बेटी की हत्या कर मां पूरी रात उसके ऊपर खड़ी रही

गृहक्लेश में जब बात बढ़ जाती है तो परिवार के परिवार बरबाद हो जाते हैं. फौजी इंद्रराम के साथ भी यही हुआ. उस की पत्नी संतोष ने उस की गृहस्थी को ऐसे उजाड़ा कि लोग हैरत में रह गए. कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई.   

24 मार्च, 2018 को राजस्थान के जिला चुरू के एडीजे जगदीश ज्याणी की अदालत में और दिन से ज्यादा भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन माननीय न्यायाधीश द्वारा एक बहुचर्चित मामले का फैसला सुनाया जाना था. फैसला सुनने की उत्सुकता में कोर्ट में वकीलों के अलावा आम लोग भी मौजूद थे. कोर्ट रूम में मौजूद सभी को लग रहा था कि संतोष ने जिस तरह से अपने दोनों बच्चों की निर्दयतापूर्वक हत्या की थी, उसे देखते हुए उस निर्दयी औरत को फांसी की सजा तो होनी चाहिए. सभी लोग सजा को ले कर उत्सुक थे. आखिर ऐसा क्या मामला था कि संतोष को अपने जिगर के टुकड़ों 2 बेटों और एक बेटी की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना पड़ेगा.

राजस्थान का एक जिला है चुरू. इसी जिले के थाना राजलदेसर के अंतर्गत आता है एक गांव हामूसर. इंद्रराम इसी गांव में रहता था, जो कबड्डी का खिलाड़ी था. बाद में उस की नौकरी भारतीय सेना में लग गई. उस की पोस्टिंग बरेली की जाट रेजीमेंट में थी. उस की शादी संतोष से हुई थी. इंद्रराम से ब्याह कर संतोष जब ससुराल आई थी, तब वह बहुत खुश थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. पर धीरेधीरे संतोष का स्वभाव सामने आने लगा. उस ने घर में कलह करनी शुरू कर दी. वह सास, पति, देवर और अन्य पारिवारिक लोगों से लड़ाईझगड़ा करने लगी. बातबात पर गुस्सा हो जाती थी.

इंद्रराम सालभर में दोढाई महीने की छुट्टी पर घर आता था. मगर बीवी की कलह से घर में हर समय लड़ाई होती रहती थी. तब इंद्रराम को लगता कि अगर वह छुट्टी पर नहीं आता तो ठीक रहता. जैसेतैसे छुट्टियां काट कर वह अपनी ड्यूटी चला जाता. इसी तरह कई साल बीत गए और संतोष 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद संतोष ससुराल वालों के साथ कलह करती रहती थी. जब इंद्रराम को घर वाले फोन कर के उस की शिकायत करते तो उसे पत्नी पर बहुत गुस्सा आता था. 

वह अपना घर टूटते नहीं देखना चाहता था. इसलिए वह चुप रह कर सब कुछ सहने लगा. छुट्टी में इंद्रराम के घर आने पर पत्नी क्लेश करती तो वह घर से बाहर जा कर वक्त काटता. उस की बड़ी बेटी करुणा 12 साल की हो चुकी थी और बेटे अनीश जितेंद्र 9 7 साल के थे. तीनों बच्चों की पढ़ाई चल रही थी. संतोष ने अपनी ससुराल वालों के साथ कलह करनी बंद नहीं की तो वह परेशान हो गए. उन लोगों ने अपने खेतों में एक मकान बना रखा था. उन्होंने संतोष से कहा कि वह खेतों वाले मकान में रहे, इस के बाद संतोष बच्चों को ले कर खेतों वाले मकान में रहने लगी

इस तरह सासससुर और देवर अलग हो गए. संतोष अपने बच्चों से कहती कि वे दादा के घर जाएं. फोन पर भी वह पति से भी सीधे मुंह बात नहीं करती थी. 12 जुलाई, 2015 का दिन था. इंद्रराम ने संतोष को फोन किया. किसी बात को ले कर वह पति से फोन पर झगड़ने लगी. झगड़ा बढ़ा तो गुस्से में तमतमाई संतोष ने पति से कहा कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ पानी के टांके (कुंड) में डूब कर जीवनलीला समाप्त कर लेगी.

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. इंद्रराम ने उसे दोबारा फोन किया मगर संतोष ने बात नहीं की. इस के बाद वह अपने तीनों बच्चों को ले कर रात में ही कुंड के पास पहुंच गई. तीनों बच्चों को उस ने एकएक कर के कुंड में धकेल दिया. इस के बाद वह स्वयं भी आत्महत्या के इरादे से कुंड में कूद गई. कुंड में करीब पौने 5 फुट पानी था, जिस की वजह से तीनों बच्चों की डूबने से मौत हो गई थी. संतोष जब पानी में डूबने लगी तो वह बचने के लिए हाथपैर मारने लगी. वह पानी में बेटी के ऊपर खड़ी हो गई. रात भर वह पानी में बेटी के ऊपर खड़ी रही. पानी संतोष के गले तक था. सारी रात वह ऐसे ही खड़ी रही.  

संतोष के ससुराल वाले पास के खेत में रहते थे. उन्होंने जब रात में संतोष और उस के बच्चों को नहीं देखा तो उन्होंने इंद्रराम को फोन किया. इंद्रराम ने संतोष से हुई लड़ाई वाली बात बताते हुए कहा कि संतोष ने यह कहा था कि वह बच्चों सहित पानी के कुंड में कूद कर मरने जा रही है. मैं ने उस की बात को केवल धमकी समझा थाइद्रराम से बात कर के घर के लोग कुंड पर पहुंचे तो संतोष पानी में खड़ी दिखी. तीनों बच्चे दिखाई नहीं दे रहे थे. घर वालों के शोर मचाने के बाद गांव के कई लोग इंद्रराम फौजी के खेत में बने पानी के कुंड पर पहुंच गए. गांव के ही मनफूल टांडी ने राजलदेसर थाने में इस की सूचना दे दी

तत्कालीन थानाप्रभारी सुभाष शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने संतोष को कुंड से जीवित निकाल लिया लिया जबकि तीनों बच्चों की मौत हो चुकी थी. प्रारंभिक पूछताछ में संतोष ने पुलिस को कोई संजोषजनक जवाब नहीं दिया. इस के बजाय उस ने पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया. घटना के समय खेतों में बनी उस ढाणी में संतोष उस के 3 बच्चों के अलावा कोई दूसरा नहीं रहता था. पुलिस ने जांचपड़ताल की तो स्पष्ट हुआ कि संतोष ने ही अपनी बेटी करुणा, बेटे अनीश व जितेंद्र को कुंड में धकेला था, जिस से उन की मौत हो गई.

पुलिस ने संतोष के खिलाफ हत्या आत्महत्या के प्रयास का मामला दर्ज कि या और उसे गिरफ्तार कर लिया. थानाप्रभारी संतोष शर्मा द्वारा की गई जांच में पाया गया कि संतोष उस के पति इंद्रराम के बीच काफी समय से गृहक्लेश चल रहा था. इंद्रराम भी छुट्टी ले कर अपने घर गया था. पत्नी द्वारा परिवार उजड़ जाने का उसे बड़ा दुख हुआ. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी ऐसा भी कर सकती है. बच्चों की मौत ने इंद्रराम को तोड़ कर रख दिया. मगर उस ने भी कसम खा ली कि वह पत्नी को सजा दिला कर ही दम लेगा. संतोष की गिरफ्तारी के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

जांच अधिकारी द्वारा आरोपपत्र दाखिल करने के बाद यह मामला एडीजे कोर्ट में चला. अभियोग को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में 16 गवाह पेश किए, जिन में मृत बच्चों के पिता इंद्रराम, दादी जोरादेवी, ताऊ श्रवण कुमार सांवरमल भी शामिल थे. बचावपक्ष को भी साक्ष्य पेश करने का मौका दिया गया. लेकिन वह कोई भी साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर पाया. 13 मार्च, 2018 को कोर्ट ने दोनों पक्षों की अंतिम बहस सुनने के बाद 24 मार्च, 2018 को एडीजे जगदीश ज्याणी ने हत्यारी मां संतोष को धारा 302 यानी हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास 10 हजार रुपए जुरमाना और धारा 309 में एक हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई.

बीवी को उम्रकैद की सजा मिलने पर इंद्रराम ने पत्रकारों को बताया कि अपने कलेजे के टुकड़ों को इस तरह पानी के कुंड में डाल कर हत्या कर देने वाली मां को सजा देने के लिए कोर्ट पर पूरा विश्वास था. उसे विश्वास था कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी और आज फैसला आने के बाद यह स्पष्ट भी हो गया

वहीं अपर लोक अभियोजक एडवोकेट राजकुमार चोटिया ने मामले को अप्रत्याशित बताते हुए कोर्ट से आरोपी को मृत्युदंड की सजा देने का निवेदन किया था. मगर सजा मिली उम्रकैद.

 

फर्जी औफिस बनाकर डेढ़ सौ करोड़ का घोटाला कर फरार

चालाक लोग सोचते हैं कि लालच दे कर लोगों को ठगना सब से आसान है. यह बात किसी हद तक सही भी है, तभी तो विक्रम सिंह जैसे लोग दूसरों की जेब से पैसा निकाल कर करोड़पति बन जाते हैं.   

माकर्ताओं के करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा हड़पने के आरोपी खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसाइटी  के चेयरमैन विक्रम सिंह राजपुरोजित को लंबे समय बाद आखिर सिरोही पुलिस ने पकड़ ही लिया. पुलिस ने उसे 9 जनवरी, 2018 को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया. करीब डेढ़ साल पहले सोसायटी में परिपक्व हो चुकी अपनी जमापूंजी लेने निवेशक सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के हैड औफिस पहुंचे तो उस समय उन्हें किसी तरह झांसा दे कर टाल दिया गया था. पर सोसायटी कर्मचारियों की बहानेबाजी ज्यादा दिनों तक नहीं चली.

निवेशकों को जब बारबार टरकाया जाने लगा तो वे परेशान होने लगे. फिर जुलाई 2016 में सोसायटी की सभी शाखाओं में ताले लटक गए तो निवेशकों को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. इस के बाद निवेशकों ने अलगअलग थानों में सोसायटी संचालकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थीं. लोगों ने जोधपुर, पाली, सिरोही, पिंडवाड़ा, गुजरात के दमन दीव समेत कई जगहों पर उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए. शुरुआत में संबंधित थानों की पुलिस भी केवल मामले दर्ज कर उन्हें रफादफा कराने की कोशिश में रही, लेकिन जब इस डेढ़ सौ करोड़ की ठगी की बात उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आई तो थाना पुलिस हरकत में गई.

विक्रम सिंह ने सन 1992 में सिरोही जिले के पालड़ीएम कस्बे से स्टोन क्रैशर लगा कर व्यवसाय शुरू किया था. जल्द ही उस के दिमाग में मोटा पैसा कमाने का आइडिया आया तो उस ने सन 2003 में खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसायटी बनाई. विक्रम सिंह ने अपने एक भाई राजवीर सिंह को सोसायटी का एमडी और दूसरे भाई शैतान सिंह को सोसायटी का पीआरओ बना दिया था. सोसायटी की ओर से वलसाड़, वापी, सेलवास, दमन, सरीगांव, उमरगांव, धरमपुर और चिखली में कुल मिला कर 9 ब्रांच खोली गई थीं. 

गुजरात के अलावा उस ने गोवा, दमन, दादर नगर हवेली में भी सोसायटी की शाखाएं खोली थीं. इन सभी में मैनेजर और अन्य स्टाफ की नियुक्तियां की गईं. इस के बाद आकर्षक जमा योजनाओं के जरिए लोगों से पैसे जमा कराए गए. लोगों में विश्वास बढ़ाने के लिए इन्होंने स्थानीय लोगों को अपनी शाखाओं में नौकरी पर रखा. हालांकि बीच में जब किसी जमाकर्ता की मियाद पूरी हुई तो उन्हें रकम लौटाई भी गई, लेकिन उसी दौरान दूसरी आकर्षक योजनाएं भी लाई गईं, जिस से ग्राहक अपनी परिपक्व हुई राशि को फिर से सोसायटी में जमा करा दे

जमा कराए लोगों के पैसों से सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम सिंह राजपुरोहित ने सिरोही, पाड़ीव, आबू रोड, तलेटी, नयासानवाड़ा, पिंडवाड़ा, रामपुरा, अहमदाबाद, अंबाजी, मुंबई आदि जगहों पर अपने और रिश्तेदारों के नाम से करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति खरीदी. इतना ही नहीं, उसने अपनी ही सोसायटी से अपने नाम 12 करोड़ का लोन भी लिया था. इस तर हलोगों को करीब डेढ़ सौ करोड़ का चूना लगाकर शातिर दिमाग विक्रम सिंह फरार हो गया.

फरारी के बाद वह नेपाल, गोवा, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि जगहों पर घूमता रहा. कोई उसे पहचान सके, इस के लिए वह साधु के भेष में रहता था. कभीकभी वह सपेरा भी बन जाता था. जोधपुर में वह महामंदिर इलाके में किराए पर मकान ले कर भी रहा था. वहां वह अपने भतीजे के संपर्क में थापिछले डेढ़ साल से पुलिस पर विक्रम को पकड़ने का दबाव था, लेकिन वह पुलिस को लगातार चकमा दे कर बच निकलता था. उस की गिरफ्तारी पुलिस के लिए एक चुनौती बनी हुई थी, लेकिन सिरोही के एसपी ओमप्रकाश के निर्देश पर उस की गिरफ्तारी के लिए एक गोपनीय योजना बनाई गई, जिस की जानकारी केवल 2 लोगों को ही थी. एक थाना सिरोही के सीआई आनंद कुमार और दूसरे कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को

उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी तरह विक्रम सिंह का पता लगा कर उसे गिरफ्तार किया जाए. ये दोनों क्या प्लान कर रहे हैं, कहां आजा रहे हैं, यह बात थाने में किसी को भी पता नहीं रहती थी. कांस्टेबल योगेंद्र सिंह जब भी विक्रम सिंह की तलाश में बाहर गए, तब उन्होंने जरूरी काम बता कर थाने से छुट्टी ली थी. 3-4 दिन तक तलाश कर के वे वापस लौट आते, दोबारा जाते तो भी छुट्टी ले कर ही जाते थे

उधर विक्रम सिंह भी इतना शातिर था कि वह कभी मोबाइल से बात तक नहीं करता था. बहुत जरूरी होने पर विक्रम सिंह किसी नए फोन नंबर से बात करता था. इस के बाद वह तुरंत अपनी लोकेशन बदल लेता था. ऐसे में पुलिस के लिए यह चुनौती बन जाती थी कि लोकेशन को कैसे ट्रेस किया जाए. पुलिस अपने मुखबिरों का भी सहारा ले रही थी. मुखबिरों की सूचनाओं पर काम किया गया. आखिरकार इन दोनों पुलिसकर्मियों की मेहनत रंग लाई. ये दोनों ही उस का करीब एक महीने से पीछा कर रहे थे

कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को पक्की खबर मिली कि आरोपी विक्रम सिंह जोधपुर में ही है. इस पर उन के साथ एक एसआई को भेजा गया. एसआई को यह नहीं पता था कि किस की गिरफ्तारी के लिए निकले हैं. आखिर 9 जनवरी, 2018 को विक्रम सिंह जोधपुर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उसे जोधपुर से सिरोही ला कर पूछताछ की गई. फिर पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के उस का रिमांड लिया और विस्तार से पूछताछ की. सीआई आनंद कुमार 13 जनवरी को विक्रम सिंह राजपुरोहित को सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के कार्यालय पर ले गए.

पुलिस ने कार्यालय की चाबी के बारे में विक्रम सिंह से पूछा तो उस ने चाबी की जानकारी होने से मना कर दिया. इस पर पुलिस ने ताला खोलने वाले एक युवक को बुला लिया. लेकिन वहां उन्हें मुख्य दरवाजे पर लगा ताला कुंदे समेत पहले से ही टूटा मिलामुख्य दरवाजे से लगते दूसरे दरवाजे पर इंटरलौक जरूर था, लेकिन वह भी अंदर से तोड़ा हुआ था. अंदर की अलमारी को तोड़ने पर उस में पुराने रेकौर्ड मिले

इस के साथ ही उसी अलमारी के अंदर एक लौकर और था, उस में एक हजार 500 का एकएक पुराना नोट मिला. कुछ नोट और पूजा सामग्री भी मिली. पुलिस जब खेतेश्वर सोसायटी के सिरोही कार्यालय पहुंची तो वहां लाइट कनेक्शन कटा मिला. पुलिस को टौर्च मोबाइल की रोशनी में जांच करनी पड़ी. काररवाई के दौरान विक्रम सिंह भी साथ था. उस ने खुद पुलिस को फाइलों के बारे में जानकारी दी कि किस से संबंधित कौन सी फाइल है

पुलिस ने कार्यालय में रखी फाइलों और अन्य दस्तावेजों के बारे में जानकारी ली. इन फाइलों में लोगों की एफडी, बैंकों में पूर्व में जमा करवाए गए पैसों का लेखाजोखा था. पुलिस का कहना है कि विक्रम सिंह ने रेकौर्ड के अलावा अन्य दस्तावेज अपने बड़े भाई शैतान सिंह व छोटे भाई राजवीर सिंह के पास बताए होने की बात कही. पुलिस का कहना है कि ये सभी पुराने लेनदेन का रेकार्ड है, जो सन 2010 से पहले के हैं. उस के बाद के कागजातों के बारे में भी पूछताछ की गई. कार्यालय में मैनेजर के कमरे की टेबल के पास कुछ कागजातों को जलाए जाने के भी सबूत मिले.

जांच से संबंधित तमाम दस्तावेज पुलिस थाने ले आई. पूछताछ में पता चला कि उस ने सोसायटी के माध्यम से हजारों लोगों की खूनपसीने की कमाई से करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए ठगे थे. यहां एक बात यह भी बता दें कि खेतेश्वर सोसायटी में रुपए जमा करने वाले सब से ज्यादा जमाकर्ता सिरोही जिले के ही थे. विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के बाद जमाकर्ताओं को उम्मीद बंधी है कि शायद उन के खूनपसीने की कमाई उन्हें वापस मिल जाए. विक्रम सिंह और उस की खेतेश्वर सोसायटी के खिलाफ जमाकर्ताओं ने जहांजहां रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वहां की पुलिस भी विक्रम सिंह से पूछताछ की तैयारी में थी.

विक्रम सिंह के एक भाई श्याम सिंह पुरोहित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. ठगी का मामला सामने आने पर विक्रम के भाई श्याम सिंह ने मीडिया के सामने कर सफाई दी कि पिछले लंबे समय से उन का विक्रम सिंह से कोई वास्ता नहीं रहा. वह घर आताजाता भी नहीं और यहां तक कि उस से बोलचाल तक नहीं है. साथ ही यह भी कि 4 महीने पहले जब उन की पत्नी की मृत्यु हो गई, तब भी वह घर पर नहीं आया था.   पुलिस विक्रम सिंह के उन भाइयों को भी गिरफ्तार करेगी जो सोसायटी में शामिल थे और उन तमाम शाखाओं के मैनेजरों से भी पूछताछ करेगी, जिन्होंने सोसायटी के माध्यम से लोगों को अच्छा रिटर्न देने का वादा कर के उन की खूनपसीने की कमाई हड़प ली थी.

  कथा लिखने तक विक्रम सिंह की जमानत नहीं हो सकी थी. कोर्ट के आदेश पर उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

15 लाख के लिए कार ड्राइवर ने किया किडनैप

महेश, शरद और रिंकू वैसे तो छोटेमोटे वाहन चोर थे. तीनों की जेल में रहने के बाद जो मुलाकात हुई तो उन्होंने मोटी फिरौती वसूलने के लिए लोगों का इस स्टाइल में अपहरण करना शुरू कर दिया कि…

राजीव कुमार नोएडा में स्थित एचसीएल कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. वैसे वह हरिद्वार के अंतर्गत नंदग्राम के मूल निवासी थे. उन की नौकरी नोएडा में थी इसलिए वह पत्नी और बच्चों के साथ नोएडा में ही रह रहे थे. उन के बच्चों के स्कूल की छुट्टियां चल रही थीं तो पत्नी और बच्चे नंदग्राम (हरिद्वार) गए हुए थे. बीवीबच्चों के चले जाने के बाद राजीव नोएडा में स्थित अपने फ्लैट पर अकेले ही रह रहे थे. 24 मई को राजीव कुमार का जन्मदिन था. उन्होंने जन्मदिन अपने बीवीबच्चों के साथ ही नंदग्राम में मनाने का प्रोग्राम बनाया. सोचा कि 23 मई को ड्यूटी करने के बाद वह सीधे हरिद्वार के लिए निकल जाएंगे.

