अनोखा बदला : निर्मला ने कैसे लिया बहन और प्रेमी से बदला

निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी. निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था. अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा.

थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया. मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’.

जी.बी. रोड कोठे में खून – भाग 2

कागजी काररवाई पूरी कर के खान ने राधा के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने की इजाजत दे दी. खान वहां नहीं रुके. वह थाने में लौट आए. उन्होंने अपनी रिपोर्ट एसएचओ सत्येंद्र दलाल को दे दी. राधा की मौत की खबर डीसीपी संजय कुमार सैन को दे दी गई. उन्होंने राधा की हत्या को बड़ी गंभीरता से लिया.

पुलिस टीमों का किया गठन

अज्ञात हत्यारों की तलाश करने के लिए सत्येंद्र दलाल की अगुवाई में एसआई गिरिराज, नूर हसन खान, एएसआई महेश सिंह, आदेश धामा, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र की एक टीम गठित की. साथ ही स्पैशल स्टाफ के अलावा क्राइम ब्रांच की औपरेशन विंग को भी उन अज्ञात हत्यारों की तलाश में लगा दिया.

तीनों टीमों ने संयुक्त काररवाई करने के लिए सब से पहले अपनी कार्यप्रणाली पर गहनता से विचार किया. सब से पहले अस्पताल में दाखिल इमरान चौधरी को बयान देने की स्थिति में आने पर उस का बयान लिया गया. इमरान चौधरी से पूछताछ भी की गई.

उस से मालूम हुआ कि तीनों युवकों की उम्र ज्यादा नहीं थी. उन में एक की भाषा में पंजाबी पुट था. शायद वह पंजाब से था. शेष दोनों यूपी की भाषा बोल रहे थे. एक का नाम काका था, पिस्टल से उसी ने राधा और उस पर (इमरान) गोलियां चलाई थीं.

गोली चलाने की वजह इमरान ने रुपयों के लेनदेन में गड़बड़ी करने पर तूतूमैंमैं होना बताया. उन की तलाशी लेने के लिए राधा ने उस से कहा तो एक लडक़े ने अपनी पैंट में सामने खोंस कर रखी पिस्टल निकाल कर काका को रखने को दी थी.

राधा ने यह देख कर पुलिस बुलाने के लिए शोर मचाया. कोठे के 2-3 लोग भी शोर सुन कर वहां आ गए. तब पिस्टल देने वाला चिल्ला कर बोला, “काके, गोली चला.” उस के यह कहते ही काका ने फायरिंग कर दी, जिस से मैं और राधा घायल हो गए. मैंने उन तीनों को सीढिय़ों से भागते देखा, मैं घायल हो गया था, गिर पड़ा. फिर पुलिस की वैन मुझे और राधा को यहां हौस्पीटल में ले आई.

इमरान ने उन लडक़ों का हुलिया भी बताया. उसी आधार पर पुलिस टीमों ने कोठा नंबर 52 के नीचे सडक़ पर सीसीटीवी ढूंढ कर उन्हें चैक किया. 2 से 3 बजे दोपहर तक की फुटेज देखी गई. उस में बहुत से चेहरे थे. शंकर और भूरे ने उन लडक़ों को पास से देखा था. उन्हें वह फुटेज दिखाई गई तो उन्होंने 3 लडक़ों को पहचान कर बता दिया कि ये वही 3 लडक़े हैं.

डंप डाटा से मिला सुराग

सीसीटीवी में उन के चेहरे स्पष्ट नहीं थे. उन को अजमेरी गेट की तरफ भाग कर जाने की बात बताई गई थी. अजमेरी गेट पर भी सीसीटीवी लगे थे. वहां की फुटेज देखी गई तो वे तीनों यहां भी अस्पष्ट नजर आए.

स्पैशल टीम और औपरेशन विंग ने यहां आधुनिक तकनीक का सहारा लिया. कोठा नंबर 52 और अजमेरी गेट के एरिया का मोबाइल डंप डाटा उठाया गया. कोठा नंबर 52 में घटी घटना के बाद वहां करीब 20 हजार फोन ऐक्टिव थे. अजमेरी गेट पर 15 हजार फोन की ऐक्टिव पोजिशन मिली.

DCP sanjay sain

इन की बड़ी बारीकी से जांच की गई तो कुछ नंबर दोनों जगह पाए गए. इसी तकनीक को आजमाते हुए परेड ग्राउंड होते हुए कश्मीरी गेट बस अड्डा पहुंच गई. हर जगह के सीसीटीवी की फुटेज खंगाली गई और डंप डाटा उठाया गया. इस जांच में पता चला कि तीनों लडक़े कश्मीरी गेट बस अड्डा आए थे, यहां से वे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे थे.

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर भी उन लडक़ों की सीसीटीवी में फुटेज मिल गई. यहां का भी डंप डाटा उठाया गया. पुलिस का अनुमान था कि वे ट्रेन पकड़ कर दिल्ली से बाहर चले गए हैं.

अब पुलिस के पास डंप डाटा ही उन लडक़ों तक पहुंचने का जरिया था. पुलिस की टीमें मोबाइल डंप डाटा की जांच में जुट गईं. पुलिस टीम को डंप डाटा में एक नंबर ऐसा मिला, जो हर जगह मौजूद था.

उस नंबर को मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी में दे कर यह मालूम किया गया कि यह नंबर किस का है और कहां इस्तेमाल किया जा रहा है. मोबाइल कंपनी ने बताया कि यह नंबर दिल्ली का नहीं, राजस्थान का है. वहीं जा कर इस को इस्तेमाल करने वाले का नाम पता मिल सकता है.

पुलिस के लिए यह एक नई सिरदर्दी थी, लेकिन इस का सोल्यूशन भी निकल गया. कमला मार्किट थाने के तेजतर्रार एसआई गिरिराज ने मुसकरा कर कहा, “सर, यह फोन कौन यूज कर रहा है, इस का पता मीनू मैडम निकाल सकती हैं.”

एएसआई मीनू बाला वहीं मौजूद थी. वह चौंक कर बोली, “मैं कैसे पता निकाल सकती हूं?”

“आप को बकरे के सामने चारा डालना है मैडम,” एसआई गिरीराज ने कहा. फिर गिरिराज ने एएसआई मीनू बाला को समझा दिया कि उन्हें क्या करना है.

एएसआई मीनू ने चलाया तीर

एएसआई मीनू बाला ने अपने मोबाइल डंप डाटा द्वारा हासिल किया गया नंबर मिलाया. दूसरी ओर घंटी बजी, फिर किसी ने फोन उठा लिया. मीनू बाला ने स्पीकर औन कर लिया. दूसरी ओर कुछ देर खामोशी रही फिर एक मरदाना आवाज उभरी,

“हैलो! आप को किस से बात करनी है?”

मीनू ने आवाज को सुरीला बना कर कहा, “आप बहुत भाग्यशाली हैं. आप का नंबर हमारी मोबाइल कंपनी ने लक्की ड्रा में डाला था. आप का दूसरा ईनाम निकला है. आप को 50 हजार रुपए मिलेंगे.”

“50 हजार का ईनाम.” दूसरी तरफ से खुशी से कोई बोला, “मेरी तो किस्मत खुल गई.”

“आप अपना नाम, पता बताइए ताकि 50 हजार का ईनाम आप को भेजा जा सके और हां अपनी फोटो भी भेज दीजिए.”

“ठीक है मैम. आप मेरा एड्रैस नोट करिए.”

“एक मिनट, मैं कागज पैन ले लूं.” मीनू बाला ने पास में खड़े हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र को इशारा किया. धर्मेंद्र ने तुरंत पैन कागज मीनू बाला को दे दिया.

“बताइए,” मीनू ने कहा.

“मेरा नाम हैप्पी है, पिता का नाम गोपी उर्फ चूरामन है. मेरा मूल पता डूंगर वाला, पोस्ट थाना- शाइपू, जिला धौलपुर (राजस्थान) है. फिलहाल मैं पिता और भाई के साथ मुल्ला पियाऊ, महारानी अहिल्या बाई स्कूल आगरा में रह रहा हूं.”

“अपना फोटो मुझे वाट्सऐप पर भेज दीजिए. मेरा नंबर आप के पास आया होगा.”

“जी हां मैडम. मैं अपना फोटो भेज रहा हूं.” दूसरी तरफ से कहने के बाद बात खत्म हो गई.

थोड़ी ही देर में हैप्पी ने अपना फोटो मीनू बाला के वाट्सऐप पर भेज दिया. देखते ही मीनू बाला की आंखों में चमक आ गई.

उस ने अपनी खुशी छिपा कर कहा, “मिस्टर हैप्पी, आप को आज ही 50 हजार रुपए एमओ द्वारा भेज दिए जाएंगे.” कहने के बाद मीनू बाला ने फोन काट दिया.

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वहां एसएचओ सत्येंद्र दलाल, एसआई नूर हसन खान, गिरिराज और हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र के अलावा औपरेशन विंग और स्पैशल स्टाफ के लोग मौजूद थे. सभी ने हैप्पी की फोटो देखी. हैप्पी वही लडक़ा था, जो अपने साथियों के साथ कोठा नंबर 52 से वारदात को अंजाम दे कर भागा था.

तुरंत उसे गिरफ्तार करने के लिए एसआई गिरिराज, नूर हसन खान, एएसआई महेश सिंह और औपरेशन विंग के 3 हट्टेकट्टे पुलिस वालों की टीम आगरा के लिए भेज दी गई.

15 दिन में सुनाया फैसला : मुजरिम को सजा ए मौत – भाग 2

अफजल का इकलौता बेटा था अरहान

आखिर यह पूरा मामला क्या था? आइए, इस पर एक नजर डालते हैं. उत्तर प्रदेश के जनपद मथुरा के मेवाती मोहल्ला औरंगाबाद थाना सदर बाजार में रहते थे अफजल. परिवार में उन की पत्नी नाजिस और एक 9 साल का बेटा अरहान था.

