दे कर जयकरन का फोटो और हुलिया नोट कर लिया था.

विवेक महाजन के परिवार में पत्नी अमिता के अलावा 2 ही बच्चे थे, बेटी संस्कृति और बेटा जयकरन. अमिता पेशे से डाक्टर थीं, उन का अपना नैचुरोपैथी क्लिनिक था. जयकरन शहर के ही एक पब्लिक स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ रहा था. उस के लापता होने से अनहोनी की आशंकाएं जन्म ले रही थीं. पूरी रात जयकरन का इंतजार होता रहा. लेकिन न तो वह आया और न ही उस के मोबाइल पर संपर्क हो सका. चिंताओं के बीच किसी तरह रात बीत गई. 30 नवंबर की सुबह सूरज की रेशमी किरणों से नई उम्मीदों का उजाला तो हुआ, लेकिन महाजन परिवार की उदासी और परेशानी ज्यों की त्यों बनी रही.

करीब सवा 10 बजे अमिता के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने बुझे मन से मोबाइल की स्क्रीन को देखा तो उस पर जयकरन का नंबर डिस्प्ले हो रहा था. उन्होंने झट से फोन का बटन दबा कर के कान से लगाया, “ह…ह…हैलो जयकरन बेटा, कहां है तू?”

“घबराओ नहीं डाक्टर साहिबा, जयकरन हमारे पास सलामत है.” किसी अनजबी की आवाज सुन कर अमिता के दिल की धडक़नें बढ़ गईं और आवाज गले में अटक सी गई, “अ…अ…आप कौन, मेरा बेटा कहां है? उस से मेरी बात कराइए.” अमिता ने कहा.

लेकिन फोन करने वाला ठंडे लहजे में बोला, “इतनी भी क्या जल्दी है, बेटे से बात करने की. अभी एक ही रात के लिए तो दूर हुआ है. बाई द वे वह बिल्कुल ठीक है. हम पूरा खयाल रख रहे हैं उस का.”

कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “रही हमारी बात तो इतना बताना ही काफी है कि आप लोग फटाफट 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. जैसे ही 2 करोड़ दे दोगे, बेटा तुम्हें मिल जाएगा.”

यह सुन कर अमिता के होश उड़ गए. वह समझ गईं कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह गिड़गिड़ाईं, “देखो प्लीज, तुम मेरे बेटे को छोड़ दो.”

उन की बेबसी पर फोनकर्ता ने पहले ठहाका लगाया, फिर वह कठोर लहजे में बोला, “कहा तो है छोड़ देंगे. तुम रकम का इंतजाम करो. हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.” थोड़ा रुक कर वह आगे बोला, “और हां, पुलिस को फोन करने की गलती कतई मत करना, वरना तुम्हारा बेटा टुकड़ों में मिलेगा.”

“तुम लोग गलत कर रहे हो. हम पर रहम करो, प्लीज मेरे बेटे को छोड़ दो.”

अमिता ने कहा तो दूसरी ओर से फोन कट गया. उन्होंने काल बैक की, लेकिन तब तक मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

जयकरन के अपहरण की बात से महाजन परिवार में कोहराम मच गया. सोसाइटी के लोग भी एकत्र हो गए. विवेक महाजन ने इस की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस विभाग तुरंत हरकत में आ गया. मामला एक हाईप्रोफाइल कारोबारी के बच्चे के अपहरण का था, लिहाजा कुछ ही देर में थानाप्रभारी रणवीर ङ्क्षसह विवेक महाजन के घर पहुंच गए. बाद में एसएसपी धर्मेंद्र यादव, एसपी (सिटी) अजयपाल शर्मा व सीओ विजय प्रताप यादव भी वहां आ गए.

यह बात पूरी तरह साफ हो गई थी कि जयकरन का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था. अपहर्ता उस के साथ कुछ भी कर सकते थे. ऐसे में पुलिस के सामने जयकरन को बचाना बड़ी चुनौती थी. मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी आशुतोष कुमार ने सतर्कता के साथ अविलंब काररवाई निर्देश दिए.

एसएसपी धर्मेंद्र यादव ने जयकरन की सकुशल रिहाई के लिए एसपी अजयपाल शर्मा के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित कर दी. इस टीम में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच के प्रभारी अवनीश गौतम व उन की टीम को भी शामिल किया गया.

इस बीच पुलिस ने जयकरन की गुमशुदगी को अपहरण में तरमीम कर के अज्ञात अपहर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस ने जयकरन का मोबाइल नंबर ले कर सॢवलांस पर लगा दिया. पुलिस को उम्मीद थी कि सीसीटीवी की मदद से संभवत: कोई ऐसा सुराग मिल जाएगा, जिस से यह पता चल जाएगा कि जयकरन को कालोनी के बाहर कब और कैसे ले जाया गया. लेकिन पुलिस की यह उम्मीद तब टूट गई, जब पता चला कि वीवीआईपी सोसाइटी में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं.

इस बीच पुलिस इतना अंदाजा जरूर लगा चुकी थी कि जयकरन के अपहरण में किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ है, जिसे वह पहले से जानता रहा होगा. क्योंकि अगर उसे जबरन ले जाया गया होता तो शोरशराबा होता या घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी मिल जाता.

पुलिस ने जयकरन के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के आधार पर पुलिस आगे बढ़ पाती. पुलिस ने जयकरन के दोस्तों और सोसाइटी के संदिग्ध लोगों के बारे में पूछताछ की तो एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. एक व्यक्ति ने बताया, “सर, 2 लडक़े हैं जो अब नहीं दिख रहे. वे दोनों जयकरन के दोस्त भी हैं.”

“कौन हैं वे?” पुलिस अधिकारी ने पूछा तो उस व्यक्ति ने बताया, “दीपक और संदीप. दोनों सोसाइटी में ही किराए पर अकेले रहते हैं. रात और सुबह 9 बजे तक तो दोनों यहीं पर थे, लेकिन अब नहीं दिख रहे हैं.”

