पुलिस को क्यों बनना पड़ा मजदूर

हैरतअंगेज घटना :

अपराधी राजू जो 11 सालों से फरार था, पुलिस की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार पकड़ लिया गया. इस अपराधी पर कई साल पहले कोर्ट के द्वारा ₹50 हजार का इनाम घोषित किया गया था. मगर इस अपराधी को पकङने के लिए पुलिस को मजदूर बनना पङा। आखिर कौन था यह अपराधी जिसे पकड़ने के लिए पुलिस मजदूर बनी, जानिए सनसनीखेज घटना…

दिल्ली की घटना

साल 2013 में दिल्ली के तिलक नगर में फैक्टरी मालिक जितेंद्र की हत्या का मामला सामने आया था जिस में राजू नाम के व्यक्ति को मुख्य आरोपी माना गया था. पुलिस की जांच के दौरान पता चला कि हत्या राजू के द्वारा की गई थी. इस के बाद वह हत्या कर के फरार हो गया. उस पर ₹50 हजार इनाम की घोषणा भी थी.

जांच में यह भी बात सामने आई कि फैक्टरी के मालिक जितेंद्र की हत्या उस के सगे भाई ने रची थी. जिस के लिए सगे भाई ने झज्जर के रविंदर राठी को ₹10 लाख में हत्या की सुपारी दी. राजू तो सिर्फ एक मुहरा था जिसे वह ₹50 हजार के लिए इस हत्या में शामिल किया था.

इस के बाद डीसीपी (क्राइम) संजय कुमार सैन के अनुसार, जितेंद्र की हत्या के बाद पुलिस ने 6 अपराधियों को गिरफ्तार किया, लेकिन मुख्य आरोपी राजू तब तक फरार हो चुका था. कोर्ट ने राजू को भगोड़ा घोषित कर दिया. पुलिस कई सालों तक उस की तलाश में लगी रही, लेकिन वह छत्तीसगढ़ और झारखंड के घने जंगलों में छिपा रहा. इस के बाद पुलिस क्राइम ब्रांच को एक खुफिया सूचना मिली कि राजू झारखंड और छत्तीसगढ़ के बौर्डर के जंगलों में छिपा हुआ है. इस के बाद एसीपी रमेश लांबा, इंस्पैक्टर सतेंद्र मोहन और इंस्पैक्टर महीपाल की अगुवाई में एक टीम बनाई गई.

पुलिस ने बिछाया जाल

इस टीम के द्वारा राजू के रिश्तेदारों के नंबरों पर काम करना शुरू किया गया. हेड कौंस्टेबल नवीन को झारखंड में रहने वाले राजू के एक रिश्तेदार का नंबर मिला कि यह नंबर कुछ ही मिनटों के लिए उपयोग किया जा रहा है और इस नंबर की लोकेशन छत्तीसगढ़ झारखंड के बौर्डर के घने जंगलों में दिखाई दे रही है. इस के बाद पुलिस अपना वेशभूषा बदल कर मजदूर बन कर जंगलों में कई दिनों तक काम करती रही. और फिर इस के बाद पुलिस की कड़ी मेहनत बाद राजू को गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तारी के बाद क्या बोला राजू

राजू का कहना था कि वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था और 1999 में उन के देहांत के बाद आर्थिक तंगी से जूझते हुए वह झारखंड के पलाम में आ गया. जहां वह ट्रक ड्राइवर के रूप में काम शुरू किया. हालात से मजबूर हो कर वह अपराध की दुनिया में कूद गया. जीतेंद्र की हत्या से पहले उस ने अपने साथी रिशु, मुकेश और अभिषेक के साथ मिल कर एक देसी कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया. फिर चारों दिल्ली पहुंचे और जितेंद्र की गोली मार कर हत्या कर दी. राजू कहता है कि हत्या के दिन सिर्फ मेरा काम बैकअप देना और गोलीबारी के बाद भागने का इंतजाम करना था.

नकली नाम से रहता था

गिरफ्तारी के बाद पता चला कि राजू का असली नाम मृत्युंजय सिंह है जो अपनी पहचान छिपा कर राजू बनारसी के नाम रहने लगा. मर्डर कर के राजू जंगलों में अपना फोन बहुत कम समय के लिए ही उपयोग किया करता था ताकि पहचान न हो जाए. पुलिस ने बताया कि राजू पहले भी एक मामले में गिरफ्तार हो चुका था. लेकिन इस बार पुलिस ने उसे 11 साल बाद आखिरकार पकड़ ही लिया.

विवाहिता के इश्क में जान गंवा बैठा शादाब

मरजीना पति को छोड़ कर प्रेमी शादाब के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि मरजीना ने ही प्रेमी की जान ले ली…

सुबह के 10 बज रहे थे. बरसात का मौसम होने के कारण उस दिन सुबह से ही उमस भरी गरमी पड़ रही थी. अफजाल उस समय अपने ड्राईंगरूम में बैठा चाय पी रहा था. जैसे ही उस ने चाय का प्याला खाली कर के रखा तो अचानक उस के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी.

कौन है?’’ अफजाल ने पूछा

मैं हूं भाईजान, सावेज.’’ बाहर से आवाज आई.

अरे सावेज, तुम? अंदर आ जाओ.’’ यह कहते हुए अफजाल ने दरवाजा खोल दिया था.

इस के बाद सावेज अंदर आ कर अफजाल के पास बैठ गया था. सावेज अफजाल का छोटा भाई था. अफजाल की बीवी मरजीना ने जब सावेज को आया देखा था तो वह उस के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थी. इस के बाद अफजाल व सावेज एकदूसरे का हालचाल पूछने लगे थे और आपस में बातें भी करने लगे थे.

अचानक सावेज बोला, ”भाई, तुम ने भाभी मरजीना के बारे में कुछ सुना है?’’

हां सावेज, रिश्तेदारी और मोहल्ले में जो बातें फैल रही हैं, मैं उस से बाकायदा वाकिफ हूं. पड़ोसी कस्बे मंगलौर के रहने वाले शादाब द्वारा समाज व रिश्तेदारी में हमें बदनाम किया जा रहा है, जिस से हम समाज में सिर उठा कर जी न सकें.’’ अफजाल बोला. 

मगर यह बात भी भाभी मरजीना द्वारा ही शुरू की गई थी. भाभी को रील बनाने की और उसे फेसबुक पर लोड करने की आदत थी तथा वह अपनी आदत के चलते पड़ोस के युवक शादाब से दिल लगा बैठी थी. इस के बाद भाभी उस के साथ लिवइन में रहने लगी थी.’’ सावेज बोला.

तेरी भाभी के शादाब के साथ लिवइन में रहने के कारण हमें कस्बा मंगलौर छोडऩा पड़ा था. इसी कारण हमें वहां से 10 किलोमीटर दूर यहां रुड़की में आ कर रहना पड़ रहा है. मैं जानता हूं कि तेरी भाभी पहले रंगीली तबियत की थी, मगर अब तो शादाब हमें लगातार बदनाम करने में लगा है. अब हम कैसे अपनी इज्जत बचाएं?’’ अफजाल बोला.

तुम इस की चिंता मत करो भाईजान, मैं ने इस का रास्ता ढूंढ लिया है. हमें शादाब को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाना पड़ेगा. भाभी मरजीना से कहेंगे कि वह फोन कर के शादाब को अपने घर बुला ले. इस के बाद हम उसे घेर लेंगे. फिर हम तीनों उस की गला दबा कर हत्या कर देंगे. फिर यह मामला खुद ही शांत हो जाएगा.’’ सावेज बोला.

मगर शादाब की हत्या के बाद उस की लाश को हम लोग कहां छिपाएंगे? ”अफजाल ने पूछा.

तुम उस की चिंता मत करो. यह काम मुझ पर छोड़ दो भाईजान. शादाब की लाश को हम बोरे में डाल कर पास में बह रही गंगनहर में रात में ही फेंक देंगे. इस के बाद किसी को भी पता नहीं चलेगा कि शादाब कहां चला गया.’’

कैसे रची मौत की साजिश

सावेज की इस योजना पर अफजाल व मरजीना ने अपनी मुहर लगा दी थी और वे तीनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में लग गए थे. शादाब के साथ लिवइन में पहले तो मरजीना रहती थी, मगर मंगलौर में अपनी हो रही बदनामी की वजह से वह रुड़की रेलवे स्टेशन के पास की कालोनी तेलीवाला में अपने पति व देवर के साथ आ कर रहने लगी थी. मरजीना का शौहर बिजली मैकेनिक था.

वह 23 अगस्त, 2024 की सुबह थी. उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. कोतवाली मंगलौर के कोतवाल शांति कुमार उस वक्त अपने औफिस में बैठे फाइलों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. उस वक्त मंगलौर के मोहल्ला मलकपुरा निवासी 55 वर्षीय मुस्तकीम कोतवाल से मिलने पहुंचा था. उस वक्त मुस्तकीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और वह घबराया हुआ सा लग रहा था. मुस्तकीम ने कोतवाल को बताया कि उस का 24 वर्षीय बेटा शादाब आसपास के क्षेत्र में फेरी लगाकर कपड़े बेचता है. गत दिवस वह किसी से मिलने के लिए घर से निकला था, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है. उस का मोबाइल नंबर भी स्विचऔफ चल रहा है.

जब कोतवाल शांति कुमार ने मुस्तकीम से पूछा कि शादाब की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी तो मुस्तकीम ने बताया कि शादाब का सभी से अच्छा व्यवहार था. मुझे उस के अपहरण की भी आशंका नहीं है. मुझे शक है कि शादाब किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. इस के बाद शांति कुमार ने मुस्तकीम को शादाब की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर उस का फोटो ले कर कोतवाली आने को कहा था. 

मलकपुरा मोहल्ला एसआई रफत अली के हलके में आता था, अत: शांति कुमार ने शादाब की गुमशुदगी का मामला रफत अली को ही सौंप दिया था. शादाब की गुमशुदगी का मामला हाथ में आते ही रफत अली सक्रिय हो गए. सब से पहले उन्होंने कांस्टेबल मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप को मोहल्ला मलकपुरा में भेजा तथा उन से शादाब के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को कहा. इस के बाद रफत अली ने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह से संपर्क कर के उन से इस मामले में उन का निर्देशन मांगा.

स्वप्न किशोर सिंह ने तत्काल गुमशुदा शादाब के मोबाइल की काल डिटेल्स एसओजी से निकलवाने के निर्देश रफत अली को दिए. अगले दिन पुलिस को शादाब की काल डिटेल्स भी मिल गई थी. शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर एसआई रफत अली के शक की सूई अटक गई थी. उधर सिपाही मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप ने शादाब के बारे में जो जानकारी हासिल की तो वह चौंकाने वाली थी. पता चला कि शादाब की कई महीनों से मरजीना नामक महिला से दोस्ती थी. मरजीना शादीशुदा थी, लेकिन वह शादाब के साथ लिवइन में रहती थी. शादाब उस पर रुपए उड़ाता था. शादाब के घर वालों ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह उस का साथ छोडऩे को तैयार नहीं था.

घर बुला कर क्यों की हत्या

अपने शौहर की बदनामी की वजह से मरजीना ने मंगलौर कस्बा छोड़ दिया था और रुड़की के रेलवे स्टेशन से सटी कालोनी तेलीवाला में आ कर रहने लगी थी. दोनों सिपाहियों ने एसआई रफत अली को बताया कि शादाब के लापता होने में मरजीना का हाथ हो सकता है. यह जानकारी पा कर रफत अली ने मरजीना से पूछताछ करने का विचार बनाया. यह भी पता चला कि शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल भी मरजीना के ही फोन से की गई थी.

वह 26 अगस्त, 2024 का दिन था. रफत अली ने शादाब के लापता होने के बारे में पूछताछ करने के लिए मरजीना व उस के पति अफजाल को कोतवाली मंगलौर में बुलाया था. शाम को जब मरजीना अपने शौहर अफजाल के साथ कोतवाली पहुंची तो उस समय वहां पर सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार भी मौजूद थे. सीओ विवेक कुमार ने शादाब के बारे में मरजीना से पूछताछ की तो मरजीना व अफजाल के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. पहले तो दोनों ने पुलिस को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर वे दोनों सीओ विवेक कुमार के प्रश्नों के जवाब में ही उलझ गए थे. 

अंत में मरजीना ने पुलिस के सामने शादाब की हत्या की बात कुबूल कर ली थी. मरजीना ने पुलिस को बताया कि गत 22 अगस्त, 2024 को मैं ने ही शादाब को फोन कर के अपने घर पर बुलाया था. शादाब द्वारा हमारे परिवार को बदनाम करने के कारण हम उस से बदला लेना चाहते थे. जब शादाब मरजीना के घर पर पहुंचा तो मरजीना और उस के पति अफजाल ने शादाब के हाथ व पैर पकड़ लिए थे. इस के बाद सावेज ने शादाब का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. रात को 2 बजे तीनों ने शादाब के शव को एक बोरे में डाल लिया. फिर उस बोरे को बाइक पर ले जा कर अफजाल व सावेज ने शव गंगनहर में डाल दिया था.

पुलिस ने मरजीना के ये बयान रिकौर्ड कर लिए थे. इस के बाद सावेज को भी हिरासत में ले लिया गया. सावेज की निशानदेही पर शादाब का मोबाइल फोन व उस की चप्पलें भी बरामद कर ली गईं. अफजाल व सावेज ने मरजीना के दिए बयानों का समर्थन किया था. फिर एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने मंगलौर कोतवाली पहुंच कर शादाब हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक मंगलौर पुलिस व जल पुलिस द्वारा गंगनहर के अथाह जल में शादाब के शव को तलाश किया जा रहा था. मरजीना, अफजाल व सावेज रुड़की जेल में बंद थे. शादाब हत्याकांड की विवेचना थानेदार रफत अली द्वारा की जा रही थी. रफत अली शीघ्र ही आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य जुटा कर चार्जशीट अदालत में भेजे जाने की तैयारी कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

प्रेमी संग पति की हत्या कर लाश फेंकी कुएं में

एक बच्चे की मां ज्योति अपने ममेरे देवर सुरेंद्र के साथ खूब गुलछर्रे उड़ा रही थी. एकडेढ़ साल से उन के बीच यह संबंध बिना किसी रुकावट के चल रहे थे. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि ज्योति को अपने पति महावीर शरण कौरव की हत्या कराने के लिए मजबूर होना पड़ा?

सुरेंद्र के आगोश में समाई ज्योति को जब संतुष्टि मिल गई तो वह अलग होते हुए बोली, ”हम ऐसे कब तक यूं ही मिलते रहेंगे. आज भी तुम्हारे भैया ने मुझ से मारपीट की. मैं कब तक उस गंजेड़ी के हाथों पिटती रहूंगी, बात अब बरदाश्त से बाहर होती जा रही है.’’ 

पलंग पर लेटे हुए सुरेंद्र ने ज्योति को फिर से अपनी बाहों में खींचते हुए कहा, ”मेरी जान, तुम चिंता क्यों करती हो? महावीर भैया तो बेवकूफ है. वह सारी सच्चाई जानता है, फिर भी तुम पर अत्याचार करता है. अब वह अगर ज्यादा परेशान करे तो उसे पलट कर जवाब देना.’’ 

यह बात तो ठीक है, लेकिन अगर तुम हमेशा के लिए मुझे अपनी बना कर रखना चाहते हो तो इस गंजेड़ी आदमी को मेरी जिंदगी से दूर कर दो,’’ ज्योति ने सुरेंद्र की बाहों में कसमसाते हुए कहा. 

सुरेंद्र ने ज्योति का मन टटोलते हुए पूछा, ”तुम चाहो तो मैं तुम्हें उस से तलाक दिलवा सकता हूं.’’ 

इस पर ज्योति बोली, ”वह इस जन्म में मुझे तलाक नहीं देगा. मेरी मानो तो उसे इस दुनिया से विदा कर दो. इस काम में मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’ ज्योति की बात सुन कर सुरेंद्र की आंखों में चमक आ गई, फिर भी उस ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ज्योति तुम ने तो बहुत दूर की बात सोच ली. महावीर को मरवा कर खुद भी जेल जाओगी और मुझे भी जेल भिजवा दोगी. 

ज्योति ने सुरेंद्र के चेहरे को हाथ से अपनी ओर करते हुए कहा, ”तुम भी क्या बकवास करते हो? मेरी बनाई योजना से उस का टेंटुआ दबाओगे तो तुम्हें कुछ नहीं होगा. अगर इस गंजेड़ी पति से जल्द छुटकारा नहीं मिला तो मैं खुदकुशी कर लूंगी.’’ 

ज्योति के मुंह से खुदकुशी की बात सुन कर सुरेंद्र की आंखों में खून उतर आया. वह तैश में आ कर बोला, ”मैं तुम्हें खुदकुशी करने की नौबत नहीं आने दूंगा. जल्दी ही महावीर का टेंटुआ दबा कर उस का काम तमाम कर दूंगा. तुम चिंता मत करो.’’ 

