कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बताया जाता है कि बाद में पारसराम ने अपनी दुकान बेच दी और दिन भर घर पर ही रहने लगे. वह घर में तनाव वाला माहौल रखते थे. इस से घर वाले और ज्यादा परेशान हो गए. पिता की आदतों को देखते हुए लाल कमल पत्नी को ले कर परेशान रहने लगा. घर में रोजाना होने वाली कलह से परेशान हो कर लाल कमल अपने भाई और पत्नी को ले कर पानीपत चला गया और इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस ने वहीं पर इनवेर्टर, बैटरी बेचने और मोबाइल रिजार्च करने की दुकान खोल ली. अब पारसराम के साथ पत्नी अनीता और बेटी निष्ठा ही रह गई थी.

पारसराम के पास करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इस के बावजूद वह बेटों को फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहने की वजह से निष्ठा को भी माइग्रेन का दर्द रहने लगा था. पारसराम ने बेटी का इलाज भी नहीं कराया. जब भी वह दर्द से कराहती तो वह उसे मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक दवा ला कर दे देते थे.

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में एक संत का आश्रम है. अनीता उस आश्रम में जाती थी. वहां उसे मानसिक शांति मिलती थी. आश्रम में ही वह सेवा करती, वहीं चलने वाले भंडारे में बखाना खाती और शाम को घर जाते समय पति और बेटी के लिए भी आश्रम से खाना ले जाती थी. पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद वह शाम को करीब 9 बजे घर लौटती थी. पारसराम ने उस से कह दिया था कि शाम का खाना वह आश्रम से ही लाया करे. इसलिए वह वहां से बेटी और पति के लिए खाना लाती थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 12 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...