यह पता चलने पर पुलिस उन दोनों के फ्लैट पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. इस से पुलिस को उन पर थोड़ा शक हुआ. उन के बारे में ज्यादा कोई कुछ नहीं जानता था. बस इतना ही पता चला कि वे दोनों 2 महीने पहले ही सोसाइटी में रहने के लिए आए थे. दोनों बहुत मिलनसार थे और बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते थे. जयकरन को चूंकि क्रिकेट का बहुत शौक था, इसलिए उस की उन से अच्छी जानपहचान थी.

“वे दोनों काम क्या करते थे?”

“नहीं पता सर.”

पुलिस के शक की सूई उन दोनों के इर्दगिर्द घूमने लगी. तभी एक युवक ने अपना मोबाइल आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह देखिए सर, दीपक का फोटो.” फोटो पर नजर पड़ते ही एसपी अजयपाल शर्मा चौंके. उस में दीपक अपने हाथ में अवैध पिस्टल लिए हुए था. दरअसल दीपक ने वह फोटो व्हाट्सएप ग्रुप में खुद ही पोस्ट की थी. पुलिस ने पहली नजर में ही ताड़ लिया कि पिस्टल अवैध थी. इस से पुलिस का शक उन दोनों पर और भी बढ़ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के दीपक का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 1

रविवार के सुबह सात बजे के लगभग धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. चारों ओर शांति फैली थी. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है, क्योंकि यहां रात का आलम ही कुछ और होता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही यहां मछलियों का बाजार लग जाता है. ट्रौली रिक्शे और टैंपो रुक रहे थे और उन के साथ ही मछलियों के ढेर लग रहे थे. मछलियां लाने के लिए यहां टैंपो और ट्रौली रिक्शों की लाइन लगी थी.

इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता है. इस इलाके के लोग इसी दुकान से गोश्त खरीदना पसंद करते थे. सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर 2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल के एक फ्लैट में एक सुखी जोड़ा रहता था. यह फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे.

रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह आगरा की रहने वाली थी. 2 वर्ष पूर्व धनंजय से उस का विवाह हुआ था. इस से पहले धनंजय दिल्ली में अपने मातापिता के साथ रहता था. विवाह के बाद उस के सासससुर ने यह फ्लैट खरीदवा दिया था. रोहिणी वाकई रोहिणी नक्षत्र के समान सुंदर थी. धनंजय और उस की जोड़ी खूब फबती थी.

धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. लेकिन लौटने का उस का कोई समय निश्चित नहीं था. रोहिणी शाम साढ़े छह बजे तक घर लौट आती थी. इन हालात में पतिपत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्ïटी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था.

पहली जून की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, “साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हो?”

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी. फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. वाचमैन नीचे ही था, साफसफाई करने वाले अपने काम में लगे थे. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, “उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.”

धनंजय के फ्लैट में सुखसुविधा के सभी आधुनिक सामान मौजूद थे. उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. फ्लैट के हौल में शानदार दरी बिछी थी और कीमती सोफे सजे थे. एक कोने में टीवी और डीवीडी प्लेयर रखा था. दूसरे कोने में शो केस के नीचे टेलीफोन रखा था, वहीं मेज पर लैपटौप था. पीछे की ओर गैलरी थी, जहां से दिल्ली की ओर जाने वाली सडक़ के साथसाथ दूर तक फैली हरियाली और नोएडा गेट दिखाई देता था.

इस हौल के बाईं ओर बैडरूम का दरवाजा था. बैडरूम में डबल बैड, गोदरेज की 2 अलमारियां और एक ड्रेसिंग टेबल था. बैडरूम से लग कर ही एक छोटा गलियारा था. गलियारे में ही टौयलेट और बाथरूम था. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद बैडरूम में घुसते ही धनंजय की चीख निकल गई, “रोहिणी?”

उस की सुंदर पत्नी, उसे जीजान से चाहने वाली जीवनसंगिनी, जो अभी रात में उस के सीने पर सिर रख कर सोई थी, जिसे वह सुबह की मीठी नींद में छोड़ कर गया था, रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. रोहिणी के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी.

कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. वह पड़ोसियों के नाम लेले कर चिल्ला रहा था.

कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. धनंजय कांप रहा था. वह कुछ कहना चाहता था, पर उस के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, “क्या हुआ विश्वास?”

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, “रो…हि…णी.”

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर पहुंचे. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी और उलटे पांव भागी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन लगा कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्ïयूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा के लिए निकल पड़े. उन के पहुंचते ही वहां के चौकीदार ने उन्हें सलाम किया. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए दयाशंकर सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंचे. लोग सक्सेना के घर में जमा थे. धनंजय सोफे पर अपना सिर थामे बैठा था.

दयाशंकर के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. आगे बढ़ कर सक्सेना ने अपना परिचय दिया और धनंजय के फ्लैट की ओर इशारा किया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

उन के वहां पहुंचते ही एक व्यक्ति सामने आया, “गुडमौर्निंग सर? आप ने मुझे पहचाना? मैं रिटायर्ड इंसपेक्टर खन्ना. इन फ्लैटों की सुरक्षा व्यवस्था मेरे जिम्मे है. सोसाइटी के सेक्रैटरी ने फोन पर मुझे सूचना दी. दयाशंकर साहब से मुझे पता चला कि आप आ रहे हैं.”

प्रकाश राय को खन्ना का चेहरा जानापहचाना लगा. मगर उन्हें याद नहीं आया कि वह उस से कहां मिले थे. सीधे ऊपर न जा कर उन्होंने इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढिय़ां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था.

