तीन साल बाद खुला रहस्य – भाग 1

पिछले साल सन 2016 के सितंबर महीने में अलीगढ़ का एसएसपी राजेश पांडेय को बनाया गया तो चार्ज लेते ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि जितनी भी जांचें अधूरी पड़ी हैं, उन की फाइलें उन के सामने पेश करें. जब सारी फाइलें उन के सामने आईं तो उन में एक फाइल थाना गांधीपार्क में दर्ज प्रीति अपहरण कांड की थी, जिस की जांच अब तक 10 थानाप्रभारी कर चुके थे और यह मामला 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था.

राजेश पांडेय को यह मामला कुछ रहस्यमय लगा. उन्होंने इस मामले की जांच सीओ अमित कुमार को सौंपते हुए जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. अमित कुमार ने फाइल देखी तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ. क्योंकि इतने थानाप्रभारियों ने मामले की जांच की थी, इस के बावजूद मामले का खुलासा नहीं हो सका था. उन्होंने थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को कुछ निर्देश दे कर फाइल सौंप दी.

मामला काफी पुराना और रहस्यमयी था, इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए दिनेश कुमार दुबे ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई अजीत सिंह, एसआई धर्मवीर सिंह, कांस्टेबल सत्यपाल सिंह, मोहरपाल सिंह और नितिन कुमार को शामिल किया.

फाइल का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उन्होंने मामले की जांच फरीदाबाद से शुरू की, क्योंकि प्रीति को भगाने का जिस युवक जयकुमार पर आरोप था, वह फरीदाबाद का ही रहने वाला था. दिनेश कुमार दुबे फरीदाबाद जा कर उस की मां संध्या से मिले तो उस ने बताया कि जयकुमार उस का एकलौता बेटा था. उस पर जो आरोप लगे हैं, वे झूठे हैं. उस का बेटा ऐसा कतई नहीं कर सकता. उस ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी.

संध्या से पूछताछ के बाद दिनेश कुमार दुबे को मामला कुछ और ही नजर आया. अलीगढ़ लौट कर उन्होंने 13 जनवरी, 2016 को प्रीति के पिता देवेंद्र शर्मा को थाने बुलाया, जिस ने जयकुमार पर बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस के सामने आने पर वह इस तरह घबराया हुआ था, जैसे उस ने कोई अपराध किया हो. जब सीओ अमित कुमार, एसपी (सिटी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने उस से जयकुमार के बारे में पूछताछ की तो पुलिस अधिकारियों को गुमराह करते हुए वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन यह भी सच है कि आदमी को एक सच छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में ही कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाती है कि सच सामने आ जाता है. उसी तरह देवेंद्र के मुंह से भी घबराहट में निकल गया कि कहीं जयकुमार ने घबराहट में ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली.

देवेंद्र की इस बात ने पुलिस अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसे कैसे पता चला कि जयकुमार ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने दिसंबर, 2013 के ट्रेन एक्सीडेंट के रिकौर्ड खंगाले तो पता चला कि थाना सासनी गेट पुलिस को 7 दिसंबर, 2013 को ट्रेन की पटरी पर एक लावारिस लाश मिली थी.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने देवेंद्र के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने जयकुमार की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जयकुमार की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस की शातिराना कहानी सुन कर पुलिस हैरान रह गई. देवेंद्र ने बताया कि अपनी इज्जत बचाने के लिए उसी ने अपने साले प्रमोद कुमार के साथ मिल कर जयकुमार की हत्या कर दी थी. इस बात की जानकारी उस की बेटी प्रीति को भी थी.

इस के बाद पुलिस ने देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति और उस के साले प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रीति और प्रमोद ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. तीनों की पूछताछ में जयकुमार की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क के नगला माली का रहने वाला देवेंद्र शर्मा रोजीरोटी की तलाश में हरियाणा के फरीदाबाद आ गया था. उसे वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई तो रहने की व्यवस्था उस ने थाना सारंग की जवाहर कालोनी के रहने वाले गंजू के मकान में कर ली. उन के मकान की पहली मंजिल पर किराए पर कमरा ले कर देवेंद्र शर्मा उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. यह सन 2013 के शुरू की बात है.

उन दिनों देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति यही कोई 17-18 साल की थी और वह अलीगढ़ के डीएवी कालेज में 12वीं में पढ़ रही थी. फरीदाबाद में सब कुछ ठीक चल रहा था. देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति जवान हो चुकी थी. मकान मालिक गंजू की पत्नी गुडि़या का ममेरा भाई जयकुमार अकसर उस से मिलने उस के यहां आता रहता था. वह पढ़ाई के साथसाथ एक वकील के यहां मुंशी भी था. इस की वजह यह थी कि उस के पिता शंकरलाल की मौत हो चुकी थी, जिस से घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहा था.

जयकुमार अपनी मां संध्या के साथ जवाहर कालोनी में ही रहता था. फुफेरी बहन गुडि़या के घर आनेजाने में जयकुमार की नजर देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति पर पड़ी तो वह उस के मन को ऐसी भायी कि उस से प्यार करने के लिए उस का दिल मचल उठा. अब वह जब भी बहन के घर आता, प्रीति को ही उस की नजरें ढूंढती रहतीं.

एक बार जयकुमार बहन के घर आया तो संयोग से उस दिन प्रीति गुडि़या के पास ही बैठी थी. जयकुमार उस दिन कुछ इस तरह बातें करने लगा कि प्रीति को उस में मजा आने लगा. उस की बातों से वह कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया.

जयकुमार देखने में ठीकठाक तो था ही, अपनी मीठीमीठी बातों से किसी को भी आकर्षित कर सकता था. उस की बातों से ही आकर्षित हो कर प्रीति ने उस का मोबाइल नंबर लिया था. इस के बाद दोनों की बातचीत मोबाइल फोन से शुरू हुई तो जल्दी उन में प्यार हो गया. फिर खतरों की परवाह किए बिना दोनों प्यार की राह पर बेखौफ चल पड़े. दोनों घर वालों की चोरीछिपे जब भी मिलते, घंटों भविष्य के सपने बुनते रहते.

जल्दी ही प्रीति और जयकुमार प्यार की राह पर इतना आगे निकल गए कि उन्हें जुदाई का डर सताने लगा था. उन के एक होने में दिक्कत उन की जाति थी. दोनों की ही जाति अलगअलग थी. उन की आगे की राह कांटों भरी है, यह जानते हुए भी दोनों उसी राह पर आगे बढ़ते रहे.

देवेंद्र गृहस्थी की गाड़ी खींचने में व्यस्त था तो बेटी आशिकी में. लेकिन कहीं से प्रीति की मां रीना को बेटी की आशिकी की भनक लग गई. उन्होंने बेटी को डांटाफटकारा, साथ ही प्यार से समझाया भी कि जमाना बड़ा खराब है, इसलिए बाहरी लड़के से बातचीत करना अच्छी बात नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बिना मतलब की बदनामी होगी.

                                                                                                                                   क्रमशः

प्यार में जब पति ने अड़ाई टांग

प्यार के लिए अपहरण

पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर

बेटी के प्यार में विलेन बने पापा

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का एक थाना है नौहझील. इस थाना क्षेत्र के गांव अड्डा मीना फिरोजपुर निवासी बदन सिंह उर्फ बलवीर सिंह ने 25 जनवरी, 2023 को अपनी 17 वर्षीय बेटी अनन्या को गांव के ही युवक रामगोपाल उर्फ गोपाल द्वारा भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. रिपोर्ट में बदन सिंह ने आरोप लगाया था कि 22 जनवरी को उन की बेटी अनन्या पशुओं के लिए चारा लेने खेत पर गई थी. उन के गांव का ही रहने वाला रामगोपाल उर्फ गोपाल उन की बेटी को वहां से बहलाफुसला कर अपने साथ भगा ले गया.

पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद आरोपी गोपाल को 27 जनवरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. लेकिन अनन्या का कोई पता नहीं चल सका. इस के बाद भी पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. अनन्या की तलाश में पुलिस ने हर उस जगह दबिश दी, जहां उस के होने की संभावना थी.

