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महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के थाना खकड़गंज के अंतर्गत आने वाली गुरुवंदन सोसायटी में रहने वाले डा. मुकेश चांडक के परिवार में पत्नी डा. प्रेमल चांडक के अलावा 2 बेटे ध्रुव और युग थे.

11 साल का ध्रुव छठवीं कक्षा में पढ़ता था तो 8 साल का युग तीसरी कक्षा में. मुकेश चांडक और प्रेमल चांडक दोनों ही दांतों के अच्छे डाक्टर थे, इसलिए उन की क्लिनिक भी बहुत अच्छी चलती थी.

उन की क्लिनिक भले ही सोसायटी से मात्र 5 मिनट की दूरी पर सैंट्रल एवन्यू रोड पर स्थित दोसर भवन चौराहे पर थी, लेकिन पतिपत्नी इतने व्यस्त रहते थे कि डा. मुकेश चांडक तो सुबह के गए देर रात को ही घर आ पाते थे, जबकि डा. प्रेमल को बच्चों को भी देखना होता था, इसलिए उन्हें बच्चों के लिए समय निकालना ही पड़ता था.

पति के अति व्यस्त होने की वजह से घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी डा. प्रेमल चांडक को ही निभानी पड़ती थी, जिसे वह बखूबी निभा भी रही थीं. पत्नी की ही वजह से डा. मुकेश चांडक निश्चिंत हो कर सुबह से ले कर देर रात तक अपनी क्लिनिक पर बैठे रहते थे. उन का भरापूरा परिवार तो था ही, ठीकठाक आमदनी होने की वजह से वह सुखी और संपन्न भी थे.

पढ़ालिखा परिवार था, इसलिए बच्चे भी अपनी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही होशियार और समझदार थे. दोनों भाई वाठोड़ा के सैंट्रल प्वाइंट इंगलिश स्कूल में पढ़ते थे. डा. प्रेमल चांडक को भले ही दोगुनी मेहनत करनी पड़ती थी, लेकिन वह भी खुश थीं. घर की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ वह क्लिनिक की जिम्मेदारी निभा रही थीं.

उस दिन डा. प्रेमल चांडक बच्चों के स्कूल से आने के समय क्लिनिक से घर लौट रही थीं तो सोसायटी के गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने जब उन्हें युग का स्कूल बैग थमाया तो उन्होंने गार्ड से पूछा, ‘‘युग कहां है?’’

‘‘शायद वह क्लिनिक पर गया होगा, क्योंकि बैग देते समय उस ने कहा था कि वह पापा के पास जा रहा है.’’ गार्ड ने कहा.

यह कोई नई बात नहीं थी. अक्सर वह सिक्योरिटी गार्ड को बैग दे कर क्लिनिक पर चला जाता था और वहां कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता था. इसलिए डा. प्रेमल ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया और यह सोच कर घर के कामों में लग गईं कि गेम खेल कर युग स्वयं ही समय पर घर आ जाएगा.

लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी युग घर नहीं आया तो डा. प्रेमल को हैरानी हुई. क्योंकि अब उन के भी क्लिनिक जाने का समय हो रहा था. युग जब क्लिनिक पर जाता था, उन के जाने के पहले ही आ जाता था. उन्होंने बड़े बेटे ध्रुव से उस के बारे में पूछा तो वह भी कुछ नहीं बता सका. बच्चा छोटा था, इसलिए प्रेमल घबरा गईं. उन्होंने पति को फोन किया तो पता चला कि युग वहां नहीं है.

डा. प्रेमल को लगा कि वह सोसायटी के अपने किसी दोस्त के यहां चला गया होगा. उन्होंने उस की तलाश सोसायटी में की. वह सोसायटी में भी नहीं मिला तो सोसायटी के गेट पर ड्यूटी पर तैनात सिक्योरिटी गार्डों से एक बार फिर उन्होंने उस के बारे में पूछा. वे भी युग के बारे में कुछ नहीं बता सके. जब युग का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन्हें घबराहट होने लगी.