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 1

अमेरिका के 125 वेस्ट चेस्टर रोड, न्यूटन की रहने वाली एरिन माइकल विलिंगर एक एनजीओ में काम करती थी. उसे घूमने का  बहुत शौक था. वह पूरी दुनिया की सैर चाहती थी, इसलिए पैसा होते ही वह दुनिया देखने के लिए निकल पड़ी. पहले वह अपने दोस्तों के साथ इजरायल गई. कुछ दिनों वहां रहने के बाद उस ने भारत भ्रमण के इरादे से उड़ान भरी तो जुलाई, 2013 में दिल्ली के एयरपोर्ट पर उतरी.

भारत की धरती पर कदम रखते ही खूबसूरत एरिन खिल उठी थी. इस की वजह थी आगरा स्थित प्यार की निशानी ताज. जब से उस ने ताजमहल के बारे में जाना सुना था, तब से वह उसे देखने की तमन्ना मन में पाले थी.

शायद इसीलिए एरिन सब से पहले अन्य जगहों पर जाने के बजाए दोस्तों के साथ दिल्ली से सीधे आगरा आ गई थी. आगरा में उन लोगों ने ताजगंज के होटल ग्रीन पार्क में पड़ाव डाला. सभी के मनों में ताज को देखने की उत्सुकता थी. वे प्यार के उस महल को देखना चाहते थे, जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था.

एरिन और उस के दोस्त अपना सामान होटल के कमरे में रख कर बाहर निकले तो आटो वालों ने उन्हें घेर लिया. एरिन के पास जो आटो वाला पहुंचा, उस का नाम बंटी शर्मा था. बंटी ने 34 वर्षीया एरिन की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘गुड मौर्निंग मैम, वेलकम इन सिटी औफ लव.’’

‘‘थैंक यू वेरी मच. हाऊ आर यू यंगमैन?’’ एरिन ने बंटी का अभिवादन स्वीकार करते हुए उसी की तरह मुसकराते हुए कहा.

‘‘व्हिच डेस्टीनेशन मैम?’’

‘‘ताजमहल.’’ एरिन बोली.

बंटी ने एरिन और उस के साथियों का जो थोड़ाबहुत सामान था, उसे उठा कर आटो में रखा और ताजमहल की ओर चल पड़ा. बंटी आटो ही नहीं चलाता था, बल्कि अपने टूरिस्टों के लिए गाइड का भी काम करता था. उसे अंगरेजी बहुत ज्यादा तो नहीं आती थी, फिर भी वह इतनी अंगरेजी जरूर सीख गया था कि अपनी सवारियों की जिज्ञासा टूटीफूटी अंगरेजी से शांत कर देता था.

बंटी ताजमहल की पार्किंग में अपना आटो खड़ा कर के एरिन और उस के दोस्तों को ताजमहल दिखाने चल पड़ा. अंदर जा कर वह एरिन और उस के साथियों को वहां की कलाकारी दिखाते हुए उस के बारे में बताता भी जा रहा था. बीचबीच में वह अपनी बातों से उन्हें हंसा भी रहा था. बंटी की बातें एरिन को कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थीं. वह उस की बातों पर खुल कर हंस रही थी.

बंटी ने जब बताया कि यह ताजमहल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था तो एरिन ने हंसते हुए कहा था, ‘‘काश! मुझे भी कोई ऐसा प्रेमी मिल जाता जो मेरे लिए इसी तरह की खूबसूरत इमारत बनवाता.’’

एरिन की इस बात पर उस के साथी हंसने लगे तो बंटी ने भी उन का साथ देते हुए कहा, ‘‘क्या पता मैम, आप को भी कोई ऐसा ही दीवाना मिल जाए जो आप के लिए भले ही इस तरह की खूबसूरत इमारत न बनवा पाए, लेकिन प्यार बादशाह शाहजहां से भी ज्यादा करे.’’

एरिन ने उसे घूर कर देखा. इस के बाद आगे बढ़ते हुए बोली, ‘‘इस तरह का प्यार करने वाला तो इंडिया में ही मिल सकता है. हमारे यहां तो इस तरह प्यार करने वाला कोई नहीं मिलेगा.’’

‘‘तो यहीं किसी से प्यार कर लो.’’ बंटी ने हंसते हुए कहा.

एरिन मुसकराते हुए आगे बढ़ गई. ताजमहल घूमतेघूमते शाम हो गई. बंटी ने उन सभी को ला कर उन के होटल में छोड़ दिया.

आटो ड्राइवर बंटी ताजगंज इलाके के एमपी गुम्मट के रहने वाले अशोक जोशी का तीसरे नंबर का बेटा था. अशोक जोशी मूलरूप से राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले थे. रोजीरोजगार की तलाश में वह आगरा आ गए थे. यहां आ कर भी उन्हें ढंग का कोई रोजगार नहीं मिला. किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने बच्चों को पालपोस कर बड़ा तो कर दिया, लेकिन किसी को ढंग से पढ़ालिखा नहीं सके. किसी तरह बंटी ने आठवीं पास कर लिया था.

बंटी थोड़ा समझदार हुआ तो ताजमहल देखने आने वाले पर्यटकों और उन्हें लुभाने वाले भारतीयों से अंगरेजी सीखने लगा. उसे कुछ अंगरेजी आने लगी तो वह पर्यटकों को छोटेमोटे सामान बेचने लगा. इस के बाद जब वह पर्यटकों के बीच खुल गया तो गाइड का भी काम करने लगा.

साधारण परिवार से आए बंटी के पास पैसे आने लगे तो वह ढंग से रहने लगा. अब तक वह शादी लायक हो गया था. ठीकठाक कमाने भी लगा था. इसलिए उस के लिए रिश्ते भी आने लगे थे. घर वालों ने ताजगंज के ही रहने वाले ओमप्रकाश शर्मा की एकलौती बेटी भावना से उस की शादी कर दी. एकलौती बेटी होने की वजह से ओमप्रकाश ने बंटी की शादी में खूब दानदहेज भी दिया था. यही नहीं, उन्होंने उस के लिए एक आटो खरीद दिया, जिस की कमाई से बंटी ढंग से रहने लगा.

