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दरअसल, उस रोज उत्तर प्रदेश पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली थी कि 50 हजार के ईनामी वांटेड क्रिमिनल धनंजय सिंह 3 अन्य लोगों के साथ भदोही-मिर्जापुर रोड पर बने एक पैट्रोल पंप पर डकैती डालने वाला है. पुलिस के लिए यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि तब धनंजय सिंह एक हत्या के आरोप में फरार चल रहा था और उस ने एक ऐसा गैंग बना बना रखा था, जो लूटपाट, डकैती, अपहरण, रंगदारी आदि को बड़ी आसानी से अंजाम दे देता था.

एनकाउंटर की वाहवाही में नप गए 34 पुलिसकर्मी

उस गैंग द्वारा 17 अक्तूबर, 1998 की रात में धावा बोलने की सूचना थी. पुलिस मौके पर पूरे दलबल के साथ पहुंच गई थी. गैंग के लोग भी आ गए. दोनों ओर से जम कर फायरिंग हुई. इस एनकाउंटर में साढ़े 11 बजे के करीब पुलिस ने सभी को मार गिराया. उस के बाद पुलिस ने दावा किया कि मारे गए 4 लोगों में एक धनंजय सिंह है.

यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. पुलिस को भदोही एनकाउंटर में बाहुबली धनंजय सिंह को मार गिराने की काफी वाहवाही मिली. किंतु पुलिस का यह दावा तब गलत साबित हो गया, जब कुछ महीने बाद फरवरी 1999 में धनंजय सिंह एक केस के सिलसिले में पुलिस के सामने आ धमका.

दरअसल, पुलिस के इस दावे के बाद धनंजय करीब 4 महीने तक अपनी मौत पर खामोश बना रहा. किंतु जब भदोही एनकाउंटर का सच सामने आया, तब सवाल उठा कि धनंजय की जगह पुलिस ने किस का एनकाउंटर कर दिया था? इस सवाल का जवाब इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से मिला. उस रिपोर्ट के अनुसार जिस दिन पुलिस ने वह एनकाउंटर किया था, उसी दिन भदोही में सीपीएम के कार्यकर्ता फूलचंद यादव ने शिकायत दर्ज करवाई थी. रिपोर्ट में लिखवाया था कि पुलिस जिसे धनंजय सिंह बता रही है, वह उन का भतीजा ओमप्रकाश यादव है.

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