उन्होंने यही किया. 23 मई को ड्यूटी से छूटने के बाद वह कंपनी की कैब से नोएडा से गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन पहुंच गए. यहां से बस द्वारा हरिद्वार जाने का उन का प्लान था. लिहाजा वह वहीं पर खड़े हो कर हरिद्वार जाने वाली बस का इंतजार करने लगे. वहां खड़ेखडे़ उन्हें काफी देर हो गई लेकिन हरिद्वार जाने वाली कोई बस नहीं आई. वह बहुत परेशान हो गए कि वह अब अपने घर कैसे पहुंचेंगे. रात करीब सवा 12 बजे उन के सामने एक कार आ कर रुकी. कार का चालक हरिद्वार जाने की आवाज लगाने लगा. वहां मौजूद लोगों से उस कार का ड्राइवर हरिद्वार जाने के बारे में पूछने लगा.

उस ड्राइवर ने जब राजीव से भी हरिद्वार जाने के बारे में पूछा तो राजीव ने पहले तो मना कर दिया. फिर उन्होंने उस की कार की तरफ देखा तो उन्हें कार में पहले से ही कुछ सवारियां बैठी हुई दिखाई दीं. इस से राजीव को इस बात की तसल्ली हो गई कि यदि वह इस कार से जाएं तो कार में बैठने वाली वह अकेली सवारी नहीं है और भी सवारी उस के साथ होंगी. इस के बाद वह उस कार में बैठ गए.

राजीव कार की पिछली सीट पर बैठे थे. उन के अगलबगल भी सवारियां थीं. कार चलने के बाद राजीव ने सोचा कि वह अब 3 साढ़े 3 घंटे में हरिद्वार पहुंच जाएंगे. पर कार के कुछ दूर चलने के बाद पास में बैठे व्यक्तियों ने उन के ऊपर काला कपड़ा डाल कर उन्हें चाकू सटाते हुए चेतावनी दी, ‘‘ज्यादा होशियार बनने की जरूरत नहीं है. चुपचाप ऐसे ही बैठे रहो, वरना अपनी जान गंवा बैठोगे.’’

राजीव कुमार समझ गए कि वह बदमाशों के चंगुल में फंस चुके हैं. उन हथियारबंद बदमाशों से वह निहत्थे अकेले मुकाबला नहीं कर सकते थे. लिहाजा वह उन से बड़े प्यार से बोले, ‘‘देखिए मेरा हरिद्वार पहुंचना बहुत जरूरी है. आप लोगों को मुझ से जो कुछ चाहिए ले लो, लेकिन मुझे छोड़ दो.’’

इस के बाद एक बदमाश ने राजीव की तलाशी ले कर उन का फोन और पर्स अपने कब्जे में ले लिया. पर्स में कुछ रुपए भी थे. वह दोनों चीजें अपने पास रखते हुए एक बदमाश बोला, ‘‘हम तुम्हें छोड़ तो देते लेकिन हमें जितने रुपए चाहिए, उतने तुम्हारे पर्स में नहीं हैं. यदि उतने पैसे हमें मिल जाएं तो हम तुम्हें छोड़ देंगे.’’

‘‘बताइए, आप को कितने पैसे चाहिए.’’ राजीव ने पूछा.

‘‘हमें 15 लाख रुपए चाहिए.’’ चलती कार में ही बदमाश बोला.

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है. हमारी हैसियत इतने पैसे देने की नहीं है.’’ राजीव कुमार बोले.

‘‘तुम इस की चिंता मत करो. पैसे कहां से और कैसे आने हैं, इस बात को हम अच्छी तरह से जानते हैं. तुम खुद देखना कि तुम्हारे घर वाले हमारे पास पैसे किस तरह पहुंचाएंगे.’’ बदमाश बोला.

रात में सड़कों पर वह कई घंटे तक कार को घुमाते रहे, फिर वह उन्हें एक कमरे में ले गए और उन के हाथपैर बांध कर एक बोरे में बंद कर के कमरे में रखी सेंट्रल टेबल के नीचे डाल दिया. इस से पहले बदमाशों ने राजीव से उन के घर वालों के फोन नंबर हासिल कर लिए थे. बदमाशों ने जिस इलाके में राजीव को बंधक बना कर रखा था, वहां से कहीं दूर जा कर राजीव के फोन से ही उन की पत्नी को फोन किया.

अपहर्त्ता ने किया फोन पत्नी को पता नहीं था कि उन के पति का अपहरण कर लिया गया है. इसलिए वह अपने फोन की स्क्रीन पर पति का नाम देखते ही बोलीं, ‘‘कैसे हो और घर कब तक पहुंचोगे.’’

‘‘वो घर पर अभी नहीं पहुंचेंगे. राजीव अब हमारे कब्जे में हैं. यदि तुम लोग उन्हें चाहते हो तो हमें 15 लाख रुपए दे दो.’’ बदमाश बोला. ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं.’’ पत्नी ने घबराते हुए पूछा.

‘‘तुम हमारा इतिहास जानने की कोशिश मत करो. जितना कह रहे हैं, समझ जाओ और पैसों का इंतजाम कर लो. बाकी बात मैं वाट्सऐप से करूंगा.’’ कह कर बदमाश ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

पति के अपहरण की बात सुनते ही राजीव की पत्नी परेशान हो गईं उन्होंने फोन कर के अपनी ससुरालियों और मायके वालों को पति के अपहरण की बात बता दी. इस के बाद तो घर के सभी लोग बहुत परेशान हो गए. अपहर्त्ताओं ने फोन कर के 15 लाख रुपए का इंतजाम करने की बात कही थी. पैसे कहां पहुंचाए जाएं, यह उन्होंने नहीं बताया था.

चूंकि अपहर्त्ता ने वाट्सऐप द्वारा बात करने को कहा था, इसलिए राजीव की पत्नी ने पति के फोन पर वाट्सऐप मैसेज भेज कर पूछा, ‘‘मेरे पति कैसे हैं, क्या उन से हमारी बात हो सकती है. उन का एक फोटो भी भेज दीजिए.’’

‘‘वो बिलकुल ठीक हैं. तुम लोगों ने पैसों का इंतजाम किया या नहीं.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

‘‘हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं.’’ राजीव की पत्नी ने कहा.

‘‘ठीक है मैं एक वीडियो भेजूंगा. उस के बाद खुद ही फैसला करना कि क्या करना है.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

फिरौती के लिए भेजी पिटाई की वीडियो इस के बाद अपहर्त्ता ने राजीव को बोरे से बाहर निकाल कर उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. दूसरे बदमाश ने पिटाई की वीडियो भी बना ली. अपहर्त्ता ने राजीव से यह भी कहा कि तुम्हारे घर वालों को शायद तुम्हारी फिक्र नहीं है. इसलिए वह पैसे नहीं दे रहे. यह वीडियो देख कर शायद उन्हें तुम्हारी चिंता हो जाए.

अपहर्त्ता ने राजीव की पिटाई वाली वीडियो उन के घर वालों को वाट्सऐप कर दी. वह वीडियो देख कर घर वालों का दिल कांप उठा कि वे लोग कितनी बेदर्दी से उन की पिटाई करने में लगे हुए थे. अब घर वालों ने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह उन्हें उन के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश करेंगे वरना इस तरह तो वह लोग उन की जान ही ले लेंगे.

इस के तुरंत बाद राजीव की पत्नी ने पति के मोबाइल पर वाट्सऐप मैसेज भेजा, ‘‘आप इन से कुछ मत कहिए, अभी हमारे पास जितने भी पैसे हैं, हम आप को देने को तैयार हैं, बताइए पैसे कहां पहुंचाए जाएं.’’

दूसरी तरफ से अपहर्त्ता ने भी मैसेज भेजा, ‘‘आप पैसे राजीव कुमार के ही बैंक अकाउंट में जमा करा दीजिए.’’ तब राजीव के घर वालों ने डेढ़ लाख रुपए उन के बैंक खाते में जमा करा कर इस की जानकारी बदमाशों को दे दी. उन्होंने फिलहाल पैसे जमा तो करा दिए लेकिन उन्हें इस बात पर भी संशय था कि बदमाशों द्वारा मांगी गई फिरौती की रकम देने के बाद इस बात की क्या गारंटी थी कि वह राजीव को छोड़ देंगे. इसलिए उन्होंने इस की जानकारी अपने नजदीकी थाने को दे दी.

मामला अपहरण का था, हरिद्वार पुलिस ने जांच की तो मामला उत्तर प्रदेश के जिला  गाजियाबाद का लगा. क्योंकि बदमाशों ने पहली बार राजीव के फोन से उन की पत्नी को फोन कर के जो 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, उस फोन की लोकेशन उस समय गाजियाबाद जिले की ही आ रही थी. इसलिए हरिद्वार पुलिस ने राजीव के घर वालों से कहा कि वह गाजियाबाद पुलिस से संपर्क करें. इतना ही नहीं हरिद्वार पुलिस ने गाजियाबाद पुलिस से संपर्क कर काल डिटेल्स की जानकारी भी दे दी.

गाजियाबाद पुलिस ने की काररवाई राजीव के घर वालों ने गाजियाबाद के एसएसपी वैभव कृष्ण से मुलाकात कर सारी जानकारी दे दी. यह मामला सीधे तौर पर अपहरण का इसलिए एसएसपी ने इस केस को गंभीरता से लिया. उन्होंने एसटीएफ के एसपी आर.के. मिश्रा के साथ विभिन्न थानों में मौजूद तेजतर्रार पुलिस वालों को भी केस की छानबीन में लगा दिया.

उधर राजीव के घर वालों ने उन के खातों में जो डेड़ लाख रुपए जमा कराए थे, वह बदमाशों ने राजीव से उन का डेबिट कार्ड और पिन नंबर ले कर वह कई बार में अलगअलग जगहों पर स्थित एटीएम मशीनों से निकाल लिए थे. राजीव के घर वालों ने गाजियाबाद पुलिस को यह भी जानकारी दे दी कि अपहर्त्ताओं के कहने पर उन्होंने राजीव के बैंक खाते में डेढ़ लाख रुपए जमा करा दिए थे. पुलिस ने बैंक अधिकारियों से मिल कर जब राजीव के खाते की जांच की तो पता चला कि बदमाशों ने राजीव के डेविड कार्ड से दिल्ली, गाजियाबाद, हापुड़ और बुलंदशहर के एटीएम से सारे पैसे कई बार में निकाल लिए हैं.

जिन एटीएम सेंटरों से उन्होंने वह पैसे निकाले थे, पुलिस ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि अलगअलग एटीएम मशीनों से अलगअलग लोगों द्वारा पैसे निकाले गए थे और उन्होंने अपने चेहरे कैप से ढक रखे थे. राजीव का अपहरण हुए कई दिन बीत चुके थे. उन के घर वालों और रिश्तेदारों को उन की चिंता हो रही थी. सब इस बात को ले कर परेशान थे कि पता नहीं राजीव को उन लोगों ने किस हाल में रखा होगा.

वैसे बदमाश राजीव को हर समय हाथपैर बांध कर ही रखते थे. सुबह और शाम को वह उन के हाथपैर केवल खाना खाने के लिए खोलते थे. खाना खाने के बाद वह फिर से उन्हें रस्सी से बांध देते थे. वह नशे में रहे इस के लिए उन्हे नींबू पानी में नींद की गोलियां मिला कर दे देते. इस के अलावा वह उन की कमर में नशे का इंजेक्शन भी लगाते थे.

पुलिस की 20 टीमें कर रही थीं काम राजीव को अपहर्त्ताओं के चंगुल में रहते हुए 9 दिन बीत चुके थे. उन के घर वाले लगातार पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर अपनी चिंता जाहिर कर रहे थे. पुलिस की 20 टीमें अपनेअपने तरीकों से अपहर्त्ताओं के पास पहुंचने की कोशिश में लगी थीं. सर्विलांस टीम भी मुस्तैद थी. अब तक की जांच और अपने मुखबिरों से मिली जानकारी के बाद पुलिस और एसटीएफ की टीम ने अपहरण के 9वें दिन यानी पहली जून, 2018 को गाजियाबाद की पौश कालोनी वसुंधरा के पास स्थित प्रह्लादगढ़ी गांव में दबिश दे कर रिंकू नाम के बदमाश को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उस से पूछताछ कर सैंट्रल टेबल के नीचे बोरी में बंद पड़े राजीव कुमार को बरामद कर लिया. उन के हाथपैर बांधे हुए थे और उस समय वह बेहोशी की हालत में थे. उन्हें 2 पुलिसकर्मी तुरंत अस्पताल ले गए. इस के बाद पुलिस ने रिंकू से उस के अन्य साथियों के बारे में पूछताछ की तो रिंकू ने बताया कि उस के साथी शरद और महेश राजनगर एक्सटेंशन की तरफ गए हैं.

रिंकू को साथ लेकर पुलिस राजनगर एक्सटेंशन की तरफ गई तो उन्हें एक सैंट्रो कार दिखी. रिंकू के इशारे पर पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो उन लोगों ने सैंट्रो कार की स्पीड और तेज कर दी. बाद में 2 बदमाश कार छोड़ कर पैदल ही भागने लगे. इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की.

बदमाशों की फायरिंग से 2 पुलिसकर्मी अरुण कुमार और मनीष कुमार घायल हो गए. उधर पुलिस की गोली से दोनों अपहर्त्ता भी घायल हो कर गिर पड़े. तभी पुलिस ने उन दोनों बदमाशों को भी हिरासत में ले लिया. सभी घायलों को तुरंत अस्पताल में भरती कराया गया. एसएसपी वैभव कृष्ण और एसटीएफ के एसपी आर.एन. मिश्रा को मुठभेड़ में पुलिसकर्मियों के घायल होने और अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार कर राजीव कुमार के सकुशल बरामद करने की जानकारी मिली तो दोनों पुलिस अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

उधर सूचना मिलने पर राजीव के घर वाले भी गाजियाबाद के लिए रवाना हो गए. एसएसपी के समक्ष जब तीनों बदमाशों से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि लोगों का अपहरण कर मोटी फिरौती मांगना इन बदमाशों का धंधा बन चुका था. राजीव से पहले यह और भी कई लोगों का अपहरण कर उन से फिरौती की मोटी रकम वसूल चुके थे. नशे की ज्यादा खुराक देने के चक्कर में अपहरण किए गए 3 लोगों की नशे की ओवरडोज से इन के यहां मौत भी हो चुकी थी और 2 लोगों की वह हत्या भी कर चुके थे.

आखिर इन्होंने अपहरण करने का गैंग क्यों बनाया और इन का अपहरण करने का तरीका क्या था आदि के संबंध में पुलिस ने इन से पूछताछ की तो इन शातिर बदमाशों ने जो कहानी बताई वह वास्तव में हैरान कर देने वाली निकली. जेल में बनाई थी किडनैपिंग की योजना

पता चला कि हापुड़ निवासी रिंकू, अयोध्या निवासी शरद और सूरजपुर निवासी महेश मिश्रा तीनों ही वाहन चोर हैं. यह अलगअलग रह कर वाहन चोरी करते थे. जेल में मुलाकात होने के बाद इन्होंने एक साथ मिल कर लूटपाट भी शुरू कर दी. लिफ्ट देने के बहाने इन्होंने लोगों को लूटना भी शुरू कर दिया. ज्यादा पैसे पाने के लिए इन्होंने नए तरीके से लोगों का अपहरण कर उन के घर वालों से मोटी फिरौती वसूलनी चालू कर दी.

करीब एक महीने पहले इन्होंने लालकुआं (गाजियाबाद) से बिजनौर जा रहे सौरभ नाम के एक युवक को अपनी कार में लिफ्ट दे कर बंधक बनाया. जब उस ने लूट का विरोध किया तो इन्होंने उस की हत्या कर दी. इस के बाद इन्होंने उस का मोबाइल फोन, अन्य सामान लूट लिया और उस की लाश डासना क्षेत्र में डाल दी.

इस के अलावा 24 मई, 2018 को इन्होंने डाबर तिराहे से दिल्ली में प्राइवेट जौब पर जाने वाले देवेंद्र नाम के युवक को लूटने के लिए रोका. देवेंद्र ने विरोध किया तो उन्होंने चाकू मार कर उस की हत्या कर दी. हत्या के बाद यह उस का लैपटौप, मोबाइल फोन आदि लूट कर फरार हो गए.

28 अप्रैल, 2018 को इन लोगों ने गजरौला के रहने वाले 22 वर्षीय पप्पू खान को आनंद विहार बस अड््डे से लिफ्ट दे कर किडनैप किया और उस के घर वालों से फिरौती  की रकम वसूल की. पप्पू खान 28 अप्रैल को बस द्वारा गजरौला से दिल्ली के लिए चला था. वह रात साढ़े 12 बजे आनंद विहार बस अड्डे पहुंचा. वहां से उसे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर मुंबई में अपने भाई ने पास जाना था.

आनंद विहार बस अड्डे के बाहर महेश, रिंकू और शरद सैंट्रो कार लिए शिकार की तलाश कर रहे थे. ये लोग सराय काले खां बस अड्डे जाने की आवाज लगाने लगे. हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है. यही सोच कर पप्पू खान उन की सैंट्रो कार में बैठ गया. कार में बैठने के बाद इन्होंने पप्पू खान के एक तरफ से चाकू और दूसरी तरफ से पिस्टल लगा दी. पप्पू के मुंह से कोई भी आवाज नहीं निकली. वह बुरी तरह से डर गया. तभी बदमाशों ने उस के मुंह में जबरदस्ती नशे की गोलियां डाल कर ऊपर से पानी पिला दिया. फिर उस का मोबाइल फोन और एटीएम कार्ड अपने कब्जे में ले लिया.

पप्पू को जब होश आया तो उस ने खुद को एक कमरे में बंद पाया. बदमाश 29 अप्रैल को उसे एनएच-24 हाईवे पर डासना के पास ले गए. उन्होंने उस के ही मोबाइल से उस के भाई से बात कराई. उन्होंने उस के भाई से 10 लाख रुपए की फिरौती मांगी. बाद में मामला 2 लाख रुपए में तय हो गया. वह 2 लाख रुपए उन्होंने पप्पू खान के ही बैंक खाते में मंगाए. फिर अपहर्त्ता अलगअलग जगहों की एटीएम मशीन से रोजाना 25 हजार रुपए निकाल लेते.

इस तरह उन्होंने 9 दिनों तक पप्पू खान को अपने पास बंधक बना कर रखा. वह उसे नशे की हालत में बांध कर कमरे में रखे संदूक में छिपा कर रखते थे. 2 लाख रुपए वसूलने के बाद उन्होंने पप्पू खान को सुबह 4 बजे एनएच-24 हाईवे पर यूपी गेट के पास आंखों पर पट्टी बांध कर छोड़ दिया. बदमाशों ने घर जाने के लिए उसे 500 रुपए भी दिए थे.

आनंद विहार बस अड्डा और मयूर विहार से उन्होंने अप्रैल माह में ही 2 और लोगों का अपहरण कर उन्हें 10 दिनों तक अपने कब्जे में रखा था. इन में एक को उत्तर प्रदेश के गजरौला में और दूसरे को गाजियाबाद के प्रह्लादगढ़ी में रखा था. किडनैप किए लोगों को यह नशे का इंजेक्शन लगा कर या नशीली गोलियां खिला कर, उन्हें बांध कर रखते थे. हैवी डोज देने की वजह से इन के यहां 3 लोगों की मौत भी हो गई थी. एचसीएल के इंजीनियर राजीव कुमार का अपहरण करने के बाद उन्हें भी नशे की हालत में रखा गया था.