सुरेंद्र के मुंह से पति को दुनिया से विदा करने की बात सुन कर ज्योति खुश होते हुए बोली, ”ठीक है, मंगलवार को तुम महावीर को ग्वालियर जेल में हत्या के मामले में बंद रिश्तेदार से मिलने के बहाने घर से बुला कर साथ ले जाना और जेल में मुलाकात के बाद ररुआ गांव जाने की बात कह कर रास्ते में सुनसान जगह पर उसे मौत के घाट उतार देना. यह काम तुम्हें बड़ी होशियारी से करना होगा. अगर यह कांटा निकल गया तो जीवन भर मैं तुम्हारी ही बन कर रहूंगी.’’ 

इतना कह कर ज्योति ने सुरेंद्र का हाथ पकड़ लिया. सुरेंद्र ने ज्योति का हाथ अपने सीने पर रख कर कहा कि तुम अपने इस आशिक पर भरोसा रखो, मैं ने तुम से प्यार किया है और मरते दम तक तुम्हारा दामन छोडऩे वाला नहीं हूं. मैं जीवन भर साथ निभाऊंगा. यह कह कर सुरेंद्र ज्योति के घर से चला गया. यह बात 3 सितंबर, 2024 की सुबह की थी. उसी दिन सुबह करीब 10 बजे महावीर अपने घर लौटा तो ज्योति सजधज कर उस का इंतजार कर रही थी. सजीधजी ज्योति को देख कर महावीर को हैरानी हुई. वह कुछ पूछता, इस से पहले ही ज्योति चाय बना कर ले आई और पति महावीर से मीठीमीठी बातें करने लगी. 

ज्योति ने पति से कहा कि तुम्हें मेरा बदला हुआ रूप देख कर अचंभा हो रहा होगा. दरअसल, आज पड़ोस में रहने वाली गुप्ता आंटी के साथ मैं एक ज्योतिषी के पास गई थी. उन्होंने मेरा हाथ देख कर कहा कि तुम्हारा अपने पति से अकसर विवाद होता रहता है.

ऐसे हुई हत्या की प्लानिंग

पत्नी ज्योति की ओर मुखातिब हो कर महावीर ने आंखें दिखाते हुए कहा, ”यह बात ज्योतिषी ने कही या तुम ने खुद उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर बताई.’’  इस पर ज्योति बोली, ”भला मैं क्यों ज्योतिषी को ऐसी बातें बताने लगी, वैसे भी हमारे बीच कोई विवाद है ही कहां? मैं तुम्हारे ममेरे भाई सुरेंद्र से थोड़ा हंसबोल लेती हूं. इतनी सी बात पर तुम मुझ से झगड़ा करने लगे और उल्टासीधा बोलने लगे. अब ज्योतिषी ने कहा है कि मैं हमेशा तुम्हारा सहयोग करूं और तुम्हारी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ूं, इस से हमारा प्यार बना रहेगा.’’ 

ज्योति की ये बातें सुन कर महावीर का गुस्सा शांत हो गया. वह चाय पीने के बाद अपने काम में लग गया.  उसी दिन दोपहर करीब 3 बजे योजना के अनुसार सुरेंद्र महावीर के घर पहुंचा. उस ने महावीर से कहा कि मैं ग्वालियर जेल में हत्या के मामले में बंद रिश्तेदार से मुलाकात करने जा रहा हूं, अगर तुम्हारी भी चलने की इच्छा हो तो अपनी बाइक निकालो, दोनों साथ चलते हैं. ग्वालियर जेल में रिश्तेदार से मिलने जाने की बात पर महावीर तैयार हो गया. उस ने अपनी बाइक निकाली. दोनों ग्वालियर के लिए चल दिए. जब वे ग्वालियर जेल पहुंचे, तब तक बंदियों से मुलाकात का समय खत्म हो चुका था. इस पर सुरेंद्र और महावीर ने वह रात रेलवे स्टेशन के बाहर गुजारी. 

अगले दिन यानी 4 सितंबर की सुबह सुलभ शौचालय में दैनिक कार्यों से निवृत्त हो कर उन्होंने नाश्ता किया. इस के बाद दोनों ने ग्वालियर जेल में बंद रिश्तेदार से मुलाकात की. मुलाकात के बाद सुरेंद्र और महावीर चल दिए, तब तक दोपहर हो गई थी. उन्हें भूख भी लग रही थी. दोनों ने एक होटल पर खाना खाया. भोजन के पैसे सुरेंद्र ने दिए. खाना खाने के बाद सुरेंद्र ने ज्योति की योजना के मुताबिक महावीर से कहा कि तुम्हारे गांव ररुआ चलते हैं. मुझे भी बुआफूफा से मिले बहुत समय हो गया है. तुम अपने मातापिता से मिल लेना. ररुआ से मैं अपने गांव मुरावली चला जाऊंगा और तुम अपने घर गुडीगुडा नाका चले जाना. रास्ते में पीने के लिए मैं गांजा खरीद लेता हूं. 

दोनों गांजा पीने के शौकीन थे. इसलिए सुरेंद्र की बात पर महावीर खुश हो गया. सुरेंद्र ने ग्वालियर में ही एक जगह से गांजा खरीदा. इस के बाद वे दोनों बाइक पर ररुआ गांव की तरफ चल दिए.  रास्ते में वे आपस में बातें करते हुए जा रहे थे. उटीला के पास सुरेंद्र के मोबाइल पर ज्योति का 2 बार फोन आया तो सुरेंद्र ने महावीर से कह कर बाइक रुकवाई और ज्योति से हां हूं करते हुए बात की. इस के बाद दोनों फिर चल दिए. कुछ दूर चलने पर भोगीपुरा से आगे सुनसान जगह पर पेड़ों की छाया देख कर सुरेंद्र ने गांजा पीने के बहाने कुएं के पास बाइक रुकवाई. महावीर और सुरेंद्र वहां मंदिर के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गए. वे गांजा पीने लगे. इस बीच महावीर ने सुरेंद्र से पूछा कि ज्योति का फोन तेरे मोबाइल पर क्यों आ रहा है

इसी बात पर दोनों में विवाद होने लगा. विवाद के बीच सुरेंद्र ने महावीर के सिर पर बड़े से पत्थर से वार कर दिया. महावीर के सिर पर गहरी चोट लगी और तेजी से खून बहने लगा. महावीर वहीं लुढ़क गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. सुरेंद्र को जब यह पूरा विश्वास हो गया कि महावीर मर चुका है तो वह नफरत से उस पर थूकता हुआ बोला, ”मर गया कमीना. मेरे और ज्योति के बीच का कांटा हमेशा के लिए निकल गया.’’ 

इस के बाद सुरेंद्र ने खुद को संभाला और महावीर की लाश चबूतरे से घसीट कर वहां पास ही बने कुएं में डाल दी. सुरेंद्र को भरोसा था कि दूसरे गांव में महावीर की शिनाख्त नहीं हो पाएगी तो मामला रफादफा हो जाएगा. पूरी तरह निश्चिंत हो कर सुरेंद्र ने ज्योति को फोन किया और कहा कि महावीर का काम तमाम कर दिया है. सबूत मिटाने के लिए सुरेंद्र ने महावीर की बाइक नहर के पास लावारिस छोड़ दी. उस का मोबाइल और खुद के खून सने कपड़े रतनगढ़ माता मंदिर मार्ग पर झाडिय़ों में फेंक दिए. 

इस के बाद रात को सुरेंद्र अपनी प्रेमिका ज्योति के पास पहुंचा. ज्योति भी उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों ने मौजमस्ती कर महावीर की मौत का जश्न मनाया. ज्योति और सुरेंद्र ने पूरी रात एकदूसरे की बाहों में गुजारी. सुबह होने पर ज्योति के कहने पर सुरेंद्र अयोध्या घूमने चला गया.

किस की थी कुएं में मिली लाश

5 सितंबर की सुबह रोजाना की तरह चरवाहे अपने पशुओं को ले कर भोगीपुरा में रोड किनारे पिंटू गुर्जर के खेत में बने कुएं पर पानी पिलाने पहुंचे तो एक चरवाहे की नजर अनायास ही कुएं में पड़ी युवक की लाश पर चली गई. लाश देख कर भय के मारे चरवाहे के मुंह से चीख निकल गई. उस ने आवाज लगा कर अपने साथी चरवाहों को वहां बुला लिया और उन्हें भी कुएं में पड़ी लाश दिखाई. लाश देख कर चरवाहे आपस में बतियाने लगे. उन्हीं में से किसी ने उटीला थाने में फोन कर कुएं में युवक की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

इस सूचना को एसएचओ शिवम राजावत ने गंभीरता से लिया. वह जब तक कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक कुएं में लाश पड़ी होने का पता चलने पर आसपास के गांवों के लोगों की अच्छीखासी भीड़ कुएं के पास जमा हो चुकी थी. इन में महिलाओं से ले कर बड़ेबूढ़े और बच्चे भी शामिल थे. मौके पर पहुंची पुलिस ने लोगों को घटनास्थल से दूर हटाया. वे लोग युवक की लाश को ले कर तरहतरह की चर्चा में मशगूल थे. इस बीच एसएचओ की सूचना पर एसडीआरएफ की टीम भी मौके पर पहुंच गई. 

बेहट एसडीओपी संतोष पटेल और उटीला थाने के एसएचओ शिवम राजावत की मौजूदगी में एसडीआरएफ टीम के एक सदस्य को रस्सी के जरिए कुएं में उतार कर युवक के शव को रस्सी से बांध कर बाहर निकाला गया. अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो उस के सिर में एक बड़ा सा घाव दिखाई दिया. इस से यह बात तय हो गई कि युवक की मौत पानी में डूबने से नहीं हुई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया, जिस से उस की मौत हुई होगी. 

लाश देख कर अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या 15-16 घंटे पहले की गई होगी. मृतक की उम्र 32 साल से ज्यादा नहीं लग रही थी. शक्लसूरत और पहनावे से वह मध्यमवर्गीय परिवार का लग रहा था. एसएचओ ने मौके पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी मृतक की पहचान नहीं कर सका. इस से यह बात साफ हो गई कि मृतक आसपास का रहने वाला नहीं है. उस की हत्या करने के बाद लाश को कुएं में फेंका गया था. घटनास्थल की जांचपड़ताल में अधिकारियों को खून लगे पत्थर के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह पता चलता कि मृतक कौन है? उस की हत्या किस ने और क्यों की

पुलिस ने लाश के फोटोग्राफ कराने के बाद जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस बीच ग्वालियर के एडिशनल एसपी शियाज के.एम. ने एसएचओ शिवम राजावत और एसडीओपी संतोष पटेल को फोन कर इस मामले का जल्द खुलासा करने का निर्देश देते हुए बताया कि एसपी राकेश सगर ने इस घटना के हत्यारों पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया है. अधिकारियों के सामने लाश की शिनाख्त करना सब से बड़ी चुनौती थी. आमतौर पर ऐसे मामलों में पुलिस आसपास के थानों से गुमशुदा लोगों के बारे में पता करती है. एसएचओ शिवम राजावत ने भी यही किया. उन्होंने ग्वालियर के सभी पुलिस थानों से पता कराया कि कहीं इस हुलिए के किसी युवक की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. उन की यह कोशिश बेकार गई, क्योंकि इस तरह के हुलिए वाले युवक की ग्वालियर के किसी भी थाने में कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. 

इस के बाद उन्होंने एसआई शुभम शर्मा, एएसआई हरिओम शर्मा, हैडकांस्टेबल सुनील गोयल व प्रमोद रावत, कांस्टेबल अनिल शर्मा, मुकेश, शैलेंद्र राजीव, सोनू राजपूत, मनीष राठौर, जितेंद्र, अभिलाष तोमर की टीम गठित कर इस केस को खोलने में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने कत्ल की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए अपने भरोसेमंद मुखबिरों की भी मदद ली. साथ ही खुद भी अपने स्तर पर जानकारी जुटाने में जुट गए. यह केस उटीला के एसएचओ शिवम राजावत के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं था, क्योंकि घटनास्थल पर उन्हें कोई ऐसा सबूत नहीं मिला था, जिस से लाश की शिनाख्त होती या कत्ल के बारे में कोई सुराग मिलता. 

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मृतक से हत्यारे की क्या दुश्मनी थी, जो उसे मार कर उस की लाश कुएं में फेंकी गई. इसी केस पर सोचविचार के दौरान 6 सितंबर की सुबह उन के दिमाग में ई-रक्षा ऐप का खयाल आया. 

ई-रक्षा ऐप से हुई लाश की शिनाख्त

एसएचओ ने ई-रक्षा ऐप पर गुम व्यक्तियों के बारे में जानकारी जुटाई तो उन्हें सफलता मिल गई. कुएं से मिली लाश के हुलिए के आधार पर मृतक की शिनाख्त महावीर शरण कौरव निवासी गांव ररुआ आलमपुर भिंड हाल निवास गुड़ीगुडा नाका ग्वालियर के रूप में हो गई. उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट 5 सितंबर को भिंड जिले के आलमपुर थाने में दर्ज हुई थी. मृतक की शिनाख्त होते ही एसएचओ ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ बीएनएस की धारा 103 (1) 238 के तहत दर्ज कर जांच शुरू कर दी. अब पुलिस टीम महावीर के हत्यारे की खोज में जुट गई.

एसएचओ शिवम राजावत ने इस मामले की तफ्तीश की शुरुआत भोगीपुरा में तिराहे पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने से की. उन्होंने सीसीटीवी से मिले फुटेज महावीर के जानपहचान वालों और रिश्तेदारों को दिखाए और उन से पूछताछ की. इन फुटेज में दिखाई दिए एक युवक की पहचान महावीर के रिश्तेदारों ने सुरेंद्र कौरव के रूप में करते हुए यह भी बताया कि सुरेंद्र के साथ मृतक की पत्नी के अवैध संबंध हैं. अवैध संबंधों की बात सामने आने पर मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस ने महावीर की पत्नी ज्योति और सुरेंद्र कौरव निवासी मुरावली को संदेह के घेरे में लेते हुए हिरासत में ले लिया. 

उन्होंने सब से पहले ज्योति से पूछताछ की, लेकिन उस ने महावीर की हत्या और सुरेंद्र से अवैध संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं बताया. तब उन्होंने उस के मोबाइल फोन को चैक किया तो वह फार्मेट किया हुआ मिला. इस से यह बात साफ हो गई कि दाल में कुछ काला है. एसएचओ ने अपनी जांचपड़ताल आगे बढ़ाने के लिए ज्योति के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर वे हैरान रह गए. ज्योति के मोबाइल पर एक ही नंबर से तकरीबन 500 से ज्यादा फोन आए थे. 

तफ्तीश के दौरान पता चला कि मृतक महावीर की पत्नी ज्योति और सुरेंद्र के बीच रोजाना मोबाइल फोन पर लंबी बातचीत होती थी. 3 से 5 सितंबर के बीच भी ज्योति और सुरेंद्र के बीच कई बार काफी देर तक बातचीत हुई थी. जांच के दौरान सुरेंद्र और ज्योति पूरी तरह संदेह के दायरे में आ चुके थे. पुलिस टीम ने सुरेंद्र को दबोचने के लिए कई जगह दबिश डाली, लेकिन वह नहीं मिला. पुलिस ने मुरावली गांव में उस के घर पर भी दबिश दी, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. उस के घर वालों सेे पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि वह 5 सितंबर को अयोध्या में रामलला के दर्शन करने गया था. 

इस पर पुलिस टीम उस की तलाश में अयोध्या पहुंची. वहां श्रीराम जन्मभूमि तीर्थस्थल और आसपास के घाट सहित अयोध्या के थाना कोतवाली क्षेत्र में सुरेंद्र की तलाश की, लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. अयोध्या से पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई. लगातार असफलता मिलने के बाद भी पुलिस टीम सरगर्मी से सुरेंद्र की तलाश में जुटी हुई थी. सुरेंद्र के फोटो ले कर पुलिस टीम विभिन्न इलाकों में उस की तलाश कर रही थी. इस बीच मुखबिर ने एसएचओ को महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि सुरेंद्र कौरव इस वक्त रनगवां तिराहे के पास स्थित यात्री प्रतीक्षालय के निकट किसी वाहन के इंतजार में खड़ा है. 

पुलिस टीम तत्काल मुखबिर की बताई जगह पर पहुंची. पुलिस को सुरेंद्र वहां खड़ा मिल गया. वह वहां से वाहन में सवार हो कर कहीं भागने की फिराक में था. पुलिस ने आरोपी सुरेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से महावीर की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई. पहले तो वह साफ मुकर गया, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने महावीर शरण कौरव की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि महावीर की पत्नी ज्योति के कहने पर उस की हत्या की थी. सुरेंद्र का कुबूलनामा सुन कर एसडीओपी संतोष पटेल और एसएचओ शिवम राजावत हैरान रह गए. देखने में भोलीभली लगने वाली ज्योति नागिन से भी ज्यादा खतरनाक निकली, जिस ने इश्क के नशे में चूर हो कर अपने ही पति को डस लिया. 

