बात 2007 की है. किसी बात को ले कर विनोद के छोटे भाई संजय का पुलिसकर्मियों से विवाद हो गया. शाहपुर थाने की पुलिस संजय को हिरासत में कौवा बाग पुलिस चौकी पर ले गई.
विनोद को जैसे ही पता चला कि भाई को पुलिस पकड़ कर ले गई है तो वह अपने साथ बड़े लावलश्कर को साथ ले कर कौवा बाग चौकी पहुंच गया और पुलिस के कब्जे से दबंगई के बल पर भाई को छुड़ा कर ले गया. पुलिस वालों के साथ मारपीट भी की.
इस मामले में विनोद और उस के भाइयों पर केस भी दर्ज हुआ. धीरेधीरे मामला राजनैतिक रूप लेने लगा, जिस के बाद विनोद उपाध्याय और संजय उपाध्याय को जेल जाना पड़ा.
अपराधी से राजनेता और फिर राजनेता से माफिया बन चुका था विनोद उपाध्याय. साल 2007 में हुई कैंट थानाक्षेत्र के पीडब्ल्यूडी कांड की याद जब आती है तो रूह अपने आप कांप जाती है. माफिया विनोद उपाध्याय और माफिया लालबहादुर यादव के बीच लोक निर्माण विभाग के ठेके को ले कर लंबे समय से तनातनी चल रही थी.
टेंडर वाले दिन टेंडर डालने को ले कर विनोद के साथियों का लाल बहादुर यादव के साथ विवाद हो गया था. धीरेधीरे मामला बढ़ता गया. मामला बढऩे पर लालबहादुर ने उपाध्याय के साथियों को घेर लिया. दोनों ओर से गोलियां चलीं.
विनोद उपाध्याय गिरोह पर माफिया लाल बहादुर यादव भारी पड़ा. इस गैंगवार में उपाध्याय के 2 करीबी साथी रिपुंजय राय और सत्येंद्र कुमार मौत के घाट उतार दिए गए. रिपुंजय की तो खोपड़ी ही उड़ गई थी. जिलाधिकारी आवास के पास हुई दिनदहाड़े हुई इस लोमहर्षक घटना के बाद पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी.