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संतोष ने पत्नी को मजबूरी में गांव भेज तो दिया था लेकिन उस के जाने के बाद वह भी परेशान हो गया था. अब उसे खाना खुद ही बनाना पड़ता था. काम में व्यस्त रहने से वह इतना थक जाता था कि कभी बिना खाना खाए ही सो जाता था.

उसे बच्चों की भी याद आ रही थी. स्कूल से भी खबर आ रही थी कि आखिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं? संतोष का मन करता कि वह बच्चों को ले आए, लेकिन पत्नी की चरित्रहीनता याद आते ही वह अपना विचार बदल देता.

जब गुडि़या को गांव से कानपुर आने का मौका नहीं मिला तो राजू संतोष को मनाने तथा उस से फिर से दोस्ती करने का प्रयास करने लगा. लेकिन संतोष उसे झिड़क देता था. एक दिन उस ने कह दिया, ‘‘तू आस्तीन का सांप है. अब मैं तेरे झांसे में नहीं आऊंगा. मैं ने तुझे भाई जैसा मानसम्मान दिया, पर तूने मुझे ही डंस लिया.’’

‘‘बड़े भैया, मुझे अपनी गलती का अहसास है. बस मुझे एक बार माफ कर दो, फिर ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा.’’

राजू ने बारबार मिन्नत की तो संतोष का दिल पसीज गया. फिर से दोस्ती बहाल हो जाने पर उस दिन दोनों ने दोस्ती के नाम पर फिर से जाम पर जाम टकराए. राजू ने अपनी कामयाबी की जानकारी गुडि़या को दी तो उस के मन में आस जगी कि संतोष अब उसे अपने पास बुला लेगा.

उन्हीं दिनों संतोष वायरल फीवर की चपेट में आ गया. राजू ही उसे अस्पताल ले गया. राजू ने संतोष को सलाह दी कि वह भाभी को बुला ले तो उस की सही तरीके से देखभाल हो जाएगी. संतोष ने पहले तो मुंह बनाया फिर कुछ सोच कर गुडि़या को फोन कर बताया कि वह बीमार है, अत: बच्चों के साथ जल्दी आ जाए.

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