अरहान अफजल का इकलौता बेटा था, इसलिए दोनों मियांबीवी उसे बहुत प्यार करते थे. उसे लाड़प्यार से पाल रहे थे. अफजल को उम्मीद थी कि पढ़लिख कर एक दिन अरहान बहुत बड़ा आदमी बनेगा और उन के दिन संवर जाएंगे. अरहान को लिखानेपढ़ाने में अफजल मियां कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे थे. वह दिन भर कड़ी मेहनत कर के रुपया कमाते और अरहान की स्कूल की जरूरत का सारा सामान दिलवाते.

दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे कि 8 अप्रैल, 2023 की शाम को अरहान लापता हो गया. न वह गलीमोहल्ले में कहीं मिल रहा था न बाजारहाट में. वह गली में खेलतेखेलते गायब हुआ था. नाजिस ने उसे घर में से ही दोचार बार आवाज दी थीं, फिर उत्तर न मिलने पर वह घर से बाहर आ गई थी. अरहान गली में दिखाई नहीं दे रहा था. नाजिस ने उसे पहले आसपड़ोस में ढूंढा. वह नहीं मिला तो उस के पिता अफजल को बताया.

अफजल ने बेटे को हर संभावित जगह पर तलाश किया. वह अपने बड़े भाई की दुकान पर भी अरहान को देखने गए, क्योंकि अरहान अकसर अपने ताऊ की दुकान पर चला जाया करता था. उस दिन वह ताऊ की दुकान पर नहीं गया था. हर जगह तलाश करने के बाद अफजल परेशान हो कर मोहल्ले के 2-3 पहचान वालों को साथ ले कर कोतवाली सदर बाजार पहुंच गए.

कोतवाल जसवीर सिंह के सामने पहुंच कर अफजल ने अपने 9 वर्षीय बेटे के लापता होने के बारे में बताया, “सर, मुझे बहुत घबराहट हो रही है. मेरा बेटा शाम से गली में खेलते हुए गायब हो गया है. आप उस की तलाश करवाइए.”

एसएचओ जसवीर सिंह ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया. बच्चा मासूम था, उस के साथ कुछ भी अनहोनी होने का अंदेशा था.

“आप बच्चे का हुलिया, उम्र आदि दर्ज करवा दीजिए. उस की कोई फोटो हो तो वह भी दे दीजिए. मैं आप के बच्चे की तलाश करने की कोशिश करता हूं. आप अपने स्तर पर भी उसे ढूंढिए.” अफजल ने अपने बेटे अरहान की गुमशुदगी दर्ज करवा कर उस का एक फोटो भी कोतवाल साहब को दे दिया.

सीसीटीवी कैमरे से मिला सुराग

पुलिस ने पहले इस मामले की गुमशुदगी दर्ज की, लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो अज्ञात के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. इस मामले को स्वयं कोतवाल जसवीर सिंह ने अपने हाथ में लिया और इस की विवेचना शुरू कर दी.

उन्होंने एसएसपी शैलेष कुमार पांडेय को इस बच्चे की गुमशुदगी की जानकारी दे कर दिशानिर्देश मांगे. एसएसपी के दिशानिर्देश पर कोतवाल जसवीर सिंह ने जांच की शुरुआत अरहान के घर के आसपास से की. गली में उस के साथ खेलने वाले बच्चों से पूछताछ की तो उन से मालूम हुआ कि शाम को अरहान उन के साथ खेल रहा था, फिर वह अपने ताऊ की दुकान की ओर किसी के साथ जाता दिखाई दिया था. वह व्यक्ति कौन था, वे उसे नहीं पहचानते.

इस जानकारी से कोतवाल को यह पता चल गया कि अरहान किसी ऐसे शख्स को जानता है, जो उस के बहुत करीब रहा है. उसी के साथ वह ताऊ की दुकान की तरफ गया था. जसवीर सिंह ने उस शख्स के बारे में मालूम करने के लिए सीसीटीवी फुटेज देखने का मन बना लिया. जहां पर अरहान के ताऊ की दुकान थी, उस रास्ते में 3-4 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पुलिस ने उन कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी तो उन्हें अरहान एक पतलेदुबले युवक के साथ जाता हुआ नजर आ गया.

उस युवक की पहचान करने के लिए अरहान के पिता अफजल को थाने में बुलवाया गया. अफजल को सीसीटीवी कैमरे की वह फुटेज दिखाई गई.

“क्या आप इस युवक को पहचानते हैं?” कोतवाल ने अफजल से पूछा.

“यह तो मोहम्मद सैफ है. मेरे बड़े भाई की दुकान पर काम करता है.” अफजल ने हैरान हो कर कहा, “इस के साथ अरहान कई बार घूमने जाता रहा है, यह अच्छा व्यक्ति है.”

“हूं.” कोतवाल ने सिर हिलाया, “मैं इस से मिलना चाहूंगा.”

“यह दुकान पर होगा. आप मेरे साथ चलिए.”

कोतवाल जसवीर सिंह 2 पुलिसकर्मियों को साथ ले कर अफजल के साथ उस के भाई की दुकान पर आ गए. उन्हें वहां सीसीटीवी में नजर आने वाला युवक सैफ मिल गया.

पुलिस की बंदरघुडक़ी आई काम

पुलिस को दुकान पर देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. जसवीर सिंह की पैनी नजरों से यह छिप नहीं पाया. उन्होंने पुलिसकर्मियों को इशारा किया, “मोहम्मद सैफ को हिरासत में ले लो.”

उन का आदेश मिलते ही पुलिसकर्मियों ने सैफ को पकड़ लिया. उसे पुलिस वैन में बिठा कर थाने में लाया गया. अफजल भी उन के साथ आए थे.

सैफ को सामने बिठा कर कोतवाल ने उस से सख्ती से पूछा, “अरहान कहां पर है सैफ?”

“मैं क्या बताऊं साहब… वो अपने घर में ही होना चाहिए.” सैफ नजरें झुका कर बोला.

“कल शाम को वह तुम्हारे साथ था. मेरे पास इस का ठोस सबूत है, तुम ठीकठीक बता दो वरना पुलिस वाले तुम्हारी चमड़ी उधेडऩे के लिए डंडा ले कर खड़े हैं.”

“मैं सही कह रहा हूं साहब, मैं नहीं जानता.”

जसवीर सिंह ने उस के गाल पर करारा थप्पड़ जड़ दिया, वह कुरसी से दूर जा गिरा. जसवीर सिंह के पास में खड़ा पुलिस कांस्टेबल उसे उठा कर दूसरे कमरे में ले गया. तभी बेंत ले कर 2 पुलिस वाले वहां और आ गए. एक पुलिस वाले ने सैफ के दोनों हाथ पीछे कर के बांध दिए.

इस से सैफ डर गया. वह समझ गया कि अब उस के साथ ये पुलिस वाले क्या करेंगे. इस से पहले कि वह पुलिस वाले कोई काररवाई करते, सैफ डर कर बोला, “सर, आप मुझे मारना मत, मैं सब बताता हूं.”

तभी एक पुलिसकर्मी कोतवाल को बुला लाया.

कोतवाल ने कडक़ स्वर में पूछा, “बता अरहान कहां है?”

“साहब, मैं ने उसे मार दिया है…” सैफ ने जैसे ही यह कहा, बराबर के कमरे में बैठे अफजल के कानों में भी यह आवाज आ गई. वह अपनी जगह गश खा कर गिर पड़े. वहां मौजूद कांस्टेबल उन्हें उठा कर बाहर बेंच पर ले गया और उन्हें होश में लाने की कोशिश में लग गया. कोतवाल जसवीर सिंह गहरी सांस ले कर रह गए. सैफ कुबूल कर रहा था कि उस ने अरहान को मार डाला है.

“तुम ने अरहान को क्यों मार दिया, उस बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?” सैफ को फाड़ खाने वाली नजरों से देखते हुए जसवीर सिंह ने पूछा.

अरहान की हत्या का जो कारण सैफ ने बताया, उसे सुन कर कोतवाल और पुलिस कांस्टेबल के सिर शर्म से झुक गए.

जी.बी. रोड कोठे में खून – भाग 1

7 मार्च, 2023 को दोपहर 2 बज कर 10 मिनट पर पीसीआर द्वारा थाना कमला मार्किट को सूचना दी गई कि जी.बी. रोड (श्रद्धानंद माग) पर स्थित कोठा नंबर 52 में किसी ने ताबड़तोड़ गोलियां चला दी हैं, जिस में एक महिला और एक युवक घायल हो गए हैं. जल्दी घटनास्थल पर पहुंचें.

यह काल एएसआई मीनू बाला ने अटेंड की. उस ने तुरंत इसे एसआई नूर हसन खान को बता कर उचित निर्णय लेने के लिए कह दिया. अपनी रवानगी जी.बी. रोड के लिए दर्ज करने के बाद एसआई नूर हसन खान, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र को साथ ले कर जी.बी. रोड के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल ज्यादा दूर नहीं था. 15-20 मिनट में ही एसआई नूर हसन खान कोठा नंबर 52 पर पहुंच गए. यह रेड लाइट एरिया था, यहां जिस्म का बाजार लगता है. मनचले शौकीन लोग कामना की भूख शांत करने के लिए इस बाजार की सीढिय़ां नापते हैं. दिन में तमाशबीन कोठों के छज्जों पर जिस्म की नुमाइश करने वाली देहबालाओं को ललचाई नजरों से देख कर आहें भरते रहते हैं. जिन की जेब में नोटों की गरमी होती है, वह पसंद आने वाली देह बाला को बाहों में भरने के लिए कोठे की सीढिय़ां चढऩे में संकोच नहीं करते.

पहले रात को तो यहां पूरी रौनक होती थी, घुंघरुओं की खनक और तबलों की धमक से कोठे गूंजते रहते. मुजरे महफिलें सजतीं, जाम छलकते और नर्तकी अपने नृत्य व अदा से लोगों का दिल जीतने की कोशिश करती थी, लेकिन यहां के कोठों में मुजरा तो लगभग बंद ही हो चुका है. अब तो मुख्य धंधा जिस्मफरोशी का ही रह गया है.