मुखबिर ने दी पुलिस को जानकारी

अनन्या की तलाश में जुटी नौहझील पुलिस को मुखबिर ने सूचना दी कि उस की हत्या की जा चुकी है. अब पुलिस के सामने प्रश्न यह था कि अनन्या 22 जनवरी को अपने प्रेमी के साथ गई थी. 25 जनवरी को रिपोर्ट दर्ज होने के बाद 27 जनवरी को रामगोपाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया तो उस के जेल जाने के बाद अनन्या की हत्या किस ने, कब और कहां की? पुलिस को यह भी शक हो रहा था कि प्रेमी गोपाल के जेल चले जाने से दुखी अनन्या ने कहीं आत्महत्या तो नहीं कर ली?

लेकिन बाद में मुखबिर ने पुलिस को यह भी सूचना दी कि अनन्या की हत्या उस के पापा बदन सिंह और चाचा ने षडयंत्र के तहत मिल कर की है. वे लोग अब अपने घर पर बेफिक्र हो कर बैठे हुए हैं. मुखबिर से मिली सूचना के बाद पुलिस ने अनन्या के पापा बदन सिंह उर्फ बलवीर व चाचा तेजपाल को थाने बुलाया. उन से पूछताछ की गई.

दोनों ने बताया कि वे पलवल में अनन्या के होने की सूचना पर उस की तलाश में गए थे. लेकिन वहां काफी तलाश करने के बाद भी वह नहीं मिली. इस के बाद वह वापस गांव आ गए. अनन्या के बारे में सही जानकारी रामगोपाल ही दे सकता है. पलवल से वापस आने के बाद गांव वालों को भी दोनों भाइयों ने यही बात बताई कि अनन्या का कोई सुराग नहीं मिला.

पलवल जाने के बाद बंद कर दी तलाश

पुलिस को जांच में पता चला कि अनन्या की तलाश में घर वाले पलवल गए जरूर थे, लेकिन इस के बाद उन्होंने उस की तलाश बंद कर दी है. इस जानकारी के मिलने के बाद एसएचओ धर्मेंद्र भाटी ने बलवीर व तेजपाल दोनों की कल डिटेल्स निकलवाई, जिस से हत्या का राज खुल गया. सबूत मिलने के बाद दोनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. जब पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो वे अपने गुनाह को ज्यादा देर तक छिपा नहीं सके. दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

दोनों ने बताया कि उन्होंने अनन्या की हत्या कर लाश अलीगढ़ की शिवाला नहर में फेंक दिया था. इस संबंध में पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि अलीगढ़ जिले के थाना गोंडा पुलिस ने 31 जनवरी, 2023 को एक लडक़ी का शव बरामद किया था. पुलिस दोनों को थाना गोंडा ले गई. वहां लाश के फोटो और कपड़ों के आधार पर अनन्या के रूप में कर ली. इस के बाद उन्होंने अनन्या की हत्या किए जाने की बेहद चौंकाने वाली कहानी बताई—

अनन्या ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि उसी दौरान उस की मुलाकात रामगोपाल से हुई. उसी के गांव का रहने वाला 22 वर्षीय रामगोपाल उर्फ गोपाल एक निजी टेलीकाम कंपनी में काम करता है. गांव में आतेजाते समय अनन्या और रामगोपाल की नजरें अकसर मिल जातीं. अनन्या मुसकरा कर नजरें झुका लेती. गोपाल को अनन्या की यह अदा भा गई. उस दिन के बाद से दोनों जब तक एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन के दिलों को चैन नहीं मिलता था.

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दोनों के बीच हुई दोस्ती

दोनों के बीच मौन प्यार चल रहा था. रामगोपाल को अनन्या ने अपने मौन प्यार के बंधन में पूरी तरह बांध लिया था. आखिर एक दिन जब रास्ते में जाते हुए अनन्या मिली तो मौका देख कर रामगोपाल ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अनन्या, तुम मुझ से बात क्यों नहीं करती?’’

“तुम ही कौन सा मुझ से बात करते हो.’’ अनन्या ने जवाब दिया. यह सुन कर गोपाल निरुत्तर हो गया. कुछ पल बाद वह बोला, ‘‘अनन्या, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. क्या मुझ से दोस्ती करोगी?’’

“करूंगी, जरूर करूंगी,’’ कहते हुए वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए अपने घर की ओर चली गई. उस दिन के बाद से दोनों चोरीचोरी मिल लेते थे. धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए. अब दोनों घंटों तक एकदूसरे से बतियाते, अपने भविष्य के सुखद सपने संजोते हैं. रामगोपाल और अनन्या जमाने की सोच की परवाह किए बिना अपने प्यार की पींगें बढ़ाने में लगे हुए थे.

कहते हैं प्यार को चाहे लाख छिपाने की कोशिश की जाए, लेकिन वह उजागर हो ही जाता है. गांव के लोगों ने दोनों को एक साथ देख लिया. इस के बाद तो दोनों के घर वालोयं को उन के प्रेमप्रसंग के बारे में पता चल गया. अनन्या के घर वालों ने इस का विरोध किया. लेकिन अनन्या ने अपने घर वालों से साफ कह दिया कि रामगोपाल और वह एकदूसरे को प्यार करतेे हैं. वह उस के साथ शादी करेगी. बेटी की इस बेबाकी पर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं मानी.

तब घर वालों ने उस के रामगोपाल से मिलने पर सख्त पाबंदी लगा दी. पर अनन्या इस के बाद भी प्रेमी से फोन पर बातें करती रहती थी. अनन्या दिन और रात में अपने प्रेमी रामगोपाल उर्फ गोपाल से बात करती थी. इस की भनक अनन्या की दादी को लग गई. इस पर घटना से 2 महीने पहले दादी ने अनन्या से उस का फोन छीन लिया था. अनन्या तभी से फोन के लिए घर में झगड़ा करती रहती थी. उस के तेवर बगावती हो गए थे. उस ने अपने मम्मीपापा से साफ कह दिया था कि वह रामगोपाल के साथ ही शादी करेगी अन्यथा अपनी जान दे देगी.

प्रेमी के साथ भाग गई

22 जनवरी, 2023 को जब घर वाले गहरी नींद में सोए हुए थे, अनन्या सुबह के समय घर से अपने प्रेमी रामगोपाल के साथ भाग गई. दोनों ने एक दिन पहले ही भागने की योजना बना ली थी. इस बात का दोनों के घरवालों को पता नहीं चल सका था. अनन्या के घरवालों को बेटी के इस तरह घर से भाग जाना बेहद नागवार गुजरा. अनन्या के चले जाने पर घर वाले परेशान हो गए. अनन्या के प्रेमी के साथ भाग जाने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. समाज में उन का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने अनन्या को काफी तलाशा, इस बीच उन्हें जानकारी मिली कि अनन्या अपने प्रेमी रामगोपाल के साथ पलवल चली गई है.

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एसएचओ धर्मेंद्र भाटी व एसआई मनोज चौधरी ने बताया कि अनन्या गोपाल के साथ ही शादी करने की जिद पर अड़ी थी. जबकि इस के लिए उस के घरवाले राजी नहीं थे. अनन्या के घर से भाग जाने की घटना ने आग में घी का काम किया. उस के पापा बदन सिंह उर्फ बलवीर सिंह का खून खौल उठा, क्योंकि उन का गांव में निकलना मुश्किल हो गया.

अनन्या के गायब होने के बाद जहां पुलिस उसे तलाश रही थी, वहीं घर वाले भी उस की तलाश में जुटे थे. पिता बदन सिंह को जानकारी मिली कि अनन्या हरियाणा के पलवल में मौजूद है. इस जानकारी पर बदन सिंह अपने छोटे भाई तेजपाल सिंह के साथ पलवल जा पहुंचा. दोनों ने अनन्या को ढूंढ लिया. लेकिन वह उन के साथ आने को तैयार नहीं हुई. आखिर गोपाल से शादी कराने की बात पर वह उन के साथ घर आने को तैयार हो गई.

झूठी आन की खातिर पिता बना हत्यारा

अनन्या को उस के पापा व चाचा बाइक पर बैठा कर टप्पल-जट्ïटारी मार्ग से होते हुए अलीगढ़ जिले के थाना खैर क्षेत्र में स्थित शिवाला नहर के पास पहुंचे. यहां दोनों भाइयों ने बाइक रोक ली. सुस्ताने के बहाने वे सब नहर किनारे बैठ गए. वहां पर पिता व चाचा ने अनन्या को एक बार फिर समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह रामगोपाल से शादी की बात पर अड़ी रही.

