एक दिन परवीन अपने 2 साथियों के साथ सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल पर 3 युवक आते दिखाई दिए. परवीन ने उन्हें रुकने का इशारा किया. लेकिन उन युवकों ने मोटरसाइकिल जरा भी धीमी नहीं की.
परवीन को समझते देर नहीं लगी कि इन का रुकने का इरादा नहीं है. वह तुरंत होशियार हो गई और मोटरसाइकिल जैसे ही उस के नजदीक आई, उस ने ऐसी लात मारी कि तीनों सवारियों सहित मोटरसाइकिल गिर गई.
तीनों युवक उठ कर खड़े हुए तो मोटरसाइकिल चला रहे युवक का कौलर पकड़ कर परवीन ने कहा, ‘‘मैं हाथ दे रही थी तो तुझे दिखाई नहीं दे रहा था?’’
‘‘मैडम, मैं थाना महू का सिपाही हूं. विश्वास न हो तो आप फोन कर के पूछ लें. मेरा नाम गुरुदेव सिंह चहल है. आज मैं छुट्टी पर था, इसलिए दोस्तों के साथ घूमने निकला था. यहां मैं डीआरपी लाइन में रहता हूं.’’ गुरुदेव सिंह ने सफाई देते हुए कहा.
युवक ने बताया कि वह सिपाही है तो परवीन ने उसे छोड़ने के बजाए तड़ातड़ 2 तमाचे लगा कर कहा, ‘‘पुलिस वाला हो कर भी कानून तोड़ता है. याद रखना, आज के बाद फिर कभी कानून से खिलवाड़ करते दिखाई दिए तो सीधे हवालात में डाल दूंगी.’’
अपने गालों को सहलाते हुए गुरुदेव सिंह बोला, ‘‘मैडम, आप को पता चल गया कि मैं पुलिस वाला हूं, फिर भी आप ने मुझे मारा. यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’
‘‘एक तो कानून तोड़ता है, ऊपर से आंख दिखाता है. अब चुपचाप चला जा, वरना थाने ले चलूंगी. तब पता चलेगा, कानून तोड़ने का नतीजा क्या होता है?’’ परवीन गुस्से में बोली.