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एसआई नूर हसन खान और हैडकांस्टेबल सीढिय़ां चढ़ कर ऊपर आए. दरवाजे के साथ वाले कमरे में खून बिखरा हुआ था, सीढिय़ों पर और सामने वाले कमरे में भी ताजा खून पड़ा था. जो लोग गोली लगने से घायल हुए थे, वे वहां नहीं थे.

पुलिस को ऊपर आया देख कर इस कोठे की संचालिका पार्वती उन के सामने आ गई.

“घायल कहां है?” नूर हसन खान ने कोठा संचालिका को ऊपर से नीचे तक देख कर पूछा.

“उन्हें पीसीआर वैन एलएनजेपी हौस्पीटल ले गई है. मेरी बेटी राधा की हालत बहुत खराब है साहब.” पार्वती रुआंसी आवाज में बोली, “मैं वहीं जा रही थी कि आप आ गए.”

“यहां क्या लफड़ा हुआ था? गोली किस ने चलाई?” खान ने पार्वती को घूरते हुए पूछा.

“वे 3 लडक़े थे साहब, शक्लसूरत से गंवार और बदमाश नजर आ रहे थे. उन्होंने राधा की डिमांड की तो बात 1500 रुपए में तय हो गई. फिर पता नहीं क्यों उन में से एक ने पिस्टल निकाल कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोली राधा और इरफान को लगी. दोनों नीचे गिरे तो मैं दौड़ी. तब तक वे तीनों पिस्टल लहराते हुए भाग निकले. कुछ लोगों ने उन का पीछा किया, लेकिन वे हाथ नहीं आए.”

“गोलियां चलीं, उस वक्त का कोई चश्मदीद यहां मौजूद है क्या?”

“जी हां.” पार्वती ने 2-3 नाम ले कर आवाज लगाई तो 2 व्यक्ति वहां आ गए. उन में से एक का चेहरा लंबूतरा और दागदार था. उस का रंग सांवला था. दूसरे के चेहरे पर दाढ़ीमूंछ नहीं आई थी. वह पहले वाले की अपेक्षा नाटा और गोरी रंगत वाला युवक था.

“शंकर, भूरे साहब तुम से कुछ पूछना चाहते हैं.” पार्वती ने उन दोनों से कहा फिर एसआई खान से बोली, “साहब, घटना के वक्त यही दोनों यहां मौजद थे.”

“तुम दोनों यही रहते हो?” खान ने पूछा.

“जी साहब,” उन्होंने सिर हिला कर एक साथ कहा.

“राधा और इरफान पर हमला करने की वजह क्या थी?”

“साहब, यह हम नहीं जानते. राधा के साथ उन लडक़ों का किस बात पर झगड़ा हुआ, हमें नहीं मालूम. राधा और इरफान ने उन के पास पिस्टल देख कर शोर मचाया था कि पुलिस को बुलाओ. उन की तेज आवाजें सुन कर हम दोनों दौड़ कर आए तो हम ने एक लडक़े के हाथ में पिस्टल देखा.

अपने को घिरा देख कर और पुलिस बुलाने की बात सुन कर उन में से एक ने चीख कर कहा था, ‘काके गोली चला.’ बस उस लडक़े ने जिस का नाम काका था, ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी.

“गोली राधा के सीने में लगी, दूसरी इरफान के कंधे में. वे दोनों नीचे गिरे तो तीनों भाग निकले. काका नाम का लडक़ा पिस्टल लहरा कर चीख रहा था, “पीछे मत आना वरना मैं भून कर रख दूंगा.” साहब वे तीनों भागते हुए अजमेरी गेट की तरफ निकल गए और भीड़ में गायब हो गए.”

“अगर वे पकड़ में आएं तो तुम दोनों उन्हें पहचान लोगे?”

“हां साहब.”

पुलिस अधिकारियों ने किया घटनास्थल का निरीक्षण

एसआई खान ने सब से पहले यहां की घटना से एसएचओ कमला मार्किट सत्येंद्र दलाल, डीसीपी संजय कुमार सैन और एडिशनल डीसीपी, पुलिस का स्पैशल स्टाफ, फोरैंसिक टीम को अवगत करा दिया. वे सब थोड़ी देर में ही घटनास्थल पर आ गए.

घटनास्थल का उन्होंने बारीकी से निरीक्षण किया. हत्या करने वाले अज्ञात लडक़े संख्या में 3 बताए गए थे, लेकिन वे कहां से आए थे, कौन थे, सब कुछ अंधेरे में था.

डीसीपी संजय कुमार सैन ने एसएचओ सत्येंद्र दलाल को कुछ निर्देश दिए. इंसपेक्टर सत्येंद्र दलाल ने एसआई खान को एलएनजेपी हौस्पीटल के लिए रवाना कर दिया और खुद वहां की काररवाई निपटाने में व्यस्त हो गए.

एसआई नूर हसन खान जब एलएनजेपी हौस्पीटल में पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि कोठे से यहां पहुंचाते वक्त राधा ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. कोठे पर दलाली करने वाला इमरान चौधरी बुरी तरह जख्मी था. डाक्टर उस के कंधे में धंसी गोली निकाल कर ड्रेसिंग कर चुके थे, लेकिन अभी वह बयान देने की स्थिति में नहीं था.

एसआई नूर हसन खान ने राधा की डैडबौडी की अच्छे से जांच की. उस के सीने में गोली लगी थी, अत्यधिक गहरा जख्म और खून काफी मात्रा में बह जाने से उस की मौत हो गई थी.

राधा देखने में सुंदर, युवा सैक्स वर्कर थी. उस की उम्र 30 वर्ष थी. अब उस के ऊपर हमला करने की धारा 302 में तब्दील हो गई थी. उस के हत्यारे को पकडऩा बहुत आवश्यक हो गया था.

15 दिन में सुनाया फैसला : मुजरिम को सजा ए मौत – भाग 1

इस धरती पर इंसान के रूप में ऐसे हैवान भी मौजूद हैं, जो अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए किसी भी लडक़ी अथवा लडक़े को अपना शिकार बना लेते हैं. उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का रहने वाला सैफ नाम के दरिंदे ने तो एक ऐसे मासूम पर नुकीले दांत गड़ा दिए, जो मात्र 9 साल का था. अभी उस ने न दुनिया को ठीक से देखा था, न समझा था. हंसतेखेलते उस मासूम के साथ सैफ ने कुकर्म ही नहीं किया, बल्कि उसे मौत की नींद भी सुला दिया था.

इस कृत्य और जघन्य हत्या के लिए सैफ को पोक्सो कोर्ट के कटघरे में खड़ा किया गया. यह पोक्सो कोर्ट मथुरा में थी और इस के जज थे राम किशोर यादव. उन की कोर्ट में 28 अप्रैल, 2023 को इस केस की चार्जशीट दाखिल की गई थी. 2 मई को अभियुक्त पर चार्ज लगाया गया.

अभियुक्त सैफ की ओर से बचाव पक्ष के रूप में बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव साहब सिंह देशकर पैरवी कर रहे थे और अभियोजन पक्ष का जिम्मा जिला शासकीय अधिवक्ता (स्पैशल) अलका उपमन्यु ने संभाला था. इस केस में 14 गवाह पेश किए गए. पहली गवाही 8 मई को हुई और अंतिम गवाह 18 मई को पेश हुआ.

आज 22 मई, 2023 का दिन था. उस दिन इस जघन्य मामले में फाइनल बहस होनी थी. सुबह से ही कोर्टरूम में मीडियाकर्मी, मथुरा बार एसोसिएशन के वकील, पुलिस के आला अधिकारी. मृतक बच्चे के घर वाले, पासपड़ोस के लोग और शहर के कई प्रतिष्ठित नागरिक जमा हो गए थे.

इस केस की शासन और प्रशासन की ओर से मौनिटरिंग हो रही थी. डीएम पुलकित खरे, एसएसपी शैलेष कुमार पांडे, संयुक्त निदेशक अभियोजन सहसेंद्र मिश्रा इस मामले पर पैनी नजर रख रहे थे. वह इस वक्त कोर्टरूम में मौजूद थे. वहीं जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम तरकर तथा सदर कोतवाल जसवीर सिंह (जिन्होंने इस केस की छानबीन की थी) कोर्ट रूम में उपस्थित थे.

कोर्ट रूम में बने कटघरे में इस जघन्य कांड का आरोपी सैफ खड़ा था. बीच में लंबी मेज के पास लेखाकार के साथ बचाव पक्ष के वकील साहब सिंह देशकर बैठे हुए थे. उन के सामने मेज की दूसरी ओर अभियोजन पक्ष की वकील अलका उपमन्यु बैठी हुई इस केस की फाइल को गहरी नजरों से देख रही थीं.

दिलचस्प रही वकीलों की जिरह

जैसे ही कोर्टरूम की घड़ी ने 10 बजाए, अपने चैंबर से निकल कर माननीय जज राम किशोर यादव अपनी कुरसी के पास आ गए. कोर्ट में मौजूद हर शख्स ने सम्मान में उठ कर उन का अभिवादन किया. अभिवादन स्वीकार कर के जज महोदय अपनी कुरसी पर बैठ गए.

“कोर्ट की काररवाई शुरू की जाए. बचाव पक्ष अपनी दलील पेश करें.” माननीय जज ने साहब सिंह की ओर देख कर कहा.

साहब सिंह देशकर अपने काले कोट को दुरुस्त करते हुए उठे और गंभीर आवाज में बोले, “मी लार्ड, मैं मानता हूं मेरे मुवक्किल सैफ ने जघन्य गुनाह किया है. उस के विरुद्ध पुलिस ने ठोस साक्ष्य भी एकत्र कर के कोर्ट में पेश किए हैं, लेकिन मैं यही कहूंगा कि जिस वक्त सैफ ने यह गुनाह किया, वह बहुत नशे में था. नशा करने वाला व्यक्ति नशे में यह भूल जाता है कि वह जो कर रहा है या करने जा रहा है, वह गलत है. मेरे मुवक्किल ने जो भी किया वह नशे में किया है, उसे इस का अफसोस भी है.”

“इस के अफसोस करने से क्या वह मासूम बच्चा जीवित हो कर वापस आ जाएगा, जो इस की हैवानियत की भेंट चढ़ गया.”

अभियोजन पक्ष की वकील अलका उपमन्यु तमक कर खड़ी होते हुए गुस्से से बोलीं, “मी लार्ड, इस व्यक्ति ने ऐसा गुनाह किया है, जो क्षमा करने योग्य नहीं है. ऐसे व्यक्ति को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए.”

“नहीं मी लार्ड,” बचाव पक्ष के वकील देशकर विनती करते हुए बोले, “मेरा मुवक्किल शादीशुदा है इस के छोटेछोटे बच्चे हैं. यह अपने बूढ़े मांबाप का बोझ भी उठाता है. इस के जेल चले जाने से इस के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा.”

“यह सब कुछ गुनाह करने से पहले सोचना चाहिए,” अलका उपमन्यु व्यंग्य से बोलीं.

“मैं ने कहा न, यह उस समय गहरे नशे में था. नशे में ही इस से गुनाह हो गया है.”

“मी लार्ड, जिस मासूम बच्चे को इस नराधम ने मौत के घाट उतारा है, वह अपने मांबाप की इकलौती संतान था. उस के पिता उसे इस उम्मीद से पालपोस कर बड़ा कर रहे थे कि वह बड़ा हो कर उन के बुढ़ापे की लाठी बनेगा. इस ने उन की लाठी तोड़ दी. उन के बुढ़ापे का सहारा छीन लिया. इसे कठोर से कठोर दंड मिलना ही चाहिए.”

माननीय जज राम किशोर यादव ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद गंभीर स्वर में कहा, “यह सिद्ध हो गया है कि कटघरे में खड़े इस शख्स सैफ ने जघन्य गुनाह किया है. स्वयं इस के वकील मिस्टर देशकर अपने मुंह से कुबूल कर रहे हैं कि इस ने जघन्य अपराध किया है, लेकिन नशे में किया है.

“मिस्टर देशकर यह नशे में था, इस बात को पुलिस नहीं मानती. इसे गिरफ्तार किया गया, तब यह पूरी तरह होशोहवास में था और यह बात इस से भी सिद्ध होती है कि बच्चे के साथ कुकर्म करने के बाद इस का दिमाग सचेत था, तभी तो इस ने सोचा कि यदि बच्चे को जिंदा छोड़ा तो बच्चा इस की पहचान और नाम बता सकता है.

“इसी भय से इस ने बच्चे की गला घोंट कर हत्या कर दी. इसलिए नशे में अपराध करने वाली बात का कोई तर्क नहीं बनता. इस पर रहम नहीं किया जा सकता. मैं इसे दोषी मानता हूं. 26 मई, 2023 को इस पर आरोप तय होगा और सोमवार 29 मई को इसे सजा सुनाई जाएगी. कोर्ट तब तक के लिए स्थगित की जाती है.”

कोर्ट की काररवाई समाप्त कर के जज महोदय अपने चैंबर में चले गए. कोर्ट रूम में मौजूद लोग एकदूसरे से बातें करते हुए बाहर निकल गए.

मुजरिम को सजा ए मौत

26 मई, 2023 को एक बार फिर से पोक्सो कोर्ट में जज राम किशोर यादव की अदालत लगी. 22 मई को कोर्ट रूम में जितनी भीड़ थी, उस से कहीं अधिक भीड़ कोर्ट रूम में उस दिन आई. जज महोदय ने ठीक 10 बजे अपनी कुरसी पर आ कर बैठे तो सभी की निगाहें उन की ओर हो गईं कि पता नहीं जज साहब क्या आरोप तय करेंगे.

उन्होंने अभियुक्त सैफ पर आरोप तय करने के लिए कहना शुरू किया, “सैफ को बच्चे के साथ कुकर्म कर के तार से उस का गला घोंट कर मार देने का आरोप सिद्ध हो गया है. इसे भारतीय दंड विधान की धारा 302 में आजीवन कारावास और 50 हजार रुपयों का जुरमाना लगाया जाता है.

धारा 377 भादंवि में 10 वर्ष का कठोर कारावास और 20 हजार रुपए का आर्थिक दंड लगाया जाता है. धारा 363 में 5 वर्ष सश्रम दंड और 20 हजार का आर्थिक जुरमाना. धारा 201 में 7 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाना लगाया जाता है. वसूली का 80 प्रतिशत हिस्सा प्रतिकर के रूप में मृतक के मांबाप को दिया जाएगा.”

इस के बाद कोर्ट की अगली तारीख सोमवार तय कर के कोर्ट स्थगित कर दी गई.

29 मई, 2023 को पोक्सो कोर्ट के जज राम किशोर यादव ने सैफ को सभी धाराओं में दोषी करार देते हुए कहा, “मासूम के साथ कुकर्म और उस की हत्या का दोषी मोहम्मद सैफ धारा 6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (यथा संशोधित 2019) के अंतर्गत मृत्युदंड से दंडित किया जाता है. सैफ को फांसी के फंदे पर तब तक लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.” जज महोदय ने सजा सुनाने के बाद अपने पैन की निब तोड़ दी और उठ कर अपने चैंबर में चले गए.

पोक्सो कोर्ट ने त्वरित न्याय का उदाहरण पेश कर के मात्र 15 दिन में अपना फैसला सुनाया. इस फैसले की सभी ने भूरिभूरि प्रशंसा की. मृतक बच्चे की मां नाजिस और पिता अफजल फूटफूट कर रोने लगे. उन का कहना था कि आज हमारे बेटे अरहान को न्याय मिला है. त्वरित काररवाई से हम संतुष्ट हैं. आज न्यायाधीश ने सच्चा न्याय किया है. उन के रुदन को देख कर एडवोकेट अलका उपमन्यु की भी आंखें भर आईं. वह मुंह घुमा कर रूमाल से अपने आंसू पोंछने लगीं.

शराफत का इनाम – भाग 5

हारुन ने अपने आप को संभाल कर ढिठाई से कहा, ‘‘ओके, अब तुम बेसहारा नहीं रहोगी. तुम्हारे पास करीमभाई जैसा अमीर शौहर है.’’

‘‘हां, वह बहुत दौलतमंद है. लेकिन उन की दी हुई सब से कीमती चीज यह है.’’ रूमाना ने पेट पर हाथ रख कर कहा. हारुन को गहरा झटका लगा. उस ने हकलाते हुए पूछा, ‘‘तु…तुम सचमुच मां…?’’

‘‘हां, यह सच है. मैं मां बनने वाली हूं. इसी सच ने मुझे बदल दिया है. मुझे अपनी परवाह नहीं थी, लेकिन  बच्चे के लिए तो बाप का साया चाहिए. इसी की वजह से मैं करीमभाई जैसे मासूम और शरीफ आदमी को  धोखा देने से बच जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, वह मासूम आदमी है, तभी तुम्हारे जाल में फंस गया है.’’ हारुन ने व्यंग किया.

‘‘हां, वह मासूम है, तभी उस ने आंखें बंद कर के मुझ पर यकीन किया.’’ रूमाना ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘अगर उसे मालूम हो गया कि तुम अतीत में क्या करती रही हो, कैसे लोगों को उल्लू बनाती रही हो? क्या तब भी वह तुम पर यकीन करेगा?’’ हारुन ने पूछा.

‘‘कर भी सकता है और नहीं भी कर सकता. मगर इस से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा. आज से हमारे रास्ते अलग हैं. तुम साइन करो और अंगूठे का निशान लगाओ.’’ रूमाना ने पेन और इंकपैड उस के सामने रख कर कहा.

हारुन ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं इस के लिए मजबूर हूं?’’

‘‘हां, अगर तुम्हारा इशारा रकम की ओर है तो वह मौजूद है. लेकिन इस से पहले तुम्हें मुझे बाकायदा तलाक देना होगा.’’

‘‘कहां है रकम?’’ इस बार हारुन का अंदाज बदल गया.

‘‘साइन करो, निशान लगाओ. मैं तुम्हें रकम दे कर जाऊंगी.’’

रुन कुछ देर सोचता रहा. अचानक उस ने पेन उठाया और सभी जगहों पर साइन कर दिए. उस के द अंगूठे का निशान लगा कर पेपर्स रूमाना की ओर बढ़ा दिए.

गौर से सारे पेपर्स चैक कर के रूमाना खड़ी हो कर बोली, ‘‘आओ मेरे साथ.’’

रूमाना उसे बैंक में ले गई और मैनेजर से सेफ से बैग निकलवाया. उसी ने वह रकम का बैग सेफ में रखवाया था. मैनेजर उसे जानता था. उस ने बैग ले कर हारुन को दे दिया. हारुन ने बैग मेज पर खोल कर देखा और तसल्ली हो कर उसे बंद कर दिया.

‘‘इस का मतलब यह हमारी आखिरी मुलाकात है?’’

‘‘बिलकुल आखिरी. तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि अब तुम इस शहर में नजर न आओ.’’  रूमाना ने कहा तो हारुन मुसकराया, ‘‘अभी तो मैं जा रहा हूं, लेकिन मुझे यहां वापस आने से कोई नहीं रोक सकता.’’

उस के जाने के बाद रूमाना घर के लिए रवाना हो गई. उस ने जानबूझ कर हारुन को डराया था कि वह करीमभाई से दूर रहे. इसीलिए वह खुद रकम देने आई थी. रूमाना को सचमुच करीमभाई से मोहब्बत हो गई थी, इसलिए अब वह उन्हीं की बीवी बन कर रहना चाहती थी.

रूमाना घर पहुंची तो करीमभाई ने उसे बांहों में भर लिया. रूमाना ने सोचा, ‘‘अब यही मेरी दुनिया और जिंदगी है.’’