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फिर लोकलाज और समाज में अपनी इज्जत के डर से बदन सिंह ने अपने भाई तेजपाल की मदद से अनन्या का गला घोंट कर हत्या कर दी और शव नहर में फेंक दिया. नहर के गहरे पानी में वह डूब गई. यानी एक पिता ने ही बेटी की हत्या कर दी. दोनों भाई अनन्या को नहर में फेंक कर अपने गांव लौट आए. गांव में पूछने पर दोनों ने बताया कि उन्हें अनन्या का कोई सुराग नहीं मिला. इसलिए वे वापस आ गए. जबकि हकीकत यह थी कि दोनों ने उस की हत्या कर दी थी.

एसएचओ धर्मेंद्र भाटी के अनुसार, घर वालों ने अनन्या को 22 जनवरी को ही पलवल (हरियाणा) से बरामद कर लिया था. उसी दिन उन्होंने उस की हत्या कर लाश नहर में फेंक दी थी. इस घटना के 3 दिन बाद बदन सिंह ने प्रेमी रामगोपाल के खिलाफ बेटी को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा उसे जेल भिजवा दिया था.

शव 15 किलोमीटर बह कर पहुंचा गोंडा क्षेत्र में

उधर अनन्या की लाश नहर में बहते हुए 15 किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिले के थाना गोंडा क्षेत्र में पहुंच गई. नहर में एक युवती का शव मिलने की सूचना पर वहां की पुलिस ने गोताखोरों की मदद से शव को नहर से बाहर निकाला.

चूँकि शव नहर में कहीं से बह कर आया था, इस के चलते उस की पहचान नहीं हो सकी. पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि युवती ने आत्महत्या की है या यह औनर किलिंग का मामला तो नहीं है? थाना गोंडा पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

पुलिस ने 72 घंटे इंतजार किया. लेकिन युवती की शिनाख्त नहीं हो सकी. इस पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. पुलिस ने युवती के फोटो कराने के साथ ही उस के कपड़ों को सुरक्षित रख लिया था. इस के साथ ही आसपास के थानों से संपर्क किया. तब अनन्या की लाश मिलने की बात पुलिस के संज्ञान में आई.

बेटी के प्रेमप्रसंग में विलेन बना बाप

मोहब्बत के दुश्मन बने बलवीर सिंह ने अपनी बेटी अनन्या को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट अनन्या के प्रेमी रामगोपाल के खिलाफ दर्ज कराई थी, वह अब भी इस आरोप में जेल में बंद है. अभी उस की जमानत नहीं हुई है.बेटी के प्रेम प्रसंग में हत्या कर के विलेन बने उस के पापा व चाचा यही सोच रहे थे कि उन की इस साजिश का किसी को पता ही नहीं चलेगा, लेकिन यह उस की भूल थी.

पुलिस ने अनन्या की हत्या की गुत्थी को सुलझा कर पिता बलवीर सिंह व चाचा तेजपाल सिंह को अनन्या की हत्या करने व सबूतों को छिपाने के आरोप में 21 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयोग की गई बाइक को भी बरामद कर ली. दोनों को न्यायालय के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

अपराध करने वाला अपने आप को अपराध करते समय चाहे कितना भी होशियार समझे, लेकिन अंत में वह पकड़ा जरूर जाता है. झूठी आन की खातिर एक पिता ही अपनी बेटी का कातिल बन गया और एक प्रेमकहानी का दर्दनांक अंत हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अनन्या नाम परिवर्तित है.

माँ का प्रेमी गया जान से

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के गांव नेखुआ बनवीरकाछ में 27 फरवरी, 2023 की सर्द रात को अचानक एक चीख सन्नाटे को चीरती हुई निकल गई थी. चीख काफी तेज थी. रात का पहला पहर ही था और गांव के लोग अपनेअपने घरों में सोने की तैयारी कर रहे थे. अचानक तेज चीख सुन कर कुछ लोग घरों से बाहर निकल आए.

“चीख किधर से आई?’’ एक व्यक्ति ने पड़ोसी से पूछा, जो हड़बड़ाता हुआ घर से बाहर निकला था. जवाब देने के बजाय उस ने भी सवाल कर दिया, ‘‘कौन चीखा?…क्या हुआ इतनी रात को?’’

“अरे लगता है, चीखने की आवाज खजांची के घर से आई है…’’ उसी वक्त तीसरा व्यक्ति बोल पड़ा.

“हां…हां… चलो, चल कर देखते हैं. न जाने क्या हुआ उस के घर पर?’’ पहला व्यक्ति बोला.

“लगता है कोई गिर पड़ा है.’’

“जो भी हुआ हो, चलो देखते हैं.’’ कहते हुए तीनों ग्रामीण खजांची वर्मा के घर की ओर जाने के लिए मुड़ गए .तभी उन्होंने खजांची के घर की तरफ से आते हुए कुछ लोगों को देखा. वे कितने लोग थे, गिनती नहीं कर पाए. उन्हें लगा कि वे भी चीख सुन कर ही उस के घर पर आए होंगे. लेकिन यह क्या वे तो अंधेरे में ही कहीं गुम हो गए. खजांची के घर जाने वाले ग्रामीण समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बात क्या है?

खजांची के बारे में जानने के लिए सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. थोड़ी देर में ही वे खजांची के घर के बाहर पहुंच गए. वहां सन्नाटा था. दरवाजा भी बंद था. अंधेरा भी था. कुछ पल ठिठक कर उन लोगों ने घर के भीतर से किसी के कराहने की आवाज सुनी.

लोगों ने बुलाई पुलिस

पहले तेजी से चीखने और अब कराहने की आवाज सुन कर सभी सशंकित हो गए. उन्हें कोई गड़बड़ी या अनहोनी की आशंका हुई. खजांची के घर के बाहर मौजूद ग्रामीणों के बीच खुसरफुसर होने लगी. आवाज देने पर भी घर से कोई बाहर निकल नहीं रहा था और वे रात होने के चलते घर के अंदर जा नहीं पा रहे थे. ऐसे में ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना देना सही समझा. आपसी निर्णय के बाद उन्होंने लीलापुर थाने को किसी अनहोनी की आशंका की सूचना दे दी. कुछ देर बाद ही वहां पुलिस भी आ गई.

कुछ पुलिसकर्मियों के साथ पहुंचे एसएचओ एसएचओ सुभाष कुमार यादव ने पहले खजांची के घर के बाहर जमा लोगों से बात की. थाने में काल करने वाले से मामले की जानकारी ली. वहां मौजूद लोगों ने खजांची के घर में होने वाली गतिविधि के बारे में अनभिज्ञता जताई. आखिर में साथ आए सिपाहियों ने खजांची के बंद दरवाजे को खटखटाना शुरू किया. वे कुंडी को बारबार खडक़ा कर आवाज देने लगे. आवाज देने पर अंदर से एक घबराई हुई महिला की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

एसएचओ यादव ने अपना परिचय दे कर तुरंत दरवाजा खोलने को कहा. भीतर से दोबारा आवाज आई, ‘‘क्या.. पुलिस? इतनी रात को? क्या बात है साहब?’’

“हांहां! हमें सूचना मिली है कि तुम्हारे घर में कोई घटना हो गई है, इसलिए आना पड़ा. बाहर आओ, घर में कोई मर्द नहीं है क्या?’’ यादव के कहने पर दरवाजा थोड़ा खुला. अंदर से एक औरत झांकने लगी. बाहर खड़ी पुलिस ने बाहर से दरवाजे को धक्का दिया और पूरा दरवाजा खुल गया. दरवाजा खुलते ही एसएचओ यादव महिला पुलिस के साथ घर में घुस गए. उन के साथ कुछ ग्रामीण भी चले गए. अंदर का नजारा देख कर सभी हैरान रह गए.

वहां का माजरा देख कर कुछ पल के लिए सभी की सांसें थम सी गईं. सभी अवाक रह गए. घर में जमीन पर एक युवक मरणासन्न लहूलुहान पड़ा था, वह कराह रहा था. उस का एक हाथ कटा हुआ था और दोनों आंखें किसी नुकीली चीज से फोड़ी गई थीं. युवक की दशा देख कर एसएचओ ने फौरन उसे इलाज के लिए अस्पताल भिजवाने का इंतजाम करवाया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में युवक की मौत हो गई.

