क्यों बेटा बना Fashion Designer मां का कातिल

4 नवंबर, 2018 की बात थी. उस समय सुबह के करीब 9 बजे थे. मुंबई के उपनगर अंधेरी वेस्ट के थाना ओशिवारा के थानाप्रभारी को एक अहम खबर मिली. खबर देने वाले ने टेलीफोन पर थानाप्रभारी शैलेश पासलकर को बताया कि अंधेरी लोखंडवाला कौंप्लेक्स स्थित क्रौसगेट कोऔपरेटिव हाउसिंग सोसायटी लिमिटेड बिल्डिंग के बी विंग के फ्लैट नंबर 301 के अंदर कोई हादसा हो गया है. फ्लैट में एक महिला मृत पड़ी हुई है.

इस जानकारी को थानाप्रभारी शैलेश पासलकर ने गंभीरता से लिया. बिना देर किए वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. चूंकि घटना अंधेरी के पौश इलाके के कौंप्लेक्स की सोसायटी में घटी थी, इसलिए उन्होंने इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक ब्यूरो को भी दे दी. घटनास्थल ओशिवारा पुलिस थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. पुलिस टीम को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. 10 मिनट के अंदर पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. तब तक इस मामले की खबर पूरी सोसायटी में फैल चुकी थी और तमाम लोग वहां एकत्र हो गए थे.पुलिस टीम भीड़ को हटा कर बिल्डिंग की लिफ्ट से तीसरी मंजिल के फ्लैट नंबर 301 के सामने पहुंच गई. फ्लैट का दरवाजा बाहर से बंद था.

पूछताछ में सोसायटी के लोगों ने बताया कि कई सालों से उस फ्लैट में बौलीवुड की सुप्रसिद्ध मौडल और फैशन डिजाइनर सुनीता सिंह लाठर अपने बेटे लक्ष्य सिंह लाठर के साथ किराए पर रहती थी. उन के साथ अकसर उन के बेटे लक्ष्य सिंह लाठर की प्रेमिका और मंगेतर ऐशप्रिया बनर्जी भी आतीजाती थी. सोसायटी के लोगों के बताने और फ्लैट बाहर से बंद होने की वजह से थानाप्रभारी शैलेश पासलकर को मामला काफी रहस्यमय लगा. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर के दरवाजा तोड़ने का फैसला किया, तभी वहां पर सुनीता सिंह लाठर का बेटा लक्ष्य सिंह लाठर आ गया.

उस ने बताया कि वह मंदिर गया था और उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. पुलिस अधिकारियों की तरह उस ने भी कई बार फ्लैट की कालबेल बजाने के बाद अपनी चाबी से दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब पुलिस टीम फ्लैट के अंदर गई तो वहां की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. हौल के बीचोंबीच फैशन डिजाइनर सुनीता सिंह लाठर का शव पड़ा था. उस के शरीर पर हाफ टी शर्ट और हाफ लैगी थी. सिर पर एक गहरा घाव था, जिस में से काफी खून बह चुका था.

अपनी मां सुनीता सिंह लाठर को मृत देख लक्ष्य दहाड़ें मारमार कर रोने लगा. पुलिस टीम और पड़ोसी उसे सांत्वना दे रहे थे. पुलिस टीम घटनास्थल का निरीक्षण कर के हादसे के बारे में पूछताछ कर ही रही थी कि डीसीपी मनोज शर्मा, क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो जाने के बाद डीसीपी मनोज शर्मा ने घटनास्थल का बारीकी से जायजा लिया. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण उन्होंने जांच का दायित्व स्वयं संभाला. उस समय थानाप्रभारी शैलेश पासलकर को केस से संबंधित आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वह वापस लौट गए.

थानाप्रभारी शैलेश पासलकर ने क्राइम ब्रांच टीम के साथ मिल कर घटनास्थल का मुआयना किया. मृतक सुनीता सिंह लाठर के शव को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले के कूपर अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस टीम थाने लौट आई. केस की जांच आगे बढ़ाने के लिए पुलिस सुनीता सिंह लाठर के मौडल बेटे लक्ष्य सिंह लाठर को थाने ले आई.

पिता की आत्मा ने मारा मां को

पुलिस अफसरों ने मौडल लक्ष्य सिंह लाठर के बयान पर केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. लक्ष्य सिंह लाठर ने अपने बयान में बताया कि उस की मां सुनीता सिंह लाठर की मौत की वजह उस के मृतक पिता की आत्मा है, जो कभी भी उन के ऊपर हावी हो जाती थी. जिस की वजह से वह मानमर्यादा सब भूल जाती थी. अजीबअजीब सी हरकतें करने लगती थी.

कभी वह उस से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहती तो कभी शराब और ड्रग्स के नशे में उस से पैसों और कई चीजों की मांग करती थी, जो उस के लिए संभव नहीं था. घटना के समय वह घर में नहीं था. मां सुनीता सिंह ने रात को सोते समय ड्रग्स का हैवी डोज लिया था. सुबह बाथरूम में शायद वह अपने आप को संभाल नहीं पाई होंगी या फिर पिता की आत्मा का असर हुआ होगा. बाथरूम में गिर कर उन की मौत हो गई होगी.

मौडल लक्ष्य सिंह लाठर के इस बयान से पुलिस अफसर भी हैरान रह गए. वह मामले को जितना सीधा समझ रहे थे, दरअसल वह उतना सीधा नहीं था. जब उस की मां सुनीता सिंह लाठर पर पिता की मृत आत्मा का असर होता था. तब वह उस से मुक्ति पाने के लिए किसी न किसी बाबा की शरण में जाता था. हालांकि आत्मा जैसी बातों को पुलिस और कानून नहीं मानता. पुलिस अफसरों ने अपने सूत्रों से सुनीता सिंह लाठर की हत्या की कडि़यों को जोड़ा. रहीसही कमी पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुनीता सिंह लाठर की मौत को हादसा नहीं बल्कि हत्या बताया गया था.

सुनीता के शरीर पर मारपीट के निशान और गरदन पर गहरी चोट का निशान पाया गया था. इस के बावजूद लक्ष्य सिंह लाठर अपना गुनाह स्वीकार नहीं कर रहा था. वह 36 घंटों तक जांच अफसरों को नएनए रहस्यों में उलझाता रहा. पुलिस अफसरों के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह ड्रग एडिक्ट लक्ष्य सिंह लाठर से सख्ती से पूछताछ भी नहीं कर सकते थे. मृत्यु के समय सुनीता सिंह ने भी ड्रग का हैवी डोज लिया था.

मंगेतर ऐशप्रिया से की पूछताछ

इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने लक्ष्य सिंह की मंगेतर ऐशप्रिया बनर्जी और उस के मित्र निखिल को पुलिस ने थाने बुला कर पूछताछ की. इस पूछताछ में सुनीता सिंह मर्डर केस की कडि़यां खुद जुड़ती चली गईं. 45 वर्षीय मौडल और फैशन डिजाइनर सुनीता सिंह लाठर मूलरूप से हरियाणा के पानीपत के असंध रोड स्थित अग्रसेन कालोनी की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम रोहताश ढांडा था. वह पानीपत के जानेमाने कारोबारी थे, जिस की वजह से शहर में उन का काफी मानसम्मान और प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा देवेंद्र ढांडा और 2 बेटियां थीं. सुनीता सिंह लाठर भाईबहनों में सब से छोटी थी.

सुनीता सिंह लाठर पढ़ाईलिखाई में भी होशियार थी और खूबसूरत भी थी. सुनीता सुंदर होने के साथसाथ स्मार्ट और महत्त्वाकांक्षी थी. वह मायानगरी मुंबई की फैशन डिजाइनर बन कर अपना कैरियर और नाम रोशन करना चाहती थी. इस के लिए उस ने काफी मेहनत भी की. जब भी किसी मैगजीन में फैशन डिजाइनरों के बनाए कपड़ों में लिपटी मौडल को देखती तो उस की आंखों में भी वैसा ही सपना रूप लेने लगता था. वह भी बौलीवुड के उन डिजाइनरों में शामिल हो कर शोहरत की उन बुलंदियों पर पहुंचना चाहती थी, जिस बुलंदी पर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा, रोहित बल, नीता लुल्ला, मनीषा अरोड़ा, रितु कुमार और रितु बेरी थीं.

इस के लिए सुनीता ने पढ़ाई के साथसाथ फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के डिप्लोमा भी लिया. इस के पहले कि वह अपने पंखों को उड़ान दे पाती, उस की शादी करनाल के रहने वाले एक प्रतिष्ठित परिवार के युवक कुलदीप सिंह लाठर से कर दी गई.

गांव में पलीबढ़ी थी सुनीता सिंह

अपने परिवार और खानदान की इज्जत और मानमर्यादा का सम्मान करते हुए सुनीता सिंह अपने पति कुलदीप सिंह लाठर के साथ पारिवारिक महिला की तरह रहने लगी. देखतेदेखते वह 2 बच्चों की मां बन गई, जिस में एक लड़का था और एक लड़की. लेकिन इस के बावजूद उस के मन से बौलीवुड फैशन डिजाइनर का भूत नहीं उतरा था. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद सुनीता ने अपने आप को पूरी तरह फिट रखा था. देखने में वह 2 बच्चों की मां नहीं लगती थी.

सुनीता सिंह फैशन डिजाइनर और बौलीवुड का सपना शायद भूल भी जाती, लेकिन कुलदीप सिंह लाठर के व्यवहार ने ऐसा नहीं होने दिया. वह अकसर शराब के नशे में धुत रहता था. सुनीता सिंह ने उस की शराब छुड़ाने के लिए काफी कोशिश की. लेकिन वह इस में कामयाब नहीं हो सकी. आखिर में परेशान हो कर उस ने कुलदीप सिंह लाठर को ही छोड़ दिया. उसे छोड़कर वह अपने मायके आ गई. मायके में उस के भाई देवेंद्र ढांडा ने सुनीता सिंह की काफी मदद की और प्रोत्साहन भी दिया.

फलस्वरूप वह अपने बच्चों को कुछ दिनों के लिए मायके में छोड़ कर सन 2000 में मुंबई आ गई और फैशन डिजाइनिंग की दुनिया में अपने पैर जमाने की कोशिश करने लगी. शुरूशुरू में सुनीता सिंह को फैशन की दुनिया में अपने पांव जमाने में काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन धीरेधीरे मुंबई के टौप फैशन डिजाइनरों में उस का नाम शुमार हो गया. मुंबई में अपने पांव जमाने के बाद सुनीता अपने दोनों बच्चों को मुंबई ले आई. बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया. बौलीवुड में सुनीता लाठर के डिजाइन किए कपड़ों की मांग तो बढ़ी ही, साथ ही कुछ डिजाइनरों ने सुनीता को मौडलिंग का भी औफर दिया. सुनीता सिंह खूबसूरत और स्मार्ट तो थी ही, उस ने मौडलिंग के औफर भी स्वीकार कर लिए. अब वह फैशन डिजाइनर के साथसाथ मौडलिंग भी करने लगी.

एक कहावत है कि कभीकभी बिल्ली घी हजम नहीं कर पाती है. सुनीता सिंह लाठर का भी यही हाल हुआ. जिस समय उस के सितारे बुलंदी पर थे, तभी उसे ड्रग्स की लत लग गई थी. पति कुलदीप सिंह लाठर ने अपना रिश्ता सुधारने की कोशिश की लेकिन सुनीता ने उस की तरफ ध्यान नहीं दिया. इस की जगह सुनीता ने उसे अपने तलाक का नोटिस भेज दिया.

सुनीता ने पति से लिया तलाक

सन 2014 में सुनीता सिंह और कुलदीप सिंह का तलाक हो गया. कुलदीप सिंह अपने बच्चों को बहुत प्यार करता था. उन की जुदाई वह सहन नहीं कर सका. जिस शराब की वजह से उस का जीवन और घर बरबाद हुआ था, उसे छोड़ कर वह रेहान चला गया, उस ने डेढ़ साल का कोर्स कर के रिहैबिलिटेशन सेंटर में काउंसलिंग का काम करना शुरू कर दिया.

उस की अपनी अलग दुनिया बन गई थी लेकिन वह अपने बच्चों और सुनीता सिंह को भूल नहीं पाया था. जब वह किसी शो में सुनीता सिंह को देखता तो उस के दिल में एक हूक सी उठती थी. सुनीता सिंह इस सब से बेखबर थी. वह कुलदीप सिंह को अपनी जिंदगी से निकाल चुकी थी. साथ ही उस ने अपने बच्चों को बता दिया था कि उन का पिता मर चुका है.

उस ने पति की मृत्यु की आड़ ले कर बच्चों को बता दिया था कि उस पर उन के पिता की आत्मा आती है. इस के लिए वह नाटक भी करती थी. ऐसा वह ड्रग का ओवरडोज ले कर करती थी. जब वह नशे में होती थी तो सुनीता के बेटे लक्ष्य की प्रेमिका ऐशप्रिया बनर्जी और उस के मातापिता कहते थे कि वह काले जादू का प्रभाव है. वे लोग उसे किसी तांत्रिक के पास ले जाने की बात भी करते थे. सुनीता का बेटा लक्ष्य भी उन की बातों में आ गया था. वह भी अपने पिता को मरा समझ कर उन की बात पर विश्वास करने लगा था.

सुनीता सिंह लाठर के दोनों बच्चे जब अपनी शिक्षा पूरी कर के लौटे तो घर का माहौल उन के अनुकूल नहीं था. सुनीता सिंह का ड्रग्स एडिक्शन और घर के अंदर ड्रग्स पार्टी सुनीता सिंह की बेटी को रास नहीं आई. वह मां से अलग हो कर अपने नानानानी के साथ पानीपत में रहने लगी, जिस के कारण वह इस सब से बच गई थी. यह तो सभी जानते हैं कि सूरज अगर सुबह को निकलता है तो शाम को अस्त भी हो जाता है. यही हाल बौलीवुड का भी है. फिल्म इंडस्ट्री में किस का अस्तित्व कम या खत्म हो जाए, कहा नहीं जा सकता. ड्रग्स और शराबशबाब के नशे में सुनीता सिंह कुछ इस तरह डूबी कि उस की सारी चमक फीकी पड़ गई.

उस का काम लगभग बंद सा हो गया था. धीरेधीरे उस की आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी थी. अपने घर की स्थिति सुधारने के लिए सुनीता ने अपने बेटे लक्ष्य सिंह को मौडलिंग के क्षेत्र में उतार दिया था.

लक्ष्य सिंह भी बन गया मौडल

23 वर्षीय लक्ष्य सिंह लाठर सुंदर और स्वस्थ युवक  था. वह मौडलिंग के क्षेत्र के लिए किसी भी मायने में कम नहीं था. लेकिन जिस की जड़ें मजबूत न हों, वह भला कितना मजबूत हो सकता है. मां के फैशन डिजाइनर और मौडलिंग में माहिर होने के कारण लक्ष्य को मौडलिंग में काफी लाभ मिला. उसे अभिनेता रणधीर कपूर और फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने काफी सहयोग दिया.

मौडलिंग का यह सूरज धीरेधीरे ऊपर चढ़ ही रहा था कि घर के माहौल और वातावरण ने उसे भी अपनी चपेट में ले लिया. वह प्रतिबंधित ड्रग्स लेने लगा. इस ड्रग्स का इस्तेमाल यौन संबंधों और बौडी बनाने के लिए किया जाता है. ऐसे ही माहौल के एक रेव पार्टी में लक्ष्य की मुलाकात ऐशप्रिया बनर्जी और निखिल से हुई. निखिल मुंबई का रहने वाला था, जबकि ऐशप्रिया बनर्जी का परिवार बंगाल का था, जो जादूटोना और काला जादू जैसी बातों पर विश्वास करता था.

रेव पार्टी में जब ये तीनों मिले तो यह एकदूसरे के गहरे दोस्त बन गए. लक्ष्य सिंह लाठर और ऐशप्रिया बनर्जी एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे, जिस की वजह से ऐशप्रिया अकसर लक्ष्य सिंह लाठर के घर आनेजाने लगी थी. ऐशप्रिया बनर्जी के व्यवहार और प्रेम को देख कर सुनीता सिंह ने उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था.

मांबेटे हो गए ड्रग एडिक्ट

सुनीता सिंह लाठर की तरफ से रास्ता साफ होने के कारण ऐशप्रिया बनर्जी अधिकतर सुनीता के फ्लैट में लक्ष्य के साथ रहने लगी. कभीकभी उस का दोस्त निखिल भी वहां पहुंच जाता था. लक्ष्य अपने इन दोस्तों के साथ अपने फ्लैट में जम कर ड्रग्स की पार्टी करता था, जिस में सुनीता सिंह लाठर भी शामिल हो जाती थी. इस पार्टी में किसी तरह का भेदभाव या मर्यादा नहीं होती थी.

सुनीता सिंह लाठर बेटे लक्ष्य के साथ पूरी तरह ड्रग एडिक्ट हो गई. सारा काम भी चौपट हो गया. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. यह सुन कर कुलदीप सिंह लाठर दुखी हुआ. उस ने सुनीता सिंह को फोन कर के समझाते हुए कहा, ‘‘ड्रग्स का नशा ठीक नहीं है. इसे छोड़ दो. अगर तुम्हें मुझ से कोई सहयोग चाहिए, तो मैं तैयार हूं. अब मैं नशामुक्ति केंद्र में ही काम करता हूं.’’ लेकिन सुनीता सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

लक्ष्य बौलीवुड में मौडलिंग का एक नया चेहरा था, मगर ड्रग्स की चपेट में आ जाने के कारण वह उतनी कमाई नहीं कर पा रहा था, जितनी कि उस के परिवार को जरूरत थी. इसे ले कर सुनीता सिंह काफी तनाव में थी. घटना की शाम 4 बजे लक्ष्य सिंह लाठर ने अपनी मंगेतर ऐशप्रिया बनर्जी और अपने दोस्त निखिल के साथ ड्रग्स की पार्टी की, जिस में उस की मां सुनीता सिंह भी शामिल थी. पार्टी के बाद लक्ष्य और सुनीता में आर्थिक तंगी और पैसों को ले कर विवाद हो गया, जिसे लक्ष्य बरदाश्त नहीं कर पाया.