बेटे के इस तरह अचानक गायब हो जाने से डा. प्रेमल रोने लगीं. यही हाल ध्रुव का भी था. बेटे के गायब होने की सूचना पा कर डा. मुकेश चांडक भी घर आ गए थे. उन्होंने सांत्वना दे कर पत्नी तथा बेटे को चुप कराया और खुद युग की तलाश में लग गए. उन का सोचना था कि छोटा सा बच्चा सोसायटी और क्लिनिक के अलावा और कहां जा सकता है.

डा. मुकेश चांडक के साथ घर के नौकर चाकर और सोसायटी के कुछ लोग भी युग की तलाश में लगे थे. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सब की घबराहट बढ़ती जा रही थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब युग के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो डा. मुकेश चांडक भी रो पड़े.

पूरी रात डा. मुकेश चांडक और उन के शुभचिंतक युग की तलाश करते रहे. जब इस तलाश का कोई लाभ नहीं मिला तो सलाह कर के तय किया गया कि अब पुलिस की मदद लेनी चाहिए. इस के बाद डा. मुकेश पत्नी और अपने कुछ शुभचिंतकों के साथ थाना लकड़गंज पहुंचे. थानाप्रभारी इंसपेक्टर एस.के. जैसवाल को युग का सारा विवरण दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी गई.

मामला हाईप्रोफाइल परिवार से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी इंसपेक्टर एस.के. जैसवाल ने तुरंत इस बात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. बच्चे की गुमशुदगी की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर के.के. पाठक और एडिशनल पुलिस कमिश्नर निर्मला देवी थाना लकड़गंज पहुंच गईं.

दोनों ही पुलिस अधिकारियों ने तत्काल नागपुर शहर के सभी थानों के थानाप्रभारियों को बुला कर मीटिंग की और जांच की एक रूपरेखा तैयार की. सिर्फ रूपरेखा ही नहीं तैयार की गई, बल्कि बच्चे की तलाश की जिम्मेदारी शहर के सभी थानों की पुलिस को सौंप दी गई. इस की वजह यह थी कि इस के पहले कुश कटारिया और हरेकृष्ण ठकराल की अपहरण कर के हत्या कर दी गई थी.

इस के बाद शहर में जिस तरह हंगामा होने के साथ पुलिस की किरकिरी हुई थी, वैसा कुछ पुलिस युग चांडक के मामले में नहीं होने देना चाहती थी. इसी वजह से शहर के सभी थानों की पुलिस, पुलिस अधिकारियों के निर्देशन में युग चांडक की तलाश में सरगर्मी से लग गई.

डा. मुकेश चांडक संभ्रांत और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत थी. इस बात की जानकारी उन के नौकरोंचाकरों को ही नहीं, सोसायटी में काम करने वाले अन्य नौकरों तथा सिक्योरिटी गार्डों को भी थी. इस से पुलिस को यही लगा कि डा. मुकेश के बेटे युग का अपहरण या तो फिरौती के लिए किया गया है या फिर किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उसे उठा लिया है.

वैसे ज्यादा संभावना यही थी कि किसी ने मोटी रकम वसूलने के लिए युग का अपहरण किया है. लेकिन जब तक फिरौती के लिए कोई फोन न आ जाए, तब तक इस बात पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता था. पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि अपहर्त्ता का फोन आ गया. उस ने युग को सकुशल रिहा करने के लिए डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए मांगे थे.

अपहरण का मामला सामने आते ही पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. इस के बाद सभी पुलिस अधिकारी अपनेअपने अनुभव के अनुसार अपने सहयोगियों के साथ मिल कर अपहर्त्ताओं के बारे में जानकारी जुटाने में लगे. लेकिन इस मामले में कामयाबी मिली थाना गणेशपेठ के थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार को. उन्होंने मात्र 12 घंटे में अपहर्त्ताओं को दबोच लिया था.

अपहर्त्ता का फोन आते ही थाना गणेशपेठ के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार सतर्क हो गए थे. उन्होंने अपने सहायक असिस्टैंट इंसपेक्टर अनिल ताकसंदे, प्रदीप नागरे, योगेश छापेकर, मधुकर शिर्कें, प्रवीण गोरटे, राजेश ताप्रे, नीलेश धैवट और किशोर ताकरे को मिला कर अपनी एक टीम बनाई और अपहर्त्ता की तलाश में निकल पड़े.

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