मृतक के भाई ने लिखाई रिपोर्ट

कुछ घंटे में ही खजांची के घर मरणासन्न युवक की बात पूरे गांव में फैल गई. जल्द ही उस की पहचान भी हो गई. वह कोई और नहीं, उसी गांव का 32 वर्षीय अभिनंदन सिंह था. इस खबर के फैलते ही अभिनंदन के घर वाले भी खजांची के घर आ गए. गांव का माहौल पूरी तरह से तनावपूर्ण हो गया था. पुलिस को अभिनंदन के घर वालों ने बताया कि उसे फोन कर खजांची के घर बुलाया गया था. मौका देख कर खजांची पत्नी समेत मौके से फरार हो गया. उन की तलाश की जाने लगी, लेकिन वे दोनों नहीं मिल पाए. दोनों की तलाशी के लिए पुलिस टीम लगा दी गई. इस के साथ ही यादव ने मामले की पूरी जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मौके की आवश्यक काररवाई करने के बाद वह थाने लौट आए.

पुलिस ने उसी रात मृतक अभिनंदन सिंह के बड़े भाई आनंद सिंह की तरफ से खजांची वर्मा, उस की पत्नी सपना, बेटे संजय वर्मा (28 साल), सपना के भाई व उस के साथियों शंकर वर्मा, सुरेश वर्मा, कमलेश वर्मा सहित 8 लोागें के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 149 और 302 के तहत रिपोर्ट लिखवा दी. लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मामले की जानकारी पा कर एसपी (प्रतापगढ़) सतपाल अंतिल, एएसपी (पश्चिमी) रोहित मिश्रा ने मौके का मुआयना किया. पीडि़त परिवार से मिल कर सारी जानकारी हासिल की तो मामले की तह में प्रेम प्रसंग की बात सामने आई.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए फौरन टीमें गठित कर कड़े निर्देश जारी कर दिए. पुलिस टीम को तीसरे दिन ही सफलता मिल गई. एसएचओ यादव ने पहली मार्च, 2023 को मुखबिर की सूचना पर देवीघाट पुल भुवालपुर के पास से एक अधेड़ महिला के साथ युवक को पकड़ लिया. पूछताछ में पता चला कि औरत खजांची वर्मा की पत्नी सपना (50) और युवक उस का बेटा संजय वर्मा (28) था. वे बनवीर काछनेखुआ निवासी हैं. उन्हें थाने ला कर पूछताछ की गई. थोड़ी सख्ती के बाद ही उन्होंने अभिनंदन मर्डर केस का खुलासा कर दिया. उन्होंने अभिनंदन सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम और अपराध से जुड़ी थी. उन की कहानी इस प्रकार निकली—

अधेड़ उम्र में सपना को हुआ प्यार

उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़ जिला राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों की गहमागहमी से भरा रहने वाला इलाका है. वहीं नेखुआ बनवीरकाछ गांव में मिश्रित आबादी है. उन में खजांची वर्मा का भी परिवार रहता है. उसी गांव में अभिनंदन सिंह (32) भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह 2 बच्चों का पिता भी था. दुबलेपतले कदकाठी का अभिनंदन खुशमिजाज और मिलनसार व्यक्तित्व का युवक था. वह सुखीसंपन्न परिवार से था. उस के खजांची के परिवार से भी अच्छे संबंध थे.

अभिनंदन की मुलाकात सपना से भी होती रहती थी. वह 50 की उम्र हो जरूर गई थी, लेकिन कदकाठी की वजह से 10 साल कम उम्र की दिखती थी. उस के बदन की कसक बरकरार थी. हर किसी के साथ गर्मजोशी के साथ मिलती थी. हंसहंस कर बातें करने और अपनी मनमोहिनी अदाओं से सब को लुभा लेती थी. अकसर जब वह हंसती थी, तब उस के चेहरे की रौनक और भी बढ़ जाती थी. खेती के काम में खेतों पर भी आतीजाती रहती थी.

गांव के कई युवा उसे प्यार से भाभी कह कर बुलाते थे. उन में अभिनंदन भी था. बात कुछ साल पहले की है, सपना खेतों से घर की ओर लौट रही थी, उस के सिर पर घास का गट्ïठर था. अचानक उसे सामने से अभिनंदन आता हुआ दिखा. गट्ïठर भारी था, सिर पर संभल नहीं रहा था. उस ने अभिनंदन से गट्ïठर नीचे उतारने के लिए मदद मांगी, ताकि थोड़ी देर पगडंडी पर बैठ कर सुस्ता ले. अभिनंदन ने उस की मदद की और सिर से घास का गट्ïठर उतार दिया. तभी वह थोड़ा लडख़ड़ा गई.

अभिनंदन ने उसे संभालते हुए पकड़ लिया. इसी दौरान उस का हाथ सपना के वक्षों से छू गया. सपना शरमा गई, लेकिन उस ने इस का जरा भी बुरा नहीं माना. अपना आंचल संभालती हुए मुसकरा दी. हालांकि ऐसा अभिनंदन से भी अनजाने में हुआ था. फिर उस ने जमीन पर बैठते हुए अभिनंदन को भी हाथ पकड़ कर बिठा लिया. अभिनंदन झिझकते हुए बैठ गया. थोड़ा सांस लेते हुए बोला, ‘‘बहुत भारी गट्ïठर था. इतना भारी मत लिया करो…गरदन में मोच आ सकती है.’’

“अरे क्या करूं, काम तो करना है. यह तो रोज का हो गया है.’’ सपना बोली.

“इस गट्ïठर के 2 बना दूं क्या?’’ अभिनंदन ने हमदर्दी जताई.

“अरे नहीं, थोड़ी देर बैठूंगी, उस के बाद सिर पर उठा देना…वैसे तुम कहां से आ रहे थे?’’ सपना बोली.

“कुछ काम के लिए बाजार चला गया था, वहीं से लौट रहा था.’’ अभिनंदन बोला.

“जब भी बाजार जाना हो तो मुझ से एक बार मिल लेना. मुझे भी कुछ मंगवाना होता है.’’

“तुम्हें बता दूंगा. कहो तो गट्ïठर सिर पर उठा कर रख दूं या घर तक पहुंचा दूं?’’ अभिनंदन का इतना कहना ही था कि सपना बोली, ‘‘क्या देवरजी, इतनी जल्दी जाने की क्यों पड़ी है. थोड़ी देर बैठते हैं. बाते करते हैं.’’

अभिनंदन उस के कहने पर वहीं बैठ गया. दोनों कुछ समय तक बैठे रहे. इधरउधर की बातें करते रहे. थोड़ी देर बाद अभिनंदन ने सपना के सिर पर गट्ïठर उठा दिया और लंबे कदमों से आगे बढ़ गया. सपना आवाज दे कर बोली, ‘‘शाम को घर पर आना तुम से कुछ काम है.’’

अवैध संबंधों की फैल गई बात

अभिनंदन को भी क्या सूझी शाम को सपना के घर जा धमका. सपना ने भी उस की खूब खातिरदारी की. जाने लगा तब हाथ में कुछ पैसे पकड़ाती हुई बाजार से अपने सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी. अभिनंदन लिस्ट खोल कर पढऩे लगा, लेकिन हैंडराइटिंग समझ में नहीं आई, तब उसे पढ़ कर बताने को कहा. सपना उस की हाथ से लिस्ट ले कर पढऩे लगी. उस में उस के कुछ निजी इस्तेमाल के सामान थे. अभिनंदन ने झेंपते हुए लिस्ट अपनी जेब में रख ली और चला गया.

पहले दिन की 2 मुलाकातों ने सपना और अभिनंदन के दिल के तार झनझना दिए थे. उन के दिल में एकदूसरे की भावनाओं ने थोड़ी जगह बना ली थी. उस के बाद से दोनों जब भी मिलते, उन की मुलाकातें काफी हसीन और रंगीन बातों से शुरू होती थीं. बातोंबातों जब कभी अभिनंदन सपना के रूपरंग और मादकता की तारीफ करता, तब सपना इठलाने लगती थी. मस्त अदा से मजाकिया अंदाज में जवाब देती और अभिनंदन खुश हो जाता था. दोनों बहुत जल्द ही काफी खुल गए थे. मौका देख कर अभिनंदन ने सपना के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिए.