सुरेंद्र और ज्योति इस तरह आए करीब

सुरेंद्र और ज्योति से की गई पूछताछ में महावीर की हत्या की लव क्राइम की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है

महावीर शरण कौरव मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गांव ररुआ का रहने वाला था. उस के पिता महेंद्र कौरव गांव में रह कर खेतीकिसानी कर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. महेंद्र का बड़ा बेटा महावीर शादी के बाद अपने हिस्से में मिली 12 बीघा जमीन बंटाई पर दे कर पत्नी ज्योति और 3 साल के बेटे के साथ ग्वालियर के गुडीगुडा नाका क्षेत्र में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा था. महावीर और सुरेंद्र आपस में रिश्तेदार थे. इस वजह से सुरेंद्र अकसर महावीर के घर आताजाता रहता था. जब कभी सुरेंद्र फुरसत में होता तो सुबह से ही महावीर के घर पर गांजा ले कर पहुंच जाता था. फिर सुरेंद्र और महावीर पूरे दिन चिलम में गांजा भर कर पीते थे. रात होने पर महावीर के घर से खाना खा कर सुरेंद्र अपने घर चला जाता था. 

इसी दौरान ज्योति की सुरेंद्र से आंखें चार हो गईं. सुरेंद्र जब भी खूबसूरत ज्योति को देखता तो उस के दिल में हलचल मच जाती थी. सुरेंद्र पर दिल आया तो ज्योति ने उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए. ज्योति का पति महावीर अनपढ़ और भोलाभाला था. उसे मोबाइल पर इंस्टाग्राम भी चलाना नहीं आता था, जबकि 10वीं फेल ज्योति इंस्टाग्राम की शौकीन थी. महावीर का ममेरा भाई सुरेंद्र भले ही अनपढ़ था, लेकिन उसे इंस्टाग्राम चलाना आता था. इसलिए भी ज्योति सुरेंद्र को पसंद करने लगी थी. ज्योति के जेहन में क्या है, यह बात सुरेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गई. ज्योति की निगाहों में जो प्यास झलकती थी, उसे सुरेंद्र ने भांप लिया था. इस के बाद तो ज्योति उसे हूर की परी नजर आने लगी. वह ज्योति की खूबसूरती पर फिदा हो कर उस के मोहपाश में बंधता चला गया. 

कोई डेढ़ साल पहले महावीर 2-4 दिन के लिए अपने गांव ररुआ गया हुआ था. सुरेंद्र को जब इस बात का पता चला तो पूरे दिन उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह ज्योति के बारे में ही सोचता रहा. दिन ढलने के बाद सुरेंद्र महावीर के घर पहुंचा तो ज्योति सजसंवर कर दरवाजे पर खड़ी मिली. उसे देख कर सुरेंद्र का दिल बेकाबू हो गया. सुरेंद्र बिना किसी हिचकिचाहट के घर के अंदर चला गया. सुरेंद्र को घर आया देख कर ज्योति ने अपनी मुसकराहट छिपा ली और भोलेपन से कहा, ”तुम्हारे भैया तो गांव गए हुए हैं.’’

भौजी, यह बात तो हमें पता है. इसीलिए तो आए हैं.’’ सुरेंद्र ने हंस कर जवाब दिया.

सुरेंद्र की बात सुन कर ज्योति बोली, ”भैया, आज आप के पास कोई काम नहीं था क्या?’’

भौजी, काम तो था, लेकिन काम करने में हमारा मन बिलकुल भी नहीं लगा.’’ सुरेंद्र ने कहा.

आखिर ऐसी क्या बात थी?’’ ज्योति ने फिर पूछा.

सच बताऊं भौजी, तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर के रख दिया है,’’ सुरेंद्र बोला.

अरे, ऐसी खूबसूरती किस काम की जिस की कोई कद्र न हो.’’ ज्योति ने बिना किसी लागलपेट के लंबी सांस ले कर कहा.

महावीर भैया आप की जरा भी कद्र नहीं करते क्या भौजी?’’ सुरेंद्र ने ज्योति के मन को टटोलते हुए कहा.

जानबूझ कर अनजान मत बनो सुरेंद्र, तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे भैया को गांजा पीनेपिलाने से ही फुरसत नहीं मिलती है. ऐसी स्थिति में मेरी रातें कैसे गुजरती हैं, यह मैं ही जानती हूं.’’ ज्योति रुआंसी हो कर बोली. 

भौजी, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. कैंसर से पत्नी की मौत के बाद उस की याद में रात भर करवट बदलता रहता हूं. यदि दिल से तुम मेरा साथ देने को तैयार हो तो हम दोनों को इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.’’ सुरेंद्र ने यह बात कह कर ज्योति को अपनी बाहों में भर लिया.

ज्योति ने क्यों ठिकाने लगवाया पति

ज्योति तो यही चाहती थी, लेकिन उस ने दिखावे के तौर पर आंखें तरेरते हुए कहा, ”सुरेंद्र भैया, यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे. इन बातों का पता घर और मोहल्ले वालों को चल गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी और कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’

नहीं भौजी, अब यह संभव नहीं है. कोई सिरफिरा ही होगा जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर अपने कदम पीछे खींचेगा.’’ यह कह कर सुरेंद्र ने ज्योति पर अपनी बाहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए ज्योति न.. न… न… करती रही, जबकि वह खुद कामोत्तेजना के चलते सुरेंद्र से लिपटी जा रही थी. सुरेंद्र कोई बच्चा नहीं था जो ज्योति की इच्छा को समझ नहीं पाता. कुछ ही देर में दोनों ने मर्यादा भंग कर दी. एक बार झिझक मिटी तो सिलसिला शुरू हो गया. दोनों को जब भी मौका मिलता, वे उस का फायदा उठाते. ज्योति और सुरेंद्र अब खुश रहने लगे थे, क्योंकि दोनों की शारीरिक भूख मिटने लगी थी.  पुरानी कहावत है इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ऐसा ही ज्योति और सुरेंद्र के संबंधों में भी हुआ, उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगी. कुछ दिनों में इस की भनक महावीर को भी लग गई. 

पहले तो उस ने समाज की ऊं चनीच बता कर ज्योति को समझाया, लेकिन कोई असर न होता देख कर उस ने ज्योति पर सख्ती करनी शुरू कर दी. ज्योति पर पति की सख्ती का कोई असर नही हुआ, क्योंकि पिछले डेढ़ साल में वह सुरेंद्र के प्यार में आकंठ डूब चुकी थी. पति की सख्ती से ज्योति और सुरेंद्र को एकदूसरे से मिलने का मौका नहीं मिल रहा था. ज्योति से न मिल पाने पर सुरेंद्र की तड़प भी बढ़ती जा रही थी. दोनों के लिए यह बरदाश्त से बाहर की बात हो गई थी. आखिर एक दिन पति की गैरमौजूदगी में ज्योति ने सुरेंद्र को बुलाकर सारी बातें बताईं. फिर दोनों ने मिल कर महावीर को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. अपनी योजना पर सुरेंद्र और ज्योति यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी और वे महावीर की गांव वाली 12 बीघा जमीन बेच कर आराम से शहर में रहेंगे, लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया. 

दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. मृतक महावीर का मासूम बेटा अपने बाबा महेंद्र कौरव के पास पैतृक गांव ररुआ आ गया और दादादादी के साथ रह रहा था.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

प्रेमी का सिर काट कर क्यों ले गई मेहनाज

20 वर्षीय मेहनाज ने गन्ने के खेत में ले जा कर अपने 22 वर्षीय प्रेमी सोनू के पैर रस्सी से बांध दिए. इस के बाद मेहनाज के भाई सद्दाम अंसारी ने छुरी से सोनू की गरदन काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर दोनों भाईबहन उस का सिर थैले में रख कर ले गए. आखिर मेहनाज क्यों बनी प्रेमी की कातिल?

सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज को भरोसे में ले लिया था और वह भी उस के हर फैसले को मानने के लिए तैयार हो गई थी. अब सद्दाम के सामने बड़ा सवाल था कि सोनू और उस की बहन मेहनाज के बीच जो प्रेम संबंध हैं, उन्हें कैसे तोड़ा जाए. ऐसा वह क्या करे कि मेहनाज और सोनू हमेशा के लिए अलग हो जाएं?

इस बारे में सद्दाम ने मेहनाज से बात की तो उस ने वादा कर लिया कि वह भविष्य में सोनू से कोई वासता नहीं रखेगी. लेकिन सोनू ने अपने रिश्तेदारों आदि को मेहनाज का फोटो दिखाते हुए यह बात फैला दी थी कि वह मेहनाज से शादी करने वाला है. यह बात सद्दाम को काफी परेशान कर रही थी. मेहनाज पूरी तरह से भाई का साथ देने को तैयार हो गई थी. इस उधेड़बुन में दोनों भाईबहन काफी ऊहापोह की स्थिति में आ गए थे. उन्हें सब से आसान तरीका यह समझ में आया कि क्यों न सोनू को परिवार और गांवसमाज का हवाला देते हुए यह समझाया जाए कि ननिहाल की लड़की से शादी करना किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा. इस का भविष्य में उस के परिवार पर बुरा असर पड़ेगा और गांव के लोगों से संबंध हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.

भाईबहन के बीच इस के लिए सोनू से बातचीत करने पर सहमति बन गई. उसे किसी एकांत जगह में बुलाने का कार्यक्रम तय कर लिया गया. सद्दाम ने मेहनाज को सोनू से बातचीत कर समझाने की सलाह दी. 3 दिनों के बाद मौका देख कर 9 सितंबर, 2024 को मेहनाज ने सोनू को फोन किया. वह खुश हो गया था, क्योंकि कई दिनों से उस की मेहनाज से बात नहीं हुई थी. सोनू ने खुशी से पूछा, ”तो तुम साथ घूमने चलने के लिए तैयार हो?’’

बेरुआ पुल पर मिलोगे तब सब कुछ बताऊंगी. कुछ देर वहां बैठ कर शांति से दिल की बातें तो कर लें हम लोग.’’ मेहनाज प्यार से बोली.

ठीक है, मैं शाम को 7 बजे से पहले वहां पहुंच जाऊंगा…हमारे गांव सैफनी से ज्यादा दूर नहीं है.’’ सोनू खुश हो कर बोला.

मेहनाज पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार शाम को बरुआ पुल पर पहुंच गई. मेहनाज की तरह सद्दाम भी अपने पड़ोस के एक दोस्त रिजवान को ले कर वहां पहुंच गया था. इस की जानकारी मेहनाज को पहले से थी. हालांकि सोनू समय से 15 मिनट बाद पुल पर पहुंचा था, जहां मेहनाज अकेली उस का इंतजार करती दिखी. उस के आते ही मेहनाज ने देर करने की शिकायत कर दी. सोनू ने उसे गले लगाना चाहा, लेकिन मेहनाज ने सामने से मछुआरों को आता देख इशारे से मना कर दिया और एक ओर जा कर बैठ गई.

सद्दाम अपने दोस्त रिजवान के साथ पास में ही थोड़ी आड़ लिए छिपा हुआ था. पुल के आसपास नदी से मछली पकडऩे वाले लोग अपनेअपने घरों को जा रहे थे. हलकी रोशनी थी. पुल के आसपास का इलाका जंगली है. रात के अंधेरे ने अभी जंगल को अपनी आगोश में नहीं लिया था. मेहनाज सोनू के साथ पुल के पास से कच्चे रास्ते से होते हुए थोड़ा आगे चल कर नीचे उतर कर गन्ने के खेत में चली गई. पीछेपीछे सद्दाम और रिजवान भी उन की नजरों से बचते हुए गन्ने के खेत में पहुंच गए. तुरंत दोनों ने मिल कर सोनू को पीछे से दबोच लिया. वह वहीं जमीन पर गन्ने के खेत में गिर गया.

प्रेमिका ने बांधे प्रेमी के पैर, भाई ने काटा सिर

उस के गिरते ही साथ चल रही मेहनाज ने तुरंत सोनू के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. तब तक सद्दाम ने साथ लाई रस्सी मेहनाज को दे दी, जिस से उस के पैर बांध दिए. सोनू गिड़गिड़ाने लगा, ”मेहनाज, यह क्या कर रही हो? मुझे छोड़ दो… जो तुम कहोगी, मैं वही करूंगा.’’ सोनू की बातों को अनसुना कर मेहनाज ने उस के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए. गिड़गिड़ाता सोनू बोलता रहा, ”मेहनाज, मैं तुम्हारी फोटो डिलीट कर दूंगा…और तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा. मैं तुम्हें सदा के लिए भुला दूंगा. मुझे बचा लो, प्लीज…’’ 

मेहनाज कुछ नहीं बोली. सिर्फ अपनी नम आंखों से भाई सद्दाम की तरफ देखा. वह आक्रोश से भरा हुआ था. उस ने दूसरी रस्सी से सोनू के हाथों को भी बांध दिया था. सोनू बेबस था. वह मेहनाज को देखे जा रहा था. तभी रिजवान और मेहनाज ने मिल कर सोनू को दबोच लिया. सद्दाम ने उस की गरदन पकड़ ली और अंटी में लगी छुरी निकाल कर सोनू की गरदन पर चला दी. खून के फव्वारे फूट पड़े. रिजवान और मेहनाज के साथ सद्दाम के कपड़े भी खून से तरबतर हो गए. उसी चाकू से उस के सिर को गरदन से अलग कर दिया था.

थोड़ी देर तड़पने के बाद सोनू निढाल हो गया. उस के शरीर से जान निकल चुकी थी. मेहनाज दूर खड़ी अपने प्रेमी की मौत देख रही थी. सद्दाम के कहने पर दोस्त रिजवान ने सोनू की लाश के कपड़े उतार दिए, ताकि उस की पहचान न हो सके. उस की चप्पलें और मोबाइल ले लिया. चप्पलें वहीं फेंक दीं और उस के मोबाइल को भी तोड़ कर उस के पुर्जे रास्ते में ही फेंक दिए. सोनू की बाइक वहीं पर पुल के पास चाबी के साथ खड़ी छोड़ दी. उस के बाद सद्दाम, रिजवान और मेहनाज सोनू के कटे सिर, उस की एक चप्पल, टूटा मोबाइल, चाकू और मेहनाज का मोबाइल एक प्लास्टिक के थैले में रख कर जंगल के रास्ते पर हो लिए. सब कुछ ऐसे हो रहा था, जैसे तीनों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पहले से ही पूरी तरह योजना बना रखी हो.

जंगल चलते करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर डंपिंग ग्राउंड सैफनी में उन्होंने सोनू की गरदन फेंक दी. सद्दाम नगर पंचायत सैफनी में संविदा पर ट्रैक्टर चलाता है, इस कारण ही उस ने सोचा था कि सुबह जब वह नगर पंचायत सैफनी की कूड़े से भरी ट्रैक्टर ट्रौली यहां कूड़ा डालने आएगा तो सोनू की गरदन उस कूड़े के ढेर में दफन हो जाएगी. कभी किसी को गरदन का कोई सुराग नहीं लगेगा. तीनों हर सबूत को नष्ट कर देना चाहते थे. एक चप्पल और टूटे मोबाइलों की थैली भी उन्होंने डंपिंग साइट पर ही फेंक दी. तीनों ने जंगल की आड़ में अपनेअपने कपड़े बदल लिए और खून सने कपड़ों को वहीं पैट्रोल छिड़क कर जला डाला. उस के बाद वे अपने घर आ गए.

अगले रोज यानी 10 सितंबर की सुबहसुबह उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के थाना सैफनी एसएचओ महेंद्रपाल सिंह को जंगल में सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना मिली तो एसएचओ मय फोर्स के वहां पहुंच गए. उन्होंने तत्काल घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी. सिरकटे शव की पहचान के लिए कोशिश के साथसाथ उस के सिर की तलाश भी की गई, लेकिन नहीं मिल सका. पुलिस के सामने समस्या थी उस की पहचान की. इस के लिए आसपास के थानों को अज्ञात शव की सूचना भेज दी गई. नग्न सिरकटी लाश मिलने की खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी. उसे देखने के लिए सैकड़ों की तादाद में लोग जुटे थे.

उन में सेफनी गांव के लोग भी थे. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने लाश की पहचान कर ली. उस ने पुलिस को बताया कि लाश के अंगूठे को वह अच्छी तरह पहचानता है, जो मोटा और दबा हुआ था. वह देखते ही बोल पड़ा, ”साहब, यह तो हमारा सोनू है. यहां कब आया? उसे किस ने मारा? वह भी गरदन काट कर!’’

तुम इसे पहचानते हो? कैसे जानते हो इसे? कौन है?’’ पुलिस के कई सवालों से वह घबरा गया, तुरंत रोने लगा. रोता हुआ बोला, ”जी… जी हुजूर! यह तो हमारा सोनू है. बिलारी में रहता है, लेकिन यहां कैसे?’’

तुम कौन हो, जो इतने दावे से कह रहे हो, सोनू है!’’ पुलिस तहकीकात के अंदाज में बोली.

मैं उस के ननिहाल का रिश्तेदार हूं. सोनू  मुरादाबाद से 25 किलोमीटर दूर कोतवाली बिलारी के गांव रुस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला है.’’ वह बोला.