शादी के कुछ दिनों बाद बंटी एक बेटे का बाप भी बन गया, जिस का नाम उस ने भोला रखा था. बंटी की कमाई काफी बढ़ गई थी, लेकिन इसी के साथ उस का लालच भी बढ़ गया था. वह ज्यादा कमाई के ही चक्कर में विदेशी पर्यटकों की तलाश में इस होटल से उस होटल घूमता रहता था. उसी बीच उस ने एक और आटो खरीद लिया, जिसे वह किराए पर चलवाने लगा था. इस तरह उस की कमाई और बढ़ गई.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन लालची बंटी की नजर अब किसी ऐसी महिला पर्यटक की तलाश में रहने लगी थी जो उस से प्रेम  कर सके. क्योंकि आगरा में ऐसी तमाम विदेशी महिला पर्यटक थीं, जो आटो वालों, गाइडों या सामान बेचने वालों से प्रेम करने लगी थीं. कुछ ने तो शादी भी कर ली थी.

ये पर्यटक महिलाएं अपने प्रेमियों या पतियों पर खूब पैसे खर्च करती थीं. किसी ने अपने प्रेमी या पति को आटो खरीद दिया था तो किसी ने घर. कुछ तो अपने साथ ले कर विदेश चली गई थीं. यही सब देख कर बंटी भी इस तलाश में रहने लगा था कि अगर उसे भी कोई विदेशी प्रेमिका या पत्नी मिल जाती तो उस की भी किस्मत चमक उठती लेकिन उसे कोई मिल ही नहीं रही थी. इसी चक्कर में उस के हाथों एक अपराध हो गया, जिस की वजह से उसे जेल भी जाना पड़ा.

हुआ यह था कि उस के एक साथी कलुवा का एक विदेशी पर्यटक से चक्कर चल गया. कलुवा भी उसी के मोहल्ले का रहने वाला था और उसी की तरह आटो चलाता था. वह बड़ा ही समझदार था. उस का व्यवहार भी काफी शालीन था. शायद इसी वजह से स्पेन की रहने वाली सांद्रा उसे अपना दिल दे बैठी थी. उस ने उस के साथ विवाह करने का भी निश्चय कर लिया था. सांद्रा काफी धनी परिवार से थी, इसलिए वह कलुवा की हर तरह से मदद कर रही थी.

आगरा में सांद्रा कलुवा के घर पर ही रह रही थी. उसी बीच उस की मां की तबीयत खराब हो गई तो सांद्रा ने ही उस का इलाज कराया. इस के बाद वह कलुआ को अपने साथ स्पेन भी ले गई. कलुवा स्पेन से लौटा तो एक दिन उस की मुलाकात बंटी से हुई. बंटी ने उस से स्पेन के बारे में पूछा तो उस ने स्पेन के बारे में ही नहीं, सांद्रा और उस के घरपरिवार वालों के बारे में भी सब कुछ बताया. जब बंटी को पता चला कि सांद्रा बहुत पैसे वाले घर की है तो उस के मन में लालच आ गया. उस ने कलुवा से कहा कि वह सांद्रा से उस की भी दोस्ती करवा दे, लेकिन कलुवा ने मना कर दिया. इस बात को ले कर उस ने कलुआ के साथ मारपीट की.

                                                                                                                                            क्रमशः

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 1

24 मई, 2023 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. तारकोल की चिकनी सडक़ पर तेजी से दौड़ती चमचमाती कार सुजुकी अर्टिगा गाजियाबाद के लिंक रोड थानाक्षेत्र में स्थित पैसिफिक माल के सामने आकर रुकी. कार की ड्राइविंग सीट से सफेद वरदी पहना ड्राइवर तेजी से बाहर आया. उस ने कार का पिछला दरवाजा खोला और अदब से एक ओर खड़ा हो गया.

कार से जो शख्स उतरा, वह थुलथुले शरीर वाला नाटा सा व्यक्ति था. उस का चेहरा गोल और आंखें छोटीछोटी थीं. सिर पर आधी खोपड़ी गंजी थी, लेकिन जो बाल थे, वह ब्लैक डाई से रंगे हुए अलग ही पहचाने जा सकते थे. इस व्यक्ति के शरीर पर बेशकीमती ब्राऊन कलर का सफारी सूट था. पैरों में कीमती जूते चमचमा रहे थे. यह पैसों वाला अमीर व्यक्ति जान पड़ता था.

छोटीछोटी आंखों को जबरदस्ती फैला कर वह ड्राइवर से बोला, “मुन्ना देखो, मैं अपना फोन गाड़ी में ही छोड़ कर जा रहा हूं, यदि पीछे से तुम्हारी मालकिन सुनीता का फोन आए तो उस से कहना कि साहब हलका होने गए हैं, समझ गए.” कहने के बाद वह मानीखेज अंदाज में मुसकराया.

मुन्ना ने भद्दे पीले दांत चमकाए और धीरे से बोला, “समझ गया मालिक.”

वह व्यक्ति आगे बढ़ता, तभी मुन्ना ने मासूमियत से उसे टोका, “मालिक?”

वह व्यक्ति रुका, पलटा, “क्या?”

मुन्ना ने दोनों हाथ बांधे और जांघों के बीच में दबा कर खींसे निपोरते हुए बोला, “मालिक, कभी मुझे भी हलका होने के लिए ले चलिए न.”

“शटअप!” वह नाटा व्यक्ति गुस्से में बोला, “शक्ल देखी है कभी अपनी आईने में?”

“सौरी मालिक.” मुन्ना झेंप कर बोला.

वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ पैसिफिक माल में चला गया तो मुन्ना ने उसे भद्ïदी सी गली दी, “हरामी कहीं का. घर में इतनी सुंदर बीवी है और रोज यहां गटर में डुबकी मारने आ जाता है.”