सपना और शादीशुदा बालबच्चेदार अभिनंदन की उम्र में काफी अंतर था. अभिनंदन बांका युवक था, जबकि सपना अधेड़ उम्र की थी. दोनों यौन पिपासा से भरे हुए थे. बावजूद इस के दोनों को जब भी समय मिलता, 2 जिस्म एक जान हो जाया करते थे.

मां के प्रेमी का किया मर्डर

दोनों का मिलना दिनप्रतिदिन बढ़ता चला गया. नतीजा यह हुआ कि उन के इश्क के चर्चे गांव में एक कान से होते हुए दूसरे कान तक फैल गए. यह बात अभिनंदन और सपना के घरवालों के कानों तक भी जा पहुंची. फिर क्या था, अच्छाखासा विवाद खड़ा हो गया. वहीं दोनों का चोरीछिपे मिलना जारी रहा. इस की भनक जब खजांची और उस के बेटे संजय को लगी, तब वे बौखला गए. इस से निपटने के लिए दोनों ने एक गहरी साजिश रची.

उन्होंने सजिश के तहत ही 27 फरवरी, 2023 की रात अभिनंदन को सपना से फोन करवा कर बुला लिया. सपना भी बहुत बदनाम हो चुकी थी. वह भी अब अभिनंदन से पीछा छुड़ाना चाहती थी. उसे भी अपने पति और बेटे की साजिश की भनक लग गई थी. अभिनंदन सपना के बुलाने पर भागाभागा चला आया. घर वाले उस का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अभिनंदन आया, उस पर घर वालों ने मिल कर लाठी, डंडा, कुल्हाड़ी से वार कर दिया था, जिस से वह मरणासन्न हो गया था.

उसे ठिकाने लगाने की बात हो ही रही थी कि तभी गांव वालों को भनक लग गई थी और पुलिस मौके पर आ गई थी. पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर कुल्हाड़ी और डंडा, सफेद कपड़ा बरामद कर लिया गया. पुलिस ने दोनों मांबेटे को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायायिक हिरासत में ले कर जेल भेज दिया गया.

कहानी लिखे जाने तक पुलिस अन्य फरार हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी करने में जुटी हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

करोड़ों के लिए सीए की हत्या

नई नवेली दीपा ने सौतेले बेटे संग रची साजिश – भाग 3

दीपा को पता चल गया था कि बच्चे जयदेव सिंह से नफरत करते हैं, जबकि वह बच्चों पर अपना प्रेम लुटाती है. इस कारण ही वह उस के साथ भी गलत व्यवहार करता है. फिर भी उस ने बच्चों का खयाल रखने में कोई कमी नहीं आने दी. उन के लिए मनपसंद खाना बनाना, स्कूल को तैयार करना, उन के कपड़े धोना, घर की साफसफाई करना, उस की दिनचर्या में शामिल हो गया था. बच्चे भी दीपा से बहुत प्यार करने लगे थे.

दीपा के साथ दूसरी समस्या यह थी कि जयदेव उसे ले कर गलत धारणा रखता है. वह पत्नी पर शक करता था. वह उस पर बड़े बेटे के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा चुका था. इस आरोप से दीपा और हरनाम सिंह दोनों दुखी हो गए थे. जयदेव उन की बातें सुनने को राजी नहीं था. इस कारण ही दीपा की पिटाई कर देता था. उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहता था कि दीपा के उस के बड़े बेटे के साथ अवैध संबंध हैं.

शक होने पर लगवाए सीसीटीवी कैमरे

इस कारण ही जयदेव ने अपने घर पर सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए थे और उन्हें अपने मोबाइल फोन से जोड़ लिया था. जब वह ड्यूटी पर होता था, तब वह बीचबीच में अपने घर की गतिविधियों पर एक नजर मार लेता था. इस की खबर दीपा के बड़े भाई नीशू सिंह को मिली, तब वह अपने बहनोई के प्रति काफी आगबबूला हो गया. उस के बाद ही उस ने बहन के बचाव के लिए कुछ करने कसम खाई.

बात इसी साल अप्रैल महीने के पहले सप्ताह की है. जयदेव अपनी कीमती जमीन बेचने की योजना बना रहा था, दीपा उस का विरोध कर रही थी. यहां तक कि बच्चे भी नहीं चाहते थे कि जमीन बिके. बच्चों को पता था कि वह सब खेती की जमीन थी. वहीं से साल भर का अनाज आता था. बाजार से चावल, गेहूं और दाल का एक दाना नहीं खरीदा जाता था. अगर जमीन बिक गई तो वह सब नहीं आएगा.

हरनाम सिंह को यह मालूम था कि उस का बाप जमीन बेच कर सारे पैसे शराब में उड़ा देगा. दीपा के भाई नीशू ने जयदेव को ऐसा करने से रोकने के लिए मिल कर एक योजना बनाई. इस में दीपा और दोनों बेटों हरनाम व हरमिंदर सिंह को भी शामिल कर लिया.

घटना से 14 दिन पहले घर के सभी लोग एकदम शांत हो कर रहने लगे. जयदेव को पता चल गया कि जब वह ड्यूटी पर होता था, तब कुछ समय के लिए कैमरे बंद रहते हैं. उसे बच्चों और दीपा ने एहसास करवा दिया कि वह नाहक ही अपने बेटे और पत्नी पर शक कर रहा है.

दीपा ने हरनाम से कहा कि क्यों न जयदेव को ही खत्म कर दिया जाए. आज नहीं तो कल यह जमीनजायदाद बेच डालेगा और वे गरीब हो जाएंगे. जयदेव के मरने के बाद उस के बदले में बेटे या दीपा को जयदेव की जगह कोई नौकरी मिल जाएगी. उस के मरने पर जो पैसा मिलेगा, वह बाकी बच्चों के भविष्य के लिए काम आएगा. छोटी बेटी जासमीन की शादी के लिए भी फिक्स्ड डिपाजिट करवा दिया जाएगा.

सौतेले बेटे के साथ की पति की हत्या

योजना के अनुसार 5 मई, 2023 की शाम 6 बजे कांठ तहसील से जयदेव सिंह रोजाना की भांति अपने घर शराब पी कर आया था. घर आते ही उस ने फिर शराब पी. दीपा को जल्द खाना लगाने के लिए बोला. दीपा ने खाना लगा दिया. खाना खा कर जयदेव सो गया, तब दीपा का भाई नीशू सिंह, हरनाम सिंह रात होने का इंतजार करने लगे.  नीशू सिंह अपने साथ एक देशी तमंचा भी ले कर आया था. हालांकि उस के कारतूस नहीं होने के कारण उस का इस्तेमाल नहीं हो सका था. चारों ने मिल कर एक मोटे डंडे का इंतजाम किया.

5 मई की रात लगभग डेढ़ बजे वे नीचे आ गए. नीशू के हाथ में डंडा था. जयदेव ग्राउंड फ्लोर पर गहरी नींद में सो रहा था. दीपा का इशारा मिलते ही नीशू सिंह ने जयदेव सिर पर डंडे से हमला कर दिया. जयदेव करवट लिए सो रहा था. डंडे के हमले से जयदेव का सिर फट गया, लेकिन वह मरा नहीं था. यह देख कर दीपा और छोटे बेटे ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. दूसरी तरफ नीशू और हरनाम ने डंडे को गरदन पर रख कर पूरी ताकत से दबा दिया.

थोड़ी देर में ही जयदेव के प्राणपखेरू उड़ गए. पति की हत्या के बाद ही दीपा ने योजना के अनुसार बाहर आ कर शोर मचाना शुरू कर दिया था.

आरोपी दीपा कौर के बयान के आधार पर पुलिस ने दीपा के साथ भाई नीशू, दोनों बेटों हरनाम सिंह व हरमिंदर सिंह से विस्तार से पूछताछ कर दीपा व उस के भाई नीशू को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया. उन्हें 7 मई को मुरादाबाद की जिला कारागार भेज दिया गया. नाबालिग हरनाम व हरमिंदर को बाल सुरक्षा गृह भेज दिया गया.

पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर – भाग 5

दिल्ली सीपी शूटआउट 10 पुलिस वाले दोषी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बहुचर्चित कनाट प्लेस (सीपी) शूटआउट मामले में तत्कालीन एसीपी के एस.एस. राठी समेत 10 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया. घटना 31 मार्च, 1997 की है. सीपी में 2 बिजनेसमैन को यूपी का गैंगस्टर यासीन समझ लिया गया था. जिस पर उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. उस का एनकाउंटर कर दिया गया था. जांच होने पर पुलिस ने कहा था कि पहचान में गलती हो गई थी. बिजनेसमैन को उन्होंने जानबूझ कर नहीं मारा, बल्कि यासीन का पीछा करते हुए गलती से वारदात हुई. निचली अदालत ने सभी को बरी कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने 2009 में सभी दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था.

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लाखन भैया एनकाउंटर, 13 पुलिसकर्मी दोषी

मुंबई के लाखन भैया फेक एनकाउंटर मामले में सेशन कोर्ट ने 13 पुलिसकर्मियों समेत 21 लोगों को दोषी करार दिया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी. पुलिस ने दावा किया था कि 11 सितंबर, 2006 को उन्होंने अंधेरी इलाके में उस के द्वारा लाखन भैया (बदमाश) को मार गिराया था.

लाखन के भाई ने दावा किया था कि उसे अगवा कर फरजी एनकाउंटर की कहानी पुलिस ने गढ़ी और पुलिस कमिश्नर को भेजे गए फैक्स और टेलीग्राम सबूत के तौर पर पेश कर दिए. सेशन कोर्ट ने मामले में 21 लोगों को दोषी करार दिया और 13 पुलिसकर्मी समेत अन्य को उम्रकैद की सजा सुना दी थी.

पीलीभीत एनकाउंटर, सिख युवकों की हत्या पर सवाल

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी के पीलीभीत में 11 सिख युवकों को फरजी एनकाउंटर में मारने के आरोपी पुलिसकर्मियों को गैरइरादतन हत्या के मामले में दोषी ठहराया. इस में कुल 43 पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. घटना 12 जुलाई, 1991 की है. पुलिस का कहना था कि लडक़े आतंकी थे, लेकिन मामले की छानबीन सीबीआई ने की और एनकाउंटर को फरजी ठहराया.

एनकाउंटर के दिशानिर्देश

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनकाउंटर के संबंध में 2014 में एक दिशानिर्देश जारी किया जारी किया गया. उस के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-

  1. यदि जांच में यह पता चलता है कि किसी पुलिस अफसर के खिलाफ भादंवि के तहत मामला बनता है तो उसे तुरंत सस्पेंड कर अनुशासनात्मक काररवाई शुरू की जानी चाहिए.
  2. जब भी पुलिस को आपराधिक गतिविधि के बारे में गुप्त जानकारी मिले तो वह सब से पहले डायरी में उस की एंट्री करे. अगर मुठभेड़ में पुलिस की ओर से फायर आर्म का इस्तेमाल किया गया हो और किसी की मौत हो गई हो तो सब से पहले एफआईआर दर्ज किया जाना जरूरी है.
  3. एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच कराई जानी चाहिए. सीबीआई या दूसरे थाने की पुलिस द्वारा जांच किया जाए और जांच वरिष्ठ अधिकारी की देखरेख में हो.
  4. पीडि़त के कलर फोटोग्राफ खींचे जाएं. साथ ही मौके से खून, बाल और अन्य चीजों का सैंपल बना कर उसे सुरक्षित किया जाए. गवाह के बयान के साथ ही उस का पूरा पता और टेलीफोन नंबर लिया जाए.
  5. जिला अस्पताल के 2 डाक्टरों से मृतक का पोस्टमार्टम कराया जाए, विडियो रेकौर्डिंग की जाए. घटना में इस्तेमाल हथियार, बुलेट सुरक्षित रखे जाएं. एफआईआर की कौपी तुरंत कोर्ट भेजी जाए.

सरकारी टेंडरों ने बनाए कई गैंगस्टर्स

देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर और गैंगवार की कहानी जितनी पुरानी है, उतनी ही उस से सामाजिक, राजनीतिक दशा को प्रभावित करने वाली भी रही है. इस का मुख्य कारण प्रदेश में 4 लाख करोड़ के सरकारी ठेके से होने वाली बड़ी कमाई है. उन पर गैंगस्टर कब्जा करने के चक्कर में आपस में भिड़ जाते हैं तो कभी वे पुलिस एनकाउंटर के शिकार हो जाते हैं.

बाहुबली, दबंग, दबंगई और रंगदारी. माफिया, डौन, शूटर आदि नामों से कुख्यात गैंगस्टर की शब्दावलियां 70 के दशक से चर्चा में आने लगी थीं. वे सरकारी महकमे को अपनी दबंगई से कुचलने के अलावा राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते हैं और सामाजिक रुतबा हासिल कर जनता के दिलोदिमाग पर भी राज करने लगते हैं.

शहर की सडक़ों पर दिनदहाड़े गुंडागर्दी से ले कर मर्डर तक की घटनाएं गैंगस्टर के बीच उत्तराधिकार हासिल करने के लिए होती हैं, जो उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में काफी देखने को मिलती हैं. गलीमोहल्ले, खेतखलिहान से ले कर कोर्टकचहरी और भरी जनसभा आदि तक में गैंगस्टर, शूटर की हजारों वारदातें पुलिस फाइलों में दर्ज हैं. इन में ज्यादातर पैसा कमाने, पद पाने, रौबरुतबा कायम रखने और बदला लेने से संबंधित होते हैं. उन में कहीं गरीबी की कहानियां शामिल होती हैं तो कुछ मामलों में परिवार पर अत्याचार और अन्याय के चलते खूनखराबे की वारदातें हैं.

गैंगस्टर बनने की मुख्य वजहें प्रदेश में सरकारी ठेके और जमीनजायदाद पर कब्जा है. जमीन सेटलमेंट की जब बात आती है, तब गैंगस्टर सरकारी सिस्टम पर अपनी धाक बनाए रखने की हरसंभव कोशिश करते हैं. इस बीच जो भी आड़े आता है, उसे किसी भी कीमत पर हटा देते हैं. प्रदेश में विकास के लिए सरकारी ठेके को हासिल करना उन की पहली प्राथमिकता रहती है. जिन के पास जितने ज्यादा ठेके होते हैं, वह उतना बड़ा गैंगस्टर कहलाता है.

सडक़ बनाने से ले कर बालू निकालने तक या मछली पालने से ले कर रेलवे स्क्रैप तक, हर काम के लिए सरकारी ठेका जारी होता है. वह अनुमानित तौर पर सालाना 4 लाख करोड़ के होते हैं. देश में 2020- 21 में सरकारों ने कुल 17 लाख करोड़ रुपए से अधिक के काम के लिए ई टेंडर जारी किए थे. जिन में 22 फीसदी से ज्यादा उत्तर प्रदेश में थे. यूपी के लिए 3.83 लाख करोड़ रुपए.

यही सारे ठेके बाहुबली की ताकत तय करते हैं, जो उन की मरजी से खुलते हैं. हर बाहुबली या कहें माफिया डौन चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा सरकारी ठेके उसे और उस के चहेतों को मिलें. सरकारी ठेके को हासिल करने के लिए बाहुबलियों की दावेदारी बनी रहती थी. उन के दबदबे के आगे सरकारी दफ्तर के कर्मचारी नतमस्तक हो जाते थे. कुछ भय से तो कुछ बदले में भ्रष्टाचार की रकम ले कर.

इन दिनों वही ठेके औनलाइन तो हो गए, मगर सरकारें इन को अपराधियों और गैंगस्टर्स से मुक्त नहीं कर पाईं. उल्लेखनीय है कि विकास के लिए देश में किया जाने वाला हर काम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निजी कंपनियों को ठेका दे कर किया जाता है. चाहे जैसा भी काम छोटा या बड़ा हो, उस के लिए उस क्षेत्र से संबंधित कंपनियों से टेंडर आमंत्रित किए जाते हैं.

कंपनियां अपने हिसाब से उस काम की लागत, पूरा करने का समय और बाकी ब्यौरा टेंडर में देती हैं. संबंधित विभाग सभी टेंडर्स की जांच करता है और तय नियमों पर जिस कंपनी का टेंडर सब से खरा उतरता है, उसे ठेका दे दिया जाता है. आजादी के पहले से सरकारी निर्माण से ले कर खनन के सारे काम ठेके पर होते आए हैं.