इसी बीच पुलिस को बिलारी थाने से सोनू नाम के युवक के गुमशुदा होने की सूचना मिली, जो उस के पिता साबिर ने बीती रात दर्ज करवाई थी.

साबिर ने पुलिस को बताई प्रेम प्रसंग की बात

साबिर ने गुमशुदगी की सूचना में लिखवाया था कि उन का बेटा सोनू 9 सितंबर, 2024 की शाम 7 बजे से ही लापता है. लाश की पूरी पहचान की पुष्टि के लिए साबिर को बुलाया गया. उस ने भी नग्न लाश के चपटे अंगूठे से बेटे की पहचान कर ली. उस के बाद 11 सितंबर को साबिर की तहरीर पर थाना बिलारी में बीएनएस की धारा 103(1)/238 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस सनसनीखेज मामले में बहुत कुछ खुलासा होना बाकी था. खासकर उस के सिर का मिलना पहली प्राथमिकता थी. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानी थी. इस के लिए एसएसपी (मुरादाबाद) सतपाल अंतिल ने एसपी (ग्रामीण) व सीओ (बिलारी) के नेतृत्व में एक टीम गठित की गई. टीम की कमान बिलारी के कोतवाल लखपत सिंह को सौंपी गई.

सोनू के पिता साबिर ने मामले को प्रेमप्रसंग का बताया. उस ने पुलिस को बताया कि सोनू रुस्तमनगर सहसपुर गांव में बड़ी मसजिद के निकट आलिम के कारखाने में जींस की सिलाई का काम करता था. वह परिवार में बड़ा बेटा था. उस के अलावा उस की अम्मी अनीशा, छोटा भाई शाने अली हैं. साबिर सहसपुर के ही एक ईंट भट्ठे पर ईंटों को पाथने का काम करता है. उस के बेटे की ननिहाल में अपने ही समाज की लड़की से प्रेम चल रहा था. साबिर ने बेटे की ननिहाल में रहने वाले एक परिवार पर ही हत्या का आरोप मढ़ दिया.

उस की शिकायत के आधार पर बिलारी पुलिस ने सद्दाम अंसारी पर मुकदमा दर्ज कर लिया. वह थाना सेफनी (रामपुर) के मोहल्ला मजरा का निवासी है. पुलिस बगैर देर किए उसे गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पूरी घटना विस्तार से बता दी. उस की निशाहदेही पर पुलिस ने सोनू की हत्या में प्रयुक्त एक छुरी एवं मृतक की चप्पल, टूटा हुआ मोबाइल फोन समेट लाश से करीब 2 किलोमीटर दूर कटा हुआ सिर डंपिंग ग्राउंड सैफनी से बरामद कर लिया.

पूछताछ में सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज और रिजवान का नाम भी लिया. उस ने बताया कि हत्याकांड में उन दोनों की भी भागीदारी थी. पुलिस ने मेहनाज और रिजवान से भी अलगअलग पूछताछ की और हत्याकांड के बारे में विस्तार से बयान लिए. बिलारी कोतवाली की महिला पुलिस जब मेहनाज से पूछताछ करने लगी, तब वह रोने लगी. उसे ढांढस बंधाती हुई महिला पुलिस ने सब कुछ सचसच बताने को कहा. कलपती हुई मेहनाज बोली, ”मैडम, मैं ने भी आप की तरह ही पुलिस में भरती की परीक्षा दे रखी है. अब तो लगता है मेरा करिअर ही खराब हो गया. पुलिस की नौकरी तो दूर की बात है…’’

चलो जो हुआ, उस के बारे में बताओ… तुम सोनू को कब से जानती थी?’’

सोनू का नाम आते ही मेहनाज शून्य की ओर देखने लगी…वैसी यादों में खो गई, जो उस की आंखों के आगे घूम रही थीं. कुछ पल शांत रहने के बाद बोलने लगी…

शादी समारोह में सोनू और मेहनाज के लड़े थे नैना

एक साल पहले गांव रुस्तमनगर सहसपुर निवासी सोनू सेफनी में स्थित अपनी ननिहाल आया हुआ था. उस के घर के पास ही एक परिवार में शादी का माहौल था. मुसलिम समाज की परंपरा के अनुसार इस क्षेत्र में होने वाले विवाह समारोह में एक अंतिम रस्म सलामीका आयोजन चल रहा था. इस में दूल्हा और उस के यारदोस्त लड़की पक्ष के समारोह से एक अलग स्थान पर पहुंच गए थे. दूल्हे को कुरसी पर बैठा दिया गया था. बाकी साथ के लोग दूल्हे के इर्दगिर्द खड़े हो गए थे. वहां पर लड़की की मां और बहनों सहित सहेलियां और रिश्तेदार लड़कियां भी थीं. गजब का खुशनुमा माहौल बना हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो लड़कियों और लड़कों की 2 अलगअलग टीमें आपस में किसी मुकाबले के लिए तैयार हों. 

लड़की पक्ष के लोग दूल्हे को शगुन भेंट करने लगे थे. शगुन की राशि या उपहार मिलते ही दूल्हा उन को सलाम कर देता था. उस के बाद उन से परिचय भी होता था. इस दौरान हंसीमजाक का दौर भी चलने लगा था. लड़कों का मनचलापन और लड़कियों की ठिठोली का सिलसिला पूरे शबाब पर था.
उन्हीं में करीब 20-22 साल का युवक सोनू भी था. उस के चेहरे पर मासूमियत थी. सपनों से भरी गहरी आंखें, चेहरा गुलाब की तरह ताजगी लिए हुए था, मधुर मुसकान, चमकती आंखें, मेहनत का संकेत देती सुडौल भुजाएं, हवा में लहराते बाल. इन सब से वह अधिकांश लड़कियों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ था. वह दूल्हे के बहुत करीब खड़ा था. मौजूद लड़कियों को ऐसे देख रहा था, जैसे उस ने किसी को देखा नहीं हो.

इतने में ही मेहनाज दूल्हे को पुरस्कार देने के लिए नजदीक आई. सोनू की उस से आंखें चार हुईं. दोनों एकदूसरे को देखते रहे और उस के हाथ से शगुन की राशि का लिफाफा नीचे गिर गया, दूल्हे के हाथों तक नहीं पहुंच पाया. दोनों आंखों के जरिए एकदूसरे के दिल में उतर गए. इसे दूसरे लोगों ने भी महसूस किया. 

मेहनाज इस पर मजाकिया लहजे में बोल पड़ी, ”दिखता नहीं है!’’  खूबसूरत मेहनाज की तरह उस की आवाज में भी मधुरता थी. खूबसूरत चेहरे पर गुलाब की पंखुड़ी की तरह सुर्ख होंठ, मुसकान, उस की आंखों में सपनों का संसार छिपा था. उस के इकहरा बदन आकर्षक था. कुछ समय तक दोनों इस महफिल का केंद्रबिंदु बने रहे.

तोहफा देने कोई और आगे आया तो मेहनाज पीछे हट गई. उस का गिरा हुआ गिफ्ट पैक दूल्हे के यारदोस्तों ने उठा लिया. रस्म पूरी हुई. दूल्हे और उस के साथी मंडप में आ गए. विदाई की तैयारी होने लगी, लेकिन सोनू की निगाह में मेहनाज का चेहरा घूम रहा था.विदाई का समय आ गया. दुलहन को कार में बैठाने कुछ लड़कियां आईं, उन में मेहनाज भी थी. सोनू भी कार के पास ही खड़ा हो गया था. उस ने सब की नजरों से बचा कर एक कागज मेहनाज के हाथ में पकड़ा दिया. 

मेहनाज ने उसे मुट्ठी में ही दबोचे रखा. बाद में उसे खोल कर देखा तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. इस तरह सोनू और मेहनाज की मुलाकात का सिलसिला फोन से शुरू हुआ. उन के बीच पहले जानपहचान और फिर मिलनेजुलने की शुरुआत हो गई. सोनू को उस ने बताया कि गांव रुस्तमनगर सहसपुर के पास थांवला रोड पर स्थित आईटीआई स्कूल में वह पढ़ती है. फिर उन की मुलाकात सहसपुर बिलारी के बीच हाईवे पर ही नीलबाग के एक इंगलिश मीडियम स्कूल के पास हुई. 

करिअर और पढ़ाई को ले कर जितनी गंभीर मेहनाज थी, उतनी ही चिंता उस के भाई सद्दाम अंसारी और परिवार के दूसरे लोगों को भी थी. वह जितनी सुंदर, उतनी ही चंचल और पढ़ाई में तेज थी. उस का एडमिशन रूस्तमनगर सहसपुर में स्थित आईटीआई में हो गया था. उस की सुंदरता और मोहकता पर कोई भी पहली ही नजर में फिदा हो जाता था. उम्र के जिस मोड़ पर वह खड़ी थी, वहां से कदम बहकते देर नहीं लगती. ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हो चुका था. वह सोनू के प्यार में पड़ चुकी थी.

इस की जानकारी जब सद्दाम को हुई तब वह बेचैन हो गया, किंतु मानसिक तनाव की घड़ी में भी एक अच्छी बात यह थी कि उस ने भावावेश में तुरंत कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि जमाने के बदले हुए मिजाज और प्यारमोहब्बत की बातें आम होने की बात को देखते हुए उस ने समझदारी भरा कदम उठाया. पहले उस ने इस बारे में पूरी तहकीकात की और बहन के प्रेम संबंध की होने वाली चर्चा के तह में जा कर पता लगाया. बात की पुष्टि हो जाने के बाद समाधान के लिए फिर उस ने अपने खास दोस्तों से बात की.

उस ने उन से सलाहमशविरा कर राय मांगी कि इस मामले में अब क्या करना चाहिए. उस के दोस्तों के अलगअलग मशविरे थे. सब की बातें सुन कर उस ने उस पर गहन मंथन किया. सोचविचार के बाद वह अंतिम निर्णय पर पहुंचा कि उसे आगे जो कुछ करना है, उसे पहले अपनी बहन के साथ बात कर लेनी चाहिए. हो सकता है बातचीत से ही समाधान हो जाए. शाम का समय था. सद्दाम अंसारी के परिवार के सब लोग घर पर ही थे. अपने कमरे में सिर पकड़े बैठे सद्दाम ने दरवाजे के सामने बरामदे से गुजरती बहन मेहनाज को देखा. उस ने आवाज लगाई, ”मेहनाज!’’

जी भाई!’’ मेहनाज बोली.

सिर भारीभारी लग रहा है… एक कप चाय पिला दोगी…’’ थकी आवाज में सद्दाम बोला.

अभी बना देती हूं… बोलो तो अदरक और इलायची भी डाल दूं…’’

हांहां, पत्ती तेज रखना!’’

जी, भाईजान.’’

कुछ समय में ही मेहनाज एक प्याला चाय ले कर आ गई. प्याला देती हुई बोली, ”कुछ खाने को भी नमकीनबिसकुट ला दूं?’’

नहींनहीं! कुछ नहीं… यहीं बैठो, तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’ सद्दाम बोला और चाय पीने लगा. उस समय कमरे में सिर्फ सद्दाम था. मेहनाज थोड़ी दूर पड़ी एक फोल्डिंग कुरसी को खोला और चुन्नी संभालती हुई बैठ गई.

हां भाई, बोलो न, क्या जरूरी बात है?’’

तुम्हारे बारे में मोहल्ले के लड़के कई तरह की बातें करते हैं. मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता!’’ चाय के कुछ घूंट पी कर सद्दाम बोला.

अरे भाईजान, मोहल्ले के लड़कों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं.’’ मेहनाज ने कहा.

बात कुछ भी बोलने की नहीं है, उन का कहना है कि तुझे वे अकसर किसी लड़के के साथ देखते हैं… इस से बदनामी हो रही है.’’

उन को छोड़ दो, वे तो हैं ही नकारा किस्म के लड़के…लेकिन उन की बातों का असर मोहल्ले में दूसरों पर तो होता है न. हम लोग अपने मोहल्ले और परिवारसमाज में इज्जतदार लोग हैं.’’ सद्दाम समझाने के लहजे में बोला.

भाईजान, ऐसी कोई बात नहीं है, जिस से आप का और घर वालों का सिर नीचा होगा…’’

कौन है वह?’’

नानी के घर सेफनी में शादी में गई थी, वहीं सोनू से जानपहचान हो गई थी. उस के बाद यहां मिलने के लिए 2-3 बार आया था और कोई बात नहीं है. उस का ननिहाल अपने गांव में ही है.’’ मेहनाज सफाई में बोली.

फिर कभी मिले तो साफसाफ मना कर देना. देखो, तुम्हें अपनी पढ़ाई पर फोकस करना है. बड़ी मुश्किल से मैं ने घर के लोगों से लड़झगड़ कर तुम्हारा आईटीआई में नाम लिखवाया है. हमारे समाज की लड़कियों के लिए यह बड़ी बात है.’’ सद्दाम बोला. सद्दाम ने सोनू के घर वालों का भी हवाला देते हुए कहा, ”तुम्हीं देखो न, कहां कपड़ों की सिलाई कर गुजरबसर करने वाला उस का परिवार और कहां सिलाई का काम करने वाला सोनू…’’

जी भाईजान, आप की बदौलत ही मैं आईटीआई की पढ़ाई कर रही हूं. मैं उस से कभी नहीं मिलूंगी, लेकिन…’’ मेहनाज बोलतेबोलते अचानक रुक गई.

लेकिन क्या?’’ 

भाई, वह बहुत ही जिद्दी है, मैं उस से पीछा छुड़ाना चाहती हूं, उसे मना कर चुकी हूं. फिर भी वह पीछा नहीं छोड़ता.’’

भाई ने क्यों रची खौफनाक साजिश

मेहनाज अपने बड़े भाई से कुछ भी नहीं छिपाती थी. भाई को भी उस पर भरोसा था. वह पढ़ाई में अव्वल थी और भाई का हर कहा मानती थी. उस ने बातों ही बातों में यह स्वीकार लिया कि वह सोनू से प्यार करती है. उस के बगैर वह नहीं रह सकती है. किंतु जब भाई ने उस के प्रेम संबंध को ले कर घरपरिवार में होने वाली बदनामी और करिअर खराब हो जाने का हवाला दिया तब वह सहम गई. सोनू गांव रूस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला था. उस की ननिहाल जिला रामपुर के कस्बा सैफनी के मझरा मोहल्ले में है. मेहनाज का घर भी सोनू की ननिहाल के पड़ोस में है. 

दोनों के बीच जानपहचान होने के बाद सोनू ने अपनी ननिहाल में ज्यादा आनाजाना शुरू कर दिया था. वह मेहनाज से उस के आईटीआई आतेजाते वक्त भी मिल लेता था. एक दिन उस ने मेहनाज को अपने पास बैठा कर उस के कुछ फोटो खींच लिए थे. तब मेहनाज ने उस से फोटो को सोशल साइट पर लगाने से सख्त मना कर दिया था. हालांकि मेहनाज की हिदायत का ध्यान रखते हुए सोनू ने वह फोटो सोशल मीडिया पर शेयर नहीं किए थे, लेकिन अपने ननिहाल आ कर कुछ रिश्तेदारों को उस ने वे फोटो दिखाए थे. उस ने रिश्तेदारों से कहा था कि वह मेहनाज से शादी करना चाहता है. इस के लिए उस ने उन से मदद मांगी थी. 

यह बात पूरे सैफनी में फैल गई थी, इस की जानकारी मेहनाज के भाई सद्दाम को हुई तो वह बेचैन हो गया था. उसे बदनामी का डर सताने लगा था. वह सोचता था कि सोनू से उस की बहन के संबंध ठीक नहीं हैं. इस से उस के परिवार के मानसम्मान को गहरा धक्का लगेगा. सद्दाम ने इसी चिंता में जब मेहनाज से पूछताछ की तो वह रोने लगी. इस के बाद उस ने सोनू के साथ प्रेम संबंध के बारे में पूरी आपबीती बताई. यह भी वादा किया कि वह सोनू से भविष्य में कोई संबंध नहीं रखेगी.

मेहनाज, सद्दाम अंसारी और रिजवान से पूछताछ के बाद सोनू हत्याकांड का खुलासा हो गया था. उन्होंने सोनू के कटे सिर को बरामद करने में पुलिस की मदद की. तीनों सोनू हत्याकांड में नामजद थे और अपना जुर्म कुबूल कर चुके थे, इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

प्यार में पुलिस वाला बना भिखारी, साधु और किडनैपर

पत्नी पूनम चौधरी के छोड़ कर चले जाने के बाद हैडकांस्टेबल तनुज चाहर भिखारी बन कर उसे दरदर तलाशता रहा. उस की मेहनत रंग लाई. पूनम ने उस के साथ जाने को मना कर दिया तो वह 11 महीने के बच्चे को किडनैप कर ले गया. इस दौरान उस बच्चे और किडनैपर तनुज के बीच ऐसा आत्मीय संबंध बन गया कि…

तनुज चाहर अपने बेटे को पाने के लिए हर समय परेशान रहता था. वह अपने स्तर से पत्नी पूनम और बेटे का पता लगाने में जुट गया. आगरा के अकोला गांव का रहने वाला तनुज यूपी पुलिस में हैडकांस्टेबल था. उसे किसी तरह पता चल गया कि उस की पत्नी पूनम चौधरी बच्चे के साथ जयपुर में कहीं रहती है, लेकिन उसे उस का ठिकाना पता नहीं था. अपने मकसद को पूरा करने के लिए  वह भिखारी का वेश बना कर जयपुर में काफी दिनों तक रैकी करता रहा. इस के लिए उस ने जमीन को बिछौना और आसमान को चादर बना लिया था. रातें फुटपाथ पर और दिन गलियों में भिखारी बन कर भटकते गुजारने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे उस पूनम के ठिकाने का पता चल गया, जिस के लिए इतने दिनों तक वह भिखारी बन कर भटकता रहा था.