बेहोशी की हालत में कभी उन्हें गद्दे के नीचे छिपा दिया जाता था तो कभी बोरी में बांध कर सेंट्रल टेबल के नीचे. राजीव कुमार ने बताया कि उन्हें बदमाशों के हावभाव देखने के बाद खुद के जीवित रहने की उम्मीद नहीं थी.

किडनैपिंग के अलावा भी शरद, महेश और रिंकू ने गाडि़यां चोरी करनी बंद नहीं की थीं. यह चोरी इस वजह से करते थे ताकि इन की पहचान छोटेमोटे चोर के रूप में बनी रहे. पुलिस ने शरदचंद्र, महेश मिश्रा और रिंकू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

— कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित

 

11 दूल्हों को लूटने वाली दुल्हन

कई कारणों से कुछ लोगों की शादी नहीं हो पाती. उम्र बढ़ जाने पर ऐसे लोग जब पत्नी ला कर घरगृहस्थी बसाने की सोचते हैं तो कई बार ठगी का शिकार हो जाते हैं. मुकेश और रीता भी शादी के नाम पर लोगों को ऐसे ही ठगते थे. लेकिन…

6 मई, 2018 का दिन था. सुबह के यही कोई 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के थाना पीरान कलियर के थानाप्रभारी देवराज शर्मा अपने औफिस में बैठे थे. तभी किसी व्यक्ति ने उन्हें फोन कर के कहा,

‘‘सर, मेरा नाम अशोक है और मैं धनौरी कस्बे में रहता हूं. मैं एक मामले में आप से बात करना चाहता हूं.’’
‘‘बताइए क्या मामला है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.
‘‘सर, मेरे साथ एक धोखाधड़ी हुई है.’’ अशोक ने बताया.
‘‘किस तरह की धोखाधड़ी हुई है आप के साथ?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि गत 2 मई, 2018 को ज्वालापुर के रहने वाले मेरे एक परिचित तथा उस के दोस्त मुकेश ने मेरी शादी रीता से कराई थी, जो जिला कोटद्वार के पौड़ी की रहने वाली थी. इस शादी के लिए मैं ने 2 लाख रुपए में अपनी प्रौपर्टी गिरवी रख कर लोन लिया था.’’ अशोक बोला.
‘‘इस के बाद क्या हुआ?’’ थानाप्रभारी देशराज शर्मा ने पूछा.

‘‘सर, इस शादी में मुकेश बिचौलिया था. उस ने मेरी शादी कराने के एवज में मुझ से 50 हजार रुपए नकद लिए थे. मुकेश ने मुझ से कहा था कि रीता एक गरीब घर की लड़की है. उस के पिता महेंद्र उस की शादी में ज्यादा रकम खर्च नहीं कर सकते. वह साधारण तरीके से शादी कर के बेटी के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’ अशोक ने बताया.

‘‘क्या तुम ने मुकेश और महेंद्र से भी संपर्क किया था?’’ शर्मा ने पूछा.
‘‘नहीं सर, इस बीच हमारी बात सिर्फ मुकेश के माध्यम से ही चलती रही और महेंद्र से केवल उस दिन मुलाकात हुई थी, जिस दिन वह वरवधू को आशीर्वाद देने के लिए आया था. मुकेश ने यह शादी 2 अप्रैल को हरिद्वार की रोशनाबाद कोर्ट में कराई थी. इस के बाद मुकेश व महेंद्र हम से कभी नहीं मिले. शादी के 2 दिन बाद ही रीता हमारे घर से सोनेचांदी की सारी ज्वैलरी और नकदी ले कर भाग गई.

रीता को हम ने कोटद्वार, ज्वालापुर, बिजनौर आदि कई जगहों पर तलाश किया, मगर हमें उस का कुछ भी पता नहीं चल सका. अब मुकेश का फोन भी बंद है.’’ अशोक ने बताया.
‘‘तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम शादी कराने वाले ठगों के गिरोह के चक्कर में फंस गए हो. इसीलिए उन्होंने अपने फोन भी बंद कर लिए हैं. अगर दुलहन रीता ठीक होती तो वह जेवर सहित क्यों भागती?’’ थानाप्रभारी बोले.
‘‘आप ठीक कह रहे हैं सर, अब मैं इन जालसाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता हूं.’’ अशोक ने कहा.
‘‘ठीक है तुम धनौरी पुलिस चौकी चले जाओ. वहां के चौकी इंचार्ज रंजीत सिंह तोमर से मिल कर तुम अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकते हो.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

पुलिस ने शुरू की जांच इस के बाद अशोक धनौरी पुलिस चौकी पहुंचा और चौकी इंचार्ज रंजीत तोमर से मिल कर खुद के ठगे जाने की घटना सिलसिलेवार बता दी. अशोक की तहरीर पर चौकी इंचार्ज ने लुटेरी दुलहन रीता उर्फ पूजा, बिचौलिए मुकेश तथा रीता के तथाकथित बाप महेंद्र के खिलाफ भादंवि की धाराओं 420, 417, 406 तथा 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी ने चौकी प्रभारी रंजीत तोमर को ही इस केस की जांच करने के निर्देश दिए और इस केस की जानकारी सीओ (रुड़की) स्वप्न किशोर सिंह को भी दे दी. 7 मई की शाम को एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा और सीओ स्वप्न किशोर सिंह थाना पीरान कलियर पहुंचे. उन्होंने इस ठग गिरोह को पकड़ने के लिए थानाप्रभारी देशराज शर्मा व चौकी प्रभारी रंजीत तोमर के साथ मीटिंग की. मीटिंग में उन्होंने इस केस को खोलने के संबंध में कुछ दिशानिर्देश देते हुए कहा कि यह गिरोह अब जल्द ही आसपास के क्षेत्र में शादी के लिए किसी नए व्यक्ति को शिकार बनाएगा. आप अपने मुखबिरों को सतर्क कर दें.

एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में एसआई रंजीत तोमर, चरण सिंह चौहान, अहसान अली, कांस्टेबल अरविंद, ब्रजमोहन, महिला कांस्टेबल सुषमा आदि को शामिल किया गया. इस के बाद थानाप्रभारी और चौकी इंचार्ज ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया और उन ठगों की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुकेश के फोन नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया. उन्हें तलाश करतेकरते 7 दिन बीत चुके थे. मगर अभी तक उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

17 मई, 2018 को एसआई रंजीत सिंह तोमर को एक मुखबिर ने उन ठगों के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. एसआई रंजीत तोमर ने इस सूचना से थानाप्रभारी और सीओ स्वप्न किशोर सिंह को भी अवगत करा दिया. मुखबिर ने बताया था कि गैंग के सदस्य हरिद्वार के टिबड़ी इलाके में हैं. यह गिरोह कल रात ही राजस्थान के जयपुर शहर के रहने वाले संजय को शिकार बना कर लौटा है. रीता ने संजय से 2 दिन पहले ही शादी की थी. वह यहां से कहीं जाने की तैयारी में है.

पुलिस क्षेत्राधिकारी स्वप्न सिंह ने पुलिस टीम को तुरंत टिबड़ी जाने के निर्देश दिए. पुलिस टीम ने मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर दबिश दी तो वहां पर मुकेश उर्फ यादराम, उस के बेटे अरुण, भोपाल और रीता उर्फ पूजा को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो शादी कर के लूट का धंधा चलाने वाले इस गैंग की कहानी सामने आई, जो इस प्रकार निकली—

रीता उर्फ पूजा मूलरूप से जिला बिजनौर के कस्बा अफजलगढ़ की रहने वाली थी. उस का भाई राजू और पिता कृपाल सिंह गांव में खेतीबाड़ी करते थे. सन 2002 में पिता ने उस की शादी झाड़पुर निवासी पवन से कर दी. बाद में रीता 2 बेटों और एक बेटी की मां बनी. रीता के गलत चालचलन की वजह से सन 2013 में पवन ने उसे छोड़ दिया और बच्चों सहित उस से अलग रहने लगा था.

जिस्मफरोशी से आई ठगी के धंधे में रीता की बदचलनी की वजह से पति से संबंध टूट जाने की बात उस के मायके वालों को भी पता चल गई थी इसलिए उस के मायके वालों ने भी उस से नाता तोड़ लिया था. रीता के भाई राजू का एक दोस्त था मुकेश जो कि बिजनौर के नरैना गांव का रहने वाला था. पति द्वारा छोड़े जाने के बाद रीता ने मुकेश के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा ली थीं. मुकेश उस वक्त ज्वालापुर के कड़च्छ मोहल्ले में रहता था. साथसाथ रहने पर दोनों के नाजायज संबंध बन गए. मुकेश रीता के जरिए कमाई करना चाहता था, लिहाजा उस ने उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया. वह उसे धंधा करने के लिए रात को होटलों में भेजता. 2 सालों तक उन का यह धंधा चलता रहा.

सन 2015 में मुकेश ने सोचा कि होटलों में जिस्मफरोशी के धंधे में पुलिस के छापे आदि का डर रहता है. पकडे़ जाने पर जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है. इसलिए मुकेश ने रीता से सलाह कर के यह धंधा बदलने का विचार किया. उस ने रीता से कहा कि वह उसे गरीब घर की लड़की बता कर उस की शादी ऐसे अमीर परिवार के युवकों से करा दिया करेगा, जिन की शादी नहीं हो रही हो. शादी के बाद वह उस परिवार के जेवर व नकदी ले कर रफूचक्कर हो जाया करेगी.

रीता को मुकेश की यह सलाह पसंद आ गई और उन्होंने अपने इस नए धंधे को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया. इस के बाद उन दोनों ने कुछ ऐसे लोगों को ढूंढना शुरू कर दिया जो किसी कारण से अपनी शादी बिरादरी में या अन्य कहीं नहीं कर पा रहे थे. शादी के समय मुकेश अधेड़ व्यक्ति भोपाल को रीता के बाप के रूप में पेश करता था. उसे फिल्मी स्टाइल में रीता के बाप का अभिनय करते हुए कन्यादान जैसी रस्में पूरी करनी होती थीं. इस काम के एवज में मुकेश उसे 2 हजार रुपए प्रति शादी देता था.

मुकेश पहले तो किसी अमीर व्यक्ति से रीता की शादी करवाता, उस के बाद रीता अपने कथित पति के घर के जेवर व नकदी ले कर एकदो दिन में ही वहां से फुर्र हो जाती थी. मुकेश व रीता के जालसाजी के इस धंधे में अकसर मुकेश का बेटा अरुण भी शामिल रहता था. मुकेश उसे भी ठगी की रकम में से हिस्सा देता था. शादी के नाम पर ठगी करने की लगभग 10 घटनाओं को वह अंजाम दे चुके थे. इस गिरोह में मुकेश का बेटा अरुण रीता का भाई बनता था. जबकि ज्वालापुर की लाल मंदिर कालोनी का रहने वाला भोपाल लड़की का फरजी पिता बनता था.

रीता ने बताया कि अब तक वह गरीब लड़की बन कर उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा के 11 लोगों से शादी का नाटक कर के ठग चुकी है. वह यह धंधा पिछले 3 सालों से कर रही थी. ठगी के कुछ शिकार लोग लोकलाज के चलते पुलिस तक नहीं गए थे. जिन लोगों ने पुलिस से शिकायत की थी तो पुलिस उन लोगों के पास तक नहीं पहुंच सकी. क्योंकि पुलिस को उन लोगों का पता मालूम नहीं था.

रीता ने बताया कि सन 2017 में उस ने हरियाणा के जिला करनाल निवासी 2 युवकों को ठगा था. उन के यहां से भी वह लाखों रुपए की ज्वैलरी और नकदी ले कर रफूचक्कर हो गई थी. पिछले साल उस ने शिवदासपुर गांव तेलीवाला के युवक एस. कुमार को ठग कर उस के लगभग 50 हजार रुपए और जेवरों पर हाथ साफ किया था. गत 24 अप्रैल, 2017 को मुकेश ने उस की शादी मुजफ्फरनगर जिले के गांव गुर्जरहेड़ी निवासी संदीप शर्मा से कराई थी. शादी के 2 दिन बाद ही वह रात को 3 बजे संदीप शर्मा के परिवार का मालपानी समेट खिसक गई थी.

मुकेश था आदतन अपराधी कुछ महीने पहले ही मुकेश ने उस की शादी बिजनौर के सोनू के साथ कराई थी. उस शादी में भी वह 2 दिन बाद घर के जेवर व नकदी ले कर फरार हो गई थी. सोनू ने इस की शिकायत पुलिस से की तो एसआई मीनाक्षी गुप्ता को इस की जांच सौंपी गई. इस प्रकरण में मुकेश ने सोनू के घर वालों को वधू का नाम नेहा बताया था.

पूछताछ में मुकेश ने भी बताया कि पहले उस की रीता के भाई राजू से गहरी दोस्ती थी. करीब 5 साल पहले जब रीता की बदचलनी की वजह से उस के भाई व बाप ने उस से नाता तोड़ लिया था तो वह उस के साथ रहने लगी थी. पहले वह दोनों कोटद्वार के कौडि़यों कैंप मोहल्ले में रहा करते थे. इस के बाद वह ज्वालापुर के मोहल्ला कड़च्छ में रहने लगे. ठगी की रकम से डबल हिस्सा लेने के लिए मुकेश ने अपने बेटे अरुण को भी इस गैंग में शामिल कर लिया था. पुलिस को मुकेश के बारे में पता चला कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का

इंसान है. कोटद्वार के लकड़ी पड़ाव में सन 2011 में हुए डबल मर्डर में भी वह शामिल था. सन 2013 में एडीजे कोर्ट कोटद्वार से उसे आजीवन कारावास की सजा हो चुकी थी. आरोपी की अपील माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड, नैनीताल में विचाराधीन है. वर्तमान में मुकेश जमानत पर था. इस गिरोह के गिरफ्तार होने की सूचना पर एसएसपी कृष्ण कुमार और एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा भी थाने पहुंच गए. एसएसपी ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर मीडिया को इस शातिर गैंग के बारे में जानकारी दी.

पुलिस ने अभियुक्तों के पास से 35 हजार रुपए नकद, चांदी के गहने, मंगलसूत्र, बिछुए आदि बरामद किए. पूछताछ के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. केस की जांच एसआई रंजीत तोमर कर रहे थे. एसआई तोमर आरोपियों के शिकार सभी लोगों से संपर्क कर आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य इकट्ठा कर रहे थे, जिस से उन्हें कोर्ट से उचित सजा मिल सके.
— पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रौपर्टी विवाद को लेकर अरबपति भाइयों के बीच बिछ गई 3 लाशें

आजकल पैसा और प्रौपर्टी रिश्तों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गई है. प्रौपर्टी विवाद के चलते ही दिल्ली के मौडल टाउन निवासी 2 अरबपति भाइयों ने ऐसा खूनी खेल खेला कि देखतेदेखते 3 लाशें बिछ गईं

27 अप्रैल, 2018 को उत्तरपश्चिम दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में घटी  एक घटना ने 6 साल पहले हुए बड़े बिजनैसमैन पोंटी चड्ढा और उन के भाई हरदीप हत्याकांड की याद ताजा कर दी. मौडल टाउन वाली घटना में जिन 2 सिख भाइयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वे भी अरबों रुपए की संपत्ति वाले बिजनैसमैन थे. शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा भले ही अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक थे, लेकिन प्रौपर्टी विवाद को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश की जड़ें भी बहुत गहरी हो चली थीं. जिस के चलते सन 2012 में दिल्ली के छतरपुर इलाके में उन के ही फार्महाउस में गोली मार कर दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिस का केस अदालत में विचाराधीन है.

हरनाम सिंहतूफानमूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे, जो देश के विभाजन के बाद दिल्ली के मौडल टाउन पार्ट-2 में कर बस गए थे. उन्होंने धीरेधीरे यहीं पर अपना व्यवसाय जमाया. उन के 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. उन का खुशहाल परिवार था. हरनाम सिंहतूफानएक दबंग छवि वाले इंसान थे. वह लोगों के छोटेमोटे आपसी विवादों को निपटाते थे. जिस से उन के पास विवादों का फैसला कराने के लिए दूरदूर से लोग आते थे. अपनी मेहनत के बूते हरनाम सिंह ने अरबों रुपए की संपत्ति बनाई. अपने पीछे वह तीनों बेटों के लिए अरबों रुपए की संपत्ति छोड़ गए थे.

पिता की मौत के बाद भाइयों में प्रौपर्टी का बंटवारा हो गया था. बड़ा भाई सतनाम मौडल टाउन के एफ ब्लौक में रहते थे तो दोनों छोटे भाई जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह मौडल टाउन पार्ट-2 में ही डी-13/19 में अपने परिवारों के साथ रहते थे. जसपाल अनेजा इस कोठी के ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और छोटे भाई गुरजीत सिंह पहली मंजिल पर. गुरजीत सिंह का मौडल टाउन के केडीएफ चौक पर ग्रेट वाल रेस्ट्रोबार नाम का एक नामी रेस्तरां था और जसपाल अनेजा का फाइनैंस का कारोबार. दोनों भाइयों की आमदनी भी अच्छी थी लेकिन उन के बीच आपस में कड़वाहट भी कम नहीं थी

दोनों ही एकदूसरे को नीचा दिखाने और खुद को रसूखदार और दमदार दिखाने की होड़ में लगे रहते थे. जसपाल अनेजा के पास औडी के अलावा 2 अन्य लग्जरी कारें थीं, जबकि छोटे भाई गुरजीत सिंह के पास फोर्ड एंडेवर, फौर्च्युनर आदि कारें थीं. गुरजीत सिंह अपने साथ 2 शस्त्रधारी अंगरक्षक भी रखता था. कोठी के सामने दोनों के लिए पार्किंग की जगह निर्धारित थी. इस के बावजूद उन के बीच आए दिन कार पार्किंग को ले कर झगड़ा होता रहता था. इस के अलावा प्रौपर्टी को ले कर भी उन के बीच झगड़ा चल रहा था, जिस की वजह से आए दिन दोनों भाइयों के थाना मौडल टाउन में चक्कर लगते रहते थे.

दोनों भाई थाने में एकदूसरे के खिलाफ आधा दरजन से ज्यादा केस दर्ज करा चुके थे. इस के अलावा मारपीट, जान से मारने की कोशिश करने, छेड़छाड़ आदि के भी उन्होंने 9 केस दर्ज कराए थे. दोनों ओर की महिलाओं ने भी अपने जेठ और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ के मामले दर्ज कराए थे. मामला बड़े कारोबारियों के बीच का था, इसलिए पुलिस भी दोनों को समझाबुझा कर मामले को शांत करा देती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि दोनों ही छोटीछोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार रहते थे. हाल ही में जसपाल के बेटे कुंवर अनेजा पर गुरजीत ने कार से कुचल कर मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था.

आए दिन दोनों की शिकायत से पुलिस भी परेशान हो चुकी थी. पुलिस ने उन्हें अपनी कोठी के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवाने का सुझाव दिया था, जिस से आरोपों की सच्चाई का पता लग सके. तब दोनों भाइयों ने कोठी के हर कौर्नर को कवर करने के लिए 12 सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे. कोठी के एक गेट पर 7 कैमरे लगे थे तो दूसरे पर 5. इस के बावजूद भी उन का झगड़ा बंद नहीं हुआ. 27 अप्रैल, 2018 को आधी रात के करीब उन के बीच शुरू हुआ झगड़ा इस मुकाम पर जा कर खत्म हुआ, जब 3 लोगों की मौत हो गई

दरअसल, हुआ यूं कि 27 अप्रैल की रात करीब साढ़े 12 बजे जसपाल अनेजा (52) की औडी कार कोठी के दरवाजे पर खड़ी थी. वह अपने दोस्त राजीव को छोड़ने जा रहा था. उसी वक्त गुरजीत (45) अपनी फोर्ड एंडेवर गाड़ी ले कर गेट पर पहुंचा. गुरजीत ने सख्त लहजे में जसपाल से गाड़ी हटाने को कहा. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. उस समय गुरजीत के दोनों अंगरक्षक विक्की और पवन भी उस के साथ थे. शोर सुन कर जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर और गुरजीत का बेटा गुरनूर भी कोठी से बाहर निकल आए. दोनों के बीच मारपीट शुरू हो गई.