आज भी हर तरह की सरकारी खरीद, खनन और निर्माण ठेके पर ही होते हैं. ये ठेके किसे दिए जाएंगे और कैसे दिए जाएंगे, ये पूरी प्रक्रिया शुरू से ही भ्रष्टाचार के घेरे में रही है. कभी मंत्रियों के प्रभाव, कभी अफसरों की मिलीभगत और कभी बंदूक के जोर पर ठेकों का फैसला होता रहा है.

90 के दशक से सरकार ने ज्यादातर ठेके ई टेंडर के जरिए देने शुरू कर दिए. इस के लिए सरकार ने औनलाइन प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनाया है. इन में ई टेंडर्स होते हैं, जिन में सब से बड़ी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की रहती है. टेंडर की पूरी प्रक्रिया में अपराधियों की दखलंदाजी बनी रहती है. बाहुबलियों का मानना है कि एक बार ठेका हाथ में आने के बाद सरकारी खजाने से पैसे पर कब्जा करना आसान हो जाएगा. इस पर वे नाममात्र का खर्च करते हैं. यह कहें कि 95 प्रतिशत पैसा हड़प लेते हैं.

पहले चुनाव में बाहुबल के इस्तेमाल के बदले अपराधियों को नेता ईनाम के तौर पर सरकारी ठेके दिलवाते थे. सरकारी ठेकों से होने वाली कमाई का हिस्सा उन्हें भी मिलता था. बाद में वही बाहुबली खुद राजनेता बनने लगे. उन्होंने इसे आय का मुख्य जरिया बना लिया. उत्तर प्रदेश में एक दौर ऐसा भी आया था, जब ठेकेदार और अपराधी एकदूसरे के पर्याय बन गए. उन्होंने ठेकों के हिसाब से खुद के या अपने करीबियों के नाम पर कंपनियां बना लीं. सरकारी दफ्तरों में मिलीभगत बढ़ा ली, ताकि पहले से टेंडर के जारी होने से ले कर उस के लिए जरूरी शर्तों की जानकारी हासिल करते रहें.

फिर शुरू हो जाता है बाकी कंपनियों को डराधमका कर टेंडर भरने से रोकना. इस क्रम में बाहुबली टेंडर खुलने के समय दबंगई से अधिकारियों को धमका कर अपनी ही कंपनी के नाम पर टेंडर खुलवाने का दबाव बनाते हैं. माना गया था कि ई टेंडर से ठेकों पर अपराधियों का प्रभाव कम हो जाएगा और वह अच्छी तरह से व्यवस्थित हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी होता नहीं दिख रहा है.

पहले टेंडर भरने के लिए सरकारी दफ्तर में लोग जाते थे. उन्हें रोकने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते थे. खूनखराबा होता था. अब ऐसा नहीं होता है. वे कहीं से भी उसे औनलाइन भर लेते हैं, जिस में उन की मदद सरकारी दफ्तर वाले करते हैं. किंतु बाहुबलियों का सामना फील्ड में तब होता है, जब किसी का टेंडर पास हो जाता है.

अपराधी यहीं इंतजार करते और आने वाले कंपनियों के प्रतिनिधियों का अपहरण, मारपीट और फिरौती के तौर पर ठेके की रकम का कुछ परसेंटेज लेना शुरू कर देते हैं.

बाहुबलियों के आतंक का यह बदला हुआ रूप है. उन का आतंक अब इस बात पर निर्भर करता है कि कौन अपने इलाके में अपनी कंपनी का औनलाइन टेंडर भरवाने और हासिल करने में सफल होते हैं. या फिर टेंडर भरने वाली हर कंपनी को भी यह मालूम है कि काम मिलने की स्थिति में उन्हें बाहुबली को चुपचाप उस का परसेंटेज देना होगा.

हैरान कर देने वाली बात यह है आज यूपी में सख्त फैसला लेने वाले जिस सीएम योगी की चर्चा होती है, 1970 के दशक में उन के शहर गोरखपुर में ही ठेके को ले कर फैसले लिए जाते थे. वहीं जमीन विवाद सुलझाने से ले कर ठेके तक की चर्चा होती थी. उन्हें नेताओं का संरक्षण मिला हुआ था. जिस वजह से स्थानीय पुलिस और प्रशासन चुप रहता था. यह तब की बात है जब पूरा देश जेपी आंदोलन में युवा सक्रिय थे.

इस दौर में राजनेताओं को युवाओं की ताकत का अहसास हुआ था. विश्वविद्यालयों में राजनीति की शुरुआत हो गई थी. गोरखपुर विश्वविद्यालय की राजनीति में जाति का प्रभाव अधिक होने के कारण ब्राह्मण और ठाकुर के खेमे आमनेसामने बने रहते थे. उस दौर में ब्राह्मण खेमे के अगुआ हरिशंकर तिवारी और ठाकुर खेमे के नेता रविंद्र सिंह होते थे. उन्हें केंद्र में बैठे नेताओं की शह मिली हुई थी.

हरिशंकर तिवारी खुद को ब्राह्मणों का नेता कहते थे. जबकि रविंद्र सिंह जनता पार्टी के टिकट पर 1978 में विधायक बन गए थे. उन की कुछ ही समय बाद ही 35 वर्ष की उम्र में हत्या हो गई थी. उस दौर में केंद्र में रेल मंत्री अकसर उत्तर प्रदेश से ही होते थे. इन नेताओं ने अपने चहेते छात्रनेताओं को ईनाम के तौर पर रेलवे स्क्रैप के ठेके दिलाना शुरू कर दिया था. ये रेलवे स्क्रैप के ठेके धीरेधीरे बाहुबलियों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गए थे.

गोरखपुर और आसपास के इलाके में 1970 से 80 के दशक में गैंगवार रोज की बात हो गई थी. रविंद्र सिंह के हत्यारों में गाजीपुर के एक तिवारी का नाम आया था. इस के बाद गोरखपुर में ब्राह्मण और ठाकुर गैंग बिलकुल आमनेसामने आ गए. ठाकुरों ने वीरेंद्र प्रताप शाही को नेता बना लिया था.

1980 के दशक की बात है, जब वीरेंद्र प्रताप शाही चुनाव प्रचार पर निकले थे. बताते हैं कि इस दौरान वह खुली जीप पर जिंदा शेर ले कर चलते थे. उन का चुनाव चिह्न भी शेर ही था. रविंद्र सिंह के खास रहे वीरेंद्र प्रताप शाही को ठाकुर खेमे ने अपना नेता मान लिया था. उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल’तक कहा जाता था. उस दौर में आए दिन सडक़ों पर गोलियां और बम चलते थे. इन गैंगवारों की वजह से ही गोरखपुर का नाम पूरी दुनिया में फैल रहा था. उस दौर में बीबीसी रेडियो पर भी गोरखपुर के इन खूनी किस्सों का प्रसारण होता था.

पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर – भाग 4

अतीक और अशरफ को जबजब थाने से बाहर दबिश या मैडिकल के लिए ले जाया गया, उस की आंखों में अजीब सा खौफ नजर आता था. जबजब थाने से अस्पताल और अस्पताल से थाने लाने के दौरान दोनों भाई एकदूसरे को सहारा दे कर पुलिस वैन से बाहर निकलते थे. अकसर अतीक पुलिस वालों का कंधा पकड़ कर पुलिस वैन से उतरता था.

योगी सरकार ने अतीक अहमद और उस के रिश्तेदारों की संपत्तियों पर बुलडोजर चला कर उस की आर्थिक रीढ़ को एक तरह से तहसनहस कर दिया था. इस से कट्ïटरपंथी जरूर खुश हो रहे थे, लेकिन आम लोगों की नजरों में बदले की राजनीति ही माना जा रहा था. लोगों का कहना है कि योगी को बुलडोजर ईमानदारी से प्रदेश के उन सभी माफिया, गैंगस्टरों की उन संपत्तियों पर भी चलाया जाना चाहिए, जो उन्ळोंने गलत धंधों से अर्जित कर रखी है. चाहे वह माफिया, गैंगस्टर किसी भी धर्म, जाति या राजनीति पार्टी के हों.

