रविंद्र, विकास और आशीष ने सोना लूटने के लिए योजना तो अच्छी बनाई थी, जिस में वे कामयाब भी रहे. लेकिन अपराधी कितना भी सतर्क क्यों न हो, कोई न कोई भूल कर ही जाता है. रविंद्र और उस के साथियों से भी ऐसी भूल हुई और पकड़े गए.
अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 5 बजे थे. मोबाइल की रिंगटोन सुन कर गहरी नींद से जागे अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी की ओर देखने के बाद करवट बदल कर तकिए में मुंह गड़ा लिया. रविवार 22 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश की वजह से मीणा लंबी तान कर सोए हुए थे. नींद में खलल डालने वाली मोबाइल रिंगटोन के प्रति मीणा ने भले ही लापरवाही बरती, लेकिन जब रुकरुक कर बजने वाली रिंगटोन का सिलसिला थमता नजर नहीं आया तो उन का माथा ठनके बिना नहीं रहा.
तमाम अंदेशों से घिरे मीणा ने कौर्नर स्टैंड पर रखा मोबाइल उठा लिया. स्क्रीन पर उन के अधीनस्थ इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा का नंबर था. हैरानी और परेशानी में डूबते उतराते मीणा ने फोन कानों से सटा लिया, ‘‘हैलो.’’
दूसरी ओर की आवाज सुन कर उन का अलसाया चेहरा तन गया. हाथ से छूटते मोबाइल सैट को बमुश्किल थामते हुए उन के मुंह से अनायास निकल गया, ‘‘क्या कह रहे हो?’’ एकाएक उन की भौंहें सिकुड़ गईं. उन्होंने अटकते हुए कहा, ‘‘तुम होश में तो हो?’’
जवाब में मीणा ने दूसरी तरफ से जो कुछ सुना, वह उन के कानों में पिघला शीशा उडे़लने जैसा था. रामजीलाल कह रहे थे, ‘‘सर, आप के चैंबर के लौकर में रखे ढाई करोड़ के जेवर गायब हैं. वारदात बीती रात को हुई.’’