लाठीडंडों के अलावा दोनों ओर से बोतलें भी चलीं. इसी दौरान जसपाल ने कृपाण से गुरजीत के गले पर वार कर दिया, जिस से वह वहीं लहूलुहान हो कर गिर गया. इतना ही नहीं, उस ने गुरजीत के बेटे गुरनूर के सीने व गले के पास भी कृपाण से वार किए. उसी दौरान गुरजीत के अंगरक्षक विक्की ने पिस्टल निकाल कर जसपाल व उस की पत्नी प्रभजोत पर फायरिंग की. प्रभजोत की आंख के पास से होती हुई गोली सिर में जा घुसी, जिस से वह वहीं ढेर हो गई. गोली लगने के बाद भी जसपाल जान बचाने के लिए पड़ोसी के मकान में घुस गया और झूले पर जा कर बैठ गया. इस के बाद गुरजीत के दोनों अंगरक्षक वहां से भाग गए.

करीब 17 मिनट तक चले इस खूनी खेल का नजारा सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को अस्पताल पहुंचाया, जहां पर दोनों भाइयों जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह के अलावा जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. डीसीपी असलम खान ने भी मौके का दौरा कर थाना पुलिस को आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए. पुलिस ने गुरजीत के दोनों अंगरक्षकों विक्की और पवन को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर बुराड़ी में स्थित उन के कमरे से उन की लाइसेंसी पिस्टल भी बरामद कर ली है. उन से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें भी जेल भेज दिया.

मुंबई के सुपरकौप ने रिवॉल्वर मुंह में दाग कर की आत्महत्या

हिमांशु राय को मुंबई पुलिस का सुपरकौप कहा जाता था. उन्होंने अंडरवर्ल्ड के तमाम लोगों को नाकों चने चबवा दिए थे. वह कभी दाऊद इब्राहीम तक से नहीं डरे और उस की संपत्ति सील करवा दीं. लेकिन यह सुपरकौप अपनी बीमारी से हार गया…   मुंबई के सुपरकौप ने रिवॉल्वर मुंह में दाग कर की आत्महत्या

56 इंच चौड़ा सीना, कसरती बदन, मजबूत फौलादी भुजाएं, रौबीले चेहरे पर लंबी घनी मूंछें और शेरों जैसी दहाड़. बिलकुल ऐसी ही पहचान थी हिमांशु राय की. तभी तो मुंबई अंडरवर्ल्ड के मोहरों और उन के आकाओं के पसीने छूटने लगते थे, हिमांशु राय के नाम से. क्रोध की मुद्रा में उन की आंखों से बरसते अंगारे अपराधियों के इरादों को झुलसाने के लिए काफी थे

मुंबई में हुए 26/11 के हमले के गुनहगार पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में उन का बहुत बड़ा योगदान था. अंतरराष्ट्रीय पहलवान दारा सिंह के बेटे बिंदु दारा सिंह को आईपीएल स्पौट फिक्सिंग में उन्होंने ही पकड़ा और फिक्सिंग का खुलासा किया था. लैला खान सामूहिक हत्याकांड में अपराधियों तक पहुंचने के पीछे उन्हीं का दिमाग था

किसी ने सपने में सोचा भी नहीं था कि मुंबई का यह सुपरकौप जिंदगी से हार मान जाएगा. हिमांशु राय ऐसे आईपीएस अफसर थे, जिन्होंने अयोध्या की बाबरी मसजिद विध्वंस से देश भर में उपजी हिंसा, जिस की चपेट में महाराष्ट्र का मालेगांव भी आ गया था, को 2 समुदायों के बीच फैले दंगों को बढ़ने से पहले ही अपनी सूझबूझ से शांत कर दिया था. तब वह नासिक के पुलिस अधीक्षक थे. हिमांशु राय की प्रैस कौन्फ्रैंस में न्यूज चैनलों और प्रिंट मीडिया के फोटोग्राफर्स और पत्रकारों को कुछ अलग ही अनुभूति होती थी

लगता था कि वह बोलते रहें और सब सुनते रहें. वह कैमरों के सामने खुलेआम कहते थे, ‘मेरे रहते कोई मुंबई को हाथ भी नहीं लगा सकता.’ ऐसे शेरदिल इंसान ने जिंदगी से अगर हार मान ली तो जाहिर है कोई बड़ी वजह ही रही होगी. जी हां, बड़ी ही वजह थी. और यह वजह थी उन का असहनीय दर्द. उस दिन तारीख थी 11 मई, 2018. मुंबई पुलिस के एडीशनल डायरेक्टर जनरल (एडीजी) हिमांशु राय नित्य कर्मों से निवृत्त हो कर रोजाना की तरह कसरत के लिए जिम गए. वे अपनी सेहत को ले कर हमेशा सजग रहते थे. बीमारी के बावजूद भी वह एक्सरसाइज करते थे, यह उन की जिंदादिली थी. वह जिंदादिली से ही जीना चाहते थे. शरीर में परेशानी थी, लेकिन वह उस परेशानी को अपने ऊपर हावी होने देना नहीं चाहते थे.

बहरहाल, हिमांशु जब जिम से घर लौट कर आए तो काफी थकान महसूस कर रहे थे. वह सोफे पर बैठ कर आराम करने लगे. सुबह का वक्त था. पत्नी भावना घर पर ही थीं और अपनी ड्यूटी पर जाने की तैयारी कर रही थीं. हिमांशु ने पत्नी को आवाज दे कर नाश्ता मंगवाया

भावना डायनिंग टेबल पर नाश्ता लगा कर औफिस चली गईं. जातेजाते उन्होंने हिमांशु से कह दिया था कि वह समय से नाश्ता कर लें, क्योंकि नाश्ते के बाद दवाइयां भी लेनी हैं. उन्होंने पत्नी को भरोसा दिलाया कि वह नाश्ता भी कर लेंगे और दवाएं भी ले लेंगे. उन की ओर से निश्चिंत हो कर भावना औफिस चली गईं. जाते वक्त हिमांशु ने उन्हें विश भी किया.

दरअसल, हिमांशु राय पिछले 2 सालों से बोनमैरो कैंसर से पीडि़त थे. बीमारी की वजह से वह खुद को कुछ ज्यादा ही अस्वस्थ महसूस कर रहे थे. 28 अप्रैल, 2016 से वह छुट्टी पर चल रहे थेइस बीच वह इलाज कराने के लिए कई बार विदेश भी गए थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बीमारी के चलते सुपरकौप बुरी तरह टूट गया था. उन में जीने की लालसा खत्म हो गई थी, जिस की वजह से वह अवसाद में चले गए थे.

दर्द को भी अलविदा और जिंदगी को भी बहरहाल, नाश्ता वगैरह करने के बाद हिमांशु राय अपने कमरे में चले गए. परिवार के साथ वह मुंबई के मरीन ड्राइव स्थित यशोधन बिल्डिंग में चौथे फ्लोर पर सरकारी आवास में रहते थे. उस समय बूढ़े मांबाप अपने कमरे में विश्राम कर रहे थे. दोपहर बाद अचानक हिमांशु राय को बेचैनी होने लगी. दर्द के मारे उन का बदन टूटने लगा. बिस्तर पर पड़ेपड़े वह बुरी तरह तड़पने लगे और दर्द को बरदाश्त के लिए बिस्तर पर इधरउधर करवटें बदलने लगे. लेकिन दर्द था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. पीड़ा असहनीय होती जा रही थी.

अचानक वह बिस्तर से नीचे उतरे. कुछ देर बेचैनी से कमरे में इधरउधर टहले और फिर कुरसी पर जा बैठे. कमरे के एक ओर कुरसी और मेज रखी हुई थी. मेज के ऊपर कुछ जरूरी सरकारी कागजात रखे हुए थे. उन में से उन्होंने एक कोरा कागज निकाला और कलम उठा कर उस पर कुछ लिखा. लिखने के बाद उन्होंने कागज को फोल्ड कर के मेज के ऊपर रख दिया

फिर उन्होंने मेज की दराज को दाहिने हाथ से खींचा. दराज में उन की सर्विस रिवौल्वर थी. उन्होंने दराज से रिवौल्वर बाहर निकाला और कुछ क्षण उसे देखते रहे, फिर दोनों हाथों से रिवौल्वर थामा और उस की नाल अपने मुंह के अंदर ले जा कर ट्रिगर दबा दिया. कमरे में धांय की आवाज हुई. आवाज सुन कर मांबाप डर कर दौड़ेदौड़े ऊपर वाले कमरे में पहुंचे तो देखा हिमांशु खून में डूबे फर्श पर पडे़ तड़प रहे थे.

बेटे को खून में लिपटा देख बुजुर्ग मांबाप दहाड़ मार कर रोने लगे. उन के रोने की आवाज सुन कर पड़ोस के लोग फ्लैटों से निकल कर बाहर आए. जब उन्हें पता चला कि एडीजी हिमांशु राय ने गोली मार कर आत्महत्या कर ली है तो सब सन्न रह गए. उस समय दोपहर के 1 बज कर 40 मिनट हो रहे थे. थोड़ी ही देर में यह खबर मुंबई क्या पूरे महाराष्ट्र में फैल गई.

हिमांशु राय की खुदकुशी की सूचना मिलते ही मुंबई पुलिस कमिश्ननर दत्ता पड़सलगीकर, एडीजी (रेलवे) संजय बर्वे, एडीजी (प्लानिंग ऐंड कोऔर्डिनेशन) हेमंत नागराले और क्राइम ब्रांच सहित दर्जनों पुलिस अधिकारी हिमांशु राय के घर पहुंच गए. हिमांशु को बौंबे हौस्पिटल ले जाया गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया. गोली मुंह के रास्ते गरदन को चीरती हुई आरपार हो गई थी, इसलिए उन्हें बचाया जाना वैसे भी आसान नहीं था.

पुलिस एडीजी हिमांशु राय जैसे साहसी अफसर के उठाए गए आत्मघाती कदम से सभी स्तब्ध थे. पुलिस टीम ने उन के कमरे की तलाशी ली तो उन की मेज पर फोल्ड किया हुआ एक सफेद कागज मिला, उस में उन्होंने कैंसर से हार कर आत्महत्या करने की बात लिखी थी. मुंबई पुलिस चिट्ठी के आधार पर मामले की जांच में जुटी है कि हिमांशु राय ने बीमारी की वजह से आत्महत्या की थी या उस के पीछे कोई दूसरी बड़ी वजह थी. हिमांशु जैसे जांबाज अफसर के मौत को गले लगा लेने से पूरा पुलिस महकमा शोक संतप्त है.

हिमांशु राय की जीवनयात्रा हिमांशु राय का जन्म 23 जून, 1963 को मुंबई के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन के पिता एक मशहूर डाक्टर थे और उन की मां एक कुशल गृहिणी थीं. हिमांशु उन की एकलौती संतान थे. उन के बुढ़ापे के एकमात्र जमापूंजी और आंखों के नूर. जिन उम्मीदों और हसरतों से मांबाप ने उन्हें पालपोस कर बड़ा किया था. उन्होंने भी मांबाप को हताश नहीं किया. उन की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए हिमांशु ने दिनरात कड़ी मेहनत की. मुंबई के मशहूर सेंट जेवियर्स कालेज से ग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने सीए किया. सन 1985 में उन की नौकरी इनकम टैक्स विभाग में लग गई.

हिमांशु राय अपनी नौकरी से खुश तो थे, लेकिन संतुष्ट नहीं. वे इस से भी बड़ा अधिकारी बनना चाहते थे. बड़ा अधिकारी बन कर समाज और देश की सेवा करना चाहते थे. नौकरी में रहते हुए वह यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन की मेहनत रंग लाई, वह एग्जाम क्वालीफाई कर गए और 1988 बैच के महाराष्ट्र कैडर से आईपीएस बन गए.

इस बीच उन के जीवन में एक अनोखी कड़ी जुड़ गई थी. दरअसल, जिस समय हिमांशु राय सिविल सर्विस की परीक्षा दे रहे थे, उसी समय मुंबई में जन्मी भावना भी सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी में थीं. उसी दौरान दोनों की आंखें चार हुईं. हिमांशु राय और भावना में प्यार हो गयाहिमांशु राय ने वफा निभाते हुए भावना को अपना जीवनसाथी बना लिया. वह भावना से भावना राय बन गईं. भावना मशहूर लेखक अमीश त्रिपाठी की बहन हैं. शादी के बाद भावना सिविल सर्विस का प्रयास छोड़ कर एचआईवी रोगियों के कल्याण सहित समाजसेवा के अन्य कामों में जुट गईं. हिमांशु राय ने पुलिस की नौकरी जौइन कर ली थी. बाद में दोनों एक बेटे और एक बेटी के मातापिता बने.

खैर, हिमांशु राय की पहली पोस्टिंग मुंबई के मालेगांव में हुई थी. वह 1991 से 1995 तक मालेगांव में पदस्थ रहे. यह वह समय था जब देश बाबरी मसजिद विध्वंस की आग में जल रहा था ओर हिंदूमुसलिम आपस में लड़ रहे थेमालेगांव की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी. बड़ी सूझबूझ से हिमांशु राय ने वहां की स्थितियों को संभाला और एक बड़ा सांप्रदायिक दंगा होने से बचाया. इस काम के लिए अधिकारियों ने उन्हें और उन की सूझबूझ को सराहा.

सन 1995 में हिमांशु नासिक के एसपी (ग्रामीण) बने. वे इस कुरसी पर बैठने वाले सब से युवा अफसर थे. सफर आगे बढ़ा तो वह अहमदनगर तक पहुंच गए, जहां उन्हें एसपी नियुक्त किया गया. बाद में उन की नियुक्ति मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा में बतौर डीसीपी हुई. कुछ दिन वह डीसीपी ट्रैफिक भी रहे. साल 2004 से 2007 तक हिमांशु नासिक के पुलिस कमिश्नर रहे, जहां उन्होंने खैरलांजी दोहरे हत्याकांड केस को सुलझाया

यह कांड साल 2006 में हुआ था, जिस में 2 मर्डर हुए थे. इस केस में 2 महिलाओं को गांव में नंगा घुमाया गया था और उन की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी. इस जघन्य हत्याकांड में कुल 11 आरोपी बनाए गए थे. उन्हें सजा दिलाने के लिए हिमांशु राय ने कड़ी मेहनत की थी. यह उन की मेहनत का ही फल था कि इस मामले के सभी 11 आरोपियों को सजा हुई थी.

इस के बाद भी उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से दर्जनों चर्चित और संगीन अपराधों की गुत्थियों को सुलझाया था. जब मुंबई में आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) का गठन हुआ तो उस का मुखिया हिमांशु राय को बनाया गया. चर्चित ही नहीं मशहूर भी हुए हिमांशु राय एटीएस प्रमुख हिमांशु राय ने आईपीएल स्पौट फिक्सिंग केस में अभिनेता बिंदु दारा सिंह को बुकीज से कथित संबंध रखने के चलते गिरफ्तार किया था. इस गिरोह के लोग मैच फिक्स कर के बड़े पैमाने पर जुआ खेलते थे.

इस का खुलासा उन्होंने अपने खुफिया तंत्र के सहयोग से किया था. इस के अलावा उन्होंने अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहीम के भाई इकबाल कासकर के ड्राइवर आरिफ, पत्रकार ज्योतिर्मय डे मर्डर केस, विजय पालंद, लैला खान सामूहिक नरसंहार और कानून स्नातक पल्लवी पुरकायस्थ हत्याकांड की भी जांच की थी. ये सभी बड़े मामले थे, जो अपने समय में देश भर में चर्चित रहे.

पत्रकार जे. डे मर्डर केस काफी चुनौती भरा केस था, जिस की गुत्थियां काफी उलझी और बिखरी हुई थीं. जिस के तो तने का पता था और ही जड़ का. जे. डे की हत्या किस ने की थी और क्यों की थी, यह यक्षप्रश्न पुलिस के सामने मुंह बाए खड़ा था. पत्रकार जे. डे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने की जिम्मेदारी हिमांशु राय को सौंपी गईउन्होंने इस केस को चुनौती के रूप में स्वीकार कर के जांच शुरू की. इस मामले को सुलझाने के लिए उन्होंने अपने खुफिया तंत्र का जाल जे. डे के करीबियों के इर्दगिर्द बिछाया. करीब 3 महीने की कड़ी मेहनत के बाद उन की मेहनत रंग लाई और उन के बिछाए जाल में उन की सब से करीबी महिला दोस्त फंसी

हिमांशु ने जब उस की दुखती रग पर हाथ रखा तो वह बिलबिला उठी. उस ने पुलिस के सामने कबूल किया कि जे. डे की हत्या माफिया डौन छोटा राजन ने अपने गुर्गों से कराई थी. उस वक्त छोटा राजन इंडोनेशिया में रह रहा था. इस केस में हाल ही में 9 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. यह हिमांशु राय की ही मेहनत का नतीजा था. हिमांशु राय के अदम्य साहस की कहानियों की लड़ी यहीं खत्म नहीं होती. इस कड़ी में भारत के नंबर वन दुश्मन माफिया डौन दाऊद इब्राहीम की कहानी भी कर जुड़ जाती है. दाऊद इब्राहीम ने अपने खौफ भरे कारनामों और गुर्गों की बदौलत मुंबई में अकूत संपत्ति बनाई है.

दाऊद इब्राहीम की संपत्ति जब्त करने के अभियान में हिमांशु राय ने प्रमुख भूमिका निभाई. मुंबई सीरियल धमाकों की जांच करने के कारण एडीजी हिमांशु राय की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी थी. उन्होंने इंडियन मुजाहिदीन के चीफ यासीन भटकल से गहन पूछताछ की थी. आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करने के कारण ही उन की जान को खतरा माना गया था. इसीलिए मई 2014 में उन्हें जेड प्लस सुरक्षा दी गई थी. इस तरह की कड़ी सुरक्षा पाने वाले वह कुछ चुनिंदा पुलिस अफसरों में से एक थे.

क्राइम ब्रांच में चीफ के तौर पर उन के कार्यकाल को बहुत सफल माना जाता था. उन्होंने अपनी निगरानी में कई संवेदनशील मामलों की जांच की थी. एटीएस प्रमुख रहते हुए हिमांशु राय ने पहली बार साइबर क्राइम सेल स्थापित किया था. इसी दौरान उन्होंने बांद्रा, कुर्ला इलाके में एक अमेरिकी स्कूल को विस्फोट कर उड़ाने की कथित साजिश रचने के लिए सौफ्टवेयर इंजीनियर अनीस अंसारी को गिरफ्तार किया था. इस के बाद उन्हें प्रोन्नति दे कर एडीजी बना दिया गया था.

हिमांशु राय बोनमैरो कैंसर से पीडि़त थे और उन की कीमियोथेरैपी चल रही थी. लंबी बीमारी के चलते वह इन दिनों काफी डिप्रेशन में थे. जिस के बाद संभावना जताई जा रही थी कि हिमांशु ने इसी के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठाया. 28 अप्रैल, 2016 के बाद से वह औफिस नहीं जा रहे थे. इस दौरान वह अपनी बीमारी के चलते कई बार विदेश भी जा चुके थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

फलस्वरूप हिमांशु अवसाद में रहने लगे थे. अवसाद के चलते उन्होंने 11 मई, 2018 को अपने आवास मरीन ड्राइव स्थित यशोधन बिल्डिंग में मुंह में रिवौल्वर डाल कर आत्महत्या कर ली. सुपरकौप कहे जाने वाले रीयल हीरो हिमांशु राय की असमय मौत ने सभी को चौंकाया है. उन की मौत ने मुंबई पुलिस से एक जांबाज अधिकारी छीन लिया है, जिस की क्षतिपूर्ति किसी भी तरह नहीं हो सकती.