पैसिफिक माल में वेश्यावृत्ति

अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद मुन्ना ने अपनी जेब से बीड़ी का बंडल निकाल कर बीड़ी सुलगा ली, उस ने बीड़ी का गहरा कश ले कर धुआं बाहर उगला, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. मुन्ना ने मोबाइल के स्क्रीन पर नजर डाली, उस पर उस के दोस्त गणेशी का नंबर चमक रहा था.

काल रिसीव करते हुए चहक कर बोला, “हैलो, मैं मुन्ना हूं. अबे तू 20 दिन से कहां मर गया था?”

“गांव गया था यार, बीवी की तबीयत खराब थी.”

“अब कैसी है भाभी?”

“अच्छी है अब.” गणेशी की आवाज उभरी, “तू कहां पर है?”

“मालिक को गटर में गोते खिलाने के लिए पैसिफिक माल में लाया हूं.”

“गटर में गोते? अबे तू क्या बक रहा है, तेरा मालिक पैसिफिक माल में कहां के गटर में गोते लगाता है?”

मुन्ना हंसा, “अमा यार, पैसिफिक माल में कई स्पा सेंटर हैं, यहां एक से बढ़ कर एक हसीन लडक़ी मिल जाती है. यहां स्पा की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा खूब होता है. मेरा मालिक सात दिन से रोज इसी वक्त यहां आता है. अमीर है, इसलिए मौज मार रहा है. मैं उस का 15 हजार रुपल्ली का ड्राइवर हूं. मैं बाहर बैठ कर अपनी बदकिस्मती पर सिसकता रहता हूं. काश! मैं भी किसी धन्ना सेठ के यहां पैदा हुआ होता.” मुन्ना ने आह भरी.

दूसरी तरफ गणेशी हंस पड़ा, “रोता क्यों है यार, अपने भी दिन आएंगे कभी मौजमस्ती के.”

“नहीं आएंगे. हम लोगों के नसीब में शादी के वक्त जो औरत पल्ले बांध दी गई है, बस उसी से अपनी हसरतें पूरी करना लिखा है.”

“छोड़ ये बातें, बता घर कब आएगा?”

“इस इतवार को छुट्टी करूंगा, तब आता हूं, भाभी के हाथ की चाय पीने.”

“आ जा, चाय के बाद तुझे बढिय़ा शराब की दावत दूंगा.”

“ठीक है,” मुन्ना ने खुश हो कर कहा, “इतवार की छुट्टी तेरे नाम की.” कहने के बाद मुन्ना ने काल डिसकनेक्ट कर दी. उसे तब अहसास भी नहीं था कि उस की गणेशी से हुई बात को वहीं पास में खड़े एक व्यक्ति ने सुन लिया है. मुन्ना बीड़ी के सुट्टे मारता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठा, तब उस की बातें सुनने वाला व्यक्ति किसी को फोन लगाने लगा था.

मुन्ना की अपने दोस्त गणेशी से होने वाली बातों को सुनने वाला वह व्यक्ति पुलिस का खास मुखबिर जगदीश उर्फ जग्गी था. उस ने तुरंत साहिबाबाद के एसीपी भास्कर वर्मा को फोन लगा कर यह जानकारी दी कि गाजियाबाद के पैसिफिक माल में चल रहे स्पा सेंटर में देह व्यापार का अनैतिक काम चल रहा है.

एसीपी भास्कर वर्मा ने जग्गी को स्पा सेंटरों में चल रहे देह धंधे की पुष्टि कर के उन्हें हकीकत से अवगत करने का निर्देश दे दिया. जग्गी इन कामों का मंझा हुआ खिलाड़ी था. वह उसी वक्त पैसिफिक माल में घुस गया. एक घंटे बाद उस ने एसीपी भास्कर वर्मा को दोबारा फोन लगाया.

“हां जग्गी?” एसीपी ने उतावलेपन से पूछा, “तुम ने मालूम किया?”

“साहब, ईनाम में 5 हजार लूंगा. यहां पैसिफिक माल में एक नहीं पूरे 8 स्पा सेंटर हैं, सभी में लड़कियों से देह धंधा करवाया जा रहा है. इस वक्त छापा डालेंगे तो देह धंधे में लिप्त सैकड़ों लड़कियां, उन के दलाल, मैनेजर और मौजमस्ती करने आए अय्याश लोग भी आप के हाथ आ सकते हैं.”

“ठीक है, तुम्हारा ईनाम पक्का. मैं छापा डालने की तैयारी करवाता हूं.” एसीपी भास्कर वर्मा ने कहा और जग्गी की काल डिसकनेक्ट कर उन्होंने दूसरी जगह फोन घुमाना शुरू कर दिया.

स्पा सेंटर में देह धंधे की खबर से चौंके डीसीपी

एसीपी भास्कर वर्मा ने थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन तथा पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद को फोन कर के तुरंत पुलिस बल सहित महाराजपुर पुलिस चौकी पर पहुंचने का निर्देश दे दिया. उन्होंने ट्रांस हिंडन जोन के डीसीपी विवेक चंद यादव को भी पैसिफिक माल में स्थित 8 स्पा सेंटरों में देह व्यापार होने की सूचना दे कर उन से निर्देश मांगा. डीसीपी विवेक चंद यादव ने चौकी आने की बात कही.

आधा घंटे में ही महाराजपुर पुलिस चौकी में थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन और पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद का पुलिस बल और अधिकारी पहुंच गए. महाराजपुर पुलिस चौकी छावनी में तब्दील होने जैसी प्रतीत होने लगी. डीसीपी विवेक चंद्र यादव और एसीपी भास्कर वर्मा ने आपस में सलाहमशविरा कर इस माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों में एक साथ छापा डालने के लिए 8 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. इन टीमों के प्रभारी नियुक्त किए गए.

बाहुबली धनंजय सिंह की धमक बरकरार

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि

ज्योति ने बुझाई पति की जीवन ज्योति

बहन का प्यार : यार बना गद्दार

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर  टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार करना ही पड़ेगा. मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं कि जब मन हुआ, आ गई. लड़कियों को घर से बाहर निकलने के लिए 50 बहाने बनाने पड़ते हैं.’’ प्रियंका ने तुनक कर कहा.

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हारे लिए तो मैं कईकई दिनों तक इंतजार करते हुए बैठा रह सकता हूं. क्योंकि मैं दिल के हाथों मजबूर हूं,’’ अखिलेश ने कहा, ‘‘प्रियंका, मैं चाहता हूं कि तुम आज कालेज की छुट्टी करो. चलो, हम सिनेमा देखने चलते हैं.’’

प्रियंका तैयार हो गई तो अखिलेश पहले उसे एक रेस्टोरेंट में ले गया. नाश्ता करने के बाद दोनों सिनेमा देखने चले गए.

सिनेमा देखते हुए अखिलेश छेड़छाड़ करने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘दिनोंदिन तुम्हारी शरारतें बढ़ती ही जा रही हैं. शादी हो जाने दो, तब देखती हूं तुम कितनी शरारत करते हो.’’

‘‘शादी नहीं हुई, तब तो इस तरह धमका रही हो. शादी के बाद न जाने क्या करोगी. अब तो मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ अखिलेश ने कान पकड़ते हुए कहा.

‘‘अब मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं है. शादी तो मैं तुम्हीं से करूंगी.’’ प्रियंका ने कहा.

‘‘फिर तो मुझे यही गाना पड़ेगा कि ‘शादी कर के फंस गया यार.’’’ अखिलेश ने कहा तो प्रियंका हंसने लगी.

प्रियंका उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार के मोहल्ला बाड़ूजई प्रथम के रहने वाले चंद्रप्रकाश सक्सेना की बेटी थी. वह ओसीएफ में दरजी थे. उन के परिवार में प्रियंका के अलावा पत्नी सुखदेवी, 2 बेटे संतोष, विपिन तथा एक अन्य बेटी कीर्ति थी. बड़े बेटे संतेष की शादी हो चुकी थी. वह अपनी पत्नी प्रीति के साथ दिल्ली में रहता था.

कीर्ति की भी शादी शाहजहांपुर के ही मोहल्ला तारोवाला बाग के रहने वाले राजीव से हुई थी. वह अपनी ससुराल में आराम से रह रही थी. गै्रजएुशन कर के विपिन ने मोबाइल एसेसरीज की दुकान खोल ली थी. जबकि प्रियंका अभी पढ़ रही थी. प्रियंका घर में सब से छोटी थी, इसलिए पूरे घर की लाडली थी. विपिन तो उसे जान से चाहता था.

प्रियंका बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन इतना खराब भी नहीं थी कि कोई उसे देख कर मुंह मोड़ ले. फिर जवानी में तो वैसे भी हर लड़की सुंदर लगने लगती है. इसलिए जवान होने पर साधारण रूपरंग वाली प्रियंका को भी आतेजाते उस के हमउम्र लड़के चाहत भरी नजरों से ताकने लगे थे. उन्हीं में एक था उसी के भाई के साथ मोबाइल एसेसरीज का धंधा करने वाला अखिलेश यादव उर्फ चंचल.

अखिलेश उर्फ चंचल शाहजहांपुर के ही मोहल्ला लालातेली बजरिया के रहने वाले भगवानदीन यादव का बेटा था. भगवानदीन के परिवार में पत्नी सुशीला देवी के अतिरिक्त 3 बेटे मुनीश्वर उर्फ रवि, अखिलेश उर्फ चंचल, नीलू और 2 बेटियां नीलम और कल्पना थीं. अखिलेश उस का दूसरे नंबर का बेटा था. भगवानदीन यादव कभी जिले का काफी चर्चित बदमाश था. उस की और उस के साथी रामकुमार की शहर में तूती बोलती थी.

रामकुमार की हत्या कर दी गई तो अकेला पड़ जाने की वजह से भगवानदीन ने बदमाशी से तौबा कर लिया और अपने परिवार के साथ शांति से रहने लगा. लेकिन सन 2002 में उस के सब से छोटे बेटे नीलू की बीमारी से मौत हुई तो वह इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सका और कुछ दिनों बाद उस की भी हार्टअटैक से मौत हो गई.

बड़ी बेटी नीलम का विवाह हो चुका था. पिता की मौत के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी बड़े बेटे रवि ने संभाल ली थी. वह ठेकेदारी करने लगा था. हाईस्कूल पास कर के अखिलेश ने भी पढ़ाई छोड़ दी और मोबाइल एसेसरीज का धंधा कर लिया. एक ही व्यवसाय से जुड़े होने की वजह से कभी विपिन और अखिलेश की बाजार में मुलाकात हुई तो दोनों में दोस्ती हो गई थी.

दोस्ती होने के बाद कभी अखिलेश विपिन के घर आया तो उस की बहन प्रियंका को देख कर उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह प्रियंका को देखने के चक्कर में अकसर उस के घर आने लगा. कहने को वह आता तो था विपिन से मिलने, लेकिन वह तभी उस के घर आता था, जब वह घर में नहीं होता था. ऐसे में भाई का दोस्त होने की वजह से उस की सेवासत्कार प्रियंका को करनी पड़ती थी. उसी बीच वह प्रियंका के नजदीक आने की कोशिश करता.

उस के लगातार आने की वजह से विपिन से उस की दोस्ती गहरी हो ही गई, प्रियंका से भी उस की नजदीकी बढ़ गई. इस के बाद विपिन और अखिलेश ने मिल कर मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली एक नामी कंपनी की एजेंसी ले ली तो उन का कारोबार भी बढ़ गया और याराना भी. इस से उन का एकदूसरे के घर आनाजान ही नहीं हो गया, बल्कि अब साथसाथ खानापीना भी होने लगा था.

