नब्बे के दशक के दौरान जब फिल्मों की आउटडोर शूटिंग का चलन बढ़ा तो एक नई दिक्कत फिल्मी सितारों की सुरक्षा की पेश आने लगी. ऐसा नहीं कि इस के पहले आउटडोर शूटिंग नहीं होती थी और फिल्म स्टार्स के चाहने वाले उन्हें देखने और छूने के लिए बेकाबू होने की हद तक बेताब नहीं रहते थे, बल्कि ऐसा पहले भी होता था. जहां भी फिल्मों की शूटिंग हो रही होती थी, वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ लग जाती थी.

प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के आंचलिक उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ के कुछ दृश्यों की शूटिंग जब मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में हो रही थी, तब फिल्म के हीरो राज कपूर और हीरोइन वहीदा रहमान को देखने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था.

साल 1966 में प्रदर्शित इस फिल्म का बड़ा हिस्सा बिहार के अररिया जिले के गांव औराही हिंगना में भी फिल्माया गया था. वहां भी लोग राज कपूर और वहीदा रहमान को रूबरू देखने के लिए उमड़ पड़े थे. तब आज की तरह गैजेट्स नहीं थे कि आप अपने हाथ में दबे मोबाइल की स्क्रीन पर फोटो और वीडियो जब चाहे देख लें.

तब फिल्मी सितारे या तो थिएटर में दिखते थे या फिल्म के पोस्टरों में. लेकिन उन के फोटो काट कर दीवार पर चिपकाना हो या सीने से लगाना हो तो वो मैग्जींस खरीदनी पड़ती थीं, जिन में इन के फोटो छपते थे.

‘तीसरी कसम’ की यूनिट को बिहार और मध्य प्रदेश दोनों जगह दिक्कतें पेश आई थीं. दिक्कतें इस तरह की कि राज कपूर और वहीदा रहमान को देखने के लिए कई जगह कालेज के छात्रों ने हुड़दंग किया था.

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