  

दो के साथ चल रहे अवैध संबंध में विधवा ने किया एक का पत्ता साफ

एक बच्चे की मां अंजलि ने विधवा होने के बाद मौसी के पति साजिद और स्कूल के गार्ड देवीलाल से अवैध संबंध बना लिए थे. आखिर ऐसी क्या वजह रही जो अंजलि को साजिद के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा…    

सुबह का वक्त था. उत्तरपूर्वी दिल्ली की दिलशाद कालोनी में रहने वाले संजीव शर्मा चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़  रहे थे, तभी उन के पड़ोसी नदीम ने उन्हें खबर दी कि उन के स्कूल का गेट खुला हुआ है और अंदर पुकारने पर गार्ड देवीलाल भी जवाब नहीं दे रहा है. संजीव शर्मा का एच-432, ओल्ड सीमापुरी में बाल कौन्वेंट स्कूल था. देवीलाल उन के स्कूल में रात का सुरक्षागार्ड था. शर्माजी ने रहने के लिए उसे स्कूल में ही एक कमरा दे दिया था

नदीम की बात सुन कर संजीव कुमार शर्मा उस के साथ अपने स्कूल की तरफ निकल गए. संजीव शर्मा जब अपने स्कूल में देवीलाल के कमरे में गए तो वहां लहूलुहान हालत में देवीलाल की लाश पड़ी थी. उस के सिर तथा दोनों हाथों से खून निकल रहा था. यह खौफनाक मंजर देख कर संजीव कुमार शर्मा और नदीम के होश फाख्ता हो गए. संजीव शर्मा ने उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के वारदात की सूचना पुलिस को दे दी. यह इलाका चूंकि सीमापुरी थानाक्षेत्र में आता है, इसलिए थाना सीमापुरी के एसआई आनंद कुमार और एसआई सौरभ घटनास्थल एच-432, ओल्ड सीमापुरी पहुंच गए. तब तक वहां आसपास रहने वाले कई लोग पहुंच चुके थे

पुलिस ने एक फोल्डिंग पलंग पर पड़ी सिक्योरिटी गार्ड देवीलाल की लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर पर चोट थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस के सिर पर कोई भारी चीज मारी गई हो. इस के अलावा उस की दोनों कलाइयां कटी मिलीं. बिस्तर के अलावा फर्श पर भी खून ही खून फैला हुआ था. कमरे में रखी दोनों अलमारियां खुली हुई थीं. काफी सामान फर्श पर बिखरा हुआ था. हालात देख कर लूट की संभावना भी नजर आ रही थी.

इसी कमरे की मेज पर शराब की एक बोतल 2 गिलास तथा बचा हुआ खाना भी मौजूद था. एसआई सौरभ ने यह सूचना थानाप्रभारी संजीव गौतम को दे दी. हत्याकांड की सूचना पा कर थानाप्रभारी संजीव गौतम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचेघटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद थानाप्रभारी इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारा स्कूल में मित्रवत दाखिल हुआ था और उस ने मृतक के साथ शराब भी पी थी. इसलिए उस की हत्या में उस का कोई नजदीकी ही शामिल हो सकता है. खुली अलमारी और बिखरा सामान लूट की तरफ इशारा कर रहा था.

स्कूल मालिक संजीव शर्मा ने बताया कि देवीलाल जम्मू का रहने वाला था. पिछले 2 साल से वह उन के स्कूल में रात को सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था. थानाप्रभारी ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुला कर गिलास तथा शराब की खाली बोतल से फिंगरप्रिंट्स उठवा लिए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया. फिर स्कूल मालिक संजीव शर्मा की तहरीर पर गार्ड देवीलाल उर्फ दीनदयाल की हत्या का मामला दर्ज करवा दिया.

थानाप्रभारी संजीव गौतम ने इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह को सौंप दी. उन्होंने डीसीपी नूपुर प्रसाद, एसीपी रामसिंह को भी घटना के बारे में अवगत करा दिया.डीसीपी नूपुर प्रसाद ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसीपी रामसिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में आईपीएस हर्ष इंदोरा, थानाप्रभारी संजीव गौतम, अतिरिक्त थानाप्रभारी अरुण कुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर हीरालाल, एसआई मीना चौहान, एएसआई आनंद, कांस्टेबल प्रियंका, वीरेंद्र, संजीव आदि शामिल थे.

टीम ने जांच शुरू की और स्कूल के प्रिंसिपल तथा मालिक संजीव कुमार शर्मा से मृतक गार्ड देवीलाल की गतिविधियों के बारे में विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने बता दिया कि गार्ड देवीलाल सीमापुरी की ही एक ट्रैवल एजेंसी में पिछले 20 सालों से गार्ड की नौकरी कर रहा था. इस के बीवीबच्चे जम्मू के गांव गुडि़याल में रहते हैं. पिछले 2 सालों से वह उन के स्कूल में नौकरी कर रहा था. चूंकि उस की ड्यूटी रात की थी, इसलिए उन्होंने रहने के लिए स्कूल में ही उसे एक कमरा दे दिया था.

संजीव शर्मा से बात करने के बाद पुलिस ने स्कूल के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी खंगाला. मगर उस से पुलिस को कोई भी सुराग नहीं मिला. क्योंकि स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरे केवल दिन के वक्त चालू रहते थे. शाम होने पर उन्हें बंद कर दिया जाता था. कहीं से कोई सुराग मिलने पर पुलिस ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया गया तो पुलिस की निगाहें मृतक के फोन पर आई अंतिम काल पर अटक गईं. उस नंबर पर गार्ड की पहले भी बातें हुई थीं और 3 मार्च, 2018 की रात साढ़े 10 बजे लोकेशन उस फोन नंबर की घटनास्थल पर ही थी

जांच में वह फोन नंबर सीमापुरी की ही रहने वाली महिला अंजलि का निकला. पुलिस ने अंजलि के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में भी एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस की लोकेशन घटना वाली रात को अंजलि के साथ घटनास्थल की थी. इतनी जांच के बाद पुलिस टीम को केस के खुलासे के आसार नजर आने लगे.

पुलिस टीम सीमापुरी में स्थित अंजलि के घर पहुंच गई. पुलिस को देख कर अंजलि एकदम से घबरा गई. इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम गार्ड देवीलाल को कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरा बेटा उसी स्कूल में पढ़ता है, जहां देवीलाल गार्ड था, इसलिए कभीकभी उस से मुलाकात होती रहती थी. इस से ज्यादा मैं देवीलाल के बारे में कुछ नहीं जानती.’’ अंजलि ने बताया.

इंसपेक्टर जे.के. सिंह को लगा कि अंजलि सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उन के पास अंजलि और देवीलाल के बीच अकसर होने वाली बातचीत का सबूत मौजूद था. इसलिए वह पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए. थाने में उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘3 मार्च की रात साढे़ 10 बजे तुम देवीलाल के कमरे में क्या करने गई थी?’’

यह सवाल सुनते ही अंजलि की बोलती बंद हो गई. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने जो कुछ बताया, उस से देवीलाल की हत्या की गुत्थी परतदरपरत खुलती चली गई. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने दूसरे प्रेमी साजिद उर्फ शेरू के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या की थी. देवीलाल की हत्या क्यों की गई, इसे जानने के लिए 2 साल पीछे के घटनाक्रम पर नजर दौड़ानी होगी, जो इस प्रकार है

40 वर्षीय देवीलाल पिछले 20 सालों से पुरानी सीमापुरी में जयवीर ट्रैवल एजेंसी में नौकरी करता था. लेकिन वहां पगार कम होने के कारण उस के घर की आर्थिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं. चूंकि ट्रैवल एजेंसी में उस का काम दिन में होता था, इसलिए रात के समय खाली होने के कारण वह संजीव कुमार शर्मा के स्कूल में गार्ड के रूप में नौकरी करने लगा. संजीव शर्मा ने उसे रहने के लिए स्कूल में ही एक कमरा भी दे दिया था.

देवीलाल का साल में एक बार ही घर जाना होता था. बाकी समय उस का समय दिल्ली में गुजरता था. चूंकि उस की पत्नी प्रमिला जम्मू में ही रहती थी, इसलिए वह बाजारू औरतों के संपर्क में रहता था. 2 जगहों पर काम करने के कारण थोड़े ही समय में उस के पास काफी रुपए इकट्ठे हो गए थे. वह अपने सभी रुपए अपने अंडरवियर में बनी जेब में रखता था. अंजलि की शादी करीब 8 साल पहले सुरेंद्र के साथ हुई थी. शादी की शुरुआत में तो अंजलि सुरेंद्र के साथ बहुत खुश थी. बाद में वह एक बेटे की मां बनी, जिस का नाम कपिल रखा. सुरेंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उसी से वह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहा था

अंजलि की यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी. बीमारी की वजह से सुरेंद्र की नौकरी छूट गई. इस से परिवार में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई. अंजलि के पास जो थोड़ेबहुत पैसे जमा थे, वह भी सुरेंद्र की बीमारी पर खर्च हो गए थे. अंजलि ने सुरेंद्र को बचाने की जीतोड़ कोशिश की लेकिन एक दिन उस की मौत हो गई. पति की मौत से अंजलि की आंखों में अंधेरा छा गया. जैसेतैसे कर उस ने पति का दाहसंस्कार किया, फिर जीविका चलाने के लिए सीमापुरी की एक कैटरिंग शौप में नौकरी करने लगी. वहां से उसे जितनी पगार मिलती थी, उस से बड़ी मुश्किल से मांबेटे का गुजारा होता था.

2 साल पहले उस ने बेटे कपिल का एडमिशन ओल्ड सीमापुरी में स्थित बाल कौनवेंट स्कूल में नर्सरी कक्षा में करवाया. यह स्कूल ओल्ड सीमापुरी का एक नामचीन प्राइवेट स्कूल है. वह रोजाना सुबह बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी और छुट्टी के समय उसे स्कूल से लेने पहुंच जाती थी. बच्चे की छुट्टी होने तक वह अन्य मांओं की तरह गेट पर खड़ी हो कर बेटे का इंतजार करती थी.

हालांकि अंजलि एक विधवा थी, लेकिन उस के सौंदर्य में आज भी कशिश बरकरार थी. गरीबी का अभिशाप भी उस के खूबसूरत चेहरे का रंग फीका नहीं कर पाया था. उस के हुस्न का आलम यह था कि वह जिधर भी निकलती, युवकों की प्यासी निगाहें चोरीचोरी उस के रूप का रसपान करने, उस के हसीन चेहरे पर टिक जातीं. एक दिन शाम के समय जब स्कूल का गार्ड देवीलाल गेट पर ड्यूटी दे रहा था, तभी अचानक उस की निगाह अंजलि पर पड़ी. अंजलि को देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह उस पर डोरे डालने की योजनाएं बनाने लगा.

गार्ड देवीलाल उस के बेटे कपिल का विशेष ध्यान रखने लगा. वह कपिल को चौकलेट, टौफी आदि दे कर उस का करीबी बन गया. अंजलि ने देखा कि देवीलाल कपिल को खूब प्यार करता है तो वह घर से उस के लिए कुछ न कुछ खाने की चीज बना कर लाने लगी. इस तरह दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. अंजलि को जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह उस की मदद भी कर देता. गार्ड की सहानुभूति पा कर अंजलि उस की दोस्त बन गई. अपने मोबाइल नंबर तो वे पहले ही एकदूसरे को दे चुके थे, जिस से वह बातचीत करते रहते थे.

देवीलाल ने जब देखा कि खूबसूरत अंजलि पूरी तरह शीशे में उतर गई है तो वह रात के समय उसे स्कूल में बुलाने लगा. अंजलि के आने पर वह उस के साथ महंगी शराब पीता. अंजलि भी उस के साथ शराब पीती फिर दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे. अंजलि को जब भी पैसों की जरूरत होती, देवीलाल अपने अंडरवियर की जेब से निकाल कर उसे दे देता था. अंजलि उस के पास इतने सारे रुपए देख कर बेहद प्रभावित हो गई थी, इसलिए वह देवीलाल को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती थी

धीरेधीरे उस का देवीलाल के पास आनाजाना इतना बढ़ गया कि आसपड़ोस के लोगों को भी उस के अवैध संबंधों की जानकारी हो गई. लेकिन अंजलि और देवीलाल को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. देवीलाल को जब भी मौका मिलता, वह अंजलि को अपने कमरे में बुला कर अपनी हसरतें पूरी कर लेता.

अंजलि की मौसी मधु का पति साजिद उस का हालचाल पूछने उस के पास आता रहता था. दोनों सालों से एकदूसरे को जानते थे. अंजलि के पति की मौत के बाद साजिद ने ही अंजलि को सहारा दिया था. साजिद भी अंजलि के हुस्न पर लट्टू था. साजिद के साथ भी अंजलि के शारीरिक संबंध थे. वह कईकई दिन अंजलि के यहां रुक जाता था. इस कारण उस के और मधु के संबंधों में भी खटास चुकी थी. साजिद ड्राइवर था, हरियाणा से करनाल बाइपास की ओर आने वाले यात्रियों को अपनी इनोवा कार में ढोया करता था

साजिद को जब अंजलि और गार्ड देवीलाल के संबंधों की जानकारी हुई तो वह इस का विरोध करने लगा. चूंकि अंजलि पर गार्ड देवीलाल खुल कर खर्च करता था, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी. वह साजिद को किसी तरह समझा देती फिर मौका मिलते ही देवीलाल से मिलने स्कूल में बने उस के कमरे में चली जाती थी. किसी तरह साजिद को यह बात पता चल ही जाती थी, तब उस ने अंजलि पर देवीलाल से रिश्ता तोड़ देने का दबाव बनाया

अंजलि के दिमाग में एक शैतानी योजना ने जन्म ले लिया. साजिद की इनोवा कार खराब थी. कार ठीक कराने के लिए उस के पास पैसे तक नहीं थे, इसलिए वह खाली बैठा थातब अंजलि ने साजिद को बताया कि देवीलाल के पास काफी रुपए रहते हैं. अगर दोनों मिल कर उस का काम तमाम कर दें तो उस के रुपयों पर आसानी से हाथ साफ किया जा सकता है.

साजिद तो देवीलाल से पहले से ही खार खाए बैठा था. लालच में वह उस की हत्या करने के लिए राजी हो गया. अब दोनों अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए अवसर की तलाश में रहने लगे. 3 मार्च, 2018 की रात देवीलाल का मूड बना तो उस ने उसी समय अंजलि को फोन कर दियाइस से पहले उस ने व्हिस्की की बोतल और खाना पैक करवा लिया. रात के 10 बजे उस ने अपनी प्रेमिका अंजलि को फोन कर के स्कूल में पहुंचने के लिए कहा तो अंजलि और साजिद की आंखें खुशी से चमकने लगीं.

अंजलि ने पहले तो शृंगार किया. होंठों पर सुर्ख लिपस्टिक लगाई, फिर साजिद की बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठ कर कौन्वेंट स्कूल के नजदीक पहुंचा. अंजलि जिस समय स्कूल में पहुंची, रात के 10 बज रहे थे. देवीलाल की निगाहें केवल अंजलि पर पड़ीं तो वह उसे टकटकी लगाए देखता रह गया. उसे अंजलि इतनी सुंदर पहले कभी नहीं लगी थी. अंजलि के अंदर आने पर उस ने बांहों में भर कर चूमा फिर अपने कमरे पर बिछी चारपाई पर ले गया. तभी अंजलि ने उस से कोल्डड्रिंक लाने की फरमाइश की.

देवीलाल कोल्डड्रिंक लाने स्कूल से बाहर गया, तभी मौका मिलते ही अंजलि ने फोन कर के साजिद को अंदर बुलाया और छिप जाने के लिए कह दिया. देवीलाल के आने के बाद अंजलि व्हिस्की में कोल्डड्रिंक मिला कर उसे शराब पिलाने लगी. देवीलाल ने अंजलि के लिए भी पैग बना लिया. अंजलि भी शराब की शौकीन थी, लेकिन उस दिन उस ने स्वयं तो कम पी लेकिन देवीलाल को अधिक पिला कर मदहोश कर दिया. जब अंजलि ने देवीलाल को बेसुध देखा तो उस ने साजिद को इशारा कर बुला लिया

अंजलि ने उस से देवीलाल का काम तमाम करने के लिए कहा. फिर साजिद ने देवीलाल के सिर पर लोहे की रौड का भरपूर वार कर उस का काम तमाम कर दिया. इस के बाद साजिद और अंजलि ने देवीलाल के अंडरवियर में रखे लगभग 60 हजार रुपए तथा मोबाइल फोन ले लिया. जब दोनों वहां से जाने लगे तो अंजलि को शक हुआ कि कहीं देवीलाल बच जाए. अगर वह बच गया तो वह इस मामले में फंस जाएगी, इसलिए अंजलि ने साजिद को उस की कलाई की नसें काटने के लिए कहा

यह सुन कर साजिद ने अपने साथ लाए पेपर कटर से देवीलाल के दोनों हाथों की नसें काट दीं, जिस से उस का खून बह गया. देवीलाल की हत्या करने के बाद दोनों शातिर इत्मीनान से अपने घर लौट गए. अंजलि की निशानदेही पर पुलिस ने उस के पहले प्रेमी साजिद को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों की निशानदेही पर देवीलाल से लूटे गए रुपए, 3 मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त रौड, पेपर कटर बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को 7 मार्च को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

      इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है  

साजद ने हिंदू लड़की से दुबई में किया दुष्कर्म

जब पिंकी और सफदर अब्बास ने प्यार किया था, तब धर्म बीच में नहीं था. जब शादी की बात आई तो अपने प्यार के लिए पिंकी ने इसलाम भी स्वीकार कर लिया और बिना शादी किए सफदर के साथ दुबई भी चली गई, लेकिन वहां जा कर सफदर ऐसा बदला कि…   

25 वर्षीय पिंकी चंदा हैदराबाद में पुरानी सिटी के मलकजगिरी इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. वह शेखर चंदा की एकलौती संतान थी. शेखर चंदा का अपना छोटा सा घरसंसार था. वह अच्छाभला कमाते थे, इसलिए उन के पास हर तरह की भौतिक सुखसुविधा थी. इन सब से अलग उन में जो खासियत थी, वह यह थी कि वे स्वच्छंद विचारों वाले जीवंत इंसान थे. इसी परिपाटी पर उन का परिवार भी चलता था.

शेखर चंदा का सपना था कि वह अपनी एकलौती बेटी को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दें कि वह कोई बड़ी अफसर बन जाए. पिंकी का भी यही सपना था कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से मांबाप का नाम इज्जत से लिया जाए. पिंकी बातचीत करने और पढ़नेलिखने में अव्वल थी. वह मन लगा कर पढ़ती रही. ग्रैजुएशन करने के बाद पिंकी चंदा को हैदराबाद के सोमाजुगुडा क्षेत्र की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई. वह उस कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में थी. यह सन 2013-14 की बात है.

जिस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिंकी जौब करती थी, उसी कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में दारुलशफा का रहने वाला सफदर अब्बास खलीम अख्तर जैदी नाम का युवक भी नौकरी करता था. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर था. सफदर जैदी बेहद ईमानदार, मेहनती और लगनशील युवक था. वाकपटुता उस की रगरग में भरी हुई थी. अपनी कलात्मक बातों से वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर था.

पिंकी चंदा सफदर जैदी के बगल वाली सीट पर बैठती थी. उस की बातों की वह भी मुरीद थी. सफदर जब भी फुरसत में होता या उसे मौका मिलता तो वह अपनी बातों से सभी को गुदगुदाता रहता था. हंसीठिठोली के बीच पिंकी चंदा और सफदर जैदी जल्द ही आपस में घुलमिल गए और अच्छे दोस्त बन गए. खास बात यह थी कि दोनों ही खुले विचारों के थे और उन के विचार आपस में काफी मिलतेजुलते थे.

एक दिन बातोंबातों में पिंकी सफदर से पूछ बैठी, ‘‘सफदर, मैं तुम से एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानोगे?’’

‘‘नहीं, बिलकुल भी बुरा नहीं मानूंगा. पूछो.’’ सफदर ने जवाब दिया.

‘‘हर वक्त हंसीठिठोली करते तुम्हारा मुंह नहीं थकता?’’ पिंकी ने कहा.

‘‘जी नहीं मैडम, मेरा बस चले तो मैं 24 घंटे टेपरिकौर्डर बना रहूं. लेकिन कोई ऐसा होने दे तब न.’’ सफदर जैदी ने कहा, ‘‘एक बात और बताऊं मैडम, जब मैं घर पर इस तरह की बातें करता हूं तो सभी लोग एंजौय करते हैं. मेरी बातों से उन का एंटरटेनमेंट होता है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ, ये मैडममैडम क्या लगा रखा है.’’ पिंकी चंदा तुनक कर बोली, ‘‘तुम मेरा नाम ले कर नहीं बुला सकते क्या?’’

‘‘जो हुकूम मल्लिकाआला.’’

‘‘क्या? क्या कहा तुम ने?’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि आज से मैं तुम्हें पिंकी कह कर बुलाऊंगा, पिंकीपिंकीपिंकी.’’ सफदर ने अपने स्टाइल में कहा. शाम को छुट्टी के बाद औफिस से निकलते वक्त सफदर ने पिंकी को अपनी कार में बैठने का औफर दिया तो वह इनकार नहीं कर पाई. दोनों एक ही राह के मुसाफिर थे. पिंकी का घर रास्ते में पहले पड़ता था. उस दिन के बाद से सफदर औफिस से निकल कर पिंकी को उस के घर छोड़ कर जाने लगा. धीरेधीरे सफदर का पिंकी के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. अपनी वाकपटुता से उस ने पिंकी के मांबाप के दिलों में जगह बना ली. पिंकी के मांबाप सफदर के व्यवहार से काफी खुश थे.

चूंकि शेखर चंदा भी खुले विचारों के इंसान थे, इसलिए सफदर की कंपनी उन्हें अच्छी लगती थी. जब भी सफदर पिंकी को औफिस से घर छोड़ने आता, शेखर चंदा उसे घर में बुला लेते थे और चाय पिलाने के बाद ही घर से जाने देते थे. रोजमर्रा के साथ से पिंकी चंदा और सफदर जैदी की दोस्ती प्यार में बदल गई. पिंकी और सफदर दोनों बालिग थे. दोनों समाज के रीतिरिवाजों और ऊंचनीच के भेदभाव को बखूबी जानते और समझते थे. उन के बीच में सिर्फ समुदाय का फर्क था. दोनों अलगअलग समुदाय से थे. प्यार में उन के बीच यह भेद भी मिट गया था कि वे 2 भिन्नभिन्न समुदायों के हैं. धीरेधीरे पिंकी और सफदर के घर वालों को उन के प्रेमप्रसंग की बातें पता चल गई थीं.

पिंकी के पिता शेखर चंदा और मां श्रेया चंदा को बेटी के प्रेमप्रसंग की बात पता चली तो वे हैरान रह गए. वे भले ही लाख खुले विचारों के थे, भले ही सफदर को सम्मान देते थे लेकिन यह बात पसंद नहीं थी कि उन की बेटी किसी दूसरे धर्म के लड़के से प्यार करे. उन्होंने पिंकी को समझाया कि सफदर का साथ छोड़ दे. इस बात पर पिंकी मांबाप से लड़ बैठी. उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह सफदर से प्रेम करती है और उसी से शादी करेगी. यही हाल सफदर का था

उस के अब्बू खलीम अख्तर जैदी और चाचा हैदर जैदी को उस के प्रेम के बारे में पता चला तो वे आगबबूला हो गए. उन्होंने उस से कहा कि वह पिंकी से मिलना बंद कर दे. लेकिन सफदर बगावत पर उतर आया. उस ने कह दिया कि वह किसी कीमत पर पिंकी को नहीं छोड़ेगा, बल्कि निकाह भी उसी से करेगा. इस के बाद सफदर ने पिंकी के घर जाना बंद कर दिया. वह उसे घर से कुछ देर पहले ही छोड़ कर अपने घर चला जाता था. जिस दिन से मांबाप ने पिंकी को हिदायत दी थी, तब से वह अपने प्यार को ले कर परेशान रहती थी. इसी चिंता में एक दिन उस ने सफदर से पूछा, ‘‘सफदर, प्यार तो हम दोनों एकदूसरे से करते ही हैं. तुम यह बताओ कि मुझे धोखा तो नहीं दोगे?’’

 ‘‘ये कैसी बेतुकी बात कर रही हो पिंकी, मैं वादा करता हूं कि जीवन भर मैं तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’ सफदर बोला, ‘‘एक बात और है.’’

‘‘वो क्या?’’ पिंकी चौंकी.

‘‘हम दोनों के धर्म अलगअलग हैं. मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि क्या तुम्हारे घर वाले इस के लिए तैयार होंगे?’’ सफदर ने गंभीर हो कर कहा.

 ‘‘देखो सफदर, मेरे घर वाले राजी हों हों, मैं ने जो फैसला ले लिया उस से मैं हरगिज पीछे नहीं हटूंगी.’’ पिंकी दृढ़ता से बोली.

 ‘‘पिंकी, जब तुम मेरे लिए अपने घर वालों से बगावत करने को तैयार हो तो मैं भी तुम्हारी खातिर कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ प्रेमी के ये शब्द सुनते ही पिंकी उस के सीने से लग गई. उस का स्पर्श पाते ही सफदर के तनबदन में आग लग गई. कुछ ही देर में दोनों एकदूसरे में खो गए. उन के बीच एक तूफान आ कर गुजर गया. 

उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच जो भी दूरियां रहीं, वो सब मिट गईं. अब तो जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों दो जिस्म एक जान हो जाते. धीरेधीरे पिंकी और सफदर के मांबाप जान चुके थे कि दोनों एक दूसरे को बहुत मोहब्बत करते हैं. फिर एक दिन पिंकी ने अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में बता दिया. पिंकी के मांबाप नहीं चाहते थे कि वह उस की शादी दूसरे धर्म के लड़के के साथ करें. लेकिन पिंकी उन की बहुत लाडली थी, इसलिए बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा

यही हाल सफदर के घर वालों का भी था. सफदर के अब्बू खलीम जैदी और चाचा हैदर जैदी इस शादी के खिलाफ थे लेकिन बेटे के फैसले के आगे आखिर उन्हें भी विवश होना पड़ा. बच्चों की खुशी की खातिर दोनों परिवारों के सदस्यों ने सोच कर अपने खयालातों से समझौता कर लिया. उन की खुशी में ही उन्होंने अपनी खुशी समझी. मांबाप की तरफ से हरी झंडी मिलते ही उन की मुराद पूरी हो गई. इसी बीच सफदर की जिंदगी से एक और खुशी कर जुड़ गई.

सफदर को दुबई की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने के बाद वह दुबई जाने की तैयारी करने लगा तो पिंकी उस के साथ जाने की जिद पर अड़ गई. इस पर न तो पिंकी के मांबाप ने ऐतराज किया और न ही सफदर के मांबाप ने. पिंकी की जिद पर सफदर उसे दुबई ले जाने के लिए तैयार हो गया. उस का पासपोर्ट भी बनवा दिया. सब कुछ होने के बाद सफदर और उस के परिवार वालों ने पिंकी के सामने एक शर्त रख दी कि वह दुबई तभी जा सकती है, जब वह इसलाम कबूल करेगी. यह सुन कर पिंकी और उस के मांबाप अवाक रह गए. उन के लिए यह अप्रत्याशित शर्त रख दी.

लेकिन सफदर के प्यार में पागल पिंकी धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो गई. पिंकी के इस फैसले से उस के मांबाप को काफी दुख हुआ, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे. औलाद के सामने वे हारे हुए थे, इसलिए उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दियाहैदराबाद हज हाउस में पिंकी का धर्म परिवर्तन करा दिया गया. हिंदू धर्म छोड़ कर पिंकी ने इसलाम कबूल कर लिया. उस का नाम पिंकी चंदा से फातिमा जेहरा रखा गया. उस ने मुसलिम रवायतों को अपनाया, इबादत की. सफदर के कहे मुतातिब हिजाब पहनना भी शुरू कर दिया. यह सन 2013-14 की बात है.

सफदर पिंकी को ले कर दुबई चला गया. जिस कंपनी में सफदर की नौकरी लगी थी, उस ने वहीं पर फातिमा जेहरा उर्फ पिंकी की नौकरी भी लगवा दी. कंपनी की ओर से दोनों के रहने का इंतजाम अलगअलग हौस्टलों में किया गया था. वे एकदूसरे से मिलते रहे. धीरेधीरे पिंकी और सफदर को दुबई में रहते 4 साल बीत गएइस बीच पिंकी सफदर से पूछती रही कि वह निकाह कब करेगा, इस पर सफदर कोई तवज्जो नहीं देता था, बल्कि यह कह कर बात टालने की कोशिश करता था कि अभी जल्दी क्या है, शादी भी कर लेंगे, थोड़ा और सब्र करो.

एक ही जवाब सुनतेसुनते पिंकी के कान पक गए थे. पिंकी जो पहले सफदर पर पागलों की तरह मरती थी, अब वह अपने लिए गए फैसले पर सोच कर तनाव में रहने लगीसफदर के हावभाव में भी काफी बदलाव गया था. तो वह पहले की तरह पिंकी से बात करता था और ही उसे लिफ्ट देता था. सफदर के ये हावभाव पिंकी को अच्छे नहीं लग रहे थे. पता नहीं क्यों सफदर को ले कर उस के मन में नकारात्मक भावनाएं हावी होती जा रही थीं

अब पिंकी को महसूस होने लगा था कि उस ने मांबाप से बगावत कर के अच्छा नहीं किया. उस ने सोचा कि यदि सफदर ने उसे सचमुच में धोखा दे दिया तो उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी. कहीं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी. इसी तरह की चिंता में उस का बुरा हाल हो रहा था. जिस बात का पिंकी को डर था, वह बात उसे सच होती दिख रही थी. प्यार के चक्कर में उस ने अपना सब कुछ गंवा दिया था. जब वह शादी के लिए सफदर पर दबाव डालती तो वह परेशान हो जाता था

सफदर की सोच सचमुच बदल चुकी थी, उस का मुख्य उद्देश्य उस के जिस्म से खेलना था. अब वह यह सोच रहा था कि उस से किस तरह पीछा छुड़ाए. वह उस से पीछा छुड़ाने के उपाय खोजने लगा. इस के बाद तो वह छोटीछोटी बातों पर पिंकी से कलह करने लगा. पिंकी की छोटी सी बात भी उसे कांटे की तरह चुभने लगी थी. रोजरोज की कलह से तंग आ कर एक दिन पिंकी उस से पूछ बैठी, ‘‘पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं कि तुम बदलेबदले से नजर आ रहे हो. बात क्या है सफदर?’’

‘‘मैं नहीं बदल रहा बल्कि तुम्हारे तेवर ही बदल गए हैं.’’ सफदर ने झल्ला कर जवाब दिया.

‘‘तुम ने मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि तुम्हें मेरे तेवर बदले नजर आने लगे?’’ वह बोली.

‘‘छोड़ो यार, क्या बताऊं?’’ सफदर ने कहा.

‘‘नहीं, तुम बता दो कि मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि तुम्हें मेरे तेवर बदले नजर रहे हैं?’’

  ‘‘सच बताऊं, तुम्हारा यही एटीट्यूड मुझे अच्छा नहीं लगता. तुम किसी भी बात को पकड़ कर जिद पर अड़ जाती हो.’’ सफदर ने बताया.

‘‘अब तो तुम्हें मेरी बात बुरी लगेगी ही. सच्ची बात जो कह दी मैं ने. शादी के लिए 4 सालों से आजकलआजकल कर के टरका रहे हो. इसी से तुम्हारी नीयत का पता चलता है.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘हां, टरका रहा था मैं.’’ सफदर ने भी गुस्से में जवाब दिया, ‘‘जाओ, जो करना है, कर लो. अब मैं तुम से निकाह नहीं करूंगा.’’

‘‘क्यों? जरा मैं भी तो जानूं कि तुम मुझ से निकाह क्यों नहीं करोगे?’’

 ‘‘इसलिए कि तुम ने इसलाम धर्म का ईमानदारी से पालन नहीं किया है. न तो तुम 5 वक्त की नमाजी बन पाई और न हिजरा का पालन किया, इसलिए मैं तुम से निकाह नहीं कर सकता, समझी.’’ सफदर ने बताया.

 ‘‘धोखेबाज, मक्कार.’’ पिंकी सफदर पर फट पड़ी, ‘‘मेरी जिंदगी तो खराब हो ही गई, पर मैं तुम्हें भी चैन से नहीं जीने दूंगी. मैं इतनी आसानी से तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम पर यकीन कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की. तुम्हारे ही कारण मैं अपने मांबाप से बगावत कर बैठी और तुम कहते हो कि मैं ने तुम्हारे धर्म का पालन नहीं किया. अरे 5 वक्त नमाज पढ़ती थी मैं. बुरका पहन कर बाहर निकलती थी मैं. तुम्हारे लिए मैं वह सब करती थी जो तुम ने कहा. इतने पर भी तुम कहते हो कि शादी नहीं करूंगा. तुम्हें मैं तुम्हारी औकात बता कर रहूंगी. इस की सजा जरूर दिलाऊंगी, तभी मुझे सुकून मिलेगा.’’

पिंकी को कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने अपने वतन लौट जाने का फैसला कर लिया. वह जान चुकी थी कि दुबई में रही तो उस की जान को खतरा हो सकता है. सफदर राज छिपाने के लिए उसे जान से भी मार सकता है. यह सोचते ही पिंकी चुपके से जनवरी, 2018 के दूसरे सप्ताह में अपने घर हैदराबाद लौट आई और मांबाप से अपनी आपबीती कह डाली.

रोती हुई पिंकी मां से बोली, ‘‘मां, मुझ से बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैं ने आप सब की बातें नहीं मानीं. सफदर ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. शादी के नाम पर उस ने मेरा धर्म परिवर्तन कराया और मेरे जिस्म से खेलता रहा. अब कहता है कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगा, क्योंकि तुम ने मेरे हिसाब से मेरा धर्म कबूल नहीं किया. मां, मुझे माफ कर दो. काश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली होती तो आज ये दिन देखने को नहीं मिलते.’’ कह कर पिंकी मां के सीने से लिपट कर रोने लगी तो श्रेया चंदा का मन पिघल गया.

बेटी की यह पहली गलती थी, सो मां ने एक ही झटके में उस की गलती माफ कर दी. अब सवाल यह था जिस ने बेटी की जिंदगी बरबाद की है, उसे सजा कैसे दिलाई जाए. 31 जनवरी, 2018 को श्रेया चंदा पिंकी को ले कर मलकजगिरी थाना पहुंची. थाने के इंसपेक्टर जानकी रेड्डी से मिल कर उन्होंने सारी बात बताई. साथ ही बेटी के साथ हुए धोखे के संबंध में एनआरआई सफदर अब्बास जैदी के खिलाफ लिखित तहरीर भी दी. तहरीर के साथ वे सभी दस्तावेज भी संलग्न किए जो पिंकी के पास मौजूद थे.

मामला हाईप्रोफाइल और एनआरआई से जुड़ा देख कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन्होंने तत्कालीन एसीपी जी. संदीप को फोन कर के इस बारे में अवगत कराया. मामला लव जिहाद से जुड़ा हुआ था. प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एसीपी जी. संदीप ने जांचपड़ताल कर के एनआरआई सफदर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. जांचपड़ताल में मामला सही पाया गया. इंसपेक्टर जानकी रेड्डी ने आरोपी एनआरआई सफदर अब्बास जैदी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 376, 417 और 420 के तहत केस दर्ज कर लिया है

कथा लिखे जाने तक आरोपी सफदर अब्बास जैदी गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. उसे गिरफ्तार करने के लिए भारत सरकार की ओर से दुबई सरकार को पत्र भेजे जाने की तैयारी हो रही थी.                             

कथा में पीडि़ता का नाम परिवर्तित है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कश्मीरी युवक को पाने के लिए हिन्दू लड़की ने क्या किया

रितु कश्मीरी युवक गुलजार से इतनी मोहब्बत करती थी कि उस की खातिर वह अपने घर वालों को छोड़ कर बाड़मेर से कुपवाड़ा चली गई. वहां धर्म बदल कर उस ने अपना नाम जैनब रख कर गुलजार से निकाह कर लिया. इस के बाद जो हुआ वह… 

राजस्थान के बाड़मेर शहर के महावीर चौक में एक खंडेलवाल परिवार रहता है. इस परिवार की एक लाडली बेटी थी रितु खंडेलवाल. वह खूबसूरत थी. पढ़ाईलिखाई में वह कोई ज्यादा होशियार तो नहीं थी, पर ठीकठाक थी. मांबाप उसे जमाने के हिसाब से रहने की सीख दिया करते थे. रितु के मांबाप मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे. घर से विद्यालय आतेजाते वह किसी से भी बेवजह बोलती तक नहीं थी. ऐसी शरमीली और संकोची स्वभाव की रितु न जाने कब एक कश्मीरी युवक गुलजार से प्यार कर बैठी. 

गुलजार करीब 2 साल पहले कुपवाड़ा (कश्मीर) से बाड़मेर में कामधंधे की तलाश में आया था. गुलजार को बाड़मेर के एक कैफे में वेटर की नौकरी मिल गई थी. वह पढ़ालिखा, अच्छी कदकाठी का नौजवान था. उस की बोलचाल से सभी प्रभावित हो जाते थे. गुलजार को महंगे मोबाइल रखने का शौक था. जैसे ही कोई नया अच्छा मोबाइल बाजार में आता और वह उस के खरीदने की क्षमता की रेंज में होता तो वह खरीद लेता था. वह फेसबुक एवं वाट्सऐप पर ज्यादा ऐक्टिव रहता था. वह अपने इलाके के 3-4 लड़कों को भी बाड़मेर लाया था, जो उसी कौफी कैफे में नौकरी करते थे.

गुलजार घर से साधनसंपन्न था. तभी वह महंगे मोबाइल खरीदता था वरना कैफे की 7-8 हजार रुपए महीने की तनख्वाह से महंगे मोबाइल खरीदना संभव नहीं था. अब बात यह आती है कि अगर गुलजार घर से साधनसंपन्न था तो वह कुपवाड़ा से इतनी दूर वह भी वेटर की नौकरी करने क्यों आया? क्या इस का राज कुछ और था? बाड़मेर के जिस कैफे में गुलजार नौकरी करता था, वह कैफे एक स्थानीय भाजपा नेता का है. पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती जिले बाड़मेर में जाने कितने गुलजार अपना गुल खिलाने में लगे हैं

कहते हैं प्यार मजहब और अमीरीगरीबी नहीं देखता. मगर यह कटु सत्य है कि जब भी 2 धर्मों के युवकयुवती ने प्यार या शादी की, बवाल जरूर हुआ है और आगे भी होता रहेगा. कोई भी मातापिता यह नहीं चाहेगा कि उस के बच्चे दूसरे धर्म में शादी करें. दूसरे धर्म में शादी करने पर जब हालात बिगड़े तो कोर्ट को भी ऐसे मामलों में दखल देना पड़ा. गत वर्ष जोधपुर शहर में एक हिंदू युवती के मुसलिम युवक से प्यार के बाद शादी करने पर खूब बवाल मचा था. हिंदूवादी संगठनों ने खूब हायतौबा मचाई थी.

अब ऐसा ही ताजा मामला बाड़मेर की रितु खंडेलवाल और कुपवाड़ा के गुलजार का सामने आया है. यह किसी को पता नहीं चला कि कब दोनों में प्यार हुआ और कब उन्होंने बाड़मेर से भाग कर कुपवाड़ा जा कर निकाह और कोर्टमैरिज की. उस में भी यह कि लड़की ने धर्म परिवर्तन कर अपना नाम रितु से जैनब रखा. रितु हो गई गुलजार की दीवानी रितु जब गुलजार के संपर्क में आई तो वह उस की दीवानी हो गई. गुलजार भी रितु से बेइंतहा मोहब्बत करता था. उन दोनों को लगा कि उन्हें सारे जहां की खुशी मिल गई. गुलजार सिर्फ डेढ़ साल बाड़मेर में रहा. जमाने से नजरें बचा कर वह दोनों थार नगरी में मिलते रहे. दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा प्यार करते थे. मगर किसी को इन के प्यार की भनक तक नहीं लगी.

एक रोज दोनों एकांत में मिले तो गुलजार बोला, ‘‘रितु, हम दोनों अलगअलग धर्मों के हैं. अगर कल को कोई समस्या खड़ी हो गई तो तुम मुझ से बिछुड़ तो नहीं जाओगी? यह बात याद रखो कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जीतेजी मर जाऊंगा.’’

‘‘गुलजार, मैं इस जन्म में ही नहीं, हर जन्म में तुम्हारी रहूंगी. तुम से प्यार किया है तो जीते जी निभाऊंगी भी. मैं जमाने से नहीं डरती. तुम्हारे कहने पर मैं अपनी जान भी कुरबान कर सकती हूं.’’ रितु ने गुलजार की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो गुलजार समझ गया कि रितु उस का साथ मरते दम तक नहीं छोड़ेगी.

इस के बाद दोनों मिलते रहे और उन का प्यार परवान चढ़ता रहा. गुलजार के एक इशारे पर रितु जान तक देने को तैयार थी. अपने प्यार की खातिर वह अपने मातापिता तक को भुलाने के लिए तैयार हो गई. वही मांबाप जिन्होंने उस की खुशी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. जैसा वह कहती, वह वैसा ही करते थे. गुलजार ने रितु को अपने रंग में ऐसा रंग लिया था कि वह चंद दिनों की मुलाकात में ही उस पर बेतहाशा यकीन करने लगी थी. एक दिन गुलजार ने उस से कहा, ‘‘रितु, अब थोड़े दिनों बाद तुम बालिग हो जाओगी. इस के बाद हम दोनों कोर्टमैरिज के साथ निकाह कर लेंगे.’’

‘‘सही कह रहे हो गुलजार, मैं भी यही चाहती हूं.’’ रितु ने गुलजार की हां में हां मिलाते हुए कहा.

‘‘रितु, अब मैं वापस कुपवाड़ा जाने की सोच रहा हूं. तुम भी बाद में मौका मिलने पर वहां जाना. तुम जानती ही हो कि अगर हम ने बाड़मेर में रह कर कोर्टमैरिज या निकाह किया तो बवाल हो जाएगा. हम कुपवाड़ा जा कर यह सब करेंगे ताकि हमें कभी कोई अलग कर सके.’’ गुलजार ने रितु को अपनी पूरी योजना समझा दी और इस के बाद घटना से करीब 3 महीने पहले गुलजार हमेशा के लिए बाड़मेर को अलविदा कह कर कुपवाड़ा चला गया.

रितु बाड़मेर में थी और गुलजार कुपवाड़ा में था. दोनों दूर हो कर भी दिलों के करीब थे. दोनों की मोबाइल पर अकसर बातें होती थीं. दोनों एकदूसरे के दिल का हाल पूछते रहते थे. प्रेमी के बिना रितु का मन नहीं लग रहा थाबना ली कुपवाड़ा जाने की योजना रितु गुलजार के पास कुपवाड़ा (कश्मीर) जाने की योजना बनाने लगी. उस ने अपने पढ़ाई के कागज और आईडी वगैरह इकट्ठे कर लिए. आखिर उस ने बाड़मेर को अलविदा कहने का मन बना लिया. योजनानुसार रितु खंडेलवाल 16 मार्च, 2018 को बाड़मेर से बड़ौदा के लिए रवाना हुई. वहां उस के कोई रिश्तेदार रहते थे. उस की बुआ मुंबई में रहती थी. उन के पास भी वह राजस्थान से मुंबई अकेली जाती रहती थी. इसलिए मांबाप ने उस के अकेला बड़ौदा जाने पर कोई आपत्ति नहीं जताई.

रितु राजस्थान से बड़ौदा जाने वाली बस में बैठ कर गई थी, मगर वह 17 मार्च को देर रात तक भी बड़ौदा नहीं पहुंची थी. इस का पता रितु के मातापिता को तब चला, जब उन्होंने बड़ौदा में रहने वाले अपने रिश्तेदार को फोन कर के रितु के पहुंचने के बारे में पूछा. मातापिता एवं अन्य परिजन चिंता करने लगे कि वह कहां चली गई. रितु ने बस का टिकट बाड़मेर से बड़ौदा का लिया था मगर वह कहां गुम हो गई, कोई नहीं जानता.

जवान बेटी के गायब होने पर रितु के मातापिता के होशोहवास गुम थे. उन्होंने अपने स्तर पर उस का पता लगाने की कोशिश की. मगर कहीं पता नहीं चला तो थकहार कर 21 मार्च, 2018 को बाड़मेर की थाना कोतवाली पहुंचे. थानाप्रभारी को उन्होंने बेटी के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी अमर सिंह रतनू ने रितु की गुमशुदगी दर्ज कर जांच शुरू कर दी. इस बारे में थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों से भी विचारविमर्श किया. उन्होंने रितु के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की लोकेशन कुपवाड़ा, जम्मूकश्मीर की रही थी.

मोबाइल कालडिटेल्स में एक फोन नंबर पर ज्यादा बात करने के सबूत भी मिले. जांच करने पर वह फोन नंबर कुपवाड़ा के गुलजार का पाया गया. जांच में बाड़मेर पुलिस को पता चला कि गुलजार बाड़मेर के ही कौफी कैफे में नौकरी करता था. इस के बाद बाड़मेर से एक पुलिस टीम कुपवाड़ा, कश्मीर गई. मगर रितु और गुलजार नहीं मिले. कुपवाड़ा पुलिस ने भी बाड़मेर पुलिस को सहयोग नहीं दिया. वहां आतंकवादियों का इतना खौफ है कि पुलिस इलाके में जाने से भी कतराती है.

रितु ने धर्म परिवर्तन कर नाम रखा जैनब बाड़मेर पुलिस कश्मीर में खाक छान रही थी कि इस बीच बाड़मेर पुलिस को डाक के जरिए जम्मूकश्मीर कोर्ट से रितु उर्फ जैनब और गुलजार के शादी करने के दस्तावेज मिले तो पुलिस टीम बाड़मेर लौट आई. पुलिस को पता चला कि रितु ने इसलाम धर्म कबूल कर लिया है. उस का नाम जैनब रखा गया है और उस ने गुलजार से निकाह कर लिया है. बाद में उन दोनों ने कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली है.

बाड़मेर पुलिस जम्मूकश्मीर से वापस लौट आई तो रितु के परिजन पुलिस से मिले. पुलिस के हाथ कानून से बंधे थे. रितु बालिग थी और उस ने अपनी मरजी से शादी की थी. ऐसे में पुलिस से मदद नहीं मिलने की स्थिति में परिजन मीडिया के सामने आए. उन्होंने आरोप लगाया कि उन की बेटी को षडयंत्र के तहत फंसाया गया है. पुलिस मदद करे.

इस पर पुलिस अधीक्षक डा. गगनदीप सिंगला के निर्देश के बाद पुलिस की एक स्पैशल टीम बाड़मेर से कुपवाड़ा भेजी गई. इसी बीच रितु के परिजनों ने गुलजार के खिलाफ धोखाधड़ी व अपहरण कर जबरदस्ती शादी करने का मामला दर्ज करा दिया. राजस्थान हाईकोर्ट में इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी दायर हुई. रितु के पिता ने बाड़मेर कोतवाली थाने में गुलजार नामक कश्मीरी युवक पर रितु का अपहरण कर जबरदस्ती शादी रचाने के आरोप लगाए थे. जयपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्होंने बताया था कि उन की बेटी रितु का अपहरण हुआ है और झूठे दस्तावेजों के आधार पर गुलजार ने जम्मूकश्मीर में उन की बेटी से शादी कर ली है. उन्होंने लव जिहाद की आशंका भी जताई.

बाड़मेर से स्पैशल पुलिस टीम कुपवाड़ा गई और दोबारा खाली हाथ लौट आई. रितु नहीं मिली. बाड़मेर पुलिस अधीक्षक डा. गगनदीप सिंगला ने कहा कि जम्मूकश्मीर पुलिस ने बाड़मेर पुलिस की कोई मदद नहीं की. इस कारण पुलिस रितु को बरामद नहीं कर सकी. रितु के परिजन पुलिस अधीक्षक से फिर मिले और रोरो कर बेटी को बरामद करने की गुहार लगाई.

फेसबुक पर हुआ वीडियो जारी पुलिस अधीक्षक डा. गगनदीप सिंगला भले इंसान थे. इस कारण वह कोशिश में थे कि किसी तरह रितु और गुलजार एक बार पुलिस गिरफ्त में जाएं तो सारा सच सामने जाए. मगर रितु के मिलने से पहले 24 अप्रैल, 2018 को कश्मीरी युवक गुलजार के फेसबुक पर रितु और गुलजार ने संयुक्त वीडियो जारी कर पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया.

वीडियो में गुलजार हाथ जोड़ कर बोल रहा था कि बाड़मेर के एसपी साहब से निवेदन करते हैं कि उन के पीछे मत लगो. हम ने रजामंदी से शादी की है, कोई गुनाह नहीं किया है. हम अपनी लाइफ जीना चाहते हैं. हमें हमारी लाइफ जीने दो, तंग मत करो. वीडियो में रितु कह रही थी कि पापा मैं अपने पति गुलजार के साथ बहुत खुश हूं. मैं जिंदगी भर इसी के साथ रहना चाहती हूं और मरना भी इसी के साथ ही है. मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो. पापा हमें शाति से रहने दो, तंग मत करो.

पहले वीडियो में रितु का कहना है कि रितु के मातापिता ने उस के पति पर जो आरोप लगाए, वे झूठे हैं. उस ने कहा कि उस का मैरिज सर्टिफिकेट है, जिस पर उस के खुद के फिंगरप्रिंट हैं, जो झूठे नहीं हो सकतेमैरिज सर्टिफिकेट दिखाते हुए रितु ने कहा कि वह खुद जम्मूकश्मीर आई और वहां कर निकाह किया था. मेरा खुद का स्टेटमेंट है, मेरे घर वाले कह रहे हैं कि वो फेक है. कोर्ट के और्डर कभी फेक नहीं होते. मैं अपने बयान जम्मूकश्मीर पुलिस के यहां भी दर्ज करवा चुकी हूं और स्टेटमेंट बाड़मेर भी भिजवा दिया गया है.

उस ने कहा कि मैं खुद यहां आई थी. सभी टिकटें मैं ने खुद करवाई थीं. मैं बड़ौदा के लिए रवाना हुई, अहमदाबाद में बस से उतरी. यदि मेरा अपहरण होता तो मैं अहमदाबाद में क्यों उतरती. अहमदाबाद से मैं दिल्ली पहुंची और दिल्ली से श्रीनगर की फ्लाइट की टिकट भी मैं ने खुद ही करवाईमैं अकेली थी, मेरे साथ कोई नहीं था. यहां श्रीनगर कोर्ट में निकाह किया था. उस ने कहा कि मेरे घर वाले कहते हैं कि 18 साल की नहीं हूं. ये मेरी 10वीं की मार्कशीट है, जिस में जन्मतिथि लिखी हुई है

दूसरा वीडियो गुलजार के फेसबुक पर जारी हुआ. उस वीडियो में गुलजार ने रितु उर्फ जैनब से सवाल किए हैं, जिन के रितु ने जवाब दिए हैं. गुलजार पूछता है कि तुम्हारे मातापिता का आरोप है कि मैं तुम्हारा रास्ता रोकता था, क्या मैं ने ऐसा कभी किया था? इस के जवाब में रितु कहती है कि गुलजार ने मेरे साथ कभी ऐसी हरकत नहीं की. गुलजार दूसरा सवाल करता है कि क्या मैं ने तुम्हारा अपहरण किया था? इस पर रितु बताती है कि मेरा अपहरण नहीं हुआ, बल्कि मैं खुद फ्लाइट से यहां आई

तीसरे सवाल में पूछता है कि तुम्हारे पिता का आरोप है कि 20 दिसंबर, 2017 को तुम ने एग्जाम दिए थे, सच्चाई क्या है बताएं?  इस पर रितु कहती है कि 20 दिसंबर को नहीं 20 फरवरी को कालेज में बीए द्वितीय वर्ष का एग्जाम दिया था. यह बात कालेज में पता कर सकते हैं. रितु ने घर वालों को बताया झूठा

अंत में रितु हाथ जोड़ कर कहती है कि मेरा एसपी साहब से निवेदन है कि मुझ पर मेरे घर वाले झूठा इलजाम लगा रहे हैं, मुझे तंग कर रहे हैं. मैं 18 साल की हूं. मुझे अपनी जिंदगी जीने का हक है. मैं अपनी लाइफ के फैसले खुद कर सकती हूं. मुझे इस (गुलजार) के सिवाय किसी की जरूरत नहीं है. वीडियो जारी होने के बाद रितु के परिजन मीडिया से मुखातिब हुए. उन्होंने बताया कि ये सब झूठ है. रितु को डरायाधमकाया गया है. वह दबाव में बोल रही थी. 17 मार्च को अहमदाबाद से फ्लाइट में गुलजार भी उस के साथ था. उस की टिकट और दोनों के वीडियो फुटेज भी हैं

बाड़मेर कोतवाली थानाप्रभारी अमर सिंह रतनू ने वीडियो जारी होने के बाद कहा, ‘‘गुलजार ने जो वीडियो फेसबुक पर डाले हैं, वे सही हैं. गुलजार की लोकेशन तो लगातार कुपवाड़ा की ही रही थी. लड़की अकेली ही वहां गई थी, हम लगातार तलाश कर रहे थे. हमारे यहां रिपोर्ट ही दर्ज है, हाईकोर्ट में जवाब पेश करेंगे.’’

बाड़मेर की रितु के कथित धर्म परिवर्तन निकाह के मामले में वीडियो फेसबुक पर जारी होने के बाद नया मोड़ गया. रितु का कहना था कि वह एक बार पहले भी जम्मूकश्मीर गई थी. अब दूसरी बार वह जम्मूकश्मीर आई है. बाड़मेर पुलिस अधीक्षक डा. गगनदीप सिंगला ने कहा, ‘‘बाड़मेर पुलिस ने युवती के बयान दर्ज किए हैं. युवती ने वीडियो में जो बातें बताई हैं, वही पुलिस ने दर्ज की हैं. परिजनों से फोन पर उस की बात भी करवाई है.’’

रितु का कहना है कि उस पर कोई दबाव नहीं, रजामंदी से निकाह किया है. रितु के मातापिता अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि रितु ऐसा कदम उठा सकती है. मगर सत्य को कैसे नकारा जा सकता हैसत्य यही है कि रितु धर्म परिवर्तन कर इसलाम धर्म कबूल कर के जैनब बन गई और उस ने गुलजार से निकाह और कोर्टमैरिज कर ली है. वे दोनों बालिग हैं और उन्हें अपना जीवन जीने का हक है.

कथा लिखने तक जैनब और गुलजार कश्मीर में ही थे. इस मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि प्यार तो धर्म देखता है और ही रंगरूप. प्यार जिस से हो गया, वही अच्छा लगता है. बाकी सब बेमानी लगते हैं.

क्या आने वाले समय में इंसान पुरा बदल जायेगा

आने वाली सदी में इंसान का जीवन पूरी तरह बदल जाएगा. उस का सारा काम इंटरनेट और रोबोट्स के जरिए होगा. आने वाले उस युग की एक झलक देखिए, जो कल्पनाओं पर आधारित भले ही है, लेकिन होगा करीबकरीब ऐसा ही. दे रात तक काम कर के सोया प्रदीप सुबह देर तक सोना चाहता था, क्योंकि उसे अगले दिन भी देर रात तक काम करना था. सोने के पहले दिमाग को 

हलका करने के लिए उस ने 2 लार्ज पैग शराब भी पी ली थी. लेकिन देर तक सोने की उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. क्योंकि सुबह तड़के ही दीवार में लगा अलार्म बजने लगा, जिस से प्रदीप की नींद टूट गई. आंखें मलते हुए उस ने दीवार की ओर देखा. दीवार में लगी स्क्रीन चमकी और उस में एक चेहरा उभरा. वह चेहरा उस का जानापहचाना था. वह कोई और नहीं, सैवी था. पर वह कोई जीताजागता आदमी नहीं, एक सौफ्टवेयर प्रोग्राम था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रदीप, उठो तुम्हें आज समय से पहले औफिस पहुंचना है. वहां तुम्हारी सख्त जरूरत है.’’

स्क्रीन से सैवी गायब होता, उस के पहले ही प्रदीप ने कहा, ‘‘एक मिनट सैवी, कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रहे. तुम्हें तो पता है मैं ने देर रात तक काम किया है. रात में जो पी थी, अभी उस का नशा भी नहीं उतरा है. ऐसा कौन सा जरूरी काम गया कि मुझे समय से पहले औफिस पहुंचना है.’’

सैवी क्या कहता, सिर्फ मुसकरा कर रह गया. जमहाई लेते हुए प्रदीप उठा. वह बाथरूम में घुसा. वाश बेसिन पर लगे शीशे में मुंह देखते हुए उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे. इसी के साथ शीशे, टौयलेट और बेसिन में छिपे तमाम डीएनए और प्रोटीन सेंसर हरकत में गए. प्रदीप जो सांस छोड़ रहा था, उस की जांच करने के साथ उस के शरीर की भी जांच शुरू हो गई, जिस से उस के शरीर की किसी भी बीमारी के अणुओं के स्तर का पता चल सके.

बाथरूम से निकल कर प्रदीप ने सिर पर एक कैप रख ली, जिस के माध्यम से अब टेलीपैथी द्वारा घर को नियंत्रित किया जा सकता था. कमरे में उसे थोड़ी गरमी महसूस हुई तो पहला निर्देश कमरा थोड़ा ठंडा करने का दिया गया. प्रदीप को हलकाहलका नशा अब भी था, दूसरे ठीक से वह सो भी नहीं सका था, इसलिए उसे सुस्ती महसूस हो रही थीशरीर को उत्तेजित करने वाला संगीत सुनने का मन हुआ. इस के बाद नंबर आया चायनाश्ते का. अगला निर्देश रोबोटिक रसोइए के लिए था कि वह उस के लिए चाय और नाश्ता तैयार कर दे. क्योंकि तब तक रोबोट इस तरह के तैयार हो जाएंगे कि वे घर में नौकर की तरह काम करने लगेंगे.

सारा काम रोबोट करेंगे उपरोक्त दृश्य आने वाली सदी का है, जब सारे काम इंसान नहीं नई तकनीक करेगी, कंप्यूटर के माध्यम से. यह वह जमाना होगा जब रोबोट केवल इतना ही नही करेंगे, बल्कि साथ घूमनेफिरने भी नहीं जाएंगे, बल्कि साथ में रह कर शौपिंग भी कराएंगे. मालिक की हर बात उन की समझ में आने लगेगी. यह सब वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए कराएंगे. चारों तरफ रोबोट ही रोबोट दिखाई देंगे. एयरपोर्ट से ले कर औफिसों तक. ये पुलिस की भी भूमिका संभालेंगे और ड्राइवर की भी. दुकानों के काउंटर पर भी यही बैठे होंगे. ये इंसान की भावनाओं को भी समझेंगे. इस तरह वे एक बेहतरीन काम करने वाले ही नहीं, बेहतरीन साथी भी बन सकेंगे.

आइए, फिर प्रदीप के पास चलते हैं. चायनाश्ते का निर्देश देने के साथ ही प्रदीप ने मैग्नेटिक कार को गैराज  से बाहर कर खड़ी होने का निर्देश दे दिया था. वह डीजल, पैट्रोल, सीएनजी या इलैक्ट्रिक से चलने वाली कार नहीं थी. चुंबकीय ऊर्जा के दौर में हजारों मील की यात्रा बिना किसी ईंधन के होगी. उस दौर में ट्रेनें, कार, लोग चुंबकीय तरंगों पर तैरेंगे. सुपर कंडक्टर टेक्नोलौजी नई सदी की प्रमुख ऊर्जा तकनीक होगी, जिस में ऊर्जा क्षय नहीं होगी.

आने वाली सदी की छोडि़ए. जर्मनी, जापान और चीन इस तकनीक में आज भी आगे हैं. मैग्लेव ट्रेनें चुंबकीय तरंगों पर तैरते हुए तेज रफ्तार से आगे दौड़ती हैं. उन की ये चुंबकीय तरंगें सुपर कंडक्टर्स के जरिए पैदा की जाती हैं. ये रफ्तार के मामले में विश्व रिकौर्ड तोड़ रही हैं. इनकी अधिकतम रफ्तार 361 मील प्रतिघंटा है. इन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है.

बहरहाल, कार को बाहर आने का निर्देश दे कर प्रदीप किचन में पहुंचा तो रोबो उस का पसंदीदा चायनाश्ता बना चुका था. प्रदीप ने झट से आंखों पर कौंटेक्ट लेंस चढ़ाया. कौंटेक्ट लेंस पहनते ही वह इंटरनेट से जुड़ गया. इंटरनेट उस की रेटीना पर क्लिक करने लगा. गरमागरमा चायनाश्ते के साथसाथ लेंस पर हेडलाइंस फ्लैश होने लगीं.

मंगल ग्रह पर बन रही कालोनी के प्रोजैक्ट को अगर जल्दी पूरा करना है तो वहां काम करने वालों को बर्फीली ठंड से बचाने के लिए धरती से और संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. पहली स्टारशिप जाने को तैयार है, इस के लिए चंद्रमा की सतह पर लाखों नैनोबोट्स जूपिटर छोड़ने होंगे, ताकि वे स्टारशिप की जरूरी यात्रा के लिए चुंबकीय फील्ड तैयार कर सकें.

कई सालों की मेहनत के बाद अंतरिक्ष में पर्यटकों के लिए एक बड़ा पर्यटनस्थल तैयार कर लिया गया है. अब पर्यटक मौजमस्ती के लिए वहां जा सकते हैं. अभी जो नई बीमारी फैल रही है, वैज्ञानिक उस के वायरस का पता कर रहे हैं, क्योंकि अभी इस का कोई इलाज नहीं है. वैज्ञानिक उस के जींस के कमजोर पहलुओं के बारे में पता लगा रहे हैं.

कौंटेक्ट लेंस पर इन सारी हेडलाइंस को देखने के बाद एक खबर ने प्रदीप का ध्यान आकर्षित किया. हैडलाइन थी— दिल्ली और उस के आसपास के शहरों को बिजली सप्लाई करने वाले पावर स्टेशन में प्रौब्लम की वजह से बिजली की सप्लाई बाधित हो रही है. अगर जल्दी इस की मरम्मत नहीं की गई तो दिल्ली और उस के आसपास का इलाका अंधेरे में डूब जाएगा.

दरअसल, जिस युग की हम बात कर रहे हैं, तब तक धरती पर मौजूद वे सारे संसाधन खत्म हो चुके होंगे, जिन से अभी ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है, इसलिए तब लोग सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर होंगे. अंतरिक्ष में घूमते कृत्रिम उपग्रह बिजलीघर का भी काम करेंगे. बड़ी संख्या में सेटेलाइट सूर्य के विकिरण को सोख कर बिजली उत्पन्न करेंगे. हर सेटेलाइट 5 से 10 गीगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा. यह बिजली धरती पर उत्पन्न होने वाली बिजली से सस्ती होगी. जापान अभी से स्पेस में पावर स्टेशन की संभावना देखने लगा है. मित्सुबिशी इलैक्ट्रिक और कुछ दूसरी कंपनियां इस दिशा में काम भी कर रही हैं. अंतरिक्ष में तैनात होने वाला जापान का बिजलीघर डेढ़ मील में फैला होगा. यह बिलियन वाट बिजली पैदा करेगा.

पावर स्टेशन में होने वाली गड़बड़ी की हेडलाइंस नजर आते ही प्रदीप समझ गया कि औफिस में इतनी सुबहसुबह क्यों बुलाया गया है. वह नाश्ता कर के घर से बाहर आया तो गैराज से बाहर कर तैरती हुई कार उस का इंतजार कर रही थी. जल्दी औफिस पहुंचने का निर्देश मिलते ही मैग्नेटिक कार, इंटरनेट, जीपीएस और सड़क में छिपे लाखों चिप्स से जुड़ गई, ताकि मौनिटर पर ट्रैफिक के बारे में जानकारी मिलती रहे.

कार चुंबकीय पट्टी वाली सड़क पर तैरने लगी. इन चुंबकीय तरंगों को सुपर कंडक्टिंग से तैयार किया गया था. कार अभी चली ही थी कि स्क्रीन पर एक बार फिर सैवी का चेहरा उभरा. उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, आप के लिए नया संदेश यह है कि आप कौन्फ्रैंस रूम में पहुंच कर सब से मिलें. इस के अलावा आप की बहन का भी एक वीडियो मैसेज है.’’

कार खुद ही आगे बढ़ती जा रही थी. अभी औफिस पहुंचने में समय था, इसलिए प्रदीप ने सोचा कि तब तक बहन का वीडियो मैसेज ही देख ले. उस ने कलाई में बंधी घड़ी का बटन दबाया. घड़ी के बटन पर बहन की तसवीर उभरी. बहन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें तो पता ही है, शनिवार को सात्विक का बर्थडे है. इस बार तुम उस के लिए नए मौडल का रोबोटिक डौगी ले आना.’’

इलेक्ट्रिसिटी का जमाना खत्म हो चुका था. चुंबकीय ऊर्जा का युग था. प्रदीप की कार के आसपास से अलगअलग बैंडविड्थ में ट्रेनें, ट्रक और कारें ऊपरनीचे और अगलबगल से गुजर रही थीं. ये ऐसी ऊर्जा थी, जिस में कार के लिए कभी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ने वाली थी, जिस से धन की भी बचत हो रही थी. प्रदीप औफिस पहुंच गया. वह एक पावर जेनरेटिंग और सप्लाई करने वाली एक बड़ी कंपनी का औफिस था. बहुत बड़ी और काफी ऊंची बिल्डिंग थी. गेट पर पहुंचते ही लेजर ने चुपचाप आंखों की पुतलियों और चेहरे से पहचान कर गेट खोल दिया.

कौन्फ्रैंस रूम आधे से ज्यादा खाली पड़ा था. कुछ सहयोगी कर अपनीअपनी सीट पर बैठ चुके थे. प्रदीप के कौंटेक्ट लेंस में उन लोगों की थ्री डी इमेज उभरी, जो कौन्फ्रैंस रूम में टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. ये लोग भले ही औफिस नहीं पाए थे, लेकिन होलोग्राफिक तौर पर औफिस में साथ मौजूद थे. कौंटेक्ट लेंस इन लोगों को पहचा रहा था, साथ ही उन की प्रोफाइल और बैकग्राउंड भी दिखा रहा था.

अचानक डायरेक्टर की कुरसी की जगह पर उन की तसवीर उभरी. उन्होंने कहा, ‘‘जेंटलमेन, जैसा कि आप लोगों को पता ही है कि अंतरिक्ष में स्थित अपने पावर हाउस में कुछ गड़बड़ी हो गई है. यह गंभीर मामला है. अच्छी बात यह है कि समय से इस की जानकारी मिल गई, जिस से खतरा टल गया. दुर्भाग्य से जिस रोबो को मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह नाकाम रहा. रोबोट ने हमें जो थ्री डी इमेज भेजी है, उस में गड़बड़ी साफ दिख रही है. इस से हमें गड़बड़ी का पता चल गया है. इस काम के लिए वह रोबो पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उस में इस गड़बड़ी को ठीक करने का प्रोग्राम नहीं है, इसलिए हमें वहां अनुभवी रोबोट्स भेजने होंगे.’’

काफी चर्चा के बाद मानव नियंत्रण वाले रिपेयर क्रू को वहां भेजने का निर्णय लिया गया. डायरेक्टर ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम जल्दी से जल्दी ऐसे रोबोट्स तैयार करो, जिन में ऐसे प्रोग्राम हों जो टेलीपैथिक संकेतों पर काम कर के पावर स्टेशन में हुई गड़बड़ी को ठीक कर सकें.’’इस तरह के रोबोट प्रदीप ने पहले ही तैयार कर रखे थे, इसलिए उस ने तत्काल उन रोबोट्स  को काम पर लगा दिया. ये ऐसे रोबोट्स थे, जिन्हें रोबोटिक मानव कहा जा सकता था. उन के सिर में इलेक्ट्रोड, शरीर में अलगअलग तरह की नैनो मशीनें और चिप लगी थीं, जिस से उन की क्षमता में असीमित वृद्धि हो गई थी.

मीटिंग में कुछ परेशानी वाली बातें भी हुईं. प्रदीप को जो रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार पावर स्टेशन में जो गड़बड़ी हुई थी, वह किसी दुश्मन देश द्वारा रोबोट में वायरस भेज कर खराबी की गई थी. इसलिए काम करने वाले रोबोट ने ही गड़बड़ी कर दी थी. प्रदीप के इस खुलासे से कौन्फ्रैंस रूम में सन्नाटा पसर गया. लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वायरस की वजह से अपने ही रोबोट ने ऐसा किया है. क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था. फिर रोबोट एंटी वायरस से सुसज्जित था. बहरहाल, इस बात को गोपनीय रखने की हिदायत के साथ मीटिंग खत्म हुई.

थके होने के बावजूद उस दिन प्रदीप को काफी व्यस्त रहना पड़ा. पावर स्टेशन की मरम्मत के लिए रोबोट क्रू को नए सिरे से तैयार करना पड़ा. क्वांटम कंप्यूटर के जरिए बनाए सभी प्रायोगिक रोबोट्स निष्क्रिय कर दिए गए. इस के साथ ही रोबोट्स की गड़बड़ी भी ठीक कर दी गई थी. सारा काम हो गया तो प्रदीप घर लौटने की तैयारी करने लगा.

वह कार में बैठा और घर गया. 2 दिन से लगातार काम की वजह से प्रदीप बेहद थक गया था. घर पहुंच कर वह सोफे में धंस गया, तभी सैवी एक बार फिर दीवार की स्क्रीन पर उभरा. प्रदीप ने उस की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, डाक्टर सेन ने एक खास संदेश भेजा है.’’

डा. सेन यानी रोबो डाक्टर. सैवी के संदेश देने के बाद डा. सेन स्क्रीन पर आए. वह इतने वास्तविक लग रहे थे कि लगता ही नहीं था कि वह केवल सौफ्टवेयर प्रोग्राम है. डा. सेन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें परेशान करने के लिए मुझे खेद है. लेकिन कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना जरूरी था. पिछले साल तुम्हारी जो दुर्घटना हुई थी, वह तो तुम्हें याद ही होगी. उस दुर्घटना में तुम लगभग मर ही चुके थे. तुम्हें शायद याद नहीं कि शिमला में तुम पहाडि़यों से हजारों फुट नीचे गिर गए थे. तुम्हें बाहरी ही नहीं, काफी अंदरूनी चोटें भी आई थीं. तब तुम्हारे कपड़ों ने तुम्हें बचा लिया था.

‘‘तुम्हारे कपड़ों ने ही एंबुलैंस को फोन किया. उसी के आधार पर तुम्हारी मैडिकल हिस्ट्री अपलोड की गई थी. तब एक रोबोट अस्पताल में माइक्रो सर्जरी द्वारा तुम्हारे शरीर के बहते खून को रोका गया था. तुम्हारे पेट, लीवर और आंतें इस तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें रिपेयर करना मुश्किल था. सौभाग्य से आर्गेनिक तौर पर तुम्हारे इन  अंगों को फिर से तैयार किया गया था. ये सारे अंग एक टिश्यू फैक्ट्री में तैयार किए गए थे. मेरे रिकौर्ड के अनुसार, तुम्हारे एक हाथ को भी बदला गया था.

‘‘आज मैं तुम्हारे इन नए अंगों को एक बार फिर चैक करना चाहता हूं. अपने एमआरआई स्कैनर को हाथ से पकड़ो और इसे पेट की ओर ले जाओ. तुम बाथरूम में जा कर सेलफोन के आकार के इस स्कैनर को अंगों के आसपास घुमाओगे तो इन अंगों की थ्री डी इमेज स्क्रीन पर दिखने लगेगी. इन अंगों की थ्री डी इमेज देख कर हम पता लगाएंगे कि तुम्हारे शरीर में कितना सुधार हुआ है. आज सुबह तुम बाथरूम गए थे तो तुम्हारे पैनक्रियाज में बढ़ते कैंसर का पता चला है.’’

कैंसर का नाम सुन कर प्रदीप तनाव से भर उठा. लेकिन यह सोच कर राहत महसूस की कि कैंसर तो अब मामूली बीमारी रह गई है.इस वक्त हम जिस युग में हैं, उस युग में ऐसे रोबोट्स विकसित हो जाएंगे, जो जांच से ले कर सारे औपरेशन तक करेंगे. डाक्टरों को कोई बड़ा औपरेशन करना होता है तो एक ही औपरेशन में थक जाते हैं. रोबोट्स इस समस्या का निदान करेंगे. हार्ट सर्जरी के लिए बाईपास औपरेशन में सीने के बीच एक फुट लंबी जगह खोलनी पड़ती है, जिस के लिए जनरल एनेस्थीसिया की जरूरत होती है, साथ ही संक्रमण का भी डर रहता है

औपरेशन के बाद होश में आने से ले कर स्वास्थ्य में सुधार होने तक असहनीय दर्द और तमाम मुश्किलों का सामना करना होता है. विंची रोबोटिक सिस्टम से ये पूरी प्रक्रिया काफी छोटी और बेहतर हो जाएगी. सन 2100 तक हर तरह के औपरेशन रोबोट संभाल लेंगे. वे हर औपरेशन के लिए प्रोग्राम किए जाएंगे. भविष्य में उन्नत कंप्यूटर आएंगे, जिस से माइक्रो औपरेशन होंगे. माइक्रो का मतलब यह है कि वे दिमाग में घुस कर नर्व सिस्टम को भी ठीक कर सकेंगे और औपरेशन भी ऐसा, जिस में चीरफाड़ की गुंजाइश एकदम खत्म हो जाएगी. यकीनन तब तक सर्जिकल औपरेशन की तसवीर पूरी तरह बदल जाएगी.

छोटे से छेद से रोबोट शरीर के अंदर प्रवेश करेगा और काम को अंजाम दे देगा. दर्द भी कम और स्वस्थ भी जल्दी. अभी नर्व फाइबर और बारीक कोशिकाओं का औपरेशन नहीं हो सकता, लेकिन तब संभव होगा. शरीर में कैमरे के तौर पर अंदर डाले जाने वाले इंडोस्कोप शायद पतले धागे से भी ज्यादा पतले होंगे. यानी औपरेशन का काम माइक्रो मशीन कहे जाने वाले रोबोट्स के हाथों में होगा.

रात में प्रदीप को अचानक भांजे का बर्थडे याद गया. बर्थडे पार्टी में वह होलोग्राफी इमेज के रूप में मौजूद रहेगा, लेकिन अभी वह एकदम खाली था. समय कैसे कटे, इस के लिए उस ने सैवी को याद किया. सैवी तुरंत स्क्रीन पर हाजिर हुआ. प्रदीप ने कहा, ‘‘सैवी, इस सप्ताह मैं खाली हूं. क्या तुम मेरे लिए किसी साथी की व्यवस्था कर सकते हो?’’

 ‘‘हां, क्यों नहीं, आप की प्राथमिकताएं मेरी मेमरी में प्रोग्राम्ड हैं. मैं अभी स्क्रीन पर इंटरनेट के जरिए कुछ ऐसी ही प्रोफाइल दिखाता हूं.’’ अगले ही पल स्क्रीन पर कुछ लड़कियों की तसवीरें उभरने लगीं, जो खुद किसी साथी का साथ चाहती थीं. उन में से शिल्पी नाम की लड़की की प्रोफाइल और फोटो प्रदीप को पसंद आई. शिल्पी प्रदीप को पसंद गई थी. सैवी ने प्रदीप की प्रोफाइल और वीडियो भेज कर शिल्पी से पूछा कि क्या वह उस के बौस के लिए उपलब्ध है?

शाम को प्रदीप का दोस्त गया तो उस ने उस के साथ डिनर और क्रिकेट के मैच का मजा लिया. मैच लिविंग रूम में होलोग्राफिक इमेज के तौर पर उपलब्ध था. लगता था कि मैदान से 50 मीटर दूर स्टेडियम में बैठ कर मैच देख रहे हैं. रात में दोस्त चला गया तो सैवी की तसवीर उभरी, उस ने बताया कि शिल्पी ने उस का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है.

सप्ताह का अंत सप्ताह के अंत में यानी शनिवार को प्रदीप के भांजे का बर्थडे था, जिस में उसे भांजे को एक रोबोटिक डौगी गिफ्ट देना था. प्रदीप घर की स्क्रीन पर ही माल के वर्चुअल टूर पर निकला. वह कई टौय स्टोर में गया. आखिर उसे एक रोबो पसंद गया. उस ने टेलीपैथी के जरिए और्डर दिया. यह खरीदारी नेट के जरिए की जा रही थी, लेकिन उसे लगा कि इस से अच्छा होगा वह दुकान पर जा कर देखे और खरीदे.

दुकान पर हर तरह के रोबोट थे. हकीकत यही होगी कि उस समय रोबोट ही सब से बड़ा बिजनैस होंगे. प्रदीप स्टोर पर पहुंचा तो रोबोट क्लर्क ने उस की आगवानी की, ‘‘सर, मैं आप की क्या मदद करूं?’’

प्रदीप को लेटेस्ट रोबोट डौग का मौडल पसंद आया. इतनी ही देर में उस ने कौंटेक्ट लेंस पर लगे नेट से उस के प्राइस की तुलना दूसरे स्टोर के दामों से कर ली. उसे लगा कि मौल में पसंद किया गया रोबोट सही दामों में मिल रहा है, इसलिए डील पक्की हो गई. क्रैडिट कार्ड से कीमत अदा कर के डिलीवरी के लिए वह बहन के घर का पता दे आया.

 शिल्पी से मुलाकात अब प्रदीप खाली था. शाम को उसे शिल्पी से मिलना था. रोमांच भी था और अनजानी खुशी भी. शिल्पी के साथ किस रेस्टोरेंट में जाना है, कहां बैठना है, क्या खाना है, सब कुछ नेट की मदद से तय हो चुका था. अचानक उसे लगा कि शिल्पी को आना है तो घर में कुछ बदलाव होना चाहिए.

चूंकि घर की हर चीज प्रोग्राम्ड थी, इसलिए बदलाव के लिए सैवी से बात कर के पता लगाना था. सैवी ने तत्काल ढेर सारे डिजाइन पेश कर दिए, जिस के अनुसार घर को नया लुक दिया जा सकता था. इस के बाद सैवी ने बताया कि कौन सी कंपनी इस काम के लिए कितना समय और पैसा लेगी. एक इंजीनियरिंग कंपनी ने दावा कि महज 2 घंटे में घर को नया लुक दे देगी. कंपनी के रोबोट सारे घर को इच्छानुसार बदल देंगे

इस नए लुक की खासियत यह थी कि इस में आप जिस दिन जिस रंग में चाहेंगे, पूरे घर के अंदर का इंटीरियर उसी रंग में दिखेगा. लुक में हलकेफुलके बदलाव भी संभव होंगे. खैर, रोबोट्स ने कर घंटर भर में वह सब कर दिया, जो प्रदीप चाहता था. शिल्पी पेशे से आर्टिस्ट थी. उस की वेब डिजाइनिंग की कंपनी थी. उस के यहां थ्री डी वेब डिजाइनिंग का काम होता था. शिल्पी ने हवा में अंगुलियां चला कर एक छोटे से यंत्र को औन किया, जिस से एनिमेशन हवा की पतली सतह पर तैरने लगे

देखने में शिल्पी 26 साल की और प्रदीप 28 साल का लग रहा था, जबकि हकीकत में दोनों की असली उम्र 58 और 62 साल थी. दवाओं और जींस ने उन की उम्र को थाम सा लिया था. दरअसल उस युग में ऐसे जींस की खोज हो चुकी होगी, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को एकदम धीमी कर देंगे.

इस के बाद शिल्पी और प्रदीप ने साथ रहने का फैसला कर के शादी कर ली, जबकि उस युग में जल्दी शादी करने का फैसला कोई नहीं करेगा. शिल्पी गर्भवती हुई तो दोनों ने तय किया कि उन का बच्चा किन खासियत और खूबियों वाला होना चाहिए. दरअसल, इस के लिए सरकार ने कुछ नियम बना रखे थे. बच्चों की पैदाइश के लिए सरकार ने स्वीकृत जींस की एक सूची बना रखी थी. उसी के तहत पैदा होने वाले बच्चों की जींस में फेरबदल कराया जा सकता था. बच्चों के पैदा होने की दर कम होती जा रही थी, क्योंकि हर कोई एकाकी जीवन जीना चाहता था.