मां की हत्या के बाद घबरा गया था लक्ष्य

पहले तो लक्ष्य सिंह ने मां को काफी समझाया लेकिन जब वह नहीं मानी तो लक्ष्य को क्रोध आ गया. उस ने मां को मारापीटा. उस के बाद उसे बाथरूम में जोर का धक्का दे कर बाथरूम का दरवाजा बाहर से लौक कर दिया. इस के बाद वह अपने दोस्तों के साथ फ्लैट से बाहर निकल गया. रात को वह काफी देर से आया और आ कर अपने बैडरूम में सो गया. सुबह जब उस ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो देखा कि उस की मां बाथरूम में मरी पड़ी है. बाथरूम में जोर से धक्का देने के कारण उस का सिर नल से टकरा गया था और उस की मौत हो गई थी. लेकिन वह यह बात समझ नहीं पाया कि ड्रग्स के नशे में उस ने मां के साथ कैसा व्यवहार किया.

उसे लगा कि रात में उस के पिता की आत्मा आई थी, जिस ने मां को बेहोश कर दिया था. यह सोच कर वह भाग कर पास के ही एक बाबा को लाया और बाबा को अपनी मां सुनीता सिंह को दिखाया. बाबा सुनीता सिंह को देखते ही यह कह कर चला गया कि उन्हें बाबा नहीं डाक्टर की जरूरत है. तब घबरा कर लक्ष्य ने एंबुलेंस बुलाई, मगर एंबुलेंस ने सुनीता को अस्पताल ले जाने से मना कर कहा कि मामला अब पुलिस का है, क्योंकि उस की मौत हो चुकी है. मां सुनीता सिंह की मौत और पुलिस का नाम सुनते ही लक्ष्य के होश उड़ गए.

एंबुलेंस के लौट जाने के बाद लक्ष्य दत्त मंदिर गया, वहां अपने किए गुनाहों की माफी मांगी. इस के बाद उस ने अपने दोस्तों की राय ले कर यह बात एक ज्वैलर को बताई ताकि वह कोई मदद कर सके. इस के पहले कि उस के दोस्त उस की मदद के लिए पहुंच पाते, ज्वैलर ने मामले की खबर ओशिवारा पुलिस को दे दी. पुलिस अफसरों ने लक्ष्य सिंह और उस के दोस्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद लक्ष्य के खिलाफ भादंवि की धारा 304 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया और उसे गैरइरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

सुनीता सिंह की अपने बेटे द्वारा हत्या का समाचार कुलदीप सिंह लाठर को मिला तो वह भी मुंबई पहुंच गया. वह जब अपने बेटे से मिलने पुलिस थाने पहुंचा तो पुलिस अधिकारी उसे देख कर चौंके. इतने सालों के बाद जब लक्ष्य के पिता उस के सामने आए तो वह भी चौंका. लेकिन फिर पहचान कर उन के गले लग कर रोया. मृत पिता की आत्मा और काला जादू के विषय में जब पुलिस अधिकारियों ने लक्ष्य से पूछा तो उस ने बताया कि उस की मां ने तो उसे यही बताया था कि उस के पिता की मौत हो चुकी है और उन की आत्मा जबतब उस पर सवार हो जाती है.

उस के पिता कुलदीप सिंह लाठर ने भी पुलिस को यही बताया कि सुनीता ने बच्चों को यही जानकारी दी थी कि पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. वह अपने ऊपर आत्मा सवार होने का ढोंग किया करती थी. ऐसा शायद वह ड्रग्स लेने का शौक पूरा करने के लिए करती थी. बहरहाल, लक्ष्य सिंह लाठर के पिता ने उसे धीरज बंधा कर कहा कि वह उस की जल्द जमानत कराने की कोशिश करेंगे. कथा लिखे जाने तक लक्ष्य भायखला की आर्थर रोड जेल में बंद था.

Gangster : बनने के लिए किए 4 मर्डर

27अगस्त, 2022 की रात को मध्य प्रदेश के सागर जिले के कैंट थाना टीआई अजय कुमार सनकत को सूचना मिली कि भैंसा गांव में ट्रक बौडी रिपेयरिंग कारखाने में चौकीदार की हत्या हुई है. सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान पता चला कि भैंसा गांव का 50 साल का कल्याण लोधी कारखाने में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. सुबह जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस का बड़ा बेटा संजय उस की तलाश में कारखाने पहुंच गया.

कारखाने के बाहर लोगों की भीड़ और पुलिस देख कर उस के होश उड़ गए. पास जा कर देखा तो उस के पिता कल्याण का शव पड़ा हुआ था. पिता की लाश को देख कर वह चीखचीख कर रोने लगा. पुलिस ने उसे ढांढस बंधाते हुए बताया कि किसी हमलावर ने सिर पर हथौड़ा मार कर उस की हत्या कर दी है. मृतक कल्याण का मोबाइल भी उस के पास नहीं मिला था. घटनास्थल की सभी काररवाई पूरी कर के पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक के बेटे संजय लोधी की तरफ से हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस इस केस की जांच में जुट गई.

सागर पुलिस कल्याण लोधी के अंधे कत्ल की जांच कर ही रही थी कि 2 दिन बाद 29 अगस्त को सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में गवर्नमेंट आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के चौकीदार 60 साल के शंभुदयाल दुबे की हत्या हो गई. उस की हत्या सिर पर पत्थर मार कर की गई थी. घटनास्थल पर जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से एक मोबाइल मिला. पहले वह मोबाइल मृतक चौकीदार दुबे का माना जा रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि वह मोबाइल कैंट थाना क्षेत्र के भैंसा के कारखाने में मारे गए चौकीदार कल्याण लोधी का है.

इस आधार पर पुलिस अधिकारियों को इस बात का पूरा भरोसा हो गया था कि दोनों वारदातों के पीछे एक ही हत्यारे का हाथ होगा. दोनों अंधे कत्ल के खून की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि मोतीनगर थाना क्षेत्र के गांव रतौना में एक निर्माणाधीन मकान में चौकीदारी कर रहे 40 साल के मंगल अहिरवार पर जानलेवा हमला हो गया. मंगल की लाश के पास खून से सना फावड़ा मिला था, जिस के आधार पर माना जा रहा था कि मंगल की हत्या सिर पर फावड़ा मार कर की गई थी.

एक के बाद एक 3 वारदातों ने अमूमन शांत रहने वाले सागर शहर में दहशत का माहौल पैदा कर दिया था. हत्या करने वाले आरोपी का न कोई नाम था, न कोई सुराग. हत्याओं के पीछे का मकसद भी समझ नहीं आ रहा था. सुराग के नाम पर हाथ खाली थे, आरोपी को तलाशना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसी चुनौती थी. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल का शहर सागर वैसे तो झीलों और डा. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसे शैक्षणिक संस्थान के लिए जाना जाता है, लेकिन अगस्त महीने के आखिरी 4 दिनों में हुई 3 सिक्योरिटी गार्डों की हत्याओं से सुर्खियों में आ चुका था. सागर में हुईं ये हत्याएं रात के एक निश्चित समय और एक ही पैटर्न से की गई थीं.

हत्या में किसी तरह की लूटपाट और किसी खास किस्म के हथियार का इस्तेमाल भी नहीं किया था. हत्या की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी और न ही मरने वाले सिक्योरिटी गार्डों का आपस में कोई संबंध था. लिहाजा पुलिस का अनुमान था कि इन हत्याओं के पीछे किसी सीरियल किलर का हाथ हो सकता है.

पुलिस अधिकारियों की बढ़ गई चिंता

सागर जिले के एसपी तरुण नायक और एडिशनल एसपी विक्रम सिंह इन घटनाओं को ले कर खुद मोर्चे पर आ चुके थे. उन्होंने जिले की पुलिस फोर्स को मुस्तैद कर दिया था. एसपी तरुण नायक ने चौकीदारों की सिलसिलेवार हत्या की वारदातों को अंजाम देने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एएसपी विक्रम सिंह कुशवाहा, एएसपी ज्योति ठाकुर और सीएसपी (सिटी) के निर्देशन में पुलिस अधिकारियों की टीम बनाई. इस टीम में सिविल लाइंस टीआई नेहा सिंह गुर्जर, मोतीनगर टीआई सतीश सिंह, कैंट टीआई अजय कुमार सनकत, गोपालगंज टीआई कमलसिंह ठाकुर को शामिल किया.

एक के बाद एक हो रही चौकीदारों की हत्या को ले कर शहर में भी डर और दहशत का माहौल बन गया था. पुलिस रातरात भर गश्त कर पूरे शहर में तैनात सिक्योरिटी गार्डों को सचेत कर रही थी. तीनों घटनाओं से जुड़े लोगों से पूछताछ और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर पुलिस ने हत्यारे का स्कैच जारी कर शहर के लोगों को सावधान कर दिया था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती यह थी कि यदि एक व्यक्ति ही यह वारदात कर रहा है तो उस का अगला टारगेट अब कहां होगा. जैसेजैसे समय निकल रहा था, वैसेवैसे वारदात होने की आशंका बढ़ती जा रही थी.

पुलिस को किलर के अगली वारदात को अंजाम देने की चिंता ज्यादा थी. पुलिस टीमों ने शहर कवर कर लिया था, लेकिन टेंशन ग्रामीण इलाकों की थी. जांच के दौरान मिले साक्ष्यों और लोगों के अनुसार किलर का स्कैच जारी किया गया. इस के बावजूद आरोपी की न तो पहचान हुई और न ही उस के बारे में कोई सुराग मिल सका. चौकीदार शंभुदयाल दुबे की हत्या की वारदात के बाद आक्रोशित ब्राह्मण समाज ने मकरोनिया चौराहे पर परिजनों की मौजूदगी में शव रख कर प्रदर्शन किया. शव को सड़क से हटाने की कोशिश के दौरान युवा ब्राह्मण समाज प्रदेश अध्यक्ष दिनकर तिवारी व प्रदर्शनकारियों की अधिकारियों व पुलिस से तीखी बहस भी हुई.

आक्रोश बढ़ता देख डीएम दीपक आर्य एवं नरयावली विधायक प्रदीप लारिया मौके पर पहुंचे और दुबे के परिवार को 4 लाख रुपए की आर्थिक मदद स्वीकृत करने के आश्वासन के साथ ही तात्कालिक सहायता के रूप में 50 हजार रुपए की राशि भी उपलब्ध कराई. वहीं आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने का भी वायदा किया. तब जा कर मृतक के घर वाले लाश को सड़क से हटाने को तैयार हुए. काफी मानमनौवल के बाद चौकीदार शंभुदयाल दुबे का अंतिम संस्कार पुलिस बल की मौजूदगी में मकरोनिया के श्मशान घाट में किया गया.

भोपाल में मिली मोबाइल लोकेशन

तीसरे गार्ड की हत्या के बाद सागर से भोपाल तक हड़कंप मच गया. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सागर एसपी तरुण नायक से बात कर सीरियल किलर को जल्द पकड़ने के निर्देश दिए. लिहाजा पुलिस चारों तरह फैल गई. सीरियल किलर ने सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज में गार्ड शंभुदयाल को मार कर उन का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच औफ कर रखा था.  उधर, सागर पुलिस ने भी शंभुदयाल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. सागर शहर में नाकाबंदी कर पुलिस टीमें संदिग्ध की तलाश कर रही थीं.  पुलिस नाइट गश्त में लगी थी.

किलर ने पहली सितंबर, 2022 की रात 11 बजे चंद सेकेंड के लिए जैसे ही मोबाइल औन किया, पुलिस टीम के अधिकारियों के चेहरों पर चमक आ गई. मोबाइल की लोकेशन ट्रेस होते ही 10 सदस्यीय टीम बनाई और 2 कारों से उसे भोपाल रवाना किया गया. पुलिस टीम भोपाल तो पहुंच गई, मगर मोबाइल बंद होने की वजह से किलर को खोजना आसान काम नहीं था. भोपाल में साइबर सेल की टीम लोकेशन ट्रेस कर खजूरी थाना क्षेत्र में कई घंटों तक आरोपी की तलाश में इधरउधर भटकती रही.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे किलर ने एक बार फिर मोबाइल को औन किया. पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली.

सीरियल किलर चढ़ गया हत्थे

पुलिस टीम उस की तलाश में करीब सुबह 5 बजे जैसे ही लालघाटी पहुंची तो लाल कलर की शर्ट पहने करीब 19-20 साल का एक नौजवान संदिग्ध हालत में घूमता नजर आया. पुलिस ने उसे रोक कर पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शिवप्रसाद धुर्वे बताया. उस की तलाशी के दौरान पुलिस को शंभुदयाल का वही मोबाइल फोन मिल गया, जिस की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंची थी. पुलिस ने उसे दबोच लिया.

भोपाल से सागर ले जाने के लिए पुलिस उसे ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर पहुंची ही थी कि उस ने पुलिस को बताया कि थोड़ी देर पहले ही उस ने भोपाल में मार्बल दुकान में एक गार्ड की हत्या कर दी है. पुलिस को शिवप्रसाद के पास से भोपाल वाले गार्ड का भी मोबाइल फोन मिला. सागर पुलिस ने तुरंत ही भोपाल पुलिस के अधिकारियों को सूचना दी. खजूरी रोड पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो गार्ड सोनू वर्मा खून से लथपथ मिला. मरने वाला सिक्योरिटी गार्ड सोनू वर्मा था.

शिवप्रसाद ने पुलिस को बताया कि 1-2 सितंबर की दरमियानी रात करीब डेढ़ बजे खजूरी रोड स्थित गोराजी मार्बल की दुकान पर काम करने वाले गार्ड सोनू वर्मा की मार्बल के टुकड़ों से हमला कर हत्या की है. सोनू का परिवार मूलरूप से भिंड जिले का रहने वाला है. 2005 में उन का परिवार रोजगार के लिए भोपाल आ कर बस गया. भोपाल आ कर उस के पिता सुरेश वर्मा ने गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदार की नौकरी शुरू कर दी. उन के 4 बेटे और एक बेटी है. सोनू चौथे नंबर का था. कुछ महीने पहले ही सोनू के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी, जिस के बाद सोनू गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदारी करने लगा था.

25 साल का सोनू पांचवीं तक ही पढ़ा था. सोनू रात में चौकीदारी करता था. वह शाम 7 बजे ड्यूटी पर आता और सुबह 7 बजे घर जाता था. 12 घंटे की ड्यूटी के बाद उसे महीने के 5 हजार रुपए मिलते थे. घर चलाने के लिए सोनू दिन के समय पानी सप्लाई करने वाले टैंकर पर पार्टटाइम काम करता था. वहां काम करने के बाद उसे मुश्किल से 3-4 हजार रुपए मिलते थे. महीने में इस तरह दिनरात काम करने के बाद भी वह मुश्किल से 8-9 हजार रुपए ही कमा पाता था. सागर आ कर पुलिस अधिकारियों ने जब साइकोकिलर शिवप्रसाद से विस्तार से पूछताछ की तो उस ने चारों गार्डों की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

किलर शिवप्रसाद की गिरफ्तारी पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित पुलिस के आला अधिकारियों ने सागर पुलिस को बधाई दी. साथ ही सागर शहर के लागों ने भी राहत की सांस ली. 6 दिनों में हुई 4 सिलसिलेवार हत्याओं की वजह से चर्चा में आए सीरियल किलर की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

सागर जिले के केसला ब्लौक के केकरा गांव का रहने वाला 19 साल का शिवप्रसाद धुर्वे अपने पिता नन्हेलाल का छोटा बेटा है. उस का बड़ा भाई पुणे में मजदूरी करता है, जबकि 2 बेटियों की शादी हो चुकी है. नन्हेलाल के पास करीब 2 एकड़ जमीन है, जिस पर खेतीबाड़ी कर वह अपने परिवार की गुजरबसर करता है. शिवप्रसाद कुल 8वीं जमात तक ही पढ़ा है. वह बचपन से ही लड़ाकू प्रवृत्ति का था. स्कूल में पढ़ते समय गांव के लड़कों को छोटीछोटी बात पर पीट देता था. सभी से झगड़ते रहने के कारण गांव में किसी से भी उसकी दोस्ती नहीं  थी. मातापिता भी उस की हरकतों से परेशान रहने लगे थे.

2016 में 13 साल की उम्र में किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उस ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर दी, जिस की वजह से गांव के लोगों ने उस की पिटाई कर दी. उसी दौरान वह घर से भाग कर सागर आया और ट्रेन में बैठ कर पुणे चला गया. फिर वहां एक होटल में नौकरी करने लगा. शिवप्रसाद बीचबीच में होली, दीवाली पर एकदो दिन के लिए गांव आता था, लेकिन किसी से मिलताजुलता नहीं था. पुणे में एक दिन होटल मालिक के साथ किसी बात को ले कर विवाद हो गया तो शिवप्रसाद ने उसे इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

उस के खिलाफ पुलिस ने काररवाई कर  उसे बाल सुधार गृह भेज दिया था. बाद में उस के पिता नन्हेलाल आदिवासी उसे छुड़ा कर गांव ले आए. गांव में कुछ समय रहने के बाद वह गोवा चला गया था. गोवा में काम करतेकरते वह अच्छीखासी इंग्लिश बोलनेसमझने लगा. अभी हाल ही में रक्षाबंधन पर वह 7-8 दिनों के लिए गांव आया था, इस के बाद बिना किसी को कुछ बताए वह घर से चला गया. पिता नन्हेलाल को कभी भी उस ने यह नहीं बताया कि वह क्या काम करता है. मां सीताबाई भी उस से पूछती,  ‘‘बेटा, यह तो बता तू शहर में कामधंघा क्या करता है?’’

तो शिवप्रसाद कहता, ‘‘मां, तू काहे को चिंता करती है मैं ऐसा काम करता हूं कि जल्द ही मुझे लोग जानने लगेंगे.’’

मां यही समझ कर चुप हो जाती कि उस का बेटा अमीर आदमी बन कर नाम कमाने वाला है.

फिल्मों से प्रभावित हो कर बना किलर

सागर में 3 और भोपाल में एक सिक्योरिटी गार्ड्स की हत्या करने के आरोपी सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे फिल्में देखने का शौकीन था. फिल्में देख कर उस ने गैंगस्टर बनने की ठानी थी. वह बिना मेहनत किए पैसा कमा कर फेमस होना चाहता था. वारदात को अंजाम देने से पहले मोबाइल पर उस ने कई फिल्में और वीडियोज देखे.  सागर पुलिस को पूछताछ में उस ने बताया कि मध्य प्रदेश के उज्जैन के गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप को वह रोल मौडल मानता है और उस के जैसा बनने की चाहत उस के दिल में थी.

