मोनिका को नींद सताने लगी थी. रात काफी बीत चुकी थी. गुनगुनी सर्दी की शुरुआत थी. बाहों में सिहरन महसूस होने पर उस ने अपने कमरे में इधरउधर चहलकदमी करते पति से कहा, ''हरप्रीत वार्डरोब से चादर निकाल देना, हलकी हलकी ठंड लग रही है.’’

''अरे, खुद उठ कर निकाल लो न अपनी पसंद का! कौन सा चाहिए तुम्हें?’’ हरप्रीत बोला.

''तुम वहीं पर तो हो, कोई भी दे दो न यार! अब चादर में पसंद नापसंद की क्या बात है?’’ मोनिका बोली और बुदबुदाने लगी, ''पता नहीं क्या हो गया है इसे, हर बात को काटता रहता है.’’

''फिर बोली कुछ..? अपना काम खुद क्यों नहीं करती?’’ नाराजगी के साथ हरप्रीत बोला.

''अरे, तुम नाराज क्यों हो रहे हो, चादर ही तो मांगी है, कोई प्रौपर्टी नहीं मांग रही.’’

''प्रौपर्टी की बात कहां से आ गई अब? देखो, मेरा दिमाग खुद खराब चल रहा है, परेशान हूं... ऊपर से तुम ने प्रौपर्टी की बात छेड़ दी.’’ हरप्रीत बोला.

''चल, छोड़ यार! चादर मैं खुद ही निकाल लेती हूं. अब तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, मैं क्या जानूं?’’ मोनिका सांस खींचती हुई बोली. तब तक हरप्रीत कमरे से बाहर जाने लगा.

''बच्चे सो चुके हैं...रात भी अधिक हो रही है, मैं समझती हूं तुम्हारी बेचैनी. मम्मी और पापाजी से जो भी बात करनी है, कल दिन में आराम से कर लेना, अभी इतना बेचैन होने की क्या जरूरत है?’’ बेड पर अधलेटी मोनिका पास लेटे बच्चे का हाथ अपनी कमर से हटाती हुई बोली.

उस की पूरी बात सुने बगैर हरप्रीत कमरे से बाहर निकल गया. इसी बीच रसोई में बरतनों के जमीन पर गिरने की आवाजें आने लगीं.

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