इस के बाद एक दिन वह अपने 3 दोस्तों के साथ कार से वाटिका (जयपुर) पहुंचा. उस समय घर में पूनम और उस का 11 महीने का बच्चा दोनों मौजूद थे. बच्चा घर के आंगन में खेल रहा था. तनुज ने पूनम से साथ चलने को कहा. लेकिन पूनम ने उस के साथ जाने से साफ इंकार कर दिया. इस पर तनुज पूनम के साथ मारपीट कर जबरन उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगा. पूनम भाग कर पड़ोस में रहने वाले अपने भाई के पास चली गई. वह भाई के साथ जब तक वापस लौटी, तब तक तनुज 11 महीने के बच्चे को उठा कर ले जा चुका था. यह बात 14 जून, 2023 की है.

पुलिस वाला क्यों बना किडनैपर

राजस्थान की राजधानी जयपुर के सांगानेर सदर थाना क्षेत्र स्थित वाटिका में रहने वाली पूनम चौधरी ने 14 जून, 2023 को ही थाने में पहुंच कर शिकायत की कि उस के 11 महीने के बेटे का अपहरण हो गया है. यह सुन कर थाने में हड़कंप मच गया. पूनम ने बताया, 4 किडनैपर्स अचानक उस के घर में घुस आए और उस के साथ मारपीट करने लगे और जबरन उसे अपने साथ ले जाने लगे, उन के चंगुल से छूट कर वह अपनी जान बचाने को पड़ोस में रहने वाले भाई के घर भाग गई.  इस बीच घर में खेल रहे उस के 11 महीने के बच्चे को वे लोग जबरन उठा कर ले गए. इन 4 किडनैपर्स में से एक तनुज चाहर उस के रिश्ते के मामा का बेटा है.

सांगानेर सदर पुलिस ने पूनम चौधरी की शिकायत पर तनुज चाहर व अन्य 3 अज्ञात किडनैपरों के खिलाफ बच्चे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के साथ ही पुलिस को छोटे बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए उस की जान के खतरे का भी अंदेशा था. इसलिए पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के साथ ही एडीशनल डीसीपी स्पैशल इनवैस्टीगेशन यूनिट क्राइम अगेंस्ट वूमन पूनम सिंह विश्नोई को भी इत्तला दे दी. इस के बाद तो स्पैशल टीम और सर्विलांस टीम भी सक्रिय हो गईं.  

पुलिस ने मासूम की तलाश और आरोपियों का पता लगाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन तनुज चाहर के खिलाफ नामजद रिपोर्ट होने के बावजूद भी पुलिस महीनों तक उस का पता नहीं लगा सकी.जयपुर पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि आगरा के बिसरा, अकोला का रहने वाला तनुज चाहर उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और घटना के समय उस की तैनाती अलीगढ़ पुलिस लाइन में थी. मुकदमा दर्ज होने और उस के फरार होने के बाद वह पुलिस की नौकरी से गैरहाजिर चल रहा था.

इसी बीच डीसीपी (साउथ) दिगंत आनंद ने उत्तर प्रदेश पुलिस को तनुज चाहर के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी दी. काफी समय तक गैरहाजिर रहने के चलते यूपी पुलिस ने तनुज को निलंबित कर दिया. जयपुर पुलिस ने तनुज चाहर के घर वालों और तमाम रिश्तेदारों से उस के बारे में जानकारी जुटाई. इस सब के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. अपने कलेजे के टुकड़े का अपहरण आंखों के सामने हो जाने से पूनम व्यथित रहने लगी. दिन गए रात आई, रात गई दिन आया और इस तरह 14 महीने का समय गुजर गया.

किडनैपर हैडकांस्टेबल तनुज को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी, कहने को पुलिस की टीम लगातार आरोपी की तलाश में जुटी थी. 10 से ज्यादा बार पुलिस की टीमों को आरोपी की तलाश में भेजा गया. थकहार कर तब उस के फरार होने तथा नौकरी से गैरहाजिर रहने पर जयपुर पुलिस ने उस के ऊपर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. वहीं न्यायालय से उस का गिरफ्तारी वारंट प्राप्त कर लिया.    

साधु वेश में क्यों रहता था किडनैपर

कुछ दिनों पहले जयपुर पुलिस को पता चला कि किडनैपर तनुज चाहर अपहृत बच्चे के साथ उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के वृंदावन परिक्रमा मार्ग के रास्ते में साधु बन कर फरारी काट रहा है. तनुज ने अपना हुलिया बदल लिया था. उस ने साधुओं की तरह अपने बाल व दाढ़ी बढ़ा ली थी और गेरुआ वस्त्र भी पहनता था. एक ही जगह पर रहने के बजाए वह अलगअलग जगहों पर डेरा डालता ताकि पुलिस की निगाह में आने से बच सके. चूंकि आरोपी तनुज स्वयं यूपी पुलिस की स्पैशल टीम और सर्विलांस टीम में तैनात रह चुका था, ऐसे में उसे पुलिस से बचने के हर तौरतरीके मालूम थे. वह पुलिस की बारीकी व पकडऩे के तरीके से वाकिफ था. इसीलिए उस ने साधु का वेश धारण कर लिया था. 

तनुज के बारे में मुखबिर से सुराग मिलने के बाद उसे पकडऩे के लिए जयपुर, अलीगढ़ और मथुरा पुलिस की संयुक्त टीम ने एक फुलप्रूफ योजना बनाई. इस में तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. किडनैपर को पकडऩे के लिए पुलिस को उसी का स्टाइल अपनाना पड़ा. पुलिसकर्मियों ने भी किडनैपर तनुज की ही तरह साधु का रूप धारण किया. पुलिसकर्मियों ने दाढ़ी बढ़ाई, भगवा धोती और लुंगी पहनी.  साधु का वेश धारण कर के भजन गाते हुए जयपुर पुलिस टीम के सदस्य 22 अगस्त, 2024 से मथुरा के वृंदावन धाम के परिक्रमा मार्ग पर निगाहें गड़ाए थे. पुलिस को जो इनपुट मिला था, उसी के अनुसार पुलिस टीम एडीसीपी (साउथ) पूनमचंद विश्नोई के निर्देशन में सरगरमी से आरोपी तनुज को तलाश कर रही थी. 

इस बीच पुलिस एक गाइड के संपर्क में आई. गाइड को विश्वास में लिया और टूरिस्ट बन कर उस के साथ विभिन्न स्थानों पर तनुज की तलाश में घूमी. उस से पुलिस को लीड मिली. वहां कई सीसीटीवी फुटेज पुलिस को मिले, जिस में किडनैपर एक दुकान पर चाय पीते दिखा. वहीं एक फुटेज में वह बाइक से कहीं जाता दिखाई दिया. पुलिस समझ गई कि तनुज यहां साधु वेश बना कर अन्य साधुओं में घुलमिल गया है.

तनुज जयपुर पुलिस की इस जांचपड़ताल से बेखबर था. जयपुर पुलिस टीम के सदस्य 27 अगस्त, 2024 को तनुज के पास जैसे ही पहुंचे, किसी ने उसे फोन कर दिया. पुलिस की भनक लगते ही आरोपी तनुज बच्चे को गोद में ले कर खेतों में भाग गया. पुलिस टीम ने उस का 8-10 किलोमीटर तक पीछा कर के अंत में उसे अपहृत बच्चे सहित मथुरा के सुरीर थाना क्षेत्र के ख्यारा जंगल से पकड़ लिया. आरोपी तनुज व उस के कब्जे से अपहृत बच्चे को सकुशल बरामद कर लिया गया. दोनों को अपने साथ पुलिस जयपुर ले गई. 

बच्चा क्यों नहीं होना चाहता था किडनैपर से दूर

जयपुर पुलिस ने 14 महीने पहले किडनैप हुए 11 महीने के बच्चे को ढंूढ निकाला. इस दौरान बच्चा 2 साल एक महीने का हो चुका था. पुलिस ने बच्चे को सुरक्षित बरामद कर न्यायालय के आदेश पर उस की मां पूनम चौधरी को सौंप दिया. इस मामले में एक अनोखा नजारा तब देखने को मिला, जब बच्चे को आखिरी बार किडनैपर से मिलवाया गया. बच्चा किडनैपर के गले से लिपट गया. वह किडनैपर से दूर जाने के लिए तैयार नहीं था. बच्चा किडनैपर को ही अपना सब कुछ समझने लगा था. किडनैपर के गले से लिपटे बच्चे को किसी तरह अलग किया गया तो वह फूटफूट कर रोने लगा. 

ऐसा मार्मिक नजारा देख पुलिस स्टाफ  की आंखें भी भर आईं. बच्चे को रोते व खुद से अलग होते देख किडनैपर तनुज भी अपने आंसू नहीं रोक सका. उस ने बच्चे को ढांढस बंधाते हुए कहा, ”बेटा, मैं अभी आ रहा हूं, यहीं रहना तुम.’’ एक पुलिसकर्मी ने बच्चे को किडनैपर की गोदी से ले कर उस की मां के हवाले कर दिया. बच्चा अपनी जन्म देने वाली मां को नहीं पहचान रहा था. वह उस की गोदी में नहीं जाना चाहता था. मां की गोद में दिए जाने के बाद भी लगातार किडनैपर के पास जाने की कोशिश कर रहा था और लगातार रोए जा रहा था. उसे मां की गोद से ज्यादा किडनैपर की गोद प्यारी थी. 

14 महीने किडनैपर के साथ रहने पर बच्चे का तनुज से अनोखा रिश्ता बन गया था. बच्चे का तनुज के प्रति प्यार देख कर हर किसी के मन में सवाल आने लगा कि बच्चे का किडनैपर के साथ इतना लगाव क्यों है? बच्चा और किडनैपर इतने भावुक क्यों हो रहे हैंपुलिस ने आरोपी से पूछताछ की. तब बच्चे के अपहरण के संबंध में जो सच्चाई सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया. आइए, आप को 14 महीने पहले हुए इस बच्चे के अपहरण की कहानी के पीछे का सच बताते हैं.

तनुज और पूनम ने किया था प्रेम विवाह                 

खैर (अलीगढ़), उत्तर प्रदेश निवासी तनुज चाहर की पहली पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. तनुज का जयपुर स्थित आर.के. सिटी, सदर निवासी रिश्ते की बुआ के यहां आनाजाना रहता था. पत्नी के छोड़ देने के बाद जयपुर में अपनी बुआ की बेटी पूनम, जो उस की फुफेरी बहन लगती थी, से उस के प्रेम संबंध हो गए. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चलता रहा. अब जब भी दोनों एकदूसरे से मिलते प्यार भरी बातें करते और भविष्य के सपने संजोते. घर वालों को जब दोनों के प्यार के बारे में पता चला तो उन्होंने विरोध जताया. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन पूनम के घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं हुए. 

इस के बावजूद तनुज और पूनम ने घर वालों की मरजी के खिलाफ साल 2021 में प्रेम विवाह कर लिया और अलीगढ़ आ कर रहने लगे. विवाह से पूनम के घर वाले खुश नहीं थे. इसी बीच पूनम ने एक बेटे को जन्म दिया. कुछ समय तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर दोनों में अकसर विवाद होने लगा. इस घरेलू विवाद की जानकारी जब पूनम के मायके वालों को हुई तो वह पूनम और बच्चे को अपने साथ ले गए.  इसी बीच खाप पंचायत के डर से पूनम के घर वालों ने कुछ समय बाद पूनम की शादी जयपुर में ही दूसरी जगह अनूप चौधरी (परिवर्तित नाम) से कर दी. जब इस की जानकारी तनुज को हुई तो उसे यह बात बहुत नागवार गुजरी.

जब तक पूनम बच्चे के साथ मायके में थी, वह निश्ंचित था. उसे उम्मीद थी कि पूनम की नाराजगी एक दिन जरूर दूर कर वह उसे और बच्चे को अपने साथ ले आएगा. लेकिन उस के अरमानों पर पूनम की दूसरी शादी से पानी फिर गया था. इस के बावजूद वह अब भी पूनम को पहले की तरह प्यार करता था. वह चाहता था कि पूनम पिछली बातें भूल कर बच्चे को साथ ले कर उस के पास रहे. उस ने कई बार पूनम से यह बात कही, लेकिन पूनम अब उस के साथ रहने को किसी कीमत पर तैयार नहीं थी. वह अब अपने नए परिवार में पूरी तरह से रचबस गई थी.  

तनुज ने पूनम को पाने के लिए क्या किया

पूनम को अपने साथ रहने के लिए राजी करने को उस ने फोन किया, लेकिन पूनम ने कहा कि वह अब अपनी नई दुनिया बसा चुकी है. वह अपने पति व बच्चे के साथ खुश है. अब वह उसे भूल जाए. लेकिन तनुज के दिल में प्रेमिका से पत्नी बनी पूनम की यादें बसेरा बना चुकीं थीं. वह उसे एक क्षण भी भुला नहीं पा रहा था. तब तनुज ने दोस्तों के साथ योजना बनाई कि वह पूनम से बच्चे को ले कर उस के साथ चलने के लिए कहेगा. यदि वह तैयार नहीं हुई तो उसे जबरन अपने साथ लाएगा. इस से पहले पूनम और उस के पति के ठिकाने का पता करने के लिए भिखारी बन कर तनुज ने सारी जानकारी हासिल कर ली थी. 

वह 14 जून, 2023 को पूनम के घर पहुंचा और उस के राजी न होने पर बच्चे को ले कर फरार हो गया. उस का मानना था कि वह बच्चे को अपने पास रखेगा तो पूनम भी बच्चे की खातिर उस की बात मान लेगी और उस के साथ रहने को तैयार हो जाएगी. तनुज चाहर की फरारी के दौरान अलीगढ़ के गौंडा निवासी एक मित्र वृंदावन दर्शन करने आया था. उस की नजर तनुज पर पड़ी. उस ने कहा, ”तुम मेरे दोस्त तनुज जैसे लगते हो.’’ इस पर तनुज अपने मित्र को पहचान गया. तनुज मित्र के साथ उस के गांव गौंडा में भी कुछ दिन रहा. एक दिन तनुज ने बच्चे की मां पूनम को फोन मिलाया. फोन पर उस ने पूनम को अपने पास आने के लिए कहा. उस ने कहा कि बच्चा उस के पास सकुशल है. 

बस यही गलती उस पर भारी पड़ी. पुलिस ने पूनम का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. अपने दोस्त के मोबाइल से तनुज ने पूनम को फोन किया था. पुलिस 14 महीने से तनुज को तलाश रही थी. वह उस की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई. गौंडा में तनुज के होने की जानकारी पर वहां छापा मारा. पुलिस गौंडा गांव पहुंची, लेकिन तनुज बच्चे को ले कर वहां से जा चुका था. दोस्त से पूछताछ पर पुलिस को तनुज के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल गई थी. अपनी एक भूल से वह खुद पुलिस के जाल में फंस गया. इस के बाद पुलिस ने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया. फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

बच्चे का अपहरण करने के बाद मथुरा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, वृंदावन  में भागता व छिपता रहा. बच्चे को वह कृष्ण बनाता. उसे खिलौने व कपड़े दिलाता. अपने साथ दूध की बोतल झोले में रखता. 14 महीने तक वह वेश बदल कर भागता रहा. बच्चे की खातिर वह अपनी नौकरी पर भी नहीं गया. गिरफ्तारी से पहले वह वृंदावन और सुरीर क्षेत्र में रह रहा था. वेतन न मिलने के चलते पैसे की भी कमी हो गई थी. वह अपने पास की-पैड वाला मोबाइल रखता था. उसे जब किसी से बात करनी होती थी तो फोन चालू करता और बात करने के बाद स्विच औफ कर देता था. इस बीच उस ने अपने परिवार के लोगों से भी संपर्क नहीं किया. 

किडनैपर निलंबित हैडकांस्टेबल तनुज चाहर की गिरफ्तारी व उस के पास से सकुशल बच्चे को बरामद करने वाली पुलिस टीम में  एएसआई प्रेम, लोकेश, साहब सिंह, राजेश कांस्टेबल के अलावा सर्विलांस टीम के सदस्य शामिल थे. गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को डीसीपी ने इनाम दिए जाने की घोषणा की.