अब अखिलेश को प्रियंका के साथ समय बिताने का समय ज्यादा से ज्यादा मिलने लगा था. उस ने इस का फायदा उठाया. उसे अपने आकर्षण में ही नहीं बांध लिया, बल्कि उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए. वह विपिन की अनुपस्थिति का पूरा फायदा उठाने लगा. विपिन के चले जाने के बाद केवल मां ही घर पर रहती थी. वह घर के कामों में व्यस्त रहती थी. फिर उसे बेटी पर ही नहीं, बेटे के दोस्त पर भी विश्वास था, इसलिए उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि वे दोनों क्या कर रहे हैं.

प्रियंका अपने भाई और परिवार को धोखा दे रही थी तो अखिलेश अपने दोस्त के साथ विश्वासघात कर रहा था. वह भी ऐसा दोस्त, जो उस पर आंख मूंद कर विश्वास करता था. उसे भाई से बढ़ कर मानता था. प्रियंका और अखिलेश क्या कर रहे हैं, किसी को कानोकान खबर नहीं थी. जबकि जो कुछ भी हो रहा था, वह सब घर में ही सब की नाक के नीचे हो रहा था.

संतोष की पत्नी प्रीति को बच्चा होने वाला था, इसलिए संतोष ने प्रीति को शाहजहांपुर भेज दिया. डिलीवरी की तारीख नजदीक आ गई तो उसे जिला अस्पताल में भरती करा दिया गया. प्रीति के अस्पताल में भरती होने की वजह से विपिन और उस की मां का ज्यादा समय अस्पताल में बीतता था.

छुट्टी न मिल पाने की वजह से संतोष नहीं आ सका था. उस स्थिति में प्रियंका को घर में अकेली रहना पड़ रहा था. विपिन को अखिलेश पर पूरा विश्वास था, इसलिए प्रियंका और घर की जिम्मेदारी उस ने उस पर सौंप दी थी. अखिलेश और प्रियंका को इस से मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. जब तक प्रीति अस्पताल में रही, दोनों दिनरात एकदूसरे की बांहों में डूबे रहे.

26 फरवरी, 2014 को प्रीति को जिला अस्पताल में बेटा पैदा हुआ था. खुशी के इस मौके पर अखिलेश ने 315 बोर के 2 तमंचे और 10 कारतूस ला कर विपिन को दिए थे. भतीजा पैदा होने पर दोनों ने उन तमंचों से एकएक फायर भी किए थे. बाकी 8 कारतूस और दोनों तमंचे अखिलेश ने विपिन से यह कह कर उस के घर रखवा दिए थे कि भतीजे के नामकरण संस्कार पर काम आएंगे. विपिन ने दोनों तमंचे और कारतूस अपने कमरे में बैड पर गद्दे के नीचे छिपा कर रख दिए थे.

विपिन पुलिस में भरती होना चाहता था, इसलिए रोजाना सुबह 5 बजे उठ कर जिम जाता था. वहां से वह 9 बजे के आसपास लौटता था. कभीकभी उसे देर भी हो जाती थी. 23 मार्च को विपिन 9 बजे के आसपास घर लौटा तो मां नीचे बरामदे में बैठी आराम कर रही थीं. भाभी प्रीति बच्चे के साथ सामने वाले कमरे में लेटी थी. उस ने कपड़े बदले और ऊपरी मंजिल पर बने अपने कमरे में सोने के लिए चला गया.

विपिन ने दरवाजे को धक्का दिया तो पता चला वह अंदर से बंद है. इस का मतलब अंदर कोई था. उस ने आवाज दी, लेकिन अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने पूरी ताकत से दरवाजे पर लात मारी तो अंदर लगी सिटकनी उखड़ गई और दरवाजा खुल गया. अंदर अखिलेश और प्रियंका खड़े थे. दोनों की हालत देख कर विपिन को समझते देर नहीं लगी कि अंदर क्या कर रहे थे. उन के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वे काफी घबराए हुए थे.

विपिन के कमरे में घुसते ही प्रियंका निकल कर नीचे की ओर भागी. विपिन का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में अखिलेश को एक जोरदार थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘तुझे मैं दोस्त नहीं, भाई मानता था. मैं तुझ पर कितना विश्वास करता था और तूने क्या किया? जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया.’’

‘‘भाई, मैं प्रियंका से सच्चा प्यार करता हूं और उसी से शादी करूंगा.’’ अखिलेश ने कहा, ‘‘वह मुझ से शादी को तैयार है.’’

‘‘तुम दोनों को पता था कि हमारी जाति एक नहीं है तो यह कैसे सोच लिया कि तुम्हारी शादी हो जाएगी?’’ विपिन गुस्से से बोला, ‘‘तुम ने जो किया, ठीक नहीं किया. मेरी इज्जत पर तुम ने जो हाथ डाला है, उस की सजा तो तुम्हें भोगनी ही होगी.’’

अखिलेश को लगा कि उसे जान का खतरा है तो उस ने जेब से 315 बोर का तमंचा निकाल लिया. वह गोली चलाता, उस के पहले ही विपिन ने उस के हाथ पर इतने जोर से झटका मारा कि तमंचा छूट कर जमीन पर गिर गया. अखिलेश ने तमंचा उठाना चाहा, लेकिन विपिन ने फर्श पर पड़े तमंचे को अपने पैर से दबा लिया.

अखिलेश कुछ कर पाता, विपिन ने बैड पर गद्दे के नीचे रखे दोनों तमंचे और आठों कारतूस निकाल कर उस में से एक तमंचा जेब में डाल लिया और दूसरे में गोली भर कर अखिलेश पर चला दिया. गोली अखिलेश के सीने में लगी. वह जमीन पर गिर गया तो विपिन ने एक गोली उस के बाएं हाथ और एक पेट में मारी. 3 गोलियां लगने से अखिलेश की तुरंत मौत हो गई.

अखिलेश का खेल खत्म कर विपिन नीचे आ गया. प्रियंका बरामदे में दुबकी खड़ी थी. उस के पास जा कर उस ने पूछा, ‘‘मैं ने सही किया या गलत?’’