उस ने जल्द फेमस होने का सपना देखा और जुर्म की दुनिया में कदम बढ़ा दिए.   शिवप्रसाद दिन भर सोता रहता था और रात होते ही अपने शिकार की तलाश में निकल पड़ता था. चर्चित फिल्म ‘पुष्पा’ के पुष्पा की तरह वह साइकिल से चलता था. वह केसली से 65 किलोमीटर दूर सागर साइकिल से ही आया था. केकरा गांव से शिवप्रसाद साइकिल ले कर 65 किलोमीटर का सफर तय कर के  सागर पहुंचा था.

25 अगस्त को वह कोतवाली क्षेत्र के कटरा बाजार स्थित एक धर्मशाला में रूम ले कर रुका था. और यहां कैंट थाना क्षेत्र में 27 अगस्त की रात कारखाने में तैनात चौकीदार कल्याण लोधी (50) के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या कर दी. शिवप्रसाद भी पुष्पा की तरह गिरफ्तार होने के बाद पुलिस के सामने नहीं झुका, बल्कि उस ने विक्ट्री साइन दिखाया. उसे इन  वारदातों को ले कर किसी तरह का अफसोस नहीं था. इसी तरह ‘हैकर’ मूवी को देख कर शिवप्रसाद ने साइबर क्राइम सीखने की कोशिश की.

सागर में चौकीदार की हत्या के बाद आरोपी उस का मोबाइल ले कर भागा था और उस का पैटर्न लौक भी उस ने खोल लिया था. सीरियल किलर शिवप्रसाद वारदात को अंजाम देने के बाद दिन भर सोशल मीडिया के साथ खबरों पर पैनी नजर रखता था. सागर से भोपाल आने के बाद भी वह दिन भर इंटरनेट, मीडिया व खबरों पर नजर बनाए रखे था. इसी वजह से उसे पता चल गया था कि पुलिस किलर की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई है. वह भोपाल में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के आसपास घूमता रहा.

जब उस ने कल्याण लोधी का कत्ल किया तो उस के मोबाइल का सिम कार्ड फेंकने के बाद मोबाइल अपने साथ ले गया. सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के गार्ड शंभुदयाल को मार कर उस ने कल्याण का मोबाइल वहां छोड़ शंभुदयाल का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच्ड औफ कर रखा था. इधर सागर पुलिस ने भी शंभु के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. शिवप्रसाद ने पहली सितंबर की रात करीब 11 बजे मोबाइल चालू किया तो सागर पुलिस को लोकेशन पता चल गई. टीम भोपाल के लिए रवाना हो गई. सागर पुलिस भोपाल पहुंचती, इस से पहले शिवप्रसाद ने मोबाइल बंद कर दिया.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे शिवप्रसाद ने टाइम देखने के लिए एक बार फिर मोबाइल औन किया तो पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली. पुलिस ने तड़के उसे दबोच लिया.

खबरों पर रखता था कड़ी नजर

4 चौकीदारों की हत्या करने वाला सीरियल किलर 19 वर्षीय शिवप्रसाद वारदात के बाद इंटनरेट मीडिया व अखबारों पर पैनी नजर रखता था. वह वारदात के बाद सुबह ही अखबार पढ़ता. वहीं इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी वारदात को ले कर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर नजर रखता था. वारदात के पहले वह वहां की अच्छी तरह से पड़ताल करता और हत्या करते समय कोशिश करता कि उस का चेहरा सीसीटीवी कैमरे में कैद न होने पाए. सागर में हुई हत्या की ये वारदातें उस ने रक्षाबंधन के बाद अपने गांव केकरा से आ कर ही प्लान की थीं.

वह अपनी मां से बोल कर आया था कि वह बहुत जल्द नाम कमाएगा, इस के बाद उस ने सागर में 3 हत्याएं कर दीं. सागर के बाद उस ने अलगअलग जिलों में हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन भोपाल में एक अन्य चौकीदार की हत्या के बाद वह पकड़ा गया. शिवप्रसाद ने 27 अगस्त को भैंसा गांव के एक कारखाने में काम करने वाले 57 वर्षीय कल्याण सिंह के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या की. वारदात के बाद आरोपित कल्याण सिंह का मोबाइल अपने साथ ले आया. उस ने मोबाइल की सिम फेंक दी.

शंभुदयाल की हत्या के बाद शिवप्रसाद शंभुदयाल की साइकिल व मोबाइल अपने साथ ले गया और कटरा क्षेत्र के एक लौज में रुका. उस ने सुबह उठ कर सारे अखबार भी पढ़े और अपनी अगली रणनीति पर लग गया. 30 अगस्त की रात वह रतौना गांव पहुंचा और मंगल सिंह की हत्या कर दी, इस के बाद वह ट्रेन से भोपाल चला गया.

सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे को सागर पुलिस ने रिमांड पर ले कर जब पूछताछ की तो उस ने पुलिस को बताया कि 2016 में वह घर से निकला. पुणे, गोवा, चेन्नै, केरल समेत अन्य जगह मजदूरी की. उसे जल्द ही इस बात का आभास हो गया कि मजदूरी कर के पेट भरा जा सकता है, लेकिन ऐशोआराम हासिल नहीं हो सकते. अपराधियों को देख कर वह भी फेमस होने का सपना देखने लगा. उसे अपराध की दुनिया का रास्ता सब से आसान लगा. आरोपी इतना शातिर है कि रिमांड के दौरान वह पूछताछ के दौरान जरा भी नहीं घबराया और पुलिस को कई कहानियां सुनाता रहा.

आधुनिक हथियार खरीद कर बनना चाहता था गैंगस्टर

सीरियल किलर शिवप्रसाद ने बेबाकी से बताया कि उसे बेकसूर लोगों को मारने का मलाल तो है. उस के निशाने पर पुलिसकर्मी भी थे. उसे अफसोस भी है कि उस का सपना अधूरा रह गया. रिमांड पूरी होने के बाद उसे 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में उस ने इस बात को स्वीकार किया कि उस का अगला निशाना ड्यूटी के दौरान सोने वाले पुलिसकर्मी थे.

भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज में मनोरोग विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर और एचओडी डा. आर.एन. साहू ने इस प्रकार के बरताव को एक तरह का दिमागी रोग बताया है. उन का कहना है कि इस प्रकार के व्यक्ति की मानसिकता गड़बड़ रहती है. दिमाग में एक ही सोच आती है और वे बिना उद्देश्य के किसी को भी मार देते हैं. यह एक प्रकार का दिमागी रोग है, इस में आदमी के भीतर पैथोलौजिक चैंजेस आते हैं और कैमिकल इमबैलेंस हो जाता है. ऐसे में उन का व्यवहार असामान्य हो जाता है. सामान्य रूप से वे बाहर से तो ठीक दिखते हैं, इस कारण उन्हें पहचानना मुश्किल होता है.

ऐसे लोगों के व्यवहार को वही लोग ज्यादा समझते हैं, जो उन के नजदीकी रहते हैं. घर वाले, दोस्त या रिश्तेदार ही उन की मनोदशा को अच्छी तरह बता सकते हैं. ऐसे रोगी का समय रहते इलाज कराने के बाद ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है.

बहन की लाश को लटका कर दिया आत्महत्या का रूप

नाजिम और आयशा ने प्रेम ही नहीं किया, बल्कि निकाह की भी पूरी तैयारी कर ली थी. इस के लिए दोनों के मांबाप भी तैयार थे. लेकिन आयशा के भाई इमरान ने इस निकाह को रोकने के लिए जो किया, वह बिलकुल ही जायज नहीं था. उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर अपने कार्यालय में जैसे ही आ कर बैठे, एक बुजुर्ग उन के सामने आ कर खड़ा हो गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मोहम्मद आरिफ है. मैं दामूपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा 26 वर्षीय बेटा नाजिम 14 सितंबर की सुबह 10 बजे घर से काम पर जाने के लिए निकला था. शाम को वह घर नहीं लौटा तो मैं उस की तलाश करने लगा.

लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह 5 बजे गांव में शोर मचा कि सुमित पाल के बाजरे के खेत में एक लड़के की लाश पड़ी है. मैं ने वहां जा कर देखा तो वह मेरे बेटे नाजिम की लाश थी. उस में से बदबू आ रही थी. साहब, मैं उसी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

सुबहसुबह हत्या की खबर से थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर का दिमाग चकरा गया. उन्होंने स्वयं को संभाल कर मोहम्मद आरिफ से पूछा, ‘‘बता सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘जी मेरे ही गांव के मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान ने यह काम किया है. साहब, मेरा बेटा नाजिम उस की बहन आयशा से प्यार करता था. वह उस से निकाह करना चाहता था. जबकि इमरान को यह पसंद नहीं था.’’

आरिफ की सूचना पर थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने अपराध संख्या-520/2013 पर भादंवि की धारा 302/364/201 के तहत मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान तथा 2 अन्य  लोगों, इमरान के मौसेरे भाई उस्मान और दोस्त सुफियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपने साथ एसएसआई उमाशंकर यादव, एसआई जीतेंद्र बहादुर सिंह, एसआई (टे्रनिंग) संगीता सिंह तथा कुछ सिपाहियों को ले कर गांव दामूपुर के लिए रवाना हो गए. पुलिस बल के साथ इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर दामूपुर गांव के उस बाजरे के खेत पर जा पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश निर्वस्त्र थी. देखने से ही लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद उसे चाकुओं से भी गोदा गया था. यह हत्या भी कहीं दूसरी जगह की गई थी. उस के बाद लाश को यहां ला कर फेंका गया था. लाश से तेज दुर्गंध आ रही थी.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने दामूपुर गांव जा पहुंचे. लेकिन वहां कोई नहीं मिला. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर अभियुक्त इमरान की बहन आयशा, अम्मी परवीन बेगम तथा अब्बा इब्राहीम को पूछताछ के लिए थाने ले आए. पूछताछ में इब्राहीम और उन की पत्नी ने बताया कि न तो उन्होंने यह हत्या की है और न ही उन्हें हत्यारों के बारे में कुछ पता है. इस के बाद इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने आयशा को अलग ले जा कर पूछताछ की तो उस ने नाजिम से अपना प्रेमसंबंध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘मेरे भाई इमरान ने मेरी मौसी के बेटे उस्मान और दोस्त सुफियान के साथ मिल कर नाजिम की हत्या की है.

इमरान ने मुझ से निकाह करने का आश्वासन दे कर नाजिम को शनिवार की रात घर बुलाया. उसी रात तीनों ने नाजिम की गला दबा कर और चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. आधी रात के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया तो वे नाजिम की लाश को गांव के बाहर बाजरे के खेत में फेंक आए थे.’’

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इमरान के पिता इब्राहीम को रोक कर आयशा और उस की मां परवीन बेगम को घर भेज दिया था. यह 16 सितंबर की बात है. 19 सितंबर को सूरज ने अभी पूरी तरह आंखें खोली भी नहीं थी कि इब्राहीम के घर की महिलाओं के चीखचीख कर रोने की आवाज से पूरा गांव जाग गया. गांव वाले इब्राहीम के घर पहुंचे तो पता चला कि उस की बेटी आयशा ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. गांव वालों के कहने पर परवीन बेगम ने इस घटना की सूचना थाना धूमनगंज पुलिस को दी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर को परवीन बेगम की बातों पर कतई विश्वास नहीं हुआ. फिर भी उन्होंने उस के बताए अनुसार अपराध संख्या-529/2013 पर भादंवि की धारा 309 के तहत मुकद्दमा दर्ज करा कर साथियों के साथ दामूपुर स्थित इब्राहीम के घर जा पहुंचे.

आयशा की लाश मकान की पहली मंजिल बने कमरे में दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से रस्सी के सहारे लटक रही थी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश का निरीक्षण करने के दौरान देखा कि लटक रही लाश के पैर फर्श को छू रहे थे. शरीर पर 2 जगहों पर जले के निशान थे. कपड़ों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी. वहीं मिट्टी के तेल का डिब्बा भी पड़ा था. स्थितियों से यही लग रहा था कि पहले उस पर मिट्टी का तेल डाल कर जला कर मारने का प्रयास किया गया था. किसी वजह से इरादा बदल गया तो गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. उस के बाद लाश को रस्सी के सहारे लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया गया. पुलिस ने जब हत्या की शंका व्यक्त की लेकिन घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश को नीचे उतरवा कर आवश्यक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. अब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा थी. पोस्टमार्टम के बाद आयशा की लाश अंतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. इंसपेक्टर रामसूरत को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो उन का शक विश्वास में बदल गया, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयशा की मौत एंटीमार्टम इंजरी स्ट्रांगग्यूलेशन यानी गला दबा कर हत्या करना बता रही थी. इस बीच इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इस मामले में अपने मुखबिरों से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं. प्राप्त जानकारियों के अनुसार आयशा के भाई को उस रात गांव में देखा गया था. चर्चा थी कि आयशा नाजिम की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता कर मुख्य गवाह बन गई थी, इसीलिए उसे उस के भाई ने मार दिया था.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए थाना धूमनगंज पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए. परिणामस्वरूप 20 सितंबर को पुलिस ने इमरान के मौसेरे भाई उस्मान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद 28 सितंबर को आयशा का भाई इमरान भी पुलिस गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के अगले दिन उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इमरान और उस्मान ने नाजिम और आयशा की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह प्रेमसंबंध और औनर किलिंग की निकली. इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के गांव दामूपुर में मोहम्मद आरिफ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे. बेटों में नाजिम सब से छोटा था. वह मकानों में मार्बल लगाने का ठेका लेता था, जिस से वह अच्छीखासी कमाई कर रहा था. जबकि मोहम्मद आरिफ गांव में ही पान की दुकान चलाते थे.

इसी गांव के रहने वाले मोहम्मद इब्राहीम मोटर मैकेनिक थे. जीटी रोड चौफटका पर उस की अपनी दुकान थी. घर में पत्नी परवीन बेगम के अलावा 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. 18 वर्षीया आयशा तीसरे नंबर पर थी. एकहरे बदन की गोरीचिट्टी आयशा देखने में ठीकठाक लगती थी. आयशा के भाई इमरान की नाजिम से खूब पटती थी. उन की यह दोस्ती बचपन की थी. नाजिम का उस के घर भी आनाजाना था. इसी आनेजाने में आयशा को नाजिम कब पसंद आ गया, उसे खुद ही पता नहीं चला. नाजिम आयशा को 1-2 दिन दिखाई न देता तो वह बेचैन हो उठती. उस की आंखें नाजिम के दीदार को तड़पने लगतीं. जल्दी ही नाजिम को आयशा की इस तड़प का अहसास हो गया. यही वजह थी कि जिस आग में आयशा जल रही थी, उसी आग मे नाजिम भी जलने लगा. वह जब भी आयशा के घर आता, चाहतभरी नजरों से उसे देखता रहता.

ऐसे में ही किसी दिन आयशा और नाजिम को तनहाई में मिलने का मौका मिला तो दोनों के दिल की तड़प होठों पर आ गई. नाजिम ने आयशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आयशा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी चाहता है मैं तुम्हें हमेशा देखता रहूं.’’

‘‘नाजिम, मेरा भी यही हाल है.’’ आयशा उस के नजदीक आकर बोली, ‘‘मेरा भी मन करता है कि हर पल तुम्हें ही देखती रहूं, तुम से खूब बातें करूं, तुम्हारे साथ घूमूं. तुम मेरे दिलोदिमाग में रचबस गए हो. दिन में चैन नहीं मिलता तो रातों को नींद नहीं आती. बस, तुम्हारी ही यादों में खोई रहती हूं.’’

आयशा अपनी बात कह ही रही थी कि नाजिम ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. इस के बाद धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. गुपचुप तौर पर दोनों कभी घर में तो कभी घर के बाहर रात के अंधेरों में मिलनेजुलने लगे. आयशा जब भी नाजिम से मिलती, अपने प्यार की दुनिया बसाने का स्वप्न उस के सीने पर सिर रख कर देखती. आयशा नाजिम पर कुछ इस कदर दीवानी हुई कि एक दिन अपना सबकुछ उस के हवाले कर दिया. इस के बाद नाजिम ने उसे भरोसा दिलाया कि दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, लेकिन वह उसे इधर से उधर नहीं होने देगा. वह उसी से निकाह करेगा. प्यारमोहब्बत कोई छिपने की चीज तो है नहीं, यही वजह थी कि नाजिम और आयशा की मोहब्बत का भी खुलासा हो गया. गांव में उन की मोहब्बत की चर्चाएं होने लगीं.

यह खबर इब्राहीम और उस के बेटे इमरान तक भी पहुंच गई. बहन की इस करतूत से इमरान को आग सी लग गई. वह आयशा पर नजर रखने लगा. उस ने आयशा का घर से निकलना बंद करा दिया. इस के बाद उस ने नाजिम को भी धमकाया, ‘‘खबरदार, अब कभी आयशा से मिलने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

लेकिन नाजिम और आयशा की मोहब्बत इतनी गहरी हो चुकी थी कि इमरान की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई. किसी न किसी बहाने आयशा और नाजिम मिल ही लेते थे. ऐसे ही पलों में एक दिन आयशा ने कहा, ‘‘नाजिम, मेरे भाईजान इमरान को हमारी मोहब्बत पर सख्त ऐतराज है. वह नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. उन्होंने मुझ पर इतनी सख्ती कर दी है कि तुम से मिलना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. गांव में भी हमारी मोहब्बत के चर्चे आम हो गए हैं. वैसे मेरी अम्मी और अब्बू को हमारी मोहब्बत पर ज्यादा ऐतराज नहीं है. अगर तुम अपने अब्बू को निकाह के लिए मेरे अब्बू के पास भेजो तो बात बन सकती है.

नाजिम को आयशा की बात उचित लगी. उस ने आयशा को आश्वासन दिया कि घर पहुंचते ही वह अम्मीअब्बू से निकाह की बात करेगा. नाजिम ने कहा ही नहीं, बल्कि घर आते ही बात भी की. तब अगले ही दिन उस के अब्बू आयशा के अब्बू इब्राहीम से मिलने उन के कारखाने पर जा पहुंचे. उन्होंने उन से आयशा और नाजिम के निकाह की बात की तो पहले तो इब्राहीम ने मना कर दिया. लेकिन बाद में कहा, ‘‘देखो आरिफ भाई, मुझे तो इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इमरान इस निकाह के लिए तैयार नहीं होगा. फिर भी मैं घर में बात चलाऊंगा.’’