करीमभाई बहुत खुश थे. उन्हें 2 करोड़ रुपए का जरा भी गम नहीं था, क्योंकि अब रूमाना को उन से कोई नहीं छीन सकता था. सुबह जब आंख खुली तो बराबर लेटी रूमाना को देख कर उन्हें उस पर बहुत प्यार आया. उस का सोया हुस्न गजब ढा रहा था.

सुबह के 8 बज रहे थे. करीमभाई को मालूम था कि दुबई के लिए अभी एक फ्लाइट उड़ने वाली है. इसी फ्लाइट में जा रहे हारुन के बैग में एयरपोर्ट पर उन की पहचान का एक औफिसर तलाशी के दौरान एक छोटा सा पैकेट रख कर उस के सामान को क्लीयर कर देगा. दुबई पहुंचने पर उस का सामान चैक होगा तो उस में से हेरोइन निकलेगी.

करीमभाई घर में सीधेसादे थे, लेकिन जब वह घर से निकलते थे तो बहुत स्मार्ट और चालाक हो जाते थे. रूमाना से शादी के बाद उन्होंने उस के बारे में पूरी छानबीन कर ली थी और वह उस के बारे में सब कुछ जान गए थे. मगर उन्होंने रूमाना को न कुछ बताया था और न व्यवहार में फर्क आने दिया था. वह उसी तरह उसे प्यार करते रहे.

वह देखना चाहते थे कि आगे क्या होता है. वह रूमाना से मोहब्बत करने लगे थे, इसलिए बिना किसी तफ्तीश के उस से शादी कर ली थी. उस के बारे में पता करने का खयाल तो उन्हें बाद में आया था. अगर रूमाना धोखा देती या बेवफाई करती तो हेरोइन की स्मगलिंग में हारुन के साथ वह भी पकड़ी जाती. अच्छा हुआ कि उस ने उन के साथ रहने का फैसला कर लिया था.

रूमाना के इस फैसले के बदले उन्होंने उस के अतीत के सारे गुनाह माफ कर दिए थे. बाथरूम की तरफ जाते हुए वह सोच रहे थे कि अतीत को भुला कर नई जिंदगी बहुत अच्छी गुजरेगी.

करीमभाई को मालूम था कि हारुन बहुत कमीना और चालबाज आदमी है. उस से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का सब से बढि़या तरीका यही था कि उसे इस तरह फंसाया जाए कि उस के लिए निकलना मुश्किल हो जाए. अगर रूमाना भी धोखा देती तो वह भी सजा भुगतती. करीमभाई को भी उन की शराफत का इनाम मिला कि रूमाना को उन से मोहब्बत हो गई.

गोवा की खौफनाक मुलाकात

शराफत का इनाम – भाग 4

करीमभाई ने जैसे ही फोन काटा. संयोग से उसी वक्त हारुन का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘करीमभाई, तुम मेरे ही फोन का इंतजार कर रहे थे न?’’

‘‘काम की बात करो.’’ करीमभाई ने सख्ती से कहा.

‘‘बताइए, आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘कैसा फैसला?’’

‘‘यही कि आप रूमाना को वापस कर रहे हैं या नहीं?’’

‘‘यह अब मुमकिन नहीं है. वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है.’’ करीमभाई ने कहा तो हारुन हंसा, ‘‘तब तो मेरा मामला और भी मजबूत हो गया. अभी तक तो आप दोनों मुकर सकते थे, लेकिन अब बच्चे की वजह से इनकार नहीं कर सकते.’’

‘‘हारुन, तुम मेरे औफिस आ जाओ. हम मिलबैठ कर मसले का हल निकाल लेंगे. अदालत जाने से बात नहीं बनेगी. मैं तो बदनाम हो ही जाऊंगा, लेकिन तुम भी मुश्किल में पड़ जाओगे. तुम्हारा मकसद भी पूरा नहीं होगा.’’ करीमभाई ने नरमी से कहा.

‘‘आप दोनों सिर्फ बदनाम ही नहीं होंगे, आप दोनों पर मुकदमा भी चलेगा, शादीशुदा औरत से शादी करने का.’’

‘‘यह बात तो तुम भूल जाओ. तुम झूठ बोल सकते हो. मेरे पास दौलत है, मैं बड़े से बड़ा गवाह खड़ा कर सकता हूं. कई झूठे गवाह गवाही को तैयार हो जाएंगे. मैं साबित कर दूंगा कि तुम ने रूमाना को तलाक दे दिया है.’’

‘‘मि. करीम, यह इतना आसान भी नहीं है. दौलत मेरे पास भी है. मैं भी बड़े से बड़ा वकील कर सकता हूं, जो तुम्हारे गवाहों की धज्जियां उड़ा देगा.’’ उस ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘इस तरह यह मामला बरसों चलेगा.’’

‘‘यही तो मैं चाहता हूं. अगर रूमाना मुझे नहीं मिलती है तो तुम भी सुकून से नहीं बैठ सकते. यह मीडिया का दौर है, हर चैनल पर मामला उछलेगा.’’

करीमभाई सोच में पड़ गए. अगर ऐसा हुआ तो उन की साख और इज्जत का क्या होगा? उन्होंने धीमे से कहा, ‘‘तुम रूमाना की वापसी के अलावा कोई हल सोचो. जो रकम तुम कहो, मैं देने को तैयार हूं. तुम अपनी डिमांड बताओ, मैं पूरी करूंगा.’’

हारुन कुछ देर सोचता रहा. उस के बाद बोला, ‘‘2 करोड़ रुपए. अगर तुम 2 करोड़ रुपए दे दो तो मैं पीछे हट जाऊंगा.’’

‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है.’’

‘‘लेकिन आप की आमदनी के सामने कुछ भी नहीं है. 2-3 महीने में फिर कमा लोगे.’’

करीमभाई ने सोचते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मैं 2 करोड़ रुपए दे दूंगा, लेकिन ऐसे नहीं. पेपर्स मैं खुद तैयार करूंगा. तुम उन पर 2 गवाहों के सामने साइन कर के तलाक दोगे. यह सारा काम मेरे औफिस में होगा.’’

‘‘नहीं, मैं सामने नहीं आऊंगा. तुम रकम और पेपर्स ले कर रूमाना को भेजोगे.’’

‘‘वह नहीं जाएगी.’’ करीमभाई ने कहा.

‘‘अगर वह नहीं आएगी तो कोई डील नहीं होगी.’’ हारुन ने सख्ती से कहा.

‘‘ठीक है, चली जाएगी वह. आगे बोलो.’’

‘‘रकम और पेपर्स ले कर रूमाना आएगी. रकम डौलर्स में होगी और वह उस बैंक में आएगी, जहां मैं बुलाऊंगा. मैं बैंक मैनेजर के सामने साइन करूंगा. वह मेरे साइन की तस्दीक करेगा, उस के बाद रूमाना पैसे मेरे एकाउंट में डाल देगी. मैं नंबर उसी वक्त बताऊंगा.’’

करीमभाई उस की बात सुन कर चिंता में पड़ गए . उन्होंने कहा, ‘‘बैंक मैनेजर तुम्हारा गवाह है तो बाद   में वह तुम्हारा फेवर करेगा.’’

‘‘नहीं, वह सिर्फ साइन सर्टिफाई करेगा. वह हमारा आदमी नहीं, बैंक का मुलाजिम है.’’ हारुन ने कहा.

‘‘ठीक है, लेकिन रूमाना के साथ मैं आऊंगा.’’ करीमभाई ने कहा.

‘‘नहीं, वह अकेली आएगी. कल मैं इसी समय फोन करूंगा. अगर तुम मेरी शर्तें मानते हो तो ठीक है, नहीं तो मामला अदालत में जाएगा.’’ हारुन ने अपनी बात कह कर फोन काट दिया.

हारुन ने बड़ी चालाकी से पूरा प्लान बनाया था. वह पहले ही सोच चुका था कि उसे कैसे और क्या करना है. जैसे ही करीमभाई 2 करोड़ रुपए देने को राजी हुए, उस ने पूरा प्लान बता दिया. सारा काम बैंक में होना था. इस के बावजूद हारुन को भरोसा नहीं था. करीमभाई बेदिली से औफिस का काम करने लगे. उन का सुकून जैसे खत्म हो गया था. उन्होंने संक्षेप में रूमाना को हारुन की बात बता दी थीं.

करीमभाई घर पहुंचे तो रूमाना बेचैनी से इंतजार कर रही थी. उन्होंने सारी बात बताई. 2 करोड़ की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘मुझे पता था कि वह बहुत लालची आदमी है. मैं ने अब तक शादी नहीं की थी तो चुप था. शादी होते ही खुल कर सामने आ गया.’’

करीमभाई ने कहा, ‘‘मेरे लिए परेशानी यह है कि उस ने तुम्हें अकेली बुलाया है. पर मैं साथ चलूंगा, जो होगा देखा जाएगा.’’

रूमाना ने प्यार से उस के सीने पर सिर रख कर कहा, ‘‘आप परेशान न हों. मुझे कोई खतरा नहीं है. सारा काम बैंक में होगा, मैं सब संभाल लूंगी.’’

करीमभाई का दिल तो नहीं मान रहा था, लेकिन रूमाना ने अकेली जाने की बात उन से मनवा ली कि वह जा कर उस से तलाक के पेपर्स पर साइन करवा लाएगी और रकम दे देगी.

अगले दिन हारुन का फोन आया तो उन्होंने कहा कि वह तैयार हैं. 2 करोड़ रुपए डौलर में तैयार हैं. हारुन ने कहा, ‘‘कल सुबह रूमाना रुपए ले कर कार से बैंक पहुंचे. किस बैंक में आना है, यह कल बताऊंगा.’’

अगले दिन रूमाना और हारुन किसी बैंक में नहीं, एक शानदार रेस्टोरेंट में कोने की मेज पर बैठे थे. सुबह का वक्त था, लोग बहुत कम थे. हारुन ने पूछा, ‘‘रकम कहां है?’’

हारुन ने यह बात इसलिए पूछी थी, क्योंकि रूमाना के पास कोई बैग नहीं दिख रहा था. रूमाना ने तलाक के पेपर्स हारुन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये रहे तलाक के पेपर्स, जो करीमभाई ने खासतौर से बैक डेट में तैयार कराए हैं.’’

हारुन ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या तुम सचमुच तलाक..?’’

‘‘हां, तुम मुझे सच में तलाक दोगे. वैसे तुम मुझे पहले भी जबानी तलाक दे चुके हो.’’

‘‘वह तो मैं ने तुम्हारी तसल्ली के लिए दिया था. हम दोबारा शादी कर सकते हैं.’’ हारुन ने कहा.

‘‘मैं अब ऐसा नहीं चाहती.’’ रूमाना ने कहा.

हारुन ने व्यंग से कहा, ‘‘क्यों, इसलिए कि करीमभाई अरबपति है. वह आराम से करोड़ों किसी के मुंह पर मार सकता है.’’

‘‘नहीं, इसलिए कि कल दुबई जाने वाली फ्लाइट में तुम्हारी अकेले की सीट बुक है.’’ रूमाना ने तीखे लहजे में कहा.

रूमाना की बात सुन कर हारुन का चेहरा उतर गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘अब यह सब पता करना कोई मुश्किल काम नहीं है. मुझे पहले से ही पता था कि यह आखिरी काम होगा और उस के बाद तुम पैसे ले कर चुपके से खिसक जाओगे. सारी रकम पहले से ही तुम्हारे पास थी. इसलिए अब मैं यह काम नहीं करना चाहती थी. तुम मुझे तनहा और बेसहारा छोड़ कर भाग जाने वाले थे न, था न तुम्हारा यही प्लान?’’ रूमाना ने कहा.

समस्या समाधान के नाम पर ठगी

42 वर्षीय इंदरजीत कौर अकसर बीमार रहती थी. तमाम डाक्टरों से उस का इलाज चला, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. उस के पिता हरवंश सिंह एक सरकारी मुलाजिम थे. बेटी को ले कर वह बड़ा परेशान रहते थे. इंदरजीत कौर के अलावा उन के 2 बेटे भी थे.

हरवंश सिंह दक्षिणी दिल्ली के नेहरूनगर में परिवार के साथ रहते थे. छोटा परिवार होने के बावजूद वह हमेशा परेशान रहते थे. उन की यह परेशानी बेटी इंदरजीत कौर को ले कर थी. अब तक शादी के बाद उसे ससुराल में होना चाहिए था, लेकिन बीमारी की वजह से उस की शादी नहीं हो पाई थी. इस के अलावा दूसरी परेशानी बड़े बेटे को ले कर थी, जो शादी के 8 सालों बाद भी बाप नहीं बन पाया था. तीसरी परेशानी छोटे बेटे को ले कर थी, जो अभी तक बेरोजगार था.

इंदरजीत कौर पिता को अकसर समझाती रहती थी कि वह चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वह ङ्क्षचता से उबर नहीं पा रहे थे. परिवार की जिम्मेदारी एक तरह से इंदरजीत ही संभाले थी. हरवंश सिंह सेवानिवृत्त हुए तो फंड के उन्हें जो 15 लाख रुपए मिले, उन में से 12 लाख रुपए उन्होंने इंद्रजीत के नाम जमा करा दिए थे. इस पर बेटों ने कोई ऐतराज नहीं किया था.

रिटायर होने के कुछ ही महीने बाद हरवंश सिंह की मौत हो गई थी. उन के मरने के 4 महीने बाद ही उन की पत्नी की भी मौत हो गई. 4 महीने में ही मांबाप दोनों की मौत हो जाने से इंदरजीत को गहरा सदमा लगा था. उन के मरने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी थी.

हरवंश सिंह ने अपना एक फ्लैट कुसुमा को किराए पर दे रखा था. उन के मरने के बाद इंदरजीत ने वह फ्लैट खाली कराना चाहा तो उस ने फ्लैट खाली करने से साफ मना कर दिया, जिस का मुकदमा रोहिणी कोर्ट में चल रहा है.

इंदरजीत शारीरिक रूप से तो परेशान थी ही, मानसिक तौर पर भी परेशान रहने लगी थी. उस के छोटे भाई की उम्र 36 साल हो चुकी थी, उस की अभी तक न तो नौकरी लगी थी और न ही शादी हुई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इन परेशानियों से कैसे निजात पाया जाए.

6 सितंबर को इंदरजीत के मोबाइल फोन पर एक एसएमएस आया, जिस में लिखा था, ‘जानिए कैसे होगा आप की समस्या का समाधान? नौकरी, व्यापार में घाटा, शादी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्यार में असफलता, शौतन से छुटकारा, मुठकरनी आदि समस्याओं के समाधान की 100 प्रतिशत गारंटी.’

इंसान तमाम तरह की परेशानियों से घिरा हो और कोशिश करने के बावजूद उस की मुश्किलें कम न हो रही हों तो इस तरह के मैसेज में उसे समस्याओं का हल दिखाई देने लगेगा. मैसेज के अंत में एक फोन नंबर भी दिया था. मैसेज पढऩे के बाद इंदरजीत ने सोचा कि क्यों न वह एक बार उस फोन नंबर पर बात कर के देखे. शायद यहां उस की समस्याएं हल ही हो जाएं. इसी उम्मीद में इंदरजीत ने अपने फोन से मैसेज में दिए नंबर 012048823333 पर फोन किया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव किया गया तो उस ने अपनी सारी समस्याओं के बारे में विस्तार से बता दिया. उधर से बाबा त्यागी, जिस ने फोन उठाया था, भरोसा दिया कि उस की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, लेकिन वह एक घंटे बाद दोबारा करे. बाबा त्यागी ने दोबारा बात करने के लिए दूसरा फोन नंबर दे दिया था.

इंदरजीत कौर ने एक घंटे बाद बाबा द्वारा दिए नंबर पर फोन किया तो उधर से बाबा त्यागी ने कहा, “बच्चा, हम ने अपनी गद्दी पर बैठ कर अपने ईष्ट से बात कर ली है, पता चला है कि तुम परेशानियों से घिरी पड़ी हो.”

“हां बाबा, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.” इंदरजीत ने कहा.

“तुम्हारे ऊपर दुष्ट प्रेतात्माओं के साथ एक भयानक जिन्न कब्जा जमाए है, इसी वजह से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती. बच्चा अगर तुम ने इन से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं किया तो तुम्हारे घर में जल्दी ही 3 मौतें और हो सकती हैं.” तांत्रिक ने कहा.

“मौतेंऽऽ,” इंदरजीत कौर ने घबरा कर पूछा, “किसकिस की?”

“तुम्हारे बड़े भाईभाभी और छोटे भाई की,” बाबा ने कहा, “अगर तुम इस कहर से बचना चाहती हो तो तुम्हें तुरंत पूजा करवानी होगी.”

“पूजा में कितना खर्च आएगा बाबा?”

“यही कोई 80-90 हजार रुपए.”

घर की परेशानियों से छुटकारा के लिए इंदरजीत तैयार हो गई. उस ने कहा, “ठीक है बाबा, मैं पूजा कराने को तैयार हूं. आप तैयारी कीजिए. बताइए, पैसे ले कर कहां आना है?”

“तुम्हें मेरे पास आने की कोई जरूरत नहीं है. मैं तुम्हें आईसीआईसीआई बैंक का एक एकाउंट नंबर बता रहा हूं. तुम उसी में पैसे जमा कर के मुझे फोन कर दो. इस के बाद मैं पूजा शुरू कर दूंगा.” कह कर तांत्रिक ने आईसीआईसीआई बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर दिया.

अगले दिन यानी 7 सितंबर को इंदरजीत कौर ने आईसीआईसीआई बैंक के एकाउंट में 80 हजार रुपए जमा करा कर तांत्रिक को फोन कर दिया. तांत्रिक ने बताया था कि पूजा श्मशान में होगी और पूरे 3 दिनों तक चलेगी.

पैसे जमा कराए एक महीने से ज्यादा हो गया, लेकिन इंदरजीत कौर को कोई फायदा नजर नहीं आया. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन बाबा के बजाय उन के किसी चेले ने उठाया. उस का नाम सुनील कुमार था. उस ने कहा, “अभी तो बाबा पूजा करने उज्जैन गए हैं, वहां से एक महीने बाद लौटेंगे.”

इंदरजीत कौर ने 2 बार फोन किया तो दोनों बार फोन सुनील ने ही रिसीव किया. उस ने दोनों बार वही बताया. इस के बाद उस ने जब भी फोन किया, फोन सुनील ने ही रिसीव किया. हर बार उस ने वही बहाना बना दिया.

आखिर एक दिन बाबा ने फोन रिसीव किया. उस ने कहा, “कहो बच्चा, कैसे हो?”

“बाबा, मैं जैसी पहले थी, वैसी ही अभी भी हूं. मुझे कोई फर्क नजर नहीं आया.” इंदरजीत ने कहा.

“मैं तुम्हें फोन करने वाला था,” बाबा ने कहा, “मुझे लगा था कि दुष्ट आत्माएं काबू में आ गई होंगी, लेकिन वे इतनी दुष्ट हैं कि उन्हें काबू करने के लिए हमें बड़ी पूजा करनी पड़ेगी. अगर यह पूजा न की गई तो तुम्हारे यहां होने वाली मौतों को रोका नहीं जा सकता.”

इंदरजीत कौर बुरी तरह घबरा गई. वह अपने घर को उजड़ता नहीं देखना चाहती थी, इसलिए उस ने पूछा, “बाबा, बड़ी पूजा में कितना खर्च आएगा?”

“यही कोई एक लाख 30 हजार रुपए.” बाबा ने कहा.

इंदरजीत कौर ने अगले दिन अपने भारतीय स्टेट बैंक के खाते से एक लाख 30 हजार रुपए निकाल कर श्री शिवसेना समिति धार्मिक संस्थान के खाते में जमा करा दिए.

एक सप्ताह बीत गया, लेकिन इंदरजीत कौर की एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन सुनील ने रिसीव किया. उस ने बताया कि बाबा अभी श्मशान में शव साधना कर रहे हैं.

एक दिन बाद बाबा त्यागी ने खुद इंदरजीत कौर को फोन कर के कहा, “मैं ने जो शव साधना की है, उस से दुष्ट आत्माएं तो हमारी गिरफ्त में आ गई हैं, लेकिन वह जिन्न अभी काबू में नहीं आया है. उस के लिए हमें एक विशेष तरह का अनुष्ठान करना होगा, जिस के लिए कामाख्या मंदिर से गुरुजी को बुलाना होगा. गुरुजी श्मशान में 11 दिनों तक अनुष्ठान करेंगे.”

“बाबा आप को जो भी करना है, जल्दी कीजिए. इस में कितना खर्च आएगा, यह बता दीजिए.”

“इस अनुष्ठान में करीब 3 लाख रुपए खर्च हो जाएंगे.” बाबा त्यागी ने कहा.

“मैं कल ही 3 लाख रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगी.” उस ने कहा और अगले दिन 3 लाख रुपए बाबा के बैंक खाते में जमा करा दिए.

अब तक इंदरजीत पूजा के नाम पर करीब 9 लाख रुपए बाबा के बताए बैंक खाते में जमा करा चुकी थी. पैसे जमा कराने के अगले दिन ही बाबा त्यागी ने फोन कर के कहा, “बेटा गजब हो गया, जो गुरुजी श्मशान में अनुष्ठान कर रहे थे, उन पर जिन्न ने हमला कर दिया. वह मरणासन्न हालत में हैं. उन का इलाज नहीं कराया गया तो उन की मौत हो सकती है. अगर उन की मौत हो गई तो इस का पाप तुम्हें ही लगेगा.”

“इस के लिए मुझे क्या करना होगा बाबा?”

“गुरुजी के इलाज के लिए संजीवनी बूटी मंगानी होगी, जिस पर 2 लाख रुपए का खर्च आएगा.”

इंदरजीत कौर अब तक पूजा के नाम पर 12 लाख रुपए तांत्रिक बाबा त्यागी के खाते में जमा करा चुकी थी. लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ था, इसलिए उसे शक होने लगा था कि कहीं वह किसी ठग के जाल में तो नहीं फंस गई है. इसलिए उस ने 2 लाख रुपए जमा करा दिए.

इंदरजीत कौर का छोटा भाई अपना कोई कारोबार शुरू करना चाहता था. उसे 8 लाख रुपए की जरूरत थी. उसी बीच उस ने बहन से ये रुपए मांगे तो उस ने रुपए बाबा त्यागी के खाते में जमा कराने की बात बता कर पैसे देने से मना कर दिया.

बहन की बात सुन कर छोटा भाई हैरान रह गया. उस ने अपना सिर पीट कर कहा, “पढ़ीलिखी होने के बावजूद दीदी तुम उस ढोंगी के जाल में कैसे फंस गईं? कम से कम मुझे तो बता देतीं. 3 साल से बाबा तुम्हें ठग रहा है और तुम ने कभी मुझ से चर्चा तक नहीं की.”

“क्या करूं भाई, उस ने मुझे इतना डरा दिया था कि मैं किसी से कुछ कह नहीं सकी.” कह कर इंदरजीत रोने लगी तो भाई ने उसे समझाते हुए कहा, “दीदी, तुम्हें अब पुलिस के पास जा कर उस ठग के खिलाफ रिपोर्ट लिखानी होगी. 12 लाख रुपए भले ही वापस न मिलें, लेकिन कम से कम उसे अपने किए की सजा तो मिलेगी.”

छोटे भाई की बात इंदरजीत कौर की समझ में आ गई. 24 नवंबर की शाम वह भाई के साथ थाना लाजपतनगर पहुंची और वहां मौजूद थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़ को पूरी बात बताई. इस के बाद इंदरजीत कौर की तहरीर पर थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 420/384/506134 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा को पूरे वाकये से अवगत करा दिया.

एक पढ़ीलिखी महिला को जिस तरह से एक तांत्रिक ने ठगा था, उस से डीसीपी को लगा कि ढोंगी तांत्रिक बेहद शातिर है. उस तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने एसीपी एस.के. केन के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़, इंसपेक्टर मानवेंद्र सिंह, प्रवीण कुमार, एसआई अमित भाटी, हैडकांस्टेबल सुधाकर, कांस्टेबल नीरज, संतोष, सुधीर आदि को शामिल किया गया.

इंदरजीत कौर के पास बाबा त्यागी का केवल फोन नंबर था. रमेश कुमार कक्कड़ ने उस ठग तांत्रिक को इंदरजीत के माध्यम से ही घेरने की योजना बनाई. उन्होंने इंदरजीत से बाबा त्यागी को फोन कराया. बाबा ने फोन उठाया तो इंदरजीत ने कहा,

“बाबा, अभी तक मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. आप कुछ ऐसा कीजिए कि हमारे सारे दुख मिट जाएं. मैं इस के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.”

“कामाख्या मंदिर वाले गुरुजी ने अनुष्ठान पूरा करने के बाद मुझे बताया था कि जिन्न और आत्माएं काबू में आ गई हैं. लेकिन जब तक तुम्हारे पिता का पिंडदान रामेश्वरम में नहीं कराया जाता, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी.”

“तो फिर आप यह भी करवा दीजिए.”

“इस के लिए 33 ब्राह्मïणों को यज्ञ के लिए रामेश्वरम ले जाना होगा. ब्राह्मïणों का किराया, यज्ञ आदि पर कुल 1 लाख 80 हजार रुपए का खर्च आएगा.”

“ठीक है, मैं कल ही यह रकम दे दूंगी. लेकिन इस बार रकम बैंक में जमा नहीं करा सकती. क्योंकि मैं जब भी वहां पैसे जमा कराने जाती हूं, बैंक वाले पूछते हैं कि तुम इतनी बड़ीबड़ी रकम इस खाते में क्यों जमा कराती हो?” इंदरजीत कौर ने कहा.

बाबा त्यागी ने यूनियन बैंक औफ इंडिया का खाता नंबर दे कर उस में पैसे जमा कराने को कहा. इंदरजीत कौर थानाप्रभारी के कहे अनुसार काम कर रही थी. उन्होंने पैसे जमा कराने से मना किया तो शाम को बाबा त्यागी को फोन कर के इंदरजीत ने कहा, “बाबा, मैं बैंक में पैसे जमा कराने गई थी, बैंक वाले कह रहे थे कि इस खाते में 25 हजार रुपए से ज्यादा जमा नहीं कराए जा सकते. इसलिए आप कल अपना कोई आदमी भेज दीजिए, मैं उसे पूरे पैसे दे दूंगी.”

“ठीक है, कल सुबह मेरा आदमी तुम्हारे घर पहुंच जाएगा. तुम अपना पता मैसेज कर दो. लेकिन वह जिस टैक्सी से जाएगा, उस का किराया तुम्हें ही देना होगा.” बाबा त्यागी ने कहा.

“यही ठीक रहेगा. आप उन्हें भेज दीजिए. मैं उन्हें किराए के पैसे भी दे दूंगी.” कह कर इंदरजीत कौर ने फोन काट दिया.

25 नवंबर की सुबह थानाप्रभारी टीम के साथ आम कपड़ों में इंदरजीत कौर के घर के आसपास लग गए. सुबह 9 बजे के करीब एक टैक्सी इंदरजीत कौर के घर के सामने आ कर रुकी. टैक्सी से एक लडक़ा उतरा और इंदरजीत कौर के घर की डोरबैल बजा दी. इंदरजीत कौर ने दरवाजा खोला. युवक ने अपना नाम सुनील कुमार बताया.

इंदरजीत कौर उसे ड्राइंगरूम में ले आई. थानाप्रभारी अंदर ही बैठे थे. इंदरजीत ने उसे पानी पिलाया तो उस ने कहा, “मैडम, पैसे जल्दी दे दीजिए. बाबा ने मुझे जल्दी बुलाया है. अभी हमें पूजा का सामान वगैरह भी खरीदना है.”

इंदरजीत कौर ने अपने पर्स से थानाप्रभारी के हस्ताक्षर किए 5 हजार रुपए निकाल कर सुनील को देते हुए कहा, “पहले तुम टैक्सी के किराए के पैसे ले लो, बाकी के पैसे अभी दे रही हूं.”

पैसे गिन कर जैसे ही सुनील ने अपनी जेब में रखे, थानाप्रभारी ने उसे पकड़ लिया. इशारा करने पर मकान के बाहर मौजूद पुलिसकर्मी भी अंदर आ गए. सुनील को पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में सुनील कुमार ने जो बताया, उस के बाद पुलिस ने उसी दिन उत्तर प्रदेश के महानगर गाजियाबाद की कालोनी राजनगर स्थित एक मकान में छापा मारा. वहां का नजारा देख कर पुलिस हैरान रह गई. वहां इस तरह के लोगों को फंसाने के लिए एक काल सेंटर चल रहा था. अलगअलग 12 केबिन बने थे, जिन में 5 लडक़े और 7 लड़कियां बैठी थीं.

पुलिस को देख कर सभी के होश उड़ गए. उन्हीं के बीच एक भव्य औफिस बना था, जिस में शेष नारायण दुबे और पवन कुमार पांडेय नाम के 2 लोग बैठे थे. सुनील की निशानदेही पर पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा काल सेंटर में काम करने वाले लडक़ेलड़कियों को भी पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में पता चला कि ठगी का यह सारा मायाजाल शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी का रचा था.

32 वर्षीय शेष नारायण दुबे गाजियाबाद की इंदिरापुरम कालोनी में रहने वाले रामबहादुर दुबे का बेटा था. रामबहादुर पंडिताई करते थे. पिता की देखादेखी शेष नारायण कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिस में कम खर्च में अच्छी आमदनी हो.

उस ने अपने करीबी रिश्तेदार पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार से बात की तो उन्होंने तंत्रमंत्र के नाम पर ठगी का कारोबार करने की सलाह दी. इस के बाद शेषनारायण को बाबा त्यागी बना कर कारोबार शुरू भी कर दिया गया. इन्होंने शहर के राजनगर में एक कमरा किराए पर लिया, जिस में उन्होंने दरजन भर कंप्यूटर लगा कर लड़कियों व लडक़ों को नौकरी पर रख लिया.

इस के बाद मोबाइल कंपनी से हजारों ग्राहकों के फोन नंबर और पते हासिल किए. उन में से रोजाना कुछ नंबरों पर कालसेंटर द्वारा समस्याओं के समाधान के मैसेज भेजे जाने लगे. हर कोई किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होता ही है, इसलिए अंधविश्वासी लोग मैसेज में दिए फोन नंबर पर समस्या के समाधान के लिए फोन करने लगे. ये लोग उन्हें परिवार के सदस्यों की मौत का भय दिखा कर बैंक खाते में मोटी रकम जमा करवाने लगे.

दिल्ली के लाजपतनगर के नेहरूनगर की रहने वाली इंदरजीत कौर को भी इन्होंने उस के भाइयों व भाभी की मौत का भय दिखा कर 12 लाख रुपए ठग लिए थे. पूछताछ में पता चला कि ये लोग अब तक करीब 3 सौ लोगों को इसी तरह ठग चुके हैं.

इन के कालसेंटर पर नौकरी करने वाले लडक़ेलड़कियों को पुलिस ने हिदायत दे कर छोड़ दिया. शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी, पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार को 26 नवंबर को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया है.

पुलिस ने इन के कालसेंटर को सील कर दिया है. कथा लिखे जाने तक इन में से किसी की भी जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शराफत का इनाम – भाग 3

करीमभाई को कुछ सालों पहले ऐनजाइमा की तकलीफ हुई थी. डाक्टर ने उन्हें जुबान के नीचे रखने वाली गोली दी थी. उन्होंने कांपते हाथों से गोली जुबान के नीचे रखी. आंखें बंद कर के गहरीगहरी सांसें लेने लगे. थोड़ी तबीयत संभली तो घर के लिए रवाना हो गए.

‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’ रूमाना ने उन के घर पहुंचते ही पूछा.

‘‘हां, कुछ परेशानी है. तुम बहुत खुश लग रही हो?’’

‘‘हां, खबर ही खुशी की है. लेकिन पहले आप बताइए कि क्यों परेशान हैं?’’

करीमभाई कुछ देर टहलते रहे, उस के बाद सोच कर बोले, ‘‘आज हारुन हमारे औफिस में आया था.’’

‘‘हारुन आया था?’’ रूमाना ने हैरानी से पूछा. इस के बाद बिफर कर बोली, ‘‘आप ने उसे औफिस से निकलवा क्यों नहीं दिया?’’

‘‘मैं यही करता, लेकिन रूमाना, तुम यह बताओ कि हारुन ने तुम्हें जबानी तलाक दिया था या लिख कर दिया था?’’

‘‘जबानी दिया था. मगर इस से क्या फर्क पड़ता है. तलाक तो तलाक है, जबानी दे या लिख कर दे. तलाक तो हो जाता है.’’ वह सादगी से बोली. करीमभाई ने सिर पर हाथ मार कर कहा, ‘‘तुम बड़ी मासूम हो. तुम्हें नहीं मालूम कि आजकल जमाना कितना खराब हो गया है. अगर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है तो अदालत में यही माना जाएगा कि उस ने तुम्हें तलाक नहीं दिया है.’’

रूमाना हैरान रह गई, ‘‘आप…आप का मतलब है कि वह कमीना आदमी 4 साल बाद यह दावा ले कर आया है कि तलाक नहीं हुआ है.’’

‘‘हां, उस के पास निकाहनामे की कौपी है. रजिस्ट्रार औफिस की रजिस्टर्ड कौपी है.’’ यह कह कर निकाह की कौपी रूमाना के हाथ में दे दी, जो हारुन छोड़ कर गया था.

‘‘बकवास करता है कमबख्त.’’ रूमाना ने गुस्से से निकाहनामा फाड़ कर फेंक दिया. इस के बाद गुस्से से कांपते हुए बोली, ‘‘कोई संबंध नहीं है हारुन से मेरा, मैं आप की बीवी हूं.’’ कह कर रूमाना रोने लगी.

‘‘मैं जानता हूं.’’ करीमभाई ने कहा और रोती हुई रूमाना को सीने से लगा कर चुप कराने लगे.

‘‘आज मैं आप को एक खुशखबरी सुनाने वाली थी कि यह मनहूस खबर आ गई.’’

‘‘कैसी खुशखबरी?’’ सेठ करीमभाई ने पूछा.

रूमाना ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मैं मां बनने वाली हूं. आज ही मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

करीमभाई खुश हो गए. उन्होंने बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘‘अब तुम फिक्र मत करो, मैं सारा मामला निपटा लूंगा.’’

‘‘आप क्या करेंगे? पुलिस में जाएंगे?’’

‘‘नहीं, पुलिसअदालत में जाने से मामला बिगड़ जाएगा. मेरे पास एक तरीका है, मैं उस का मुंह बंद कर दूंगा.’’

बाद में हारुन ने रूमाना को फोन कर के कहा, ‘‘तुम ने अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह अदा की है. बच्चे के बारे में सुन कर बुड्ढा तो दीवाना हो गया होगा?’’

‘‘हां हारुन, लेकिन मुझे डर लग रहा है. उस ने कहा है कि उस के पास उस का मुंह बंद करने का एक तरीका है.’’

‘‘अरे वह रकम दे कर मुंह बंद कराने की बात कर रहा होगा.’’ हारुन ने कहा.

‘‘नहीं, सोचो वह अरबपति है. उस के पास दौलत की ताकत है. अगर उस ने इस ताकत को तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल किया तो..? मैं ने 2 बार पूछा कि कौन सा तरीका है तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रकम की बात होती तो वह मुझ से जरूर बता देता.’’

रूमाना की इस बात से हारुन परेशान हो गया. इस से पहले उन्होंने जिन 5 लोगों को इसी तरह फांसा था, उन में से कोई भी इतना दौलतमंद नहीं था.

वैसे तो करीमभाई देखने में बहुत शरीफ था, दौलत का इस्तेमाल कर के पुलिस को मिलाने और किराए के किलर की व्यवस्था करने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी. उस के पास कई औप्शन थे. हारुन बुनियादी तौर पर बुजदिल आदमी था. उस ने रूमाना से पूछा, ‘‘तुम क्या सोचती हो?’’

‘‘मेरी सलाह तो यही है कि अब तुम उस के सामने मत जाना. फोन पर बात करो और यह सिम बंद कर दो या जब बात करनी हो तभी चालू करो, क्योंकि यह सिम तुम्हारे नाम है. वह तुम्हें ब्लैकमेलिंग में फंसा सकता है. एक बात और याद रखना हारुन, तुम ने वादा किया था कि यह आखिरी बार है. इस के बाद हम बाहर चले जाएंगे.’’

हारुन ने एक बार फिर वही यकीन दिलाया, जो पहले भी कई बार दिला चुका था. वह चालबाज, शातिर आदमी था. उस का और रूमाना का 7 साल से ज्यादा का साथ था.

दोनों ने घर से भाग कर शादी की थी. रूमाना एक बहुत अच्छे खानदान की लड़की थी, लेकिन कमउम्र में मोहब्बत के जज्बात में आ कर उस के साथ भाग गई थी और शादी कर ली थी. रूमाना के घर वाले हारुन को बिलकुल नहीं पसंद करते थे. हारुन को घरगृहस्थी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस का मकसद बस दौलत कमाना और अय्याशी करना था.

दोनों कई शहरों में रहे और हर जगह इसी तरह चक्कर चला कर कई लोगों को ब्लैकमेल किया. रूमाना मजबूर थी. वह घर भी वापस नहीं जा सकती थी. घर जाने पर उस के दोनों भाई उसे जिंदा जला देते.

हारुन ने रूमाना को जिस रास्ते पर चलाया था, वह उस पर चलने को मजबूर थी. इसी वजह से उन्होंने काफी दौलत जमा कर ली थी. इस के अलावा भी हारुन उल्टेसीधे तरीकों से पैसे कमाता रहता था. ऐसे कामों में रूमाना उस का साथ देतेदेते तंग आ चुकी थी. यह भी कह सकते हैं कि वह थक चुकी थी. उस का कहना था कि यह आखिरी बार है, इस के बाद वे बाहर चले जाएंगे.

करीमभाई लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन हारुन का नंबर नहीं लग रहा था. वह लगातार बंद बता रहा था. उस ने 2 दिन का समय दिया था. एक ही दिन उन के पास था. वह सोच रहे थे कि हारुन न जाने कितनी रकम पर राजी होगा? काम में उन का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. उन्होंने फाइलें बंद कर दीं. बारबार उन का ध्यान मोबाइल पर जा रहा था. इस के पहले वह कभी इतना परेशान नहीं हुए थे.

कहां खुशी मनाने का मौका था और वह परेशान थे. फोन की घंटी बजी तो उन्होंने लपक कर उठाया. लेकिन यह रूमाना का फोन था. उस ने पूछा, ‘‘हारुन का कोई फोन आया? मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है, मैं सब संभाल लूंगा. अगर घी सीधी अंगुली से नहीं निकला तो मुझे अंगुली टेढ़ी करना भी आता है. मुझे पता है कि मुझे क्या करना है.’’ करीमभाई ने दृढ़ता से कहा.

रूमाना ने धीरे से कहा, ‘‘शादी के बाद मैं बहुत खुश थी. खुद को बहुत महफूज समझ रही थी, लेकिन यह बखेड़ा खड़ा हो गया.’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’