प्रियंका ने जैसे ही कहा, ‘‘गलत किया.’’ विपिन ने उस की कनपटी पर तमंचे की नाल रख कर ट्रिगर दबा दिया. प्रियंका कटे पेड़ की तरह फर्श पर गिर पड़ी. इस के बाद उस ने एक गोली और चलाई, जो प्रियंका के सीने में बाईं ओर लगी. प्रियंका की भी मौत हो गई. प्रियंका को खून से लथपथ देख कर उस की मां और भाभी बेहोश हो गईं.

अखिलेश और प्रियंका की हत्या कर विपिन घर से बाहर निकला तो सामने पड़ोसी सचिन पड़ गया. सचिन से उस की पुरानी खुन्नस थी. उस ने उस की ओर तमंचा तान दिया. विपिन का इरादा भांप कर सचिन अपने घर के अंदर भागा. विपिन भी पीछेपीछे उस के घर में घुस गया. सचिन कहीं छिपता, विपिन ने उस पर भी गोली चला दी. गोली उस की कमर में लगी, जिस से वह भी फर्श पर गिर पड़ा.

सचिन के घर से निकल कर विपिन अपने एक अन्य दुश्मन सतीश के घर में घुस कर 2 गोलियां चलाईं. लेकिन ये गोलियां किसी को लगी नहीं. अब तक शोर और गोलियों के चलने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले इकट्ठा हो गए थे. लेकिन विपिन के हाथ में तमंचा देख कर कोई उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सका. इसलिए विपिन एआरटीओ वाली गली में घुस कर आराम से फरार हो गया.

किसी ने कोतवाली सदर बाजार पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी थी. चंद मिनटों में ही कोतवाली इंसपेक्टर यतेंद्र भारद्वाज पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. इस के बाद उन की सूचना पर पुलिस अधीक्षक राकेशचंद्र साहू, अपर पुलिस अधीक्षक (नगर) ए.पी. सिंह, फोरेंसिक टीम और डाग स्क्वायड की टीम भी वहां आ गई थी.

पुलिस तो आ गई, लेकिन अपनी नौकरी पर गए चंद्रप्रकाश को किसी ने इस बात की सूचना नहीं दी. काफी देर बाद सूचना पा कर वह घर आए तो बेटी की लाश देख कर बेहोश हो गए. एक ओर बेटी की लाश पड़ी थी तो दूसरी ओर उस की और उस के प्रेमी की हत्या के आरोप में बेटा फरार था.

सचिन की हालत गंभीर थी. इसलिए पुलिस ने उसे तुरंत सरकारी अस्पताल भिजवाया. उस की हालत को देखते हुए सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने उसे कनौजिया ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा. लेकिन वहां भी उस की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उसे वसीम अस्पताल ले जाया गया. डा. वसीम ने उस का औपरेशन कर के फेफड़े के पार झिल्ली में फंसी गोली निकाली. इस के बाद उस की हालत में कुछ सुधार हुआ.

फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य उठा लिए. डाग स्क्वायड टीम ने खोजी कुतिया लूसी को छोड़ा. वह विपिन के घर से निकल कर सतीश के घर तक गई, जहां विपिन ने 2 गोलियां चलाई थीं. घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला अवैध संबंधों में हत्या का यानी औनर किलिंग का है.

पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर इंसपेक्टर यतेंद्र भारद्वाज ने अखिलेश के बड़े भाई मुनीश्वर यादव की ओर से विपिन सक्सेना के खिलाफ अखिलेश और प्रियंका की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद विपिन की तलाश शुरू हुई.

26 मार्च की सुबह पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विपिन को पुवायां रोड पर चिनौर से पहले हाइड्रिल पुलिया के पास से गिरफ्तार कर लिया. उस समय वह अपने चचेरे भइयों सुशील और लल्ला के पास चिनौर जा रहा था. कोतवाली ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पूछताछ में विपिन ने पुलिस को बताया कि जिस यार को मैं भाई की तरह मानता था, उस ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला तो मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं ने उस का खून कर दिया. घटना को अंजाम देने के बाद वह एआरटीओ वाली गली के पास से निकल रहे नाले में अखिलेश से छीना तमंचा और अपनी खून से सनी टीशर्ट निकाल कर फेंक दी थी.

खाली बनियान और जींस पहने हुए वह एआरटीओ गली से रोडवेड बसस्टैंड पहुंचा. यहां से उस ने निगोही जाने के लिए सौ रुपए में एक आटो किया. निगोही जाते समय रास्ते में उस ने दूसरा तमंचा फेंक दिया. निगोही से वह प्राइवेट बस से बरेली पहुंचा. बरेली में उस ने नई टीशर्ट खरीद कर पहनी. पूरे दिन वह इधरउधर घूमता रहा. रात को उस ने बरेली रेलवे स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए टे्रन पकड़ ली.

दिल्ली में विपिन बड़े भाई संतोष के यहां गया. उसे उस ने पूरी बात बताई. संतोष को पता चल गया कि प्रियंका मर चुकी है, फिर भी वह उस के अंतिम संस्कार में शाहजहांपुर नहीं गया. संतोष को जब पता चला कि पुलिस विपिन की गिरफ्तारी के लिए घर वालों तथा रिश्तेदारों को परेशान कर रही है तो उस ने उसे घर भेज दिया.

26 मार्च को विपिन अपने चचेरे भाइयों के पास चिनौर जा रहा था, तभी पुलिस ने मुखबिरों से मिली सूचना पर गिरफ्तार कर लिया था. उस समय भी उस के पास एक तमंचा था.

पूछताछ में विपिन ने बताया था कि उस के पास कारतूस नहीं बचे थे. अगर कारतूस बचा होता तो वह खुद को भी गोली मार लेता. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने विपिन को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आवारगी में गंवाई जान