किडनैपर और बच्चे में क्या है संबंध

किडनैपर तनुज चाहर पकड़े जाने के बाद अब पुलिस रिमांड पर है. वह दावा कर रहा है कि बच्चा उस का ही है. उसे दिलवाया जाए. उस का कहना है कि पुलिस चाहे तो बच्चे और उस का डीएनए टेस्ट करवा ले. उधर बच्चे की मां पूनम आरोपी से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती है. डीसीपी (साउथ) दिगंत आनंद ने बताया, मासूम बच्चे के अपहरण की यह घटना 14 जून, 2023 की है. 4 किडनैपर्स में से एक तनुज चाहर है, जो पूनम के मामा का बेटा है. अन्य 3 आरोपी अज्ञात हैं. सांगानेर सदर थाना पुलिस उन की तलाश कर रही थी. आरोपी खुद उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात था. 

अपने ही बेटे के अपहरण में पकड़े गए हैडकांस्टेबल तनुज का पहली पत्नी से 20 साल का बेटा है. तनुज के पिता भी पुलिस से रिटायर्ड हैं. तनुज ने बच्चे के अपहरण के बाद उस के साथ आगरा, मथुरा, वृंदावन, अलीगढ़ में फरारी काटी. बच्चे को ले कर वह फुटपाथ पर ही सोता था. वह समाज का हिस्सा बन कर नहीं रहता था. कहते हैं कि बच्चे का दिल और मन शीशे की तरह साफ होता है. जहां प्यार मिलता है, बच्चे उसी के हो जाते हैं. किसी प्रकार का अपनेपराए का भेदभाव नहीं करते.

खैर निवासी पहली पत्नी ने इस घटना के बाद पति तनुज चाहर के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा दर्ज कराया है. पुलिस ने आरोपी तनुज चाहर को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस द्वारा पूरी घटना की गहराई से जांच की जा रही है. वास्तव में यह घटना बच्चे के अपहरण से जुड़ी है या प्रेम प्रसंग का मामला है अथवा कोई अन्य राज है, किडनैपर ने बच्चे को 14 महीने तक अपनी कैद में रखने के बाद भी बच्चे को खरोंच तक नहीं आने दी. 

इस के साथ ही उस ने कोई फिरौती भी नहीं मांगी. बल्कि बच्चे के दूध, खानेपीने की चीजों के अलावा कपड़े व खिलौने ला कर भी दिए. ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

क्या था राइस पुलर जिससे शक्तिशाली हो जाते थे लोग

ठगी करने वाले नएनए तरीके अपनाते हैं, जिन के जाल में पढ़ेलिखे, धनाढ्य लोग तक फंस जाते हैं. नरेंद्र भी ऐसे ही लोगों में थे जो ठगों की बातों में कर लाखों गंवा बैठे. कैसे…   

रेंद्र कुमार बड़े बिजनैसमैन थे. अप्रैल 2015 में उन्हें एक शख्स ने फोन कर के बताया कि उस के पास राइस पुलर है, जिसे वह बेचना चाहता है. नरेंद्र कुमार ने राइस पुलर के बारे में सुन रखा था कि इस के अंदर अद्भुत शक्ति होती है. जिस के पास भी यह होता है, वह दुनिया का शक्तिशाली इंसान बन जाता है. फिर भी नरेंद्र कुमार ने इस जानकारी से अनभिज्ञ बनते हुए उस आदमी से पूछा, ‘‘ये राइस पुलर क्या होता है?’’

‘‘सर, आप राइस पुलर के बारे में नहीं जानते, यकीन नहीं हो रहा. दुनिया के अधिकांश बड़े बिजनैसमैन इस के बारे में अच्छी तरह जानते हैं. इतना ही नहीं, वे इसे हासिल करने की चाहत भी रखते हैं. क्योंकि यह होता ही इतना प्रभावी है.’’ उस शख्स ने कहा.

‘‘मुझे इस के बारे में नहीं मालूम. यह भी बता दीजिए कि इस का उपयोग क्या है?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘सर, इस के चमत्कार के बारे में आप गूगल पर या यूट्यूब पर सर्च कर सकते हैं. राइस पुलर कोई भी बरतन, बोल या सिक्का आदि के रूप में हो सकता है. पर मेरे पास राइस पुलर बौल है

‘‘दरअसल राइस पुलर एक खास तरह की धातु इरीडियम का बना होता है, इस पर आसमानी बिजली गिरने के बाद एक विशेष चमत्कारिक ऊर्जा पैदा होती है, जो इसे अलौकिक बनाती है

‘‘राइस पुलर की ऊर्जा का इस्तेमाल सैटेलाइट जैसी चीजें बनाने में होता है. इस के अंदर इतनी जबरदस्त चुंबकीय पावर होती है कि यह चावलों को भी अपनी तरफ खींच लेता है.’’ उस शख्स ने जानकारी दी, ‘‘सर, इस की एक और पावर के बारे में जब बताऊंगा तो आप चौंके बिना नहीं रहेंगे. यह जिस के पास भी जाता है, उस व्यक्ति की किस्मत ही चमक जाती है.’’

नरेंद्र कुमार को उस की बातों पर विश्वास हो गया कि वह जो कुछ कह रहा है, सही कह रहा है. क्योंकि उन्होंने राइस पुलर के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. अब वह यह जानना चाहते थे कि यह है कितने का. उन्होंने उस शख्स से पूछा, ‘‘आप के पास जो राइस पुलर गेंद है, वो है कितने की?’’

‘‘सरजी, वैसे तो इंटरनैशनल मार्केट में इस की कीमत 10 करोड़ रुपए है, पर आप मुझे कम दे देना. मुझे अचानक पैसों की जरूरत पड़ गई, जिस की वजह से मुझे यह बेचनी पड़ रही है. यदि आप इसे अब ले लेंगे तो कुछ दिनों बाद मैं 10 करोड़ में इंटरनैशनल मार्केट में बिकवा दूंगा

‘‘सर, एक बात और बताता हूं कि इस का इस्तेमाल नासा वाले सैटेलाइट बनाने में करते हैं. इसलिए इस बहुमूल्य चीज को पाने के लिए तमाम देश भी लगे रहते हैं. तभी तो इस की मोटी बोली लगती है. जो मोटी बोली लगाता है, वही इसे हासिल कर लेता है, बाकी लोग तो हाथ मलते रह जाते हैं.’’

अब नरेंद्र कुमार की दिलचस्पी इस राइस पुलर को खरीदने में बढ़ने लगी. उन्होंने कहा, ‘‘भई, 10 करोड़ तो बहुत ज्यादा हैं.’’

‘‘सर, पैसे की बात तो बाद में फाइनल हो जाएगी, उस से पहले आप उस की असलियत की जांच कर लें. यदि वह असली हो तभी उस के सौदे की बात करें.’’ उस शख्स ने कहा. उस की यह बात नरेंद्र कुमार को ठीक लगी. वह इस के लिए तैयार हो गए. अब उन के सामने समस्या यह थी कि वह राइस पुलर का परीक्षण कैसे कराएं. उन्हें ऐसी किसी लैब या चैक करने वाले स्पैशलिस्ट के बारे में जानकारी नहीं थी. नरेंद्र कुमार ने उस व्यक्ति से फिर बात की जो उन्हें राइस पुलर बेचने की बात कर रहा था. उस व्यक्ति ने नरेंद्र कुमार से कहा कि वह ऐसे वैज्ञानिक को जानता है जो नासा वगैरह को राइस पुलर उपलब्ध कराते हैं. उन का दिल्ली के मोतीनगर इलाके में औफिस है. लेकिन इस की टेस्टिंग का सारा खर्च आप को ही उठाना पड़ेगा.

‘‘टेस्टिंग में कितना खर्च जाएगा?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आप की उन से मुलाकात करा दूंगा. इस बारे में आप उन से सीधे ही बात कर लेना.’’ उस शख्स ने कहा. फिर एक दिन वह शख्स नरेंद्र कुमार को पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर स्थित एक कंपनी रेहान मेटल यूएसए में ले गया. उस ने उस कंपनी के एमडी वीरेंद्र मोहन बरार से उन की मुलाकात कराई. वहां पर कंपनी के एमडी का बेटा नितिन मोहन बरार भी मौजूद था. दोनों बापबेटों ने खुद को वैज्ञानिक बताते हुए कहा कि वह राइस पुलर के काम से बहुत दिनों से जुड़े हुए हैं. उन की कंपनी नासा को राइस पुलर उपलब्ध कराती है. जब कीमत की बात आई तो उन्होंने यह भी बताया कि इस की कीमत निश्चित नहीं है. मांग के अनुसार इस की कीमत बढ़ भी जाती है और 37,500 करोड़ रुपए तक भी हो सकती है.

वीरेंद्र मोहन की बात से नरेंद्र इतना तो समझ ही गए कि राइस पुलर वास्तव में अद्भुत चीज है, जिस की कीमत करोड़ों में होती है. यानी उन से राइस पुलर के जो 10 करोड़ रुपए मांगे जा रहे थे, वह इस की विशेषता को देखते हुए कोई ज्यादा नहीं थे. नरेंद्र कुमार ने उन से राइस पुलर की जांच के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि राइस पुलर बहुत ही पौवरफुल होता है. इस की जांच के लिए बाहर से कैमिकल और किट मंगानी होती है, जिसे पहन कर वैज्ञानिक इसे अपनी तरह से चैक करते हैं और यह सब बहुत ज्यादा महंगी होती हैउन्होंने कहा कि इस की कई स्तर की टेस्टिंग होगी. इस के बाद ही पता लग सकेगा कि वह राइस पुलर कितना पावरफुल है. इस में रेडिएशन इतना जबरदस्त होता है कि इसे कार्बन में रखा जाता है.

‘‘यह सब मिला कर कुल कितना खर्च आएगा?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘देखो, खर्चे के बारे में सटीक तो नहीं बता सकते, लेकिन आप 20 से 70 लाख रुपए के बीच मान कर चलें.’’ वीरेंद्र मोहन बरार ने कहा. कुछ सोचने के बाद नरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उस की टेस्टिंग की तैयारी कीजिए, तब तक मैं भी पैसों का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘ठीक है, आप कुछ पैसे जमा करा दीजिए.’’

तब 2 दिन बाद नरेंद्र ने वीरेंद्र मोहन बरार को 5-6 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद बरार ने कहा कि इस की पहली  टेस्टिंग दिल्ली से दूर हापुड़ इलाके में करेंगे. तब एक दिन वीरेंद्र मोहन बरार और नितिन मोहन बरार अपनी औडी कार से नरेंद्र कुमार के साथ हापुड़ पहुंच गए. जो शख्स नरेंद्र कुमार को राइस पुलर बौल बेच रहा था, वह भी उन के साथ गया. हापुड़ में उन्होंने एंटी रेडिएशन सूट पहन कर उस राइस पुलर बौल की जांच शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने एक जगह पर वह राइस पुलर बौल रख दी और उस बौल से कुछ दूरी पर चावल के कुछ दाने रख दिए. कोई भी चुंबक लोहे को ही अपनी तरफ खींचती है, लेकिन तांबे जैसी दिखने वाली वह गेंद उन चावलों को अपनी तरफ खींच रही थी.

खुद को वैज्ञानिक बताने वाले वीरेंद्र मोहन बरार और नितिन मोहन बरार ने नरेंद्र कुमार से कहा कि प्रारंभिक जांच में यह राइस पुलर खरा उतरा है. क्योंकि इस ने इन चावलों को अपने गुण की वजह से ही अपनी तरफ खींचा है. नरेंद्र कुमार खुश हो गए कि इस की जो 2-3 जांच होनी हैं, वह भी सही निकलें तो बहुत अच्छा होगा. पहली जांच पूरी होने के बाद वीरेंद्र मोहन बरार ने नरेंद्र कुमार से 81.6 लाख रुपए मांगे. नरेंद्र के पास उस समय इतने पैसे नहीं थे तो उन्होंने बरार को किस्तों में 19 लाख, 24.6 लाख और 38 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद बरार ने उन से कहा कि क्वालिटी की जांच के लिए इस राइस पुलर बौल की 2 जांच होनी और जरूरी हैं. जब आप को यह जांच करानी हों तो मुझे एक दिन पहले बता देना.

नरेंद्र कुमार 85 लाख से ज्यादा खर्च कर चुके थे. इसलिए वह दूसरी टेस्टिंग के लिए भी तैयार हो गए. उस राइस पुलर की दूसरी टेस्टिंग उन्होंने दिल्ली के ईस्ट औफ कैलाश में की. इस टेस्टिंग के बाद नरेंद्र कुमार ने वीरेंद्र मोहन बरार को किस्तों में क्रमश: 5.6 लाख, 3.5 लाख और 42 लाख रुपए दिए. इस टेस्टिंग में भी वह राइस पुलर गेंद खरी उतरी. अब उस की आखिरी टेस्टिंग होनी बाकी थी. तीसरी जांच के लिए हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला क्षेत्र निश्चित किया गया. ये सभी लोग धर्मशाला पहुंचे लेकिन उस दिन मौसम खराब होने की वजह से जांच नहीं की जा सकी, जिस से सभी लोग वापस गए

घर लौटने के बाद नरेंद्र कुमार ने अपने एक दोस्त से राइस पुलर के बारे में बात की तो उस दोस्त ने बताया कि आजकल राइस पुलर के नाम पर कुछ लोग ठगी भी कर रहे हैं. तुम ऐसे लोगों से संभल कर रहना. इतना ही नहीं, उस दोस्त ने यूट्यूब पर कुछ वीडियो भी दिखाए, जिस में लोगों ने राइस पुलर सिक्के, बरतनों आदि के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी की थी. दोस्त की बात सुन कर नरेंद्र कुमार का दिमाग घूम गया. उन्होंने उस शख्स से संपर्क किया जो उन्हें राइस पुलर बेच रहा था. उस से उन्होंने कहा कि वह अब इसे नहीं खरीद रहे, उन के जो पैसे खर्च हुए हैं, वह वापस दिलवा दें. उस शख्स ने कह दिया कि जो पैसे टेस्टिंग में खर्च हुए हैं, वे तो वैज्ञानिकों ने लिए हैं

वापस करने के बारे में उन्हीं से बात करो. तब नरेंद्र कुमार ने वीरेंद्र मोहन बरार से बात की. बरार ने कहा कि जांच के लिए जो कैमिकल आया था, वह बहुत महंगा था, इसलिए किसी भी हालत में पैसे वापस नहीं हो सकते. इन लोगों से बात करने के बाद नरेंद्र कुमार को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. उन्होंने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के डीसीपी भीष्म सिंह से मुलाकात कर इस मामले में कानूनी काररवाई करने की मांग की. डीसीपी ने इस मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच के इंटर बौर्डर गैंग इंट्रोगेशन स्क्वायड के एसीपी आदित्य गौतम की देखरेख में एक टीम बनाई. इस टीम में इंसपेक्टर सुनील जैन आदि को शामिल किया गया.

टीम ने इस मामले की जांच शुरू कर दी और ठगी करने वाले वीरेंद्र मोहन बरार, उस के बेटे नितिन मोहन बरार को 8 मई, 2018 को गिरफ्तार कर लियाजांच में पता चला कि ये दोनों फरजी वैज्ञानिक बन कर लोगों को ठगते थे. इन की निशानदेही पर पुलिस ने वैज्ञानिकों द्वारा पहने जाने वाला एंटी रेडिएशन सूट, एंटी रेडिएशन स्टीकर, लैपटौप, प्रिंटर, ब्लैंक लैटरहैड, फरजी आईडी कार्ड औडी कार बरामद की.आरोपियों ने बताया कि इन्होंने तांबे की गेंद पर मैग्नेट की कोटिंग करा ली थी. चावलों को भी खास तरह से तैयार किया गया था. चावलों पर इन्होंने लोहे की कोटिंग करा रखी थी. जब खरीदार को कौपर की बौल चावलों को अपनी तरफ खींचते दिखती तो उन्हें यकीन हो जाता कि यह असली राइस पुलर है. इस से लोग आसानी से जाल में फंस जाते थे.

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के अलावा उत्तराखंड पुलिस ने भी राइस पुलर सिक्के बेचने वाले 12 लोगों को हरिद्वार के एक होटल से गिरफ्तार किया था. गैंग के सदस्यों ने मुंबई के व्यापारी परवेज को फोन कर के जादुई सिक्का बेचने की बात कही थी. गैंग के सदस्य ने उन से कहा था कि इस जादुई सिक्के में इतनी शक्ति है कि इस के प्रभाव से चलती ट्रेन, बस भी रुक जाएगी. हवाईजहाज को भी इमरजेंसी लैंडिंग को बाध्य होना पड़ेगा. इतना ही नहीं, इस सिक्के में मौसम बदलने तक की शक्ति है. यह राइस पुलर कौइन जिस किसी के पास होगा, वह विश्व का शक्तिशाली व्यक्ति बन जाएगा.