अतीक अहमद की लाइव हत्या करने के बाद भले ही उस के आतंक का खात्मा हो गया हो, लेकिन क्या  एनकाउंटर करने में वाहवाही लूटने वाली यूपी पुलिस उस के हत्यारों को कठोर सजा दिलवाने की पहल करेगी?

अतीक की बीवी भी है ईनामी गैंगस्टर

शाइस्ता परवीन डौन अतीक अहमद की बीवी का आतंक भी कुछ कम नहीं रहा है, उस पर भी 50 हजार रुपए का ईनाम है. वह पुलिस को चकमा देती रही है, जबकि पूरी यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार उस के पीछे लगी है.

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अतीक के जेल जाने के बाद शाइस्ता परवीन अपने पति के जुर्म की दुनिया को संभालने लगी थी. जिस वजह से लोग उसे भी लेडी डौन कहने लगे. बताते हैं कि किस तरह के काम के लिए क्या फैसला लेना है, क्या कदम उठाने हैं, जैसे- रंगदारी वसूलने के मामले में क्या रकम मांगनी है? उसे कैसे धमकी देनी है? फिरौती की रकम क्या रखनी है? किस सहयोगी को कहां फिट करना है? आदि बातें शाइस्ता ही तय करती है.

शाइस्ता का अतीक के साथ अगस्त 1996 में निकाह हुआ था. उन दिनों उस के पिता यूपी पुलिस में सिपाही हुआ करते थे. शाइस्ता पुलिस को चकमा देने में माहिर बताई जाती है. उस का बचपन पुलिस थाने और चौकियों में ही बीता है. उस के पिता का नाम फारुख है. वो पुलिस विभाग में सिपाही थे. थाना परिसर में ही उस का परिवार रहता था. बचपन में ही उस ने देखा था कि कैसे पुलिस किसी का पीछा करती है. कैसे कोई पुलिस को चकमा देता है. उसे ये सब कुछ बचपन में ही देखने को मिल चुका था. और निकाह के बाद उस की जिंदगी में जुर्म की नींव रखी शौहर अतीक अहमद ने.

शाइस्ता परवीन अपने मांबाप के साथ इलाहाबाद यानी प्रयागराज के दामुपुर गांव में रहती थी. पिता के साथ कई थानों में बने सरकारी पुलिस क्वार्टर में रही थी. शाइस्ता का बचपन और उस के बाद के कई साल प्रतापगढ़ में बीता था. वह 4 बहनें और 2 भाइयों में सब से बड़ी है. 2 भाइयों में से एक मदरसे में प्रिंसिपल है. शाइस्ता की पढ़ाईलिखाई प्रयागराज में हुई है. उस ने ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई की है.

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1996 में जब अतीक अहमद का राजनीति से ले कर जुर्म की दुनिया में बड़ा नाम हो चुका था, तब उस से शाइस्ता का परिवार रिश्ता ले कर गया था. दोनों के परिवारों में पहले से जानपहचान थी. शाइस्ता बोलने में तेजतर्रार और अतीक अहमद से ज्यादा पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस ने भी रिश्ता मंजूर कर लिया. अगस्त 1996 में दोनों की शादी हो गई थी. अतीक और शाइस्ता के कुल 5 बच्चे हैं. इन में से असद की मौत हो चुकी है. उस के बेटों के नाम अली, उमर अहमद, असद, अहजान और अबान हैं.

इसी साल जनवरी 2023 में शाइस्ता ने बसपा जौइन की थी. मीडिया रिपोर्ट में दावा है कि प्रयागराज में मेयर चुनाव के दौरान शाइस्ता को टिकट देने की बात सामने आई थी. लेकिन 24 फरवरी को उमेशपाल की हत्या में अतीक का नाम आने के बाद से मामला बिगडऩे लगा था. अब शाइस्ता खुद फरार हो गई. उस पर ईनाम घोषित हो गया. अतीक की हत्या के बाद अब बसपा ने शाइस्ता का नाम मेयर प्रत्याशी से हटा दिया.

हर एनकाउंटर पर लगते हैं आरोप

शायद ही कोई पुलिस एनकाउंटर ऐसा हो, जिस पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई हो. कुछ एनकाउंटर तो इतने विवादित हो चुके हैं कि वह अदालत तक जा पहुंचे. एक नजर ऐसे ही विवादित और न्यायिक जांच के दायरे में आए एकाउंटर पर डालें, जिस की चर्चा भी बहस का मुद्ïदा बनती रही है. सवालों के दायरे में आए ऐसे एनकाउंटर की असलियत को समझना तब काफी मुश्किल हो जाता है, जब वह न्याय के तराजू पर गलत होते हैं, लेकिन उसे व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा होता है.

ऐसा ही कुछ अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम के एनकाउंटर को ले कर हुआ. उस के मारे जाने पर पुलिस को  सरकार की तरफ से शाबासी मिली, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस मुठभेड़ की जांच करवाने की मांग कर दी. देश में एनकाउंटर का इतिहास रहा है, जिस में कई मामलों की न्यायिक समीक्षा की गई. उस के बाद अदालती फैसले ने सब को चौंका दिया. साथ ही अदालत ने कुछ दिशानिर्देश भी बना दिए.

हैदराबाद में रेप मर्डर के आरोपी

हैदराबाद के रेप मर्डर एनकाउंटर का मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा था. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमीशन बनाए थे. रिटायर्ड जज वी. एस. सिरपुरकर की अगुवाई वाले कमीशन की रिपोर्ट में 20 मई, 2022 को राज्य पुलिस के दावे को खारिज करते हुए पुलिस की कहानी को मनगढ़ंत करार दिया था. कमीशन का कहना था कि पुलिसकर्मियों ने मिल कर आरोपियों को मारने के इरादे से फायरिंग की थी.

जांच कमीशन की रिपोर्ट में सभी 10 पुलिसकर्मियों पर नीयत से हत्या का मुकदमा चलाने की सिफारिश की गई थी.  रिपोर्ट में कहा गया कि पुलिस ने मनगढ़ंत कहानी बनाई कि आरोपियों ने पुलिस की पिस्टल छीनी और फायरिंग की थी और सेल्फ डिफेंस में उन्होंने फायरिंग की.

यह मामला 2019 तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार का था. घटना हैदराबाद के शम्साबाद में 27 नवंबर 2019 को हुई थी, जिस में एक 26 वर्षीय डाक्टर के साथ बलात्कार किया गया था, जिस का आंशिक रूप से जला हुआ शव 28 नवंबर 2019 को शादनगर में चटनपल्ली पुल के नीचे पाया गया था.

विकास दुबे के एनकाउंटर में क्लीन चिट

यूपी पुलिस को विकास दुबे एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट की कमिटी से राहत मिल गई थी. इस की जानकारी 22 जुलाई, 2021 को यूपी के एडीजी (कानून-व्यवस्था) ने दी थी. कोर्ट ने आयोग की रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करने की अनुमति देने के साथ ही राज्य को आयोग की सिफारिश का पालन करने के निर्देश भी दिए. रिपोर्ट के अनुसार यूपी पुलिस के एनकाउंटर की ऐक्शन में कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी. यह जांच आयोग सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस बी.एस. चौहान की अगुआई में गठित किया था. एनकाउंटर का मामला 10 जुलाई, 2020 का था. विकास दूबे यूपी पुलिस के एनकाउंटर में मारा गया था.

एमबीए स्टूडेंट का एनकाउंटर फरजी

2 जुलाई को गाजियाबाद में शालीमार गार्डन में रहने वाला रणबीर सिंह दोस्त के साथ इंटरव्यू देने देहरादून गया था. किसी बात पर पुलिसकर्मी से उस की कहासुनी हो गई और इस के बाद पास के जंगल में ले जा कर पुलिस ने एनकाउंटर में मार डाला. पुलिस ने दावा किया कि उस ने बदमाश का एनकाउंटर किया है और पिस्टल की बरामदगी दिखाई. मृतक के पिता ने सीबीआई जांच की मांग की थी.

यह मामला मामला सीबीआई के पास गया और फिर इसे उत्तराखंड से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया. निचली अदालत ने 17 पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी थी. फिर हाई कोर्ट से 10 को बरी कर 7 को दोषी करार दिया गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.