इमरान को जब पता चला कि आयशा के निकाह के लिए नाजिम के अब्बू उस के अब्बू के पास आए थे तो वह स्वयं को रोक नहीं सका और जा कर नाजिम से झगड़ा करने लगा. तब गांव के कुछ लोगों ने उसे समझाबुझा कर शांत किया. कहीं कुछ उलटासीधा न हो जाए, यह सोच कर गांव के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठा हो कर इमरान को समझाया कि नाजिम खाताकमाता है, आयशा भी बालिग हो चुकी है, इसलिए दोनों का निकाह करने में उसे परेशानी किस बात की है? कोई ऊंचनीच हो, इस से बेहतर है कि दोनों का निकाह कर दिया जाए. बुजुर्गों के सामने तो इमरान कोई विरोध नहीं कर सका, लेकिन दिल से वह इस निकाह के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयशा और नाजिम की मोहब्बत की उम्र 2 साल से अधिक हो चुकी थी. लाख कोशिश कर के भी इमरान आयशा और नाजिम को अलग नहीं कर सका. बुजुर्गों के समझाने के बाद नाजिम और आयशा को लगने लगा था कि अब उन का निकाह हो जाएगा. इस की वजह यह थी कि दोनों के अम्मीअब्बू राजी थे. बात सिर्फ इमरान की थी. उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन वह भी मान जाएगा. 15-20 दिनों तक इमरान ने भी विरोध नहीं किया तो आयशा और नाजिम को लगा कि अब सारी रुकावटें दूर हो गई हैं. जबकि आयशा ने जो किया था, उस से इमरान अंदर ही अंदर सुलग रहा था. वह किसी भी कीमत पर आयशा का निकाह नाजिम से नहीं होने देना चाहता था. इस के लिए जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने गुपचुप तरीके से साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने मौसेरे भाई उस्मान, जो बेगम बाजार, बमरौली का रहने वाला था तथा अपने दोस्त सुफियान को विश्वास में ले कर शामिल कर लिया.

पूरी योजना तैयार कर के इमरान ने 14 सितंबर, शनिवार को बहन से कहा, ‘‘आयशा, मुझे लगता है कि नाजिम तुझे खुश रखेगा. इसलिए तेरा निकाह उस से कर देना ही ठीक है. ऐसा करो, आज रात 9 बजे नाजिम को फोन कर के तुम घर पर बुला लो. निकाह कब और कैसे किया जाए, बात कर लेते हैं.’’

इमरान की बात सुन कर आयशा को यकीन नहीं हुआ. इसलिए उस ने कहा, ‘‘भाईजान, आप यह क्या कह रहे हैं?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ इमरान ने विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘जब घर के सभी लोग तैयार हैं तो मैं ही तेरी खुशी में टांग क्यों अड़ाऊं?’’

इमरान में बदलाव देख कर आयशा खुश हो उठी. उस ने कहा, ‘‘भाईजान, मैं अभी नाजिम को फोन किए देती हूं. वह काम से लौटते हुए सीधे अपने घर आ जाएगा.’’

इस के बाद आयशा ने अपने मोबाइल फोन से नाजिम को फोन कर के कहा, ‘‘नाजिम, आज काम से लौटते समय तुम सीधे मेरे घर आ जाना. इमरान भाई मान गए हैं. वह तुम से बात कर के निकाह की तारीख पक्की करना चाहते हैं.’’

आयशा ने अपनी यह बात पूरे विश्वास के साथ कही थी, इसलिए नाजिम ने हामी ही नहीं भरी, बल्कि ठीक समय पर वह उस के घर आ गया. इमरान उस से बड़ी आत्मीयता से मिला. नाजिम को उस ने ऊपर के कमरे में ले जा कर बैठा दिया. उस कमरे में पहले से ही उस्मान और सुफियान बैठे थे. नाजिम उन्हें जानता था, इसलिए उन से बातें करने लगा. नाजिम को नाश्ता भी कराया गया. इस के बाद निकाह कब और कैसे किया जाए, इस पर बातचीत होने लगी. रात 11 बजे तक निकाह के बारे में बहुत सी बातें तय हो गईं. इस के बाद इमरान ने कहा, ‘‘नाजिम, अम्मी तुम्हारे लिए भी खाना बना रही हैं, खाना खा कर जाना.’’

नाजिम को लगा कि अब सब ठीक हो गया है, इसलिए उस ने हामी भर ली. अब तक गांव में सन्नाटा पसर गया था. दिन भर का थकामांदा नाजिम लापरवाह चारपाई पर बैठा था, इसी का फादया उठा कर उस्मान और सुफियान ने अचानक नाजिम के हाथपैर पकड़ लिए तो इमरान ने झपट कर नाजिम का गला पकड़ लिया और दबाने लगा. छटपटा कर नाजिम ने प्राण त्याग दिए. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस पर चाकू से भी वार किए गए. इस के बाद रात में ही नाजिम की लाश गांव के बाहर बाजरे के खेत में बीचोबीच फेंक दी गई.

काम हो जाने के बाद सुफियान और उस्मान अपनेअपने घर चले गए. आयशा, उस की अम्मी और अब्बू तथा घर के अन्य लोग नाजिम की हत्या होते देखते रहे, लेकिन डर के मारे कोई विरोध नहीं कर सका. आयशा ने कुछ कहना चाहा तो इमरान चीख कर बोला, ‘‘खबरदार, अगर किसी ने कुछ भी बोलने या कहने की हिम्मत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. उस का भी वही हाल कर दूंगा, जो मैं ने नाजिम का किया है.’’

घर वालों को धमका कर इमरान उस कमरे में गया, जिस में उस ने नाजिम की हत्या की थी. उस की साफसफाई कर के सुबह से पहले ही घरवालों को बिना कुछ बताए वह भी फरार हो गया. 3 दिनों तक नाजिम के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला. 18 सितंबर को जब लाश से दुर्गंध आने लगी तो कुछ लोग खेत के भीतर यह देखने के लिए घुसे कि दुर्गंध किस चीज की आ रही है. तब नाजिम की हत्या का पता चला. मोहम्मद आरिफ की सूचना पर पुलिस इमरान और साथियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी तो दबाव बनाने के लिए इमरान के अम्मीअब्बू तथा बहन आयशा को थाने ले आई थी. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने इब्राहीम को थाने में रोक कर परवीन बेगम और आयशा को घर भेज दिया.

इमरान को साथियों से पता चल गया था कि आयशा ने नाजिम की हत्या की एकएक बात पुलिस को बता दी है. यही नहीं, वह अदालत में भी यह कहने को तैयार है कि नाजिम की हत्या उस के भाई इमरान ने अपने मौसेरे भाई उस्मान तथा दोस्त सुफियान के साथ मिल कर की है. आयशा चश्मदीद गवाह थी. अगर वह अदालत में गवाही देती तो इमरान और उस के साथियों को सजा निश्चित थी. इसलिए इमरान को लगा कि किसी भी तरह आयशा को रोका जाए. वह उसी रात छिपतेछिपाते घर आया और आयशा को समझाने लगा कि वह उस के खिलाफ गवाही न दे. लेकिन आयशा अपनी जिद पर अड़ी थी. क्योंकि उस के प्रेमी को मारा गया था. उस ने कहा, ‘‘दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, मैं अपनी बात से नहीं डिगूंगी. अदालत में मैं वही कहूंगी, जो मैं ने आंखों से देखा है.’’

इस के बाद इमरान को इतना गुस्सा आया कि उस ने तय कर लिया कि इसे मार देना ही ठीक है. उस ने मिट्टी के तेल का डिब्बा उठाया और उस पर तेल डालने लगा. आयशा जान बचाने के लिए चीखते हुए भागी. तब उसे लगा कि अगर उस ने आग लगाई तो यह शोर मचा देगी. शोरशराबा न हो, यह सोच कर उस ने आयशा को पकड़ा और अपने दोस्त जहीद की मदद से उस का गला दबा कर मार दिया. इस के बाद हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस ने आयशा की लाश को रस्सी का फंदा बना कर दरवाजे के ऊपर बने रोशानदान से लटका दिया और अपने साथी जहीद के साथ घर से भाग गया.

कथा लिखे जाने तक नाजिम की हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुफियान तथा आयशा की हत्या में शामिल जहीद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

Top 5 Love Crime Story : टॉप 5 लव क्राइम स्टोरी

Top 5 love Crime Story Of 2022 : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज   में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Crime story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका बनी भाभी तो किया भाई का कत्ल

नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’ मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी. मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

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2. भाई ने बहन को दोस्त के साथ रंगे हाथ पकड़ा तो दबा दिया तमंचे का ट्रिगर

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

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3. महिला को गैस नली लगाकर जला डाला जिंदा

अवैध संबंधों की राह बड़ी ढलवां होती है. दीपा ने इस राह पर एक बार कदम रखा तो वह संभल नहीं सकी. फिर इस का जो नतीजा निकला, वह बड़ा ही भयावह था. टना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है.

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4. ट्रॉली बैग में 72 घंटे तक रखा प्रेमिका की लाश को

नोएडा के खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव स्थित 4 मंजिला मकान में कुल 33 कमरे थे. सभी कमरों में नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली में काम करने वाले किराएदार रह रहे थे. इन में से कुछ लोग अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे थे जो अकेले ही रहते थे. चूंकि सभी लोग नौकरीपेशा थे, इसलिए वे सुबह ही अपनी ड्यूटी पर चले जाते और देर शाम या रात को वापस अपने कमरों पर लौटते थे.

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5. विवाहिता के प्यार में 4 हत्याएं

चंदन वर्मा ने 12 सितंबर, 2024 को अपने वाट्सऐप पर लिखा, ‘5 लोग मरने वाले हैं. मैं जल्दी कर के दिखाऊंगा (5 people are going to die. I will show you soon.)उस का इशारा अपनी प्रेमिका पूनम व उस के परिवार, स्वयं और पूनम के भाई सोनू की तरफ था. चंदन वर्मा ने इस के लिए अवैध पिस्टल का इंतजाम तो कर लिया था, लेकिन गोलियों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस के लिए उस ने जानपहचान के अपराधियों से संपर्क किया और 10 राउंड गोलियों वाली मैगजीन मुंहमांगी कीमत पर खरीद कर रख ली,

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फोन पर रसीली बातों से ब्‍लैकमेलिंग का जाल बिछाती थी सपना

महिला सुरक्षा के नाम जो नया कानून बना हैअराजक तत्वों ने महिलाओं को इस्तेमाल कर के उसे शरीफों को लूटने का जरिया बना लिया है. शाम होते ही ठंड बढ़ने लगी तो राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के कस्बा नरसिंहपुरा में गहनों की दुकान चलाने वाले भूपेंद्र सोनी ने घर जाने का मन बना लिया. क्योंकि ठंड की वजह से अब ग्राहक आने की कोई उम्मीद नहीं थी. भूपेंद्र दुकान बंद कर के खडे़ हुए थे कि उन का मोबाइल बज उठा. स्क्रीन पर जो नंबर दिख रहा था, वह अंजान था, फिर भी उन्होंने फोन रिसीव कर लिया.

‘‘हैलो, जीमुझे भूपेंद्रजी से बात करनी थी.’’ दूसरी ओर से किसी महिला ने कानों में शहद सा घोल दिया.

‘‘जी बोलिए, मैं भूपेंद्र ही बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा

‘‘अरे यार! मैं सपना बोल रही हूं. बड़ी मुश्किल से आप का नंबर ढूंढ पाई हूं. नंबर मिलते ही आप को फोन किया है. आप तो मुझे भूल ही गए. कभी पूछा भी नहीं कि मैं जिंदा हूं या मर गई?’’ सपना ने एक ही सांस में शिकायत भरे लहजे में उलाहना दे डाला.

‘‘लेकिन मैं ने आप को पहचाना ही नहीं. शायद आप को गलतफहमी हुई है. आप ने गलत नंबर मिला दिया है.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘आप चुन्नीराम अंकल के बेटे भूपेंद्र बोल रहे हैं ?’’ सपना ने पूछा.

‘‘हां, मैं उन्हीं का बेटा भूपेंद्र ही हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘यह हुई बात, भला ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं जिस भूपेंद्र की फैन हूं. वह मुझे जाने.’’ सपना ने कहा, ‘‘तुम मर्दों की यही तो फितरत होती है. मतलब निकलने के बाद एकदम से भूल जाते हो.’’ 

भूपेंद्र जवाब में कुछ कहता, उस के पहले ही सपना ने धीरे से कहा, ‘‘शायद वह गए हैं. अभी फोन रखती हूं. कल इसी समय फिर फोन करूंगी. और हां, आप भूल कर भी फोन मत करना.’’ 

इतना कह कर सपना ने फोन काट दिया. भूपेंद्र ने एक बार फोन को देखा, फिर गाड़ी में सवार हो कर घर की ओर चल पड़ा. पूरे रास्ते वह सपना के बारे में ही सोचता रहा. घर आने पर भी उस के दिमाग में सपना ही घूमती रही. उस की नसनस में सनसनी सी फैल गई थीभूपेंद्र की गहनों की दुकान थी, उस के ग्राहकों में ज्यादातर महिलाएं ही थीं. उसे लगा कि सपना भी उस की कोई ग्राहक होगी. कभी लगता, कोई कालगर्ल तो नहीं है. यही सब सोचते हुए भूपेंद्र सपना की सुंदरता और शारीरिक बनावट को विभिन्न आकार देता रहा. उसी के बारे में सोचते हुए उसे जाने कब नींद गई.

अगले दिन भूपेंद्र का मन जाने क्यों दुकान पर जाने का नहीं हुआ. उस ने बड़े भाई को दुकान पर जाने के लिए कहा और स्वयं खेतों की ओर चला गया. उस का कई बार मन हुआ कि वह स्वयं सपना को फोन करे, लेकिन उस ने मना किया था, इसलिए वह मन मार कर रह गया. वैसे भी उस ने कहा था कि वह शाम को स्वयं फोन करेगी. शाम तक इंतजार करना उस के लिए मुश्किल था. दोपहर बाद जब भूपेंद्र घर लौट रहा था तो उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. नंबर सपना का ही था. उस के फोन रिसीव करते ही सपना ने कहा, ‘‘हैलो, भूपेंद्रजी.’’

‘‘जी बोलिए, मैं बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘भूपेंद्रजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं. इस समय कहां हैं आप?’’

‘‘मैं इस समय खेतों पर हूं. यहीं जाओ.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘पागल हो गए हैं क्या आप. मैं अपनी ससुराल हनुमानगढ़ में हूं. मैं वहां कैसे सकती हूं? आप को ही यहां आना होगा. वह आज किसी काम से दिल्ली गए हैं. कल तक लौटेंगे.’’ सपना ने कहा.

‘‘सपना, आज तो नहीं, मैं कल सुबह ही पाऊंगा.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘सुबह 10 बजे तक पहुंच कर फोन करना. मैं स्वयं आप को लेने जाऊंगी. घर खाली है. पूरा दिन आप के लिएओके बाय…’’ कह कर सपना ने फोन काट दिया. सुंदरी से मिले आमंत्रण से भूपेंद्र का रोमरोम रोमांचित हो रहा था. अगले दिन भूपेंद्र को किसी काम से हनुमानगढ़ जाना भी था. उस ने सोचा लगे हाथ यह काम भी हो जाएगा. अगले दिन यानी 9 दिसंबर, 2013 की सुबह भूपेंद्र अपनी कार से हनुमानगढ़ पहुंच गया. उस ने फोन किया तो सपना ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें रिसीव करने चूना फाटक पहुंच रही हूं, आप वहीं इंतजार करें.’’

भूपेंद्र चूना फाटक पहुंच गया. कार को सड़क के किनारे खड़ी कर के वह सपना का इंतजार करने लगा. थाड़ी देर बाद सपना वहां पहुंच गई तो चाहत की उम्मीदों के सहारे दोनों ने एकदूसरे को पहचान लिया. आते ही सपना भूपेंद्र की बगल वाली सीट पर बैठ गई. उस के बैठते ही भूपेंद्र ने पूछा, ‘‘बताओ, कहां चलें?’’

‘‘मेरे पड़ोस में एक बुढि़या मर गई है, उस की वजह से मोहल्ले में काफी भीड़ है. ऐसे में घर चलना ठीक नहीं होगा. घंटे, 2 घंटे मटरगस्ती कर के समय गुजारते हैं.’’ सपना ने कहा. भूपेंद्र ने कार लिंक रोड से अबोहर जाने वाली मुख्य सड़क की ओर मोड़ दी. कुछ दूर आगे सड़क पर एक कार खड़ी दिखाई दी तो सपना ने भूपेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा. कार के पास 3 लोग खड़े थे. उन्हें अपना परिचित बता कर सपना उन के पास चली गई. भूपेंद्र कुछ समझ पाता, इस से पहले ही उन में से 2 लोग उस के पास गए. उन्होंने भूपेंद्र को कार की पिछली सीट पर धकेला और उन में से एक ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो दूसरा उस की बगल में. इस के बाद कार फिर रिंग रोड पर चल पड़ी. उस के पीछेपीछे वह कार भी चल पड़ी, जो वहां पहले से खड़ी थी. उस में सपना अपने तीसरे साथी के साथ सवार थी.

अब भूपेंद्र को समझते देर नहीं लगी कि वह किसी शातिर गिरोह के चक्कर में फंस गया है. वहां शोर मचाना भी बेकार था, क्योंकि सड़क लगभग सुनसान थीदोनों कारें एक खेत में बनी सुनसान ढांपी (घर) में जा कर रुकीं. उन तीनों ने भूपेंद्र को खींच कर कार से बाहर निकाला. पहले तो उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद उस की चेन, अंगूठी और जेब में पड़ी नकदी छीन ली. साथ ही गाड़ी की आरसी और 2 बैंकों के एटीएम भी ले लिए. उन लोगों ने एटीएम के कोड नंबर पूछे तो भूपेंद्र ने शून्य बैलेंस वाले कार्ड का नंबर बता दिया. जिस में बैलेंस था, उस के कोड नंबर के बारे में उस ने कह दिया कि याद नहीं है.

सारा माल छीन लेने के बाद उन में से एक ने कहा, ‘‘शोहदे, तूने इस लड़की के साथ दुष्कर्म किया है. हम तेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएंगे.’’

मुकदमे की बात सुनते ही भूपेंद्र की घिग्घी बंध गई. वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं बाल बच्चेदार आदमी हूं. मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. प्लीज ऐसा मत करो.’’

‘‘अब तू एक ही सूरत में इस मुकदमे से बच सकता है. अगर तू 10 लाख रुपयों की व्यवस्था कर के हमें दे दे तो हम मुकदमा नहीं करेंगे.’’

भूपेंद्र के काफी गिड़गिड़ाने पर मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. जान से मारने की धमकी दे कर चारों ने भूपेंद्र को 2 दिनों में रुपए की व्यवस्था कर के फोन करने को कहा. लुटापिटा भूपेंद्र बुझे मन से अपनी कार ले कर घर गया. गाड़ी की आरसी, एटीएम कार्ड, नगदी और आभूषण लुटेरों ने छीन लिए थे. भूपेंद्र को गुमसुम देख कर घर वालों ने उस से पूछा भी. लेकिन तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह बात टाल गया. जब अगली सुबह उस के बड़े भाई ने पास बैठा कर उस से परेशानी की वजह पूछी तो उस ने उन से पूरी बात बता दी. सलाहमशविरा कर के दोनों भाई उसी समय हनुमानगढ़ के लिए रवाना हो गए. 10 दिसंबर की दोपहर थाना हनुमानगढ़ के थानाप्रभारी भंवरलाल को भूपेंद्र ने अपनी व्यथा बताई. मामला गंभीर था, लेकिन थानाप्रभारी को लग रहा था कि इस मामले में अभियुक्त शीघ्र ही पकड़ लिए जाएंगे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई बलवंतराम को सौंप दी.

बलवंतराम ने उसी समय भूपेंद्र से सपना को रुपयों की व्यवस्था हो जाने का फोन करवा दिया. सपना ने आधे घंटे में अबोहर रोड पर जहां भूपेंद्र के साथ घटना घटी थी, पहुंचने को कहा. भूपेंद्र अपनी कार से वहां पहुंच गया. एएसआई बलवंतराम भी पुलिस टीम के साथ प्राइवेट वाहन से बिना वर्दी के वहां पहुंच कर थोड़ी दूर खड़े हो गए थे. कुछ देर बाद भूपेंद्र के पास एक कार कर रुकी. उस में से 3 लोग उतरे और पैसे लेने के लिए भूपेंद्र के पास पहुंच गए. भूपेंद्र का इशारा पाते ही पुलिसकर्मियों ने तीनों को घेर कर पकड़ लिया. तीनों के नाम थे असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी.

इस के बाद भूपेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने सपना, असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी के खिलाफ भादंवि की धारा 342, 385, 382, 323 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. लेकिन सपना पुलिस के हाथ नहीं लगी थी. शायद उसे अपने साथियों के पकड़े जाने की खबर लग गई थी, इसलिए वह फरार हो गई थी. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से विस्तृत पूछताछ और माल बरामद करने के लिए उन की 2 दिनों की रिमांड की मांग की गई. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में तीनों अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इसी पूछताछ में उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले इसी तरह सपना से फोन करवा कर उन्होंने पंजाब के अबोहर  के एक आदमी को लूटा था. उस ने पुलिस को सूचना दे दी थी तो पंजाब पुलिस ने उन्हें पकड़ कर जेल भिजवा दिया था. अदालत से जमानत मिलने पर जब ये लोग बाहर आए तो इन्होंने भूपेंद्र को शिकार बनाया. रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को जेल भिजवा दिया. सपना अभी भी फरार थी.

27 दिसंबर को थानाप्रभारी भंवरलाल एएसआई बलवंतराम से सपना की गिरफ्तारी के बारे में चरचा कर रहे थे, तभी 3 लोग उन से मिलने आए. उन में से एक व्यक्ति ने अपना परिचय हरजिंदर सिंह एडवोकेट (पूर्व बार संघ उपाध्यक्ष हनुमानगढ़) के रूप में दिया. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

हरजिंदर सिंह ने अपनी बगल में खड़े व्यक्ति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह बेअंत सिंह है. मेरी बुआ का बेटा. भूपेंद्र सोनी की तरह इसे भी एक गिरोह ने फांस रखा है, वह गिरोह इस से 40 लाख रुपए नकद या फिर 2 बीघा जमीन देने पर इसे छोड़ने की बात कर रहा है. देने पर इसे रेप के केस में झूठा फंसाने की धमकी दे रहा है.’’

सूचना गंभीर और चौंकाने वाली थी. एक बार थानाप्रभारी को लगा कि यह काम भी सपना के गिरोह का हो सकता है. लेकिन उस गैंग के सदस्य तो जेल में थे. इसी बात पर चरचा हो रही थी कि तभी बलवंतराम के फोन की घंटी बजी. फोन उन के मुखबिर का था. उस ने सपना के विजयनगर (श्रीगंगानगर) में होने की सूचना दी थी. थानाप्रभारी से अनुमति ले कर बलवंतराम विजयनगर के लिए निकल पड़े. बलवंतराम चले गए तो बेअंत सिंह ने थानाप्रभारी भंवरलाल को अपनी जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी

12 दिसंबर, 2013 की दोपहर की बात है. चक सुंदरसिंह वाला (पीलीबंगा) का रहने वाला 50 वर्षीय बेअंत सिंह अपने खेतों में पानी लगा रहा था. उस की 2 संतानें हैं, जिन की शादियां हो चुकी हैं. हाड़तोड़ मेहनत और मितव्ययी स्वभाव का होने की वजह से इलाके में उस की पहचान एक समृद्ध किसान की है. बेअंत सिंह खेतों में जाने वाले पानी की निगरानी कर रहा था, तभी उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से किसी औरत की आवाज आई, ‘‘सरदारजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं और मुझ से क्यों मिलना चाहती हैं?’’ बेअंत सिंह ने पूछा.

‘‘जी मैं लवप्रीत कौर बोल रही हूं. पिछले दिनों आप को पीलीबंगा के गुरुद्वारे में देखा था. तभी से मैं आप पर लट्टू हूं. किसी तरह आप का फोन नंबर हासिल कर के आप को फोन किया है. रही बात मिलने की तो आप खुद ही समझ लीजिए कि कोई जवान लड़की किसी मर्द से क्यों मिलना चाहेगी.’’

बेअंत सिंह के प्रौढ़ शरीर में एकबारगी सिहरन सी दौड़ गई. औरत हो या मर्द, एकदूसरे के प्रति आकर्षण स्वाभाविक ही है. उसी आकर्षण में बंधे बेअंत सिंह ने कहा, ‘‘लवप्रीतजी अभी तो मैं खेतों में पानी लगा रहा हूं. मैं कल आप को फोन करता हूं.’’

कह कर बेअंत सिंह ने फोन काट दिया. लवप्रीत के मीठे बोल और खुले आमंत्रण से प्रौढ़ बेअंत सिंह का रोमरोम पुलकित था. वह जवान लवप्रीत से मिलने को लालायित हो उठा. अगले दिन सुबह बेअंत सिंह ने खेतों पर जा कर लवप्रीत को फोन किया. दूसरी ओर से फोन रिसीव हुआ तो उस ने कहा, ‘‘लवप्रीत, मैं बेअंत बोल रहा हूं.’’

 ‘‘सरदारजी, मुझे लवप्रीत नहीं सिर्फ लव कहिए. अब आप के लिए मैं सिर्फ लव हूं. मैं 2 घंटे बाद पीलीबंगा बसस्टैंड पर पहुंच रही हूं. मेहरबानी कर के आप वहीं जाइए. आगे का प्रोग्राम मिलने पर बनाएंगे.’’ इतना कह कर लवप्रीत ने फोन काट दियाखेतों से लौट कर बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और पीलीबंगा के बसस्टैंड पर पहुंच गया. बेअंत सिंह ने बसस्टैंड से लवप्रीत को फोन किया तो सामने खड़ी लड़की को फोन रिसीव करते देख वह सकपका गया. लड़की उस की बेटी की उम्र की थी. उस ने पूछा, ‘‘सरदार जी, आप कहां हो?’’

बेअंत सिंह ने पहचान बताई तो वही लड़की उस के पास कर खड़ी हो गई. उसे देख कर लवप्रीत के चेहरे पर कई रंग आए और गए. वह भी बेअंत सिंह की ही तरह सकपका गई थी. पास कर उस ने कहा, ‘‘अभीअभी उन का फोन आया था. मेरे ससुर को दिल का दौरा पड़ गया है. मुझे तुरंत वहां पहुंचना होगा. कृपया मुझे पुराने बसस्टैंड तक अपनी मोटरसाइकिल से छोड़ दीजिए. समय मिलते ही मैं आप को फोन करूंगी.’’ 

बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल से लवप्रीत को पुराने बसस्टैंड पर छोड़ दिया और अपने घर गया. लाख कोशिशों के बाद भी बेअंत सिंह लवप्रीत को इस तरह कन्नी काट कर चली जाने का कारण समझ नहीं पाया. हां, इतना जरूर हुआ कि उस ने लवप्रीत को सपना समझ कर भुला दिया. 2 दिनों बाद बेअंत सिंह अपने ममेरे भाई एडवोकेट हरजिंदर सिंह से मिलने उस के घर गया. दोनों धूप में बैठे चाय पी रहे थे, तभी बेअंत सिंह के मोबाइल फोन की घंटी बजीउस ने फोन रिसीव किया तो फोन करने वाले ने उस का नामपता पूछ कर कहा, ‘‘मैं पीलीबंगा थाने का सिपाही जसवंत बोल रहा हूं. तुम्हारे खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है.’’

यह सुनते ही बेअंत सिंह घबरा गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. हरजिंदर समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. उस ने खुद फोन ले कर बात शुरू की तो फोन करने वाले कांस्टेबल जसवंत ने कहा, ‘‘3 लोग एक महिला को ले कर आए थे. महिला कह रही थी कि बेअंत सिंह ने उस के साथ दुष्कर्म किया है. लेकिन घटनास्थल हमारे क्षेत्र के बाहर का था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन्हें वापस भेज दिया.’’

बेअंत सिंह ने इस आरोप को खारिज करते हुए हरजिंदर सिंह को पूरी घटना के बारे में बता दिया. वकील होने के नाते हरजिंदर सिंह को पता था कि मामला कितना गंभीर है. कथित पीडि़ता के आरोप को एकबारगी नकारा नहीं जा सकता था. लवप्रीत कौर का फोन नंबर बेअंत सिंह के पास था ही. मामला पुलिस तक जाए, इस के पहले ही हरजिंदर ने सुलटाने की कोशिश शुरू कर दी. सूचना मिलने पर बेअंत सिंह का बहनोई बौड़ा सिंह भी गया. बौड़ सिंह लवप्रीत कौर और उस के उन दोनों साथियों को जानता था, जो उस की मदद कर रहे थे. बातचीत शुरू हुई तो लवप्रीत ने मामला सुलटाने के लिए 40 लाख रुपए या 2 बीघा जमीन मांगी. जबकि बेअंत सिंह 2 लाख रुपए देने को तैयार था.

लवप्रीत का एक साथी था जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा, जो स्वयं को पूर्व सरपंच बता रहा था, उस ने कथित पीडि़ता लवप्रीत का एक औडियो कैसेट तैयार कर रखा था. उस कैसेट में लवप्रीत कह रही थी कि मांग पूरी होने पर वह बेअंत के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराएगी. जबन सिंह लवप्रीत को अपनी नौकरानी बता रहा था. लवप्रीत की इस मांग से बेअंत सिंह, बौड़ा सिंह और हरजिंदर सिंह परेशान थे. वहीं हरजिंदर का कहना था कि यह सरासर ब्लैकमेलिंग है. अन्य लोगों के चाहते हुए भी हरजिंदर सिंह ने ब्लैकमेल करने वालों लवप्रीत और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का निर्णय ले लिया. इस के बाद 27 दिसंबर को बेअंत ने थाना हनुमानगढ़ में प्रकट सिंह पुत्र मुख्तयार सिंह निवासी 2 जीजीआर, जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा पुत्र मखन सिंह निवासी 3 जीजीआर तथा लवप्रीत कौर उर्फ हरप्रीत उर्फ रानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी भंवरलाल ने इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश को सौंप दी. अगले दिन उन्होंने बेअंत सिंह से जबन सिंह प्रकट सिंह को रुपए ले जाने के लिए फोन करवा दिया. वे रुपए लेने आए तो पुलिस ने जाल बिछा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन शाम को पुलिस ने लवप्रीत को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. पूछताछ के बाद तीनों को जेल भेज दिया गया. दूसरी ओर विजयनगर से एएसआई बलवंतराम ने सपना को भी महिला पुलिस की मदद से गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

पुलिस पूछताछ में सपना ने जो बताया था, वह इस प्रकार था. सपना उर्फ सोना पंजाब के मुक्तसर जिले के गांव लूलबाई के रहने वाले सतनाम सिंह की बेटी थी. सपना की शादी हनुमानगढ़ के रहने वाले अशोक के साथ हुई थी. सपना उस के एक बच्चे की मां भी बनी, लेकिन उस की सास माया समाज की मर्यादाओं को तोड़ कर असलम के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी थी. अशोक को मां की तरह पत्नी का भी चरित्र ठीक नहीं लगता था. इस से आहत हो कर उस ने घर छोड़ दिया. इसी सपना को चारा बना कर असलम ने भूपेंद्र को फांस कर लूटने की योजना बनाई थी.

लवप्रीत कौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. उस की शादी गंगूवाला सिरवान में हुई थी. पति से अनबन होने के बाद वह हनुमानगढ़ कर अकेली ही रहने लगी थी. यहीं उस का संपर्क प्रकट सिंह और जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा से हुआ. लवप्रीत कथित रूप से जबन सिंह की रखैल थी. लवप्रीत को चारा बना कर बेअंत सिंह को ब्लैकमेल करने की योजना जबन सिंह की थीलवप्रीत से जबन सिंह ने कहा था कि पैसे मिलने पर वह उस के लिए घर बनवा देगा. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. दिल्ली में हुए दामिनी कांड के बाद जो नया कानून बना है, इस तरह के अराजक तत्व उस का गलत फायदा उठाना चाहते हैं. इन तत्वों के खेल में 2 निर्दोष महिलाएं फंस गई हैं. कथा लिखे जाने तक इन में से कुछ अभियुक्तों की जमानतें हो चुकी थीं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लड़की बनकर लूटता रहा लाखों रुपए प्रेमी से

शादीशुदा अनुभव पहली मुलाकात में ही अनुभा पर फिदा हो गया था. गिफ्ट आदि पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद वह उसे घर खरीदने के लिए 20 लाख रुपए देने वाला था, लेकिन इस से पहले जब उसे पता लगा कि…  

‘‘है लो मिस्टर अनुभव, क्या मैं आप के 2 मिनट ले सकती हूं?’’ मेरे केबिन में अभीअभी दाखिल हुई मोहतरमा के मधुर स्वर ने मुझे एक सुखद अहसास से भर दिया था. फाइलों से आंखें हटा कर चश्मा संभालते हुए मैं ने सामने देखा तो देखता ही रह गया. लग रहा था जैसे हर तरफ कचनार के फूल बिखर गए हों और सारा आलम मदहोश हो रहा हो. फ्लौवर प्रिंट वाली स्टाइलिश पिंक मिडी और घुंघराले लहराते बालों को स्टाइल से पीछे करती बाला के गुलाबी होंठों पर गजब  की आमंत्रणपूर्ण मुसकान थी. हाल ही में वायरल हुए प्रिया के वीडियो की तरह उस ने नजाकत से अपनी भौंहों को नचाते हुए कुछ कहा, जिसे मैं समझ नहीं पाया, फिर भी बल्लियों उछलते अपने दिल को काबू में करते हुए मैं ने विनम्रता से उसे बैठने का इशारा किया.

‘‘मिस्टर अनुभव, मैं अनुभा. आप का ज्यादा वक्त लेते हुए अपनी बात कहती हूं. पहले यह बताइए कि आप की उम्र क्या है?’’ ऊपर से नीचे तक मुझ पर निगाहें घुमाते हुए उस ने बड़ी अदा से कहा, ‘‘वैसे आप की कसी हुई बौडी देख कर तो लगता है कि आप 40 से ऊपर नहीं हैं. मगर किसी ने मुझे आप के पास यह कह कर भेजा है कि आप 50 प्लस हैं और आप हमारी पौलिसी का फायदा उठा सकते हैं.’’

वैसे तो मैं इसी साल 55 का हो चुका हूं, मगर अनुभा के शब्दों ने मुझे यह अहसास कराया था कि मैं अब भी कितना युवा और तंदुरुस्त दिखता हूं. भले ही थोड़ी सी तोंद निकल आई हो, चश्मा लग गया हो और सिर के सामने के बाल गायब हो रहे हों, मगर फिर भी मेरी पर्सनैलिटी देख कर अच्छेखासे जवान लड़के जलने लगते हैं. मैं उस की तरफ देख कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘अजी बस शरीर फिट रखने का शौक है. उम्र 50 की हो गई है. फिर भी रोज जिम जाता हूं. तभी यह बौडीशौडी बनी है.’’

वह भरपूर अंदाज से मुसकराई, ‘‘मानना पड़ेगा मिस्टर अनुभव, गजब की प्लीजैंट पर्सनैलिटी है आप की. मेरे जैसी लड़कियां भी तुरंत फ्लैट हो जाएं आप पर.’’

कहते हुए एक राज के साथ उस ने मेरी तरफ देखा और फिर कहने लगी, ‘‘एक्चुअली हमारी कंपनी 50 प्लस लोगों के लिए एक खास पौलिसी ले कर आई है. जरा गौर फरमाएं यह है कंपनी और पौलिसी की डिटेल्स.’’ उस ने कुछ कागजात मेरी तरफ आगे बढ़ाए और खुद मुझ पर निगाहों के तीर फेंकती हुई मुसकराती रही. मैं ने कागजों पर एक नजर डाली और सहजता से बोला, ‘‘जरूर मैं लेना चाहूंगा.’’

‘‘ओके देन. फिर मैं कल आती हूं आप के पास. तब तक आप ये कागज तैयार रखिएगा.’’ कुरसी से उठते हुए उस ने फिर मेरी तरफ एक भरपूर नजर डाली और पूछा, ‘‘वैसे किस जिम में जाते हैं आप?’’

मैं सकपका गया क्योंकि जिम की बात तो उस पर इंप्रैशन जमाने के लिए कही थी. फिर कुछ याद करते हुए बोला, ‘‘ड्रीम पैलेस जिम, कैलाशपुरी में है ना, वही.’’

‘‘ओह, वाट कोइंसीडैंस! मैं भी तो वहीं जाती हूं. किस समय जाते हैं आप?’’

‘‘मैं 8 बजे,’’ मैं ने कहा.

‘‘अच्छा कभी हम मिले नहीं. एक्चुअली मैं 6 बजे जाती हूं ना!’’ इठलाती हुई वह दरवाजे से निकलते हुए उसी मधुर स्वर में बोली, ‘‘ओके देन बाय. सी यू.’’

वह बाहर चली गई और मैं अपने खयालों के गुलशन को आबाद करने लगा. सामने लगे शीशे में गौर से अपने आप को हर एंगल से निहारने लगा. सचमुच मेरी पर्सनैलिटी प्लीजैंट है, इस बात का अहसास गहरा हो गया था. यानी इस उम्र में भी मुझे देख कर बहुतों के दिल में कुछकुछ होता हैमैं सोचने लगा कि सामने वाले आकाशचंद्र की साली को मैं अकसर उसी वक्त बालकनी में खड़ी देखता हूं जब मैं गाड़ी निकाल कर औफिस के लिए निकल रहा होता हूं. यानी वह इत्तफाक नहीं प्रयास हैहो हो मुझे देखने का बहाना तलाशती होगी और फिर पिंकी की दीदी भी तो मुझे देख कितनी खुश हो जाती है. आज जो हुआ वह तो बस दिल को ठंडक ही दे गया था. सीधेसीधे लाइन मार रही थी. बला की अदाएं थीं उस की.

मैं अपनी बढ़ी धड़कनों के साथ कुरसी पर बैठ गया. कुछ देर तक उसी के खयालों में खोया रहा. कल फिर आएगी. ठीक से तैयार हो कर आऊंगा. मैं सोच ही रहा था कि पत्नी का फोन गया. मैं ने जानबूझ कर फोन नहीं उठाया. कहीं मेरी आवाज के कंपन से वह अंदाजा लगा ले और फिर औरतों को तो वैसे भी पति की हरकतों का तुरंत अंदाजा हो जाता है. अचानक मेरी सोच की दिशा बदली कि मैं यह क्या कर रहा हूं. 55 साल का जिम्मेदार अफसर हूं. घर में बीवी, बच्चे सब हैं और मैं औफिस में किसी फुलझड़ी के खयालों में डूबा हुआ हूं. अचानक मेरे अंदर की नैतिकता जागी, पराई स्त्री के बारे में सोचना भी गलत है. मैं सचमुच काम में लग गया. बीवी के फोन ने मेरे दिमाग के शरारती तंतुओं को फिर से सुस्त कर दिया. शाम को जब घर पहुंचा तो बीवी कुछ नाराज दिखी.

‘‘मेरा फोन क्यों नहीं उठाया? कुछ सामान मंगाना था तुम से.’’ 

‘‘बस मंगाने के लिए फोन करती हो मुझे? कभी दिल लगाने को भी फोन कर लिया करो.’’ मेरी बात पर वह ऐसे शरमा कर मुसकराई जैसे वह कोई नई दुलहन हो. फिर वह तुरंत चाय बनाने चली गई और मैं कपड़े बदल कर रोज की तरह न्यूज देखने बैठ गया. पर आज समाचारों में मन ही नहीं लग रहा था? बारबार उस हसीना का चेहरा निगाहों के आगे जाता. अगले दिन वह मोहतरमा नियत समय पर उसी अंदाज में अंदर आई. मेरे दिल पर छुरियां चलाती हुई वह सामने बैठ गई. कागजी काररवाई के दौरान लगातार उस की निगाहें मुझ पर टिकी रहीं. मैं सब महसूस कर रहा था पर पहल कैसे करता? 2 दिन बाद फिर से आने की बात कह कर वह जाने लगी. जातेजाते फिर से मेरे दिल के तार छेड़ती हुए बोली, ‘‘कल मैं 8 बजे पहुंची थी जिम, पर आप नजर नहीं आए.’’ मैं किसी चोर की तरह सकपका गया.

‘‘ओह, कल एक्चुअली बीवी के मायके जाना पड़ गया, सो जिम नहीं जा सका.’’

‘‘…मिस्टर अनुभव, आई डोंट नो, पर ऐसा क्या है आप में जो मुझे आप की तरफ खींच रहा है. अजीब सा आकर्षण है. जैसा मैं महसूस कर रही हूं क्या आप भी…?’’

उस के इस सवाल पर मुझे लगा जैसे कि मेरी सांसें ही थम गई हों. अजीब सी हालत हो गई थी मेरी. कुछ भी बोल नहीं सका.

‘‘ओके सी यू मैं इंतजार करूंगी.’’ कह कर वह मुसकराती हुई चली गई.

मैं आश्चर्य भरी खुशी में डूबा रहा. वह जिम में मेरा इंतजार करेगी. तो क्या सचमुच वह मुझ से प्यार करने लगी है. यह सवाल दिल में बारबार उठ रहा था. फिर तो औफिस के कामों में मेरा मन ही नहीं लगा. हाफ डे लीव ले कर सीधा पहुंच गया ड्रीम प्लेस जिम. थोड़ी प्रैक्टिस की और अगले दिन से रोजाना 8 बजे आने की बात तय कर घर गया. बीवी मुझे जल्दी आया देख चौंक गई. मैं बीमारी का बहाना कर के कमरे में जा कर चुपचाप लेट गया. एक्चुअली किसी से बात करने की कोई इच्छा ही नहीं हो रही थी. मैं तो बस डूब जाना चाहता था अनुभा के खयालों में.

अगले दिन से रोजाना 8 बजे अनुभा मुझे जिम में मिलने आने लगी. कभीकभी हम चाय कौफी पीने या टहलने भी निकल जाते. मेरी बीवी अकसर मेरे बरताव और रूटीन में आए बदलाव को ले कर सवाल करती पर मैं बड़ी चालाकी से बहाने बना देताजिंदगी इन दिनों बड़ी खुशगवार गुजर रही थी. अजीब सा नशा होता था उस के संग बिताए लम्हों में. पूरा दिन उसी के खयालों की खुशबू में विचरते हुए गुजर जातामैं तरहतरह के महंगे गिफ्ट्स ले कर उस के पास पहुंचता, वह खुश हो जाती. कभीकभी वह करीब आती, अनजाने ही मुझे छू कर चली जाती. उस स्पर्श में गजब का आकर्षण होता. मुझे लगता जैसे मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया हूं.

धीरेधीरे मेरी इस मदहोशी ने औफिस में मेरे परफौर्मेंस पर असर डालना शुरू कर दिया. मेरा बौस मुझ से नाखुश रहने लगा. पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ रहा था. एक दिन मेरे किसी परिचित ने मुझे अनुभा के साथ देख लिया और जा कर बीवी को बता दियाबीवी चौकन्नी हो गई और मुझ से कटीकटी सी रहने लगी. वह मेरे फोन और आनेजाने के समय पर नजर रखने लगी थी. मुझे इस बात का अहसास था पर मैं क्या करता? अब अनुभा के बगैर रहने की सोच भी नहीं सकता था.

एक दिन अनुभा मेरे बिलकुल करीब कर बोली, ‘‘अब आगे?’’

‘‘आगे क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आगे बताइए मिस्टर, मैं आप की बीवी तो बन नहीं सकती. आप के उस घर में रह नहीं सकती. इस तरह कब तक चलेगा?’’

‘‘तुम कहो तो तुम्हारे लिए एक दूसरा घर खरीद दूं.’’

वह मुसकुराती हुई बोली, ‘‘अच्छे काम में देर कैसी? मैं भी यही कहना चाहती थी कि हम दोनों का एक खूबसूरत घर होना चाहिए. जहां तुम बेरोकटोक मुझ से मिलने सको. किसी को पता भी नहीं चलेगा. फिर तो तुम वह सब भी पा सकोगे जो तुम्हारी नजरें कहती हैं. मेरे नाम पर एक घर खरीद दोगे तो मुझे भी ऐतबार हो जाएगा कि तुम मुझे वाकई चाहते हो. फिर हमारे बीच कोई दूरी नहीं रह जाएगी.’’

मेरा दिल एक अजीब से अहसास से खिल उठा. अनुभा पूरी तरह से मेरी हो जाएगी. इस में और देर नहीं होनी चाहिए. मैं ने मन में सोचा. तभी वह मेरे गले में बांहें डालती हुई बोली, ‘‘अच्छा सुनो, तुम मुझे कैश रुपए दे देना. मेरे अंकल प्रौपर्टी डीलर हैं. उन की मदद से मैं ने एक घर देखा है. 40 लाख का घर है. ऐसा करो आधे रुपए मैं लगाती हूं आधे तुम लगा दो.’’

‘‘ठीक है मैं रुपयों का इंतजाम कर दूंगा.’’ मैं ने कहा तो वह मेरे सीने से लग गई. अगले 2-3 दिनों में मैं ने रुपयों का इंतजाम कर लिया. चैक तैयार कर उसे सरप्राइज देने के खयाल से मैं उस के घर के एडै्रस पर जा पहुंचा. बहुत पहले उस ने यह एडै्रस दिया था पर कभी भी मुझे वहां बुलाया नहीं था. आज मौका था. बडे़ अरमानों के साथ बिना बताए उस के घर पहुंच गया. दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था. अंदर से 2 लड़कों की बातचीत के स्वर सुनाई पड़े तो मैं ठिठक गया. दोनों किसी बात पर ठहाके लगा रहे थे

एक हंसता हुआ कह रहा था, ‘‘यार अनुज, अनुभा बन कर तूने उस अनुभव को अच्छे झांसे में लिया. लाखों के गिफ्ट्स लुटा चुका है तुझ पर. अब 20-25 लाख का चेक ले कर रहा होगा. यार कई सालों से तू लड़की बन कर लोगों को लूटता रहा है पर यह दांव आज तक का सब से तगड़ा दांव रहा…’’

‘‘बस यह चेक मिल जाए मुझे फिर बेचारा ढूंढता रहेगा कहां गई अनुभा?’’ लड़कियों वाली आवाज निकालता हुआ बगल में खड़ा लड़का हंसने लगा. बाल ठीक करता हुआ वह पलटा तो मैं देखता रह गया. यह अनुभा था यानी लड़का जो लड़की बन कर मेरे जज्बातों से खेल रहा था. सामने बिस्तर पर लड़की के गेटअप के कपड़े, ज्वैलरी और लंबे बालों वाला विग पड़ा था. वह जल्दी जल्दी होंठों पर लिपस्टिक लगाता हुआ कहने लगा, ‘‘यार उस तोंदू, बुड्ढे को हैंडसम कहतेकहते थक चुका हूं.’’

उस का दोस्त ठहाके लगाता हुआ बोला, ‘‘लेले मजे यार, लड़कियों की आवाज निकालने का तेरा हुनर अब हमें मालामाल कर देगा.’’

मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को जाएगा. उलटे पैर तेजी से वापस लौट पड़ा. लग रहा था जैसे वह लपक कर मुझे पकड़ लेगा. हाईस्पीड में गाड़ी चला कर घर पहुंचा. मेरा पूरा चेहरा पसीने से भीग रहा था. सामने उदास हैरान सी बीवी खड़ी थी. आज वह मुझे बेहद निरीह और मासूम लग रही थी. मैं ने बढ़ कर उसे सीने से लगा लिया. वह चिंतातुर नजरों से मेरी तरफ देख रही थी. मैं नजरें चुरा कर अपने कमरे में चला आया. शुक्र था मेरी इस बेवफाई और मूर्खतापूर्ण कार्य का खुलासा बीवी के आगे नहीं हुआ था. वरना मैं धोबी का वह कुत्ता बन जाता जो घर का होता है और घाट का.

फूफा क्यों बनाना चाहता था भतीजी से अवैध संबंध

किसी से बात करना, उस के साथ घूमना रजनी का अधिकार था. उस के फूफा गंगासागर ने उसे और उस के प्रेमी को साथ देखा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि गंगासागर तो जान से गया ही रजनी और उस का प्रेमी कमल भी…  

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करतीमिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था. ‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोलाइस के बाद रजनी अपने घर गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी. ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग 38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी. उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’ रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात कहेंयह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की. ‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है. रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था. बह होते ही उस का फोन गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी. अपने आप बुलाई मौत 18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है. गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित बच सकेपुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी. उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी. गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया. दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं.

पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.                        

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

मिस कॉल से गर्लफ्रेड बना कर किया किडनैप

रूबी के फोन पर आई मिस काल ने उसे मिस काल करने वाले सुजाय के इतने नजदीक पहुंचा दिया कि दोनों में प्यार हो गया और शादी तक करने की ठान ली. इसी बीच लालची प्रेमी सुजाय ने ऐसा कदम उठाया कि वह पहुंच गया जेल. शाम का खाना खाने के बाद रूबी सोने के लिए अपने कमरे में जा रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. मोबाइल उस की जींस की जेब में रखा था. फोन रिसीव करने के लिए उस ने जैसे ही जेब से मोबाइल निकाला, तब तक घंटी बजनी बंद हो गई. उस ने फोन में देखा कि यह मिस काल किस की हैजिस फोन नंबर से मिस काल आई थी, वह नंबर उस के फोन में सेव नहीं था यानी उस के लिए वह नंबर अनजाना था. वह यह सोचने लगी कि पता नहीं यह नंबर किस का है और उस ने मिस काल क्यों की है?

कभीकभी ऐसा भी होता है कि किसी को किसी से जरूरी बात करनी होती है, लेकिन इत्तफाक से उस के फोन मेें बैलेंस नहीं होता है तो मजबूरी में उसे मिस काल करनी पड़ जाती है. रूबी के दिमाग में भी यही आया कि कहीं यह मिस काल ऐसे ही व्यक्ति की तो नहीं है. उस ने तुरंत कालबैक की. कुछ सेकेंड बाद किसी आदमी ने काल रिसीव करते हुए जैसे हीहैलोकहा, रूबी बोली, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं सुजाय डे बोल रहा हूं. क्या मैं जान सकता हूं कि जिन से मैं बात कर रहा हूं वह कौन हैं?’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

 ‘‘मैं रूबी बोल रही हूं. अभी मेरे फोन पर आप की मिस काल आई थी.’’

‘‘रूबीजी, सौरी. गलती से आप का नंबर लग गया होगा. मेरी वजह से आप को जो तकलीफ हुई, मुझे अफसोस है. मुझे लगता है कि आप आराम कर रही होंगी, मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया.’’ सुजाय डे अपनी गलती का आभास कराते हुए बोला.

‘‘नहीं सुजायजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कभीकभी गलती से किसी और का नंबर लग जाता है.’’

‘‘रूबीजी, आप से बात कर के लग रहा है कि आप बहुत नेकदिल हैं. आप की जगह कोई और लड़की होती तो शायद इतनी सी बात पर मुझे तमाम बातें सुना देती.’’

‘‘देखो, मेरा मानना है कि गलती हर इंसान से होती है. आप ने ऐसा जानबूझ कर थोड़े ही किया है. मुझे आप की बातों से लग रहा है कि आप भी कोई सड़कछाप नहीं, बल्कि एक समझदार इंसान हैं.’’ अब तक रूबी अपने कमरे में पहुंच चुकी थी. उसे भी उस से बात करने में इंटरेस्ट रहा था.

‘‘रूबीजी, जब आप इतना कह रही हैं तो मैं बताना चाहता हूं कि मैं एक बिजनैसमैन हूं. मेरे पिता की हौजरी गारमेंट्स की फैक्ट्री है. मैं उन के साथ उन के इस बिजनैस को संभाल रहा हूं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ने बिजनैस संभाल लिया था. वैसे अगर आप को बुरा लगे तो क्या मैं जान सकता हूं कि आप क्या कर रही हैं? मेरा मतलब पढ़ाई या कोई जौब?’’

‘‘अभी तो मैं बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही हूं. इस के अलावा टेलरिंग का काम भी सीख रही हूं.’’ इस से आगे रूबी और कुछ कहती कि उस ने अपने कमरे की तरफ मम्मी को आते देखा तो उस ने कहा, ‘‘सुजायजी, अभी कमरे में मम्मी रही हैं, मैं बाद में बात करूंगी.’’

‘‘ठीक है रूबीजी, ओके बाय.’’ सुजाय ने इतना ही कहा था कि दूसरी ओर से फोन कट गया. रूबी से इतनी देर तक बात करना सुजाय को अच्छा लगा. इस बातचीत में 27 साल का सुजाय भले ही उस से उस की उम्र नहीं पूछ सका था, लेकिन उस ने अनुमान जरूर लगा लिया था कि जब वह बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही है तो उस की उम्र 20-22 साल तो होगी ही. और तो और वह यह तक नहीं पूछ सका था कि वह कहां की रहने वाली है और ही वह भी उसे अपने शहर के बारे में बता पाया.

मम्मी रही हैं, अब बाद में बात करेंगे’. इन शब्दों ने फिर से बातचीत करने का रास्ता खुला छोड़ दिया था. सुजाय को भी लगा कि रूबी को उस से बात करने में कोई ऐतराज नहीं है. वरना वह काल डिसकनेक्ट करते समय इस तरह की बात क्यों कहतीरूबी से की गई बातें रात भर सुजाय के दिमाग में घूमती रहीं. की गई बातचीत और आवाज के आधार पर उस ने रूबी की सूरत भी अपने मन में बसा ली थी. जैसेतैसे रात कट गई. अगले दिन उस का मन बारबार कर रहा था कि वह रूबी से बात करे, लेकिन उस ने यह जान कर फोन नहीं किया कि इस समय वह शायद कालेज जाने की तैयारी कर रही होगी. इसलिए उस ने कालेज टाइम के बाद अपराह्न 3 बजे के करीब रूबी को फोन किया. चूंकि रूबी ने रात को ही अपने मोबाइल में उस के नंबर को नाम के साथ सेव कर लिया था.

फोन की घंटी बजने पर जब उस ने इनकमिंग काल के साथ अपने मोबाइल की स्क्रीन पर सुजाय का नाम आया देखा तो स्वाभाविक तौर पर उस के चेहरे पर मुसकान गई. वह बोली, ‘‘हाय, सुजाय कैसे हो?’’

‘‘आई एम फाइन. आप कैसी हैं? रूबीजी, कहीं इस समय आप क्लास में तो नहीं हैं? अगर बिजी होंगी तो मैं बाद में बात कर लूंगा.’’ सुजाय ने कहा.

‘‘नहीं, अब मैं कालेज से घर जा रही हूं. सौरी सुजाय, कल रात कमरे में मम्मी गई थीं, इसलिए बात बीच में ही छोड़नी पड़ी थी.’’ चूंकि अब रूबी के परिवार का कोई भी सदस्य उस के आसपास नहीं था, इसलिए उस ने बिना किसी झिझक के सुजाय डे से काफी देर तक बात कीइस बातचीत में उन्होंने अपने और अपने परिवार के बारे में भी जाना. सुजाय को पता चल गया था कि मुसलिम धर्म की रूबी अविवाहिता है और कर्नाटक के जिला बगालकोट स्थित इलकल कस्बे में अपने मांबाप और भाईबहनों के साथ रहती है. उस के पिता सब्जियों के एक बड़े आढ़ती हैं.

वहीं रूबी को जानकारी हो गई कि सुजाय डे भी अविवाहित है और वह पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना स्थित गोबरडंग गांव का रहने वाला है. इस तरह कई महीने तक उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं. करीब 6-7 साल पहले केवल एक मिस काल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला ऐसा चला कि इस का दायरा बढ़ता गया. इस के बाद तो उन के बीच अकसर बात होती रहती थी, इस की एक वजह यह भी थी कि सुजाय को पता लग चुका था कि रूबी भले ही मुसलिम परिवार की है, मगर वह एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी हैदूसरी ओर रूबी भी बातचीत से सुजाय की उम्र, पेशा, परिवार आदि के बारे में जान चुकी थी. फोन पर हुई बातचीत से उसे सुजाय एक अच्छा लड़का लगा था. इस के अलावा उसे यह भी जानकारी मिल चुकी थी कि वह बिजनैसमैन है.

फोन के जरिए वे एकदूसरे से अपने मन की बातें भी कहने लगे थे. बातों ही बातों में उन के बीच प्यार हो गया थाजब किसी लड़की या लड़के को प्यार होता है तो उसे अपने साथी के अलावा सब कुछ बेकार लगता है. हर समय वह उसी के बारे में सोचता रहता है. रूबी और सुजाय का भी यही हाल था. वे जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं पड़ता थावह नेट पर चैटिंग भी करने लगे थे. फेसबुक पर उन्होंने अपने फोटो अपलोड कर दिए थे. रूबी का फोटो देख कर सुजाय फूला नहीं समा रहा था. उस ने बातचीत के बाद उस की जैसी तसवीर अपने दिल में बसा ली थी, वास्तव में वह उस से भी ज्यादा सुंदर निकली.

सुजाय भी हैंडसम था. रूबी को उस की छवि भी अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही लगी. यानी दोनों अपनी पसंद पर इतरा रहे थे. सुजाय और रूबी बालिग थे. भले ही वे एकदूसरे से सैकड़ों मील दूर रह रहे थे, लेकिन फोन की बातचीत और चैटिंग के जरिए वे एकदूसरे के दिल में थे. मोहब्बत ने उन की सैकड़ों किलोमीटर दूरी को समेट कर रख दिया था. उन्होंने एकदूसरे को जता दिया था कि भले ही उन के बीच में जातिधर्म की या अन्य कोई दीवार आए, वह उस दीवार को चकनाचूर कर के शादी करेंगे. दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी. फोन और सोशल मीडिया के जरिए उन का प्यार और मजबूत होता गया. रूबी 22 साल की हो चुकी थी. बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई के साथ वह टेलरिंग का काम भी सीख रही थी. उस के घर वालों को इस बात की भनक तक नहीं लग पाई थी कि उस का पश्चिम बंगाल के रहने वाले किसी अन्य मजहब के लड़के साथ चक्कर चल रहा है

हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि इज्जत के साथ वह बेटी को विदा करे. इसलिए रूबी के पिता भी उस के लिए लड़का देखने लगे. उन की मंशा थी कि जब तक कोई लड़का मिलेगा, तब तक वह बीए की पढ़ाई पूरी कर लेगी. उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी रूबी के लिए सही लड़का तलाशने को कह दिया था. इधरउधर भागदौड़ करने के बाद जनवरी, 2014 में रूबी का रिश्ता एक लड़के से तय हो गया और इसी साल अप्रैल महीने में निकाह की तारीख रखी गई. रूबी को जब अपने रिश्ते के बारे में जानकारी मिली तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले प्रेमी सुजाय से जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. इसलिए रिश्ते की बात पता लगते ही उस ने सुजाय से फोन पर बात की.

प्रेमिका की बातें सुन कर सुजाय भी हैरत में पड़ गया कि अचानक यह कैसे हो गया. रूबी ने कहा कि वह उस के अलावा किसी और से शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती. कुछ भी हो जाए वह घर वालों द्वारा तय की गई शादी का विरोध करेगी. इस के लिए यदि उसे अपना घर भी छोड़ना पड़ जाए तो वह उसे भी छोड़ देगी.

‘‘नहीं रूबी, तुम जल्दबाजी में अभी ऐसा कदम मत उठाना. तुम्हारे घर वालों ने अप्रैल में शादी की तारीख रखी है. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही कोई ऐसा उपाय निकालता हूं कि हमें कोई जुदा कर पाए.’’ सुजाय ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘सुजाय, जो भी करना है जल्दी करो. कहीं ऐसा हो कि हम लोग सोचते ही रह जाएं और…’’

‘‘नहीं रूबी, ऐसा हरगिज नहीं होगा. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और वादा करता हूं कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा.’’

‘‘ठीक है सुजाय, तुम जैसा कहोगे मैं करने को तैयार हूं. तुम बस मुझे एक दिन पहले फोन कर देना. तुम जहां कहोगे, मैं जाऊंगी.’’ रूबी खुश होते हुए बोली. उधर शादी तय करने के बाद रूबी के घर वाले शादी का सामान जुटाने लगे. लेकिन उन्हें बेटी के मन की बात पता नहीं थी. उन्हें पता नहीं था कि जिस की शादी की तैयारी करने में वे फूले नहीं समा रहे हैं, वही बेटी परिवार की इज्जत उछालने के तानेबाने बुनने में लगी है. इसी बीच 11 फरवरी, 2014 को सुजाय ने रूबी को फोन किया और बताया कि उस के घर वालों ने भी उस की शादी कहीं और तय कर दी हैसुजाय की बात पूरी होने के पहले ही रूबी गुस्से में बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘रूबी, तुम ने मेरी पूरी बात तो सुनी नहीं.’’

‘‘बताओ.’’

‘‘देखो रूबी, घर वालों ने मेरी शादी तय जरूर कर दी है, लेकिन मैं उस लड़की से नहीं, बल्कि तुम से शादी करूंगा. मैं जब प्यार तुम से करता हूं तो भला शादी किसी और से कैसे करूंगा?’’

प्रेमी की बात सुन कर रूबी की जान में जान आई. इस के बाद दोनों काफी देर तक सामान्य रूप से बातें करते रहे. उन्होंने तय कर लिया था कि अब जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे. इस के बाद एक दिन सुजाय ने रूबी को फोन किया, ‘‘रूबी, मैं ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है कि हमें क्या करना है. ऐसा करना, तुम 21 फरवरी को अपने घर से बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच जाना. इधर से मैं भी वहां पहुंच जाऊंगा. तुम्हारी और अपनी एयर टिकट मैं पहले ही खरीद लूंगा. बंगलुरु से हम लोग दिल्ली जाएंगे. यहां शादी करने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

‘‘घर जाने के बाद अगर तुम्हारे घर वालों ने मुझे नहीं स्वीकारा तो..?’’

‘‘तो क्या हुआ? वे हमारे रिश्ते को स्वीकारें या स्वीकारें, मुझे चिंता नहीं है. मैं घर छोड़ दूंगा और कहीं दूसरी जगह जा कर रह लेंगे. रूबी, मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए, जमाना चाहे कुछ भी कहे, मुझे फिक्र नहीं है.’’

‘‘सुजाय, मैं तो मन से तुम्हारी कब की हो चुकी हूं और शादी के बाद हमारी बेताबी भी दूर हो जाएगी. मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘बस, मुझे तुम्हारी इसी हिम्मत की जरूरत है. अच्छा, तुम एक काम करना, घर से निकलते समय ज्वैलरी और कुछ पैसे लेती आना, जो हम लोगों की जरूरत पर काम सकेंगे.’’

‘‘तुम फिक्र करो. अगर तुम भी कहते तो मैं ये सब साथ लाती. बस तुम मुझे बंगलुरु हवाईअड्डे पर मिलना.’’

‘‘हां, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. गांव से बंगलुरु आते समय तुम अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ओके, तुम भी अपना खयाल रखना.’’ कहने के बाद उन्होंने अपनी बात खत्म कर दी.

रूबी एक ठोस निर्णय ले चुकी थी. वह घर से फरार होने की तैयार करने लगी. 20 फरवरी की शाम तक उस ने घर में रखी 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए अपने कालेज ले जाने वाले बैग में रख लिए. अगले दिन उसे बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचना था, इसलिए रात भर वह सो नहीं पाई. 21 फरवरी की सुबह अपना कालेज बैग ले कर रूबी कालेज जाने के लिए घर से निकली और इलकल से बस पकड़ कर वह रात साढ़े 9 बजे बंगलुरु एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां सुजाय उस का पहले से इंतजार कर रहा था

रूबी और सुजाय ने जब पहली बार एकदूसरे को हकीकत में देखा तो रूबी उस के सीने से लिपट गई. दोनों के दिल करीब आए तो धड़कनें स्वाभाविक ही बढ़ गईं. चूंकि वह सार्वजनिक जगह थी, इसलिए उन्होंने चाहते हुए भी खुद को कंट्रोल किया. सुजाय ने बंगलुरु से दिल्ली तक की जेट एयरवेज की 2 टिकटें पहले से बुक कर रखी थीं. वहां से दोनों फ्लाइट से रात करीब डेढ़ बजे दिल्ली गए. चूंकि दोनों पहली बार मिले थे, इसलिए सुजाय उस से जी भर कर बातें करना चाहता था. इसलिए रूबी को ले कर दिल्ली एयरपोर्ट के नजदीक महिपालपुर इलाके में गया और वहां स्थित एक गेस्टहाउस में एक कमरा बुक करा लिया. रूबी ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था, ताकि घर वाले उसे ढूंढ़ सकें.

कोई भी जवान लड़कालड़की, जो आपस में सगेसंबंधी हों, अगर उन्हें लंबे समय तक एकांत में रहना पड़ जाए तो उन के बहकने की आशंकाएं अधिक होती हैं. रूबी और सुजाय तो प्रेमीप्रेमिका थे, इसलिए गेस्टहाउस के कमरे में वे इतने नजदीक गए कि उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. उधर रूबी शाम तक घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया, वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन का परेशान होना लाजिमी था. वैसे भी कोई जवान बेटी घर वालों से बिना कुछ बताए गायब हो जाए तो मांबाप की क्या स्थिति होगी, इस बात को रूबी की अम्मी और अब्बू ही महसूस कर रहे थे.

उन्होंने रूबी के बारे में संभावित जगहों पर फोन कर के पता किया, लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना इलकल पहुंच गए और 22 वर्षीया रूबी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. रूबी के पिता ने बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि पुलिस बेटी के बारे में कुछ पता लगा पाएगी. बेटी की चिंता में उन्हें नींद नहीं आई. अगले दिन 22 फरवरी को भी वह अपने तरीके से बेटी को खोजने लगे. तभी सुबह 10 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने धड़कते दिल से काल रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से रौबदार आवाज में कोई आदमी बोला, ‘‘तुम रूबी के लिए परेशान हो रहे हो ..?’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही रूबी के पिता बोले, ‘‘हांहां, कहां है मेरी बेटी?’’

‘‘वह जिस के पास है, हमें पता है. वे लोग इतने खतरनाक हैं कि अगर उन की मांग नहीं मानी गई तो वे लड़की को खत्म कर देंगे या फिर उसे किसी कोठे पर बेच देंगे.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी बेटी को कुछ नहीं होना चाहिए. मैं उन की सारी मांगें मानूंगा. मगर यह तो बता दो कि जिन के पास मेरी बेटी है, वे लोग मुझ से चाहते क्या हैं?’’

‘‘10 पेटी. यानी 10 लाख रुपए दे दो और बेटी को ले जाओ. एक बात का ध्यान रखना, यह बात पुलिस को पता नहीं लगनी चाहिए, वरना बेटी को कफन ओढ़ाने की नौबत जाएगी. पैसे ले कर कब और कहां आना है, बाद में बता दिया जाएगा. और पैसे ले कर अकेले ही आना.’’ कहने के बाद फोन काट दिया गया. फोन पर बात करने के बाद रूबी के पिता को यह तो पता चल गया कि बेटी का किसी ने अपहरण कर लिया है. लेकिन उन के दिमाग में एक दुविधा यह भी थी कि वह इस मामले की खबर पुलिस को दें या नहीं? क्योंकि पुलिस में सूचना देने पर अपहर्त्ता ने उन्हें अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी. उन की पत्नी ने पुलिस को खबर करने को कहा, जबकि सगेसंबंधियों और दोस्तों ने पुलिस के पास जाने की सलाह दी.

फिर वह काफी सोचनेसमझने के बाद पुलिस के पास पहुंच गए. उन्होंने इलकल के थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर भी दे दिया, जिस से उन के मोबाइल पर फिरौती का फोन आया थाथानाप्रभारी ने उन की तहरीर पर एफआईआर नंबर 33/2014 भादंवि की धारा 364 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जिस नंबर से फिरौती की काल आई थी, थानाप्रभारी ने उस नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन दिल्ली की मिली. थानाप्रभारी ने यह बात अपने उच्चाधिकारियों को बताई. बगालकोट जिले में एक आईपीएस अधिकारी हैं मिस्टर मार्टिन. मार्टिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश से अच्छी तरह परिचित थे. उन्होंने आईपीएस अधिकारी कुमार ज्ञानेश से फोन पर बात कर के रूबी को सकुशल बरामद कराने में सहयोग मांगा.

चूंकि मामला अंतरराज्यीय था, इसलिए कुमार ज्ञानेश ने क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव की जानकारी में यह बात लाई. दिल्ली पुलिस इस से पहले भी दूसरे प्रदेशों में बड़े अपराध कर के भागे अनेक अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के संबंधित राज्यों की पुलिस के हवाले कर चुकी थी. इसलिए अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने कर्नाटक पुलिस का सहयोग करने के लिए क्राइम ब्रांच की एंटी स्नैचिंग सेल के इंसपेक्टर सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई सुरेंद्र दलाल, एएसआई मुकेश त्यागी, हेडकांस्टेबल राजबीर सिंह, ऋषि कुमार आदि को शामिल किया. टीम का निर्देशन डीसीपी कुमार ज्ञानेश को सौंपा गया.

उधर कर्नाटक पुलिस के इंसपेक्टर रविंद्र शिरूर, एसआई प्रदीप तलकेरी, बस्वराज लमानी की टीम 23 फरवरी, 2014 को दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच औफिस पहुंच गई. टीम के साथ रूबी का बहनोई भी था. जिस मोबाइल नंबर से अपहर्त्ता ने रूबी के पिता को फिरौती की काल की थी, उस नंबर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन लगातार महिपालपुर इलाके की रही थी. महिपालपुर के जिस इलाके की फोन की लोकेशन रही थी, उस इलाके में अनेक गेस्टहाउस और होटल थे. पुलिस ने अनुमान लगाया कि शायद अपहर्त्ताओं ने लड़की को किसी गेस्टहाउस या होटल में बंद कर रखा है, इसलिए कर्नाटक पुलिस के साथ दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने उस इलाके के एकएक होटल और गेस्टहाउस की तलाशी लेनी शुरू कर दी

रूबी के बहनोई के पास रूबी का फोटो मौजूद था. फोटो के सहारे पुलिस होटलों और गेस्टहाउसों का कोनाकोना छान रही थी. कुछ देर की सर्चिंग के बाद पुलिस को एक गेस्टहाउस में रूबी मिल गई. उस के साथ एक युवक भी था. पुलिस के साथ अपने जीजा को देख कर रूबी थोड़ा चौंकी जरूर, लेकिन उसे देख कर ऐसा नहीं लग रहा था, जैसे उस का अपहरण हुआ हो. यानी उस के चेहरे पर कोई डर नहीं था. कर्नाटक पुलिस ने रूबी को अपनी हिफाजत में लेने के बाद जब उस के किडनैप होने की बाबत पूछा तो उस ने साफ कहा कि उस का किसी ने अपहरण नहीं किया, बल्कि वह अपने घर से खुद अपने प्रेमी के पास आई है. रूबी के पिता के पास काल तो अपहरण की गई थी, लेकिन यहां बात दूसरी सामने रही थी.

पुलिस ने रूबी के साथ जिस युवक को हिरासत में लिया था, पूछताछ करने पर पता चला कि उस का नाम सुजाय डे है. वह पश्चिम बंगाल के 24 परगना के गांव गोबरडंग का रहने वाला है और वह रूबी से प्यार करता था. रूबी ने भी उसी समय सुजाय की बात की पुष्टि कर दीपुलिस ने जब उस की तलाशी ली तो उस के पास वह मोबाइल सिम कार्ड मिल गया, जिस से रूबी के पिता को 10 लाख रुपए की फिरौती की काल की गई थी. इस से कर्नाटक पुलिस को विश्वास हो गया कि सुजाय ने ही फिरौती की काल की होगी. जबकि रूबी प्रेमी का पक्ष लेते हुए कहती रही कि सुजाय ऐसा नहीं कर सकता. उस ने अपने जीजा से कह दिया कि वह बालिग है, सुजाय के साथ ही शादी करेगी और अब अपने घर नहीं लौटेगी.

पुलिस ने उसी के सामने जब सुजाय डे से पूछताछ की तो उस के पास सच उगलने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था. क्योंकि पुलिस उस का सिमकार्ड बरामद कर चुकी थी. इस बात को वह झुठला नहीं सकता था. इसलिए उस ने रूबी के पिता को फिरौती के लिए फोन करने की बात स्वीकार कर ली. फिर रूबी को प्यार के जाल फांसने से ले कर उस के पिता से फिरौती मांगने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. 27 साल का सुजाय डे कोई बड़ा बिजनैसमैन नहीं था, बल्कि उस के यहां टीशर्ट और अंडरगारमेंट्स सिलने का छोटामोटा काम होता था. इंटरमीडिएट पास करने के बाद वह भी पिता के साथ इस काम में थोड़ाबहुत सहयोग कर देता था. वह हमेशा कम समय में ज्यादा पैसे कमाने के सपने देखा करता था.

6-7 महीने पहले गलती से उस ने किसी नंबर पर मिस काल की. इत्तफाक से वह काल रूबी के मोबाइल पर लग गई. रूबी ने उस नंबर पर कालबैक की. बातों ही बातों में सुजाय ने उस पर प्यार के डोरे डालने शुरू कर दिए. उसी बातचीत में उसे रूबी के घरपरिवार, हैसियत आदि की जानकारी हो गई. प्यार के जाल में फांस कर वह उस से ज्यादा से ज्यादा पैसे ऐंठना चाहता था. तभी तो उस के कहने पर रूबी अपने मांबाप के यहां से 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए नकद ले कर बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच गई थी. सुजाय ने पहले ही बंगलुरु से दिल्ली जाने वाली जेट एयरवेज की 2 टिकटें बुक करा ली थीं. दिल्ली के महिपालपुर स्थित एक गेस्टहाउस में उस ने एक कमरा बुक करा लिया था

उसे जब वहां पता चला कि रूबी अपने साथ साढ़े 3 लाख रुपए नकद और 10 तोला सोने की ज्वैलरी ले कर आई है तो वह काफी खुश हुआ. उस ने उसे शादी का झांसा दे ही रखा था, इसलिए रूबी ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाते समय कोई आनाकानी नहीं की. सुजाय को अब यह पता लग चुका था कि रूबी के पिता बहुत पैसे वाले हैं, रूबी के घर वालों के फोन नंबर उस के पास थे, इसलिए गेस्टहाउस के बाहर कर उस ने उस के पिता को 10 लाख रुपए की फिरौती का फोन कर दिया. उन्होंने रूबी के गायब होने की सूचना पहले ही पुलिस को दे रखी थी. फिरौती की काल मिलने पर इलकल थाने की पुलिस हरकत में गई और दिल्ली पुलिस के सहयोग से रूबी को बरामद कर सुजाय को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने रूबी के पास से साढ़े 3 लाख रुपए नकद और सोने की वह ज्वैलरी भी बरामद कर ली थी, जो वह अपने घर से ले कर आई थीरूबी और सुजाय डे को कर्नाटक पुलिस 23 फरवरी को ही दिल्ली से कर्नाटक ले गई. पुलिस ने सुजाय डे को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया तथा रूबी को उस के पिता के सुपुर्द कर दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रूबी परिवर्तित नाम है.

कालगर्ल रैकट की सरगना निकली मास्टरमाइंड

साधारण परिवार में पैदा हुई रिंकी शहजादियों वाला जीवन जीना चाहती थी. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. रेखा ने इसी का फायदा उठाया और उसे ही नहीं, उस के 3 साल के बेटे को भी बेच दिया. लेकिन बाद में जो हुआ, वह कतई ठीक नहीं थी. रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी.

सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है. राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे. लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले नेहैलोकहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’ अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया

बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी. उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था. 2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई. तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी. पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी. तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया. एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा. मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी.

 उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे. रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था. रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. 1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई. अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया. रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा. रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली. 21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर टे्रन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ाशायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडं़जे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी. कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया थाइस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

बाप ने बेटी की सुपारी देकर मरवाया

ममता का कसूर यह था कि वह दूसरी जाति के युवक सोमबीर से प्यार कर बैठी. इतना ही नहीं, उस ने सोमबीर से कोर्ट में शादी भी कर ली. यह बात ममता के घर वालों को इतनी नागवार लगी कि उन्होंने ऐसा खूनी खेल खेला, जिस में एक पुलिस अधिकारी की भी जान चली गई. इंटरमीडिएट करने के बाद सोमबीर ने आगे की पढ़ाई का इरादा त्याग दिया था. अब वह कोई कामधंधा करना चाहता था. रोहतक के पास स्थित सोमबीर के गांव सिंहपुरा में कई ऐसे युवक थे, जो ऊंची डिग्रियां ले कर नौकरी की तलाश में भटकने के बाद भी बेरोजगार थे. इसी के मद्देनजर सोमबीर ने पहले ही सोच लिया था कि वह नौकरी के चक्कर में पड़ कर अपना खुद का कोई काम शुरू करेगा, जिस में सीधा कमाई का जरिया बन जाए.

सोचविचार कर उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने का फैसला किया. इस काम में तो ज्यादा मेहनतमशक्कत की जरूरत थी और ही ज्यादा भागदौड़ की. हां, एक अदद पूंजी की जरूरत जरूर थी, जो उस ने अपने पिता जयराज की मदद से थोड़े ही दिनों में एकत्र कर ली थी. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग के काम के लिए पास के गांव गद्दीखेड़ा को चुना. सोमबीर ने गद्दीखेड़ा के जाट रामकेश के मकान में किराए का कमरा ले कर अपना औफिस खोल लिया. धीरेधीरे उस का काम चल निकला तो वह उसी मकान में एक दूसरा कमरा ले कर रात में भी वहीं रहने लगा. कुछ ही दिनों में वह मकान मालिक रामकेश के पूरे परिवार के साथ काफी घुलमिल गया.

रामकेश के परिवार में पत्नी सरिता के अलावा 3 बेटियां थीं, जिन में सब से बड़ी ममता थी. ममता जब ढाई साल की थी, तभी उसे रोहतक की श्याम कालोनी में रहने वाली उस की बुआ कृष्णा ने गोद ले लिया था. वह रोहतक में बारहवीं में पढ़ रही थी. पिछले साल ममता रोहतक से अपने जैविक मातापिता के घर गद्दीखेड़ा गई थी. ममता 17 साल की जवान हो चुकी थी. मां सरिता ने बेटी को देखा तो देखती रह गई. ममता ने आगे बढ़ कर मां के पैर छुए तो सरिता निहाल हो गई. ममता अपनी दोनों छोटी बहनों से गले मिली, कुशलक्षेम पूछा. ममता के आने से पूरे घर का माहौल खुशनुमा हो गया. सरिता ने फोन कर के अपनी ननद कृष्णा से कह दिया कि ममता कुछ दिनों यहां रहने के बाद रोहतक लौटेगी, इसलिए वह उसे जल्दी बुलाने के लिए फोन करे.

एक दिन ममता का सामना सोमबीर से हुआ तो वह उसे अपलक देखता रह गया. गोरीचिट्टी, बला की खूबसूरत ममता किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. दरअसल, सोमबीर को यह मालूम नहीं था कि रामकेश अंकल की एक और बड़ी लड़की भी है, जिसे बचपन में ही उस के फूफा ने गोद ले लिया था. ममता ने उसे अपनी ओर टकटकी लगाए देखा और पलभर के लिए उसे तिरछी नजरों से देखते हुए मुसकरा कर घर के अंदर चली गई. ममता और सोमबीर की यह पहली मुलाकात थी, जो कुछ कह कर भी बहुत कुछ कह गई थी. इस के कुछ दिनों बाद जब सोमबीर को ममता से बात करने का मौका मिला तो वह उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा. ममता को जाने क्यों उस की बातें अच्छी लगीं

इसे उम्र का तकाजा कह सकते हैं और पहली नजर का प्यार भी, जिस में आकर्षण की भूमिका बड़ी होती है. बहरहाल, इसी के चलते सोमबीर और ममता ने भी प्यार का इजहार भी किया. प्यार जैसेजैसे दिन गुजरते गए, सोमबीर और ममता एकदूसरे के प्यार में डूबते चले गए. शुरू में तो सरिता और रामकेश ने ममता और सोमबीर के मिलनेजुलने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वे हद से आगे बढ़ने लगे तो उन का माथा ठनका. सरिता ने ममता को समझाया कि सोमबीर अनुसूचित जाति का लड़का है, इसलिए उस से ज्यादा घुलनामिलना ठीक नहीं है. ममता ने मां की बातें एक कान से सुन कर दूसरे से बाहर निकाल दीं

इस के बाद सरिता बेटी पर नजरें रखने लगी. हालांकि ममता और सोमबीर रामकेश और सरिता की नजरों से बच कर मिलते थे, पर उन की अनुभवी आंखों को धोखा देना आसान नहीं था. कई बार किसी किसी ने दोनों को मिलते हुए देख लिया और इस की खबर रामकेश तक पहुंचा दी. पानी सिर से ऊपर जाते देख रामकेश ने सोमबीर को ममता से दूर रहने के लिए कहा. इतना ही नहीं, उसे छोटी जाति का हवाला दे कर खतरनाक परिणाम भुगतने की भी चेतावनी दी. रामकेश की धमकी से परेशान सोमबीर ने ममता से कहा कि दोनों के परिवार वाले उन्हें किसी भी हाल में मिलने नहीं देंगे, इसलिए जल्दी ही कोई उपाय नहीं किया गया तो उन का एक होना मुश्किल हो जाएगा

सोमबीर की बातें सुन कर ममता उसे विश्वास दिलाते हुए बोली कि वह उस के बिना नहीं जी सकती. इस के बाद दोनों ने एक साथ जीने और मरने की कसमें खाईं. सोमबीर जानता था कि ममता के घर वाले एक तो जाट हैं और दूसरे रसूख वाले दबंग भी, इसलिए उस ने कानून का सहारा ले कर कोर्ट में शादी करने की योजना बनाई. 24 अगस्त, 2017 को ममता मौका पा कर घर से निकली और सोमबीर के पास पहुंच गई. सोमबीर उसे साथ ले कर चंडीगढ़ पहुंचा. वहां दोनों ने पहले आर्यसमाज मंदिर में और फिर कोर्ट में शादी कर ली. ममता के गायब होने की बात जब उस की मां सरिता को पता चली, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सरिता और रामकेश ने यह बात रमेश को बताई तो उन्हें ममता की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. मां कृष्णा भी ममता की इस हरकत से सन्न रह गई. वे लोग रामकेश के घर गए

सोमबीर के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट सब ने विचारविमर्श कर के रोहतक के थाना आर्यनगर में ममता के नाबालिग होने और सोमबीर उस के पिता जयराज के खिलाफ अपनी बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज करवा दिया. गांवों और ग्रामीण समाज में ऐसी बातें देरसबेर किसी किसी तरह पहुंच ही जाती हैं. जिस ने भी इस बारे में सुना वह इस बात को और भी बढ़ाचढ़ा कर बखान करने लगा. जितने मुंह उतनी ही बातें होने लगीं. मामला केवल प्रेम विवाह का नहीं था, बल्कि इस बात का था कि जाट बिरादरी की एक लड़की ने अपने से छोटी जाति के लड़के के साथ शादी रचा ली है. रामकेश और रमेश के परिवार की बिरादरी में थूथू होने लगी. इस सब से गुस्साए रमेश ने ममता की हत्या करने का फैसला कर लिया

रमेश के इस फैसले से ममता को जन्म देने वाली मां सरिता और पिता रामकेश भी सहमत थे. सब से पहले उन्होंने कोर्ट में ममता का स्कूल सर्टिफिकेट दे कर बताया कि ममता अभी नाबालिग है, 17 साल की. इसलिए कोर्ट उस की शादी को रद्द घोषित करे. जब कोर्ट ने इस मामले की छानबीन की तो पता चला ममता की उम्र सचमुच 17 साल ही है. हकीकत जानने के बाद कोर्ट ने सोमबीर और ममता को कोर्ट में पेश होने का सम्मन जारी कर दिया. यह बात जनवरी, 2018 की है. जब दोनों कोर्ट में पेश हुए तो पता चला कि सोमबीर ने फरजी तरीके से ममता की उम्र 18 साल बता कर उस से शादी की थी. कोर्ट को धोखे में रखने के जुर्म में सोमबीर और उस के पिता को जेल और ममता को बालिग होने तक नारी निकेतन भेज दिया गया. ममता के बालिग होने में अभी 17 महीने बाकी थे.

ममता के बालिग हो जाने के बाद 8 अगस्त, 2018 को रोहतक कोर्ट में पेश किया जाना था. उधर करनाल स्थित नारी निकेतन में रह रही ममता की खुशी देखते ही बन रही थी. लोगों ने ममता को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा था. वह सब से कह रही थीआज मैं अपने घर चली जाऊंगी.’ सबइंसपेक्टर नरेंद्र और लेडी हैडकांस्टेबल सुशीला ममता को नारी निकेतन से ले कर रोहतक कोर्ट पहुंचे. चूंकि ममता का पति सोमबीर और ससुर जेल में थे, इसलिए सोमबीर की मां सरोज तथा छोटा भाई देवेंद्र कोर्ट पहुंचे थे. सरोज और देवेंद्र काफी डरे हुए थे, जिस की वजह ममता के पिता की ओर से समयसमय पर दी गई जान से मार देने की धमकियां थीं

यहां तक कि ममता ने यह कह कर कई बार अपने दत्तक पिता रमेश से माफ कर देने की गुहार भी लगाई थी कि वह अपनी इस नई जिंदगी से काफी खुश है. लेकिन ममता द्वारा अपने से छोटी जाति के युवक से शादी कर लेने से बुरी तरह आहत रमेश का एक ही रटारटाया जवाब था, ‘ममता को मरना होगा, क्योंकि उस ने सोमबीर से शादी कर के हमें समाज और बिरादरी के आगे हमेशा के लिए नीचे झुका दिया है.’  ममता को जन्म देने वाली मां सरिता और पिता रामकेश भी उस की जान बख्शने को तैयार नहीं थे. रमेश तथा रामकेश भी कोर्ट में मौजूद थे. ढाई बजे कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराने के बाद ममता अपनी सास सरोज, देवर देवेंद्र के साथ लघु सचिवालय के गेट नंबर-2 से बाहर निकल रही थी. साथ में सबइंसपेक्टर नरेंद्र और लेडी हैडकांस्टेबल सुशीला भी थे.

पांचों लोगों ने सड़क के पार पहुंच कर एक दुकान पर जूस पीया. वहां से निकल कर वे आटो पकड़ने के लिए आगे बढ़ ही रहे थे कि तभी पीछे से आए 2 मोटरसाइकिल सवारों ने ममता को 3 गोलियां मारीं. एसआई नरेंद्र ने हमलावरों को मारने के लिए अपना रिवौल्वर निकालने की कोशिश की, लेकिन वे ऐसा कर पाते इस से पहले ही हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी. वह सड़क पर ही ढेर हो गए. हेडकांस्टेबल सुशीला ने सरोज को बदमाशों की गोलियों से बचाने के लिए नीचे गिरा दिया था. देवेंद्र सड़क से पत्थर उठाने के लिए नीचे झुका तो गोलियां उस के सिर के ऊपर से गुजर गईं. हमलावर उन पर और भी गोलियां चलाना चाहते थे, लेकिन गोलियां खत्म होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए.

योजना बना कर किया हमला हमलावरों के भाग जाने के बाद हैडकांस्टेबल सुशीला जैसेतैसे घायल ममता और सबइंसपेक्टर नरेंद्र को उठा कर पीजीआई रोहतक ले गई. लेकिन दोनों को बचाया नहीं जा सका. घटना के बाद पूरे क्षेत्र में हडंकंप मच गया. हमलावरों को पकड़ने के लिए रोहतक में सड़कों पर बैरिकेड्स लगा कर तलाशी अभियान चला, लेकिन वे भागने में कामयाब रहे. 8 अगस्त को लेडी हेडकांस्टेबल सुनीता के बयान पर ममता और सबइंसपेक्टर नरेंद्र की संदिग्ध हत्यारों के विरुद्ध भादंवि की धारा 333, 353, 196, 307, 302, 34 और 120बी के तहत दर्ज कर के तफ्तीश शुरू की गई. इस केस की जांच आर्यनगर की थानाप्रभारी सुनीता को सौंपी गई.

रोहतक के एसपी जशनदीप सिंह ने डीएसपी रमेश कुमार को निर्देश दिया कि इस केस से संबंधित सभी आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. थानाप्रभारी सुनीता ने हमलावरों की तलाश में ममता के पिता रामकेश के गांव गद्दीखेड़ा में दबिश दी. वहां वारदात में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल तो मिल गई पर वहां से कातिल फरार हो चुके थे. रामकेश और सरिता से पूछताछ करने के बाद दोनों को 10 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया. उसी दिन ममता के दत्तक पिता को भी पुलिस उन के घर से गिरफ्तार कर थाना आर्यनगर ले आई. चारों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद ममता हत्याकांड के पीछे यह बात निकल कर सामने आई कि उस की हत्या कराने में मुख्य हाथ उस के दत्तक पिता रमेश का हाथ था. उस की हत्या 7 लाख की सुपारी दे कर कराई गई थी, जिस में मुख्य भूमिका ममता के मौसेरे भाई मोहित उर्फ मंगलू ने निभाई थी

मंगलू ने उत्तर प्रदेश के 2 पेशेवर शार्पशूटरों को ममता की हत्या की सुपारी दी थी. दोनों शूटर हत्या के एक दिन पहले गद्दीखेड़ी गांव गए थे. मोहित ने अगले दिन उन के लिए एक बाइक मुहैया करवाई और खुद शूटर्स की कार में बैठा रहाघटना वाले दिन जब ममता अपनी सास के साथ सड़क पर चल रही थी तो उस से कुछ ही दूरी पर खड़े उस के दत्तक पिता ने हत्यारों को ममता की ओर इशारा कर के उसे गोली मारने का इशारा किया. उस का इशारा पाते ही मोटरसाइकिल सवार हत्यारों ने पहले तो ममता पर गोली चलाई, लेकिन जैसे ही उन्होंने सबइंसपेक्टर नरेंद्र को रिवौल्वर निकालते देखा तो उन्हें भी गोली मार दी. इस के बाद सभी गद्दीखेड़ा गांव पहुंचे

वहां खाना खाने के बाद वे अपनी कार से फरार हो गए. पुलिस की जांच में यह तथ्य सामने आया कि ममता के मौसेरे भाई मोहित का मोबाइल फोन गद्दीखेड़ा गांव पहुंचने तक औन था. वहां पहुंचते ही उस का मोबाइल औफ हो गया था. घटना वाले दिन उस की आखिरी लोकेशन गद्दीखेड़ा गांव में ही थी. उधर पोस्टमार्टम के बाद पुलिस की निगरानी में ममता की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया. उस की लाश को मुखाग्नि उस के ताऊ के लड़के नान्हा ने दी. सबइंसपेक्टर नरेंद्र की लाश को उन के घर वालों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार पुलिस सम्मान के साथ किया. उस समय कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वहां मौजूद थे. शहीद सबइंसपेक्टर नरेंद्र के परिवार वालों को सरकार की ओर से 60 लाख रुपए का अनुदान देने की घोषणा की गई है

चूंकि नरेंद्र अनुसूचित जाति के थे, इसलिए इस दोहरे हत्याकांड में अब एससी/एसटी एक्ट जोड़ कर आगे की जांच रोहतक के डीएसपी रमेश कुमार करेंगे. ममता का पति सोमबीर और ससुर जयराज अभी भी सुनारिया जेल में बंद हैं. उन्हें अपने घर वालों की हत्या किए जाने की आशंका है. इस हत्याकांड में शामिल अन्य आरोपियों की जोरशोर से तलाश जारी है.