परवेज नाम के उस व्यापारी ने जब उस राइस पुलर कौइन की कीमत पूछी तो उस जालसाज ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस की कीमत 21 सौ करोड़ रुपए है. लेकिन वह उन्हें सस्ते में ही दे देगाजालसाज ने यह भी बताया कि उसे यह सिक्का हरिद्वार के एक साधु ने बेचा था. जालसाज ने व्यापारी को भरोसा दिया कि पहले वह हरिद्वार कर उस सिक्के की जादुई शक्ति को देखे, इस के बाद ही पसंद आने पर सौदा करें. व्यापारी को यह बात पसंद गई और वह अपने एक साथी के साथ मुंबई से फ्लाइट द्वारा दिल्ली पहुंच गया और दिल्ली से टैक्सी कर के हरिद्वार के उस होटल में पहुंच गया, जहां जालसाज ने बुलाया था. होटल में व्यापारियों को जालसाज ने वह तथाकथित जादुई सिक्का दिखाया और फिर एक करोड़ रुपए में उस का सौदा तय हो गया.

इसी बीच उस होटल के मैनेजर को किसी तरह यह बात पता चल गई कि होटल में किसी जादुई सिक्के की डील हो रही है. फिर क्या था, उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने दबिश दे कर वहां से 12 लोगों को गिरफ्तार कर उन के पास से तांबे का एक सिक्का, 11 मोबाइल फोन और 2 कारें बरामद कीं. इसी तरह महाराष्ट्र के नासिक में एक रिटायर्ड आर्मी अफसर को भी चमत्कारिक बरतन (राइस पुलर) के नाम पर 70 लाख का चूना लगाया था. हैदराबाद पुलिस ने भी राइस पुलर लोटा के नाम पर मोटी रकम ठगने वाले 4 ठगों को गिरफ्तार किया था. इस के पास से 4 तांबे के लोटों के अलावा 38 लाख रुपए भी बरामद किए थे. मुंबई में ऐसे अनेक लोग हैं जो राइस पुलर (सिक्के, बरतन, बौल इत्यादि) बेचने के धंधे से जुड़े हुए हैं.

कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सन 1835 से 1845 के बीच किंग विलियम चतुर्थ के कार्यकाल में हाफ आना के सिक्के जारी किए थे. ये सिक्के बौंबे, कलकत्ता और मद्रास में बने थे. तांबे के बने इस सिक्के का वजन 12.35 ग्राम था. इन सिक्कों में कुछ चुंबकीय शक्ति बताई जाती थी. सन 1835 में बने वह हाफ आना सिक्के बाजार में 5 से 8 हजार रुपए में बेचे जा रहे हैं, लेकिन सन 1845 में मद्रास में बने सिक्के रेयर हैं. यदि किसी के पास वह सिक्का है तो बाजार में उस की कीमत 15-20 हजार रुपए है. अब बात करते हैं राइस पुलर की. कहा जाता है कि आसमान से उल्का पिंड गिरे थे. एक उल्का पिंड राजस्थान में भी गिरा था, जो इतना शक्तिशाली था कि जमीन में धंस गया. जिस जगह पर वह गिरा था, बाद में वह जगह सरकार ने अपने कब्जे में ले ली थी. जांच में पता चला कि उल्का पिंड के साथ वह इरीडियम धातु थी.

वैज्ञानिकों ने इरीडियम की जांच की तो पता चला कि वह बहुत कठोर धातु है, जिस में परमाणु संख्या 77 है और यह 2,04,500 डिग्री सेल्यिस पर पिघलती है. इस धातु में यदि तांबे को पिघला कर इरीडियम कौपर बनाया जाए तो उस में विशेष प्रकार का चुंबकीय गुण जाता है. राइस पुलर बेचने वालों का दावा है कि राइस पुलर बनाने के लिए तांबे से बनी वस्तु को किसी ऐसे ऊंचे पहाड़ की चोटी पर रखा जाता है, जहां पर बादल नीचे हों. फिर जब आसमानी बिजली उस पात्र या सिक्के पर गिरती है तो उस पात्र या सिक्के में अद्भुत शक्ति जाती है. वह राइस पुलर बन जाता है. धंधेबाज लोग ऐसे पहाड़ों पर अनेक जगह तांबे के पात्र या सिक्के रख देते हैं और वहीं आसपास रुक कर निगाह रखते हैं कि उस पहाड़ पर बिजली गिरी है या नहीं.

अब कुछ लोगों ने राइस पुलर बेचने का एक तरह का धंधा बना रखा है. ये लोग सन 1616, 1717, 1816, 1818 आदि के पुराने तांबे के सिक्के बाजार से तलाश कर उस पर मैग्नेट की कोटिंग करा लेते हैं. फिर वे इन सिक्कों को राइस पुलर का नाम दे कर करोड़ों रुपए की ठगी करते हैं. दिल्ली के वीरेंद्र मोहन बरार ने अपने बेटे नितिन मोहन बरार के साथ मिल कर यही धंधा शुरू किया था. उन्होंने नरेंद्र से करीब डेढ़ करोड़ रुपए की ठगी की थी. राइस पुलर के नाम पर मोटी ठगी का धंधा अनूठा है. लोगों को ऐसे ठगों से सतर्क रहना होगा.

 

भाई ने रंगे हाथ पकड़ा पुलिस ने करा दी बहन की शादी

ज्योति और मनीष एकदूसरे को सच्चा प्यार करते थे. उन के घर वाले नहीं माने तो राज्य महिला आयोग ने आगे कर उन की शादी की जिम्मेदारी पूरी की. यह एक अच्छी पहल है…    

14 मई, 2018 की बात है. दोपहर का समय था. तेज धूप पड़ रही थी. जयपुर में बनीपार्क स्थित ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र की प्रभारी निशा सिद्धू अपने चैंबर में एक केस के सिलसिले में सहकर्मियों से चर्चा कर रही थीं. तभी एक युवती इस केंद्र पर पहुंची. उस ने केंद्र में बाहर के कमरे में बैठी एक महिला से कहा, ‘‘मैडम, मुझे इंचार्ज मैडम से मिलना है.’’  उस महिला ने युवती पर एक नजर दौड़ाई. करीब 19-20 साल की वह युवती घबराई हुई और परेशान लग रही थी. उस ने चुनरी से अपना चेहरा ढका हुआ था. वह कुरता और सलवार पहने हुए थी. भीषण गरमी में आने से उस के बदन से पसीना टपक रहा था.

महिला ने उस युवती को एक कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह कुरसी पर बैठ गई. अपना कुछ काम निपटाने के बाद वह महिला अपनी सीट से उठी और उस युवती से बोली, ‘‘आओ मेरे साथ, मैं तुम्हें इंचार्ज मैडम से मिलवा देती हूं.’’ वह युवती जल्दी से उठ खड़ी हुई और उस महिला के साथ चल दी. वे दोनों दूसरे कमरे में पहुंची. वहां एक बड़ी सी टेबल के सामने एक रौबदार महिला बैठी थी. टेबल के दूसरी तरफ 3-4 अन्य महिलाएं भी कुरसियों पर बैठी थीं.

साथ आई महिला ने इशारा कर के युवती को बताया कि वही इस केंद्र की इंचार्ज हैं. इन का नाम निशा सिद्धू हैं. युवती ने इंचार्ज को अभिवादन किया. युवती का अभिवादन स्वीकार करते हुए इंचार्ज ने युवती को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. फिर पूछा, ‘‘तुम कौन हो और कहां से आई हो?’’

‘‘मैडम, मेरा नाम ज्योति धानका है. मैं जयपुर में ही झोटवाड़ा की धानका बस्ती की रहने वाली हूं.’’ युवती ने अपना परिचय दिया.

‘‘ज्योति, बताओ तुम यहां क्यों आई हो, क्या कोई परेशानी है?’’ इंचार्ज ने उस से पूछा.

‘‘मैडम, मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह लड़का भी मुझे बहुत चाहता है, लेकिन मेरे परिवार वाले हमारे प्यार के खिलाफ हैं. वे हमारे प्यार के दुश्मन बने हुए हैं.’’ युवती ने रुंआसे स्वर में कहा.

‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है और तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘मैडम, मेरी उम्र 19 साल है. परिवार में पिता सुरेश कुमार, 2 भाई और मां हैं.’’ युवती ने बताया.

‘‘और वह लड़का कौन है, जिस से तुम प्यार करती हो.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘वह मनीष महावर है. उस की उम्र भी 22 साल है. वह जयपुर में ही गेटोर रोड ब्रह्मपुरी का रहने वाला है.’’ युवती ने कुछ शरमाते हुए बताया, ‘‘मनीष और मैं एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. लेकिन मेरे परिवार वाले हमारी शादी करना तो दूर उस से बात तक भी नहीं करने देते.’’

एकदो पल रुक कर ज्योति रोने लगी, फिर सुबकते हुए बोली, ‘‘आज सुबह की बात है. मैं अपने भाई के मोबाइल से मनीष से बात कर रही थी. इस बात की भनक पापाजी और भैया को लग गई तो उन्होंने मुझे बेल्ट से खूब मारा.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपने चेहरे और सिर पर ढकी चुनरी को हटाते हुए कहा, ‘‘देखिए मैडम, मेरे परिवार वालों ने मेरे सिर के बाल तक काट दिए, इतना ही नहीं बिजली का करंट भी लगाया. इस से मैं बेहोश हो गई तो मुझे कमरे में बंद कर दिया.’’

इंचार्ज निशा सिद्धू ने उस के सिर के कटे बाल और बेल्ट की पिटाई से लगी चोटें देखीं. फिर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘ज्योति तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम बालिग हो, अपना अच्छाबुरा खुद सोच सकती हो. अगर तुम मनीष से वाकई प्यार करती हो तो तुम्हें उस से मिलने से कोई नहीं रोक सकता. अच्छा यह बताओ कि तुम्हारे प्यार की शुरुआत कैसे हुई.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपनी कहानी सुनाई. ज्योति की प्रेमकहानी का लब्बोलुआब इस प्रकार है

करीब 4 साल पहले झोटवाड़ा की धानका बस्ती में ज्योति के घर के पास ही जागरण का कार्यक्रम था. इस जागरण में इवेंट मैनेजमेंट का काम मनीष महावर संभाल रहा था. उसी जागरण के दौरान ज्योति और मनीष की मुलाकात हुई. मनीष ब्रह्मपुरी में मेटोर रोड पर रहता था. झोटवाड़ा और ब्रह्मपुरी दोनों बस्तियां आसपास ही हैं. जब दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई, तब मनीष की उम्र यही कोई 18-19 साल थी और ज्योति 15-16 साल की थी. उम्र की उस दहलीज पर दोनों ही प्यार का मतलब नहीं समझते थे, फिर भी उन के बीच प्यार के अंकुर फूट निकले.

धीरेधीरे उन का प्यार जवां होने लगा. मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया. मनीष से मिलने के लिए ज्योति घर से किसी बहाने से निकल जाती. मनीष उसे उस के घर से कुछ दूर अपने साथ ले लेता, फिर वे जयपुर की सड़कों पर घूमते या किसी रेस्त्रां में बैठ कर कौफी पीते और प्यार की पींगें बढ़ाते. भले ही दोनों एकदूसरे से सच्चे दिल से प्यार करते थे, लेकिन मनीष जानता था कि ज्योति बालिग नहीं है. कभीकभी वह ज्योति से कहता भी था कि हमारे प्यार की बातें यदि तुम्हारे मातापिता को पता चल गईं तो परेशानी हो जाएगी. ज्योति हर बार उसे यह कह कर आश्वस्त कर देती थी कि मैं बालिग हो जाऊंगी तो पापा और मम्मी से शादी की बात कर लूंगी.

मनीष जानता था कि यह काम इतना आसान नहीं है. बहरहाल दोनों प्यार की उड़ान भरते रहे. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ज्योति और मनीष के मामले में भी यही हुआ. ज्योति का छिपछिप कर मोबाइल पर बातें करना, 15-20 दिन में किसी ना किसी बहाने घर से जाना और 2-4 घंटे बाद वापस लौटना. ये ऐसी बातें थीं, जिन से ज्योति के परिवार वालों को उस पर शक होने लगा. घर में जवान बेटी या बहन हो तो मातापिता और भाई वैसे ही चिंता में रहते हैं. भाइयों ने पता किया तो जल्दी ही उन्हें जानकारी मिल गई कि ज्योति मनीष नाम के एक लड़के से प्यार करती है. भाइयों ने मनीष के बारे में सब कुछ पता लगा लिया. घर वालों ने ज्योति से इस बारे में पूछा तो ज्योति ने अपने प्यार के बारे में सारी बातें सचसच बता दीं. साथ ही यह भी बता दिया कि वह मनीष से शादी करना चाहती है.

ज्योति ने भले ही सच्चाई बता दी थी लेकिन उस की यह हिमाकत पिता सुरेश कुमार और दोनों भाइयों को नागवार गुजरी. उन्होंने उसे समझाया और जातपात का हवाला दे कर मनीष को भूल जाने को कहा. ज्योति भला मनीष को कैसे भूल सकती थी. उस ने तो उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थींजीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. इस के बाद अब ज्योति के सामने 2 रास्ते थे. या तो वह अपने परिवार वालों की बात मान लेती और मनीष को पूरी तरह भुला देती या फिर मनीष के लिए अपने परिवार वालों से विद्रोह करती. लेकिन परेशानी यह थी कि ज्योति अभी बालिग नहीं हुई थी. ऐसे में उस ने सब्र से काम लेने का फैसला किया.

जैसेजैसे ज्योति और मनीष की उम्र बढ़ती गई, उन का प्यार कम होने के बजाए बढ़ता गया. जवानी के साथ शारीरिक बदलाव होने के कारण ज्योति के चेहरे पर भी निखार आने लगा था. मनीष भी कदकाठी से खूबसूरत नौजवान हो गया था. इस बीच, दोनों के बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चलता रहा. पिछले साल फरवरी के महीने में ज्योति के पिता और भाइयों को पता चला कि ज्योति ने मनीष से मिलना नहीं छोड़ा है, बल्कि वह दोनों अभी भी चोरीछिपे मिलनेजुलते हैं और मोबाइल पर बातें करते हैं. ज्योति के पिता और भाइयों ने मनीष के घर वालों को समझाया. उन्होंने मनीष को भी ज्योति से दूर रहने की धमकी दी. लेकिन हुआ वही, जो ऐसे मामलों में अकसर होता है

दोनों ने एकदूसरे से मिलना बंद नहीं किया. इस पर ज्योति के घर वालों ने ज्योति पर कई तरह की बंदिशें लगा दीं. उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. उसे प्रताडि़त करने लगे. घर वालों की प्रताड़ना ने उलटे ज्योति के मन में विद्रोह के बीज बो दिए. इस का नतीजा यह हुआ कि ज्योति पिछले साल अप्रैल महीने में घर से भाग कर सीकर जिले में खाटूश्याम जी चली गई. ज्योति के परिवार वालों ने मनीष के खिलाफ उसे भगाने का मुकदमा थाना झोटवाड़ा में दर्ज करा दिया. पुलिस ने ज्योति को बरामद करने के लिए मनीष के घर पर दबिश दी. लेकिन वह नहीं मिला तो पुलिस ने उस के परिवार पर दबाव बनाया. बाद में पुलिस ने ज्योति को खाटूश्याम जी से बरामद कर लिया. पुलिस ने उसे परिवार वालों को सौंप दिया.

इस के बाद ज्योति के घर वालों ने ज्योति को और ज्यादा डरायाधमकाया और सख्त हिदायत दी कि वह मनीष से दूर रहे, लेकिन ज्योति किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को नहीं भूलना चाहती थी. परिवार की तमाम बंदिशों के बावजूद वह मौका मिल ने पर मनीष से मोबाइल पर बात कर लेती थी. इसी 14 मई की सुबह ज्योति मोबाइल पर चोरीछिपे मनीष से बात कर रही थी तो पिता और भाइयों को पता चल गयागुस्साए पिता और दोनों भाइयों ने उसे बेल्ट से बहुत पीटा. इस पर भी उन का मन नहीं भरा तो उन्होंने उस के सिर के बाल काट दिए. उस के नाखून भी काट दिए गए. बाद में उन्होंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया

गुस्साए घर वालों ने उसे डराने के लिए उस के हाथपैर बांध कर उसे बिजली का करंट भी लगाया. वह चीखतीपुकारती रही, लेकिन अपनी कोख से जन्म देने वाली ज्योति की मां का दिल भी नहीं पसीजा. कुछ देर बेहोश रहने के बाद ज्योति को जब होश आया तो वह किसी तरह युक्ति लगा कर कमरे से बाहर निकली और घर वालों को भरोसे में ले कर कचरा फेंकने के बहाने घर से निकल गई. घर से निकल कर वह सीधी बनीपार्क स्थित महिला अपराजिता सेंटर पहुंची. इस अपराजिता सेंटर को जयपुर ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र भी कहते हैं. केंद्र की इंचार्ज निशा सिद्धू और अन्य पदाधिकारियों को अपने प्यार की दुखभरी कहानी सुना कर ज्योति रो पड़ी. केंद्र पर मौजूद महिला कर्मचारियों ने उसे ढांढस बंधा कर पूरी सहायता करने का भरोसा दिया.

