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परिवार बढ़ा तो जावेद ने स्वयं को पूरी तरह काम में डुबो दिया. उसे लगा कि काम अधिक होगा तो लाभ भी उसी तरह होगा. जावेद मोटर मैकेनिक था. सुबह 9 बजे घर से निकलता तो देर रात 8-9 बजे ही वापस घर लौटता था.

जब वह पूरे दिन काम में व्यस्त रहने लगा तो सिकंदर की बांछें खिल गईं. उस के लिए यह सुनहरा अवसर था, शहजादी के दिल में जगह बनाने का.

उस ने जावेद के घर में आवाजाही बढ़ा दी. जावेद की पत्नी शहजादी सिकंदर के हवास पर छाई थी और वह उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. जावेद की अनुपस्थिति में मौका पाते ही वह शहजादी के पास पहुंच जाता और उसे रिझाने का प्रयास करता.

उस दिन भी पूर्वाहन में सिकंदर शहजादी के घर पहुंचा तो वह हरी मटर छील रही थी. सिकंदर ने मटर के कुछ दाने उठाए और मुंह में डालते हुए बोला, ‘‘मटर तो एकदम ताजा और मिठास से भरी हुई है, इस का कौन सा व्यंजन बनाने जा रही हो?’’

‘‘तहरी बनाऊंगी,’’ शहजादी मुस्कराई, ‘‘सर्दी में आलूमटर की गरमागरम तहरी हरी मिर्च और लहसुन की चटनी से अच्छा व्यंजन कोई दूसरा नहीं होता.’’ वह सिकंदर की आंखों में देखते हुए बोली, ‘‘तहरी खाओगे?’’

‘‘भाभी, मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का पका स्वादिष्ट खाना खा सकूं.’’ सिकंदर मटर के दाने चबाता शहजादी के पास बैठ गया, ‘‘नसीब तो जावेद भाई का है, खाना भी टेस्टी मिलता है और पत्नी भी सुंदर व टेस्टी मिली है.’’ सिकंदर और शहजादी में देवरभाभी का रिश्ता था.

इस रिश्ते के चलते उन में स्वाभाविक हंसीठिठोली और नोकझोंक होती रहती थी. शहजादी ने भी मुस्करा कर पलटवार किया, ‘‘मुझ से शादी कर के तुम्हारे भाई ने किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी से शादी कर के किस्मत चमका लो.’’  फिर उस ने शोखी से मुसकरा कर बोली, ‘‘बीवी बनाने के लिए ऐसी लड़की चुनना जो खाना भी टेस्टी पकाती हो और खुद भी टेस्टी हो.’’

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