ज्योति की दास्तां सुन कर इंचार्ज निशा सिद्धू ने केंद्र की अन्य पदाधिकारियों से विचारविमर्श किया. ज्योति बालिग थी. केंद्र की पदाधिकारियों ने उसे परिवार और समाज के अलावा ऊंचनीच की सारी स्थितियां बताईं. फिर उस से पूछा कि उस की इच्छा क्या है? ज्योति के कहने पर उसे उस के घर भेजा जा सकता था. अगर वह घर नहीं जाना चाहती तो उसे महिला गृह भेजने की बात भी उन्होंने बताई. उन्होंने कहा कि उस की शिकायत पर घर वालों के खिलाफ थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है. मामला बड़ा संवेदनशील था. ज्योति ना तो अपने घर वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना चाहती थी और ना ही वह वापस अपने घर जाना चाहती थी. वह तो बस यह चाहती थी कि किसी तरह उस की मनीष से शादी हो जाए

इंचार्ज निशा सिद्धू काफी सोचनेविचारने के बाद ज्योति को राज्य महिला आयोग के कार्यालय ले गईं. वहां ज्योति का हाल देख कर और उस की आपबीती सुन कर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा का दिल भी पसीज गया. सुमन शर्मा ने स्वप्रेरित संज्ञान ले कर ज्योति और मनीष के परिजनों को तलब किया. उन्होंने दोनों के घर वालों से बातचीत की, उन्हें समझाया. 2 दिनों तक चली जिदबहस के बाद आखिरकार दोनों के घर वालों ने उन की शादी करने की सहमति दे दी. दोनों पक्षों ने जब रिश्ता स्वीकार करने की हामी भर दी तो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने दोनों की शादी कराने की पहल की. सुमन शर्मा चाहती थीं कि ज्योति की शादी उस के घर से हो, लेकिन ज्योति को अपने घर वालों पर भरोसा नहीं था. वह उस समय अपने घर हरगिज नहीं जाना चाहती थी. इसलिए फैसला किया गया कि आयोग के कार्यालय में और आयोग की देखरेख में ही ज्योति और मनीष की शादी कराई जाए.

शादी की तारीख भी 17 मई तय कर दी गई. 17 मई को राज्य महिला आयोग के लालकोठी स्थित कार्यालय पर सुबह से ही सजावट होने लगी थी. सुबह 10 बजे तक वहां अच्छीखासी चहलपहल होने लगी, शहनाई बजने लगी. आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा सहित सभी सदस्य, कर्मचारी और अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी जोरशोर से शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे. कुछ ही देर में ज्योति और मनीष के घर वाले तथा रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए. मनीष के पिता अपनी होने वाली बहू के लिए शादी का जोड़ा ले कर आए. कई सामाजिक संस्थाओं के लोग भी वहां पहुंचे.

महिला आयोग की सदस्यों ने ब्यूटी पार्लर से ज्योति का ब्राइडल मेकअप करवाया. ज्योति जब पार्लर से लाल जोड़े में सजसंवर कर आयोग के कार्यालय पहुंची, तब तक मनीष भी चुका था. सिर पर सेहरा बांधे मनीष ने कनखियों से ज्योति को निहारा तो ज्योति ने भी मुसकुरा कर अपने प्यार का इजहार किया. मुहूर्त के अनुसार, दोपहर 12 बजे से विवाह की रस्में शुरू हो गईं. राजापार्क के पंडित चक्रवर्ती सामवेदी ने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह की सारी रस्में धूमधाम से पूरी कराईं. आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों के अलावा सदस्य सचिव, राज्य बाल आयोग के सदस्य, पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश, रजिस्ट्रार इस बिना दहेज की शादी के गवाह बने. अनेक लोगों ने नवदंपत्ति को आशीर्वाद दिया.

बाद में आयोग कार्यालय से ही दूल्हादुलहन की धूमधाम से विदाई हुई. दुलहन के अभिभावक बने राज्य महिला आयोग ने ज्योति मनीष की शादी को नगर निगम और कोर्ट में रजिस्टर्ड भी करवा दिया. राज्य महिला आयोग के 19 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ. अध्यक्ष सुमन शर्मा का कहना है कि खाप पंचायतों के फरमान और औनर किलिंग रोकने के लिए महिला आयोग ने एक नई पहल की है. ज्योति ने कहा कि उस की ऐसी अनोखी शादी होगी, इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था. उस ने घर वालों को माफ कर दिया है, लेकिन वे भविष्य में ससुराल पक्ष को परेशान करें, इस के लिए उन्हें आयोग से पाबंद करवाया है

मनीष ने बताया कि तमाम मुश्किलों के बाद प्रेमिका से ही उस की शादी हुई. उस के लिए यह बहुत बड़ी बात है. वह ज्योति को जीवन भर सुखी रखेगा. यदि वह आगे पढ़ना चाहती है तो उस की यह इच्छा भी पूरी करेगा. यह सुखद रहा कि राज्य महिला आयोग की पहल से ज्योति और मनीष के प्यार की जीत हुई. वरना, देश में हर साल सैकड़ों युवकयुवतियां जातपात और ऊंचनीच के भेदभाव में औनर किलिंग के शिकार हो रहे हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2015 में औनर किलिंग के 251 और 2016 में 71 मामले सामने आए थे. राजस्थान महिला आयोग की यह पहल सराहनीय है.

गर्लफ्रेंड का मोबाइल बिजी था तो बॉयफ्रेंड ने कर डाला मर्डर

विवेक और चंदना  एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. कुछ दिनों बाद चंदना के व्यवहार को देख कर विवेक के दिल में एक शक बैठ गया. उस शक को दूर करने के बजाए विवेक ने ऐसा काम कर डाला कि उस का प्यार कफन में दफन हो गया…   

त्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी. 16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी. दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दीमामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो. पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था. चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुरमऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया. कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए. कुछ ही देर में बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

 गांव वालों का विरोध प्रदर्शन पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा. पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी. चंदना हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. जांच अधिकारी के लिए यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. उधर चंदना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. उस की मौत का कारण अत्यधिक खून बहना बताया गया था.

थानाप्रभारी शमीम अली ने चंदना हत्याकांड का खुलासा करने के लिए कई मुखबिर लगा दिए थे. इसी बीच जांच के दौरान उन्हें पता चला कि चंदना अपने पास मोबाइल फोन रखती थी और सब से छिपछिपा कर किसी से अकसर बातें करती थी. यह बात वंदना के अलावा कोई नहीं जानता था. वंदना काफी छोटी थी. थानाप्रभारी शमीम ने सोचा अगर उस से डराधमका कर पूछताछ की गई तो वह डर जाएगी और फिर शायद ही कुछ बता पाए. इसलिए उस से बड़े प्यार और मनोवैज्ञानिक तरीके से बात करनी जरूरी थी. क्या करना है, यह फैसला कर के वह दीपचंद के घर जा पहुंचे.

पुलिस के हत्थे लगा चंदना का मोबाइल फोन उन्होंने वंदना के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘वंदना.’’ वंदना ने डरते हुए जवाब दिया.

‘‘किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘चौथी क्लास में.’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी दीदी अपने पास एक मोबाइल रखती थी? वह मोबाइल कहां है?’’

‘‘जी सर, मुझे पता है दीदी अपने पास एक मोबाइल फोन रखती थी. यह भी पता है कि वह उसे कहां छिपा कर रखती थी.’’ वंदना ने कांपते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो बताओ वह मोबाइल कहां छिपा कर रखती थी?’’ थानाप्रभारी ने बडे़ प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘मैं अभी लाती हूं.’’ वंदना ने जवाब दिया. फिर वह भागती हुई कमरे में गई और बक्से से मोबाइल फोन निकाल कर ले आई. उस ने मोबाइल थानाप्रभारी के हाथों में दे दिया. यह देख कर दीपचंद और उस की पत्नी भौचक्के रह गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उन की बेटी उन की नाक के नीचे क्या गुल खिला रही थी. घर वालों को पता ही नहीं था कि छोटी बेटी भी उस के साथ मिली हुई थी. मांबाप माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बहन चंदना किस से बात करती थी?’’ जांच अधिकारी ने वंदना से अगला सवाल किया.

‘‘सर, मुझे उस का नाम तो नहीं पता लेकिन मैं इतना जानती हूं कि दीदी छिपछिप कर किसी से बात करती थी. मैं ने उसे कई बार बातें करते हुए देखा था.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम जा सकती हो. इस के आगे का पता मैं खुद लगा लूंगा.’’ उन्होंने कहा और चंदना का मोबाइल फोन ले कर चले गए. थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी के पास हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए मोबाइल ही आखिरी सहारा था. उन्होंने चंदना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 16 मार्च की सुबह चंदना के फोन पर साढ़े 9 बजे के करीब आखिरी काल आई थी. मोबाइल से पहुंची कातिल तक पुलिस उस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. जिस नंबर से चंदना को आखिरी काल आई थी, उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि वह नंबर मऊनाथ भंजन जिले के मुहम्मदाबाद गोहना थाना क्षेत्र के गांव उमनपुर निवासी विवेक कुमार चौहान का था.

उस नंबर पर चंदना की काफी लंबीलंबी बातें होती थीं. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम प्रसंग का था. इसी प्रेम प्रसंग के चक्कर में उस की हत्या हुई थी. जांच अधिकारी शमीम अली ने दीपचंद को थाने बुलवा कर विवेक कुमार चौहान के बारे में पूछताछ की तो दीपचंद विवेक का नाम सुन कर चौंक गया. उस ने बताया कि विवेक उस के पड़ोस में रहने वाले रामधनी का नाती है. वह अकसर अपने नानानानी से मिलने ननिहाल आता रहता था. वह जब भी यहां आता था, मेरे घर पर भी सब से मिल कर जरूर जाता था. वह बहुत सीधासादा लड़का है.

काल डिटेल्स के आधार पर विवेक शक के दायरे में चुका था. घटना वाले दिन से उस का भी फोन बंद था. लेकिन घटना वाले दिन उस के सेलफोन की लोकेशन घटनास्थल पर ही थी. इसी वजह से विवेक शक के दायरे में गया. 19 मार्च, 2018 को थानाप्रभारी शमीम अली गाजीपुर से पुलिस फोर्स ले कर मऊनाथ भंजन पहुंचे. मुहम्मदाबाद गोहना थाने की पुलिस की मदद से उन्होंने उमनपुर स्थित विवेक के घर पर दबिश दी. संयोग से विवेक घर पर ही था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर गाजीपुर ले आई. फिर पुलिस ने उसे बहरियाबाद थाने ले जा कर उस से कड़ाई से पूछताछ की

सख्ती से घबरा कर उस ने सब कुछ बता दिया. अपना जुर्म कबूलते हुए उस ने पुलिस को बताया कि चंदना उस की प्रेमिका थी और उसी ने चाकू से गोद कर उस की हत्या की थी. उस ने यह भी बताया कि उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू छिपा दिया था. विवेक ने सिलसिलेवार पूरी कहानी बता दी. थानाप्रभारी ने विवेक की निशानदेही पर लल्लन के खेत से चाकू बरामद कर लिया. आरोपी विवेक से पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह पता चली. चंदना विवेक से लड़ा बैठा था नैना 21 वर्षीय चंदना खूबसूरत तो थी ही, ऊपर से चंचल भी थी. चंदना के पड़ोस में रामधनी चौहान का घर था. रामधनी भले ही दीपचंद की जाति के नहीं थे, लेकिन रामधनी के घर से दीपचंद के परिवार जैसे प्रगाढ़ संबंध थे.

रामधनी के घर जब भी कोई मेहमान आता था तो दीपचंद उसे बुला कर अपने घर ले आता और जम कर स्वागत करता. दीपचंद के मेहमाननवाजी से मेहमानों का दिल खुश रहता था. रामधनी की बेटी का एक बेटा था जिस का नाम विवेक कुमार चौहान था. 21-22 वर्षीय विवेक कभीकभार नानानानी के घर बघांव आया करता था. वह मऊनाथ भंजन जिले के उमनपुर गांव में अपने मांबाप के साथ रहता था. उस के पिता का नाम था विजय बहादुर चौहान. वह सरकारी नौकरी में थे. उसी से 5 सदस्यों वाले परिवार का भरणपोषण होता था. विवेक ने स्नातक तक पढ़ाई कर के नौकरी करने का मन बना लिया था.

3 साल पहले यानी सन 2015 में बात तब की है जब विवेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उन्हीं दिनों उस के ननिहाल बघांव में शादी थी. परिवार के साथ विवेक भी बघांव आया था. वहां उसे मामा के घर सप्ताह भर रहना था. घर वालों के साथ चंदना भी शादी में शामिल हुई. चंदना खूबसूरत तो थी ही, जब वह सफेद रंग के कपड़े पहन लेती थी तो और भी सुंदर लगती थी. उस दिन भी चंदना ने सफेद रंग की पोशाक पहनी थी. इस पोशाक में वह सब से अलग और बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस पर विवेक की नजर पड़ गई तो वह उसे कुछ देर अपलक निहारता रह गया. थोड़ी देर बाद चंदना उस की नजरों के सामने से ओझल हो गई तो उस की आंखें उसे इधरउधर ढूंढने लगीं. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी

प्यार में दोनों हो गए दीवाने पहली ही नजर में चंदना विवेक के दिल में घर कर गई थी. उस दिन के बाद से विवेक चंदना के करीब जाने के लिए बेताब रहने लगा. वैसे भी उस के लिए दीपचंद के घर आनेजाने की पूरी छूट थी. जब भी मौका मिलता, वह दीपचंद के घर चला जाता और घंटों चंदना के साथ बिताता. चूंकि चंदना के पिता दीपचंद अध्यापक थे, इसलिए उन का दिन स्कूल में ही बीतता था. बच्चे स्कूल चले जाते थे. चंदना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए वह और उस की मां सुमन घर पर ही रहती थी. सुमन को विवेक के चंदना से मिलने पर कोई ऐतराज नहीं था. वह सोचती थी कि विवेक बहुत सीधासादा और नेकदिल युवक है. वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिस से दोनों परिवारों की बदनामी हो.

विवेक जब भी चंदना के पास बैठता था, उसे दीवानगी भरी नजरों से निहारता था. चंदना को विवेक का ऐसा देखना अच्छा लगता था. उस के मन के भीतर एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. धीरेधीरे चंदना भी विवेक को प्यार भरी नजरों से देखने लगी थीआंखों के रास्ते दोनों ने एकदूसरे के दिलों में अपना मुकाम बना लिया था. यह भी कह सकते हैं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. जब दिलों की बातें हुईं तो मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर लिया. एक हफ्ते बाद विवेक अपने परिवार के साथ घर लौट गया.

विवेक अपने घर तो लौट आया, लेकिन उस का दिल, उस का चैन, उस का करार सब कुछ चंदना के पास रह गया था. चंदना के बगैर विवेक का मन नहीं लग रहा था. वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा था. विवेक यही सोच रहा था कि चंदना से कैसे मिले, कैसे बातें करे. उधर चंदना का भी यही हाल था. विवेक के लिए वह तड़प रही थी. चंदना के पास सेलफोन भी नहीं था जो फोन कर के विवेक से बात कर लेती. मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. दोनों विरह की अग्नि में जल रहे थे. विवेक से जब चंदना की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो वह मांबाप से झूठ बोल कर नानानानी से मिलने के बहाने बघांव चला आया. बघांव आते हुए रास्ते में उस ने चंदना को उपहार में देने के लिए एक मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोचा कि चंदना के पास सेलफोन होगा तो बात करने में आसानी रहेगी.

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया. घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई. मुंह से भले ही सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया. फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा. वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. तो चंदना काल रिसीव करती थी और ही मिस्ड काल करती थीचंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दीबाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है. विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया. 16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत हैसाढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई.

मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’ विवेक ने किया चाकू से वार चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया. प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी ने प्रेमिका को बाहों में भर कर घोंटा गला

शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया हैप्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा. रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी.

प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’ ‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ. ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी. प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थींसमय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी.

मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

 ‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

 ‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

 ‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

 ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा. प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.

रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’ सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी.

वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी तो मनोज उस के सामने आया और उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई. जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था.

जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी. कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था.

एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था. उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है.

तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे. तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था.

वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था. प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया

जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’ प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.

वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी. प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’ प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गयाप्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ परआई लव यूलिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी. प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.

शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बहू ने ससुर के साथ संबंध बनाकर गला घोंटा

अय्याश प्रवृत्ति के परमानंद ने गीता पर डोरे डालते समय तो उम्र का लिहाज किया, रिश्ते का. ऐसे संबंधों का परिणाम बुरा ही होता है, इस में भी कुछ ऐसा ही हुआ. ससुर जान से गया, बहू सलाखों के पीछे है गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सहीगलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआगीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे.

वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार गया था. गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गयापरमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था

यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी. गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही होता. खेतों पर भी उस का मन लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगाइस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमानाधमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी. लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी.

उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था. इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करतेकरते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता थापरमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्तेनाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी.

यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा. आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’ गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई. मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया.

मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं. मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी थागीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम तो पत्नी को संतुष्ट कर सकते हो, ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आताशेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था. गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती.

यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही. 11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

    — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित